UP Board Class 10 Political Science | राजनीतिक दल
UP Board Solutions for Class 10 sst Political Science Chapter 6 राजनीतिक दल
अध्याय 6. राजनीतिक दल
अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर
(क) एन०सी०ई० आर०टी० पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न
प्रश्न 1. लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की विभिन्न भूमिकाओं की चर्चा करें।
उत्तर―लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की विभिन्न भूमिकाएं निम्नलिखित हैं―
1. चुनाव लड़ना―राजनीतिक दल चुनाव लड़ते हैं। अधिकांश लोकतांत्रिक देशों में चुनाव राजनीतिक
दलों द्वारा खड़े किए गए उम्मीदवारों के बीच लड़ा जाता है। राजनीतिक दल उम्मीदवारों का चुनाव
कई तरीकों से करते हैं। भारत में दल के नेता ही उम्मीदवार चुनते हैं।
2. नीतियाँ व कार्यक्रम जनता के सामने रखना―दल अलग-अलग नीतियों और कार्यक्रमों को
मतदाताओं के सामने रखते हैं और मतदाता अपनी पसंद की नीतियाँ और कार्यक्रम चुनते हैं।
लोकतंत्र में समान या मिलते-जुलते विचारों को एक साथ लाना होता है ताकि सरकार की नीतियों
को एक दिशा दी जा सके। दल तरह-तरह के विचारों को बुनियादी राय तक समेट लाता है। सरकार
प्राय: शासक दल की राय के अनुसार नीतियाँ तय करती है।
3. कानून निर्माण में निर्णायक भूमिका― राजनीतिक दल देश के कानून निर्माण में निर्णायक
भूमिका निभाते हैं। कानूनों पर औपचारिक बहस होती है और विधायिका में पास करवाना पड़ता है।
लेकिन विधायिका के सदस्य किसी-न-किसी दल के सदस्य होते हैं। इस कारण वे अपने दल के
नेता के निर्देश पर फैसला करते हैं।
4. सरकार बनाना―दल ही सरकार बनाते व चलाते हैं। जो दल चुनाव जीतता है वह सरकार बनाता
है तथा महत्त्वपूर्ण नीतियों और फैसलों के मामले में निर्णय भी लेता है। पार्टियाँ नेता चुनती हैं उनको
प्रशिक्षित करती हैं फिर उन्हें मंत्री बनाती हैं ताकि वे पार्टी की इच्छानुसार शासन चला सकें।
5. विरोधी दल के रूप में काम करना―चुनाव हारने वाले दल शासक दल के विरोधी पक्ष की
भूमिका निभाते हैं। सरकार की गलत नीतियों और असफलताओं की आलोचना करने के साथ वे
अपनी अलग राय भी रखते हैं। विरोधी दल सरकार के खिलाफ आम जनता को गोलबंद करते हैं।
6. जनमत निर्माण करना―राजनीतिक दल जनमत निर्माण का कार्य भी करते हैं। चुनावों के समय,
चुनाव प्रचार के दौरान तथा बाद में सरकार बनाने के बाद भी राजनीतिक दल विभिन्न मुद्दों को
उठाकर जनता को राजनीतिक शिक्षण देने का काम करते हैं जिससे एक स्वस्थ जनमत का निर्माण
होता है।
7. कल्याणकारी कार्यक्रमों को जनता तक पहुँचाना-दल ही सरकारी मशीनरी और सरकार द्वारा
चलाए गए कल्याण कार्यक्रमों तक लोगों की पहुँच बनाते हैं। एक साधारण नागरिक के लिए किर्स
सरकारी अधिकारी की तुलना में किसी राजनीतिक कार्यकर्ता से जान-पहचान बनाना, उससे संपर्क
साधना आसान होता है। इसी कारण लोग दलों को अपने करीब मानते हैं। दलों को भी लोगों की
माँगों को ध्यान में रखना होता है वरना जनता अगले चुनावों में उन्हें हरा सकती है।
प्रश्न 2. राजनीतिक दलों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?
उत्तर―लोकतंत्र में राजनीतिक दल महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं किंतु उन्हें कुछ चुनौतियों का सामना
करना पड़ता है, जो अग्रलिखित हैं―
1. आंतरिक लोकतंत्र का अभाव―पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव पाया जाता है। पार्टियों के
पास न सदस्यों की खुली सूची होती है, न नियमित रूप से सांगठनिक बैठकें होती हैं। इनके आंतरिक
चुनाव भी नहीं होते। कार्यकर्ताओं से वे सूचनाओं का साझा भी नहीं करते। सामान्य कार्यकर्ता
अनजान ही रहता है कि पार्टियों के अंदर क्या चल रहा है। परिणामस्वरूप पार्टी के नाम पर सारे
फैसले लेने का अधिकार उस पार्टी के नेता हथिया लेते हैं। चूँकि कुछ ही नेताओं के पास असली
ताकत होती है। इसलिए पार्टी के सिद्धांतों और नीतियों से निष्ठा की जगह नेता से निष्ठा ही ज्यादा
महत्त्वपूर्ण बन जाती है।
2. वंशवाद की चुनौती―दलों के जो नेता होते हैं वे अनुचित लाभ लेते हुए अपने नजदीकी लोगों
और यहाँ तक कि अपने ही परिवार के लोगों को आगे बढ़ाते हैं। अनेक दलों में शीर्ष पद पर हमेशा
एक ही परिवार के लोग आते हैं। यह दल के अन्य सदस्यों के साथ अन्याय है। यह बात लोकतंत्र के
लिए भी अच्छी नहीं है क्योंकि इससे अनुभवहीन और बिना जनाधार वाले लोग ताकत वाले पदों पर
पहुंँच जाते हैं।
3. धन और अपराधी तत्त्वों की घुसपैठ―सभी राजनीतिक दल चुनाव जीतना चाहते हैं। इसके लिए
वह हर तरीका अपना सकते हैं। वे ऐसे उम्मीदवार खड़े करते हैं जिनके पास काफी पैसा हो या पैसे
जुटा सके। कई बार पार्टियाँ चुनाव जीत सकने वाले अपराधियों का समर्थन करती हैं या उनकी मदद
लेती हैं। जिससे राजनीति का अपराधीकरण हो गया है।
4. विकल्पहीनता की स्थिति―सार्थक विकल्प का अर्थ है विभिन्न पार्टियों की नीतियों और
कार्यक्रमों में अंतर हो। कुछ वर्षों से दलों के बीच वैचारिक अंतर कम होता गया है। यह प्रवृत्ति
दुनिया भर में देखने को मिलती है। भारत की सभी बड़ी पार्टियों के बीच आर्थिक मसलों पर बड़ा
कम अंतर रह गया है। जो लोग इससे अलग नीतियाँ बनाना चाहते हैं उनके पास कोई विकल्प
उपलव्य नहीं होता।
प्रश्न 3. राजनीतिक दल अपना कामकाज बेहतर ढंग से करें, इसके लिए उन्हें मजबूत बनाने के कुछ
सुझाव दें।
उत्तर―भारत में राजनीतिक दलों और उसके नेताओं को सुधारने के लिए हाल में जो प्रयास किए गए हैं
या जो सुझाव दिए गए हैं वे निम्नलिखित हैं―
1. विधायकों और सांसदों को दल-बदल करने से रोकने के लिए संविधान में संशोधन किया गया।
निर्वाचित प्रतिनिधियों के मंत्रीपद या पैसे के लोभ में दल-बदल करने में आई तेजी को देखते हुए
ऐसा किया गया। नए कानून के अनुसार अपना दल बदलने वाले सांसद या विधायक को अपनी सीट
भी गंवानी होगी। इस कानून से दल-बदल में कमी आई है।
2. उच्चतम न्यायालय ने पैसे और अपराधियों का प्रभाव कम करने के लिए एक आदेश जारी किया है।
इसके द्वारा चुनाव लड़ने वाले हर उम्मीदवार को अपनी संपत्ति का और अपने खिलाफ चल रहे
आपराधिक मामलों का ब्यौरा एक शपथपत्र के माध्यम से देना अनिवार्य कर दिया गया है। इस नई
व्यवस्था से लोगों को अपने उम्मीदवारों के बारे में बहुत-सी पक्की सूचनाएँ उपलब्ध होने लगी हैं।
3. चुनाव आयोग ने एक आदेश के जरिए सभी दलों के लिए सांगठनिक चुनाव कराना और आयकर
का रिटर्न भरना जरूरी बना दिया है। दलों ने ऐसा करना शुरू कर भी दिया है, पर कई बार ऐसा
सिर्फ खानापूर्ति के लिए होता है।
कुछ अन्य कदम जो राजनीतिक दलों में सुधार के लिए सुझाए गए है―
1. राजनीतिक दलों के आंतरिक कामकाज को व्यवस्ि करने के लिए कानून बनाया जाना चाहिए।
सभी दल अपने सदस्यों की सूची रखें, अपने संविधान का पालन करें, सबसे बड़े पदों के लिए खुले
चुनाव कराएँ।
2. राजनीतिक दल महिलाओं को एक खास न्यूनतम अनुपात में जरूर टिकट दें। इसी प्रकार दल के
प्रमुख पदों पर भी औरतों के लिए आरक्षण होना चाहिए।
3. चुनाव का खर्च सरकार उठाए। सरकार दलों को चुनाव लड़ने के लिए धन दे।
4. राजनीतिक दलों पर लोगों द्वारा दबाव बनाया जाए। यह काम पत्र लिखने, प्रचार करने और आंदोलन
के जरिए किया जा सकता है। यदि दलों को लगे कि सुधार न करने से उनका जनाधार गिरने लगेगा
तो इसे लेकर वे गंभीर होने लगेंगे।
5. सुधार की इच्छा रखने वालों का खुद राजनीतिक दलों में शामिल होना।
राजनीतिक दलों ने अभी तक इन सुझावों को नहीं माना है। अगर इन्हें मान लिया गया तो संभव है कि इनसे
कुछ सुधार हो।
प्रश्न 4. राजनीतिक दल का क्या अर्थ होता है?
उत्तर― राजनीतिक दल को लोगों के एक ऐसे संगठित समूह के रूप में समझा जा सकता है जो चुनाव
लड़ने और सरकार में राजनीतिक सत्ता हासिल करने के उद्देश्य से काम करता है। समाज के सामूहिक हित
को ध्यान में रखकर यह समूह कुछ नीतियाँ और कार्यक्रम तय करता है।
प्रश्न 5. किसी भी राजनीतिक दल के क्या गुण होते हैं?
उत्तर― राजनीतिक दल के निम्नलिखित गुण होते हैं―
1. राजनीतिक दल समाज के सामूहिक हितों को ध्यान में रखकर कुछ नीतियाँ और कार्यक्रम बनाते हैं।
2. दल लोगों का समर्थन पाकर चुनाव जीतने के बाद उन नीतियों को लागू करने का प्रयास करते हैं।
3. दल किसी समाज के बुनियादी राजनीतिक विभाजन को भी दर्शाते हैं।
4. दल समाज के किसी एक हिस्से से संबंधित होता है इसलिए इसका नजरिया समाज के उस
वर्ग-विशेष की तरफ झुका होता है।
5. किसी दल की पहचान उसकी नीतियों और उसके सामाजिक आधार से तय होती है।
6. राजनीतिक दल के तीन मुख्य हिस्से हैं—नेता, सक्रिय सदस्य, अनुयायी या समर्थक।
प्रश्न 6. चुनाव लड़ने और सरकार में सत्ता संभालने के लिए एकजुट हुए लोगों के समूह
को……….. कहते हैं।
उत्तर― राजनीतिक दल।
प्रश्न 7. पहली सूची (संगठन/दल) और दूसरी सूची (गठबंधन/मोर्चा) के नामों का मिलान करें और
नीचे दिए गए कूट नामों के आधार पर सही उत्तर ढूँढ़ें―
सूची I सूची II
1. कांग्रेस पार्टी (क) राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन
2. भारतीय जनता पार्टी (ख) प्रांतीय दल
3. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (ग) संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन
4. तेलुगुदेशम पार्टी (घ) वाम मोर्चा
उत्तर―(ग) 1. ग, 2. क, 3. घ,4.ख।
प्रश्न 8. इनमें से कौन बहुजन समाज पार्टी का संस्थापक है?
(क) कांशीराम
(ख) साहू महाराज
(ग) बी०आर० अंबेडकर
(घ) ज्योतिबा फुले
उत्तर―(क) कांशीराम
प्रश्न 9. भारतीय जनता पार्टी का मुख्य प्रेरक सिद्धांत क्या है?
(क) बहुजन समाज
(ख) क्रांतिकारी लोकतंत्र
(ग) सांस्कृतिक राष्ट्रवाद
(घ) आधुनिकता
उत्तर―(ग) सांस्कृतिक राष्ट्रवाद
प्रश्न 10. पार्टियों के बारे में निम्नलिखित कथनों पर गौर करें―
(अ) राजनीतिक दलों पर लोगों का ज्यादा भरोसा नहीं है।
(ब) दलों में अक्सर बड़े नेताओं के घोटालों की गूंज सुनाई देती है।
(स) सरकार चलाने के लिए पार्टियों का होना जरूरी नहीं।
इन कथनों में से कौन सही है?
(क) अ, ब और स (ख) अ और ब (ग) ब और स (घ) अ और स।
उत्तर― (ख) अ और ब सही है।
प्रश्न 11. निम्नलिखित उद्धरण को पढ़ें और नीचे दिए गए प्रश्नों का जवाब दें-
उत्तर― मोहम्मद यूनूस बांग्लादेश के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री हैं। गरीबों के आर्थिक और सामाजिक विकास
के प्रयासों के लिए उन्हें अनेक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं। उन्हें और उनके द्वारा स्थापित ग्रामीण बैंक को
संयुक्त रूप से वर्ष 2006 का नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया। फरवरी, 2007 में उन्होंने एक राजनीतिक
दल बनाने और संसदीय चुनाव लड़ने का फैसला किया। उनका उद्देश्य सही नेतृत्व को उभारना, अच्छा
शासन देना और नए बांग्लादेश का निर्माण करना है। उन्हें लगता है कि पारंपरिक दलों से अलग एक नए
राजनीतिक दल से ही नई राजनीतिक संस्कृति पैदा हो सकती है। उनका दल निचले स्तर से लेकर ऊपर तक
लोकतांत्रिक होगा।
नागरिक शक्ति नामक इस नये दल के गठन से बांग्लादेश में हलचल मच गई है। उनके फैसले को काफी
लोगों ने पसंद किया तो अनेक को यह अच्छा नहीं लगा। एक सरकारी अधिकारी शाहेदुल इस्लाम ने कहा,
“मुझे लगता है कि अब बांग्लादेश में अच्छे और बुरे के बीच चुनाव करना संभव हो गया है। अब एक
अच्छी सरकार की उम्मीद की जा सकती है। यह सरकार न केवल भ्रष्टचार से दूर रहेगी बल्कि भ्रष्टाचार
और काले धन की समाप्ति को भी अपनी प्राथमिकता बनाएगी।”
पर दशकों से मुल्क की राजनीति में रुतबा रखने वाले पुराने दलों के नेताओं में संशय है। बांग्लादेश
नेशनलिस्ट पार्टी के एक बड़े नेता का कहना है-“नोबेल पुरस्कार जीतने पर क्या बहस हो सकती है पर
राजनीति एकदम अलग चीज है। एकदम चुनौती भरी और अक्सर विवादास्पद।” कुछ अन्य लोगों का स्वर
और कड़ा था। वे उनके राजनीति में आने पर सवाल उठाने लगे। एक राजनीतिक प्रेक्षक ने कहा, “देश से
बाहर की ताकतें उन्हें राजनीति पर थोप रही हैं।”
क्या आपको लगता है कि यूनुस ने नयी राजनीतिक पार्टी बनाकर ठीक किया?
क्या आप विभिन्न लोगों द्वारा जारी बयानों और अंदेशों से सहमत हैं? इस पार्टी को दूसरों से अलग काम
करने के लिए खुद को किस तरह संगठित करना चाहिए? अगर आप इस राजनीतिक दल के संस्थापकों
में एक होते तो इसके पक्ष में क्या दलील देते?
उत्तर―युनूस ने वही किया जो वह मानता था कि उसके उद्देश्य की पूर्ति करेगा और बांग्लादेश के
सुधार का उद्देश्य पूरा करेगा। अपने ग्रामीण बैंक के पहल के लिए लोगों से मिलने वाले समर्थन ने उसे चुनाव
जितवाए और राजनीतिक सत्ता द्वारा बदलाव लाने में सहायता की। लोगों को अपनी सलाह देने का हक दिया
गया। यह युनूस का कर्तव्य है कि वह लोगों को आश्वस्त करे और लोगों के मन से डर भगाए।
नई पार्टी में आन्तरिक लोकतंत्र होना चाहिए। मुद्रा-प्रवाह के संबंध में परदर्शिता होनी चाहिए। मात्र वे ही
व्यक्ति चुनावों के लिए नामांकित होने चाहिए जिनकी कोई अपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है।” अपने आदर्शवादी
वादों पर पार्टी को बने रहना चाहिए।
मैं इसकी ईमानदारी से रक्षा करूंगा। मैं लोगों को आश्वस्त करता हूँ कि मैं ईमानदार और पारदर्शी राजनीतिक
दल को दिखाते हुए प्रभावी सरकार तैयार करूंगा। नीतियाँ और कार्यक्रम यह सुनिश्चित करेंगे कि हरेक के
हित का ध्यान रखा गया है और बांग्लादेश के भविष्य के लिए संतुलित दृष्टिकोण बनाया गया है।
(ख) अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. देश के प्रत्येक राजनीतिक दल को अपने दल का पंजीकरण कहाँ कराना पड़ता है?
(क) उच्च न्यायालय में
(ख) संसद में
(ग) राष्ट्रपतिभवन में
(घ) चुनाव आयोग में
उत्तर― (घ) चुनाव आयोग में
प्रश्न 2. भारत में कितने राष्ट्रीय राजनीतिक दल है?
(क) 18
(ख) 20
(ग) 6
(घ) 2
उत्तर― (ग) 6
प्रश्न 3. संसद में प्रतिपक्ष किसे कहते हैं?
(क) शासक दल
(ख) सहयोगी दल
(ग) विरोधी दल
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर― (ग) विरोधी दल
प्रश्न 4. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना किस वर्ष में हुई?
(क) 1885 में
(ख) 1920 में
(ग) 1945 में
(घ) 1880 में
उत्तर― (क) 1885 में
प्रश्न 5. शपथ-पत्र क्या है?
(क) गोपनीय आलेख
(ख) विश्वसनीय आलेख
(ग) व्यक्तिगत सूचना आलेख
(घ) ये सभी
उत्तर― (क) गोपनीय आलेख
प्रश्न 6. लोकतांत्रिक व्यवस्था में सुधार कब होगा?
(क) जब राजनीति में सभी अपनी योग्यतानुसार भागीदारी निश्चित करेंगे।
(ख) जब प्रत्येक नागरिक लोकतंत्र का वास्तविक अर्थ समझेगा।
(ग) जब जनसाधारण जागरुक होगा।
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर― (घ) उपर्युक्त सभी
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. विश्व भर के लोकतांत्रिक देशों में राजनीतिक दल क्यों आवश्यक हैं?
उत्तर―किसी भी देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की सस्थाओं में राजनीति दल आवश्यक हैं।
प्रश्न 2. राजनीतिक दल के तीन प्रमुख भाग कौन-कौन से हैं?
उत्तर―राजनीतिक दल के तीन प्रमुख भाग हैं-(i) नेता, (ii) सक्रिय सदस्य, (iii) समर्थक।
प्रश्न 3. राजनीतिक दल सत्ता का प्रयोग किस प्रकार करते हैं?
उत्तर―राजनीतिक दल सत्ता का प्रयोग जनहितार्थ करते हैं।
प्रश्न 4. शासक दल किसे कहते हैं?
उत्तर―देश अथवा प्रदेश में जिस दल की सरकार हो उसे उस देश/प्रदेश का शासक दल कहते हैं।
प्रश्न 5. विपक्ष किसे कहते हैं?
उत्तर―चुनाव में पराजित हुए दल विपक्ष कहलाते हैं।
प्रश्न 6. निर्वाचित प्रतिनिधि किसके प्रति जवाबदेह होते हैं?
उत्तर―निर्वाचित प्रतिनिधि देश की जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं।
प्रश्न 7. लोकतंत्र की अनिवार्य शर्त क्या है?
उत्तर―जनसमर्थन लोकतंत्र की अनिवार्य शर्त है।
प्रश्न 8. एकदलीय व्यवस्था राजनीति में अच्छा विकल्प क्यों नहीं है?
उत्तर―एकदलीय व्यवस्था राजनीति में उत्तम विकल्प नहीं, क्योंकि प्रतिद्वंद्विता प्रगति का द्वार खोजती
है। बिना प्रतिद्वंद्वी के एकदलीय व्यवस्था निरंकुश हो सकती है।
प्रश्न 9. भारत में प्रत्येक दल को अपना पंजीकरण कहाँ करवाना पड़ता है?
उत्तर―भारत में प्रत्येक दल को चुनाव आयोग में अपना पंजीकरण करवाना पड़ता है।
प्रश्न 10.भारत में राष्ट्रीय राजनीतिक दल कितने हैं?
उत्तर― भारत में छ: राष्ट्रीय राजनीतिक दल हैं।
प्रश्न 11.प्रांतीय दल क्या होते है?
उत्तर― मात्र छ: राष्ट्रीय दलों के अतिरिक्त अन्य राजनीतिक दलों को प्रांतीय दलों के रूप में मान्यता
प्राप्त है।
प्रश्न 12.शपथ-पत्र क्या है?
उत्तर― किसी अधिकारी को सौंपा गया एक आलेख जिसमें निजी सूचनाएँ सम्मिलित होती हैं;
शपथ-पत्र कहलाता है।
लघुउत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. हमें राजनीतिक दलों की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर― लोकतंत्र हेतु हमें राजनीतिक दलों की आवश्यकता होती है। क्योंकि यदि राजनीतिक दल न हों
तो सभी प्रत्याशी स्वतंत्र अर्थात् निर्दलीय हो जाएंगे। ऐसी स्थिति में कोई विशेष संगठन, कोई विशेष दल
जनता की समस्याओं के प्रति उत्तरदायी नहीं होगा। अत: राजनीतिक दलों की आवश्यकता अनिवार्य है।
प्रश्न 2. राजनीतिक दलों का उद्देश्य क्या है?
उत्तर― राजनीतिक दलों का उद्देश्य जनसमर्थन प्राप्त कर चुनाव में विजयश्री प्राप्त करते हैं और फिर
उनका उद्देश्य जन-हितैषी नीतियाँ लागू करना होता है।
प्रश्न 3. राजनीति की आदर्श प्रणाली क्या है?
उत्तर―लोकतंत्र राजनीति की आदर्श प्रणाली है। कोई भी देश प्रत्येक स्थिति में कोई एक आदर्श
प्रणाली का अनुकरण करता है।
प्रश्न 4. दल-बदल रोकने के लिए कौन-सा कानून पारित किया गया?
उत्तर―विधायकों तथा सांसदों को दल-बदल करने से रोकने हेतु संविधान में संशोधन किया गया।
निर्वाचित प्रतिनिधि सत्ता के लोभ के कारण अथवा धन के लालच में अपना दल परिवर्तित कर लिया करते
है। अब नवीन कानून पारित किया गया कि अपना दल त्यागकर जाने वाले दल-बदलू नेता को अपना पद
“सांसद अथवा विधायक” छोड़ना होगा।
प्रश्न 5. भारत जैसे देश में बहुदलीय व्यवस्था का क्या कारण है?
उत्तर― जब अनेक दल सत्ता-प्राप्ति हेतु बहुमत के लिए अपने बल पर अथवा अन्य समान विचारधारा
वाले दलों से गठबंधन करके सत्तारूढ़ होने की प्रक्रिया को बहुदलीय व्यवस्था कहा जाता है। भारत में भी
इस प्रकार की बहुदलीय व्यवस्था होती रहती है।
प्रश्न 6. ग्राम-पंचायत का चुनाव किस प्रकार से होता है?
उत्तर―ग्राम पंचायत में राजनीतिक दल औपचारिक रूप से अपने-अपने प्रतिनिधि नहीं खड़ा करते,
अपितु चुनाव काल में पूरा गाँव दो-तीन खेमों में बँट जाता है। प्रत्येक खेमा अपने इच्छित प्रत्याशियों के लिए
पूर्व-निर्धारित समूह उतारता है और ग्राम-पंचायत के चुनाव संपन्न कराता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. राजनीतिक दल का अपने शब्दों में अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर― आज का शिशु राजनीतिक वातावरण में आँखें खोलता है। जीवन के प्रत्येक पग पर राजनीति
मानव को प्रभावित करती है। राजनीति के समान राजनीतिक दल भी सर्वव्यापी हो गए हैं। राजनीतिक दल
मनुष्यों का एक सकारात्मक संगठित समूह है। इन सभी दलों का मुख्य लक्ष्य चुनाव लड़ना और विजयश्री
प्राप्त कर सत्तासीन होना है। इन्हीं उद्देश्यों को लक्षित कर राजनीतिक दल सर्वदा कार्यशील रहते हैं। इन
दलों के नीति-निर्धारण तथा कार्यक्रम उद्देश्य समाज के सामूहिक हितों की रक्षा करना रहता है। यद्यपि
सामूहिक हित एक विवादास्पद अर्थधारक विषय है। प्रत्येक व्यक्ति के विचार इस विषय पर भिन्न-भिन्न
होते हैं और इन्हीं आधारों की पृष्ठभूमि तैयार चतुर राजनीतिक दल सामान्य जनमानस को समझने का प्रयत्न
करते हैं। वह साधारण लोगों को यह समझाने का प्रयास करते हैं कि उनकी नीतियाँ, उनकी कार्यप्रणाली
जन-समुदाय के लिए सर्वाधिक हितकर हैं। इस प्रकार सभी राजनीतिक दल स्वयं को सबसे बड़ा
जन-हितैषी घोषित करते हैं। इस प्रकार जन-लुभावन वायदे करके कोई एक दल चुनावों में विजित होता है
और सत्तासीन होकर जन-हितैषी नीति-निर्धारण करता है। इस प्रकार यह राजनीतिक दल समाज के भूमिगत
राजनीति विभाजन को भी प्रस्तुत करते हैं। प्रत्येक दल समाज के किसी-न-किसी वर्ग से संबंधित होते हैं।
राजनीतिक दलों में वर्ग-विशेष की प्रवृत्ति भी दृष्टिगोचर होती है।
प्रश्न 2. राजनीतिक दल के क्या कार्य हैं?
उत्तर― किसी भी दल की पहचान उसके द्वारा की गई नीति-निर्माण तथा उसके सामाजिक मूल्यों के
आधार पर निर्धारित होती है। यह एक स्वतः स्फूर्त प्रश्न है-राजनीतिज्ञ क्या-क्या करते हैं? सर्वप्रथम तो
यह दल लोकतांत्रिक पद्धति से प्राप्त सत्ता का उपभोग करते हैं। तत्पश्चात् अपने दल के चयनित प्रतिनिधियों
को राजनीतिक स्थानों पर पदासीन करते हैं। प्रत्येक राजनीति दल इन कार्यों को अपनी-अपनी कार्यपद्धति के
अनुसार करते हैं―
● सर्वप्रथम यह राजनीतिक दल जनता के मध्य जाकर उन्हें अपनी नीतियों से अवगत कराते हैं तथा
अपनी विचारधाराओं से आकर्षित करते हैं। चुनाव जीतने तथा सत्ताहीन होने के पश्चात् जनता के मध्य
कार्य करते हैं। विश्व में सौ से अधिक देशों में यह पद्धति लोकप्रिय है।
● सभी राजनीतिक दल अपनी भिन्न-भिन्न नीतियाँ तथा आकर्षक योजनाएँ मतदाताओं के समक्ष रखते हैं
जिससे मतदाताओं का रुझान उनकी ओर बढ़े। राजनीतिक दल विभिन्न प्रकार की पारम्परिक सोच का
समर्थन भी करते हैं। सरकार प्रायः शासक दल के निर्देशानुसार अपनी नीतियाँ निर्धारण करती है।
● राजनीतिक दल विधि-विधान निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। इस प्रकार के कानूनों
पर औपचारिक चर्चा होती है। तत्पश्चात् उसे विधायिका से पास कराना होता है। विधायिका अनेक
दलों का सम्मिलित समूह है। जो अपने-अपने दल के निर्देशानुसार कार्य करते हैं। इस प्रकार
विधायिका से प्रत्येक बिल पास कराना सरल नहीं होता।
● सरकारें राजनीतिक दलों द्वारा ही बनाई जाती हैं तथा संचालित होती हैं; नीतियों तथा महत्त्वपूर्ण निर्णयों
के विषयों में राजनेता ही दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं। ये नेता भिन्न-भिन्न दलों के होते हैं। दल अपने
दल का नेतृत्व तय करते हैं। तदोपरांत दल के सिद्धान्तों तथा कार्यक्रम अनुसार उन्हें पदासीन किया
जाता है, जिससे कि वह दल की विचारधारा के अनुसार सरकार का संचालन कर सकें।
● चुनाव में पराजित हुए दल शासक-दल के विपक्ष की भूमिका का निवर्हन करते हैं। इस प्रतिपक्ष की
भूमिका के अंतर्गत वह प्रशासन की दोषपूर्ण नीतियों की आलोचना तथा असफलताओं पर व्यापक
चर्चा करते हैं। विपक्षी दल प्रशासन के विरुद्ध जनसाधारण को भी गोलबंद करते हैं।
प्रश्न 3. राजनीतिक दल की आवश्यकता पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
उत्तर― किसी भी देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की संस्थाओं में राजनीतिक दल अपना विशिष्ट स्थान
रखते हैं। भारत जैसे देश में जनसामान्य के लिए लोकतंत्र का तात्पर्य राजनीतिक दल से ही है। आधुनिक
लोकतंत्र प्रणाली राजनीतिक दलों के बिना चल नहीं सकती। यदि राजनीतिक दल न हों तो सभी प्रत्याशी
स्वतंत्र अर्थात् निर्दलीय हो जाएंगे। ऐसी स्थिति में कोई संगठन, कोई विशेष दल जनता की समस्याओं के प्रति
उत्तरदायी नहीं होगा। यहाँ-वहाँ से सरकार का गठन तो संभव हो पाएगा किंतु कोई बड़े नीतिगत परिवर्तन
तथा चुनावी वादों की स्थिति संदिग्ध ही बनी रहेगी। निर्वाचित प्रतिनिधि मात्र अपने ही निर्वाचन क्षेत्र के प्रति
उत्तरदायी होंगे। देश संचालन उनके क्षेत्र से बाहर का विषय होगा। प्रस्तुत तथ्य को हम दलविहीन होने वाले
ग्राम पंचायत चुनाव के आलोक में समझ सकते हैं। यद्यपि इस प्रकार चुनावों में राजनीतिक दल औपचारिक
रुप से अपने-अपने प्रत्याशी नहीं खड़ा करते किंतु चुनावकाल में पूरा गाँव कई खेमों में बँट जाता है। देश का
भौगोलिक आकार बड़ा हो अथवा छोटा, वह विकासशील हो अथवा विकसित, नवीन हो अथवा पुरातन।
राजनीतिक दलों का उदय लोकतांत्रिक व्यवस्था के साथ ही जुड़ा है। बड़े समाजों के लिए
प्रतिनिधित्व-आधारित लोकतंत्र की आवश्यकता होती है। समाज का स्वरूप जब विस्तार प्राप्त करता है तो
उनके विभिन्न प्रकार के मुद्दे, भिन्न-भिन्न मान्यताएँ तथा विभिन्न विचारधाराओं को स्पष्ट करने के लिए
किसी एक विशिष्ट माध्यम की आवश्यकता होती है। अनेक स्थानों से सम्बंधित क्षेत्रीय प्रतिनिधियों को
साथ-साथ लेने की आवश्यकता पड़ती है। इस प्रकार से कि एक उत्तरदायी सरकार का गठन हो सके। उन्हें
प्रशासन का समर्थन करने तथा उन पर अंकुश लगाने, नीति-निर्माण करने, समर्थन अथवा विरोध करने के
लिए उपकरणों की आवश्यकता रहती है। प्रत्येक प्रतिनिधि प्रशासन की आवश्यकताएँ इस प्रकार के
राजनीतिक दल ही पूर्ण करते हैं। अत: हम कह सकते हैं कि राजनीतिक दल लोकतंत्र के आवश्यक घटक
हैं।
प्रश्न 4. राजनीतिक दलों के लिए क्या चुनौतियाँ उपस्थित होती हैं?
उत्तर― वास्तव में लोकतंत्र की कार्यप्रणाली के लिए राजनीतिक दल अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं। दल द्वारा
लोकतंत्र का वास्तविक स्वरूप स्पष्ट होता है। अत: यह स्वाभाविक प्रक्रिया है कि लोकतंत्र की कार्य-शैली
से असंतुलित लोग राजनीतिक दलों को दोषी बनाते हैं। सम्पूर्ण विश्व में नागरिक राजनीतिक दलों की
कार्य-पद्धतियों से संतुष्ट नहीं होते अत: उन्हें जनता के व्यापक असंतोष का सामना करना पड़ता है।
किंतु लोकतंत्र का प्रभावी उपकरण बने रहने के लिए राजनीतिक दलों को लोकतंत्र के पथ पर चुनौतियों का
सामना कर उन पर विजय प्राप्त करनी चाहिए―
● आज सत्ता की समूची शक्ति कुछ नेताओं के कर-विलास में सिमट कर रह गई है। राजनीतिक दलों में
पारदर्शिता का अभाव होता है। दलों के पास सदस्य-सूची का अभाव रहता है। नियमित रूप से संगठित
बैठकें नहीं होती हैं। इस प्रकार के दल अंतरिम कार्यों से दल का सामान्य कार्यकर्ता अनभिज्ञ रहता है।
उसके पास मुख्य नेतृत्व से जुड़कर निर्णयों को प्रभावित करने की क्षमता नहीं होती, परिणामस्वरूप
सभी निर्णय करने का अधिकार दल के शीर्षस्थ नेता करते हैं। उनके पास वास्तविक शक्ति है।
● द्वितीय चुनौती भी प्रथम चुनौती के समान ही महत्त्वपूर्ण है। यह चुनौती वंशवाद की चुनौती है। क्योंकि
अधिकांश दल अपनी कार्य-शैली में पारदर्शिता का उपयोग नहीं करते। अधिकांशत: देखने में आता है
कि एक ही परिवार के लोग सर्वदा शीर्षस्थ पदों पर अपना आधिपत्य बनाए रखते हैं। इस प्रकार की
चुनौती दल के अन्य सदस्यों के साथ अन्याय है। क्योंकि इससे अनुभवहीन तथा जनाधारविहीन लोग
शक्ति और वंशवाद की सत्ता के आधार पर शीर्षस्थ पदों पर पहुंँच जाते हैं।
● चुनावी काल में दलों में घुसपैठ, अपराधी तत्त्वों की बढ़ोतरी तथा काला धन लोकतंत्र की तृतीय चुनौती
है क्योकि दलों की सार्वधिक महत्त्वाकांक्षा चुनाव जीतने की होती है। इसके लिए वह कोई भी
जायज-नाजायज तरीका अपनाने से चूकते नहीं हैं। उनका लक्ष्य मात्र चुनाव में विजय की प्राप्ति ही
होता है। इसीलिए वह चुनावी क्षेत्र में ऐसे प्रत्याशी को उतारते हैं जिसके पास प्रचुर मात्रा में धन हो
अथवा धन जुटाने की क्षमता रखता हो। विश्व भर में लोकतंत्र के समर्थक लोकतांत्रिक राजनीति में
धनिक लोग बड़ी-बड़ी कंपनियों की प्रतिभागिता को लेकर चिंतित रहते हैं।
● चतुर्थ चुनौती दलों के मध्य विकल्पहीनता की स्थिति है। सार्थक विकल्प का अर्थ है कि विभिन्न दलों
की नीतियों तथा कार्यक्रमों में महत्त्वपूर्ण उत्तर होना चाहिए। वर्तमान के कुछ वर्षों में दलों के मध्य
वैचारिक अंतर धीरे-धीरे कम हो रहा है। इस प्रकार की प्रवृत्ति सम्पूर्ण विश्व में देखने को मिल रही है।
अपने भारत देश में भी लगभग सभी बड़े दल अनेक आर्थिक तथा सामाजिक नीतियों में समानता रखते
हैं। इसके अतिरिक्त भिन्न नीति-निर्धारण करने में राजनीतिक दल अल्प विकल्प रखते हैं। कभी-कभी
तो नेतृत्व का विकल्प भी समाप्त हो जाता है। सामान्यत: सभी नेता दल से इधर-उधर होते रहते हैं।
प्रश्न 5. लोकतंत्र के अंतर्गत राजनीतिक दलों को कैसे सुधारा जा सकता है?
उत्तर― लोकतंत्र में पूर्व चुनौतियों का सामना करने के लिए राजनीतिक दल में सुधार आवश्यक है।
प्रस्तुत वातावरण में प्रश्न यह भी उठता है कि राजनीतिक दल सुधरना चाहते हैं क्या? इस सुधार प्रक्रिया में
उनका उद्देश्य सहयोग-प्राप्ति ही नहीं होता।
संपूर्ण विश्व में नागरिक इस प्रकार के प्रश्नों का समाधान चाहते हैं। इस प्रकार के सुधार संबंधित प्रश्न
अनुत्तरित तो नहीं, किंतु सरल भी नहीं हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में अंतिम निर्णय तो राजनेता ही करते हैं
क्योंकि वही विभिन्न दलों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जनमत के अनुसार हम इन्हें बदल तो सकते हैं। किंतु पद
नहीं परिवर्तित हो सकते। क्योंकि इन्हीं पदों को भरने अन्य नेता ही आते हैं। यदि वे सुधरना नहीं चाहते तो
उन्हें विवश कर सकता है।
● विधायकों तथा सांसदों को दल-बदल करने से रोकने के लिए संविधान में संशोधन किया गया।
निर्वाचित प्रतिनिधि सत्ता के लोभ के कारण अथवा धन के लालच के कारण अपना दल परिवर्तित कर
लेते थे। अब नवीन कानून पारित किया गया कि अपना दल त्याग कर जाने वाले दल-बदलू नेता को
अपना पद “सांसद अथवा विधायक” छोड़ना होगा। उक्त नये कानून से दल-बदल प्रवृत्ति में कमी
आई है।
● उच्चतम न्यायालय ने धन तथा अपराधियों का प्रभाव कम करने हेतु एक आदेश पारित किया है। प्रस्तुत
आदेश के अनुसार चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी को अपनी सभी प्रकार की सम्पत्तियों का तथा अपने
विरुद्ध जारी आपराधिक विषयों की जानकारी का शपथ-पत्र के माध्यम से देना अनिवार्य कर दिया;
किंतु इस नये कानून के विषय में यह तथ्य पूर्णतया विश्वसनीय है अथवा नहीं, इनका राजनीतिक दलों
पर कुछ प्रभाव पड़ेगा अथवा नहीं।
● यदि दलों को लगने लगे कि सुधार न होने के कारण उनका जनाधार कम हो जाएगा, उनकी छवि
धूमिल हो जाएगी, तो वे इसके परिणामों की ओर अवश्य दृष्टिपात करेंगे तथा सुधार की ओर प्रयासरत
होंगे।
● सुधार की द्वितीय विधि है, सुधार के आकांक्षी लोग स्वयं राजनीतिक दलों में सम्मिलित हों। लोकतंत्र
की गुणवत्ता लोकतंत्र प्रक्रिया में जनमानस की भागीदारी से ही निश्चित होती है।
● यदि देश के नागरिक स्वयं राजनीति में प्रतिभागिता न करें तथा केवल बाह्य रूप से तर्क-वितर्क-कुतर्क
करते रहे तो सुधार प्रक्रिया कठिन नहीं अपितु असंभव है। अतः सुधारों के लिए सुधरना आवश्यक है।