UP Board Class 10 Political Science | लोकतंत्र की चुनौतियाँ
UP Board Solutions for Class 10 sst Political Science Chapter 8 लोकतंत्र की चुनौतियाँ
अध्याय 8. लोकतंत्र की चुनौतियाँ
अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. चुनौतियों से लोकतांत्रिक व्यवस्था”
(क) कमजोर होती है
(ख) मजबूत होती है
(ग) मजबूर होती है
(घ) व्यवस्थित होती है
उत्तर― (ख) मजबूत होती है
प्रश्न 2. राजीतिक एक………..का क्षेत्र है।
(क) संभावनाओं का
(ख) विकल्पों का
(ग) प्रयासों का
(घ) ये सभी
उत्तर― (क) संभावनाओं का
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. चुनाव का खर्च किसे वहन करना चाहिए?
उत्तर― चुनाव का खर्च सरकार को वहन करना चाहिए।
प्रश्न 2. लोकतांत्रिक सुधार में मुख्य बिंदु क्या होने चाहिए?
उत्तर― लोकतांत्रिक सुधार के मुख्य बिंदु चुनौतियों का समाधान होना चाहिए।
प्रश्न 3. क्या आप भारत को लोकतांत्रिक प्रशासन के योग्य समझते हैं?
उत्तर― भारत एक बड़ा देश है। यहाँ विभिन्न जाति समुदाय के लोग रहते हैं अत: सर्वसुरक्षा सर्वहित के
लिए भारत को लोकतांत्रिक होना चाहिए।
प्रश्न 4. जनता को राजनीतिक दल कैसे प्रभावित करते हैं?
उत्तर―विभिन्न प्रकार की जनहित योजनाएँ प्रस्तुत कर राजनीतिक दल जनता को प्रभावित करते हैं।
प्रश्न 5. जनसामान्य की मूलभूत आवश्यकताएँ क्या हैं?
उत्तर― भोजन, वस्त्र, आवास तथा शिक्षा जनसामान्य की मूलभूत आवश्यकताएँ हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. लोकतंत्र का प्रतिद्वंद्वी कौन है?
उत्तर―किसी क्षेत्र में सफलता प्राप्ति के लिए प्रतिद्वंद्वी होना आवश्यक है और फिर लोकतंत्र तो
विश्वव्यापी प्रक्रिया है। पग-पग पर अनेक चुनौतियाँ प्रतिद्वंद्वी बनकर व्यवस्था के समक्ष उपस्थित होती हैं।
प्रश्न 2. लोकतंत्र किस प्रकार मजबूत होता है?
उत्तर―लोकतंत्र क्योंकि जनरंजन, जनकल्याण एवं जनहितार्थ प्रक्रिया है। जिस देश के निवासी जितने
सुरक्षित अनुभव करेंगे लोकतंत्र उतना ही मजबूत होगा।
प्रश्न 3. राजनीति में सुधार के लिए किस प्रकार कानून पारित होने चाहिए?
उत्तर―कानूनों के आधार पर राजनीतिक सुधार वास्तव में एक आकर्षक तथ्य है। निश्चित रूप से
सुधारों के संदर्भ में कानून को एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। सावधानीपूर्वक तथा निष्पक्ष निर्मित कानून निश्चय
ही भ्रष्ट आचरण को हतोत्साहित करेंगे।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. लोकतंत्र की चुनौतियाँ क्या-क्या हैं?
उत्तर―जीवन एक चुनौतियों का क्षेत्र है। लोकतंत्र की चुनौतियाँ कोई साधारण चुनौतियाँ नहीं हैं। यहाँ
प्रथम चुनौती पर विजय प्राप्त करते ही अग्रिम चुनौती का सामना करना पड़ता है। विभिन्न देशों के समक्ष
भिन्न-भिन्न चुनौतियाँ होती हैं। आज भी विश्व के एक-चौथाई भाग में लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था नहीं है।
प्रस्तुत क्षेत्रों में लोकतंत्र के लिए अनेक चुनौतियाँ हैं। लोकतंत्र की राह पर चलने वाली बुनियादी आधारशिला
की खोज ही एक विषम चुनौती है। इसमें उपस्थित अलोकतांत्रिक व्यवस्था को गिराने, सत्ता पर सेना का
नियंत्रण समाप्त करने तथा एक संप्रभुता तथा सफल एवं कुशल शासन-व्यवस्था को स्थापित करना भी एक
कठिन चुनौती है।
अधिकतर स्थापित लोकतंत्र की व्यवस्थाओं के समक्ष विस्तार की एक बहुत बड़ी चुनौती उपस्थित है। इसमें
लोकतांत्रिक शासन के बुनियादी सिद्धांतों को समस्त क्षेत्रों, समस्त सामाजिक समूहों तथा विभिन्न संस्थाओं
में लागू करना सम्मिलित है। स्थानीय प्रशासन को और अधिक अधिकार सम्पन्न करना, संघ की समस्त
इकाइयों के लिए संघ के सिद्धांतों को व्यावहारिक स्तर पर उतारना, महिलाओं अल्पसंख्यक समुदाय तथा
अनेक ऐसे वर्ग जो पटल पर अदृश्य हैं उन सबकी प्रतिभागिता सुनिश्चित करना इत्यादि अनेकानेक
चुनौतियाँ हैं।
लोकतंत्र को सुदृढ़ रूप प्रदान करना भी एक बड़ी चुनौती है। इसके अंतर्गत लोकतांत्रिक संस्थाओं तथा
व्यवहारों को सुदृढ़ता प्रदान करना सम्मिलित है। उक्त कार्य इस प्रकार होना चाहिए कि लोकतंत्र से जुड़ी
समस्त अपेक्षाओं को पूर्ण कर सकें। किंतु भिन्न-भिन्न समाजों में सामान्य व्यक्तियों की भिन्न अपेक्षाएँ होती
हैं अतः चुनौतियों के स्वरूप भी अलग-अलग होते हैं। संक्षिप्त रूप में इसका तात्पर्य संस्थाओं की कार्य
पद्धतियों को परिष्कृत करना तथा सुदृढ़ करना होता है।
प्रश्न 2. लोकतंत्र में सुधार किस प्रकार संभव है?
उत्तर―लोकतंत्र की विभिन्न चुनौतियों के समक्ष सभी प्रस्ताव लोकतांत्रिक सुधार अथवा राजनीतिक
सुधार कहलाते हैं। सुधारों की कोई भी अंतिम सूची नहीं तैयार की जा सकती। सुधार की प्रक्रिया वास्तव में
एक निरंतर चलने वाली गतिशील प्रक्रिया है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक देश की परिस्थिति भिन्न-भिन्न होती
है, अतः सुधार विधि भी भिन्न-भिन्न होगी।
● कानूनों के आधार पर राजनीतिक सुधार वास्तव में एक आकर्षक तथ्य है। “नवीन कानून सभी अवांछित
तथा समाप्त कर देंगे”, इस प्रकार का विचार शायद सुखद अनुभूति प्रदान करे लेकिन सुधारों के सन्दर्भ
में कानून की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। सावधानीपूर्वक तथा निष्पक्ष निर्मित कानून निश्चय ही भ्रष्ट
आचरण को हतोत्साहित करेंगे, किंतु विधिक संवैधानिक परिवर्तनों के आने मात्र से लोकतंत्र की
चुनौतियाँ समाप्त नहीं हो जाती।
● विधि-नियमों में परिवर्तन करते हुए इस विषय पर गंभीरता से उसके परिणामों पर विचार करना श्रेयष्कर
है। राजनीतिक कार्यकर्ता को उसके अच्छे कार्यों हेतु प्रोत्साहित करना चाहिए जिससे कि संभावनाओं के
क्षेत्र खुले रहें। सूचना का अधिकार कानून तथा जनता को जागरूक करने तथा लोकतंत्र के प्रहरी के रूप
में सजग रहने का एक अच्छा उदाहरण है। ऐसा कानून भ्रष्ट आचरण पर अंकुश लगाता है।
● लोकतांत्रिक सुधार तो मुख्यत: राजनीतिक दल ही करते हैं। अत: राजनीतिक सुधारों का जोर मुख्यत:
लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली को अधिक सुदृढ़ करने हेतु अपेक्षित है। सभी सुधारों में मुख्य चिंता इस विषय
की होनी चाहिए कि इससे जनसामान्य की राजनीतिक प्रतिभागिता का स्तर एवं गुणवत्ता में सुधार की क्या
स्थिति है।
● राजनीतिक सुधारों के प्रस्तावों में उचित समाधान के साथ-साथ यह जानकारी भी होनी चाहिए कि इन्हें
किस प्रकार लागू किया जाएगा। संसद के द्वारा निर्मित कानून प्रत्येक राजनीतिक दलों तथा सांसदों के
हितों के विरुद्ध हो किंतु लोकतंत्र में नागरिक संगठन तथा जनसंचार माध्यमों पर विश्वास करने वाले
उपायों के सफल होने की संभावना बनी रहती है।
प्रश्न 3. लोकतंत्र का विस्तार कैसे हो सकता है?
उत्तर― लोकतंत्र से सामान्यत: अनेक परिणामों की अपेक्षा की जाती है। साथ ही साथ यह प्रश्न भी
उदित होता है कि वास्तविक जीवन में लोकतंत्र किस प्रकार की संभावित अपेक्षाओं को पूर्ण करता है।
लोकतंत्र के वास्तविक धरातल पर वांछित परिणाम हेतु हमें लोकतंत्र के विभिन्न पक्ष-शासन का स्वरूप,
आर्थिक कल्याण, समरूपता, सामाजिक विभिन्नताएँ तथा टकराव, स्वतंत्रता तथा स्वाभिमान जैसे महत्त्वपूर्ण
विषयों की ओर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं। लोकतंत्र के पक्ष में दिए गए तर्क बड़े भावमय होते हैं। लोकतंत्र
का संबंध हमारे गहन मूल्यों से है―
● लोकतंत्र शासन का वह स्वरूप है जिसमें लोग अपने शासकों का चयन स्वयं करते हैं।
● जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि ही समस्त निर्णय लेते हैं।
चुनाव में जनता को वर्तमान शासकों को परिवर्तित करने तथा अपनी रुचि व्यक्त करने का पर्याप्त अवसर
एवं विकल्प प्राप्त होता है। ये विकल्प तथा अवसर प्रत्येक नागरिक को समानता में उपलब्ध होने चाहिए।
● विकल्प चयन करने की उक्त विधि से ऐसी सरकार का गठन होना चाहिए जो संविधान के मूलभूत नियमों
तथा नागरिकों के अधिकारों को महत्त्व प्रदान करे।
● सत्ता की भागीदारी लोकतंत्र की भावना के अनुरूप है। सरकारों तथा सामाजिक समूहों के मध्य सत्ता की
भागीदारी से ही लोकतंत्र का विस्तार संभव है।