UP Board Class 10 Social Science Geography | वन एवं वन्य जीव संसाधन

By | April 21, 2021

UP Board Class 10 Social Science Geography | वन एवं वन्य जीव संसाधन

UP Board Solutions for Class 10 Social Science Geography Chapter 2 वन एवं वन्य जीव संसाधन

वन एवं वन्य जीव संसाधन
अध्याय 2.
                               अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर
 
(क) एन०सी०ई० आर०टी० पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न
                          बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.(i) इनमें से कौन-सी टिप्पणी प्राकृतिक वनस्पतिजात और प्राणिजात के हास का सही
कारण नहीं है?
(क) कृषि प्रसार
(ख) पशुचारण और ईंधन लकड़ी एकत्रित करना
(ग) वृहत् स्तरीय विकास परियोजनाएँ
(घ) तीव्र औद्योगीकरण और शहरीकरण
                                    उत्तर―(ख) पशुचारण और ईंधन लक एकत्रित करना
 
(ii) इनमें से कौन-सा संरक्षण तरीका समुदायों की सीधी भागीदारी नहीं करता?
(क) संयुक्त वन प्रबंधन
(ख) बीज बचाओ आंदोलन
(ग) चिपको आंदोलन
(घ) वन जीव पशुविहार (Santuary) का परिसीमन
                       उत्तर―(घ) वन जीव पशुविहार (Santuary) का परिसीमन
 
प्रश्न 2. निम्नलिखित प्राणियों/पौधों का उनके अस्तित्व के वर्ग से मेल करें―
IMG_20210421_082933~2.jpg
प्रश्न 3.निम्नलिखित का मेल करें―
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प्रश्न 4.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए―
(i) जैव-विविधता क्या है? यह मानव-जीवन के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर―जैव-विविधता वन्य जीवन और कृषि फसलों में विविधता का प्रतीक है। यह
मानव जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह मानव की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति
करती है।
 
(ii) विस्तारपूर्वक बताएँ कि मानव क्रियाएँ किस प्रकार प्राकृतिक वनस्पतिजात और
प्राणिजात के हास के कारक हैं?
उत्तर―1. वन संसाधनों के सिकुड़ने में कृषि का फैलाव महत्त्वपूर्ण कारकों में से एक
रहा है।
2. स्थानांतरी (झूम) खेती।
3. बड़ी विकास परियोजनाएँ।
4. वनों की बर्बादी में खनन ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
5. वन्य जीवन के आवास का विनाश, आखेटन, पर्यावरणीय प्रदूषण व विषाक्तीकरण
और दावानल जैव-विविधता को कम करने वाले प्रमुख कारक हैं।
6. पर्यावरण विनाश के अन्य मुख्य कारकों में संसाधनों का असमान वितरण व उपभोग
और पर्यावरण के रख-रखाव की जिम्मेदारी में असमानता शामिल हैं।
 
प्रश्न 5.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दीजिए―
(i) भारत में विभिन्न समुदायों ने किस प्रकार वनों और वन्य जीव संरक्षण और रक्षण में योगदान
किया है?
उत्तर― भारत में वन्य जीव संरक्षण और रक्षण में विभिन्न समुदायों ने इस प्रकार योगदान
दिया है―
1. राजस्थान के लोगों ने ‘सरिस्का बाघ रिजर्व क्षेत्र’ में होने वाले खनन कार्यों का विरोध
किया और सफलता प्राप्त की।
2. हिमालय क्षेत्र में “चिपको आंदोलन” के द्वारा वृक्षों की अनियंत्रित कटाई को रोकने
का प्रयास किया।
3. राजस्थान के अलवर जिले के पाँच गाँवों ने मिलकर 1200 हैक्टेयर भूमि भैरोदेव
डाकव “सेंचुरी’ बनाई है जहाँ पर कड़े कानून बनाकर शिकार वर्जित कर दिया गया
है तथा बाहरी लोगों की घुसपैठ पर रोक लगाई गई है।
4. भारतीय धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विभिन्न वृक्षों और पौधों को पवित्र मानकर
पूजा जाता है; जैसे―पीपल, वट।
5. भारतीय लोग विभिन्न पशुओं को पवित्र मानकर पूजते हैं क्योंकि वे इन्हें विभिन्न
देवी-देवताओं के साथ जोड़ते हैं; जैसे―नाग को शिव के साथ, मोर को कृष्णा
साथ, लंगूर व बंदर को हनुमान जी के साथ।
6. भारत के विभिन्न आदिवासी और जनजाति क्षेत्रों में वनों को देवी-देवताओं को समर्पित
करके उन्हें पूजा जाता है। राजस्थान में इस तरह के क्षेत्रों को ‘बणी’ कहा जाता है।
 
(ii) वन और वन्य जीव संरक्षण में सहयोगी रीति-रिवाजों पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर― भारत एक सांस्कृतिक वैविध्य वाला देश है। जहाँ के लोग पारंपरिक रूप से
प्रकृति (झरना, पहाडू, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी आदि) के उपासक रहे हैं। अपने विभिन्न
रीति-रिवाजों द्वारा इसके प्रति श्रद्धा को ये प्रकट करते आ रहे हैं। इन रीति-रिवाजों में व
एवं वन्य जीवों से संबंधित कुछ रीति-रिवाज विशेष महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये वन एवं वन्य
जीवों को सुरक्षा एवं संरक्षण प्रदान करते हैं। राजस्थान में बिश्नोई लोग खेजरी के वृक्ष,
काले हिरण, नीलगाय, मोर आदि को सुरक्षा एवं संरक्षण प्रदान करते हैं। ओडिशा एवं
बिहार की कुछ जनजातियाँ विवाह के दौरान इमली और आम के पेड़ों की पूजा करती हैं।
उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में पीपल तथा बरगद के वृक्षों की पूजा की जाती है। तुलसी के
पौधे की संपूर्ण भारत में हिंदुओं द्वारा पूजा की जाती है। फूलों का हमारी संस्कृति में विशेष
महत्त्व है। अत: इनके पौधे हर तरफ देखने को मिलते हैं तथा लोग इनकी सुरक्षा करते हैं।
कुछ जनजातियाँ महुआ तथा कदंब के पेड़ों की पूजा करती हैं। इस तरह हम देखते हैं कि
विभिन्न रीति-रिवाजों द्वारा वन एवं वन्य जीवों को पर्याप्त संरक्षण एवं सुरक्षा मिलती है।
 
(ख) अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
                                   बहुविकल्पीय प्रश्न
1. भारत में कितने प्रतिशत स्तनधारियों के लुप्त होने का खतरा है?
(क) 10%
(ख) 20% 
(ग) 30%
(घ) 40%
            उत्तर―(ख) 20%
 
2. देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का कितना प्रतिशत हिस्सा वनाच्छादित है?
(क) 21.32% 
(ख) 24.40% 
(ग) 18.90% 
(घ) 17.21%
                  उत्तर―(ख) 24.40%
 
3. संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची निम्न में से कौन-सी संस्था तैयार करती है?
(क) IUCN 
(ख) WTO 
(ग) UN
(घ) FAO
             उत्तर―(क) IUCN
 
4. ‘टकसोल’ नामक रसायन किस वृक्ष की जड़ों से सावित होता है?
(क) हिमालयन यव 
(ख) चीड़ पाईन
(ग) सागवान 
(घ) आम
              उत्तर―(क) हिमालयन यव
 
5. भारत में सबसे पहले वन एवं वन्य जीव संरक्षण अधिनियम किस वर्ष लागू किया गया?
(क) 1970
(ख) 1972
(ग) 1983
(घ) 1990
               उत्तर―(ख) 1972
 
6. “टाईगर प्रोजेक्ट’ किस वर्ष आरंभ किया गया?
(क) 1973
(ख) 1975
(ग) 1980
(घ) 1989
                उत्तर―(क) 1973
 
                                 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. प्रोजेक्ट टाईगर में शामिल होने वाला पहला राष्ट्रीय उद्यान कौन-सा था?
उत्तर―जिम कार्बेट नेशनल पार्क (उत्तराखण्ड) प्रोजेक्ट टाईगर में शामिल होने वाला पहला 
राष्ट्रीय उद्यान है।
 
प्रश्न 2. वर्तमान समय में देश में बाघों की संख्या कितनी है?
उत्तर―कच्चे आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में हमारे देश भारत में बाघों की संख्या 4,500 है।
 
प्रश्न 3. बंगाल के किस टाईगर रिजर्व को डोलोमाइट की खानों के कारण गम्भीर खतरा है?
उत्तर―बंगाल के ‘वक्सा टाईगर रिजर्व’ को डोलोमाइट की खानों के कारण गम्भीर खतरा है।
 
प्रश्न 4. दुर्लभ जातियों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर―इन जातियों की संख्या अत्यंत कम है अथवा विलुप्त है। इन्हें प्रभावित करने वाली विषम
परिस्थितियों को परिवर्तित नहीं किया जाता है तो यह सकंटग्रस्त जातियों की श्रेणी में आ सकती हैं;
जैसे―हिमालय में पाया जाने वाला सफेद पांडा।
 
प्रश्न 5. IUCN का विस्तृत रूप क्या है?
उत्तर―IUCN―International Union for Conservation of Nuture (अंतर्राष्ट्रीय
प्राकृतिक संरक्षण और प्राकृतिक संसाधन)।
 
                                  लघु उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. जैव-विविधता क्या है?
उत्तर― खण्ड (क) के प्रश्न 4 के (i) का उत्तर देखें।
 
प्रश्न 2. एशियाई चीता के विलुप्त होने का क्या कारण है?
उत्तर―20वीं शताब्दी से पूर्व अफ्रीका तथा एशिया के जंगलों में चीतों की संख्या अत्यधिक थी, किन्तु
आवासीय क्षेत्रों के संकुचित होने और उसके भोजन के लिए शिकारों की अनुपलब्धता उसके लुप्त होने का
महत्त्वपूर्ण कारण है।
 
प्रश्न 3. वन-कटाई के अप्रत्यक्ष प्रभावों को बताइए।
उत्तर― वन-कटाई के परोक्ष (अप्रत्यक्ष) प्रभाव सूखा तथा बाढ़ के रूप में देखने को मिलते हैं। सूखा
तथा बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएँ अंतत: गरीब वर्ग के लोगों पर प्रतिकूल असर डालती हैं। इस प्रकार यह
स्पष्ट है कि पर्यावरण निम्नीकरण तथा गरीबी का सीधा सम्बन्ध है। गरीबी, पर्यावरण निम्नीकरण का एक
प्रभावी परिणाम है।
भारतीय उपमहाद्वीप में वन एवं वन्य जीवन मनुष्य के लिए अत्यधिक कल्याकारी हैं। इसलिए यह अनिवार्य
है कि वन तथा वन्य जीवों के संरक्षण के लिए उचित नीति अपनायी जाए।
 
प्रश्न 4. भारत में टाईगर रिजर्व की संख्या क्या है? यह क्यों जरूरी हैं?
उत्तर― भारत में 50 बाघ रिजर्व (Tiger Reserves) हैं। बाघों का संरक्षण, एक जीव मात्र को बचाना
नहीं है बल्कि इससे जैव-संरचना का संरक्षण किया जा रहा है। जिम कार्बेट नेशनल पार्क (उत्तराखण्ड),
बाँदीपुर टाईगर रिजर्व (कर्नाटक), नागरहोल नेशनल पार्क (कर्नाटक), कान्हा नेशनल पार्क (मध्य प्रदेश)
इत्यादि प्रमुख टाईगर रिजर्व के उदाहरण हैं।
स्रोत―राष्ट्रीय बाघ संरक्षण आयोरिटी, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालया।
 
प्रश्न 5. सरिस्का वन्य जीव पशु विहार किस राज्य में स्थित है?
उत्तर―सरिस्का वन्य जीव पशुविहार राजस्थान में स्थित है।
 
                             दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. ‘संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रम’ क्या है? टिप्पणी लिखिए।
उत्तर―भारत में संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रम’ की शुरुआत वर्ष 1988 में की गई। इस कार्यक्रम द्वारा
वनों के प्रबंधन तथा पुनर्निर्माण में स्थानीय समुदायों की भूमिका को अधिक प्रकाशित किया गया है। ओडिशा
राज्य सरकार द्वारा देश में पहला प्रस्ताव पारित कर संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रम’ को लागू किया गया।
संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रम वनों के संरक्षण एवं रख-रखाव में स्थानीय लोगों की सक्रिय भागीदारी के साथ
उनकी सरकारी वन से संबद्ध वानिकी जरूरतों तथा आकांक्षाओं को पूरा करने का एक प्रयास है।
वन विभाग के तहत संयुक्त वन प्रबंधन’ क्षरित वनों के बचाव के लिए कार्य करता है और इसमें गाँव के
स्तर पर संस्थाएँ बनाई जाती हैं, जिनमें ग्रामीण तथा वन विभाग के कर्मचारी संयुक्त रूप से हिस्सा लेते हैं।
इसके बदले समुदायों को मध्य स्तरीय लाभ प्रदान किए जाते हैं। इन लाभों में गैर-इमारती वन उत्पादों को
प्राप्त करने के वह हकदार होते हैं। सफल संरक्षण से प्राप्त इमारती लकड़ियों में भी ग्रामीण समुदायों को
जरूरी लाभ प्रदान किया जाता है।
वनों के हास के नियंत्रण के लिए समय-समय पर सरकार द्वारा नियम बनाए जाते हैं। इन नियमों का उद्देश्य
मौजूदा वनों को संरक्षित तथा समृद्ध बनाने के साथ अधिक-से-अधिक अपक्षरित क्षेत्रों को वृक्षाच्छादन के
तहत लाना है। भारत में यह चिंता व्यक्त की जाती रही है कि पर्यावरण पुनर्निर्माण की क्रियाशीलता को
सीखने के लिए स्थानीय समुदाय को प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन में शामिल करना जरूरी है। स्थानीय
समुदायों को फैसले लेने की प्रक्रिया से जोड़ने में भारत को अभी समय लगेगा।
वस्तुतः विकास की वही प्रक्रियाएँ मान्य होनी चाहिए जो जनकल्याण-केन्द्रित तथा पर्यावरण-हितैषी हो।
विकास आर्थिक रूप से तभी प्रतिफलित होगा जब उसमें जनसमुदाय की भागीदारी होगी।
 
प्रश्न 2. वनों के विभिन्न वर्गों के बारे में बताइए।
उत्तर― वन तथा वन्य जीव संसाधनों के संरक्षण की प्रक्रिया में प्रबंधन, नियंत्रण तथा विनियमन
अपेक्षाकृत कठिन है। भारत के अधिकांश वन तथा वन्य जीव प्रत्यक्ष रूप से सरकार के अधीन हैं। वन
विभाग तथा अन्य प्राधिकारों द्वारा प्रबंधन का कार्य किया जाता है।
वनों को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा गया है―
1. आरक्षित वन―देश के आधे से अधिक वन क्षेत्र ‘आरक्षित वन’ के रूप में वर्गीकृत किए गए हैं।
वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण के आधार पर इन्हें अत्यधिक मूल्यवान वन माना जाता है।
 
2. रक्षित वन―केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार देश के कुल वन
क्षेत्र का एक-तिहाई हिस्सा ‘रक्षित वन’ की श्रेणी में आता है। इन वनों को और अधिक नष्ट होने से
बचाने के लिए इनकी सुरक्षा की जाती है।
 
3. अवर्गीकृत वन―आरक्षित तथा रक्षित वनों के अतिरिक्त अन्य सभी प्रकार के वन तथा बंजर भूमि
‘अवर्गीकृत वन’ कहलाते हैं। ऐसे वनों पर सरकार, समुदाय तथा व्यक्तियों का स्वामित्व होता है।
आरक्षित तथा रक्षित वन ऐसे स्थायी वन क्षेत्र हैं जिनका रख-रखाव इमारती लकड़ी अन्य वनोपजों तथा
उनके संरक्षण के लिए किया जाता है। मध्य प्रदेश में स्थायी वनों के अंतर्गत सर्वाधिक क्षेत्र है जो राज्य के
कुल वन क्षेत्रफल का 75% है। जम्मू एवं कश्मीर, आन्ध्र प्रदेश, उत्तराखण्ड, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम
बंगाल तथा महाराष्ट्र में भी ‘आरक्षित वनों’ का अनुपात अधिक है।
पूर्वोत्तर के सभी राज्य तथा गुजरात में अधिकतर वन (अवर्गीकृत वन’ श्रेणी में आते हैं तथा स्थानीय समुदायों
द्वारा इनका प्रबंधन किया जाता है।
 
प्रश्न 3. वन्य जीवों का संरक्षण क्यों अनिवार्य है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर―वन एवं वन्य जीवों के ह्रास के कारण इनका संरक्षण अनिवार्य है। वनों एवं वन्य जीवों का
संरक्षण करना जरूरी क्यों है? वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण से जैव-विविधता बनी रहती है तथा
पारिस्थितिकीय संतुलन कायम रहता है। हमें इसके संरक्षण से जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी
संसाधन―जल, वायु तथा मृदा अबाधित रूप से प्राप्त होते रहते हैं।
संरक्षण के तहत विभिन्न जातियों में बेहतर उत्पादों के लिए आनुवंशिक (Genetic) विविधता को भी
संरक्षित किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, हम कृषि में परम्परागत फसलों पर निर्भर है। इस फसलों की
उत्पादकता में वृद्धि के लिए फसलों के ‘जीन्स’ (Genes) में सुधार किया जा रहा है। जलीय जैव-विविधता
के लिए मत्स्य पालन को प्रोत्साहित करना अधिक जरूरी है।
वर्ष 1960 तथा 1970 के दशकों में पर्यावरण संरक्षण तथा जैव-विविधता निर्माण की माँग वैश्विक स्तर पर
तीव्र हुई थी। भारत में राष्ट्रीय वन्य जीव सुरक्षा कार्यक्रमों की माँग लगातार की जा रही थी। वर्ष 1972 में
‘भारतीय वन्य जीव (रक्षण) अधिनियम’ लागू किया गया। इस अधिनियम में वन्य जीवों के आवासीय क्षेत्रों
के संरक्षण को अधिक महत्त्व दिया गया था। भारत में विद्यमान संरक्षण योग्य जीव प्रजातियों की सूची भी
तैयार की गई।
इसके तहत संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण, शिकार पर प्रतिबंध, वन्य जीव आवासों का रक्षण तथा जीवों के
व्यापार पर रोक लगाने जैसे प्रबल प्रावधानों को स्थापित किया गया।
भारतीय वन्य जीव (रक्षण) अधिनियम वर्ष 1972 के आधार पर केन्द्र तथा कई राज्य सरकारों ने राष्ट्रीय
उद्यान तथा वन्य जीव अभयारण्यों (Wildlife Sanctuary) स्थापित करने की प्रक्रिया आरम्भ की। केन्द्र
सरकार द्वारा कई परियोजनाएँ भी आरंभ की गई जिनका उद्देश्य संकटापन्न प्रजातियों का संरक्षण तेजी से
संचालित करना था। इसमें बाघ, एक सींग वाला गैण्डा, कश्मीरी हिरण (हंगुल), घड़ियाल, एशियाई शेर
तथा अन्य कई प्राणिजात के संरक्षण का प्रयास हुआ। विगत दशकों में भारतीय हाथी, काला हिरण, चिंकारा,
भारतीय गोडावन (Bustard) तथा हिम तेंदुआ के शिकार और व्यापार को प्रतिबंधित करते हुए कानूनी
संरक्षण प्रदान किया गया है

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