UP Board Class 10 Social Science History | भूमंडलीकृत विश्व का बनना
UP Board Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना
खण्ड-II : जीविका, अर्थव्यवस्था एवं समाज
अध्याय 3. भूमंडलीकृत विश्व का बनना
अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर
(क) एन०सी०ई० आर०टी० पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न
संक्षेप में लिखें
प्रश्न 1. सत्रहवीं सदी के पहले होने वाले आदान-प्रदान के दो उदाहरण दीजिए।
एक उदाहरण एशिया से और एक उदाहरण अमेरिका महाद्वीपों के बारे में चुनें।
उत्तर― सत्रहवीं सदी के पहले होने वाले आदान-प्रदान के एशिया और अमेरिकी
महाद्वीप से चीन और भारत के दो उदाहरण निम्नलिखित हैं―
चीन―पन्द्रहवीं शताब्दी तक अनेक सिल्क मार्ग खोजे जा चुके थे। ये सिल्क मार्ग; एशिया के विशाल क्षेत्रों
को आपस में जोड़ने के साथ ही एशिया, यूरोप और उत्तरी अमेरिकी महाद्वीपों को भी आपस में जोड़ने में
सहायक होते थे। इस मार्ग से चीन में बनी सिल्क (रेशम) को पश्चिमी देशों में भेजा जाता था। इसके साथ ही
चीन में बनाई जाने वाली पॉटरी का भी बाहर के देशों में निर्यात होता था। भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया से
कपड़े व मसाले; चीन व विश्व के अन्य देशों को भेजे जाते थे। जब एशिया के व्यापारी यहाँ से वापिस लौटते
थे तो वे अपने साथ यूरोप से सोने व चाँदी जैसी कीमती धातुएँ लेकर आते थे।
अमेरिका―सोलहवीं शताब्दी में जब यूरोप के जहाज लेकर चलने वालों ने एशिया तक का समुद्री मार्ग
खोज लिया और वे अमेरिका तक भी जा पहुंचे तो आधुनिक युग से पूर्व का पूर्व-आधुनिक युग बहुत
छोटा-सा प्रतीत होने लगा। अमेरिका की खोज के उपरान्त ही यूरोप के व्यापार में वृद्धि हुई। वर्तमान पेरू
और मैक्सिको की खानों से प्राप्त होने वाली कीमती धातुओं; विशेष रूप से चाँदी के कारण यूरोपीय देशों की
सम्पत्ति में वृद्धि हुई। यही नहीं पश्चिमी एशिया के देशों के साथ होने वाले उसके व्यापार को भी गति प्रदान
की। इसी प्रकार आज से पाँच सौ वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों के पास आलू, सोया, मूंगफली, मक्का, टमाटर,
मिर्च, शकरकंद जैसे अनेक खाद्य-पदार्थ नहीं थे। यूरोप और एशिया के देशों में ये खाद्य-पदार्थ भी तब
पहुँचे; जब क्रिस्टोफर कोलम्बस गलती से आज के अमेरिका पहुँच गया। हमारे पास आज जो अनेक
खाद्य-पदार्थ उपलब्ध हैं, उनमें से बहुत-से खाद्य-पदार्थ; अमेरिका के मूल निवासियों (अमेरिकन
इण्डियन्स) से हमारे पास आए हैं।
प्रश्न 2. बताएँ कि पूर्व-आधुनिक विश्व में बीमारियों के वैश्विक प्रसार ने अमेरिकी भू-भागों के
उपनिवेशीकरण में किस प्रकार मदद दी?
उत्तर― सोलहवीं शताब्दी के मध्य तक पुर्तगाली और स्पेनिश सेनाओं के विजय-अभियान आरम्भ हो
गए। अपने इन विजय-अभियानों के अनन्तर ही उन्होंने अमेरिका में अपने उपनिवेश बनाने शुरू कर दिए।
इन अमेरिकी भू-भागों के उपनिवेशीकरण में इन सेनाओं के साथ आए बीमारियों के कीटाणुओं का वैश्विक
प्रसार भी विशेष रूप से सहायक हुआ। इसकी जानकारी हमें निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर हो सकती है―
1. यूरोपीय सेनाएँ केवल अपनी सैनिक शक्ति के आधार पर ही विजय प्राप्त नहीं करती थीं। यहाँ तक
कि स्पेनिश विजेताओं के पास तो कोई परम्परागत प्रकार का सैनिक हथियार भी नहीं था। उनका
प्रमुख हथियार तो चेचक के वे कीटाणु थे, जो स्पेनिश सेना के सैनिकों और सैन्य-अधिकारियों के
साथ अमेरिका पहुंँचे थे।
2. अमेरिका के लोग लाखों वर्षों से संसार से अलग रहे थे। इसलिए उनके शरीर में रोग-प्रतिरोधक
क्षमता का अभाव था। यही कारण है कि वे स्पेनिश सेनाओं के साथ आए चेचक के कीटाणुओं से
बहुत जल्दी प्रभावित हो गए।
3. अमेरिका और अन्य नए स्थानों पर चेचक के कीटाणु बहुत अधिक मारक सिद्ध हुए। एक बार
संक्रमित होने के उपरान्त तो यह बीमारी सारे महाद्वीप में अत्यन्त तीव्र गति से फैलती चली गयी।
4. जिन स्थानों पर यूरोपीय लोग अभी तक नहीं पहुंचे थे, वहाँ भी लोग चेचक के कीटाणुओं की चपेट
में आने लगे। इसने अमेरिकी के महाद्वीप के सारे मानव-समुदायों को समाप्त कर डाला।
5. इसका परिणाम यह हुआ कि यूरोपीय घुसपैठियों की अमेरिका में जीत का मार्ग आसान हो गया।
बन्दूकों को तो खरीदकर या छीनकर हमलावरों के विरुद्ध प्रयोग किया जा सकता था, परन्तु चेचक
जैसी बीमारी को परास्त करने के लिए तो ऐसा कुछ भी नहीं किया जा सकता था। दूसरी ओर
हमलावरों के पास इस बीमारी से बचने के तरीके भी थे और उनके शरीर में रोग-प्रतिरोधक
क्षमता का विकास भी हो चुका था।
इस प्रकार बिना किसी विशेष चुनौती का सामना किए ही यूरोपीय को अपने लक्ष्य में सफलता प्राप्त हो गयी।
वे आसानी से अमेरिका में अपने उपनिवेश बनाते चले गए। इसी कारण यह कहना सही है कि पूर्व आधुनिक
विश्व में बीमारियों के वैश्विक प्रसार ने अमेरिकी भू-भागों के उपनिवेशीकरण को सहज बना दिया या ये
बीमारियाँ उपनिवेशीकरण में सहायक हुईं।
प्रश्न 3. निम्नलिखित के प्रभावों की व्याख्या करते हुए संक्षिप्त टिप्पणी लिखें―
(क) कॉर्न लॉ के समाप्त करने के बारे में ब्रिटिश सरकार का फैसला।
(ख) अफ्रीका में रिंडरपेस्ट का आना।
(ग) विश्वयुद्ध के कारण यूरोप में कामकाजी उम्र के पुरुषों की मौत।
(घ) भारतीय अर्थव्यवस्था पर महामंदी का प्रभाव।
(ङ) बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा अपने उत्पादन को एशियाई देशों में स्थानान्तरित करने का
फैसला।
उत्तर― (क) 18वीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में ब्रिटेन की जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि होने लगी।
इसके फलस्वरूप देश में भोजन की माँग में भी वृद्धि हो गयी। जैसे-जैसे शहर फैले और उद्योगों में वृद्धि हुई,
कृषि उत्पादों की माँग में भी वृद्धि होती चली गयी। कृषि-उत्पादों की माँग बढ़ने से कृषि-उत्पाद महँगे होने
लगे । देश के बड़े भू-स्वामियों के दबाव में आकर ब्रिटेन की सरकार ने मक्का के आयात पर ‘कॉर्न-लॉ द्वारा
पाबन्दी लगा दी। खाद्य-पदार्थों की बढ़ी हुई कीमतों से परेशान होकर उद्योगपतियों और नगरों में रहने वाले
लोगों ने सरकार को कॉर्न-लॉ को समाप्त करने के लिए विवश कर दिया।
‘कॉर्न-लॉ’ समाप्त होने के उपरान्त कम कीमतों पर खाद्य-पदार्थों का आयात किया जाने लगा। आयात किए
जाने वाले खाद्य-पदार्थों की लागत ब्रिटेन में पैदा होने वाले खाद्य-पदार्थों की कीमत से
कम थी।
परिणामतः ब्रिटेन के किसानों की दशा बिगड़ने लगी, क्योंकि वे आयात होने वाले माल की कीमत का
मुकाबला नहीं कर सकते थे। इस स्थिति में ब्रिटेन के विशाल भू-भागों पर खेती बन्द हो गयी और हजारों
लोग बेघर हो गए।
(ख) 1890 ई० के दशक के अन्तिम वर्षों में अफ्रीका में रिंडरपेस्ट नामक एक पशु-रोग फैल गया। यह
बीमारी उन एशियाई देशों से आए मवेशियों के माध्यम से फैली थी, जिन एशियाई देशों पर ब्रिटेन का
अधिपत्य था। अफ्रीका के पूर्वी क्षेत्र से यह बीमारी पूरे महाद्वीप में आग की तरह फैल गयी। इस बीमारी के
कारण अफ्रीका के 90 प्रतिशत मवेशियों की मौत हो गयी। अफ्रीका के लोग जमीन और मवेशियों पर ही
निर्भर थे। जब मवेशी ही समाप्त हो गए तो अफ्रीका के लोगों के समक्ष रोजी-रोटी की गम्भीर समस्या उत्पन्न
हो गयी। अपनी सत्ता को अफ्रीका में और अधिक मजबूत करने के लिए वहाँ के बागान मालिकों,
खान-मालिकों और औपनिवेशिक सरकारों ने वहाँ बचे हुए कुछ मवेशियों को भी अपने कब्जे में ले लिया।
इस प्रकार अफ्रीका में आई इस आकस्मिक मवेशियों की बीमारी ने वहाँ के लोगों को औपनिवेशिक शक्तियों
के अधीन काम करने के लिए विवश होना पड़ा। साथ ही इसके परिणामस्वरूप यूरोपीय साम्राज्यवादी
शक्तियों को पूरे अफ्रीका को जीतने और उसे गुलाम बनाने का एक बेहतर अवसर भी प्राप्त हो गया।
(ग) प्रथम विश्वयुद्ध को पहला आधुनिक औद्योगिक युद्ध भी कहा जाता है। दो खेमों के बीच लड़ा गया यह
युद्ध 1914 ई० से 1919 ई० तक चलता रहा। इस युद्ध के सारे विश्व पर व्यापक रूप से और युद्ध के बाद
भी काफी समय तक रहने वाले प्रभाव पड़े। यह एक ऐसा युद्ध था, जिसमें मशीनगनों, टैंकों, हवाईजहाजों
और रासायनिक हथियारों का व्यापक स्तर पर और अत्यन्त भयावह तरीके से प्रयोग किया गया। आधुनिक
विशाल उद्योगों के कारण ही ये सब विनाशकारी हथियार आदि सामने आए थे। युद्ध के लिए संसार के
अनेक देशों में सिपाहियों की भर्ती की गयी और उन्हें विशाल जलपोतों और रेलगाड़ियों में भरकर युद्ध के
मोर्चे पर ले जाया गया। इस युद्ध ने मौत और विनाश का जैसा तांडव किया, उसकी औद्योगिक युग से पहले
कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।
इस भयानक युद्ध में 90 लाख से भी अधिक लोग मारे गए। इसके अतिरिक्त लगभग दो करोड़ लोग घायल
भी जो लोग इस युद्ध में मारे गए या घायल हुए, में से अधिकांश लोग कामकाजी लोग थे। युद्ध में हुई
विनाशलीला के कारण सारे यूरोप में विभिन्न प्रकार के काम करने वालों की संख्या बहुत कम रह गयी। युद्ध
के उपरान्त परिवारों के सदस्यों की संख्या कम रह जाने के कारण युद्ध के बाद परिवारों की आय में भी कमी
आ गयी।
(घ) बीसवीं शताब्दी की शुरुआत तक वैश्विक कृषि-अर्थव्यवस्था इस सीमा तक एकीकृत हो चुकी थी कि
संसार के एक क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले किसी भी संकट का सारे संसार के देशों पर किसी-न-किसी रूप में
प्रभाव होता था। इसके परिणामस्वरूप सारी दुनिया के लोगों के जीवन, समाज और देशों की अर्थव्यवस्था
पर प्रभाव पड़ता था। भारत की अर्थव्यवस्था और यहाँ के जन-जीवन पर इस महामंदी के अनेक दृष्टियों से
व्यापक प्रभाव हुआ―
1. देश के आयात-निर्यात पर विपरीत प्रभाव―बीसवीं शताब्दी के शुरू के दशकों में भारत से कृषि
उपज पर आधारित वस्तुओं और निर्मित सामान का आयात विशाल स्तर पर होने लगा था। विश्व में
आई महामंदी का भारत के व्यापार एवं उसके आयात-निर्यात पर बहुत बुरा प्रभाव हुआ। 1928 ई०
से 1934 ई० के मध्य देश का आयात और निर्यात; दोनों ही घटकर आधे रह गए। जब अन्तर्राष्ट्रीय
बाजार में वस्तुओं की कीमतें गिरने लगीं तो भारत में भी वस्तुओं की कीमतें गिर गयीं। 1928 ई० से
1934 ई० के मध्य भारत में उत्पादित होने वाले गेहूँ की कीमत 50 प्रतिशत तक गिर गयी।
2. कृषि-उत्पादों और किसानों पर प्रभाव―फसलों की दृष्टि से शहरी निवासियों की तुलना में ग्रामीण
किसानों और काश्तकारों को अधिक हानि हुई। यद्यपि कृषि-उत्पादों की कीमतों में तेजी से गिरावट
आई, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने भारत के किसानों से प्राप्त किए जाने वाले लगान की वसूली में छूट
देने से स्पष्ट रूप से मना कर दिया। इनमें भी सर्वाधिक बुरा प्रभाव उन काश्तकारों पर पड़ा, जो
विश्व-बाजारों के लिए अपनी फसलों का उत्पादन करते थे।
3. ग्रामीण अर्थव्यवस्था में काश्तकारों पर प्रतिकूल प्रभाव―भारत के बंगाल प्रान्त के जूट/पटसन
के उत्पादक कच्चा पटसन उगाते थे। इनसे कारखानों में टाट की बोरियाँ बनाई जाती थीं। जब टाट
का निर्यात बन्द हो गया तो पटसन की कीमतों में 60 प्रतिशत से भी अधिक कमी आ गयी। जिन
काश्तकारों ने इस आशा में कि कुछ ही समय में सब ठीक हो जाएगा, अपनी बेहतर आय और उपज
को बढ़ाने के लिए कर्जे लिए थे, अपनी उपज की सही कीमत न मिल पाने के कारण उनकी हालत
तो और भी अधिक खराब हो गयी। वे दिन-प्रतिदिन कों के और अधिक बोझ में डूबते चले गए।
इसी कारण ग्रामीण क्षेत्रों के काश्तकारों में भारी असन्तोष की भावना व्याप्त थी।
4. वैश्वीकरण की प्रक्रिया का पुनः आरम्भ होना―इस वैश्विक महामंदी के समय भारत की
मूल्यवान धातुओं; विशेष रूप से सोने का निर्यात पुन: शुरू हो गया। इस प्रकार भारत से वैश्वीकरण
की प्रक्रिया पुन: आरम्भ हो गयी।
(ङ) एक साथ बहुत सारे देशों में व्यवसाय करने वाली कम्पनियों को ‘बहुराष्ट्रीय निगम’ (मल्टीनेशनल
कॉर्पोरेशन-एम०एन०सी०) या बहुराष्ट्रीय कम्पनी’ कहा जाता है। शुरुआती बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की स्थापना
1920 ई० के दशक में की गयी थी। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का विश्वव्यापी प्रसार; पचास और साठ के दशक
की एक विशेषता था।
अधिकांश देशों की सरकारें बाहर से आने वाली वस्तुओं पर बहुत अधिक आयात-शुल्क वसूल करती थीं।
इसलिए बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने अपने संयंत्रों को उन्हीं देशों में लगाना प्रारम्भ कर दिया, जहाँ वे अपना
उत्पाद बेचना चाहती थीं। उधर सत्तर के दशक में एशियाई देशों में बेरोजगारी में वृद्धि होने लगी। इसी कारण
इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने एशिया के उन देशों में अपने उत्पादन केन्द्रित किए, जहाँ कम्पनियों में काम करने
वालों को कम वेतन दिया जा सकता था। विशेष रूप से चीन ऐसा देश था, जहाँ काम करने वालों को काफी
कम वेतन देकर ही उनसे काम लिया जा सकता था। इसीलिए इन कम्पनियों ने अपना सर्वाधिक निवेश चीन
में ही किया।
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के एशिया के देशों में अपने उत्पादन को स्थानान्तरित करने के निर्णय का विश्व की
अर्थव्यवस्था पर व्यापक रूप से प्रभाव हुआ। इसके परिणामस्वरूप सम्पूर्ण विश्व का आर्थिक भूगोल ही
परिवर्तित हो गया।
प्रश्न 4. खाद्य-उपलब्धता पर तकनीक के प्रभाव को दर्शाने के लिए इतिहास से दो उदाहरण दें।
उत्तर― कृषि एवं उद्योगों आदि के क्षेत्रों में विश्व अर्थव्यवस्था के विकास की दृष्टि से तकनीक का
विशेष योगदान रहा। इन सब तकनीकी परिवर्तनों के बिना हम उन्नीसवीं शताब्दी में हुए परिवर्तनों की
कल्पना भी नहीं कर सकते। यूरोप आदि के सामाजिक आर्थिक, राजनीतिक कारकों का भी इस तकनीकी
प्रगति में योगदान रहा। खाद्य-उपलब्धता पर तकनीक के प्रभाव को दर्शाने के लिए इतिहास से दो उदाहरण
निम्नवत् हैं―
1. यातायात एवं परिवहन तकनीकी का खाद्य-उपलब्धता पर प्रभाव―औपनिवेशीकरण और
तकनीकी के कारण यातायात और परिवहन के क्षेत्रों में इस समय अनेक नवीन सुधार हुए। अब तीव्र
गति से चलने वाली रेलगाड़ियाँ बनायी गयीं और बोगियों के भार में कमी लाई गयी। पानी के जहाजों
के आकार को पहले से अधिक बढ़ाया गया, जिससे किसी भी खाद्य-उत्पाद को दूर स्थित देशों के
बाजारों में कम लागत पर और अधिक सरलता से पहुँचाया जा सके।
2. मांस-उत्पादन एवं रेफ्रिजरेशन तकनीकी―मांस उत्पादों के व्यापार में भी तकनीकी का विशेष
योगदान रहा। 1870 ई० के दशक तक अमेरिका से यूरोप के देशों को मांस का निर्यात नहीं किया जा
सकता था। उस समय यातायात के साधनों के माध्यम से केवल जिंदा जानवरों को ही यूरोप में भेजा
जाता था और वहीं उन्हें काटा जाता था। परन्तु समस्या यह थी कि जिंदा जानवर पानी के जहाजों में
बहुत अधिक स्थान घेरते थे। साथ ही उनमें से अनेक जानवर बीच रास्ते में ही मर जाते थे या बीमार
हो जाते थे। अनेक जानवरों का तो वजन ही बहुत कम हो जाता था और वे खाने के लायक भी नहीं
रहते थे। इन समस्त कारणों से मांसाहार करना बहुत अधिक महँगा पड़ता था और यूरोप के गरीब
लोग तो इसे खरीदने में सक्षम ही नहीं थे। मांस की अधिक कीमतों के कारण मांस-उत्पादों का
उत्पादन और उनकी मांँग भी कम ही थी। नई तकनीक के कारण इस स्थिति में परिवर्तन हो गया।
अब पानी के जहाजो में रेफ्रिजरेशन की तकनीकी का प्रयोग किया जाने लगा। इससे उन वस्तुओं को
जो जल्दी ही खराब हो जाया करती थी, दूर की यात्राओं पर ले जाने में भी सुगमता हो गयी।
प्रश्न 5. ब्रेटन वुड्स समझौते का क्या अर्थ है?
उत्तर―द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरान्त अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का प्रमुख उद्देश्य यह था कि औद्योगिक
विश्व में आर्थिक स्थिरता और पूर्ण रोजगार को हर दशा में बनाए रखा जाए। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर
अथवा इसी फ्रेमवर्क पर जुलाई, 1944 ई० में अमेरिका में स्थित न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर
संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन में सहमति बनी थी। ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर इस सम्मेलन के
आयोजन होने के कारण इस समझौते का नाम ‘ब्रेटन वुड्स समझौता’ पड़ा।
ब्रेटन वुड्स समझौते में शामिल सदस्य देशों के विदेश व्यापार में लाभ और घाटे से निबटने के लिए ब्रेटन
वुड्स सम्मेलन में ही अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष (आई०एम०एफ०) की स्थापना भी की गयी। इसी प्रकार युद्ध के
उपरान्त विभिन्न देशों में पुनर्निर्माण सम्बन्धी कार्यों हेतु धन का प्रबंध करने के लिए ‘अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण
एवं विकास बैंक’ का गठन भी किया गया। यही कारण है कि विश्व बैंक और आई०एम०एफ० को ‘ब्रेटन
वुड्स ट्विन’ (ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ संतान) भी कहा जाता है। साथ ही इसी आधार पर द्वितीय विश्वयुद्ध
के उपरान्त की गयी अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था को प्रायः ‘ब्रेटन वुड्स व्यवस्था’ के नाम से भी जाना जाता
है।
चर्चा करें
प्रश्न 1. कल्पना कीजिए कि आप कैरीबियाई क्षेत्र में काम करने वाले गिरमिटिया मजदूर हैं। इस
अध्याय में दिए गए विवरणों के आधार पर अपने हालात और अपनी भावनाओं का वर्णन
करते हुए अपने परिवार के नाम एक पत्र लिखिए।
उत्तर― मैं रामस्वरूप भारत से अनुबंधित श्रमिक के रूप में गुयाना में दस वर्ष के लिए एक अनुबंध के
तहत काम पर गया था। गुयाना से मैंने अपने माता-पिता के नाम एक पत्र लिखा, जो इस प्रकार है―
आदरणीय माताजी-पिताजी,
सादर चरण-स्पर्श,
मैं यहाँ गुयाना में कुशल से हूँ। आशा है कि आप भी वहाँ सकुशल होंगे। वैसे तो मुझे यहाँ काम मिला हुआ है
और मुझे उसके बदले तनख्वाह भी मिलती है। मैं यहाँ एक मजदूर के रूप में काम कर रहा हूँ। मुझे और मेरे
जैसे अनेक मजदूरों को यहाँ ‘गिरमिटिया’ मजदूर के नाम से बुलाया जाता है। हमें यहाँ काफी परेशानियों का
सामना करना पड़ रहा है।
‘गिरमिटिया’ मजदूरों का शोषण करने से कुछ यूरोपीय शक्तियों की आय में भारी वृद्धि होती है और इसी
कारण उनकी तकनीकी क्षेत्रों में वृद्धि हुई है। दूसरे देशों में जाकर काम करने के लिए विवश होने के कारण
हमारे कष्टों में बहुत अधिक वृद्धि हुई, हम और अधिक निर्धन हो गए हैं तथा यहाँ हमारा बहुत अधिक
उत्पीड़न किया जा रहा है। मजदूरों से बात करने पर मुझे पता चला कि भारत के लाखों मजदूरों का एक
अनुबंध के तहत अपना देश छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा है।
यहाँ के अतिरिक्त गिरमिटिया मजदूरों को दूर-दूर के अन्य देशों में भी ले जाया गया है और वहाँ उन्हें
बागानों, खानों, सड़कों के निर्माण और रेलवे परियोजनाओं पर काम कराया जाता है। इन मजदूरों को वहाँ
एक अनुबंध या एग्रीमेंट के तहत ले जाया जाता है। इन अनुबंधों में यह शर्त रखी जाती है कि यदि ये श्रमिक
अपने मालिकों के बागानों में पाँच वर्ष तक काम कर लेंगे तो उन्हें अपने देश वापिस लौटने दिया जाएगा।
भारत से जाने वाले अधिकांश अनुबंधित श्रमिक वर्तमान पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य भारत और
तमिलनाडु के सूखे क्षेत्रों से जाते हैं।
मैं अपने काम को अधिक-से-अधिक सही प्रकार से करने की कोशिश कर रहा हूँ। फिर भी तमाम कोशिशों
के बावजूद मैं उन कामों को ठीक से नहीं कर पाता हूँ, जो मुझे सौंपे हैं। भारत से आने के कुछ ही दिनों के
भीतर मेरे हाथ सब जगह से छिल गए और मैं हफ्तेभर तक काम पर नहीं जा पाया। इसके लिए मुझे सजा दी
गयी और 14 दिन जेल में काटने पड़े। नए आने वाले मजदूरों को काम बहुत भारी पड़ता है और वे दिनभर में
अपना काम पूरा नहीं कर पाते थे। अगर उनका काम संतोषजनक ढंग से पूरा न हुआ
तो तनख्वाह भी काट
ली जाती है और उन्हें तरह-तरह से सजा दी जाती है। दरअसल मजदूरों को अपने अनुबंध की अवधि भारी
मुश्किलों में बितानी पड़ती है।
अब तो बस इंतजार कर रहा हूँ कि कब यह अनुबंध का समय समाप्त हो और मैं वापिस आपके पास भारत
आ सकूँ। फिलहाल मैं आपको कुछ रुपए भेज रहा हूँ। मैं आपको कुछ और अधिक रुपए भेजना चाहता था,
परन्तु अभी कम ही रुपए भेज रहा हूँ, क्योंकि पिछले महीने कुछ दिन बीमार होने के कारण मेरी तनख्वाह
काट ली गयी है।
पत्र का उत्तर जल्दी-से-जल्दी देना। मैं आपके पत्र का इंतजार करूँगा।
आपका पुत्र रामस्वरूप
प्रश्न 2. अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमयों में तीन तरह की गतियों या प्रवाहों की व्याख्या करें। तीनों
प्रकार की गतियों के भारत और भारतीयों से सम्बन्धित एक-एक उदाहरण दें और उनके बारे
में संक्षेप में लिखें।
उत्तर― अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमयों में तीन तरह की गतियों या प्रवाहों तथा तीनों प्रकार की गतियों के
भारत और भारतीयों से सम्बन्धित एक-एक उदाहरण इस प्रकार हैं―
(क) अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमयों में तीन तरह की गतियाँ या प्रवाह―अर्थशास्त्रियों के द्वारा
अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय की तीन प्रकार की गतियों’ अथवा ‘प्रवाहों’ का उल्लेख किया है। इन तीनों
प्रकार के प्रवाहों की विशेषता यह थी कि ये तीनों एक-दूसरे से सम्बद्ध थे। साथ ही लोगों के जीवन को
प्रभावित करते थे। कभी-कभी ऐसा भी हो जाता था कि इन प्रवाहों के बीच के सम्बन्ध टूट जाते थे।
उदाहरणस्वरूप वस्तुओं अथवा पूँजी के आने की तुलना में श्रमिकों पर सामान्यत: अधिक शर्ते और बन्धन
लगा दिए जाते थे। इन प्रवाहों का उल्लेख इस प्रकार है―
1. व्यापार का प्रवाह―पहला प्रवाह व्यापार का होता है। उन्नीसवीं शताब्दी में यह प्रवाह मुख्य रूप से
वस्तुओं (कपड़ा, गेहूँ आदि) के व्यापार तक ही सीमित था।
2. श्रम का प्रवाह―दूसरा प्रवाह; श्रम का प्रवाह कहलाता है, जिसमें लोग काम या रोजगार की तलाश
में एक स्थान से दूसरे स्थान को जाते हैं।
3. पूँजी का प्रवाह―तीसरा प्रवाह; पूँजी का प्रवाह कहा जाता है। इस प्रवाह के अन्तर्गत पूँजी को कम
या अधिक समय के लिए दूर स्थित क्षेत्रों या बाहर के देशों में निवेश कर दिया जाता है।
(ख) तीनों प्रकार के प्रवाहों के भारत और भारतीयों से सम्बन्धित एक-एक उदाहरण―भारत में
प्राचीनकाल से ये तीनों प्रकार के प्रवाह या गतियाँ देखने को मिलती हैं। इनका उल्लेख निम्नवत् है―
1. प्राचीनकाल से ही भारत ने अपने पड़ोसी देशों के साथ वस्तुओं का आयात-निर्यात करने हेतु
व्यापारिक सम्बन्ध बना रखे थे। भारत के विभिन्न शहरों के व्यापारी; भारत से कपास और विभिन्न
प्रकार के मसाले लेकर विदेशों में जाया करते थे और वापसी में विदेशों की आवश्यक वस्तुएँ भारत लेकर आते थे।
2. अनेक भारतीय कारीगर, इंजीनियर आदि विदेशों में सड़क निर्माण, खनन, रेलवे-निर्माण, बागान
आदि से सम्बन्धित कार्यों के लिए जाते थे।
प्रश्न 3. महामंदी के कारणों की व्याख्या करें।
उत्तर―1929 ई० से शुरू होकर 1930 ई० तक स्थिर रहने वाली महामंदी से संसार के सभी देश
किसी-न-किसी रूप में प्रभावित हुए। इस महामंदी की भयावह समस्या के उत्पन्न होने के प्रमुख कारण
अग्रलिखित हैं―
1. महामंदी का एक प्रमुख कारण यह था कि कृषि-क्षेत्रों में बहुत अधिक उत्पादन के कारण संसार में
अति-उत्पादन की समस्या बनी हुई थी। इस कारण कृषि के द्वारा उत्पादित की जाने वाली वस्तुओं
की कीमतें गिर गयीं। कृषि-उत्पादों की कीमतों में गिरावट से किसानों की आय में कमी आ गयी।
अब वे और अधिक उत्पादन बढ़ाने का प्रयास करने लगे, जिससे कम कीमत पर ही सही, लेकिन
अधिक उत्पादन करके वे कम-से-कम वे अपने आय के स्तर को बनाए रख सके। इसका परिणाम
यह हुआ कि विश्व के बाजारों में कृषि-उत्पादों की आमद और भी अधिक बढ़ गयी और कीमतें गिर
गयीं। जब कृषि-उत्पादों की अधिकता हो गयी और उनकी खरीदारी का अनुपात उतना नहीं रहा तो
कृषि क्षेत्रों की फसलें पड़ी-पड़ी सड़ने लगीं।
2. महामंदी का दूसरा कारण यह था कि 1920 ई० के दशक के मध्य में दुनिया के अधिकांश देशों ने
अमेरिका से कजें लेकर अपनी निवेश सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति की थी। परन्तु लेकिन जब
हालात सही थे तो अमेरिका से कर्ज लेना बहुत आसान था, लेकिन अब यह भी सम्भव नहीं हो पा
रहा था। उधर महामंदी का संकेत मिलते ही अमेरिका के तो होश ही उड़ गए। साथ ही जिन देशों ने
अमेरिका से कर्जे ले रखे थे, उनके सामने भी एक बड़ा संकट उत्पन्न हो गया।
प्रश्न 4. जी-77 देशों से आप क्या समझते हैं? जी-17 को किस आधार पर ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ
संतानों की प्रतिक्रिया कहा जा सकता है?
उत्तर― जी-77 देशों से आशय और जी-77 को ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ संतानों की प्रतिक्रिया कहे जाने
का संक्षिप्त उल्लेख निम्नलिखित है―
(क)जी-77 क्या है?―द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरान्त विकासशील देशों ने अपनी आर्थिक उन्नति हेतु नयी
अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली की माँग की और इसी के परिणामस्वरूप जी-77 देश के नाम से विकासशील
देशों का एक संगठन बना। इस प्रकार जी-773; विकासशील देशों का संगठन है। इसका गठन अपने
सदस्य-राष्ट्रों के सामूहिक आर्थिक हितों को बढ़ावा देना और संयुक्त राष्ट्र संघ के लिए संयुक्त समझौतों की
सम्भावनाओं में अधिकाधिक वृद्धि करना है।
(ख) जी-77 को ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ संतानों की प्रतिक्रिया कहा जाना―ब्रेटन वुड्स समझौते में
शामिल सदस्य देशों के विदेश व्यापार में लाभ और घाटे से निबटने के लिए ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में ही
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई०एम०एफ०) की स्थापना भी की गयी। इसी प्रकार युद्ध के उपरान्त विभिन्न
देशों में पुनर्निर्माण सम्बन्धी कार्यों हेतु धन का प्रबंध करने के लिए ‘अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष’ (विश्व बैंक) का
गठन भी किया गया। यही कारण है कि विश्व बैंक और ‘अन्तर्राष्ट्रीय एवं पुनर्निर्माण विकास बैंक’ को ‘ब्रेटन
वुड्स ट्विन’ (ब्रेटन वुड्स की जुड़वाँ संतान) भी कहा जाता है।
परियोजना कार्य
प्रश्न 5. उन्नीसवीं सदी के दौरान दक्षिण अफ्रीका में स्वर्ण-हीरा खनन के बारे में और जानकारियाँ
इकट्ठी करें। सोना और हीरा कम्पनियों पर किसका नियंत्रण था? खनिक कौन लोग थे
और उनका जीवन कैसा था?
उत्तर― उपर्युक्त परियोजना पर आधारित प्रश्नों का उत्तर निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत दिया गया है―
(क) उन्नीसवीं सदी के दौरान दक्षिण अफ्रीका में स्वर्ण-हीरा खनन के बारे में जानकारी―उन्नीसवीं
शताब्दी के दौरान दक्षिण अफ्रीका में जोहांसबर्ग और किंबरले में स्वर्ण की खानों को खोजा गया। इसके लिए
ब्रिटेन और फ्रांस जैसे यूरोपीय देशों ने अपने खोजी दलों का गठन किया और वे मौत की आशंका और रास्ते
की कठिनाइयों की परवाह न करते हुए इन क्षेत्रों की ओर चल पड़े। उन्होंने अफ्रीका में भयंकर परिस्थितयों
का सामना करते हुए वहाँ के विभिन्न क्षेत्रों के मानचित्र बनाए और यहाँ तक पहुँचने के लिए विभिन्न रास्तों
को खोजा।
(ख) सोना और हीरा कम्पनियों पर किसका नियंत्रण था?―अफ्रीका की इन स्वर्ण और हीरे की
खादानों पर अधिकतर ब्रिटेन व फ्रांस का नियंत्रण था। इसके अतिरिक्त अमेरिकी लोगों का भी इन पर
नियंत्रण था। सेसिल रोड्स; ऐसा पहला यूरोपीय था, जिसने स्वर्ण और हीरों की खादानों को खरीदकर
‘डी-बीयर्स’ कम्पनी की स्थापना की तथा इस क्षेत्र में अपना एकाधिकार स्थापित किया। वर्तमान में भी
‘डी-बीयर्स’ कम्पनी संसार की सबसे बड़ी हीरा-उत्पादक कम्पनी है। यह उल्लेखनीय है कि 1886 ई० से
1914 ई० के मध्य दक्षिण अफ्रीका संसार के कुल स्वर्ण-उत्पादन का 27 प्रतिशत स्वर्ण उत्पादित करता था
(ग) खनिक कौन लोग थे और उनका जीवन कैसा था?―इन खादानों में कार्य करने वाले अधिकतर
अफ्रीकी लोग ही थे। इनकी स्थिति अत्यधिक दयनीय थी। इनसे बहुत अधिक कार्य लिया जाता था। इनको
बाड़ों में बन्द कर दिया जाता था और इन्हें खुलेआम घूमने-फिरने की कोई आजादी नहीं थी। यदि कोई
मजदूर इन बाड़ों से निकलने का प्रयास करता था तो उसे पकड़कर कठोर दंड दिया जाता था। यहाँ तक कि
कुछ मजदूरों की हत्या तक भी कर दी जाती थी। इस प्रकार इनका जीवन अत्यन्त दुखद था। इन्हें गोरे श्रमिकों
की तुलना में दस गुना कम वेतन दिया जाता था।
(ख) अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. चीन से बना सिल्क किस मार्ग से दूसरे देशों में पहुँचता था?
(क) निर्यात मार्ग
(ख) सिल्क मार्ग
(ग) हिन्द मार्ग
(घ) समुद्री मार्ग
उत्तर―(ख) सिल्क मार्ग
2. नूडल्स किस देश से यूरोप के देशों में पहुँचे?
(क) अमेरिका
(ख) फ्रांस
(ग) चीन
(घ) इटली
उत्तर―(ग) चीन
3. स्पैघेत्ती का जन्म किस खाद्य-पदार्थ से हुआ?
(क) ब्रैड
(ख) नूडल्स
(ग) बर्गर
(घ) चाऊमिन
उत्तर―(ख) नूडल्स
4. आयरलैंड के लोगों की मौत किस फसल के नष्ट हो जाने के कारण हुई?
(क) आलू
(ख) गेहूँ
(ग) चाय
(घ) गन्ना
उत्तर―(क) आलू
5. किस देश की खोज के उपरान्त विश्व में अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए?
(क) जापान
(ख) अमेरिका
(ग) भारत
(घ) ब्रिटेन
उत्तर―(ख) अमेरिका
6. पुर्तगाली और स्पेनिश सेनाओं के साथ कौन-से रोग के जीवाणु अन्य देशों में पहुँचे?
(क) हाथीपाँव के
(ख) तपेदिक के
(ग) डेंगू के
(घ) चेचक के
उत्तर―(घ) चेचक के
7. अट्ठारहवीं शताब्दी तक संसार के कौन-से देश सबसे धनी देश माने जाते थे?
(क) जापान और भारत
(ख) फ्रांस और अमेरिका
(ग) चीन और भारत
(घ) चीन और इटली
उत्तर―(ग) चीन और भारत
8. आर्थिक विनिमय के तीन तरह के प्रवाहों में पहला प्रवाह किसका होता है?
(क) व्यापार का
(ख) श्रम का
(ग) पूँजी का
(घ) आयात का
उत्तर―(क) व्यापार का
9. ब्रिटेन की सरकार ने बड़े भूस्वामियों के दबाव में आकर मक्का के आयात पर पाबन्दी लगा
दी। जिस कानून के आधार पर यह पाबन्दी लगायी गयी, उसे क्या कहा जाता है?
(क) ब्लैक लॉ
(ख) कॉर्न-लॉ
(ग) क्रोप लॉ
(घ) प्रोडक्शन लॉ
उत्तर―(ख) कॉर्न-लॉ
10. जमीन को उपजाऊ बनाकर गेहूँ व कपास की खेती हेतु ‘कैनाल कॉलोनी’ कहाँ बसायी
गयी?
(क) गुजरात में
(ख) उत्तर प्रदेश में
(ग) पंजाब में
(घ) उड़ीसा में
उत्तर―(ग) पंजाब में
11. यूरोपीय देशों में किस खाद्य-उत्पाद को गरीबों के लिए भी सुलभ बनाने में रेफ्रिजरेशन
तकनीकी का योगदान रहा?
(क) मक्का
(ख) गेहूँ
(ग) चावल
(घ) मांस
उत्तर―(घ) मांस
12. उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में व्यापार में वृद्धि और विश्व अर्थव्यवस्था के साथ निकटता का
एक स्याह पक्ष किसे माना जाता है?
(क) नाजीवाद
(ख) फासिस्टवाद
(ग) उपनिवेशवाद
(घ) समाजवाद
उत्तर―(ग) उपनिवेशवाद
13. यूरोपीय देशों ने मानचित्र पर लकीरें खींचकर किस महाद्वीप का आपस में बँटवारा कर
लिया?
(क) एशिया
(ख) अफ्रीका
(ग) अमेरिका
(घ) ऑस्ट्रेलिया
उत्तर―(ख) अफ्रीका
14. बर्लिन का समझौता कब हुआ?
(क) 1880 ई० में
(ख) 1885 ई० में
(ग) 1890 ई०
(घ) 1895 ई० में
उत्तर―(ख) 1885 ई० में
15. अफ्रीका में किस बीमारी के प्रसार से अधिकांश जानवरों की मृत्यु हो गयी?
(क) प्लेग
(ख) रिंडरपेस्ट
(ग) मलेरिया
(घ) एनीमल फीवर
उत्तर―(ख) रिंडरपेस्ट
16. ‘अनुबंध व्यवस्था’ को और किस नाम से जाना जाता है?
(क) आपसी समझौता
(ख) गुलाम-प्रथा
(ग) सशर्त प्रथा
(घ) नयी दास-प्रथा
उत्तर―(घ) नयी दास-प्रथा
17. उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में भारत के सूती वस्त्र उद्योग पर किसका प्रभाव था?
(क) फ्रांस का
(ख) पुर्तगाल का
(ग) जर्मनी का
(घ) ब्रिटेन का
उत्तर―(घ) ब्रिटेन का
18. 1914 ई० से 1919 ई. के बीच विश्व के शक्तिशाली देशों की आपसी औपनिवेशिक
प्रतिस्पर्द्धा और उनके साम्राज्यवादी इरादों के कारण कौन-सा युद्ध हुआ?
(क) प्रथम विश्वयुद्ध
(ख) द्वितीय विश्वयुद्ध
(ग) रूस-जापान युद्ध
(घ) अणुबम युद्ध
उत्तर―(क) प्रथम विश्वयुद्ध
19. युद्धोत्तर अमेरिकी अर्थव्यवस्था को उन्नत बनाने में किस कार-निर्माता की ‘बृहत् उत्पादन
पद्धति का योगदान रहा?
(क) हेनरी फोर्ड का
(ख) टाटा का
(ग) मार्कोनी का
(घ) बिड़ला का
उत्तर―(क) हेनरी फोर्ड का
20. 1929 ई० में सम्पूर्ण विश्व को किसके संकट का सामना करना पड़ा?
(क) प्लेग का
(ख) रिंडरपेस्ट का
(ग) द्वितीय विश्वयुद्ध का
(घ) महामंदी का
उत्तर―(घ) महामंदी का
21. 1939 ई० से शुरू होकर द्वितीय विश्वयुद्ध कब तक चलता रहा?
(क) 1942 ई० तक
(ख) 1945 ई० तक
(ग) 1946 ई० तक
(घ) 1947 ई० तक
उत्तर―(ख) 1945 ई० तक
22. अमेरिका स्थित न्यू हैम्पशायर के ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर ‘ब्रेटन वुइस समझौता’ कब
हुआ?
(क) 1942 ई० में
(ख) 1944 ई० में
(घ) 1947 ई० में
(ग) 1945 ई० में
उत्तर―(ख) 1944 ई० में
23. अल्पविकसित नवस्वाधीन देशों पर बाद तक भी कौन-से देश अपना प्रभुत्व छोड़ने को तैयार नहीं हुए?
(क) ब्रिटेन और जापान
(ख) फ्रांस और जापान
(ग) ब्रिटेन और फ्रांस
(घ) ब्रिटेन और अमेरिका
उत्तर―(ग) ब्रिटेन और फ्रांस
24. द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरान्त विकासशील देशों ने अपनी आर्थिक उन्नति हेतु नयी
अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली की माँग की और इसी के परिणामस्वरूप उन्होंने विकासशील
देशों का एक संगठन बनाया। इस संगठन का क्या नाम था?
(क) जी-77
(ख) जी-79
(ग) जी-87
(घ) जी-89
उत्तर―(क) जी-77
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. ‘भूमंडलीकरण’ या वैश्वीकरण’ का क्या तात्पर्य है?
उत्तर― किसी एक देश की अर्थव्यवस्था को दूसरे देश की अर्थव्यवस्था से जुड़ा होना तथा साथ ही
सम्पूर्ण विश्व के देशों की अर्थव्यवस्था का विभिन्न क्षेत्रों के माध्यम से एक-दूसरे देश के साथ जुड़ा होना ही
‘भूमंडलीकरण’ अथवा ‘वैश्वीकरण’ कहलाता है।
प्रश्न 2. ‘रिंडरपेस्ट की परिभाषा लिखिए।
उत्तर―‘रिंडरपेस्ट’ पशुओं से सम्बन्धित एक बीमारी थी, जिसे पशु-प्लेग’ कहा जाता था। यह एक
संक्रामक रोग है और जीवाणुओं द्वारा उत्पन्न होता है। इसका सम्बन्ध लोगों में होने वाली खसरा बीमारी और
कुत्तों की एक बीमारी से है।
प्रश्न 3. अमेरिका की खोज किसके द्वारा की गयी?
उत्तर―अमेरिका की खोज क्रिस्टोफर कोलम्बस के द्वारा की गयी थी।
प्रश्न 4. ‘रेशम मार्ग’ क्यों महत्त्वपूर्ण था?
उत्तर―रेशम मार्ग’ वह मार्ग था जो एशिया के विशाल भागों को आपस में जोड़ता था। इसके साथ ही
यह मार्ग यूरोप व उत्तरी अफ्रीका से भी मिला हुआ था। यह संसार का एक ऐसा मार्ग था जो प्राचीन काल में
ही अस्तित्व में आ चुका था और लगभग पन्द्रहवीं शताब्दी तक भी इसका अस्तित्व बना रहा। इस मार्ग से
अधिकांशत: रेशम का व्यापार होता था, इसीलिए इस मार्ग को रेशम मार्ग’ कहा जाता था।
प्रश्न 5. अमेरिका को उपनिवेश बनाने के लिए स्पेनिश विजेताओं के सबसे शक्तिशाली हथियार
क्या थे?
उत्तर―अमेरिका को उपनिवेश बनाने के लिए स्पेनिश विजेताओं के सबसे शक्तिशाली हथियार चेचक
जैसी बीमारी के कीटाणु थे।
प्रश्न 6. 18वीं सदी तक कौन-से दो देश विश्व के सबसे धनी देशों में गिने जाते थे?
उत्तर―18वीं सदी तक चीन और भारत देश विश्व के सबसे धनी देशों में गिने जाते थे।
प्रश्न 7. किन्हीं दो ऐसे कारकों का उल्लेख कीजिए, जिन्होंने 19वीं शताब्दी के विश्व को रूपांतरित
कर दिया था?
उत्तर―रेलवे, भाप के जहाज और टेलिग्राफ ऐसे कारक थे, जिन्होंने 19वीं शताब्दी के विश्व को
रूपांतरित कर दिया था।
प्रश्न 8. “कैनाल कॉलोनियाँ’ क्या थीं? इन्हें कहाँ और क्यों स्थापित किया गया?
उत्तर― नई नहरों के द्वारा सिंचित करने के उपरान्त अर्द्ध-रेगिस्तानी परती जमीनों को ‘कैनाल
कॉलोनियाँ’ कहा जाता था। इन्हें पंजाब में इसलिए स्थापित किया गया था, जिससे निर्यात के लिए कपास
और गेहूँ की खेती की जा सके।
प्रश्न 9. “अफ्रीकी देशों की अधिकतर सीमाएँ सीधी लकीर जैसी हैं।” इस कथन हेतु एक कारण
लिखिए।
उत्तर― अफ्रीकी देशों की अधिकतर सीमाएँ सीधी लकीर जैसी इसलिए हैं, क्योंकि यूरोप में हुई वियना
कांग्रेस की बैठक में अफ्रीका के मानचित्र पर इसी प्रकार की सीधी लकीरें खींचकर कुछ देशों को आपस में
बाँट लिया गया था।
प्रश्न 10.उस बीमारी का नाम बताइए, जिससे लोगों की आजीविका और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर
गहरा प्रभाव पड़ा।
उत्तर― लोगों की आजीविका और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर मवेशियों के प्लेग और रिंडरपेस्ट नामक
बीमारी का गहरा प्रभाव
प्रश्न 11.19वीं सदी के अन्त में यूरोपीय ताकतें अफ्रीका की ओर आकर्षित क्यों हुई?
उत्तर― उन्नीसवीं सदी के अन्त में यूरोपीय ताकतें अफ्रीका की ओर इसलिए आकर्षित हुई, क्योंकि
अफ्रीका में विभिन्न प्रकार के खनिजों के भण्डार काफी मात्रा में थे। वहाँ कृषि के लिए भी काफी जमीन थी
और यूरोपीय देशों के बाजार के लिए वहाँ बहुत अधिक सम्भावनाएँ थीं।
प्रश्न 12.1880 ई० के दशक के अन्तिम वर्षों में अफ्रीका में रिंडरपेस्ट बीमारी कैसे पहुँची?
उत्तर― यह बीमारी; पूर्वी अफ्रीका में एरिट्रिया पर आक्रमण कर रहे इतालवी सैनिकों के भोजन हेतु
ब्रिटिश आधिपत्य वाले एशियाई देशों से संक्रमित जानवरों के माध्यम से पहुंँची।
प्रश्न 13. अफ्रीका में आने के लिए यूरोपीय के लिए प्रमुख आकर्षण के कारण क्या थे?
उत्तर― अफ्रीका के खनिज संसाधन और वहाँ की विशाल खेती योग्य जमीन; यूरोपीय के लिए
आकर्षण के कारण थे।
प्रश्न 14.गिरमिटिया मजदूर कौन थे?
उत्तर― ‘गिरमिटिया मजदूर’; उन अनुबंधित बंधुआ मजदूरों को कहा जाता था जिन्हें उनके मालिक
एक निश्चित अवधि के लिए काम करने करने की शर्त पर किसी भी नए देश या घर पर नियुक्त करता था।
प्रश्न 15. भारतीय अनुबंधित मजदूरों को प्रमुख रूप से कहाँ ले जाया जाता था?
उत्तर― भारतीय अनुबंधित मजदूरों को प्रमुख रूप से कैरीबियाई द्वीप-समूह और फिजी में ले जाया
जाता था?
प्रश्न 16. सांस्कृतिक विलय’ का क्या अर्थ है? इसके दो उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर― सांस्कृतिक विलय का आशय एक ऐसी प्रक्रिया से है, जिसमें दो या दो से अधिक संस्कृतियों
के परस्पर विलय के परिणामस्वरूप एक नवीन संस्कृति का जन्म होता है। इस प्रकार के सांस्कृतिक विलय
के दो उदाहरण हैं―(1) होसे और (2) चटने।
प्रश्न 17.’होसे क्या था? इसका क्या महत्त्व था?
उत्तर―त्रिनिदाद में मुहर्रम के दिन आयोजित होने वाले सालाना जुलूस को एक विशाल उत्सवी मेले
का रूप देकर उसे ‘होसे’ नाम दिया गया। इसका महत्त्व इस दृष्टि से था कि इसके माध्यम से अनुबंधिक
मजदूरों को अपनी संस्कृति को सुरक्षित रखने का एक अवसर प्राप्त होता था।
प्रश्न 18.19वीं शताब्दी में हजारों लोग यूरोप से अमेरिका क्यों जाने लगे?
उत्तर―19वीं शताब्दी में यूरोप में निर्धनता, भुखमरी, बीमारियों का साम्राज्य था। वहाँ धार्मिक
सम्प्रदायों में आपस में संघर्ष हो रहे थे और असन्तुष्टों को कठोर दंड देने का प्रावधान किया गया था। इसके
विपरीत अमेरिका में संसाधनों की बहुलता थी, वहाँ खेती योग्य भूमि भी काफी अधिक थी और साथ ही वहाँ
की जनसंख्या भी यूरोप की तुलना में अधिक नहीं थी। इस कारण 19वीं शताब्दी में यूरोप के हजारों लोग
अमेरिका जाने लगे थे।
प्रश्न 19.“पहला विश्वयुद्ध आधुनिक औद्योगिक युद्ध था।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर―प्रथम विश्वयुद्ध; पहला आधुनिक औद्योगिक युद्ध था, क्योंकि इस युद्ध में मशीनगनों, टैंकों,
हवाईजहाजों और भयानक रासायनिक हथियारों का विशाल स्तर पर प्रयोग किया गया। ये सभी हथियार एवं
रसायन; आधुनिक विशाल उद्योगों की देन थी।
प्रश्न 20.”प्रथम विश्वयुद्ध जैसा युद्ध पहले नहीं हुआ था।” संक्षेप में पुष्टि कीजिए।
उत्तर―प्रथम विश्वयुद्ध जैसा युद्ध पहले कभी नहीं हुआ था, इसकी पुष्टि इस आधार पर की जा सकती
है कि यह युद्ध; वायु, भूमि और समुद्र में लड़ा गया था। जल, थल और नभ; इन तीनों ही सेनाओं ने इस युद्ध
में भाग लिया था। इसके अतिरिक्त इस युद्ध में विश्व के प्रमुख औद्योगिक राष्ट्र शामिल थे। इन देशों के पास
असीमित औद्योगिक शक्ति मौजूद थी।
प्रश्न 21. बृहत् उत्पादन’ क्या था? बृहत् उत्पादन का प्रणेता कौन था?
उत्तर―विशाल स्तर पर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के उत्पादन को ‘बृहत् उत्पादन’ कहा जाता है।
बृहत् उत्पादन का मुख्य प्रणेता हेनरी फोर्ड था।
प्रश्न 22. विश्व की बृहत् उत्पादन पद्धति से बनी पहली कार कौन-सी थी?
उत्तर― विश्व की बृहत् उत्पादन पद्धति से बनी पहली कार का नाम टी-मॉडल था।
प्रश्न 23.’नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर― ‘नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली’ से तात्पर्य एक ऐसी अर्थव्यवस्था से था, जिससे विकासशील
देश अपने आर्थिक संसाधनों पर सही प्रकार से नियंत्रण कर सकें। साथ ही इस प्रकार की अर्थव्यवस्था के
विकास हेतु उन्हें पर्याप्त सहायता प्राप्त हो, कच्चे माल की सही कीमत प्राप्त हो तथा अपने देशों में तैयार
माल को विकसित देशों के बाजारों में बेचने के लिए एक अधिक बेहतर पहुँच मिल सके।
प्रश्न 24. स्थिर विनिमय दर प्रणाली का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर― स्थिर विनिमय दर; एक ऐसी आर्थिक प्रणाली है, जिसमें विनमय दर स्थिर होती है। इस प्रणाली
में आने वाले उतार-चढ़ावों को नियंत्रित करने के लिए सरकारों को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 25.’आयात शुल्क का तात्पर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर―किसी दूसरे देश से आने वाली वस्तुओं पर वसूल किया जाने वाला शुल्क ‘आयात शुल्क’ के
नाम से जाना जाता है। यह शुल्क या कर उस स्थान पर वसूल किया जाता है, जहाँ से विदेश से आने वाली
वस्तु किसी देश में प्रवेश करती है। ऐसा स्थान किसी देश की सीमा, बन्दरगाह या हवाई अड्डा होता है।
प्रश्न 26. व्यापार अधिशेष’ की परिभाषा दीजिए। भारत के साथ ब्रिटेन को व्यापार अधिशेष कैसे
प्राप्त होता था?
उत्तर―‘व्यापार अधिशेष’ की आर्थिक प्रणाली के अन्तर्गत निर्यात की कीमत; आयात की तुलना में
अधिक होती है। ब्रिटेन में भारत से खाद्यान्न और विभिन्न प्रकार की खनिज सम्पदा भेजी जाती थी। इसके
बदले में ब्रिटेन के उद्योगों में जो माल तैयार होता था, उसका भारत में आयात होता था। इस आयात होने वाले
माल की कीमत; ब्रिटेन को भेजे गए माल से अधिक होती थी।
प्रश्न 27.19वीं सदी के अन्तिम दशकों में यूरोपीय राष्ट्रों द्वारा उपनिवेश स्थापित करने के क्या प्रभाव पड़े
उत्तर―19वीं सदी के अन्तिम दशकों में यूरोपीय राष्ट्रों द्वारा उपनिवेश स्थापित करने के निम्नलिखित
प्रभाव हुए―
1. एशिया और अफ्रीकी महाद्वीप के देशों में यूरोपीय देशों के द्वारा उपनिवेश स्थापित करने के
परिणामस्वरूप वहाँ की जनता की सामाजिक, आर्थिक स्थिति अत्यन्त दयनीय हो गयी।
2. साम्राज्यवादी देशों ने अफ्रीकी देशों को आपस में बाँट लिया और इन देशों का सभी दृष्टि से शोषण
किया।
प्रश्न 28.युद्धोत्तर काल में पुनर्निर्माण का काम किन दो प्रमुख प्रभावों के साथ आगे बढ़ा?
उत्तर―युद्धोत्तर काल में पुनर्निर्माण का काम जिन दो प्रमुख प्रभावों के साथ आगे बढ़ा, उनका उल्लेख
निम्नलिखित है―
1. इस समय सोवियत संघ का विश्व में वर्चस्व था।
2. पश्चिमी विश्व में अमेरिका एक ऐसा देश था, जो आर्थिक, राजनीतिक एवं सैनिक दृष्टि से विश्व का
एक शक्तिशाली देश बन चुका था।
प्रश्न 29. किन्हीं ऐसी दो विश्व संस्थाओं के नाम बताइए, जिनकी स्थापना ब्रेटन वुड्स के अधीन हुई?
उत्तर― दो ऐसी विश्व-संस्थाएँ, जिनकी स्थापना; ब्रेटन वुड्स समझौते के अन्तर्गत हुई―
(i) अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और
(ii) विश्वबैंक थीं।
प्रश्न 30.विश्व में युद्धोत्तर अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का प्रमुख लक्ष्य क्या था?
उत्तर― विश्व में युद्धोत्तर अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था का प्रमुख लक्ष्य; आर्थिक स्थिरता और पूर्ण
रोजगार की गारण्टी था।
प्रश्न 31.अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक की स्थापना क्यों हुई?
उत्तर― अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक की स्थापना निम्नलिखित
कारणों से हुई―
1. अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की स्थापना; इसके सदस्य राष्ट्रों के विदेशी व्यापार में लाभ के लिए पूँजी
उपलब्ध कराने और घाटे की पूर्ति करने के लिए हुई थी।
2. अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक की स्थापना; युद्ध के उपरान्त होने वाले पुनर्निर्माण हेतु धन
का प्रबंध करने के लिए हुई थी।
प्रश्न 32.जी-77 क्या है?
उत्तर― जी-77; विकासशील देशों का संगठन है। इसका गठन अपने सदस्य-राष्ट्रों के सामूहिक
आर्थिक हितों को बढ़ावा देना और संयुक्त राष्ट्र संघ के लिए संयुक्त समझौतों की सम्भावनाओं में
अधिकाधिक वृद्धि करना है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. किन्हीं तीन उदाहरणों के आधार पर यह स्पष्ट करें कि अमेरिका की ओर जाने के लिए नए
समुद्री रास्ते की खोज से विश्व में परिवर्तन आया।
उत्तर― अमेरिका की ओर जाने के लिए नए समुद्री रास्ते की खोज से विश्व में परिवर्तन आया, इसे
निम्नलिखित तीन उदाहरणों के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है―
1. आज से पाँच सौ वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों के पास आलू, सोया, मूंगफली, मक्का, टमाटर, मिर्च,
शकरकंद जैसे अनेक खाद्य-पदार्थ नहीं थे। यूरोप और एशिया के देशों में ये खाद्य-पदार्थ तब पहुंँचे;
जब क्रिस्टोफर कोलम्बस आज के अमेरिका पहुँच गया। यहाँ ‘अमेरिका’ का आशय; उत्तरी
अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका और कैरीबियन द्वीपसमूह से है। जब कोलम्बस ने अमेरिका को खोजा,
तब यूरोप के लोग वहाँ पहुँचने लगे। हमारे पास आज जो अनेक खाद्य-पदार्थ उपलब्ध हैं, उनमें से
बहुत से खाद्य-पदार्थ; अमेरिका के मूल निवासियों (अमेरिकन इण्डियन्स) से हमारे पास आए हैं।
2. अमेरिका की खोज के उपरान्त ही यूरोप के व्यापार में वृद्धि हुई। वर्तमान पेरू और मैक्सिको की
खानों से प्राप्त होने वाली कीमती धातुओं; विशेष रूप से चाँदी के कारण यूरोपीय देशों की सम्पत्ति में
वृद्धि हुई। यही नहीं पश्चिमी एशिया के देशों के साथ होने वाले उसके व्यापार को भी गति प्रदान की।
दक्षिण अमेरिका की धन-सम्पत्ति के बारे में तो पूरे यूरोप में अनेक किस्से बनने लगे। इन किस्सों या
किवदंतियों के कारण ही यूरोप के लोग ‘एल डोराडो’ को ‘सोने का शहर’ मानने लगे। यही नहीं
उसकी खोज में अनेक खोज-अभियान भी किए गए।
3. यह समुद्री मार्गों की खोज का ही परिणाम था कि तीन प्रकार के प्रवाहों या गतियों-वस्तुओं के
व्यापार का प्रवाह, श्रम का प्रवाह और पूँजी के प्रवाह की दिशा में विचार किया गया।
प्रश्न 2. हमारे खाद्य-पदार्थ विभिन्न देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान का किस प्रकार उदाहरण
प्रस्तुत करते हैं?
उत्तर― हमारे खाद्य-पदार्थ किस प्रकार विभिन्न देशों के बीच सांस्कृतिक योगदान में किस प्रकार
सहायक हुए, इसके लिए अनेक उदाहरण हमारे सामने हैं। जब व्यापारी अथवा यात्री; दूसरे देशों में जाते थे
तो वे जाने-अनजाने उन देशों में नई फसलों के बीज बो आते थे। ऐसा सम्भव है कि आज जो खाद्य-पदार्थ
झटपट तैयार हो जाते हैं, उनमें भी एक-दूसरे देश का साझा योगदान रहा हो। इसी प्रकार का एक उदाहरण
‘स्पैघेत्ती’ और ‘नूडल्स’ का है। ऐसा माना जाता है कि नूडल्स चीन से पश्चिम के देशों में पहुँचे और वहाँ से
इन्हीं से स्पैघेत्ती का जन्म हुआ। इसी प्रकार सम्भवतः पास्ता; पाँचवीं शताब्दी में अरब यात्रियों के साथ
सिसली (जो अब इटली का एक टापू है) पहुँचा। इसी प्रकार के आहार या खाद्य-पदार्थ भारत और जापान
में भी पाए जाते हैं।
यह सम्भव है कि इस प्रकार के खाद्य-पदार्थों के जन्म के सम्बन्ध में कभी भी जानकारी प्राप्त न कर पाए,
फिर भी इनके आधार पर यह तो सुनिश्चित रूप से कही ही जा सकता है कि आधुनिक युग से पूर्व भी विश्व
के विभिन्न देशों के बीच सांस्कृतिक दृष्टि से आदान-प्रदान हो रहा था।
प्रश्न 3. 1919 ई० की महामंदी का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर― 1919 ई० की महामंदी का भारत पर निम्नलिखित दृष्टियों से प्रभाव पड़ा―
1. महामंदी के समय भारत ब्रिटेन का उपनिवेश था और यहाँ अनेक प्रकार की कृषि आधारित वस्तुओं
का निर्यात होता था तथा तैयार माल का ब्रिटेन और विदेशों से आयात होता था। विश्व में तेजी से
फैलने वाली महामंदी ने भारत को भी तत्काल प्रभावित किया। 1928 ई० से 1934 ई० के मध्य देश
का आयात और निर्यात; दोनों ही घटकर आधे रह गए। जब अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में वस्तुओं की कीमतें
गिरने लगीं तो भारत में भी वस्तुओं की कीमतें गिर गयीं। 1928 ई० से 1934 ई० के मध्य भारत में
उत्पादित होने वाले गेहूँ की कीमत 50 प्रतिशत तक गिर गयी।
2. यद्यपि कृषि उत्पादों की कीमतों में तेजी से गिरावट आई, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने भारत के
किसानों से प्राप्त किए जाने वाले लगान की वसूली में छूट देने से स्पष्ट रूप से मना कर दिया। इनमें
भी सर्वाधिक बुरा प्रभाव उन काश्तकारों पर पड़ा, जो विश्व-बाजारों के लिए अपनी फसलों का
उत्पादन करते थे।
3. भारत के बंगाल प्रान्त के जूट/पटसन के उत्पादक कच्चा पटसन उगाते थे। इनसे कारखानों में टाट
की बोरियां बनाई जाती थीं। जब टाट का निर्यात बन्द हो गया तो पटसन की कीमतों में 60 प्रतिशत से
भी अधिक कमी आ गयी। जिन काश्तकारों ने इस आशा में कि कुछ ही समय में सब ठीक हो
जाएगा, अपनी बेहतर आय और उपज को बढ़ाने के लिए कर्जा लिए थे, अपनी उपज की सही कीमत
न मिल पाने के कारण उनकी हालत तो और भी अधिक खराब हो गयी।
प्रश्न 4. अमेरिका की खोज के फलस्वरूप संसार में क्या परिवर्तन हुए?
उत्तर―सोलहवीं शताब्दी में जब यूरोप के जहाज लेकर चलने वालों ने एशिया तक का समुद्री मार्ग
खोज लिया और वे अमेरिका तक भी जा पहुँचे तो आधुनिक युग से पूर्व का पूर्व-आधुनिक युग बहुत
छोटा-सा प्रतीत होने लगा। यूरोपवासियों के एशिया और अमेरिका पहुंचने से पूर्व हिन्द महासागर के रास्ते से
ही व्यापार होता था। यात्री, विभिन्न प्रकार के सामान, ज्ञान और परम्पराएँ; इसी समुद्र के रास्ते से एक-दूसरे
देश में पहुंँच रहे थे। हिन्द महासागर के मार्ग के बीच भारतीय उपमहाद्वीप का बहुत अधिक महत्त्व था। यहाँ
यूरोप के लोगों के प्रवेश से यहाँ लोगों का आना-जाना और भी बढ़ गया। यहाँ के लोग भी व्यापार आदि
उद्देश्यों से यूरोप के देशों में जाने लगे।
अमेरिका की खोज से पूर्व; इस देश का संसार से किसी भी प्रकार का सम्पर्क नहीं था। सोलहवीं शताब्दी से
उसकी विशाल भूमि, अनगिनत फसलों और खनिज पदार्थों के कारण अमेरिकी लोगों के जीवन में हर दृष्टि
से परिवर्तन होने लगे। अमेरिका की खोज के उपरान्त ही यूरोप के व्यापार में वृद्धि हुई। वर्तमान पेरू और
मैक्सिको की खानों से प्राप्त होने वाली कीमती धातुओं; विशेष रूप से चाँदी के कारण यूरोपीय देशों की
सम्पत्ति में वृद्धि हुई। यही नहीं पश्चिमी एशिया के देशों के साथ होने वाले उसके व्यापार को भी गति प्रदान
की। दक्षिण अमेरिका की धन-सम्पत्ति के बारे में तो पूरे यूरोप में अनेक किस्से बनने लगे। इन किस्सों या
किवदंतियों के कारण ही यूरोप के लोग ‘एल डोराडो’ को ‘सोने का शहर’ मानने लगे। यही नहीं उसकी
खोज में अनेक खोज-अभियान भी किए गए।
प्रश्न 5. यूरोपीय के आगमन से पूर्व अफ्रीकी लोगों के जीवन की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख
कीजिए।
उत्तर― यूरोपीय के आगमन से पूर्व अफ्रीकी लोगों के जीवन की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख
निम्नवत् है―
1. अफ्रीका की आबादी बहुत अधिक नहीं थी, जबकि प्राचीन समय से ही उसके पास जमीन कोई कमी
नहीं थी। उसके पास कृषि आदि के लिए विस्तृत जमीन थी।
2. कई शताब्दियों तक जमीन पर खेती करके और पालतू मवेशियों के सहारे ही अफ्रीकी लोगों का
जीवन चलता रहा। वहाँ अधिकांशतः ग्रामीण क्षेत्र थे और वहाँ के लोग आत्मनिर्भर थे।
3. अफ्रीका में पैसे या वेतन पर काम करने का चलन नहीं था। उन्हें इसकी आवश्यकता ही नहीं पड़ती
थी। 19वीं शताब्दी के अन्त तक भी अफ्रीका में इस प्रकार के उपभोक्ता सामान बहुत कम थे, जिन्हें
खरीदने हेतु पैसे की आवश्यकता होती थी। अफ्रीका में बागानों की खेती और खानों में काम कराने
की दृष्टि से यूरोपीय शक्तियों के सामने भी एक प्रमुख समस्या यही उत्पन्न हुई कि अफ्रीकी लोग
वेतन पर काम नहीं करना चाहते थे। अत: मजदूरों की भर्ती के लिए मालिकों ने कई प्रकार के
अन्यायपूर्ण तरीकों का प्रयोग किया।
प्रश्न 6. 19वीं शताब्दी की अनुबंध व्यवस्था (नयी दास प्रथा) ने एक नयी संस्कृति को किस प्रकार
जन्म दिया?
उत्तर― मजदूरों को अनुबंध या एग्रीमेंट के तहत बाहर ले जाने की व्यवस्था को अनेक लोगों ने ‘नई
दास प्रथा’ का नाम भी दिया है। जब मजदूर बाहर के स्थानों के बागानों या अपने कार्य करने के स्थान पर
पहुँचते थे तो उन्हें यह पता चलता था कि जैसी आशा वे कर रहे थे, वहाँ उसके सबकुछ पूर्णतया विपरीत है।
नए स्थानों की कार्य-दशाएँ बहुत कठोर थीं और मजदूरों को इस सम्बन्ध में शिकायत करने या कुछ भी
कहने के लिए कोई भी अधिकार नहीं दिया गया था। इस प्रकार की स्थितियों में मजदूरों ने भी अपने
जीवन-व्यापन के लिए अपने कुछ तरीके निकाल लिए थे।
इसके साथ ही उन्होंने अपनी पुरानी और नवीन संस्कृति को समन्वित करते हुए अपनी व्यक्तिगत और
सामूहिक अभिव्यक्ति के निम्नलिखित नए रूप खोज लिए थे―
1. त्रिनिदाद में मुहर्रम के वार्षिक जुलूस को एक विशाल उत्सवी मेले का रूप दे दिया गया। इस उत्सवी
मेले को इमाम हुसेन के नाम पर होसे’ नाम दिया गया। इस मेले में सभी धर्मों और नस्लों के
मजदूर
भाग लेते थे।
2. भारतीय अप्रवासियों व कैरीबियन द्वीप समूह के लोगों ने मिलकर एक नए धर्म ‘रास्ताफारियावयाद’
(Rastafarianism) को जन्म दिया। बाद में जैमेका के रैगे गायक बॉव माले ने इसे विश्व-ख्याति
दिलाई। इस प्रकार इस विद्रोही धर्म के आधार पर भी भारतीय अप्रवासियों और कैरीबियाई द्वीपसमूह
के बीच सांस्कृतिक सम्बन्धों की झलक दिखाई देती है।
3. त्रिनिदाद, गुयाना में प्रसिद्ध ‘चटनी-म्यूजिक’ भी विदेशों में जाकर बसे भारतीय अप्रवासियों की ही
देन है, जो उनकी रचनात्मक अभिव्यक्ति का एक प्रतीक है।
प्रश्न 7. 19वीं सदी के अन्त में विश्व में उपनिवेशवाद का प्रसार किस प्रकार हुआ?
उत्तर― 19वीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में यूरोपीय देशों के व्यापार में विशेष रूप से वृद्धि हुई और
उनके उत्पादों के बाजार का विस्तार हुआ। परन्तु यह केवल व्यापार और यूरोप की सम्पन्नता का ही दौर
सिद्ध नहीं हुआ, वरन् इस प्रकार की प्रगति के कुछ गम्भीर परिणाम भी हुए। उपनिवेशवाद का विस्तार इसी
प्रकार का एक दुर्भाग्यजनक और अमानवीय परिणाम था। व्यापार में वृद्धि और विश्व अर्थव्यवस्था के साथ
निकटता के फलस्वरूप उपनिवेशवादी देशों के द्वारा अनेक क्षेत्रों की स्वतन्त्रता और आजीविका के साधन
छीने जाने लगे।
19वीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में यूरोप के देशों की सेनाओं की एशिया, अफ्रीका आदि महाद्वीपों के क्षेत्रों
पर विजय हुई और उन्होंने वहाँ अपने उपनिवेश स्थापित करने शुरू कर दिए। इसके परिणामस्वरूप
उपनिवेशों में रहने वाले लोगों के जीवन में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक दृष्टि से अनेक प्रकार की
कष्टदायी परिस्थितियाँ उत्पन्न हुईं। वहाँ के जन-जीवन में अनेक गम्भीर परिवर्तन हुए। 1995 ई० में यूरोप के
शक्तिशाली देशों की बर्लिन में एक बैठक हुई। इस बैठक में अफ्रीका के मानचित्र पर सीधी लकीरें खींचकर
अफ्रीका को आपस में बाँट लिया गया।
उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में ब्रिटेन और फ्रांस ने अपने शासन वाले विदेशों के औपनिवेशिक क्षेत्रफल में
बहुत अधिक वृद्धि कर ली थी। इसी समय बेल्जियम और जर्मनी भी नई औपनिवेशिक शक्तियों के सामने
आए। 1890 ई० के दशक के अन्तिम वर्षों में संयुक्त राज्य अमेरिका भी एक औपनिवेशिक शक्ति के रूप
में सामने आ चुका था। संयुक्त राज्य अमेरिका ने स्पेन के अधीन रह चुके कुछ उपनिवेशों पर भी अपना
कब्जा कर लिया था।
प्रश्न 8. भारत के सूती वस्त्र उद्योग पर उपनिवेशवाद का क्या प्रभाव हुआ?
उत्तर―भारत में काफी अच्छे किस्म की कपास की फसलें होती थीं। इस कपास का यूरोप के विभिन्न
देशों को निर्यात किया जाता था। औद्योगीकरण के फलस्वरूप ब्रिटेन में भी कपास के उत्पादन में वृद्धि होने
लगी। इसी कारण अपने लाभ के लिए ब्रिटेन के उद्योगपतियों ने ब्रिटेन की सरकार पर यह दबाव बनाया कि
वह कपास के आयात पर रोक लगाकर ब्रिटेन के कपास उत्पादित करने वाले स्थानीय उद्योगों की रक्षा करे।
इसका परिणाम यह हुआ कि ब्रिटेन में बाहर से आयात होने वाले कपड़ों पर सीमा-शुल्क लगा दिए गए।
इससे भारत की महीन कपास का ब्रिटेन में आयात कम होने लगा।
उधर 19वीं शताब्दी के शुरुआत से ही ब्रिटेन में कपड़े का उत्पादन करने वाले दूसरे देशों में भी अपने कपड़ों
की बिक्री के लिए नए-नए बाजारों की खोज में लग गए। सीमा-शुल्क लग जाने के कारण ब्रिटिश बाजारों से
तो भारतीय कपड़ों की बिक्री बन्द हो ही गयी, विश्व के दूसरे देशों के बाजारों में भी भारतीय कपड़ा
व्यापारियों को भारी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा। 1800 ई० के आसपास भारत से निर्यात किए जाने
वाले सूती कपड़े का प्रतिशत 30 था। यह 1815 ई० में घटकर 15 प्रतिशत रह गया और 1870 ई० में यह
अनुपात और अधिक घटकर केवल 3 प्रतिशत ही रह गया।
प्रश्न 9. ‘सिल्क मार्ग’ ने विश्व को जोड़ने का प्रयास किस प्रकार किया?
उत्तर―आधुनिक युग से पहले संसार के दूर-दूर स्थित देशों के बीच व्यापारिक और सांस्कृतिक
सम्पर्को का सबसे जीवन्त उदाहरण सिल्क मार्ग हैं। इन सिल्क मार्गों ने विश्व को व्यापार और संस्कृति के
द्वारा किस प्रकार जोड़ा; यह हमें निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर ज्ञात हो सकता है―
1. सिल्क मार्ग; एशिया के विशाल क्षेत्रों को आपस में जोड़ने के साथ ही एशिया, यूरोप और उत्तरी
अमेरिकी महाद्वीपों को भी आपस में जोड़ने में सहायक होते थे।
2. इस मार्ग से चीन में बनी सिल्क (रेशम) को पश्चिमी देशों में भेजा जाता था। इसके साथ ही चीन में
बनाई जाने वाली पॉटरी का भी बाहर के देशों में निर्यात होता था।
3. भारत और दक्षिण पूर्व एशिया से कपड़े व मसाले चीन व विश्व के अन्य देशों को भेजे जाते थे।
4. जब एशिया के व्यापारी वापिस लौटते थे तो वे अपने साथ यूरोप से सोने व चाँदी जैसी कीमती धातुएँ
लेकर आते थे।
5. इन मार्गों के माध्यम से व्यापार के साथ-साथ; धार्मिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी एक-दूसरे देश के
बीच आदान-प्रदान होता था। ईसाई धर्म, मुस्लिम धर्म और बौद्ध धर्म; का सम्भवत: इसी मार्ग से
विश्व के अन्य देशों में प्रसार हुआ।
प्रश्न 10. वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
उत्तर― 1890 ई० तक वैश्विक कृषि व्यवस्था का उदय हो चुका था और इसके परिणामस्वरूप अनेक
परिवर्तन सामने आ रहे थे। वैश्विक कृषि व्यवस्था के कारण श्रम-विस्थापन रूझानों, पूँजी के प्रवाह,
पारिस्थितिकी और तकनीकी के क्षेत्रों में बहुत अधिक परिवर्तन हो चुके थे। संक्षेप में ये परिवर्तन इस प्रकार थे―
1. अब खाद्य-पदार्थ; गाँव या कस्बों के स्थान पर विश्व के अन्य स्थानों से विभिन्न देशों में पहुंचने लगे।
2. इस व्यवस्था में जमीन के मालिक स्वयं कृषि-कार्य नहीं करते थे। वे इस कार्य को औद्योगिक
मजदूरों से करवाने लगे।
3. खाद्य-पदार्थ को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने के लिए रेल-नेटवर्क और पानी के जहाजों
का प्रयोग किया जाने लगा।
4. दक्षिणी यूरोप, एशिया, अफ्रीका तथा कैरीबियन द्वीप समूह के मजदूरों को ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और
अमेरिका ले जाकर कम वेतन पर कार्य करवाया गया।
प्रश्न 11. प्रथम विश्वयुद्ध के ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर― प्रथम युद्ध से पूर्व ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को संसार की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था माना जाता
था। युद्ध के उपरान्त आर्थिक दृष्टि से सर्वाधिक समस्याओं का सामना उसी को करना पड़ा। युद्ध समाप्त हो
जाने के उपरान्त ब्रिटेन को भारतीय बाजारों में पहली वाली स्थिति को प्राप्त करना बहुत कठिन हो गया था।
युद्ध में ब्रिटेन के जो भी खर्चे हुए, उनके लिए उसने अमेरिका से बहुत अधिक कर्ज लिए थे। इसका परिणाम
यह हुआ कि युद्ध समाप्त होते ही ब्रिटेन भारी विदेशी कर्ज के बोझ में दब गया। इस युद्ध के कारण उसका
संसार में आर्थिक दृष्टि से पहले वाला प्रभाव या वर्चस्व समाप्त हो गया। अब उसके उत्पादन में कमी आ गयी
और देश में बेरोजगारी की समस्या भी उत्पन्न हो गयी। इसके लिए ब्रिटेन की सरकार ने अपने भारी युद्ध
सम्बन्धी व्यय में भी कटौती करना शुरू कर दी, जिससे शांतिकालीन करों के माध्यम से विदेशी कर्ज की
भरपाई की जा सके। उसके द्वारा किए गए उपाय सम्बन्धी अनेक प्रयासों से देश में भारी तादाद में रोजगार
समाप्त हो गए। यहाँ तक कि 1821 ई० में प्रत्येक पाँच में से एक मजदूर के पास काम नहीं था।
प्रश्न 12.उन्नीसवीं सदी में यूरोपीय लोग भागकर अमेरिका क्यों जाने लगे?
उत्तर― उन्नीसवीं शताब्दी तक यूरोप में निर्धनता और भूख का ही साम्राज्य था। वहाँ के नगरों में
जनसंख्या की बहुत अधिक भीड़ थी और चारों तरफ बीमारियां फैली हुई थीं। वहाँ आपसी धार्मिक टकराव
एक सामान्य बात थी और धार्मिक असन्तुष्टों को कठोर दंड दिया जाता था। यही कारण था कि अनेक लोग
यूरोप से भागकर अमेरिका जाने लगे। वहाँ पहुँचे यूरोप के लोगों ने अफ्रीका से पकड़कर लाए गए गुलामों
को जबरन अपने व्यापारिक आदि विभिन्न कामों में लगा दिया। इन गुलामों को काम पर लगाकर यूरोपीय
बाजारों के लिए कपास और चीनी का उत्पादन किया जाने लगा। उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोप के लगभग पाँच
करोड़ लोग अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में जाकर बस गए। एक अनुमान के अनुसार सारे संसार के लगभग
पन्द्रह करोड़ लोग अपने भविष्य को संतोषजनक बनाने और काम की तलाश में अपने देशों को छोड़कर
दूर-दूर के देशों में जाकर बस गए। वहीं बसकर उन्होंने अपने जीविकोपार्जन हेतु काम करना शुरू कर
दिया।
प्रश्न 13.अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय के क्षेत्र में तीन तरह की गतियों या प्रवाहों का उल्लेख
कीजिए।
उत्तर― अर्थशास्त्रियों के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय की तीन प्रकार की ‘गतियों’ अथवा ‘प्रवाहों’
का उल्लेख किया गया है। इन प्रवाहों का उल्लेख इस प्रकार है―
1. पहला प्रवाह व्यापार का होता है। उन्नीसवीं शताब्दी में यह प्रवाह मुख्य रूप से वस्तुओं (कपड़ा, गेहूँ
आदि) के व्यापार तक ही सीमित था।
2. दूसरा प्रवाह; श्रम का प्रवाह कहलाता है, जिसमें लोग काम या रोजगार की तलाश में एक स्थान से
दूसरे स्थान को जाते हैं।
3. तीसराप्रवाह: पूँजी का प्रवाह कहा जाता है। इस प्रवाह के अन्तर्गत पूँजी को कम या अधिक समय के
लिए दूर स्थित क्षेत्रों या बाहर के देशों में निवेश कर दिया जाता है।
प्रश्न 14.19वीं शताब्दी के दौरान गिरमिटिया मजदूरी के लिए उत्तरदायी चार घटकों का उल्लेख
कीजिए।
उत्तर― 19वीं शताब्दी की एक अन्य प्रमुख बात; भारत से अनुबंधित श्रमिकों को यूरोपीय शक्तियों
द्वारा अपने उपनिवेशों में काम कराने हेतु ले जाना भी था। इन अनुबंधित श्रमिकों को ‘गिरमिटिया’ के नाम से
भी सम्बोधित किया जाता था। संक्षेप में 19वीं शताब्दी के दौरान गिरमिटिया मजदूरी के लिए उत्तरदायी चार
घटकों का उल्लेख निम्नलिखित है―
1. भारत से जाने वाले अधिकांश अनुबंधित श्रमिक वर्तमान पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य भारत और
तमिलनाडु के सूखे क्षेत्रों से जाते थे। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में इन क्षेत्रों में भारी परिवर्तन आने
लगे थे। इन भारतीय प्रान्तों के कुटीर उद्योग समाप्त होते जा रहे थे, जमीनों के किरायों में वृद्धि हो
गयी थी तथा खानों और बागानों के लिए वहाँ की जमीनों को साफ कराया जा रहा था। इन सब
परिवर्तनों का निर्धन लोगों के जीवन पर गम्भीर प्रभाव हुआ। वे बँटाई पर जमीन तो ले लेते थे, परन्तु
उसका किराया नहीं चुका पाते थे। परिणामस्वरूप उन पर किराया या भाड़ा चढ़ने लगा और काम
की खोज में उन्हें अपने घरों को छोड़कर बाहर जाने के लिए विवश होना पड़ा।
2. उपनिवेशों में काम कराने के लिए मजदूरों की भर्ती हेतु कमीशन पर एजेंट रखे जाते थे। अपने गाँवों
में होने वाले उत्पीड़न और गरीबी से बचने के लिए इन एजेंटों द्वारा रखे गए अनुबंधों को स्वीकार
कर लेते थे। ये एजेंट अप्रवासियों को बहकाने के लिए अनेक प्रकार की झूठी जानकारियाँ भी देते थे।
3. अप्रवासियों को किस स्थान पर जाना है, उनकी यात्रा के क्या साधन होंगे, दूर देशों में जाकर उन्हें
क्या काम करना होगा तथा नए स्थान पर काम व जीवन की क्या दशाएँ होंगी, इस बारे में उन्हें सही
जानकारियाँ नहीं दी जाती थीं। यहाँ तक कि यदि कोई मजदूर उनके साथ जाने के लिए तैयार नहीं
होता था तो एजेंट उसका अपहरण तक कर लेते थे।
4. अफ्रीका में पशुओं से सम्बन्धित एक भयंकर रोग के कारण वहाँ के अधिकांश पशु मर गए। इस रोग
को ‘रिंडरपेस्ट’ नाम दिया गया। यहाँ के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि और पशु-पालन ही था।
अत: इस स्थिति में उनकी स्थिति अत्यन्त दयनीय हो गयी और वे गिरमिटिया मजदूरी के लिए विवश
हो गए।
प्रश्न 15.’रिन्डरपेस्ट’ का 1890 ई० के दशक में अफ्रीका के लोगों की आजीविका और स्थानीय
अर्थव्यवस्था पर हुए प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर―1890 ई० के दशक के अन्तिम वर्षों में अफ्रीका में रिंडरपेस्ट नामक एक पशु-रोग फैल गया।
यह बीमारी उन एशियाई देशों से आए मवेशियों के माध्यम से फैली थी, जिन एशियाई देशों पर ब्रिटेन का
आधिपत्य था। अफ्रीका के पूर्वी क्षेत्र से यह बीमारी पूरे महाद्वीप में आग की तरह फैल गयी। इस बीमारी के
कारण अफ्रीका के 90 प्रतिशत मवेशियों की मौत हो गयी। अफ्रीका के लोग जमीन और मवेशियों पर ही
निर्भर थे। जब मवेशी ही समाप्त हो गए तो अफ्रीका के लोगों के समक्ष रोजी-रोटी की गम्भीर समस्या उत्पन्न
हो गयी।
अपनी सत्ता को अफ्रीका में और अधिक मजबूत करने के लिए वहाँ के बागान मालिकों, खान-मालिकों और
औपनिवेशिक सरकारों ने वहाँ बचे हुए कुछ मवेशियों को भी अपने कब्जे में ले लिया। इस प्रकार अफ्रीका में
आई इस आकस्मिक मवेशियों की बीमारी ने वहाँ के लोगों को औपनिवेशिक शक्तियों के अधीन काम करने
के लिए विवश होना पड़ा। साथ ही इसके परिणामस्वरूप यूरोपीय साम्राज्यवादी शक्तियों को पूरे अफ्रीका
को जीतने और उसे गुलाम बनाने का एक बेहतर अवसर भी प्राप्त हो गया।
प्रश्न 16. ‘कॉर्न लॉ’ क्या थे? इन्हें तत्काल क्यों समाप्त करना पड़ा?
उत्तर―‘कॉर्न-लॉ’ आयात और निर्यात को नियमित करने हेतु ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाए गए
व्यापारिक कानून थे, जिन्हें बाद में ब्रिटिश सरकार को समाप्त करना पड़ा।
18वीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में ब्रिटेन की जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि होने लगी। इसके फलस्वरूप
देश में भोजन की माँग में भी वृद्धि हो गयी। जैसे-जैसे शहर फैले और उद्योगों में वृद्धि हुई, कृषि उत्पादों की
माँग में भी होती चली गयी। कृषि-उत्पादों की माँग बढ़ने से कृषि-उत्पाद महँगे होने लगे। इसी समय देश के
बड़े भू-स्वामियों के दबाव में आकर ब्रिटेन की सरकार ने मक्का के आयात पर ‘कॉर्न-लॉ’ द्वारा पाबन्दी
लगा दी, परन्तु खाद्य-पदार्थों की बढ़ी हुई कीमतों से परेशान होकर उद्योगपतियों और नगरों में रहने वाले
लोगों ने सरकार को कॉर्न-लॉ को समाप्त करने के लिए विवश कर दिया। अन्ततः सरकार को तत्काल कॉर्न
लॉ समाप्त करना पड़ा।
प्रश्न 17.नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर― अधिकांश विकासशील देशों को पचास और साठ के दशक में पश्चिमी देशों की
अर्थव्यवस्थाओं से किसी भी प्रकार का लाभ नहीं हुआ। इस समस्या के कारण ही उन्होंने एक नयी
अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली (New International Economic Order-NIEO) के लिए आवाज
उठाई और समूह-जी’ (जी-77) के रूप में संगठित हो गए। एन०आई०ई०ओ० से उनका आशय एक ऐसी
व्यवस्था से था, जिसमें उन्हें अपने संसाधनों पर सही प्रकार से नियंत्रण प्राप्त हो सके, जिससे उन्हें अपने
विकास के लिए अधिक सहायता प्राप्त हो, कच्चे माल के सही दाम मिलें और साथ ही अपने तैयार माल को
विकसित देशों के बाजारों में बेचने के लिए और अधिक बेहतर पहुँच प्राप्त हो।
प्रश्न 18.कृषि-अर्थव्यवस्था पर प्रथम विश्वयुद्ध के प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर―प्रथम विश्वयुद्ध के बाद संसार की अनेक प्रकार की कृषि आधारित अर्थव्यवस्थाएँ भी संक
के दौर से गुजरने लगीं। उदाहरण के लिए, गेहूँ के क्षेत्र में पूर्वी यूरोप विश्व के बाजार में गेहूँ की आपूर्ति करने
वाला एक बहुत बड़ा केन्द्र था। जब युद्ध के दौरान यूरोप में गेहूँ की आपूर्ति कम हो गयी तो कनाडा,
अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में अचानक गेहूँ की पैदावार में वृद्धि होने लगी। उधर जैसे ही विश्वयुद्ध समाप्त
हुआ पूर्वी यूरोप की गेहूंँ की पैदावार में सुधार आने लगा। यहाँ तक कि विश्व के बाजारों में गेहूंँ की बहुत
अधिक भरमार हो गयी। इसका एक दुष्परिणाम यह हुआ कि अनाज की कीमतें गिर गयीं, ग्रामीण-आय में
कमी आ गयी और किसान भारी कर्ज के संकट में आ गए।
प्रश्न 19. ब्रिटेन के औद्योगीकरण का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव हुआ? संक्षेप में स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर― औद्योगीकरण के फलस्वरूप ब्रिटेन में भी कपास के उत्पादन में वृद्धि होने लगी। इसी कारण
अपने लाभ के लिए ब्रिटेन के उद्योगपतियों ने ब्रिटेन की सरकार पर यह दबाव बनाया कि वह कपास के
आयात पर रोक लगाकर ब्रिटेन के कपास उत्पादित करने वाले स्थानीय उद्योगों की रक्षा करे। इसका
परिणाम यह हुआ कि ब्रिटेन में बाहर से आयात होने वाले कपड़ों पर सीमा शुल्क लगा दिए गए। इससे
भारत की महीन कपास का ब्रिटेन में आयात कम होने लगा।
उधर 19वीं शताब्दी के शुरुआत से ही ब्रिटेन में कपड़े का उत्पादन करने वाले दूसरे देशों में भी अपने कपड़ों
की बिक्री के लिए नए-नए बाजारों की खोज में लग गए। सीमा शुल्क लग जाने के कारण ब्रिटिश बाजारों से
तो भारतीय कपड़ों की बिक्री बन्द हो ही गयी, विश्व के दूसरे देशों के बाजारों में भी भारतीय कपड़ा
व्यापारियों को भारी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा।
प्रश्न 20.स्थिर विनिमय दर और परिवर्तनशील विनिमय दर में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर― स्थिर विनमय दर और परिवर्तनशील विनिमय दर के अन्तर को निम्नलिखित बिन्दुओं के
आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है―
1. जब सरकार द्वारा मुद्रा की विनिमय दर का निर्धारण किया जाता है तो यह स्थिर विनिमय दर
कहलाती है। इसके विपरीत जब मुद्रा की विनिमय दर उसकी माँग और पूर्ति पर निर्भर करती है
अथवा इसका निर्धारण बाजार के द्वारा किया जाता है तो यह परिवर्तनशील विनिमय दर कहलाती है।
2. स्थिर विनिमय दर; एक ऐसी आर्थिक प्रणाली है, जिसमें विनिमय दर स्थिर होती है। इसलिए इस
प्रणाली में आने वाले उतार-चढ़ावों को नियंत्रित करने के लिए सरकारों को हस्तक्षेप करने की
आवश्यकता होती है, जबकि परिवर्तनशील विनिमय दर में सरकार के द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जाता
है। यह कम या अधिक होती रहती है।
3. स्थिर विनिमय दर प्रणाली को ब्रेटन वुड्स प्रणाली के अन्तर्गत अपनाया गया था। इसके विपरीत
परिवर्तनशील विनिमय दर को वर्तमान समय में अपनाया गया है।
दीर्घ उत्तरीय प्रशन
प्रश्न 1. ‘रेशम मार्गों के महत्त्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
उत्तर― आधनिक युग से पहले संसार के दूर-दूर स्थित देशों के बीच व्यापारिक और सांस्कृतिक
सम्पर्कों का सबसे जीवन्त उदाहरण सिल्क मार्ग हैं। इन सिल्क मार्गों का महत्त्व हमें निम्नलिखित बिन्दुओं के
आधार पर ज्ञात हो सकता है―
1. सिल्क मार्ग; एशिया के विशाल क्षेत्रों को आपस में जोड़ने के साथ ही एशिया, यूरोप और उत्तरी
अमेरिकी महाद्वीपों को भी आपस में जोड़ने में सहायक होते थे।
2. इस मार्ग से चीन में बनी सिल्क (रेशम) को पश्चिमी देशों में भेजा जाता था। इसके साथ ही चीन में
बनाई जाने वाली पॉटरी का भी बाहर के देशों में निर्यात होता था।
3. भारत और दक्षिण पूर्व एशिया से कपड़े व मसाले; चीन व विश्व के अन्य देशों को भेजे जाते थे।
4. जब एशिया के व्यापारी वापिस लौटते थे तो वे अपने साथ यूरोप से सोने व चाँदी जैसी कीमती धातुएँ
लेकर आते थे।
5. इन मार्गों के माध्यम से व्यापार के साथ-साथ; धार्मिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी एक-दूसरे देश के
बीच आदान-प्रदान होता था। ईसाई धर्म, मुस्लिम धर्म और बौद्ध धर्म का सम्भवत: इसी मार्ग से
विश्व के अन्य देशों में प्रसार हुआ।
प्रश्न 2. 18वीं शताब्दी के अन्त में हुए उन परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए, जिनके फलस्वरूप ब्रिटेन
के स्वरूप में परिवर्तन हुआ।
उत्तर― 18वीं शताब्दी के अन्त में ब्रिटेन में कुछ ऐसे परिवर्तन हुएं, जिन्होंने ब्रिटेन के स्वरूप को
व्यापक रूप में परिवर्तन कर दिया। ये परिवर्तन इस प्रकार थे-
1. 18 वीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में ब्रिटेन की जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि होने लगी। इसके
फलस्वरूप देश में भोजन की माँग में भी वृद्धि हो गयी।
2. जैसे-जैसे शहर फैले और उद्योगों में वृद्धि हुई, कृषि उत्पादों की माँग में भी वृद्धि होती चली गयी।
3. कृषि-उत्पादों की माँग बढ़ने से कृषि-उत्पाद महँगे होने लगे।
4. देश के बड़े भू-स्वामियों के दबाव में आकर ब्रिटेन की सरकार ने मक्का के आयात पर ‘कॉर्न-लॉ’
द्वारा पाबन्दी लगा दी।
5. खाद्य-पदार्थों की बढ़ी हुई कीमतों से परेशान होकर उद्योगपतियों और नगरों में रहने वाले लोगों ने
सरकार को कॉर्न-लॉ को समाप्त करने के लिए विवश कर दिया।
6. ‘कॉर्न-लॉ’ समाप्त होने के उपरान्त कम कीमतों पर खाद्य-पदार्थों का आयात किया जाने लगा।
आयात किए जाने वाले खाद्य-पदार्थों की लागत ब्रिटेन में पैदा होने वाले खाद्य-पदार्थों की कीमत से
भी कम थी। परिणामत: ब्रिटेन के किसानों की दशा बिगड़ने लगी, क्योंकि वे आयात होने वाले माल
की कीमत का मुकाबला नहीं कर सकते थे।
7. इस स्थिति में ब्रिटेन के विशाल भू-भागों पर खेती बन्द हो गयी और हजारों लोग बेघर हो गए।
8. खाद्य-पदार्थों की कीमतों में गिरावट आने से ब्रिटेन में उपभोग का स्तर बढ़ गया।
9. 19वीं शताब्दी के मध्य ब्रिटेन की औद्योगिक प्रगति काफी तेज रही। इसके परिणामस्वरूप लोगों की
आय में वृद्धि हुई।
10. लोगों की आय में वृद्धि होने से खाद्य-पदार्थों का और अधिक मात्रा में आयात होने लगा।
11. संसार के प्रत्येक भाग में ब्रिटेन के लोगों का पेट भरने के लिए जमीनों को साफ करके खेती की जाने
लगी। साथ ही इन कृषि क्षेत्रों को बन्दरगाहों से जोड़ने के लिए रेलवे का विकास किया गया।
12. अधिक मात्रा में माल की ढुलाई के लिए नई गोदियाँ बनाई गयीं और पुरानी गोदियों का विस्तार किया
गया।
13. नयी जमीनों पर खेती करने हेतु यह आवश्यक था कि दूसरे इलाकों के लोग आकर वहाँ बसें। ऐसा
ही हुआ भी। बाहरी लोगों के लिए नए घर और नई बस्तियाँ बसाई गयीं।
14. इन सारे कार्यों के लिए पूँजी और श्रम की भी आवश्यकता थी। इसके लिए लंदन जैसे वित्तीय केन्द्रों
र से पूँजी आने लगी।
15. 1890 ई० तक अनेक नवीन तकनीकी आधारित परिवर्तन भी हो चुके थे। भोजन अथवा
खाद्य-पदार्थ; किसी आस-पास के गाँव अथवा कस्बे से नहीं, बल्कि हजारों मील दूर से आने लगा।
यह विश्व-अर्थव्यवस्था अथवा विश्व-व्यापार के विस्तार का एक प्रमुख उदाहरण था।
16. अब अपने खेतों में स्वयं काम करने वाले किसान ही खाद्य-पदार्थों का उत्पादन नहीं कर रहे थे,
बल्कि अब इस काम को ऐसे औद्योगिक मजदूर करने लगे थे, जो सम्भवतः हाल ही में वहाँ आए थे।
17. खाद्य-पदार्थों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने के लिए रेलवे नेटवर्क का प्रयोग किया जाता
था। पानी के जहाजों से भी इसे दूसरे देशों तक पहुँचाया जाता था। इन जहाजों पर दक्षिण यूरोप,
एशिया और अफ्रीका के मजदूरों से बहुत कम वेतन पर काम करवाया जाता था।
इस प्रकार उपर्युक्त समस्त परिवर्तनों के परिणामस्वरूप ब्रिटेन के स्वरूप में व्यापक रूप से परिवर्तन हुए।
ब्रिटन में हुए इस परिवर्तन की प्रक्रिया को देखने से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि विश्व-अर्थव्यवस्था अथवा
विश्व-व्यापार के क्षेत्र में इस सदी में कितनी तीव्र गति से परिवर्तन हो रहे थे।
प्रश्न 3. ‘कॉर्न लॉ’ को भंग करने के क्या परिणाम हुए?
उत्तर―18वीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में ब्रिटेन की जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि होने लगी। इसके
फलस्वरूप देश में भोजन की माँग में भी वृद्धि हो गयी। जैसे-जैसे शहर फैले और उद्योगों में वृद्धि हुई, कृषि
उत्पादों की माँग में भी वृद्धि होती चली गयी। कृषि-उत्पादों की माँग बढ़ने से कृषि-उत्पाद महँगे होने लगे।
उधर देश के बड़े भू-स्वामियों के दबाव में आकर ब्रिटेन की सरकार ने मक्का के आयात पर ‘कॉर्न-लॉ’
द्वारा पाबन्दी लगा दी। परन्तु खाद्य-पदार्थों की बढ़ी हुई कीमतों से परेशान होकर उद्योगपतियों और नगरों में
रहने वाले लोगों ने सरकार को कॉर्न-लॉ को समाप्त करने के लिए विवश कर दिया। इस कॉर्न-लॉ को
समाप्त करने के निम्नलिखित परिणाम हुए―
1. ‘कॉर्न-लॉ’ समाप्त होने के उपरान्त कम कीमतों पर खाद्य-पदार्थों का आयात किया जाने लगा।
आयात किए जाने वाले खाद्य-पदार्थों की लागत ब्रिटेन में पैदा होने वाले खाद्य-पदार्थों की कीमत से
भी कम थी। परिणामत: ब्रिटेन के किसानों की दशा बिगड़ने लगी, क्योंकि वे आयात होने वाले माल
की कीमत का मुकाबला नहीं कर सकते थे।
2. इस स्थिति में ब्रिटेन के विशाल भू-भागों पर खेती बन्द हो गयी और हजारों लोग बेघर हो गए।
3. खाद्य-पदार्थों की कीमतों में गिरावट आने से ब्रिटेन में उपभोग का स्तर बढ़ गया।
प्रश्न 4. यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों ने अफ्रीका को किस प्रकार गुलाम बनाया?
उत्तर―यूरोप की साम्राज्यवादी और औपनिवेशिक शक्तियों ने अफ्रीका को किस प्रकार गुलाम बनाया,
यह हमें इस शीर्षक के अन्तर्गत विवरण के आधार पर ज्ञात होगा। संक्षेप में अफ्रीका को गुलाम बनाए जाने
की सम्पूर्ण स्थितियों को हम निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर समझ सकते हैं―
1. अफ्रीका की आबादी बहुत अधिक नहीं थी, जबकि प्राचीन समय से ही उसके पास जमीन की कोई
कमी नहीं थी। कई शताब्दियों तक जमीन पर खेती करके और पालतू मवेशियों के सहारे ही अफ्रीकी
लोगों का जीवन चलता रहा।
2. अफ्रीका में पैसे या वेतन पर काम करने का चलन नहीं था। उन्हें इसकी आवश्यकता ही नहीं पड़ती
थी। 19वीं शताब्दी के अन्त तक भी अफ्रीका में इस प्रकार के उपभोक्ता सामान बहुत कम थे, जिन्हें
खरीदने हेतु पैसे की आवश्यकता होती थी।
3. 19वीं शताब्दी के अन्त में यूरोपीय साम्राज्यवादी शक्तियाँ अफ्रीका की विशाल भूमि और यहाँ के
खनिज-भंडारों को देखकर इस महाद्वीप की तरफ आकर्षित हुई।
4. यूरोपीय लोग अफ्रीका में बागानी खेती करना और खादानों की खुदाई करके उनसे खनिज पदार्थों को
निकालना चाहते थे, जिससे बागानों से प्राप्त कृषि उत्पादनों और खनिजों को यूरोप के अपने देशों में
भेजा जा सके।
5. अफ्रीका में बागानों की खेती और खानों में काम कराने की दृष्टि से यूरोपीय शक्तियों के सामने एक
प्रमुख समस्या यह उत्पन्न हुई कि अफ्रीकी लोग वेतन पर काम नहीं करना चाहते थे। अत: मजदूरों
की भर्ती के लिए मालिकों ने कई प्रकार के अन्यायपूर्ण तरीकों का प्रयोग किया।
6. बागानों और खानों में काम करने के लिए मजदूरों को लाने के लिए अफ्रीकी को कई प्रकार से विवश
किया गया। उन पर भारी कर लाद दिए गए, जिनका भुगतान केवल उसी दशा में किया जा सकता
था, जब करदाता मजदूर बागानों या खानों में काम करें। जो मजदूर खानों में काम करने के लिए
लगाए गए, उन्हें बाड़ों में बन्द कर दिया गया, जिससे वे वहाँ से भागकर कहीं और न जा सकें। यहाँ
तक उनके खुलेआम घूमने-फिरने पर भी पाबन्दी लगा दी गयी।
7. इसी समय अफ्रीका में रिंडरपेस्ट नामक एक पशु-रोग के कारण अफ्रीका के 90 प्रतिशत मवेशियों
की मौत हो गयी। इससे अफ्रीकी विवश होकर उपनिवेशवादियों के अधीन काम करने के लिए
मजबूर हो गए।
इस प्रकार अफ्रीका में आई इस बीमारी के परिणामस्वरूप यूरोपीय उपनिवेशवादी शक्तियों को पूरे अफ्रीका
को जीतकर उसे गुलाम बनाने का मौका मिल गया।
प्रश्न 5. 19वीं शताब्दी की ‘अनुबंध व्यवस्था’ (नयी दास प्रथा) का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा भारत के
सन्दर्भ में इसका उल्लेख कीजिए।
उत्तर―19वीं शताब्दी की ‘अनुबंध व्यवस्था’ (नयी दास प्रथा) का अर्थ तथा भारत के सन्दर्भ में
इसका उल्लेख निम्नवत् है―
(क) 19वीं शताब्दी की ‘अनुबंध व्यवस्था’ (नयी दास प्रथा) का अर्थ―अनुबंध व्यवस्था या नई
दास-प्रथा; का आशय उस आर्थिक व्यवस्था से है, जिसमें लोगों को एक अनुबंध अथवा एग्रीमैंट के
आधार पर विभिन्न स्थानों पर ले जाया जाता था और उनसे विभिन्न प्रकार के काम लिए जाते थे। इस
व्यवस्था के तहत जिन्हें ले जाया जाता था, वे तभी वापिस अपने घरों को जा सकते थे, जब वे
अनुबंध की अवधि को पूरी कर लें। वहाँ उन्हें बागानों, खानों, सड़कों के निर्माण और रेलवे
परियोजनाओं पर काम कराया जाता था। भारतीय श्रमिकों को वहाँ एक अनुबंध या एग्रीमेंट के तहत
ले जाया जाता था। इन अनुबंधों में यह शर्त रखी जाती थी कि यदि ये श्रमिक अपने मालिकों के
बागानों में पाँच वर्ष तक काम कर लेंगे तो उन्हें अपने देश वापिस लौटने दिया जाएगा।
(ख) भारत के सन्दर्भ में अनुबंध व्यवस्था’ का उल्लेख―उन्नीसवीं शताब्दी की एक अन्य प्रमुख बात;
भारत से अनुबंधित श्रमिकों को यूरोपीय शक्तियों द्वारा अपने उपनिवेशों में काम कराने हेतु ले जाना
भी था। इन अनुबंधित श्रमिकों को ‘गिरमिटिया’ के नाम से भी सम्बोधित किया जाता था। यह एक
ऐसा घटना थी, जिसके परिणामस्वरूप कुछ यूरोपीय शक्तियों की आय में भारी वृद्धि और उनकी
तकनीकी क्षेत्रों में वृद्धि हुई। दूसरी ओर उपनिवेशों के लोगों का यूरोपीय शक्तियों के अधीन दूसरे
देशों में जाकर काम करने के लिए विवश होने के कारण उनके कष्टों में वृद्धि हुई, वे और अधिक
निर्धन हो गए तथा उनका बहुत अधिक उत्पीड़न किया गया।
भारत से जाने वाले अधिकांश अनुबंधित श्रमिक वर्तमान पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य भारत और
तमिलनाडु के सूखे क्षेत्रों से जाते थे। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में इन क्षेत्रों में भारी परिवर्तन आने लगे थे।
इन भारतीय प्रान्तों के कुटीर उद्योग समाप्त होते जा रहे थे, जमीनों के किरायों में वृद्धि हो गयी थी तथा खानों
और बागानों के लिए वहाँ की जमीनों को साफ कराया जा रहा था। इन सब परिवर्तनों का निर्धन लोगों के
जीवन पर गम्भीर प्रभाव हुआ। वे बँटाई पर जमीन तो ले लेते थे, परन्तु उसका किराया नहीं चुका पाते थे।
परिणामस्वरूप उन पर किराया या भाड़ा चढ़ने लगा और काम की खोज में उन्हें अपने घरों को छोड़कर
बाहर जाने के लिए विवश होना पड़ा।
प्रश्न 6. ‘ब्रेटन वुड्स अनुबंध’ का क्या अर्थ है? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर― ‘ब्रेटन वुड्स अनुबंध के आशय को इसकी निम्नलिखित विशेषताओं के आधार पर समझा जा
सकता है―
1. 1919 ई० की विश्व में आने वाली महामंदी और युद्धोत्तर काल में अर्थशास्त्रियों और राजनीतिज्ञों ने
कुछ सबक सीखे थे। इनमें एक सबक यह था कि आर्थिक स्थिरता केवल सरकारी हस्तक्षेप के द्वारा
ही सम्भव हो सकती है।
2. इसीलिए आर्थिक स्थिरता को बनाए रखने तथा पूर्ण रोजगारी के उद्देश्य से 1944 ई० में अमेरिका
स्थित न्यू हैम्पशायर के ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर एक सम्मेलन हुआ।
3. इस सम्मेलन के परिणामस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष का गठन किया गया। ब्रेटन वुड्स समझौते में
शामिल सदस्य देशों के विदेश व्यापार में लाभ और घाटे से निबटने के लिए ही अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा
कोष (आई०एम०एफ०) की स्थापना की गयी।
4. इसी प्रकार युद्ध के उपरान्त विभिन्न देशों में पुनर्निर्माण सम्बन्धी कार्यों हेतु धन का प्रबंध करने के
लिए ‘अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक’ का गठन भी किया गया।
5. इस नई आर्थिक प्रणाली के अन्तर्गत विश्व की अधिकांश मुद्राओं को अमेरिकी डॉलर से जोड़ दिया
गया।
उपर्युक्त विशेषताओं वाली द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरान्त की गयी अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था को ही ‘ब्रेटन
वुड्स अनुबंध’ अथवा ‘ब्रेटन वुड्स व्यवस्था’ के नाम से जाना जाता है। यह प्रणाली कुछ वर्षों तक सफल
रही, परन्तु अन्ततः यह विफल सिद्ध हुई।
प्रश्न 7. ब्रेटन वुड्स व्यवस्था का क्या प्रभाव हुआ?
उत्तर― ब्रेटन वुड्स व्यवस्था के निम्नलिखित प्रभाव हुए―
1. ब्रेटन वुड्स व्यवस्था के आधार पर पश्चिमी औद्योगिक राष्ट्रों और जापान के लिए व्यापार एवं आय
में वृद्धि के एक नवीन युग का सूत्रपात हुआ।
2. 1950 ई० से 1970 ई० की अवधि के मध्य विश्व व्यापार की विकास-दर 8 प्रतिशत वार्षिक से भी
अधिक रही। साथ ही वैश्विक आय में 5 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई।
3. यह विकास-दर भी लगभग स्थिर ही रही। इसमें अधिक उतार-चढ़ाव नहीं आए।
4. इस अवधि में अधिकांश औद्योगिक देशों में बेरोजगारी औसतन 5 प्रतिशत से भी कम रही।
5. इस समय तकनीकी और उद्योगों का विश्वव्यापी प्रसार हुआ। विकासशील देशों का भी यह प्रयास
बना रहा कि वे विकसित देशों के बराबर पहुँच सकें। इसी कारण उन्होंने आधुनिक तकनीकी के
आधार पर चलने वाले संयत्रों और उपकरणों के आयात पर बहुत अधिक पूँजी का निवेश किया।
प्रश्न 8. प्रथम विश्वयुद्ध के विश्व पर पड़ने वाले प्रभावों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर― प्रथम विश्वयुद्ध को पहला आधुनिक औद्योगिक युद्ध भी कहा जाता है। दो खेमों के बीच लड़ा
गया यह युद्ध 1914 ई० से 1919 ई० तक चलता रहा। इस युद्ध के सारे विश्व पर व्यापक रूप से और युद्ध
के बाद भी काफी समय तक रहने वाले प्रभाव पड़े। इन प्रभावों का संक्षिप्त उल्लेख निम्नवत् है-
1. यह एक ऐसा युद्ध था, जिसमें मशीनगनों, टैंकों, हवाईजहाजों और रासायनिक हथियारों का व्यापक
स्तर पर और अत्यन्त भयावह तरीके से प्रयोग किया गया। आधुनिक विशाल उद्योगों के कारण ही ये
सब विनाशकारी हथियार आदि सामने आए थे। युद्ध के लिए संसार के अनेक देशों में सिपाहियों की
भर्ती की गयी और उन्हें विशाल जलपोतों और रेलगाड़ियों में भरकर युद्ध के मोर्चे पर ले जाया गया।
2. इस युद्ध ने मौत और विनाश का जैसा तांडव किया, उसकी औद्योगिक युग से पहले कल्पना भी नहीं
की जा सकती थी।
3. इस भयानक युद्ध में 90 लाख से भी अधिक लोग मारे गए। इसके अतिरिक्त लगभग दो करोड़ लोग
घायल भी हुए।
4. जो लोग इस युद्ध में मारे गए या घायल हुए, उनमें से अधिकांश लोग कामकाजी लोग थे। युद्ध में हुई
विनाशलीला के कारण सारे यूरोप में विभिन्न प्रकार के काम करने वालों की संख्या बहुत कम रह
गयी। युद्ध के उपरान्त परिवारों के सदस्यों की संख्या कम रह जाने के कारण युद्ध के बाद परिवारों
की आय में भी कमी आ गयी।
5. इस युद्ध के परिणामस्वरूप संसार के सबसे शक्तिशाली आर्थिक शक्तियों के बीच आर्थिक सम्बन्ध
खराब होकर टूट गए। अब वे एक-दूसरे से प्रतिशोध लेने के लिए उतारू हो गए।
6. इस युद्ध में अपने सैन्य-खर्चों के लिए ब्रिटेन को अमेरिका के बैंकों, अमेरिकी जनता से काफी कर्जा
लेना पड़ा। युद्ध से पूर्व ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था संसार की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी, जबकि युद्ध
के बाद सबसे अधिक आर्थिक संकट का सामना उसे ही करना पड़ा। युद्ध समाप्त होने तक ब्रिटेन
भारी विदेशी कों में डूब चुका था।
7. इस युद्ध का यह भी एक परिणाम हुआ कि अमेरिका जैसा जो देश; दूसरे देशों को कर्ज देता था, वह
स्वयं ही कर्जदाता बन गया। युद्ध के उपरान्त दूसरे देशो में अमेरिका और उसके नागरिकों की
सम्पत्तियों की कीमत; अमेरिका में दूसरे देशों की सरकारों या उसके नागरिकों की सम्पत्ति से कहीं
अधिक हो चुकी थी।
प्रश्न 9. प्रथम विश्वयुद्ध के उपरान्त सुधारों के लिए अमेरिका द्वारा अपनाए गए किन्हीं चार उपायों
का उल्लेख कीजिए।
उत्तर―प्रथम विश्वयुद्ध से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को काफी लाभ रहा। युद्ध के पश्चात भी अमेरिका में
सुधारों की गति तेज रही। यद्यपि युद्धोपरान्त अमेरिका को भी कुछ समय के लिए कुछ समस्याओं का सामना
करना पड़ा।। फिर भी बीस के दशक के आरम्भ से ही अमेरिका की अर्थव्यवस्था तीव्र गति से प्रगति की
दिशा में अग्रसर होने लगी। संक्षेप में प्रथम विश्वयुद्ध के उपरान्त सुधारों के लिए अमेरिका द्वारा अपनाए गए
प्रमुख उपायों का उल्लेख इस प्रकार है―
1. 1920 ई० के दशक में अमेरिका की अर्थव्यवस्था की एक बड़ी विशेषता; वहाँ ‘बृहत-उत्पादन’
पद्धति की शुरुआत होना था। इस पद्धति के आधार पर उत्पादन की शुरुआत तो उन्नीसवीं शताब्दी के
अन्त से ही शुरू हो गयी थी, परन्तु 1820 के दशक में यह अमेरिकी उत्पादन की प्रमुख विशेषता बन
गयी। इस पद्धति के प्रणेता कारों के निर्माता हेनरी फोर्ड थे। उन्होंने अपनी गाड़ियों के उत्पादन के
लिए भी इस तरीके का प्रयोग किया। इससे पूर्व जिन तरीकों को अपनाया जा रहा था, उनसे यह
तरीका या पद्धति कई गुना बेहतर थी। फोर्ड के कार-निर्माण के कारखाने में इस पद्धति के आधार पर
बनी पहली कार का नाम टी-मॉडल था।
2. हेनरी फोर्ड ने जिन उत्पादन पद्धतियों का उपयोग करके अपने कार-उत्पादन को बढ़ाया, उन
उत्पादन पद्धतियों को जल्दी ही सारे अमेरिका में अपनाया जाने लगा। यहाँ तक कि बीस के दशक में
ही यूरोप के देशों में भी उनकी उत्पादन पद्धतियों की नकल की लगा। बृहत उत्पादन पद्धतियों
के आधार पर इंजीनियरिंग-आधारित वस्तुओं की लागत और कीमतों में भी कमी आ गयी।
3. यही नहीं बेहतर उत्पादन होने के कारण अब मजदूर भी कार जैसी वस्तुओं को खरीदने में सक्षम हो
गए। 1919 ई० में अमेरिका में 20 लाख कारों का उत्पादन किया जाता था। दस साल बाद 1929 ई०
में यह उत्पादन बढ़कर 50 लाख कार प्रतिवर्ष से भी अधिक हो गया। अब अनेक लोग फ्रिज, वाशिंग
मशीन, रेडियो और ग्रामोफोन-प्लेयर्स आदि वस्तुएँ भी खरीदने लगे।
4. उनके द्वारा इन समस्त वस्तुओं को ‘हायर-परचेज’ व्यवस्था के तहत खरीदा जाता था। इसका आशय
यह था कि लोग इन वस्तुओं को कर्जे पर खरीदते थे। इन कों को वे साप्ताहिक अथवा मासिक
किस्तों में चुकाते थे। मकानों के निर्माण और नए मकानों की संख्या में वृद्धि से भी इस प्रकार की
वस्तुओं की माँग और खरीदारी में वृद्धि हुई।
5. 1920 ई० के दशक में अमेरिका में निर्माण कार्यों और आवास हेतु मकानों के निर्माण के कारण वहाँ
के निवासियों और अमेरिका की सम्पन्नता बढ़ गयी थी। मकानों के निर्माण और घरेलू वस्तुओं के
निवेश से रोजगार और माँग में वृद्धि होती थी। साथ ही उपभोग में भी बढ़ोतरी होती थी। जब उपभोग
में वृद्धि होती थी तो उसके लिए और अधिक निवेश की आवश्यकता होती थी। इसके परिणामस्वरूप
नए रोजगारों और आय में भी वृद्धि होने लगती थी।
6. 1823 ई० में अमेरिका विश्व के देशों को पूँजी का निर्यात पुन: करने में सक्षम हो गया। यहाँ तक कि
वह संसार का सबसे अधिक कर्ज देने वाला देश बन गया। आयात और पूँजी-निर्यात के माध्यम से
अमेरिका ने यूरोप की अर्थव्यवस्थाओं को संकट से उबरने में सहायता की। 1923 ई० के अगले छह
सालों में विश्व-व्यापार और आय में वृद्धि की दृष्टि से काफी सुधार हो गया।
प्रश्न 10.19वीं शताब्दी में विश्वभर में 15 करोड़ से भी अधिक लोग एक देश से दूसरे देश में प्रवास
कर गए। इसके लिए उत्तरदायी कारकों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर― 19वीं शताब्दी में यूरोप के लगभग पाँच करोड़ लोग अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में जाकर बस
गए। एक अनुमान के अनुसार सारे संसार के लगभग पन्द्रह करोड़ लोग अपने भविष्य को संतोषजनक बनाने
और काम की तलाश में अपने देशों को छोड़कर दूर-दूर के देशों में जाकर बस गए। वहीं बसकर उन्होंने
अपने जीविकोपार्जन हेतु काम करना शुरू कर दिया। संक्षेप में इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित थे―
1. यूरोप की कमजोर स्थिति और उपनिवेशवाद का प्रभाव―उन्नीसवीं शताब्दी तक यूरोप में
निर्धनता और भूख का ही साम्राज्य था। वहाँ के नगरों में जनसंख्या की बहुत अधिक भीड़ थी और
चारों तरफ बीमारियाँ फैली हुई थीं। वहाँ आपसी धार्मिक टकराव एक सामान्य बात थी और धार्मिक
असन्तुष्टों को कठोर दंड दिया जाता था। यही कारण था कि अनेक लोग यूरोप से भागकर अमेरिका
जाने लगे। वहाँ पहुँचे यूरोप के लोगों ने अफ्रीका से पकड़कर लाए गए गुलामों को जबरन अपने
व्यापारिक आदि विभिन्न कामों में लगा दिया। इन गुलामों को काम पर लगाकर यूरोपीय बाजारों के
लिए कपास और चीनी का उत्पादन किया जाने लगा।
2. कॉर्न लॉ की समाप्ति और मुक्त व्यापार―जब ब्रिटेन की सरकार ने कॉर्न-लॉ को समाप्त कर
दिया तो इसके उपरान्त मुक्त व्यापार की शुरुआत हुई। अब ब्रिटेन में विभिन्न प्रकार के खाद्य-पदार्थों
का आयात एवं निर्यात मुक्त रूप से होने लगा। इसके परिणामस्वरूप भी यहाँ के लोग व्यापार के
उद्देश्यों से दूसरे देशों में जाने लगे और उनमें से काफी लोग वहीं जाकर बस गए।
3. नई आर्थिक गतिविधियाँ―व्यापारिक लक्ष्यों को ध्यान में रखकर रेलवे और नए बन्दरगाहों का
विकास करने की दिशा में तीव्र गति से प्रयास आरम्भ हुए। उपनिवेशों की कृषि योग्य भूमि पर खेती
कराने के लिए आवश्यक था कि दूसरे क्षेत्रों के लोग आकर वहाँ बसे। इसके लिए आवास और
बस्तियों का निर्माण तथा पूँजी व श्रम का प्रबन्ध आवश्यक हो गया। इसके अतिरिक्त जहाँ काम
करने के लिए मजदूरों की कमी थी, वहाँ लोगों को किसी भी प्रकार से प्रेरित करके या उन्हें वहाँ ले
जाकर बसाया गया। इस सबके परिणामस्वरूप भी लोगों का एक देश से दूसरे देश में प्रवास हुआ।
4. तकनीकी का प्रभाव―जब यूरोप के देशों में विभिन्न प्रकार की तकनीकी के क्षेत्र में प्रगति हुई तो
एक स्थान से दूसरे स्थान जाने की समस्या का भी हल हो गया। अब लोगों को रेल, जलपोत, हल्के
वैगनों आदि की सुविधा प्राप्त हो गयी। इसके फलस्वरूप भी व्यापारिक उद्देश्यों से बाहर के देशों में
जाने वालों की संख्या में बहुत अधिक वृद्धि हो गयी। साथ ही जिन्हें वहाँ काम पर ले जाना होता है,
उन्हें भी वहाँ सरलता से पहुँचाया जाने लगा।
5. विभिन्न प्रकार के प्रवाह―नवीन आर्थिक व्यवस्था के अन्तर्गत तीन प्रकार के प्रवाह अथवा गतियों
पर आधारित अर्थव्यवस्था पर बल दिया गया। विशेष रूप से पूँजी के साथ व्यापार के प्रवाह ने; श्रम
के प्रवाह के लिए रास्ता बनाया और लोगों का एक देश से दूसरे देश की ओर जाने में तीव्रता आ
गयी।
प्रश्न 11.द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणामों पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
उत्तर―1919 ई० में प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त हुआ ही था कि इसके केवल दो दशक बाद 1939 ई० में
दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हो गया। यह युद्ध भी दो खेमों या गुटों के बीच लड़ा गया। इनमें एक गुट था मित्र राष्ट्रों
का, जिसमें ब्रिटेन, सोवियत संघ, फ्रांस और अमेरिका शामिल थे। दूसरा गुट धुरी शक्तियों के गुट के नाम से
जाना जाता है। इस गुट में जर्मनी, इटली और जापान शामिल थे। इस युद्ध के परिणामों का संक्षिप्त उल्लेख
निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है―
1. मृत्यु एवं विनाश―यह युद्ध छह वर्षों तक चला और जल, थल और आकाश में असंख्य मोर्चों पर
इस युद्ध में विश्व के देशों के लाखों सैनिकों ने अपनी जान दे दी। इस युद्ध में मौत और तबाही की
कोई सीमा बाकी नहीं बची। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस युद्ध में लगभग 5 करोड़ लोग मारे गए।
यह उस समय की विश्व-जनसंख्या का तीन प्रतिशत था। अब तक हुए युद्धों में मोर्चे पर मरने वाली
की संख्या ही अधिक रहती थी। इस युद्ध में ऐसे लोगों की अधिक मौत हुई, जो किसी मोर्चे पर नहीं
लड़ रहे थे।
2. आवास, कृषि, व्यापार एवं उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव―द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण यूरोप और
एशिया के कितने ही विशाल भू-भाग तबाह हो गया। दुनिया के कई शहर हवाई बमबारी या निरन्तर
होने वाली गोलाबारी के कारण मिट्टी में मिल गए। यह युद्ध अकल्पनीय सामाजिक और आर्थिक
तबाही का कारण बना। युद्ध के कारण जो हालात उत्पन्न हुए, उनमें पुनर्निर्माण का काम और एक
कठिन समस्या के रूप में सामने आया। इसमें काफी समय लगने वाला था। इस युद्ध में कृषि, उद्योग
और व्यापार को भारी क्षति पहुँची। विश्व के लाखों उद्योग तबाह हो गए, जिसके परिणामस्वरूप
औद्योगिक उत्पादन में भारी कमी हो गयी। यहाँ तक कि कच्चे माल के उपलब्ध न होने से असंख्य
उद्योग बन्द हो गए।
3. सोवियत संघ की शक्ति एवं प्रभाव में वृद्धि―द्वितीय विश्वयुद्ध का एक परिणाम यह भी हुआ कि
सोवियत संघ की शक्ति और प्रभाव में बहुत अधिक वृद्धि हो गयी। विशेष रूप से अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में
रूस का प्रभाव बढ़ने लगा और कई देश रूसी समाजवाद की ओर आकृष्ट होने लगे। समाजवादी
व्यवस्था वाले इन देशों पर एक प्रकार से अप्रत्यक्ष रूप से सोवियत संघ का ही प्रभाव स्थापित हो
गया।
4. अमेरिका का महाशक्ति बनना―द्वितीय विश्वयुद्ध ने अमेरिका को एक महाशक्ति के रूप में
सामने ला दिया। राष्ट्र-गुटों को विजित कराने में निस्सन्देह अमेरिका ने अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का
निर्वाह किया था। इस युद्ध के उपरान्त अमेरिका की तुलना में विश्व का कोई भी देश शक्तिशाली नहीं
था।
5. नई आर्थिक प्रणाली―द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद एक नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का उदय हुआ।
इस आर्थिक व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य यह था कि विश्व के देशों में आर्थिक स्थिरता और पूर्ण
रोजगार की सम्भावनाओं में अधिकाधिक वृद्धि की जाए। अपने सदस्य देशों के विदेश व्यापार में
लाभ और घाटे से निबटने के लिए ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में ही अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की स्थापना की
गई। साथ ही युद्धोत्तर पुनर्निर्माण के कार्यों के लिए धन का प्रबन्ध करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय
पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक की स्थापना भी की गई।
प्रश्न 12.आर्थिक महामंदी के प्रमुख कारणों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर
इसके क्या प्रभाव हुए?
उत्तर― आर्थिक महामंदी के प्रमुख कारणों और अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभावों का
संक्षिप्त उल्लेख निम्नवत् है―
आर्थिक महामंदी के प्रमुख कारण―1929 ई० से शुरू होकर 1930 ई० तक स्थिर रहने वाली महामंदी से
संसार के सभी देश किसी-न-किसी रूप में प्रभावित हुए। इस महामंदी की भयावह समस्या के उत्पन्न होने
के प्रमुख कारण इस प्रकार थे―
1. महामंदी का एक प्रमुख कारण यह था कि कृषि-क्षेत्रों में बहुत अधिक उत्पादन के कारण संसार में
अति-उत्पादन की समस्या बनी हुई थी। इस कारण कृषि के द्वारा उत्पादित की जाने वाली वस्तुओं
की कीमतें गिर गयीं। कृषि-उत्पादों की कीमतों में गिरावट से किसानों की आय में कमी आ गयी।
अब वे और अधिक उत्पादन बढ़ाने का प्रयास करने लगे, जिससे कम कीमत पर ही सही, लेकिन
अधिक उत्पादन करके वे कम-से-कम अपने आय के स्तर को बनाए रख सकें। इसका परिणाम यह
हुआ कि विश्व के बाजारों में कृषि-उत्पादों की आमद और भी अधिक बढ़ गयी और कीमतें गिर
गयीं। जब कृषि-उत्पादों की अधिकता हो गयी और उनकी खरीदारी का अनुपात उतना नहीं रहा तो
कृषि क्षेत्रों की फसलें पड़ी-पड़ी सड़ने लगीं।
2. महामंदी का दूसरा कारण यह था कि 1920 ई० के दशक के मध्य में दुनिया के अधिकांश देशों ने
अमेरिका से कर्जे लेकर अपनी निवेश सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति की थी, परन्तु लेकिन जब
हालात सही थे तो अमेरिका से कर्ज लेना बहुत आसान था, लेकिन अब यह भी सम्भव नहीं हो पा
रहा था। उधर महामंदी का संकेत मिलते ही अमेरिका के तो होश ही उड़ गए। साथ ही जिन देशों ने
अमेरिका से कर्जे ले रखे थे, उनके सामने भी एक बड़ा संकट उत्पन्न हो गया।
अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव―यद्यपि महामंदी का सारे संसार के देशों पर प्रभाव पड़ा।
फिर भी इसका सबसे अधिक प्रभाव अमेरिका पर ही पड़ा। इस महामंदी के दौरान अमेरिका पर जो प्रभाव
हुए, वे निम्नलिखित थे―
1. अमेरिका के बैंकों ने कीमतों में कमी होने और महामंदी की आशंका में लोगों को घरेलू कों को
देना बन्द कर दिया।
2. अमेरिकी बैंकों ने लोगों को पहले से जो कर्जे दे रखे थे, उनकी वसूली तेज कर दी।
3. किसान अपनी फसलों को नहीं बेच पा रहे थे, इससे उनके परिवार तबाह हो गए। अमेरिका के
अधिकांश कारोबार भी बंद हो गए।
4. आय में कमी होने के फलस्वरूप अमेरिका के अधिकांश परिवार कर्जे चुकाने में असफल हो गए।
इस कारण उनकी घरों की आवश्यकता की सारी वस्तुएँ, उनकी कारें और मकान तक की कुर्की करा
दी गयी।
5. जब अमेरिका में बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न हो गयी तो वहाँ के लोग अपने कामों की खोज में
दूर-दूर के क्षेत्रों में जाने लगे।
6. अमेरिका की बैंकिंग व्यवस्था भी धराशायी हो गयी। उन्हें अपने निवेशों से लाभ नहीं हुआ, अपने
दिए हुए कर्जे भी वे नहीं वसूल सके। इसके अतिरिक्त जिन लोगों ने इन बैंकों में अपनी पूँजी लगा
रखी थी, उनकी पूँजी को लौटाने में भी वे असमर्थ हो गए। फलस्वरूप ये बैंक दिवालिया हो गए और
अन्तत: बन्द हो गए।
प्रश्न 13. “दो महायुद्धों के बीच मिले आर्थिक अनुभवों से अर्थशास्त्रियों और राजनीतिज्ञों ने दो मुख्य
पाठ पढ़े।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर―प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्धों में प्राप्त आर्थिक अनुभवों के आधार पर विश्व के अर्थशास्त्रियों
और राजनीतिज्ञों को दो महत्त्वपूर्ण सबक प्राप्त हुए थे। इनके संक्षिप्त उल्लेख इस प्रकार हैं―
1. पहली बात जो अर्थशास्त्रियों और राजनीतिज्ञों को समझ में आई, वह यह थी कि बृहत् उत्पादन पर
आधारित किसी औद्योगिक समाज को व्यापक उपभोग के बिना कायम नहीं रखा जा सकता है। इस
दृष्टि से व्यापक उपभोग को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक था कि आमदनी काफी अधिक और
साथ ही स्थिर भी हो। इसका कारण यह है कि यदि रोजगार अस्थिर होंगे तो आय स्थिर नहीं हो
सकेगी और स्थिर आय के लिए रोजगार भी आवश्यक है।
फिर भी बाजार पूर्ण रोजगार या रोजगार की स्थिरता की गारंटी नहीं दे सकता। अत: कीमत, उपज
और रोजगार में आने वाले उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करने हेतु सरकार का हस्तक्षेप आवश्यक था।
इसका कारण यह है कि आर्थिक स्थिरता केवल सरकारी हस्तक्षेप के माध्यम से ही सुनिश्चित हो
सकती थी।
2. दूसरा सबक बाहरी दुनिया के साथ आर्थिक सम्बन्धों के बारे में था। पूर्ण रोजगार का लक्ष्य केवल
उसी दशा में प्राप्त किया जा सकता है, जब सरकार के पास वस्तुओं, पूँजी और श्रम की आवाजाही
को नियंत्रित करने की शक्ति उपलब्ध हो।
प्रश्न 14.19वीं शताब्दी की विश्व-अर्थव्यवस्था को आकार देने में प्रौद्योगिकी की भूमिका को स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर―19वीं शताब्दी की विश्व-अर्थव्यवस्था को आकार देने में प्रौद्योगिकी की भूमिका को
निम्नलिखित आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है―
1. कृषि एवं उद्योगों आदि के क्षेत्रों में विश्व-अर्थव्यवस्था के विकास की दृष्टि से तकनीक का यह
योगदान रहा, यह जानना भी आवश्यक है। उन्नीसवीं शताब्दी में रेलवे, पानी के जहाज आदि
यातायात के साधनों में तकनीकी दृष्टि से हुए परिवर्तन बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुए। इसके साथ
ही टेलिग्राफ, रेफ्रिजरेशन आदि अनेक नवीन आविष्कार भी हुए। इन सब तकनीकी परिवर्तनों के
बिना हम उन्नीसवीं शताब्दी में हुए परिवर्तनों की कल्पना भी नहीं कर सकते। यूरोप आदि के
सामाजिक आर्थिक, राजनीतिक कारकों का भी इस तकनीकी प्रगति में योगदान रहा।
2. औपनिवेशीकरण और तकनीकी के कारण यातायात और परिवहन के क्षेत्रों में इस समय अनेक
नवीन सुधार हुए। अब तीव्र गति से चलने वाली रेलगाड़ियाँ बनायी गयीं और बोगियों के भार में कमी
लाई गयी। पानी के जहाजों के आकार को पहले से अधिक बढ़ाया गया, जिससे किसी भी उत्पाद को
दूर स्थित देशों के बाजारों में कम लागत पर और अधिक सरलता से पहुँचाया जा सके।
3. मांस उत्पादों के व्यापार में भी तकनीकी का विशेष योगदान रहा। 1870 ई० के दशक तक अमेरिका
से यूरोप के देशों को मांस का निर्यात नहीं किया जा सकता था। नई तकनीक के कारण इस स्थिति में
परिवर्तन हो गया। अब पानी के जहाजों में रेफ्रिजरेशन की तकनीकी का प्रयोग किया जाने लगा।
इससे उन वस्तुओं को जो जल्दी ही खराब हो जाया करती थी, दूर की यात्राओं पर ले जाने में भी
सुगमता हो गयी।
4. रेफ्रिजरेशन की तकनीकी के प्रयोग के उपरान्त तो जानवरों की कटाई पहले ही की जाने लगी।
अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि देशों में अब जिंदा जानवरों के स्थान पर उनका मांस ही
भेजा जाने लगा। इसका परिणाम यह हुआ कि जानवरों को समुद्री जहाजों पर भेजे जाने वाले खर्च में
कमी आ गयी और साथ ही यूरोप के बाजारों में मांस के दाम भी कम हो गए।
5. अब यूरोप के लोगों को पहले से कहीं अधिक विविधतापूर्ण भोजन प्राप्त होने लगा। पहले उनके
भोजन में मात्र आलू और ब्रेड ही होते थे। अब अधिकांश लोगों को उनके भोजन में मांस, मक्खन
और अंडे भी उपलब्ध होने लगे।
6. इसके परिणामस्वरूप जैसे-जैसे लोगों की जीवन-स्थिति में सुधार हुआ वैसे-वैसे ही यूरोपीय देशों
में शांति स्थापित होने लगी। इसके साथ ही यूरोप के लोगों के द्वारा अब अपने देश के साम्राज्यवादी
लक्ष्यों को भी समर्थन दिया जाने लगा।