UP Board Class 9 Social Science History | फ्रांसीसी क्रान्ति

By | April 2, 2021

UP Board Class 9 Social Science History | फ्रांसीसी क्रान्ति

UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 1 फ्रांसीसी क्रान्ति

इकाई―1:भारत और समकालीन विश्व―1
 
                                     खण्ड-1 : घटनाएँ और प्रक्रियाएँ
अध्याय 1
                                               फ्रांसीसी क्रांति
                                    अभ्यास
NCERT प्रश्न
प्रश्न 1. फ्रांस में क्रांति की शुरुआत किन परिस्थितियों में हुई?
उत्तर― फ्रांस में क्रांति की शुरुआत की परिस्थितियाँ अथवा कारण निम्नलिखित थे―
 
(i) सामाजिक कारण―क्रांति से पूर्व फ्रांस में बहुत बड़ी सामाजिक असमानता पाई जाती थी।
पुरोहित तथा कुलीन श्रेणी के लोगों का जीवन बहुत विलासी था तथा उन्हें विशेष अधिकार
प्राप्त थे। इसके विपरीत किसानों तथा मजदूरों का जीवन नारकीय था। वे करों तथा बेगारों के
बोझ के नीचे पिस रहे थे। बुद्धिजीवी वर्ग―डॉक्टर, वकील, अध्यापक आदि का समाज में
आदर-सम्मान नहीं था और उन्हें पुरोहित तथा कुलीन श्रेणी से अपमानित होना पड़ता था।
यह भारी सामाजिक असमानता फ्रांस की क्रांति का एक बड़ा कारण बनी।
 
(ii) राजनैतिक कारण―फ्रांस का सम्राट लुई सोलहवाँ एक निरंकुश शासक था। वह सदा
भोग-विलास और आमोद-प्रमोद में ही मस्त रहता था। उसका अपने अधिकारियों पर कोई
नियंत्रण नहीं था और वे मनमानी करते थे। राज्य में एक दूषित शासन प्रबन्ध स्थापित था।
हर भाग में अलग-अलग तरह के न्यायालय तथा अलग-अलग प्रकार के कानून लागू थे।
इस प्रकार फ्रांस में जनता के अधिकारों तथा स्वतंत्रता नाम की कोई चीज नहीं थी।
 
(iii) आर्थिक कारण―फ्रांस के अनेक युद्धों में भाग लेने के कारण उसकी आर्थिक दशा बहुत
खराब हो चुकी थी। इसके अतिरिक्त विलासी और आमोद-प्रमोदपूर्ण जीवन ने देश की
आर्थिक दशा को और भी बिगाड़ दिया था। उधर जनसाधारण करों के भार के नीचे बुरी
तरह से पिस रहे थे। कर प्रणाली भी बड़ी दोषपूर्ण थी। सरकार को वसूल होने वाले करों की
पूरी रकम भी प्राप्त नहीं होती थी क्योंकि इसका एक बड़ा भाग वसूल करने वाले कुलीन
वर्ग के लोग एजेंट आदि हड़प कर जाते थे। इस प्रकार खराब आर्थिक दशा भी फ्रांस की
क्रांति का एक बड़ा कारण बनी।
 
(iv) मनोवैज्ञानिक कारण―महान फ्रांसीसी दार्शनिकों-मॉण्टेस्क्यू, रूसो, वाल्टेयर आदि के
क्रांतिकारी विचारों ने भी फ्रांस के लोगों को राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक बुराइयों से
अवगत कराया और इसके विरुद्ध आवाज उठाकर जनता के हृदय में इन बुराइयों को उखाड़
फेंकने की इच्छा को इतना प्रबल कर दिया कि वह क्रांति के लिये तैयार हो गए। उधर
अमेरिकी क्रांति ने भी उन्हें इस काम के लिए और प्रोत्साहित किया।
 
(v) तात्कालिक कारण―फ्रांस की बिगड़ती हुई आर्थिक दशा को सुधारने के लिए 173 वर्षों
के पश्चात् 1789 में स्टेट्स जनरल का अधिवेशन बुलाया गया। अत: लोगों में अद्भुत जोश
था क्योंकि उन्हें इस अधिवेशन में अपनी समस्याओं के हल होने की आशा नजर आ रही
थी। परन्तु जब पुरोहित तथा कुलीन वर्ग के लोगों ने इसमें भाग नहीं लिया तो जनता का धैर्य
जाता रहा। उधर 1788-89 ई० के भयंकर आतंक से जनसाधारण पहले ही काफी दुःखी
थी। इस प्रकार स्टेट्स जनरल के अधिवेशन बुलाये जाने से ही फ्रांस में क्रांति का सूत्रपात
हुआ।
 
प्रश्न 2. फ्रांसीसी समाज के किन तबकों को क्रांति का फायदा मिला? कौन-से समूह सत्ता
छोड़ने के लिए मजबूर हो गए? क्रांति के नतीजों से समाज के किन समूहों को
निराशा हुई होगी?
उत्तर― फ्रांसीसी समाज के किन तबकों को क्रांति का फायदा मिला?-सर्वसाधारण श्रेणी के
फ्रांस के सभी लोगों को क्रांति से लाभ रहा क्योंकि जब उन्हें सभी प्रकार के कर पुरोहित श्रेणी और
कुलीन श्रेणी को देने पड़ते थे, उन्हें अधिकार नाम की कोई चीज प्राप्त नहीं थी। इस श्रेणी में गाँवों के
किसान, शहरों के मजदूर और मध्य श्रेणी के लोगों; जैसे-कर्मचारी, वकील, व्यापारी, चिकित्सक आदी
सम्मिलित थे। क्रांति के पश्चात् ऐसे लोगों को शोषण से मुक्ति मिली और स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व
के अधिकार प्राप्त हुए।
कौन-से समूह सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर हो गए?―उच्च वर्ग के लोगों, जो प्रथम और द्वितीय
वर्गों (एस्टेट) में आते थे, को अपनी शक्तियों से हाथ धोना पड़ा क्योंकि केवल इन्हीं लोगों को
विशेषाधिकार प्राप्त थे। ऐसे वर्गों में उच्च पादरी, सामंत और कुलीन लोग सम्मिलित थे। 
अब फ्रांस में समानता और बन्धुत्व के आधार पर समाज का गठन किया गया।
क्रांति के नतीजों से समाज के किन समूहों को निराशा हुई होगी?―निःसन्देह जिन वर्गों के पास
विशेषाधिकार थे उन्हीं को क्रांति के परिणामों से निराशा हो सकती थी। चर्च की सम्पत्ति को छीन लिया
गया और उसे जनसाधारण में बाँट दिया गया। ऐसे में पुरोहित श्रेणी को काफी निराशा हुई। इसी प्रकार
जब कुलीन श्रेणी के कर एकत्रित करने तथा खुलेआम शिकार करने के अधिकारों को समाप्त कर दिया
गया तो उन्हें भी क्रांति के परिणामों से निराशा ही होने वाली थी।
 
प्रश्न 3. उन्नीसवीं और बीसवीं सदी की दुनिया के लिए फ्रांसीसी क्रांति कौन-सी विरासत
छोड़ गई?
उत्तर― फ्रांस की क्रांति विश्व इतिहास की सबसे महत्त्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। यूरोप के
इतिहास पर इसका विशेष प्रभाव पड़ा। इसने संसार को स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व के तीन मुख्य विचार दिये जिनके कारण यह क्रांति सदा के लिए अमर हो गई। विश्व, विशेषकर यूरोप के इतिहास में इसका महत्त्व निम्नलिखित प्रभावों (या राजनैतिक बातों) के कारण है―
(i) इसके कारण फ्रांस में सामन्तवाद का अन्त हुआ और देखते-ही-देखते मध्य वर्ग के लोगों
ने चर्च की जमीनें खरीद ली। उधर सरकार ने भी अभिजात वर्ग (या अमीर वर्ग) की भूमियाँ
हड़प लीं।
 
(ii) फ्रांस की क्रांति ने विशेषतः यूरोपीय देशों में तथा धीरे-धीरे सारे विश्व में लोकतन्त्र के
विचारों को पनपने में सहायता की। सरकार का उद्देश्य समस्त जनता को सुखी बनाना हो
गया न कि कुछ विशेष लोगों के अधिकारों का ध्यान रखना।
 
(iii) इस क्रांति ने संसार के लोगों में स्वतंत्रता की भावना कूट-कूट कर भर दी और तत्पश्चात्
जनता को अपनी प्रभुसत्ता का ज्ञान हुआ।
 
(iv) फ्रांस की क्रांति ने समानता के आधार पर अधिकार दिये जाने की विचारधारा का प्रचार
किया। इसके परिणामस्वरूप कानून की दृष्टि में अमीर-गरीब, राजा-रंक आदि सबके
अधिकार समान गए। शीघ्र ही वयस्क मताधिकार के आधार पर बिना सम्पत्ति वाले
लोगों, मजदूरों और किसानों आदि को भी राजनीतिक अधिकार दिये जाने लगे।
 
(v) इस क्रांति ने बन्धुत्व के विचार को विश्व में फैलाया। इसी क्रांति ने यह बताया कि देश के
नव-निर्माण के लिये प्रेम, एकता और सहयोग आदि सद्गुणों की अति आवश्यकता होती है।
 
(vi) फ्रांस की क्रांति द्वारा विश्व में राष्ट्रीयता के विकास को प्रोत्साहन मिला। फ्रांस से प्रेरित
होकर पोलैंड, जर्मनी, नीदरलैंड, इटली आदि देशों में राष्ट्रवाद का विकास हुआ।
 
(vii) फ्रांस की क्रांति से ही शिक्षा प्राप्त करके सभी देशों के शासक वर्ग ने अपनी जनता का
अधिक-से-अधिक कल्याण करने के लिए प्रयत्न आरम्भ कर दिए और इस तरह शासन
में सुधार किये जाने लगे।
 
प्रश्न 4. उन जनवादी अधिकारों की सूची बनाएँ जो आज हमें मिले हुए हैं और जिनका
उद्गम फ्रांसीसी क्रांति में है।
उत्तर― भारत में हम निम्नलिखित छ: मौलिक अधिकारों से लाभप्रद हो रहे हैं―
(i) समानता का अधिकार
(ii) स्वतंत्रता का अधिकार
(iii) शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार
(iv) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
(v) शोषण के विरुद्ध अधिकार
(vi) संवैधानिक उपचारों का अधिकार
यदि हम ध्यान से इन अधिकारों का निरीक्षण करें तो हमें आसानी से इस बात का ज्ञान हो जाता है
कि इनमें से बहुत-से अधिकारों की उत्पत्ति का स्रोत फ्रांस की क्रांति ही है―
 
(i) समानता का अधिकार―समानता का अधिकार फ्रांस की क्रांति की ही देन है। फ्रांस के
क्रांतिकारियों ने समानता के अधिकार को प्राप्त करने पर बहुत जोर दिया क्योंकि वे अनेक
प्रकार की समाज में व्याप्त असमानताओं से अप्रसन्न थे। क्रांति सफल होने पर एक ऐसे
समाज की नींव पड़ी जो समानता के नियमों पर आधारित थी। पादरी और कुलीन वर्ग के
सभी विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया गया।
 
(ii) स्वतंत्रता का अधिकार―इस अधिकार की जननी भी फ्रांस की क्रांति ही थी। इस क्रांति ने
राजा के दैवी अधिकारों को समाप्त कर दिया और जनसाधारण को सामन्तों और पादरी वर्ग
द्वारा थोपे गए बहुत-से बन्धनों को धराशायी करके लोगों को मुक्ति दिलाई। अब लोग सभी
बामा प्रकार के अंकुशों से मुक्त थे और स्वतंत्रता से अपना जीवन व्यतीत कर सकते थे।
 
(iii) प्रजातन्त्र की भावना को प्रोत्साहित करना―फ्रांस की क्रांति ने फ्रांस के राजा और रानी
को फाँसी पर चढ़ाकर देश में प्रजातन्त्र की स्थापना की। इस प्रजातन्त्र की स्थापना के कारण
अन्य सभी अधिकारों का प्राप्त होना सम्भव हो सका। इस क्रांति ने यह सिद्ध कर दिया कि
सरकार केवल लोगों के लिये ही नहीं होती वरन् वो लोगों द्वारा भी होनी चाहिये। (It
should not be for the people, but it should also be by the people.)
 
(iv) बन्धुत्व की विचारधारा को प्रोत्साहन देना-ऊँच-नीच की सभी दीवारों को तोड़कर
फ्रांस की क्रांति ने भाईचारे की भावना को प्रोत्साहित किया जिससे प्रेरित होकर लोग केवल
अपने कल्याण की ही नहीं वरन् सभी के कल्याण की सोचने लगे। अब समाज के सभी
वर्गों―किसानों, मजदूरों, कारीगरों, गरीबों, महिलाओं आदि के लिये अनेक सुधार किये
जाने लगे। ऐसी भावना के जाग्रत होने से सभी लोगों को विभिन्न अधिकारों से लाभ उठाने
के सुअवसर प्राप्त हो सके।
 
प्रश्न 5. क्या आप इस तर्क से सहमत हैं कि सार्वभौमिक अधिकारों के संदेश में नाना
अंतर्विरोध थे?
उत्तर― इस कथन के विषय में विचारकों के दो मत हैं कि क्या सार्वभौमिक (या मानव)
अधिकारों के संदेश में अंतर्विरोध थे या नहीं?
बहुत-से लेखक इस विचार के हैं कि सार्वभौमिक अधिकारों का संदेश, जैसा कि पिछले प्रश्न में
बताया गया है, बिल्कुल स्पष्ट है और उसकी आलोचना नहीं की जा सकती। सम्भवतः नागरिक
और मानव अधिकारों की स्पष्ट घोषणा करने का यह विश्व में पहला प्रयत्न था और इसकी सराहना
की जानी चाहिये। इसमें मानव के तीन मौलिक अधिकारों-स्वतंत्रता (Liberty), समानता (Equality)
और बन्धुत्व (Fraternity) पर जोर दिया गया। यह विश्व को फ्रांस की क्रांति की महान देन है।
लगभग सभी प्रजातन्त्रीय देशों ने अपने-अपने संविधानों में इन तीन अधिकारों का अवश्य समावेश किया है।
इन अधिकारों के प्रति यदि किसी को कोई भ्रांति है तो वह अस्पष्ट है और तथ्यों से बहुत दूर है।
कुछ तो केवल क्योंकि कुछ कहना है इसलिये वे इन अधिकारों की आलोचना करते हैं, और कुछ नहीं।
वास्तव में फ्रांस के क्रांतिकारियों की किसी और बात या घटना के लिये तो आलोचना की जा सकती है
कि उन्होंने रक्तपात में अपने हाथ रंगे परन्तु मानव अधिकारों को इतिहास के रंगपटल पर रखकर
उन्होंने प्रजातन्त्रीय धारणा को लाने में बड़ा योग दिया और ऐसे में उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए।
मिरात (Mirat) और केमली डेस्मॉलिन्स (Camille Desmoulins) ने अवश्य हमें इन अधिकारों 
के प्रयोग में सतर्क रहने की चेतावनी दी है। हर अधिकार सीमारहित नहीं है। मेरा स्वतंत्रता का 
अधिकार मुझे इस बात की आज्ञा नहीं देता कि मेरे मन में जो आए करता जाऊँ, जब जी करे तो 
दूसरे की चीज उठा लूं या जब मन करे अगले के घर में घुस जाऊँ। हर अधिकार की सीमा निश्चित है, 
उस सीमा को पार करने से विरोधाभास हो सकते हैं। उसमें स्वतंत्रता के अधिकार की कोई गलती नहीं, 
वह तो हमारी अपनी गलती है कि हम किसी भी अच्छाई को बुराई में बदल लें। यदि अधिकारों का प्रयोग 
करना हो तो हमें दूसरों के अधिकारों का भी ध्यान रखना है तब मानव अधिकारों के संदेश में कोई
विरोधाभास या प्रतिकूलता नहीं मिलेगी।
 
प्रश्न 6. नेपोलियन के उदय को कैसे समझा जा सकता है?
उत्तर― नेपोलियन का जन्म 1769 ई० में रोम सागर के द्वीप कोर्सिका की राजधानी अजासियों में हुआ था। 
वह असाधारण प्रतिभा का स्वामी था। उसने ब्रियनी और पेरिस के फौजी स्कूल में शिक्षा प्राप्त की। 
सेना में भर्ती होकर वह अपनी वीरता, असीम साहस और सैनिक योग्यता द्वारा उन्नति करता हुआ 
सेनापति बन गया। उसने ब्रिटेन (1793 ई० में), सार्जीनिया (1796 ई० में) और ऑस्ट्रिया (1797 ई० में) 
के विरुद्ध विजय प्राप्त की। इसके पश्चात् शीघ्र ही वह डिरेक्टरी का प्रथम बना और थोड़े समय पश्चात् 
(1804 ई० में) वह फ्रांस का सम्राट बन गया। नेपोलियन ने अपनी योग्यता तथा प्रशासकीय कुशलता 
के बल पर फ्रांस में शांति और व्यवस्था स्थापित की। विश्व-इतिहास में नेपोलियन का बड़ा ऊँचा स्थान है 
क्योंकि उसने एक मामूली घराने में जन्म लेकर अपनी प्रतिभा, संगठन-शक्ति और सूझ-बूझ से अपने 
आपको एक महान देश का सम्राट बनाकर विश्व में यह सिद्ध कर दिया कि अपने प्रयत्नों से असम्भव को भी 
सम्भव बनाया जा सकता है। नेपोलियन की गिनती विश्व के महान सेनापतियों में की जाती है। यह बहुत 
परिश्रमी, इरादे का पक्का, तलवार का धनी और बहुत वीर सैनिक था। जब पहली बार उसे इटली में 
फ्रांस की सेना का कमांडर बनाकर भेजा गया तो उसने अपनी मधुर वाणी से अपने सैनिकों में एक 
अद्भुत जोश भर दिया। बुरी दशाओं और संघर्षों का मुकाबला करने पर भी सैनिक उसके प्रति पूरी 
वफादारी रखते थे। इरादों का वह इतना पक्का था कि वह कहा करता था कि असम्भव शब्द मूों के 
कोष में होता है। 40 हजार सैनिकों के साथ आल्प्स जैसे कठिन एवं दुर्गम पहाड़ को पार करके उसने 
यह बात सिद्ध कर दी थी कि संसार में कुछ भी असम्भव नहीं है।
नेपोलियन एक महान सेनापति ही नहीं बल्कि एक योग्य राजनीतिज्ञ और शासक भी था। उसने
क्रांतिकाल में भी, जबकि अराजकता चरम सीमा पर पहुँच जाती है, आंतरिक शांति और व्यवस्था 
कायम की तथा देश को कृषि, व्यापार एवं उद्योग के मामले में उन्नत करके सम्पन्न बनाया। 
उसने खेती के नए तरीके अपनाए तथा नए-नए कारखाने लगवाये।
उसने कानूनों में अनेक सुधार किये जो कोड नेपोलियन’ (Code Napoleon) के नाम से प्रसिद्ध है। 
नेपोलियन ने, जब वह सेंट हैलेना में कैद था, स्वयं कहा था कि ‘मेरा सच्चा गौरव इसमें नहीं है कि 
मैने चालीस युद्ध जीते क्योंकि वाटरलू की हार इन विजयों को कलंकित कर देगी परन्तु जिसको 
कोई नहीं कलंकित कर सकता तथा जो सदा रहेगा वह मेरा सिविल कोड है।
” आज भी फ्रांस, जर्मनी, हॉलैंड, बेल्जियम, इटली और दक्षिणी अमेरिका के देशों में 
ये कानून कुछ परिवर्तनों के साथ लागू हैं।
उसने प्राथमिक माध्यमिक व उच्च शिक्षा के साथ-साथ तकनीकी एवं व्यापारिक शिक्षा 
की व्यवस्था की। उसने अध्यापकों को राजकोष से वेतन देने की पद्धति शुरू की।
उसने यातायात की सुविधा और व्यापार के विकास के लिए फ्रांस में सड़कों का जाल 
बिछाया, नहरें बनवाई तथा पेरिस को एक अति सुन्दर नगर बना दिया। उसने 1800 ई० में 
‘फ्रांस के बैंक’ की स्थापना की।
उसने सभी को योग्यता के आधार पर उन्नति करने के अवसर प्रदान किये। वह निष्पक्ष होकर
राज्य-कर्मचारियों की नियुक्ति करता था। वह समाज में रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार और विशेष 
अधिकार नहीं पनपने देता था।
प्रोफेसर म्लोयन का मत है―“संसार का सबसे महान समाज-सुधारक नेपोलियन ही था।”
 
                                   अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
           बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.किस वर्ष में लुई सोलहवाँ फ्रांस का सम्राट बना?
(क) 1685
(ख) 1700 
(ग) 1750 
(घ) 1774
               उत्तर―(घ) 1774
 
प्रश्न 2.प्रत्यक्ष कर को किस नाम से जाना जाता था?
(क) लिने
(ख) टाइथ 
(ग) टाइल 
(घ) आय कर
                 उत्तर―(ग) टाइल
 
प्रश्न 3.’द स्पिरिट ऑफ लॉज’ का लेखक कौन है?
(क) जॉन लॉक 
(ख) रूसो 
(ग) मॉण्टेस्क्यू 
(घ) कार्ल मार्क्स
                     उत्तर-(ग) मॉण्टेस्क्यू
 
प्रश्न 4. तीसरा एस्टेट्स क्या है?’ शीर्षक से एक प्रभावशाली प्रचार लेख लिखा था। उस
व्यक्ति का नाम बताइए।
(क) आबे सिए 
(ख) मीराबियन
(ग) रूसो
(घ) मॉण्टेस्क्यू
                  उत्तर-(क) आबे सिए
 
प्रश्न 5.’आतंक के साम्राज्य से किसका नाम जुड़ा हुआ है?
(क) मीराबियन
(ख) मैक्समिलियन रोबेस्प्येर
(ग) रोजे डी लाइल
(घ) इनमें से कोई नहीं
                            उत्तर-(ख) मैक्समिलियन रोबेस्प्येर
 
प्रश्न 6. ओलम्प दे गूज कौन थी?
(क) क्रांतिकारी फ्रांस की सक्रिय राजनैतिक महिला
(ख) एक समाज सुधारक
(ग) जैकोबिन क्लब की समर्थक
(घ) उपरोक्त सभी
                      उत्तर-(क) क्रांतिकारी फ्रांस की सक्रिय राजनैतिक महिला
 
प्रश्न 7.बास्तील पर आक्रमण कब हुआ?
(क) 11 मई, 1788 को
(ख) 14 जून, 1889 को
(ग) 4 जुलाई, 1789
(घ) 14 जुलाई, 1789
                              उत्तर―(घ) 14 जुलाई, 1789
 
प्रश्न 8. राष्ट्रीय सभा ने संविधान का मसौदा कब पूरा किया?
(क) 1799 में 
(ख) 1791 में
(ग) 1790 में
(घ) 1781 में
                  उत्तर―(ख) 1791 में
 
प्रश्न 9.सक्रिय नागरिक किन्हें कहा जाता था?
(क) वह जिसे वोट देने का अधिकार था।
(ख) वह जिसने लड़ाई में भाग लिया था।
(ग) वह जिसे वोट देने का अधिकार नहीं था।
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
                                 उत्तर―(क) वह जिसे वोट देने का अधिकार था।
 
प्रश्न 10.जैकोबिन क्लब के सदस्य कौन थे?
(क) समाज के समृद्ध वर्ग
(ख) समाज के कम समृद्ध वर्ग
(ग) राजनैतिक नेतागण
(घ) ये सभी
                उत्तर―(ख) समाज के कम समृद्ध वर्ग
 
प्रश्न 11. ‘बिना घुटन्ने वाले किन्हें कहा जाता था?
(क) क्रांतिकारी लोग
(ख) कुलीन लोग
(ग) जैकोबिन लोग
(घ) पादरी
               उत्तर―(ग) जैकोबिन लोग
 
प्रश्न 12. ‘बिना घुटन्ने वाले लोगों द्वारा पहनी जाने वाली लाल टोपी किसका प्रतीक थी?
(क) क्रांति
(ख) आजादी 
(ग) समानता
(घ) भाईचारा
                 उत्तर―(ख) आजादी
 
प्रश्न 13. ‘आतंक का साम्राज्य’ किस अवधि को कहा गया है?
(क) 1793 से 1794 की अवधि 
(ख) 1780 से 1790 की अवधि
(ग) 1770 से 1784 की अवधि 
(घ) 1799 से 1824 की अवधि
                                         उत्तर―(क) 1793 से 1794 की अवधि
 
प्रश्न 14.डॉ० गिलोटिन वह व्यक्ति था जिसने ” का आविष्कार किया।
(क) गिलोटिन
(ख) तोप
(ग) बारूद
(घ) इनमें से कोई नहीं
                            उत्तर―(क) गिलोटिन
 
प्रश्न 15. नेपोलियन बोनापार्ट ने स्वयं को फ्रांस का सम्राट कब घोषित किया?
(क) 1812 में 
(ख) 1804 में 
(ग) 1809 में
(घ) 1800 में
                  उत्तर―(ख) 1804 में
 
प्रश्न 16. नेपोलियन बोनापार्ट कहाँ पराजित हुआ?
(क) प्रशिया में
(ख) ऑस्ट्रिया में
(ग) वाटरलू में
(घ) इनमें से कोई नहीं
                            उत्तर―(ग) वाटरलू में
 
प्रश्न 17.इनमें से कौन तृतीय एस्टेट के सदस्य नहीं थे?
(क) कुलीन
(ख) बड़े व्यवसायी
(ग) वकील
(घ) कारीगर
                उत्तर―(क) कुलीन
 
प्रश्न 18. अठारहवीं शताब्दी के फ्रांस में जिस सामाजिक समूह का उद्भव हुआ उसे…..
नाम से भी जाना जाता था।
(क) उच्च वर्ग 
(ख) निम्न वर्ग
(ग) मध्यम वर्ग 
(घ) दास
             उत्तर―(ग) मध्यम वर्ग
 
               अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1.निम्नलिखित शब्दों का अर्थ बताइए―
जीविका संकट, अनाम, नीग्रो।
उत्तर― जीविका संकट-ऐसी चरम स्थिति जब जीवित रहने के न्यूनतम साधन भी खतरे में पड़ने
लगते हैं।
अनाम―जिसका नाम मालूम नहीं है।
नीग्रो―अफ्रीका में सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में रहने वाले स्थानीय लोग। यह अपमानजनक शब्द है जिसका अब प्रायः इस्तेमाल नहीं किया जाता।
 
प्रश्न 2.रोबेस्प्येर सरकार द्वारा किए गए किन्हीं दो कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर― रोबेस्प्येर सरकार द्वारा किए गए दो कार्य निम्नलिखित हैं-
(i) कानून बनाकर मजदूरी एवं कीमतों की अधिकतम सीमा तय कर दी गई।
(ii) गोश्त एवं पावरोटी की राशनिंग कर दी गई।
 
प्रश्न 3.गिलोटिन क्या है?
उत्तर― दो स्तम्भों और एक फरसे से बना ऐसा यन्त्र जिसमें किसी व्यक्ति का सिर धड़ से अलग
कर दिया जाता है।
 
प्रश्न 4.जैकोबिन सरकार के पतन के बाद फ्रांस में किस तरह की सरकार स्थापित हुई?
उत्तर- जेकोबिन सरकार के पतन के उपरांत एक नया संविधान लागू किया गया जिसने समाज के संपत्तिविहीन नागरिकों को मताधिकार से वंचित रखा। संविधान में दो चुनी गई विधान परिषदों का प्रावधान था। इन परिषदों ने पाँच सदस्यों वाली एक कार्यपालिका डिरेक्ट्री को नियुक्त किया जिसे डिरेक्ट्री शासन कहा गया।
 
प्रश्न 5.18वीं सदी में फ्रांसीसी समाज कितने एस्टेट्स में बँटा हुआ था?
उत्तर― 18वीं सदी में फ्रांसीसी समाज तीन एस्टेट्स में बँटा हुआ था―
(i) प्रथम एस्टेट―पादरी वर्ग
(ii) द्वितीय एस्टेट―कुलीन वर्ग
(iii) तृतीय एस्टेट―बड़े व्यवसायी, व्यापारी, अदालती कर्मचारी, वकील, किसान, कारीगर,
छोटे किसान, भूमिहीन, मजदूर, नौकर।
 
प्रश्न 6.सेंसरशिप की समाप्ति के उपरांत किस तरह के अधिकार प्रदान किए गए, जिससे
मुद्रण संस्कृति का विकास हुआ?
उत्तर― सेंसरशिप की समाप्ति के उपरांत अधिकारों के घोषणा-पत्र ने भाषण एवं अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता को नैसर्गिक अधिकार घोषित कर दिया। परिणामस्वरूप फ्रांस के शहरों में अखबारों, पर्चों, पुस्तकों एवं छपी हुई तस्वीरों की बाढ़ आ गई, जहाँ से वह तेजी से गाँव देहात तक जा पहुंँची।
 
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. जैकोबिन क्लब’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर― राजनैतिक क्लब उन लोगों के लिए एक महत्त्वपूर्ण बैठक स्थल बन गए जो सरकार की
नीतियों पर चर्चा करना चाहते थे और अपनी रणनीति की योजना बनाई जाती थी। इनमें सबसे सफल क्लब जैकोबिन का था जिसे इसका नाम पेरिस के धार्मिक भवन सेंट जैकोबिन से मिला था। जैकोबिन क्लब के सदस्य मुख्यतः समाज के कम समृद्ध वर्ग से संबंध रखते थे। जैसे कि छोटे दुकानदार, कारीगर, जूते बनाने वाले, पेस्ट्री बनाने वाले, घड़ीसाज, छपाई करने वाले, नौकर तथा दैनिक मजदूर आदि। उनके नेता का नाम मैक्समिलियन रोब्सपियर था। गोदी में काम करने वाले कामगारों की तरह धारीदार लंबी पतलून उनकी पोशाक का हिस्सा थी। उन्होंने ऐसा स्वयं को समाज के फैशनपरस्त वर्ग से अलग रखने के लिए किया (कुलीन जो कि घुटनों तक की ब्रीचेस पहनते थे)। यह घुटनों तक की ब्रीचेस पहनने वाले लोगों की सत्ता समाप्ति की घोषणा करने का उनका तरीका था। इन जैकोबिन लोगों को सौं कुलॉत के नाम से जाना जाने लगा, जिसका शाब्दिक अर्थ था-“बिना घुटन्ने वाले”। सौं कुलॉत लोग इसके अतिरिक्त एक लाल टोपी भी पहनते थे जो आजादी का प्रतीक थी।
 
प्रश्न 2. फ्रांस की क्रांति में महिलाओं की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर― फ्रांसीसी समाज में बहुत-से महत्त्वपूर्ण परिवर्तन लाने वाली घटनाओं में महिलाएँ सक्रिय
रूप से शामिल थीं। उन्होंने क्रांतिकारी सरकार पर उनके जीवन में सुधार लाने के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए दबाव डाला। महिलाएं अपने पतियों एवं परिवार की आर्थिक रूप से सहायता करने के लिए सिलाई-बुनाई, कपड़े धोने, बाजार में फूल, फल और सब्जियाँ बेचने का काम करती थीं। अपने हितों पर चर्चा करने व उनकी माँग करने के लिए उन्होंने स्वयं के राजनैतिक क्लब एवं अखबार शुरू किए तथा कई महत्त्वपूर्ण मुद्दे उठाए; जैसे―
(i) सभी वर्गों की महिलाओं को शिक्षा एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाए।
(ii) उन्हें भी उन दिनों पुरुषों को दी जा रही उच्च मजदूरी के समान ही मजदूरी मिले।
(iii) उन्हें भी पुरुषों के समान राजनैतिक अधिकार दिए जाएँ।
(iv) इन्हें भी मताधिकार, सभा में चुने जाने एवं राजनैतिक पद ग्रहण करने का अधिकार दिया
जाए।
(v) फ्रांस के विभिन्न शहरों में लगभग साठ क्लब अस्तित्व में आए
 
प्रश्न 3. फ्रांसीसी क्रांति का फ्रांस के समाज पर क्या असर पड़ा?
उत्तर―(i) फ्रांस में राजशाही का अंत हो गया। फ्रांस गणतंत्र बन गया।
(ii) पुरुष एवं नागरिक अधिकारों की घोषणा भी फ्रांसीसी क्रांति की देन थी जिसने समानता एवं
      अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे अधिकार दिए।
(iii) फ्रांसीसी क्रांति ने जनता की माँगों का समर्थन किया, दैवीय अधिकार के विचार, सामन्ती
       विशेषाधिकारों, दासत्व तथा नियंत्रण की समाप्ति तथा सामाजिक उत्थान के लिए योग्यता
       को आधार बनाया।
 
प्रश्न 4. ‘आतंक का राज्य क्या था? उसके द्वारा लागू किए गए कानूनों की चर्चा कीजिए।
उत्तर― रोबेस्प्येर सरकार ने कुलीन एवं पादरी, अन्य राजनीतिक दलों के सदस्य, उसकी कार्यशैली से असहमति रखने वाले पार्टी सदस्य-उन सभी को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया और एक क्रांतिकारी न्यायालय द्वारा उन पर मुकदमा चलाया गया। यदि न्यायालय उन्हें दोषी पाता तो गिलोटिन पर चढ़ा दिया जाता था।
 
प्रश्न 5. फ्रांसीसी क्रांति पर दार्शनिकों का प्रभाव किस रूप में पड़ा?
उत्तर― फ्रांसीसी क्रांति में दार्शनिकों ने निम्नलिखित बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई―
(i) उन्होंने क्रांतिकारी विचार प्रदान किए एवं फ्रांस के लोगों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने
    हेतु प्रेरित किया। उन्होंने सम्राट की अक्षमता की सफलतापूर्वक कलई खोली और लोगों को
    उसे चुनौती देने के लिए उकसाया।
(ii) जॉन लॉक ने राजा के दैवीय एवं स्वेच्छाचारी सिद्धांत को नकार दिया।
(iii) रूसो ने लोगों एवं उनके प्रतिनिधियों के बीच एक सामाजिक करार पर आधारित सरकार
       का विचार सामने रखा।
(iv) इन दार्शनिकों के इन विचारों पर सैलून एवं कॉफी-घरों में गहन चर्चा हुई और ये विचार
       पुस्तकों एवं अखबारों के द्वारा जनसाधारण के बीच फैल गए। इसने 1789 में होने वाली
       क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया।
 
प्रश्न 6. किन परिस्थितियों में फ्रांस में जीविका का संकट पैदा हुआ?
उत्तर― फ्रांस की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही थी। यह 1715 में 2 करोड़ 30 लाख से बढ़कर
1789 में 2 करोड़ अस्सी लाख हो गई। फलस्वरूप इससे खाद्यान्न की मांग बहुत तेजी से बढ़ी।
इसलिए पावरोटी की कीमत भी तेजी से बढ़ी क्योंकि यह आम आदमी का भोजन थी। बहुत-से
कामगार कारखानों में मजदूर का काम करते थे जिनके मालिक उनकी मजदूरी निर्धारित करते थे। किन्तु उनकी मजदूरी बढ़ती कीमतों के हिसाब से नहीं बढ़ रही थी। इसलिए अमीर और गरीब के बीच की दूरी बढ़ गई। जब कभी अकाल पड़ता या ओलावृष्टि होती तो फसल कम होने से स्थिति और बिगड़ जाती। इससे जीविका संकट पैदा हुआ।
 
               दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. फ्रांसीसी क्रांति के आर्थिक व राजनैतिक कारण क्या थे?
उत्तर― इस प्रश्न के उत्तर के लिए NCERT प्रश्न 1 का उत्तर देखें।
 
प्रश्न 2. फ्रांस में किस प्रकार राजतंत्र का अंत हुआ और गणतंत्र की स्थापना हुई?
उत्तर― राष्ट्रीय सभा ने 1791 में संविधान का मसौदा पूरा किया। इसने राजा की शक्तियों की सीमा निर्धारित करते हुए एवं विभिन्न संस्थाओं; जैसे-विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका को शक्तियाँ प्रदान करते हुए फ्रांस को संवैधानिक राजतंत्र बना दिया। संविधान का प्रारंभ पुरुष एवं नागरिक अधिकारों की घोषणा के साथ हुआ जिन्हें नैसर्गिक एवं आहरणीय रूप में स्थापित किया गया जिन्हें कोई नहीं छीन सकता था। यह सरकार का कर्त्तव्य था कि वह प्रत्येक नागरिक के प्राकृतिक अधिकारों की रक्षा करे।
यद्यपि लुई सोलहवें ने संविधान पर हस्ताक्षर कर दिए थे, उसने प्रशा के राजा से गुप्त समझौता कर लिया। इससे पहले कि लुई सोलहवाँ सन् 1789 की गर्मियों से चली आ रही घटनाओं को दबाने की अपनी योजनाओं पर अमल कर पाता, राष्ट्रीय सभा ने प्रशा एवं ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा का प्रस्ताव पारित कर दिया। जनसंख्या के बड़े वर्गों का यह विश्वास था कि क्रांति को आगे बढ़ाने की आवश्यकता थी क्योंकि 1791 के संविधान ने धनी वर्ग को ही राजनैतिक अधिकार प्रदान किए थे। राजनैतिक क्लब उन लोगों के लिए एक महत्त्वपूर्ण बैठक स्थल बन गए जो सरकार की नीतियों पर चर्चा करना चाहते थे और अपनी रणनीति की योजना बनाई जाती थी। इनमें से एक जैकोबिन क्लब था। जैकोबिन क्लब के सदस्य मुख्यतः समाज के कम समृद्ध वर्ग से सम्बन्ध रखते थे जैसे कि छोटे दुकानदार, कारीगर, जूते बनाने वाले, पेस्ट्री बनाने वाले, घड़ीसाज, छपाई करने वाले, नौकर तथा दैनिक मजदूर आदि। उनके नेता का नाम मैक्समिलियन रोब्सपियर था। इन जैकोबिन लोगों को सौं कुलॉत के नाम से जाना जाने लगा जिसका शाब्दिक अर्थ था-“बिना घुटन्ने वाले”। सौं कुलॉत लोग इसके अतिरिक्त एक लाल टोपी भी पहनते थे जो आजादी का प्रतीक थी।
1792 की गर्मियों में जैकोबिन लोगों ने प्रशा के विरुद्ध विद्रोह की योजना बनाई जो कि कम आपूर्ति एवं खाने-पीने की चीजों की बढ़ती कीमतों से गुस्साए हुए थे। 10 अगस्त की सुबह उन्होंने ट्यूलेरिए के महल पर आक्रमण कर दिया, राजा के रक्षकों को मार डाला और स्वयं राजा को घण्टों तक बंधक बनाए रखा। बाद में सभा ने शाही परिवार को जेल में डाल देने का प्रस्ताव पारित किया। चुनाव करा गए तथा तब से 21 वर्ष या उससे अधिक आयु के सभी पुरुष, चाहे उनके पास संपत्ति हो या नहीं, सभी को वोट डालने का अधिकार मिल गया।
नवनिर्वाचित सभा को कन्वेशन का नाम दिया गया। 21 सितंबर, 1792 को इसने राजशाही का अंत कर दिया तथा फ्रांस को गणतंत्र घोषित कर दिया। लुई सोलहवें को न्यायालय द्वारा देशद्रोह के आरोप में मौत की सजा दी गई। 21 जनवरी, 1793 को सम्राट को सार्वजनिक रूप से प्लेस डी ला कन्कोर्ड में फाँसी दे दी गई और इसके शीघ्र बाद ही मेरी एन्तोएनेत को भी फाँसी दे दी गई।
 
प्रश्न 3. पुरुष एवं नागरिक अधिकारों की घोषणा के कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं का उल्लेख
कीजिए।
उत्तर― पुरुष एवं नागरिक अधिकारों की घोषणा के कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं का उल्लेख इस प्रकार―
(i) आदमी स्वतंत्र पैदा होते हैं, स्वतंत्र रहते हैं और उनके अधिकार समान होते हैं।
(ii) प्रत्येक राजनैतिक संगठन का लक्ष्य आदमी के नैसर्गिक एवं अहरणीय अधिकारों को
संरक्षित रखना है। ये अधिकार हैं―स्वतंत्रता, सम्पत्ति, सुरक्षा एवं शोषण के प्रतिरोध का
अधिकार।
(iii) समग्र संप्रभुता का स्रोत राज्य में निहित है; कोई भी समूह या व्यक्ति ऐसा अनाधिकार प्रयोग नहीं करेगा जिसे जनता की सत्ता की स्वीकृति न मिली हो।
(iv) स्वतंत्रता का आशय ऐसे काम करने की शक्ति से है जो दूसरों के लिए नुकसानदेह न हो।
(v) कानून सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति है। सभी नागरिकों को व्यक्तिगत रूप से या अपने
प्रतिनिधियों के माध्यम से इसके निर्माण में भाग लेने का अधिकार है। कानून की नजर में
सभी नागरिक समान हैं।
(vi) कानूनसम्मत प्रक्रिया के बाहर किसी भी व्यक्ति को न तो दोषी ठहराया जा सकता है और न
ही गिरफ्तार अथवा नजरबंद किया जा सकता है।
(vii) प्रत्येक नागरिक बोलने, लिखने और छापने के लिए आजाद है। लेकिन कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के तहत ऐसी स्वतंत्रता के दुरुपयोग की जिम्मेदारी भी उसी की होगी।
 
प्रश्न 4. अठारहवीं सदी के फ्रांसीसी समाज में व्याप्त एस्टेट्स प्रणाली का वर्णन कीजिए।
उत्तर― अठारहवीं सदी का फ्रांसीसी समाज तीन एस्टेट्स में विभक्त था-
(i) प्रथम एस्टेट में पादरी आते थे।
(ii) दूसरे एस्टेट में कुलीन आते थे।
(iii) तृतीय एस्टेट में बड़े व्यवसायी, व्यापारी, अदालती कर्मचारी, किसान, कारीगर, भूमिहीन
मजदूर एवं नौकर आते थे। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि तृतीय एस्टेट में कुछ लोग अमीर थे
जबकि बाकी गरीब थे।
पहली दो एस्टेट के सदस्य जन्म से ही कुछ विशेषाधिकारों का प्रयोग करते थे। इनमें से
सबसे महत्त्वपूर्ण था कि इन्हें सरकार को कर लेने से छूट प्राप्त थी। कुलीन वर्ग को सामंती
विशेषाधिकार भी प्राप्त थे। सभी प्रकार के कर का भार केवल तृतीय एस्टेट पर था। तीसरी
एस्टेट के सभी सदस्यों को सरकार को कर देना पड़ता था। इनमें सरकार को प्रत्यक्ष रूप से
दिए जाने वाला कर टाइल एवं दैनिक प्रयोग की वस्तुओं पर लगने वाले बहुत-से अप्रत्यक्ष
कर शामिल थे।
 
                                          ■

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