UP Board Class 9 Social Science History | यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रान्ति

By | April 2, 2021

UP Board Class 9 Social Science History | यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रान्ति

UP Board Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रान्ति

अध्याय 2               यूरोप में समाजवाद एवं
                                     रुसी क्रांति
                           अभ्यास
NCERT प्रश्न
प्रश्न 1.रूस के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक हालात 1905 से पहले कैसे थे?
उत्तर― 1905 ई० से पहले रूस की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दशा बड़ी शोचनीय थी
 इसलिए वहाँ 1905 ई० में एक महान क्रांति हुई जो 1905 की रूसी क्रांति के नाम से प्रसिद्ध है। 
रूस में जार का शासन न केवल अव्यवस्थित ही था वरन् अत्याचारी भी था। जार निकोलस द्वितीय 
(1894-1917) एक ढोंगी संत रासपुतिन (Rasputin) के प्रभाव में आकर प्रतिक्रियावादी हो गया था 
और लोगों पर अत्याचार करने लगा था। किसानों और मजदूरों की स्थिति दिन-प्रतिदिन शोचनीय होती 
जा रही थी। चारों ओर अकाल ने अपना दामन फैला रखा था और भूख के कारण बहुत-से लोग 
कीड़े-मकोड़ों की तरह मर रहे थे। स्थिति बड़ी उत्तेजक थी। उधर पश्चिमी देशों की प्रजातंत्रीय प्रथाओं 
से प्रभावित होकर रूस के नागरिक भी अपने देश में उत्तरदायी सरकार चाहते थे परन्तु निरंकुशता के 
नशे में मदमस्त जार लोगों की उचित मांगों को भी सुनने को कहाँ तैयार था। परिणाम यह हुआ कि 
देखते-ही-देखते जो शांतिप्रिय नेता थे वे भी क्रांतिकारी बन गये। 
रूस में औद्योगिक क्रांति के आगमन से वहाँ मजदूरों की अनेक संस्थाएँ अस्तित्व में आयीं। 
क्योंकि रूस में मजदूरों और कारीगरों की अवस्था पहले ही बड़ी दयनीय थी इसलिए विभिन्न 
मजदूर संस्थाएँ मार्क्स की समाजवादी विचारधारा की ओर आकर्षित हुई। परिणामस्वरूप 1883 ई० 
में मजदूरों ने रशियन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की स्थापना की। 1903 ई० में यह दल दो भागों में 
विभक्त हो गया। एक को मेन्शेविक गुट और दूसरे को बोल्शेविक गुट का नाम दिया गया। 
मेन्शेविक दल जो अल्पसंख्यक गुट था, फ्रांस और जर्मनी की भाँति ऐसा दल चाहता था जो शांतिमय 
ढंग से परिवर्तन लाये और चुनावों में भाग लेकर संसदीय प्रणाली द्वारा कार्य करे। इसके विपरीत दूसरा 
गुट बोल्शेविक गुट था जो बहुमत में था। उस दल के नेता इस विचार के थे कि जिस देश में न कोई संसद 
रही हो और न ही नागरिकों के पास जनतान्त्रिक अधिकार रहे हों वहाँ संसदीय प्रणाली द्वारा परिवर्तन 
लाना असम्भव है। परिवर्तन तो क्रांति द्वारा ही लाये जा सकते हैं, इसलिए इस दल के नेता संगठित 
होकर क्रांति के लिए काम करने में विश्वास रखते थे। शीघ्र ही लेनिन (Lenin) इस दल का नेता बन गया 
जो मार्क्स के बाद समाजवादी आंदोलन का महानतम विचारक माना जाता है।
1905 ई० में जब जापान जैसे छोटे-से देश ने रूस को युद्ध क्षेत्र में पराजित कर दिया तो 
जनवरी, 1905 ई० को रूस में एक क्रांति उठ खड़ी हुई। इसमें मजदूरों के प्रतिनिधियों की 
परिषदों ने जिन्हें साधारणतया सोवियत कहा जाता है, महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। कई स्थानों पर 
सेना और नौ-सेना ने क्रांतिकारियों का साथ दिया। इस क्रांति से डरकर जार थोड़ा-सा झुका और 
अनेक रियायतें देने के लिए तैयार हो गया। 1905 की रूसी क्रांति के अवश्य कुछ महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़े―
 
(1) सर्वप्रथम जार ने भाषण और प्रैस की स्वतंत्रता घोषित कर दी। 
 
(2) दूसरे, उसने एक निर्वाचित संसद को जिसे ड्यूमा कहा जाता है, कानून बनाने का अधिकार दे दिया। 
 
(3) तीसरे, चाहे शीघ्र ही जार सुधारवादी आचार-व्यवहार को छोड़कर फिर अपने प्रतिक्रियावादी ढंग पर  
आ गया परन्तु फिर भी 1905 की क्रांति का अभ्यास अवश्य ही करवा दिया। इसलिए बहुत-से लेखक 
1905 की क्रांति को 1917 ई० का पूर्वाभ्यास मानते हैं। जब 1914 ई० में प्रथम विश्वयुद्ध शुरू हुआ
और रूस ने उसमें बिना सोचे-समझे भाग ले लिया तो उसे मुंँह की खानी पड़ी। फरवरी, 1917 ई० में
कोई 6,00,000 के लगभग रूसी सैनिक युद्ध में मारे गये। देश में त्राहि-त्राहि मच गई और जार के
विरुद्ध सभाएं होने लगीं। लेनिन ने इन परिस्थितियों का लाभ उठाकर 1917 ई० में क्रांति का श्रीगणेश किया।
 
प्रश्न 2.1917 से पहले रूस की कामकाजी आबादी यूरोप के बाकी देशों के मुकाबले
किन-किन स्तरों पर भिन्न थी?
उत्तर― अन्य यूरोपीय देशों की तुलना में 1917 से पहले रूस के कामगार लोगों (कारीगर-मजदूर
और किसान वर्ग) की दशा बड़ी शोचनीय थी। यह रूस के शासक जार निकोलस द्वितीय की
निरंकुशपूर्ण नीतियों का परिणाम था जिसने अपने उत्तेजनापूर्ण कार्यों एवं अन्धी नीतियों के कारण 
धीरे-धीरे अपनी प्रजा को अपने विरुद्ध कर लिया था।
निम्नलिखित विवरण से, जो देश की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक परिस्थितियों से सम्बन्धित है, 
यह स्पष्ट हो जाता है कि रूस में कामगार लोगों की व्यवस्था कितनी बिगड़ चुकी थी कि उसने 
1917 ई० को जार के निरंकुश शासन को धराशायी कर दिया।
1917 की रूसी क्रांति में निम्नलिखित कारणों और परिस्थितियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही―
 
(i) किसानों की दशा बहुत खराब हो चुकी थी।
1861 ई० से पहले रूस में सामन्त प्रथा थी। तब किसान भूमिदास (Serfs) के रूप में
जमीनों को जोतते-बोते थे परन्तु वे भूमि की उपज का अधिकांश भाग सामन्तों को विशेषकर
रूस के शासक, जिसको जार (Czars) कहते थे, को दे देते थे। इन पर करों का भी बड़ा
बोझ था। यद्यपि 1861 ई० में सामन्त-प्रथा समाप्त कर दी गई फिर भी रूस के किसानों की
दशा बहुत खराब रही क्योंकि उनके पास छोटे-छोटे खेत थे जिन पर पुराने तरीको से खेती
की जाती थी। उन पर ऋणों का बड़ा बोझ रहता था तथा खेती की दशा को सुधारने के लिए
उनके पास धन नहीं था। इस कारण किसानों को, जो देश की जनसंख्या के 75 प्रतिशत थे,
दो समय भोजन भी नहीं मिल पाता था। इस प्रकार किसानों की हीन दशा तथा भूमि के लिए
उनकी भूख 1917 ई० की क्रांति का एक प्रबल (सामाजिक) कारण सिद्ध हुई।
 
(ii) श्रमिकों की दशा अति हीन हो गई थी।
औद्योगिक क्रांति के कारण रूस में बहुत-से उद्योग खुल गये थे जिनमें पूँजीपतियों ने अपना
धन लगाकर अधिक-से-अधिक लाभ कमाना चाहा। ये लोग श्रमिकों का अत्यधिक शोषण
करने लगे। परन्तु कारखानों में उनके साथ जो बुरा व्यवहार होता था तथा उनको जो कम
वेतन दिया जाता था उसके कारण मजदूर लोग एक होने लगे थे। 1900 ई० में उन पर
हड़ताल करने और संघ बनाने पर रोक लगा दी गयी थी, परन्तु फिर भी वे लोग कई बार इन
प्रतिबन्धों को तोड़ देते थे। ऐसे लोगों के लिए मरने या मारने के अतिरिक्त और कोई चारा न
था।
 
(iii) 1905 ई० में रूसी क्रांति ने 1917 ई० की क्रांति के लिए पहले ही भूमिका तैयार कर रखी
थी। मास्को में 22 जनवरी, 1905 ई० को रविवार के दिन एक विशाल जुलूस जार के महल
और शान्तिपूर्ण ढंग से जा रहा था। इसके नेता जार के सामने 11 माँगों की एक याचिका देने
जा रहे थे। ये लोग नारा लगा रहे थे―”छोटे भगवान! हमें रोटी दो।” जार यह चाहता था
कि उसे भगवान की तरह पूजा जाए। इसी कारण रूस की जनता उसे “छोटा भगवान”
कहती थी। जार की सेना ने इन निहत्थे लोगों पर गोली चला दी जिससे लगभग एक हजार
व्यक्ति वहीं मारे गए। सेना ने लगभग 60 हजार व्यक्तियों को बन्दी बना लिया। इसी कारण
22 जनवरी, 1905 ई० का दिन इतिहास में ‘खूनी रविवार’ (Red Sunday) के नाम से
प्रसिद्ध है। यह क्रांति दबा दी गयी परन्तु अन्दर-ही-अन्दर यह अग्नि सुलगती रही और
1917 ई० की क्रांति के रूप में प्रकट हुई। इसी कारण 1905 ई० को क्रांति को 1917 ई०
की क्रांति की जननी कहा जाता है।
 
(iv) रूस के जार का शासन उत्तरोत्तर असहनीय बनता जा रहा था।
मार्च की क्रांति के बाद स्थान-स्थान पर श्रमिकों की पंचायतें अर्थात् सोवियत बन गये थे।
इनका मुख्य कार्यालय उसी भवन में था जहाँ ड्यूमा (या पार्लियामेंट) का अधिवेशन होता
था। ड्यूमा के सदस्य अधिकतर मध्य वर्ग के लोग थे जो कि एक ओर अस्थायी सरकार से
तथा दूसरी ओर श्रमिकों की पंचायतों से डरते थे। उन्हें डर था कि कहीं श्रमिक उनको
मारकर धन न छीन ले। गाँवों में नियुक्त गवर्नर बिना सोवियतों की मर्जी के कुछ न कर
सकते थे।
इतने में रूस में नये प्रशासन की स्थापना हो गई तथा कामचलाऊ सरकार का नेता केरेस्की
(Kerensky) बना।
 
(v) कार्ल मार्क्स की शिक्षा ने रूस के लोगों को जार के विरुद्ध हथियार उठाने के लिए पहले ही
तैयार कर दिया था।
कार्ल मार्क्स इंग्लैण्ड में रहता था परन्तु वह एक जर्मन यहूदी था। उसके विचारों को अपनी
पुस्तक दास कैपिटल (Das Capital) में लिखा है। कार्ल मार्क्स के विचारों का सारांश इस
प्रकार है―
 
(a) किसी के पास निजी सम्पत्ति नहीं होनी चाहिए क्योंकि निजी सम्पत्ति ही पूँजीवाद की
जननी है।
 
(b) पूँजीपति लोग अपने लाभ को प्राप्त करने के लिए मजदूरों और किसानों का शोषण
 करते हैं।
 
(c) संसार भर में उत्पादन के साधनों पर मजदूरों और किसानों का अधिकार होना चाहिए।
उसी हालत में किसानों और मजदूरों को आर्थिक न्याय की प्राप्ति हो सकती है तथा
उन्हें शोषण से छुटकारा मिल सकता है।
 
(d) शान्तिमय ढंगों से पूँजीवाद नहीं मिट सकता, इसके लिए हड़तालें और क्रांतियाँ
आवश्यक हैं।
 
(e) जनता को सुख और शान्ति तभी मिल सकती है जब वह हथियार उठाकर पूँजीपतियों
को नष्ट कर दें और मजदूरों एवं किसानों का अधिनायकवाद (Dictatorship of the
Proletariat) स्थापित कर दें।
 
मार्क्स के अलावा अनेक साहित्यकारों, दार्शनिकों एवं विचारकों ने रूस की जनता को
प्रभावित किया। इनमें विशेष उल्लेखनीय हैं-फ्रेड्रिक एंजिल्स, बाकुनिन, क्रोपोटिन,
चुर्गनेव, दोस्तावस्की और टॉल्सटॉय। फ्रेड्रिक एंजिल्स के विचार मार्क्स से मिलते-जुलते थे
तथा जनता निम्न वर्ग में आशा की किरण लाते थे। टॉल्सटॉय ने अपने उपन्यासों में निम्न
वर्ग की हीन दशा के जो खाके खींचे उनका आम जनता, विशेषकर बुद्धिजीवियों पर बड़ा
प्रभाव पड़ा।
 
(vi) प्रथम विश्वयुद्ध में जार की हार भी 1917 ई० में रूस की क्रांति का कारण सिद्ध हुई।
यूरोप में 1914 ई० में पहले दो शक्ति गुट स्थापित हो चुके थे। एक में इंग्लैंड, फ्रांस और
रूस तथा दूसरे में जर्मनी, ऑस्ट्रिया और इटली थे। प्रथम विश्वयुद्ध शुरू होने पर रूस बिना
किसी पूर्व-तैयारी के अपने गुट का साथ देने के लिये युद्ध में शामिल हो गया। पहले ही देश
में धन, अस्त्रों-शस्त्रों तथा सेना की कमी थी अतएव जबरदस्ती किसानों को भर्ती करके
बड़ी संख्या में युद्ध के मैदान में भेज दिया गया। लड़ने के साधनों, अस्त्रों-शस्त्रों तथा रसद
की कमी से ये अनाड़ी, युद्ध में बुरी तरह मारे गये। अनुमानतः छ: लाख सैनिक मारे गये,
पाँच लाख घायल हुए तथा बीस लाख कैदी बना लिये गये। जो लोग मारे गये, घायल हुए या
कैदी बने, उनके परिवारों एवं पड़ोसियों में सरकार के प्रति विद्रोह की प्रबल भावनाएँ पनपने
लगीं।
अब लोग ऐसी सरकार को कभी सहन नहीं कर सकते थे। जब 7 मार्च, 1917 ई० को
विद्रोह शुरू हुआ तो विद्रोहियों की संख्या निरन्तर बढ़ती चली गई क्योकि लोगों को पता
चल चुका था कि जार के पास अब इतने सैनिक नहीं कि वह अपना निरंकुशवादी शासन
बनाये रख सके। यदि प्रथम विश्वयुद्ध में जार भाग न लेता और रूसी सेना उसमें नष्ट न हुई
होती तो वह अपने सैनिक बल पर लोगों के विद्रोह को आसानी से कुचल डालता। इस
प्रकार जार द्वारा प्रथम विश्वयुद्ध में भाग लेना उसके लिये बड़ा विनाशकारी सिद्ध हुआ।
 
(vii) रूस के पूँजीपतियों ने भी अपनी शोषण की नीति के कारण क्रांति की भूमिका तैयार कर ली। 
रूस का जार निकोलस द्वितीय (Nicholas m पक्का तानाशाह था। परन्तु जब रूस में
1905 ई० की क्रांति हुई तो वह सुधार करने के लिए तैयार हो गया―
 
(a) उसने लोगों को स्वतंत्रता से अपने विचार अभिव्यक्त करने और संघ बनाने की
 स्वतंत्रता दे दी और प्रेस से भी अंकुश हटा लिये।
 
(b) वह यह भी मान गया कि कानून लोगों की चुनी हुई संस्था, जिसे ड्यूमा (Duma) कहा
जाता था, द्वारा बनाए जाएंगे।
 
प्रश्न 3.1917 में जार का शासन क्यों खत्म हो गया?
उत्तर― इस प्रश्न के उत्तर के लिए छात्र उपर्युक्त प्रश्न 2 के उत्तर में देखें।
 
प्रश्न 4.दो सूचियाँ बनाइए : एक सूची में फरवरी क्रांति की मुख्य घटनाओं और प्रभावों को
लिखिए और दूसरी सूची में अक्तूबर क्रांति की प्रमुख घटनाओं और प्रभावों को
दर्ज कीजिए।
उत्तर― विद्यार्थी इस प्रोजेक्ट कार्य को स्वयं करें। परन्तु उनकी सहायता के लिये निर्देशन दिया जा रहा है।
रूस की क्रांति दो भागों में हुई–पहले भाग में फरवरी-मार्च, 1917 ई० में केरेस्की (Kerensky) 
के नेतृत्व में हुई और दूसरे भाग में अक्तूबर-नवम्बर, 1917 ई० की क्रांति हुई, तत्पश्चात् दो सूचियाँ स्वयं तैयार कर लें।
निर्देशन―रूस में 1917 ई० की जो क्रांति हुई वह विश्व की सबसे पहली सफल सामाजिक क्रांति
थी। रूस के क्रांतिकारियों के सामने जो मुख्य लक्ष्य थे वही समाजवादी क्रांति के लक्ष्य माने जा सकते हैं। 
यदि हम निम्नलिखित विवरण को ध्यान से पढ़ेंगे तो हम आसानी से इस निष्कर्ष पर पहुँचेंगे कि रूस के 
क्रांतिकारियों के मुख्य लक्ष्य इस प्रकार थे-(1) शान्ति (Peace), (2) किसानों को भूमि (Land to the Tiller), 
(3) उद्योगों पर मजदूरों का नियन्त्रण (Control of Industry by the Workers) और 
(4) दूसरी जातियों को अपने भाग्य का स्वयं निर्णय करने का अधिकार 
(Right of Self-determination to all the Nationalities)।
यही मुख्य उद्देश्य प्रत्येक समाजवादी क्रांति के होते हैं, जिनका स्पष्टीकरण 
रूस की क्रांति के विवरण से आसानी से हो जाता है।
 
फरवरी-क्रांति–जार की दयनीय अवस्था का लाभ उठाकर फरवरी, 1917 ई० में स्थान-स्थान पर
जलसे-जुलूस निकलने लगे। 7 मार्च, 1917 ई० को मजदूरों ने काम बन्द कर दिया और पेत्रोग्राद
(Petrograd) पर आक्रमण कर दिया। आम स्थानों पर भी ऐसा ही हुआ। ग्रामों में अनेक किसानों 
ने दंगे आरम्भ कर दिए। सैनिकों ने क्रांतिकारियों का दमन करने की बजाय उनका साथ दिया। 
भोजन की कमी के कारण स्थान-स्थान पर उपद्रव हुए और देशभर में अराजकता तथा अशान्ति फैल गई। 
जार को सिंहासन छोड़ने पर मजबूर किया गया और प्रिंस केरेस्की (Prince Kerensky) 
के नेतृत्व में अस्थायी सरकार की स्थापना की गई। केरेस्की मध्य वर्ग का पक्षपाती था।
उसने जनता को छापेखाने, भाषण और धार्मिक स्वतंत्रता दी। पश्चिमी देशों की भाँति
प्रजातन्त्रात्मक सरकार के निर्माण के लिए राष्ट्रीय संवैधानिक सभा (Constituent Assembly)
की स्थापना की घोषणा की गई। युद्ध को जारी रखने की भी घोषणा की गई।
जनता ने इसका विरोध किया क्योंकि वह युद्ध की पक्षपाती नहीं थी और राजनीतिक
सुधारों की अपेक्षा शान्ति, भूमि और रोटी की माँग करने लगी। वह सामाजिक और
आर्थिक क्षेत्र में परिवर्तन चाहती थी।
अक्तूबर-क्रांति―क्रांति का दूसरा दौर अक्तूबर, 1917 ई० में शुरू होता है। क्रांति की घटना के
समाचार को सुनकर क्रांतिकारी नेता लेनिन रूस में पहुँच गया और उसके नेतृत्व में बोल्शेविक 
दल ने क्रांति की बागडोर को अपने हाथ में ले लिया। ये लोग श्रमिकों की साम्यवादी सरकार की 
स्थापना क्रांतिकारी साधनों द्वारा करना चाहते थे। वे युद्ध को भी बन्द करने के पक्ष में थे। 
जनता ने इसका साथ दिया। नवम्बर, 1917 ई० में पेत्रोग्राद में दुबारा क्रांति हुई। 
उन्होंने बलपूर्वक अस्थायी सरकार को भंग कर दिया। केरेस्की देश छोड़कर भाग गया और 
शासन की बागडोर बोल्शेविकों ने सम्भाल ली। 
शासन-सत्ता को हाथ में लेने के पश्चात् बोल्शेविक सरकार ने सर्वप्रथम युद्ध को समाप्त करने के लिए 
जर्मनी से सन्धि कर ली। यह सन्धि रूस के लिए बहुत अपमानजनक थी और उसे अनेक 
प्रदेशों से हाथ धोना पड़ा। मार्क्स के सिद्धान्तों के आधार पर समाजवाद की स्थापना के लिए भी 
कार्य किया गया। लेनिन ने निजी सम्पत्ति को छीन लिया, किसानों को भूमि दी गई, कारखानों पर 
सरकार ने अधिकार कर उनका प्रबन्ध मजदूरों के हाथों में दे दिया। सभी ऋण माफ कर दिए गए, 
चर्च की सम्पत्ति को जब्त कर लिया गया और काम करना सभी के लिए अनिवार्य कर दिया गया।
लेनिन के इन क्रांतिकारी परिवर्तनों का भूमिपतियों, व्यापारियों और पादरियों ने घोर विरोध किया। 
इस प्रकार उच्च वर्ग में गृह-युद्ध आरम्भ हो गया। लेनिन ने हिंसात्मक उपायों द्वारा उनका विरोध किया 
और उन पर घोर अत्याचार कर फ्रांस की राज्यक्रांति के दिनों के आतंक के युग की याद ताजा कर दी। 
जार निकोलस और उसके परिवार का जुलाई, 1918 ई० में अंत कर दिया गया। 
रूस की क्रांति को देखकर पूँजीवादी देशों में भय उत्पन्न हो गया कि कहीं उन देशों में श्रमिक 
वर्ग विद्रोह की आग को न भड़का दे, अत: उन्होंने रूस की बोल्शेविक सरकार को मान्यता प्रदान 
करने से इनकार कर दिया। मित्र-राष्ट्रों ने अपनी सेनाएँ रूस में भेज दीं। ऐसा प्रतीत होने लगा कि 
गृह-युद्ध और विदेशी सैनिक हस्तक्षेप के आगे बोल्शेविक सरकार झुक जायेगी, परन्तु उसने तीनों 
पक्षों का डटकर सामना किया और अंत में उसे सफलता मिली।
 
प्रश्न 5.बोल्शेविकों ने अक्तूबर क्रांति के फौरन बाद कौन-कौन से प्रमुख परिवर्तन किए?
उत्तर― 1917 की अक्तूबर की रूसी क्रांति के पश्चात् सत्ता बोल्शेविक दल के हाथों में आई,
जिन्होंने रूसी व्यवस्था में निम्नलिखित परिवर्तन किये―
रूस की अक्तूबर क्रांति के कारण रूस प्रथम विश्वयुद्ध से अलग हो गया―
1914 ई० में जब प्रथम युद्ध शुरू हुआ जार ने इसमें बढ़-चढ़कर भाग लिया। 
जर्मनी के सबसे निकट होने के कारण उसे युद्ध का बोझा सबसे अधिक सहना पड़ा। 
देखते-ही-देखते उसके 6 लाख के लगभग सैनिक युद्ध में मारे गये और उससे भी अधिक युद्ध में घायल हुए। 
परन्तु रूस का जार फिर भी युद्ध के लिए डटा हुआ था और युद्ध के अन्त तक भी वह ऐसे ही करता रहता
परन्तु अक्तूबर, 1917 ई० में रूस में जो क्रांति हुई उसकी अपनी स्थिति डॉवाँडोल हो गई।
उसे पकड़ लिया गया और अपने वंश के अन्य सदस्यों सहित उसका वध कर दिया गया।
उसके शीघ्र ही पश्चात् रूस ने अपने आपको युद्ध से अलग कर लिया, चाहे इसके लिये
उसे भारी कीमत ही क्यों न चुकानी पड़ी। उसे अपने अनेक भागों से भी हाथ धोने पड़े।
 
रूस की अक्तूबर क्रांति का कृषि और भूमि के स्वामित्व पर प्रभाव―
रूस की अक्तूबर, 1917 की क्रांति से पहले किसानों की बड़ी शोचनीय दशा थी।
वे बड़े-बड़े सामन्तों के हाथों में प्रायः दास (Serfs) बनकर रह गये थे।
उनके खेत बहुत छोटे-छोटे थे और अधिक-से-अधिक परिश्रम करने के पश्चात् भी उनका
निर्वाह नहीं होता था। भूमि पर स्वामित्व के प्रश्न की समस्या को सुलझाना बड़ा आवश्यक था।
1917 की अक्तूबर क्रांति के सफल होते ही भूमि पर व्यक्तिगत स्वामित्व समाप्त कर दिया गया।
भूमि सम्बन्धी आज्ञप्ति (Decree) जारी किये जाने के पश्चात् बड़े-बड़े जमींदारों, चर्च और जार की
भूमि-सम्पत्तियों को छीन लिया गया। ऐसी भूमियों को किसानों की समितियों को सौंप दिया गया
ताकि वे उन्हें किसानों के परिवारों में बाँट दें और किसान बिना भाड़े के मजदूर रखे, स्वयं खेती का
कार्य कर सके। सारी उपज को सरकार के हवाले करना पड़ता था परन्तु ऐसी व्यवस्था में परिश्रम
करने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं था। परिणामस्वरूप उपज उत्तरोत्तर कम होती चली गई और
1921 ई० में रूस में जो अकाल पड़ा उसमें हजारों व्यक्ति मारे गये। विवश होकर लेनिन को नई
आर्थिक नीति अपनानी पड़ी। इस नई नीति के अनुसार किसानों को एक निश्चित कर सरकार को
देना पड़ता था और उन्हें अपनी सारी उपज सरकार को सौंपने के लिए विवश नहीं किया जाता था।
 
उद्योगों के क्षेत्र में लाये गये परिवर्तन―रूस में क्रांति से पहले दोनों रूसी और विदेशी पूँजीपति
कारीगरों का बड़ा शोषण करते थे और बड़ा लाभ कमाते थे। इस प्रकार जब रूस में क्रांति सफल 
हुई तो कारीगरों ने स्वयं कारखानों पर नियन्त्रण करने की मांग की। उनकी यह माँग एकदम पूरी कर दी गई। 
सभी बड़े उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। विदेशी पूँजीपतियों को न्यौता दिया गया कि वे रूस में 
उद्योगों पर धन व्यय करें। हर व्यक्ति को अपनी रोजी स्वयं कमानी पड़ी और कारखानों में कारीगरों के 
रूप में कार्य करना पड़ा। इससे पादरी और कोई भी पूँजीपति न बच सका।
 
रूस की अक्तूबर क्रांति का रूसी साम्राज्य की गैर-रूसी जातियों पर प्रभाव―
रूस के जार ने एक विस्तृत साम्राज्य की स्थापना कर रखी थी और गैर-जातियों को शक्ति
के बल पर दबा रखा था। रूसी भाषा सभी जातियों पर थोप दी जाती थी और उनकी विभिन्न
भाषाओं एवं संस्कृतियों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था। रूस के जारों का साम्राज्य
विभिन्न जातियों का अजायबघर’ मात्र था। अक्तूबर क्रांति के सफल होते ही जैसे ही सत्ता लेनिन
के हाथ में आई उसने घोषणा की कि गैर-रूसी जनगणों को समान अधिकार दिए बिना सच्चा
जनतंत्र स्थापित नहीं किया जा सकता। उसने रूसी साम्राज्य के अधीन सभी जनगणों के लिए
आत्म-निर्णय के अधिकार की घोषणा की। शीघ्र ही जार साम्राज्य को एक नए राज्य
‘सोवियत समाजवादी गणराज्य के संघ’ (Union of Soviet Socialist Republics) में बदल दिया गया।
इस प्रकार जार के साम्राज्य के गैर-रूसी राज्य अब गणराज्यों के रूप में सोवियत संघ में सम्मिलित हो गये।
इस प्रकार सभी जातियों की समानता को कानूनी रूप दे दिया गया। सोवियत संसद के दो सदनों में से
एक सदन में सभी जातियों को समान प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया। आन्तरिक मामलों में उन
गणराज्यों को इतनी स्वायत्तता दी गई कि वे अपनी-अपनी भाषाओं और संस्कृतियों का खूब विकास कर सकें।
आर्थिक विकास और शिक्षा के प्रसार से ये गणराज्य शीघ्र ही आधुनिकीकरण के क्षेत्र में काफी आगे निकल गये।
 
प्रश्न 6.निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में लिखिए?
(क) कुलक
(ख) ड्यूमा
(ग) 1900 से 1930 के बीच महिला कामगार 
(घ) उदारवादी
उत्तर― (क) कुलक रूस के धनी किसान थे। स्तालिन का विश्वास था कि वे अधिक लाभ कमाने
के लिए अनाज इकट्ठा कर रहे थे। 1927-28 तक सोवियत रूस के शहर अन्न आपूर्ति की भारी
किल्लत का सामना कर रहे थे। इसलिए इन कुलकों पर 1928 में छापे मारे गए और उनके 
अनाज के भंडारों को जब्त कर लिया गया। मार्क्सवादी स्तालिनवाद के अनुसार कुलक गरीब 
किसानों के ‘वर्ग शत्रु’ थे। उनकी मुनाफाखोरी की इच्छा से खाने की किल्लत हो गई और अंततः 
स्टालिन को इन कुलकों का सफाया करने के लिए सामूहिकीकरण कार्यक्रम चलाना पड़ा और 
सरकार द्वारा नियंत्रित बड़े खेतों की स्थापना करनी पड़ी।
 
(ख) 1905 की क्रांति के दौरान जार ने रूस में परामर्शदाता संसद के चुनाव की अनुमति दे दी।
रूस की इस निर्वाचित परामर्शदाता संसद को ड्यूमा कहा गया। रूसी क्रांति के दबाव में 6
अगस्त 1905 को गठित यह संस्था प्रारंभ में परामर्शदात्री मानी गई थी। अक्टूबर घोषणापत्र
में जार निकोलस द्वितीय ने इसे वैधानिक शक्तियाँ प्रदान की।
 
(ग) महिला मजदूरों ने रूस के भविष्य निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। महिला कामगार 
सन् 1914 तक कुल कारखाना कामगार शक्ति का 31 प्रतिशत भाग बन चुकी थी किन्तु उन्हें
पुरुषों की अपेक्षा कम मजदूरी दी जाती थी। महिला कामगारों को न केवल कारखानों में काम 
करना पड़ता था अपितु उनके परिवार एवं बच्चों की भी देखभाल करनी पड़ती थी।
वे देश के सभी मामलों में बहुत सक्रिय थीं। वे प्रायः अपने साथ काम करने वाले पुरुष कामगारों को प्रेरणा देती थीं।
1917 की अक्टूबर क्रांति के बाद समाजवादियों ने रूस में सरकार बनाई। 1917 में
राजशाही के पतन एवं अक्टूबर की घटनाओं को ही सामान्यतः रूसी क्रांति कहा जाता है।
उदाहरण के लिए, लॉरेंज टेलीफोन की महिला मजदूर मार्फा वासीलेवा ने बढ़ती कीमतों
तथा कारखाने के मालिकों के मनमानी के विरुद्ध आवाज उठाई और सफल हड़ताल की।
अन्य महिला मजदूरों ने भी मार्फा वासीलेवा का अनुसरण किया और जब तक उन्होंने रूस
में समाजवादी सरकार की स्थापना नहीं की तब तक उन्होंने राहत की साँस नहीं ली।
 
(घ) रूस के उदारवादी वे लोग थे जो ऐसा देश चाहते थे जिसमें सभी धर्मों को बराबर सम्मान मिले। 
वे वंश आधारित शासकों की अनियंत्रित सत्ता के भी विरुद्ध थे। वे सरकार के समक्ष व्यक्ति के 
अधिकारों की सुरक्षा के पक्ष में थे। वे प्रतिनिधित्व करने वाली, निर्वाचित संसदीय सरकार के
पक्षधर थे जो शासकों एवं अफसरों के प्रभाव से मुक्त हो तथा सुप्रशिक्षित न्यायपालिका द्वारा
स्थापित किए गए कानूनों के अनुसार शासन कार्य चलाए। किन्तु वे लोकतंत्रवादी नहीं थे। वे
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार (प्रत्येक नागरिक का वोट देने का अधिकार) में विश्वास नहीं
रखते थे। उनका विश्वास था कि वोट का अधिकार केवल संपत्तिधारियों को ही मिलना चाहिए।
वे महिलाओं को भी वोट देने का अधिकार नहीं देना चाहते थे।
 
                                        अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
                                          बहुविकल्पीय प्रश्न
 
प्रश्न 1.रूस में कुलक कौन थे?
(क) मध्यम वर्ग के लोग
(ख) गरीब किसान
(ग) अमीर किसान
(घ) भूमिहीन मजदूर
                          उत्तर―(ग) अमीर किसान
 
प्रश्न 2. रेड के नाम से किन्हें जाना जाता था?
(क) बोल्शेविकों को
(ख) मेन्शेविकों को
(ग) उदारवादियों को
(घ) रूढ़िवादियों को
                      उत्तर―(क) बोल्शेविकों को
 
प्रश्न 3.”अप्रैल थीसिस” क्या थे?
(क) लेनिन की आत्मकथा
(ख) लेनिन की तीन मांँगें
(ग) समाजवाद पर एक किताब 
(घ) समाजवादी देशों के सिद्धांत
                                उत्तर―(ख) लेनिन की तीन मांँगें
 
प्रश्न 4.रूस में ओ०जी०पी०यू० और एन०के०वी०डी०………थे?
(क) ट्रेड यूनियन 
(ख) गुप्तचर 
(ग) खुफिया पुलिस 
(घ) अपराधी समूह
                        उत्तर―(ग) खुफिया पुलिस
 
प्रश्न 5.रॉबर्ट ऑवन कौन था?
(क) एक रूसी नेता
(ख) एक अंग्रेज पादरी
(ग) एक अंग्रेज निर्माता
(घ) एक अमेरिकी राजनेता
                              उत्तर―(ग) एक अंग्रेज निर्माता
 
प्रश्न 6.गिसेप्पे मजीनी कौन था?
(क) एक इतालवी राष्ट्रवादी 
(ख) एक जर्मन राष्ट्रवादी
(ग) एक जर्मन प्रोफेसर
(घ) एक इतालवी अर्थशास्त्री
                                   उत्तर―(क) एक इतालवी राष्ट्रवादी
 
प्रश्न 7.रूस में 1914 में किसका शासन था?
(क) लेनिन
(ख) स्तालिन
(ग) जारीना एलेक्सान्द्रा
(घ) जार निकोलस द्वितीय
                                 उत्तर―(घ) जार निकोलस द्वितीय
 
प्रश्न 8.रूस में बोल्शेविक दल का नेता कौन था?
(क) स्तालिन
(ख) लेनिन
(ग) ट्रॉट्स्की
(घ) केरेन्स्की
               उत्तर―(ख) लेनिन
 
प्रश्न 9.जदीदीवादी कौन थे?
(क) रूसी साम्राज्य में मुस्लिम सुधारक 
(ख) रूसी साम्राज्य में रूढ़िवादी ईसाई
(ग) रूसी साम्राज्य में प्रसिद्ध दार्शनिक 
(घ) लेनिन के समर्थक
                           उत्तर―(क) रूसी साम्राज्य में मुस्लिम सुधारक
 
प्रश्न 10. ‘ग्रीन्स किन्हें कहा जाता था?
(क) बोल्शेविकों को
(ख) प्रो-जारीस्ट्स को
(ग) समाजवादी क्रांतिकारी को
(घ) इनमें से कोई नहीं
                          उत्तर―(ग) समाजवादी क्रांतिकारी को
 
प्रश्न 11.रूसी समाजवादी डेमोक्रेटिक वर्कर्स पार्टी का गठन कब हुआ?
(क) 1890 में 
(ख) 1899 में
(ग) 1895 में
(घ) 1898 में
                उत्तर―(घ) 1898 में
 
प्रश्न 12. लेनिन के बाद किसने शासन किया?
(क) स्तालिन
(ख) ट्रॉट्स्की 
(ग) करेन्स्की
(घ) कुलक
               उत्तर―(क) स्तालिन
 
 
                           अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. उदारवादी समूह किस तरह की सरकार के पक्षधर थे?
उत्तर― उदारवादी समूह वंश-आधारित शासकों की अनियंत्रित सत्ता के विरोधी थे। 
वे सरकार के समक्ष व्यक्ति मात्र के अधिकारों की रक्षा के पक्षधर थे। यह समूह प्रतिनिधित्व
पर आधारित एक ऐसी निर्वाचित सरकार के पक्ष में था जो शासकों और अफसरों के प्रभाव से
मुक्त और सुप्रशिक्षित न्यायपालिका द्वारा स्थापित किए गए कानूनों के अनुसार शासन कार्य चलाए।
 
प्रश्न 2.रैडिकल और उदारवादियों की आर्थिक दशा किस प्रकार की थी?
उत्तर― बहुत सारे रैडिकल और उदारवादियों के पास काफी संपत्ति थी और उनके 
यहाँ बहुत सारे लोग नौकरी करते थे। उन्होंने व्यापार या औद्योगिक व्यवसायों के जरिए 
धन दौलत इकट्ठा की थी इसलिए वह चाहते थे कि इस तरह के प्रयासों को अधिक-से-अधिक बढ़ावा दिया जाए।
 
प्रश्न 3. किस घटना के बाद जार निकोलस द्वितीय को गद्दी छोड़नी पड़ी?
उत्तर― घुड़सवार सैनिकों ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने से इंकार कर दिया। 
दूसरी रेजीमेंटों ने बगावत कर दी और हड़ताली मजदूरों के साथ आ मिले। 
अगले दिन एक प्रतिनिधिमंडल जार से मिलने गया। सैनिक कमांडरों ने सलाह दी कि 
वह राजगद्दी छोड़ दे। उसने कमांडरों की बात मान ली और 2 मार्च को गद्दी छोड़ दी।
 
प्रश्न 4. घुमंतू तथा स्वायत्तता का अर्थ बताएँ।
उत्तर― घुमंतू-ऐसे लोग जो किसी एक जगह ठहरकर नहीं रहते बल्कि अपनी आजीविका की
खोज में एक जगह से दूसरी जगह आते-जाते रहते हैं, घुमंतू कहलाते हैं।
स्वायत्तता-अपना शासन स्वयं चलाने का अधिकार ‘स्वायत्तता’ कहलाता है।
 
प्रश्न 5. बोल्शेविकों ने जमीन के पुनर्वितरण का आदेश दिया तो रूसी सेना में क्या
प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर― जब बोल्शेविकों ने जमीन के पुनर्वितरण का आदेश दिया तो रूसी सेना टूटने लगी।
ज्यादातर सिपाही किसान थे। वे भूमि पुनर्वितरण के लिए घर लौटना चाहते थे इसलिए सेना छोड़कर जाने लगे।
 
प्रश्न 6.वास्तविक वेतन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर― यह इस बात का पैमाना है कि किसी व्यक्ति के वेतन से वास्तव में कितनी चीजें खरीदी जा सकती हैं।
 
प्रश्न 7.खूनी रविवार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर― पादरी गैपॉन के नेतृत्व में मजदूरों का एक जुलूस विंटर पैलेस के सामने पहुँचा तो पुलिस
और कोसैक्स ने मजदूरों पर हमला बोल दिया। इस घटना में 100 से ज्यादा मजदूर मारे गए और
लगभग 300 घायल हुए। इतिहास में इस घटना को ‘खूनी रविवार’ के नाम से जाना जाता है।
 
प्रश्न 8. रैडिकल किस तरह की सरकार के पक्ष में थे?
उत्तर― रैडिकल समूह के लोग ऐसी सरकार के पक्ष में थे जो देश की आबादी के बहुमत 
के समर्थन पर आधारित हो। इनमें से बहुत सारे महिला मताधिकार आंदोलन के भी समर्थक थे। 
ये लोग बड़े जमींदारों और संपन्न उद्योगपतियों को प्राप्त किसी भी तरह के विशेषाधिकारों के खिलाफ थे।
 
प्रश्न 9.रूढ़िवादी किस तरह के बदलाव चाहते थे?
उत्तर― रूढ़िवादी भी बदलाव की जरूरत को स्वीकार करने लगे थे। पुराने समय में यानी 
अठारहवीं शताब्दी में रूढ़िवादी आमतौर पर परिवर्तन के विचारों का विरोध करते थे। 
लेकिन उन्नीसवीं सदी तक आते-आते वे भी मानने लगे थे कि कुछ परिवर्तन आवश्यक हो गया है 
परंतु वह चाहते थे कि अतीत का सम्मान किया जाये अर्थात् अतीत को पूरी तरह ठुकराया न जाए 
और बदलाव की प्रक्रिया धीमी हो।
 
प्रश्न 10. किस कारण उन्नीसवीं सदी के शुरुआती दशकों में समाज परिवर्तन के इच्छुक
बहुत सारे कामकाजी स्त्री-पुरुष उदारवादी और रैडिकल समूहों व पार्टियों के इर्दगिर्द गोलबंद हो गए थे?
उत्तर―उदारवादियों और रैडिकल समूहों की मान्यता थी कि यदि हरेक को व्यक्तिगत स्वतंत्रता दी
जाए, गरीबों को रोजगार मिले और जिनके पास पूँजी है उन्हें बिना रोकटोक काम करने का मौका 
दिया जाए तो समाज तरक्की कर सकता है। इसी कारण उन्नीसवीं सदी के शुरुआती दशकों में 
समाज परिवर्तन के इच्छुक बहुत सारे कामकाजी स्त्री-पुरुष उदारवादी और रैडिकल समूहों व पार्टियों 
के इर्दगिर्द गोलबंद हो गए थे।
 
प्रश्न 11.1904 ई० में सेंट पीटर्सबर्ग के मजदूर हड़ताल पर क्यों चले गए थे?
उत्तर― 1904 में गठित की गई असेंबली ऑफ एशियन वर्कर्स के चार सदस्यों को प्युतिलोव
आयरन वर्क्स से नौकरी से हटा दिया गया तो मजदूरों ने आंदोलन छेड़ने का एलान कर दिया। 
अगले कुछ दिनों के भीतर सेंट पीटर्सबर्ग के 1,10,000 से ज्यादा मजदूर काम के घंटे घटाकर 
आठ घंटे किए जाने, वेतन में वृद्धि और कार्यस्थितियों में सुधार की मांग करते हुए हड़ताल पर चले गए।
 
प्रश्न 12. राष्ट्रवादी से क्या तात्पर्य है?
उत्तर- उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ में यूरोप में उन्होंने उदारवादियों एवं रैडिकल का समर्थन किया। वे
ऐसा देश चाहते थे जहाँ सभी नागरिकों को समान अधिकार मिलें।
 
                                     लघु उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1.खूनी रविवार क्या है? इसके बाद किस घटनाक्रम की शुरुआत हुई?
उत्तर― जनवरी, 1905 में जार से याचना करने के लिए एक रविवार को मजदूरों ने 
पादरी गैपॉन के नेतृत्व में एक शांतिपूर्ण जुलूस निकाला। किन्तु जब जुलूस विंटर पैलेस 
पहुंचा तो पुलिस तथा कोसैक्स ने उन पर हमला कर दिया। 100 से अधिक मजदूर मारे गए 
तथा उससे भी अधिक घायल हो गए। क्योंकि यह घटना रविवार के दिन हुई। 
अत: यह घटना ‘खूनी रविवार’ के नाम से जानी जाती है जिसने घटनाओं की एक 
श्रृंखला को शुरू कर दिया जिसे ‘1905 की क्रांति’ के नाम से जाना जाता है।
परिणामस्वरूप―
(i) पूरे देश में हड़ताले हुईं।
(ii) जब नागरिक स्वतंत्रता के अभाव की शिकायत करते हुए छात्रों ने बहिष्कार किया तो
विश्वविद्यालय बंद हो गए।
(iii) वकीलों, डॉक्टरों, इंजीनियरों एवं अन्य मध्यम श्रेणी के मजदूरों ने यूनियन ऑफ यूनियन्स
बनाया तथा एक संविधान सभा की मांँग की।
 
प्रश्न 2. लेनिन कौन था? 1917 की रूसी क्रांति में उसके योगदान का वर्णन करें।
उत्तर― लेनिन बोल्शेविक दल का एक नेता था। वह समाज तथा देश में बदलाव के लिए 
क्रांतिकारी तरीकों में विश्वास करता था। लेनिन मजदूरों में आर्थिक समानता लाना चाहता था। 
उसके विचार में संसदीय तौर-तरीके रूस जैसे देश में बदलाव नहीं ला सकते थे जहाँ 
लोकतंत्रात्मक अधिकारों का कोई अस्तित्व नहीं था और कोई संसद नहीं थी। 
अंतत: बोल्शेविक रूस में 1917 में एक सफल क्रांति ला सके और उन्होंने देश तथा 
समाज का ढाँचा पूरी तरह बदल दिया।
उसने मजदूरों को 1917 की रूसी क्रांति के लिए एक हथियार के रूप में संगठित किया। 
उसने युद्ध का अंत करने और किसानों को भूमि स्थानांतरित करने की कोशिश की। 
केरेंस्की की सरकार के पतन के बाद लेनिन विश्व की प्रथम कम्युनिस्ट सरकार का मुखिया बना।
 
प्रश्न 3. उदारवादियों के प्रमुख उद्देश्य क्या थे?
उत्तर― उदारवादियों के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे―
(i) उदारवादी एक ऐसा देश चाहते थे जो सभी धर्मों का सम्मान करे।
(ii) उन्होंने वंशवादी शासकों की निरंकुश सत्ता का विरोध किया।
(iii) वे सरकार के समक्ष व्यक्ति के अधिकारों की सुरक्षा करना चाहते थे।
(iv) उन्होंने शासको एवं अधिकारियों से मुक्त एक प्रतिनिधित्व करने वाली निर्वाचित संसदीय
सरकार की मांँग की।
(v) ये लोग सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार (सभी नागरिकों को वोट का अधिकार देने) के पक्ष
में नहीं थे। उनका मानना था कि वोट का अधिकार केवल संपत्तिधारियों को ही मिलना
चाहिए। वे नहीं चाहते थे कि महिलाओं को भी मतदान का अधिकार मिले।
(vi) वे एक स्वतंत्र न्यायपालिका चाहते थे।
 
प्रश्न 4. समाजवाद के विभिन्न दृष्टिकोण क्या थे?
उत्तर- उन्नीसवीं सदी के मध्य तक समाजवाद यूरोप में आकर्षण का केन्द्र बन गया। समाजवादी
लोग निजी संपत्ति के विरुद्ध थे एवं इसे तत्कालीन सभी बुराइयों की जड़ मानते थे। 
कुछ लोग सहकारिता के विचार में विश्वास रखते थे। अन्य समाजवादी सोचते थे कि केवल
व्यक्तिगत प्रयासों से इतने बड़े स्तर पर सहकारी समिति बनाना संभव नहीं था, उन्होंने
मांग की कि सरकार को सहकारी समितियांँ बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए।
समाजवादियों के विभिन्न दृष्टिकोण थे; जैसे―
रॉबर्ट ऑवन (1771-1858)―नामक एक जाने-माने अंग्रेज निर्माता ने इंडियाना (संयुक्त राज्य
अमेरिका) में न्यू हारमनी नाम का एक सहकारी समुदाय बनाने का प्रयास किया।
तुई ब्लान्क (1813-1882) चाहते थे कि सरकार पूँजीवादी उद्यमों के स्थान पर 
सहकारी उद्यमों को प्रोत्साहित करे। ये सहकारी समितियाँ उन लोगों की संगठन 
होनी थीं जो कि सहभागिता में उत्पादन करते तथा लाभ को उनके द्वारा किए गए 
काम के अनुसार बाँट लेते।
कार्ल मार्क्स (1818-1883) ने ‘पूँजीवाद’ का विरोध किया। उनका विश्वास था कि पूँजीवादी
कारखानों में निश्चित पूँजी के स्वामी थे, और पूँजीवादियों का लाभ मजदूरों के उत्पादन के कारण था। 
मजदूरों की स्थिीत तब तक सुधरने वाली नहीं थी जब तक कि लाभ निजी पूँजीवादियों के हाथों में जाता रहेगा। 
पूँजीवाद तथा निजी संपत्ति के कानून को समाप्त कर देना चाहिए।
 
प्रश्न 5.रूसी क्रांति के विश्व पर प्रभाव का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर―बहुत-से देशों में कम्युनिस्ट पार्टियों का गठन हुआ जैसे कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ ग्रेट
ब्रिटेन। बोल्शेविकों ने उपनिवेशों के लोगों को भी उनके रास्ते का अनुसरण करने के लिए 
प्रोत्साहित किया। सोवियत संघ के अतिरिक्त भी बहुत-से देशों के प्रतिनिधियों ने 
कॉन्फ्रेन्स ऑफ द पीपल ऑफ दि ईस्ट (1920) एवं बोल्शेविकों द्वारा गठित कॉमिटर्न 
(बोल्शेविक समर्थित समाजवादी पार्टियों का अंतर्राष्ट्रीय महासंघ) में भाग लिया। 
कुछ ने यू०एस०एस०आर० के कम्युनिस्ट यूनिवर्सिटी ऑफ द वर्कर्स ऑफ दि ईस्ट में शिक्षा ली। 
द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रारंभ तक सोवियत रूस ने समाजवाद को एक विश्वव्यापी पहचान मिल चुकी थी।
 
प्रश्न 6. बीसवीं सदी के अंत तक यू०एस०एस०आर० की एक समाजवादी देश के रूप में
अंतर्राष्ट्रीय ख्याति कम क्यों हो गई?
उत्तर―1905 के दशक तक देश में यह स्वीकार किया जाने लगा कि यू०एस०एस०आर० की
शासन शैली रूसी क्रांति के आदर्शों के अनुरूप नहीं है। विश्व समाजवादी आंदोलन में भी 
इस बात को मान लिया गया था कि सोवियत संघ में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। 
एक पिछड़ा हुआ देश महाशक्ति बन चुका था। उसके उद्योग और खेती विकसित हो चुके थे और 
गरीबों को भोजन मिल रहा था। लेकिन वहाँ के नागरिकों को कई तरह की आवश्यक स्वतंत्रता नहीं 
दी जा रही थी और विकास परियोजनाओं को दमनकारी नीतियों के बल पर लागू किया गया था। 
अत: बीसवीं सदी के अंत तक एक समाजवादी देश के रूप में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सोवियत संघ 
की प्रतिष्ठा काफी कम रह गई थी।
 
प्रश्न 7. प्रथम विश्वयुद्ध के बाद रूस के हालात कैसे थे?
उत्तर- प्रथम विश्वयुद्ध के बाद रूस के हालात निम्न प्रकार थे―
(i) रूसी सेनाएँ जर्मनी तथा ऑस्ट्रिया में 1914 से 1916 के बीच बुरी तरह हारी। 1917 तक
70 लाख लोग मारे जा चुके थे। पीछे हटते समय रूसी सेना ने फसलों एवं इमारतों को नष्ट
कर दिया ताकि शत्रु सेना उस जगह टिक ही न सके। फसलों एवं इमारतों के विनाश ने रूस
में लगभग 30 लाख से अधिक लोगों को शरणार्थी बना दिया।
 
(ii) इस स्थिति ने सरकार एवं जार को अलोकप्रिय बना दिया। सैनिक ऐसी लड़ाई नहीं लड़ना चाहते थे।
 
(iii) युद्ध का उद्योगों पर भी बुरा प्रभाव पड़ा। रूस के अपने उद्योग संख्या में बहुत कम थे तथा
बाल्टिक सागर के रास्ते पर जर्मनी का कब्जा हो जाने के कारण देश को कच्चा माल भी
मिलना बंद हो गया।
 
(iv) यूरोप के अन्य देशों की अपेक्षा रूस के औद्योगिक उपकरण अधिक तेजी से बेकार होने
लगे। 1916 तक रेलवे लाइनें टूटने लगीं। सेहतमन्द लोगों को युद्ध में झोंक दिया गया।
परिणामस्वरूप, मजदूरों की कमी हो गई और आवश्यक सामान बनाने वाली छोटी
कार्यशालाओं को बंद कर दिया गया। अनाज का एक बड़ा भाग सेना का पेट भरने के लिए
भेज दिया गया।
 
(v) शहरों में रहने वाले लोगों के लिए रोटी एवं आटे की किल्लत हो गई। 1916 तक रोटी की
दुकानों पर दंगे होना आम बात हो गई।
 
प्रश्न 8. बोल्शेविकों ने गृह युद्ध के दौरान अर्थव्यवस्था को जारी रखने के लिए क्या किया?
उत्तर― बोल्शेविक रूस में मजदूरों का बहुमत वाला समूह था, जिनका नेता लेनिन था। वे समाज
तथा देश में बदलाव के लिए क्रांतिकारी तरीकों में विश्वास करते थे।
बोल्शेविकों ने गृह युद्ध के दौरान उद्योगों तथा बैंकों को राष्ट्रीयकृत रखा। उन्होंने समाजीकरण 
की हुई भूमि पर किसानों को खेती करने दी। बोल्शेविकों ने जब्त की गई भूमि के द्वारा यह 
दर्शाया कि सामूहिक कार्य क्या कर सकता है।
केन्द्रीयकृत नियोजन की एक प्रक्रिया लागू की गई। कर्मचारियों ने यह आंका कि अर्थव्यवस्था 
किस प्रकार कार्य करेगी और अगले 5 वर्षों के लिए लक्ष्य निर्धारित किए। सभी मूल्य सरकार 
द्वारा निर्धारित किए जाते थे।
केन्द्रीयकृत नियोजन से आर्थिक विकास को गति मिली। औद्योगिक उत्पादन बढ़ा 
(1929 से 1933 के बीच में तेल, कोयले और इस्पात में 100 प्रतिशत वृद्धि हुई)। 
नए औद्योगिक नगर अस्तित्व में आए।
 
प्रश्न 9. औद्योगिक क्रांति से उस समय के समाज में क्या बदलाव आए?
उत्तर― औद्योगिक क्रांति से उस समय के समाज में निम्नलिखित बदलाव आए―
(i) नए औद्योगिक नगर अस्तित्व में आए और नए औद्योगिक क्षेत्रों का विकास हुआ।
(ii) रेलवे का विस्तार हुआ।
(iii) पुरुष, महिलाएँ और बच्चे उद्योगों में काम करने लगे।
(iv) विशेषकर औद्योगिक सामान की कम माँग के दिनों में बेरोजगारी एक आम बात थी।
(v) तेजी से बढ़ते हुए नगरों के कारण निवास एवं सफाई की समस्या थी।
 
प्रश्न 10.1917 की क्रांति के मुख्य कारण क्या थे?
उत्तर― प्रथम विश्वयुस का उद्योगों पर बहुत बुरा असर पड़ा था। बालिक सागर पर जर्मनों के
नियंत्रण के कारण आयात बंद हो चुका था। औद्योगिक उपकरण खराब होने लगे थे और 
1916 तक रेलवे लाइनें टूट चुकी थी। अनिवार्य सैनिक सेवा के चलते सेहतमन्द लोगों को 
सुख में झोक दिया गया जिसके परिणामस्वरूप, मजदूरों की कमी हो गई। रोटी की 
दुकानों पर दंगे होना आम बात हो गई। 
किसान जमीन पर सर्फ के रूप में काम करते थे और उनकी पैदावार का अधिकतम भाग 
जमीन के मालिकों एवं विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों को चला जाता था। किसानों में जमीन की 
भूख प्रमुख कारण थी। विभिन्न दमनकारी नीतियों तथा कुण्ठा के कारण वे आमतौर पर लगान 
देने से मना कर देते और प्रायः जमींदारों की हत्या करते।
मजदूरों की स्थिति भी बहुत भयावह थी। वे अपनी शिकायतों को प्रकट करने के लिए कोई ट्रेड 
यूनियन अथवा कोई राजनीतिक दल नहीं बना सकते थे। अधिकतर कारखाने उद्योगपतियों को 
निजी संपत्ति थे। वे अपने स्वार्थ के लिए मजदूरों का शोषण करते थे। कई बार तो इन मजदूरों को 
न्यूनतम निर्धारित मजदूरी भी नहीं मिलती थी। कार्य घण्टों की कोई सीमा नहीं थी जिसके कारण 
उन्हें दिन में 12-15 घण्टे काम करना पड़ता था।
जार का निरंकुश शासन बिल्कुल निष्पभावी हो चुका था। वह एक स्वेच्छाचारी, भ्रष्ट एवं दमनकारी 
शासक था जिसे देश के लोगों के हितों का कोई खयाल नहीं था।
 
प्रश्न 11. उन हालातों का विश्लेषण कीजिए जिनसे अक्तूबर क्रांति के बाद रूस में गृह युज
का मार्ग प्रशस्त हुआ?
उत्तर― जब बोल्शेविकों ने भूमि पुनर्वितरण का आदेश दिया तो रूसी सेना टूटने लगी। 
सैनिक और किसान पुनर्वितरण के लिए घर जाना चाहते थे और वे सेना छोड़ गए। 
बोल्शेषिक समाजवादी, उदारवादी, उनके नेता और राजशाही के समर्थकों ने बोल्शेविकों 
के विद्रोह की निन्दा की। उनके नेता दक्षिण एशिया में चले गए और बोल्शेविकों (रेड्स’) से 
लड़ने के लिए टुकड़ियाँ एकत्र करने लगे। 1918 और 1919 के बाद ग्रीन्स (समाजवादी क्रांतिकारी) 
एवं ‘व्हाइट्स’ (प्रो-जारीस्ट) ने अधिकतर रूसी साम्राज्य पर नियंत्रण कर लिया। 
फ्रांसीसी, अमेरिकी, अंग्रेज एवं जापानी टुकड़ियों ने उनकी मदद की। ये सभी सेनाएँ भी रूस 
में बढ़ रहे समाजवाद से चिंतित थी। इसलिए वहाँ इन टुकड़ियों एवं बोल्शेविकों के बीच गृह युद्ध 
हो गया। इसके परिणामस्वरूप लूटपाट, डकैती और भुखमरी साधारण-सी बात हो गई।
 
प्रश्न 12.1905 की क्रांति के उपरांत जार ने रूसी राजनैतिक वातावरण में क्या बदलाव
किए?
उत्तर― 1905 की क्रांति के उपरांत जार द्वारा रूसी राजनैतिक वातावरण में किए गए बदलाव इस प्रकार है-
(i) 1905 की क्रांति के उपरांत सभी समितियाँ एवं संगठन गैरकानूनी घोषित कर दिए गए।
(ii) राजनैतिक दलों पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए गए।
(iii) जार ने प्रथम ड्यूमा को 75 दिन के अंदर और पुनः निर्वाचित दूसरी ड्यूमा को तीन माह के
अंदर बर्खास्त कर दिया। वह अपनी सत्ता पर किसी प्रकार की जवाबदेही अथवा अपनी
शक्तियों में किसी तरह की कमी नहीं चाहता था। उसने मतदान के नियम बदल डाले और
उसने तीसरी ड्यूमा में रूढ़िवादी राजनेताओं को भर डाला। उदारवादियों तथा क्रांतिकारियों
को बाहर रखा गया।
 
प्रश्न 13. दो रूसी सामाजिक लोकतांत्रिक मजदूर दलों के नाम बताएँ और उनके बीच अंतर बताएँ।
उत्तर― 1903 में रूसी सामाजिक लोकतांत्रिक मजदूर दल दो भागों में बँटा हुआ था―
बोल्शेविक और मेन्शेविक दोनों दलों में मुख्य अंतर निम्नलिखित हैं-
ph-1
 
                                     दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. उदारवादियों, आमूल परिवर्तनवादियों और रूढ़िवादियों के दृष्टिकोण क्या थे?
उत्तर― उदारवादी―रूस के उदारवादी वे लोग थे जो ऐसा देश चाहते थे जिसमें सभी धर्मों को
बराबर सम्मान मिले। वे वंश आधारित शासकों की निरंकुश सत्ता के भी विरुद्ध थे। 
वे सरकार के समक्ष व्यक्ति के अधिकारों की सुरक्षा करना चाहते थे। 
वे प्रतिनिधित्व करने वाली, निर्वाचित संसदीय सरकार के पक्षधर थे जो शासकों एवं 
अफसरों के प्रभाव से मुक्त हो तथा सुप्रशिक्षित न्यायपालिका द्वारा स्थापित किए गए 
कानूनों के अनुसार शासन कार्य चलाए। वे सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार 
(प्रत्येक नागरिक का वोट देने का अधिकार) में विश्वास नहीं रखते थे। 
उनका विश्वास था कि वोट का अधिकार केवल संपत्तिधारियों को ही मिलना चाहिए। 
वे महिलाओं को भी वोट देने का अधिकार नहीं देना चाहते थे।
 
आमूल परिवर्तनवादी―इसके विपरीत आमूल परिवर्तनवादी ऐसा देश चाहते थे जिसमें सरकार 
किसी देश की जनता के बहुमत के समर्थन पर आधारित हो। बहुत-से लोग महिला मताधिकार 
आंदोलन का समर्थन करते थे। उदारवादियों के विपरीत ये लोग बड़े जमींदारों तथा धनी उद्योगपतियों 
के विशेषाधिकारों के विरुद्ध थे। वे निजी संपत्ति के विरुद्ध नहीं थे अपितु वे संपत्ति के कुछ ही लोगों के 
हाथों में केंद्रित होने को पसंद नहीं करते थे।
 
रूढ़िवादी―रूढ़िवादी लोग उदारवादियों एवं आमूल परिवर्तनवादियों के विरुद्ध थे। अठारहवीं
शताब्दी में रूढ़िवादियों ने बदलाव के विचार का विरोध किया। किन्तु उन्नीसवीं सदी में उन्होंने 
स्वीकार किया कि कुछ बदलाव अवश्य हो गया है लेकिन उनका विश्वास था कि अतीत का सम्मान 
किया जाना चाहिए तथा बदलाव को एक धीमी प्रक्रिया के द्वारा लाना चाहिए।
 
प्रश्न 2.1905 की क्रांति से पूर्व क्या घटनाएँ घटी थी?
उत्तर― रूस में जार के शासन के अधीन तानाशाही थी। जार निकोलस द्वितीय एक स्वेच्छाधारी,
भ्रष्ट एवं दमनकारी शासक था। उसे देश के लोगों के हितों का कोई ख्याल नहीं था जिसके कारण
किसानों तथा मजदूरों की दशा बहुत दयनीय हो चुकी थी। मजदूर व किसान दोनों ही विभाजित थे।
किसान बहुधा लगान देने से मना कर देते थे और यहाँ तक कि जमींदार की हत्या भी कर देते थे।
पाश्चात्य यूरोपीय देशों द्वारा किए गए लोकतांत्रिक प्रयोगों से प्रभावित होकर रूसियों ने भी एक
जिम्मेदार सरकार की माँग की किन्तु उनकी माँग को ठुकरा दिया गया। 
फलस्वरूप, उदार सुधारक भी क्रांति की बातें करने लगे।
आर्थिक हालात के क्षेत्र में सन् 1904 का वर्ष किसानों के लिए बुरा था। जरूरी चीजों के 
दाम बहुत अधिक बढ़ गए। मजदूरी 20 प्रतिशत घट गई। कामगार संगठनों की सदस्यता 
शुल्क नाटकीय तरीके से बढ़ जाता है। सेंट पीटर्सबर्ग के 1,10,000 से अधिक मजदूर रोज 
के काम के घण्टों को कम करने, मजदूरी बढ़ाने तथा कार्य स्थितियों में सुधार करने की मांगों 
को लेकर हड़ताल पर चले गए।
जनवरी, 1905 में जार से याचना करने के लिए एक रविवार को मजदूरों ने पादरी गैपॉन के नेतृत्व 
में एक शांतिपूर्ण जुलूस निकाला। किन्तु जब जुलूस विंटर पैलेस पहुंचा तो पुलिस ने उन पर हमला कर दिया। 
परिणामस्वरूप 100 से अधिक मजदूर मारे गए जबकि इससे कहीं अधिक घायल हो गए। 
यह घटना ‘खूनी रविवार’ के नाम से जानी जाती है जिसने घटनाओं की एक श्रृंखला को शुरू कर 
दिया जिसे ‘1905 की क्रांति’ के नाम से जाना जाता है। इसी कारण पूरे देश में हड़तालें हुई।
 
प्रश्न 3. स्तालिन के सामूहिकीकरण कार्यक्रम का वर्णन करें।
उत्तर― नियोजित अर्थव्यवस्था का प्रारंभिक दौर खेती के सामूहिकीकरण से पैदा हुई 
तबाही से जुड़ा हुआ था। 1927-28 तक सोवियत रूस के कस्बे अनाज की आपूर्ति में 
कमी की जबरदस्त समस्या झेल रहे थे। इसके बावजूद भी जब किल्लत जारी रही तो खेतों के 
सामूहिकीकरण का निर्णय लिया गया। यह तर्क दिया गया कि अनाज की कमी आंशिक रूप से 
खेतों के छोटे आकार के कारण थी। 1917 के बाद जमीन किसानों को दे दी गई। इन छोटे आकार 
के खेतों का आधुनिकीकरण नहीं हो पाया। आधुनिक खेत विकसित करने और उन पर मशीनों की 
सहायता से औद्योगिक खेती करने के लिए कुलकों (रूस के धनी किसान) का सफाया करना, किसानों 
से जमीन छीनना और राज्य नियंत्रित बड़े खेत बनाना आवश्यक हो गया। स्तालिन का विचार था कि 
कुलक अधिक फायदा पाने के लिए अनाज को नहीं बेच रहे थे। इसलिए स्तालिन ने 
सामूहिकीकरण कार्यक्रम शुरू किया।
1929 से सभी किसानों को सामूहिक खेत जिसे कोलखोज कहा जाता था, उसे जोतने पर 
बाध्य किया गया। अधिकतर भूमि तथा यंत्रों का स्वामित्व सामूहिक खेतों को हस्तांतरित कर 
दिया गया। किसान भूमि पर काम करते तथा कोलखोज का लाभ बाँट दिया जाता।
 
● यद्यपि स्तालिन की सामूहिकीकरण नीति किसानों के बीच अलोकप्रिय थी और किसानों 
ने इसके विरोध में अपने पशुओं को मारना शुरू कर दिया। 1929-31 के बीच 
पशुओं की संख्या एक-तिहाई तक घट गई।
 
● जिन लोगों ने सामूहिकीकरण का विरोध किया उन्हें कड़ी सजा दी गई। 
बहुत-से लोगों को निर्वासन या देशनिकाला दे दिया गया। सामूहिकीकरण का विरोध 
करने वाले किसानों का कहना था कि न तो वे अमीर हैं और न ही समाजवाद के विरोधी हैं। 
वे बस विभिन्न कारणों से सामूहिक खेतों में काम नहीं करना चाहते थे।
 
● स्तालिन सरकार ने कुछ स्वतंत्र खेती की अनुमति दी लेकिन ऐसे उत्पादकों के साथ कोई 
सहानुभूति नहीं दिखाई। सामूहिकीकरण के बावजूद उत्पादन तत्काल नहीं बढ़ा। 
1930-33 की खराब फसल के कारण भयंकर अकाल पड़ा, जिसमें चालीस लाख लोग मारे गए।
 
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