up board class 9th hindi | उत्तम अंक पाने के सूत्र

By | May 1, 2021

up board class 9th hindi | उत्तम अंक पाने के सूत्र

 
(क) पाठ्य-पुस्तक हिन्दी के ‘गद्य-खण्ड’ से 16 अंकों के प्रश्न पूछे जाते हैं। इनमें 5 अंक गद्य-साहित्य
के विकास से सम्बन्धित होते हैं। शेष 11 अंकों में से 8 अंक गद्य-खण्ड के एक गद्यांश के सन्दर्भ,
दो-तीन रेखांकित पंक्तियों की व्याख्या तथा गद्यांश पर आधारित एक प्रश्न के उत्तर के लिए और
3 अंक किसी एक लेखक के जीवन-परिचय एवं उसकी कृतियों के लिए निर्धारित हैं।
 
(1) गद्य साहित्य का विकास―गद्य साहित्य के विकास के अन्तर्गत हिन्दी गद्य के प्रादुर्भाव से पूर्व की
स्थिति, उसका प्रादुर्भाव, व्यवस्थित रूप, परिमार्जित स्वरूप तथा काल-क्रम के अनुसार भारतेन्दु
एवं द्विवेदी युग की विशेषताएँ, प्रमुख लेखक एवं उनकी रचनाएँ, विविध गद्य-विधाओं की परिभाषा,
प्रमुख ग्रन्थ आदि का विस्तृत अध्ययन करना चाहिए। गद्य साहित्य के विकास पर दो अतिलघु
उत्तरीय, सत्य-असत्य एवं बहुविकल्पीय प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
 
(2) गद्यांश पर आधारित प्रश्न―इसके अन्तर्गत तीन प्रश्न पूछे जाते हैं। प्रथम प्रश्न के उत्तर के रूप में
गद्यांश का सन्दर्भ (पाठ व लेखक का नाम) लिखना होता है। द्वितीय प्रश्न गद्यांश में रेखांकित अंश
की व्याख्या से सम्बद्ध होता है। व्याख्या लिखने से पहले गद्यांश को दो-तीन बार पढ़कर उसमें
निहित विचारों को समझना चाहिए और तब अपने शब्दों में उसे विस्तार से समझाना चाहिए। एक ही
बात को दुहराना नहीं चाहिए, वरन् मुख्य विचार को रेखांकित भी करना चाहिए। दूसरे विद्वानों द्वारा
कही गयी बातों का उल्लेख कर अपनी बात को पुष्ट करना चाहिए। तृतीय प्रश्न गद्यांश पर आधारित
लघु उत्तरीय प्रश्न का होता है। गद्यांश को अच्छी तरह से समझकर अपने शब्दों में इस प्रश्न का उत्तर
लिखना चाहिए। गद्यांश के शब्दों को यथावत् उतारना उचित नहीं।
 
(ख) पाठ्य-पुस्तक के ‘काव्य-खण्ड’ के लिए भी पाठ्यक्रम में 16 अंक निर्धारित हैं। 5 अंक पद्य-
साहित्य के इतिहास के लिए, 8 अंक काव्य-खण्ड के एक पद्यांश की सन्दर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या
और काव्यगत-सौन्दर्य के लिए तथा शेष 3 अंक किसी एक कवि के जीवन-परिचय एवं उसकी
कृतियों के लिए निर्धारित हैं। अत: पाठ्य-पुस्तक के काव्य-खण्ड व उससे सम्बद्ध सामग्री का
भली-भाँति अध्ययन करना चाहिए।
 
(3) पद्य साहित्य का इतिहास―गद्य साहित्य की भाँति ही पद्य साहित्य के इतिहास से सम्बन्धित सभी
बातें याद करनी चाहिए। इसके अन्तर्गत काल-विभाजन, पद्य के व्यवस्थित रूप, पद्य में प्रयुक्त
भाषाओं और खड़ी बोली में पद्य-रचना तक के क्रमिक विकास, कालक्रमानुसार आदिकाल एवं
भक्तिकाल तक के पद्य की विशेषताएँ, प्रमुख कवि और उनकी रचनाओं से सम्बन्धित प्रश्न पूछे
जाते हैं। पद्य साहित्य के इतिहास पर दो अतिलघु उत्तरीय अथवा बहुविकल्पीय प्रश्न पूछे जा सकते
हैं। सही तथ्य लिखने पर पूरे अंक मिलते हैं, अतः इससे सम्बद्ध सभी तथ्य अच्छी तरह से याद किये
जाने चाहिए।
 
(4) सन्दर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या व काव्यगत सौन्दर्य―सन्दर्भ के अन्तर्गत कविता काशीर्षक तथा
उसके रचयिता का उल्लेख किया जाना चाहिए। सम्बद्ध कविता किस मूल ग्रन्थ से आपकी पाठ्य-
पुस्तक में संकलित की गयी है, यदि आपको ज्ञात हो तो उसका भी उल्लेख करना चाहिए। प्रसंग के
अन्तर्गत उस कविता का केन्द्रीय भाव बता देना चाहिए, जिससे पद्यांश को समझने में सुविधा हो।
यदि दिया गया पद किसी पूर्व पद से सम्बन्धित हो तो उस पूर्व पद का भी संक्षिप्त उल्लेख किया
जाना चाहिए। दो अवतरणों में सन्दर्भ और प्रसंग लिखकर तीसरे से व्याख्या लिखनी चाहिए।
व्याख्या का आशय शब्द-प्रति-शब्द अर्थ देना नहीं है, वरन् पूछे गये पद्यांश के भाव को
विस्तारपूर्वक समझा देना है। इतना अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि भाव समझाते समय पद्यांश का
कोई अंश छुटने न पाये।
काव्यगत सौन्दर्य के अन्तर्गत (क) कवि के मूल आशय को एक-दो पंक्तियों में स्पष्ट कर देना
चाहिए। यदि प्रसंग अथवा व्याख्या में ही वह आशय स्पष्ट हो गया हो तो उसे पुन: लिखने की
आवश्यकता नहीं है। (ख) किसी अन्य कवि की कविता से यदि भाव-साम्य दिखाया जा सके तो
उसे दिखाना चाहिए। (ग) यदि पूछे गये पद्यांश में किसी अन्तर्कथा का संकेत हो तो उसे भी दे देना
चाहिए। (घ) पद्यांश में प्रयुक्त भाषा, शैली, रस, छन्द, शब्दशक्ति, गुण, अलंकार का ठीक-
ठीक विवरण देना चाहिए।
 
(5) लेखक एवं कवि का जीवन-परिचय―इस प्रश्न के उत्तर में एक कवि और एक ही लेखक का
संक्षिप्त जीवन-परिचय एवं उसकी कृतियों का नामोल्लेख करना चाहिए। प्रश्न में जितना पूछा गया
हो, उतना ही लिखना चाहिए। जीवन-परिचय लिखने के पश्चात् उस लेखक और कवि के साहित्य
में स्थान का उल्लेख अवश्य करना चाहिए।
 
(6) काव्य-सौन्दर्य के तत्व―इससे कुल 6 अंकों के प्रश्न पूछे जाते हैं। रस (शृंगार एवं वीर) के
अन्तर्गत स्थायीभाव, परिभाषा, उदाहरण तथा पहचान से सम्बन्धित, छन्द (चौपाई एवं दोहा) के
अन्तर्गत लक्षण तथा उदाहरण से सम्बन्धित और अलंकार (शब्दालंकार : अनुप्रास, यमक एवं
श्लेष) के अन्तर्गत परिभाषा, उदाहरण तथा पहचान से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं।
 
(ग) पाठ्य-पुस्तक के ‘संस्कृत-खण्ड से कुल 17 अंकों के प्रश्न पूछे जाते हैं।
 
(7) पाठ्य-पुस्तक के संस्कृत-खण्ड में निर्धारित पाठों में से किसी एक पाठ के गद्यांश अथवा श्लोक के
ससन्दर्भ हिन्दी अनुवाद का प्रश्न पूछा जाता है। विद्यार्थियों को इसे बार-बार पढ़कर भली-भांति
समझ लेना चाहिए। इसके लिए सन्धि-विच्छेद के आवश्यक नियम जानने आवश्यक है, जिससे
सन्धियुक्त पदों में प्रयुक्त विभिन्न शब्दों के वास्तविक स्वरूप का पता चल सके। इसीलिस
संस्कृत-खण्ड के प्रत्येक पाठ में अनुवाद से पहले सन्धियुक्त शब्दों का सन्धि-विच्छेद काल
दिखाया गया है; जैसे-तथैवाचरणम् (तथा + एव + आचरणम्) = वैसा ही व्यवहार
अनुवाद को केवल शब्दानुवाद न समझे। यह याद रखें कि प्रत्येक भाषा की अपनी शैली होती है।
इसलिए दूसरी भाषा में अनुवाद करते समय शुद्धता, सहजता और प्रवाह बनाये रखने का प्रयास करें।
 
(8) संस्कृत्-खण्ड के विविध पाठों पर आधारित संस्कृत में अतिलघु उत्तरीय प्रश्नों का अभ्यास को
पूछे गये प्रश्न को हिन्दी में समझें, फिर हिन्दी में ही उसके उत्तर पर विचार करते हुए उसकी संस्कृत
बनाएँ। इसके लिए पाठ्य-पुस्तक के समस्त पाठों का भली प्रकार अध्ययन करना चाहिए।
 
(9) श्लोक लिखना―अपनी स्मृति के आधार पर संस्कृत खण्ड के पाठों से सम्बन्धित कोई एक
श्लोक शुद्ध रूप में लिखना होता है। संस्कृत-खण्ड से बाहर का श्लोक न लिखें। यह भी ध्यान 
रखें कि जो श्लोक लिख रहे हैं, वह प्रश्न-पत्र में न आया हो। शुद्ध श्लोक लिखने के लिए 
संस्कृत-खण्ड से कई श्लोकों को कण्ठस्थ करें और उनको शुद्ध रूप में लिखने का बार-बार अभ्यास करें।
 
(10) संस्कृत व्याकरण के अन्तर्गत सन्धि, शब्द-रूप (संज्ञा, सर्वनाम), धातु-रूप तथा हिन्दी वाक्यों का
संस्कृत में अनुवाद से सम्बन्धित कुल 8 अंकों के प्रश्न पूछे जाते हैं।
हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद के निश्चित नियम होते हैं, जिन्हें इस पुस्तक से सम्बन्धित अध्याय में
अच्छी प्रकार से समझाया गया है। विद्यार्थी उन नियमों तथा दिये गये उदाहरण अनुवादों का अध्ययन
करें और अनुवाद में भाषा की शुद्धि का ध्यान रखें। संस्कृत में शब्द के पुरुष, लिंग, वचन, विभक्ति
आदि के अनुसार बदलते रूपों का प्रयोग करें।
सन्धि, शब्द रूप तथा धातु रूप आदि से सम्बन्धित समस्त सामग्री प्रस्तुत पुस्तक में यथास्थान दी
गयी है। विद्यार्थी इनका विधिवत अध्ययन करें और बार-बार लिख-लिखकर अभ्यास करें।
 
(घ) पाठ्य-पुस्तक के ‘एकांकी-खण्ड’ से कुल 3 अंकों के प्रश्न पूछे जाते हैं। ये प्रश्न एकांकी-खण्ड में
निर्धारित एकांकियों के कथानक, चरित्र-चित्रण एवं तथ्यों पर आधारित होते हैं। अतः पाठ्य-
पुस्तक के एकांकी-खण्ड से सम्बद्ध समस्त सामग्री का भली-भाँति अध्ययन करना चाहिए।
 
(11) प्रश्न-पत्र में ‘वर्तनी तथा विराम-चिह्न’, ‘तत्सम, तद्भव, विलोम तथा पर्यायवाची शब्द’,
‘अव्ययीभाव व तत्पुरुष समास’ तथा ‘मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ से सम्बन्धित समस्त सामग्री सम्बद्ध
अध्यायों में पर्याप्त विस्तार के साथ दी गयी है। इसके लिए 8 अंक निर्धारित किये गये हैं।
 
(12) पत्र-लेखन―पत्र-लेखन के अन्तर्गत कोई एक प्रार्थना पत्र लिखने के लिए आ सकता है। पत्र में
केवल आवश्यक बातें ही संक्षेप में लिखी जानी चाहिए। अधिक विस्तृत पत्र प्रभावकारी 
नहीं होता। पत्र में सम्बोधन को सोच-समझकर एवं सावधानीपूर्वक लिखना चाहिए। इसके लिए 4 अंक
निर्धारित हैं।
 
(13) पूरे प्रश्न-पत्र में मुख्य बात ध्यान देने की यह है कि प्रश्न पत्र अच्छी तरह पढ़कर और समझकर
जितना पूछा गया है, केवल उतना ही लिखना चाहिए। इससे आशय यह है कि आवश्यक छूटे नही
और अनावश्यक अंशों का उल्लेख न हो। भाषा शुद्ध हो, विराम-चिह्नों का यथास्थान प्रयोग हो तथा
सामग्री अनुच्छेदों में विभाजित हो। उत्तर लिखने में आवश्यक गति बनाये रखें, जिससे निर्धारित
समय-सीमा में सम्पूर्ण प्रश्न-पत्र हल किया जा सके।
 
(14) प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लिखने से पहले उसकी प्रश्न-संख्या (खण्ड-संख्यासहित) अवश्य लिखें
और उत्तर की समाप्ति पर कुछ पंक्तियाँ छोड़ने के बाद ही दूसरे प्रश्न की प्रश्न संख्या लिखें, जिससे
दोनों प्रश्नों के उत्तर अलग-अलग दिखायी दें। सभी प्रश्नों के उत्तर लिखने के बाद एक बार पुनः
उनकी जाँच करनी चाहिए, जिससे कोई प्रश्न अनुत्तरित अथवा त्रुटिपूर्ण न रह जाए।
 
(15) हिन्दी के एकमात्र प्रश्न-पत्र के अन्तर्गत कुल 45 अंकों के प्रश्न वस्तुनिष्ठ, अतिलघु उत्तरीय व लघु
उत्तरीय प्रकार के होते हैं। इनके लिए विद्यार्थी को न्यूनतम 1 पंक्ति और अधिकतम 5-6 पंक्तियाँ
लिखनी होती हैं। इनमें उसे शत-प्रतिशत अंक प्राप्त हो सकते हैं। अत: सर्वप्रथम विद्यार्थियों को इन
प्रश्नों के उत्तर ही लिखने चाहिए। इनमें अंकों का विभाजन अग्रवत् है―
हिन्दी गद्य का विकास : 5 अंक, पद्य साहित्य का इतिहास : 5 अंक, गद्यांश का सन्दर्भ : 2 अंक,
पद्यांश का सन्दर्भ : 2 अंक, संस्कृत खण्ड से गद्यांश या श्लोक का अनुवाद (ससन्दर्भ): 5 अंक,
रस् छन्द्; अलंकार : 6 अंक, संस्कृत-खण्ड के निर्धारित पाठों से अतिलघु उत्तरीय प्रश्न : 2 अंक,
श्लोक-लेखन : 2 अंक, सन्धि; शब्द-धातु रूप : 6 अंक, हिन्दी के दो वाक्यों का संस्कृत में
अनुवाद् : 2 अंक, वर्तनी; विराम-चिह्न; तद्भव-तत्सम; विलोम; पर्यायवाची शब्द समास; मुहावरे
व लोकोक्तियाँ : 8 अंक। इन समस्त प्रश्नों से सम्बन्धित सामग्री का अभ्यास छात्रों को सत्र के
प्रारम्भ से ही करना चाहिए, जिससे परीक्षा के समय उन्हें कोई परेशानी न आये।
निष्कर्ष रूप से कहा जा सकता है कि 60% अंक तो विद्यार्थी ऊपर उल्लिखित प्रश्नों को हल करके
ही प्राप्त कर सकते है।
 
(16) उपर्युक्त (क्रम् 15) के पश्चात् विद्यार्थियों को-लेखक-परिचय : 3 अंक, कवि-परिचय :
3 अंक, पत्र-लेखन : 4 अंक, एकांकी-खण्ड: 3 अंक के प्रश्नों के उत्तर लिखने चाहिए। इनके
लिए कुल 13 अंक निर्धारित हैं। इनके उत्तर अधिक-से-अधिक पन्द्रह-बीस पंक्तियों के एक
अनुच्छेद में लिखे जा सकते हैं। इनमें विद्यार्थी को कुल 8-10 अंकों तक प्राप्त हो सकते हैं।
 
(17) क्रम 15 व 16 में उल्लिखित प्रश्नों के उत्तर लिखने के उपरान्त ही; विद्यार्थी इन प्रश्नों का लेखन
करें-गद्यांश के रेखांकित अंश की व्याख्या व एक तथ्यपरक प्रश्न : 6 अंक तथा पद्यांश की
व्याख्या व काव्य-सौन्दर्य : 6 अंक। इनके लिए कुल 12 अंक निर्धारित हैं। इनमें विद्यार्थी को सबसे
अधिक लिखना है और इनका सर्वोत्कृष्ट लेखन भी विद्यार्थी को 10 अंकों की प्राप्ति ही करा सकेगा।
 
(18) बहुधा छात्र हिन्दी विषय के अध्ययन पर बिल्कुल ध्यान नहीं देते। वे अधिक अंकों के लिए विज्ञान
अथवा गणित विषयों के अध्ययन पर ही विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित करते हैं लेकिन उन्हें यह ध्यान
में रखना चाहिए कि हिन्दी विषय का मात्र 1 घण्टे का नियमित अध्ययन उन्हें कम-से-कम 90%
अंकों की प्राप्ति सुनिश्चित करता है। माध्यमिक शिक्षा परिषद्, उ०प्र० द्वारा निर्धारित नयी मूल्यांकन
प्रणाली के अनुसार हिन्दी में उत्तीर्ण होना अति आवश्यक भी है।

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