UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 6 अजन्ता (गद्य खंड)
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 6 अजन्ता (गद्य खंड)
जीवन-परिचय एवं कृतियाँ
प्रश्न 1.
भगवतशरण उपाध्याय के जीवन-परिचय एवं साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डालिए। [2009, 10]
या
भगवतशरण उपाध्याय का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी एक रचना का नामोल्लेख कीजिए। [2011, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
उत्तर
संस्कृत-साहित्य तथा पुरातत्त्व के समर्थ अध्येता एवं हिन्दी-साहित्य के प्रसिद्ध उन्नायक भगवतशरण उपाध्याय अपने मौलिक और स्वतन्त्र विचारों के लिए प्रसिद्ध हैं। ये प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति के प्रमुख अध्येता और व्याख्याकार होते हुए भी रूढ़िवादिता एवं परम्परावादिता से ऊपर रहे हैं।
जीवन-परिचय-भगवतशरण उपाध्याय का जन्म सन् 1910 ई० में बलिया (उत्तर प्रदेश) जिले के ‘उजियारपुर’ नामक ग्राम में हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा अपने ग्राम में हुई। उच्च शिक्षा-प्राप्ति के लिए ये बनारस आये और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से प्राचीन इतिहास में एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। ये संस्कृत-साहित्य और पुरातत्त्व के अध्येता तथा हिन्दी-साहित्य के उन्नायक रहे हैं। ये प्रयाग एवं लखनऊ संग्रहालयों के पुरातत्त्व विभाग के अध्यक्ष भी रहे हैं। इन्होंने पिलानी स्थित बिड़ला महाविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर भी कार्य किया। तत्पश्चात् विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में प्राचीन इतिहास विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष पद पर कार्य करके अवकाश ग्रहण किया और देहरादून में स्थायी रूप से निवास करते हुए साहित्य-सेवा में जुट गये। अगस्त, सन् 1982 ई० में इसे मनीषी साहित्यकार ने इस असारे संसार से विदा ले ली।
रचनाएँ–उपाध्याय जी ने हिन्दी में तो विपुल साहित्य की रचना की ही है, किन्तु अंग्रेजी में भी इनकी कुछ एक प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। इनकी उल्लेखनीय रचनाएँ निम्नलिखित हैं
- पुरातत्त्व-‘मन्दिर और भवन’, ‘भारतीय मूर्तिकला की कहानी’, ‘भारतीय चित्रकला की कहानी’, ‘कालिदास का भारत’। इन पुस्तकों में प्राचीन भारतीय संस्कृति, साहित्य और कला का सूक्ष्म वर्णन हुआ है।। |
- इतिहास–‘खून के छींटे’, ‘इतिहास साक्षी है’, ‘इतिहास के पन्नों पर’, ‘प्राचीन भारत का इतिहास’, ‘साम्राज्यों के उत्थान-पतन’ आदि। इन पुस्तकों में प्राचीन इतिहास को साहित्यिक सरसता के साथ प्रस्तुत किया गया है।
- आलोचना-‘विश्व साहित्य की रूपरेखा’, ‘साहित्य और कला’, ‘कालिदास’ आदि। इन ग्रन्थों में साहित्य के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला गया है। |
- यात्रा-वृत्तान्त-‘कलकत्ता से पीकिंग’, ‘सागर की लहरों पर’, ‘मैंने देखा लाल चीन’ आदि। इनमें इनकी विदेश-यात्राओं का सजीव विवरण है।
- संस्मरण और रेखाचित्र--‘मैंने देखा’, ‘इँठा आम’। इनमें स्मृति के साथ-साथ संवेदना के रंगों से भरे सजीव शब्द-चित्र उभारे गये हैं।
- अंग्रेजी ग्रन्थ-‘इण्डिया इन कालिदास’, ‘वीमेन इन ऋग्वेद’ तथा ‘एंशियेण्ट इण्डिया’।
साहित्य में स्थान-उपाध्याय जी पुरातत्त्व और संस्कृति के महान् विद्वान् हैं। उन्होंने अपने गम्भीर और सूक्ष्म अध्ययन को अपनी रचनाओं में साकार रूप प्रदान किया है। वे हिन्दी के पुरातत्त्वविद्, भारतीय
संस्कृति के अध्येता, रेखाचित्रकार और महान् शैलीकार थे। विदेशों में दिये गये उनके व्याख्यान हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं। इन्होंने सौ से भी अधिक पुस्तकें लिखकर हिन्दी-साहित्य में अपना उल्लेखनीय स्थान बनाया है।
गद्यांशों पर आधारित प्रश्न
प्रश्न-पत्र में केवल 3 प्रश्न (अ, ब, स) ही पूछे जाएँगे। अतिरिक्त प्रश्न अभ्यास एवं परीक्षोपयोगी दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण दिए गये हैं।
प्रश्न 1.
जिन्दगी को मौत के पंजों से मुक्त कर उसे अमर बनाने के लिए आदमी ने पहाड़ काटा है। किस तरह इंसान की खूबियों की कहानी सदियों बाद आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचायी जाए, इसके लिए आदमी ने कितने ही उपाय सोचे और किये। उसने चट्टानों पर अपने संदेश खोदे, ताड़ों-से ऊँचे धातुओं-से चिकने पत्थर के खम्भे खड़े किये, ताँबे और पीतल के पत्तरों पर अक्षरों के मोती बिखेरे और उसके जीवन-मरण की कहानी सदियों के उतार पर सरकती चली आयी, चली आ रही है, जो आज हमारी अमानत-विरासत बन गयी है। [2011]
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(स)
- प्रस्तुत गद्यांश में लेखक क्या कहना चाहता है ?
- व्यक्ति ने आगामी पीढ़ी तक अपनी बातों को पहुँचाने के लिए क्या-क्या किया है ?
- आगामी पीढ़ी तक पहुँचायी गयी बातें आज हमारे लिए क्या स्थान रखती हैं ?
- लेखक की दृष्टि में अजन्ता की गुफाओं के निर्माण का क्या उद्देश्य रहा है ?
[ सरकती = फिसलती। अमानत = सुरक्षित रखने के लिए दी गयी वस्तु, धरोहर। विरासत = पूर्वजों से। प्राप्त सम्पत्ति या गुण, उत्तराधिकार।]
उत्तर
(अ) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘गद्य-खण्ड’ में संकलित तथा भारतीय पुरातत्त्व के महान् विद्वान् श्री भगवतशरण उपाध्याय द्वारा लिखित ‘अजन्ता’ शीर्षक निबन्ध से उद्धृत है। अथवा निम्नवत् लिखेंपाठ का नाम-अजन्ता। लेखक का नाम—भगवतशरण उपाध्याय।।
[विशेष—इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के प्रश्न ‘अ’ के लिए यही उत्तर इसी रूप में लिखा जाएगा।]
(ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्यो-मनुष्य का जीवन क्षणभंगुर है। मृत्यु सबको निगल जाती है। मृत्यु से छुटकारा पाने का एक ही उपाय है, वह है कृति (रचना)। मनुष्य को कुछ ऐसी रचना कर देनी चाहिए, जो अनन्तकाल तक स्थायी रहे। जब तक वह रचना विद्यमान रहेगी, उसके रचयिता का नाम जीवित रहेगा। लोग उसे भी याद करेंगे। किसी व्यक्ति विशेष को अगली पीढ़ियाँ जानें और सैकड़ों-हजारों वर्षों के बाद आने वाली पीढ़ियाँ भी अपने महान् पूर्वजों की विशेषताओं और इतिहास से परिचित हों, इसके लिए मनुष्य ने अनेक उपाय सोचे और उन उपायों को कार्यरूप में परिणत भी किया।
द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या–लेखक का कहना है कि अपनी बातों को अग्रिम पीढ़ी तक पहुँचाने के उद्देश्य से मनुष्य ने पत्थर की विशाल चट्टानों पर सन्देश खुदवाये जिससे आने वाली सन्तति उन्हें पढ़े और जाने। कभी मनुष्य ने ताड़ के वृक्षों के समान ऊँचे चिकने पत्थरों से स्तम्भ बनवाये तथा ताँबे और पीतल के पत्रों पर सुन्दर मोती जैसे अक्षरों में लेख लिखवाये जो आगे आने वाली पीढ़ियों को उनके पूर्वजों की कहानी सुनाएँ। इसी प्रकार मानव-जाति का इतिहास एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चला आ रहा है। ये पहाड़ों की गुफाएँ, चट्टान, स्तम्भ तथा लेख आज हमारे समाज की धरोहर हैं। ये हमारे पूर्वजों की परम्परा से चली आती हुई हमारी सम्पत्ति हैं। हम इन पर गर्व करते हैं।
(स)
- प्रस्तुत गद्यांश में लेखक कहना चाहता है कि अमरत्व प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को कला का सहारा लेना चाहिए।
- अपनी बातों को आगामी पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए व्यक्ति ने पत्थर की चट्टानों पर सन्देश खुदवाये, ऊँचे-चिकने पत्थरों के खम्भे बनवाये, ताँबे-पीतल के पत्रों पर लेख लिखवाये तथा पर्वतों पर गुफा-मन्दिर बनवाये।
- आगामी पीढ़ी तक विभिन्न माध्यमों से पहुँचायी गयी बातें आज हमारे लिए धरोहर को स्थान रखती हैं, जो पूर्वजों की परम्परा से आयी हमारी सम्पत्ति हैं।
- लेखक की दृष्टि में अजन्ता की गुफाओं के निर्माण का उद्देश्य यह है कि सैकड़ों-हजारों वर्षों के बाद आने वाली पीढ़ियाँ भी अपने पूर्वजों की विशेषताओं और अपने देश के इतिहास से परिचित हो सकें।
प्रश्न 2.
जैसे संगसाजों ने उन गुफाओं पर रौनक बरसायी है, चितेरे जैसे रंग और रेखा में दर्द और दया की कहानी लिखते गये हैं, कलावन्त छेनी से मूरतें उभारते-कोरते गये हैं, वैसे ही अजन्ता पर कुदरत का नूर बरस पड़ा है, प्रकृति भी वहाँ थिरक उठी है। बम्बई के सूबे में बम्बई और हैदराबाद के बीच, विन्ध्याचल के पूरब-पश्चिम दौड़ती पर्वतमालाओं से निचौंधे पहाड़ों का एक सिलसिला उत्तर से दक्खिन चला गया है, जिसे सह्याद्रि कहते हैं। (2015)
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स)
- प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने किस स्थान का और कैसा चित्रण किया है ?
- अजन्ता के गुफा मन्दिर किस पहाड़ की श्रृंखला को सनाथ करते हैं ?
- सह्याद्रि की भौगोलिक स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
[ संगसाज = शिल्पी, पत्थरों पर चित्र कुरेदने वाले। रौनक = सुन्दरता। कलावन्त = कलाकार। कुदरत = प्रकृति। नूर = आभा, चमक। निचौंधे = नीचे का। गुहा = गुफा।]
उत्तर
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या-अजन्ता की गुफाओं को देखकर ऐसा लगता है कि पत्थरों को काटकर मूर्ति बनाने वाले कलाकारों ने इन गुफाओं में चारों ओर सौन्दर्य की वर्षा कर दी है। चित्रकारों ने रंगों और रेखाओं के माध्यम से पीड़ा और करुणा की भावनाओं को व्यक्त करने वाले सजीव चित्र अंकित कर दिये हैं। शिल्पकारों ने अपनी छेनी की चोटों से पत्थरों को काटकर और उभारकर सजीव मूर्तियाँ बना दी हैं। अजन्ता की गुफाओं में प्रकृति ने भी विशेष सौन्दर्य बरसाया है। ऐसा लगता है कि प्रकृति भी उस कलात्मक सौन्दर्य को देखकर आनन्द से नृत्य करने लगी है।
(स)
- प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने अजन्ता की गुफाओं के चारों ओर की प्राकृतिक वैभव की छटा, गुफाओं के पत्थरों पर भावपूर्ण चित्र एवं जीवन्त मूर्तियों का बड़ा सजीव, हृदयग्राही और आलंकारिक चित्रण किया है।
- अजन्ता के गुफा मन्दिर; जो देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र हैं; सह्याद्रि की पर्वतश्रृंखला को सनाथ करते हैं।
- बम्बई प्रदेश (स्वतन्त्रता पूर्व बम्बई एक प्रदेश था, अब महाराष्ट्र प्रदेश में मुम्बई नाम का एक महानगर) में बम्बई और हैदराबाद के मध्य में विन्ध्याचल की पूर्व-पश्चिम की ओर जाती हुई पर्वतश्रेणियों के नीचे से पर्वतों की एक श्रृंखला उत्तर से दक्षिण की ओर चली गयी है। इस पर्वत-श्रृंखला का नाम सह्याद्रि’ है। इसी पर्वत-श्रृंखला को लेखक ने पहाड़ी जंजीर कहा है। इसी पर अजन्ता के गुफा-मन्दिर स्थित हैं।
प्रश्न 3.
अजन्ता गाँव से थोड़ी दूर पर पहाड़ों के पैरों में साँप-सी लोटती बाधुर नदी कमान-सी मुड़ गयी है। वहीं पर्वत का सिलसिला एकाएक अर्द्धचन्द्राकार हो गया है, कोई दो-सौ पचास फुट ऊँचा हरे वनों के बीच मंच पर मंच की तरह उठते पहाड़ों का यह सिलसिला हमारे पुरखों को भा गया और उन्होंने उसे खोदकर भवनों-महलों से भर दिया। सोचिए, जरा ठोस पहाड़ की चट्टानी छाती और कमजोर इंसान का उन्होंने मेल जो किया, तो पर्वत का हिया दरकता चला गया और वहाँ एक-से-एक बरामदे, हॉल और मन्दिर बनते चले गये।
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स)
- प्रस्तुत गद्यांश में लेखक क्या कहना चाहता है ?
- अजन्ता की भौगोलिक स्थिति का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
[ अर्द्धचन्द्राकार = आधे चन्द्रमा के आकार का। पुरखे = पूर्वज। भा गया = अच्छा लगा।]
उत्तर
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक श्री भगवतशरण उपाध्याय जी का कहना है कि दो-सौ पचास फुट ऊँचे पर्वतों की अर्द्धचन्द्राकार पंक्ति हमारे पूर्वजों को बहुत अच्छी लगी और उन्होंने वहाँ पर्वतों को काट-छाँटकर भवन और महल बना दिये। विचार करके देखिए कि दुर्बल मनुष्य और कठोर चट्टानों का जो मेल हुआ उससे पर्वतों का हृदय कटता चला गया और वहाँ एक-से-एक सुन्दर बरामदे, हॉल और मन्दिरों का निर्माण होता चला गया। मनुष्य के दुर्बल हाथों ने पर्वतों की कठोर चट्टानों को काटकर सुन्दर भवन, उनके विभिन्न भाग और मन्दिरों का निर्माण कर डाला।
(स)
- प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि लगन और परिश्रम से मनुष्य कठिन से कठिन कार्य भी कर सकता है। ।
- अजन्ता गाँव से कुछ ही दूरी पर बाधुर नदी पर्वत की तलहटी में साँप की भाँति लोटती हुई धनुष के आकार में मुड़ गयी है। इसी स्थान पर पर्वत भी आधे चन्द्रमा के आकार के हो गये हैं। हरे-भरे वनों के बीच में ऐसा लगता है कि जैसे पर्वतों ने मंच के ऊपर मंच का निर्माण कर दिया हो।
प्रश्न 4.
पहले पहाड़ काटकर उसे खोखला कर दिया गया, फिर उसमें सुन्दर भवन बना लिए गए, जहाँ खंभों पर उमादी मूरतें विहँस उठीं। भीतर की समूची दीवारें और छतें रगड़कर चिकनी कर ली गयीं और तब उनकी जमीन पर चित्रों की एक दुनिया ही बसा दी गयी। पहले पलस्तर लगाकर आचार्यों ने उन पर लहराती रेखाओं में चित्रों की काया सिरज दी, फिर उनके चेले कलावन्तों ने उनमें रंग भरकर प्राण फेंक दिए। फिर तो दीवारें उमग उठीं, पहाड़ पुलकित हो उठे। [2014]
(अ) प्रस्तुत गद्यांश का सन्दर्भ (पाठ और लेखक का नाम) लिखिए।
(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(स) पहाड़ों को किस प्रकार जीवन्त बनाया गया?
[ मूरतें = मूर्तियाँ। विहँस = मुसकराना, खिलना। सिरजना = बनाना। कलावन्तों = कलाकारों। प्राण फेंक देना = जीवन्त बना देना।]
उत्तर
(ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक कहते हैं कि सर्वप्रथम गुफाओं के अन्दर की दीवारों और छतों को रगड़-रगड़कर अत्यधिक चिकना बना लिया गया। तत्पश्चात् उस चिकनी पृष्ठभूमि पर चित्रकारों के द्वारा अनेकानेक चित्र बना दिये गये, जिनको देखकर ऐसा लगता है। कि चित्रों की एक नयी दुनिया ही निर्मित कर दी गयी हो।।
द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या–प्रस्तुत गद्यांश में लेखक का कहना है कि गुफा की भीतरी दीवारों पर चित्रकारों के द्वारा विभिन्न चित्रों को बाहरी रेखाओं के द्वारा प्रदर्शित किया गया और उसके बाद उनके शिष्यों ने उन चित्रों को रँगकर ऐसा बना दिया कि वे सजीव लगने लगे।
(स) पहाड़ों को काटकर भवन का रूप दिया गया। दीवारों, छतों और खम्भों को चिकना कर उन पर सजीव चित्र निर्मित किये गये। चित्रों में रंग भी भरा गया। इस प्रकार पहाड़ों को जीवन्त बना दिया गया।
प्रश्न 5.
कितना जीवन बरस पड़ा है इन दीवारों पर; जैसे फसाने अजायब का भण्डार खुल पड़ा हो। कहानी से कहानी टकराती चली गयी है। बन्दरों की कहानी, हाथियों की कहानी, हिरनों की कहानी, क्रूरता और भय की, दया और त्याग की। जहाँ बेरहमी है, वहीं दया का भी समुद्र उमड़ पड़ा है। जहाँ पाप है, वहीं क्षमा की सोता फूट पड़ा है। राजा और कैंगले, विलासी और भिक्षु, नर और नारी, मनुष्य और पशु सभी कलाकारों के हाथों सिरजते चले गये हैं। हैवान की हैवानी को इंसान की इंसानियत से कैसे जीता जा सकता है, कोई अजन्ता में जाकर देखे। बुद्ध का जीवन हजार धाराओं में होकर बहता है। जन्म से लेकर निर्वाण तक उनके जीवन की प्रधान घटनाएँ कुछ ऐसे लिख दी गयी हैं कि आँखें अटक जाती हैं, हटने का नाम नहीं लेतीं। [2009, 12, 14, 17]
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(स)
- अजन्ता की दीवारों पर किनकी कहानियाँ चित्रित हैं ?
- अजन्ता की गुफाओं में किस महापुरुष के जीवन को विस्तार से चित्रित किया गया है?
- अजन्ता की गुफाओं में किन-किन विरोधी भावों और व्यक्तियों का चित्रण है ? या दीवारों पर बने चित्र किन-किन से सम्बन्धित हैं ?
- कलाकारों के हाथों क्या सिरजते चले गये हैं?
[ फसाने = कहानियाँ। बेरहमी = निर्दयता। सिरजना = बनाना। हैवान = क्रूर। हैवानी = क्रूरता। इंसान = मनुष्य। इंसानियत = मानवता।]
उत्तर
(ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या–प्रस्तुत गद्यांश में लेखक कहते हैं कि अजन्ता की गुफाओं की दीवारों पर बने चित्र इतने सुन्दर हैं कि उन्हें देखकर लगता है कि इन दीवारों पर मानो जीवन स्वयं ही उतर आया है। अजन्ता के इन भित्ति-चित्रों में आश्चर्यजनक कथा-कहानियाँ एक-दूसरे से जुड़ती हुई चली गयी हैं। इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि आश्चर्यजनक कथाओं का एक विशाल भण्डार ही यहाँ स्थित है। बन्दरों, हाथियों और हिरणों की चित्र-कथाओं द्वारा क्रूरता, भय, दया और त्याग की भावनाओं का यहाँ सजीव चित्रण हुआ है। किसी चित्र में क्रूरता है तो किसी में असीम दया की कहानी चित्रित है। कहीं पाप का दृश्य अंकित है तो कहीं क्षमा का भी दृश्य है।
द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या-श्री भगवतशरण उपाध्याय जी का कहना है कि अजन्ता की गुफाओं में राजा हो या दरिद्र, विलासी हो या भिखारी, पुरुष हो या स्त्री, मनुष्य हो या पशु कलाकारों ने इन सभी के चित्रों में रंग-रेखाओं के द्वारा जीवन भर दिया है और यह भाव व्यक्त किया है कि ‘असाधु साधुना जयेत्’ अर्थात् दुष्ट को सज्जनता से जीतना चाहिए, क्योंकि मानवता के सामने हैवानियत नतमस्तक हो जाती है। अजन्ता की गुफाओं में बने ऐसे चित्रों को देखकर कोई भी व्यक्ति सत्प्रेरणा ग्रहण कर सकता है।
(स)
- अजन्ता की दीवारों पर बन्दरों की, हाथियों की, हिरनों की, क्रूरता और भय की, दया और त्याग की कहानियाँ चित्रित हैं। ।
- अजन्ता की गुफाओं में भगवान् बुद्ध के सम्पूर्ण जीवन की; जन्म से लेकर निर्वाण तक; सभी प्रधान घटनाओं को इतनी खूबसूरती से चित्रित किया गया है कि उन चित्रों पर से आँखें हटती ही नहीं।
- अजन्ता की गुफा में बेरहमी और दया, पाप और क्षमा आदि विरोधी भावों का तथा राजा और रंक, विलासी और भिक्षु, नर और नारी, मनुष्य और पशु आदि विरोधी व्यक्तियों का चित्रण है।
- कलाकारों के हाथों राजा और रंक, विलासी और भिक्षु, नर और नारी, मनुष्य और पशु आदि विरोधी व्यक्तियों के चित्र सिरजते (बनते) चले गये हैं।
प्रश्न 6.
यह हाथ में कमल लिये बुद्ध खड़े हैं, जैसे छवि छलकी पड़ती है, उभरे नयनों की जोत पसरती जा रही है। और यह यशोधरा है, वैसे ही कमल-नाल धारण किये त्रिभंग में खड़ी। और यह दृश्य है। महाभिनिष्क्रमण का-यशोधरा और राहुल निद्रा में खोये, गौतम दृढ़ निश्चय पर धड़कते हिया को सँभालते। और यह नन्द है, अपनी पत्नी सुन्दरी का भेजा, द्वार पर आए बिना भिक्षा के लौटे भाई बुद्ध को जो लौटाने आया था और जिसे भिक्षु बन जाना पड़ा था। बार-बार वह भागने को होता है, बार-बार पकड़कर संघ में लौटा लिया जाता है। उधर वह यशोधरा है बालक राहुल के साथ। [2013]
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(स)
- प्रस्तुत गद्यांश में क्या वर्णित किया गया है ? या प्रस्तुत गद्यांश में कहाँ के दृश्यों का चित्रण किया गया है ?
- “महाभिनिष्क्रमण’ क्या है ? इसके दृश्य का विस्तृत वर्णन कीजिए।
(जोत = प्रकाश। त्रिभंग = शरीर को तीन जगह से टेढ़ा करके खड़ा होना। दृढ़ निश्चय = पक्का इरादा।]
उत्तर
(ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या–प्रस्तुत गद्यांश में लेखक भगवान् बुद्ध के घर त्यागते समय के अजन्ता के चित्रों का वर्णन करते हुए कहते हैं कि एक तरफ हाथ में कमल पकड़े हुए भगवान् बुद्ध खड़े हैं जिनका सौन्दर्य सर्वत्र छलककर बिखरता प्रतीत हो रहा है और उनकी आँखों का प्रकाश सर्वत्र फैल रहा है। उनकी पत्नी यशोधरा भी, वैसा ही कमल का फूल, कमल-नाल पकड़कर त्रिभंगी (तीन स्थान से बल पड़ी हुई) मुद्रा में खड़ी हुई चित्रित की गयी हैं। यह चित्र बड़ा ही जीवन्त लग रहा
द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या–प्रस्तुत गद्यांश में लेखक भगवान् बुद्ध के गृह-त्याग के पश्चात् भिक्षा माँगने के एक चित्र का वर्णन करते हुए कहते हैं कि एक चित्र में गौतम बुद्ध के साथ उनका भाई नन्द है, जो अपनी पत्नी सुन्दरी के द्वारा भेजा गया है गौतम बुद्ध को वापस लौटा लाने के लिए। सुन्दरी ने भिक्षा माँगने आए गौतम बुद्ध को बिना भिक्षा दिये द्वार से ही वापस कर दिया था। लेकिन नन्द बुद्ध को वापसे तो नहीं लौटा पाता वरन् उनके उपदेशों से प्रभावित होकर स्वयं भिक्षु बन जाता है।
(स)
- प्रस्तुत गद्यांश में अजन्ता की गुफाओं में चित्रित भगवान् बुद्ध के महाभिनिष्क्रमण (गृह-त्याग) के दृश्य का चित्र-रूप में अत्यधिक भावात्मक और विस्तृत वर्णन किया गया है।
- संसार से वैराग्य होने पर शान्ति की खोज जैसे महान् उद्देश्य के लिए गौतम बुद्ध द्वारा अपनी पत्नी, पुत्र, परिवार और राजप्रासाद को त्यागकर निष्क्रमण कर जाने की क्रिया ‘महाभिनिष्क्रमण’ कहलायी। इस चित्र में गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को निद्रामग्न और गौतम बुद्ध को अपने धड़कते हृदय को सँभालते हुए गृह-त्याग की दृढ़ निश्चयी मुद्रा में चित्रित किया गया है। .
प्रश्न 7.
और उधर वह बन्दरों का चित्र है, कितना सजीव-कितना गतिमान्। उधर सरोवर में जल-विहार करता वह गजराज कमलदण्ड तोड़-तोड़कर हथिनियों को दे रहा है। वहाँ महलों में प्यालों के दौर चल रहे हैं, उधर वह रानी अपनी जीवन-यात्रा समाप्त कर रही है, उसका दम टूटा जा रहा है। खाने-खिलाने, बसने-बसाने, नाचने-गाने, कहने-सुनने, वन-नगर, ऊँच-नीच, धनी-गरीब के जितने नज़ारे हो सकते हैं, सब आदमी अजन्ता की गुफाओं की इन दीवारों पर देख सकता है। [2012]
(अ) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स) आदमी अजन्ता की गुफाओं की दीवारों पर क्या देख सकता हैं ?
[ सरोवर = तालाब। गजराज = हाथियों का राजा।]
उत्तर
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या–प्रस्तुत गद्यांश में लेखक अजन्ता की गुफाओं में चित्रित चित्रों का वर्णन करते हुए लिख रहे हैं कि गुफा में एक ओर सरोवर में जल-क्रीड़ा करते हुए गजराज और हथिनियों को चित्रित किया है, जिसमें वह सरोवर में उगे हुए कमल-नाल को तोड़कर साथ में क्रीड़ा करने वाली हथिनियों को दे रहा है तो दूसरे चित्र में महलों में मनाये जाने वाले किसी उत्सव का चित्रण है। इस चित्र में लोगों को मद्यपान करते हुए दिखाया गया है। जहाँ एक ओर महल में कुछ लोग जश्न मना रहे हैं तो दूसरी ओर एक रानी को प्राण-त्याग करते हुए दर्शाया गया है। यह चित्र इतना सजीव है कि ऐसा प्रतीत होता है कि उसकी जीवन-लीला अब समाप्त होने ही वाली है। ऐसे सजीव दृश्य अजन्ता की गुफा की दीवारों पर ही देखे जा सकते हैं, अन्यत्र कहीं नहीं।
(स) व्यक्ति अजन्ता की गुफा की दीवारों पर खाने-खिलाने, बसने-बसाने, नाचने-गाने, कहने-सुनने, वन-नगर, ऊँच-नीच, अमीर-गरीब से सम्बन्धित जितने भी सम्भव दृश्य हो सकते हैं, उन सभी को देख सकता है। |
प्रश्न 8.
इन पिछले जन्मों में बुद्ध ने गज, कपि, मृग आदि के रूप में विविध योनियों में जन्म लिया था और संसार के कल्याण के लिए दया और त्याग का आदर्श स्थापित करते वे बलिदान हो गये थे। उन स्थितियों में किस प्रकार पशुओं तक ने मानवोचित व्यवहार किया था, किस प्रकार औचित्य का पालन किया था, यह सब उन चित्रों में असाधारण खूबी से दर्शाया गया है और उन्हीं को दर्शाते समय चितेरों ने अपनी । जानकारी की गाँठ खोल दी है। [2013]
(अ) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए। (ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(स) अपनी जानकारी की गाँठ खोलने का क्या आशय है ?
[कपि = बन्दर। औचित्य = उचित होने का भाव। चितेरों = चित्रकारों। गाँठ खोलना = बात प्रकट करना।]
उत्तर
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या–प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने अजन्ता की गुफाओं में चित्रित चित्रों का वर्णन किया है। बुद्ध के अनेक योनियों में जन्म लेने की कथा ‘जातक’ नामक ग्रन्थ में वर्णित है। वे लिखते हैं कि जब बुद्ध का जन्म विविध जानवरों की योनियों में हुआ था, उस समय विद्यमान अन्य जानवरों ने भी ऐसा व्यवहार किया था, जो कि मनुष्यों के लिए उचित हो। उन सभी ने किस प्रकार औचित्य अथवा उपयुक्तता का निर्वाह किया था यह सब कुछ अजन्ता के चित्रों में अत्यधिक खूबी के साथ चित्रित किया गया है। आशय यह है कि बुद्ध के पूर्वजन्मों के समस्त विवरणों का विशेष चित्रांकन किया गया है।
(स) अपनी जानकारी की गाँठ खोलने का आशय यह है कि अपने ज्ञान को विस्तार से प्रकट कर देना।।
प्रश्न 9.
अजन्ता संसार की चित्रकलाओं में अपना अद्वितीय स्थान रखता है। इतने प्राचीन काल के इतने सजीव, इतने गतिमान, इतने बहुसंख्यक कथा-प्राण चित्र कहीं नहीं बने। अजन्ता के चित्रों ने देश-विदेश सर्वत्र की चित्रकला को प्रभावित किया। उसका प्रभाव पूर्व के देशों की कला पर तो पड़ा हीं, मध्य-पश्चिमी एशिया भी उसके कल्याणकर प्रभाव से वंचित न रह सका। [2014]
(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
(स) अजन्ती की कला का प्रभाव किन-किन देशों पर पड़ा ? या अजन्ता की चित्रकला का बाहर के देशों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर
(ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक का कथन है कि अजन्ता की चित्रकला अद्भुत और बेजोड़ है। संसार में उसका उपमान नहीं है। निस्सन्देह, विश्व में चित्रकला का यह सर्वोत्कृष्ट नमूना है। दुनिया में कोई दूसरा ऐसा स्थान नहीं, जहाँ इतने प्राचीन और इतने सजीव चित्र पाये जाते हों। ऐसी कोई चित्रशाला नहीं, जहाँ ऐसे गतिशील तथा इतनी बड़ी संख्या में चित्र मिलते हों, जिनमें कथाओं को चित्रित कर दिया गया हो। ऐसे स्थान समस्त संसार में दुर्लभ हैं। इसीलिए देश और विदेश की चित्रकलाओं पर अजन्ता की चित्रकला का विशेष प्रभाव पड़ा है।
द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या–प्रस्तुत गद्यांश में लेखक का कहना है कि अजन्ता की चित्रकला का विशेष प्रभाव अपने देश पर ही नहीं विदेश की चित्रकलाओं पर भी पड़ा है। चीन, जापान, इण्डोनेशिया आदि पूर्व के देशों में इसके जैसे प्रयोग स्पष्ट रूप से देखने को मिलते हैं। साथ ही ईरान, मिस्र आदि मध्य-पश्चिमी एशिया के देशों की चित्रकला भी इसके प्रभाव से अपने को मुक्त नहीं कर सकी है।
(स) अजन्ता की कला का प्रभाव चीन, जापान, इण्डोनेशिया आदि पूर्व के देशों के साथ-साथ ईरान, मिस्र आदि मध्य-पश्चिमी एशिया के देशों की चित्रकला पर भी पर्याप्त रूप से पड़ा।
व्याकरण एवं रचना-बोध
प्रश्न 1
निम्नलिखित शब्दों से उपसर्ग पृथक् कीजिए-
सन्देश, अभिराम, सनाथ, विहँस, बेरहमी, अद्वितीय।।
उत्तर
प्रश्न 2
निम्नलिखित उपसर्गों के योग से तीन-तीन शब्दों की रचना कीजिए-
अति, उप, सु, वि, परि, अ।
उत्तर
प्रश्न 3
प्रत्ययरहित और प्रत्ययसहित शब्द-युग्म यहाँ दिये जा रहे हैं। इनका स्वरचित वाक्यों में इस प्रकार प्रयोग कीजिए कि इनके अर्थ का अन्तर स्पष्ट हो जाए।
कला-कलावन्त, हैवान-हैवानी, इंसान-इंसानियत, सुरक्षा-सुरक्षित, कल्याण-कल्याणकर।
उत्तर
कला-कलावन्त–कला की उपासना को कलावन्त अपना धर्म मानते हैं।
हैवान-हैवानी-हैवान की हैवानी के सम्मुख सभी विवश हो जाते हैं।
इंसान-इंसानियत-इंसान को कभी भी इंसानियत नहीं छोड़नी चाहिए।
सुरक्षा-सुरक्षित–कड़ी सुरक्षा-व्यवस्था के बावजूद मन्त्री जी, सुरक्षित नहीं रह सके।
कल्याण-कल्याणकर-केवल कल्याणकर योजनाएँ बनाकर ही समाज का कल्याण नहीं हो सकता।