UP Board Class 10 Political Science | लोकतंत्र के परिणाम

By | April 27, 2021

UP Board Class 10 Political Science | लोकतंत्र के परिणाम

UP Board Solutions for Class 10 sst Political Science Chapter 7 लोकतंत्र के परिणाम

अध्याय 7.                      लोकतंत्र के परिणाम
 
                        अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर
 
(क) एन०सी०ई० आर०टी० पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न
प्रश्न 1. लोकतंत्र किस तरह उत्तरदायी, जिम्मेवार और वैध सरकार का गठन करता है?
उत्तर―लोकतांत्रिक व्यवस्था उत्तरदायी, जिम्मेवार और वैध सरकार का गठन करती है। निम्नलिखित
तत्त्वों से इसे समझा जा सकता है―
1. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव―सभी लोकतांत्रिक देशों में एक निश्चित अवधि के बाद चुनाव कराए
जाते हैं। ये चुनाव निष्पक्ष होते हैं। सभी दल स्वतंत्र रूप से अपने उम्मीदवारों को खड़ा करते हैं और
मतदाता अपनी इच्छानुसार किसी को भी चुन सकते हैं। ये प्रतिनिधि जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं
और जनता की इच्छा पर्यंत अपने पद पर बने रहते हैं।
 
2. कानूनों पर खुली चर्चा―लोकतांत्रिक देशों में सरकार जो भी कानून बनाती है वह एक लंबी
प्रक्रिया के बाद बनता है। उस पर पूरी बहस तथा विचार-विमर्श किया जाता है फिर उसे जनता के
समक्ष रखा जाता है। इसलिए इस बात की संभावना होती है कि लोग उसके फैसलों को मानेंगे और
वे ज्यादा प्रभावी होंगे।
 
3. सूचना का अधिकार―लोकतांत्रिक देशों में नागरिकों को सरकार तथा काम-काज के बारे में
जानकारी पाने का अधिकार प्राप्त है। यदि कोई नागरिक यह जानना चाहे कि फैसले लेने में नियमों
का पालन हुआ है या नहीं तो वह इसका पता कर सकता है। उसे यह न सिर्फ जानने का अधिकार है
बल्कि उसके पास इसके साधन भी उपलब्ध हैं।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक ऐसी सरकार का गठन होता है जो कायदे-कानून को मानती है और लोगों के
प्रति जवाबदेह होती है। लोकतांत्रिक सरकार नागरिकों को निर्णय प्रक्रिया में हिस्सेदार बनाने और खुद को
उनके प्रति जवाबदेह बनाने वाली कार्यविधि भी विकसित कर लेती है। इस प्रकार लोकतांत्रिक शासन
व्यवस्था निश्चित रूप से अन्य शासनों से बेहतर है, यह वैध शासन व्यवस्था है, इसलिए पूरी दुनिया में
लोकतंत्र के विचार के प्रति समर्थन का भाव है।
 
प्रश्न 2. लोकतंत्र किन स्थितियों में सामाजिक विविधता को सँभालता है और उनके बीच सामंजस्य
बैठाता है?
उत्तर―लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ अनेक तरह के सामाजिक विभाजनों को सँभालती हैं। इससे इन
टकरावों के विस्फोटक या हिंसक रूप लेने का अंदेशा कम हो जाता है। कोई भी समाज अपने विभिन्न समूहों
के बीच के टकरावों को स्थायी तौर पर खत्म नहीं कर सकता। इनके बीच बातचीत से सामंजस्य बैठाने का
तरीका विकसित कर सकते हैं। सामाजिक अंतर, विभाजन और टकरावों को सँभालना निश्चित रूप से
लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक बड़ा गुण है। इसके लिए लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं की दो शर्तों को पूरा करना
होता है―
1. लोकतंत्र का अर्थ बहुमत की राय से शासन करना नहीं है। बहुमत को सदा ही अल्पमत का ध्यान
रखना होता है। उनके साथ काम करने की जरूरत होती है तभी सरकार जन-सामान्य की इच्छा का
प्रतिनिधित्व कर पाती है। बहमत और अल्पमत की राय कोई स्थायी चीज नहीं होती।
 
2. बहुमत के शासन का अर्थ धर्म, नस्ल अथवा भाषायी आधार के बहुसंख्यक समूह का शासन नहीं
होता। बहुमत के शासन का मतलब होता है कि हर फैसले या चुनाव में अलग-अलग लोग और
समूह बहुमत का निर्माण कर सकते हैं। लोकतंत्र तभी तक लोकतंत्र रहता है जब तक प्रत्यार
नागरिक को किसी-न-किसी अवसर पर बहुमत का हिस्सा बनने का मौका मिलता है।
 
प्रश्न 3. निम्नलिखित कथनों के पक्ष या विपक्ष में तर्क दें―
● औद्योगिक देश ही लोकतांत्रिक व्यवस्था का भार उठा सकते हैं पर गरीब देशों को आर्थिक विकास
करने के लिए तानाशाही चाहिए।
● लोकतंत्र अपने नागरिकों के बीच की असमानता को कम नहीं कर सकता।
● गरीब देशों की सरकार को अपने ज्यादा संसाधन गरीबी को कम करने और आहार, कपड़ा,
स्वास्थ्य तथा शिक्षा पर लगाने की जगह उद्योगों और बुनियादी आर्थिक ढाँचे पर खर्च करने
चाहिए।
● नागरिकों के बीच आर्थिक समानता अमीर और गरीब, दोनों तरह के लोकतांत्रिक देशों में है।
● लोकतंत्र में सभी को एक ही वोट का अधिकार है। इसका मतलब है कि लोकतंत्र में किसी तरह का
प्रभुत्व और टकराव नहीं होता।
उत्तर―
● विपक्ष में तर्क―प्रश्न में उल्लिखित कथन सर्वथा गलत है। यह सही है कि लोकतंत्र में चुनावों
एवं सरकार के रख-रखाव पर ज्यादा धन खर्च होता है, परन्तु तानाशाही अथवा राजतंत्र भी कम
खर्चीला नहीं है इसमें राजा तथा उनके सहयोगियों के रख-रखाव पर भी बहुत ज्यादा खर्च होता है।
गरीब देशों में आर्थिक विकास का सूत्रधार लोकतांत्रिक सरकार ही है। उदाहरण के लिए, भारत
जैसे अविकसित देश में लोकतंत्र अपनाकर विकास की सीढ़ियाँ चढ़ रहा है। इसके विपरीत,
अफ्रीकी देशों की तानाशाही सरकार देखें तो वे बदतर स्थिति में हैं।
● पक्ष में तर्क―लोकतंत्र अपने नागरिकों के मध्य असमानता को कम नहीं कर सकता। यह कथन
पूर्णत: सही है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक समानता तो स्थापित हो जाती है क्योंकि सबको
बिना किसी भेदभाव के राजनीतिक अधिकार मिलते हैं, परन्तु आर्थिक असमानता का हल अभी
तक नहीं मिल सका है। आय के साधन कुछ ही लोगों के हाथों में केन्द्रित होते हैं। भारत में आज भी
हजारों-करोड़ों लोग गरीबी की रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं। अमीर दिन-प्रतिदिन और
अमीर होते जा रहे हैं तो गरीब और गरीब होते जा रहे हैं। इसलिए सरकार को गरीबों के उत्थान के
लिए प्रत्यक्ष कार्यक्रमों पर कार्य करना चाहिए तभी इसकी दशा सुधर सकती है।
● विपक्ष में तर्क―प्रश्न में उल्लिखित कथन से मैं पूर्णत: असहमत हूँ। गरीब देशों को अपना सारा
ध्यान गरीबी उन्मूलन पर लगाना चाहिए ताकि इससे देश के लोगों के जीवन-स्तर को सुधारा जा
सके। उद्योगों और बुनियादी ढाँचे पर धन खर्च करने से उसका लाभ गरीबों तक नहीं पहुँचता, जैसा
कि भारत में शुरुआती पंचवर्षीय योजनाओं के समय हुआ।
● पक्ष में तर्क नागरिकों के मध्य आर्थिक असमानताएँ अमीर एवं गरीब दोनों प्रकार के देशों में
व्याप्त है।
● विपक्ष में तर्क―प्रश्न में उल्लिखित कथन से मैं पूर्णतः असहमत हूँ। लोकतंत्र में सबको एक ही
वोट देने का अधिकार है। इससे यह स्पष्ट नहीं होता कि लोकतंत्र टकरावरहित है। समान आधार
पर मत का अधिकार राजनीतिक समानता स्थापित करने का प्रयास मात्र है। आर्थिक असमानता
समाज में विद्यमान रहती है। इसके अलावा अन्य कई तत्त्व हैं जो समाज के विभिन्न वर्गों के मध्य
टकराव उत्पन्न करते हैं; जैसे-जाति, धर्म इत्यादि। अतः विभिन्न वर्गों में अपने-अपने हितों के
लिए सामान्यतः टकराव होते ही रहते हैं।
 
प्रश्न 4. नीचे दिए गए ब्यौरों में लोकतंत्र की चुनौतियों की पहचान करें। ये स्थितियाँ किस तरह
नागरिकों के गरिमापूर्ण, सुरक्षित और शांतिपूर्ण जीवन के लिए चुनौती पेश करती हैं।
लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए नीतिगत संस्थागत उपाय भी सुझाएँ-
● उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद ओडिशा में दलितों और गैर-दलितों के प्रवेश के लिए
अलग-अलग दरवाजा रखने वाले एक मंदिर को एक ही दरवाजे से सबको प्रवेश की
अनुमति देनी पड़ी।
● भारत के विभिन्न राज्यों में बड़ी संख्या में किसान आत्महत्या कर रहे हैं।
● जम्मू-कश्मीर के गंडवारा में मुठभेड़ बताकर जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा तीन नागरिकों की
हत्या करने के आरोप को देखते हुए इस घटना के जाँच के आदेश दिए गए।
उत्तर―
● पहली घटना में जातिवाद की चुनौती लोकतंत्र के सामने है। इसी वजह से समाज में रहने वाले कुछ
लोगों को अपमान झेलना पड़ता है। जिन जातियों को नीची अथवा दलित कहा जाता है उन्हें जीवन
की मूलभूत सुविधाओं से परे रखा जाता है जो लोकतंत्र के खिलाफ है। ऐसे में लोकतंत्र को मजबूत
करने के लिए कानून बनाकर, उन्हें सख्ती लागू करके जातिवाद की समस्या से छुटकारा पाना
होगा।
● दूसरी घटना में लोकतंत्र के सामने गरीबी मुख्य चुनौती है। गरीबी की वजह से किसान कर्ज में
डूबता चला जाता है तथा जब वह कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं होता तो वह आत्महत्या का मार्ग
अपनाता है। लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए सरकार को इन गरीब किसानों की सहायता करनी
होगी, उन्हें कर्ज देने के लिए गाँवों में सरकारी बैंकों की स्थापना करनी होगी और कृषि के लिए
आवश्यक चीजें कम मूल्य पर उपलब्ध करानी होगी। जब तक गरीबी रहेगी तब तक लोकतंत्र
मजबूत नहीं हो सकता क्योंकि एक गरीब व्यक्ति केवल दो समय की रोटी के पैसे जुटाने में लगा
रहेगा। वह देश के हित में कुछ भी नहीं कर पाएगा।
● तीसरी घटना में सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार लोकतंत्र के सम्मुख एक चुनौती है।
लोकतांत्रिक देशों में विभिन्न स्तरों पर भ्रष्टाचार का बोलबाला है जिससे सत्ता में आए लोग अपनी
सत्ता का प्रयोग अपने स्वहित के लिए करने लगते हैं। इससे नागरिकों का जीवन, सम्पत्ति संकट में
पड़ जाते हैं। वे सरकारी अधिकारी जिनका काम नागरिकों की सेवा करना है वे नागरिकों के दुश्मन
बन जाते हैं। ऐसे में लोकतांत्रिक शासन की नींव हिल जाती है। लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए
हर स्तर से भ्रष्टाचार को समाप्त करना होगा। इसके लिए कानून बनाने होंगे। उन्हें कठोरता से लागू
करना होगा तथा सरकारी पदों पर नियुक्ति के समय निष्पक्षता से काम लेना होगा जिससे सही
लोगों को महत्त्वपूर्ण पद प्राप्त हो सकें।
 
प्रश्न 5. लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के संदर्भ में इनमें से कौन-सा विचार सही है? लोकतांत्रिक
व्यवस्थाओं ने सफलतापूर्वक―
● लोगों के बीच टकराव को समाप्त कर दिया है।
● लोगों के बीच की आर्थिक असमानताएँ समाप्त कर दी हैं।
● हाशिए के समूहों से कैसा व्यवहार हो, इस बारे में सारे मतभेद मिटा दिए हैं।
● राजनीतिक गैर-बराबरी के विचार को समाप्त कर दिया है।
                                 उत्तर―लोगों के बीच टकराव को समाप्त कर दिया है।
 
प्रश्न 6. लोकतंत्र के मूल्यांकन के लिहाज से इनमें कोई एक चीज लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के
अनुरूप नहीं है। उसे चुनें―
(क) स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव
(ख) व्यक्ति की गरिमा
(ग) बहुसंख्यकों का शासन
(घ) कानून से समक्ष समानता
                                    उत्तर―(क) स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव
 
प्रश्न 7. लोकतांत्रिक व्यवस्था के राजनीतिक और सामाजिक असमानताओं के बारे में किए गए
अध्ययन बताते हैं कि―
● लोकतंत्र और विकास साथ ही चलते हैं।
● लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में असमानताएँ बनी रहती हैं।
● तानाशाही में असमानताएँ नहीं होतीं।
● तानाशाहियाँ लोकतंत्र से बेहतर साबित हुई हैं।
                    उत्तर― लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में असमानताएँ बनी रहती हैं।
 
प्रश्न 8. नीचे दिए गए अनुच्छेद को पढ़ें―
नन्नू एक दिहाड़ी मजदूर है। वह पूर्वी दिल्ली की एक झुग्गी बस्ती वेलकम मजदूर कॉलोनी में
रहता है। उसका राशन कार्ड गुम हो गया है और जनवरी, 2006 में उसने डुप्लीकेट राशन
कार्ड बनाने के लिए अर्जी दी। अगले तीन महीनों तक उसने राशन विभाग के दफ्तर के कई
चक्कर लगाए लेकिन वहाँ तैनात किरानी और अधिकारी उसका काम करने या उसके अर्जी
की स्थिति बताने की कौन कहे उसको देखने तक के लिए तैयार न थे। आखिरकार उसने
सूचना के अधिकार का उपयोग करते हुए अपनी अर्जी की दैनिक प्रगति का ब्यौरा देने का
आवेदन किया। इसके साथ ही उसने इस अर्जी पर काम करने वाले अधिकारियों के नाम
और काम न करने की सूरत में उनके खिलाफ होने वाली कार्रवाई का ब्यौरा भी माँगा।
सूचना के अधिकार वाला आवेदन देने के हफ्ते भर के अंदर खाद्य विभाग का एक इंस्पेक्टर
उसके घर आया और उसने नन्नू को बताया कि तुम्हारा राशन कार्ड तैयार है और तुम
दफ्तर आकर उसे ले जा सकते हो। अगले दिन जब नन्नू राशन कार्ड लेने गया तो उस
इलाके के खाद्य और आपूर्ति विभाग के सबसे अधिकारी ने गर्मजोशी से उसका स्वागत
किया। इस अधिकारी ने उसे चाय की पेशकश की और कहा कि अब आपका काम हो गया
इसलिए सूचना के अधिकार वाला अपना आवेदन आप वापस ले लें।
नन्नू का उदाहरण क्या बताता है? नन्नू के इस आवेदन का अधिकारियों पर क्या असर
हुआ?
अपने माँ-पिताजी से पूछिए कि अपनी समस्याओं के लिए सरकारी कर्मचारियों के पास जाने
का उनका अनुभव कैसा रहा है?
उत्तर― नन्नू का उदाहरण बताता है कि प्रत्येक नागरिक को अपने अधिकारों का सही प्रयोग करना
चाहिए। सूचना नागरिकों को दिया गया एक महत्त्वपूर्ण अधिकार है जिसका प्रयोग करके नन्नू जैसा
छोटे-से-छोटा व्यक्ति भी न्याय प्राप्त कर सकता है। जब सभी नागरिक अपने अधिकारों के प्रति जागरूक
रहेंगे और उनका समय पर उपयोग करेंगे तभी लोकतांत्रिक व्यवस्था ठीक ढंग से कार्य करेगी।
नन्नू के आवेदन का अधिकारियों पर गहन असर हुआ और वे तुरन्त हरकत में आ गए। उन्होंने एक सप्ताह
में ही उसका नया राशन कार्ड बना दिया। जिस राशन के दफ्तर में नन्नू की कोई सुनवाई नहीं थी, उस दफ्तर
में बड़े अधिकारी उससे मिले तथा पूरा आदर-सम्मान दिया तथा उससे आवेदन वापस लेने का निवेदन भी
किया।
अब छात्र-छात्राएँ अपने माता-पिता से पूछे कि अपनी समस्याओं के लिए सरकारी कर्मचारियों के पास
उनका अनुभव कैसा रहा। इसके विषय में वे एक विवरण भी लिखें।
 
(ख) अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
 
                                    बहुविकल्पीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. लोकतंत्र शासन अन्य व्यवस्थाओं से है।
(क) सामान्तर
(ख) बेहतर
(ग) बेकार
(घ) कुछ नहीं
                  उत्तर― (ख) बेहतर
 
प्रश्न 2. विश्व के सौ से भी अधिक देश…………दावा करते हैं।
(क) लोकतंत्र का
(ख) राजतंत्र का
(ग) तानाशाही का
(घ) किसी का नहीं
                        उत्तर―(क) लोकतंत्र का
 
प्रश्न 3. लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोगों को अधिकार प्राप्त है―
(क) स्वयं राज्य करने का
(ख) शासन-व्यवस्था ठीक करने का
(ग) अपनी सरकार चुनने का
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
                                    उत्तर― (ग) अपनी सरकार चुनने का
 
प्रश्न 4. लोकतांत्रिक व्यवस्था का समय-समय पर………… होता है।
(क) परीक्षण
(ख) निरीक्षण
(ग) मूल्यांकन
(घ) ये सभी
                उत्तर― (घ) ये सभी
 
प्रश्न 5. लोकतांत्रिक सरकार में सभी नागरिक
(क) एकसमान
(ख) अलग-अलग
(ग) अच्छे
(घ) बुरे
            उत्तर―(क) एकसमान
 
प्रश्न 6. शिकायतों का बना रहना लोकतंत्र की ……….. का प्रतीक है।
(क) असफलता
(ख) सफलता
(ग) आजादी
(घ) खुशी
              उत्तर―(ख) सफलता
 
                             अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. क्या लोकतंत्र प्रत्येक रोग की औषधि है?
उत्तर―हम लोग लोकतंत्र को प्रत्येक रोग की औषधि मान लेते हैं और हमारी अपेक्षाएँ, आकांक्षाएँ
विस्तार लेने लगती हैं। लेकिन लोकतंत्र प्रत्येक रोग की औषधि नहीं है।
 
प्रश्न 2. क्या लोकतंत्र को जादुई चिराग समझना उचित है?
उत्तर―नहीं, लोकतंत्र कोई जादुई चिराग नहीं है जिससे सभी सामाजिक विसंगतियाँ दूर हो जाएँ।
 
प्रश्न 3. किन-किन आवश्यकताओं की पूर्ति लोकतंत्र को अवश्य करनी चाहिए?
उत्तर―जनता की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति लोकतंत्र को अवश्य करनी चाहिए।
 
प्रश्न 4. क्या लोकतांत्रिक सरकार कार्यकुशल होती है?
उत्तर―लोकतंत्र की सरकारें अपेक्षाकृत कम प्रभावशाली होती हैं। अत: वह कार्यकुशल होने का पूर्ण
प्रयास करती हैं।
 
प्रश्न 5. लोकतांत्रिक प्रशासन भ्रष्टाचार-मुक्त शासन किस प्रकार दे सकता है?
उत्तर―अपने प्रशासन में पारदर्शिता लाकर लोकतांत्रिक प्रशासन भ्रष्टाचार-मुक्त शासन प्रदान कर
सकता है।
 
प्रश्न 6. तानाशाही तथा लोकतंत्र में क्या अंतर है?
उत्तर―लोकतंत्र जनता के द्वारा चयनित प्रत्याशियों द्वारा शासन प्रक्रिया है। तानाशाही एक ही व्यक्ति
अथवा समूह द्वारा केवल अपने विचार जनता पर लादना है।
 
प्रश्न 7. लोकतांत्रिक व्यवस्था से निर्वाचित प्रतिनिधि गरीबी के प्रश्न पर गंभीर क्यों नहीं होते?
उसर―भारत के मतदाताओं का बड़ा वर्ग निर्धन श्रेणी का है इसलिए कोई भी दल इस वर्ग की समस्या
को समाप्त नहीं करना चाहता। क्योंकि मुद्दा जीवित रहेगा तो राजनीति जीवित रहेगी।
 
प्रश्न 8. लोकतंत्र की जाँच-परख कौन करता है?
उत्तर― लोकतंत्र की जाँच-परख जनता द्वारा की जाती है। लोकतंत्र की एक विशेषता है कि इस
जाँच-परख की परीक्षा कभी समाप्त नहीं होती।
 
                               लघु उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. लोकतंत्र की लोकप्रियता के कारण लिखिए।
उत्तर― लोकतंत्र आज विश्व की सर्वाधिक लोकप्रिय व्यवस्था है। यह जनसाधारण में समानता की
भावना को जन्म देता है। इस व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति की गरिमामयी भागीदारी आवश्यक है।
 
प्रश्न 2. जनता की लोकतंत्र से क्या अपेक्षाएँ रहती हैं?
उत्तर― लोकतंत्र से हमारी अपेक्षाएँ, आकांक्षाएँ विस्तार लेने लगती हैं। लोकतंत्र के प्रति अपनी रुचि
एवं आस्था के कारण प्राय: हम कह उठते हैं कि लोकतंत्र द्वारा सभी सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक
समस्याओं का समाधान संभव है।
 
प्रश्न 3. लोकतांत्रिक व्यवस्था को बहुसंख्यक तथा अल्पसंख्यक किस प्रकार प्रभावित करते हैं?
उत्तर―लोकतंत्र का सीधा संबंध बहुसंख्यक तथा अल्पसंख्यक दोनों से है। बहुसंख्यक से बहुमत
प्राप्त कर सरकार का गठन किया जाता है। अल्पसंख्यक वर्ग के हितकर योजना बनाकर कार्य करना सरकार
का दायित्व है।
 
प्रश्न 4. परिणामों के आधार पर लोकतांत्रिक व्यवस्था का मूल्यांकन किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर― वर्तमानकाल में विश्व के सौ से भी अधिक देश किसी-न-किसी प्रकार की लोकतांत्रिक
व्यवस्था-आधारित सरकारें चला रहे हैं; किंतु उनकी सामाजिक स्थिति तथा आर्थिक उपलब्धियाँ एक-दूसरे
से पूर्णत: भिन्न हैं। इन सब तथ्यों का लोकतांत्रिक शासन के परिणामों पर प्रभाव पड़ता है।
 
प्रश्न 5. आर्थिक संवृद्धि और विकास क्या है?
उत्तर―उच्चतर आर्थिक संवृद्धि प्राप्त करने में लोकतांत्रिक शासन की यह अक्षमता निश्चय ही चिंता
का विषय है। किंतु एक इसी कारण से लोकतांत्रिक व्यवस्था को अस्वीकार नहीं कर सकते। आर्थिक संवृद्धि
पर ही देश का विकास निर्भर है।
 
प्रश्न 6. वास्तविक जीवन में लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ क्यों अधिक सफल नहीं होती?
उत्तर―यदि आप परिणामों के आधार पर लोकतांत्रिक व्यवस्था का विश्लेषण करना चाहते हैं तो
आपको निम्नलिखित संस्थाओं और व्यवहारों पर दृष्टिपात करना होगा। …नियमित और निष्पक्ष चुनाव
प्रमुख नीतियों तथा नवीन कानूनों पर खुली सार्वजनिक चर्चा तथा सरकार तथा उसकी कार्यप्रणाली के विषय
में जानकारी रखने का नागरिकों का सूचना का अधिकार। इन आधारों पर लोकतांत्रिक शासकों का विश्लेषण
मिला-जुला रहा है। इस प्रकार की समस्त कार्य पद्धति के लिए उपयुक्त स्थितियों का निर्माण करने के विषय
में लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ अधिक सफल रही हैं। किंतु इस प्रकार चुनाव कराने,जिसमें सबको 
समान
अवसरों की प्राप्ति हो अथवा प्रत्येक निर्णय पर सार्वजनिक चर्चा के विषय में परिणाम कुछ आशा के विपरीत
आए। नागरिकों के साथ सूचनाओं का साझा करने के विषय में भी उनकी स्थिति अधिक अच्छी नहीं रही।
 
                                     दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
 
प्रश्न 1. लोकतंत्र के परिणामों का मूल्यांकन किस प्रकार किया जा सकता है?
उत्तर―लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था अन्य व्यवस्थाओं से कहीं अधिक उत्तम तथा उपयोगी है।
तानाशाही, राजतंत्र इत्यादि व्यवस्थाएँ भी दोषयुक्त हैं। लोकतंत्र देश की सर्वाधिक व्यवस्थाओं में अधिक
उपयुक्त है।
● लोकतांत्रिक व्यवस्था से जनसाधारण में समानता की भावना का जन्म होता है।
● लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति की गरिमामयी प्रतिभागिता आवश्यक है।
● लोकतांत्रिक प्रक्रिया में न्यायालय और निर्णायक स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं।
● संघर्षों को स्थगित करने, उनकी आधारभूत समस्याओं को समझने तथा सुलझाने का अवसर प्राप्त
होता है।
● लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत इतना अवसर अवश्य होता है कि व्यक्ति अपनी त्रुटियों को
समझकर उसमें सुधार कर सके।
वर्तमानकाल में विश्व के सौ से अधिक देश किसी-न-किसी प्रकार की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर चलने का
दावा करते हैं किंतु उनकी सामाजिक स्थिति तथा आर्थिक उपलब्धियाँ तथा व्यक्तिगत संस्कृतियों के
रूपान्तरण में ये सभी देश एक-दूसरे से पूर्णतः भिन्न हैं। अधिकतर हम लोकतंत्र को अनेक रोगों की औषधि
मान लेते हैं। हमारी आकांक्षाओं, अपेक्षाओं का विस्तार होने लगता है। लोकतंत्र के प्रति अपनी रुचि एवं
आस्था के कारण प्राय: हम कह उठते हैं कि लोकतंत्र द्वारा सभी सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक
समस्याओं का होना संभव है और जब नागरिकों की अपेक्षाएँ पूर्ण नहीं होती तो वह लोकतंत्र की अवधारणा
को ही दोषी मानने लगते हैं। लोकतंत्र व्यवस्था एक सपाट तथा निलेप व्यवस्था है जो सामान्य व्यक्तियों के
किसी भी व्यक्तिगत मूल्य से अधिक सरोकार नहीं रखती, लोकतंत्र कोई जादुई चिराग नहीं हैं जिससे
बुराइयों का अंधकार अदृश्य हो जाएगा।
 
प्रश्न 2. “लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था एक वैध शासन व्यवस्था है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर― जनता की अपेक्षाएँ, आशाएँ लोकतंत्र प्रणाली से संबंधित होती हैं। उन अपेक्षाओं तथा आशाओं
को पूर्ण करने का उत्तरदायित्व लोकतंत्र प्रक्रिया द्वारा चयनित प्रत्याशी पर होता है। आवश्यकतानुसार
यथासंभव इस प्रकार की परिस्थिति के लिए लोगों में निर्णय प्रक्रिया में प्रतिभागिता के लिए सक्षम होना
चाहिए, जिससे प्रशासन जनता के प्रति उत्तरदायित्वपूर्ण भावना से कार्यरत रहे। जनता की अपेक्षाओं तथा
आवश्यकताओं का सम्मान करे। प्रशासन व्यवस्था तीव्र गति से निर्णय लेने में सक्षम है। कभी-कभी उनके
लिए हुए निर्णय जनता के द्वारा अस्वीकृत भी हो जाते हैं। इसकी तुलनात्मक परिस्थितियों में लोकतांत्रिक
प्रशासन समस्त प्रक्रिया को पूर्ण करने में अधिक समय ले सकता है। संभव है जनता उनके द्वारा लिए गए
निर्णयों का सम्मान करे तो उनकी प्रभावशीलता में वृद्धि होगी। लोकतंत्र के दूसरे पक्ष को देखें तो ज्ञात होगा
कि लोकतंत्र की सुदृढ़ व्यवस्था नियम-कानून के अंतर्गत ही आती है। यदि कोई नागरिक जानना चाहे कि
निर्णय-संबंधी नियमों का पालन हुआ है अथवा नहीं तो यह उसका अधिकार है। इसके लिए पर्याप्त साधन
भी उपलब्ध रहते हैं जिसे पारदर्शिता भी कहा जाता है। अलोकतांत्रिक सरकारों में पारदर्शिता का अभाव
रहता है।
यदि परिणामों के आधार पर लोकतांत्रिक व्यवस्था का विश्लेषण किया जाए तो―नियमित निष्पक्ष चुनाव,
प्रमुख नीतियों तथा नवीन कानूनों पर सार्वजनिक चर्चाएँ तथा सरकार की कार्यप्रणाली की जानकारी हेतु
नागरिकों का सूचना का अधिकार इत्यादि सम्मिलित हैं। एक व्यापक धरातल पर लोकतांत्रिक प्रशासन से
यह अपेक्षा करना उचित है कि नागरिकों की सुविधाओं तथा आवश्यकताओं के विषय में सकारात्मक
दृष्टिकोणयुक्त तथा भ्रष्टाचारमुक्त प्रशासन प्रदान करे।
प्रायः देखा जाता है कि लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के अंतर्गत लोगों को अपनी सामान्य आवश्यकताओं के
लिए भी तरसना पड़ता है। जनता के एक बड़े भाग की अपेक्षा की जाती है। किंतु अलोकतांत्रिक प्रशासन
भ्रष्ट नहीं हैं, इस तथ्य का कोई विशिष्ट आधार नहीं है।
अस्तु इस विषय में लोकतांत्रिक व्यवस्था अन्य प्रशासन व्यवस्थाओं से श्रेष्ठ है। यह एक वैध
शासन-व्यवस्था है। इसी कारण सम्पूर्ण विश्व में लोकतांत्रिक विचारधारा को पूर्णतया समर्थन प्राप्त है।
वर्तमान युग में लोग अपनी पसंद की गई चयनित सरकार द्वारा ही प्रशासनिक व्यवस्थाएँ चाहते हैं।
अत: लोकतांत्रिक व्यवस्था पूर्णतया वैध तथा स्वयंसिद्ध व्यवस्था है।
 
प्रश्न 3. लोकतांत्रिक सुव्यवस्थाओं द्वारा असमानताओं को किस प्रकार समाप्त किया जा सकता है?
उत्तर― लोकतांत्रिक व्यवस्था क्योंकि जनता की स्वचयनित व्यवस्था होती है अत: इस व्यवस्था से यह
अपेक्षा तो की ही जा सकती है कि वह आर्थिक असमानताओं को कम कर सकेगी। जब देश में आर्थिक
विकास की गति तीव्र हो तो आय का वितरण इस प्रकार होना चाहिए कि सभी लाभार्थी हों, सभी संपन्न,
समृद्ध हों, सभी का जीवन सुखमय व्यतीत हो। लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ राजनीतिक समानता पर आधारित
होती हैं। प्रतिनिधि चयन में प्रत्येक व्यक्ति एकसमान होता है। व्यक्तियों को राजनीतिक परस्पर समानता का
अवसर तो प्राप्त हो जाता है, किंतु इसके साथ हम आर्थिक असमानता को फलता-फूलता पाते हैं। मुट्ठी भर
धनकुबेर आय तथा सम्पत्ति का एक बड़ा भाग प्राप्त करते हैं। समाज के निम्न वर्ग को अपना जीवन यापन
करने हेतु अत्यंत अल्प साधन उपलब्ध होते हैं। उनकी आय का स्तर निरंतर निम्नतर होता जाता है।
कभी-कभी तो, भोजन, वस्त्र तथा आवास जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति भी नहीं हो पाती।
वास्तविक जीवन में लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ आर्थिक असमानताओं को कम करने में अधिक सफल नहीं हो
सकीं। भारत के मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग निर्धन श्रेणी से संबंधित है। इस वर्ग का त्याग कर कोई भी
राजनीतिक दल अपना वोट बैंक कम नहीं करना चाहता। लोकतांत्रिक व्यवस्था में चयनित सरकारें इसीलिए
इस मुद्दे को जीवित रखना चाहती हैं तथा निर्धनता के प्रश्न को गंभीरता से हल करने का प्रयास नहीं करती।
 
प्रश्न 4. सामाजिक विविधताओं में सामंजस्य किस प्रकार किया जा सकता है?
उत्तर― लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ शांति एवं सद्भाव से जीवनयापन करने में सहायक सिद्ध होती हैं।
लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ अनेक विभाजनों को समाहित करती हैं। पूर्व में बेल्जियम की घटना इसका ज्वलन्त
उदाहरण है। लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ सामान्यतः प्रतिद्वंद्विताओं को सँभालने की प्रक्रिया विकसित कर लेती हैं
जिसमें टकराव की स्थिति विषम हो जाती है। किंतु इन अंतरालों तथा विभेदों के मध्य हम सामंजस्य करने के
साधन तो तलाश ही सकते हैं। लोकतंत्र इसका सर्वोत्तम माध्यम है।
अलोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ सामान्यतः अपने आंतरिक सामाजिक मतभेदों के विषयों को दबाने का प्रयास
करते हैं। इस प्रकार के विभाजनों के संघर्षों को झेलना निश्चित रूप से लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे बड़ा
गुण है।
● उक्त तथ्य स्मरणीय है कि लोकतंत्र का सीधा-सरल अर्थ केवल बहुमत के आधार पर शासन
करना नहीं अपितु अल्पमत के हितों को अधिक ध्यान रखना भी होता है। सबको साथ रखकर
प्रशासन बहुमत तथा अल्पमत दोनों की इच्छाओं का प्रतिनिधित्व कर सकता है। यद्यपि बहुमत
हो
अथवा अल्पमत दोनों के मध्य सामंजस्य स्थापित करना प्रशासन का दायित्व है।
● यह जानना तथा समझना और भी अधिक आवश्यक है कि बहुमत शासन का अर्थ केवल धर्म,
नस्ल अथवा भाषायी आधार पर नहीं होता अपितु बहुमत शासन का तात्पर्य है कि प्रत्येक निर्णय
अथवा चुनाव में भिन्न-भिन्न लोग समूह अथवा बहुमत का निर्माण कर सकते हैं।
लोकतंत्र तभी तक लोकतंत्र रहता है जब तक प्रत्येक नागरिक को किसी-न-किसी अवसर पर बहुमत में
प्रतिभागिता का अवसर प्राप्त होता है। इन्हीं अनेक विभिन्नताओं के पश्चात् सामंजस्य की स्थिति सुचारु रूप
से जारी रखना लोकतंत्र की श्रेष्ठता है।
 
प्रश्न 5. नागरिक की गरिमा तथा स्वतंत्रता किस प्रकार सुरक्षित रह सकती है?
उत्तर―लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में देश के नागरिकों की गरिमा तथा उनकी स्वतंत्रता का अधिकार
महत्त्वपूर्ण है। प्रत्येक व्यक्ति की आकांक्षा आत्मसम्मान होती है। अक्सर संघर्ष की स्थिति तब उत्पन्न होती है
जब कुछ समूहों अथवा व्यक्तियों को आभास होता है कि उनके साथ समानता का व्यवहार नहीं किया जा
रहा अथवा उनके आत्मगौरव को ठेस पहुँच रही है। आत्मसम्मान, गरिमामय जीवन तथा स्वतंत्रता की इच्छा
ही लोकतंत्र का आधार है। लोकतांत्रिक सरकारें सदैव नागरिकों के अधिकारों का सम्मान नहीं करती क्योंकि
एक लम्बी परतंत्रता के पश्चात् यह अनुभव करना सरल नहीं है कि सभी व्यक्ति समान हैं। यदि हम स्त्रियों
की गरिमा तथा आत्मसम्मान के विषय में जानें तो पाएंगे कि विश्व में अधिकांश पुरुष-प्रधान समाज रहे हैं।
दीर्घकालीन संघर्षों के पश्चात् धीरे-धीरे यह मान्यता बन रही है कि महिलाओं के साथ सम्मान तथा समानता
का व्यवहार होना चाहिए। भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था ने कमजोर निस्सहाय तथा भेदभाव का शिकार हुई
जातियों के समान स्तर एवं समान अवसरों पर बल दिया है। लोकतंत्र से की गई अपेक्षाओं को किसी
लोकतांत्रिक देश के मूल्यांकन का आधार भी बनाया जा सकता है। लोकतंत्र की एक विशेषता है कि इसकी
जाँच-परख तथा मूल्यांकन कभी समाप्त नहीं होता।
लोकतंत्र की कार्य-पद्धति पर जनता का असंतोष व्यक्त करना जनतंत्र की सफलता का साक्षी तो है ही, साथ
ही वह लोगों से प्रजा, प्रजा से नागरिक, नागरिक से सजग नागरिक बनने की प्रक्रिया भी व्यक्त करता है।
अपने देश में नागरिकों की गरिमा तथा स्वतंत्रता अक्षुण्ण रखने हेतु लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ सदैव सफल रही
है।

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