UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 21 Effect of Environment on Indian Social Life (पर्यावरण का भारतीय सामाजिक जीवन पर प्रभाव)
UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 21 Effect of Environment on Indian Social Life (पर्यावरण का भारतीय सामाजिक जीवन पर प्रभाव)
विस्तृत उत्तीय प्रश्न (6 अंक)
प्रश्न 1
‘पर्यावरण की परिभाषा दीजिए। भारतीय जीवन पर भौगोलिक पर्यावरण के प्रत्यक्ष प्रभावों का विवेचन कीजिए। [2007]
या
भौगोलिक पर्यावरण किस प्रकार से सामाजिक जीवन को प्रभावित करता है? [2013]
या
पर्यावरण की परिभाषा दीजिए। भौगोलिक पर्यावरण के प्रत्यक्ष प्रभावों की विवेचना कीजिए। [2007, 12]
या
पर्यावरण को परिभाषित कीजिए। [2015]
या
पर्यावरण क्या है? सामाजिक जीवन पर पर्यावरण का प्रभाव बताइए। [2016]
उत्तर:
‘पर्यावरण’एक विस्तृत अवधारणा है, इसे अंग्रेजी में ‘एनवायरनमेण्ट’ (Environment) कहते हैं। पर्यावरण का हमारे जीवन से इतना घनिष्ठ सम्बन्ध है कि पर्यावरण को स्वयं से पृथक् करना एक असम्भव-सी बात लगती है। सामाजिक मानव के विषय में पूर्ण अध्ययन करने के लिए यह आवश्यक है कि उसके पर्यावरण का अध्ययन किया जाये। यही कारण है कि समाजशास्त्र विषय के अन्तर्गत मनुष्य का अध्ययन पर्यावरण के सन्दर्भ में ही किया जाता है।
पर्यावरण का अर्थ एवं परिभाषाएँ
‘पर्यावरण’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। ये शब्द हैं-‘परि’ और आवरण। ‘परि’ का अर्थ है चारों ओर’ तथा ‘आवरण’ का अर्थ है ‘घिरे हुए’ अथवा ढके हुए। इस प्रकार पर्यावरण का अर्थ हुआ – चारों ओर से घिरे हुए अथवा ढके हुए। दूसरे शब्दों में, ‘पर्यावरण’ शब्द का अर्थ उन वस्तुओं से है जो मनुष्य से अलग होने पर भी उसे चारों ओर से ढके या घेरे रहती है। संक्षेप में, वे सभी परिस्थितियाँ जो एक प्राणी के अस्तित्व के लिए आवश्यक हैं तथा उसको चारों ओर से घेरे हुए अथवा ढके हुए हैं, उसका पर्यावरण कहलाती हैं। पर्यावरण को विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न प्रकार से परिभाषित किया है। कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नवत् हैं
इलियट के मतानुसार, “चेतन पदार्थ की इकाई से प्रभावकारी उद्दीपन और अन्तक्रिया के क्षेत्र को पर्यावरण कहते हैं।”
रॉस के अनुसार, “कोई भी बाहरी शक्ति, जो हमें प्रभावित करती है, पर्यावरण होती है।” प्रो० गिलबर्ट के शब्दों में, “वह वस्तु जो किसी वस्तु को चारों ओर से घेरती एवं उस पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालती है, पर्यावरण है।
उपर्युक्त परिभाषाओं द्वारा यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि पर्यावरण से तात्पर्य उस ‘सब कुछ से होता है जिसका अनुभव सामाजिक मनुष्य करता है तथा जिससे वह प्रभावित भी होता है।
भारतीय सामाजिक जीवन पर भौगोलिक पर्यावरण के प्रभाव
भौगोलिक पर्यावरण को प्राकृतिक पर्यावरण’ (Natural Environment) अथवा ‘अनियन्त्रित पर्यावरण’ (Uncontrolled Environment) भी कहते हैं। इस प्रकार के पर्यावरण से तात्पर्य हमारे चारों ओर के प्राकृतिक वातावरण से है। मैकाइवर तथा पेज के अनुसार, “भौगोलिक पर्यावरण उन दशाओं से मिलकर बनता है जिन्हें प्रकृति ने मनुष्य के लिए प्रदान किया।” लैण्डिस ने कहा है कि, “इसमें वे समस्त प्रभाव सम्मिलित होते हैं जो यदि मनुष्य द्वारा पृथ्वी से पूर्ण रूप से हटा दिये जाएँ, तब भी उनका अस्तित्व बनी रहे।” भौगोलिक पर्यावरण का मानव-जीवन पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार से प्रभाव पड़ता है। भारतीय सामाजिक जीवन भी इस नियम का अपवाद नहीं है। भौगोलिक विभिन्नताओं के कारण ही हमारे देशवासियों की जीवन-शैली, प्रथाओं, परम्पराओं, खान-पान, वेशभूषा आदि में भी भिन्नता है। भौगोलिक पर्यावरण के भारतीय सामाजिक जीवन पर पड़ने वाले प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभावों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है
(क) प्रत्यक्ष प्रभाव
1. जनसंख्या पर प्रभाव – मनुष्य उन्हीं स्थानों पर रहना अधिक पसन्द करता है, जहाँ की जलवायु ऋतुएँ, भूमि की बनावट व जल इत्यादि की सुविधाएँ उत्तम हैं। बहुत अधिक गर्म और बहुत अधिक ठण्डे तथा अत्यधिक वर्षा वाले भागों में लोग रहना पसन्द नहीं करते। कहने का तात्पर्य यह है कि जहाँ भौगोलिक पर्यावरण अनुकूल होता है वहाँ जनसंख्या का घनत्व भी अधिक होता है तथा प्रतिकूल पर्यावरण वाले स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व बहुत कम पाया जाता है। यही कारण है कि हमारे देश में गंगा-यमुना वाले क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है और उसकी अपेक्षाकृत रेगिस्तान और हिमालय आदि
क्षेत्रों में जनसंख्या कम पायी जाती है।
2. “आवास की प्रकृति अथवा मानव निवास पर प्रभाव – भौगोलिक पर्यावरण का ‘आवास’ की प्रकृति अथवा मनुष्य के निवास पर भी प्रभाव पड़ता है। बहुत अधिक गर्म प्रदेशों के लोग हवादार मकान बनवाते हैं; जैसे – भारत में बिहार, राजस्थान आदि प्रदेशों में। इसके विपरीत ठण्डे प्रदेशों में मकान ऐसे बनवाये जाते हैं जिनमें ठण्ड से बचाव किया जा सके। भारत के मैदानी प्रदेशों में गारा-मिट्टी और ईंटों के मकान बनाये जाते हैं, जब कि पहाड़ी क्षेत्रों में पत्थरों और लकड़ी के मकान बनाये जाते हैं।
3. वेशभूषा एवं खानपान पर प्रभाव – ठण्डी जलवायु वाले स्थानों के लोग अधिकांशतः मांसाहारी होते हैं तथा ऊनी वस्त्र धारण करते हैं, जब कि गर्म स्थानों के लोग अधिकांशतः शाकाहारी होते हैं और वर्ष में अधिक समय वे सूती वस्त्र धारण करते हैं। उदाहरण के लिए, कश्मीर में रहने वाले लोग मांस, मछली, अण्डा और इसी प्रकार के अन्य गर्म खाद्य-पदार्थों का सेवन अधिक करते हैं तथा चमड़े, खाल और ऊन से बने वस्त्रों का अधिक प्रयोग करते हैं। इसके विपरीत गर्म प्रदेशों; जैसे-राजस्थान, बिहार आदि के लोग सूती, हल्के व ढीले वस्त्रों का अधिक प्रयोग करते हैं तथा ठण्डे व शीघ्र पचने वाले खाद्य-पदार्थों का सेवन करते हैं।
4. व्यवसाय पर प्रभाव – मनुष्य के मूल व्यवसाय भी भौगोलिक पर्यावरण पर आधारित होते हैं। उदाहरणार्थ-भारत के हर प्रदेश में हर प्रकार की फसल उगाना जलवायु की विभिन्नता के कारण सम्भव नहीं है। अत: जिस प्रदेश में जो फसल पैदा नहीं होती, उस प्रदेश से वह कृषि-उपज जहाँ वह खूब पैदा करती हैं मँगाकर अपनी जरूरत पूरी करता है और इस प्रकार विनिमय व्यापार (Exchange Trade) का जन्म होता है।
5. आवागमन के साधनों पर प्रभाव – भौगोलिक पर्यावरण का प्रभाव आवागमन के साधनों पर भी पड़ता है। जिन स्थानों पर अति शीत के कारण भूमि तथा समुद्र बर्फ से ढके रहते हैं। वहाँ पर किसी भी प्रकार के आने-जाने के रास्ते बनाना सम्भव नहीं है। अधिक वर्षा वाले भागों में भी रेलवे ट्रैक या सड़कें नहीं बनायी जा सकतीं। मरुस्थलों में भी रेतीली भूमि होने के कारण सड़कें बनाना बहुत कठिन होता है। कुहरायुक्त वातावरण में वायुयान की उड़ान असम्भव है। इसीलिए समतल भूमि पर जहाँ वर्षा सामान्य होती है, मार्ग (सड़कें, रेलवे ट्रैक) बनाना बहुत आसान होता है। यही कारण है कि भारत के अनेक भागों में (जो कि अधिकांशतः मैदानी क्षेत्र हैं) आवागमन के साधन अधिक हैं। परन्तु पर्वतीय प्रदेशों में ऐसा नहीं है।
(ख) अप्रत्यक्ष प्रभाव
1. उद्योग-धन्धों पर प्रभाव – अर्थशास्त्रीय उद्योगों के स्थानीयकरण का सिद्धान्त यही स्पष्ट करता है कि किसी भी विशेष उद्योग की स्थापना के लिए विशेष भौगोलिक पर्यावरण की आवश्यकता पड़ती है। लोहे के कारखानों का बिहार में अधिक मात्रा में होने का मुख्य कारण वहाँ कोयले की खानों का अधिक होना है। अहमदाबाद और मुम्बई में कपास की खेती अधिक होने के कारण वहाँ कपड़ा मिलों की अधिकता है। इसी प्रकार फिल्म उद्योग के लिए साफ आसमान, प्रकाश और स्वच्छ मौसम की आवश्यकता होती है। इसीलिए यह उद्योग मुम्बई में सबसे अधिक विकसित है।।
2. धर्म, साहित्य व कला पर प्रभाव – जिन वस्तुओं से मनुष्य अपने जीवन का निर्वाह करता है उसके प्रति उसके मन में श्रद्धा उत्पन्न हो जाती है वह उनकी पूजा करने लगता है। उदाहरण के लिए, भारत के लोगों द्वारा गंगा, यमुना, सूर्य आदि की पूजा की जाती है। साहित्य पर भी पर्यावरण का प्रभाव पड़ता है। उदाहरणार्थ-रेगिस्तानी क्षेत्र में रहने वाला साहित्यकार अपने साहित्य में ऊँट’ या खजूर के पेड़ों का वर्णन करते हुए मिलता है। इसी प्रकार समुद्री तट के निकटतम प्रदेश में रहने वाला चित्रकार जितनी अच्छी तरह समुद्र का चित्र चित्रित कर सकता है, उतना पहाड़ी इलाके में रहने वाला नहीं। रामायण, महाभारत आदि रचनाओं पर भी पर्यावरण का ही प्रभाव देखने को मिलता है।
3. समाज-जीवन पर प्रभाव – विभिन्न प्राकृतिक या भौगोलिक परिस्थितियों के कारण ही भिन्न-भिन्न रीति-रिवाजों का जन्म होता है। हमारे देश के विभिन्न प्रदेशों के रीति-रिवाजों, प्रथाओं, भोजन, साहित्य, कला आदि में जो विभिन्नताएँ विद्यमान हैं, उनके पीछे मूल कारण भौगोलिक अथवा प्राकृतिक पर्यावरण की विभिन्नता ही है।
4. सामाजिक संगठन पर प्रभाव – भौगोलिक पर्यावरण का सर्वाधिक प्रभाव सामाजिक संगठन पर पड़ता है। लीप्ले ने लिखा है कि ‘‘ऐसे पर्वतीय प्रदेशों में जहाँ खाद्यान्न की कमी होती है। वहाँ जनसंख्या की वृद्धि अभिशाप मानी जाती है और ऐसी विवाह संस्थाएँ स्थापित की जाती हैं जिनसे जनसंख्या न बढ़ पाये।” यही कारण है कि भारत में जौनसार बाबर में बहुत-से “भाइयों की केवल एक ही पत्नी होती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि भौगोलिक पर्यावरण का भारतीय सामाजिक जीवन के विभिन्न पक्षों पर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 2
भौगोलिक कारकों का मानव के सामाजिक जीवन पर कैसे प्रभाव पड़ता है.?
उत्तर:
कई भूगोलविदों ने भौगोलिक कारकों एवं सामाजिक संस्थाओं का सम्बन्ध प्रकट किया है। उदाहरण के लिए, जिन स्थानों पर खाने-पीने एवं रहने की सुविधाएँ होती हैं, वहाँ संयुक्त परिवार पाये जाते हैं और जाँ-इनका अभाव होता है, वहाँ एकाकी परिबार। जहाँ प्रकृति से संघर्ष करना होता है, वहाँ पुरुषप्रधान समाज होते हैं। इसी प्रकार से जहाँ जीविकोपार्जन की सुविधाएँ सरलता से मिल जाती हैं और कृषि की प्रधानता होती है, वहाँ बहुपत्नी प्रथा तथा जहाँ जीवन-यापन कठिन होता है, वहाँ बत्तिाप्रथा अथवा एक विवाह की प्रथा पायी जाती है। इसका कारण यह है कि संघर्षपूर्ण पर्यावरण में स्त्रियों का भरण-पोषण सम्भव न होने से कन्या-वध आदि की प्रथा पायी जाती है, जिससे उनकी संख्या घट जाती है। जिन स्थानों पर जीवन-यापन के लिए कठोर श्रम एवं सामूहिक प्रयास करना होता है, वहाँ सामाजिक संगठन सुदृढ़ होता है।
भारत के भौगोलिक पर्यावरण ने यहाँ के सामाजिक जीवन को प्रभावित किया है। खस एवं टोडा जनजातियाँ पहाड़ी भागों में निवास करती हैं, जहाँ परिवार को आर्थिक भरण-पोषण कठिनाई से होता है। उन्हें जीवन-यापन के लिए प्रकृति से घोर संघर्ष करना पड़ता है। इस संघर्ष में स्त्रियाँ और भी कमजोर होती हैं। अत: वहाँ जन्म के समय ही लड़कियों को मार देने की प्रथा पायी जाती है, जिसके कारण इन समाजों में पुरुषों की अधिकता एवं स्त्रियों की कमी पायी जाती है। इस विषम लिंग अनुपात के कारण यहाँ बहुपति विवाह की प्रथा विकसित हुई। दूसरी ओर उत्तरी भारत के मैदानी भागों में जीवन-यापन सरल है; इससे वहाँ लिंग-अनुपात लगभग समान है, अतः वहाँ एक विवाह प्रथा विकसित हुई और सम्पन्न लोग एकाधिक पत्नियाँ भी रखने लगे, जिनसे बहुपत्नी प्रथा का जन्म हुआ।
दक्षिणी भारत के पठारी क्षेत्र होने के कारण लोगों को दूर क्षेत्र तक गमन कठिन था। अत: उनका विवाह एवं नातेदारी का क्षेत्र अपने गाँवों या निकटवर्ती गाँवों तक ही सीमित रहा, जब कि उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में विवाह एवं नातेदारी का विस्तार दूर-दराज के क्षेत्रों तक पाया जाता है। मैदानी क्षेत्रों में पुरुष का दबदबा अधिक होने से पितृसत्तात्मक परिवार व्यवस्था ने जन्म लिया। गारो, खासी और जयन्तिया जनजातियाँ जो कि मातृसत्तात्मक हैं, पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करती हैं। इनमें पुरुष जीवन-यापन की सुविधाएँ जुटाने, शिकार करने एवं जंगलों से कन्द-मूल-फल एकत्रित करने एवं कृषि के लिए अधिकांश समय तक घर से बाहर ही रहता है। ऐसी स्थिति में परिवार एवं बच्चों के पालन-पोषण का दायित्व महिलाओं पर आ जाता है, इससे परिवार में महिलाओं को प्रभुत्व स्थापित हुआ एवं मातृसत्तात्मक परिवार पनपे।
प्रश्न 3
सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण का भारतीय सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
सामाजिक जीवन केवल भौगोलिक पर्यावरण से ही प्रभावित नहीं होता, वरन् सामाजिकसांस्कृतिक पर्यावरण भी उसे प्रभावित करता है। सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण स्वयं मानव द्वारा निर्मित होता है। उसमें मानव द्वारा निर्मित भौतिक वस्तुएँ; जैसे—पेन, घड़ी, रेडियो, मकान, सड़क, मशीनें, कलाकृतियाँ, धार्मिक स्थल और हजारों-लाखों वस्तुएँ सम्मिलित हैं। अभौतिक वस्तुओं में सामाजिक संस्थाएँ, कला, विज्ञान, धर्म, विश्वास, परम्पराएँ, कानून और मानव का ज्ञान आदि आते हैं। भारत इन भौतिक एवं अभौतिक तथ्यों से निर्मित सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण की भूमि रहा है। यहाँ समय-समय पर आक्रमणकारियों के रूप में विभिन्न प्रजातियों, धर्मों एवं संस्कृतियों से सम्बन्धित लोग भी आते रहे हैं, जिन्होंने यहाँ के निवासियों की जीवन-विधि को प्रभावित किया है।
भारतीयों का खान-पान, रहन-सहन, परिवार, विवाह, नातेदारी की प्रथाएँ, आर्थिक एवं राजनीतिक जीवन सदैव एक-से नहीं रहे हैं, वरन् समय के साथ-साथ बदलते रहे हैं। वैदिक काल, धर्मशास्त्र काल, मुगलकाल, अंग्रेजों के शासन के समय एवं स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद के सामाजिक जीवन में भिन्नताएँ पायी जाती हैं। वैदिक युग में वर्ण एवं आश्रम-व्यवस्था ने भारतीयों के जीवन को प्रभावित किया। उस समय धर्मशास्त्र काल में विभिन्न धर्म-ग्रन्थों की रचना की गयी। जिनमें परिवार, विवाह, शिक्षा, आर्थिक जीवन से सम्बन्धित विभिन्न नियमों का भी उल्लेख किया गया। इसी समय वर्णव्यवस्था ने कठोर जाति-व्यवस्था का रूप ले लिया और जाति ने भारतीय जीवन के प्रत्येक पक्ष को निर्धारित किया। स्त्रियों को भी अनेक अधिकारों से वंचित कर दिया गया।
मुगलकाल में विवाह व सती–प्रथा का प्रचलन बढ़ा तथा विधवा विवाहों पर रोक लगा दी गयी। अन्तर्जातीय एवं अन्तर्वर्गीय विवाहों पर भी रोक लगी। इस्लाम ने भारतीयों के सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक जीवन, खान-पान एवं पहनावे में कई परिवर्तन किये। अंग्रेजी काल में भारतीयों का जीवन पश्चिमी सभ्यता एवं संस्कृति से प्रभावित हुआ। उनके समय में सम्पूर्ण भारत एक राजनीतिक सत्ता के अधीन शासित हुआ, औद्योगीकरण की नींव रखी गयी, अनेक नवीन आविष्कार जो पश्चिम में हुए, उनसे भारतीय भी परिचित हुए। कृषि एवं उत्पादन के नये तरीके अपनाये गये। मशीनों का प्रचलन बढ़ा। अंग्रेजी शिक्षा-प्रणाली प्रचलित हुई, खान-पान एवं पहनावे में परिवर्तन आया। चुकन्दर, शलगम, मांस-मदिरा का प्रयोग बढ़ा। टेबल-कुर्सी पर बैठकर, काँटे-छुरी एवं क्रॉकरी के माध्यम से भोजन किया जाने लगा। पैण्ट, शर्ट, टाई एवं कोट का प्रचलन हुआ।
आजादी के बाद भारतीय सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण में एक बार फिर परिवर्तन हुआ। एकाकी परिवार, अन्तर्जातीय विवाह, विलम्ब विवाह का प्रचलन बढ़ा, विधवा पुनर्विवाह होने लगे, नातेदारी का महत्त्व घटने लगा, धर्मनिरपेक्ष मूल्य पनपे। सार्वभौमिक शिक्षा प्रदान की जाने लगी। प्रजातान्त्रिक मूल्य स्थापित हुए। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं एवं सामुदायिक विकास योजनाओं के माध्यम से ग्रामीण भारत एवं सम्पूर्ण भारत के सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक जीवन को उन्नत करने का प्रयास किया गया, जिसके फलस्वरूप वर्तमान में भारतीयों का जो सामाजिक जीवन है वह वैदिक काल एवं मध्यकाल से एकदम भिन्न दिशा की ओर अग्रसर हुआ। फिर भी धर्म एवं अध्यात्मवाद की प्रधानता, कर्म एवं पुनर्जन्म का सिद्धान्त, संयुक्त परिवार प्रणाली और जाति-प्रथा आज भी भारतीयों के सामाजिक जीवन का मूलाधार बने हुए हैं। स्पष्ट है कि भारतीयों के सामाजिक जीवन को प्रभावित करने में भौगोलिक एवं सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण ने पर्याप्त योगदान दिया।
लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)
प्रश्न 1
भौगालिक पर्यावरण मानव के अपराधी व्यवहारों को कैसे प्रभावित करता है ?
उत्तर:
अनेक अपराधशास्त्रियों का मत है कि भौगोलिक पर्यावरण का अपराधी प्रवृत्ति के व्यक्ति पर भी प्रभाव पड़ता है। गर्मियों में व्यक्ति के विरुद्ध एवं सर्दियों में सम्पत्ति के विरुद्ध अपराध अधिक होते हैं। उपजाऊ भूमि, अनुकूल वर्षा एवं प्राकृतिक साधनों की अधिकता होने पर अपराध कम होंगे और इसके विपरीत स्थितियों में अधिक। उत्तरी भारत के आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होने के कारण यहाँ जनाधिक्य है। जनसंख्या के दबाव के कारण यहाँ चोरी, डकैती, बलात्कार, हत्या आदि अपराधों की घटनाएँ अधिक पायी जाती हैं। इनकी तुलना में दक्षिणी भारत शान्त क्षेत्र है।
इसी प्रकार जब भारत में अकाल पड़ता है तब भी अपराधों की दर में वृद्धि होती है तथा जब वर्षा पर्याप्त होती है, फसलों की पैदावार अच्छी होती है तो आर्थिक प्रवृत्ति के अपराध घट जाते हैं।
प्रश्न 2
भौगोलिक पर्यावरण किस प्रकार से सामाजिक जीवन को प्रभावित करता है ? [2009]
उत्तर:
भौगोलिक पर्यावरण सामाजिक जीवन को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों रूपों में प्रभावित करता है। कुछ भौगोलिकविदों का कहना है कि भौगोलिक दशाएँ ही मनुष्य के सम्पूर्ण सामाजिकसांस्कृतिक जीवन, विभिन्न संस्थाओं, मानवीय व्यवहारों एवं सभ्यता के स्वरूप का निर्धारण करती हैं। भौगोलिकविदों के मतानुसार
- जनसंख्या की रचना एवं घनत्व,
- व्यवसाय,
- सामाजिक व्यवहार,
- मकान-निर्माण,
- भोजन,
- वेशभूषा,
- सामाजिक संस्थाओं (अर्थात् विवाह, अधिकार, विश्वास आदि),
- उद्योग-धन्धों,
- आवागमन के साधन,
- कला व साहित्य इत्यादि पर भौगोलिक पर्यावरण का प्रभाव पड़ता है।
इतना ही नहीं; कुछ विद्वानों (हंटिंग्टन, बकल, मॉण्टेस्क्यू, डेक्सटर आदि) ने तो यहाँ तक कहा है कि सभी मानवीय व्यवहारों; जैसे – मनुष्य की कार्यकुशलता, आत्महत्या, सम्पत्ति एवं व्यक्ति के विरुद्ध अपराध, मानसिक सन्तुलन, जन्म एवं मृत्यु-दर इत्यादि पर जलवायु तथा ऋतुओं का प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 3
पर्यावरण के प्रकार अथवा भेद बताइए। [2015]
उत्तर:
पर्यावरण के प्रकारों अथवा भेदों के विषय में विद्वानों ने विभिन्न प्रकार के मत व्यक्त किये हैं; जैसे(क) लैण्डिस (Landis) के अनुसार, पर्यावरण के तीन प्रकार हैं
(i) प्राकृतिक,
(ii) सामाजिक तथा
(iii) सांस्कृतिक।
(ख) ऑगबर्न एवं निमकॉफ के अनुसार पर्यावरण के दो प्रकार हैं
(i) प्राकृतिक तथा
(ii) मनुष्यकृत।।
(ग) गिलिन तथा गिलिन के अनुसार भी पर्यावरण के दो भेद हैं
(i) प्राकृतिक पर्यावरण तथा
(ii) सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण।
सामान्य आधार पर पर्यावरण को निम्नलिखित तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है
- भौगोलिक या प्राकृतिक पर्यावरण – इसमें प्रकृति प्रदत्त वस्तुएँ आती हैं; जैसे-स्थलमण्डल, जलमण्डल, वायुमण्डल इत्यादि। ये सभी अपनी-अपनी शक्तियों से अनेक क्रियाएँ करते हैं। जिससे पृथ्वी पर अनेक भौगोलिक दशाओं की उत्पत्ति होती है तथा ये सभी दशाएँ मानव के जीवन पर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालती हैं।
- सामाजिक पर्यावरण – सभी सामाजिक रीति-रिवाज, प्रथाएँ, परम्पराएँ, लोकाचार आदि सामाजिक पर्यावरण के अन्तर्गत आती हैं।
- सांस्कृतिक पर्यावरण – किसी समाज का सांस्कृतिक पक्ष सांस्कृतिक पर्यावरण कहलाता है। इसके अन्तर्गत उन समस्त वस्तुओं का समावेश होता है जिनको निर्माण स्वयं मनुष्य ने किया है; जैसे-धर्म, नैतिकता, भाषा, साहित्य, प्रथाएँ, लोकाचार, कानून, व्यवहार-प्रतिमान इत्यादि। इस प्रकार के पर्यावरण को सामाजिक विरासत’ या ‘संस्कृति’ (Culture) भी कहते हैं।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)
प्रश्न 1
भौगोलिक पर्यावरण का सामाजिक संगठन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
भौगोलिक पर्यावरण विविध प्रकार से सामाजिक संगठन को प्रभावित करता है। इसके प्रभाव प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों रूपों में पड़ते हैं। सामाजिक संगठन पर पड़ने वाले इसके प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं
- भौगोलिक पर्यावरण जनसंख्या के घनत्व का निर्धारण करता है। अधिक जनसंख्या अथवा कम जनसंख्या सामाजिक जीवन को प्रभावित करती है।
- भौगोलिक पर्यावरण का खान-पान पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यदि भौगोलिक पर्यावरण अनुकूल होता है तो आर्थिक समृद्धि के कारण व्यक्तियों का खान-पान उच्च स्तर को होता है।
- भौगोलिक पर्यावरण धार्मिक विश्वासों को प्रभावित करता है। उदाहरणार्थ कृषि प्रधान देश होने के कारण यहाँ इन्द्र अर्थात् वर्षा के देवता की पूजा का विशेष महत्त्व होता है।
- भौगोलिक पर्यावरण मानव व्यवहार को प्रभावित करता है। भारत के विभिन्न राज्यों के रीति| रिवाज, खान-पान तथा साहित्य आदि में अन्तर पाए जाने का मूल कारण भौगोलिक पर्यावरण की विभिन्नता ही है।
प्रश्न 2
सांस्कृतिक पर्यावरण का मानव जीवन के आर्थिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
सांस्कृतिक पर्यावरण व्यक्तियों के आर्थिक जीवन को भी प्रभावित करता है। यदि सांस्कृतिक मूल्य आर्थिक विकास में सहायता देने वाले हैं तो वहाँ व्यक्तियों को आर्थिक जीवन अधिक उन्नत होगा। मैक्स वेबर के अनुसार, प्रोटेस्टेण्ट ईसाइयों की धार्मिक मान्यताएँ पूँजीवादी प्रवृत्ति के विकास में सहायक हुई हैं। इसीलिए प्रोटेस्टेण्ट ईसाइयों के बहुमत वाले देशों में पूँजीवाद अधिक है। यदि सांस्कृतिक मूल्य आर्थिक विकास में बाधक हैं तो व्यक्तियों के आर्थिक जीवन पर इनका कुप्रभाव पड़ता है तथा वे आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए रहते हैं।
प्रश्न 3
भौगोलिक पर्यावरण का मानसिक क्षमता पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
भौगोलिक पर्यावरण का मानसिक क्षमता पर प्रभाव के सन्दर्भ में हंटिंग्टन का मत है कि जब तापमान बहुत गिर जाता है तो मानसिक योग्यता की अधिक हानि होती है और जलवायु में शीघ्र पुनः परिवर्तन न हो तो इसमें निरन्तर कमी आती जाती है। यदि हवा में कुछ गर्मी आ जाए तो इसमें कुछ सुधार होता है, लेकिन हवी अधिक गर्म हो जाने पर मानसिक क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अत्यधिक गर्मी में शीत ऋतु की तुलना में भारतीयों की मानसिक क्षमता कम हो जाती है।
प्रश्न 4
प्रदूषण के प्रमुख दो सामाजिक प्रभावों को लिखिए।
उत्तर:
प्रदूषण मानव तथा अन्य जीवों के जीवन-चक्र पर हानिकारक प्रभाव डालता है। अत: यह मानव तथा समाज दोनों के लिए हानिकारक है। प्रदूषण के दो प्रमुख हानिकारक प्रभाव निम्नलिखित हैं
- मानव के जीवन-स्तर पर प्रभाव – मानव-जीवन पर प्राकृतिक सम्पदाओं का प्रभाव पड़ता है। यह प्राकृतिक सम्पदाएँ भूमि, पेड़-पौधे, खनिज-पदार्थ, जल, वायु आदि के रूप में मनुष्य को उपलब्ध हैं। प्रदूषण के कारण इन सभी पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। प्रदूषण के कारण फसलों, फलों, सब्जियों आदि पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जलीय जीव (मछलियाँ आदि) नष्ट हो जाते हैं। इससे वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि हो जाती है तथा लोगों को आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ता है।
- प्राणियों के खाद्य-पदार्थों में कमी – वनों की अन्धाधुन्ध कटाई के परिणामस्वरूप जीव जन्तुओं को चारा तक उपलब्ध नहीं हो पा रहा है, जिस कारण हमें पशुओं से जो पदार्थ प्राप्त होते हैं, वे नष्ट होते जा रहे हैं।
निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)
प्रश्न 1
नगरीकरण से पर्यावरण प्रभावित होता है। (हाँ/नहीं)
या
जनसंख्या से पर्यावरण प्रभावित है। (हाँ/नहीं) [2015]
उत्तर:
हाँ।
प्रश्न 2
भौगोलिक पर्यावरण का प्रभाव प्रत्यक्ष भी होता है और …….. भी।
उत्तर:
अप्रत्यक्ष
प्रश्न 3
सभ्यता की वृद्धि के साथ भौगोलिक पर्यावरण का प्रभाव भी …….. जाता है।
उत्तर:
घटता।
प्रश्न 4
उस बाह्य शक्ति को क्या कहते हैं जो हमें प्रभावित करती है?
उत्तर:
पर्यावरण।
प्रश्न 5
किस विद्वान ने प्राकृतिक परिस्थितियों को धार्मिक व्यवहार से जोड़ने का प्रयास किया है।
उत्तर:
मैक्स मूलर।।
प्रश्न 6
‘भौगोलिक निर्णायकवाद’ की संकल्पना को किसने विकसित किया? [2008]
उत्तर:
बकल ने।
प्रश्न 7
“संस्कृति पर्यावरण का मानव निर्मित भाग है।” यह कथन किसका है?
उत्तर:
हर्सकोविट्स का।।
प्रश्न 8
चिपको आन्दोलन किसने चलाया? [2009]
उत्तर:
सुन्दरलाल बहुगुणा ने।
प्रश्न 9
प्रदूषण की एक परिभाषा दीजिए। [2009]
उत्तर:
प्रदूषण हमारी वायु, मृदा एवं जल के भौतिक, रासायनिक तथा जैविके लक्षणों में अवांछनीय परिवर्तन है जो मानव जीवन तथा अन्य जीवों पर हानिकारक प्रभाव डालता है।
प्रश्न10
संस्कृति मानव……….वातावरण है। [2009]
उत्तर:
निर्मित।
प्रश्न 11
संस्कृति के दो प्रकार लिखिए। [2009]
उत्तर:
भौतिक एवं अभौतिक संस्कृति।
प्रश्न 12
सांस्कृतिक पर्यावरण की एक परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
हर्सकोविट्स के अनुसार, “सांस्कृतिक पर्यावरण के अन्तर्गत वे सभी भौतिक और अभौतिक वस्तुएँ सम्मिलित हैं जिनका निर्माण मानव ने किया है।
बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)
प्रश्न 1
“पर्यावरण किसी भी उस बाह्य शक्ति को कहते हैं जो हमें प्रभावित करती है।” यह परिभाषा किस विद्वान ने प्रस्तुत की है?
(क) जिसबर्ट
(ख) रॉस
(ग) मैकाइवर
(घ) डेविस
प्रश्न 2
प्रकृति द्वारा मनुष्य को प्रदत्त दशाओं से निर्मित पर्यावरण को क्या कहा जाता है?
(क) भौगोलिक
(ख) सामाजिक
(ग) सांस्कृतिक
(घ) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 3
निम्नलिखित में से किस विद्वान ने भौगोलिक निश्चयवाद का समर्थन किया है?
(क) बकल
(ख) लीप्ले
(ग) हटिंग्टन
(घ) ये सभी
प्रश्न 4
भौगोलिक पर्यावरण किन तत्त्वों से बनता है?
(क) मनुष्य
(ख) प्राकृतिक दशाएँ
(ग) धार्मिक विश्वास
(घ) प्रथाएँ
प्रश्न 5
वह कौन-सा सिद्धान्त है जो सम्पूर्ण मानवीय क्रियाओं को भौगोलिक पर्यावरण के आधार पर स्पष्ट करने का प्रयास करता है?
(क) भौगोलिक निर्णायकवाद
(ख) तकनीकी निर्णायकवाद
(ग) सांस्कृतिक निर्णायकवाद
(घ) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 6
हंटिंग्टन किस सम्प्रदाय का समर्थक है?
(क) भौगोलिक निर्णायकवाद
(ख) तकनीकी निर्णायकवाद
(ग) सांस्कृतिक निर्णायकवाद
(घ) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 7
भारतीय सरकार ने गंगा विकास प्राधिकरण’ की स्थापना किस सन में की थी?
(क) सन् 1984 में
(ख) सन् 1985 में
(ग) सन् 1986 में
(घ) सन् 1987 में
प्रश्न 8
पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। [2009]
(क) 5 जून को
(ख) 24 जून को
(ग) 6 जून को
(घ) 20 जून को
उत्तर
1, (ख) रॉस,
2. (ख) सामाजिक,
3. (घ) ये सभी,
4. (ख) प्राकृतिक दशाएँ,
5. (क) भौगोलिक निर्णायकवाद,
6. (क) भौगोलिक निर्णायकवाद,
7. (ख) सन् 1985 में,
8. (क) 5 जून को।
We hope the UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 21 Effect of Environment on Indian Social Life (पर्यावरण का भारतीय सामाजिक जीवन पर प्रभाव) help you.