UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter Chapter 6 Indian Educationist: Pt Madan Mohan Malaviya (भारतीय शिक्षाशास्त्री-पण्डित मदन मोहन मालवीय)

By | June 1, 2022

UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter Chapter 6 Indian Educationist: Pt Madan Mohan Malaviya (भारतीय शिक्षाशास्त्री-पण्डित मदन मोहन मालवीय)

UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter  Chapter 6 Indian Educationist: Pt Madan Mohan Malaviya (भारतीय शिक्षाशास्त्री-पण्डित मदन मोहन मालवीय)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
पण्डित मदनमोहन मालवीय जी के अनुसार शिक्षा के अर्थ, उद्देश्यों तथा विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
या
पण्डित मदनमोहन मालवीय के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
या
पण्डित मदन मोहन मालवीय के अनुसार शिक्षा के उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
मालवीय के शैक्षिक विचार
मालवीय जी मुख्यत: एक शिक्षाशास्त्री नहीं थे और न ही उन्होंने किसी पुस्तक में अपने शैक्षिक विचार व्यक्त किए थे। मालवीय जी का कहना था कि मैं कोई शिक्षाशास्त्री नहीं हूं, लेकिन जब हम उनके कार्यों पर दृष्टिपात करते हैं तो उन्हें किसी भी शिक्षाशास्त्री से कम नहीं पाते हैं। अधिकांश शिक्षाशास्त्री तो अपने सिद्धान्तों और सैद्धान्तिक योजनाओं के कारण विख्यात होते हैं, किन्तु मालवीय जी से हमें सैद्धान्तिक और व्यावहारिक दोनों प्रकार के शैक्षिक योगदान प्राप्त हुए हैं। उनकी शैक्षिक विचारधारा उनके भाषणों और लेखों से स्पष्ट होती है। संक्षेप में उनके शैक्षिक विचारों का विवेचन निम्नवत् रूप में किया जा सकता है

1. शिक्षा का अर्थ
मालवीय जी के शब्दों में, “शिक्षा का तात्पर्य व्यक्ति में शारीरिक, मानसिक, आर्थिक एवं धार्मिक संस्कारों का विकास करना है।”
एक अन्य स्थान पर उन्होंने लिखा है-“शिक्षा से मेरा अभिप्राय विद्यालय में दी जाने वाली शिक्षा से है।” यद्यपि यह शिक्षा को संकुचित अर्थ है, किन्तु वे इसी संकुचित अर्थ वाली शिक्षा को समुचित उद्देश्यों की प्राप्ति का साधन बनाकर शिक्षा को विस्तृत अर्थ प्रदान करना चाहते थे। इस प्रकार मालवीय जी के अनुसार, “शिक्षा का तात्पर्य उस प्रक्रिया से है, जिसमें बालक या व्यक्ति के सर्वांगीण विकास को दृष्टि में रखते हुए उनमें शारीरिक, मानसिक, आर्थिक एवं धार्मिक संस्कारों का विकास किया जाता है।” हम कह सकते हैं कि मालवीय जी संस्थागत शिक्षा को अधिक महत्त्व देते थे। वास्तव में देश की तत्कालीन परिस्थितियों में शिक्षा के इसी स्वरूप की अधिक आवश्यकता थी।

2. शिक्षा के उद्देश्य
मालवीय जी ने शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य बताए थे-

  1. चारित्रिक एवं नैतिक विकास करना,
  2. धार्मिक विकास करना
  3. शारीरिक विकास करना
  4. जीविकोपार्जन हेतु तैयार करना
  5. मानसिक विकास करना
  6. सामाजिक भावना का विकास करना
  7. नैतिक भावना का विकास करना
  8. सन्देशात्मक विकास करना
  9. आध्यात्मिक विकास करना।

मालवीय जी ने उच्च शिक्षा के लिए कुछ विशेष उद्देश्य निर्धारित किए थे, जो कि निम्नलिखित हैं

  1. सांस्कृतिक उद्देश्य।
  2. कला और विज्ञान में शोध कार्य को प्रोत्साहन देना।
  3. भारतीय कला-कौशल का पुनरुत्थान करना।

3. शिक्षा के विभिन्न प्रकार या रूप
मालवीय जी विश्वविद्यालयों में विभिन्न प्रकार की शिक्षा देने के पक्ष में थे। शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों के विषय में उनके विचार निम्नलिखित थे

1. विज्ञान और कौशल की शिक्षा-आधुनिक युग की वैज्ञानिक प्रगति को ध्यान में रखते हुए मालवीय जी भारत में विभिन्न विज्ञानों की शिक्षा को आवश्यक समझते थे। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने इस बात पर बल दिया कि विद्यालयों में चिकित्साशास्त्र, शरीर विज्ञान, स्वास्थ्य विज्ञान, ज्योतिष विज्ञान, भौतिक विज्ञान, रसायनशास्त्र, गणिते आदि वैज्ञानिक विषयों की शिक्षा दी जानी चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने अन्वेषण एवं प्रयोगात्मक कार्य पर भी विशेष बल दिया। उनका विचार था कि देश की बेकारी और औद्योगिक अवनति को दूर करने के लिए तकनीकी का भी विकास करना चाहिए।

2. कृषि शिक्षा-भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश की अधिकांश जनता कृषि-कार्य में लगी हुई है। इसलिए कृषि के विकास पर ही भारत की उन्नति निर्भर है। मालवीय जी का कहना था कि विद्यालयों में कृषि की शिक्षा व्यवस्थित रूप से दी जानी चाहिए, जिससे लोगों को नए-नए कृषि-यन्त्रों, साधनों, बीजों और विधियों की निरन्तर जानकारी प्राप्त होती रहे। साथ ही भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल नई-नई खोजें भी की जा सकें। उन्होंने कृषि के प्रयोगात्मक रूप पर भी अत्यधिक बल दिया।

3. चरित्र-निर्माण की शिक्षा-मालवीय जी का विचार था कि विद्यालयों में ऐसी शिक्षा दी जाती चाहिए जिससे विद्यार्थियों के चरित्र का विकास हो सके और उन्हें उचित-अनुचित का ज्ञान हो जाए। उनको कहना था कि चरित्र को ऊँचा उठाने से व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास सम्भव है और जीवन सुखमय बन सकता है।

4. संगीत एवं ललित कलाओं की शिक्षा-मालवीय जी को विचार था कि विद्यार्थियों में सौन्दर्यानुभूति का विकास करने के लिए और सुखमय राष्ट्रीय जीवन व्यतीत करने के लिए विद्यालयों में संगीत एवं ललित कलाओं—चित्रकला, वास्तुकला, अभिनय कला आदि को पाठ्यक्रम का अभिन्न अंग बना देना चाहिए। इससे जीवन में सरलता आती है और राष्ट्रीय संगीत का पुनर्निर्माण और विकास सम्भव

5. प्राइमरी और अन्य स्तर की शिक्षा-मालवीय जी तत्कालीन प्राथमिक शिक्षा के स्तर से बहुत असन्तुष्ट थे। इसलिए उन्होंने इसमें सुधार करने के लिए सुझाव दिया।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
मालवीय जी के जीवन-वृत्त का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
पण्डित मदनमोहन मालवीय का जन्म 25 दिसम्बर, 1861 ई० को इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने सन् 1884 ई० में बी० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। वे कुछ समय तक दैनिक हिन्दी पत्र ‘हिन्दुस्तान के सम्पादक रहे। उन्होंने स्वयं ‘अभ्युदय नामक पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ करवाया था। मालवीय जी का जीवन सरलता तथा पवित्रता का आदर्श जीवन था। वे एक महान् वक्ता थे। उनका हिन्दी, संस्कृत तथा अंग्रेजी तीनों भाषाओं पर असाधारण अधिकार था। मालवीय जी ने अखिल भारतीय कांग्रेस के 1909 ई० के लाहौर और 1918 ई० के दिल्ली अधिवेशन की अध्यक्षता की थी। सन् 1902 ई० में इनका चुनाव प्रान्तीय विधान परिषद् के लिए हुआ। सन् 1910 ई० में वे इम्पीरियल लेजिस्लेंटिव कौंसिल के सदस्य चुन लिए गए और सन् 1920 ई० तक सदस्य रहे।

सन् 1919 ई० में इन्होंने रौलेट ऐक्ट के विरोध में जोरदार ऐतिहासिक भाषण दिया था। सन् 1924 ई० में मालवीय जी भारतीय विधानसभा के सदस्य चुने गए तथा सन् 1927 ई० में वे राष्ट्रीय दल के असेम्बली में नेता रहे। सन् 1931 ई० में मालवीय जी द्वितीय गोलमेज परिषद् की बैठक में भाग लेने के लिए लन्दन गए। सन् 1932 ई० में उन्होंने अखिल भारतीय एकता सम्मेलन का सभापतित्व ग्रहण किया। मालवीय जी हिन्दुत्व के पोषक थे। सनातन धर्म महासभा के वे प्राण समझे जाते थे। इन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना करके अपना नाम अमर कर लिया। 12 नवम्बर, 1946 ई० को इस महान् राजनीतिज्ञ, देशभक्त, समाजोद्धारक तथा शिक्षाशास्त्री ने अपने नश्वर शरीर को त्याग दिया।

प्रश्न 2
शिक्षा के पाठ्यक्रम के विषय में मालवीय जी के विचार प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
मालवीय जी का मत था कि पाठ्यक्रम का आधार व्यक्ति, समाज एवं देश की आवश्यकता, संस्कृति एवं जीवन दर्शन होना चाहिए, इसलिए उन्होंने संस्कृत एवं धर्म की शिक्षा को पाठ्यक्रम का अनिवार्य विषय बनाने पर बल दिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने कलात्मक विषयों को भी स्वीकार किया। उनका कहना था कि अंग्रेजी या किसी विदेशी भाषा का अध्ययन तभी करना चाहिए जब कि उससे भारतीय साहित्य, विज्ञान एवं भाषा के अध्ययन में सहायता मिले। उन्होंने पाठ्यक्रम में कुछ ऐसे विषयों को भी स्थान दिया जिनसे विद्यार्थी अपने जीविकोपार्जन की समस्या हल कर सकें; जैसे-चिकित्सा, कानून, अध्यापन आदि। इसके अतिरिक्त उन्होंने सामाजिक विषयों-इतिहास, राजनीति, अर्थशास्त्र आदि को भी पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया। मालवीय जी ने सन् 1904 ई० में व्यावहारिक दृष्टिकोण से शिक्षा के एक व्यापक पाठ्यक्रम की रूपरेखा तैयार की, जिसमें प्राइमरी से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक का सम्पूर्ण शिक्षा-पाठ्यक्रम निहित था।

प्रश्न 3
शिक्षण विधियों के विषय में मदन मोहन मालवीय के विचारों की विवेचना कीजिए।
उत्तर
मालवीय जी ने अपनी कोई शिक्षण विधि नहीं बताई है। उन्होंने केवल अपने लेखों में कुछ ऐसी शिक्षण विधियों की ओर संकेत किया है, जो उच्च स्तर की कक्षाओं के लिए उपयुक्त मानी जा सकती हैं। इन शिक्षण विधियों का विवरण इस प्रकार है|

  1.  व्याख्यान या भाषण विधि-मालवीय जी स्वयं एक कुशल वक्ता थे। इसीलिए शिक्षण विधि के रूप में वे भाषण या व्याख्यान को अधिक महत्त्व देते थे। उन्होंने व्याख्यान विधि को ही उच्च शिक्षा के लिए उपयुक्त माना था।
  2. अभ्यास विधि-मालवीय जी ने शिक्षण प्रक्रिया में अभ्यास को विशेष महत्त्व दिया है। उन्होंने बताया कि विद्यार्थी को निरन्तर अभ्यास करते रहना चाहिए, क्योंकि अभ्यास से ज्ञान पुष्ट होता है।
  3. स्वाध्याय विधि-मालवीय जी ने कहा है कि विद्यालय में प्राप्त की गई शिक्षा पर विद्यार्थियों को घर में चिन्तन-मनन तथा तर्क-वितर्क करना चाहिए। इस प्रकार उन्होंने स्वाध्याय विधि का समर्थन किया।
  4. निरीक्षण विधि-उन्होंने निरीक्षण विधि का समर्थन करते हुए छात्रों द्वारा वास्तविक वस्तुओं के निरीक्षण पर बल दिया है।
  5. प्रयोगशाला विधि-मालवीय जी के अनुसार विद्यार्थियों को प्रायोगिक विषयों का ज्ञान प्रयोगशालाओं में प्रदान करना चाहिए। विज्ञान की शिक्षा में इस विधि का बहुत महत्त्व है।

प्रश्न 4
पण्डित मदन मोहन मालवीय के शैक्षिक योगदान का सविस्तार वर्णन कीजिए।
या
पण्डित मदनमोहन मालवीय की शिक्षा जगत में देन महत्त्वपूर्ण है। सिद्ध कीजिए।
या
“पण्डित मदनमोहन मालवीय का योगदान शिक्षा जगत् में महत्त्वपूर्ण है।” विवेचना कीजिए।
उत्तर
पण्डित मदन मोहन मालवीय का शैक्षिक योगदान निम्न प्रकार है|

  1. हिन्दू धर्म का पुनरुत्थान-मालवीय जी ने हिन्दू धर्म का पुनरुत्थान करके भारतीय समाज को अमूल्य योगदान दिया। प्राचीन भारत में शिक्षा पूर्णरूप से धर्म पर आधारित थी और धर्म, जीवन तथा शिक्षा आपस में सम्बद्ध थे। धार्मिक विषयों-वेद, पुराण, स्मृति आदि को पाठ्यक्रम में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। अत: मालवीय ने शिक्षा के क्षेत्र में इस परम्परा की पुनस्र्थापना की।
  2. प्राचीनता तथा नवीनता में समन्वय-मालवीय जी ने शिक्षा के क्षेत्र में समन्वयवादी विचारधारा का समर्थन करके प्राचीन एवं आधुनिक भारतीय एवं पाश्चात्य शिक्षा-प्रणालियों का अद्वितीय समन्वय किया।
  3. प्राचीन साहित्य एवं कलाओं का पुनरुत्थान-मालवीय जी का प्रारम्भिक जीवन धार्मिक वातावरण में व्यतीत हुआ था, इसीलिए उन्होंने अपने जीवन काल में हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान का प्रयत्न किया। उन्होंने अपने शिक्षा सम्बन्धी विचारों में भी धर्म को बहुत अधिक महत्त्व दिया।
  4. राष्ट्रीय शिक्षा की समस्या-मालवीय जी ने राष्ट्रीय शिक्षा की समस्या हल करने के लिए नए प्रकार के विद्यालयों की स्थापना की। वे शिक्षा के कार्य को भारतीय परम्पराओं से सम्बद्ध करना चाहते थे। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने चारों वर्षों (क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र) और स्त्रियों के लिए उच्च-शिक्षा स्तर तक की शिक्षा की समुचित व्यवस्था की।
  5. भाषाओं के समन्वय का प्रयास-मालवीय जी ने भाषाओं के समन्वय के सिद्धान्त को भी समर्थन किया। वे एक ओर तो प्राचीन संस्कृति का ज्ञान कराने के लिए संस्कृत भाषा का अध्ययन आवश्यक समझते थे और दूसरी ओर वर्तमान युग की परिस्थितियों के अनुकूल सफल जीवन व्यतीत करने के लिए मातृभाषा के अध्ययन पर बल देते थे। इसके साथ-ही-साथ उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए अंग्रेजी को भी स्वीकार किया है।
  6. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना-मालवीय जी ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना करके अपने आदर्शों, मूल्यों एवं विचारों को साकार रूप प्रदान किया। वास्तव में यह मालवीय जी की कर्तव्यपरायणता, कर्मठता, त्याग, तपस्या तथा देशप्रेम का कीर्ति स्तम्भ है। इसके अतिरिक्त उन्होंने ‘भारती भवन पुस्तकालय’ तथा ‘हिन्दू हॉस्टल’ स्थापित करके भी शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान प्रदान किया।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
शिक्षा के माध्यम के विषय में मालवीय जी के विचार क्या थे?
या
पण्डित मदन मोहन मालवीय के अनुसार शिक्षा के माध्यम का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
मालवीय जी (हिन्दी, हिन्दू-हिन्दुस्थान के नारे के प्रबल समर्थक थे। यही कारण था कि उन्होंने पाश्चात्य सभ्यता में पलकर भी मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा देने पर बल दिया। उनका मत था कि देशवासियों को एकता के सूत्र में बाँधने के लिए एक सामान्य भाषा होनी चाहिए और यह भाषा केवल हिन्दी ही हो सकती है, क्योंकि हिन्दी जनजीवन के बोलचाल की भाषा है। इसीलिए उन्होंने कहा कि प्राथमिक से लेकर उच्च स्तर तक हिन्दी को शिक्षा का माध्यम बना देना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने उच्च शिक्षा स्तर पर अंग्रेजी भाषा को माध्यम बनाने की बात कुछ व्यावहारिक कठिनाइयों के कारण स्वीकार की थी।

प्रश्न 2
विद्यालय के वातावरण के विषय में मालवीय जी के क्या विचार थे?
उत्तर
मालवीय जी का कहना था कि विद्यालय, शान्त, सुरम्य और पवित्र स्थान पर होना चाहिए, जिससे सामाजिक बुराइयों का प्रभाव विद्यालय पर न पड़ सके। विद्यालय में बालकों को ऐसा वातावरण मिलना चाहिए, जिससे उनमें सामाजिक एवं सांस्कृतिक भावनाओं का विकास हो सके। इसके लिए छात्रों के आपसी सम्बन्ध, छात्रों व अध्यापकों के सम्बन्ध तथा अध्यापकों के पारस्परिक सम्बन्ध अच्छे होने चाहिए।

प्रश्न 3.
मालवीय जी के शिक्षा के क्षेत्र में अनुशासन सम्बन्धी विचारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
मालवीय जी शिक्षा के क्षेत्र में अनुशासन अनिवार्य मानते थे, परन्तु मालवीय जी दमनात्मक अनुशासन तथा बाह्य अनुशासन के विरोधी थे। वे अनुशासन की स्थापना के लिए शारीरिक दण्ड को महत्त्व नहीं देते थे। उनका प्रभावात्मक अनुशासन में दृढ़ विश्वास था। वे विद्यार्थी के लिए ब्रह्मचर्य एवं इन्द्रिय-निग्रह को आवश्यक मानते थे। उनका कहना था कि बालक को मन, वचन और कर्म पर नियन्त्रण रखना चाहिए। इस प्रकार वे आत्मीनुशासन के पक्ष में थे। उनका विचार था कि विद्यालय एवं कक्षा में अनुशासन बनाए रखने में शिक्षक की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। यदि शिक्षके स्वयं आदर्श चरित्रवान तथा उत्तम गुणों से युक्त हो तो छात्र उसका अनुकरण करके स्वत: ही अनुशासित रहते हैं।

प्रश्न 4
मालवीय जी के अनुसार अध्यापकों के मुख्य गुण क्या होने चाहिए?
उत्तर
मालवीय जी का मत था कि किसी भी शिक्षण विधि की सफलता इसके अध्यापकों पर निर्भर होती है। अध्यापक को प्रभावशाली, चरित्रवान, उदार, सहिष्णु तथा विद्वान् होना चाहिए। उन्होंने सम्पूर्ण शिक्षण प्रक्रिया में अध्यापक को बहुत महत्वपूर्ण बताया है, क्योंकि अध्यापक भावी नागरिकों का समुचित पथ-पदर्शन करता है। कुशल और प्रभावशाली अध्यापकों पर ही देश की प्रगति निर्भर करती है।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
पण्डित मदनमोहन मालवीय जी का जन्म कब हुआ था?
उत्तर
पं० मदन मोहन मालवीय जी का जन्म 25 दिसम्बर, सन् 1861 को हुआ था।

प्रश्न 2
मालवीय जी के अनुसार शिक्षा का अर्थ क्या है?
उत्तर
मालवीय जी के अनुसार शिक्षा का तात्पर्य व्यक्ति में शारीरिक, मानसिक, आर्थिक एवं । धार्मिक संस्कारों का विकास करना है।

प्रश्न 3
मालवीय जी के अनुसार शिक्षा के पाठ्यक्रम के निर्धारण का आधार क्या होना चाहिए?
उत्तर
मालवीय जी के अनुसार शिक्षा के पाठ्यक्रम के निर्धारण का आधार व्यक्ति, समाज, देश की आवश्यकता, संस्कृति एवं जीवन-दर्शन होना चाहिए।

प्रश्न 4
मालवीय जी ने शिक्षा के किस स्वरूप को प्राथमिकता प्रदान की थी?
उत्तर
मालवीय जी संस्थागत अर्थात् औपचारिक शिक्षा को प्राथमिकता प्रदान करते थे।

प्रश्न 5
मालवीय जी ने शिक्षा के माध्यम के रूप में किस भाषा को अपनाने का सुझाव दिया था?
उत्तर
मालवीय जी ने शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा तथा हिन्दी भाषा को अपनाने का सुझाव दिया था। उनके अनुसार केवल व्यावहारिक कठिनाइयों की दशा में अंग्रेजी भाषा को अपनाया जा सकता है।

प्रश्न 6
मालवीय जी किस शिक्षण विधि के पक्ष में अधिक थे?
उत्तर
मालवीय जी शिक्षण की व्याख्यान विधि के पक्ष में अधिक थे।

प्रश्न 7
मालवीय जी की अनुशासन सम्बन्धी मान्यता क्या थी?
उत्तर
मालवीय जी आत्मानुशासन तथा प्रभावात्मक अनुशासन के पक्ष में थे। वे दमनात्मक अनुशासन के विरुद्ध थे।

प्रश्न 8
मालवीय जी का मुख्य नारा क्या था?
उत्तर
मालवीय जी का मुख्य नारा था-हिन्दी-हिन्दू-हिन्दुस्थान।

प्रश्न 9
पण्डित मदन मोहन मालवीय द्वारा स्थापित शैक्षिक संस्था का नाम बताइए।
उत्तर
पं० मदन मोहन मालवीय द्वारा स्थापित शैक्षिक संस्था का नाम ‘बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय है।

प्रश्न 10
निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य

  1. मालवीय जी हिन्दी, संस्कृत तथा अंग्रेजी के अच्छे ज्ञाता थे।
  2. मालवीय जी ने राजनीति में कभी भी भाग नहीं लिया था।
  3. मालवीय जी ने ‘अभ्युदय’ नामक पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ करवाया था।
  4. मालवीय जी ने अंग्रेजी भाषा को राजभाषा बनाने का समर्थन किया था।
  5. मालवीय जी धार्मिक शिक्षा के विरोधी थे।
  6. मालवीय जी विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा के समर्थक थे।

उत्तर

  1. सत्य
  2. असत्य
  3. सत्य
  4. असत्य
  5. असत्य
  6. सत्य।

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के दिए गए विकल्पोंसेसेसही विकल्प का चुनावकीजिए
प्रश्न 1
पं० मदनमोहन मालवीय किस हिन्दी दैनिक पत्र के सम्पादक रहे थे?
(क) अमृत बाजार पत्रिका
(ख) पंजाब केसरी
(ग) हिन्दुस्तान ।
(घ) स्वतन्त्र भारत
उत्तर
(ग) हिन्दुस्तान

प्रश्न 2
“शिक्षा से मेरा अभिप्राय विद्यालय में दी जाने वाली शिक्षा से है।”-यह कथन किसका
(क) लाला लाजपत राय,
(ख) स्वामी दयानन्द
(ग) गोपालकृष्ण गोखले
(घ) मदनमोहन मालवीय
उत्तर
(घ) मदनमोहन मालवीय

प्रश्न 3
मदनमोहन मालवीय द्वारा स्थापित संस्था है
(क) बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय
(ख) भारती भवन पुस्तकालय
(ग) हिन्दू होस्टल
(घ) ये सभी
उत्तर
(घ) ये सभी

प्रश्न 4
मदनमोहन मालवीय ने किस विश्वविद्यालय की स्थापना की थी?
(क) बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय
(ख) काशी विद्यापीठ
(ग) सम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय
(घ) विश्वभारती विश्वविद्यालय
उत्तर
(क) बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय

प्रश्न 5
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी
(क) 1916 ई० में
(ख) 1917 ई० में
(ग) 1919 ई० में
(घ) 1933 ई० में
उत्तर
(क) 1916 ई० में

प्रश्न 6
मालवीय जी किस प्रकार की शिक्षा को आवश्यक मानते थे?
(क) विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा
(ख) कृषि-शिक्षा
(ग) ललित कलाओं की शिक्षा
(घ) इन सभी प्रकार की शिक्षा
उत्तर
(घ) इन सभी प्रकार की शिक्षा

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