UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 20 Interest, Attention and Education (रुचि, अवधान तथा शिक्षा)

By | June 1, 2022

UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 20 Interest, Attention and Education (रुचि, अवधान तथा शिक्षा)

UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 20 Interest, Attention and Education (रुचि, अवधान तथा शिक्षा)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
रुचि का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए। बालकों में रुचि उत्पन्न करने के उपायों को भी स्पष्ट कीजिए।
या
रुचि क्या है? विषय-वस्तु में रुचि पैदा करने के लिए अध्यापक को कौन-से उपाय करने चाहिए? स्पष्ट कीजिए।
या
रुचि से आप क्या समझते हैं? सीखने में रुचि के महत्त्व की विवेचना कीजिए। [2015]
या
रुचि के स्वरूप पर प्रकाश डालिए। किसी पाठ को पढ़ाते समय अध्यापक अपने छात्रों पर किस प्रकार रुचि उत्पन्न कर सकता है? [2009, 11]
या
वे कौन-से कारक हैं जो रुचियों के निर्माण को आगे बढ़ाते हैं? [2015]
या
रुचिसे आप क्या समझते हैं?”रुचि सीखने की वह दशा है जो अध्यापक और विद्यार्थी दोनों के लिए आवश्यक है।” इस कथन की विवेचना कीजिए। [2008, 11, 13]
या
रुचि क्या है? क्या यह जन्मजात अथवा अर्जित होती है? अधिगम में इसके महत्त्व की विवेचना कीजिए। [2016]
या
रुचि का अर्थ स्पष्ट कीजिए। छात्रों में रुचि उत्पन्न करने की विधियों का वर्णन कीजिए। [2016]
उत्तर :
रुचि का अर्थ एवं परिभाषा
रुचि अवधान का अन्तरंग प्रेरक है। रॉस (Ross) के अनुसार, रुचि का अर्थ है-लगाव अर्थात् जिस वस्तु के प्रति हमारा लगाव होता है, उसमें हमारी रुचि होती है। एक किशोर का लगाव पाठ्य-पुस्तकों की अपेक्षा उपन्यास में अधिक होता है। इस प्रकार यह लगाव ही रुचि है। रुचि में अन्तर करने की भावना होती है। हम किसी वस्तु में इस कारण रुचि रखते हैं, क्योंकि उसे अन्य वस्तुओं से अधिक महत्त्वपूर्ण समझते हैं।

रुचि की कुछ परिभाषाओं का विवरण निम्नलिखित है

  1. क्रो व क्रो के अनुसार, “रुचि उस प्रेरक शक्ति को कहा जाता है, जो हमें किसी व्यक्ति, वस्तु या क्रिया के प्रति ध्यान देने के लिए प्रेरित करती है।”
  2. डॉ० एस० एम० माथुर के अनुसार, “रुचि को प्रेरक शक्ति कहा जाता है, जो हमारे ध्यान को एक व्यक्ति, वस्तु या क्रिया की तरफ उन्मुख करती है या इसे प्रभावपूर्ण कहा जा सकता है, जो स्वयं ही अपनी सक्रियता से उत्तेजित होती है।”
  3. भाटिया के अनुसार, “रुचि का अर्थ है-अन्तर करना। हम वस्तुओं में इस कारण रुचि रखते हैं, क्योंकि हमारे लिए उनमें और दूसरी वस्तुओं में अन्तर होता है, क्योंकि उनका हमसे सम्बन्ध होता है।

उपर्युक्त विवरण द्वारा रुचि का अर्थ स्पष्ट हो जाता है। रुचियों के दो प्रकार या वर्ग निर्धारित किये गये हैं, जिन्हें क्रमश :

  • जन्मजात रुचियाँ तथा
  • अर्जित रुचियाँ कहते हैं।

[संकेत : रुचियों के प्रकार के विस्तृत विवरण हेतु लघु उत्तरीय प्रश्न 1 का उत्तर देखें।]

बालकों में रुचि उत्पन्न करने के उपाय
निम्नांकित उपायों या विधियों द्वारा बालकों में पाठ के प्रति रुचि उत्पन्न की जा सकती है

  1. छोटे बालक सबसे अधिक रुचि अपने आप में लेते हैं। अत: किसी नीरस विषय को बालकों के अपने मन से सम्बन्धित करके पढ़ाया जाए।
  2. छोटे बालकों की रुचि मूल-प्रवृत्तियों पर आधारित होती है। अतः अध्यापक को चाहिए कि पढ़ाते समय मूल-प्रवृत्यात्मक रुचियों को सुविधानुसार पाठ से सम्बन्धित करें।
  3. आयु के विकास के साथ-साथ बालकों की रुचियों में भी परिवर्तन होता है। अतः इस बात को ध्यान में रखकर ही पाठ्य विकास का आयोजन किया जाए।
  4. रुचि का आधार जिज्ञासा प्रवृत्ति है। अतः विषय के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न करना आवश्यक है।
  5. रुचि के अनुसार विषय में परिवर्तन भी किया जाना चाहिए।
  6. पाठ पढ़ाते समय बालकों को उसका उद्देश्य भी बता दिया जाए, क्योंकि बालक किसी कार्य में । तभी रुचि लेते हैं, जब उन्हें उद्देश्य को पता चल जाता है।
  7. पाठ्य वस्तु का सम्बन्ध यथासम्भव जीवन की आवश्यकताओं से किया जाए।
  8. किसी पाठ का अध्ययन करते समय प्रभावशाली स्थूल दृश्य-श्रव्य साधनों या सहायक सामग्री का प्रयोग करना चाहिए।
  9. बालक रचनात्मक कार्यों में विशेष रुचि लेते हैं। अत: पाठ का यथासम्भव सम्बन्ध रचनात्मक कार्यों में किया जाए।
  10. लगातार मौखिक शिक्षण बालकों में नीरसती उत्पन्न कर देता है। अतः बीच में उन्हें प्रयोग व निरीक्षण आदि के अवसर दिये जाएँ।
  11. प्राथमिक स्तर पर खेल विधि का प्रयोग उचित है।
  12. नवीन ज्ञान का सम्बन्ध पूर्व ज्ञान से करना परम आवश्यक है, क्योंकि छात्र उसे वस्तु में ही विशेष रुचि लेते हैं, जिनका उन्हें पहले से ही ज्ञान होता है।
  13. पढ़ाते समय किसी तथ्य की आवश्यकता से अधिक पुनरावृत्ति न की जाए, क्योंकि अधिक पुनरावृत्ति से नीरसता उत्पन्न होती है।
  14. पाठ्य विषयं को रोचक व प्रभावशाली बनाने में पर्यटन का सहारा लेना अधिक उपयोगी है। अतः अध्यापक को समय-समय पर शैक्षिक भ्रमण यात्राओं का आयोजन करना चाहिए।

शिक्षा या सीखने (अधिगम) में रुचि का महत्त्व
वास्तव में अध्यापक के लिए आवश्यक है कि वे विद्यार्थी में शिक्षा के प्रति रुचि जाग्रत करें और स्वयं भी शिक्षण-कार्य में रुचि लें, क्योंकि “रुचि सीखने की वह दशा है जो अध्यापक और विद्यार्थी दोनों के लिए आवश्यक है।” शिक्षा के क्षेत्र में रुचि का अत्यधिक महत्त्व एवं आवश्यकता है। रुचि के नितान्त अभाव में शिक्षा की प्रक्रिया सुचारु रूप से चल ही नहीं सकती।

इनके विपरीत यह भी सत्य है कि यदि किसी विषय के प्रति रुचि जाग्रत हो जाए तो उस दशा में शिक्षा की प्रक्रिया सरल, उत्तम तथा शीघ्र सम्पन्न होने लगती है। रुचि से जिज्ञासा उत्पन्न होती है तथा जिज्ञासा से ज्ञान प्राप्ति के हर सम्भव प्रयास किये जाते हैं तथा परिणामस्वरूप ज्ञान प्राप्त भी कर लिया जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि शिक्षा के लिए रुचि आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 2
अवधान का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए। अवधान की विशेषताओं का भी विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
अवधान का अर्थ एवं परिभाषा
‘अवधान’ वह मानसिक क्रिया है, जिसमें हमारी चेतना किसी वस्तु या पदार्थ पर केन्द्रित होती है। उदाहरण के लिए, हम किसी पार्क में बैठे एक गुलाब के फूले को देख रहे हैं। यद्यपि पार्क में स्त्री, पुरुष, बच्चे, फव्वारे भी हमारी कुछ-न-कुछ चेतना में हैं, परन्तु हमने अपने चेतना को केन्द्रित केवल गुलाब के फूल पर ही कर रखा है। इस प्रकार सेञ्चेतना का किसी वस्तु-विशेष पर केन्द्रित करना ही अवधान क्रहलाता है।

अवधान की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं

  1. डूमवाइल के अनुसार, “अन्य वस्तुओं की अपेक्षा एक ही वस्तु पर चेतना का केन्द्रीकरण ही अवधान है।”
  2. रॉस के अनुसार, “अवधान विचार की वस्तु को मन के समक्ष स्पष्ट रूप से प्रकट करने की प्रक्रिया है।”
  3. वेलेण्टाइन के अनुसार, “अवधान मस्तिष्क की शक्ति नहीं है, वरन् सम्पूर्ण रूप से मस्तिष्क की क्रिया या अभिव्यक्ति है।’
  4. बी० एन० झा के अनुसार, “किसी विचार या संस्कार को चेतना में स्थिर करने की प्रक्रिया को अवधान कहते हैं।”
  5. मन के अनुसार, “हम चाहे जिस दृष्टिकोण से विचार करें, अन्तिम निष्कर्ष में अवधान एक प्रेरणात्मक प्रक्रिया है।”
  6. मैक्डूगल के अनुसार, “ज्ञानात्मक प्रक्रिया पर पड़े प्रभाव की दृष्टि से विचार करने पर अवधान एक चेष्टा या प्रयास भर है।”

इस प्रकार स्पष्ट है कि जब चेतना के समक्ष आने वाले पदार्थों में एकता स्थापित करने की चेष्टा की जाती है तो उस मानसिक प्रक्रिया को अवधान कहा जाता है।

अवधान की विशेषताएँ
अवधान की ‘निम्नांकित विशेषताएँ पायी जाती हैं

1. एकाग्रता :
अवधान किसी वस्तु पर चेतना को एकाग्र करना है। अतः अवधान के लिए चित्त की एकाग्रता परम आवश्यक है।

2. मानसिक क्रियाशीलता :
अवधान की एक प्रमुख विशेषता क्रियाशीलता है। बिना मानसिक क्रियाशीलता के हम किसी वस्तु पर अवधान नहीं लगा सकते। उदाहरण के लिए, यदि हमें गुलाब के फूल पर अवैधान केन्द्रित करना है, तो इसके लिए मन को क्रियाशील बनाना होगा।

3. चयनात्मकता :
जिस वस्तु पर हम अवधान केन्द्रित करते हैं, उसका चयन अनेक वस्तुओं में से होता है। किसी बगीचे के अनेक फूलों में से किसी एक विशेष फूल पर हमारा अवधान केन्द्रित होता है।

4. प्रयोजनशीलता :
हम उन वस्तुओं पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं, जिनमें हमारा किसी-न-किसी प्रकार का प्रयोजन होता है। बालक का ध्यान रसगुल्ले पर क्यों एकदम चला जाता है, क्योंकि वह उसे खाने में अच्छा लगता है।

5. परिवर्तनशीलता :
अवधान अस्थिर तथा चंचल प्रकृति का होता है। कठिनता से ही एक वस्तु पर हम अपना ध्यान केन्द्रित कर पाते हैं, परन्तु प्रयास द्वारा अवधान केन्द्रित करने की शक्ति को बढ़ाया जा सकता है।

6. संकीर्ण या संकुचित प्रसार :
अवधान का विस्तार संकीर्ण या सन्तुलित होता है। हमारा अवधान विभिन्न पहलुओं में से किसी एक वस्तु पर ही केन्द्रित होता है। कुछ देर बाद हमारा अवधान दूसरी वस्तु पर केन्द्रित हो जाता है।

7. सजीवता :
अवधान चेतना के कारण प्रतिपादित होता है। अत: वह सजीव है। हम जिस वस्तु पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं, उसका अस्तित्व हमारी चेतना में होता है।

8. तत्परता :
वुडवर्थ (wood worth) के अनुसार, “अवधान की आवश्यक क्रिया तत्परता है।” अवधान की दशा में हमारा शरीर एक प्रकार की तत्परता की दशा में होता है।

9. गति-समायोजन :
अवधान में गतियों का समायोजन होता है, अर्थात् जब हम किसी वस्तु पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं, उस समय हमारी ज्ञानेन्द्रियों तथा कर्मेन्द्रियों के संचालन का समायोजन उस प्रक्रिया की प्रकृति के अनुसार हो जाता है। भाषण सुनते समय श्रोता के आँख, कान, गर्दन तथा बैठने की स्थिति नेता या भाषणकर्ता की ओर समायोजन कर लेती हैं।

प्रश्न 3
अवधान में सहायक दशाओं का वर्णन कीजिए।
या
अवधान केन्द्रित करने में सहायक बाह्य तथा आन्तरिक दशाओं का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
अवधान की दशाएँ।
अवधान का केन्द्रीकरण किस प्रकार होता है ? अथवा वे कौन-कौन-सी दशाएँ हैं, जो अवधान केन्द्रित करने में सहायक होती हैं ? इन प्रश्नों के लिए हमें उन दशाओं का अध्ययन करना होगा, जो कि अवधान केन्द्रित करने में सहायक होती हैं। ये दशाएँ दो वर्गों में विभक्त की जा सकती हैं-बाह्य दशाएँ तथा आन्तरिक दशाएँ।

अवधान केन्द्रित करने की बाह्य दशाएँ
अवधान केन्द्रित करने की बाह्य दशाएँ निम्नलिखित हैं अवधान केन्द्रित करने में सहायक बाह्य दशाओं के अन्तर्गत जिन कारकों को सम्मिलित किया जाता है, उनका सम्बन्ध मुख्य रूप से बाह्य विषय-वस्तु से होता है। इस वर्ग की दशाओं यो कारकों का सामान्य विवरण निम्नलिखित है।

1. स्वरूप :
अधान का केन्द्रीकरण उद्दीपन की प्रकृति या स्वरूप पर निर्भर करता है। छोटे बालक चटकीले रंग की वस्तुओं की ओर आकर्षित हो जाते हैं। जिन पुस्तकों में रंगीन चित्र होते हैं, उनमें बालक का ध्यान अधिक लगती है।

2. आकार :
अधिक या बड़े आकार की वस्तु की ओर हमारा ध्यान शीघ्र आकर्षित होता है। अखबारों के प्रथम पृष्ठ पर किसी मुख्य समाचार को मोटे-मोटे अक्षरों में इस कारण ही छापा जाता है। बड़े-बड़े विज्ञापन के पोस्टर भी इसके उदाहरण हैं।

3. गति :
स्थिर वस्तु की अपेक्षा गतिशीलं या चलती वस्तु की ओर, अवधान केन्द्रित करने हमारा ध्यान शीघ्र आकर्षित होता है। बैठे हुए मनुष्य की ओर हमारा ध्यान की बाह्य दशाएँ। नहीं जाती, परन्तु सड़क पर दौड़ता मनुष्य हमारा ध्यान आकर्षित कर लेता है।

4. विषमता :
विषमता के कारण भी हमारा ध्यान आकर्षित होता है। एक गोरे परिवार के व्यक्तियों में यदि कोई काला व्यक्ति है तो उसकी ओर विषमता के कारण हमारा ध्यान अवश्य जाता है।

5. नवीनता :
किसी नवीन या विचित्र वस्तु की ओर हमारा ध्यान तत्काल जाता है। यदि कोई अध्यापक प्रतिदिन कोट-पैंट में विद्यालय आते हैं। और किसी दिन वे धोती-कुर्ता पहनकर आ जाते हैं तो समस्त छात्रों का ध्यान । उनकी ओर आकर्षित हो जाता है।

6. अवधि :
जिस वस्तु पर जितना देखने का अवसर मिलती है, उतना ही उस पर हमारा ध्यान केन्द्रित होता है। इसी कारण भूगोल के शिक्षण में । मानचित्र बार-बार दिखाये जाते हैं।

7. परिवर्तन :
कक्षा में यदि शान्त वातावरण है, परन्तु सहसा किसी कोने से शोर होने लगता है, तो तुरन्त ही हमारा ध्यान उस ओर चला जाता है। इस प्रकार उद्दीपन में जब भी परिवर्तन होता हैं, तो उस परिवर्तन की ओर हमारा ध्यान तुरन्त चला जाता है।

8. प्रकार या रूप :
हमारा ध्यान आकर्षक, सुन्दर तथा सुडौल वस्तुओं की ओर शीघ्र जाता है और उन्हें बार-बार देखने की इच्छा होती है।

9. स्थिति :
उद्दीपन या वस्तु की स्थिति के समान हमारे अवधान की अवस्था होती है। प्रतिदिन हम सड़क पर वृक्षों के नीचे से गुजरते हैं, किन्तु हमारा ध्यान उनकी ओर आकर्षित नहीं होता है। परन्तु यदि किसी दिन उनमें से किसी वृक्ष को गिरा हुआ देखते हैं, तो हमारा ध्यान उसकी ओर तुरन्त चला जाता है।

10. तीव्रता :
शक्तिशाली और तीव्र उद्दीपन हमारा ध्यान अधिक आकर्षित करते हैं। मन्द ध्वनि की अपेक्षा तीव्र ध्वनि की ओर हमारा ध्यानं शीघ्र जाता है।

11. पुनरावृत्ति :
जिस बात को बार-बार दोहराया जाता है, उस ओर हमारा ध्यान स्वाभाविक रूप से चला जाता है। इसी कारण किसी पाठ के तत्त्वों को बार-बार दोहराया जाता है।

12. रहस्यमयता :
रहस्यपूर्ण बातों की ओर हमारा ध्यान शीघ्र आकर्षित होता है। दो व्यक्तियों में यदि कोई सामान्य बात हो रही हो तो उस ओर हमारा ध्यान नहीं जाता, परन्तु जब वे कानाफूसी करने लगते हैं तो तुरन्त ही हम उनकी ओर देखने लगते हैं।

अवधान केन्द्रित करने की आन्तरिक दशाएँ

अवधान की वे दशाएँ जो व्यक्ति में विद्यमान होती हैं, आन्तरिक दशाएँ कहलाती हैं। इन दशाओं का विवरण इस प्रकार है
1. अभिवृत्ति :
जिन वस्तुओं में हमारी अभिवृत्ति होती है, प्राय: उन वस्तुओं में हमारा ध्यान अधिक केन्द्रित होता है।

2. रुचि :
रुचि का ध्यान से घनिष्ठ सम्बन्ध है। हम उन्हीं वस्तुओं की ओर ध्यान देते हैं, जिनमें हमारी रुचि होती है। अरुचिकर वस्तुओं की ओर हमारा ध्यान ही नहीं जाता है।

3. मूल-प्रवृत्तियाँ :
ध्यान को केन्द्रित करने में मूल-प्रवृत्तियों का भी योग रहता है। रोमांटिक उपन्यास तथा कहानियों में किशोर-किशोरियों मूल-प्रवृत्तियों का ध्यान सामान्य पुस्तकों की अपेक्षा अधिक लगता है। साबुन, पाउडर, तेल आदि के विज्ञापनों पर स्त्रियों के चित्र इसी उद्देश्य से लगाये जाते हैं।

4. पूर्व अनुभव :
ध्यान के केन्द्रीकरण का एक अन्य कारण हमारे पूर्व अनुभव भी होते हैं। पूर्व अनुभव के आधार पर ही हम अपना ध्यान केन्द्रित कर पाते हैं।

5. मस्तिष्क :
जो विचार हमारे मस्तिष्क पर जिस समय छाया रहता है, उस समय उससे सम्बन्धित बात पर ही हम ध्यान देते हैं। उदाहरण के लिए, हमारे मस्तिष्क में किसी रोजगार का विचार है तो अखबार में हमारा सर्वप्रथम ध्यान रोजगार के विज्ञापनों पर ही जाएगा।

6. जानकारी या ज्ञान :
जिस विषय की हमें विशद जानकारी होती है, उस विषय पर हमारा ध्यान सरलता से केन्द्रित हो जाता है। जब बालक गणित के प्रश्न ठीक प्रकार से समझ जाता है तो वह उन पर अपना ध्यान सरलता से केन्द्रित कर लेता है।

7. आवश्यकता :
जो वस्तु हमारी आवश्यकताओं को पूरा करती है, उसकी ओर हमारा ध्यान स्वतः हीं चला जाता है। भूख के समय हमारा ध्यान भोजन की ओर तुरन्त चला जाता है।

8. जिज्ञासा :
जिज्ञासा अवधान को केन्द्रित करने में विशेष योग देती है। जिस वस्तु में हमारी जिज्ञासा होती है, उस पर हमारा ध्यान स्वाभाविक रूप से केन्द्रित हो जाता है।

9. लक्ष्य :
जब व्यक्ति को अपना लक्ष्य ज्ञात हो जाता है तो उस पर उसका ध्यान केन्द्रित हो जाता है। परीक्षा के दिनों में छात्रों का अध्ययन पर इस कारण ही केन्द्रित हो जाता है।

10. आदत :
आदत के कारण भी ध्यान केन्द्रित होता है, जो व्यक्ति किसी कारखाने के पास रहता है, उसे कारखाने के शोरगुल में भी ध्यान केन्द्रित करने की आदत पड़ जाती है। जो बालक शाम के पाँच बजे खेलने के अभ्यस्त हैं, तो प्रतिदिन पाँच बजे उनका ध्यान खेल की ओर चला जाता है।

प्रश्न 4
कक्षा में बालकों के अवधान को केन्द्रित करने के मुख्य उपायों का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
बालकों का अवधान केन्द्रित करने के उपाय
शिक्षण को उत्तम एवं प्रभावकारी बनाने के लिए बालकों के अवधान को पाठ्य विषय पर केन्द्रित होना आवश्यक माना जाता है। कक्षा में बालकों को अवधान केन्द्रित करने के लिए निम्नांकित उपाय काम में लाये जा सकते हैं

1. शान्त वातावरण :
ध्यान की एकाग्रता के लिए शान्त वातावरण का होना अत्यन्त आवश्यक है। शोरगुल बालकों के ध्यान को विचलित कर देता है। अतः अध्यापक का कर्तव्य है कि वह कक्षा में सदा शान्ति बनाये रखने का प्रयत्न करें।

2. विषय के प्रति रुचि जाग्रत करना :
यह बात सर्वमान्य है। कि जिस विषय में बालक की रुचि होती है, उसे वह कम समय में और कुशलता से सीख लेता है। अतः रुचि उत्पन्न करना अध्यापक का एक आवश्यक कार्य हो जाता है। वास्तव में विषय में रुचि उत्पन्न हो जाने पर छात्रों के ध्यान के भटकने को प्रश्न ही नहीं उठता।

3. बालकों की रुचियों का ध्यान :
विषय के प्रति रुचि जाग्रत करने के साथ-साथ अध्यापक को बालकों की रुचियों का भी ध्यान अतः शिक्षण के समय बालकों की रुचियों का ध्यान रखा जाए।

4. जिज्ञासा प्रवृत्ति का उपयोग :
बालकों का ध्यान पाठ पर केन्द्रित करने के लिए उनमें जिज्ञासा जाग्रत करना भी अत्यन्त आवश्यक है।

5. विषय में परिवर्तन :
ध्यान स्वभाव से चंचल होता है। अतः बालक अधिक काल तक किसी विषय पर अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर सकते। अत: एक विषय को अधिक समय तक न पढ़ाकर किसी दूसरे विषय का शिक्षण प्रारम्भ करना चाहिए।

6. सहायक सामग्री का प्रयोग :
सहायक सामग्री बालक के ध्यान को विषय पर केन्द्रित करने में विशेष योग देती है। ऐसी दशा में यथासम्भव सहायक सामग्री का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।

7. उचित शिक्षण विधियों का प्रयोग :
व्याख्यान विधि जैसी परम्परागत शिक्षण विधियाँ छात्रों का ध्यान अधिक देर तक विषय पर केन्द्रित नहीं रख पातीं। अतः बालक को ध्यान आकर्षित करने के लिए। अध्यापक को चाहिए कि वह खेल विधि, निरीक्षण विधि तथा प्रयोगात्मक विधि आदि का उपयोग भी करें।

8. पूर्व ज्ञान का नवीन ज्ञान से सम्बन्ध :
बालकों के पूर्व ज्ञान से नवीन ज्ञान को सम्बन्धित करना आवश्यक है। जब नवीन ज्ञान पूर्व ज्ञान से सम्बन्धित हो जाता है तो बालक का ध्यान सरलता से केन्द्रित हो। जाता है।

9. उचित वातावरण :
अनुचित वातावरण बालकों के ध्यान की एकाग्रता में सहायक नहीं होता है। यदि प्रकाश का अभाव है, बैठने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं है तथा आसपास बदबू आती है तो छात्रों को। अपना ध्यान केन्द्रित करने में कठिनाई होगी। अत: कक्षा के वातावरण को अनुकूल बनाना चाहिए।

10. बालक का स्वास्थ्य :
कमजोर बालक, जिसके सिर में दर्द रहता है, जिनकी आँखें कमजोर हैं। तथा जो कम सुनते हैं, वे पाठ पर अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाते हैं। अतः बालक के स्वास्थ्य के विषय में अध्यापक को अभिभावकों से सम्पर्क स्थापित करना चाहिए।

11. सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार :
अध्यापक को बालकों के ध्यान को विषय के प्रति आकर्षित करने के लिए उनके साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। कठोर व्यवहार से बालक ध्यान को एकाग्र नहीं कर पाते हैं।

12. पर्याप्त विश्राम :
थकान ध्यान को विचलित करने में सहायक होती है। अत: प्रधानाचार्य को कर्तव्य है कि वह विद्यालय की समय-सारणी का निर्माण इस ढंग से करे कि बालकों को पर्याप्त विश्राम मिल सके तथा उन्हें कम-से-कम थकान का अनुभव हो।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
रुचि के प्रकारों का उल्लेख कीजिए। [2007]
या
मानवीय रुचियों का स्पष्ट वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
रुचि मुख्यतः दो प्रकार की होती है

  1. जन्मजात एवं
  2. अर्जित।

1. जन्मजात रुचि :
जन्मजात रुचि, मूल-प्रवृत्तियों (Instincts) पर आधारित होती है और मनुष्य के स्वभाव तथा प्रकृति में निहित होती है। इनका स्रोत व्यक्ति के अन्दर जन्म से ही विद्यमान होता है। भोजन में हमारी रुचि भूख की जन्मजात प्रवृत्ति के कारण है। काम-वासना में रुचि होने के कारण हमारा ध्यान विपरीत लिंग की ओर आकृष्ट होता है। चिड़िया दाना खाने, गाय तथा भैंस हरा चारा खाने तथा हिंसक पशु मांस खाने में रुचि रखते हैं। यह जन्मजात क्रियाओं के कारण।

2. अर्जित रुचि :
अर्जित करने का अर्थ है उपार्जित करना (अर्थात् कमाना)। अर्जित रुचियों को व्यक्ति अपने वातावरण से अर्जित करता है। इनका निर्माण मनुष्य के अनुभव के आधार पर होता है। मनुष्य के मन की भावनाएँ तथा आदतें इनकी आधारशिला हैं। अतः भावनाओं तथा आदतों में परिवर्तन के साथ ही इनमें परिवर्तन आता रहता है। अपने हित या लाभ की परिस्थितियों के प्रति व्यक्ति की रुचियाँ बढ़ जाती हैं। किसी वस्तु या प्राणी के प्रति आकर्षण के कारण उसके प्रति हमारी रुचि पैदा हो जाती है। एक फोटोग्राफर को अच्छे कैमरे में रुचि होती है तथा बच्चों की रुचि नये-नये खिलौनों में।

प्रश्न 2
अवधान के मुख्य प्रकार कौन-कौन-से हैं ?
उत्तर :
अवधान के मुख्य प्रकारों का सामान्य परिचय निम्नलिखित है

1. ऐच्छिक अवधान :
जब कोई व्यक्ति किसी वस्तु या उद्दीपन पर अपनी समस्त चेतना को केन्द्रित कर देता है तो इस अवस्था को ऐच्छिक अवधान कहते हैं। इस प्रकार के अवधान में हमें किसी वस्तु या विचार पर ध्यान लगाने के लिए अपनी संकल्प-शक्ति का प्रयोग करना पड़ता है। सामान्य शब्दों में हम कहते हैं कि पूर्ण प्रयास करने पर ही ऐच्छिक अवधाने को लगाया जा सकता है। इस प्रकार के अवधान को सक्रिय अवधान भी कहते हैं।

2. अनैच्छिक अवधान :
जब किसी वस्तु या विचार पर हम बिना किसी प्रयत्न के अवधान लगाते हैं तो इस प्रकार के अवधान को अनैच्छिक अवधान कहते हैं। अनैच्छिक अवधान के लिए हमें अपनी संकल्प शक्ति का प्रयोग नहीं करना पड़ता। इस प्रकार के अवधान को निष्क्रिय अवधान भी कहा जाता है। उदाहरण के लिए, किसी जोर की आवाज पर, तीव्र प्रकाश पर तथा मधुर संगीत पर हमारा ध्यान अपने आप चला जाता है।

प्रश्न 3
अवधान और रुचि के सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मनोवैज्ञानिकों में अवधान और रुचि के विषय में परस्पर मतभेद है। रुचि और अवधान के परस्पर सम्बन्ध में तीन मत प्रचलित हैं

1. अवधान रुचि पर आधारित है :
इस मत के प्रतिपादकों का कहना है कि व्यक्ति उन्हीं बातों पर ध्यान देता है, जिनमें उसकी रुचि होती है। दूसरे शब्दों में, अवधान रुचि पर आधारित है। जिसे वस्तु में हमारी रुचि नहीं होगी, उस पर हमारी चेतना केन्द्रित नहीं होगी।

2.रुचि अवधान पर आधारित है-कुछ मनोवैज्ञानिकों का मत है कि रुचि का आधार ध्यान है। जब हम किसी वस्तु पर ध्यान देंगे ही नहीं तो हमारी उस वस्तु के प्रति रुचि उत्पन्न होगी ही नहीं। रुचि की। जागृति तभी होती है, जब हम किसी वस्तु पर ध्यान देते हैं।

3. समन्वयवादी मत :
यह मत उक्त दोनों मतों का समन्वय करता है। इस मत के समर्थकों के अनुसार अवधान और रुचि दोनों ही एक-दूसरे पर आधारित हैं। रॉस (Ross) के अनुसार, “अवधान तथा रुचि एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यदि रुचि के कारण कोई व्यक्ति किसी वस्तु पर ध्यान देता है तो अवधान के कारण उस वस्तु में उसकी रुचि उत्पन्न हो जाएगी।” मैक्डूगल ने भी लिखा है, “रुचि गुप्त अवधान है और अवधान सक्रिय रुचि है।”

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
व्यक्ति की रुचियों के विकास की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
यह सत्य है कि व्यक्ति की कुछ रुचियाँ जन्मजात होती हैं, परन्तु रुचियों का समुचित विकास जीवन में धीरे-धीरे तथा क्रमिक रूप से होता है। शिशु की रुचियों का आधार उसकी ज्ञानेन्द्रियाँ होती हैं, अर्थात् शैशवावस्था में रुचियों का विकास ज्ञानेन्द्रियों से सम्बन्धित होता है। बाल्यावस्था में बालक की सक्रियता बढ़ जाती है; अतः इस अवस्था में उसकी रुचियों का विकास क्रियात्मक खेलों के माध्यम से होता है।

बाल्यावस्था के उपरान्त किशोरावस्था में व्यक्ति की रुचियों का विकास कल्पनाओं, संवेगों तथा जिज्ञासा के माध्यम से होता है। इसके उपरान्त प्रौढ़ावस्था में व्यक्ति की नयी रुचियाँ प्रायः उत्पन्न नहीं होती। इस अवस्था में व्यक्ति की रुचियाँ स्थायी रूप ग्रहण करती हैं।

प्रश्न 2
रुचि और योग्यता का घनिष्ठ सम्बन्ध है।” इस कथन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
हम जानते हैं कि रुचि एक शक्ति है जो व्यक्ति को किसी विषय, वस्तु या कार्य के प्रति ध्यान केन्द्रित करने के लिए प्रेरित करती है। रुचि से लगन उत्पन्न होती है तथा व्यक्ति की शक्तियाँ अभीष्ट दिशा या कार्य में केन्द्रित हो जाती हैं। रुचि की इन विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए ही कहा जाता है कि रुचि और योग्यता को घनिष्ठ सम्बन्ध है।

वास्तव में रुचि की दशा में व्यक्ति अधिक ध्यानपूर्वक, लगन से तथा अपनी समस्त शक्तियों को जुटा कर कार्य करता है। इस स्थिति में योग्यता को विकास होना स्वाभाविक ही हो जाती है। यही कारण है कि हम कह सकते हैं कि रुचि और योग्यता का घनिष्ठ सम्बन्ध है।

प्रश्न 3
अनभिप्रेत अवधान से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
अनभिप्रेत अवधान एक विशेष प्रकार का अवधान है जिसमें व्यक्ति को विशिष्ट प्रयास की जरूरत होती है। यह अवधान ऐच्छिक होकर भी ऐच्छिक अवधान से भिन्न होता है। अनभिप्रेत अवधान के अन्तर्गत व्यक्ति किसी उत्तेजना या वस्तु पर अपनी इच्छा तथा रुचि के विरुद्ध जाकर ध्यान केन्द्रित करता है, लेकिन ऐच्छिक अवधान में व्यक्ति उस उत्तेजना या वस्तु की ओर अपनी इच्छा और रुचि के अनुकूल ध्यान केन्द्रित करने को प्रयास करता है।

उदाहरणार्थ :
माना एक कवि अपनी इच्छा एवं रुचि के अनुकूल काव्य-रचना में लगा है। उसी समय उसे किसी बीमार आदमी के लिए जरूरी तौर पर दवा लेने जाना पड़े। कविता से हटकर उसका जो ध्यान दवाइयों की दुकान पर केन्द्रित होगा; उसे अनभिप्रेत अवधान कहेंगे।

प्रश्न 4
व्यक्ति के अवधान का आदत से क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर :
व्यक्ति के अवधान में आदत का विशेष योगदान होता है। आदत को अवधान की सबसे अधिक अनुकूल या सहायक दशा माना गया है। व्यक्ति की जब जिस वस्तु की आदत होती है, उससे सम्बन्धित पदार्थ की ओर एक निर्धारित समय पर उसका अवधान अवश्य केन्द्रित हो जाता है। उदाहरण के लिए–यदि किसी व्यक्ति की दोपहर बाद तीन बजे चाय पीने की आदत हो तो निश्चित समय पर उसका ध्यान चाय की ओर केन्द्रित हो जाएगा।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
“रुचि को वह प्रेरक शक्ति कहा जाता है, जो हमें किसी व्यक्ति, वस्तु या क्रिया के प्रति ध्यान देने के लिए प्रेरित करता है।”-रुचि की यह परिभाषाकिसके द्वारा प्रतिपादित है?
उत्तर :
रुचि की प्रस्तुत परिभाषा क्रो तथा क्रो द्वारा प्रतिपादित है।

प्रश्न 2
ध्यान या अवधान का क्या अर्थ है ?
उत्तर :
ध्यान या अवधान वह मानसिक क्रिया है, जिसमें हमारी चेतना किसी व्यक्ति, विषय या वस्तु पर केन्द्रित होती है।

प्रश्न 3
अवधान की प्रक्रिया की चार मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
अवधान की प्रक्रिया की मुख्य विशेषताएँ हैं

  1. एकाग्रता
  2. मानसिक क्रियाशीलता
  3. चयनात्मकता तथा
  4. प्रयोजनशीलता

प्रश्न 4
कोई ऐसा कथन लिखिए जिससे अवधान एवं रुचि के सम्बन्ध को जाना जा सके।
उत्तर :
“अवधान तथा रुचि एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यदि रुचि के कारण कोई व्यक्ति किसी वस्तु पर ध्यान देता है तो अवधान के कारण उस वस्तु में उसकी रुचि उत्पन्न हो जाएगी।” [रॉस]

प्रश्न 5
“रुचि अपने क्रियात्मक रूप में एक मानसिक प्रवृत्ति है।” यह किसका कथन है ? [2007, 10]
उत्तर :
प्रस्तुत कथन जेम्स ड्रेवर का है।

प्रश्न 6
रुचियों के मुख्य वर्ग या प्रकार कौन-कौन से हैं? [2007, 2016]
या
रुचि के कितने प्रकार हैं?
उत्तर :
रुचियों के मुख्य वर्ग या प्रकार दो हैं

  1. जन्मजात रुचियाँ तथा
  2. अर्जित रुचियाँ

प्रश्न 7
रुचि क्या है? [2013]
उत्तर :
रुचि किसी उत्तेजना, वस्तु, व्यक्ति या परिस्थिति की ओर आकर्षित होने की प्राकृतिक, जन्मजात या अर्जित प्रवृत्ति है।

प्रश्न 8
अवधान के मुख्य दो प्रकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
अवधान के मुख्य दो प्रकार हैं

(1) ऐच्छिक अवधान तथा
(2) अनैच्छिक अवधान।

प्रश्न 9
निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य

  1. अवधान अपने आप में एक चयनात्मक प्रक्रिया है।
  2. प्रबल उत्तेजनाओं के प्रति व्यक्ति का अवधान केन्द्रित नहीं हो पाता।
  3. अवधान तथा रुचि का परस्पर कोई सम्बन्ध नहीं होता।
  4. रुचि गुप्त. अवधान है और अवधान सक्रिय रुचि है।
  5. अध्ययन के प्रति रुचि उत्पन्न करने के लिए शान्त तथा अनुकूल वातावरण आवश्यक होता है।
  6. रुचिकर विषय-वस्तुओं के प्रति अवधान शीघ्र केन्द्रित हो जाता है।

उत्तर :

  1. सत्य
  2. असत्य
  3. असत्य
  4. सत्य
  5. सत्य
  6. सत्य

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में दिये गये विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए

प्रश्न 1
“किसी दूसरी वस्तु की अपेक्षा एक वस्तु पर चेतना का केन्द्रीकरण अवधान है।” यह परिभाषा किसने दी है?
(क) जे० एस० रॉस ने
(ख) मैक्डूगल ने
(ग) डम्बिल ने
(घ) वुडवर्थ ने
उत्तर :
(ग) डम्बिल ने

प्रश्न 2
“किसी भी दृष्टिकोण से देखा जाए, अन्तिम विश्लेषण में अवधान एक प्रेरणात्मक प्रक्रिया है।” यह किसका कथन है ?
(क) मन का
(ख) जंग का
(ग) डम्बिल का
(घ) मैक्डूगल का
उत्तर :
(क) मन का

प्रश्न 3
“अवधान गतिशील होता है, क्योंकि वह अन्वेषणात्मक है।” यह कथन है
(क) वुडवर्थ का
(ख) मैक्डूगल का
(ग) हिलेगार्ड का
(घ) डम्बिल को
उत्तर :
(क) वुडवर्थ का

प्रश्न 4
रुचि एक
(क) अर्जित शक्ति है
(ख) प्रेरक शक्ति है
(ग) नैसर्गिक शक्ति है
(घ) बौद्धिक शक्ति है
उत्तर :
(ख) प्रेरक शक्ति है

प्रश्न 5
रुचि अपने क्रियात्मक रूप में एक मानसिक संस्कार है।” यह कथन है
(क) मैक्डूगल का
(ख) वुडवर्थ को
(ग) डेवर का
(घ) गेट्स का
उत्तर :
(ग) ड्रेवर का

प्रश्न 6
“रुचिं गुप्त अवधान है और अवधान सक्रिय रुचि है।” यह मत किसका है ?
(क) को तथा क्रो का
(ख) स्किनर का
(ग) वुडवर्थ को
(घ) मैक्डूगल का
उत्तर :
(घ) मैक्डूगल का

प्रश्न 7
विचार की किसी वस्तु को मस्तिष्क के सामने स्पष्ट रूप से लाने की प्रक्रिया है
(क) रुचि
(ख) कल्पना
(ग) अवधान
(घ) संवेदन
उत्तर :
(ग) अवधान

प्रश्न 8
पाठ को रुचिकर बनाने के लिए क्या आवश्यक है। [2012]
(क) शांतिपूर्ण वातावरण हो
(ख) पाठ के क्रियात्मक पद पर ध्यान दिया जाए
(ग) उपयुक्त शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाए
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर :
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 9
अवधान तथा रुचि के आपसी सम्बन्ध के विषय में सत्य है
(क) रुचि ध्यान पर आधारित होती है
(ख) ध्यान रुचि पर आधारित होता है
(ग) रुचि तथा ध्यान परस्पर फूक होते हैं
(घ) ये सभी कथन सत्य हैं
उत्तर :
(ग) रुचि तथा ध्यान परस्पर पूरक होते हैं।

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