UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 25 Personality and Personality Tests (व्यक्तित्व एवं व्यक्तित्व परीक्षण)

By | June 1, 2022

UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 25 Personality and Personality Tests (व्यक्तित्व एवं व्यक्तित्व परीक्षण)

UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 25 Personality and Personality Tests (व्यक्तित्व एवं व्यक्तित्व परीक्षण)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
व्यक्तित्व का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए। [2007]
या
व्यक्तित्व का क्या अर्थ है तथा इसकी परिभाषा भी दीजिए। व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए। [2007, 08]
उत्तर :
व्यक्तित्व का अर्थ
शाब्दिक उत्पत्ति के अर्थ में, इस शब्द का उद्गम लैटिन भाषा के ‘पर्सनेअर’ (Personare) शब्द से माना गया है। प्राचीनकाल में, ईसा से एक शताब्दी पहले Persona शब्द व्यक्ति के कार्यों को स्पष्ट करने के लिए प्रचलित था। विशेषकर इसका अर्थ नाटक में काम करने वाले अभिनेताओं द्वारा पहना हुआ नकाब समझा जाता था, जिसे धारण करके अभिनेता अपना असली रूप छिपाकर नकली वेश में रंगमंच पर अभिनय करते थे। रोमन काल में Persona शब्द का अर्थ हो गया—स्वयं वह अभिनेता’ जो अपने विलक्षण एवं विशिष्ट स्वरूप के साथ रंगमंच पर प्रकट होता था। इस भाँति व्यक्तित्व’ शब्द किसी व्यक्ति के वास्तविके स्वरूप का समानार्थी बन गया।

सामान्य अर्थ में 
व्यक्तित्व से अभिप्राय व्यक्ति के उन गुणों से है जो उसके शरीर सौष्ठव, स्वर तथा नाक-नक्श आदि से सम्बन्धित हैं। दार्शनिक दृष्टिकोण के अनुसार, सम्पूर्ण व्यक्तित्व आत्म-तत्त्व की पूर्णता में निहित है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार, मानव जीवन की किसी भी अवस्था में व्यक्ति का व्यक्तित्व एक संगठित इकाई है, जिसमें व्यक्ति के वंशानुक्रम और वातावरण से उत्पन्न समस्त गुण समाहित होते हैं। । दूसरे शब्दों में, व्यक्तित्व में बाह्य गुण तथा आन्तरिक गुण का समन्वित तथा संगठित रूप परिलक्षित होता है। अपने बाह्य एवं आन्तरिक गुणों के साथ व्यक्ति अपने वातावरण के साथ भी अनुकूलन करता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने वातावरण के साथ भिन्न प्रकार से अनुकूलन रखता है और इसी कारण से हर एक व्यक्ति का अपना अलग व्यक्तित्व होता है। इसके साथ ही व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति मनुष्य के व्यवहार से होती है, अथवा व्यक्तित्व पूरे व्यवहार का दर्पण है और मनुष्य व्यवहार के माध्यम से निज व्यक्तित्व को अभिप्रकाशित करता है। सन्तुलित व्यवहार सुदृढ़ व्यक्तित्व का परिचायक है।

व्यक्तित्व की परिभाषाएँ

  1. बोरिंग के अनुसार, “व्यक्ति के अपने वातावरण के साथ अपूर्व एवं स्थायी समायोजन के योग को व्यक्तित्व कहते हैं।”
  2. मन के शब्दों में, “व्यक्तित्व वह विशिष्ट संगठन है जिसके अन्तर्गत व्यक्ति के गठन, व्यवहार के तरीकों, रुचियों, दृष्टिकोणों, क्षमताओं, योग्यताओं और प्रवणताओं को सम्मिलित किया जा सकता है।”
  3. आलपोर्ट के अनुसार, “व्यक्तित्व व्यक्ति के उन मनो-शारीरिक संस्थानों का गत्यात्मक संगठन है जो वातावरण के साथ उसके अनूठे समायोजन को निर्धारित करता है।”
  4. मॉर्टन प्रिंस के कथनानुसार, “व्यक्तित्व व्यक्ति के सभी जन्मजात व्यवहारों, आवेगों, प्रवृत्तियों, झुकावों, आवश्यकताओं तथा मूल-प्रवृत्तियों एवं अनुभवजन्य और अर्जित व्यवहारों व प्रवृत्तियों का योग है।
  5. वारेन का विचार है, “व्यक्तित्व व्यक्ति का सम्पूर्ण मानसिक संगठन है जो उसके विकास की किसी भी अवस्था में होता है।

उपर्युक्त परिभाषाओं के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि 

  1. व्यक्ति एक मनोशारीरिक प्राणी है।
  2. वह अपने वातावरण से समायोजन (अनुकूलन) करके निज व्यवहार का निर्माण करता है।
  3. मनुष्य की शारीरिक-मानसिक विशेषताएँ उसके व्यवहार से जुड़कर संगठित रूप में दिखायी पड़ती हैं। यह संगठन ही व्यक्तित्वे की प्रमुख विशेषता है।
  4. प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तित्व स्वयं में विशिष्ट होता है।

व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले कारक
व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले मूल कारक हैं – आनुवंशिकता तथा पर्यावरण आनुवंशिकता में उन कारकों या गुणों को सम्मिलित किया जाता है, जो माता-पिता के माध्यम से प्राप्त होते हैं। इस प्रकार के मुख्य गुण हैं-शरीर का आकार एवं बनावट तथा रंग आदि। शरीर में पायी जाने वाली विभिन्न नलिकाविहीन ग्रन्थियाँ तथा उनसे होने वाला स्राव भी व्यक्ति को प्रभावित करते हैं। इसके अतिरिक्त वातावरण का भी व्यक्तित्व पर गम्भीर प्रभाव पड़ता है। वातावरण के अन्तर्गत मुख्य रूप से परिवार, विद्यालय तथा समाज का प्रभाव व्यक्ति के व्यक्तित्व के निर्माण एवं विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

प्रश्न 2
सन्तुलित व्यक्तित्व की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
सन्तुलित व्यक्तित्व की विशेषताएँ आदर्श नागरिक बनने के लिए मनुष्य के व्यक्तित्व का सन्तुलित होना अनिवार्य है। व्यवहार के माध्यम से व्यक्ति का व्यक्तित्व परिलक्षित होता है और समाजोपयोगी एवं वातावरण की परिस्थितियों से अनुकूलित व्यवहार ‘अच्छे व्यक्तित्व से ही उद्भूत होता है। सुन्दर एवं आकर्षक व्यक्तित्व दूसरे लोगों को शीघ्र ही प्रभावित कर देता है, जिससे वातावरण के साथ सफल सामंजस्य में सहायता मिलती है। यह तो निश्चित है कि सुन्दर जीवन जीने के लिए अच्छा एवं सन्तुलित व्यक्तित्व एक पूर्व आवश्यकता है, किन्तु प्रश्न यह है कि एक ‘आदर्श व्यक्तित्व के क्या मानदण्ड होंगे ? इसका उत्तर हमें निम्नलिखित शीर्षकों के माध्यम से प्राप्त होगा। सन्तुलित व्यक्तित्व की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है।

1. शारीरिक स्वास्थ्य :
सामान्य दृष्टि से व्यक्ति का शारीरिक स्वास्थ्य सन्तुलित एवं उत्तम व्यक्तित्व का पहला मानदण्ड है। अच्छे व्यक्तित्व वाले व्यक्ति का शारीरिक गठन, स्वास्थ्य तथा सौष्ठव प्रशंसनीय होता है। वह व्यक्ति नीरोग होता है तथा उसके विविध शारीरिक संस्थान अच्छी प्रकार कार्य कर रहे होते हैं।

2. मानसिक स्वास्थ्य :
अच्छे व्यक्तित्व के लिए स्वस्थ शरीर के साथ स्वस्थ मन भी होना चाहिए। स्वस्थ मन उस व्यक्ति का कहा जाएगा जिसमें कम-से-कम औसत बुद्धि पायी जाती हो, नियन्त्रित तथा सन्तुलित मनोवृत्तियाँ हों और उनकी मानसिक प्रक्रियाएँ भी कम-से-कम सामान्य रूप से कार्य कर रही हों।

3. आत्म-चेतना :
सन्तुलित व्यक्तित्व वाला व्यक्ति स्वाभिमानी तथा आत्म-चेतना से युक्त होता है। वह सदैव ऐसे कार्यों से बचता है जिसके करने से वह स्वयं अपनी ही नजर में गिरता हो या उसकी आत्म-चेतना आहत होती हो। वह चिन्तन के समय भी आत्म-चेतना आहत होती हो। वह चिन्तन के समय भी आत्म-चेतना को सुरक्षित रखता है तथा स्वस्थ विचारों को ही मन में स्थान देता है।

4. आत्म-गौरव-आत्म :
गौरव का स्थायी भाव अच्छे व्यक्तित्व का परिचायक है तथा व्यक्ति में आत्म-चेतना पैदा करता है। आत्म-गौरव से युक्त व्यक्ति आत्म-समीक्षा के माध्यम से प्रगति का मार्ग खोलता है और विकासोन्मुख होता है।

5. संवेगात्मक सन्तुलन :
अच्छे व्यक्तित्व के लिए आवश्यक है कि उसके समस्त संवेगों की अभिव्यक्ति सामान्य रूप से हो। उसमें किसी विशिष्ट संवेग की प्रबलता नहीं होनी चाहिए।

6. सामंजस्यता :
सामंजस्यता या अनुकूलन का गुण अच्छे व्यक्तित्व की पहली पहचान है। मनुष्य और उसके चारों ओर का वातावरण परिवर्तनशील है। वातावरण के विभिन्न घटकों में आने वाला परिवर्तन मनुष्य को प्रभावित करता है। अतः सन्तुलित व्यक्तित्व में अपने वातावरण के साथ अनुकूलन करने या सामंजस्य स्थापित करने की क्षमता होनी चाहिए। सामंजस्य की इस प्रक्रिया में या तो व्यक्ति स्वयं को वातावरण के अनुकूल परिवर्तित कर लेता है या वातावरण में अपने अनुसार परिवर्तन उत्पन्न कर देता है।

7. सामाजिकता :
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अतः उसमें अधिकाधिक सामाजिकता की भावना होनी चाहिए। सन्तुलित व्यक्तित्व में स्वस्थ सामाजिकता की भावना अपेक्षित है। स्वस्थ सामाजिकता का भाव मनुष्य के व्यक्तित्व में प्रेम, सहानुभूति, त्याग, सहयोग, उदारता, संयम तथा धैर्य का संचार करता है, जिससे उसका व्यक्तित्व विस्तृत एवं व्यापक होता जाता है। इस भाव के संकुचन से मनुष्य स्वयं तक सीमित, स्वार्थी, एकान्तवासी और समाज से दूर भागने लगता है। सामाजिकता की भावना , व्यक्ति के व्यक्तित्व को विराट सत्ता की ओर उन्मुख करती है।

8. एकीकरण :
मनुष्य में समाहित उसके संमस्त गुण एकीकृत या संगठित स्वरूप में उपस्थित होने चाहिए। सन्तुलित व्यक्तित्व के लिए उन सभी गुणों का एक इकाई के रूप में समन्वय अनिवार्य है। किसी एक गुण या पक्ष का आधिक्य या वेग व्यक्तित्व को असंगठित बना देता है। ऐसा बिखरा हुआ व्यक्तित्व असन्तुष्ट व दु:खी जीवन की ओर संकेत करंता है। अतः अच्छे व्यक्तित्व में एकीकरण या संगठन का गुण पाया जाता है।’

9. लक्ष्योन्मुखता या उद्देश्यपूर्णता :
प्रत्येक मनुष्य के जीवन का कुछ-न-कुछ उद्देश्य या लक्ष्य अवश्य होता है। निरुद्देश्य या लक्ष्यविहीन जीवन असफल, असन्तुष्ट तथा अच्छा जीवन नहीं माना जाता है। हर किसी जीवन का सुदूर उद्देश्य ऊँचा, स्वस्थ तथा सुनिश्चित होना चाहिए एवं उसकी तात्कालिक क्रियाओं को भी प्रयोजनात्मक होना चाहिए। एक अच्छे व्यक्तित्व में उद्देश्यपूर्णता का होना अनिवार्य है।

10. संकल्प :
शक्ति की प्रबलता-प्रबल एवं दृढ़ इच्छा-शक्ति के कारण कार्य में तन्मयता तथा संलग्नता आती है। प्रबल संकल्प लेकर ही बाधाओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है तथा लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। स्पष्टतः संकल्प-शक्ति की प्रबलता सन्तुलित व्यक्तित्व का एक उचित मानदण्ड है।

11. सन्तोषपूर्ण महत्त्वाकांक्षा :
उच्च एवं महान् आकांक्षाएँ मानव जीवन के विकास की द्योतक हैं, किन्तु यदि व्यक्ति इन उच्च आकांक्षाओं के लिए चिन्तित रहेगा तो उससे वह स्वयं को दुःखी एवं असन्तुष्ट हो पाएगा। मनुष्य को अपनी मन:स्थिति को इस प्रकार निर्मित करना चाहिए कि इन उच्च आकांक्षाओं की पूर्ति के अभाव में उसे असन्तोष या दुःख का बोध न हो। मनोविज्ञान की भाषा में इसे सन्तोषपूर्ण महत्त्वाकांक्षा कहा गया है और यह सुन्दर व्यक्तित्व के लिए आवश्यक है। हमने उपर्युक्त बिन्दुओं के अन्तर्गत एक सम्यक् एवं सन्तुलित व्यक्तित्व की विशेषताओं का अध्ययन किया है। इन सभी गुणों का समाहार ही एक आदर्श व्यक्तित्व कहा जा सकता है, जिसे समक्ष रखकर हम अन्य व्यक्तियों से उसकी तुलना कर सकते हैं और निज व्यक्तित्व को उसके अनुरूप ढालने का प्रयास कर सकते हैं।

प्रश्न 3
व्यक्तित्व परीक्षण की मुख्य विधियाँ कौन-कौन-सी हैं ? व्यक्तित्व परीक्षण की वैयक्तिक विधियों का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।
या
व्यक्तित्व मापन की प्रमुख विधियों का वर्णन कीजिए। [2008]
या
व्यक्तित्व परीक्षण के कौन-कौन से प्रकार हैं? इनमें से किसी एक की विवेचना कीजिए। [2010]
या
व्यक्तित्व मापन के विभिन्न प्रकार बताइए और उनमें से किसी एक विधि का वर्णन कीजिए। [2007, 13, 15]
उत्तर :
व्यक्तित्व परीक्षण की विधियाँ
व्यक्तित्व का मापने या परीक्षण एक जटिल समस्या है, जिसके लिए किसी एक विधि को प्रामाणिक नहीं माना जा सकता। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व मापन व परीक्षण के लिए कुछ विधियों का निर्माण किया है। इन विधियों को निम्नांकित चार वर्गों में विभक्त किया जा सकता है।

  1. वैयक्तिक विधियाँ
  2. वस्तुनिष्ठ विधियाँ
  3. मनोविश्लेषणात्मक विधियाँ तथा
  4. प्रक्षेपण या प्रक्षेपी विधियाँ।

व्यक्तित्व परीक्षण की वैयक्तिक विधियाँ वैयक्तिक विधियों के अन्तर्गत व्यक्तित्व का परीक्षण स्वयं परीक्षक द्वारा किया जाता है। इसमें जाँच-कार्य, किसी व्यक्ति-विशेष या उसके परिचित से पूछताछ द्वारा सम्पन्न होता है। प्रमुख वैयक्तिक विधियाँ हैं।

1. प्रश्नावली विधि :
प्रश्नावली विधि के अन्तर्गत प्रश्नों की एक तालिका बनाकर उस व्यक्ति को दी जाती है, जिसके व्यक्तित्व का परीक्षण किया जाता है। प्राय: छोटे-छोटे प्रश्न किये जाते हैं, जिनका उत्तर हाँ या नहीं में देना होता है। सही उत्तरों के आधार पर व्यक्ति की योग्यता और क्षमता का मापन किया जाए हैं। प्रश्नावलियों के चार प्रकार हैं—बन्द प्रश्नावली, जिसमें हाँ या नहीं से सम्बन्धित प्रश्न होते हैं। खुली प्रश्नावली, जिसमें व्यक्ति को पूरा उत्तर लिखना होता है। सचित्र प्रश्नावली, जिसके अन्तर्गत चित्रों के आधार पर प्रश्नों के उत्तर दिये जाते हैं तथा मिश्रित प्रश्नावली, प्रश्न होते हैं।

प्रश्नावली विधि का प्रमुख दोष यह है कि व्यक्ति प्राय: प्रश्नों के गलत उत्तर देते हैं या सही उत्तर को छिपा लेते हैं। कभी-कभी प्रश्नों का अर्थ समझने में भी त्रुटि हो जाती है, जिनका भ्रामक उत्तर प्राप्त होता, है। प्रश्नावलियों द्वारा मूल्यांकन करने पर तुलनात्मक अध्ययन में काफी सहायता मिलती है। इसके साथ ही अनेक व्यक्तियों की एक साथ परीक्षा से धन और समय की भी बचत होती है।

2. व्यक्ति-इतिहास विधि :
विशेष रूप से समस्यात्मक बालकों के व्यक्तित्व का अध्ययन करने के लिए प्रयुक्त इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति-विशेष से सम्बन्धित अनेक सूचनाएँ एकत्रित की जाती हैं। जैसे—उसका शारीरिक स्वास्थ्य, संवेगात्मक स्थिरता, सामाजिक जीवन आदि। व्यक्ति के भूतकालीन जीवन के अध्ययन द्वारा उसकी वर्तमान मानसिक व व्यावहारिक संरचना को समझने का प्रयास किया जाता है। इन सूचनाओं को इकट्ठा करने में व्यक्ति विशेष के माता-पिता, अभिभावक, सगे-सम्बन्धी, मित्र-पड़ोसी तथा चिकित्सकों से सहायता ली जाती है। इन सभी सूचनाओं, बुद्धि-परीक्षण तथा रुचि-परीक्षण के आधार पर व्यक्ति के वर्तमान व्यवहार की असामान्यताओं के कारणों की खोज उसके भूतकाल के जीवन से करने में व्यक्ति-इतिहास विधि उपयोगी सिद्ध होती है।

3. साक्षात्कार विधि :
व्यक्तित्व का मूल्यांकन करने की यह विधि सरकारी नौकरियों में चुनाव के लिए सर्वाधिक प्रयोग की जाती है। भेंट या साक्षात्कार के दौरान परीक्षक परीक्षार्थी से प्रश्न पूछता है और उसके उत्तरों के आधार पर उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन करता है। बालक के व्यक्तित्व का अध्ययन करने के लिए उसके अभिभावक, माता-पिता, भाई-बहन व मित्रों आदि से भी भेंट या साक्षात्कार किया जा सकता है। इस विधि का सबसे बड़ा दोष आत्मनिष्ठा का है। थोड़े से समय में किसी व्यक्ति-विशेष के हर पक्ष से सम्बन्धित प्रश्न नहीं पूछे जा सकते और अध्ययन किये गये विभिन्न व्यक्तियों की पारस्परिक, -तुलना भी नहीं की जा सकती। इस विधि को अधिकतम उपयोगी बनाने के लिए निर्धारण मान का प्रयोग किया जाना चाहिए तथा प्रश्न व उनके उत्तर पूर्व निर्धारित हों ताकि साक्षात्कार के दौरान समय एवं शक्ति की बचत हो।

4. आत्म-चरित्र लेखन विधि :
इस विधि में परीक्षक जीवन के किसी पक्ष से सम्बन्धित एक शीर्षक पर परीक्षार्थी को अपने जीवन से जुड़ी ‘आत्मकथा लिखने को कहता है। यहाँ विचारों को लिखकर अभिव्यक्त करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है। परीक्षार्थी के जीवन से सम्बन्धित सभी बातों को गोपनीय रखा जाता है। इस विधि का दोष यह है कि प्रायः व्यक्ति स्मृति के आधार पर ही लिखता है, जिससे उसके मौलिक चिन्तन का ज्ञान नहीं हो पाता। कई कारणों से वह व्यक्तिगत जीवन की बातों को छिपा भी लेता है। इस भाँति यह विधि अधिक विश्वसनीय नहीं कही जा सकती।

प्रश्न 4
व्यक्तित्व परीक्षण की मुख्य वस्तुनिष्ठ विधियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
व्यक्तित्व परीक्षण की मुख्य वस्तुनिष्ठ विधियाँ व्यक्तित्व परीक्षण की वस्तुनिष्ठ विधियों के अन्तर्गत व्यक्ति के बाह्य आचरण तथा व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। इसमें ये चार विधियाँ सहायक होती हैं।

  1. निर्धारणमान विधि
  2. शारीरिक परीक्षण विधि
  3. निरीक्षण विधि तथा
  4. समाजमिति विधि।

1. निर्धारणमान विधि :
किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के मूल्यांकन हेतु प्रयुक्त इस विधि में अनेक सम्भावित उत्तरों वाले कुछ प्रश्न पूछे जाते हैं तथा प्रत्येक उत्तर के अंक निर्धारित किये जाते हैं। इस विधि का प्रयोग ऐसे निर्णायकों द्वारा किया जाता है जो इस व्यक्ति से भली-भाँति परिचित होते हैं जिसके व्यक्तित्व का मापन करना है। उस विधि से सम्बन्धित दो प्रकार के निर्धारण मानदण्ड प्रचलित हैं।

(i) सापेक्ष निर्धारण मानदण्ड
(ii) निरपेक्ष निर्धारण मानदण्ड

(i) सापेक्ष निर्धारण मानदण्ड :
इस विधि के अन्तर्गत अनेक व्यक्तियों को एक-दूसरे के सापेक्ष सम्बन्ध में श्रेष्ठता क्रम में रखा जाता है। इस भाँति श्रेणीबद्ध करते समय सभी व्यक्तियों की आपस में तुलना हो जाती है। माना 10 व्यक्तियों की ईमानदारी के गुण का मूल्यांकन करना है तो सबसे अधिक ईमानदार व्यक्ति को पहला तथा सबसे कम ईमानदार को दसवाँ स्थान प्रदान किया जाएगा तथा इनके मध्य में शेष लोगों को श्रेष्ठता-क्रम में स्थान दिया जाएगा। यह विधि थोड़ी संख्या के समूह पर ही लागू हो सकती है, क्योंकि बड़ी संख्या वाले समूह के बीच के लोगों का क्रम निर्धारित करना अत्यन्त दुष्कर कार्य है।

(ii) निरपेक्ष निर्धारण मानदण्ड :
इस विधि में किसी के गुण के आधार पर व्यक्तियों की तुलना नहीं की जाती, अपितु उन्हें विभिन्न विशेषताओं की निरपेक्ष कोटियों में रख लिया जाता है। कोटियों की संख्या 3,5,7, 11, 15 या उससे अधिक भी सम्भव है। इन कोटियों को कभी-कभी शब्द के स्थान पर अंकों द्वारा भी दिखाया जा सकता है, किन्तु तत्सम्बन्धी अंकों के अर्थ लिख दिये जाते हैं। ईमानदारी के गुण को निम्न प्रकार मानदण्ड पर प्रदर्शित किया गया है
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इस विधि के अन्तर्गत मूल्यांकन करते समय निर्णायक को न तो अधिक कठोर होना चाहिए और न ही अधिक उदार। व्यक्तियों की कोटियों के अनुसार श्रेणीबद्ध करने में सामान्य वितरण का ध्यान रखना आवश्यक है।

2. शारीरिक परीक्षण विधि :
इसमें व्यक्ति विशेष के शारीरिक लक्षणों के आधार पर उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है। व्यक्तित्व के निर्माण में सहभागिता रखने वाले शारीरिक तत्त्वों के मापन हेतु इन यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है-नाड़ी की गति नापने के लिए स्फिग्नोग्राफ; हृदय की गति एवं कुछ हृदय-विकारों को ज्ञात करने के लिए इलेक्ट्रो कार्डियोग्राफ; फेफड़ों की गति के मापन हेतु-न्यूमोग्राफ; त्वचा में होने वाले रासायनिक परिवर्तनों के अध्ययन हेतु-साइको गैल्वेनोमीटर तथा रक्तचाप के मापन हेतु-प्लेन्थिस्मोग्राफ।

3. निरीक्षण विधि :
हम जानते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति भिन्न-भिन्न परिस्थितियों तथा समयों पर भिन्न-भिन्न आचरण प्रदर्शित करता है। इस विधि के अन्तर्गत उसके आचरण का निरीक्षण करके उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है। यहाँ परीक्षक देखकर व सुनकर व्यक्तित्व के विभिन्न शारीरिक, मानसिक तथा व्यावहारिक गुणों को समझने का प्रयास करता है, जिसके लिए निरीक्षण तालिका का प्रयोग किया जाता है। निरीक्षण के पश्चात् तुलना द्वारा निरीक्षण गुणों का मूल्यांकन किया जाता है। निरीक्षणकर्ता की आत्मनिष्ठा के दोष के कारण इस विधि को वैज्ञानिक एवं विश्वसनीय नहीं कहा जा सकता।

4. समाजमिति विधि :
समाजमिति विधि के अन्तर्गत व्यक्ति की सामाजिकता का मूल्यांकन किया जाता है। बालकों को किसी सामाजिक अवसर पर अपने सभी साथियों के साथ किसी खास स्थान पर उपस्थित होने के लिए कहा जाता है, जहाँ वे अपनी सामर्थ्य और क्षमताओं के अनुसार कार्य करते हैं। अब यह देखा जाता है कि प्रत्येक बालक का उसके समूह में क्या स्थान है। संगृहीत तथ्यों के आधार पर एक सोशियोग्राम (Sociogram) तैयार किया जाता है और उसका विश्लेषण किया जाता है। इसी के आधार पर बालक के व्यक्तित्व की व्याख्या प्रस्तुत की जाती है।

प्रश्न 5
व्यक्तित्व परीक्षण की मुख्य प्रक्षेपण विधियों का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।
या
व्यक्तिस्व मापन की प्रक्षेपी विधियों से क्या तात्पर्य है ? इनमें से किसी एक विधि का विस्तृत वर्णन कीजिए।
या
व्यक्तित्व मापन की किसी एक विधि की व्याख्या कीजिए। [2007]
उत्तर :
व्यक्तित्व परीक्षण की प्रक्षेपण विधियाँ प्रक्षेपण (Projection) अचेतन मन की वह सुरक्षा प्रक्रिया है जिसमें कोई व्यक्ति अपनी अनुभूतियों, विचारों, आकांक्षाओं तथा संवेगों को दूसरों पर थोप देता है। प्रक्षेपण विधियों द्वारा व्यक्ति-विशेष के व्यक्तित्व सम्बन्धी उन पक्षों का ज्ञान हो जाता है जिनसे वह व्यक्ति स्वयं ही अनभिज्ञ होता है। कुछ प्रक्षेपण विधियाँ निम्नलिखित हैं।

  1. कथा प्रसंग परीक्षण
  2. बाल सम्प्रत्यक्षण परीक्षण
  3. रोर्शा स्याही धब्बा परीक्षण तथा
  4. वाक्य पूर्ति या कहानी पूर्ति परीक्षण।।

1. कथा प्रसंग परीक्षण :
कथा प्रसंग विधि, जिसे प्रसंगात्मक बोध परीक्षण और टी० ए० टी० टेस्ट भी कहते हैं, के निर्माण का श्रेय मॉर्गन तथा मरे (Morgan and Murray) को जाता है। परीक्षण में 30 चित्रों का संग्रह है जिनमें से 10 चित्र पुरुषों के लिए, 10 स्त्रियों के लिए तथा 10 स्त्री व पुरुष दोनों के लिए होते हैं। परीक्षण के समय व्यक्ति के सम्मुख 20 चित्र प्रस्तुत किये जाते हैं। इनमें से एक चित्र खाली रहता है।

अब व्यक्ति को एक-एक करके चित्र प्रस्तुत किये जाते हैं और उस चित्र से सम्बन्धित कहानी बनाने के लिए कहा जाता है जिसमें समय का कोई बन्धन नहीं रहता। चित्र दिखलाने के साथ ही यह आदेश दिया जाता है, “चित्र को देखकर बताइए कि पहले क्या घटना हो गयी है ? इस समय क्या हो रहा है ? चित्र में जो लोग हैं उनमें क्या विचार या भाव उठ रहे हैं तथा कहानी का क्या अन्त होगा?” व्यक्ति द्वारा कहानी बनाने पर उसका विश्लेषण किया जाता है जिसके आधार पर उसके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है।

2. बांल सम्प्रत्यक्षण परीक्षण :
इसे ‘बालकों का बोध परीक्षण’,या ‘सी० ए० टी० टेस्ट’ भी कहते हैं। इनमें किसी-न-किसी पशु से सम्बन्धित 10 चित्र होते हैं, जिनके माध्यम से बालकों की विभिन्न समस्याओं; जैसे-पारस्परिक या भाई-बहन की प्रतियोगिता, संघर्ष आदि के विषय में सूचनाएँ एकत्र की जाती हैं। इन उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर बालक के व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है।

3. रोर्णा स्याही धब्बा परीक्षण :
इस परीक्षण का निर्माण स्विट्जरलैण्ड के प्रसिद्ध मनोविकृति चिकित्सक हरमन रोर्शा ने 1921 ई० में किया था। इसके अन्तर्गत विभिन्न कार्डों पर बने स्याही के दस धब्बे होते हैं, जिन्हें इस प्रकार से बनाया जाता है कि बीच की रेखा के दोनों ओर एक जैसी आकृति दिखायी पड़े। पाँच कार्डों के धब्बे काले, भूरे, दो कार्डों के काले-भूरे के अलावा लाल रंग के भी होते हैं तथा शेष तीन कार्डों में अनेक रंग के धब्बे होते हैं। अब परीक्षार्थी को आदेश दिया जाता है।

कि चित्र देखकर बताओ कि यह किसके समान प्रतीत होता है ? यह क्या हो सकता है ? आदेश देने के बाद एक-एक कार्ड परीक्षार्थी के सामने प्रस्तुत किये जाते हैं, जिन्हें देखकर वह धब्बों में निहित आकृतियों के विषय में बताता है। परीक्षक, परीक्षार्थी द्वारा कार्ड देखकर दिये गये उत्तरों को वर्णन,उनका समय, कार्ड घुमाने का तरीका एवं परीक्षार्थी के व्यवहार, उद्गार और भावों को नोट करता जाता है। अन्त में परीक्षक द्वारा परीक्षार्थी के उत्तरों के विषय में उससे पूछताछ की जाती है। रोर्शा परीक्षण में इन चार बातों के आधार पर अंक दिये जाते हैं।

  • स्याही के धब्बों का क्षेत्र
  • धब्बों की विशेषताएँ (रंग, रूप, आकार आदि)
  • विषय-पेड़-पौधे, मनुष्य आदि तथा
  • मौलिकता

अंकों के आधार पर परीक्षक परीक्षार्थी के व्यक्तित्व का मूल्यांकन प्रस्तुत करता है। इस परीक्षण को व्यक्तिगत निर्देशन तथा उपचारात्मक निदान के लिए सर्वाधिक उपयोगी माना जाता है।

4. वाक्यपूर्ति यो कहानी :
पूर्ति परीक्षण इस विधि के अन्तर्गत परीक्षण-पदों के रूप में अधूरे वाक्य तथा अधूरी कहानियों को परीक्षार्थी के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है। जिसकी पूर्ति करके वह अपनी इच्छाओं, अभिवृत्तियों, विचारधारा तथा भय आदि को अप्रत्यक्ष रूप से अभिव्यक्त कर देता है। इस प्रकार के परीक्षण रोडे (Rohde), पैनी (Payne) तथा हिल्ड्रेथ (Hildreath) आदि द्वारा निर्मित किये गये हैं। [2012]

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
व्यक्तित्व क्या है? वे कौन-से कारक हैं जो व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं? [2015]
या
वे कौन-से कारक हैं जो बालकों के व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करते हैं?
उत्तर :
व्यक्तित्व के बाह्य गुणों तथा आन्तरिक गुणों के समन्वित तथा संगठित रूप को व्यक्तित्व कहते हैं। वुडवर्थ के अनुसार, “व्यक्तित्व गुणों को समन्वित रूप है।” व्यक्तित्व के निर्माण एवं विकास को प्रभावित करने वाले कारक बालक के व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले दो महत्त्वपूर्ण कारक है।

1. आनुवांशिकता :
शारीरिक आकार, बनावट तथा मानसिक बुद्धि आदि आनुवांशिक गुण होते हैं, जो माता-पिता से प्राप्त होते हैं, जिनसे व्यक्तित्व का निर्माण होता है। ये कारक व्यक्तित्व के विकास के लिए चहारदीवारी का कार्य करते हैं, जिसके भीतर व्यक्तित्व का विकास होता है।

2. वातावरण :
इसके तीन तत्त्व होते हैं।

(i) परिवार :
यह एक ऐसी सामाजिक संस्था है, जहाँ बालक के व्यक्तित्व के विकास का प्रथम चरण प्रारम्भ होता है। परिवार में कुछ तत्त्व व्यक्तित्व के विकास पर व्यापक प्रभाव डालते हैं; जैसे – माता – पिता के आपसी सम्बन्ध, उनका बालक के साथ व्यवहार, परिवार की आर्थिक स्थिति, परिवार का सामाजिक स्तर, परिवार के नैतिक मूल्य, परिवार के सदस्यों की संख्या, संयुक्त परिवार व्यवस्था आदि।

(ii) विद्यालय :
बालक के व्यक्तित्व को प्रभावित करने में घर-परिवार के पश्चात् विद्यालय का ही स्थान आता है। विद्यालय में व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करने वाले महत्त्वपूर्ण कारक हैं; जैसे—अध्यापक का व्यवहार, अनुशासन पद्धति, नैतिक मूल्य, अध्यापन तथा सीखने के तरीके, स्वतन्त्र कार्य करने के अवसर तथा साथियों का व्यवहार आदि।

(iii) समाज :
बालक के व्यक्तित्व का निर्माण, सामाजिक रीति-रिवाज, परम्पराएँ, संस्कृति तथा सभ्यता के द्वारा होता है। बालक की मनोवृत्ति का विकास, समाज में प्रचलित मान्यताएँ, विश्वास तथा धारणाएँ करती हैं। इस प्रकार राजनीतिक विचार, जनतान्त्रिक मूल्य आदि भी व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 2
शारीरिक संरचना के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक क्रैशमर (Kretschmer) ने शारीरिक संरचना में भिन्नता को व्यक्तित्व के वर्गीकरण का आधार माना है। उसने 400 व्यक्तियों की शारीरिक रूपरेखा का अध्ययन किया तथा उनके व्यक्तित्व को दो समूहों में इस प्रकार बाँटा।

1. साइक्लॉयड :
क्रैशमर के अनुसार, साइक्लॉयड व्यक्ति प्रसन्नचित्त सामाजिक प्रकृति के, विनोदी तथा मिलनसार होते हैं। इनका शरीर मोटापा लिए हुए होता है। ऐसे व्यक्तियों का जीवन के प्रति वस्तुवादी दृष्टिकोण पाया जाता है।

2. शाइजॉएड :
साइक्लॉयड के विपरीत शाइजॉएड व्यक्तियों की शारीरिक बनावट दुबली-पतली होती है। ऐसे लोग मनोवैज्ञानिक दृष्टि से संकोची, शान्त स्वभाव, एकान्तवासी, भावुक, स्वप्नदृष्टा तथा आत्म-केन्द्रित होते हैं।

क्रैशमर ने इनके अलावा चार उप-समूह भी बताये हैं।

1. सुडौलकाय :
स्वस्थ शरीर, सुडौल मांसपेशियाँ, मजबूत हड्डियाँ, चौड़ा वक्षस्थल तथा लम्बे चेहरे वाले शक्तिशाली लोग, जो इच्छानुसार अपने कार्यों का व्यवस्थापन कर लेते हैं, क्रियाशील होते हैं, कार्यों में रुचि लेते हैं तथा अन्य चीजों की अधिक चिन्ता नहीं करते।

2. निर्बल :
लम्बी भुजाओं व पैर वाले दुबले – पतले निर्बल व्यक्ति, जिनका सीना चपटा, चेहरा तिकोना तथा ठोढ़ी विकसित होती है। ऐसे लोग दूसरों की निन्दा तो करते हैं, लेकिन अपनी निन्दा सुनने के लिए तैयार नहीं होते।

3. गोलकाय :
बड़े शरीर और धड़, किन्तु छोटे कन्धे, हाथ पैर वाले तथा गोल छाती वाले असाधारण शरीर के ये लोग बहिर्मुखी होते हैं।

4. स्थिर बुद्धि :
ग्रन्थीय रोगों से ग्रस्त तथा विभिन्न प्रकार के प्रारूप वाले इन व्यक्तियों का शरीर साधारण होता है।

प्रश्न 3
स्वभाव के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
शैल्डन (Scheldon) ने स्वभाव के आधार पर मानव व्यक्तियों को तीन भागों में बाँटा है।

  1. एण्डोमॉर्फिक (Endomorphic) गोलाकार शरीर वाले कोमल और देखने में मोटे व्यक्ति इस विभाग के अन्तर्गत आते हैं। ऐसे लोगों का व्यवहार आँतों की आन्तरिक पाचन-शक्ति पर निर्भर करता है।
  2. मीजोमॉर्फिक (Mesomorphic) आयताकार शरीर रचना वाले इन लोगों का शरीर शक्तिशाली तथा भारी होता है।
  3. एक्टोमॉर्फिक (Ectomorphic) इन लम्बाकार शक्तिहीन व्यक्तियों में उत्तेजनशीलता अधिक होती है। ऐसे लोग बाह्य जगत् में निजी क्रियाओं को शीघ्रतापूर्वक करते हैं।

शैल्डन : ने उपर्युक्त तीन प्रकार के व्यक्तियों के स्वभाव का अध्ययन करके व्यक्तित्व के ये तीन वर्ग बताये हैं।

1. विसेरोटोनिक (Viscerotonic :
मुण्डोमॉर्फिक वर्ग के ये लोग विसेरोटोनिक प्रकार का . व्यक्तित्व रखते हैं। ये लोग आरामपसन्द तथा गहरी व ज्यादा नींद लेते हैं। किसी परेशानी के समय दूसरों की मदद पर आश्रित रहते हैं। ये अन्य लोगों से प्रेमपूर्ण सम्बन्ध रखते हैं तथा तरह-तरह के भोज्य पदार्थों के लिए लालायित रहते हैं।

2. सोमेटोटोनिक (Somatotonic) :
मीजोमॉर्फिक वर्ग के अन्तर्गत आने वाले सोमेटोटोनिक व्यक्तित्व के लोग बलशाली तथा निडर होते हैं। ये अपने विचारों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करना पसन्द करते हैं। ये कर्मशील होते हैं तथा आपत्ति से भय नहीं खाते।

3. सेरीब्रोटोनिक (Cerebrotonic) :
एक्टोमॉर्फिक वर्ग में शामिल सेरीब्रोटोनिक व्यक्तित्व के लोग धीमे बोलने वाले, संवेदनशील, संकोची, नियन्त्रित तथा एकान्तवासी होते हैं। संयमी होने के कारण ये अपनी इच्छाओं तथा भावनाओं को दमित कर सकते हैं। आपातकाल में ये दूसरों की मदद लेना पसन्द नहीं करते। ये सौम्य स्वभाव के होते हैं। इन्हें गहरी नींद नहीं आती।

प्रश्न 4
सामाजिकता के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
या
मनोवैज्ञानिक जंग के अनुसार दो प्रकार के व्यक्तित्व होते हैं। वे कौन-से प्रकार हैं? उनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2010]
या
अन्तर्मुखी व्यक्तित्व से आपको क्या अभिप्राय है? [2014]
उत्तर :
जंग (Jung) नामक मनोवैज्ञानिक ने समाज से सम्पर्क स्थापित करने की क्षमता पर आधारित करके व्यक्तित्व को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया है।

  1. बहिर्मुखी
  2. अन्तर्मुखी। जंग के वर्गीकरण को सर्वाधिक मान्यता प्रदान की जाती है।

1. बहिर्मुखी :
बहिर्मुखी व्यक्तियों की रुचि बाह्य जगत् में होती है। इनमें सामाजिकता की प्रबल भावना होती है और ये सामाजिक कार्यों में लगे रहते हैं। इनकी अन्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  • बहिर्मुखी व्यक्तित्व वाले लोगों का ध्यान सदा बाह्य समाज की ओर लगा रहता है। यही कारण है कि इनका आन्तरिक जीवन कष्टमय होता है।
  • ऐसे व्यक्तियों में कार्य करने की दृढ़ इच्छा होती है और ये वीरता के कार्यों में अधिक रुचि रखते हैं।
  • समाज के लोगों से शीघ्र मेल-जोल बढ़ा लेने की इनकी प्रवृत्ति होती है। समाज की दशा पर विचार करना इन्हें भाता है और ये उसमें सुधार लाने के लिए भी प्रवृत्त होते हैं।
  • अपनी अस्वस्थता एवं पीड़ा की बहुत कम परवाह करते हैं।
  • चिन्तामुक्त होते हैं।
  • आक्रामक, अहमवादी तथा अनियन्त्रित प्रकृति के होते हैं।
  • प्राय: प्राचीन विचारधारा के पोषक होते हैं।
  • धारा प्रवाह बोलने वाले तथा मित्रवत् व्यवहार करने वाले होते हैं।
  • ये शान्त एवं आशावादी होते हैं।
  • परिस्थिति और आवश्यकताओं के अनुसार स्वयं को व्यवस्थित कर लेते हैं।
  • ऐसे व्यक्ति शासन करने तथा नेतृत्व करने की इच्छा रखते हैं। ये जल्दी से घबराते भी नहीं हैं।
  • बहिर्मुखी व्यक्तित्व के लोगों में अधिकतर समाज-सुधारक, राजनैतिक नेता, शासक व प्रबन्धक, खिलाड़ी, व्यापारी और अभिनेता सम्मिलित होते हैं।

2. अन्तर्मुखी अन्तर्मुखी व्यक्तियों की रुचि स्वयं में होती है। :
इनकी सामाजिक कार्यों में रुचि न के बराबर होती है। स्वयं अपने तक ही सीमित रहने वाले ऐसे लोग संकोची तथा एकान्तप्रेमी होते हैं। इनकी अन्य। विशेषताएँ इस प्रकार हैं।

  • अन्तर्मुखी व्यक्तित्व के लोग कम बोलने वाले, लज्जाशील तथा पुस्तक-पत्रिकाओं को पढ़ने में गहरी रुचि रखते हैं।
  • ये चिन्तनशील तथा चिन्ताओं से ग्रस्त रहते हैं।
  • सन्देह प्रवृत्ति के कारण अपने कार्य में अत्यन्त सावधान रहते हैं।
  • अधिक लोकप्रिय नहीं होते।
  • इनका व्यवहार आज्ञाकारी होता है, लेकिन जल्दी ही घबरा जाते हैं।
  • आत्म-केन्द्रित और एकान्तप्रिय होते हैं।
  • स्वभाव में लचीलापन नहीं पाया जाता और क्रोध करने वाले होते हैं।
  • चुपचाप रहते हैं।
  • अच्छे लेखक तो होते हैं, किन्तु अच्छे वक्ता नहीं होते।
  • समाज से दूर रहकर धार्मिक, सामाजिक तथा राजनैतिक आदि समस्याओं के विषय में चिन्तनरत रहते हैं, लेकिन समाज में सामने आकर व्यावहारिक कार्य नहीं कर पाते।

बहिर्मुखी तथा अन्तर्मुखी व्यक्तित्व के लोगों की विभिन्न विशेषताओं को अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि ऐसे व्यक्ति समाज में शायद ही कुछ हों जिन्हें विशुद्धतः बहिर्मुखी या अन्तर्मुखी का नाम दिया जा सके। ज्यादातर लोगों का व्यक्तित्व ‘मिश्रित प्रकार का होता है, जिसमें बहिर्मुखी तथा अन्तर्मुखी दोनों प्रकार की विशेषताएँ निहित होती हैं। ऐसे व्यक्तित्व को विकासोन्मुख व्यक्तित्व (Ambivert Personality) की संज्ञा प्रदान की जाती है।

प्रश्न 5
व्यक्तित्व के मूल्यांकन के लिए इस्तेमाल होने वाली ‘व्यक्तित्व परिसूचियों का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर :
व्यक्तित्व के मूल्यांकन की एक प्रविधि व्यक्तित्व परिसूचियाँ भी हैं। व्यक्तित्व परिसूचियाँ (Personality Inventories) कथनों की लम्बी तालिकाएँ होती हैं, जिनके कथन व्यक्तित्व एवं जीवन के विविध पक्षों से सम्बन्धित होते हैं। परीक्षार्थी के सामने परिसूची रख दी जाती है, जिन पर वह हाँ / नहीं अथवा (√) या (×) के माध्यम से अपना मत प्रकट करता है। इन उत्तरों का विश्लेषण करके व्यक्तित्व को समझने का प्रयास किया जाता है। ये व्यक्तिगत एवं सामूहिक दोनों रूपों में प्रयुक्त होती हैं।

इनको प्रचलन आजकल काफी बढ़ गया है, क्योंकि इनके माध्यम से कम समय में अधिकाधिक सूचनाएँ एकत्र की जा सकती हैं। अमेरिका तथा इंग्लैण्ड में निर्मित व्यक्तित्व परिसूचियों के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-बर्न श्यूटर की व्यक्तित्व परिसूची, कार्नेल सूचक, मिनेसोटा बहुपक्षीय व्यक्तित्व परिसूची, आलपोर्ट का ए० एस० प्रतिक्रिया अध्ययन, वुडवर्थ का व्यक्तिगत प्रदत्त पत्रक, बेल की समायोजन परिसूची तथा फ्राइड हीडब्रेडर का अन्तर्मुखी-बहिर्मुखी परीक्षण इत्यादि। भारत में ‘मनोविज्ञानशाला उ० प्र०, इलाहाबाद द्वारा भी एक व्यक्तित्व परिसूची का निर्माण किया गया है, जिसे चार भागों में विभाजित किया गया है।

  1. तुम्हारा घर तथा परिवार
  2. तुम्हारा स्कूल
  3. तुम और दूसरे लोग तथा
  4. तुम्हारा स्वास्थ्य तथा अन्य समस्याएँ

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
वार्नर द्वारा किया गया व्यक्तित्व का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
वार्नर (Warner) ने शारीरिक आधार पर व्यक्तित्व के दस विभिन्न रूप बताये हैं।

  1. सामान्य
  2. असामान्य बुद्धि वाला
  3. मन्दबुद्धि वाला
  4. अविकसित शरीर का
  5. स्नायुविक
  6. स्नायु रोगी
  7. अपरिपुष्ट
  8. सुस्त और पिछड़ा हुआ
  9. अंगरहित तथा
  10. मिरगी ग्रस्त

प्रश्न 2
टरमन द्वारा किया गया व्यक्तित्व का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
टरमन (Turman) :
बुद्धि-लब्धि के आधार पर व्यक्तित्व के दो प्रकार बताये हैं।

  1. प्रतिभाशाली
  2. उप-प्रतिभाशाली
  3. अत्युत्कृष्ट
  4. उत्कृष्ट बुद्धि
  5. सामान्य बुद्धि
  6. मन्दबुद्धि
  7. मूर्ख
  8. मूढ़-जड़ बुद्धि।

प्रश्न 3
थॉर्नडाइक द्वारा किया गया व्यक्तित्व का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
थॉर्नडाइक (Thorndike) ने विचार – शक्ति के आधार पर व्यक्तित्व को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा है।

  1. सूक्ष्म विचारक – किसी कार्य को करने से पूर्व उसके पक्ष/विपक्ष में बारीकी से विचार करने वाले ऐसे व्यक्ति विज्ञान, गणित व तर्कशास्त्र में रुचि रखते हैं।
  2. प्रत्यय विचारक – ऐसे लोग शब्द, संख्या तथा सन्तों आदि प्रत्ययों के आधार पर विचार करना पसन्द करते हैं।
  3. स्थूल विचारक – स्थूल विचारक क्रिया पर बल देने वाले तथा स्थूल चिन्तन करने वाले होते हैं।

प्रश्न 4
व्यक्तित्व मूल्यांकन के लिए अपनायी जाने वाली स्वतन्त्र साहचर्य विधि का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
व्यक्तित्व मूल्यांकन की स्वतन्त्र साहचर्य (Free Association) विधि में 50 से लेकर 100 तक उद्दीपक शब्दों की एक सूची प्रयोग की जाती है। परीक्षक परीक्षार्थी को सामने बैठाकर सूची का एक-एक शब्द उसके सामने बोलता है। परीक्षार्थी शब्द सुनकर जो कुछ उसके मन में आता है, कह देता है जिन्हें लिख लिया जाता है और उन्हीं के आधार पर व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है।

प्रश्न 5
स्वप्न विश्लेषण विधि का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर :
स्वप्न विश्लेषण :
यह मनोचिकित्सा की एक महत्त्वपूर्ण विधि है। मनोविश्लेषणवादियों के अनुसार, स्वप्न मन में दबी हुई भावनाओं को उजागर करता है। इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति अपने स्वप्नों को नोट करता जाता है और परीक्षक उसका विश्लेषण करके व्यक्ति के व्यक्तित्व की व्याख्या प्रस्तुत करता है। वैसे तो स्वप्नों को ज्यों-का-त्यों याद करने में काफी कठिनाई होती है तथापि स्वप्न साहचर्य के अभ्यास द्वारा, स्वप्नों को सुविधापूर्वक याद किया जा सकता है।

प्रश्न 6
शिक्षा में ‘व्यक्तित्व परीक्षण के महत्त्व का विवेचन कीजिए। (2016)
उत्तर :
शिक्षा में व्यक्तित्व परीक्षण का महत्त्व इस प्रकार है।

  1. व्यक्तित्व परीक्षण के द्वारा व्यक्ति के व्यक्तिगत विशेषताओं की माप होती है।
  2. व्यक्तित्व का वास्तविक मापन वस्तुनिष्ठता, वैधता तथा विश्वसनीयता द्वारा होता है।
  3. शिक्षा में व्यक्तित्व का परीक्षण मुख्यत: व्यक्ति के ज्ञान के मूल्यांकन के लिए किया जाता है।
  4. व्यक्तित्व परीक्षण द्वारा व्यक्ति की बुद्धि क्षमता का परीक्षण किया जाता है।
  5. व्यक्तित्व परीक्षण द्वारा परीक्षार्थी के सीखने की क्षमता का पता चलता है।
  6. परीक्षण द्वारा व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक आकलन किया जाता है।
  7. व्यक्ति परीक्षण द्वारा परीक्षार्थी या व्यक्ति के व्यवहार का अवलोकन किया जाता है।

प्रश्न 7
व्यक्तित्व मूल्यांकन की परिस्थिति परीक्षण विधि का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
व्यक्तित्व मूल्यांकन की एक विधि ‘परिस्थिति परीक्षण विधि’ (Situation Test Method) भी है। इसे वस्तु परीक्षण भी कहते हैं, जिसके अनुसार व्यक्ति के किसी गुण की माप करने के लिए उसे उससे सम्बन्धित किसी वास्तविक परिस्थिति में रखा जाता है तथा उसके व्यवहार के आधार पर गुण का मूल्यांकन किया जाता है। इस परीक्षण में परिस्थिति की स्वाभाविकता बनाये रखना आवश्यक है।

प्रश्न 8
व्यक्तित्व मूल्यांकन की व्यावहारिक परीक्षण विधि का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
व्यक्तित्व मूल्यांकन की एक विधि व्यावहारिक परीक्षण विधि (Performance Test Method) भी है। इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति को वास्तविक परिस्थिति में ले जाकर उसके व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। परीक्षार्थी को कुछ व्यावहारिक कार्य करने को दिये जाते हैं। इन कार्यों की परिलब्धियों तथा व्यवहार सम्बन्धी लक्षणों के आधार पर परीक्षार्थी के व्यक्तित्व से सम्बन्धित निष्कर्ष प्राप्त किये जाते हैं। मनोवैज्ञानिकों ने अनेक प्रकार की व्यावहारिक परीक्षण विधियाँ प्रस्तुत की हैं। एक उदाहरण इस प्रकार है-बच्चों के एक समूह को पुस्तकालय में ले जाकर स्वतन्त्र छोड़ दिया गया और उनके क्रियाकलापों का अध्ययन किया गया। वे वहाँ जो कुछ भी करते हैं, जिन पुस्तकों का अध्ययन करते हैं या जिस प्रकार की बातचीत करते हैं, उसे नोट करके उनके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया जाता है।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
व्यक्तित्व की एक स्पष्ट परिभाषा लिखिए। [2007, 13]
उत्तर :
“व्यक्तित्व व्यक्ति के उन मनो-शारीरिक संस्थानों का गत्यात्मक संगठन है जो वातावरण के साथ उसके अनूठे समायोजन को निर्धारित करता है।” [आलपोर्ट]

प्रश्न 2
व्यक्तित्व के निर्माण में किन कारकों का योग रहता है ?
उत्तर :
व्यक्तित्व के निर्माण में व्यक्ति के जन्मजात तथा अर्जित गुणों का योग रहता है।

प्रश्न 3
किस विद्वान ने व्यक्तित्व का वर्गीकरण शारीरिक संरचना के आधार पर किया है ?
उत्तर :
क्रैशमर नामक विद्वान् ने व्यक्तित्व का वर्गीकरण शारीरिक संरचना के आधार पर किया है।

प्रश्न 4
किस विद्वान ने स्वभाव के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण किया है ?
उत्तर :
शैल्डन ने स्वभाव के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण प्रस्तुत किया है।

प्रश्न 5
किस मनोवैज्ञानिक ने व्यक्तित्व का वर्गीकरण सामाजिकता के आधार पर किया है?
उत्तर :
जंग नामक मनोवैज्ञानिक ने व्यक्तित्व का वर्गीकरण सामाजिकता के आधार पर किया है।

प्रश्न 6
सन्तुलित व्यक्तित्व की चार मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2008]
उत्तर :
सन्तुलित व्यक्तित्व की चार मुख्य विशेषताएँ हैं।

  1. उत्तम शारीरिक स्वास्थ्य
  2. अच्छा मानसिक स्वास्थ्य
  3. संवेगात्मक सन्तुलन तथा
  4. सामाजिकता

प्रश्न 7
व्यक्तित्व – परीक्षण की मुख्य विधियाँ कौन-कौन-सी हैं ?
उत्तर :
व्यक्तित्व परीक्षण की मुख्य विधियाँ हैं

  1. वैयक्तिक विधियाँ
  2. वस्तुनिष्ठ विधियाँ
  3. मनोविश्लेषणात्मक विधियाँ तथा
  4. प्रक्षेपण या प्रक्षेपी विधियाँ।

प्रश्न 8
व्यक्तित्व परीक्षण की मुख्य वैयक्तिक विधियाँ कौन-कौन-सी ?
उत्तर :
व्यक्तित्व परीक्षण की मुख्य वैयक्तिक विधियाँ हैं

  1. प्रश्नावली विधि
  2. व्यक्ति इतिहास विधि
  3. साक्षात्कार विधि तथा
  4. आत्म-चरित्र-लेखन विधि।

प्रश्न 9
‘रोर्णा स्याही धब्बा परीक्षण किस प्रकार की विधि है ? (2007)
उत्तर :
‘रोर्णा स्याही धब्बा परीक्षण’ एक प्रक्षेपण विधि है।

प्रश्न 10
किस विधि से व्यक्ति में सामाजिक अन्तर्सम्बन्धों को मापा जाता है?
उत्तर :
समाजमिति विधि द्वारा व्यक्ति में सामाजिक अन्तर्सम्बन्धों को मापा जाता है।”

प्रश्न 11
व्यक्तित्व के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त का प्रतिपादक कौन है?
उत्तर :
व्यक्तित्व के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त का प्रतिपादक सिगमण्ड फ्रॉयड है।

प्रश्न 12
किस प्रकार के व्यक्तियों में आत्मविश्वास की सुदृढ भावना और पर्याप्त सहनशीलता होती है?
उत्तर :
बहिर्मुखी प्रकार के व्यक्तियों में आत्मविश्वास की सुदृढ़ भावना और पर्याप्त सहनशीलता होती

प्रश्न 13
सर्वप्रथम ‘स्याही धब्बा परीक्षण किसने किया था ? [2011]
उत्तर :
सर्वप्रथम ‘स्याही धब्बा परीक्षण स्विट्जरलैण्ड के प्रसिद्ध मनोविकृति चिकित्सक हरमन रोर्शा ने किया था।

प्रश्न 14
बाल सम्प्रत्यय परीक्षण (c.A.T.) का सम्बन्ध किस परीक्षण से है? [2014]
उत्तर :
बाल सम्प्रत्यय परीक्षण (C.A.T) का सम्बन्ध व्यक्तित्व-परीक्षण से है।

प्रश्न 15
व्यक्तित्व के शाब्दिक अर्थ को बताइए। [2012]
उत्तर :
व्यक्तित्व का शाब्दिक अर्थ है-व्यक्ति का वास्तविक स्वरूप।

प्रश्न 16
‘स्याही धब्बा परीक्षण क्या है। [2009]
उत्तर :
‘स्याही धब्बा परीक्षण’ व्यक्तित्व-परीक्षण की एक प्रक्षेपी विधि है।

प्रश्न 17
निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य।

  1. व्यक्तित्व का आशय है-व्यक्ति का रूप-रंग एवं वेशभूषा धारण करने का ढंग।
  2. व्यक्तित्व वर्गीकरण का एक आधार सामाजिकता भी है।
  3. व्यक्तित्व मापन या मूल्यांकन का न तो कोई महत्त्व है और न ही आवश्यकता।
  4. व्यक्तित्व परीक्षण की मनोविश्लेषणात्मक विधि के प्रतिपादक एडलर थे।

उत्तर :

  1. असत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. असत्य

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में दिये गये विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए।

प्रश्न 1
“व्यक्तित्व रुचियों का वह समाकलन है, जो जीवन के व्यवहार में एक विशेष प्रवृत्ति उत्पन्न करता हैं।” यह परिभाषा किसकी है ?
(क) कार माइकेल की
(ख) मैकार्डी की
(ग) आलपोर्ट की
(घ) मार्टन प्रिन्स की
उत्तर :
(ख) मैका की

प्रश्न 2
सामाजिक अन्तर्किया की दृष्टि से जंग के अनुसार व्यक्तित्व के प्रकार हैं।
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच
उत्तर :
(क) दो

प्रश्न 3
व्यक्तित्व परीक्षण की वैयक्तिक विधि है।
(क) मनो-विश्लेषण विधि
(ख) रोश परीक्षण
(ग) वाक्य पूर्ति परीक्षण
(घ) प्रश्नावली विधि
उत्तर :
(घ) प्रश्नावली विधि

प्रश्न 4
रोर्शा परीक्षण मापन करता है। [2008, 10]
(क) उपलब्धि को
(ख) रुचिं को
(ग) बुद्धि का
(घ) व्यक्तित्व का
उत्तर :
(घ) व्यक्तित्व का

प्रश्न 5
व्यक्तित्त्व मापन की वस्तुनिष्ठ विधि है।
(क) समाजमिति
(ख) स्वप्न विश्लेषण
(ग) स्वतन्त्र साहचर्य
(घ) कहानी-पूर्ति परीक्षण
उत्तर :
(क) समाजमिति

प्रश्न 6
मनोविश्लेषण विधि के प्रवर्तक हैं।
(क) वुण्ट
(ख) फ्रॉयड
(ग) जंग
(घ) स्पीयरमैन
उत्तर :
(ख) फ्रॉयड

प्रश्न 7
प्रक्षेपण विधि मापन करता है।
(क) बुद्धि का
(ख) रुचिका
(ग) व्यक्तित्व का
(घ) उपलब्धि का
उत्तर :
(ग) व्यक्तित्व का

प्रश्न 8
व्यक्तित्व मापन की आरोपणात्मक विधि है।
(क) साक्षात्कार विधि
(ख) स्वप्न विश्लेषण विधि
(ग) रोर्णा स्याही धब्बा परीक्षेण
(घ) ये सभी
उत्तर :
(ग) रोर्शा स्याही धब्बा परीक्षण

प्रश्न 9
आर० बी० कैटल द्वारा विकसित पी० एफ० प्रश्नावली में प्रयुक्त पी० एफ० (व्यक्तित्व कारकों) की संख्या है।
(क) 14
(ख) 16
(ग) 15
(घ) 17
उत्तर :
(ख) 16

प्रश्न 10
“व्यक्तित्व गुणों का समन्वित रूप है।” यह कथन है।
(क) वुडवर्थ का
(ख) गिलफोर्ड का
(ग) जे० एस० रासे को
(घ) स्किनरे का
उत्तर :
(घ) स्किनर का

प्रश्न 11
वाक्यपूर्ति तथा कहानी पूर्ति परीक्षण व्यक्तित्व परीक्षण की किस विधि में शामिल है?
(क) आत्म चरित्र लेखन विधि
(ख) वस्तुनिष्ठ विधि
(ग) प्रक्षेपी विधि
(घ) मनोविश्लेषणात्मक विधि
उत्तर :
(क) आत्म चरित्र लेखन विधि

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