UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi समसामयिक निबन्ध
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1. स्वच्छ भारत अभियान (2018)
प्रस्तावना यह सर्वविदित है कि 2 अक्टूबर भारतवासियों के लिए कितने महत्त्व का दिवस है। इस दिन हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का जन्म हुआ था। इस युग-पुरुष ने भारत सहित पूरे विश्व को मानवता की नई राह दिखाई। हमारे देश में प्रत्येक वर्ष गाँधी जी का जन्मदिवस एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है और इसमें कोई सन्देह नहीं है कि उनके प्रति हमारी श्रद्धा प्रतिवर्ष बढ़ती जाती है। इस बार (वर्ष 2014 में) भी 2 अक्टूबर को ससम्मान गाँधी जी को याद किया गया, लेकिन ‘स्वच्छ भारत अभियान की शुरूआत के कारण इस बार यह दिन और भी विशिष्ट रहा।
स्वच्छता अभियान से तात्पर्य ‘स्वच्छ भारत अभियान’ एक राष्ट्र स्तरीय अभियान है। गाँधी जी की 145वीं जयन्ती के अवसर पर माननीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इस अभियान के आरम्भ की घोषणा की। यह अभियान प्रधानमन्त्री जी की महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक है। 2 अक्टूबर, 2014 को उन्होंने राजपथ पर जनसमूह को सम्बोधित करते हुए सभी राष्ट्रवासियों से स्वच्छ भारत अभियान में भाग लेने और इसे सफल बनाने की अपील की। साफ-सफाई के सन्दर्भ में देखा जाए, तो यह अभियान अब तक का सबसे बड़ा स्वच्छता अभियान है।
स्वच्छता अभियान एक जन आन्दोलन साफ-सफाई को लेकर दुनियाभर में भारत की छवि बदलने के लिए प्रधानमन्त्री जी बहुत गम्भीर हैं। उनकी इच्छा स्वच्छ भारत अभियान को एक जन आन्दोलन बनाकर देशवासियों को गम्भीरता से इससे जोड़ने की है। हमारे नवनिर्वाचित प्रधानमन्त्री जी ने 2 अक्टूबर के दिन सर्वप्रथम गाँधी जी को राजघाट पर श्रद्धांजलि अर्पित की और फिर नई दिल्ली स्थित वाल्मीकि बस्ती में जाकर झाड़ लगाई। कहा जाता है कि वाल्मीकि बस्ती दिल्ली में गाँधी जी का सबसे प्रिय स्थान था। वे अक्सर यहाँ आकर ठहरते थे।
इसके बाद, मोदी जी ने जनपथ जाकर स्वच्छ भारत अभियान की शुरूआत की। इस अवसर पर उन्होंने लगभग 40 मिनट का भाषण दिया और स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया। अपने भाषण के दौरान उन्होंने महात्मा गाँधी और लालबहादुर शास्त्री का जिक्र करते हुए बड़ी ही खूबसूरती से इन दोनों महापुरुषों को इस अभियान से जोड़ दिया, उन्होंने कहा-“गांधी जी ने आजादी से पहले नारा दिया था ‘क्विट इण्डिया क्लीन इण्डिया, आजादी की लड़ाई में उनका साथ देकर देशवासियों ने ‘क्विट इण्डिया’ के सपने को तो साकार कर दिया, लेकिन अभी उनका ‘क्लीन इण्डिया’ का सपना अधूरा ही है।।
अब समय आ गया है कि हम सवा सौ करोड़ भारतीय अपनी मातृभूमि को स्वच्छ बनाने का प्रण करें। क्या साफ-सफाई केवल सफाई कर्मचारियों की जिम्मेदारी हैं? क्या यह हम सभी की जिम्मेदारी नहीं हैं? हमें यह नज़रिया बदलना होगा। मैं जानता हूं कि इसे केवल एक अभियान बनाने से कुछ नहीं होगा। पुरानी आदतों को बदलने में समय लगता है। यह एक मुश्किल काम है, मैं जानता है, लेकिन हमारे पास वर्ष 2019 तक का समय है।”
प्रधानमन्त्री जी ने पाँच साल में देश को साफ-सुथरा बनाने के लिए लोगों को शपथ दिलाई कि न में गन्दगी करूगा और न ही गन्दगी करने दें। अपने अतिरिक्त मैं सौ अन्य लोगों को साफ-सफाई के प्रति जागरूक करूगा और उन्हें सफाई की शपथ दिलवाऊँगा। उन्होने कहा कि हर व्यक्ति साल में 100 घण्टे का श्रमदान करने की शपथ ले और सप्ताह में कम-से-कम दो घण्टे सफाई के लिए निकाले। अपने भाषण में प्रधानमन्त्री ने स्कूलों और गांवों में शौचालय निर्माण की आवश्यकता पर भी बल दिया।
भारत को स्वच्छ बनाने में सरकार का योगदान केन्द्र सरकार और प्रधानमन्त्री की ‘गन्दगी मुक्त भारत’ की संकल्पना अच्छी है तथा इस दिशा में उनकी ओर से किए गए आरम्भिक प्रयास भी सराहनीय हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि आखिर क्या कारण है कि साफ-सफाई हम भारतवासियों के लिए कभी महत्त्व का विषय ही नहीं रहा? आखिर क्यों तमाम प्रयासों के बाद भी हम साफ-सुथरे नहीं रहते? हमारे गाँव गन्दगी के लिए बहुत पहले से बदनाम हैं, लेकिन प्यान दिया जाए, तो यह पता चलता है कि इस मामले में शहरों की स्थिति भी गाँवों से बहुत भिन्न नहीं है।
स्वच्छता अभियान की आवश्यकता आज पूरी दुनिया में भारत की छवि एक गन्दे देश की है। जब-जब भारत की अर्थव्यवस्था, तरक्को, ताकत और प्रतिभा की बात होती है, तब-तब इस बात की भी चर्चा होती है कि भारत एक गन्दा देश है। पिछले ही वर्ष हमारे पड़ोसी देश चीन के कई ब्लॉगों पर गंगा में तैरती लाशों और भारतीय सड़कों पर पड़े कूड़े के ढेर वाली तस्वीरें छाई रहीं।
कुछ साल पहले इण्टरनेशनल हाइजीन काउंसिल ने अपने एक सर्वे में यह कहा था कि औसत भारतीय घर बेहद गन्दे और अस्वास्थ्यकर होते हैं। इस सर्वे में काउंसिल ने कमरों, बाथरूम और रसोईघर की साफ-सफाई को आधार बनाया था। उसके द्वारा जारी गन्दे देशों की सूची में सबसे पहला स्थान मलेशिया और दूसरा स्थान भारत को मिला था। हद तो तब हो गई जब हमारे ही एक पूर्व केन्द्रीय मन्त्री ने यहाँ तक कह दिया कि यदि गन्दगी के लिए नोबेल पुरस्कार दिया जाता, तो वह शर्तिया भारत को ही मिलता।
ये सभी बाते और तथ्य हमें यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि हम भारतीय साफ-सफाई के मामले में भी पिछड़े हुए क्यों हैं? जबकि हम उस समृद्ध एवं गौरवशाली भारतीय संस्कृति के अनुयायी हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य सदा ‘पवित्रता’ और ‘शुद्धि’ रहा है। वास्तव में, भारतीय जनमानस इसी अवधारणा के चलते एक उलझन में रहा है। उसने इसे सीमित अर्थों में ग्रहण करते हुए मन और अन्त:करण की शुचिता को ही सर्वोपरि माना है, इसलिए हमारे यहाँ कहा गया है।
“मन चंगा तो कठौती में गंगा’
यह सही है कि चरित्र की शुद्धि और पवित्रता बहुत आवश्यक है, लेकिन बाहर की सफाई भी उतनी ही आवश्यक है। यदि हमारा आस-पास का परिवेश ही स्वच्छ नहीं होगा, तो मन भला किस प्रकार शुद्ध रह सकेगा? अस्वच्छ परिवेश का प्रतिकूल प्रभाव हमारे मन पर भी पड़ता है। जिस प्रकार एक स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है, उसी प्रकार एक स्वस्थ और शुद्ध व्यक्तित्व का विकास भी स्वच्छ और पवित्र परिवेश में ही सम्भव हैं।
अतः अन्त:करण की शुद्धि का मार्ग बाहरी जगत् की शुद्धि और स्वच्छता से होकर ही गुजरता है। साफ-सफाई के अभाव से हमारे आध्यात्मिक लक्ष्य तो प्रभावित होते ही हैं, साथ ही हमारी आर्थिक प्रगति भी बाधित होती है। अपने भाषण में प्रधानमन्त्री जी ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक आकलन का हवाला देते हुए कहा है कि गन्दगी के कारण औसत रूप से प्रत्येक भारतीय को प्रतिवर्ष लगभग 6,500 का अतिरिक्त आर्थिक बोझ उठाना पड़ता है। यदि उच्च वर्ग को इसमें शामिल न किया जाए, तो यह आँकड़ा 12 से 15 हजार तक पहुंच सकता हैं। इस तरह देखा जाए, तो हम स्वच्छ रहकर इस आर्थिक नुकसान से बच सकते हैं।
उपसंहार कुल मिलाकर सार यहीं है कि वर्तमान समय में स्वच्छता हमारे लिए एक बड़ी आवश्यकता है। यह समय भारतवर्ष के लिए बदलाव का समय है। बदलाव के इस दौर में यदि हम स्वच्छता के क्षेत्र में पीछे रह गए, तो आर्थिक उन्नति का कोई महत्व नहीं रहेगा। हाल ही में हमारे प्रधानमन्त्री ने 25 सितम्बर, 2014 को ‘मेक इन इण्डिया’ अभियान का भी शुभारम्भ किया है, जिसका लक्ष्य भारत को मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में अव्वल बनाना है। इस अभियान से आर्थिक गति तो अवश्य मिलेगी, लेकिन इसके साथ ही हमें प्रदूषण’ के रूप में एक बड़ी चुनौती भी मिलने वाली है। अतः हमें अपने दैनिक जीवन में तो सफ़ाई को एक मुहिम की तरह शामिल करने की जरूरत है ही, साथ ही हमें इसे एक बड़े स्तर पर भी देखने की ज़रूरत है, ताकि हमारा पर्यावरण भी स्वच्छ रहे।
स्वच्छता समान रूप से हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी हैं। हर समय कोई सरकारी संस्था या बाहरी बल हमारे पीछे नहीं लगा रह सकता। हमें अपनी आदतों में सुधार करना होगा और स्वच्छता को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना होगा. हालाँकि आदतों में बदलाव करना आसान नहीं होगा, लेकिन यह इतना मुश्किल भी नहीं है। प्रधानमन्त्री ने ठीक ही कहा है कि यदि हम कम-से-कम खर्च में अपनी पहली ही कोशिश में मंगल ग्रह पर पहुंच गए, तो क्या हम स्वच्छ भारत का निर्माण सफलतापूर्वक नहीं कर सकते? कहने का तात्पर्य है कि ‘क्लीन इण्डिया’ का सपना पूरा करना कठिन नहीं है। हमें हर हाल में इस लक्ष्य को वर्ष 2019 तक प्राप्त करना होगा, तभी हमारी ओर से राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को उनकी 150वीं जयन्ती पर सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकेगी।
2. आतंकवाद : समस्या और समाधान (2016, 13, 11, 10)
अन्य शीर्षक भारत में आतंकवाद की समस्या (2017), आतंकवाद की समस्या (2017), आतंकवाद और विश्व शान्ति (2014, 13, 11), आतंकवाद एक चुनौती, आतंकवाद और उसके दुष्परिणाम, आतंकवादः कारण एवं निवारण (2013), आतंकवाद और राष्ट्रीय एकता।
संकेत बिन्दु आतंकवाद का अर्थ, भारत में आतंकवाद के रूप में नक्सलवाद, आतंकवाद को पड़ोसी देशों का समर्थन, प्रगति में बाधक, वैश्विक समस्या, समाधान, उपसंहार।
आतंकवाद का अर्थ आतंक की कोई विचारधारा नहीं होती, इस कारण इसे ‘आतंकवाद’ कहना गैर-जरूरी है, किन्तु सामान्य बोलचाल तथा सम्प्रेषण के लिए इस शब्द का प्रयोग सर्वथा अनुचित नहीं है। हिंसा तथा आतंक के पीछे निहित स्वार्थ हो सकता है। यह उद्देश्य प्राप्ति या जनसामान्य के विकास के लक्ष्य से सम्बन्ध नहीं रखता, बल्कि यह वर्चस्ववाद की नीति का आयाम है।
आज हमारा देश आतंकवाद की समस्या से जूझ रहा है। वास्तव में, आतंकवाद वैश्विक रूप धारण कर चुका है। यह धर्म, सम्प्रदाय तथा समुदाय की आड़ में कतिपय कुत्सित विचार वाले लोगों की मानसिकता का परिणाम है।
भारत में आतंकवाद के रूप में नक्सलवाद ‘आतंकवाद’ भारत में कोई पुरानी समस्या नहीं है। आजादी के बाद लोकतन्त्र ने अभिव्यक्ति की जो परम्परा दी, उसमें अपनी जगह न बना पाने की जद्दोजहद में कुछ असामाजिक तत्वों ने आतंक का रास्ता अपना लिया। देश की राजनीतिक तथा सामाजिक प्रक्रिया भी इसमें जिम्मेदार रही है।
समाज की विषमता तथा आर्थिक विभाजन ने एक पूरे वर्ग को हिंसा का रास्ता अपनाने को विवश किया। किसान-मजदूरों की समस्या ने ‘नक्सलवाद’ को उभारा। आज ‘नक्सलवाद’ एक हिंसात्मक आन्दोलन की तरह फैल चुका है, किन्तु हम नक्सलवाद को सीधे तौर पर आतंकवाद नहीं कह सकते हैं।
यह एक उद्देश्य के लिए संघर्ष है। आज भारत में ‘नक्सलवाद’ को अधिक बड़ा खतरा मानकर उसके विरुद्ध बड़े-बड़े ऑपरेशन (अभियान) चलाए जा रहे हैं। हमारी सेना देश के बाहर जाकर भी नक्सलवादियों का सफाया कर रही है, किन्तु आतंकवाद की खतरनाक तथा विध्वंसक प्रक्रिया पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है।
आतंकवाद को पड़ोसी देशों का समर्थन भारत में आतंकवाद क्षेत्रीय तथा साम्प्रदायिक आधार ले चुका है। यह किसी विशेष उद्देश्य के अतिरिक्त देश को मात्र अस्थिर रखने की चाल के साथ संचालित है, जिसे हमारे पड़ोसी देशों का समर्थन प्राप्त है। कश्मीर, असम तथा अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों में कई आतंकी गुट अपनी कार्रवाइयों को अंजाम दे रहे हैं।
कश्मीर में इस्लामी कट्टरपन्थी आतंकी गुट सक्रिय हैं, जिन्हें पाकिस्तान की खुफिया एजेन्सी आई एस आई का समर्थन प्राप्त है। यह एजेन्सी आतंकवादियों को प्रशिक्षण तथा धन उपलब्ध कराती है। असम में सक्रिय ‘उल्फा’ जैसे आतंकी संगठन को बांग्लादेश के आतंकी गुटों का समर्थन प्राप्त है। उल्फा बांग्लादेश में अपने ठिकानों से ही कार्रवाई का संचालन कर रहा है।
प्रगति में बाधक आतंकवाद की समस्या भारत की प्रगति में बाधक है। यह लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए चुनौती है। भारत के विभिन्न शहरों में हुई आतंकवादी घटनाएँ यह प्रमाणित कर चुकी हैं कि आतंकवादी कहीं भी, कभी भी अपने कुत्सित उद्देश्य को पूरा करने में सफल हो सकते हैं।
मुम्बई में वर्ष 1993 का बम विस्फोट, होटल ताज पर हमला, दिल्ली में सीरियल विस्फोट, संसद पर हमला, वाराणसी के संकटमोचन मन्दिर परिसर में विस्फोट, वर्ष 2002 में गुजरात में अक्षरधाम मन्दिर पर आतंकियों का हमला, वर्ष 2015 में दोना नगर के गुरुदासपुर में हुआ आतंकी हमला तथा हाल ही में 2016 में पठानकोट में हुआ विस्फोट आदि घटनाएँ वास्तव में हमारी सुरक्षा प्रणाली के लिए चुनौती हैं। निर्दोष नागरिकों की जान लेने वाले केवल भय तथा अशान्ति की प्रक्रिया को अंजाम देना चाहते हैं। यह मानवीय क्रूरता का उदाहरण हैं। आज देश का कोई शहर आतंकवाद से सुरक्षित नहीं है।
वैश्विक समस्या आतंकवादियों ने देश के कोने-कोने में अपना नेटवर्क स्थापित कर लिया है। यदि सरकार आतंकवाद को समाप्त करने की किसी ठोस नीति को क्रियान्वित नहीं करती, तो इसे नियन्त्रित करना भी कठिन हो जाएगा। आज आतंकवाद न केवल भारत वरन् पूरे विश्व के लिए एक समस्या बन गया है। इसने दुनिया के लोगों में खौफ पैदा करने का अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया है। इस वैश्विक समस्या से संघर्ष करने के लिए विभिन्न देशों के बीच आपसी समन्वय बनाने की आवश्यकता है।
समाधान आतंकवाद को नियन्त्रित करना कठिन नहीं है। इसके लिए ठोस कार्यनीति बनाकर उसके क्रियान्वयन की जरूरत है। धर्म तथा सम्प्रदाय के नाम पर आतंक फैलाने वाले गुटों को जवाब देने के लिए धार्मिक रूप से सहिष्णु लोगों को आगे आना होगा। शक्ति तथा संसाधनों के माध्यम से आतंकियों के इरादों को ध्वस्त किया जा सकता है। इस समस्या से निपटने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर समन्वय की भी आवश्यकता है।
उपसंहार महावीर, बुद्ध, गुरुनानक, महात्मा गाँधी जैसे महापुरुषों को जन्म देने वाली इस पुण्य भारत-भूमि पर आतंकवाद कलंक का टीका है। हम सभी भारतवासियों को इसे समूल नष्ट करने का संकल्प लेकर फिर से देश को सत्य, अहिंसा एवं शान्ति की तपोभूमि बनाना होगा, तभी भारत और विश्व का कल्याण सम्भव है।
3. बढ़ती जनसंख्या : बड़ी समस्या (2016, 15, 00)
अन्य शीर्षक जनसंख्या वृद्धि की समस्या (2012, 11, 10), भारत में जनसंख्या वृद्धि : कारण और निवारण, बढ़ती जनसंख्या : समस्या और समाधान (2018, 11, 12, 11, 10), जनसंख्या का विरफोट : एक समस्या (2011), बढ़ती जनसंख्या के कुप्रभाव (2017, 15)।।
संकेत बिन्दु भूमिका, जनसंख्या में दूसरा सबसे बड़ा देश, जनसंख्या वृद्धि के कारण, जनसंख्या वृद्धि का कुप्रभाव, नियन्त्रण के उपाय, उपसंहार।
भूमिका सुप्रसिद्ध विचारक गार्नर का कहना है कि जनसंख्या किसी भी राज्य के लिए उससे अधिक नहीं होनी चाहिए, जितनी साधन-सम्पन्नता राज्य के पास है अर्थात् जनसंख्या किसी भी देश के लिए वरदान होती हैं, परन्तु जब अधिकतम सीमा-रेखा को पार कर जाती है, तब वही अभिशाप बन जाती है।
जनसंख्या में दूसरा सबसे बड़ा देश वर्तमान में जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में चीन के बाद दूसरा स्थान है। हमारे सामने अभी जनसंख्या विस्फोट की समस्या है। बढ़ती हुई जनसंख्या का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारत की जनसंख्या मात्र 36 करोड़ थी, जो अब वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार बढ़कर 121 करोड़ से भी अधिक हो गई है।
जनसंख्या वृद्धि के कारण जनसंख्या वृद्धि के विभिन्न महत्त्वपूर्ण कारणों में जन्म एवं मृत्यु दर के बीच अधिक दूरी, विवाह के समय कम आयु, अत्यधिक निरक्षरता, परिवार नियोजन के प्रति धार्मिक दृष्टिकोण, निर्धनता (अधिक हाथ अधिक आमदनी का सिद्धान्त), मनोरंजन के साधनों की कमी, संयुक्त परिवार, परिवारों में युवा दम्पतियों में अपने बच्चों के पालन पोषण के प्रति जिम्मेदारी में कमी तथा बन्ध्याकरण, ट्यूबेक्टॉमी एवं लूप के प्रभावों के विषय में गलत सूचना या । सूचना का अभाव आदि उल्लेखनीय हैं।
जनसंख्या वृद्धि का कुप्रभाव जनसंख्या वृद्धि का प्रत्यक्ष प्रभाव लोगों के जीवन-स्तर पर पड़ता है। यही कारण है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से कृषि एवं औद्योगिक क्षेत्रों में चामत्कारिक प्रगति के बावजूद यहाँ प्रति व्यक्ति आय में सन्तोषजनक वृद्धि नहीं हो पाई हैं।
जनसंख्या वृद्धि एवं नियन्त्रण की सैद्धान्तिक व्याख्याओं के अन्तर्गत एक व्याख्या मानती है कि विकास जनन क्षमता (fertility) की दर को कम कर देता है। यह भी कहा जाता है कि विकास मृत्यु दर को जन्म दर की अपेक्षा अधिक कम करता है। जिसका परिणाम, जनसंख्या में वृद्धि का होना है।
नियन्त्रण के उपाय यदि देश लगभग 1.5 करोड़ व्यक्तियों की प्रतिवर्ष की वृद्धि से बचना चाहता है, तो केवल एक ही मार्ग शेष है कि आवश्यक परिवार नियोजन एवं जनसंख्या हतोत्साहन का कड़वा घूट लोगों को पिलाया जाए। इसके लिए एक उपयुक्त जनसंख्या नीति की आवश्यकता है। सबसे अधिक बल इस बात पर दिया जाना चाहिए कि परिवार नियोजन कार्यक्रम में अत्यधिक जोर बन्ध्याकरण पर देने की अपेक्षा ‘फासले’ की विधि को प्रोत्साहित किया जाए, जिससे इसके अनुरूप जनांकिकीय प्रभाव प्राप्त किया जा सके। हमारे देश में लगभग पांच में से तीन (576) विवाहित स्त्रियाँ 30 वर्ष से कम आयु की हैं और दो या दो से अधिक बच्चों की माँ हैं। ‘बच्चियाँ ही बच्चे पैदा करे’ इस सच्चाई को बदलना होगा। यह केवल फासले की विधि तथा लड़कियों की अधिक विवाह-उम्र को प्रोत्साहन देने से ही सम्भव हो सकेगा।
भारत जैसे विकासशील देश में बढ़ती जनसंख्या पर नियन्त्रण पानी अत्यन्त आवश्यक है अन्यथा इसके परिणामस्वरूप देश में अशिक्षा, गरीबी, बीमारी, भूखमरी, बेरोजगारी, आवासहीनता जैसी कई समस्याएँ उत्पन्न होगी और देश का विकास अवरुद्ध हो जाएगा। अतः जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकारों के साथ-साथ देश के प्रत्येक नागरिक को इस विकट समस्या से लड़ना होगा। समाज-सेवी संस्थाओं की भी इस समस्या के समाधान हेतु महत्त्वपूर्ण भूमिका होनी चाहिए।
जनसंख्या वृद्धि रोकने हेतु शिक्षा का व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार अति आवश्यक है। महिलाओं के शिक्षित होने से विवाह की आयु बढ़ाई जा सकती है, प्रजनन आयु वाले दम्पतियों को गर्भ निरोध स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। उन्हें छोटा परिवार सुखी परिवार की बात समझाई जा सकती है।
केन्द्रीय एवं राज्य स्तरों पर जनसंख्या परिषद् स्थापित करना भी इस समस्या का उपयुक्त उपाय हो सकता है, क्योंकि ऐसा करके न केवल विभिन्न स्तरों पर समन्वय का कार्य किया जा सकेगा, बल्कि अल्पकालीन व दीर्घकालीन योजनाओं का निर्धारण भी किया जा सकेगा। मीडिया को भी इस कार्य में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने की आवश्यकता है। इन सब बातों पर ध्यान देकर जनसंख्या विस्फोट पर निश्चय ही नियन्त्रण पाया जा सकता हैं।
उपसंहार विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक ‘स्टीफन हॉकिंग’ ने मानव को सावधान करते हुए कहा है-“हमारी जनसंख्या एवं हमारे द्वारा पृथ्वी के निश्चित संसाधनों के उपयोग, पर्यावरण को स्वस्थ या बीमार करने वाली हमारी तकनीकी क्षमता के साथ घातीय रूप में बढ़ रहे हैं। आज प्रत्येक देशवासी को उनकी बातों से प्रेरणा लेकर देश को समृद्ध एवं विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प लेना चाहिए।
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