UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 15 Basic Education System (बेसिक शिक्षा-पद्धति)

By | June 2, 2022

UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 15 Basic Education System (बेसिक शिक्षा-पद्धति)

UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 15 Basic Education System (बेसिक शिक्षा-पद्धति)

विरतृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गाँधी जी द्वारा प्रतिपादित बेसिक शिक्षा-पद्धति का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा इस शिक्षा-प्रणाली के मुख्य सिद्धान्तों का भी वर्णन कीजिए।
या
बेसिक शिक्षा को बुनियादी शिक्षा क्यों कहा गया है ?
या
बेसिक शिक्षा-प्रणाली के मूलभूत सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बेसिक शिक्षा के जन्मदाता महात्मा गाँधी थे। उनका विचार था कि शिक्षा की रूपरेखा ग्रामीण होनी चाहिए, वह जनसाधारण के लिए होनी चाहिए, भारतीय संस्कृति का उसके द्वारा पुनर्जागरण होना चाहिए और उसमें भारतीय जनता की समस्याओं को सुलझाने की क्षमता होनी चाहिए।

ब्रिटिश शासन काल में भारत में अंग्रेजी शिक्षा का लक्ष्य सरकारी नौकरी के लिए उपयुक्त कर्मचारी तैयार करना था; भारतीयों को शारीरिक, मानसिक तथा चारित्रिक विकास करना नहीं। अत: महात्मा गाँधी ने देश की निर्धन, बेकार, निरक्षर और अस्वस्थ जनता को उन्नति के पथ पर अग्रसर करने के लिए बेसिक शिक्षा योजना का निर्माण किया। गाँधी जी ने हरिजन नामक पत्रिका में राष्ट्रीय शिक्षा की नवीन रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए लिखा है, “शिक्षा से मेरा तात्पर्य बालक और मनुष्य में जो श्रेष्ठतम है, उसका सम्पूर्ण विकास करना अर्थात् शरीर, बुद्धि एवं आत्मा तीनों का विकास करना है। साक्षरता स्वयं में कोई शिक्षा नहीं है, इसलिए मैं बालक की शिक्षा का प्रारम्भ बालक को कुछ हस्तकला सिखाकर उसको प्रशिक्षण के समय से ही उत्पादन करने में समर्थ बनाकर करूंगा। इस प्रकार प्रत्येक स्कूल आत्मनिर्भर हो सकता है, शर्त यह है कि राज्य स्कूल में निर्मित वस्तुओं को खरीद लें।”

बेसिक शिक्षा-पद्धति का प्रारम्भ 1937-38 ई० में हुआ। डॉ० जाकिर हुसैन की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गयी। इस समिति ने एक शिक्षा योजना तैयार की, जिसे वर्धा योजना भी कहा जाता है।

बेसिक शिक्षा का अर्थ
(Meaning of Basic Education)

बेसिक शिक्षा वह शिक्षा है जो बालकों को विभिन्न प्रकार की हस्तकलाओं का प्रशिक्षण देते हुए उनका शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, नैतिक तथा आध्यात्मिक विकास कर सके, जिससे देश में समाजवादी समाज की स्थापना हो और जनता को सुखी तथा समृद्ध बनाया जा सके। गाँधी जी के अनुसार, “यह जीवन की शिक्षा है जो जन्म से मृत्यु तक की प्रक्रिया में चलती है।” बेसिक शब्द का हिन्दी रूपान्तर ‘आधारभूत’ तथा ‘बुनियादी’ शब्द है।

इसके नामकरण के निम्नांकित कारण

  1. बेसिक शिक्षा को भारत की राष्ट्रीय सम्पत्ति, सभ्यता एवं शैक्षणिक संगठन के आधार के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
  2. यह शिक्षा सामुदायिक जीवन के आधारभूत व्यवसाय से सम्बन्धित है।
  3. इसमें हस्तकला के माध्यम से शिक्षा दी जाती है, जिनका प्रयोग व्यक्ति जीवन-निर्वाह के लिए करते
  4. इसमें बालकों की रुचियों और आवश्यकताओं को सम्बन्धित करके शिक्षा दी जाती है।
  5. यह शिक्षा भारत के प्रत्येक स्त्री-पुरुष की सामान्य सम्पत्ति समझी जाती है।
  6. यह शिक्षा व्यक्ति को अपने वातावरण में सामंजस्य करने के योग्य बनाती है।
  7. प्रत्येक भारतीय बालक के लिए इस शिक्षा की अनिवार्य व्यवस्था की गई है।

बेसिक शिक्षा के मौलिक सिद्धान्त
(Fundamental Principles of Basic Education)

बेसिक शिक्षा-पद्धति के मौलिक सिद्धान्त निम्नलिखित हैं|
1.निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा- गाँधी जी का विचार था कि प्राइमरी शिक्षा प्रत्येक बालक के लिए सुलभ होनी चाहिए। गुलामी के कारण हमारे देश के बालक इस अधिकार से वंचित थे। लोकतन्त्र उसी देश में सफल होता है जहाँ शिक्षा सार्वजनिक हो। इसी कारण महात्मा गाँधी ने यह निश्चय किया कि 7 से 14 वर्ष तक के बालकों की शिक्षा अनिवार्य और नि:शुल्क होनी चाहिए। गाँधी जी ने स्वयं लिखा है, “जिस प्रकार के नि:शुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा वायु और जल पर सबका अधिकार है और सभी उसे समान रूप से स्वावलम्बन तथा आत्मनिर्भरता प्रयोग में ला सकते हैं, उसी प्रकार शिक्षा भी सबके लिए सुलभ हो शिक्षा का माध्यम मातृभाषा और गरीब लोग भी शिक्षा प्राप्त कर सकें, इसलिए इसका अनिवार्य शिक्षा का आधार हस्तकला और नि:शुल्क होना आवश्यक है।”

2. स्वावलम्बन तथा आत्मनिर्भरता- इस सिद्धान्त का तात्पर्य के जीवनोपयोगी शिक्षा है कि शिक्षकों का वेतन और विद्यालय के अन्य व्यय विद्यालय में बनी। बालक का स्वतन्त्र विकास वस्तुओं को बेचने से आंशिक रूप से निकल आएँ। इस प्रकार से समन्वय समन्वय पर बल शिक्षा संस्थाओं की आर्थिक समस्या का बहुत कुछ हद तक समाधान नागरिकता का आदेश हो जाएगा। इसके अतिरिक्त जब बालक जान जाएँगे कि अपनी शिक्षा के वे स्वयं उत्तरदायी हैं और उसके लिए वे अन्य किसी पर निर्भर नहीं हैं तो उनके अन्तर में आत्मनिर्भरता और स्वावलम्बन के भाव उत्पन्न होंगे और उनमें आत्मविश्वास की भावना का विकास होगा।

3. शिक्षा का माध्यम मातृभाषा- कमेनियस ने मातृभाषा के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए लिखा है, मातृभाषा को सीखने से पहले विदेशी भाषा की शिक्षा प्रदान करना उतना ही विवेकरहित है, जितना कि बच्चे को चलने से पूर्व चढ़ना सिखाना।” इसीलिए बेसिक शिक्षा-पद्धति में शिक्षा का माध्यम मातृभाषा रखा गया है। प्रथम पाँच कक्षाओं में अंग्रेजी बिल्कुल हटा दी गई है और सभी विषय मातृभाषा के माध्यम से पढ़ाए जाते

4. शिक्षा का आधार हस्तकला- इस पद्धति में हस्तकला को शिक्षा का केन्द्र बनाया गया है। इस पद्धति में बेसिक स्कूलों में किसी हस्तकला से शिक्षा देने की व्यवस्था की जाती है। पाठ्यक्रम के सभी विषय किसी हस्तकला के चारों ओर केन्द्रित करके पढ़ाए जाते हैं। इस पद्धति में ‘क्रिया द्वारा शिक्षा तथा अनुभवे द्वारा सीखना’ दोनों सिद्धान्त निहित हैं। हस्तकलाओं के सम्बन्ध में गाँधी जी ने लिखा है, “प्रत्येक हस्तकार्य आजकल की भाँति यन्त्रवत् नहीं, वरन् वैज्ञानिक ढंग से सिखाया जाएगा ताकि बालक प्रत्येक क्रिया के कार्य-कारण सम्बन्ध को अच्छी तरह समझ जाएँ।” श्री ललित ने लिखा है, “बुनियादी हस्तकला सूर्यमण्डल के केन्द्र के रूप में होनी चाहिए एवं अन्य विषयों को ग्रह नक्षत्रों की भाँति चारों ओर घूमने तथा केन्द्रीय सूर्य से अपने उत्ताप या रोशनी को प्राप्त करना चाहिए।” आधुनिक शिक्षाशास्त्रियों का मत है कि हस्तकला द्वारा दी गई शिक्षा बालक के लिए अधिक मनोवैज्ञानिक होती है, क्योंकि इससे उसके मानसिक और शारीरिक दोनों प्रकार के अनुभव सन्तुलित होते हैं।

5. अहिंसा पर आधारित-बेसिक शिक्षा का आधार गाँधी जी का सत्य और अहिंसा का विचार है। गाँधी जी का यह विचार था कि पाश्चात्य शिक्षा हिंसात्मक प्रवृत्तियों को जन्म देती है, जिससे प्रेम, सहानुभूति, दया, धर्म, उदारता आदि गुणों का लोप होने लगता है, इसीलिए उनका कहना है कि विद्यालय में दण्ड का अभाव होना चाहिए। विद्यालय में इस प्रकार का वातावरण रखना चाहिए, जिससे बालकों में पारस्परिक घृणा, साम्प्रदायिक द्वेष तथा कलह की मनोवृत्तियाँ न विकसित हो सकें।

6. जीवनोपयोगी शिक्षा-तत्कालीन शिक्षा बालक के वास्तविक जीवन से सम्बन्धित नहीं थी। इसलिए बालक को अपने वातावरण से समायोजन करने में कठिनाई अनुभव होती थी और इसके अभाव में वह अपना जीवन भली प्रकार व्यतीत नहीं कर पाता था, इसलिए बेसिक शिक्षा-पद्धति में गाँधी जी ने हस्तकला को प्राकृतिक तथा सामाजिक वातावरण से सम्बन्धित करके बालक के वास्तविक जीवन से सम्बन्ध स्थापित कर दिया। इस पद्धति में शिक्षा बालक की जीवन की परिस्थितियों से सम्बन्धित रहती है और शिक्षा का कार्य । जीवन की वास्तविक परिस्थितियों में सम्पन्न होता है।

7. बालक का स्वतन्त्र विकास- अन्य आधुनिक शिक्षा-पद्धतियों की भॉति बेसिक शिक्षा में भी बालकों की रुचि का ध्यान रखा जाता है और उन्हें पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त होती है। बालकों को स्वतन्त्र अभिव्यक्ति प्रदान करने का अवसर मिलता है। गाँधी जी के अनुसार, “जब शिक्षा का उद्देश्य एक स्वच्छन्द तथा रचनात्मक स्वक्रिया के द्वारा बालक की अधिकतम अभिवृद्धि तथा विकास समझा जाता है तो विद्यार्थियों को स्वयं सोचने, अपनी रुचि के अनुसार अपना कार्य नियोजित करने तथा उन आयोजनों को अपनी ही गति के अनुसार आगे बढ़ने की पर्याप्त स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए।’

8. समन्वय पर बल- किसी हस्तकला के आधार पर शिक्षा देने का तात्पर्य शिक्षा को समन्वित करना है। अर्थात् पाठ्यक्रम के सभी विषयों में शरीर के विभिन्न अवयवों की भाँति एक स्वाभाविक सम्बन्ध स्थापित करना है। इस पद्धति में सभी विषयों की शिक्षा किसी हस्तकला को केन्द्र मानकर दी जाती है। बेसिक शिक्षा में बालक के विकास के तीन आधार बताए गए हैं—प्राकृतिक वातावरण, सामाजिक वातावरण और हस्तकला। हस्तकला के द्वारा पहले दो आधारों पर समन्वय सहज ही हो जाता है, क्योंकि हस्तकला की उत्पत्ति और विकास इन्हीं पर निर्भर है। प्राकृतिक शक्तियों और साधनों के उपयोग के द्वारा मनुष्य कई वस्तुएँ तैयार करता है, उद्योग-धन्धे चलाता है, जिनकी समाज को आवश्यकता है। इन तीनों को केन्द्र मानकर बालक की शिक्षा को समन्वित किया जाता है।

9. नागरिकता का आदर्श बेसिक शिक्षा में नागरिकतों का आदर्श निहित है। यदि इस पद्धति में से नागरिकता का सिद्धान्त निकाल दिया जाए तो यह पद्धति अपना निजत्व खो बैठती है। इसका उद्देश्य ऐसे नागरिक तैयार करना है, जो अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों को बुद्धिमानी से समझ सकें और समाज के क्रियाशील सदस्य बनकर समाज के ऋण को किसी सेवा के रूप में चुका सकें। डॉ० जाकिर हुसैन ने लिखा है, “नवीन शिक्षा या बेसिक शिक्षा भारत के भावी नागरिकों में आत्मसम्मान, आत्मनिर्भरता, आत्मशक्ति एवं सामाजिक सेवा की भावना उत्पन्न करेगी।’

प्रश्न 2.
गाँधी जी द्वारा प्रतिपादित बेसिक शिक्षा-प्रणाली के मुख्य गुणों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
या
बेसिक शिक्षा-प्रणाली की मुख्य विशेषताओं का विस्तार से वर्णन कीजिए।
या
बेसिक शिक्षा के गुण एवं दोषों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
या
बेसिक शिक्षा के गुण-दोषों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:

बेसिक शिक्षा के गुण
(Merits of Basic Education)

इस पद्धति के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं|

1. दार्शनिकता- बेसिक शिक्षा योजना महात्मा गाँधी के आदर्शवादी दर्शन का प्रतीक है। यह भारतीय आदर्शवाद पर आधारित है। यह पद्धति बालकों के अन्दर त्याग, कर्तव्य, संयम, सत्य तथा सेवा की भावना का विकास करने पर जोर देती है।

2. सामाजिकता- यह पद्धति सामाजिक दृष्टि से भी बहुत उपयोगी है, क्योंकि यह बालकों के अन्दर सामाजिक गुणों का विकास करती है। यह पद्धति ऐसे नागरिकों का निर्माण करती है जो अपने कर्तव्य एवं अधिकार को भली-भाँति समझकर अपने उत्तरदायित्व को निभा सकें और समाज के विकास में अपना योगदान दे सकें।

3. मनोवैज्ञानिकता- यह पद्धति आधुनिक मनोविज्ञान के प्रमुख सिद्धान्त ‘क्रिया द्वारा शिक्षा पर आधारित है। इसके द्वारा बालकों की जन्मजात तथा रचनात्मक प्रवृत्तियाँ सन्तुष्ट होती हैं तथा बालकों के हाथ एवं मस्तिष्क का प्रशिक्षण एकसाथ होता है, जिससे सीखी हुई वस्तु का प्रभाव इनके ऊपर स्थायी तथा अमिट हो जाता है।

4. आर्थिक दृष्टि से उपयोगी हमारे देश में वर्तमान शिक्षा प्रणाली का प्रमुख दोष यह है कि बालक शिक्षा प्राप्त करने के बाद केवल नौकरी का इच्छुक रहता है और नौकरी प्राप्त न होने पर अपनी शिक्षा को बेकार समझता है, लेकिन बेसिक शिक्षा-पद्धति से बालक किसी-न-किसी उद्योग में प्रवीण हो जाता है और आगे चलकर वह स्वावलम्बी बन जाता है।

5.क्रिया द्वारा शिक्षा- इस शिक्षा-पद्धति में बालकों को ऐसे अवसर मिलते हैं, जिससे वह स्वयं कार्य करके उपयोगी ज्ञान प्राप्त करता है। इस प्रकार वह स्वयं कार्य करके सीखता है।

6. श्रम का महत्त्व- इस पद्धति में बालकों को किसी हस्तकार्य के माध्यम से शिक्षा देने पर बल दिया गया है। इसके परिणामस्वरूप बालक के हृदय में श्रम के प्रति आदर की भावना का विकास होता है और वह श्रमिकों के कार्य को हीन दृष्टि से नहीं देखता।

7. समन्वयता- बेसिक शिक्षा-पद्धति की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि किसी उपयुक्त हस्तकला के माध्यम से शिक्षा प्रदान की जाती है। शिक्षा की व्यवस्था इस प्रकार से की जाती है कि सभी पाठ्य-विषय परस्पर सम्बन्धित रहते हैं। इसे ही शिक्षा में समन्वय एवं अनुबन्ध प्रणाली कहते हैं। इससे समस्याओं के प्रति बालकों में एक जिज्ञासा की भावना उठती है और वे उसे पूर्ण करने में अग्रसर हो जाते हैं। इस प्रकार इस पद्धति में बालक विभिन्न विषयों का ज्ञान अलग-अलग प्राप्त नहीं करता, वरन् दस्तकारी की सहायता से समस्त विषयों को सह-सम्बन्धित करके लाभकारी ज्ञान प्राप्त करता है। इससे शिक्षा एकांगी नहीं रहती।

8. बाल-केन्द्रित शिक्षा- इस शिक्षा-पद्धति में शिक्षा का केन्द्र बेसिक शिक्षा के गुण बालक है। इसके अन्तर्गत बालकों की रुचि, आवश्यकता, अभिवृद्धि दार्शनिकता एवं बुद्धि को ध्यान में रखकर कार्य किया जाता है।

9. लोकतान्त्रिक व्यवस्था- बेसिक स्कूलों में बालकों के स्तर मनोवैज्ञानिकता के अनुकूल बाल संगठनों की व्यवस्था की गई है, जिससे उनमें आर्थिक दृष्टि से उपयोगी अनुशासन की भावना व लोकतान्त्रिक गुणों का विकास हो सके। क्रिया द्वारा शिक्षा धर्म- निरपेक्षता, अस्पृश्यता निवारण, असाम्प्रदायिकता, व्यावहारिक लक्ष्य, नवनिर्माण, ग्रामोत्थान, समाजवादी समाज का निर्माण, विश्व-बन्धुत्व आदि लोकतान्त्रिक गुणः बाल संगठन की प्रमुख बाल-केन्द्रित शिक्षा विशेषताएँ हैं।

10. स्वतन्त्रता प्रधान प्रणाली- इस पद्धति में बालकों के स्वतन्त्रता प्रधान प्रणाली स्वतन्त्र विकास को बहुत अधिक महत्त्व दिया गया है। विद्यालय में सौन्दर्यानुभूति का विकास बालकों को ऐसा वातावरण दिया जाता है, जिससे बालकों की पाठान्तर क्रियाओं का महत्त्व प्रवृत्तियों का स्वतन्त्रतापूर्वक विकास हो सके। ऐसा करने में बालक पर बल खेल के समान ही ज्ञानार्जन करने में भी आनन्द का अनुभव करेगा।

11. सौन्दर्यानुभूति का विकास- यह शिक्षा-पद्धति बालकों के अन्दर सौन्दर्यानुभूति के भावों का विकास करती है। बालक। दिन-प्रतिदिन दूसरों से अधिक सुन्दर तथा सुडौल वस्तुएँ बनाने का प्रयत्न करता है, जिससे उसकी बनाई हुई वस्तुओं की प्रशंसा हो। ऐसे प्रयासों से बालकों में सौन्दर्यानुभूति का विकास होता है। इसके अतिरिक्त बालकों की मूल-प्रवृत्तियों का शोधन और मार्गान्तीकरण भी हो जाता है।

12. पाठान्तर क्रियाओं का महत्त्व- इस पद्धति में विभिन्न पाठान्तर क्रियाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है; जैसे-श्रमदान प्रदर्शनी, उत्सवों का आयोजन, राष्ट्रीय पर्व, भ्रमण, पर्यटन, स्काउटिंग इत्यादि। इनके द्वारा बालकों के व्यावहारिक ज्ञान में वृद्धि होती है।

13. शिक्षकों के चरित्र और व्यक्तित्व पर बल- शिक्षक और बालक के मध्य बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध रहता है, इसलिए यह आवश्यक है कि शिक्षक चरित्रवान, ज्ञानवान, क्षमाशील, मृदुभाषी, मिलनसार, कर्तव्यपरायण, विनोदप्रिय, स्फूर्तिवान, परिश्रमी तथा संयमी हों।

14. विद्यालय समाज के वास्तविक प्रतिनिधि- तत्कालीन शिक्षा-प्रणाली का एक दोष यह भी था कि बालक के जीवन, समाज और विद्यालय में कोई सम्बन्ध नहीं था। बेसिक शिक्षा-पद्धति में विद्यालय में समाज के अनुकूल वातावरण रखा जाता है, जिससे बालक अपने वातावरण से सामंजस्य स्थापित कर सकें।

बेसिक शिक्षा के दोष
(Demerits of Basic Education)

बेसिक शिक्षा-पद्धति में कुछ दोष भी हैं, जिनका विवरण निम्नलिखित है|

1. हस्तकला पर आवश्यकता से अधिक बल- बालकों को हस्तकला के माध्यम से शिक्षा देने का। विचार दोषपूर्ण है। बालकों पर प्रारम्भ से हस्तकला लाद देने से उनकी रुचि और स्वतन्त्रता का हनन होता है। आरम्भ से ही बालकों के सम्मुख जीविकोपार्जन का उद्देश्य रख देने से उनका विकास एकांगी रह जाता है।

2. आत्मनिर्भरता का सिद्धान्त दोषपूर्ण है- बेसिक शिक्षा के स्वावलम्बी होने की योजना बहुत-से लोगों को अव्यावहारिक जान पड़ती है। इससे शिक्षकों तथा विद्यार्थियों में धन कमाने की प्रतिस्पर्धा चल पड़ेगी और सारे स्कूल कारखानों का रूप ले लेंगे। इससे बालकों की रुचियों का विकास नहीं हो सकेगा। स्कूल तथा शिक्षकों की सफलता का मूल्यांकन शिक्षा की प्रगति से नहीं, बल्कि बनी हुई वस्तुओं की बिक्री से प्राप्त मूल्य से होगा।

3. कच्चे माल की बरबादी- बेसिक शिक्षा-पद्धति में समस्या छोटे-छोटे बालकों को हस्तकार्य सिखाने की व्यवस्था की गई, कार्य समय का दोषपूर्ण विभाजन जिससे बहुत अधिक मात्रा में कच्चा माल नष्ट होता है।

4. निर्मित वस्तुओं की बिक्री की समस्या- बालक कितना ही घार्मिक शिक्षा की अवहेलना प्रयत्न करें, किन्तु उनके द्वारा निर्मित वस्तुएँ उतनी उत्कृष्ट नहीं होने वैयक्तिक विभिन्नता की उपेक्षा सकतीं जितनी कि कुशल कारीगरों द्वारा निर्मित। अत: इस प्रकार की उत्पादक कार्यों पर आवश्यकता वस्तुओं की बिक्री की समस्या है। दूसरे बेसिक स्कूलों में निर्मित से अधिक बल वस्तुओं की लागत भी अधिक होगी।

5. कार्य समय का दोषपूर्ण विभाजन- बेसिक स्कूलों का उपेक्षा समय विभाग चक्र दोषपूर्ण है। इसके अनुसार बालकों को लगातार साढ़े तीन घण्टे तक हस्तकार्य में लगे रहना पड़ता है। इतनी देर तक अभाव एक ही कार्य करने से बालकों में अरुचि पैदा हो जाती है, जिससे वे। भारतीय संस्कृति के प्रतिकूल अन्य विषयों की उपेक्षा करने लगते हैं।

6. शिक्षकों के हितों की उपेक्षा- बेसिक शिक्षा-पद्धति में शिक्षकों को बहुत कम वेतन देकर उनसे अधिक परिश्रम लिया जाता। अपूर्ण शिक्षा-पद्धति है। इससे वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकते और इस व पेशे की ओर से लोगों का ध्यान हटने लगता है।

7. धार्मिक शिक्षा की अवहेलना- भारत एक धर्मप्रधान देश है, लेकिन बेसिक शिक्षा योजना में धर्म की अवहेलना की गई। प्रत्येक युग की शिक्षा में धर्म को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जाता रहा है, लेकिन महात्मा गाँधी जैसे धार्मिक व्यक्ति द्वारा इसका परित्याग आश्चर्यजनक प्रतीत होता है।

8. वैयक्तिक विभिन्नता की उपेक्षा- इस पद्धति में बालकों को अपनी रुचि तथा मानसिक स्थिति के अनुसार विषय का चयन करने की स्वतन्त्रता नहीं है। जिस बालक की हस्तकौशल में रुचि नहीं होती, उसे हस्तकौशल सीखने के लिए विवश करना अमनोवैज्ञानिक है।

9. उत्पादक कार्यों पर आवश्यकता से अधिक बल- इस पद्धति में उत्पादक कार्यों पर आवश्यकता से अधिक बल दिया गया है। साढ़े पाँच घण्टे के विद्यालय के समय में साढ़े तीन घण्टे से कुछ कम उत्पादक कार्यों की शिक्षा पर व्यय किए जाते हैं। उत्पादक कार्यों पर इतना अधिक समय देना अनुचित है। इससे बालकों को अन्य विषयों के अध्ययन का अवसर नहीं मिलता।

10. पाठ्य-पुस्तकों की उपेक्षा- बेसिक शिक्षा में पाठ्य-पुस्तकों का महत्त्व बहुत कम है, फलस्वरूप इस पद्धति का क्षेत्र बहुत ही सीमित हो जाता है। बालक पुस्तकों से प्राप्त होने वाले लाभ से वंचित रह जाते हैं। और उनके ज्ञान का क्षेत्र शिक्षकों के उपदेशों तक ही सीमित रह जाता है।

11. विज्ञान तथा तकनीकी ज्ञान की उपेक्षा- बेसिक शिक्षा ग्रामीण क्षेत्रों के लिए तो उपयुक्त हो सकती है, लेकिन नगरों के लिए यह उपयुक्त नहीं है; क्योंकि आजकल विज्ञान और तकनीकी ज्ञान का अत्यधिक प्रचार हो रहा है, परन्तु यह पद्धति हस्तकार्य पर इतना अधिक बल देती है कि विज्ञान और तकनीकी ज्ञान की उपेक्षा स्वतः हो जाती है।

12. कुशल एवं प्रशिक्षित शिक्षकों का अभाव- बेसिक शिक्षा योजना के लिए कुशल, योग्य एवं प्रशिक्षित शिक्षकों का मिलना कठिन है। ऐसे शिक्षक बहुत कम होते हैं, जो किसी भी हस्तकार्य के माध्यम से विभिन्न विषयों का विस्तृत ज्ञान दे सकें। अत: बेसिक शिक्षा में कुशल योग्य तथा प्रशिक्षित शिक्षकों के अभाव की समस्या रहती है।

13. भारतीय संस्कृति के प्रतिकूल- बेसिक शिक्षा-पद्धति व्यक्ति को बहुत अधिक भौतिकवादी बनाती है और इसमें आध्यात्मिक आदर्शवाद का अभाव है जो कि भारतीय संस्कृति का मूलमन्त्र है।

14. समन्वय की व्यवस्था अव्यावहारिक--इस शिक्षा-पद्धति में समन्वय की व्यवस्था अव्यावहारिक, अस्वाभाविक तथा अमनोवैज्ञानिक मालूम पड़ती है। विषयों को खींचतान कर हस्तकला से सम्बन्धित किया जाता है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि समन्वय पूर्ण रूप से सफल नहीं होता और पाठ्यक्रम की बहुत-सी बातें छूट जाती हैं। कुछ विषयों में तो यह अभाव हो सकता है, परन्तु किसी ऐसी सर्वमान्य कला का अभी तक अनुसन्धान नहीं हुआ है जिसके चारों ओर संभी विषय केन्द्रित किए जा सकें।

15. अपूर्ण शिक्षा-पद्धति- बेसिक शिक्षा-पद्धति को अपूर्ण शिक्षा-पद्धति माना जाता है, क्योंकि इसमें सात वर्ष की आयु से पहले और 14 वर्ष की आयु के बाद की शिक्षा की कोई रूपरेखा प्रस्तुत नहीं की गई है। निष्कर्ष-उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि बेसिक शिक्षा-पद्धति में अनेक दोष पाए जाते हैं, लेकिन यह दोष ऐसे नहीं हैं जिन्हें दूर न किया जा सकता हो। बेसिक शिक्षा-पद्धति में आवश्यक परिवर्तन तथा सुधार करके इसे उपयोगी, व्यावहारिक और लोकप्रिय बनाया जा सकता है। वस्तुत: बेसिक शिक्षा-पद्धति नितान्त मौलिक है। तथा हमारे जीवन की आधारभूत आवश्यकताओं को पूर्ण करने में सर्वथा समर्थ है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बेसिक शिक्षा-प्रणाली द्वारा निर्धारित किए गए पाठ्यक्रम का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:

बेसिक शिक्षा का पाठ्यक्रम
(Curriculum of Primary Education)

बेसिक शिक्षा के पाठ्यक्रम के अन्तर्गत निम्नलिखित विषयों को प्रमुख स्थान दिया गया है|

  1. हस्तकलाएँ- कताई, बुनाई, कृषि, काष्ठकला, चर्म कार्य, फलों तथा साग-सब्जी के उद्योग, मिट्टी के खिलौने बनाना, प्राकृतिक तथा सामाजिक वातावरण के अनुकूल अन्य कोई हस्तकला, जिसका शैक्षिक मूल्य हो।
  2. मातृभाषा।
  3. अंकगणित।
  4. सामाजिक विषय (इतिहास, भूगोल तथा नागरिकशास्त्र)।
  5. सामान्य विज्ञान (बागवानी, वनस्पतिशास्त्र, पशु विद्या, शरीर विज्ञान, रसायनशास्त्र आदि)।
  6. स्वास्थ्य विज्ञान।
  7. संगीत।
  8. चित्रकला तथा ड्राइंग।
  9. हिन्दुस्तानी।

बेसिक शिक्षा में पाँचवीं कक्षा तक सह-शिक्षा का आयोजन है तथा लड़के एवं लड़कियों के लिए एक ही . प्रकार के पाठ्यक्रम की व्यवस्था की गई है। छठी से आठवीं कक्षाओं में लड़कों को सामान्य विज्ञान और लड़कियों को गृह विज्ञान पढ़ना होता है। बेसिक शिक्षा के पाठ्यक्रम के अन्तर्गत अंग्रेजी और धार्मिक शिक्षा को कोई स्थान नहीं दिया गया है।

बेसिक स्कूल में विभिन्न विषयों के समय चक्र निम्नवत् हैं

प्रश्न 2.
बेसिक शिक्षा-प्रणाली की मुख्य समस्या का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

बेसिक शिक्षा की प्रमुख समस्याएँ
(Main Problems of Primary Education)

महात्मा गाँधी के निर्देशानुसार भारत में बेसिक शिक्षा बड़े उत्साह के साथ लागू की गई, परन्तु 1937 ई० से 1947 ई० तक इसकी प्रगति नगण्य रही। बाद में कोठारी आयोग ने इसे स्वीकार तो किया, लेकिन इसका स्वरूप ही बदल दिया। वास्तव में बेसिक शिक्षा की निम्नांकित समस्याओं ने इसकी प्रगति में अवरोध उपस्थित किया है

  1. क्राफ्ट और अन्य विषयों में सह-सम्बन्ध कैसे स्थापित किया जा सकता है ?
  2. क्राफ्ट और उद्योग के उत्पादन का उपयोग कैसे किया जाना चाहिए ?
  3. पाठ्य-विषयों के सन्दर्भ में सामग्री कैसे उपलब्ध हो सकती है ?
  4. पाठ्यक्रम के विषयों का भौतिक और सामाजिक पर्यावरण के साथ किस प्रकार सम्बन्ध स्थापित हो सकता है ?
  5. बेसिक विद्यालयों और अन्य विद्यालयों के छात्रों का स्थान क्या है ?
  6. योग्य अध्यापकों की पूर्ति किस प्रकार की जा सकती है ?
  7. बेसिक विद्यालय समाज के जीवन से क्या सम्बन्ध रखते हैं ?
  8. बेसिक शिक्षा बालिकाओं के लिए किस प्रकार उपयोगी बनाई जा सकती है ?
  9. बेसिक शिक्षा को राजनीति से किस प्रकार दूर रखा जा सकता है ?
  10. बेसिक शिक्षा का मानदण्ड क्यों गिर रहा है ?

प्रश्न 3.
गाँधी जी द्वारा प्रतिपादित बेसिक शिक्षा-प्रणाली को सफल बनाने के लिए कुछ उपयोगी सुझाव दीजिए।
उत्तर:

बेसिक शिक्षा की सफलता हेतु सुझाव
(Suggestions to Success of Primary Education)

  1. क्राफ्ट और अन्य विषयों में सह-सम्बन्ध लाने के लिए योग्य एवं प्रशिक्षित व्यक्तियों की खोज की जाए। अध्यापकों में विशेष योग्यता रखने वाले को खोज निकालना शोधकर्ताओं का कार्य है। अत: बेसिक शिक्षा-पद्धति पर विशद् अनुसन्धान किया जाना चाहिए।
  2. बेसिक विद्यालय द्वारा उत्पादित सामग्री स्थानीय संस्थाओं के माध्यम से बेची जाए तथा सहकारी .. सहयोग से भी काम लिया जाए।
  3. विषय-सामग्री उपलब्ध कराने के लिए विभिन्न स्रोतों की खोज करना आवश्यक है, लेकिन इस कार्य में देश की आर्थिक कठिनाई को भी ध्यान में रखना आवश्यक है।
  4. पाठ्यक्रम के विषयों का भौतिक और सामाजिक वातावरण के साथ सम्बन्ध रखने के लिए विषय-सामग्री को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप निर्धारित किया जाए। यहाँ भी शोध एवं सर्वेक्षण की आवश्यकता होगी।
  5. बेसिक विद्यालय के छात्रों और अन्य विद्यालयों के छात्रों की उपलब्धियों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए और प्रशिक्षण कॉलेज एवं स्नातकोत्तर छात्रों के लिए ऐसे कार्य दिए जाएँ।
  6. योग्य अध्यापकों की पूर्ति के लिए अधिक संख्या में प्रशिक्षण महाविद्यालयों को खोलकर तथा प्रशिक्षण की सभी सुविधाएँ उपलब्ध करके अधिक संख्या में अध्यापकों को प्रशिक्षित किया जाए। इसके साथ अंशकालीन एवं अभिनवे कोर्स की व्यवस्था भी उचित ढंग से की जाए।
  7. समाज के लोगों को विद्यालय में आमन्त्रित करके उन्हें सहयोग देने के लिए आकर्षित किया जाए और जीवन की क्रियाओं को विद्यालय में ही पूरा कराया जाए।
  8. बालिकाओं के लिए पृथक् कोर्स की व्यवस्था की जाए, जो बालिका जिस प्रकार की शिक्षा लेना चाहे, उसे उसी प्रकार की शिक्षा दी जाए। सभी को एक ढंग की शिक्षा न दी जाए।
  9. शिक्षा राज्य सरकार के नियन्त्रण में न होकर शिक्षाशास्त्रियों के अधीन हो। शिक्षकों में दलगत दूषित राजनीति से अपने को दूर रखने का साहस होना चाहिए। दलगत शिक्षकों को अध्यापन सेवा से अलग कर दिया जाए।
  10. बेसिक विद्यालयों में दी जाने वाली शिक्षा के मानदण्ड को ऊँचा उठाने के लिए सुप्रशिक्षित अध्यापक, कुशल कारीगर एवं योग्य प्रबन्धक रखे जाएँ। इसके साथ ही छात्रों को उत्पादन के लाभ में हिस्सा भी दिया जाए।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बेसिक शिक्षा प्रणाली द्वारा अपनाई जाने वाली शिक्षण-विधि का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।
या बेसिक शिक्षा की शिक्षण पद्धतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बेसिक शिक्षा की शिक्षण-विधि निम्नलिखित है

  1. विषयों को हस्तकला पर केन्द्रित करके पढ़ाना-बेसिक स्कूलों में हस्तकला के माध्यम से शिक्षा दी जाती है। विद्यार्थी स्कूल में अधिक समय उसी हस्तकौशल से सम्बन्धित कार्य करते हैं। शेष समय में जो विषय पढ़ाए जाते हैं, वे उसी दिन के कार्य से सम्बन्धित होते हैं। इस प्रकार इस पद्धति में केन्द्रीकरण विधि द्वारा शिक्षा देने का प्रमुख स्थान है।
  2. क्रिया द्वारा शिक्षा-इस पद्धति में विद्यार्थी केवल मात्र निष्क्रिय श्रोता नहीं होता, बल्कि वह अपने हाथ से कार्य करता है। वह बहुत शीघ्र ही हस्तकार्य को सीख जाता है और रुचिपूर्वक उसे करता है। इस प्रकार इस पद्धति में क्रिया की प्रधानता रहती है।
  3. स्वाभाविक रूप से शिक्षा- इस पद्धति में पाठ्यक्रम को सात भागों में विभक्त कर दिया जाता है और प्रत्येक विषय का ज्ञान् क्रम से व्यवस्थित कर लिया जाता है। फिर उसी क्रम के अनुसार विषय का ज्ञान बालकों को दिया जाता है; जैसे-पहली कक्षा में मौखिक वार्तालाप या कहानी के द्वारा बालक को मातृभाषा का ज्ञान कराया जाता है। फिर उसे पढ़ना-लिखना या रचनात्मक कार्य सिखाए जाते हैं।
  4. छोटे-छोटे समूहों में शिक्षा- बालकों के छोटे-छोटे समूह बनाकर उन्हें कुछ निश्चित कार्य दे दिया जाता है, जिसे वे एक-दूसरे के सहयोग से पूरा करते हैं।
  5. भाषण विधि- कुछ विषय ऐसे हैं, जो कि भाषण विधि द्वारा पढ़ाए जाते हैं। सामान्य रूप से बेसिक शिक्षा-पद्धति में आधुनिक मनोवैज्ञानिक शिक्षण विधियों के सभी सूत्रों को प्रयोग में लाया जाता है और शिक्षण को अधिक-से-अधिक मनोवैज्ञानिक बनाने का प्रयास किया जाता है।

प्रश्न 2.
बेसिक शिक्षा-प्रणाली तथा प्रोजेक्ट पद्धति में विद्यमान समानताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बेसिक शिक्षा-प्रणाली तथा प्रोजेक्ट पद्धति में विद्यमान समानताओं को निम्नलिखित तालिका में दर्शाया गया है

निश्चित उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
महात्मा गाँधी ने कौन-सी शिक्षण पद्धति बनाई थी ? बेसिक शिक्षा प्रणाली के जन्मदाता कौन थे?
उत्तर:
महात्मा गाँधी ने बेसिक शिक्षा पद्धति का प्रतिपादन किया था।

प्रश्न 2.
बेसिक शिक्षा-प्रणाली को किस अन्य नाम से भी जाना जाता है ?
उक्ट
बेसिक शिक्षा-प्रणाली को ‘बुनियादी तालीम’ या ‘बुनियादी शिक्षा के नाम से भी जाना जाता या।

प्रश्न 3.
बेसिक शिक्षा-प्रणाली के अन्तर्गत किस आयु वर्ग के बालक-बालिकाओं की शिक्षा की व्यवस्था है ?
सन् 1937 में वर्धा योजना (बेसिक शिक्षा) में प्रस्तावित प्राथमिक शिक्षा के लिए बालकों की क्या आयु वर्ग निश्चित की गई थी?
उत्तर
बेसिक शिक्षा प्रणाली के अन्तर्गत 7 से 14 वर्ष के बालक-बालिकाओं के लिए शिक्षा की व्यवस्था है।

प्रश्न 4.
गाँधी जी ने बेसिक शिक्षा-प्रणाली का मुख्य उद्देश्य क्या निर्धारित किया था ?
उत्तर:
गाँधी जी ने बेसिक शिक्षा-प्रणाली का मुख्य उद्देश्य बालक-बालिकाओं को स्वावलम्बी तथा आत्मनिर्भर बनाना निर्धारित किया था।

प्रश्न 5.
बेसिक शिक्षा-प्रणाली के चार मुख्य सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(i) नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का सिद्धान्त,
(ii) स्वावलम्बन तथा आत्मनिर्भरता का सिद्धान्त,
(iii) शिक्षा का माध्यम मातृभाषा तथा
(iv) शिक्षा का आधार हस्तकला।

प्रश्न 6.
शिक्षा की कौन-सी विधि शिल्प के माध्यम से शिक्षा पर बल देती है ?
उक्ट
गाँधी जी द्वारा प्रतिपादित बेसिक-शिक्षा प्रणाली शिल्प के माध्यम से शिक्षा पर बल देती है।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य

  1. बेसिक शिक्षा-प्रणाली के प्रवर्तक डॉ० जाकिर हुसैन थे।
  2. बेसिक शिक्षा-प्रणाली कुछ जटिल सिद्धान्तों पर आधारित है।
  3. बेसिक शिक्षा-प्रणाली में कठोर अनुशासन का प्रावधान है।
  4. बेसिक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा को बनाया गया है।
  5. वर्तमान भारतीय परिस्थितियों में बेसिक शिक्षा-प्रणाली का कोई व्यावहारिक महत्त्व नहीं है।

उन्ट

  1. असत्य,
  2. असत्य,
  3. असत्य,
  4. सत्य,
  5. सत्य।

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए

प्रश्न 1.
बेसिक शिक्षा प्रणाली का निर्धारण किया गया है
(क) अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों को ध्यान में रखकर
(ख) तत्कालीन भारतीय परिस्थितियों को ध्यान में रखकर
(ग) औद्योगिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर
(घ) कृषि सम्बन्धी दशाओं को ध्यान में रखकर

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन एक गाँधी जी की शिक्षा योजना नहीं है?
(क) बेसिक शिक्षा
(ख) वर्धा योजना
(ग) नयी तालीम
(घ) हस्तशिल्प

प्रश्न 3.
बेसिक शिक्षा-प्रणाली के पाठ्यक्रम में सम्मिलित नहीं किया गया है
(क) हस्तकलाओं की शिक्षा को
(ख) गणित की शिक्षा को
(ग) धार्मिक शिक्षा को
(घ) सामाजिक विषयों की शिक्षा को

प्रश्न 4.
बेसिक शिक्षा-प्रणाली के अन्तर्मत सामान्य शिक्षा सम्बद्ध है
(क) धार्मिक जीवन से ।
(ख) भौतिक जीवन से
(ग) व्यावहारिक जीवन से
(घ) काल्पनिक जीवन से

प्रश्न 5.
वर्धा शिक्षा योजना कब प्रस्तुत की गई?
(क) अगस्त 1929 में।
(ख) अक्टूबर 1930 में
(ग) अक्टूबर 1937 में
(घ) जनवरी 1939 में।

प्रश्न 6.
“जिस प्रकार वायु और जल पर सबका अधिकार है और सभी इन्हें समान रूप से प्रयोग में ला सकते हैं, उसी प्रकार शिक्षा भी सबके लिए सुलभ हो और निर्धन भी शिक्षा प्राप्त कर सके। इसको अनिवार्य एवं निःशुल्क होना जरूरी है।” यह मान्यता किसकी है?
(क) मैडम मॉण्टेसरी।
(ख) महात्मा गाँधी
(ग) मदन मोहन मालवीय
(घ) डॉ० राधाकृष्णन

प्रश्न 7.
बेसिक शिक्षा का विचार दिया गया था
(क) पेस्टालॉजी द्वारा।
(ख) महामना मालवीय द्वारा
(ग) महात्मा गाँधी द्वारा
(घ) डा० एनीबेसेंट द्वारा

प्रश्न 8.
कौन-सी शिक्षा प्रणाली शिल्प-केन्द्रित है?
(क) बेसिक शिक्षा
(ख) डाल्टन प्लान
(ग) मॉण्टेसरी विधि
(घ) प्रोजेक्ट विधि
उत्तर:

1. (ख) तत्कालीन भारतीय परिस्थितियों को ध्यान में रखकर,
2. (ग) नयी तालीम,
3. (ग) धार्मिक शिक्षा को,
4. (ग) व्यावहारिक जीवन से,
5. (ग) अक्टूबर 1937 में,
6. (ख) महात्मा गाँधी,
7. (ग) महात्मा गाँधी द्वारा,
8. (क) बेसिक शिक्षा।

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