UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi काव्य सौन्दर्य के तत्त्व छन्द
UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi काव्य सौन्दर्य के तत्त्व छन्द
छन्द
छन्द का अर्थ है – ‘बन्धन’। ‘बन्धनमुक्त’ रचना को गद्य कहते हैं और बन्धनयुक्त को पद्य। छन्द प्रयोग के कारण ही रचना पद्य कहलाती है और इसी कारण उसमें अद्भुत संगीतात्मकता उत्पन्न हो जाती है। दूसरे शब्दों में, मात्रा, वर्ण, यति (विराम), गति (लय), तुक आदि के नियमों से बंधी पंक्तियों को छन्द कहते हैं।
छन्द के छः अंग हैं – (1) वर्ण, (2) मात्रा, (3) पाद या चरण, (4) यति, (5) गति, (6) तुका
(1) वर्ण – वर्ण दो प्रकार के होते हैं – (क) लघु और (ख) गुरु। ह्रस्व वर्ण (अ, इ, उ, ऋ, चन्द्रबिन्दु को लघु और दीर्घ वर्ण आ, ई, ऊ, अनुस्वार , विसर्ग ( : ) ] को गुरु कहते हैं। इनके अतिरिक्त संयुक्त वर्ण से पूर्व का और हलन्त वर्ण से पूर्व का वर्ण गुरु माना जाता है। हलन्त वर्ण की गणना नहीं की जाती। कभी-कभी लय में पढ़ने पर गुरु वर्ण भी लघु ही प्रतीत होता है। ऐसी स्थिति में उसे लघु ही माना जाता है। कभी-कभी पाद की पूर्ति के लिए अन्त के वर्ण को गुरु मान लिया जाता है। लघु वर्ण का चिह्न खड़ी रेखा ‘ । ‘ और दीर्घ वर्ण का चिह्न अवग्रह ‘ ऽ’ होता है।
(2) मात्रा – मात्राएँ दो हैं – ह्रस्व और दीर्घ। किसी वर्ण के उच्चारण में लगने वाले समय के आधार पर मात्रा का निर्धारण होता है। ह्रस्व वर्ण (अ, इ, उ आदि) के उच्चारण में लगने वाले समय को एक मात्राकाल तथा दीर्घ वर्ण आदि के उच्चारण में लगने वाले समय को दो मात्राकाल कहते हैं। मात्रिक छन्दों में ह्रस्व वर्ण की एक और दीर्घ वर्ण की दो मात्राएँ गिनकर मात्राओं की गणना की जाती है।
(3) पाद या चरण – प्रत्येक छन्द में कम-से-कम चार भाग होते हैं, जिन्हें चरण या पाद कहते हैं। कुछ ऐसे छन्द भी होते हैं, जिनमें चरण तो चार ही होते हैं, पर लिखे वे दो ही पंक्तियों में जाते हैं; जैसे—दोहा, सोरठा, बरवै आदि। कुछ छन्दों में छह चरण भी होते हैं; जैसे—कुण्डलिया और छप्पय।
(4) यति (विराम) – कभी-कभी छन्द का पाठ करते समय कहीं-कहीं क्षणभर को रुकना पड़ता है, उसे यति कहते हैं। उसके चिह्न ‘,’, ‘।’, ‘।।’, ‘?’ और कहीं-कहीं विस्मयादिबोधक चिह्न ‘!’ होते हैं।
(5) गति ( लय) – पढ़ते समय कविता के कर्णमधुर प्रवाह को गति कहते हैं।
( 6) तुक – कविता के चरणों के अन्त में आने वाले समान वर्गों को तुक कहते हैं, यही अन्त्यानुप्रास होता है।
गण – लघु-गुरु क्रम से तीन वर्षों के समुदाय को गण कहते हैं। गण आठ हैं – यगण, मगण, तगण, रगण, जगण, भगण, नगण, सगण। ‘यमाताराजभानसलगा’ इन गणों को याद करने का सूत्र है। इनका स्पष्टीकरण अग्रवत् है
छन्दों के प्रकार – छन्द दो प्रकार के होते हैं – (1) मात्रिक तथा (2) वर्णिक। जिस छन्द में मात्राओं की संख्या का विचार होता है वह मात्रिक और जिसमें वर्गों की संख्या का विचार होता है, वह वर्णिक कहलाता है। वर्णिक छन्दों में वर्गों की गिनती करते समय मात्रा-विचार (ह्रस्व-दीर्घ का विचार) नहीं होता, अपितु वर्गों की संख्या-भर गिनी जाती है, फिर चाहे वे ह्रस्व वर्ण हों या दीर्घ; जैसे-रम, राम, रामा, रमा में मात्रा के हिसाब से क्रमशः 2, 3, 4, 3 मात्राएँ हैं, पर वर्ण के हिसाब से प्रत्येक शब्द में दो ही वर्ण हैं।
मात्रिक छन्द
1. चौपाई।
लक्षण (परिभाषा) – चौपाई एक सम-मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16 : मात्राएँ होती हैं। अन्त में जगण (। ऽ।) और तगण (ऽऽ।) के प्रयोग का निषेध है; अर्थात् चरण के अन्त में गुरु लघु (ऽ।) नहीं होने चाहिए। दो गुरु (ऽ ऽ), दो लघु (।।), लघु-गुरु (। ऽ) हो सकते हैं।
2. दोहा
लक्षण (परिभाषा) – यह अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके पहले और तीसरे (विषम) चरणों में 13, 13 मात्राएँ और दूसरे तथा चौथे (सम) चरणों में 11, 11 मात्राएँ होती हैं। अन्त के वर्ण गुरु और लघु होते हैं; यथा
3. सोरठा
लक्षण (परिभाषा) – यह भी अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके पहले और तीसरे चरण में 11 तथा दूसरे और चौथे चरण में 13 मात्राएँ होती हैं। यह दोहे का उल्टा होता है; यथा
4. रोला
लक्षण (परिभाषा) – रोला एक सम मात्रिक छन्द है, इसके प्रत्येक चरण में 11 और 13 के विराम (यति) से 24 मात्राएँ होती हैं; यथा
5. कुण्डलिया।
लक्षण (परिभाषा) – कुण्डलिया एक विषम मात्रिक छन्द है जो छः चरणों का होता है। दोहे और रोले को क्रम से मिलाने पर कुण्डलिया बन जाता है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। प्रथम चरण के प्रथम शब्द की अन्तिम चरण के अन्तिम शब्द के रूप में तथा द्वितीय चरण के अन्तिम अर्द्ध-चरण की तृतीय चरण, के प्रारम्भिक अर्द्ध-चरण के रूप में आवृत्ति होती है; येथा
6. हरिगीतिका
लक्षण (परिभाषा) – हरिगीतिका एक सम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 16/12 के विराम (यति) से 28 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक चरण के अन्त में रगण (ऽ । ऽ) आना आवश्यक होता है; जैसे
7. बरवै
लक्षण (परिभाषा) – यह एक अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। इसके पहले और तीसरे चरणों में 12-12 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरणों में 7-7 मात्राएँ होती हैं। सम चरणों के अन्त में जगण (IST) आवश्यक होता है; जैसे
वर्ण-वृत्त (वर्णिक छन्द)
8. इन्द्रवज्रा
लक्षण (परिभाषा) – इन्द्रवज्रा एक सम वर्ण-वृत्त है। इसके प्रत्येक चरण में दो तगण (ऽ ऽ।), एक जगण (।ऽ।) और दो गुरु (ऽऽ) होते हैं। इस प्रकार इसके प्रत्येक चरण में कुल 11 वर्ण होते हैं; जैसे
9. उपेन्द्रवज्रा
लक्षण (परिभाषा) – उपेन्द्रवज्रा एक सम वर्ण-वृत्त है। इसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं और वे जगण (।ऽ।), तगण (ऽ ऽ।), जगण और दो गुरु के क्रम से होते हैं; जैसे
10. वसन्ततिलका
लक्षण (परिभाषा) – वसन्ततिलका एक सम वर्ण-वृत्त है। इसके प्रत्येक चरण में 14 वर्ण होते हैं और प्रत्येक चरण में एक तगण (ऽ ऽ।), एक भगण (ऽ।।), दो जगण (।ऽ।) और अन्त में दो गुरु होते हैं। इसमें 8, 6 वर्गों पर यति होती है; जैसे
11. मालिनी
लक्षण (परिभाषा) – मालिनी एक सम वर्ण-वृत्त है। इसमें 15 वर्ण होते हैं और इसके प्रत्येक चरण में नगण (।।।), नगण, मगण (ऽ ऽ ऽ), यगण (। ऽ ऽ), यगण होते हैं और यति 8-7 वर्गों पर पड़ती है; जैसे
12. सवैया
लक्षण (परिभाषा) – 22 से 26 वर्षों तक के वर्ण-वृत्त को सवैया कहते हैं। इसके अनेक भेद होते हैं। मत्तगयन्द, सुन्दरी, सुमुखी आदि इसके कुछ प्रमुख भेद हैं, जो आगे दिये जा रहे हैं
(i) मत्तगयन्द (सवैया)
लक्षण (परिभाषा) – यह एक सम वर्ण-वृत्त है। इसके प्रत्येक चरण में सात भगण (ऽ।।) और अन्त में दो गुरु वर्ण होते हैं। इस प्रकार यह 23 वर्णो को छन्द है; जैसे
(ii) सुमुखी (सवैया)
लक्षण परिभाषा) – यह एक सम वर्ण-वृत्त है। इसके प्रत्येक चरण में सात जगण (। ऽ ।) तथा अन्त में लघु और गुरु होते हैं। यह भी 23 वर्गों को छन्द है; जैसे
(iii) सुन्दरी (सवैया)
लक्षण (परिभाषा) – यह एक सम वर्ण-वृत्त है। इसके प्रत्येक चरण में आठ सगण (।।ऽ) और एक गुरु । मिलकर 25 वर्ण होते हैं; जैसे
(iv) मनहर या मनहरण (सवैया)
लक्षण (परिभाषा) – सवैयों से अधिक अर्थात् 26 से अधिक वर्षों वाले छन्द दण्डक छन्द कहलाते हैं। मनहर एक दण्डक वृत्त है। इसके प्रत्येक चरण में कुल 31 वर्ण होते हैं और 8, 8, 8, 7 अथवा 16, 15 वर्षों पर यति होती है। इसका दूसरा नाम मनहरण भी है। इसका अन्तिम वर्ण दीर्घ होती है; जैसे
कर बिनु कैसे गाय दुहिहै हमारी वह,
पद बिनु कैसे नाचि थिरकि रिझाइहै। (= 31 वर्ण)
कहैं रत्नाकर बदन बिनु कैसे चाखि,
माखन बजाइ बेनु गोधन चराइहै ।।
देखि सुनि कैसे दृग स्रवन बिना ही हाय !
भोर ब्रजवासिन की बिपति बराइहै।
रावरो अनूप कोऊ अलख अरूप ब्रह्म,
ऊधौ कहौ कौन धौं हमारे काम आइहै ।।
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