अपभ्रंश काव्य | Apabhramsa Poetry
हिंदी साहित्य के इतिहास में ईसा की आठवीं शताब्दी से लेकर चौदहवीं शताब्दी तक का काल अपभ्रंश
का काल माना जाता है। इस काल में अपभ्रंश भाषा साहित्य का एक अन्यतम माध्यम बनी हुई थी। संपूर्ण
भारतवर्ष में अपभ्रंश में रचनाएँ हो रही थीं। ऐतिहासिक दृष्टि से अपभ्रंश के प्रथम कवि ‘स्वयंभू’ माने जाते
हैं। दूसरे प्रमुख कवि हैं पुष्यदंत । ऐसे ही धनपाल तथा चंदमुनि कवि भी महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। अपभ्रंश
के दो काव्य-ग्रंथ स्वयंभू लिखित ‘रामायण’ तथा पुष्पदंत लिखित ‘महापुराण’ की गणना सुंदर ग्रंथों में की जाती
है। संपूर्ण भारतीय साहित्य में इन दोनों ग्रंथों को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। सरहपा, कण्हपा, हेमचंद्र, जिनदत्त,
शालिभद, राजशेखर तथा अब्दुल रहमान इस काल के विशिष्ट कवि माने जाते हैं। शाङर्गधर तथा विद्यापति
भी इसी काल में महत्त्वपूर्ण ग्रंथ लिख चुके थे।
काव्य-रूपों में इस काल के कवियों ने कई रूपों को अख्तियार किया। प्रबंधपरकता, चरितकाव्यपरकता,
मुक्तकपरकता, वीररसात्मकता, शृंगारपरकता तथा छंदपरकता अपभ्रंश काल के कवियों के कौशल के क्षेत्र थे।
प्रबंधात्मक काव्य में ऐतिहासिक और पौराणिक कथानकों पर जैनकवियों ने कई प्रबंधपरक काव्य लिखे।
इनके इन ग्रंथों में प्रायः ही धर्म, उपदेश तथा साहित्यिक छौंक से भरे ग्रंथ प्रमुखता से प्राप्त होते हैं। स्वयंभू
चरितकाव्य-परंपरा के संभवत: प्रथम उद्भावक कवि थे। उन्होंने “पउभरिउ” (राम का कथानक)
“रिट्ठणेभिचरिउ” (कृष्ण को कथानक के केंद्र में रखकर) प्रबंधकाव्य लिखे । स्वयंभू के और भी ग्रंथ
मिलते हैं जैसे स्वयंभू छंद तथा नागकुमार चरित (पंचभि चरिउ) प्राप्त होते हैं। राम को भगवान के रूप
में चित्रित न कर वह उन्हें सामान्य जन बनाते हैं। इसके बाद पुष्पदंत दूसरे महत्त्वपूर्ण कवि थे। ‘महापुराण’
उनकी महत्त्वपूर्ण काव्य रचना है। चरित काव्यों में पुष्पदंत का नागकुमार चरित, हरिभद्र सूरि का (1159
ई.) नेमिनाथ चरिउ, विनयचंद्र सूरि का (1200 ई.) नेमिनाथ चरिउ, तथा धनपाल का भविस्सतकहा प्रसिद्ध
ग्रंथ हैं।
इस काल में मुक्तकों की भी धारा मिलती है। दोहा इनका प्रसिद्ध छंद है। बौद्धसिद्ध काव्य की भी
इस काल में लम्बी परंपरा है। सिद्ध साहित्य तथा नाथ-साहित्य का विपुल भंडार इस काल में प्राप्त होता है।
सरहपा, कण्हपा जैसे कवि तथा गोरखनाथ और अन्य कई नाथपंथी कवि इस काल के महत्त्वपूर्ण कवि माने
जाते हैं।
इसी काल में वीररसात्मक तथा शृंगाररसात्मक काव्य भी खूब मिलते हैं जिनमें मूलत: पौराणिक-ऐतिहासिक
चरित्र, घटना और धर्मपरक संदर्भ रहते हैं। हेमचंद्र कृत ‘प्राकृत व्याकरण’ ‘प्राकृत-व्याकरण के दोहे’ ख्यात
पुस्तकें हैं। इनमें शृंगार और वीर दोनों तरह के काव्य मिलते हैं । हेमचंद्र का एक दोहा प्रसिद्ध है-
‘भल्ला हुआ जु मारिया बहिणि म्हारा कंतु
लज्जेजंतु वयसिअहु जइ भग्गा घरू एंतु ।।
इस काल का एक अत्यंत चर्चित एवं महत्त्वपूर्ण काव्य-ग्रंथ है—संदेश रासक । इसके लेखक अब्दुल
रहमान हैं। कालिदाएस के मेघदूत की तरह ही यह भी एक संदेश काव्य है। इसमें कथा के बदले नायिका के
विरह-वर्णन को प्रमुखता दी गयी है। इसी काल का इसी क्रम में एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है वीसलदेव रासो । यह
हिंदी का काव्य ग्रंथ माना जाता है परंतु इसकी रचना इसी काल में हुई थी।