Category Archives: प्राचीन भारत

अपभ्रंश और हिंदी

अपभ्रंश और हिंदी अपभ्रंश साहित्य के विभिन्न स्रोतों और उसकी परंपराओं की तह में जाने एक प्रश्न स्वाभाविक रूप से सामने आता है कि क्या अपभ्रंश को हिंदी कहा जा सकता है ? हिंदी के इतिहासकार मिश्र बंधुओं से लेकर चंद्रधर शर्मा गुलेरी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, राहुल सांकृत्यायन तक अपभ्रंश को हिंदी के तुरंत का… Read More »

नाथ साहित्य

नाथ साहित्य वज्रयानी सिद्धाचार्यों की तरह ही नाथों की भी अपभ्रंश साहित्य में अपनी एक विशिष्ट परंपरा रही है। वज्रयान की सहज साधना और शैवों की साधना का सम्मिलित पल्लवन ही नाथ-संप्रदाय के रूप में प्रख्यात हुआ। सिद्धों और नाथों का सामान्य अंतर यों समझा जा सकता है कि बौद्ध तांत्रिकों के लिये ‘सिद्ध’ और… Read More »

सिद्ध साहित्य

सिद्ध साहित्य सिद्ध से तात्पर्य सीधे बौद्धों की वज्रयानी परंपरा के सिद्धाचार्यो के साहित्य से है जो अपभ्रंश दोहों तथा चर्यापदों के रूप में उपलब्ध है। इसमें बौद्ध तांत्रिक सिद्धांतों को मान्यता दी गयी है। यद्यपि उन्हीं के समकालीन शैव नाथ योगियों को भी सिद्ध कहा जाता था, किंतु कतिपय कारणों से हिंदी तथा अन्य… Read More »

अपभ्रंश काव्य | Apabhramsa Poetry

अपभ्रंश काव्य | Apabhramsa Poetry अपभ्रंश काव्य हिंदी साहित्य के इतिहास में ईसा की आठवीं शताब्दी से लेकर चौदहवीं शताब्दी तक का काल अपभ्रंश का काल माना जाता है। इस काल में अपभ्रंश भाषा साहित्य का एक अन्यतम माध्यम बनी हुई थी। संपूर्ण भारतवर्ष में अपभ्रंश में रचनाएँ हो रही थीं। ऐतिहासिक दृष्टि से अपभ्रंश… Read More »

आदिकालीन काव्य का शिल्पपरक वैशिष्ट्य

आदिकालीन काव्य का शिल्पपरक वैशिष्ट्य वस्तुत: आदिकाल हर तरह से हिंदी के ‘हिंदी’ बनने का काल है। बनने की इस प्रक्रिया में वह भाषिक संरचना और साहित्य दोनों ही धरातलों पर अपने को निर्मित कर रही थी। हमें यह पता है कि इस काल में दो प्रकार के काव्य-ग्रंथ उपलब्ध होते हैं—अपभ्रंश काव्य और ‘देसभाषा… Read More »

आदिकाल की प्रतिनिधि रचनाएँ एवं साहित्यिक प्रवृत्तियाँ

आदिकाल की प्रतिनिधि रचनाएँ एवं साहित्यिक प्रवृत्तियाँ आदिकाल की प्रतिनिधि रचनाएँ एवं साहित्यिक प्रवृत्तियाँ वास्तव में हिंदी साहित्य के आदिकाल का आरंभ ईसा की 10वीं शताब्दी माना जाता है। 10वीं शती से लेकर 14वीं शती तक का काल हिंदी का आरंभिक काल है। “आदिकाल की इस दीर्घ परंपरा के भीतर प्रथम डेढ़ सौ वर्षों तक… Read More »

आदिकाल : अपभ्रंश बनाम हिंदी

आदिकाल : अपभ्रंश बनाम हिंदी अपभ्रंश साहित्य के विभिन्न स्रोतों और उसकी परंपराओं का अध्ययन करने के उपरांत एक जिज्ञासा स्वाभाविक रूप से सामने उठ खड़ी होती है कि क्या अपभ्रंश को हिंदी कहा जाय ? क्योंकि इस जिज्ञासा के प्रशमन में ही हिंदी के आदिकाल का बोध छिपा है। तभी तो उस काल की… Read More »

साहित्य के इतिहास में काल-विभाजन और नामकरण तथा हिन्दी साहित्येतिहास

 साहित्य के इतिहास में काल-विभाजन और नामकरण तथा हिन्दी साहित्येतिहास साहित्य के विकास और समाज से उसके संबंध के बारे में अपनी सुनिश्चित दृष्टि के कारण साधार साहित्य का इतिहास लिखने वालों को काल-विभाजन करना चाहिये। वैसे साहित्य के इतिहास के लेखन में काल-विभाजन जितना आवश्यक है, उतना ही कठिन भी । यों साहित्य के… Read More »

आचार्य रामचंद्र शुक्ल और आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की इतिहास-दृष्टि

आचार्य रामचंद्र शुक्ल और आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की इतिहास-दृष्टि आचार्य रामचंद्र शुक्ल और आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की इतिहास-दृष्टि पिछली इकाई में यह स्पष्ट करने का प्रयास किया गया था कि तकरीबन डेढ़ सौ वर्षों से हिन्दी साहित्य के इतिहास-लेखन की जो परंपरा चली, उसमें कालक्रम से गंभीर्य आता गया। मिश्रबंधु विनोद से लेकर… Read More »

हिन्दी में साहित्य के इतिहास-लेखन की परंपरा

 हिन्दी में साहित्य के इतिहास-लेखन की परंपरा [गार्सी द तासी, ग्रियर्सन, शिवसिंह सेंगर, मिश्र बंधु, रामचंद्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी, राम कुमार वर्मा, डॉ. नगेंद्र और डॉ गणपति चंद्र गुप्त ] साहित्य के इतिहास की अवधारणा पिछले छह-सात दशकों से साहित्य-चिंतन के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण अपरंच विवादास्पद समस्या जैसी बनी हुई है। साहित्य के… Read More »