up board class 9th hindi | परमहंसः रामकृष्णः (रामकृष्ण परमहंस) (संस्कृत-खण्ड)

By | June 10, 2025

up board class 9th hindi | परमहंसः रामकृष्णः (रामकृष्ण परमहंस) (संस्कृत-खण्ड)

[पाठ-परिचय – प्रस्तुत पाठ में स्वामी रामकृष्ण परमहंस का आदर्श जीवन और उनके अनुभवों का वर्णन है।]

1. रामकृष्णः एकः ………………………………………………………………………. मूर्तिमान् पाठः विद्यते। (V. Imp.)

अथवा परमहंसस्य ………………………………………………………………………. पाठः विद्यते।

शब्दार्थ-विलक्षणः = विचित्र, अलौकिक । उक्तम् = कहा था। प्रायोगिकम् = व्यवहार में लाया गया। मूर्तिमान = सकार।

सन्दर्भ – यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के अन्तर्गत संस्कृत खण्ड के ‘परमहंसः रामकृष्णः’ नामक पाठ से उद्धृत है।

हिन्दी अनुवाद – रामकृष्ण एक अलौकिक महापुरुष थे। उनके विषय में महात्मा गांधी ने कहा था— “रामकृष्ण परमहंस का जीवन-चरित धर्म के आचरण का व्यावहारिक विवरण (UPBoardSolutions.com) है। उनका जीवन हमारे लिए ईश्वर-दर्शन की शक्ति प्रदान करता है। उनके वचन न केवल किसी के नीरस ज्ञान के वचन हैं, अपितु उनकी जीवनरूपी पुस्तक के पृष्ठ ही हैं। उनका जीवन अहिंसा का साकार पाठ है।”

2. स्वामिनः रामकृष्णस्य ………………………………………………………………………. समाधौ अतिष्ठत्।

शब्दार्थ-बंगेषु = बंगाल प्रदेश में खिस्ताब्दे = ईसवी सन् में। पितरौ (माता च पिता च) = माता-पिता सहजा = नैसर्गिक, स्वाभाविक। निष्ठा = विश्वास। आराधनावसरे (आराधना + अवसरे) = ईश्वर की आराधना के समय। समाधो = समाधि में।

सन्दर्भ – पूर्ववत्

हिन्दी अनुवाद – स्वामी रामकृष्ण का जन्म बंगाल में हुगली प्रदेश के ‘कामारपुकुर’ नामक स्थान में 1836 ईस्वी सन् में हुआ था। उनके माता-पिता अत्यन्त धार्मिक विचारों के थे। बचपन से ही रामकृष्ण ने (अपने) अद्भुत चरित्र को प्रदर्शित किया। उसी समय उनकी ईश्वर में स्वाभाविक आस्था हो गयी। ईश्वर की आराधना के समय वे स्वाभाविक समाधि में बैठ जाते थे।

3. परमसिद्धोऽपि सः ………………………………………………………………………. सिद्धेः प्रदर्शनेन।

शब्दार्थ – नोचितम् (न + उचितम्) = उचित नहीं । अमन्यत् = मानते थे। पादुकाभ्याम् = खड़ाओं से. पणद्वयमात्रम् केवल दो पैसे । एतादृश्याः = इस प्रकार की।

हिन्दी अनुवाद – परमसिद्ध होते हुए भी वे सिद्धियों के प्रदर्शन को उचित नहीं मानते थे। एक बार किसी भक्त ने किसी की महिमा का इस प्रकार वर्णन किया-”वह महात्मा खड़ाऊँ से नदी पार कर जाता है, यह बड़े  आश्चर्य की बात है।” परमहंस रामकृष्ण धीरे से हँसे और बोले-”इस सिद्धि का (UPBoardSolutions.com) मूल्य केवल दो पैसे हैं। दो पैसों से साधारण व्यक्ति नाव द्वारा नदी पार कर लेता है। इस सिद्धि से केवल दो पैसों का लाभ होता है। इस प्रकार की सिद्धि के प्रदर्शन से क्या लाभ है?

4. रामकृष्णस्य विषये ………………………………………………………………………. उदयो भवति। (V. Imp.)

शब्दार्थ-निरतः = संलग्न निमजिताः = डूबे हुए। निष्क्रमितुम् आकुलाः = बाहर आने के लिए व्याकुल मत्कृते = मेरे लिए। अपेक्ष्यते = आवश्यक है। सुखप्रदाम् = सुखों को प्रदान करनेवाली। चेत = यदि, साधयितुम = साधन करने में। बहवः = बहुत से।

हिन्दी अनुवाद – रामकृष्ण के विषय में इस प्रकार की बहुत-सी कथाएँ प्रसिद्ध हैं। वे जीवन भर आत्म-चिन्तन में लीन रहे। इस विषय में उनके अनेक अनुभव संसार में प्रसिद्ध हैं।

उन्हीं के शब्दों में उनके आध्यात्मिक अनुभव (इस प्रकार) वर्णित हैं–

  1. “जल में डूबे हुए प्राण जिस प्रकार बाहर निकलने के लिए व्याकुल होते हैं, उसी प्रकार यदि लोग ईश्वर-दर्शन के लिए भी उत्सुक होंवे, तब उसका (ईश्वर का) दर्शन हो सकता है।”
  2. “किसी भी साधना को पूरा करने के लिए मुझे तीन दिन से अधिक का समय नहीं चाहिए।’
  3. “मैं भौतिक (सांसारिक) सुखों को प्रदान करनेवाली विद्या नहीं चाहता हूँ। मैं तो उस विद्या को चाहता हूँ, जिससे हृद में ज्ञान का उदय होता है।”

5. अयं महापुरुषः ………………………………………………………………………. महान् सन्देशः। (V. Imp.)
अथवा विश्वविश्रुतः ………………………………………………………………………. सेवाश्रमाः स्थापिताः।।
अथवा विश्वविश्रुतः ………………………………………………………………………. महान् सन्देशः ।।

शब्दार्थ-एतवान् = इतने ।विभेदः = भेदभाव। मानवकृताः = मानव के द्वारा बनाये गये।निर्मूलाः = निरर्थक।विश्वविश्रुतः = संसार में प्रसिद्ध। महाभागस्य = महानुभाव के। डिण्डिमघोषः = उच्च स्वर से घोषणा, ढिंढोरा।

हिन्दी अनुवाद – यह महापुरुष अपने योगाभ्यास के बल से ही इतने महान् हो गये थे। वे ऐसे विवेकशील और शुद्ध चित्त वाले (पवित्र मन के) थे कि उनके लिए मानव के द्वारा बनाये गये विभेद निराधार हो गये थे। अपने आचरण से ही उन्होंने सब कुछ सिद्ध किया। संसार में प्रसिद्ध स्वामी विवेकानन्द इन्हीं महानुभाव के शिष्य थे। उन्होंने केवल भारतवर्ष में ही नहीं, अपितु पश्चिमी देशों में भी व्यापक मानव धर्म का डंका (UPBoardSolutions.com) बजाया (उच्च-स्वर से घोषणा की) उन्होंने और उनके दूसरे शिष्यों ने लोगों के कल्याण के लिए स्थान-स्थान पर रामकृष्ण-सेवाश्रम स्थापित किये। ”ईश्वर का अनुभव दुःखी लोगों की सेवा से ही पुष्ट होती है”-यह रामकृष्ण का महान् सन्देश है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *