up board class 9th hindi | कृष्णः गोपालनन्दनः (गोपालनन्दन कृष्ण) (संस्कृत-खण्ड)
1. सुविदितमेव ………………………………………………………………………. अस्ति।
हिन्दी अनुवाद – (यह) भली-भाँति ज्ञात ही है कि श्रीकृष्ण अलौकिक महापुरुष थे। हजारों वर्ष पहले उत्पन्न हुए यह महापुरुष आज भी मनुष्यों के हृदय में विराजमान हैं।
हिन्दी अनुवाद – श्रीकृष्ण को मामा कंस अत्याचारी शासक था। उसने पहले अपनी बहिन देवकी का विवाह वसुदेव के साथ किया। बाद में आकाशवाणी सुनकर दोनों को ही जेल में डाल दिया। वहीं जेल में श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए।
3. श्रीकृष्णस्य जन्म ………………………………………………………………………. अभवत्।।
शब्दार्थ-घटाटोपाः = घटाओं से घिरे सद्योजातम् = तुरन्त (नवजात) पैदा हुए। आदाय = लेकर। उत्तालतरङ्गाम् = ऊँची-ऊँची लहरोंवाली। उत्तीर्य = पार करके। हृदयवल्लभः = हृदय के प्रिय।
4. बाल्यकाले ………………………………………………………………………. स्निह्यन्ति।
हिन्दी अनुवाद – बचपन में इन्होंने (श्रीकृष्ण ने) अपने सौंन्दर्य से और बाल-लीला से सभी मनुष्यों के मन को मोहित कर लिया। कोई गोपिका उन्हें गोदी में लेकर अपने घर ले जाती, दूसरी उन्हें दूध पिलाती और अन्य कोई उन्हें मक्खन देती। श्रीकृष्ण प्रेम से दिया गया दूध पीते और मक्खन खाते। (UPBoardSolutions.com) अवसर पाकर वे अपने मित्र ग्वालों के साथ किसी घर में घुसकर दही खाते, मित्रों को देते, शेष दही को जमीन पर गिरा देते और कभी-कभी दही के बर्तन को तोड़ देते। यह सब करते हुए भी उनके शील और सौन्दर्य से प्रभावित हुआ कोई भी उन पर क्रोध नहीं करता था, अपितु सब उनसे स्नेह करते थे।
शब्दार्थ-अनन्तरम् = बाद में वेणुः = वंशी वेणुम् = वंशी को (द्वितीया एकवचन का रूप) विहाय = छोड़कर। शृण्वन्ति = सुनते थे।’
हिन्दी अनुवाद – इसके पश्चात् श्रीकृष्ण ग्वालों के साथ वन जाकर गायों को चराते और वहाँ वंशी बजाते। इससे सभी गायें और ग्वाले समस्त कार्यों को छोड़कर उनका वंशी-वादन सुनते महाकवि व्यास ने संस्कृत भाषा में (तथा) भक्तकवि सूरदास ने हिन्दी-भाषा में उनकी बाललीला का अत्यन्त सुन्दर वर्णन किया है।
6. यदा अयं ………………………………………………………………………. अभवत्।
शब्दार्थ-प्रेषयत् = भेजा। अविगणय्य = बिना गिने; बिना परवाह किये। सन्दीप्ते वह्नौ = आग लगने पर। अत्रायत = रक्षा की। पद्मधारयत् = स्थान बना लिया। हन्तुं = मारने के लिए।
हिन्दी अनुवाद – जब ये बालक ही थे तब कंस ने उन्हें मारने के लिए एक के बाद एक बहुत-से राक्षसों को भेजा, किन्तु श्रीकृष्ण ने अपने कौशल और पराक्रम से उन सबको मार दिया। उन्होंने न केवल राक्षसों से अपितु अन्य विपत्तियों से भी गोकुलवासियों की रक्षा की। एक बार वर्षा-ऋतु में गोकुल में यमुना का जल तेजी से बढ़ने लगा, तब श्रीकृष्ण ने अपने प्राणों की चिन्ता न करके (बिना परवाह किये) सभी गोकुलवासियों (UPBoardSolutions.com) की रक्षा की। इसी प्रकार आग लग जाने पर इन्होंने सब पशुओं और ग्वालों की उससे रक्षा की। इस प्रकारे (उन्होंने) निरन्तर गोकुलवासियों के कष्टों का निवारण करते हुए उनके हृदय में स्थान बना लिया। अतः श्रीकृष्ण बचपन से ही अपने उत्तम गुणों और परोपकार की भावना के कारण लोकप्रिय हो गये।