UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 2 अन्योक्तिविलासः (संस्कृत-खण्ड)
UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 2 अन्योक्तिविलासः (संस्कृत-खण्ड)
अवतरणों का ससन्दर्भ हिन्दी अनुवाद
प्रश्न 1.
नितरां नीचोऽस्मीति त्वं खेदं कूप ! कदापि मा कृथाः ।। अत्यन्तसरसहृदयो यतः परेषां गुणग्रहीतासि ।। [2009, 16]
उत्तर
[नितरां = अत्यधिक। नीचोऽस्मीति (नीचः + अस्मि + इति) = मैं नीचा (गहरा) हूँ। खेदं = दु:ख। कदापि (कदा + अपि) = कभी भी। मा कृथाः = मत करो। यतः = क्योंकि। परेषां = दूसरों के। ” गुणग्रहीतासि (गुणग्रहीता + असि) = गुणों को ग्रहण करने वाले हो, रस्सियों को लेने वाले हो।]
सन्दर्भ-प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के संस्कृत-खण्ड’ के अन्योक्तिविलासः’ पाठ से उधृत है।
(विशेष—इस पाठ के अन्य सभी श्लोकों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]
प्रसंग-इस श्लोक में कुएँ के माध्यम से सज्जनों को यह सन्देश दिया गया है कि उन्हें अपने आपको तुच्छ नहीं समझना चाहिए।
अनुवाद–हे कुएँ! (मैं) अत्यन्त नीचा (गहरा) हैं। इस प्रकार कभी भी दु:ख मत करो; क्योंकि (तुम) अत्यन्त सरस हृदय वाले (जलयुक्त) और दूसरों के गुणों (रस्सियों) को ग्रहण करने वाले हो।
भाव–हे गम्भीर पुरुष! मैं अत्यन्त तुच्छ हूँ ऐसा समझकर तुम मन में खेद मत करो; क्योंकि तुम सरस हृदयं वाले और दूसरों के गुणों को ग्रहण करने वाले हो। भाव यह है कि व्यक्ति कितना ही छोटा क्यों न हो यदि वह सरस हृदय और दूसरों के गुणों को ग्रहण करने वाला है तो वह किसी से भी कम नहीं है।
प्रश्न 2.
नीर-क्षीर-विवेके हंसालस्यं त्वमेव तनुषे चेत् ।
विश्वस्मिन्नधुनान्यः कुलव्रतं पालयिष्यति कः ॥ [2009, 11, 13, 15, 18]
उत्तर
[नीर-क्षीर-विवेके = दूध और पानी को अलग करने में। हंसालस्यं (हंस + आलस्यम्) = हंस आलस्य को (करोगे)। तनुषे = करते हो। चेत् = यदि। विश्वस्मिन्नधुनान्यः (विश्व + अस्मिन् + अधुना + अन्यः) = अब इस विश्व में दूसरा। कुलव्रतं = कुल के व्रत को। पालयिष्यति = पालन करेगा। कः = कौन।]
प्रसंग-प्रस्तुत श्लोक में हंस के माध्यम से लोगों को अपने कर्तव्यों के प्रति आलस्य न करने के लिए कहा गया है।
अनुवाद-हे हंस! यदि तुम्हीं दूध और पानी को अलग करने में आलस्य करोगे तो इस संसार में दूसरा कौन अपने कुल की मर्यादा का पालन करेगा ? ।
भाव-हे गुणग्राही पुरुष! यदि तुम ही गुण और दोषों को समझने में आलस्य करोगे और उचितअनुचित का निर्णय नहीं करोगे तो इस संसार में दूसरा कौन अपने कुलव्रत का पालन करेगा ? भाव यह है कि कुलीन वृत्ति के लोगों को अपने कुलव्रत; अर्थात् उचित-अनुचित का विवेक; करने में कभी आलस्य नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 3.
कोकिल ! यापय दिवसान् तावद् विरसान् करीलविटपेषु ।
यावन्मिलदलिमालः कोऽपि रसालः समुल्लसति। [2010, 11, 13]
उत्तर
[ यापय = बिताओ। विरसान् = नीरस। करीलविटपेषु = करील के पेड़ों पर। यावन्मिलदलिमालः (यावत् + मिलद् + अलिमाल:) = जब तक भौंरों की पंक्ति से युक्त। रसालः = आम। समुल्लसति = सुशोभित होता है।
प्रसंग—प्रस्तुत श्लोक में कोयल के माध्यम से विद्वान् पुरुषों को सान्त्वना दी गयी है कि एक-न-एक दिन उनका अच्छा समय अवश्य आएगा। उन्हें धैर्यपूर्वक अपने बुरे दिनों को काट लेना चाहिए।
अनुवाद–हे कोयल! तब तक अपने नीरस दिनों को करील के पेड़ों पर बिता लो, जब तक भौंरों की पंक्ति से युक्त कोई आम का वृक्ष विकसित नहीं होता है।
भाव-हे विद्वान् पुरुष! तब तक अपने विपत्ति के दिनों को किसी भी प्रकार बिता लो, जब तक कि तुम्हें किसी गुणग्राही व्यक्ति का आश्रय नहीं मिलता है (अर्थात् तुम्हारे अच्छे दिन अवश्य आएँगे)।
प्रश्न 4.
रे रे चातक ! सावधानमनसा मित्र ! क्षणं श्रूयतम् ।
अम्भोदा बहवो हि सन्ति गगने सर्वेऽपि नैतादृशाः ॥
केचिद् वृष्टिभिरार्द्रयन्ति वसुधां गर्जन्ति केचिद् वृथा।
यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वचः ॥ [2010, 13, 17]
उत्तर
[सावधानमनसा = सावधान चित्त से। श्रूयताम् = सुनिए। अम्भोदा = बादल। नैतादृशाः (न + एतादृशाः) = ऐसे नहीं हैं। वृष्टिभिरार्द्रयन्ति (वृष्टिभिः + आर्द्रयन्ति) = वर्षा करके गीला कर देते हैं। वृथा = व्यर्थ। यं यं = जिस-जिसको। मा ब्रूहि = मत कहो। दीनं वचः = दीनता भरे वचन।]
प्रसंग–प्रस्तुत श्लोक में चातक के माध्यम से विद्वानों को यह सन्देश दिया गया है कि व्यक्ति को किसी के भी सामने याचक बनकर हाथ नहीं फैलाना चाहिए।
अनुवाद–हे मित्र चातक! तुम क्षणभर सावधान चित्त से मेरी बात सुनो। आकाश में बहुत-से बादल रहते हैं, किन्तु सभी ऐसे (उदार) नहीं हैं। उनमें से कुछ ही पृथ्वी को वर्षा से भिगोते हैं और कुछ व्यर्थ में गरजते हैं। तुम जिस-जिस बादल को (आकाश में) देखते हो, उस-उसके सामने अपने दीनतापूर्ण वचन मत कहो।
भाव-हे विद्वान् पुरुष! तुम क्षणभर मेरी बात ध्यानपूर्वक सुनो। संसार में अनेक धनवान् एवं समर्थ हैं, परन्तु सभी उदार नहीं होते। उनमें कुछ तो अधिक उदार होते हैं और कुछ अत्यन्त कृपण। अत: तुम प्रत्येक से आशा करते हुए उसके सामने अपना हाथ मत फैलाओ।
प्रश्न 5.
न वै ताडनात् तापनाद् वह्निमध्ये,
न वै विक्रयात् क्लिश्यमानोऽहमस्मि ।
सुवर्णस्य मे मुख्यदुःखं तदेकं ।
यतो मां जनाः गुञ्जया तोलयन्ति ॥ [2008, 12, 14, 17]
उत्तर
[ ताडनात् = पीटने से। वह्निमध्ये तापनाद् = आग में तपाने से। विक्रयात् = बेचने से। क्लिश्यमानोऽहमस्मि (क्लिश्यमानः + अहम् + अस्मि) = मैं दु:खी नहीं हूँ। तदेकं (तत् + एकम्) = वह एक है। गुञ्जया = रत्ती से, गुंजाफल से। तोलयन्ति = तौलते हैं। ]
प्रसंग-प्रस्तुत श्लोक में स्वर्ण के माध्यम से विद्वान् और स्वाभिमानी पुरुष की व्यथा को अभिव्यक्ति दी गयी है।
अनुवाद-मैं (स्वर्ण) ने पीटने से, न आग में तपाने से और न बेचने के कारण दु:खी हैं। मुझे तो बस एक ही मुख्य दु:ख है कि लोग मुझे रत्ती (चुंघची) से तौलते हैं।
भाव-विद्वान् स्वाभिमानी पुरुष विपत्तियों से नहीं डरता है। उसका अपमान तो नीच के साथ उसकी तुलना करने में होता है। तात्पर्य यह है कि शारीरिक कष्ट उतना दु:ख नहीं देते, जितनी पीड़ा मानसिक कष्ट पहुँचाते हैं।
प्रश्न 6.
रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातं,
भास्वानुदेष्यति हसिष्यति पङ्कजालिः ।।
इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे, हा हन्त !
हन्त ! नलिनीं गज उज्जहार ॥ [2012, 14, 16]
उत्तर
[ रात्रिर्गमिष्यति (रात्रिः + गमिष्यति) = रात्रि व्यतीत हो जाएगी। भविष्यति = होगा। सुप्रभातं = सुन्दर प्रभात। भास्वानुदेष्यति (भास्वान् + उदेष्यति) = सूर्य उदित होगा। हसिष्यति = खिलेगा। पङ्कजालिः = कमलों का समूह। इत्थं = इस प्रकार से। विचिन्तयति = सोचते-सोचते। कोशगते = कमल-पुट में बैठे हुए। द्विरेफे = भौरे के। नलिनीं = कमलिनी को। उज्जहार = हरण कर लिया।]
प्रसंग-प्रस्तुत श्लोक में कमलिनी में बन्द भ्रमर के द्वारा जीवन की अनिश्चितता के विषय में बताया गया है।
अनुवाद—(कमलिनी में बन्द भौंरा सोचता है कि) ‘रात व्यतीत होगी। सुन्दर प्रभात होगा। सूर्य निकलेगा। कमलों का समूह खिलेगा।’ इस प्रकार कमल पुट में बैठे हुए भौरे के ऐसा सोचते-सोचते हाय! बड़ा दु:ख है कि हाथी उसी कमलिनी को (उखाड़कर) ले गया। |
भाव-मनुष्य तो सुख की आशा में अपने दु:ख के दिन काटता है, परन्तु उसका वह दु:ख समाप्त भी नहीं हो पाता कि उसे मृत्यु ग्रस लेती है। तात्पर्य यह है कि मनुष्य चाहे कितनी भी मधुर कल्पनाएँ क्यों न कर ले, किन्तु उसके ऊपर कुछ भी निर्भर नहीं है। होता वही है जो ईश्वर चाहता है।
अतिलघु-उतरीय संस्कृत प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1
कूपः किमर्थं दुःखम् अनुभवति ? [2011, 13]
उत्तर
कूप: नितरां नीचः अस्ति; अतः सः दु:खम् अनुभवति।
प्रश्न 2
अत्यन्तसरसहृदयो यतः किं ग्रहीतासि ?
उत्तर
अत्यन्तसरसहृदयो यतः परेषां गुणग्रहीतासि।
प्रश्न 3
कविः हंसं किं बोधयति ?
उत्तर
कवि: हंसं नीर-क्षीर-विभागे आलस्यं न कर्तुं बोधयति।
प्रश्न 4
कविः कोकिलं किं कथयति (बोधयति) ?
उत्तर
कवि: कोकिलं कथयति (बोधयति) यत् वसन्तकालं यावत् कोऽपि रसालः न समुल्लसति तावत् करीलविटपेषु एव सन्तोषं कर्त्तव्यम्।
प्रश्न 5
कविः चातकं किम् उपदिशति (शिक्षयति) ? [2010, 12]
उत्तर
कविः चातकम् उपदिशति (शिक्षयति) यत् स: सर्वेषां पुरतः दीनं वचः न ब्रूयात्।
प्रश्न 6
सुवर्णस्य किं मुख्यदुःखम् अस्ति ? [2009, 11, 12, 13, 14, 16, 18]
उत्तर
जनाः सुवर्णं गुञ्जया सह तोलयन्ति इति सुवर्णस्य मुख्यदु:खम् अस्ति।
प्रश्न 7
भ्रमरे चिन्तयति गजः किम् अकरोत् ? [2010]
उत्तर
भ्रमरे चिन्तयति गज: नलिनीम् उज्जहार।
प्रश्न 8
कोशगतः भ्रमरः किम् अचिन्तयत् ?
उत्तर
कोशगत: भ्रमरः अचिन्तयत् ‘रात्रि: गमिष्यति, सुप्रभातं भविष्यति, सूर्यम् उदेष्यति, कमलं विकसिष्यति।।
प्रश्न 9
हंसस्य किं कुलव्रतम् अस्ति ? [2013]
उत्तर
हंसस्य कुलव्रतम् नीर-क्षीर-विवेकम् अस्ति।
प्रश्न 10
कीदृशाः अम्भोदाः गगने वसन्ति ?
उत्तर
गगने सर्वे नैतादृशाः अम्भोदा: वसन्ति। केचिद् वसुधां वृष्टिभि: आर्द्रयन्ति केचिद् वृथा गर्जन्ति।
प्रश्न 11
गजः काम् उज्जहार ? [2010]
उत्तर
गजः नलिनीम् उज्जहार।
प्रश्न 12
नीर-क्षीर-विषये हंसस्य का विशेषता अस्ति? [2014, 16]
उत्तर
नीर-क्षीर-विषये नीर-क्षीर-विवेकम् एव हंसस्य विशेषता अस्ति।
प्यारात्मक
प्रश्न 1
पाठ में आयी समस्त अन्योक्तियाँ अन्योक्ति अलंकार का उदाहरण हैं। इस अलंकार का लक्षण बताते हुए किसी एक अन्योक्ति को उदाहरणस्वरूप लेकर उसका स्पष्टीकरण
दीजिए।
उत्तर
जब किसी उक्ति में साधर्म्य के कारण कथित वस्तु के माध्यम से किसी अन्य को कोई उपदेश, शिक्षा अथवा सन्देश दिया जाता है तो उसे अन्योक्ति अलंकार कहते हैं; जैसे–पाँचवें श्लोक में सोने और गुंजा के माध्यम से गुणवान, स्वाभिमानी व्यक्ति की उस मानसिक पीड़ा को व्यक्त किया गया है, जो उसको नीच व्यक्ति के साथ अपनी तुलना किये जाने पर होती है।
प्रश्न 2
बादल, कमल एवं हाथी के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर
बादल — जलदः, नीरदः।
कमल — पुण्डरीकः, जलजः।
हाथी — हस्ती, करी।