UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 19 श्वसन तन्त्र का प्रारम्भिक ज्ञान
UP Board Solutions for Class 10 Home Science Chapter 19 श्वसन तन्त्र का प्रारम्भिक ज्ञान
विस्तृत उतरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
श्वसन तन्त्र के कौन-कौन से अंग हैं? नामांकित चित्र सहित स्पष्ट कीजिए। [2009, 10, 11, 12, 13, 15, 16, 17, 18]
या
श्वसन तन्त्र का सचित्र वर्णन कीजिए। या श्वासोच्छ्वास क्रिया क्या है? श्वासोच्छ्वास क्रिया में भाग लेने वाले अंगों का वर्णन कीजिए।
या
श्वसन तन्त्र के प्रमुख अंगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
श्वसन तन्त्र का तात्पर्य
जीवित प्राणियों द्वारा बाहर से वायु ग्रहण करना तथा पुनः वायु को छोड़ना श्वसन या श्वासोच्छवास क्रिया कहलाती है।
गैसों का आदान-प्रदान करने या कराने वाले अथवा इस कार्य में सहायता करने वाले अंगों को हम श्वसनांग (Respiratory organs) कहते हैं। ये सब श्वसनांग, जो सम्मिलित रूप से श्वसन के लिए कार्य करते हैं, श्वसन तन्त्र (Respiratory system) कहलाते हैं।
मनुष्य के श्वसन तन्त्र के मुख्य अंग
श्वसन क्रिया में भाग लेने वाले मुख्य मानव अंग निम्नलिखित हैं
(1) नासागुहा,
(2) कण्ठ,
(3) श्वासनली तथा
(4) फुफ्फुस या फेफड़े
(1) नासागुहा:
वायु के आवागमन के लिए नाक में छिद्र होते हैं। इन्हें नासाद्वार या नथुने कहते हैं। इनसे दो मार्ग अन्दर की नाक ओर जाते हैं और ये मार्ग एक परदे ग्रसनी द्वारा एक-दूसरे से पृथक् रहते हैं। घाँटी नासागुहा का निचला आधार तालू वाकतन्तु की अस्थि होती है, जोकि नासिका को मुँह से पृथक् करती है। श्वासनली नासिका का – ऊपरी भाग श्वसनी बहु-छिद्रास्थि से बना होता है। नासागुहा का मार्ग श्लेष्मिक कला से मढ़ा होता है। नासागुहा की सतह पर छोटे-छोटे रोएँ होते हैं, जोकि वायु में उपस्थित धूल के कणों एवं जीवाणुओं को अन्दर कोशिका जाने से रोकते हैं। श्लेष्मिक कला को चिपकाकर अन्दर प्रवेश करने से रोकता है। दोनों नासाद्वार मिलकर एक नली बनाते हैं, जोकि ग्रसनी में खुलती है।
(2) कण्ठ (लैरिंक्स):
यह श्वासनली के ऊपरी सिरे पर स्थित व कण्ठद्वार पर उपास्थि का बना हुआ एक ढक्कन होता है, जोकि कण्ठच्छद कहलाता है। यह भोजन को श्वासनली में जाने से रोकता है। श्वासनली को बनाने वाले उपास्थि के अधूरे छल्लों में से ऊपरी छल्ला अवटु उपास्थि सामने से चौड़ा तथा उभरा हुआ होता है। इसे पुरुषों के कण्ठ में बाहर से छूकर अनुभव किया जा सकता है। दूसरा छल्ला चारों ओर से पूरा होता है तथा मुद्रिका उपास्थि कहलाता है। दोनों छल्लों के बीच रेशेदार तन्तु भरे रहते हैं।
(3) श्वासनली:
कण्ठ से होकर वायु श्वासनली अथवा वायुनलिका में प्रवेश करती है। इसकी कच्छद गोलाई 2.5 सेण्टीमीटर तथा लम्बाई लगभग 12-13 सेण्टीमीटर होती है। यह नली ‘C’ के आकार के रेशेदार तन्तुओं से निर्मित छल्लों से बनी होती श्वास नली है, जोकि पीछे की ओर खुले रहते हैं। इनके ऊपर श्लेष्मिक कला मढ़ी होती है। नली के पिछले भाग में भी श्लेष्मिक कला मढ़ी होती है। जब ग्रासनली से गुजरता है तो
श्वसनिको ग्रासनली फूलती है और श्वासनली की फुफ्फुसावरण पिछली झिल्ली दब जाती है। इस प्रकार ग्रासनली को फूलने का स्थान मिल जाता है। श्वासनली ग्रीवा से,होकर वक्ष में जाती है। वक्ष में यह दो भागों—श्वसनी या ब्रॉन्कस में विभक्त हो जाती है। प्रत्येक श्वसनी प्रत्येक फेफड़े में प्रवेश करती हैं। दोनों श्वसनी दोनों फेफड़ों में जाकर अनेक शाखाओं तथा उपशाखाओं में बँट जाती हैं। अतिविभाजन के फलस्वरूपं ये सौत्रिक़ तन्तु की केवल सूक्ष्म नलिकाएँ बनकर रह जाती हैं। प्रत्येक सूक्ष्मतर श्वसनिका के अन्त में वायु-कोष होते हैं, जिनका बाहर की वायु से इन श्वसनिकाओं द्वारा सम्पर्क बना रहता है।
(4) फुफ्फुस अथवा फेफड़े:
ये श्वसन तन्त्र को सबसे महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इनकी संख्या दो होती है और ये वक्ष गुहा में दाएँ और बाएँ स्थित होते हैं। फेफड़े ही रक्त के शुद्धिकरण का कार्य करते हैं तथा गैसों के आदान-प्रदान का कार्य करते हैं।
प्रश्न 2:
फेफड़ों की रचना एवं कार्य चित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए। [2007, 12, 15]
या
फेफड़ों में रक्त की शुद्धि किस प्रकार होती है? विस्तारपूर्वक समझाइए। [2013, 12, 14, 16]
या
फेफड़ों के कार्य लिखिए। [2013]
उत्तर:
फेफड़ों की रचना
श्वसन तन्त्र के मुख्यतम अंग फेफड़े कहलाते हैं। मनुष्य के शरीर में दो फेफड़े होते हैं, जोकि वक्षगुहा में दाएँ और बाएँ स्थित होते हैं। इनकी संरचना अत्यन्त कोमल, लचीली, स्पंजी तथा गहरे गुलाबी-भूरे रंग की होती है। इसके चारों ओर एक पतली झिल्ली का आवरण होता है। इसके भीतर
लसदार तरल भरा होता है। इस आवरण को फुफ्फुसीय आवरण अथवा प्लूरी कहते हैं तथा गुहा को रम्फुसीय गुहा कहते हैं। ये सब रचनाएँ फेफड़ों की सुरक्षा करती हैं। दायाँ फेफड़ा बाएँ की अपेक्षा बड़ा होता है तथा दो अधूरी खाँचों के द्वारा तीन पिण्डों में बँटा रहता है। बाएँ फेफड़े में एक अधूरी खाँच होती है तथा यह दो पिण्डों में बँटा होता है। फेफड़ों में मधुमक्खी के छत्ते की तरह असंख्य वायुकोष होते हैं। ये बहुत उपनलिकाएँ महीन होते हैं तथा एक वयस्क मनुष्य में इन वायुकोषों की संख्या लगभग 15 करोड़ तक होती है।
प्रत्येक वायुकोष, एक बहुत महीन संरचना होते हुए भी एक ऐसी छोटी नली से सम्बन्धित होता है जिसमें और भी कई वायुकोष खुलते हैं। यह स्थान वास्तव में एक छोटी-सी नली का ” उपनली सिरा है जिसमें कि ऐसे अनेक स्थान खुलते हैं। ये नलिकाएँ श्वसनिकाओं की अतिसूक्ष्म नलिकाओं में बार-बार विभाजित होने से बनी अन्तिम नलिकाएँ हैं। अनेक नलिकाएँ एक ही श्वसनिका सम्बन्धित होती हैं। दोनों फेफड़ों से निकलने वाली सभी श्वसनिकाएँ मिलकरं श्वासनली बनाती हैं। इस प्रकार हर बार श्वास लेने से इन छोटे-छोटे वायुकोषों में नयी वायु आती है और पुरानी वायु निकल जाती है।
फेफड़ों के कार्य
फेफड़ों का मुख्य कार्य अशुद्ध रक्त का शोधन करना है। श्वसन क्रिया में फेफड़े उनमें प्रवेश करने वाली वायु से ऑक्सीजन सोखते हैं तथा इसमें रक्त से प्राप्त कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को छोड़ते हैं। इस प्रकार गैसीय विनिमय द्वारा फेफड़ों में रक्त का शुद्धिकरण होता है; जिसकी विस्तृत विवरण निम्नलिखित है
वायुकोष अत्यन्त छोटे स्थान होते हैं जिनकी भित्ति बहुत महीन होती है।
वायुकोषों की भित्तियों के बाहर रुधिर की अत्यन्त पतली-पतली नलियों (केशिकाओं) का जाल बिछा होता है। इन केशिकाओं में हृदय से अशुद्ध रुधिर आता है तथा शुद्धिकरण के पश्चात् वापस हृदय को चला जाता है। इन केशिकाओं के रुधिर तथा वायुकोषों में उपस्थित वायु के बीच गैसों का आदान-प्रदान होता है। रुधिर में लाल रक्त कणिकाएँ होती हैं। रुधिर का लाल रंग हीमोग्लोबिन नामक विशिष्ट पदार्थ की उपस्थिति के कारण होता है। हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन का उत्तम स्वीकारक होता है। यह ऑक्सीजन को तत्काल ग्रहण कर ऑक्सीहीमोग्लोबिन बना लेता है। इसी समय रुधिर के तरल पदार्थ प्लाज्मा में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) वायुकोषों में उपस्थित वायु में, कार्बन डाइऑक्साइड की कमी होने के कारण स्वयं ही आ जाती है। इस प्रकार रुधिर में वायु से ऑक्सीजन तथा वायु में रुधिर से कार्बन डाइऑक्साइड गैस का आदान-प्रदान होता है। इसके बाद, ऑक्सीजनयुक्त रक्त फेफड़ों से शिराओं के द्वारा हृदय में पहुँचता है जहाँ से यह शरीर के विभिन्न अंगों को वितरित हो जाता है।
प्रश्न 3:
मनुष्य के शरीर में श्वसन-क्रिया किस प्रकार होती है? विस्तारपूर्वक समझाइए। [ 2011]
या
श्वसन-क्रिया से आप क्या समझती हैं? [2011]
या
श्वसन की हमारे जीवन में क्या उपयोगिता है? [2007, 12, 13, 18]
या
रक्त की शुद्धि और श्वसन-क्रिया में क्या सम्बन्ध है? [2010, 16]
या
प्रःश्वसन और निःश्वसन से आप क्या समझती हैं? [2012, 14]
उत्तर:
श्वसन की क्रिया-विधि
मनुष्य के प्रमुख श्वसनांग फेफड़े होते हैं, जो कि वक्ष गुहा में फुफ्फुसीय गुहा के अन्दर स्थित होते हैं। वक्षगुहा का निर्माण पसलियों के द्वारा होता है। वक्षगुहा का पिछला भाग अर्थात् पैर की ओर का भाग तन्तुपट (डायाफ्राम) का बना होता है। श्वसन के लिए ऑक्सीजन की उपलब्धि फेफड़ों में होने वाले वात-विनिमय पर निर्भर करती है जो रुधिर तथा वायु के बीच में होता है। इसके लिए वक्षीय गुहा की पसलियाँ तथा उनकी मांसपेशियाँ व तन्तुपट इस प्रकार प्रक्रिया करते हैं कि वायुमण्डल की वायु स्वत: ही वायुमार्ग से होकर फेफड़ों में प्रवेश कर जाती है। यह प्रक्रिया श्वसन-क्रिया कहलाती है।
श्वसन-क्रिया की दो उपक्रियाएँ हैं
(1) प्र:श्वसन तथा
(2) नि:श्वसन
(1) प्र:श्वसन (Inspiration):
इस उपक्रिया में वायुमण्डल की वायु को वायुमार्ग द्वारा फेफड़ों तक पहुँचाया जाता है। फेफड़ों के फूलने पर इनके वायुकोषों में वायु का दबाव कम हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप वायुमण्डल की वायु नासामार्ग, श्वसन नली, ग्रसनी तथा एपीग्लॉटिस से होती हुई फेफड़ों तक पहुँच जाती है। फेफड़ों के फूलने के लिए वक्षगुहा का बढ़ना आवश्यक है, जिसके लिए तन्तुपट नीचे की ओर जाता है तथा पसलियाँ फैलकर थोड़ा पाश्र्व तथा नीचे की ओर हो जाती हैं। इस क्रिया में वक्षगुहा बाहर की ओर गुम्बद के समान फूल जाती है। पसलियों के बीच में उपस्थित मांसपेशियों के संकुचन एवं फैलने के कारण पसलियों के फैलने की क्रिया सम्पन्न होती है। इस समय उरोस्थि भी ऊपर की ओर उठ जाती है। इस प्रकार वक्षगुहा का आयतन बढ़ने से फेफड़े कूल जाते हैं। तथा प्र:श्वसन की क्रिया सम्पन्न होती है।
(2) निःश्वसन (Expiration):
प्र:श्वसन के कारण फेफड़ों में अधिकतम मात्रा में वायु भरी होती है। सभी पेशियाँ शिथिल होकर पूर्व स्थिति की ओर आने लगती हैं। तन्तुपट को पेशियाँ शिथिल होकर तन्तुपट को वक्षगुहा में उभार देती हैं तथा पसलियों के मध्य उपस्थित मांसपेशियाँ शिथिल होकर पसलियों को यथास्थान ले आती हैं। उरोस्थि भी अपनी पूर्व स्थिति में आ जाती है। इन सबका परिणाम यह होता है कि फूला हुआ सीना पिचक जाता है। जिससे फेफड़ों के अन्दर भरी बाय द दबा बढ़ जाता है और वह एपीग्लॉटिस, ग्रसनी, श्वसन नली तथा नासिका मार्ग से होकर नास द्रिों द्वारा शोर के बाहर निकल जाती है। यह क्रिया नि:श्वसन अथवा उच्छ्वसन कहलाती है।
फेफड़ों में गैसीय विनिमय
प्र:श्वसन व नि:श्वसन उपक्रियाओं के द्वारा फेफड़ों व बाहरी वायुमण्डल के बीच वायु का आना-जाना ही श्वसन-क्रिया है, जोकि जीवित मनुष्यों में निरन्तर होती रहती है। फेफड़ों में अनेक छोटे-छोटे वायुकोष होते हैं जिनकी भित्तियों के बाहर पतली रुधिर केशिकाओं का जाल बिछा होता है। इनमें उपस्थित लाल रक्त कणिकाएँ शुद्ध वायु से ऑक्सीजन सोख लेती हैं तथा रुधिर की प्लाज्मा में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साईड वायु में मुक्त हो जाती है।
श्वसन-क्रिया का महत्त्व
जीवित रहने के लिए श्वसन-क्रिया अत्यावश्यक है। हमारे शरीर की सभी कोशिकाओं के लिए ईंधन के रूप में भोजन की आवश्यकता होती है। भोजन में ऊर्जा रासायनिक पदार्थों में बँधी होती है। इस ऊर्जा को मुक्त करने के लिए कोशिकाओं में ऑक्सीकरण क्रिया होती है, जिसके लिऐ ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। यह ऑक्सीजन रुधिर से उपलब्ध होती है। रुधिर में ऑक्सीजन की आवश्यक आपूर्ति फेफड़ों में श्वसन-क्रिया के द्वारा होती है। इस प्रकार शरीर में होने वाली ऑक्सीकरण क्रियाएँ श्वसन-क्रिया पर निर्भर करती हैं। ऑक्सीजन का एक और महत्त्वपूर्ण कार्य शरीर में आवश्यक ताप को नियमित बनाए रखना है।
श्वसन-क्रिया के दौरान फेफड़ों में रक्त का शुद्धिकरण होता है, जिसमें रक्त का हीमोग्लोबिन वायु से ऑक्सीजन सोखता है तथा अशुद्ध रक्त की प्लाज्मा से कार्बन डाइऑक्साइड वायु में मुक्त होती है। इस प्रकार श्वसन-क्रिया के परिणामस्वरूप शरीर को अनावश्यक एवं हानिकारक कार्बन डाइऑक्साइड से मुक्ति मिलती है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
मुँह की अपेक्षा नाक से श्वास लेने के क्या लाभ हैं? [2007, 11, 13, 17]
उत्तर:
नाक श्वसन तन्त्र का प्रवेश द्वार है। हम नाक तथा मुंह दोनों मार्गों से श्वास ग्रहण कर सकते हैं परन्तु नाक से ही श्वास ग्रहण करना उचित माना जाता है। नाक से श्वास लेने के लाभ निम्नलिखित हैं
- नाक में उपस्थित बाल वायु में उपस्थित धूल के कणों व अन्य इस प्रकार की गन्दगी को . रोकते हैं जिसके कारण फेफड़ों तक पहुँचने वाली वायु गन्दगी रहित हो जाती है।
- नाक से प्रवेश करने वाली वायु नाक तथा श्वसन नली आदि की रक्त केशिकाओं द्वारा गर्म की जाती है। अतः फेफड़ों को गर्म वायु उपलब्ध होती है। अधिक ठण्ड वायु फेफड़ों के लिए हानिकारक होती है।
- सम्पूर्ण वायु नलिका की भित्ति श्लेष्मिक कला से मढ़ी होती है, जो कि वायु में उपस्थित जीवाणुओं एवं धूल-कणों को रोक लेती है। इस प्रकार फेफड़ों तक पहुँचने वाली वायु अनेक प्रकार के हानिकारक जीवाणुओं से मुक्त होती है।
प्रश्न 2:
प्रःश्वसन व निःश्वसन की वायु में क्या अन्तर है? [2011, 12, 13, 16, 17]
उत्तर:
प्र:श्वसन (शरीर में प्रवेश करने वाली) वायु शुद्ध तथा नि:श्वसन (शरीर से बाहर निकलने वाली) वायु अशुद्ध होती है। दोनों प्रकार की वायु के रासायनिक संगठन में निम्नलिखित अन्तर हैं
प्रश्न 3:
स्वस्थ श्वसन के लिए हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर:
स्वस्थ श्वसन के लिए निम्नलिखित बातें आवश्यक हैं
- हमें सदैव नाक से श्वास लेना चाहिए। इससे शुद्ध एवं गर्म वायु फेफड़ों को उपलब्ध होती है।
- अधिक शुद्ध वायु को अन्दर लेने के लिए हमें अधिकतम प्र:श्वसन करना चाहिए तथा अधिक गैसीय-विनिमय के लिए फेफड़ों में थोड़ा प्र:श्वसन वायु को रोकना चाहिए।
- प्रत्येक दिन अनेक बार कुछ देर तक लम्बी-लम्बी श्वासे लेनी चाहिए। ये फेफड़ों के लिए स्वास्थ्यप्रद रहती हैं।
- आवासीय व्यवस्था के आस-पास हरे-भरे पेड़-पौधे लगाने चाहिए। इससे हमें अधिक ऑक्सीजनयुक्त शुद्ध वायु प्राप्त होती है।
प्रश्न 4:
श्वास क्रिया की दर से क्या अभिप्राय है? [2018]
उत्तर:
श्वसन-क्रिया सामान्यतः एक अनैच्छिक क्रिया है। एक सामान्य रूप से स्वस्थ व्यक्ति में यह क्रिया 15-18 बार प्रति मिनट की दर से होती है। शिशु अवस्था में इसकी दर काफी अधिक (25-40 बार प्रति मिनट तक) होती है। यदि समय का आकलन किया जाए तो प्रत्येक वयस्क व्यक्ति प्रति 4 सेकण्ड में यह क्रिया एक बार करता है। इसमें 1.5 सेकण्ड प्र:श्वसन के लिए तथा 2.5 सेकण्ड नि:श्वसन के लिए होता है। श्वसन क्रिया की इस दर को आवश्यकतानुसार नियमित तथा संचालित करने का दायित्व मस्तिष्क में स्थित एक जोड़े श्वास केन्द्र का होता है। ये केन्द्र श्वसन-क्रिया से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार की पेशियों, पसलियों तथा तन्तुपट आदि के संकुचन एवं शिथिलन पर नियन्त्रण बनाए रखते हैं।
दौड़ने, भागने, व्यायाम करने, खेलने-कूदने अथवा अन्य शारीरिक कार्य करने पर श्वास-दर बढ़ जाती है। ज्वर आदि की स्थिति में भी श्वास-दर में वृद्धि हो जाती है। इसका कारण है-उपर्युक्त दशाओं में अधिक ऊर्जा की खपत होने के कारण अधिक एवं अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता। श्वसन-क्रिया पूर्णरूप से अनैच्छिक क्रिया है, परन्तु उसे व्यायाम, योगाभ्यास आदि के द्वारा आंशिक रूप से ऐच्छिक बनाया जा सकता है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:
श्वसन तन्त्र से क्या आशय है?
उत्तर:
श्वसन-क्रिया में भाग लेने वाले विभिन्न अंगों की व्यवस्था को श्वसन-तन्त्र कहा जाता है।
प्रश्न 2:
श्वसन तन्त्र के किन्हीं तीन मुख्य अंगों के नाम लिखिए। [2010, 12, 13, 14]
उत्तर:
श्वसन तन्त्र के तीन मुख्य अंग हैं नासिका, श्वासनली तथा फेफड़े।
प्रश्न 3:
श्वसन-क्रिया में कौन-सी गैसों का आदान-प्रदान होता है?
उत्तर:
श्वसन-क्रिया में ऑक्सीज़न तथा कार्बन डाइऑक्साइड नामक गैसों का आदान-प्रदान होता है। ऑक्सीजन ग्रहण की जाती है तथा कार्बन डाइऑक्साइड विसर्जित की जाती हैं।
प्रश्न 4:
मानव शरीर के लिए ऑक्सीजन क्यों आवश्यक है? [2011, 13, 16, 17]
उत्तर:
रक्त को शुद्ध करने के लिए तथा खाद्य-पदार्थों के ऑक्सीकरण के माध्यम से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए आक्सीजन आवश्यक होती है।
प्रश्न 5:
नाक में बाल क्यों होते हैं? [2007, 13]
उत्तर:
नाक में विद्यमान बाल वायु में मिले हुए धूल कणों वे बैक्टीरिया आदि को रोक लेते हैं तथा श्वसन तन्त्र में साफ वायु ही प्रवेश कर पाती है।
प्रश्न 6:
गैसीय-विनिमय का वास्तविक स्थान कौन-सा है?
उत्तर:
श्वसन-क्रिया में गैसीय-विनिमय फेफड़ों की रुधिर केशिकाओं में होता है।
प्रश्न 7:
फेफड़ों में अशुद्ध रक्त शुद्धिकरण के लिए किसके द्वारा आता है?
उत्तर:
हृदय से फुफ्फुस धमनी के माध्यम से अशुद्ध रक्त शुद्धिकरण के लिए फेफड़ों में आता है।
प्रश्न 8:
प्रःश्वसन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्र:श्वसन द्वारा शुद्ध वायु फेफड़ों में प्रवेश करती है।
प्रश्न 9:
तीव्र ज्वर का श्वास-गति पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
ज्वर की अवस्था में श्वास-गति बढ़ जाती है।
प्रश्न 10:
फेफड़ों की रक्षा करने वाली झिल्ली का नाम क्या है?
उत्तर:
फेफड़े चारों ओर से फुफ्फुसीय आवरण नामक झिल्ली में सुरक्षित रहते हैं।
प्रश्न 11:
सामान्य अवस्था में फेफड़ों में कितनी वायु होती है?
उत्तर:
सामान्य अवस्था में फेफड़ों में लगभग 2.5 लीटर वायु सदैव भरी होती है। फेफड़ों में प्र:श्वसन की अधिकतम अवस्था में लगभग 6 लीटर तक वायु भरी हो सकती है। यह फेफड़ों की कुल सामर्थ्य कहलाती है।
प्रश्न 12:
श्वसन-क्रिया की क्यों आवश्यकता है?
उत्तर:
कोशाओं में होने वाली ऑक्सीकरण क्रियाओं के लिए ऑक्सीजन उपलब्ध कराना तथा रुधिर से कार्बन डाइऑक्साइड को विसर्जित करने के लिए श्वसन-क्रिया अति आवश्यक है।
प्रश्न 13:
वक्षीय गुहा के फूलने व पिचकने से क्या लाभ हैं?
उत्तर:
वक्षीय गुहा के फूलने व पिचकने से फेफड़ों को फूलने व पिचकने के लिए स्थान मिलता है।
प्रश्न 14:
मनुष्य में श्वासनली कितनी लम्बी होती है?
उत्तर:
मनुष्य में श्वासनली की लम्बाई 10 से 11 सेण्टीमीटर तक होती है।
प्रश्न 15:
एक स्वस्थ व्यक्ति एक मिनट में कितनी बार श्वास लेता है?
उत्तर:
एक स्वस्थ व्यक्ति प्रति मिनट 15-18 बार श्वास लेता है।
प्रश्न 16:
व्यायाम से श्वसन-क्रिया पर पड़ने वाले दो प्रभाव लिखिए।
उत्तर:
व्यायाम से श्वसन की दर बढ़ जाती है तथा व्यक्ति अधिक मात्रा में बाहरी वायु को ग्रहण करती है। इसमें अधिक मात्रा में ऑक्सीजन भी प्राप्त होती है।
प्रश्न 17:
पार्क या उद्यान में साँस को लाभ बताएँ।
उत्तर:
पार्क या उद्यान में साँस लेने से व्यक्ति को पर्याप्त मात्रा में शुद्ध तथा ऑक्सीजन युक्त वायु मिल जाती है। इसका व्यक्ति के स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 18:
मुँह से साँस लेना क्यों हानिकारक है ? [2012, 16 , 17]
उत्तर:
मुँह से साँस लेने से दूषित एवं ठण्डी वायु श्वसन-तन्त्र में पहुंच जाती है। इससे गले एवं श्वसन-तन्त्र के संक्रमण की आशंका रहती है।
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न:
निम्नलिखित बहुविकल्पीय प्रश्नों के सही विकल्पों का चुनाव कीजिए
1. वायु से ऑक्सीजन ग्रहण करने वाला रुधिर में उपस्थित पदार्थ का क्या नाम है? [2015]
(क) हीमोग्लोबिन
(ख) प्लाज्मा
(ग) श्वेत रुधिर कणिकाएँ
(घ) सम्पूर्ण रुधिर
2. एक स्वस्थ व्यक्ति एक मिनट में कितनी बार साँस लेता है? [2009, 11, 12, 14]
(क) 25-30 बार
(ख) 15-18 बार
(ग) 5-10 बार
(घ) अनेक बार
3. वायुकोषों के समूह का नाम है [2010]
(क) कण्ठ
(ख) फेफड़े
(ग) श्वासनली
(घ) श्वसन तन्त्र
4. प्राणवायु कहलाती है
(क) ऑक्सीजन
(ख) कार्बन डाइऑक्साइड
(ग) नाइट्रोजन
(घ) जलवाष्प
5. अधिक व्यायाम करने से श्वास-गति पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(क) कम हो जाती है
(ख) पहले जैसी रहती है
(ग) बढ़ जाती है
(घ) रुक जाती है
6. रुधिर की शुद्धि किस अंग में होती है? [2007, 08, 11, 12, 13, 14, 15, 16]
(क) पाचन तन्त्र
(ख) फुफ्फुस
(ग) हृदय
(घ) त्वचा
7. फुफ्फुसीय धमनी कौन-सा रक्त ले जाती है? [2007]
(क) शुद्ध रक्त
(ख) अशुद्ध रक्त
(ग) पाचन रस
(घ) जठर रस
8. मनुष्य के शरीर में फेफड़ों की संख्या कितनी होती है? [2008, 15, 17]
(क) चार
(ख) एक
(ग) दो
(घ) अनेक
9. श्वसन-क्रिया का प्रमुख अंग कौन-सा है? [2009, 10, 17 ]
(क) फेफड़े
(ख) आमाशय
(ग) खोपड़ी
(घ) नासिका
10. श्वसन-क्रिया में रक्त का शुद्धिकरण कौन-सी गैस द्वारा होता है? [2012]
(क) नाइट्रोजन
(ख) हाइड्रोजन
(ग) कार्बन डाइऑक्साइड
(घ) ऑक्सीजन
11. ऑक्सीजन द्वारा रक्त का शुद्धिकरण कहाँ होता है?
(क) यकृत में
(ख) वृक्क में
(ग) फेफड़ों में
(घ) श्वास प्रणाली में
12. श्वसन-क्रिया है
(क) ऐच्छिक क्रिया
(ख) अनैच्छिक क्रिया
(ग) अनावश्यक क्रिया
(घ) इनमें से कोई नहीं
13. कौन-सा अंग श्वसन-तन्त्र का भाग नहीं होता है? [2007, 11, 15]
(क) नाक
(ख) फेफड़े
(ग) यकृत/हाथ
(घ) श्वास-नली
14. वायुकोष पाये जाते हैं [2010]
(क) श्वास नली में
(ख) हृदय में
(ग) फेफड़ों में
(घ) वृक्क में
उत्तर:
1. (क) हीमोग्लोबिन,
2. (ख) 15 -18 बार,
3. (ख) फेफड़े,
4. (क) ऑक्सीजन,
5. (ग) बढ़ जाती है,
6. (ख) फुफ्फुस,
7. (ख) अशुद्ध रक्त,
8. (ग) दो,
9. (क) फेफड़े,
10. (घ) ऑक्सीजन,
11. (ग) फेफड़ों में,
12. (ख) अनैच्छिक क्रिया,
13. (ग) यकृत/हाथ,
14. (ग) फेफड़ों में।