UP Board Solutions for Class 11 Geography: Fundamentals of Physical Geography Chapter 11 Water in the Atmosphere (वायुमंडल में जल)
UP Board Solutions for Class 11 Geography: Fundamentals of Physical Geography Chapter 11 Water in the Atmosphere (वायुमंडल में जल)
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
प्रश्न (i) मानव के लिए वायुमण्डल का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक निम्नलिखित में से कौन-सा है?
(क) जलवाष्प
(ख) धूलकण
(ग) नाइट्रोजन
(घ) ऑक्सीजन
उत्तर-(घ) ऑक्सीजन।
प्रश्न (ii) निम्नलिखित में से वह प्रक्रिया कौन-सी है जिसके द्वारा जल, द्रव से वाष्प में बदल जाता है?
(क) संघनन ।
(ख) वाष्पीकरणे
(ग) वाष्पोत्सर्जन
(घ) अवक्षेपण
उत्तर-(ख) वाष्पीकरण।
प्रश्न (ii) निम्नलिखित में से कौन-सा वायु की उस दशा को दर्शाता है जिसमें नमी उसकी पूरी क्षमता के अनुरूप होती है?
(क) सापेक्ष आर्द्रता
(ख) निरपेक्ष आर्द्रता
(ग) विशिष्ट आर्द्रता
(घ) संतृप्त हवा
उत्तर-(ख) निरपेक्ष आर्द्रता।।
प्रश्न (iv) निम्नलिखित प्रकार के बादलों में से आकाश में सबसे ऊँचा बादल कौन-सा है?
(क) पक्षाभ
(ख) वर्षा मेघ
(ग) स्तरी
(घ) कपासी
उत्तर-(क) पक्षाभ।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए
प्रश्न (i) वर्षण के तीन प्रकारों के नाम लिखें।
उत्तर-वर्षण के तीन प्रकारों के नाम निम्नलिखित हैं– 1. जलवर्षा, 2. हिमवर्षा, 3. ओलावृष्टि।।
प्रश्न (ii) सापेक्ष आर्द्रता की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-वायु में निरपेक्ष या वास्तविक आर्द्रता एवं वायु के जलवाष्प ग्रहण करने की क्षमता का अनुपात । सापेक्ष आर्द्रता कहलाती है। यह सदैव प्रतिशत में मापी जाती है।
अर्थात् दिए गए तापमान पर एक स्थान की वायु में जलवाष्प की मात्रा तथा उस वायु की जलवाष्प धारण करने की अधिकतम क्षमता के अनुपात को सापेक्ष आर्द्रता कहते हैं जिसे उक्त सूत्र से ज्ञात किया जाता है। इसे मापने हेतु आई बल्ब एवं शुष्क बल्ब तापमापी यन्त्र का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न (iii) ऊँचाई के साथ जलवाष्प की मात्रा तेजी से क्यों घटती है?
उत्तर-ऊँचाई के साथ आर्द्र हवा जब ठण्डी होती है तब उसमें जलवाष्प को धारण करने की क्षमता समाप्त हो जाती है। अतः ऊँचाई पर जाने पर हवा ठण्डी होने के कारण उसमें जलवाष्प की मात्रा तेजी से घटने लगती है, क्योंकि उपयुक्त तापमान के अभाव में हवा में जल धारण क्षमता नहीं रहती। इसीलिए ऊँचाई के साथ तापमान घटने के कारण जलवाष्प की मात्रा तेजी से घटती जाती है।
प्रश्न (iv) बादल कैसे बनते हैं? बादलों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर-बादल पानी की छोटी बूंदों या बर्फ के छोटे कणों की संहति है। बादलों की उत्पत्ति पर्याप्त ऊँचाई पर स्वतन्त्र हवा में जलवाष्प के संघनन के कारण होती है। बादलों को ऊँचाई, विस्तार, घनत्व तथा पारदर्शिता या अपारदर्शिता के आधार पर निम्नलिखित चार प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है1. पेक्षाभ मेघ, 2. कपासी मेघ, 3. स्तरी मेघ, 4. वर्षा मेघ।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए
प्रश्न (i) विश्व के वर्षण वितरण के प्रमुख लक्षणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-विश्व में वर्षा का वितरण सभी स्थानों पर समान नहीं है। धरातल की बनावट, जलवायु एवं पवनों की दिशा पर वर्षा की मात्रा परिवर्तित होती रहती है। विश्व में वर्षा के वितरण की मुख्य विशेषताएँ (लक्षण) निम्नलिखित हैं
- विषुवत् वृत्ते से ध्रुवों की ओर वर्षा की मात्रा धीरे-धीरे घटती जाती है।
- विश्व के तटीय क्षेत्रों में महाद्वीपों के आन्तरिक भाग की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है।
- विश्व के स्थलीय भागों की अपेक्षा सागरीय भागों में वर्षा अधिक होती है क्योंकि वहाँ जलस्रोतों की उपलब्धता के कारण वाष्पीकरण की क्रिया लगातार होती रहती है।
- विषुवत् वृत्त से 35 से 40° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों के मध्य पूर्वी तटों पर बहुत अधिक वर्षा होती है तथा पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा घटती जाती है।
- विषुवत् रेखा से 45° तथा 65° उत्तर तथा दक्षिण अक्षांशों के मध्य पछुवा पवनों के कारण सबसे पहले महाद्वीपों के पश्चिमी किनारों पर तथा फिर पूर्व की ओर घटती हुई दर से वर्षा होती है।
- विश्व में जहाँ पर्वत तट के समानान्तर हैं, वहाँ वर्षा की मात्रा पवनाभिमुख तटीय मैदानों में अधिक | होती है जबकि प्रतिपवने दिशा की ओर वर्षा की मात्रा घटती जाती है।
- वार्षिक वर्षण के आधार पर वर्षा की कुल मात्रा के आधार पर विश्व में अधिक वर्षा के क्षेत्र | भूमध्य रेखा के निकट, मध्यम वर्षा के क्षेत्र 30° से 60° अक्षांश दोनों गोलार्द्ध में तथा कम वर्षा के क्षेत्र ध्रुवीय पेटी में स्थित हैं।
प्रश्न (i) संघनन के कौन-कौन से प्रकार हैं? ओस एवं तुषार के बनने की प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-जलवाष्प का जल के रूप में बदलना संघनन कहलाता है। वास्तव में ऊष्मा का ह्रास ही संघनन का कारण होता है। संघनन के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं
(i) ओस, (ii) तुषार, (ii) कुहासा, (iv) बादल।
ओस-जब आर्द्रता धरातल के ऊपर हवा में संघनन केन्द्रकों पर संघनित न होकर ठोस वस्तु; जैसेपत्थर, घास तथा पौधों की पत्तियों की ठण्डी सतह पर पानी के सूक्ष्म कणों के रूप में एकत्र हो जाती है। तो उसे ओस कहते हैं। ओस के बनने के लिए यह आवश्यक है कि ओसांक जमाव बिन्दु से ऊपर हो। ओस के बनने में साफ आकाश, शान्त हवा, उच्च सापेक्ष आर्द्रता तथा ठण्डी एवं लम्बी रातें उपयुक्त दशाएँ मानी जाती हैं।
तुषार-तुषार या पाला अथवा हिमकण भी संघनने प्रक्रिया का ही परिणाम है। जब संघनन क्रिया के समय भूमि के निकट की वायु का तापमान हिमांक बिन्दु (0°C) तक नीचे गिर जाता है तो पौधों एवं भूमि की सतह पर उपस्थित जल जमने लगता है, यही तुषार या पाला कहलाता है। सफेद तुषार के बनने की सबसे उपयुक्त दशाएँ ओस के बनने की दशाओं के समान हैं, किन्तु इसमें केवल हवा का तापमान जमाव बिन्दु पर या उससे नीचे होना आवश्यक है।
परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. वायुमण्डल से जल हमें किस रूप में प्राप्त होता है? |
(क) जल
(ख) जल एवं हिम
(ग) जल, हिम, पाला।
(घ) जल, हिम, पाला, ओस
उत्तर-(ख) जल एवं हिम।
प्रश्न 2. निम्नलिखित में से किस प्रदेश में प्रमुख रूप से संवाहनिक वर्षा होती है?
(क) भूमध्यसागरीय प्रदेश ।
(ख) भूमध्यरेखीय प्रदेश
(ग) टैगा प्रदेश
(घ) टुण्ड्रा प्रदेश
उत्तर-(ख) भूमध्यरेखीय प्रदेश।
प्रश्न 3. निम्नलिखित वर्षा-प्रकारों में से कौन विषुवतरेखीय प्रदेशों में पायी जाती है?
(क) प्रतिचक्रवातीय वर्षा
(ख) चक्रवातीय वर्षा
(ग) पर्वतीय वर्षा ।
(घ) संवहनीय वर्षा
उत्तर-(घ) संवहनीय वर्षा।
प्रश्न 4. संवहनीय वर्षा विशिष्ट विशेषता है
(क) चीन तुल्य जलवायु की ।
(ख) भूमध्यरेखीय जलवायु की
(ग) भूमध्यसागरीय जलवायु की
(घ) पश्चिम यूरोपीय जलवायु की
उत्तर-(ख) भूमध्यरेखीय जलवायु की।
प्रश्न 5. वृष्टिछाया प्रदेश किससे सम्बन्धित है?
(क) संवाहनिक वर्षा ।
(ख) चक्रवातीय वर्षा
(ग) पर्वतीय वर्षा
(घ) प्रतिचक्रवतीय वर्षा
उत्तर-(ग) पर्वतीय वर्षा। ||
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. संघनन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-वायु में उपस्थित जलवाष्प का ताप गिरने पर जब उसका घनीभवन होता है तब उसे संघनन कहते हैं।
प्रश्न 2. संघनन के कौन-कौन से रूप होते हैं?
उत्तर-ओस, पाला, कोहरा, ओले, मेघ, वर्षा, हिम आदि संघनन के विविध रूप हैं।
प्रश्न 3. संवाहनिक वर्षा क्या है ?
उत्तर-धरातल पर ऊष्मा की अधिकता के कारण वायुमण्डल में उत्पन्न संवहनीय धाराओं द्वारा होने वाली वर्षा संवाहनिक वर्षा कहलाती है।
प्रश्न 4. चक्रवातीय वर्षा का क्षेत्र बेताइए।
उत्तर-आयन रेखाओं तथा मध्य अक्षांशों में अधिकांश वर्षा चक्रवातों द्वारा ही होती है। उत्तरी भारत भी चक्रवातीय वर्षा का क्षेत्र है।
प्रश्न 5. संवहनीय वर्षा का क्षेत्र बतलाइए।
उत्तर-संवहनीय वर्षा अधिकतर अपराह्न में होती है। भूमध्यरेखीय क्षेत्र में शान्त पेटी (डोलड्रम) में अधिकांशतः संवहनीय वर्षा ही होती है।
प्रश्न 6. विश्व में औसत वार्षिक वर्षा के वितरण सम्बन्धी दो महत्त्वपूर्ण तथ्य बतलाइए।
उत्तर-1. भूमध्यरेखा से ध्रुवों की ओर वर्षा की मात्रा न्यून होती जाती है।
2. भूमध्यरेखीय कटिबन्ध तथा शीत-शीतोष्ण कटिबन्धों के पश्चिमी भागों में वर्षा का वितरण वर्षभर समान रहता है।
प्रश्न 7. वाष्पीकरण को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-जल के तरल रूप से गैसीय अवस्था में परिवर्तन होने की प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते हैं।
प्रश्न 8. कोहरे के कौन-कौन से तीन प्रकार हैं?
उत्तर-कोहरे के तीन प्रकार हैं-1. विकिरण कोहरा, 2. अभिवहन कोहरा, 3. वाताग्री कोहरा।
प्रश्न 9. धूम्र कोहरा क्या है?
उत्तर-ऐसी स्थिति जिसमें कोहरा तथा धुआँ सम्मिलित रूप से बनते हैं धूम्र कोहरा कहलाती है। यह स्थिति नगरों एवं औद्योगिक केन्द्रों में धुएँ की अधिकता के कारण केन्द्रकों की मात्रा की अधिकता के कारण उत्पन्न होती है।
प्रश्न 10. कुहासे एवं कोहरे में क्या अन्तर है?
उत्तर-कुहासे एवं कोहरे में अत्यन्त सूक्ष्म अन्तर होता है। कुहासे में कोहरे की अपेक्षा नमी अधिक होती है। कुहासा पहाड़ों पर अधिक पाया जाता है, जबकि कोहरा मैदानों में अधिक पाया जाता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. आर्द्रता किसे कहते हैं?
उत्तर-वायुमण्डल में निहित जलवाष्प विशाल महासागरों, झीलों, नदियों अथवा पेड़-पौधों से प्राप्त होती है। प्रतिदिन धरातल का जल सूर्य की गर्मी से वाष्प के रूप में परिवर्तित होता रहता है। वायु में विद्यमाने वाष्प ही उसकी आर्द्रता कहलाती है। वायु में वाष्प ग्रहण करने की शक्ति बहुत अंशों में उसके तापमान पर निर्भर करती है। वायु का तापमान जितना अधिक होगा उसमें वाष्प धारण करने की शक्ति उतनी ही बढ़ जाएगी। उदाहरणार्थ-यदि एक घन फुट वायु के तापमान को 0° से 5° सेग्रे अर्थात् 5° सेग्रे बढ़ा दिया जाए तो उस वायु में केवल 1 ग्रेन वाष्प धारण करने की शक्ति बढ़ती है। परन्तु यदि 32° सेग्रे तापमान वाली वायु को 5.5° सेग्रे से बढ़ाकर 37.5° सेग्रे कर दिया जाए तो वह 5 ग्रेन वाष्प धारण करने योग्य हो जाती है। यही कारण है कि शीत ऋतु की अपेक्षा ग्रीष्म ऋतु में वायु अधिक वाष्प ग्रहण कर सकती है जिससे गर्मियों में अधिक वर्षा होती है। वायु में वाष्प की मात्रा उसके तापमान के अतिरिक्त जल और स्थल के विस्तार तथा पवनों की किसी स्थान तक पहुँच पर निर्भर करती है। इसे सदैव प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।
प्रश्न 2. आर्द्रता एवं सापेक्ष आर्द्रता से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-आर्द्रता–आर्द्रता से तात्पर्य वायुमण्डल में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा से है। आर्द्रता को कई प्रकार से व्यक्त किया जाता है; जैसे—सापेक्ष आर्द्रता, निरपेक्ष आर्द्रता एवं अधिकतम आर्द्रता। आर्द्रता में क्षैतिज एवं लम्बवत् अन्तर पाया जाता है। किसी स्थान-विशेष पर किसी विशिष्ट समय में वायु में जलवाष्प की वास्तविक मात्रा को निरपेक्ष आर्द्रता कहते हैं। इसे वास्तविक आर्द्रता भी कहा जाता है। इसे ग्रेन प्रति घन फुट या ग्राम प्रति घन सेमी द्वारा व्यक्त किया जाता है। सोपक्ष आर्द्रता-वायु में निरपेक्ष या वास्तविक आर्द्रता एवं वायु के जलवाष्प ग्रहण करने की क्षमता का अनुपात सापेक्ष आर्द्रता कहलाती है। यह सदैव प्रतिशत में मापी जाती है।
प्रश्न 3. बादल या मेघ का क्या अर्थ है? ये कैसे बनते हैं?
उत्तर-मेघ वास्तव में वायुमण्डल में धूलकणों पर रुके हुए जल-बिन्दुओं का समूह मात्र है। तापमान के अत्यन्त कम होने पर वायु की अतिरिक्त जलवाष्प सूक्ष्म जल की बूंदों में बदल जाती है, जिसे संघनन (Condensation) कहते हैं। जिस ताप पर संघनन आरम्भ होता है, उसे ओसांक (Dew point) कहते ।
हैं। यदि ओसांक 0° सेल्सियस से ऊपर आ जाता है तो जलवाष्प सूक्ष्म जल की बूंदों में बदल जाती है और यदि 0° सेल्सियस (हिमांक) पर ओसांक आता है तो जलवाष्प सूक्ष्म हिमकणों में अर्थात् पाले के रूप में बदल जाती है। यही हिमकण तथा जल-सीकर कुहरे के रूप में वायुमण्डल में दिखलाई पड़ते हैं। जब ये एक विस्तृत क्षेत्रफल में विशाल रूप धारण कर ऊँचाई पर सघन रूप में एकत्रित हो जाते हैं, तो इन्हें मेघ या बादल कहा जाता है।
सामान्यतया मेघ धूलकणों पर स्थित जलकण अथवा हिमकणों के विशाल आकार हैं, जो वायुमण्डल में अक्षांशों के अनुसार भिन्न-भिन्न ऊँचाइयों पर स्थापित हो जाते हैं। इन मेघों की ऊँचाई कटिबन्धों के अनुसार घटती-बढ़ती रहती है।
प्रश्न 4. संघनन क्या है? इसके लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बतलाइए।
उत्तर-जलवाष्प के घनीभूत होकर जल में बदलने की प्रक्रिया को संघनन कहते हैं। संघनन आई वायु के ठण्डा होने पर होता है। संघनन प्रक्रिया के लिए निम्नलिखित परिस्थितियाँ अनुकूल होती हैं
- जब वायु का तापमान ओसांक तक पहुँच जाता है।
- जब वायु का आयतन ऊष्मा की मात्रा बढ़ाए बिना बढ़ जाए।
- जब वायु की आर्द्रता धारण क्षमता घटकर वायु में उपस्थित आर्द्रता की मात्रा से कम हो जाए।
- जब वाष्पीकरण द्वारा वायु में आर्द्रता की अतिरिक्त मात्रा मिला दी जाए।
प्रश्न 5. वर्षा और वर्षण में अन्तर लिखिए।
उत्तर-वर्षा—यह वर्षण का एक विशिष्ट रूप है, जिसमें बादलों के जल-वाष्प कण संघनित होकर जल की बूंदों या हिमकणों के रूप में भू-पृष्ठ पर गिरते हैं। जलवर्षा तथा हिमवर्षा इसके दो रूप हैं।
वर्षण—यह एक व्यापक प्रक्रिया है, जिसमें वायुमण्डल की आर्द्रता संघनित होकर वर्षा, हिम, ओला, पाला आदि रूपों में धरातल पर गिरती है। जल-वर्षा, वर्षण का एक साधारण रूप है। हिमवृष्टि, ओलावृष्टि, हिमपात आदि इसके अनेक रूप हैं।
प्रश्न 6. निरपेक्ष एवं सापेक्ष आर्द्रता में अन्तर बताइए।
उत्तर- निरपेक्ष आर्द्रता एवं सापेक्ष आर्द्रता में अन्तर
प्रश्न 7. वर्षण या वृष्टि से क्या अभिप्राय है? इसके दो रूपों का विवरण दीजिए।
उत्तर-वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसों के साथ-साथ जलवाष्प भी विद्यमान रहती है। वायुमण्डल में व्याप्त इस जलवाष्प को ही वायुमण्डल की आर्द्रता कहते हैं। भूमण्डल पर ओस, बादल, हिमपात, कुहरा, तुषार तथा वर्षा आदि इसी आर्द्रता की देन हैं, जिन्हें वर्षण तथा वृष्टि कहा जाता है।
वर्षण के रूप
वर्षण के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन निम्नलिखित है
1. हिमपात–जब कभी वायुमण्डल का तापमान ओसांक बिन्दु से भी कम हो जाता है, तो उसमें उपस्थित जलवाष्प जल में परिणत न होकर सीधे हिम के रवों के रूप में संघनित हो जाती है।
भूतल पर ये रवे हिमकणों के रूप में गिर जाते हैं। वर्षण का यह स्वरूप ‘हिमपात’ कहलाता है।
2. हिमवर्षा–जब जल की बूंदें भूप्रष्ठ के समीप की वायु की बहुत शीतल परतों से होकर गुजरती हैं, तब जलवाष्प हिम (बर्फ) बनकर नीचे गिरती है। वर्षण का यह रूप हिमवृष्टि या हिमवर्षा
कहलाता है। उच्च अक्षांशों तथा उच्च पर्वतीय प्रदेशों में हिमवर्षा ही होती है।
प्रश्न 8. उन नियन्त्रक कारकों का वर्णन कीजिए जो वाष्पीकरण एवं वाष्पोत्सर्जन की क्रिया की दर को नियन्त्रित करते हैं।
उत्तर–वाष्पीकरण वह क्रिया है जिसके द्वारा जल द्रव अवस्था से वाष्पीय अवस्था में परिवर्तित होता है। वाष्पीकरण निम्नलिखित कारकों पर निर्भर है
- तापमान तापमान बढ़ने पर वाष्पीकरण की गति अधिक हो जाती है। यही कारण है कि उष्ण कटिबन्ध में अन्य ताप-क्षेत्रों की अपेक्षा वाष्पीकरण अधिक होता है।
- पवन वेग-पवन का वेग जितना अधिक होता है, वाष्पीकरण भी उतना ही अधिक होता है।
- वायु की शुष्कता-वायु जितनी अधिक शुष्क होती है, वाष्पीकरण उतना ही तीव्र गति से होता है। वर्षा के दिनों में वायु आर्द्र होती है, इसलिए वर्षा ऋतु में वाष्पीकरण कम होता है।
वाष्पोत्सर्जन-इस प्रक्रिया के अन्तर्गत आर्द्रता की मात्रा तरल पदार्थों के साथ-साथ जीवित प्राणियों; जैसे—पेड़-पौधे आदि से भी प्राप्त होती है। वाष्पोत्सर्जन उन क्षेत्रों में अधिक होता है जहाँ वर्षा तथा वनस्पति अधिक पाई जाती है। भूमध्यरेखा के 10° उत्तर एवं 10° दक्षिण में ऐसे क्षेत्र स्थित हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. वर्षा के प्रमुख प्रकार कौन-से हैं? प्रत्येक की उत्पत्ति के कारण समझाइए।
या वर्षा के प्रमुख प्रकारों के नाम बताइए। संवहनीय वर्षा की उत्पत्ति समझाइए तथा उसका विश्व वितरण बताइए।
या विश्व में वर्षा के असमान वितरण की व्याख्या कीजिए तथा उसके प्रभाव की विवेचना कीजिए।
उत्तर-वर्षा अथवा वृष्टि
वायुमणूडल से जल हमें दो रूपों में प्राप्त होता है—तरल एवं ठोस। जल की प्राप्ति को ही वर्षा या वृष्टि कहते हैं। वर्षा धरातल पर जल, हिम, फुहार तथा ओलों के रूप में प्राप्त होती है। कोहरा, ओस तथा तुषार आदि भी वर्षा के ही रूप हैं, परन्तु इनमें वर्षा को अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है। वर्षा की मात्रा वायुमण्डलीय आर्द्रता पर निर्भर करती है। वाष्प की यह मात्रा संघनित होकर जल-कणों में परिवर्तित हो जाती है। वायुमण्डल में जब इन जल-कणों की अधिकता हो जाती है तो यह कण घनीभूत होकर वर्षा के रूप में धरातल पर टपकना आरम्भ कर देते हैं। वर्षा निम्नलिखित तथ्यों पर निर्भर करती है
- वायुमण्डल में पर्याप्त मात्रा में जलवाष्प की उपस्थिति।
- जल-सीकरों के आकार में वृद्धि होना।
- जलवाष्प की संघनन प्रक्रिया का तीव्रता से होना, जो निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है
- अधिक तापमान के कारण वायु का हल्की होकर ऊपर फैलना,
- ध्रुवीय प्रदेशों से उष्ण प्रदेशों की ओर वायु का प्रवाहित होना एवं
- निम्न वायुदाब का उच्च वायुदाब से मिलन तथा उसका ठण्डी जलधाराओं के सम्पर्क में आना।
वर्षा के प्रकार
जलवाष्पयुक्त वायुराशियों की संघनन प्रक्रिया के फलस्वरूप धरातल की वर्षा भिन्न-भिन्न रूपों में प्राप्त होती है। वर्षा के निम्नलिखित तीन स्वरूप पाये जाते हैं
1. संवहनीय वर्षा–धरातल पर ऊष्मा की अधिकता के कारण वायुमण्डल में उत्पन्न संवहनीय धाराओं द्वारा होने वाली वर्षा को संवहनीय वर्षा कहते हैं। इस प्रकार की वर्षा उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में अत्यधिक गर्मी के कारण होती है। उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में प्रतिदिन वायु गर्म होकर ऊपर उठती है तथा वायुमण्डल में फैल जाती है एवं समीपवर्ती वायु आकर इसका स्थान ले लेती है। कुछ समय बाद जलद मेघों का निर्माण होता है। वायुमण्डल में ऊपर उठी वायु ठण्डी होकर सीकरों में बदल जाती है। इस प्रकार स्थानीय ताप के प्रभाव के कारण वायुमण्डल में संवहन क्रिया आरम्भ हो जाती है। इन प्रदेशों में तीव्र गर्जन-तर्जन एवं बिजली की गड़गड़ाहट के साथ घनघोर वर्षा होती है। विषुवत्रेखीय प्रदेशों में इसी प्रक्रिया द्वारा वर्षा होती है।
2. पर्वतीय वर्षा–निम्न वायुभार उच्च वायुभार को अपनी ओर आकर्षित करता है। यदि उच्च वायुभार किसी जलाप्लावित क्षेत्र से होकर गुजरता है तो यह आर्द्रता ग्रहण कर लेता है। जब इनके मार्ग में कोई पर्वत शिखर | या पठार अवरोध के रूप में उपस्थित हो जाता है तो वायु । घनीभूत होकर वर्षा करती है। पर्वतीय वर्षा उस समय होती है जब वायुमण्डल में आर्द्रता की मात्रा अधिकतम होती है।
मध्यवर्ती अक्षांशों में शरद् एवं शीत ऋतु के प्रारम्भ में तथा मानसूनी प्रदेशों में ग्रीष्म ऋतु में इसी प्रकार की वर्षा होती है। इसे पर्वतकृत वर्ष भी कहते हैं। वायु अवरोध के सामने वाले भागों में अत्यधिक वर्षा होती है, जब कि विमुख भाग में वर्षा कम होती जाती है, क्योंकि यहाँ तक पहुँचते-पहुँचते वायु में आर्द्रता बहुत ही कम हो जाती है। ऐसे क्षेत्रों को वृष्टिछाया प्रदेश (Rain-Shadow Region) के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार की वर्षा में कुछ अन्य प्रत्यक्ष कारक भी अपना प्रभाव डालते हैं। दिन में पर्वतों के ढाल तथा घाटियाँ गर्म हो जाती हैं जिससे वायुमण्डल में संवहन धाराएँ उत्पन्न हो जाती हैं। कभी-कभी इनके शीतलन से भी वर्षा हो जाती है। इस प्रकार पर्वतीय वर्षा पर धरातलीय बनावट का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है।
3. चक्रवातीय वर्षा–जब विपरीत दिशाओं की शीतल एवं उष्ण वायुराशियाँ किसी स्थान पर एकत्रित होने लगती हैं तो वायु में अभिसरण की दशा उत्पन्न। इससे वायुराशियाँ ऊपर की ओर उठती हैं तथा इनमें अस्थिरता उत्पन्न हो जाती है। इनसे कपासी मेघों का निर्माण होता है तथा बौछारों के रूप में वर्षा होती है।
शीत एवं शीतोष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में चक्रवातीय वर्षा होती है। उष्ण कटिबन्ध में ग्रीष्म ऋतु में चक्रवातों से वर्षा होती है। विषुवत्रेखीय प्रदेशों में विभिन्न वायुराशियों में तापमान, आर्द्रता एवं घनत्व में भिन्नता होने के कारण वाताग्रों का निर्माण नहीं हो पाता। अधिकांश चक्रवातीय वर्षा शरद् ऋतु में होती है। समशीतोष्ण प्रदेशों में पछुवा हवाओं के साथ-साथ अनेक चक्रवात पश्चिम से पूर्व की ओर चलते हैं। उत्तरी भारत में शीतकालीन वर्षा भी चक्रवातीय वर्षा का एक प्रमुख उदाहरण है।
संसार में वर्षा का वितरण
संसार के वर्षा के वितरण मानचित्र पर दृष्टि डालने से ज्ञात होता है कि भूतल पर सभी जगह एकसमान मात्रा में वर्षा नहीं होती। धरातल की बनावट, जलवायु एवं पवनों की दिशा पर वर्षा की मात्रा निर्भर करती है। संसार में वर्षा का वितरण निम्नवत् पाया जाता है–
1. विषुवतरेखीय अधिक वर्षा की पेटी-वर्षा-वितरण का यह क्षेत्र विषुवत रेखा के 10° उत्तर तथा 10° दक्षिण अक्षांशों के मध्य स्थित है। इस पेटी में प्रतिदिन संवहनीय मूसलाधार वर्षा होती है। वर्षा बादलों की गर्जन तथा बिजली की चमक के साथ होती है। इस पेटी में वर्षा का वार्षिक औसत 200 सेमी तक रहता है। अत्यधिक वर्षा के कारण यहाँ घने वन पाये जाते हैं तथा कृषि का विकास कम हुआ है। यहाँ विरल आबादी मिलती है।
2. व्यापारिक पवनों की वर्षा की पेटी-व्यापारिक पवन प्रवाह क्षेत्र में इन पवनों से व्यापक वर्षा होती है; अत: इसे व्यापारिक पवनों की वर्षा की पेटी कहते हैं। इस पेटी का विस्तार 10° से 20° अक्षांशों के मध्य दोनों गोलार्थों में पाया जाता है। इसी पेटी में मानसूनी पवनों से भी भारी वर्षा हुआ करती है। वार्षिक वर्षा का औसत 100 से 150 सेमी तक रहता है। प्रचुर वर्षा के कारण मानसूनी प्रदेशों में चावल की सघन खेती होती है तथा घनी आबादी पायी जाती है।
3. उपोष्ण कम वर्षा की पेटी-उच्च वायुदाब की यह पेटी 20° से 30° अक्षांशों के मध्य दोनों गोलाद्ध में विस्तृत है। इस पेटी में वर्षा बहुत कम होती है, क्योंकि नीचे उतरती हुई हवाएँ वर्षा नहीं करती हैं। अतः विश्व के अधिकांश उष्ण मरुस्थल इसी पेटी में पाये जाते हैं। इस पेटी में वर्षा का वार्षिक औसत 50 सेमी तक ही रहता है।
4. भूमध्यसागरीय मध्यम वर्षा की पेटी-यह पेटी 30° से 40° अक्षांशों के मध्य फैली हुई है। इस क्षेत्र में वायुदाब की पेटियों के खिसक जाने के कारण शीत ऋतु में ही वर्षा होती है। पछुवा पवनें तथा चक्रवात शीत ऋतु में खूब वर्षा करते हैं। इस क्षेत्र में वर्षा का वार्षिक औसत 50 से 100 सेमी तक रहता है। यहाँ मध्यम सघन आबादी पायी जाती है।
5. शीतोष्ण वर्षा की पेटी-40° से 60° अक्षांशों के मध्य दोनों गोलार्थों में यह पेटी पायी जाती है। पछुवा पवनों का व्यापक प्रभाव रहने के कारण इस क्षेत्र में भारी वर्षा होती है। दक्षिणी अक्षांशों में यहाँ चक्रवातों से भारी वर्षा होती है। इस पेटी में प्रतिवर्ष 100 से 125 सेमी तक वर्षा होती है। यहाँ पश्चिमी यूरोपीय देशों में सघन आबादी मिलती है।
6. ध्रुवीय कम वर्षा की पेटी-60° अक्षांशों से 90° अक्षांशों के मध्य सबसे कम वर्षा होती है। 60° अक्षांशों के निकट मात्र 25 सेमी वर्षा ही होती है, शेष भागों में वर्षा हिम-कणों के रूप में होती है। इस क्षेत्र में वर्ष-भर उच्च दाब बना रहने के कारण वर्षा कम होती है। हिमाच्छादन के कारण यहाँ विरल आबादी पायी जाती है।
प्रश्न 2. वायुमण्डल से ओलावृष्टि एवं वर्षा किस प्रकार होती है? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर–ओलावृष्टि-जब वायुमण्डल में प्रबल वायु की धाराएँ ऊर्ध्वाधर रूप में चलती हैं, तव संघनन की प्रक्रिया वायुमण्डल के उच्च स्तरों में निम्न तापमान पर सम्पन्न होती है तथा जलवाष्प हिमकणों में बदल जाती है। हिमकणों का आकार धीरे-धीरे बढ़ता जाता है, परन्तु ऊपर उठती हुई प्रचण्ड वायु इन्हें नीचे नहीं गिरने देती है। इस प्रकार इन रवों की मोटाई कुछ सेमी तक बढ़ जाती है तथा ठोस हिम के गोले के रूप में ये रवे भूपृष्ठ पर गिरते हैं, जिसे ‘ओलावृष्टि’ या ‘उपलवृष्टि’ कहते हैं। कभी-कभी ओले वर्षा के साथ भी भूपृष्ठ पर गिरते हैं। ओलावृष्टि से फसलों को भारी हानि पहुँचती है।
वर्षा-वर्षा, वृष्टि का सबसे सामान्य प्रतिरूप है। वायुमण्डल में जलवाष्प के संघनन से मेघों का निर्माण होता है। मेघों में अनेक छोटे-छोटे जलकण होते हैं, जो यत्र-तत्र बिखरे रहते हैं। जब मेघ वायुमण्डल के शीतल क्षेत्रों में पहुँचते हैं तब ये जलकण संचित होकर पहले की अपेक्षा और बड़े हो जाते हैं। भार के कारण ये वायुमण्डल में अधिक देर तक टिक नहीं पाते और नीचे बरसने लगते हैं। वृष्टि के इस रूप को ‘वर्षा’ कहते हैं। वर्षा की बूंदों का व्यास 6 मिमी तक होता है। ‘फुहार’ हल्की वर्षा का स्वरूप है। इसमें जल की बूंदें बहुत ही सूक्ष्म होती हैं, जिनका व्यास 0.5 मिमी से भी कम होता है।
प्रश्न 3. ऊँचाई के आधार पर मेघों या बादलों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर—बादलों का वर्गीकरण उनकी धरातल से ऊँचाई तथा आकार के आधार पर किया जाता है। 1932 ई० में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बादलों को निम्नलिखित चार भागों में वर्गीकृत किया गया है
1. उच्च बादल-इन बादलों की ऊँचाई समुद्रतल से 6 से 12 किमी तक होती है। इनमें पक्षाभ (Cirrus), पक्षाभ कपासी (Cirro-cumulus) और पक्षाभ स्तरी (Cirro-stratus) मेघ सम्मिलित किए जाते हैं। पक्षाभ सबसे ऊँचे मेघ होते हैं जिनका निर्माण सूक्ष्म हिमकणों से होने के कारण इनका रंग श्वेत होता है। ये चक्रवातों के आगमन से पहले आकाश में दिखलाई पड़ते हैं। पक्षाभ स्तरी मेघ आकाश में एक पतली चादर की भाँति फैले होते हैं और चन्द्रमा तथा सूर्य के चारों ओर प्रभामण्डल बना देते हैं। पक्षाभ-कपासी मेघ छोटे-छोटे, गोलाकार या लहरनुमा होते हैं।
2. मध्यम ऊँचाई के बादल-इन बादलों की ऊँचाई धरातल से 3 से 6 किमी तक होती है। इन बादलों में स्तरी मध्य रेखा (Altostratus) और कपासी मध्य मेघ (Altocumulus) प्रमुख हैं। स्तरी मध्य मेघों में सूर्य व चन्द्रमा स्पष्ट दिखाई नहीं देते और इनसे विस्तृत क्षेत्रों में लगातार वर्षा होती है।
3. निम्न बादल-ये धरातल से 3 किमी ऊँचाई तक पाए जाने वाले बादल हैं जिनके प्रमुख प्रकार स्तरी (Stratus), वर्षा स्तरी (Nimbo Stratus) और स्तरी कपासी (Strato-cumulus) मेघ हैं। स्तरी बादल कुहरे के समान कई परतों में शीतोष्ण कटिबन्ध में जाड़ों में अधिक दिखलाई पड़ते हैं। वर्षा स्तरी बादल काले तथा धरातल के निकट अत्यन्त घने होते हैं जिनसे भारी वर्षा होती है। स्तरी कपासी मेघ हल्के भूरे रंग के बड़े-बड़े गोलाकार चकतों में पाए जाते हैं।
4. अधिक ऊध्र्वाधर विकास वाले बादल-इन बादलों में पवनें तेजी से धरातल से ऊपर की ओर ऊर्ध्वाधर प्रवाहित होती हैं। अत: इनका ऊध्र्वाधर विस्तार अधिक होता है। ये कपासी (Cumulus) और कपासी वर्षी (Cumulonimbus) मेघ होते हैं। ये गहरे काले रंग वाले भारी बादल होते हैं। इन्हें गर्जन मेघ भी कहते हैं। कपासी वर्षी मेघ ऊँचाई में अधिक विस्तार वाले पर्वत के समान होते हैं। प्रबल ऊर्ध्वाधर पवनों के कारण इनसे मूसलाधार वर्षा ओले, विद्युत की चमक व गर्जन-तर्जन के साथ होती है।
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