UP Board Solutions for Class 11 Geography: Fundamentals of Physical Geography Chapter 16 Biodiversity and Conversation (जैव विविधता एवं संरक्षण)

By | June 5, 2022

UP Board Solutions for Class 11 Geography: Fundamentals of Physical Geography Chapter 16 Biodiversity and Conversation (जैव विविधता एवं संरक्षण)

UP Board Solutions for Class 11 Geography: Fundamentals of Physical Geography Chapter 16 Biodiversity and Conversation (जैव विविधता एवं संरक्षण)

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
प्रश्न (i) जैव-विविधता का संरक्षण निम्न में से किसके लिए महत्त्वपूर्ण है?
(क) जन्तु ।
(ख) पौधे
(ग) पौधे और प्राणी
(घ) सभी जीवधारी
उत्तर-(घ) सभी जीवधारी।।

प्रश्न (ii) निम्नलिखित में से असुरक्षित प्रजातियाँ कौन-सी हैं?
(क) जो दूसरों को असुरक्षा दें।
(ख) बाघ व शेर
(ग) जिनकी संख्या अत्यधिक हो ।
(घ) जिन प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा है।
उत्तर-(घ) जिन प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा है।

प्रश्न (iii) नेशनल पार्क (National Parks) और पशु विहार (Sanctuaries) निम्न में से किस उद्देश्य के लिए बनाए गए हैं?
(क) मनोरंजन ।
(ख) पालतू जीवों के लिए
(ग) शिकार के लिए
(घ) संरक्षण के लिए
उत्तर-(घ) संरक्षण के लिए।

प्रश्न (iv) जैव-विविधता समृद्ध क्षेत्र है|
(क) उष्णकटिबन्धीय क्षेत्र
(ख) शीतोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र
(ग) ध्रुवीय क्षेत्र
(घ) महासागरीय क्षेत्र
उत्तर-(क) उष्णकटिबन्धीय क्षेत्र।

प्रश्न (v) निम्न में से किस देश में पृथ्वी सम्मेलन (Earth Summit) हुआ था?
(क) यू०के० (U.K.)
(ख) ब्राजील
(ग) मैक्सिको
(घ) चीन
उत्तर-(ख) ब्राजील।

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए
प्रश्न (i) जैव-विविधता क्या है?
उत्तर-किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों की संख्या और उनकी विविधता को जैव-विविधता कहते हैं।

प्रश्न (ii) जैव-विविधता के विभिन्न स्तर क्या हैं?
उत्तर-जैव-विविधता के निम्नलिखित तीन स्तर हैं

  1. आनुवंशिक विविधता,
  2. प्रजातीय विविधता,
  3. पारितन्त्रीय विविधता।

प्रश्न (iii) हॉट स्पॉट (Hot Spot) से आप क्या समझते हैं?
उतर-वह क्षेत्र जहाँ जैव-विविधता अधिक पाई जाती है उन क्षेत्रों को ‘हॉटस्पॉट’ कहते हैं। विश्व में ऐसे क्षेत्रों का पता लगाया गया है जो जैव-विविधता की दृष्टि से सम्पन्न हैं, किन्तु जीवों के आवास लगातार नष्ट होने के कारण वहाँ की अनेक जातियाँ संकटग्रस्त या क्षेत्र विशेषी हो गई हैं। अतः ऐसे स्थल जहाँ किसी प्राणी अथवा वनस्पति जाति की बहुलता हो या निरन्तर घट रही विलुप्तप्राय जातियाँ हों, को जैव-विविधता के संवेदनशील क्षेत्र या तप्त स्थल (हॉट स्पॉट) कहते हैं।

प्रश्न (iv) मानव जाति के लिए जन्तुओं के महत्त्व का वर्णन संक्षेप में करें।
उत्तर-विभिन्न जीव-जन्तु मानव समाज के अभिन्न अंग हैं। कृषि, पशुपालन, आखेट एवं वनोपज एकत्रीकरण पर निर्भर मानव समुदाय के लिए जीव-जन्तुओं की विविधता जीवन का आधार है। विभिन्न घुमक्कड़ जातियाँ व आदिवासी समाज आज भी जैव-विविधता से प्रत्यक्षतः प्रभावित होते हैं। उनके सामाजिक संगठन व रीति-रिवाजों में विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तुओं का विशिष्ट स्थान रहा है। जीव-जन्तुओं के माध्यम से जीवनोपयोगी शिक्षाओं को सरल रूप में व्यक्त किया गया है; जैसे—शेर जैसी । निडरता, बगुले जैसी एकाग्रता, कुत्ते जैसी वफादारी आदि आज भी मानव आचरण के प्रतिमान माने जाते हैं।

प्रश्न (v) विदेशज प्रजातियों (Exotic Species) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-वे प्रजातियाँ जो स्थानीय आवास की मूल जैव प्रजाति नहीं हैं, लेकिन इस तन्त्र में स्थापित की गई हैं, उन्हें विदेशज प्रजातियाँ कहा जाता है।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए
प्रश्न (1) प्रकृति को बनाए रखने में जैव-विविधता की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर-प्रकृति अजैव एवं जैव तत्त्वों का समूह है। इसकी कार्यशीलता इन दोनों तत्त्वों की पारस्परिक क्रिया द्वारा ही संचालिव्र होती है। जैव तत्त्वों के अन्तर्गत विद्यमान जैव-विविधता प्रकृति के सन्तुलित संचालन का ही परिणाम है। अत: प्रकृति को बनाए रखने के लिए जैव-विविधता एवं जैव-विविधता की सुरक्षा के लिए प्रकृति के साथ मानव के मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों का अपना विशिष्ट महत्त्व है। दूसरे शब्दों में, प्रकृति एवं जैव-विविधता में घनिष्ट सम्बन्ध है तथा ये दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।

आज जो जैव-विविधता हम देखते हैं वह 2.5 से 3.5 अरब वर्षों के विकास का परिणाम है। पारितन्त्र में मौजूद विभिन्न प्रजातियाँ कोई-न-कोई क्रिया करती रहती हैं। पारितन्त्र में कोई भी प्रजाति न तो बिना कारण के विकसित हो सकती है और न ही उसका अस्तित्व बना रह सकता है अर्थात् प्रत्येक जीव अपनी आवश्यकता पूरी करने के साथ-साथ दूसरे जीवों के विकास में भी सहायक होता है। जीव वे प्रजातियाँ ऊर्जा ग्रहण कर उसका संरक्षण करती हैं। जैव-विविधता कार्बनिक पदार्थ विघटित तथा उत्पन्न करती हैं और पारितन्त्र में जल व पोषक तत्त्वों के चक्र को बनाए रखने में सहायक होती है। यह जलवायु को नियन्त्रित करने में सहायक है और पारितन्त्र को सन्तुलित रखती हैं। इस प्रकार जैव-विविधता प्रकृति कों बनाए रखने में सहायक है।

प्रश्न (ii) जैव-विविधता के ह्रास के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारकों का वर्णन करें। इसे रोकने के उपाय भी बताएँ।
उत्तर-पृथ्वी पर जीवों के उद्भव एवं विकास में करोड़ों वर्ष लगे हैं। विभिन्न पारिस्थितिक तन्त्र भाँति-भाँति के जीव-जन्तुओं एवं पादपों के प्राकृतिक आवास बने। कालान्तर में मानवजनित एवं प्राकृतिक कारणों से अनेक जीवों की जातियाँ धीरे-धीरे लुप्त होने लगीं। वर्तमान में पौधों एवं प्राणी जातियों के विलोपन की दर बढ़ गई। इससे पृथ्वी की जैव-विविधता को खतरा उत्पन्न हो गया। भू-पृष्ठ पर जैव-विविधता में ह्रास के लिए उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं

1. आवासों का निवास-वन एवं प्राकृतिक घास स्थल अनेक जीवों के प्राकृतिक आवास होते हैं, किन्तु जनसंख्या वृद्धि के कारण कृषि एवं मानव आवास के लिए भूमि आपूर्ति को पूरा करने के लिए जैव-विविधता क्षेत्र का विनाश किया गया है।

2. वन्य जीवों का अवैध शिकार-मानव ने उत्पत्ति काल से ही वन्य जीवों का शिकार प्रारम्भ कर दिया था, किन्तु तब यह सीमित मात्रा में था। वर्तमान में मनोरंजन के अतिरिक्त अवैध धन कमाने (तस्करी) के लिए जैव-विविधता का बड़ी बेहरमी से शोषण किया जा रहा है।

3. मानव-वन्यप्राणी द्वन्द्व-मानव जनसंख्या की तीव्र वृद्धि के कारण भोजन और आवास की माँग बढ़ी है। इसीलिए जीवों एवं पादप आवास स्थलों पर अतिक्रमण में वृद्धि हुई है। विभिन्न आर्थिक
लाभों के लिए भी मानव-वन्य प्राणी द्वन्द्व चरम पर है।

4. प्राकृतिक आपदाएँ-ऐसी अनेक प्राकृतिक आपदाएँ हैं जिनके कारण जैव-विविधता का ह्रास बड़ी मात्रा में होता है। अकाल, महामारी, दावानल, बाढ़, सूखा, तूफान; भू-स्खलन, भूकम्प आदि के कारण वनस्पति एवं प्राणियों का व्यापक विनाश हुआ है। उपर्युक्त के अतिरिक्त आणविक हथियारों का प्रयोग, औद्योगिक दुर्घटनाएँ समुद्रों में तेल रिसाव, हानिकारक अपशिष्ट उत्सर्जन आदि भी ऐसे कारक हैं जिनके कारण जैव-विविधता ह्रास में वृद्धि हुई है।

रोकने के उपाय-जैव-विविधता ह्रास या विनाश को रोकने के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं

  • जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण,
  • वनारोपण में वृद्धि
  • मृदा अपरदन को रोकना,
  • कीटनाशकों के प्रयोग पर नियन्त्रण,
  • विभिन्न प्रकार के प्रदूषण पर नियन्त्रण,
  • वन्य प्राणियों के शिकार पर कठोर प्रतिबन्ध,
  • संकटापन्न प्रजातियों का संरक्षण,
  • वन्य-जीव एवं वनस्पति के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर रोक।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. कॉर्बेट नेशनल पार्क कहाँ पर है?
(क) रामनगर (नैनीताल)
(ख) दुधवा (लखीमपुर)
(ग) बाँदीपुर (राजस्थान)
(घ) काजीरंगा (असम)
उत्तर-(क) रामनगर (नैनीताल)।

प्रश्न 2. ‘काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान कहाँ स्थित है?
(क) उत्तर प्रदेश में
(ख) असम में
(ग) ओडिशा में
(घ) गुजरात में
उत्तर-(ख) असम में।।

प्रश्न 3. वह राज्य जहाँ सर्वाधिक शेर पाये जाते हैं
(क) उत्तर प्रदेश
(ख) गुजरात
(ग) मध्य प्रदेश
(घ) आन्ध्र प्रदेश
उत्तर-(ख) गुजरात।

प्रश्न 4. भारत का राष्ट्रीय पक्षी है
(क) कबूतर
(ख) मोरे
(ग) गौरैया
(घ) हंस
उत्तर-(ख) मोर।।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. निम्नलिखित के उत्तर दीजिए
(अ) विश्व वानिकी दिवस कब मनाया जाता है?
(ब) भारत का पहला जीन अभयारण्य कहाँ पर स्थित है?
(स) भारतीय वन्य जैवमण्डल की स्थापना कहाँ हुई?
(द) वन्य-जीव सप्ताह कब मनाया जाता है?
(य) वन महोत्सव कब मनाया जाता है?
उत्तर-(अ) विश्व वानिकी दिवस (World Forestryday) प्रतिवर्ष 21 मार्च को मनाया जाता है।
(ब) भारत में सबसे पहला जीन अभयारण्य (Gene sanctuary) बंगलौर (बंगलुरु) में स्थापित किया गया है।
(स) भारत में सन् 1952 में भारतीय वन जैवमण्डल (Indian Board for Wild Life-IBW) की स्थापना की गई। भारतीय संविधान में वन्य-जीवों के शिकार करने पर प्रतिबन्ध है।
(द) प्रतिवर्ष 1 से 8 अक्टूबर तक वन्य जीव सप्ताह मनाया जाता है।
(य) प्रतिवर्ष फरवरी तथा जुलाई में वन महोत्सव मनाया जाता है।

प्रश्न 2. संकटग्रस्त प्रजातियाँ किन्हें कहते हैं ।
उत्तर-संकटग्रस्त प्रजातियाँ वे प्रजातियाँ हैं जिनके विलुप्त होने का भय है, क्योंकि इनके आवास अत्यधिक कम हो गए हैं। निकट-भविष्य में इन प्रजातियों के विलुप्त होने की सम्भावना अधिक बढ़ती जा रही है। इससे इनकी संख्या भी बहुत कम हो गई है।

प्रश्न 3. दुर्लभ प्रजातियाँ क्या हैं?
उत्तर-वे प्रजातियाँ जो संख्या में कम तथा कुछ विशेष स्थानों पर अवशिष्ट हैं। इनके विलुप्त होने का भय अधिक है।

प्रश्न 4 आपत्तिग्रस्त एवं सुभेछ प्रजातियों का क्या अर्थ है?
उत्तर-पत्तिग्रस्त प्रजातियाँ-वे प्रजातियाँ जिनके आवास इतने नष्ट हो चुके हैं कि उनके शीघ्र ही संकटग्रस्त स्थिति में आ जाने की सम्भावना है या ये संकट-सीमा तक पहुंच चुकी हैं। सुभेद्य या असुरक्षित प्रजातियाँ-वे प्रजातियाँ जिनकी निकट-भविष्य में आपत्तिग्रस्त श्रेणी में आने की सम्भावना है।

प्रश्न 5. नए प्रकार के बीजों एवं रासायनिक खादों के क्या परिणाम है?
उत्तर-नए प्रकार के बीज एवं रासायनिक खादों के प्रयोग से हरित क्रान्ति आई है। उत्पादन में वृद्धि हुई है, किन्तु जैव-विविधता का ह्रास और विभिन्न प्रकार के प्रदूषण में भी वृद्धि हुई है।

प्रश्न 6. राष्ट्रीय पार्क तथा अभयारण्य में अन्तर बताइए।
उत्तर-राष्ट्रीय पार्क–यह वह क्षेत्र है जहाँ प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य जीव और अन्य प्राकृतिक सुन्दरता को सुरक्षित रखा जाता है। अभयारण्ये—यह वह सुरक्षित क्षेत्र है जहाँ लुप्तप्राय प्रजातियों को संरक्षित रखने के प्रयास किए जाते हैं।

प्रश्न 7. किसी जैव-विविधता सम्मेलन का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-सन् 1992 में ब्राजील के रियो-डि-जेनेरियो (Rio-de-Janerio) में जैव-विविधता को विश्वस्तरीय सम्मेलन आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन में जैव-विविधता संरक्षण हेतु भारत संहित विश्वें के 155. देश हस्ताक्षरी (कृत संकल्पी) हैं।

प्रश्न 8. भारत सरकार ने प्रजातियों को बचाने के लिए कौन-सा मुख्य कानूनी प्रयास किया है?
उत्तर-भारत सरकार ने प्रजातियों को बचाने, संरक्षित करने और विस्तार के लिए वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम, 1972 पारित किया है, जिसके अन्तर्गत राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य स्थापित किए गए तथा देश में कुछ क्षेत्रों को जीवमण्डल आरक्षित घोषित किया गया है।

प्रश्न 9. जैव-विविधता की आर्थिक भूमिका क्या है?
उत्तर-जैव-विविधती की एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक भूमिका फसलों की विविधता के कारण है। इसके अतिरिक्त जैव-विविधता को संसाधनों के उन भण्डारों के रूप में भी महत्त्वपूर्ण माना जाता है जिनकी उपयोगिता भोज्य पदार्थ, औषधियों और सौन्दर्य प्रसाधन आदि बनाने में है।
प्रश्न 10. अन्तर्राष्ट्रीय संस्था (IUCN) ने संरक्षण के उद्देश्य से संकटापन्न पौधों व जीवों को कितने वर्गों में विभक्त किया है?
उत्तर-अन्तर्राष्ट्रीय संस्था (IUCN) ने संरक्षण के उद्देश्य से संकटापन्न पौधों व जीवों को तीन निम्नलिखित वर्गों में विभक्त किया है
(i) संकटापन्न प्रजातियाँ,
(ii) सुभेद्य प्रजातियाँ,
(ii) दुर्लभ प्रजातियाँ।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. प्रजातियों की विलुप्तता के मुख्य कारण लिखिए।
उत्तर-प्रजातियों की विलुप्तता के मुख्य कारण निम्नवत् है
1. बाढ़ (flood), सूखा (drought), भूकम्प (earthquakes) आदि प्राकृतिक विपदाएँ।
2. पादप रोगों का संक्रमण (epidemic) के रूप में।
3. परागण करने वाले साधनों या कारकों में कमी।
4. समाज में प्रजातियों की विलुप्तता के सम्बन्ध में ज्ञान न होना।
5. वनों का अत्यधिक कटाव।
6. मनुष्य द्वारा पौधों के प्राकृतिक आवासों में परिवर्तन।
7. औद्योगीकरण, बाँध (dams), सड़क आदि के निर्माण से वनों की कटाई।
8. पशुओं के अति चरण (over grazing) के कारण पौधों का नष्ट होना।
9. प्रदूषण तथा पारितन्त्र का असन्तुलन।
10. पौधों का व्यापार।

प्रश्न 2. जीन बैंक पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-वे संस्थान, जो महत्त्वपूर्ण व उपयोगी पौधों के जर्मप्लाज्म (germplasm) को सुरक्षित रखते हैं, जीन बैंक के नाम से जाने जाते हैं। जर्मप्लाज्म से तात्पर्य है कि जिसके द्वारा उस पौधे का परिवर्धन होता है। जीन बैंक में बीज, परागकण, बीजाण्डों, अण्ड कोशिकाओं (egg cells), ऊतक संवर्द्धन (tissue culture) के सहयोग से तने के शीर्ष भागों को कम ताप पर (-10° से -20°C) तथा कर्म ऑक्सीजन अवस्था में सुरक्षित रखते हैं, परन्तु कुछ पौधों के जर्मप्लाज्म (बीज) कम ताप व कम ऑक्सीजन अवस्था में मर जाते हैं। इस प्रकार के बीजों को रिकेल्सीटेण्ट बीज (Recalcitrant seeds) कहते हैं। आवश्यकता पर इन जर्मप्लाज्म से उन पौधों का परिवर्द्धन किया जा सकता है।

प्रश्न 3. विभिन्न संकटग्रस्त (जन्तु) जातियों के नाम लिखिए।
उत्तर-स्तनधारी-लंगूर, मेकाकू, चीता, शेर, सफेद भौंह वाला गिब्बन, बाघ, सुनहरी बिल्ली, मरुस्थली बिल्ली तथा भारतीय भेड़िया आदि। पक्षी सफेद पंख वाली बतख, भारतीय बस्टर्ड आदि। उभयचर तथा सरीसृप-घड़ियाल, मगर, वैरेनस, सेलामेण्डर आदि। भारत में लगभग 94 राष्ट्रीय उद्यान व 501 अभयारण्य हैं। राष्ट्रीय उद्यान में महत्त्वपूर्ण प्राणिजात व पादपंजात को उनके प्राकृतिक रूप में ऐतिहासिक इमारतों के साथ संरक्षित किया जाता है। इस क्षेत्र में शिकार व पशुचारण आदि की अनुमति नहीं दी जाती है। अभयारण्य-वन्य जन्तुओं व पक्षियों को सुरक्षित रहने व प्रजनन आदि की स्वतन्त्रता प्राकृतिक परिस्थितियों में प्रदान की जाती है।

प्रश्न 4. विश्व के विभिन्न वन्य जीव संगठनों के विषय में लिखिए।
उत्तर-1. आई०यू०सी०एन०आर० (International Union for Conservation of Natural Resources-I.U.C.N.R.)-इसकी स्थापना 1948 ई० में हुई थी तथा इसका कार्यालय स्विट्जरलैण्ड में है।

2. आई०बी०डब्ल्यू ०एल०–(Indian Boards of Wildlife-I.B.W.L.)-भारतवर्ष में इसकी स्थापना 1952 ई० में हुई थी।

3. डब्ल्यू डब्ल्यू०एफ० (World Wildlife Fund-W.W.F.)—इसकी स्थापना 1962 ई० में हुई थी तथा इसका कार्यालय स्विट्जरलैण्ड में है।

4. बी०एन०एच०एस० (The Bombay Natural History Society-B.N.H.S.)-यह गैर-सरकारी संस्थान है। इसकी स्थापना 1881 ई० में बम्बई (मुम्बई) में हुई।।

5. इल्यू०पी०एस०आई० (Wildlife Preservation Society of India-W.P.S.I.) इसकी स्थापना 1958 ई० में देहरादून में हुई। यह एक गैर-सरकारी संस्था है।

प्रश्न 5. संसार के कुछ मुख्य हॉट-स्पॉट के नाम लिखिए।
उत्तर-संसार के मुख्य हॉट-स्पॉट निम्नवत् हैं
1. अमेजन [Amazon (लैटिन अमेरिका)]
2. आर्कटिक टुण्डा Arctic Tundra (उत्तरी ध्रुव)]
3. अलास्का [Alaska (उत्तरी अमेरिका)]
4. मेडागास्कर द्वीप [Islands of Madagaskar (पूर्वी अफ्रीका के तट)]
5. आल्प्स [Alps (यूरोप)]
6. मालदीव द्वीप [Maldiv Island. (दक्षिण-पूर्वी एशिया)]
7. कैरीबियन द्वीप [Caribbean Islands (दक्षिण प्रशान्त)]
8. मॉरिशस [Mauritius (पूर्वी अफ्रीका के तट)]
9. विक्टोरिया झील [Lake of Victoria (कीनिया)]
10. अण्टार्कटिका [Antarctica (दक्षिणी ध्रुव)]

प्रश्न 6. जैव-विविधता के संरक्षण के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर क्या प्रयास किए जा रहे हैं?
उत्तर-ब्राजील के रियो-डि-जेनेरियो (Rio-de-Janerio) में 1992 ई० में पृथ्वी सम्मेलन (Earth summit) आयोजित किया गया जिसमें जैव-विविधता के संरक्षण के लिए प्रस्ताव पारित किया गया। यह प्रस्ताव 29 दिसम्बर, 1993 ई० से अमल में लाया गया। इस प्रस्ताव के मुख्य विषय निम्न प्रकार हैं|
(i) जैव-विविधता का संरक्षण,
(ii) जैव-विविधता (Sustainable) का उपयोग,
(iii) आनुवंशिक स्रोतों के उपयोग से उत्पन्न लाभ का सही बँटवारा।। वल्र्ड कन्जर्वेशन यूनियन (World Conservation Union) तथा वर्ल्ड वाइड फण्ड फॉर नेचर [World Wide Fund for Nature-WWF] सम्पूर्ण संसार में संरक्षण व जैवमण्डल रिजर्व (Biosphere reserve) के रखरखाव को प्रोन्नत करने वाले प्रोजेक्ट को सहायता दे रही है।

प्रश्न 7. वन्य जीव प्रबन्धन/संरक्षण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-वन्य-जीवन के अन्तर्गत वे जीव (पादप, जन्तु तथा सूक्ष्म जीव) सम्मिलित हैं जो अपने प्राकृतिक आवासों में मिलते हैं। मानवजाति के लिए वन्य जन्तु भी वनों के समान ही महत्त्वपूर्ण हैं। औद्योगीकरण, सड़क निर्माण, विद्युत परियोजनाओं तथा अन्य आधुनिक गतिविधियों के कारण वनों का विनाश हुआ है। जिससे वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास नष्ट हुए हैं। इसी कारण अनेक वन्य जन्तुओं की प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं या विलुप्तीकरण की ओर अग्रसर हैं जिनमें बाघ, काला चीतल, हिरण, जंगली सूअर, शेर आदि प्रमुख हैं। एक अनुमान के अनुसार वन्य जन्तुओं की लगभग 81 संकटग्रस्त जातियाँ विलुप्तीकरण के कगार पर हैं। वन्य जन्तुओं के प्रबन्धन से तात्पर्य जन्तुओं की वृद्धि, विकास प्रजनन, उपयोग तथा संरक्षण से है। प्रबन्धन का मूल उद्देश्य यह भी है कि किसी भी जाति का अधिक शोषण न हो, रोग तथा अन्य प्राकृतिक . आपदाओं उसके विलुप्त होने का कारण न बने तथा मानवजाति अधिक-से-अधिक लाभान्वित हो सके।

प्रश्न 8. वन्य-जीव संरक्षण का महत्त्व बताइए।
उत्तर-भारत में वन्य जीवों का संरक्षण एक दीर्घकालिक परम्परा रही है। ऐसा उल्लेख मिलता है कि ईसा से 6000 वर्ष पूर्व के आखेट-संग्राहक समाज में भी प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग पर विशेष ध्यान दिया जाता था। प्रारम्भिक काल से ही मानव समाज कुछ जीवों को विनाश से बचाने के प्रयास करते रहे हैं। हिन्दू महाकाव्यों, धर्मशास्त्रों, पुराणों, जातकों, पंचतन्त्र एवं जैन धर्मशास्त्रों सहित प्राचीन भारतीय साहित्य में छोटे-छोटे जीवों के प्रति हिंसा के लिए भी दण्ड का प्रावधान था। इससे स्पष्ट होता है कि प्राचीन भारतीय संस्कृति में वन्य-जीवों को कितना सम्मान दिया जाता था। आज भी अनेक समुदाय वन्य-जीवों के संरक्षण के प्रति पूर्ण रूप से सजग एवं समर्पित हैं। विश्नोई समाज के लोग पेड़-पौधों तथा जीव-जन्तुओं के संरक्षण के लिए उनके द्वारा निर्मित सिद्धान्तों का पालन करते हैं। महाराष्ट्र में भी मोरे समुदाय के लोग मोर एवं चूहों की सुरक्षा में विश्वास रखते हैं। कौटिल्य द्वारा लिखित ‘अर्थशास्त्र में कुछ पक्षियों की हत्या पर महाराजा अशोक द्वारा लगाये गये प्रतिबन्धों का भी उल्लेख मिलता है।

प्रश्न 9. संसार में जैव-विविधता के संरक्षण के विभिन्न प्रकारों की रूपरेखा बनाइए।
उत्तर

प्रश्न 10. निम्नलिखित की परिभाषा जैव-विविधता के सन्दर्भ में दीजिए(अ) विलुप्त, (ब) संकटग्रस्त, (स) असुरक्षित।
उत्तर-(अ) विलुप्त-वह प्रजाति जिसका अन्तिम जीव भी मर चुका हो, जिसका कोई भी जीव वर्तमान में नहीं मिलता हो, विलुप्त मानी जाती है।
(ब) संकटग्रस्त–एक प्रजाति संकटग्रस्त (endangered) तब मानी जाती है जब उसके जीव लगभग समाप्त हो रहे हों अथवा समाप्ति के कगार पर हों।
(स) असुरक्षित-वह प्रजातियाँ जो संकटग्रस्त तो नहीं हैं, परन्तु निकट भविष्य में संकटग्रस्त हो सकती हैं,,असुरक्षित कहलाती हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. जैवमण्डल रिजर्व क्या हैं? इसके अन्तर्गत सम्मिलित क्षेत्र का सीमांकन कीजिए तथा जैवमण्डल रिजर्व के कार्य बताइए।
उत्तर-जैवमण्डल रिजर्व
जैवमण्डल रिजर्व वह संरक्षित क्षेत्र है जिसमें ‘आबादी’ तन्त्र की अल्पता होती है। ये प्राकृतिक जीवोम (Natural biomes) हैं जहाँ के जैविक समुदाय विशिष्ट होते हैं। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संघ (UNESCO) के मानव व जैवमंण्डल (man and bisophere) कार्यक्रम में 1975 ई० में जैवमण्डल रिजर्व के सिद्धान्त (concept) को रखा गया जिसके अन्तर्गत पारितन्त्र का संरक्षण आनुवांशिक स्रोतों (genetic resources) के संरक्षण से किया जाना सुझाया गया। मई, 2002 : ई० तक 408 जैवमण्डलों का 94 देशों में पता लगा है। भारत में कुल 14 जैवमण्डल रिजर्व मिलते हैं। भारत में जैवमण्डल रिजर्व के रूप में राष्ट्रीय उद्यानों को भी रखा गया है।

जैवमण्डल रिजर्व के अन्तर्गत कोर (core), बफर (buffer) तथा उदासीन क्षेत्र (Transition zones) आते हैं। प्राकृतिक अथवा कोर क्षेत्र वह है जहाँ का पारितन्त्र पूर्ण तथा कानूनी रूप से संरक्षित होता है। बफर क्षेत्र कोर क्षेत्र को घेरता है तथा इसमें विभिन्न प्रकार के स्रोत मिलते हैं जिन पर शैक्षिक व शोध गतिविधियाँ चलती रहती हैं। संक्रमण क्षेत्र जैवमण्डल रिजर्व का सबसे बाहरी क्षेत्र है। यहाँ पर स्थानीय लोगों द्वारा बहुत-सी क्रियाएँ; जैसे—रहन-सहन, खेती-बाड़ी, प्राकृतिक सम्पदा का आर्थिक उपयोग आदि होती रहती हैं।

जैवमण्डल रिजर्व के मुख्य कार्य

1. संरक्षण–आनुवंशिक स्रोतों, जातियों, पारितन्त्र आदि का संरक्षण करना।
2. विकास–सांस्कृतिक, सामाजिक तथा पारिस्थितिकीय स्रोतों का विकास।
3. वैज्ञानिक शोध तथा शैक्षणिक उपयोग–संरक्षण सम्बन्धी इन क्रियाओं से वैज्ञानिक शोध व सूचना का राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विनिमय होता है।

प्रश्न 2. जैव-विविधता के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-संसार में विभिन्न प्रकार के जीव मिलते हैं। इनके मध्य जटिल पारिस्थितिकीय सम्बन्ध, प्रजातियों के मध्य आनुवंशिक विविधता तथा अनेक प्रकार के पारितन्त्र आदि सम्मिलित हैं। जैव विविधता में तीन प्रमुख स्तर हैं
1. आनुवंशिकीय जैव विविधता (Genetic biodiversity),
2. जाति विविधता (Species diversity),
3. समुदाय व पारितन्त्र विविधता (Community and Ecosystem diversity)। ये सभी स्तर एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं, परन्तु इन्हें अलग से जाना व पहचाना जा सकता है

1. आनुवंशिकीय विविधता–प्रत्येक जाति चाहे जीवाणु हो या बड़े पादप अथवा जन्तु आनुवंशिक सूचनाओं को संचित रखते हैं, जो जीन में संरक्षित होती हैं। उदाहरण के लिए माइकोप्लाज्मा में लगभग 450.700 जीन।।

2. जाति विविधता–जाति, विविधता की पृथक् व निश्चित इकाई है। प्रत्येक जाति इकोसिस्टम अथवा पारितन्त्र में महत्त्वपूर्ण है। अतः किसी भी जाति की विलुप्तता पूरे पारितन्त्र पर प्रभाव डालती है। जाति विविधता किसी निश्चित क्षेत्र के अन्दर जातियों में विभिन्नता है। जाति की संख्या प्रति इकाई क्षेत्रको जाति धन्यता कहते हैं। जितनी जाति धन्यता अधिक होती है उतनी ही जाति विविधता अधिक होती है। प्रत्येक जाति के जीवों की संख्या भिन्न हो सकती है। इससे समानता (equality) पर प्रभाव पड़ता है।

3.समुदाय व पारितन्त्र विविधिता–समुदाय के स्तर पर पारितन्त्र में विविधता तीन प्रकार की होती है
(अ) एल्फा विविधता–यह विविधता समुदाय के अन्दर होती है। इस प्रकार की विविधता एक ही आवास व समुदाय में मिलने वाले जीवों के मध्य मिलती है। समुदाय/आवास बदलते ही जाति भी बदल जाती है।
(ब) बीटा विविधता–समुदायों व प्रवासों के मध्य बदलते जाति के विभव को बीटा विविधता कहते हैं। समुदायों में विभिन्न जातियों के संघटन में भिन्नता मिलती है।
(स) गामा विविधता-भौगोलिक क्षेत्रों में मिलने वाली सभी प्रकार जैव विविधता को गामा विविधता कहते हैं।

प्रश्न 3. जैव-विविधता से क्या अभिप्राय है? भारत में जैव-विविधता की सुरक्षा तथा संरक्षण के लिए क्या उपाय किये जा रहे हैं?
उत्तर-जैव-विविधता
जैव-विविधता से अभिप्राय जीव-जन्तुओं तथा पादप जगत् में पायी जाने वाली विविधता से है। संसार के अन्य देशों की भाँति हमारे देश के जीव-जन्तुओं में भी विविधता पायी जाती है। हमारे देश में जीवों की 81,000 प्रजातियाँ, मछलियों की 2,500 किस्में तथा पक्षियों की 2,000 प्रजातियाँ विद्यमान हैं। इसके अतिरिक्त 45,000 प्रकार की पौध प्रजातियाँ भी पायी जाती हैं। इनके अतिरिक्त उभयचरी, सरीसृप, स्तनपायी तथा छोटे-छोटे कीटों एवं कृमियों को मिलाकर भारत में विश्व की लगभग 70% जैव विविधता, पायी जाती है।

जैव-विविधता की सुरक्षा तथा संरक्षण के उपाय

वन जीव-जन्तुओं के प्राकृतिक आवास होते हैं। तीव्र गति से होने वाले वन-विनाश का जीव-जन्तुओं के आवास पर दुष्प्रभाव पड़ा है। इसके अतिरिक्त अनेक जन्तुओं के अविवेकपूर्ण तथा गैर-कानूनी आखेट के कारण अनेक जीव-प्रजातियाँ दुर्लभ हो गयी हैं तथा कई प्रजातियों का अस्तित्व संकट में पड़ गया है। अतएव उनकी सुरक्षा तथा संरक्षण आवश्यक हो गया है। इंसी उद्देश्य से भारत सरकार ने अनेक प्रभावी कदम उठाये हैं, जिनमें निम्नलिखित मुख्य हैं

1. देश में 14 जीव आरक्षित क्षेत्र (बायोस्फियर रिजर्व) सीमांकित किये गये हैं। अब तक देश में आठ जीव आरक्षित क्षेत्र स्थापित किये जा चुके हैं। सन् 1986 ई० में देश का प्रथम जीव आरक्षित क्षेत्र नीलगिरि में स्थापित किया गया था। उत्तर प्रदेश के हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में नन्दा देवी, मेघालय में नोकरेक, पश्चिम बंगाल में सुन्दरवन, ओडिशा में सिमलीपाल तथा अण्डमान- निकोबार द्वीप समूह में जीव आरक्षित क्षेत्र स्थापित किये गये हैं। इस योजना में भारत के विविध प्रकार की जलवायु तथा विविध वनस्पति वाले क्षेत्रों को भी सम्मिलित किया गया है। अरुणाचल प्रदेश में पूर्वी हिमालय क्षेत्र, तमिलनाडु में मन्नार की खाड़ी, राजस्थान में थार का मरुस्थल, गुजरात में कच्छ का रन, असोम में काजीरंगा, नैनीताल में कॉर्बेट नेशनल पार्क तथा मानस उद्यान को जीव आरक्षित क्षेत्र बनाया गया है। इन जीव आरक्षित क्षेत्रों की स्थापना का उद्देश्य पौधों, जीव-जन्तुओं तथा सूक्ष्म जीवों की विविधती तथा एकता को बनाये रखना तथा पर्यावरण-सम्बन्धी अनुसन्धानों को प्रोत्साहन देना है।

2. राष्ट्रीय वन्य-जीव कार्य योजना वन्य-जीव संरक्षण के लिए कार्य, नीति एवं कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत करती है। प्रथम वन्य-जीव कार्य-योजना, 1983 को संशोधित कर अब नयी वन्य-जीव कार्य योजना (2002-16) स्वीकृत की गयी है। इस समय संरक्षित क्षेत्र के अन्तर्गत 89 राष्ट्रीय उद्यान एवं 490 अभयारण्य सम्मिलित हैं, जो देश के सम्पूर्ण भौगोलिक क्षेत्र के 1 लाख 56 हजार वर्ग किमी क्षेत्रफल पर विस्तृत हैं।

3. वन्य जीवन( सुरक्षा) अधिनियम, 1972 जम्मू एवं कश्मीर को छोड़कर (इसका अपना पृथक् अधिनियम है) शेष सभी राज्यों द्वारा लागू किया जा चुका है, जिसमें वन्य-जीव संरक्षण तथा विलुप्त होती जा रही प्रजातियों के संरक्षण के लिए दिशानिर्देश दिये गये हैं। दुर्लभ एवं समाप्त होती जा रही प्रजातियों के व्यापार पर इस अधिनियम द्वारा रोक लगा दी गयी है। राज्य सरकारों ने भी ऐसे ही कानून बनाये हैं।

4. जैव-कल्याण विभाग, जो अब पर्यावरण एवं वन मन्त्रालय का अंग है, ने जानवरों को अकारण दी जाने वाली यन्त्रणा पर रोक लगाने सम्बन्धी शासनादेश पारित किया है। पशुओं पर क्रूरता पर रोक सम्बन्धी 1960 के अधिनियम में दिसम्बर, 2002 ई० में नये नियम सम्मिलित किये गये हैं। अनेक वन-पर्वो के साथ ही देश में प्रति वर्ष 1-7 अक्टूबर तक वन्यजन्तु संरक्षण सप्ताह मनाया जाती है, जिसमें वन्य-जन्तुओं की रक्षा तथा उनके प्रति जनचेतना जगाने के लिए विशेष प्रयास किये जाते हैं। इन सभी प्रयासों के अति सुखद परिणाम भी सामने आये हैं। आज राष्ट्रहित में इस बात की आवश्यकता है कि वन्य-जन्तु संरक्षण का प्रयास एक जन-आन्दोलन का रूप धारण कर ले।

प्रश्न 4. जैव संवेदी क्षेत्र अथवा हॉट-स्पॉट किसे कहते हैं? विश्व मानचित्र पर संसार के मुख्य हॉट- स्पॉट प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर-जैव संवेदी क्षेत्र वे क्षेत्र हैं जिनमें जैव विविधता स्पष्ट रूप से मिलती है। इस स्थान को मानव द्वारा अधिक हानि नहीं पहुँचानी चाहिए, ये स्थान धरोहर के रूप में रखने चाहिए जिससे दुर्लभ प्रजातियों को भी बचाकर रखा जा सके तथा प्राकृतिक पर्यावरण में उन्हें उगाया जा सके। नार्मन मेयर ने 1988 ई० में हॉट स्पॉट संकल्पना (Hot Spot Concept) विकसित की जिससे उन स्थानों का पता लगाया जहाँ स्वस्थाने (in situ) संरक्षण किया जा सके। हॉट स्पॉट धरती पर पादप व जन्तु के जीवन में दुर्लभ प्रजातियों के सबसे धनी भण्डार (richest reservoirs) कहते हैं। हॉट स्पॉट को पहचानने के लिए निम्नांकित तथ्यों को ध्यान में रखा जाता है

1. एण्डेमिक (endemic) प्रजातियों की संख्या अर्थात् ऐसी प्रजातियाँ जो और कहीं नहीं मिलती हैं।

2. प्राकृतिक आवास के बिगड़ते सन्दर्भ में प्रजातियों को होने वाली हानि अथवा चेतावनी के आधार पर संसर में लगभग 25 स्थलीय हॉट स्पॉट जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए पहचाने गए हैं। ये सभी हॉट स्पॉट पृथ्वी के लगभग 1.4% भू-भाग पर विस्तृत हैं। 15 हॉट स्पॉट में ट्रॉपिकल वनों (Tropical Forest), 5 मेडीटेरेनियन प्रकार के क्षेत्रों में (Mediterranean type zone) , तथा लगभग 9 हॉट स्पॉट द्वीपों (Islands) में विस्तृत हैं। 16 हॉट स्पॉट उष्णकटिबन्धीय क्षेत्र में | मिलते हैं (चित्र 16.1)। लगभग 20% जनसंख्या इन हॉट स्पॉट क्षेत्रों में रहती है।

संसार के 25 हॉट स्पॉट क्षेत्रों में से 2 भारत में मिलते हैं जो समीपवर्ती पड़ोसी देशों तक फैले हुए हैं; जैसे–पश्चिमी घाटे व पूर्वी हिमालय क्षेत्र।

प्रश्न 5. संकटापन्न प्रजातियों से आप क्या समझते हैं? संकटापन्न प्रजातियों को वर्गीकृत कीजिए।
उत्तर-इसमें वे सभी प्रजातियाँ सम्मिलित हैं जिनके लुप्त हो जाने का खतरा है। जिस तेजी से वनों का विनाश विभिन्न मानवीय आवश्यकताओं के लिए हो रहा है तथा जलवायु में परिवर्तन हुए हैं, उससे विश्व की विभिन्न प्रजातियाँ संकटग्रस्त हो गई हैं। विलुप्त हो रही प्रजातियों को निम्नलिखित वर्गों में रखा जाता है

I. संकटग्रस्त जातियाँ
ये जीवों (पादप तथा जन्तु) की वे जातियाँ हैं जिनकी संख्या कम हो गई है या तेजी से कम हो रही है। तथा इनके आवास इतने कम हो गए हैं कि इनके लुप्त होने का भय है।

II. सुभेद्य जातियाँ
इसमें जीवों की वे जातियाँ सम्मिलित हैं जिनके पौधे पर्याप्त संख्या में अपने प्राकृतिक आवासों में पाए। जाते हैं, परन्तु यदि भविष्य में इनके वातावरण में प्रतिकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं, तो इनका निकटभविष्य मे विलुप्त होने का भय है।

III. दुर्लभ जातियाँ
ये उन पौधों की जातियाँ हैं, जिनकी संख्या संसार में बहुत कम है। इनके आवास विश्व में सीमित संख्या मे हैं। इनके विलुप्त होने का भय सदैव बना रहता है।

प्रश्न 6. भारत के प्रमुख वन्य जन्तुओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर-भारत के प्रमुख जन्तुओं को निम्नलिखित वर्गों में रखा जा सकता है

  • उभयचर-मेंढक, टोड, पादविहीन उभयचर (limbless amphibians), सरटिका आदि।
  • सरीसृप-जंगली छिपकली, गिरगिट, घड़ियाल, मगर, सर्प, कछुआ आदि।
  • पक्षी–गिद्ध, बाज, मोर, मैना कोयल, गरुड़ सारस, बतख, उल्लू, नीलकंठ, हंस, बुलबुल, कठफोड़वा, बगुला आदि।
  • स्तनी–बब्बर शेर, भेड़िया, रीछ, लोमड़ी, बन्दर, हाथी लकड़बग्घा, हिरण, गिलहरी, याक, खरहा, लंगूर गिब्बन, गैंडा, भेड़, लोरिस, गधा आदि।
    भारत में मुख्य वन्य जन्तु निम्नलिखित हैं

(क) भारतीय मगरमच्छ—ये तीन प्रकार के होते हैं(i) घड़ियाल (यथा Goviglis gungeticus), (ii) खारे जल के मगरमच्छ (यथा Crocodylus parosus), (iii) स्वच्छ जल के मगरमच्छ (यथा Crocodylus palustrust)। इनके प्रजनन के मुख्य केन्द्र आन्ध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, केरल, गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक तथा ओडिशा आदि राज्य हैं।
(ख) भारतीय मोर—यह भारत का राष्ट्रीय पक्षी (national bird) है।
(ग) भारतीय बस्टर्ड—यह विश्व का सबसे तेज उड़ने वाला पक्षी है, यह अब दुर्लभ है। यह पक्षी गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक तथा राजस्थान के वनों में मिलता है।
(घ) भारतीय हाथी—यह हिमालय की तराई, केरल, कर्नाटक आदि राज्यों में मिलता है।
(ङ) भारतीय शेर—यह गुजरात के गिर वन (Gir forest) में मिलता है।
(च) भारतीय बाघ– भारतवर्ष में बाघ अभयारण्य (Tiger reserves) हैं–काबेंट, दुधवा, कान्हा, रणथम्भौर, सरिस्का, सुन्दर वन, भेलघाट, बद्रीपुर, बुक्स, पेरियार, नमदफ आदि।
(छ) होर्न बिल–यह एक बड़ा पक्षी है जिसका शिकार आदिवासियों द्वारा मांस के लिए किया जाता है।
(ज) भारतीय गेंडा—इसका शिकार सींगों (horms) के लिए किया जाता है। यह उत्तरी भारत के गंगा नदी के मैदानी भागों में मिलता है।

प्रश्न 7. वन्य जन्तुओं की विलुप्ति के मुख्य कारण बताइए।
उत्तर-वन्य जन्तुओं की विलुप्ति के निम्नलिखित कारण हैं

1. जनसंख्या में तीव्र वृद्धि-विश्व में जनसंख्या अनियन्त्रित रूप से बढ़ रही है। इसके लिए मानव ने अव्यवस्थित रूप से वन्य जन्तुओं के प्राकृतिक आवासों को हानि पहुँचाई है। कृषि योग्य भूमि, आवास व्यवस्था, सड़क निर्माण, उद्योग के विकास के लिए वनों को काटा गया। इन सभी के कारण वन्य जीवों के प्राकृतिक आवासों में कमी आई है। यह वन्य जातियों की विलुप्ति का प्रमुख कारण है।

2. औद्योगीकरण-औद्योगीकरण के लिए बिना किसी योजना के वनों का शोषण बड़े स्तर पर हुआ | है जिस कारण वन्य जन्तुओं के आवास सीमित हुए हैं। इससे अनेक प्रजातियों के संकटग्रस्त होने को भय उत्पन्न हो गया है।

3. प्रदूषण-प्राकृतिक आवासों में प्रदूषण होने से जन्तुओं को विषमताओं का सामना करना पड़ता है। प्रदूषण के कारण कभी-कभी कुछ अति हानिकारक गैसें उत्पन्न होती हैं जिससे जन्तुओं के स्वास्थ्य को हानि होती है तथा वे मर भी सकते हैं।

4. आखेट-प्राचीनकाल से ही भारववर्ष में अनेक मुगल सम्राटों, अंग्रेजी शासकों व राजा-महाराजाओं का आखेट करना प्रिय शौक रहा, फलस्वरूप वन्य जन्तुओं को मारा गया। मांस का भोजन के रूप में प्रयोग भी इनकी विलुप्ति का प्रमुख कारण है। स्वतन्त्रता के बाद आखेट पर सरकार ने कानूनी नियन्त्रण स्थापित किया है।

5. मानवीय क्रियाकलापमानव-की धन के लिए लालसा सर्वविदित है। वन्य जन्तुओं का शिकार कर उनकी खाल, दाँत, सींग, नख आदि का निर्यात करंके करोड़ों रुपये कमाने के लालच में वन्य जन्तुओं का विनाश किया जा रहा है।

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