UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 7 Introduction to Remote Sensing (सुदूर संवेदन का परिचय)

By | June 5, 2022

UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 7 Introduction to Remote Sensing (सुदूर संवेदन का परिचय)

UP Board Solutions for Class 11 Geography: Practical Work in Geography Chapter 7 Introduction to Remote Sensing (सुदूर संवेदन का परिचय)

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. दिए गए चार विकल्पों में सही उत्तर का चुनाव करें
(i) धरातलीय लक्ष्यों का सुदूर संवेदन विभिन्न साधनों के माध्यम से किया जाता है; जैसे
(क) ABC
(ख) BCA
(ग) CAB
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(ख) BCA.

(ii) निम्नलिखित में से कौन-से विद्युत चुम्बकीय विकिरण क्षेत्र का प्रयोग उपग्रह सुदूर संवेदन में नहीं होता है?
(क) सूक्ष्म तरंग क्षेत्र
(ख) अवरक्त क्षेत्र
(ग) एक्स-रे क्षेत्र
(घ) दृश्य क्षेत्र
उत्तर-(ग) एक्स-रे क्षेत्र।

(iii) चाक्षुष व्याख्या तकनीक में निम्न में से किस विधि का प्रयोग नहीं किया जाता है?
(क) धरातलीय लक्ष्यों की स्थानीय व्यवस्था
(ख) प्रतिबिम्ब के रंग परिवर्तन की आवृत्ति
(ग) लक्ष्यों को अन्य लक्ष्यों के सन्दर्भ में
(घ) आंकिक बिम्ब प्रक्रमण
उत्तर-(घ) आंकिक बिम्ब प्रक्रमण।

प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें
(i) सुदूर संवेदन अन्य पारम्परिक विधियों से बेहतर तकनीक क्यों है?
उत्तर–सुदूर संवेदन युक्तियाँ ऊर्जा के वृहत्तर परिसर तथा विकिरण, परावर्तित, उत्सर्जित, अवशोषित तथा पारगत ऊर्जा पर आधारित हैं। इस पद्धति द्वारा निर्मित चित्र वस्तुस्थिति एवं भौगोलिक सामग्री का सटीक प्रदर्शन करते हैं, जबकि परम्परागत विधियाँ अनुमानों, आकलनों तथा गणितीय गणनाओं पर आधारित होती हैं जिसमें वस्तुस्थिति और क्षेत्रीय सामग्री का विशुद्ध प्रदर्शन असम्भव है, इसलिए सुदूर संवेदन को अन्य । पारस्परिक विधियों से अधिक श्रेष्ठ तकनीक माना जाता है।

(ii) आई० आर०एस० व इंसेट क्रम के उपग्रहों में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-आई०आर०एस० ( भारतीय सुदूर संवेदन) उपग्रह इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर प्रक्षेपित किए गए हैं कि इनका उपयोग भू-संसाधन, सर्वेक्षण और प्रबन्धन तथा दूरसंचार में प्रगति हेतु किया जा सके, जबकि इंसेट क्रम के उपग्रहों के माध्यम से टीवी प्रसारण, दूरसंचार, मौसम विज्ञान, जल विज्ञान तथा समुद्र विज्ञान सम्बन्धी सूचनाएँ प्राप्त हो सकें। इन दोनों प्रकार के उपग्रहों में विशेषतागत अन्तर निम्नांकित तालिका के माध्यम से भी देखा जा सकता है।

तालिका 7.1: आई०आर०एस० व इंसेट क्रम के उपग्रहों में अन्तर

(iii) पुशबूम क्रमवीक्षक की कार्यप्रणाली का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-पुशबूम क्रमवीक्षक बहुत सारे संसूचकों पर आधारित होता है, जिसमें क्षैतिज अक्ष पर घूर्णन करने वाले दर्पण की जगह एक लेंस लगा रहता है जो उड़ान मार्ग के समानान्तर सम्पूर्ण रेखीय जाल के आधार पर धरातल का संवेदन करता है। अत: इसकी कार्यप्रणाली बहुत सारे संसूचकों पर आधारित है, जिनकी संख्या विभेदन के कार्यक्षेत्र को क्षेत्रीय विभेदन से विभाजित करने से प्राप्त संख्या के समान होती है (चित्र 7.2)।
नोट-अधिक स्पष्टता के लिए बॉक्स 7.1 में दिए गए उदाहरण का अवलोकन करें।

बॉक्स 7.1

उदाहरण के लिए, फ्रांस के सुदूर संवेदन उपग्रह स्पॉट (SPOT) में लगे हुए उच्च विभेदन दृश्य विकिरणमापी संवेदन का कार्यक्षेत्र 60 किमी है तथा उसका क्षेत्रीय विभेदन 20 मीटर है। अगर हम 60 किलोमीटर अथवा 60,000 मीटर को 20 मीटर से विभाजित करें तो हमें 3,000 का आँकड़ा प्राप्त होगा अर्थात् SPOT में लगे HRV-I संवेदक में 3,000 संसूचक लगाए गए हैं। पुशबूम स्कैनर में सभी डिटेक्टर पंक्ति में क्रमबद्ध होते हैं और प्रत्येक डिटेक्टर पृथ्वी के ऊपर अधोबिन्दु दृश्य पर 20 मीटर के आयाम वाली परावर्तित ऊर्जा का संग्रहण करते हैं (चित्र 7.2)।

प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दें|
(i) विस्क-ब्रूम क्रमवीक्षक की कार्यविधि का चित्र की सहायता से वर्णन करें तथा यह भी बताएँ कि यह पुशबूम क्रमवीक्षक से कैसे भिन्न है?
उत्तर-क्रमवीक्षक (Scanner) सुदूर संवेदन उपग्रहों में संवेदन के रूप में कार्य करने वाले उपकरण हैं। ये क्रमवीक्षण (मशीन से संचालित दर्पण) हैं जो दृश्य क्षेत्र पर दृष्टि दौड़ते ही वस्तुओं को चित्रित कर लेते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं–(i) विस्क-बूम क्रमेवीक्षक (Cross Track Scanner), जिसमें घूमने वाला दर्पण व एकमात्र संसूचक स्पेक्ट्रम लगा होता है। (i) पुशबूम क्रमवीक्षक (Along Track Scanner), जिसमें क्षैतिज अक्ष पर घूर्णन करने वाले दर्पण के स्थान पर लेंस लगा रहता है तथा बहुत सारे संसूचकों द्वारा उड़ान मार्ग के समान्तर सम्पूर्ण रेखीय जाल के आधार पर धरातल का संवेदन करता है।

विस्क-ब्रूम क्रमवीक्षक में एक घूमने वाला दर्पण व एकमात्र संसूचक लगा होता है। इसका दर्पण इस प्रकार से विन्यासित होता है कि जब यह एक चक्कर पूरा करता है तो संसूचक स्पेक्ट्रम के दृश्य एवं अवरक्त क्षेत्रों में बहुत सारे सँकेरे स्पेक्ट्रमी बैंडों में प्रतिबिम्ब प्राप्त करते हुए दृश्य क्षेत्र में 90° से 120° के मध्य भाग को कवर करता है। संवेदक का यह पूरा क्षेत्र, जहाँ तक वह पहुँच सकता है, उसे स्कैनर का कुल दृश्य क्षेत्र कहा जाता है। पूरे क्षेत्र के क्रमवीक्षण के लिए संवेदक का प्रकाशयुक्त भाग एक निश्चित आयाम का होता है, जिसे तात्कालिक दृश्य क्षेत्र कहा जाता है। चित्र 7.3 में विस्क-ब्रूम स्कैनर की प्रक्रिया को दर्शाया गया है। अत: यह पुशबूम स्कैनर से इस रूप में भिन्न है कि इसमें क्षैतिज अक्ष पर घूर्णन करने वाले दर्पण पर लगे टेलिस्कोप की सहायता से धरातल के दृश्य संवेदक पर अंकित होते हैं जबकि पुशबूम में यह कार्य लेंस और बहुत सारे संसूचकों द्वारा पूरा होता है।

(ii) चित्र 7.9 (पाठ्य-पुस्तक भूगोल में प्रयोगात्मक कार्य) में हिमालय क्षेत्र की वनस्पति आवरण में बदलाव को पहचानें व सूचीबद्ध करें।
उत्तर-चित्र (पाठ्य-पुस्तक चित्र-7.9, पृष्ठ 105) में भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह द्वारा प्राप्त हिमालय तथा उत्तरी मैदान का है। इसमें बाएँ चित्र में मई एवं दाएँ चित्र में नवम्बर माह की परिवर्तित वनस्पति और अन्य भौगोलिक विशेषताओं को प्रदर्शित किया गया है।

ये प्रतिबिम्ब वनस्पति के प्रकार में अन्तर को दर्शाते हैं। मई के प्रतिबिम्ब में चित्र में दिखाई दे रहे लाल धब्बे शंकुधारी वन दर्शाते हैं। नवम्बर के प्रतिबिम्ब में दिखाई दे रहे अतिरिक्त लाल धब्बे पर्णपाती वने दर्शाते हैं तथा हल्का लाल रंग फसल को दर्शाता है।

परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. सुदूर संवेदन तकनीकी से आप क्या समझते हैं? इस तकनीकी से आँकड़े प्राप्त करने की प्रक्रिया का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर-सुदूर संवेदन तकनीकी एक सूचना संग्रहण तकनीक है। इसके लिए विद्युत प्रकाशित यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है। इसमें सबसे अधिक प्रयोग में आने वाली विधि विद्युत चुम्बकीय विकिरण के संवेदन पर आधारित है जो वस्तुओं से निरन्तर परावर्तित होती है। अत: वस्तुओं को स्पर्श किए बिना दूर से ही उनके विषय में सूचनाएँ एकत्र करने के विज्ञान को सुदूर संवेदन कहते हैं।

सुदूर संवेदन स्तर

चित्र 7.4 में उस प्रक्रिया को स्पष्ट किया गया है जो सुदूर संवेदन आँकड़ों को प्राप्त करने में प्रयुक्त होती है। इस प्रक्रिया के निम्नलिखित स्तर या अवस्थाएँ हैं

  1. ऊर्जा का स्रोत,
  2. स्रोत से पृथ्वी तक ऊर्जा का स्थानान्तरण,
  3. पृथ्वी के धरातल के साथ ऊर्जा की अन्योन्य क्रिया,
  4. परावर्तित/उत्सर्जित ऊर्जा का वायुमण्डल से प्रवर्धन,
  5. परावर्तित/उत्सर्जित ऊर्जा का संवेदन द्वारा अभिसूचन,
  6. प्राप्त ऊर्जा का फोटोग्राफी/अंकीय आँकड़ों के रूप में अभिसरण,
  7. आँकड़ा उत्पाद से विषयानुरूप सूचना को निकालना,
  8. मानचित्र एवं सारणी के रूप में आँकड़ों एवं सूचनाओं का अभिसारण।

सुदूर संवेदन तकनीकी में ऊर्जा का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत सूर्य है। सूर्य से ऊर्जा तरंगो के रूप में विस्तारित होकर प्रकाशगति (3,00,000 किमी/सेकण्ड की दर से) पृथ्वी के धरातल तक पहुंचती है। इसी ऊर्जा संचरण को विद्युत चुम्बकीय विकिरण कहा जाता है। सुदूर संवेदन में दृश्य ऊर्जा क्षेत्र, अवरक्त क्षेत्र व सूक्ष्म तरंग क्षेत्र सबसे अधिक उपयोगी है।

संचारित ऊर्जा भूतल पर उपस्थित वस्तुओं के साथ अन्योन्य क्रिया करती है। इससे वस्तुओ द्वारा ऊर्जा का अवशोषण, प्रेषण, परावर्तन व उत्सर्जन होता है। अन्ततः तैयार ऊर्जा पृथ्वी के तत्वों को प्रभावित करती है। इससे ऊर्जा का शोषण, स्थानान्तरण और परावर्तन होता है।

सुदूर संवेदन तकनीकी में प्रयुक्त संवेदक ऊर्जा का अभिलेख (रिकॉर्ड) रखते हैं और विकिरण विद्युतीकरण से डिजिटल इमेज में परावर्तित करते हैं। पृथ्वी पर डाडा इमेज प्राप्त हो जाने के बाद गलतियों का सुधार किया जाता है तथा सूचनाओं को इकाई में परिवर्तित कर मानचित्र प्राप्त किए जाते हैं।

प्रश्न 2. संवेदक क्या है? संवेदन विभेदन के प्रकार बताइए।
उत्तर-संवेदक संवेदक वह उपकरण/युक्ति है जो विद्युत-चुम्बकीय विकिरण ऊर्जा को एकत्रित करते हैं, उन्हें संकेतकों में बदलते हैं तथा उपयुक्त आकारों में प्रस्तुत करते हैं। आँकड़ा उत्पाद के आधार पर संवेदक दो प्रकारे के होते हैं

  • फोटोग्राफी संवेदक (कैमरा) तथा
  • आंकिक संवेदक (स्कैनर)।

फोटोग्राफी संवेदक (कैमरा) किसी भी लक्ष्य बिन्दुओं को एक क्षण में अभिलेखित कर लेता है, जबकि आंकिक संवेदक लक्ष्य के प्रतिबिम्ब को पंक्ति-दर-पंक्ति अभिलेखित करता है। सुदूर संवेदन उपग्रहों में आंकिक संवेदक का ही प्रयोग अधिक किया जाता है।

संवेदन विभेदन

सुदूर संवेदक धरातलीय (Spatial), वर्णक्रमीय (Spectral) तथा विकिरणमितीय विभेदनयुक्त होते हैं, जो विभिन्न धरातलीय अवस्थाओं से सम्बन्धित उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं

1. धरातलीय विभेदन-धरातलीय विभेदन भू-पृष्ठ पर दो साथ-साथ स्थित परन्तु भिन्न वस्तुओं को पहचानने की संवेदक क्षमता से सम्बन्धित है। यह एक नियम है कि धरातलीय विभेदन बढ़ने के साथ भू-पृष्ठ की छोटी-से-छोटी चीज को पहचानना व स्पष्ट रूप से देखा जाना सम्भव हो सकता है। हमारी आँखों पर लगने वाला चश्मा इसी कार्य को करता है तभी हम चश्मे के प्रयोग से पुस्तक में लिखे अक्षरों को स्पष्ट रूप से पढ़ते हैं।

2. वर्णक्रमीय स्पेक्ट्रम विभेदन-यह विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम के विभिन्न ऊर्जा क्षेत्रों (बैंड) में संवेदक के अभिलेखन की क्षमता से सम्बन्धित है। जिस प्रकार तरंगों के प्रकीर्णने से इन्द्रधनुष बनता है या हम प्रयोगशाला में प्रिज्म का प्रयोग करते हैं, उसी सिद्धान्त के विस्तृत प्रयोग से हम इन मल्टीस्पेक्ट्रल प्रतिबिम्बों को प्राप्त करते हैं।

3. रेडियोमीटिक विभेदन-विकिरणमितीय या रेडियोमीट्रिक विभेदन संवेदक की दो भिन्न लक्ष्यों की भिन्नता को पहचानने सम्बन्धित है। जितना रेडियोमीट्रिक विभेदन अधिक होगा, विकिरण अन्तर उतना ही कम होगा। इससे दो लक्ष्य क्षेत्रों के मध्य अन्तर को जाना जा सकता है।

प्रश्न 3. अंकीय प्रतिबिम्ब से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-अंकीय प्रतिबिम्ब अलग-अलग पिक्चर तत्त्वों के मेल से बनते हैं। इन्हें पिक्सल (Pixels) कहा जाता है। इमेज में हर पिक्सल का एक अंकीय मान होता है जो धरातल के द्विविमीय-बिम्ब को इंगित करता है। अंकीय मान को अंकीय नम्बर (DN) कहा जाता है। एक डिजिटल नम्बर एक पिक्सल के विकिरण माने का औसत होता है। यह मान संवेदक द्वारा विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा पर आधारित है। इसकी गहनता का स्तर इसके प्रसार (Range) को व्यक्त करता है (चित्र 7.6)।

प्रश्न 4. प्रतिबिम्ब (Image) में प्रदर्शित तथ्यों की पहचान किस प्रकार की जाती है? समझाइए।
उत्तर-सामान्यत: प्रतिबिम्ब में प्रदर्शित तथ्यों की पहचान और उनका विभेदन दो विधियों पर आधारित है

  • कम्प्यूटर-आधारित सॉफ्टवेयर द्वारा DN मूल्य (0-255)।
  • प्रतिबिम्ब और उससे सम्बन्धित मानचित्र में तुलना करके।

प्रतिबिम्ब और उससे सम्बन्धित मानचित्र में अंकित तत्त्वों के वितरण और स्थिति निर्धारण की प्रक्रिया तुलनात्मक अध्ययन द्वारा पूरी की जाती है। केवल प्रतिबिम्ब को देखकर विभिन्न प्राकृतिक तथा मालवीय तथ्यों की पहचान निम्न प्रकार की जा सकती है

मौखिक परीक्षा के लिए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. उपग्रह चित्रों की व्याख्या के प्रमुख तत्त्वों के नाम लिखिए।
उत्तर-उपग्रह चित्रों की व्याख्या के तत्त्व हैं-आकार, आकृति, छाया, आभा, रंग, बनावट, प्रतिरूप, सम्बन्धित तत्त्व।

प्रश्न 2. इमेजरी क्या है?
उत्तर-सुदूर संवेदन तकनीकी से प्राप्त प्रतिबिम्ब।

प्रश्न 3. भारत के दो उपग्रह जो सुदूर संवेदन से सम्बन्धित हों, के नाम बताओ।
उत्तर-(i) IRS-1A-1988 (ii) IRS-1B-1991.

प्रश्न 4. भारत में कितने राष्ट्रीय तथा प्रादेशिक स्तर के सूचना संवेदन केन्द्र हैं?
उत्तर-भारत में राष्ट्रीय तथा प्रादेशिक स्तर के 350 सूचना संवेदन केन्द्र हैं।

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