UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 4 The Central Islamic Lands (इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570 – 1200 ई०)

By | June 5, 2022

UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 4 The Central Islamic Lands (इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570 – 1200 ई०)

UP Board Solutions for Class 11 History Chapter 4  The Central Islamic Lands (इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570 – 1200 ई०)

पाठ्य – पुस्तक के प्रश्नोत्तर
संक्षेप में उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
सातवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में बेदुइओं के जीवन की क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर :
बेदुइओं के जीवन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

(i) अनेक अरब कबीले बेदूइन या बद्दू या खानाबदोश होते थे।
(ii) ये अपने खाद्य (खजूर) और अपने ऊँटों के लिए चारे की तलाश में रेगिस्तान के सूखे क्षेत्रों से हरे-भरे क्षेत्रों (नखलिस्तान) की ओर जाते रहते थे।
(iii) इनमें से कुछ नगरों में बस गए और व्यापार करने लगे।
(iv) खलीफा के सैनिकों में ज्यादा बदू ही थे। ये रेगिस्तान के किनारे बसे शिविर शहरों; जैसे कुफा तथा बसरा में रहते थे।

प्रश्न 2.
अब्बासी क्रान्ति’ से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
उमय्यदों के विरुद्ध ‘दावा’ नामक एक सुसंगठित आंदोलन हुआ, फलस्वरूप उनका पतन हो गया। सन् 1750 में उनके स्थान पर मक्काई मूल के अन्य परिवार (अब्बासिदों) को स्थापित कर दिया गया। वास्तव में अब्बासिदों ने उमय्यद शासन की जमकर आलोचना की और पैगम्बर द्वारा स्थापित मूल इस्लाम को पुनः बहाल कराने का वादा किया। वे उसमें सफल भी रहे। इसे ही अब्बासी । क्रान्तिं की संज्ञा दी गई है। इस क्रान्ति से राजवंश में परिवर्तन के साथ राजनीतिक संरचना में बहुत परिवर्तन हुआ।

प्रश्न 3.
अरबों, ईरानियों व तुर्को द्वारा स्थापित राज्यों की बहुसंस्कृतियों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
अरबों, ईरानियों और तुर्को द्वारा स्थापित राज्य जातीय पक्षपातरहित थे। ये राज्य किसी एकल राजनीतिक व्यवस्था या किसी संस्कृति की एकल भाषा (अरबी) के बजाय सामान्य अर्थव्यवस्था व संस्कृति के कारण सम्बद्ध रहे। मध्यवर्ती इस्लामी देशों में व्यापारी, विद्वान् तथा कलाकार स्वतन्त्र रूप से आते जाते थे। इस प्रकार विचारों तथा तौर-तरीकों का प्रसार हुआ।

प्रश्न 4.
यूरोप व एशिया पर धर्मयुद्धों का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर :
यूरोप व एशिया पर धर्मयुद्ध का निम्नलिखित प्रभाव पड़ा
(i) मुस्लिम राज्यों ने अपने ईसाई प्रजाननों के प्रति कठोर रवैया अपनाया। विशेष रूप से यह स्थिति युद्धों में देखी गई।
(ii) मुस्लिम सत्ता की बहाली के पश्चात् भी पूर्व तथा पश्चिम के मध्य इटली के व्यापारिक समुदायों का अपेक्षाकृत अधिक प्रभाव था।

संक्षेप में निबन्ध लिखिए।

प्रश्न 5.
रोमन साम्राज्य के वास्तुकलात्मक रूपों से इस्लामी वास्तुकलात्मक रूप किस प्रकार भिन्न थे?
उत्तर :
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रोमन साम्राज्य के महामंदिरों के अनुरूप ही इस्लामी दुनिया में भी धार्मिक इमारतें इस्लामी दुनिया की सबसे बड़ी बहारी प्रतीक थीं। स्पेन से मध्य एशिया तक फैली हुई मस्जिदें, इबादतगाह और मकबरों का मूल्लू डिजाइन समान था। मेहराबें, गुम्बद, मीनार और खुले सहन आदि इमारतें मुसलमानों की आध्यात्मिकता और व्यावहारिक आवश्यकताओं को अभिव्यक्त करती हैं। इस्लाम की प्रथम सदी में, मस्जिद ने एक विशिष्ट वास्तुशिल्पीय रूप (खम्भों के सहारे वाली छत) प्राप्त कर लिया था जो प्रादेशिक विभिन्नताओं से परे था। मस्जिद में एक खुला प्रांगण या सहन होता जहाँ एक फव्वारा या जलाशय बनाया जाता था। यह प्रांगण एक बड़े कमरे की ओर खुलता, जिसमें नमाज पढ़ने वाले लोगों की लम्बी पंक्तियों और नमाज का नेतृत्व करने वाले इमाम के लिए काफी स्थान होता उमय्यदों ने नखलिस्तानों में ‘मरुस्थली महल’ कल्पना कीजिए कि इस पेड़ पर खलीफा विराजमान है। दिए गए चित्र में शान्ति व युद्ध का चित्रण किया गया है। बनाए। उदाहरण के लिए-फिलिस्तीन ने खिरबत-अल-मफजर और जोर्डन में कैसर अमरा जो विलासपूर्ण निवास स्थानों, शिकार और मनोरंजन के लिए विश्रामस्थलों के रूप में प्रयोग किए गए थे। महल रोमन और सासायनियन वास्तुशिल्प के तरीके से बनाए। गए थे। उन्हें चित्रों, प्रतिमाओं और पच्चीकारी से सजाया जाता था। रोम की वास्तुकला अत्यधिक दक्षपूर्ण थी। उनके द्वारा सर्वप्रथम कंकरीट का प्रयोग प्रारम्भ किया गया था। वे पत्थरों व ईंटों को मजबूती से जोड़ सकते थे। रोम के वास्तुकारों ने दो वास्तुशिल्पीय सुधार किए– (i) डाट, (ii) गुम्बद। रोम में इमारतें दो या तीन मंजिलों वाली होती थीं। इनमें डालें (Arches) ठीक एक के ऊपर । मेसोपोटामिया की का प्रयोग कोलोजियम बनाने में किया था। वास्तुकला की परम्पराओं से प्रेरित यह कई शताब्दियों तक दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद थी। डाटों का प्रयोग नहर बनाने के लिए भी किया जाता था। रोम के प्रसिद्ध मंदिर पैन्थियन में । औंधे कटोरे की तरह गुम्बद छत थी। यहाँ रोम वास्तुकला के कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं
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प्रश्न 6.
रास्ते पर पड़ने वाले नगरों का उल्लेख करते हुए समरकन्द से दमिश्क तक की यात्रा का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
समरकन्द से दमस्कस के मार्ग पर मर्व खुरसाम, निशापुर दायलाम, इसफाइन, समारा, बगदाद, कुफा, कुसायुर, अमरा, जेरूसलम आदि शहर स्थित हैं। व्यापारी या यात्री दो रास्तों लाल सागर और फारस की खाड़ी से होकर जाते थे। लम्बी दूरी के व्यापार के लिए उपयुक्त और उच्च मूल्य वाली वस्तुओं; यथा-मसालों, कपड़ों, चीनी मिट्टी की वस्तुओं और बारूद को भारत और चीन से लाल सागर के अदन और ऐधाव तक और फारस की खाड़ी के पत्तन सिराफ और बसरा तक जहाज पर लाया जाता था। वहाँ से माल को जमीन पर ऊँटों के काफिलों द्वारा बगदाद, दमिश्क और समरकन्द तक भेजा जाता था।
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परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
इस्लाम धर्म निम्नलिखित में से किसने चलाया था?
(क) मुहम्मद साहब ने
(ख) अब्राहम ने (ग) इस्माइल ने
(घ) खलीफा उमर ने
उत्तर :
(क) मुहम्मद साहब ने

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन-सा इस्लाम धर्म का पवित्र ग्रन्थ है?
(क) कुरान शरीफ
(ख) हदीस
(ग) एन्जील
(घ) ओल्ड टेस्टामेण्ट
उत्तर :
(क) कुरान शरीफ

प्रश्न 3.
अरब में मुस्लिम साम्राज्य के संस्थापक कौन थे?
(क) खलीफा अबू बकर
(ख) खलीफा उमर
(ग) पैगम्बर मुहम्मद
(घ) खलीफा अली
उत्तर :
(ख) खलीफा उमर

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन-सा नगर धर्मनिष्ठ खलीफाओं की राजधानी था?
(क) मक्का
(ख) मदीना
(ग) बगदाद
(घ) कुफा
उत्तर :
(ख) मदीना

प्रश्न 5.
अब्बासी खलीफाओं की राजधानी कौन-सा नगर था? 
(क) जेरूसलम
(ख) बगदाद
(ग) मक्का
(घ) बसरा
उत्तर :
(ख) बगदाद

प्रश्न 6.
मुहम्मद साहब का जन्म कब हुआ था?
(क) 540 ई० में
(ख) 560 ई० में
(ग) 570 ई० में
(घ) 575 ई० में
उत्तर :
(ग) 570 ई० में

प्रश्न 7.
अब्बासी खलीफाओं में सबसे अधिक प्रसिद्ध है
(क) अल मंसूर
(ख) हारून-अल-रशीद
(ग) अल बाथिक
(घ) अल मामून
उत्तर :
(ख) हारून-अल-रशीद

प्रश्न 8.
‘शाहनामा’ का लेखक कौन था?
(क) शेख सादी
(ख) अल राजी
(ग) उमर खय्याम
(घ) फिरदौसी
उत्तर :
(घ) फिरदौसी।

प्रश्न 9.
‘चट्टान को गुम्बद कहाँ पर स्थित है?

(क) बसरा
(ख) दमिश्क
(ग) जेरूसलम
(घ) बगदाद
उत्तर :
(ग) जेरूसलेम

प्रश्न 10.
अरब का प्रसिद्ध संगीतकार कौन था?
(क) अल रेहान
(ख) फिरदौसी
(ग) गजाली
(घ) अल अगानी
उत्तर :
(ग) गजाली

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अरब प्रायद्वीप में कौन-कौन से देश सम्मिलित हैं?
उत्तर :
अरब प्रायद्वीप में टर्की, मिस्र, सीरिया, इराक, ओमान, बहरीन, ईरान आदि देश सम्मिलित हैं।

प्रश्न 2.
अरब के मुस्लिम पंचांग का निर्माण किसने किया था?
उत्तर :
अरब के मुस्लिम पंचांग का निर्माण उमर खैयाम ने किया था।

प्रश्न 3.
रसायनशास्त्र में अरब निवासी क्या-क्या बनाना जानते थे?
उत्तर :
अरब निवासी रसायनशास्त्र में चॉदी का घोल, पोटाश, शोरे एवं गन्धक का तेजाब तथा इत्र आदि बनाना जानते थे।

प्रश्न 4.
इस्लाम धर्म के प्रवर्तक कौन थे?
उत्तर :
इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हजरत मुहम्मद साहब थे।

प्रश्न 5.
इस्लाम धर्म की पवित्र पुस्तक का नाम लिखिए।
उत्तर :
इस्लाम धर्म की पवित्र पुस्तक ‘कुरान शरीफ’ है।

प्रश्न 6.
मुहम्मद साहब का जन्म कब तथा किस नगर में हुआ था?
उत्तर :
मुहम्मद साहब का जन्म 570 ई० में अरब देश के मक्का नगर में हुआ था?

प्रश्न 7.
अब्बासी खलीफाओं की राजनधानी कहाँ स्थित थी?
उत्तर :
मध्यकाल में अब्बासी ख़लीफाओं की राजधानी बगदाद में स्थित थी। यह स्थान वर्तमान इराक की राजधानी है।

प्रश्न 8.
मध्यकाल में बगदाद क्यों प्रसिद्ध था?
उत्तर :
मध्यकाल में बगदाद अब्बासी खलीफाओं के वैभव और अरब सभ्यता व संस्कृति तथा व्यापार का प्रमुख केन्द्र होने के कारण प्रसिद्ध था।

प्रश्न 9.
फिरदौसी ने कौन-सी पुस्तक लिखी?
उत्तर :
फिरदौसी ने ‘शाहनामा’ नामक पुस्तक लिखी थी।

प्रश्न 10.
उमर खय्याम क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर :
उमर खय्याम अपनी रूबाइयों के लिए प्रसिद्ध है।

प्रश्न 11.
जेरूसलम कहाँ पर स्थित है और क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर :
जेरूसलम पश्चिमी एशिया (इजराइल राष्ट्र) में स्थित एक धार्मिक नगर है। यह इस्लाम, यहूदी और ईसाई धर्मों का संगम-स्थल व पवित्र तीर्थस्थान तथा ओमर मस्जिद के लिए विश्वप्रसिद्ध है।

प्रश्न 12.
अरबों ने लेखन-कला की किस शैली का आविष्कार किया?
उत्तर :
अरबों ने लेखन-कला की ‘खुशवती’ शैली का आविष्कार किया।

प्रश्न 13.
अलबरूनी ने कौन-सी पुस्तक लिखी थी?
उत्तर :
अलबरूनी ने तहकीके हिन्द’ नामक पुस्तक लिखी थी।

प्रश्न 14.
खिलाफत का क्या अर्थ है?
उत्तर :
मुहम्मद साहब के निधन के बाद इस्लाम के प्रचार व प्रसार का कार्यभार (पद) “खिलाफत कहलाया, जिसका तेतृत्व अबू बकर, उमर, उस्मान तथा अली नामक खलीफाओं ने किया।

प्रश्न 15.
अब्बासी खलीफाओं में सबसे अधिक प्रसिद्ध खलीफा का नाम लिखिए।
उत्तर :
अब्बासी खलीफाओं में सबसे अधिक प्रसिद्ध खलीफा हारून-अल-रशीद था।

प्रश्न 16.
हिजरी सम्वत् कब प्रारम्भ हुआ?
उत्तर :
हिजरी सम्वत् 622 ई० से प्रारम्भ हुआ।

प्रश्न 17.
इस्लाम धर्म ने विश्व की सभ्यता पर क्या प्रभाव डाला?
उत्तर :
इस्लाम धर्म ने विश्व की सभ्यता को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया। कला और धर्म के क्षेत्र में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

प्रश्न 18.
‘कीमियागिरी क्या थी? यह कला विलुप्त क्यों हो गई?
उत्तर :
रासायनिक प्रक्रिया द्वारा लोहे या किसी अन्य धातु से स्वर्ण (सोना) बनाने की कला को ‘कीमियागिरी’ कहते थे। वंशानुगत होने के कारण यह कला शीघ्र ही विलुप्त हो गई।

प्रश्न 19.
काबा का क्या महत्त्व था?
उत्तर :
मुहम्मद के कबीले कुरैश का जिस मस्जिद पर नियन्त्रण था, उसे काबा कहा जाता था। यह मस्जिद मक्का में थी। सभी लोग इस जगह को पवित्र मानते थे।

प्रश्न 20.
हिजरी वर्ष की क्या विशेषता है?
उत्तर :
हिजरी वर्ष चन्द्रवर्ष होता है जिसमें 354 दिन अर्थात् 29 या 30 दिनों के 12 महीने होते हैं। प्रत्येक दिन सूर्यास्त के समय शुरू होता है।

प्रश्न 21.
प्रथम चार खलीफाओं के नाम लिखिए।
उत्तर :

  1. अबू बकर,
  2.  उमर,
  3.  उस्मान तथा
  4. अली

प्रश्न 22.
अली के काल में इस्लाम जगत में क्या परिवर्तन आया?
उत्तर :
इस्लाम के चौथे खलीफा अली के शासनकाल में मुसलमान दो सम्प्रदायों-शिक्षा और सुन्नी में विभाजित हो गया।

प्रश्न 23.
अरब में राजतन्त्र की स्थापना किसने और कब की?
उत्तर :
मुआविया ने स्वयं को पाँचवाँ खलीफा घोषित कर उमय्यद वंश की स्थापना की। वह राजतन्त्र का समर्थक था। राजतन्त्र की स्थापना 661 ई० में हुई।

प्रश्न 24.
फातिमिद कौन था?
उत्तर :
फातिमिद शिया सम्प्रदाय से सम्बद्ध था और स्वयं को मुहम्मद की पुत्री फातिमा का वंशज मानता था। 969 ई० में उसने मिस्र को जीतकर फातिमिद खिलाफत की स्थापना की और काहिरा को अपनी राजधानी बनाया।

प्रश्न 25.
धर्मयुद्ध से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
जेरूसलम और फिलिस्तीन के अधिकार के प्रश्न पर मुसलमानों और ईसाइयों में दो शताब्दियों (1096-1291) तक युद्ध हुए थे, उन्हें धर्मयुद्ध कहा जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बगदाद कहाँ है और क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर :
बगदाद, अरब प्रायद्वीप के देश इराक की राजधानी है। मध्यकाल में यह नगर अब्बासी खलीफाओं की राजधानी था। बगदाद; अरब सभ्यता एवं संस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र तथा व्यापार का भी प्रमुख केन्द्र होने के कारण प्रसिद्ध है।

प्रश्न 2.
अरब निवासियों के प्रमुख उद्योग कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
अरब निवासी कृषि योग्य भूमि से वंचित थे; अतः उन्होंने अनेक उद्योग-धन्धे अपना रखे थे। वे कपास से सुन्दर वस्त्र, कालीन, गलीचे आदि बनाते थे। इत्र, अर्क और शर्बत बनाने में वे विशेषकुशल थे। दमिश्क की मलमल, तलवारें एवं युद्ध का सामान, मिट्टी के बर्तन तथा खिलौने, काँच का सामान आदि उस समय सारे संसार में प्रसिद्ध थे। अरब निवासी इनका बड़ी मात्रा में व्यापार किया करते थे।

प्रश्न 3.
मक्का और मदीना क्यों प्रसिद्ध हैं?
उत्तर :
मक्का और मदीना सऊदी अरब के प्रमुख नगर हैं। मक्का में इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हजरत मुहम्मद साहब का जन्म हुआ था। हजरत मुहम्मद साहब ने इस्लाम धर्म चलाया था। मदीना में मुहम्मद साहब ने हिजरत की थी। मक्का मुसलमानों का प्रमुख तीर्थस्थल है। प्रतिवर्ष लाखों मुसलमान यहाँ हज करने के लिए आते हैं। ये दोनों नगर इस्लाम धर्म के पवित्र स्थल होने के कारण प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 4.
विज्ञान के क्षेत्र में अरब निवासियों ने भारत एवं यूनान से क्या-क्या सीखा?
उत्तर :
अरब निवासियों ने विज्ञान के क्षेत्र में भारत और यूनान से बहुत-कुछ सीखा। यूनान से गणित और ज्यामिति का ज्ञान लेकर अरबों ने गोलाकार त्रिकोणमिति की खोज की। भौतिक विज्ञान में उन्होंने पेण्डुलम की खोज की और प्रकाश के सम्बन्ध में अनेक महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले। अरबों ने भारतीयों से आयुर्वेद का ज्ञान भी प्राप्त किया और यूनानी पद्धति अपनाकर यूनानी चिकित्सा की परम्परा प्रारम्भ की।

प्रश्न 5.
विज्ञान के क्षेत्र में अरबों की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
विज्ञान के क्षेत्र में अरबों की उपलब्धियाँ निम्नलिखित थीं

  1.  अरबों के द्वारा गोलाकार त्रिकोणमिति और अंक प्रणाली की खोज की गई थी। यूरोपवासियों ने अरबों से ही अंक प्रणाली को सीखा था।
  2.  अरब वैज्ञानिकों ने ही सर्वप्रथम यह खोज की थी कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती हुई स्वयं की परिक्रमा करती है।
  3.  अरबों द्वारा अनुसन्धान हेतु अनेक प्रयोगशालाओं की स्थापना की गई थी।
  4.  खगोलशास्त्र के क्षेत्र में उन्होंने अनेक वेधशालाओं का निर्माण किया और नए नक्षत्रों का पता लगाया।
  5. भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में पेण्डुलम की खोज उनके द्वारा ही की गई थी। उन्होंने प्रकाश विज्ञान पर अनेक महत्त्वपूर्ण पुस्तकों की रचना की थी।
  6.  वे चिकित्सा के क्षेत्र में भी बहुत पारंगत थे और शिल्प-क्रिया से भली-भाँति परिचित थे।

प्रश्न 6.
कबीले की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
कबीले की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

  1. कबीले रक्त सम्बन्धों पर संगठित समाज होते थे।
  2.  अरब कबीले वंशों से बने हुए होते थे अथवा बड़े परिवारों के समूह होते थे, परन्तु बन्द समाज नहीं थे।
  3. गैर-अरब व्यक्ति कबीलों के प्रमुखों के संरक्षण में सदस्य बन जाते थे।
  4.  गैर-रिश्तेदार वंशों को तैयार किए गए वंशक्रम के आधार पर विलय किया जाता था।

प्रश्न 7.
इस्लाम धर्म के उदय होने से पूर्व अरब लोगों के जीवन की मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
इस्लाम धर्म से पूर्व अरब लोगों के जीवन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. इस्लाम से पूर्व अरब लोग अनेक छोटे-छोटे कबीलों में बँटे हुए थे।
  2. कबीले परस्पर छोटी-छोटी बातों पर लड़ते रहते थे।
  3. अरब समाज के लोग अनेक अन्धविश्वासों के शिकार थे।
  4. इस समय अरब के लोग अनेक देवी-देवताओं में विश्वास करते थे और मूर्तिपूजा किया करते
  5.  इस समय अरब के लोगों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। कालान्तर में व्यापार भी इनकी जीविका का मुख्य साधन बन गया।

प्रश्न 8.
अब्द-थल-मलिक के प्रमुख कार्य लिखिए।
उत्तर :
अब्द-थल-मलिक के प्रमुख कार्य निम्नलिखित थे

  1. उमय्यदवंशीय अब्द-थल-मलिक ने अरबी को प्रशासन की भाषा के रूप में अपनाया और सिक्के जारी किए।
  2.  सिक्कों पर रोमन और ईरानी की नकल समाप्त करके अरबी भाषा में लेख अंकित कराए।
  3.  उसने जेरूसलम में चट्टान के गुम्बद का निर्माण करवाया और अरब-इस्लामी पहचान में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

प्रश्न 9.
इस्लाम धर्म के प्रमुख सिद्धान्त लिखिए।
उत्तर :
इस्लाम धर्म के प्रमुख सिद्धान्त

  1. अल्लाह एक और निराकार-इस्लाम धर्म एक अल्लाह और उसके निराकार स्वरूप के सिद्धान्त को मानता है। उसके अनुसार अल्लाह सर्वज्ञ, सर्वोच्च और निराकार है।
  2. कर्मवाद में विश्वास-इस्लाम धर्म, कर्म के सिद्धान्त का पोषक है। उसके अनुसार कर्मों से ही मनुष्य को जन्नत (स्वर्ग) या नरक (दोजख) प्राप्त होता है। न्याय-दिवस (कयामत) पर जीवों के कर्मों के लेखे-जोखे के आधार पर ही प्रत्येक जीव को उसके कर्मों का फल मिलता है।
  3.  पाँच कर्म सिद्धान्त-इस्लाम धर्म के पाँच कर्म-सिद्धान्त अग्र प्रकार हैं

(क) कलमा : ह इस्लाम धर्म का मूल मन्त्र है, जिसके अनुसार अल्लाह एक है, उसके अतिरिक्त कोई नहीं है और मुहम्मद साहब उसके पैगम्बर हैं।
(ख) रोजा-ईस्लाम धर्म मानता है कि रमजान के पवित्र महीनों में प्रत्येक मुसलमान को प्रातः से सूर्यास्त तक रोजा (व्रत) रखना चाहिए।
(ग) नमाज-प्रत्येक सच्चे मुसलमान को प्रतिदिन पाँच बार नमाज पढ़नी चाहिए।
(घ) जकात–प्रत्येक इस्लाम के अनुयायी को अपनी आय में से एक निश्चित राशि स्वेच्छा से गरीबों में दान देनी चाहिए। दान देना पुण्य का काम है।
(ङ) हज–प्रत्येक मुसलमान को अपने जीवनकाल में एक बार मक्का की तीर्थयात्रा (हज) पर अवश्य जाना चाहिए।

प्रश्न 10.
सामाजिक एकता स्थापित करने के लिए मुहम्मद साहब ने कौन-से नियम बनाए थे?
उत्तर :
मुसलमानों में एकता की भावना का विकास करने के उद्देश्य से मुहम्मद साहब द्वारा निम्नलिखित नियम बनाए गए थे1. इज्मा-सभी मुसलमानों को प्रत्येक क्षण, प्रत्येक स्थान पर, प्रत्येक परिस्थिति में इस्लाम के | सिद्धान्तों पर एकमत रहना चाहिए। 2. सुन्ना-इस्लाम धर्म में निर्धारित कार्यों को आदर्श मानकर उनका पालन करना चाहिए। 3. कयास-इस्लाम धर्म पर आधारित मुहम्मद साहब के उपदेशो के अर्थ एवं भाव को समझकर उन उपदेशों का यथावते पालन करना चाहिए।

प्रश्न 11.
इस्लामी राज्यों में कृषि की उन्नति हेतु क्या प्रसास किए गए?
उत्तर :
इस्लामी राज्यों में कृषि की उन्नति हेतु निम्नलिखित उपाय किए गए

  1.  अनेक क्षेत्रों में विशेषकर नील घाटी, में राज्य ने सिंचाई प्रणालियों, बाँधों और नहरों के निर्माण, कुओं की खुदाई की व्यवस्था कराई।
  2. पानी उठाने के लिए पनचक्कियों की व्यवस्था की गई।
  3. इस्लामी कानून के अन्तर्गत उन लोगों को कर में छूट दी गई जो जमीन को पहली बार खेती के काम में लाते थे।
  4.  अनेक नई फसलों; यथा-कपास, सन्तरा, केला, तरबूज, पालक और बैंगन की खेती की गई और यूरोप को उनका निर्यात किया गया।

प्रश्न 12.
उलेमा कौन थे और उनका क्या कार्य था?
उत्तर :
उमेला धार्मिक विद्वान थे। ये कुरान से प्राप्त ज्ञान (इल्म) पैगम्बर को आदर्श व्यवहार (सुन्ना) का मार्गदर्शन करते थे। मध्यकाल में उलेमा अपना समय कुरान पर टीका (तफसीर) लिखने और मुहम्मद की प्रामाणिक उक्तियों और कार्यों को लेखबद्ध करने में लगाते थे। कुछ उलेमाओं ने कर्मकाण्डों (इबादत) के माध्यम से ईश्वर के साथ मुसलमानों के सम्बन्ध को नियन्त्रित करने और सामाजिक कार्यों (मुआमलात) के लिए शेष इनसानों के साथ मुसलमानों के सम्बन्धों को नियन्त्रित करने के लिए कानून तैयार करने का कार्य किया।

प्रश्न 13.
भारत में इस्लाम का प्रसार किस प्रकार हुआ?
उत्तर :
इस्लाम के इतिहास में वालिद प्रथम का शासनकाल खिलाफत के विस्तार के लिए विख्यात है। इसी के शासनकाल में 711 ई० में बसरा के गवर्नर हेज्जाज और उसके दामाद मुहम्मद इब्न-उल कासिम ने दक्षिणी भारत और बलूचिस्तान से सिन्ध पर आक्रमण किया। इसके पूर्व मुहम्मद बिन कासिम ने 710 ई० में 6000 सीरियाई सैनिकों की सेना लेकर मकराने पर कब्जा जमा लिया। यहीं से इसने बलूचिस्तान होते हुए 711-712 ई० में सिन्धु की निचली घाटी और सिन्धु नदी के मुहाने की भूमि पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। वहाँ जिन नगरों को जीता गया, उनमें समुद्री बन्दरगाह अल-देबुल और अल-नीरून थे। अल-देबुल में चालीस घन फुट वाली एक बुद्ध की प्रतिमा स्थापित थी। मुहम्मद बिन कासिम की यह विजय उत्तर में दक्षिणी पंजाब स्थित मुल्तान तक की गई, जहाँ गौतम बुद्ध का पवित्र तीर्थस्थल है। इस विजय से दक्षिणी पाकिस्तान के सिन्ध पर इस्लाम का स्थायी प्रभुत्व स्थापित हो गया तथा शेष भारत दसवीं शताब्दी के अन्त तक, जबकि महमूद गजनवी ने आक्रमण किया, अप्रभावित रहा। इस तरह सेमेटिक इस्लाम और भारतीय बौद्ध धर्म के बीच उसी प्रकार स्थायी रूप से सम्पर्क स्थापित हो गया, जिस प्रकार उत्तर में इस्लाम का तुर्की संस्कृति के साथ सम्पर्क स्थापित हुआ था। इस प्रकार दक्षिण में सिन्ध और उत्तर में काशगर और ताशकन्द खिलाफत की सुदूरपूर्वी सीमा बन गई और आगे भी बनी रही।

प्रश्न 14.
धर्मयुद्ध का क्या अर्थ है? इसके क्या कारण थे?
उत्तर :
पवित्र युद्ध या जिहाद उन युद्धों को कहते हैं जो मध्यकाल में फिलिस्तीन को प्राप्त करने के लिए यूरोपीय ईसाइयों ने अरबी मुसलमानों से लड़े। इन युद्धों को धर्मयुद्ध इसलिए कहा जाता है कि यह युद्ध धार्मिक स्थानों को प्राप्त करने के लिए ईसाइयों ने अरबों के विरुद्ध लड़े थे। धर्मयुद्ध के तीन प्रमुख कारण थे

  1. पवित्र प्रदेशों को पुनः प्राप्त करना।
  2. सामन्तों का वीरता प्रदर्शन का शौक।
  3.  लाडौँ तथा चर्च के नेताओं का स्वार्थ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
इस्लाम धर्म से पूर्व अरब सभ्यता एवं संस्कृति का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
इस्लाम धर्म से पूर्व अरब सभ्यता एवं संस्कृति :
इस्लाम धर्म से पूर्व अरब सभ्यता एवं संस्कृति का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के आधार पर किया जा सकता है

प्राचीन अरब के निवासी :
सर्वप्रथम, अरब में बसने वाले कैल्डियन जाति के लोग थे। उनकी सभ्यता उच्चकोटि की थी। बाद में सेमेटिक जनजातियों ने इनकी सभ्यता के अवशेषों को नष्ट कर दिया। सेमेटिक जाति के लोग स्वयं को कहतान (जोकतन) का वंश मानते थे। उन्हीं का आदिपुरुष यारब था, जिसके नाम पर इस देश का नाम ‘अरब’ पड़ा। यारब कहतानी शासक; महान् विजेता और नगरों के निर्माता थे। उन्होंने यमन व अरब के अन्य क्षेत्रों पर सातवीं शताब्दी तक अपनी प्रभुत्व जमाए रखा। अरब के अन्तिम निवासी ‘इस्माइली’ थे।  इस्माइल महान् यहूदी ‘अब्राहम के अनुयायी थे। इन्हें अरब की महानता का संस्थापक और काबा का निर्माता माना जाता है। इस्लामी युग से पूर्व अरब मेंबसने वाले यही लोग थे।

प्राचीन अरबों का राजनीतिक जीवन  :
प्राचीन अरब के निवासी बद्दू कहलाते थे। उनका प्रत्येक तम्बू ‘एक परिवार’ माना जाता था। अनेक तम्बू एक वंश या ‘कौम’ का प्रतिनिधित्व करते थे। एक सौ । वंश मिलकर एक जनजाति’ या ‘कबीले’ का निर्माण करते थे। अरब का यह युग जाहिलिया युग (अज्ञानता और बर्बरता का काल) कहलाता है।

प्राचीन अरबों का सामाजिक एवं आर्थिक जीवन :
प्राचीन अरबवासी खानाबदोश थे। वे तम्बुओं में रहते थे और भेड़, बकरी तथा ऊँट आदि पशुओं को पालते थे। उनका जीवन संघर्षपूर्ण था। प्रत्येक कबीले का एक सरदार होता था, जिसकी आज्ञा कबीले के सभी लोगों को माननी पड़ती थी। अरबवासियों को आर्थिक जीवन व्यापार और लूटमार पर निर्भर था। दक्षिण अरब के लोग विदेशों से व्यापार करते थे।

प्राचीन अरबों का सांस्कृतिक जीवन :
प्राचीन अरब में शिक्षा की कमी थी, लेकिन अरबवासी अपनी भाषा और कविता के लिए विख्यात थे। इस्लाम-पूर्व अरब के साहित्य का पर्याप्त विकास हो चुका था।  इस्लाम-पूर्व अरब के प्रसिद्ध लेखकों में हकीम लुकमान, अख्तम-इब्न-सैफी, हाजी-इब्न-जर्राह, हिद (अलखस की पुत्री, विदुषी), अल मयदानी (‘मजमा-अल-अमथल का लेखक), अल-मुफद्दाल-अल-दब्बी ( ‘अमथल-अल-अरब’ का लेखक) आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इस युग के प्रमुख कवियों में इमारुल केज, तराफा, हरिथ तथा अन्तारा आदि के नाम प्रसिद्ध हैं।

धार्मिक जीवन : इस्लाम पूर्व अरब और जाहिलिया युग  : मुसलमान-विरोधी बद्दुओं की किसी भी धर्म में आस्था नहीं थी। यहूदियों और ईसाइयों को छोड़कर शेष अरब मूर्तिपूजक थे। अरबवासी अनेक देवी-देवताओं की पूजा किया करते थे। अकेले मक्का में ही 360 मूर्तियाँ थीं। बद्द् अधिकतर मूर्तियों और नक्षत्रों की पूजा करते थे। मक्का में ऊँटों और भेड़ों की बलि दी जाती थी। अरबवासी वृक्षों, कुओं, गुफाओं, पत्थर और वायु आदि प्राकृतिक वस्तुओं को पवित्र मानते और उनकी पूजा भी करते थे। प्राचीन अरबों के प्रमुख देवता अल मानहु (सर्वशक्तिमाने शुक्र), देवी अल-लात, अर-राबा और अल-मानह
(भाग्य की देवी), यागुस (गिद्ध), ओफ (एक बड़ी चिड़िया) आदि थे। मक्का के कुरैशियों (प्राचीन अरब का प्रसिद्ध वंश) का देवता ‘अल-हुनल’ था।

प्रश्न 2.
इस्लाम धर्म के प्रवर्तक कौन थे? इस्लाम धर्म की प्रमुख शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
इस्लाम धर्म के प्रवर्तक इस्लाम धर्म के प्रवर्तक मुहम्मद साहब थे। संसार उन्हें पैगम्बर मुहम्मद के नाम से पुकारता है। उनका जन्म 570 ई० में मक्का में हुआ था। उनके पिता का नाम अब्दुल्ला और माता का नाम अमीना था। 25 वर्ष की आयु में उन्होंने खदीजी नामक एक विधवा से विवाह किया। 619 ई० में जब खदीजा की मृत्यु हो गई तब उन्होंने आयशा नामक स्त्री से विवाह किया। उनकी छोटी पुत्री फातिमा ( अज-जोहरा या खूबसूरत), इस्लाम के चौथे खलीफा हजरत अली की पत्नी थी। मुहम्मद साहब प्रारम्भ से ही चिन्तनशील थे। 610 ई० में उन्हें दिव्य सन्देश की प्राप्ति हुई। 40 की आयु में मुहम्मद साहब ने अपने धर्म का प्रचार करना आरम्भ कर दिया। अपने विरोधियों से बचने के लिए। मुहम्मद साहब ने ‘मक्का’ छोड़कर ‘मदीना’ की ओर प्रस्थान किया। इस्लाम के इतिहास में इस घटना का बहुत महत्त्व है और इसे “हिजरत’ कहा जाता है। इसी समय (622 ई०) से मुस्लिम पंचांग का पहला वर्ष अर्थात् हिजरी संवत् शुरू होता है। मुहम्मद साहब मदीना के सर्वोच्च शासक बन गए। उन्होंने अपने विरोधियों को परास्त किया और अपने धर्म का सम्पूर्ण अरब में प्रसार किया। 62 वर्ष की आयु में 632 ई० में उनकी मृत्यु हो गई। बाद में उनके अनुयायियों ने सारे संसार में इस्लाम धर्म का प्रचार किया।

इस्लाम धर्म की प्रमुख शिक्षाएँ।

इस्लाम धर्म की प्रमुख शिक्षाएँ निम्नलिखित हैं

  1.  ईश्वर एक है तथा मुहम्मद साहब उसके पैगम्बर हैं।
  2.  सभी मनुष्य एक ही ईश्वर (अल्लाह) की सन्तानें हैं; उनमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए।
  3.  ईश्वर निराकार है और मूर्तिपूजा एक आडम्बर है।
  4. आत्मा अजर और अमर है।
  5. प्रत्येक मुसलमान को अपने धर्म की रक्षा करनी चाहिए।
  6. मादक वस्तुओं, नृत्य, संगीत तथा चित्र-दर्शन आदि से दूर रहना चाहिए।
  7.  इस्लाम धर्म के अनुसार कयामत के दिन अच्छे काम करने वाले को जन्नत (स्वर्ग) तथा बुरे काम करने वाले को दोजख (नरक) में भेज दिया जाएगा।
  8.  इस धर्म के अनुसार ब्याज लेना, जुआ खेलना, सुअर का मांस खाना पाप है।
  9.  अल्लाह अपने पैगम्बरों को सच्चा ज्ञान (इल्हाम) स्वयं देता है।
  10.  प्रत्येक मुसलमान के पाँच अनिवार्य कर्तव्य हैं

 

  1.  कलमा पढ़ना
  2.  प्रतिदिन पाँचों समय नमाज अता करना (पढ़ना)
  3.  रमजान के महीने में रोजे रखना
  4. अपनी आय का चौथा भाग खैरात (दान) में देना तथा
  5.  जीवन में एक बार हज (मक्का-मदीना की तीर्थयात्रा) रना।

प्रश्न 3.
अरब सभ्यता और संस्कृति का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
अरब सभ्यता एवं संस्कृति मध्य युग में अरब सभ्यता का विकास पश्चिमी एशिया में अधिक हुआ, जिसका संक्षिप्त विवेचन निम्नवत् है
1. शासन व्यवस्था :
इस्लाम के प्रमुख नेता को ‘खलीफा’ कहा जाता था। पहले तीन खलीफाओं की राजधानी मदीना नगर था। उसके बाद यह कूफा नगर ले जाई गई, जो आधुनिक दमिश्क में स्थित था। अब्बासी खलीफाओं ने बगदाद को अपनी राजधानी बनाया। तुर्की ने 1453 ई० में पूर्वी रोमन साम्राज्य का अन्त करके कुस्तुनतुनिया को अपनी राजधानी बनाया। आटोमान तुर्को के समय में खलीफा की शक्ति बहुत कम हो गई थी। खलीफाओं ने निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी शासक के रूप में अरब पर शासन किया। अब्बासी  खलीफाओं ने जनहित के बहुत-से कार्य किए।

2. सामाजिक जीवन :
अरब साम्राज्य में चार प्रमुख वर्ग थे। प्रथम वर्ग में खलीफा, द्वितीय वर्ग में कुलीन, तृतीय वर्ग में विद्वान, लेखक, व्यापारी आदि सम्मिलित थे तथा चौथे निम्न वर्ग में किसान, दस्तकार तथा दास आते थे। इस समय दास-दासियों की संख्या बहुत अधिक थी। वे खुले बाजार में बेचे और खरीदे जाते थे। अरब समाज में स्त्रियों की दशा शोचनीय थी और उन्हें पर्दे में रहना पड़ता था। इस समय बहुविवाह, तलाक प्रथा और उपपत्नी प्रथा का प्रचलन था। अरब में पुरुष चौड़े पायजामें, कमीज, बड़ी जाकेट, काली पगड़ी, अंगरखा आदि वस्त्र पहनते थे। स्त्रियाँ रंग-बिरंगे सुन्दर वस्त्र धारण करती थीं। निम्न वर्ग में बुर्का (पूरे शरीर को ढकने वाला चोगा) पहनने की प्रथा थी। अरब लोग विभिन्न प्रकार के भोजन तथा पेयोंः जैसे—बनफशा, फालूदा, अंगूर की बेटी अर्थात् शराब आदि का उपयोग करते थे। शतरंज, चौपड़, पासे, चौगाने, पत्तेबाजी, घुड़दौड़, शिकार आदि उनके मनोरंजन के प्रमुख साधन थे।

3. आर्थिक जीवन :
अरबों का प्रमुख व्यवसाय कृषि और युद्ध करना था। अरब के लोग गेहूँ, चावल, खजूर, कपास, पटुआ, मूंगफली, नारंगी, ईख, गुलाब, तरबूज आदि की खेती करते थे। अरब में कम्बल, कढ़े वस्त्र, सिल्क, सूती व ऊनी वस्त्र, किमखाब, फर्नीचर, काँच के बर्तन, कागज आदि निर्माण के उद्योग-धन्धे प्रचलित थे। अरब कारीगर सोने-चाँदी व कीमती पत्थरों, जवाहरातों से जड़े सुन्दर व कलात्मक आभूषण बनाने में दक्ष थे। इस काल में अरब के भारत, चीन तथा अफ्रीका के देशों से व्यापारिक सम्बन्ध थे। बगदाद, बसरा, काहिरा,  सिकन्दरिया मध्य युग के प्रमुख बन्दरगाह और व्यापारिक केन्द्र थे। मध्य युग में अरब के गलीचे, चमड़े की वस्तुएँ, सुन्दर तलवारें, धातु व काँच के बर्तन सारे संसार में विख्यात थे।

4. सांस्कृतिक जीवन :
इस्लामी अरब में शिक्षा का भी पर्याप्त विकास हुआ। अरब में पहला विद्यालय अबू हातिम ने 860 ई० में स्थापित किया। उस समय शिक्षा मस्जिदों और मदरसों में दी जाती थी। अद्द-अल-दौला ने शिराजी नगर में पहला पुस्तकालय बनवाया। उस समय बगदाद शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था। वहाँ एक सौ से अधिक पुस्तक-विक्रेता थे। खलीफा मामून | ने बगदाद में एक उच्च शिक्षा का केन्द्र ‘बैत-अल-हिकमत’ स्थापित करवाया था। 1065-1067 ई० की अवधि में निजाम-उल-मुल्क ने अरब में ‘निजामिया मदरसे’ की स्थापना की थी। इससमय कुरान, हदीस, कानून, धर्मतन्त्र (कलाम), अरबी भाषा और साहित्य, ललित, साहित्य (अदब), गणित आदि की शिक्षा दी जाती थी। अरबों ने लिखने की एक अलंकृत शैली ‘खुशवती’ का आविष्कार किया था।

5. साहित्य :
उस समय के अरब साहित्यकारों में हमदानी (976-1008 ई०, ‘मकाना’ नाटक का लेखक), थालिवी (961-967 ई०), अगानी (गीतिकार), जहशियारी (‘आलिफ-लैला’ का पहला लेखक, 942 ई०), नवास (व्यंग्यकार, गजलों का लेखक), अबू हम्माम, अल बहुतरी (820-897 ई०), उमर खय्याम (रूबाइयों का रचयिता) जैसे महान् कवि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। मध्यकालीन अरब साहित्य में ‘खलीफा हारून-अल-रशीद की कहानियाँ’, ‘उमर खय्याम की रूबाइयाँ’, ‘आलिफ-लैला’ की कहानी और ‘फिरादौसी का शाहनामा’ आज भी सारे संसार में प्रसिद्ध हैं।

6. चिकित्सा :
अरबों ने कई महान् चिकित्सक उत्पन्न किए, जिनमें जिबरील (नेत्र विज्ञान की पुस्तक ‘अल-लाइन’ का लेखक), अलराजी (865-925 ई०, तेहरान निवासी, ‘किताब-उल- असरार’ का लेखक), यूरोप में रहैजेस नाम से विख्यात, चेचक के इलाज का आविष्कारक), अली-अब्बास (‘अल-किताब अल मालिकी’ का लेखक, रोगियों के आहार व मलेरिया की चिकित्सा का अन्वेषक), इब्नसिना (950-1037 ई०, यूरोप में एविसेन्ना नाम से प्रसिद्ध, ‘अलशेख अल-रईस’ की उपाधि, 33 गंन्थों का रचयिता, महान चिकित्सक, क्षय रोग का अन्वेषक, दार्शनिक, भाषाशास्त्री, कवि, प्रमुख पुस्तक ‘किताब-उल-शिफा’) तथा याकूब (पशु चिकित्सक) आज भी सम्पूर्ण-जगत में विख्यात

7. खगोल विद्या और गणित :
अरब ने खगोल विद्या और गणित के क्षेत्र में भी विशेष उन्नति की। अरब खगोलशास्त्रियों ने अबू अहमद, अलबरूनी (973-1048 ई०, ‘हयाहब-अल-न जूम’ का लेखक) तथा उमर खय्याम (1048-1124 ई०, पंचांग का निर्माता) विशेष प्रसिद्ध हैं। मध्यकालीन अरब का विख्यात ज्योतिषी बल्ख का मूल निवासी अबू माशार था, जिसने ज्योतिष सम्बन्धी अनेक पुस्तकें लिखी थीं।

8. कलाओं में प्रगति :
अरब लोगों ने अनेक मस्जिदों व मदरसों का निर्माण करवाया। गजबान ने 838 ई० में बसरा में पहली बार मस्जिद बनवाई। जेरूसलम ने चट्टान का गुम्बद, अक्सा मस्जिद (निर्माता अल-मलिक), दमिश्क में उमय्यद मीनार मस्जिद (705 ई० निर्माता अल वालिद), हरा गुम्बद (निर्माता खलीफा मंसूर) आदि अरब स्थापत्य कला के सुन्दर नमूने हैं। अब्बासी खलीफाओं ने अनेक राजमहलों और भवनों का निर्माण करवाया। बगदाद में बने शाही महल उस समय के अरब वैभव की जानकारी देते हैं। अरब में चित्रकला का भी विकास हुआ। उम्मैद तथा अब्बासी खलीफाओं द्वारा शहरी महलों की दीवारों पर कराई गई चित्रकारी दर्शनीय है। शाही गुम्बद पर घुड़सवार की आकृति (खलीफा मंसूर), शेरों, गरुड़ पक्षियों और समुद्री मछलियों के चित्र (खलीफा अमीन), कैसर आमरा के महल की दीवारों पर महिलाओं तथा शिकार के दृश्यों के चित्र आदि अरब चित्रकला के उत्कृष्ट नमूने हैं। इस युग में प्रमुख चित्रकार अल हरीरी और अल-अल-अगानी थे। अल रेहानी इस समय का विख्यात सुलेखनकार था, जिसने ‘मुकलाह’ की रचना की थी। अरब संगीतकारों में इब्राहीम (खलीफा हारून-अल-रशीद का भाई), गजाली (‘अहिया-अल-उलम’ गजलों का संग्रह), खलीफा अल महदी (सियास या संगीत की पुस्तक), खलीफा अल बाथिक (वीणावादक) के नाम प्रमुख हैं। इस काल में सितार या गिटार तथा उरुयान (आर्गन) प्रमुख वाद्य यन्त्र थे। अल फराबी ने किताब उल मुसीफी अल कबीर’ तथा अल गजाली ने ‘अल समां’ नामक संगीत की पुस्तकें लिखी थीं।।

प्रश्न 4.
कागज की उपलब्धता ने इस्लामिक इतिहास को किस प्रकार संजोया? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
कागज के आविष्कार के पश्चात् मध्य इस्लामिक भूमि में लिखित रचनाओं को बड़े पैमाने पर प्रसार होने लगा। कागज जो लिनन से बनता था, चीन में कागज बनाने की प्रक्रिया को अत्यन्त गुप्त रखा गया था। समरकन्द के मुस्लिम शासकों ने सन् 750 में 20,000 चीनी हमलावरों को बन्दी बना लिया। इनमें से कुछ कागज बनाने में बहुत कुशल थे। अगली एक सदी के लिए, समरकन्द का कागज निर्यात की एक महत्त्वपूर्ण वस्तु बन गया। इस्लाम एकाधिकार का निषेध करता है; अतः कागज इस्लामी दुनिया के शेष भागों में बनाया जाने लगा। दसवीं सदी के मध्य तक इसने पैपाइरस का स्थान ले लिया। कागज की माँग बढ़ गई। बगदाद का एक डॉक्टर अब्द-अल-लतीफ जो 1193 से 1207 तक मिस्र का निवासी था, लिखता है कि मिस्र के किसानों ने ममियों के ऊपर लपेटे गए लिनन से बने हुए आवरण प्राप्त करने के लिए किस तरह कब्रों को लूटा था जिससे वे यह लिनन कागज के कारखानों को बेच सकें। कागज की उपलब्धता के कारण सभी प्रकार के वाणिज्यिक एवं वैयक्तिक दस्तावेजों को लिखना भी सरल हो गया। सन् 1896 में फुस्ताल में बेन एजरा के यहुदी प्रार्थना भवन के एक सीलबन्द कमरे गेनिजा में मध्यकाल के यहूदी दस्तावेजों का एक विशाल भण्डार प्राप्त हुआ। ये सभी दस्तावेज इस यहूदी प्रथा के कारण सुरक्षित रख गए थे कि ऐसी किसी भी लिखित रचना को नष्ट नहीं किया जाना चाहिए जिसमें ईश्वर का नाम लिखा हुआ हो। गेनिजा में लगभग ढाई लाख पांडुलिपियाँ और उनके टुकड़े थे जिसमें कई आठवीं शताब्दी के मध्यकाल के भी थे। अधिकांश सामग्री दसवीं से तेरहवीं सदी तक की थी अर्थात् फातिमी, अयूबी और प्रारम्भिक मामलुक काल की थी। इनमें व्यापारियों, परिवार के सदस्यों और दोस्तों के बीच लिखे गए पत्र, संविदा, दहेज से जुड़े वादे, बिक्री दस्तावेज, धुलाई के कपड़ों की सूचियाँ और अन्य साधारण वस्तुएँ शामिल थीं।। अधिकांश दस्तावेज यहूदी-अरबी भाषा में लिखे गए थे, जो हिब्रू अक्षरों में लिखी जाने वाली अरबी भाषा का ही रूप था, जिसका उपयोग समूचे मध्यकालीन भूमध्य सागरीय क्षेत्र में यहूदी समुदायों द्वारा साधारण रूप से किया जाता था। गेनिजा दस्तावेज निजी और आर्थिक अनुभवों से भरे हुए हैं और वे भूमध्य सागरीय और इस्लामी संस्कृति की अन्दरूनी जानकारी प्रस्तुत करते हैं। इन दस्तावेजों से यह भी ज्ञात होता है कि मध्यकालीन इस्लामी जगत के व्यापारियों के व्यापारिक कौशल और वाणिज्यिक तकनीक उनके यूरोपीय प्रतिपक्षियों की तुलना में बहुत अधिक उन्नत थीं।

प्रश्न 5.
अरब में दर्शन और इतिहास विषय पर कौन-सी रचनाएँ की गईं? अरबों की विश्व सभ्यता को क्या देन है? 
उत्तर :
अरब दार्शनिकों में अल किन्दी, अल फराबी, इब्नसिना, गजाली, अल-मारी, अलतौहिन्दी के नाम प्रमुख हैं। अरब दर्शन यूनानी दर्शन से प्रभावित था। अरब व यूनान की फिलॉसफी को ‘फलसफा’ कहते थे। अरब में इतिहास-लेखन का भी पर्याप्त विकास हुआ। इस युग के अरब इतिहासकारों में इब्न इशाक (मदीना निवासी, पैगम्बर की जीवनी का पहला लेखक), कृति ‘सिरात रसूल अल्लाह’, अल मुकफा (‘खुदायनामा’ का लेखक), कुतवाह (पहला अरब इतिहासकार, बगदाद निवासी, मृत्यु 889 ई०) कृति ‘किताब उल मारिफ’, अल याकूबी (भूगोलवेत्ता इतिहासकार), अल बालादुरी (‘अल बुल्दान’ तथा ‘अनसाब अल अशरफ’ पुस्तकों का लेखक), अल हकाम (‘फुतुह मित्र’ का लेखक), अल तबरी (838-923 ई०, ‘तारीख अल रसूल’ व अल मुलुक’ का लेखक), अल मसूदी (अरबों का हेरोडोट्स, कृति ‘अल तनवीह’ व ‘अल इशरफ’), अलबरूनी (‘किताब उल हिन्द’ या ‘तहकीके हिन्द’ का लेखक) के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। अरब के भूगोलवेत्ताओं में फाह्यान(‘मजम अल बुल्दान’ या ‘भौगोलिक कोष’ का रचयिता), ख्वारिज्मी (‘सूरत अल गर्द’ या ‘पृथ्वी की शक्ल’ का लेखक), अल हमदानी (‘जजीरात अल अरब’ का लेखक) आदि के नाम सारे संसार में प्रसिद्ध हैं। अरबों की देन-अरबों की विश्व सभ्यता को अनेक महत्त्वपूर्ण देन हैं। अरबों ने सर्वप्रथम प्रबुद्ध राजतन्त्र और राष्ट्रीयता की भावना का विकास किया। इस्लाम धर्म का प्रचार तथा प्रसार किया, सामाजिक कुरीतियों का उन्मूलन करने की प्रेरणा दी। संगठित सामाजिक जीवन की नींव डाली। भारत, चीन और अफ्रीका से व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित किए। चीनी, इत्र टिन्चर, कागज, काँच के बर्तन, गलीचे, चमड़े की कलात्मक वस्तुएँ, सुन्दर तलवारें व अन्य हथियार आदि संसार को प्रदान किए। इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरान शरीफ’ की रचना की। उन्होंने संसार को अरेबियन नाइट्स (आलिफ लैला की कहानियाँ), गुलिस्तां व बोस्तां (शेख सादी), शाहनामा (फिरदौसी) जैसे ग्रन्थ उपलब्ध कराए और चिकित्सा, दर्शन, खगोलविद्या, ज्योतिष, गणित, बीजगणित, गोलाकार ज्यामिति तथा कीमियागिरी में अनेक उपलब्धियाँ प्राप्त की और उनका ज्ञान संसार को दिया। अरबों ने बगदाद, दमिश्क, काहिरा, जेरूसलम, मक्का व मदीना में अनेक मस्जिदों का निर्माण कराया और चित्रकला तथा संगीत कला का भी पर्याप्त विकास किया।

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