UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 7 School: As a Formal Agency of Education (विद्यालय: शिक्षा के औपचारिक अभिकरण के रूप में)
UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 7 School: As a Formal Agency of Education (विद्यालय: शिक्षा के औपचारिक अभिकरण के रूप में)
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
विद्यालय का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए। विद्यालय की आवश्यकता एवं उपयोगिता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विद्यालय का अर्थ एवं परिभाषा
(Meaning and Definition of School)
शिक्षा के औपचारिक अभिकरणों में विद्यालय (School) मुख्यतम अभिकरण है। साधारण शब्दों में कहा जा सकता है कि बच्चों को शिक्षा प्रदान करने वाली व्यवस्थित संस्था को विद्यालय या स्कूल कहते हैं। विद्यालय शब्द विद्या + आलय दो शब्दों का संयोग है। आलय का शाब्दिक अर्थ स्थान है। इस प्रकार विद्यालय से अभिप्राय उस स्थान से हैं जहाँ विद्यार्थियों को विद्या प्रदान की जाती है। अंग्रेजी के स्कूल शब्द की व्युत्पत्ति यूनानी शब्द ‘Schola’ से हुई है, जिसका अर्थ है-अवकाश (Leisure)। प्रत्यक्ष रूप से तो विद्यालय और अवकाश के बीच कोई समानता या सम्बन्ध नहीं जान पड़ता, किन्तु इतना अवश्य है कि प्राचीन यूनान में अवकाश का उपयोग आत्म-विकास के लिए किया जाता था। आत्म-विकास का अभ्यास एक विशिष्ट एवं सुनिश्चित स्थान पर होता था, जिसे ‘अवकाश’ कहकर पुकारा गया। इस भाँति, अवकाश-आत्म-विकास (अर्थात् शिक्षा) में जुड़ गया। कालान्तर में अवकाश शिक्षा का समानार्थी बन गया। इस विचार के समर्थन में ए० एफ० लीच ने लिखा है, “वाद-विवाद या वार्ता के स्थान, जहाँ एथेन्स के युवक अपने अवकाश के समय को खेलकूद, व्यवसाय और युद्ध के प्रशिक्षण में बिताते थे, धीरे-धीरे दर्शन और उच्च कलाओं के स्कूलों में बदल गए। एकेडेमी के सुन्दर उद्यानों में व्यतीत किए जाने वाले अवकाश के माध्यम से विद्यालयों का विकास हुआ।”
अनेक शिक्षाशास्त्रियों ने विद्यालय की निम्नलिखित परिभाषाएँ प्रतिपादित की हैं
- जॉन डीवी के अनुसार, “विद्यालय एक ऐसा विशिष्ट वातावरण है जहाँ जीवन के कुछ गुणों और कुछ विशेष प्रकार की क्रियाओं तथा व्यवसायों की शिक्षा इस उद्देश्य से दी जाती है कि बालक का विकास वांछित दिशा में हो।”
- ओटावे के अनुसार, “विद्यालय को एक ऐसा सामाजिक आविष्कार मानना चाहिए जो समाज के बालकों के लिए विशेष प्रकार की शिक्षा प्रदान करने में समर्थ हो।’
- रॉस के अनुसार, “विद्यालय वे संस्थाएँ हैं, जिनको सभ्य मनुष्य के द्वारा इस उद्देश्य से स्थापित किया जाता है कि समाज में सुव्यवस्थित और योग्य सदस्यता के लिए बालकों की तैयारी में सहायता मिले।”
- टी० पी० नन के अनुसार, “विद्यालय को मुख्य रूप से इस प्रकार का स्थान नहीं समझा जाना चाहिए जहाँ किसी निश्चित ज्ञान को सीखा जाता है, वरन् ऐसा स्थान जहाँ बालकों को क्रियाओं के उन निश्चित रूपों में प्रशिक्षित किया जाता है जो इस विशाल संसार में सबसे महान् और सबसे अधिक महत्त्व वाली है।”
विद्यालय की आवश्यकता और उपयोगिता
(Need and Utility of School)
आज विद्यालय शिक्षा का एक आवश्यक, औपचारिक, शक्तिशाली एवं महत्त्वपूर्ण स्थान बन गया है। आधुनिक समाज में विद्यालये की आवश्यकता तथा उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए एस० बालकृष्ण जोशी लिखते हैं, “किसी भी राष्ट्र की प्रगति का निर्माण विधानसभाओं, न्यायालयों और फैक्ट्रियों में नहीं, बल्कि विद्यालयों में होता है।”
उपर्युक्त विवेचन से निष्कर्ष निकलता है कि शिक्षा का सविधिक तथा औपचारिक साधन विद्यालय, व्यक्ति और समाज, दोनों की ही प्रगति के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण, आवश्यक एवं उपयोगी है। किसी भी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व्यवस्था के अन्तर्गत इसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। टी० पी० नन का कहना है, एक राष्ट्र के विद्यालय उसके जीवन के वे अंग हैं, जिनका विशेष कार्य है उसकी आध्यात्मिक शक्ति को दृढ़ बनाना, उसकी ऐतिहासिक निरन्तरता को बनाए रखना, उसकी भूतकाल की सफलताओं को सुरक्षित रखना और उसके भविष्य की गारण्टी करना।”
प्रश्न 2.
शिक्षा के एक मुख्य औपचारिक अभिकरण के रूप में विद्यालय के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
विद्यालय के कार्यों की व्याख्या कीजिए। विद्यालय के चार प्रमुख कार्यों की व्याख्या कीजिए।
वैयक्तिक विकास के विचार से विद्यालय के कार्यों को लिखिए।
उत्तर:
विद्यालय के कार्य
(Functions of School)
विद्यालय के कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं|
1.शारीरिक विकास- आधुनिक विद्यालयों का प्रमुख एवं प्रथम कर्तव्य बालक का शारीरिक विकास करना है। बालकों का मानसिक विकास, शारीरिक विकास पर ही निर्भर करता है। अत: बालकों को स्वच्छता व स्वास्थ्यवर्द्धन का विद्यालय के कार्य प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु प्रत्येक विद्यालय अपने प्रांगण में खेलकूद और व्यायाम का समुचित प्रबन्ध रखता है। इसके अलावा आजकल विद्यालयों में बच्चों के लिए सन्तुलित आहार एवं चिकित्सा सेवा की व्यवस्था भी रहती है।
2. मानसिक विकास- विद्यालय का दूसरा औपचारिक कार्य प्रशिक्षण बालक का मानसिक एवं बौद्धिक विकास करना है। विद्यालय का । सामाजिक प्रशिक्षण वातावरण एवं क्रियाएँ इस प्रकार की हैं कि बालक में ज्ञान की भूख ” भावात्मक एवं सौन्दर्यात्मक जाग्रत हो और उसमें अधिक-से-अधिक जानने के लिए जिज्ञासा व प्रशिक्षण उत्सुकता पैदा हो। शिक्षा का एक विशिष्ट कार्य बालक की रुचि के नेतृत्व एवं नागरिकता के गुणों का अभिरुचि, योग्यता तथा आवश्यकताओं के अनुसार उसकी मानसिक विकास शक्तियों का विकास करना है। मानसिक रूप से विकसित बालक ही बौद्धिक उन्नति को प्राप्त कर भावी जीवन के मूल्यों का निर्माण कर सकता है।
3. नैतिक एवं चारित्रिक विकास- बालक में नैतिक-चरित्र विकसित करना विद्यालय का तीसरा औपचारिक कर्तव्य है। चारित्रिक विकास की दृष्टि से विद्यालय में इस प्रकार का वातावरण तैयार किया जाना चाहिए जिससे कि बालक में नैतिक मूल्यों का प्रादुर्भाव एवं विकास हो सके। शिक्षार्थियों का नैतिक विकास समाज के वातावरण पर निर्भर करता है। अत: विद्यालय को उपयुक्त सामाजिक वातावरण की रचना तथा उत्तम सामाजिक क्रियाओं की व्यवस्था में भी योगदान करना चाहिए। वस्तुत: सामाजिक वातावरण में सामाजिक क्रियाओं के माध्यम से ही बालकों में नैतिक गुण एवं आदर्श आचरण का विकास सम्भव है।
4. व्यावसायिक एवं औद्योगिक प्रशिक्षण- विद्यालय का एक महत्त्वपूर्ण कार्य यह है कि वह बालक को भावी जीवन में आत्मनिर्भर बनने के लिए व्यावसायिक एवं औद्योगिक प्रशिक्षण प्रदान करे। माध्यमिक शिक्षा की समाप्ति पर आधुनिक विद्यालय बालकों की रुचि एवं रुझान के व्यवसायों में उचित प्रशिक्षण प्रदान करते हैं। विद्यालय ऐसे विभिन्न व्यवसायों की शिक्षा का प्रबन्ध करते हैं जो शिक्षार्थियों को आगे चलकर अपने निर्दिष्ट व्यवसाय को चुनने में सहायता दे सके और इस भाँति उन्हें जीविकोपार्जन के लिए तैयार कर सके। यही कारण है कि वर्तमान समय में व्यावसायिक और औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं का महत्त्व उत्तरोत्तर बढ़ रहा है।
5. सामाजिक प्रशिक्षण- आधुनिक समय में यह विचारधारा परिपक्व एवं सर्वमान्य होती जा रही है । कि विद्यालय को सामुदायिक केन्द्र के रूप में कार्य करना चाहिए। सामाजिक पुनर्रचना के दायित्व का निर्वाह करने की दृष्टि से विद्यालय सामाजिक समारोहों, सामाजिक कार्यों तथा समाज-सेवा के माध्यम से बालकों को उचित सामाजिक प्रशिक्षण प्रदान करते हैं।
6. भावात्मक एवं सौन्दर्यात्मक प्रशिक्षण- बच्चों को भावात्मक एवं सौन्दर्यात्मक प्रशिक्षण प्रदान करना भी विद्यालय का एक प्रमुख औपचारिक कार्य हैं। आधुनिक विद्यालयों में संगीत सम्मेलनों, नाटकों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, वाद-विवाद प्रतियोगिताओं तथा चित्रकला प्रदर्शनियों का आयोजन कर शिक्षार्थियों को भावात्मक तथा सौन्दर्यात्मक परीक्षण दिया जाता है।
7. नेतृत्व एवं नागरिकता के गुणों का विकास- लोकतन्त्र की सफलता उत्तम नेतृत्व एवं नागरिकता पर निर्भर करती है। विद्यालय के वातावरण तथा गतिविधियों के अन्तर्गत ही बालक-बालिकाओं में श्रेष्ठ नेतृत्व के गुणों का विकास होता है। इसके अतिरिक्त विद्यालय ही बालकों को अपने कर्तव्य एवं अधिकार समझने की तथा उनका उचित उपयोग करने की शिक्षा प्रदान करते हैं। बालक को समाज में अपना योग्य एवं विशिष्ट स्थान बनाने का प्रशिक्षण भी विद्यालय द्वारा ही प्राप्त होता है। स्पष्टत: विद्यालय के प्रधान कर्तव्यों में आदर्श नागरिकता एवं नेतृत्व के गुणों का विकास भी सम्मिलित है।
8. मानव-मात्र का कल्याण- शिक्षा का एकमात्र अभीष्ट लक्ष्य मानव-मात्र का कल्याण करना है। शिक्षा की औपचारिक संस्थाएँ विद्यालय हैं। वस्तुत: विद्यालय ज्ञान के वे महान् प्रकाश-स्तम्भ हैं जो विचलित एवं भूले-भटके मनुष्यों को सत्य का मार्ग दिखाते हैं। ज्ञानयुक्त मानव ही सुखी, समृद्ध, शान्त एवं सम्यक् जीवन जी सकता है। सद्ज्ञान, त्याग, परोपकार एवं नि:स्वार्थ सेवा का भाव जगाता है। इस भॉति सद्ज्ञान एवं वास्तविक शिक्षा प्रदान कर विद्यालय मानव-मात्र का कल्याण करते हैं।
प्रश्न 3 घर तथा विद्यालय में सम्बन्ध स्थापित करने के मुख्य उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
घर एवं परिवार बालक की प्रथम पाठशाला है। घर में बालक की प्रारम्भिक शिक्षा की व्यवस्था होती है तथा शिक्षा को विस्तृत रूप प्रदान करने का कार्य विद्यालय द्वारा किया जाता है। इस स्थिति में बच्चों की शिक्षा की सुचारु व्यवस्था के लिए घर तथा विद्यालय में परस्पर अच्छे सम्बन्ध एवं सहयोग का होना अति आवश्यक है। इस सहयोगात्मक सम्बन्ध को स्थापित करने के लिए मुख्य रूप से निम्नलिखित उपायों या विधियों को अपनाना आवश्यक है|
1. अभिभावकों का सम्मेलन- समय-समय पर विद्यालय के घर तथा विद्यालय में सम्बन्ध प्रांगण में अभिभावकों के सम्मेलन आयोजित होते रहने चाहिए और स्थापित करने के उपाय उनमें सभी वर्गों के प्रतिनिधियों को आमन्त्रित किया जाना चाहिए, ताकि उस बालक के माता-पिता, गुरुजनों तथा समाज के ‘प्रतिनिधियों को परस्पर मिलने का अवसर प्राप्त हो सके। सभी लोग प्रधानाचार्य का सहयोग एकत्र होकर बालकों की पढ़ाई-लिखाई तथा अनुशासन सम्बन्धी विद्यालय द्वारा आर्थिक दण्ड नहीं समस्याओं पर विचार-विमर्श कर सकते हैं और उनका उचित हल खोज सकते हैं। यदि गृह एवं समुदाय के लोग विद्यालय के लगन क्रिया-कलापों में रुचि प्रदर्शित कर सहयोग देंगे तो इससे शिक्षा की व्यवस्था सुन्दर बन सकेगी।
2. बालक की प्रगति-रिपोर्ट- विद्यालय को चाहिए कि वह घर सामायिक जीवन के केन्द्र से सम्बन्ध स्थापित करने हेतु समय-समय पर बालकों की प्रगति-रिपोर्ट अभिभावकों को भेजता रहे। उधर अभिभावकों को भी कर्तव्य है कि वे अपने बालक की पढ़ाई-लिखाई तथा चाल-चलन पर पूरा ध्यान दें और वस्तुस्थिति से शिक्षकों को लगातार अवगत कराते रहें। यदि बालक अध्ययन-कार्य में कम रुचि ले रहा है या अनुशासनहीन । हो रहा है तो अभिभावकों को तत्काल ही विद्यालय से सम्पर्क स्थापित कर समस्या का निराकरण करना चाहिए।
3. प्रधानाचार्य का सहयोग- समस्याग्रस्त बालक के अभिभावक की रिपोर्ट पर प्रधानाचार्य को तुरन्त ध्यान देना चाहिए। सम्भव है बालक स्कूल से घर जल्दी या बहुत देर में पहुँचता हो, गृहकार्य न करता हो, बुरी संगति का शिकार हो गया हो या कक्षा छोड़कर भाग जाता हो आदि। सभी दशाओं में शिकायत मिलने पर प्रधानाचार्य का कर्तव्य है कि वह बालक को सम्बन्धित शिक्षक के सामने बुलाकर उसके बारे में बातचीत करे, समझाए या दण्ड दे और भविष्य में उस पर पूरी निगाह रखें। इस प्रकार प्रधानाचार्य का सहयोग घर तथा विद्यालय को परस्पर जोड़ने में मदद देता है।
4. विद्यालय द्वारा आर्थिक दण्ड नहीं- आर्थिक दण्ड का प्रत्यक्ष भार बालक के माता-पिता पर पड़ता है, जिससे उन्हें परेशानी हो सकती है। अत: अधिकतम सहयोग लेने की दृष्टि से विद्यालय को चाहिए कि बच्चों को कभी भी आर्थिक दण्ड न दिया जाए। । 5. शिक्षक बालक के घर जाए-शिक्षा के विभिन्न साधनों के बीच तालमेल स्थापित करने की दृष्टि से समय-समय पर शिक्षक का बालक के घर जाना आवश्यक है। शिक्षकों को चाहिए कि वे समय निकालकर बालक के अभिभावकों से उनके घर सम्पर्क स्थापित करें, उनसे बालक की समस्या जाने और उनका यथोचित समाधान तलाश करें। सभी शिक्षा-मनोवैज्ञानिकों का मत है कि शिक्षक को समस्यात्मक बालक के घर अनिवार्य रूप से जाना चाहिए।
5. शिक्षकों की सत्यनिष्ठा एवं लगन- शिक्षक को विद्यालय के अन्तर्गत अपने कर्तव्य की पूर्ति अत्यन्त सत्यनिष्ठा, लगन एवं तत्परता के साथ करनी चाहिए। इससे बालकों तथा अभिभावकों पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है, जिसके परिणामत: वे शिक्षकों को अधिकाधिक सम्मान की दृष्टि से देखते हैं और उनसे सम्पर्क बनाकर प्रसन्न तथा प्रेरित होते हैं।
7. सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार- शैक्षिक अधिकारियों का बालकों के अभिभावकों तथा समुदाय के प्रतिनिधियों के साथ प्रेम एवं सहानुभूतिपूर्ण तथा मानवीय व्यवहार होना चाहिए। शिक्षा के विभिन्न अभिकरणों का एक-दूसरे से उत्तम व्यवहार, विश्वास और सहयोग की दिशा में एक सार्थक कदम है।
8. सामाजिक कार्य- समाज सेवा, राष्ट्रीय सेवा योजना, श्रमदान, सफाई सप्ताह, बालचर संघ तथा प्रौढ़ शिक्षा आदि सामाजिक कार्य क्योंकि समाज के कल्याण की भावना से परिपूर्ण होते हैं; अत: अभिभावकों, शिक्षकों तथा शिक्षार्थियों को मिलकर इसमें भागीदारी करनी चाहिए। इस प्रकार के सामाजिक क्रियाकलापों से घर, विद्यालय तथा समुदाय के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध बनेंगे।
9. सामुदायिक जीवन के केन्द्र- विद्यालयों की स्थापना समुदाय द्वारा जनकल्याण की भावना से की जाती है; अतः विद्यालयों को सामुदायिक जीवन का सबल एवं सजीव केन्द्र होना चाहिए। इसके लिए विद्यालय के प्रांगण में प्रौढ़ शिक्षा, स्त्री शिक्षा, रात्रि पुस्तकालय एवं वाचनालय तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों की व्यवस्था की जा सकती है। परिवार एवं समुदाय द्वारा विद्यालय के साधनों का उपयोग एक स्वस्थ परम्परा को जन्म देता है, जिसके फलस्वरूप गृह, विद्यालय एवं समुदाय के सदस्यों के बीच गहन सूझ-बूझ तथा अन्तर्सम्बन्ध स्थापित होते हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
विद्यालय से आप क्या समझते हैं ? विद्यालय को एक प्रभावशाली अभिकरण बनाने के लिए आप क्या सुझाव देंगे ?
शिक्षा के अभिकरण के रूप में विद्यालय का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में बच्चों को औपचारिक रूप से शिक्षा प्रदान करने वाला मुख्यतम अभिकरण ‘विद्यालय’ (School) कहलाता है। विद्यालय शिक्षा का औपचारिक अभिकरण है। सभ्य मानव समाज ने अपनी सोच के बल पर विद्यालयों का विकास किया है। ओटावे के अनुसार, ‘‘विद्यालय को एक सामाजिक आविष्कार मानना चाहिए जो समाज के बालकों के लिए विशेष प्रकार की शिक्षा प्रदान करने में समर्थ है। इसी प्रकार रॉस ने स्पष्ट किया है, “विद्यालय वे संस्थाएँ हैं, जिनको सभ्य मनुष्य के द्वारा इस उद्देश्य से स्थापित किया जाता है कि समाज में सुव्यवस्थित और योग्य सदस्यता के लिए बालकों को तैयारी में सहायता मिले।”
स्पष्ट है कि बच्चों की व्यवस्थित शिक्षा में विद्यालय का विशेष महत्त्व है। अब प्रश्न उठता है कि विद्यालयों को शिक्षा का अधिक प्रभावशाली एवं उपयोगी अभिकरण कैसे बनाया जाए? इसके लिए प्रथम सुझाव यह है कि विद्यालय की अनुशासन व्यवस्था अति उत्तम होनी चाहिए। विद्यालयों का शैक्षिक वातावरण अधिक-से-अधिक सौहार्दपूर्ण, आदर्शपरक तथा मूल्यपरक होना चाहिए। विद्यालय में अध्यापकों की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। अध्यापकों को पूर्ण निष्ठा एवं लगन से तथा दायित्वपूर्ण ढंग से अध्यापन कार्य । करना चाहिए। विद्यालय प्रबन्धन द्वारा शिक्षा के स्तर को हर प्रकार से उन्नत करने के सभी सम्भव उपाय किए जाने चाहिए।
प्रश्न 2 शिक्षा के औपचारिक अभिकरण के रूप में विद्यालय का विकास कैसे हुआ है ?
उत्तर:
विद्यालय के विकास के कारक
(Points of Development of Schools)
शिक्षा के औपचारिक अभिकरण के रूप में व्यवस्थित विद्यालयों का विकास सभ्यता के पर्याप्त विकास के बहुत बाद में हुआ है। शिक्षा के औपचारिक अभिकरण के रूप में विद्यालय के विकास को प्रोत्साहन देने वाले मुख्य कारक निम्नलिखित हैं
1. पारम्परिक परिवार के स्वरूप में परिवर्तन- पारम्परिक रूप से परिवार का स्वरूप एवं आकार आज के एकाकी परिवार से नितान्त भिन्न था। परिवार बड़े एवं विस्तृत थे। इस प्रकार के परिवारों में बच्चों की सामान्य शिक्षा की समुचित व्यवस्था परिवार में ही हो जाती थी। परन्तु जब पारम्परिक परिवार ने क्रमशः एकाकी परिवार का रूप ग्रहण किया तो परिवार में बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था हो पाना असम्भव हो गया। अत: बच्चों की शिक्षा की सुचारु व्यवस्था के लिए व्यवस्थित विद्यालयों की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी। इसके अतिरिक्त सभ्यता के विकास के साथ-साथ शिक्षा भी अधिक विस्तृत, विशिष्ट एवं जटिल हो गई। इस प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था घर पर सम्भव नहीं थी।
2. परिवार द्वारा दायित्वमुक्त होना- पारम्परिक रूप से बच्चों की शिक्षा का दायित्व परिवार का होता था, परन्तु वर्तमान सभ्यता के विकास के परिणामस्वरूप बच्चों की शिक्षा को सार्वजनिक एवं सामाजिक क्षेत्र का कार्य मान लिया गया। इसके साथ ही शिक्षा की व्यवस्था करने के लिए विद्यालय का विकास भी हुआ।
3. विद्यालय के विकास के आर्थिक कारण- विद्यालय के विकास के लिए कुछ आर्थिक कारक भी जिम्मेदार हैं। सभ्यता के विकास के साथ-साथ परिवार की आर्थिक समस्याएँ बढ़ने लगीं। इन दशाओं में बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था करना परिवार के लिए प्रायः असम्भव हो गया। अत: बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था के लिए विद्यालय का प्रादुर्भाव हुआ।
प्रश्न 3.
विद्यालय की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विद्यालय की प्रमुख विशेषताएँ
(Main Characteristics of School)
शिक्षा के प्रमुख औपचारिक अभिकरण के रूप में विद्यालय की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं|
- विद्यालय एक औपचारिक अभिकरण है। इसका उद्देश्य छात्रों में आदर्श नागरिकों के गुणों को विकसित करना होता है। विद्यालय अपने आप में समाज की एक लघु संस्था है।
- विद्यालय एक सामाजिक ढाँचा है। इस व्यवस्था में छात्रों द्वारा विभिन्न विषयों को सीखने का तथा अध्यापकों द्वारा सिखाने का कार्य किया जाता है।
- औपचारिक अभिकरण होने के कारण विद्यालय की एक स्पष्ट तथा निश्चित नीति निर्धारित की जाती है जिसका पालन सभी पक्षों द्वारा किया जाता है।
- विद्यालय के कार्य सुचारु तथा नियमित रूप से सम्पन्न होते हैं।
- विद्यालय की एक अपनी संस्कृति होती है। यह सबके हित के लिए होती है तथा सभी पक्ष इसका पालन करते हैं।
- विद्यालय के माध्यम से सामूहिक ढंग से जीवन व्यतीत किया जाता है। इससे जुड़े सभी व्यक्तियों के लिए ‘मैं’ या ‘मेरे’ के स्थान पर ‘हम’ या ‘हमारे’ का भाव प्रबल होता है।
- विद्यालय की एक विशेषता यह है कि इस वातावरण में अनेक प्रकार की सामाजिक अन्तर्कियाएँ । सम्पन्न होती हैं। ये अन्तर्कियाएँ विभिन्न बालकों के मध्य, बालकों तथा अध्यापकों के मध्य, अध्यापक तथा अध्यापक के मध्य, अध्यापकों एवं प्रधानाचार्य के मध्य सम्पन्न हुआ करती हैं।
प्रश्न 4.
विद्यालय के सामान्य महत्त्व का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विद्यालय का सामान्य महत्त्व
(General Importance of School)
विद्यालय के सामान्य महत्त्व का विवरण निम्नलिखित है|
- आधुनिक जीवन अत्यधिक जटिल होता जा रहा है। जनसंख्या, आवश्यकताओं तथा मूल्य-वृद्धि ने मनुष्यों को जीवन-व्यापार में असामान्य रूप से व्यस्त कर दिया है। लोगों के पास इतना समय नहीं रह गया है। कि वे अपने बच्चों की शिक्षा की देखभाल कर सकें। अत: शिक्षा सम्बन्धी अधिकतम दायित्व विद्यालय के पास आ गए हैं।
- अपने सुनिश्चित उद्देश्य तथा पूर्व-नियोजित शैक्षिक कार्यक्रमों के माध्यम से विद्यालय बालक के व्यक्तित्व को व्यापक रूप से प्रभावित करता है। यहाँ बालक के व्यक्तित्व का सामंजस्यपूर्ण विकास होता
- विद्यालय में राज्य के लिए उपयोगी नागरिक के गुणों; जैसे-धैर्य, सहयोग, उत्तरदायित्व आदि का विकास होता है। वस्तुतः विद्यालय ही एकमात्र वह साधन है जिसके द्वारा शिक्षित नागरिकों का निर्माण सम्भव है।
- शिक्षा की प्रक्रिया सामाजिक है और विद्यालय एक प्रमुख सामाजिक संस्था है। विद्यालय में समाज की निरन्तरता और विकास के लिए सभी प्रभावपूर्ण साधन केन्द्रित होते हैं।
- विद्यालय राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरित करने के अभिकरण हैं। इसके अतिरिक्त ये बालकों में बहुमुखी संस्कृति का विकास करने का महत्त्वपूर्ण साधन भी हैं।
- विद्यालय गृह एवं व्यापक विश्व को जोड़ने वाली कड़ी हैं। जैसा कि रेमॉण्ट का कथन है, “विद्यालय बाह्य जीवन के बीच की अर्द्ध-पारिवारिक कड़ी है जो बालक की उस समय प्रतीक्षा करता है, जब वह अपने माता-पिता की छत्रछाया को छोड़ती है।”
प्रश्न 5.
घर तथा विद्यालय में पाए जाने वाले सम्बन्ध का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
घर तथा विद्यालय का आपसी सम्बन्ध
(Relation between Home and School)
घर अथवा परिवार तथा विद्यालय के आपसी सम्बन्ध की आवश्यकता एवं महत्त्व को रॉस ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है, “यदि गृह एवं विद्यालय के बीच सहयोग या सामंजस्य स्थापित न किया जाए तो बालक का अत्यधिक अहित होगा। घर बालक का प्रथम विद्यालय है और विद्यालय एक प्रकार से घर का विस्तार है। शिक्षण संस्था के रूप में विद्यालय घर का स्थान नहीं ले सकता, परन्तु इन दोनों के बीच विशेष सहयोग होता है।” घर अथवा परिवार तथा विद्यालय के आपसी सम्बन्ध का संक्षिप्त विवरण निम्नवर्णित है
- घर तथा विद्यालय दोनों ही समाज की अभिन्न इकाइयाँ हैं तथा बालक के सर्वांगीण विकास के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं।
- बच्चों का जीवन घर एवं विद्यालय में ही व्यतीत होता है। बच्चा घर से विद्यालय जाता है तथा विद्यालय से घर के वातावरण में पुनः आ जाता है। इस प्रकार से घर तथा विद्यालय दोनों ही बच्चों के व्यक्तित्व के विकास में निरन्तर योगदान प्रदान करते हैं।
- बच्चे की शिक्षा की प्रक्रिया में विद्यालय तथा परिवार दोनों का योगदान होता है। विद्यालय द्वारा दिया गया गृह-कार्य आदि परिवार के सदस्यों की सहायता से पूरा होता है। विद्यालय की विभिन्न शैक्षिक गतिविधियों को सुचारु रूप से पूरा करने के लिए परिवार की सहायता अति आवश्यक होती है।
उपर्युक्त विवरण द्वारा स्पष्ट है कि घर अथवा परिवार तथा विद्यालय परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध है। बच्चों की शिक्षा के दृष्टिकोणों से ये दोनों परस्पर पूरक हैं। घर शिक्षा का मुख्यतम अनौपचारिक अभिकरण है, जब कि विद्यालय शिक्षा का मुख्यतम औपचारिक अभिकरण है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
स्पष्ट कीजिए कि पारिवारिक परिस्थितियों में होने वाले परिवर्तन ने विद्यालय के विकास को प्रोत्साहन दिया है ?
उत्तर:
पारम्परिक रूप से घर या परिवार ही बच्चों को शिक्षा प्रदान करने का कार्य करता था, परन्तु सभ्यता के विकास के साथ-साथ परिवार की परिस्थितियाँ, कार्य-क्षेत्र एवं स्वरूप में उल्लेखनीय परिवर्तन होने लगा। इस स्थिति में घर-परिवार द्वारा बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था कर पाना कठिन हो गया। परिणामस्वरूप, बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था करने के लिए विद्यालय का विकास हुआ। एक अन्य पारिवारिक कारक ने भी विद्यालय के विकास में उल्लेखनीय योगदान प्रदान किया। यह कारक था शिक्षा का अधिक जटिल तथा विस्तृत हो जाना। इस प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था कर पाना परिवार के लिए सम्भव नहीं था। अत: विद्यालय का प्रादुर्भाव एवं विकास हुआ।
प्रश्न 2.
बच्चों की शिक्षा की सुव्यवस्था के लिए घर तथा विद्यालय में समुचित सहयोग की आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बच्चों की शिक्षा की सुव्यवस्था के लिए घर तथा विद्यालय के बीच समुचित सहयोग अति आवश्यक है। वास्तव में घर बच्चों की शिक्षा की प्रथम पाठशाला है तथा उनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर-परिवार द्वारा शुरू की जाती है। शिक्षा की इस प्रक्रिया को विस्तृत, व्यवस्थित तथा विशिष्ट रूप प्रदान करने का कार्य विद्यालय द्वारा किया जाता है। विद्यालय द्वारा बच्चों को शिक्षित करने के कार्य में परिवार द्वारा महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान किया जाता है। बच्चे की पारिवारिक समस्याओं के निवारण में शिक्षक द्वारा समुचित योगदान दिया जा सकता है। इसी प्रकार से बच्चे को विद्यालय सम्बन्धी समस्याओं के समाधान में भी परिवार को सहयोग आवश्यक होता है। वर्तमान समय में विद्यालय की शिक्षा पर्याप्त व्यय-साध्य हो गई है। यह खर्च परिवार द्वारा ही वहन किया जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि बच्चों की शिक्षा की सुव्यवस्था के लिए घर तथा विद्यालय में समुचित सहयोग अति आवश्यक है।
प्रश्न 3.
आपके विचारानुसार घर तथा विद्यालय में आवश्यक सहयोग कैसे स्थापित किया जा सकता है?
उत्तर:
बच्चों की सुचारु शिक्षा के लिए घर-परिवार तथा विद्यालय के बीच में समुचित सहयोग होना। अति आवश्यक है। इस प्रकार का सहयोग स्थापित करने के लिए विद्यालय के शिक्षकों तथा बच्चों के अभिभावकों के बीच निकटता के सम्बन्ध एवं नियमित सम्पर्क बना रहना अति आवश्यक है। इस सम्पर्क के लिए विद्यालय द्वारा शिक्षक-अभिभावक संघ की स्थापना की जानी चाहिए तथा इस संघ की समय-समय पर बैठक होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त शिक्षकों को भी कभी-कभी बच्चों के घर जाना चाहिए। शिक्षकों का दायित्व है कि वे बच्चों की शैक्षिक, अनुशासनात्मक तथा व्यक्तिगत गतिविधियों से उनके अभिभावकों को अवगत कराते रहें। इन सभी उपायों द्वारा घर तथा विद्यालय के बीच आवश्यक सहयोग स्थापित किया जा सकता है।
निश्चित उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
शाब्दिक दृष्टिकोण से विद्यालय के अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘विद्यालय’ शब्द ‘विद्या’ तथा ‘आलय’ दो शब्दों के योग से बना है। इस प्रकार से विद्यालय का अर्थ है–विद्या या ज्ञान का घर।
प्रश्न 2 ‘विद्यालय की एक संक्षिप्त परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
“विद्यालय वे संस्थाएँ हैं, जिनको सभ्य मनुष्य के द्वारा इस उद्देश्य से स्थापित किया जाता है कि समाज में सुव्यवस्थित और योग्य सदस्यता के लिए बालकों की तैयारी में सहायता मिले।” –रॉस
प्रश्न 3.
“विद्यालय को एक ऐसा सामाजिक आविष्कार मॉनना चाहिए जो समाज के बालकों के लिए
विशेष प्रकार की शिक्षा प्रदान करने में समर्थ हो।” यह कथन किसका है ?
उत्तर:
प्रस्तुत कथन प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री ओटावे का है।
प्रश्न 4.
कोई ऐसा कथन लिखिए जो विद्यालयों के महत्त्व एवं उपयोगिता को स्पष्ट करता हो?
उत्तर:
“किसी भी राष्ट्र का निर्माण तथा प्रगति विधानसभाओं, न्यायालयों तथा फैक्ट्रियों में नहीं, बल्कि विद्यालयों में होता है।” एस० बालकृष्ण जोशी
प्रश्न 5. विद्यालय शिक्षा का किस प्रकार का अभिकरण है ?
उत्तर:
विद्यालय शिक्षा का मुख्यतम औपचारिक अभिकरण है।
प्रश्न 6.
आधुनिक युग के विद्यालयों के व्यवस्थित गठन से पूर्व बच्चों की शिक्षा का दायित्व किस सामाजिक संस्था का था ?
उत्तर:
आधुनिक युग के विद्यालयों के व्यवस्थित गठन से पूर्व बच्चों की शिक्षा का दायित्व परिवार का था।
प्रश्न 7.
परिवार ने अपने आपको बच्चों की शिक्षा के दायित्व से मुक्त क्यों कर लिया?
उत्तर:
परिवार के आकार एवं स्वरूप के परिवर्तित हो जाने तथा शिक्षा के जटिल एवं विस्तृत हो जाने के कारण परिवार ने अपने आपको बच्चों की शिक्षा के दायित्व से मुक्त कर लिया।
प्रश्न 8.
विद्यालय के चार मुख्य कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
- छात्रों का शारीरिक एवं मानसिक विकास करना,
- छात्रों का नैतिक एवं चारित्रिक विकास करना,
- व्यावसायिक एवं औद्योगिक प्रशिक्षण प्रदान करना तथा
- नेतृत्व एवं नागरिकता के गुणों का विकास करना।
प्रश्न 9.
बच्चों की शैक्षिक-व्यवस्था के दृष्टिकोण से घर तथा विद्यालय के सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बच्चों की शैक्षिक-व्यवस्था के दृष्टिकोण से घर तथा विद्यालय परस्पर पूरक हैं।
प्रश्न 10.
बच्चों के सर्वांगीण विकास के उद्देश्य की पूर्ति के लिए घर एवं विद्यालय का क्या दायित्व है?
उत्तर:
बच्चों के सर्वांगीण विकास के उद्देश्य की पूर्ति के लिए घर एवं विद्यालय में पूर्ण सहयोग होना चाहिए।
प्रश्न 11.
“विद्यालय को वास्तव में घर का विस्तृत रूप होना चाहिए।”
उत्तर:
ऐसा किसने कहा? उत्तर जॉन डीवी ने।
प्रश्न 12.
घर एवं विद्यालय में समुचित सहयोग बनाए रखने का मुख्यतम उपाय बताइट।
उत्तर:
घर एवं विद्यालय में समुचित सहयोग बनाए रखने के लिए विद्यालय के शिक्षकों तथा बच्चों के अभिभावकों में निरन्तर सम्पर्क स्थापित होना चाहिए।
प्रश्न 13.
“शिक्षालय न तो ज्ञान की दुकान हैं और न अध्यापक उसके विक्रेता।” प्रस्तुत कथन किसका है ?
उत्तर:
प्रस्तुत कथन जॉन एडम्स का है।
प्रश्न 14 शिक्षा के अभिकरण की दृष्टि से विद्यालय और समाज में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
विद्यालय शिक्षा का प्रमुख औपचारिक अभिकरण है, इससे भिन्न समाज शिक्षा का एक अनौपचारिक अभिकरण है।
प्रश्न 15 निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य
- विद्यालय शिक्षा का मुख्यतम अनौपचारिक अभिकरण है।
- व्यक्ति की शैक्षिक योग्यता का प्रमाण-पत्र विद्यालय द्वारा ही दिया जाता है।
- घर बालक की प्रथम पाठशाला है तथा विद्यालय घर का ही विस्तृत रूप है।
- बच्चों की शिक्षा के दृष्टिकोण से धर एवं विद्यालय का परस्पर सहयोग अनावश्यक एवं व्यर्थ है।
- बच्चों की सुचारु शिक्षा-व्यवस्था के लिए सभी विद्यालयों में अभिभावक-शिक्षक संघ होना अति आवश्यक है।
उत्तर:
- असत्य,
- सत्य,
- सत्य,
- असत्य,
- सत्य।
बहुविकल्पीय प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए
प्रश्न 1.
“विद्यालय बाह्य जीवन के बीच एक अर्द्ध-पारिवारिक कड़ी है, जो बालक की उस समय प्रतीक्षा करता है जब वह अपने माता-पिता की छत्रछाया को छोड़ता है।” यह कथन किसका है?
(क) जॉन डीवी का
(ख) रेमॉण्ट का।
(ग) फ्रॉबेल का।
(घ) टी० पी० नन का
प्रश्न 2.
आधुनिक युग में विद्यालय के विकास का कारक है
(क) परिवार के आकार एवं स्वरूप में परिवर्तन
(ख) शिक्षा का जटिल एवं विस्तृत हो जाना
(ग) शिक्षा-व्यवस्था को सामाजिक दायित्व स्वीकार करना
(घ) उपर्युक्त सभी कारण :
प्रश्न 3.
विद्यालय से आशय है
(क) यह शिक्षा का मुख्य अनौपचारिक अभिकरण है।
(ख) यह शिक्षा का मुख्य औपचारिक अभिकरण है।
(ग) यह शिक्षा का व्यावसायिक अभिकरण है।
(घ) यह शिक्षा का अनावश्यक अभिकरण है।
प्रश्न 4.
विद्यालय की विशेषता नहीं है।
(क) बालक के बहुपक्षीय विकास में योगदान प्रदान करना
(ख) बालक की शैक्षिक योग्यता का प्रमाण-पत्र प्रदान करना
(ग) आजीवन शिक्षा की प्रक्रिया का परिचालन करना
(घ) उपर्युक्त सभी विशेषताएँ।
प्रश्न 5.
घर एवं विद्यालय के आपसी सम्बन्ध को स्पष्ट करने वाला कथन है
(क) घर एवं विद्यालय दो नितान्त भिन्न संस्थाएँ हैं।
(ख) घर पालन-पोषण करता है, जबकि विद्यालय शिक्षा की व्यवस्था करता है।
(ग) घर तथा विद्यालय परस्पर पूरक संस्थाएँ हैं।
(घ) घर एवं विद्यालय परस्पर विरोधी संस्थाएँ हैं।
प्रश्न 6.
घर तथा विद्यालय में सहयोग स्थापित करने का उपाय है
(क) प्रत्येक विद्यालय में शिक्षक-अभिभावक संघ स्थापित करना
(ख) विद्यालय के विभिन्न उत्सवों में अभिभावकों को आमन्त्रित करना
(ग) शिक्षकों का अभिभावकों से निरन्तर सम्पर्क रहना
(घ) उफ्र्युक्त सभी उपाय
प्रश्न 7.
औपचारिक शिक्षा का प्रमुख साधन है
(क) घर
(ख) समाज
(ग) राज्य
(घ) विद्यालय
प्रश्न 8.
विद्यालय शिक्षा के किस अभिकरण के उदाहरण हैं ?
(क) औपचारिक अभिकरण
(ख) अनौपचारिक अभिकरण
(ग) निरौपचारिक अभिकरण
(घ) निष्क्रिय अभिकरण
प्रश्न 9.
विद्यालय के महत्व को दर्शाने वाला कथन है
(क) विद्यालय में ढीला-ढाला अनुशासन होता है।
(ख) विद्यालय एक विस्तृत संस्था है।
(ग) विद्यालय का घर-परिवार से कोई सम्बन्ध नहीं है।
(घ) विद्यालय घर तथा समाज को जोड़ने वाली कड़ी है।
उत्तर:
1. (ख) रेमॉण्ट का,
2. (घ) उपर्युक्त सभी कारण,
3. (ख) यह शिक्षा का मुख्य औपचारिक अभिकरण है,
4. (ग) आजीवन शिक्षा की प्रक्रिया का परिचालन करना,
5. (ग) घर तथा विद्यालय परस्पर पूरक संस्थाएँ हैं,
6. (घ) उपर्युक्त सभी उपाय,
7. (घ) विद्यालय,
8. (क) औपचारिक अभिकरण,
9. (घ) विद्यालय घर तथा समाज को जोड़ने वाली कड़ी है।
We hope the UP Board Solutions for Class 11 Pedagogy Chapter 7 School: As a Formal Agency of Education (विद्यालय: शिक्षा के औपचारिक अभिकरण के रूप में) help you.