UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi कथा भारती Chapter 3 प्रायश्चित
UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi कथा भारती Chapter 3 प्रायश्चित (भगवतीचरण वर्मा)
प्रश्न 1:
‘प्रायश्चित’ कहानी का सारांश या कथानक अपनी भाषा में लिखिए।
उत्तर:
‘प्रायश्चित’ कहानी प्रसिद्ध कथाकार भगवतीचरण वर्मा की यथार्थवादी व्यंग्यात्मक रचना है। इस कहानी का सारांश निम्नवत् है-
कबरी बिल्ली यदि किसी से प्रेम करती थी तो रामू की बहू से और अगर रामू की बहू घर भर में किसी से घृणा करती थी, तो कबरी बिल्ली से। उसकी अभी नयी-नयी शादी हुई थी और वह मायके से ससुराल आयी थी। चौदह वर्ष की ‘बालिका, कभी भण्डार-घर खुला है, तो कभी वहीं बैठे-बैठे सो गयी। कबरी बिल्ली को मौका मिलता, वह घी-दूध पर जुट जाती। रामू की बहू की जान आफत में और कबरी बिल्ली के मजे। रामू की बहू घी, दूध, दही, खीर छिपाते-छिपाते तंग आ गयी। जो भी बचता कबरी के पेट में। इस तरह रामू की बहू कबरी से पूरी तरह तंग आ गयी थी। उसने अपने मन में ठान लिया कि अब इस घर में या तो कबरी रहेगी या मैं। दोनों में मोरचाबन्दी हो गयी और दोनों सतर्क। कबरी के हौसले दिन-प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे थे।
एक दिन रामू की पत्नी ने रामू के लिए खीर बनायी। पिस्ता, बादाम, मखाने और तरह-तरह के मेवे दूध में औटाये गये। खीर से भरकर कटोरा कमरे में एक ऐसे ऊँचे स्थान पर रखा गया, जहाँ कबरी न पहुँच सके। उधर कबरी कमरे में आयी, नीचे खड़े होकर उसने ऊपर कटोरे की ओर देखा, सँघा, माल अच्छा है, ताक की ऊँचाई अन्दाजी और छलाँग लगायी। पंजा कटोरे में लगी और कटोरा झनझनाहट की आवाज के साथ फर्श पर गिरा। आवाज सुनकर रामू की बहू दौड़ी, देखा तो कबरी मजे के साथ खीर खा रही है। रामू की बहू को देखकर कबरी भाग गयी। रामू की बहू पर खून सवार हो गया। उसने कुछ सोचा और एक कटोरा दूध कमरे के दरवाजे पर रखकर चली गयी। हाथ में पाटा लेकर लौटी, तो देखती है कि कबरी दूध पर जुटी हुई है। सारा बल लगाकर पाटा उसने कबरी पर पटक दिया। कबरी हिली ने डुली, न चीखी न चिल्लायी, बस एकदम उलट गयी।
घर में मानो मातम छा गया। सब एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। मिसरानी बोलीं-माँ जी, ‘बिल्ली की हत्या और आदमी की हत्या बराबर है।’ पण्डित जी बुलवाये गये। काफी भाव-ताव के बाद पण्डित जी ने उपाय में 11 तोले सोने की बिल्ली, 21 दिन के पाठ, 21 रुपये दक्षिणा और 21 दिन दोनों वक्त का भोजन निश्चित किया। दान के लिए दस मन गेहूँ, एक मन चावल, एक मन दाल, मन भर तिल, पाँच मन जौ और पाँच मन चना, चार पसेरी घी, मन भर नमक निश्चित हुआ। ग्यारह तोले सोने की बिल्ली बनवाकर लाने के लिए पण्डित जी ने रामू की माँ से कहा कि अचानक महरी ने आकर कहा कि बिल्ली तो उठकर भाग गयी।
इस कहानी में लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि चाहे कोई ज्ञानी हो या अज्ञानी, सभी को उद्देश्य धन इकट्ठा करना है। इस कहानी में धर्मभीरुता, रूढ़िवादिता एवं पाखण्डवाद को प्रस्तुत करे स्पष्ट किया गया है कि इनके पीछे मूल कारण धन ही है।
प्रश्न 2:
कहानी-कला के तत्वों के आधार पर प्रायश्चित’ कहानी की समीक्षा कीजिए।
या
‘वातावरण’ एवं ‘भाषा-शैली के आधार पर प्रायश्चित कहानी का मूल्यांकन कीजिए।
या
“प्रायश्चित’ कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
या
‘प्रायश्चित’ कहानी में चरित्र-चित्रण के कौशल पर प्रकाश डालिए।
या
‘प्रायश्चित कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
या
‘प्रायश्चित’ कहानी का शीर्षक कितना सार्थक है ? संक्षेप में लिखिए।
या
कथोपकथन की दृष्टि से ‘प्रायश्चित’ कहानी की समीक्षा कीजिए।
या
कहानी के तत्त्वों के आधार पर प्रायश्चित’ कहानी की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
श्री भगवतीचरण वर्मा हिन्दी-साहित्य के प्रसिद्ध कथाकार हैं। प्रायश्चित’ कहानी इनकी प्रसिद्ध कहानियों में से एक है। इस कहानी को स्वर यथार्थवाद है। लेखक ने इस कहानी के माध्यम से आधुनिक समाज में धर्म के नाम पर धन की लोलुपता को प्रस्तुत किया है। कहानी की तात्त्विक समीक्षा निम्नवत् है
(1) शीर्षक – इस कहानी का शीर्षक ‘प्रायश्चित है। ‘प्रायश्चित’ शीर्षक वास्तविक कथावस्तु की ओर इंगित करता है। शीर्षक में कौतूहले, सरलती, स्पष्टता, संक्षिप्तता और आकर्षण है। इससे कहानी के केन्द्रीय भाव की, झलक मिलती है, जो पाठक को कहानी पढ़ने के लिए प्रेरित करती है। शीर्षक की दृष्टि से प्रायश्चित’ एक श्रेष्ठ रचना है। कहानी के अन्तर्गत प्रारम्भ से ‘अन्त तक यह जिज्ञासा बनी रहती है कि बिल्ली के मरने पर पण्डित परमसुख द्वारा रामू के परिवार को कितने रुपये का चूना लगाया गया।
(2) कथानक या कथावस्तु – इस कहानी का कथानक मध्यमवर्गीय ग्रामीण समाज से लिया गया है तथा पुरोहितों में धर्म के नाम पर धनं-हरण के प्रति बढ़ते हुए मोह को कहानी का आधार बनाया गया है। कहानी का प्रारम्भ घर में नयी बहू के आगमन और बिल्ली द्वारा दूध के बने व्यंजनों के येन-केन प्रकारेण चट कर जाने से है। बिल्ली के आये दिन के इस कार्य से नयी बहू परेशान हो जाती है और अन्ततः वह बिल्ली को मार देने का निर्णय करती है तथा उसे पर पाटा चला देती है। पण्डित परमसुख बुलाये जाते हैं और वह बिल्ली की हत्या का जो प्रायश्चित बताते हैं, वह वर्तमान परिप्रेक्ष्य में तो कई लाख का बैठेगा। परिवारीजन इस बारे में विचार करते ही रहते हैं कि पता चलता है कि बिल्ली भाग गयी।
इस कहानी का कथानक रोचक, सरस, मौलिक, स्वाभाविक, सजीव और प्रभावशाली है। इसमें प्रारम्भ से अन्त तक कौतूहल बना रहता है। कहानी में कहानीकार ने तथाकथित पुरोहित वर्ग और उनके पौरोहित्य कर्म की पोल खोलकर रख दी है तथा सामाजिक रूढ़ियों और धर्मभीरुता के नाम पर शोषण की प्रवृत्ति को अभिव्यक्त किया है। कहानी का अन्त आकर्षक है, जो पाठक पर अपना स्पष्ट प्रभाव छोड़ता है।
(3) पात्र और चरित्र-चित्रण – यह कहानी एक मध्यमवर्गीय हिन्दू ग्रामीण-धर्मभीरु परिवार से सम्बन्धित है। कहानी में पात्रों की संख्या कम है। मुख्य पात्र रामू की बहू, कबरी बिल्ली, पण्डित परमसुख और रामू की माँ हैं। अन्य सभी पात्र–मिसरानी, छन्नू की दादी, महरी, किसनू की माँ आदि गौण पात्र हैं, जो केवल कथावस्तु को विस्तार देने के उद्देश्य से ही प्रयुक्त किये गये हैं। पात्रों के चरित्र-चित्रण में सांकेतिक प्रणाली को अपनाते हुए उनका मूल्यांकन पाठकों पर ही छोड़ दिया गया है। पात्र तथा चरित्र-चित्रण की दृष्टि से यह एक सफल कहानी है।
(4) कथोपकथन (संवाद-योजना) – कहानी की सफलता का सबसे बड़ा प्रमाण कथोपकथन की सार्थक योजना होती है। लेखक ने इस कहानी में सार्थक संवादों का प्रयोग किया है, जिसके आधार पर एक कुशल कहानीकार अपने पात्रों के चरित्र पर प्रकाश डालता है तथा कहानी की कथावस्तु का विकास करता है। प्रस्तुत कहानी के संवाद अत्यन्त संक्षिप्त और सार्थक हैं, उनमें नाटकीयता और सजीवता है। इस कहानी के संवाद सारगर्भित, संक्षिप्त, कहानी को गति देने वाले, वातावरण की सृष्टि तथा पात्रों की मन:स्थिति को स्पष्ट करने में सहायक है। कबरी के मरने पर जो प्रतिक्रिया पारिवारिक और अन्य लोगों के बीच हुई, वह भी स्वाभाविक है। एक उदाहरण द्रष्टव्य है
महरी बोली-“अरे राम! बिल्ली तो मर गयी, माँ जी, बिल्ली की हत्या बहू से हो गयी, यह तो बुरा हुआ।”
मिसरानी बोली”माँ जी, बिल्ली की हत्या और आदमी की हत्या बराबर है। हम तो रसोई न बनावेंगी, जब तक बहू के सिर हत्या गुहेगी।”
सास जी बोलीं- “हाँ ठीक तो कहती हो, अब जब तक बहू के सिर से हत्या न उतर जाए, तब तक न तो कोई पानी पी सकता है, न खाना खा सकता है। बहू, यह क्या कर डाला?”
(5) देश-काल और वातावरण – प्रायश्चित कहानी को आधार ग्रामीण-सम्भ्रान्त एवं सम्पन्न परिवार है। ‘प्रायश्चित’ एक व्यंग्यमूलक कहानी है, जिसमें सामाजिक पात्रों की स्वार्थबद्धता पर लेखक ने विनोदपूर्ण एवं चुटीला व्यंग्य किया है तथा वातावरण को प्राणवान एवं प्रभावशाली बनाने के लिए विशेष सजगता का परिचय दिया है। रामू के घर का दृश्य ही पूरे घटनाक्रम के लिए पर्याप्त है। समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, पाखण्डवाद, रूढ़िवाद और धर्मभीरुता का लेखक ने व्यंग्यपूर्ण वर्णन किया है। कहानी में आधुनिक समाज के वातावरण की सजीव दृष्टि मिलती है। आज के युग में व्यक्ति अत्यन्त स्वार्थी होता जा रहा है। बेईमानी और भ्रष्टाचार चारों ओर व्याप्त हैं। इस प्रकार प्रस्तुत कहानी में देश-काल और वातावरण का सफलता के साथ चित्रण हुआ है।
(6) भाषा-शैली – इस कहानी की भाषा आम बोल-चाल की-सरल, सरस और स्वाभाविक है। लोकोक्तियों और मुहावरों का सटीक प्रयोग किया गया है। शैली पात्रों के अनुकूल है और उनके भावों को प्रकट करने वाली है, जिसमें व्यंग्यात्मकता का पुट सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है। एक उदाहरण द्रष्टव्य है
पण्डित परमसुख मुस्कराये, अपनी तोंद पर हाथ फेरते हुए उन्होंने कहा”बिल्ली कितने तोले की बनवायी जाय? अरे रामू की माँ, शास्त्रों में तो लिखा है कि बिल्ली के वजन-भर सोने की बिल्ली बनवायी जाय, लेकिन अब कलियुग आ गया है, धर्म-कर्म को नाश हो गया है, श्रद्धा नहीं रही। सो रामू की माँ, बिल्ली के तोलभर की बिल्ली तो क्या बनेगी, क्योंकि बिल्ली बीस-इक्कीस सेर से कम की क्या होगी। हाँ, कम-से-कम इक्कीस तोले की बिल्ली बनवा के दान करवा दो और आगे तो अपनीअपनी श्रद्धा!”
रामू की माँ ने आँखें फाड़कर पण्डित परमसुख को देखा–“अरे बाप रे, इक्कीस तोला सोना! पण्डित जी यह तो बहुत है, तोलाभर की बिल्ली से काम न निकलेगा?”
पण्डित परमसुख हँस पड़े–’रामू की माँ! एक तोला सोने की बिल्ली! अरे रुपया का लोभ बहू से बढ़ गया? बहू के सिर बड़ा पाप है, इसमें इतना लोभ ठीक नहीं?”
वर्मा जी सफल कथाशिल्पी हैं और उनकी भाषा-शैली भावों तथा पात्रों के अनुकूल है।
(7) उद्देश्य – वर्मा जी की इस कहानी का उद्देश्य इस सत्य को अभिव्यंजित करना है कि वर्तमान में मनुष्य का लगाव मात्र धन में केन्द्रित है, शेष सभी रिश्ते-नाते नगण्य होते जा रहे हैं। कहानी में धर्मान्धता पर भी प्रहार किये गये हैं तथा समाज में व्याप्त रिश्वतखोरी, बेईमानी और मतलबपरस्ती पर भी यथार्थवादी व्यंग्यों का प्रहार करते हुए धर्मान्धता के वशीभूत हुए लोगों को इस पाश से निकालने का प्रयास किया गया है। लेखक को कहानी लिखने के उद्देश्य में पूर्ण सफलता मिली है। इस प्रकार प्रायश्चित’ कहानी लेखक की सफल यथार्थवादी रचना है। कहानी का आरम्भ, मध्य और समापन रोचक व औचित्यपूर्ण है। कहानी में अन्त तक यह कौतूहल बना रहता है कि प्रायश्चित में पण्डित परमसुख को क्या मिलेगा ? अन्त अप्रत्याशित और कलात्मक है। कहानी-कला की कसौटी पर ‘प्रायश्चित’ एक सफल, व्यंग्यात्मक तथा यथार्थवादी सामाजिक कहानी के रूप में खरी उतरती है।।
प्रश्न 3:
‘प्रायश्चित कहानी के आधार पर पण्डित परमसुख के चरित्र और व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
या
‘प्रायश्चित’ के पण्डित परमसुख की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
या
‘प्रायश्चित’ कहानी के प्रमुख पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
‘प्रायश्चित’ कहानी भगवतीचरण वर्मा की एक श्रेष्ठ व्यंग्यप्रधान सामाजिक रचना है, जिसमें मानव के स्वभाव को सुन्दर मनोवैज्ञानिक चित्रण हुआ है। पण्डित परमसुख कहानी के प्रमुख पात्र हैं। कहानी के प्रारम्भ में बिल्ली की मृत्यु होने के बाद वे सम्पूर्ण कहानी पर छाये हुए हैं। उनके कर्मकाण्ड कम और पाखण्ड के द्वारा वर्मा जी ने उनके चरित्र को उजागर किया है। कहानी के आधार पर उनकी चरित्रगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(1) कर्मकाण्डी ब्राह्मण – पण्डित परमसुख एक कर्मकाण्डी ब्राह्मण हैं। वह कर्मकाण्ड के स्थान पर प्रकाण्ड पाखण्ड में अधिक विश्वास रखते हैं। नित्य पूजा-पाठ करना उनको धर्म है। लोगों में उनके प्रति आस्था भी है। इसलिए बहू के द्वारा बिल्ली के मारे जाने पर रामू की माँ उन्हें ही बुलवाती है और प्रायश्चित का उपाय पूछती है।
(2) लालची – पण्डित परमसुख परम लालची हैं। लालच के वशीभूत होकर ही वह रामू की माँ को प्रायश्चित । के लिए पूजा और दान की इतनी अधिक सामग्री बताते हैं, जिससे उनके घर के छ: महीनों के अनाज का खर्च निकल जाए।
(3) पाखण्डी – पण्डित परमसुख कर्मकाण्डी कम पाखण्डी अधिक हैं। वह पाखण्ड के सहारे धन एकत्र करना चाहते हैं। बिल्ली के मरने की खबर सुनकर उन्हें प्रसन्नता होती है। जब उन्हें यह खबर मिली, उस समय वे पूजा कर रहे थे। खबर पाते ही वे उठ पड़े, पण्डिताइन से मुस्कराते हुए बोले–* भोजन न बनाना, लाला घासीराम की पतोहू ने बिल्ली मार डाली, प्रायश्चित होगा, पकवानों पर हाथ लगेगा।”
(4) व्यवहारकुशल और दूरदर्शी – पण्डित परमसुख को मानव-स्वभाव की अच्छी परख है। वे जानते हैं कि दान के रूप में किस व्यक्ति से कितना धन ऐंठा जा सकता है। इसीलिए वे पहले इक्कीस तोले सोने की बिल्ली के दान का प्रस्ताव रखते हैं, लेकिन बात कहीं बढ़ न जाए और यजमान कहीं हाथ से न निकल जाए, वे तुरन्त ग्यारह तोले पर आ जाते हैं।
(5) परम पेट्र – पण्डित परमसुख परम पेटू भी हैं। पाँच ब्राह्मणों को दोनों वक्त भोजन कराने के स्थान पर उन्हीं के द्वारा दोनों समय भोजन कर लेना उनके परम भोजनभट्ट होने का प्रमाण है।
(6) साम-दाम-दण्ड-भेद में प्रवीण – पण्डित परमसुख साम-दाम-दण्ड-भेद में अत्यधिक प्रवीण हैं। पूजा के सामान की सूची के बारे में पहले तो उन्होंने प्रेम से रामू की माँ को समझाया परन्तु जब वह ना-नुकुर करने लगी तो तुरन्त ही बिगड़कर अपना पोथी-पत्रा बटोरने लगे और पैर पकड़े जाने पर पुनः आसन जमाकर भोजनादि की बात करने लगे। इससे स्पष्ट होता है कि पण्डित जी इन चारों विद्याओं में निष्णात थे। स्पष्ट होता है कि पण्डित परमसुख उपर्युक्त वर्णित गुणों के मूर्तिमान स्वरूप थे।
प्रश्न 4:
“जिज्ञासा की उत्तरोत्तर वृद्धि ही अच्छी कहानी की पहचान है।” इस कथन के आधार पर प्रायश्चित’ कहानी का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
प्रत्येक अच्छी कहानी आने वाली घटनाओं के प्रति पाठक के मन में उत्सुकता जगाती चलती है। इससे कहानी में पाठक की रुचि बनी रहती है। इसलिए कहानीकार का यह प्रयास रहता है कि उसकी कहानी में जिज्ञासा का तत्त्व अवश्य विद्यमान रहे, जिससे पाठक उसकी आगामी घटनाओं को जानने के लिए उत्सुक बना रहे। ऐसा होने पर पाठक उसे अन्त तक पढ़ने के लिए बेचैन रहता है। कहानी की इस विशेषता के आधार पर ‘प्रायश्चित’ एक अच्छी कहानी है। कहानी का प्रारम्भ बहुत सुन्दर और आकर्षक ढंग से हुआ है तथा पाठक अन्त तक यह जानने के लिए उत्सुक रहता है कि पण्डित परमसुख ने बिल्ली की मृत्यु के परिहार के लिए रामू की माँ को कितने सोना, अनाज, दक्षिणा और भोजन का चूना लगाया।
इस दृष्टि से ‘प्रायश्चित’ एक श्रेष्ठ कहानी है।
We hope the UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi कथा भारती Chapter 3 प्रायश्चित (भगवतीचरण वर्मा) help you.