UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi आत्मकथात्मक निबन्ध
UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi आत्मकथात्मक निबन्ध
आत्मकथात्मक निबन्ध
यदि मैं भारत का प्रधानमन्त्री होता
सम्बद्ध शीर्षक
- यदि मैं इस प्रदेश का माध्यमिक शिक्षा-मन्त्री होता
प्रमुख विचार-बिन्दु
- प्रस्तावना,
- शिक्षा-व्यवस्था में मौलिक परिवर्तन,
- प्राचीन सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण और पुनरुद्धार पर बल,
- शासनिक और प्रशासनिक सुधार,
- न्याय व्यवस्था में सुधार,
- चुनाव प्रणाली में आमूल परिवर्तन,
- औद्योगिक नीति में परिवर्तन,
- कर प्रणाली में सुधार,
- परिवार कल्याण योजना का क्रियान्वयन,
- गृह और विदेश नीति,
- सैन्य-शक्ति का पुनर्गठन,
- मनोरंजन और खेलकूद के क्षेत्रों में क्रान्तिकारी परिवर्तन,
- खाद्य-नीति,
- सामाजिक और धार्मिक नीति,
- उपसंहार।
प्रस्तावना – देश का प्रधानमन्त्री बनना दीर्घकालीन राजनीतिक साधना का परिणाम होता है। वर्तमान समय में प्राचीन काल के राजाओं जैसा युग नहीं है कि जिस पर कृपा हो गयी उसे ही प्रधानमन्त्री बना दिया गया। वर्तमान भारत में राज्य के संचालन के लिए प्रजातन्त्रात्मक शासन-पद्धति प्रचलित है, जिसके अन्तर्गत प्रधानमन्त्री के निर्वाचन का विधान है। इसके लिए सर्वप्रथम मुझे किसी संसदीय क्षेत्र से चुनाव में खड़ा होकर चुनाव जीतना होगा। इसके पश्चात् जिस दल का मैं सदस्य हूँ, यदि उस दल का संसद में बहुमत हो और उस दल द्वारा सर्वसम्मति से मुझे अपना नेता चुन लिया जाए तो मेरे प्रधानमन्त्री बनने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। प्रधानमन्त्री बनने के लिए इतना प्रयत्न तो करना ही पड़ेगा। प्रधानमन्त्री बन ज़ाना फूलों की शय्या नहीं है, यह तो काँटों का ताज है, जिसमें काँटे निरन्तर चुभते ही रहते हैं। यदि मैं प्रधानमन्त्री बन ही जाऊँ तो वर्तमान शासन की गलत नीतियों में आमूल-चूल परिवर्तन करके ऐसी व्यवस्था स्थापित करने का प्रयास करूंगा कि भारत संसार के सर्वाधिक शक्तिशाली, गौरवशाली और वैभवशाली देशों में गिना जाए। प्रधानमन्त्री बनने के बाद मेरे द्वारा निम्नलिखित कार्य प्राथमिकता के आधार पर सम्पन्न किये जाएँगे
शिक्षा-व्यवस्था में मौलिक परिवर्तन – संसार का कोई भी देश शिक्षा द्वारा ही उन्नति करता है। इसलिए मेरा पहला काम होगा कि मैं भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी को वास्तविक अर्थों में देश की राजभाषा बनाऊँ और अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में भी इसको व्यवहार में लाये जाने को प्रोत्साहित करू। बिना अपनी भाषा को अपनाये संसार का कोई भी देश प्रगति नहीं कर सकता। बाबू भारतेन्दुजी ने कहा ही है
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को सूल।
जापान और चीन के उदाहरण हमारे सामने हैं। अतः संविधान-सभा के निर्णय के अनुसार केन्द्र की भाषा एकमात्र हिन्दी होगी। विभिन्न प्रदेशों में प्रादेशिक भाषाएँ मान्य होंगी। प्रादेशिक सरकारें आपस में तथा केन्द्र से हिन्दी में पत्राचार करेंगी। विश्वविद्यालयों, उच्च न्यायालयों एवं सर्वोच्च न्यायालय की भाषा हिन्दी होगी। भारत में सभी प्रकार की शिक्षा–तकनीकी और गैर-तकनीकी-देशी भाषाओं के माध्यम से ही दी जाएगी। आशय यह है कि अंग्रेजों की दासता की निशानी अंग्रेजी का इस देश से सर्वथा लोप कर दिया जाएगा। केवल उन्हीं लोगों के लिए अंग्रेजी सिखाने की व्यवस्था होगी, जो किसी विशेष उद्देश्य से उसे सीखना चाहेंगे। इस प्रकार अपनी भाषाओं के माध्यम से देश की प्राचीन संस्कृति का पुनरुद्धार होगा तथा राष्ट्रीय स्वाभिमान जागेगा।
प्राचीन सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण और पुनरुद्धार पर बल – देश के पुरातत्त्व विभाग को बहुत मजबूत बनाया जाएगा और उसे प्रचुर धन उपलब्ध कराया जाएगा, जिससे वह देश भर में आवश्यक स्थानों पर अन्वेषण कराकर भारत के प्राचीन इतिहास की खोई हुई कड़ियों को खोजे। जो प्राचीन मूर्तियाँ, भवन, सिक्के या अन्य अवशेष विद्यमान हैं या खोज के परिणामस्वरूप निकलेंगे उनकी सुरक्षा और रख-रखाव की व्यवस्था की जाएगी।
शासनिक और प्रशासनिक सुधार – मैं अपने मन्त्रिमण्डल का आकार बहुत सीमित रखेंगा जिसमें विशेष योग्यतासम्पन्न, ईमानदार, चरित्रवान एवं देशभक्त मन्त्री ही सम्मिलित किये जाएँगे, जिन्हें बहुत सादगी से रहने को प्रेरित किया जाएगा। प्रदेशों में भी ऐसी ही व्यवस्था अपनाये जाने पर बल दिया जाएगा। साथ ही केन्द्रीय सचिवालय एवं अन्यान्य कार्यालयों का आकार घटाकर अतिरिक्त लोगों की कुशलता का लाभ अन्यत्र उठाया जाएगा।
इसी प्रकार प्रशासनिक अधिकारियों को जनता का शासक या शोषक नहीं, जनता का सेवक बनना सिखाया जाएगा। विदेशों में स्थित भारतीय दूतावासों में देशभक्त कर्मचारियों को नियुक्त कर उन्हें बहुत सादगी, कार्यकुशलता एवं निष्ठा से काम करने की प्रेरणा दी जाएगी। उनसे आशा की जाएगी कि वे विदेशों में अपने देश के हित के सजग प्रहरी बनकर रहें।
न्याय-व्यवस्था में सुधार – न्यायालय राजनीतिक या अन्य किसी प्रकार के हस्तक्षेप से पूर्णत: मुक्त रखे जाएँगे। न्याय-प्रक्रिया बहुत सरल और सस्ती बनायी जाएगी। अधिकांश विवादों को आपसी समझौतों से हल करने के प्रयास किये जाएँगे। अधिवक्ताओं पर आधारित प्रक्रिया को एक सीमा तक परिवर्तित करने के प्रयास किये जाएंगे। इससे न्यायालयों में लम्बित मुकदमों की संख्या घटेगी। निर्धनों और असहायों को न्याय नि:शुल्क दिलाया जाएगा और वादों का निपटारा एक निश्चित अवधि के अन्दर करना अनिवार्य होगा।
चुनाव-प्रणाली में आमूल परिवर्तन – सत्ता की राजनीति के स्थान पर सेवा की राजनीति चलाने के लिए चुनाव-प्रणाली में परिवर्तन नितान्त आवश्यक है। इसके लिए सबसे पहले अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति आदि के कृत्रिम और हानिकारक विभाजन समाप्त करके देश की भावात्मक एकता का पथ प्रशस्त किया जाएगा। किसी भी व्यक्ति को जाति, धर्म, सम्प्रदाय या भाषी के आधार पर नहीं, अपितु शुद्ध योग्यता और कार्यक्षमता के आधार पर ही प्रोत्साहन दिया जाएगा। मत देने का वर्तमान क्रम समाप्त करके न्यूनतम अर्हता एवं आयु वाले मतदाता को ही मतदान का अधिकार होगा तथा चुनाव में प्रत्याशी के रूप में खड़े होने वाले के लिए भी कुछ न्यूनतम योग्यता निर्धारित कर दी जाएगी। दल परिवर्तन को कानून द्वारा अवैध घोषित कर दिया जाएगा और दूसरे दल की सदस्यता और किसी भी रूप में दूसरे दल से सम्बद्धता स्वीकार करने पर उसे पुनः मतदाताओं का विश्वास प्राप्त करना होगा। चुनाव-प्रणाली अत्यधिक सस्ती, सरल और आधुनिक बना दी जाएगी।
औद्योगिक नीति में परिवर्तन – कुटीर एवं लघु उद्योग-धन्धों को पूरी लगन से पुनर्जीवित किया जाएगा। डेयरी-उद्योग को बढ़ावा दिया जाएगा तथा उसी से वनस्पति घी के स्थान पर देशी घी प्रचुर मात्रा में सस्ते मूल्य पर उपलब्ध कराया जाएगा। गो-हत्या को पूर्णत: बन्द कर देश के पशुधन को समुचित संरक्षण दिया जाएगा। बड़े उद्योगों को केवल कुछ ही चीजें बनाने की छूट देकर अधिकांश माल लघु उद्योगों से तैयार कराकर सरकार उसकी बिक्री की व्यवस्था करेगी। इससे बेरोजगारी के उन्मूलन में बहुत सहायता मिलेगी। देश के प्रत्येक नागरिक को रोजगार उपलब्ध कराना सरकार का दायित्व होगा। देश में फैशन और विलासिता की सामग्री के उत्पादन को निरुत्साहित कर सादगी और सात्विकता पर बल दिया जाएगा। देश में तैयार हो रहे माल की गुणवत्ता पर सतर्क दृष्टि रखी जाएगी। आयात कम कर दिया जाएगा और निर्यात को पूरा बढ़ावा दिया जाएगा। विदेशी ऋण लेना बन्द करके देश की आवश्यकताओं और साधनों के अनुरूप लघु विकास-योजनाएँ अल्पकालिक आधार पर बनायी जाएँगी। तस्करी का कठोरतापूर्वक दमन किया जाएगा। कोटा-परमिट आदि कृत्रिम प्रतिबन्ध समाप्त कर उद्योगों को फलने-फूलने के पर्याप्त अवसर प्रदान किये जाएँगे।
कर-प्रणाली में सुधार – देश में विद्यमान सैकड़ों करों के स्थान पर केवल तीन-चार प्रमुख कर रखे जाएँगे। कर-प्रणाली बहुत सरल बनायी जाएगी, जिससे शिक्षित-अशिक्षित प्रत्येक व्यक्ति सुविधापूर्वक अपना कर जमा कर सके। इससे चोरबाजारी का उन्मूलन होगा और कालाधन व सफेद धन का भेद समाप्त होकर सारा धन देश के विकास में लग सकेगा।
परिवार-कल्याण योजना का क्रियान्वयन – अपने प्रधानमन्त्रित्व काल में मैं परिवार को नियोजित करने पर विशेष बल दूंगा; क्योंकि बढ़ती हुई जनसंख्या को सीमित किये बिना देश का समग्र विकास किसी भी स्थिति में सम्भव है ही नहीं।
गृह और विदेश-नीति – भारत में पनप रही अलगाववादी प्रवृत्तियों को गृह-नीति के अन्तर्गत समाप्त किया जाएगा। इसके लिए भारत के सभी प्रदेशों में भारतीयता की भावना जगाने वाले कार्यक्रम चलाये जाएँगे और देश में हिंसा तथा तोड़-फोड़ करने वालों को सख्ती से कुचला जाएगा। राष्ट्रीय भावना को धर्म से ऊपर रखा जाएगा। प्रत्येक प्रदेश को उसके विकास के लिए समुचित धनराशि दी जाएगी और आदिवासियों, जनजातियों आदि को राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ने एवं उनको समुचित विकास करने का पूरा प्रयत्न किया जाएगा। ग्राम पंचायतों को उनका पुराना गौरव लौटाया जाएगा। नगरों और ग्रामों में स्वच्छता पर विशेष बल दिया जाएगा, जिससे वातावरण प्रदूषण-मुक्त बने। विदेश-नीति के अन्तर्गत भारत के मित्र देशों को हर प्रकार की सम्भव सहायता दी जाएगी और शत्रु-राष्ट्रों के प्रति कड़ा रुख अपनाया जाएगा।
सैन्य-शक्ति का पुनर्गठन – सेना के तीनों अंगों को अत्यधिक सक्षम बनाया जाएगा। शस्त्रास्त्रों के लिए विदेशों पर निर्भर न रहकर देश को इतना शक्तिशाली बना दिया जाएगा कि संसार का कोई भी देश भारत से टकराने का खतरा मोल न ले। कश्मीर से धारा 370 समाप्त कर शेष भारत के साथ उसकी पूर्ण भावात्मक एकता स्थापित की जाएगी। साथ ही पाकिस्तान तथा चीन द्वारा अनधिकृत रूप से हड़प ली गयी भारतीय भूमि को भी वापस लेने का पूरा प्रयास किया जाएगा।
मनोरंजन और खेलकूद के क्षेत्रों में क्रान्तिकारी परिवर्तन – सिनेमा और दूरदर्शन द्वारा लोगों में अपनी संस्कृति के प्रति सम्मान जाग्रत करने का अभियान चलाया जाएगा। पश्चिम की नकल पर बने वासना और अपराध के उत्तेजक चित्र बिल्कुल बन्द कर दिये जाएँगे। खेलकूद के क्षेत्र में बाह्य हस्तक्षेप बिल्कुल समाप्त करके योग्यता के आधार पर ही विभिन्न खेलों के लिए खिलाड़ियों का चयन होगा और उन्हें इतना अच्छा प्रशिक्षण और प्रोत्साहन दिया जाएगा कि वे संसार के किसी भी देश के खिलाड़ी से श्रेष्ठतर हों।
खाद्य-नीति – इसके अन्तर्गत विशाल सिंचाई-योजनाओं के स्थान पर स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप लघु सिंचाई योजनाओं को लागू किया जाएगा। रासायनिक खाद के कारखाने बन्द कर दिये जाएँगे; क्योंकि वे भूमि को बंजर बनाने के साथ-साथ अनाज में विष मिला रहे हैं। इनके स्थान पर नदियों में गिरने वाले सीवरों और कारखानों की गन्दगी को मशीनों से साफ कर स्वच्छ जल नदियों में छोड़ा जाएगा और मल को खाद के रूप में खेतों में प्रयुक्त किया जाएगा।
सामाजिक और धार्मिक नीति – समाज के प्रत्येक व्यक्ति और वर्ग को आगे बढ़ने का पूर्ण सुयोग उपलब्ध होगा। सामाजिक कुरीतियों एवं अनाचारों; जैसे-दहेज-प्रथा, बाल-विवाह आदि को सख्ती से दबाया जाएगा, नारी-सम्मान की पूर्ण रक्षा की जाएंगी एवं जनसंख्या वृद्धि को नियन्त्रित करने के लिए देश भर में समान नागरिक आचार-संहिता लागू करने के अतिरिक्त अन्यान्य समुचित उपायों को भी दृढ़तापूर्वक अपनाया जाएगा। धार्मिक नीति के अन्तर्गत धार्मिक स्वतन्त्रता तो हर एक को उपलब्ध होगी, परन्तु धर्म को अलगाववाद का हथियार बनाने की छूट न दी जाएगी। देशभक्तों को समुचित प्रोत्साहन एवं संरक्षण देने के साथ-साथ देशद्रोहियों का सख्ती से दमन किया जाएगा।
उपसंहार – भारत संसार को महान् जनतान्त्रिक देश है। इसकी सांस्कृतिक एवं सभ्यता सम्बन्धी परम्पराएँ बड़ी प्राचीन हैं। इसलिए मैं अपने प्रधानमन्त्रित्व काल में देश की सांस्कृतिक उन्नति करूंगा तथा सार्वभौमिक उन्नति के लिए प्रयत्न करता रहूँगा। प्रत्येक स्तर पर देश को स्वावलम्बी बनाने के साथ-साथ कर्तव्यनिष्ठा को पुरस्कृत और कर्तव्यहीनता को दण्डित किया जाएगा। किसी भी विषय में राजनीतिक, प्रशासनिक या अन्य किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप, पक्षपात, भाई-भतीजावाद या अन्याय को सहन नहीं किया जाएगा। मेरा मूलमन्त्र होगा ज्वलन्त राष्ट्रनिष्ठा, मितव्ययिता एवं देशी संसाधनों के भरपूर उपयोग से अर्जित पूर्ण स्वावलम्बन। यह मेरा कथन मात्र नहीं है। यदि मुझे यह सुअवसर प्राप्त हो तो मैं अपने समस्त आदर्श प्रत्यक्ष सत्य कर दिखा देने में पूर्ण सक्षम हूँ
गंगा की आत्मकथा
सम्बद्ध शीर्षक
- मैं गंगा हूँ।
मैं गंगा हूँ। मुझे त्रिपथगा भी कहते हैं; क्योंकि स्वर्ग, मर्त्य और पाताल–तीनों लोकों में मेरी धाराएँ हैं। स्वर्ग में मैं मन्दाकिनी कहलाती हूँ, पृथ्वी पर भागीरथी तथा पाताल में वैतरणी। आज अपनी आत्मकथा सुनाने चली हूँ तो सभी कुछ बताऊँगी। कुछ भी छिपाकर रखने का मेरा स्वभाव नहीं; क्योंकि लोक-कल्याण ही मेरा व्रत है।। सम्भव है मेरी आत्मकथा से आपका भी कुछ कल्याण हो जाए। वैसे मेरी बड़ी महिमा है। ऋषि-महर्षि मेरा स्तवन करते नहीं थकते, देवगण मेरे गुणों का बखान करते नहीं अघाते, मानव मेरे दर्शन और स्पर्शन कर कृतार्थता का अनुभव करते हैं। इतना ही नहीं, मरने के बाद भी हिन्दू अपना अन्तिम संस्कार मेरे तट पर ही कराना चाहते हैं। आखिर मुझे इतना गौरव मिला कैसे?
वैसे तो मैं हिमालय की ज्येष्ठ पुत्री कहलाती हूँ। उमा मेरी छोटी बहन है। पर मुख्यत: मैं अपने को ‘विष्णुपदी कहती हूँ; क्योंकि इसी नाम में मेरे महान् गौरव का मूल निहित है। जब भगवान् विष्णु ने वामनावतार धारण करके राजा बलि को छला था, तब उन्होंने विराट् रूप धारणकर दो डगों में तीनों लोकों को नाप लिया था। उस समय उनका एक चरण ब्रह्मलोक में भी पहुंचा था। इससे परम प्रसन्न हो भगवान् ब्रह्मा ने तत्काल उस चरण को जल से धोकर वह पाद्य अपने कमण्डलु में धारण कर लिया। बस, वही जल मेरा मूल उत्स बना है। सर्वलोकेश्वर भगवान् विष्णु के चरणों से उद्भूत होने के कारण ही मैं ‘विष्णुपदी’ कहलायी और यही मेरे अभूतपूर्व माहात्म्य का कारण बना।
मैं भगवान् ब्रह्मा के कमण्डलु में शायद बन्दी ही रह जाती, यदि महाराज सगर के प्रप्रपौत्र, असमंच के प्रपौत्र, अंशुमान् के पौत्र एवं दिलीप के पुत्र महापराक्रमी महाराज भगीरथ ने अमित तेजस्वी महामुनि कपिल के शाप से दग्ध अपने पूर्वजों (सगर के साठ हजार पुत्रों) को सद्गति दिलाने के लिए कठोर तपस्या न की होती। सच तो यह है कि मैं ब्रह्मलोक से पृथ्वी पर आने को राजी न हुई, किन्तु जब तीन-तीन पीढ़ियों की उग्र तपस्या से द्रवित हो भगवान् ब्रह्मा ने मुझे मर्त्यलोक में भेजने का वचन दे दिया, तब मैं क्या करती? महाराज सगर मुझे पृथ्वी पर लाने की चिन्ता करते-करते स्वर्ग सिधार गये। उनके पौत्र अंशुमान् हिमालय पर बत्तीस हजार वर्षों तक कठोर तपस्या करके भी विफल मनोरथ ही दिवंगत हो गये। उनके पुत्र दिलीप ने भी बड़ी तपस्या की, परन्तु यह कार्य सिद्ध न हुआ। अन्त में भगीरथ ने घोर तपस्या द्वारा भगवान् ब्रह्मा को वश में कर ही लिया। उन्होंने यह सिद्ध कर ही दिखाया कि तपस्या से असाध्य भी साध्य हो जाता है।
अस्तु, ब्रह्माजी ने मुझे मर्त्यलोक में भेजने की सहमति तो दे दी, पर एक समस्या भगीरथ के सामने रख दी-“स्वर्ग से उतरते समय मेरे दुर्धर्ष-वेग को सहन करने की क्षमता योगिराज भगवान् शंकर को छोड़कर किसी में नहीं; अतः तुम आराधना द्वारा उन्हें गंगा को धारण करने हेतु सहमत करो।’ धन्य हैं भगीरथ! वे पुनः उग्र तपस्या में लीन हो गये और अन्तत: भगवान् शंकर को भी प्रसन्न कर ही लिया। वे तत्काल हिमालय के सर्वोच्च शिखर पर जटाएँ फैलाकर खड़े हो गये और भगीरथ से मेरा आह्वान करने को कहा। भगीरथ ने भगवान् ब्रह्मा की स्तुति की और उन्होंने तत्काल अपने कमण्डलु से मुझे उतार दिया। सच कहूँ! मुझमें उस समय असीम अहंकार उत्पन्न हुआ कि भला कौन है, जो मेरे दुर्धर्ष-वेग को सहन कर सकता है। मैं शिव को अपने प्रचण्ड वेग में बहाती, मर्त्यलोक को डुबोती, सीधे रसातल चली जाऊँगी, परन्तु भगवान् शिव तो अन्तर्यामी ठहरे! मेरा अहंकार जानकर उन्हें बड़ा क्रोध आया। फलतः जैसे ही मैं आकाश को निनादित करती, घनपटल को चीरती, वायु को थरथराती और पृथ्वी को कँपकँपाती ब्रह्मलोक से चली तो मेरे वेग से तीनों लोक काँप उठे। अस्तु, जैसे ही मैं उतरी वैसे ही भगवान् शंकर ने मुझे अपनी जटाओं में बाँध लिया। मैंने बहुत जोर मारा, पर बाहर निकलने का रास्ता ही न मिला। तब भगीरथ फिर भगवान् त्रिपुरारि का स्तवन करने लगे। तब उन्होंने मुझे बिन्दुसर में छोड़ी और मैं वहाँ से समस्त पर्वत प्रदेश को अपनी धमक से दहलाती पृथ्वी की ओर दौड़ पड़ी। भगीरथ दिव्य-रथ में मेरा मार्गदर्शन करते हुए मेरे आगे-आगे चल रहे थे। पृथ्वी पर मैं मदमाती, इठलाती, निश्चिन्त हो भागी चली जा रही थी, क्योंकि यहाँ भला कौन बैठा था मेरी गति को रोकने वाला? पर आश्चर्य कि अघटित घटित हो ही गया! जह्न नाम के एक महातपस्वी राजर्षि यज्ञ कर रहे थे। उनका यज्ञमण्डप मेरे मार्ग में पड़ता था। मुझे यह बाधा सहन न हुई और मैं उसे बहा ले चली, परन्तु यहाँ तो एक दूसरे ही शंकर निकल आये। जहु ने क्रुद्ध हो मुझे चुल्लू में भरकर पी लिया और मैं उनके पेट में बन्दी हो गयी। भगीरथ बेचारे ने उन्हें भी मनाया, देवताओं ने आकर उनका गुणगान किया और मुझे उनकी पुत्री बनाया। तब कहीं जाकर उन्होंने मुझे कानों के मार्ग से निकाला। तब से मैं जाह्नवी’ (जह्वपुत्री) कहलायी। बस, फिर सागर तक कोई बाधा न मिली। सागर मुझसे मिलकर खिल उठा, परन्तु मुझे तो भगीरथ का मनोरथ पूरा करना था, इसलिए तत्काल पाताल में जाकर मैंने सगर के साठ हजार पुत्रों की भस्म को अपने जल से आप्लावित कर दिया। उसी क्षण वे सब दिव्य-देह धारणकर स्वर्गलोक को चल दिये। देवता पुष्पवर्षा करने लगे, सिद्ध और महर्षिगण मेरी यशोगाथा गाने लगे, भगीरथ हर्षविभोर हो श्रद्धा से मेरे चरणों पर लेट गये। तो यह है मेरी आपबीती!
अस्तु, तब से मैं निरन्तर बहती हुई लोकहित में लगी हैं। उत्तर भारत की भूमि मुझे पाकर धन्य हो गयी। मैंने जिधर दृष्टि फेरी उधर ही खेत लहलहा उठे और धन-धान्य की वृष्टि होने लगी। मेरे तट पर अगणित नगर और ग्राम बस गये। हिन्दुओं के महान् तीर्थ–हरिद्वार, प्रयाग और काशी – मेरे ही तट पर हैं। यह सब कुछ प्रत्यक्ष
परन्तु तुम्हारा आज का यह युग ठहरी बुद्धिवादी। तर्क-वितर्क के बिना भला ये किसी की महिमा क्यों मानने लगे। इसलिए कुछ लोगों ने कहना शुरू किया कि यह पौराणिक आख्यान प्रतीकात्मक हैं। फिर लगे वे आधुनिक ढंग से उसकी व्याख्या करने। पहली बार उन्होंने यह खोज निकाला कि गंगा नदी नहीं, नहर है। उन्होंने दावा किया कि इसके तल की मिट्टी नदियों जैसी प्राकृतिक है ही नहीं। अब उनकी व्याख्या सुनिए। उत्तर भारत गंगा के आने से पहले मरुभूमि जैसा बंजर था। वर्षा के अनिश्चित जल से काम न चलता था। सर्वत्र हा-हाकार मचा हुआ था। लोग सूखे और गर्मी से दग्ध हुए जा रहे थे। यह हुआ कपिल मुनि के शाप से सगरपुत्रों का दग्ध होना अर्थात् सगर की प्रजा का पीड़ित होना। राजा सगर ने हिमालय में इंजीनियरों को भेजकर खोज करायी। पता
चला वहाँ जल का एक विशाल भण्डार है। यदि उसे पृथ्वी पर उतारा जा सके तो समस्या सदा के लिए हल हो जाए। सगर ने बड़ा प्रयास किया, परन्तु सफल न हुए। अगली तीन पीढ़ियाँ असफल प्रयासों में खप गयीं। यह हुई तीन पीढ़ियों की तपस्या। आखिर में भगीरथ हुए। वे स्वयं महान् इंजीनियर थे। उन्होंने कार्य पूरा करने का बीड़ा उठाया और राजपाट मन्त्रियों पर छोड़ हिमालय पहुँचे। वर्षों हिमालय के अन्तर्वर्ती भू-भाग का सर्वेक्षण किया और समस्या का समाधान ढूंढ़ निकाला। यह हुआ भगोरथ की तपस्या से ब्रह्माजी के प्रसन्न होकर अपने कमण्डलु से गंगा को छोड़े जाने का आख्यान। अस्तु, भगीरथ ने पहले हिमालय की तलहटी से गंगा सागर तक एक विराट नहर खुदवायी। फिर हिमालय में उस विशाल जल-भण्डार के पास एक प्रणाली (नाली) खुदवायी जो अनेक स्थानों पर पर्वत के अन्दर सुरंग के रूप में जाती थी। यह महान् कौशल का कार्य था, जिसमें अनेक वर्ष लग गये और प्रचुर धन व्यय हुआ। अब असली समस्या उस जल-भण्डार को इस प्रणाली से मिलाने की थी जो बड़ा ही भयप्रदायक कार्य था। इसे भी भगीरथ ने कुशल इंजीनियरों के दल के सहयोग से हल किया और जल की एक पतली धार उस प्रणाली में छोड़ी, जिससे वह बाद में जल के वेग से स्वतः ही चौड़ी हो जाए। यह हुआ भगवान् शिव द्वारा गंगा को धारण करना और फिर बिन्दुसर में छोड़ना। कैसी लगी यह बुद्धिवादी व्याख्या? नि:सन्देह आपको रोचक प्रतीत हुई होगी।
अस्तु, मैं पतितपावनी कही जाती हूँ। मेरा जल बरसों पात्र में भरकर रखने पर भी दूषित नहीं होता था, किन्तु । अब वह बात कम होती जा रही है। प्रगति के नाम पर स्थापित कल-कारखाने अपना कचरा और दूषित जल मुझमें छोड़ रहे हैं। सैकड़ों नाले गन्दगी बहाकर मुझमें मिल रहे हैं। मेरा जल दूषित होता जा रहा है। मन में कई बार क्षोभ उत्पन्न होता है कि मैं इस मर्त्यलोक को छोड़कर ब्रह्मलोक को लौट जाऊँ, पर जब लाखों भक्तों को अपने दर्शन से गद्गद होते तथा हजारों सन्त-महात्माओं को अपनी स्तुति करते पाती हूँ, तो उन्हें निराश करने को मुन नहीं होता; इसलिए मैं तुम लोगों को, जो मेरी यह आत्मकथा सुन रहे हो, सावधान करती हूँ कि जाकर अपने उन आत्मघाती, पथभ्रष्ट देशवासियों को समझाओ कि मेरी पवित्रता बनाये रखने में उन्हीं का हित साधन है, अन्यथा मुझे तो कुछ फर्क नहीं पड़ता। मैं सदा के लिए वापस ब्रह्मलोक चली जाऊँगी। शायद इसी भय से कम्पित होकर सरकार ने मुझे पवित्र बनाये रखने हेतु अनेकानेक योजनाएँ कार्यान्वित की हैं।
We hope the UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi आत्मकथात्मक निबन्ध help you.