UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi गद्य गरिमा Chapter 8 गेहूं बनाम-गुलाब

By | June 4, 2022

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi गद्य गरिमा Chapter 8 गेहूं बनाम-गुलाब

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi गद्य गरिमा Chapter 8 गेहूं बनाम-गुलाब (रामवृक्ष बेनीपुरी)

लेखक का साहित्यिक परिचय और भाषा-शैली

प्रश्न:
रामवृक्ष बेनीपुरी की साहित्यिक सेवाओं का उल्लेख करते हुए उनकी भाषा-शैली की विशेषताएँ लिखिए।
या
रामवृक्ष बेनीपुरी का जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।
या
रामवृक्ष बेनीपुरी का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय – भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अमर सेनानी और बहुमुखी प्रतिभा के धनी बेनीपुरी जी हिन्दी-साहित्य में एक क्रान्तिकारी व्यक्तित्व लेकर अवतीर्ण हुए थे। श्री रामवृक्ष बेनीपुरी जी का जन्म सन् 1902 ई० में बिहार में मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता फूलवन्त सिंह एक साधारण कृषक थे। बचपन में ही इनके माता-पिता की स्वर्गवास हो जाने के कारण इनका लालन-पालन मौसी की देख-रेख में हुआ। मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने से पूर्व ही इनकी शिक्षाक्रम टूट गया और सन् 1920 ई० में ये गांधीजी के नेतृत्व में, असहयोग आन्दोलन में सम्मिलित हो गये। बाद में इन्होंने हिन्दी साहित्य सम्मेलन से विशारद की परीक्षा उत्तीर्ण की।।

इन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया और देशवासियों में देशभक्ति की भावना जाग्रत की। ये अंग्रेजी शासन के दौरान देशभक्ति की ज्वाला भड़काने के आरोप में अनेक बार जेल गये। श्री रामचरितमानस के अध्ययन से इनकी रुचि साहित्य-रचना की ओर जाग्रत हुई। राष्ट्रमाता के साथ-साथ इन्होंने माता सरस्वती की भी आराधना की। इन्होंने अधिकांश ग्रन्थों की रचना जेल में रहकर ही की थी। ये आजीवन साहित्य-साधना करते रहे। और सन् 1968 ई० में इस नश्वर संसार से अमरलोक के लिए प्रस्थान कर गये।

साहित्यिक सेवाएँ – बेनीपुरी जी छात्र-जीवन से ही पत्र-पत्रिकाओं में लिखने लगे थे। पत्रकारिता से ही उनकी साहित्य-साधना का प्रारम्भ हुआ। इन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन करके पत्रकारिता में विशेष सम्मान प्राप्त किया। इन्हें हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ के संस्थापकों में भी माना जाता है। बेनीपुरी जी ने नाटक, कहानी, उपन्यास, आलोचना, रेखाचित्र, संस्मरण, जीवनी, यात्रावृत्त आदि विभिन्न साहित्यिक विधाओं पर अपनी लेखनी चलाकर हिन्दी साहित्य के भण्डार में विपुल वृद्धि की। नाटकों में इन्होंने अपने युग की झलक देकर अपनी राष्ट्रीय भावना का परिचय दिया है। इनके उपन्यासों और कहानियों में देशभक्ति और लोक-कल्याण की भावना पायी जाती है। ये सदा हिन्दी साहित्य के प्रचार-प्रसार में संलग्न रहे। साहित्य-साधना और देशभक्ति दोनों ही इनके प्रिय विषय रहे हैं। इनकी रचनाओं में देशभक्ति, लोक-कल्याण एवं समाज-सुधार के स्वर मुखरित हुए हैं। स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय इनकी रचनाओं द्वारा युवा पीढ़ी में सर्वस्व बलिदान की भावना जाग उठी थी। इन्होंने पद-लोलुपता और मानव की भोगवादी प्रवृत्ति पर तीक्ष्ण व्यंग्य किये और अपनी रचनाओं में मानव-मात्र के कल्याण और नव-निर्माण की भावना को लक्ष्य बनाया निश्चय ही बेनीपुरी जी राष्ट्र की आकांक्षाओं के अनुरूप साहित्य-सृजन करने वाले उत्कृष्ट कोटि के साहित्यकार थे।

रचनाएँ: बेनीपुरी जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे। इन्होंने साहित्य की विविध विधाओं में ग्रन्थ-रचना की। अपने सम्पूर्ण साहित्य को बेनीपुरी ग्रन्थावली’ के नाम से दस खण्डों में प्रकाशित करने की उनकी योजना थी, जिसके दो ही खण्ड प्रकाशित हो सके। इनकी रचनाओं के विवरण निम्नलिखित हैं
(1) उपन्यास – ‘पतितों के देश में ।
(2) कहानी-संग्रह – ‘चिता के फूल’।
(3) नाटक – ‘अम्बपाली’, ‘सीता की माँ’, ‘रामराज्य’।
(4) निबन्ध-संग्रह – गेहूँ और गुलाब’, ‘वन्दे वाणी विनायकौ’, ‘मशाल’।
(5) रेखाचित्र और संस्मरण – ‘माटी की मूरतें’, ‘लाल तारा’, जंजीरें और दीवारें’, ‘मील के पत्थर’।
(6) जीवनी – ‘महाराणा प्रताप सिंह’, ‘कार्ल मार्क्स’, ‘जयप्रकाश नारायण’।
(7) यात्रावृत्त – ‘पैरों में पंख बाँधकर’, ‘उड़ते चलें।
(8) आलोचना –  विद्यापति पदावली’, ‘बिहारी सतसई की सुबोध टीका।
(9) पत्र-पत्रिकाएँ – ‘बालक’, ‘तरुण भारती’, ‘युवक’, ‘किसान मित्र’, ‘जनता’, ‘हिमालय’, ‘नयी धारा’, ‘चुन्नू-मुन्नू’, ‘योगी आदि पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन।

भाषा और शैली

बेनीपुरी जी भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अमर सेनानी और हिन्दी के अमर साहित्य साधक थे। इनके साहित्य में गहन अनुभूतियों और उच्च कल्पनाओं की मनोरम झाँकी मिलती है और शैली में विविधता भी पायी जाती है।

(अ) भाषागत विशेषताएँ:

बेनीपुरी जी की भाषा सामान्य रूप से ओज गुण से युक्त व्यावहारिक खड़ी बोली है। इन्होंने अपने संस्मरणात्मक निबन्धों में सरल, सुबोध और प्रवाहमयी व्यावहारिक भाषा का प्रयोग किया है। ये भाषा के जादूगर’ माने जाते हैं। किस भाव को प्रकट करने के लिए कौन-सा शब्द उपयुक्त है, इसमें वे सिद्धहस्त हैं। इनकी भाषा में संस्कृत, अंग्रेजी और उर्दू भाषा के प्रचलित शब्दों का प्रयोग हुआ है। तत्सम, तद्भव और देशज शब्दों के प्रयोग से भाषा प्रवाहपूर्ण और आकर्षक हो गयी है। भाषा को सरल, सजीव और प्रवाहमयी बनाने के लिए मुहावरों और , लोकोक्तियों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया गया है।

(ब) शैलीगत विशेषताएँ:
बेनीपुरी जी की रचनाओं में विषय के अनुसार विविध शैलियों के दर्शन होते हैं, जिनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं

(1) वर्णनात्मक शैली – किसी वस्तु या घटना के वर्णन में, संस्मरणों, यात्रा-वृत्तान्तों, जीवनी और कथा-साहित्य में बेनीपुरी जी ने वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया है। इस शैली में भाषा सरल और सुबोध है तथा वाक्य छोटे-छोटे हैं।
(2) भावात्मक शैली – बेनीपुरी जी की यही प्रधान रचना शैली है। इन्होंने इसका प्रयोग ललित निबन्धों में किया है। इस शैली के गद्य को पढ़ते हुए काव्य का-सा आनन्द आता है। इसमें भावों का प्रबल वेग है, अलंकारों का सौन्दर्य है और अनुभूति की मार्मिकता है।
(3) प्रतीकात्मक शैली – बेनीपुरी जी सीधे न कहकर प्रतीकों के माध्यम से अपने भावों को व्यक्त करने में कुशल हैं। नींव की ईंट’ और ‘गेहूँ बनाम गुलाब’ निबन्धों में इन्होंने प्रतीकों का ही प्रयोग किया है। इनके प्रतीक बड़े सार्थक, सटीक और प्रभावपूर्ण होते हैं।
(4) चित्रात्मक शैली – बेनीपुरी जी ने रेखाचित्रों, ललित-निबन्धों और कथा-साहित्य में चित्रात्मक शैली का प्रयोग किया है। इस शैली में वे शब्दों द्वारा विषय का सजीव चित्र प्रस्तुत कर देते हैं। इस शैली में इनकी भाषा सरल, स्वाभाविक और व्यावहारिक होती है।
(5) आलोचनात्मक शैली – बिहारी और विद्यापति की कृतियों की समीक्षाओं में आलोचनात्मक शैली अपनायी गयी है। इनकी इस शैली में गम्भीरता, सरलता और प्रसाद गुण पाया जाता है। इसमें भाषा सरल, सुबोध और प्रौढ़
है।
(6) नाटकीय शैली – बेनीपुरी जी ने नाटकों के अतिरिक्त निबन्धों में भी नाटकीय शैली का प्रयोग किया है। इस शैली में बहुत छोटे-छोटे सांकेतिक वाक्य का प्रयोग है, जो अर्थ की अद्भुत व्यंजनी करते हैं। इनके अतिरिक्त बेनीपुरी जी की रचमाओं में सूक्ति शैली, डायरी शैली, संवाद शैली और व्यंग्यात्मक शैली भी पायी जाती है।

साहित्य में स्थान:
बेनीपुरी जी ने हिन्दी की विविध विधाओं में साहित्य-सृजन किया है। फिर भी वे ललित निबन्धकार, रेखाचित्रकार, संस्मरण-लेखक तथा पत्रकार के रूप में विशेष उभरकर आये हैं। इनके जैसी प्रतीकात्मकता, लाक्षणिकता और उक्ति-वैचित्र्य अन्यत्र दुर्लभ है। ये शब्दों के जादूगर, भाषा के सम्राट और व्यंग्यप्रधान चित्रात्मक शैली के समर्थ लेखक हैं।

गद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न:
दिए गए गद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1:
रात का काला घुप्प पर्दा दूर हुआ, तब वह उच्छ्वसित हुआ सिर्फ इसलिए नहीं कि अब पेट-पूजा की समिधा जुटाने में उसे सहुलियत मिलेगी; बल्कि वह आनन्द-विभोर हुआ ऊषा की लालिमा से, उगते सूरज की शनैः-शनै: प्रस्फुटित होने वाली सुनहरी किरणों से, पृथ्वी पर चमचम करते लक्ष-लक्ष ओस-कणों से! आसमान में जब बादल उमड़े, तब उसमें अपनी कृषि का आरोप करके ही वह प्रसन्न 4. नहीं हुआ; उसके सौन्दर्य-बोध ने उसके मन-मोर को नाच उठने के लिए लाचार किया – इन्द्रधनुष ने उसके हृदय को भी इन्द्रधनुषी रंगों में रँग दिया।
(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) किसने मनुष्य के मन-मोर को नाच उठने के लिए लाचार किया?
(iv) किसके दूर होने पर मनुष्य उच्छ्वसित हुआ?
(v) प्रस्तुत गद्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(i) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘गद्य-गरिमा’ में संकलित एवं श्रीरामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा , लिखित ‘गेहूँ बनाम गुलाब’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है।
अथवा निम्नवत् लिखिए
पाठ का नाम – गेहूं बनाम गुलाब।
लेखक का नाम – रामवृक्ष बेनीपुरी।
[संकेत – इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए प्रश्न (i) का यही उत्तर लिंखना है।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – मर्मज्ञ लेखक का कहना है कि पहले मनुष्य की शारीरिक और मानसिक
आवश्यकताओं में समन्वय था; अर्थात् जब वह भूख से व्याकुल था, तब भी अपनी संस्कृति को नहीं भूला था। काली रात बीत जाने पर जहाँ वह अपनी भूख मिटाने के लिए भोजन की तलाश में निकला, वहीं उषाकाल की लालिमा को देखकर आनन्दित भी हुआ। अन्तरिक्ष से धरती की ओर आती सूरज की ‘ सुनहरी किरणों ने तथा हरी घास पर बिखरी और मोतियों की तरह चमकने वाली असंख्य ओस की बूंदोंने उसके हृदय की दशा ही बदल दी और उसे आनन्द-विभोर कर दिया।
(iii) आसमान में उमड़े बादलों ने मनुष्य के मन-मोर को नाच उठने के लिए लाचार किया।
(iv) रात के काले घुप्प पर्दे के दूर होने पर मनुष्य उच्छ्वसित हुआ।
(v) प्रस्तुत गद्यांश का आशय है कि मनुष्य अपने जीवन में केवल शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति ही नहीं चाहता, वरन् वह मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि भी करना चाहता है।

प्रश्न 2:
मानव शरीर में पेट का स्थान नीचे है; हृदय को ऊपर और मस्तिष्क का सबसे ऊपर! पशुओं की तरह उसका पेट और मानस समानान्तर रेखा में नहीं हैं। जिस दिन वह सीधे तनकर खड़ा हुआ, मानस ने उसके पेट पर विजय की घोषणा की!
(i) उपर्युक्त गद्यांश के.पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(i) मानव की शरीर-रचना में किसका स्थान सबसे ऊपर है?
(iv) किसका पेट और मानस समानान्तर रेखा में हैं?
(v) किंसने पेट पर विजय प्राप्त कर ली?
उत्तर:
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – लेखक का कहना है कि पशुओं की तरह मनुष्य का पेट और मानस (मन) समानान्तर रेखा में नहीं होता। जब मनुष्य पैरों के बल खड़ा होता है, तब उसका मन पेट से ऊपर होता है। तात्पर्य यह है कि मनुष्य के शरीर में पेट को सबसे नीचे, उससे ऊपर मन को और सबसे ऊपर मस्तिष्क को स्थान मिला है; अर्थात् शारीरिक और बाह्य आवश्यकताओं को कम और भावनाओं को अधिक महत्त्व दिया गया है। इरा दृष्टि से व्यक्ति को मानसिक तुष्टि को ही सबसे अधिक महत्त्व प्रदान करना चाहिए। इसके उपरान्त भावनात्मक तुष्टि को और सबसे अन्त में शारीरिक सन्तुष्टि पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
(iii) मानव की शरीर रचना में मस्तिष्क का स्थान सबसे ऊपर है।
(iv) पशु का पेट और मानस समानान्तर रेखा में हैं।
(v) मनुष्य के हृदय ने पेट पर विजय प्राप्त कर ली।

प्रश्न 3:
अपनी वृत्तियों को वश में करने के लिए आज मनोविज्ञान दो उपाय बताता है इन्द्रियों के संयमन और वृत्तियों के उन्नयन का !
संयमन का उपदेश हमारे ऋषि-मुनि देते आये हैं। किन्तु, इसके बुरे नतीजे भी हमारे सामने आये हैं बड़े-बड़े तपस्वियों की लम्बी-लम्बी तपस्याएँ एक रम्भा, एक मेनका, एक उर्वशी की मुसकान पर स्खलित हो गयीं।
आज भी देखिए। गाँधी जी के तीस वर्ष के उपदेशों और आदेशों पर चलने वाले हम तपस्वी किस तरह दिन-दिन नीचे गिरते जा रहे हैं।
इसलिए उपाय एकमात्र है-वृत्तियों के उन्नयन का।
कामनाओं को स्थूल वासनाओं के क्षेत्र से ऊपर उठाकर सूक्ष्म भावनाओं की ओर प्रवृत्त कीजिए।
शरीर पर मानस की पूर्ण प्रभुता स्थापित हो-गेहूँ पर गुलाब की!
(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) अपनी वृत्तियों को वश में करने के लिए आज मनोविज्ञान कौन-से दो उपाय बतलाता है?
(iv) बड़े-बड़े तपस्वियों की तपस्याएँ किनकी मुस्कान पर स्खलित हो गई ।
(v) गेहूँ और गुलाब मानव के मन-मस्तिष्क पर किसकी सत्ता स्थापित होनी चाहिए?
उत्तर:
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – लेखक ने गेहूं को भौतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक प्रगति का प्रतीक माना है और गुलाब को मानसिक अर्थात् सांस्कृतिक प्रगति का। लेखक के अनुसार मन को अवस्थाओं का अध्ययन करने वाले अर्थात् मनोवैज्ञानिक मन को नियन्त्रित करने के लिए दो उपाय बतलाते हैं। उनका प्रथम उपाय इन्द्रियों (पाँच ज्ञानेन्द्रियों-आँख, कान, नाक, जीभ और त्वचा तथा पाँच कर्मेन्द्रियों-हाथ, पाँव, वाक्, गुदा और उपस्थ) द्वारा होने वाले क्रिया-कलापों के नियमन-संयमन से है तथा दूसरा उपाय वृत्तियों अर्थात् मन
की अवस्थाओं के उन्नयन अर्थात् उनका उच्चस्तरीय विकास करने से है। |
(iii) अपनी इन्द्रियों को वश में करने के लिए आज मनोविज्ञान दो उपाय बतलाता है – इन्द्रियों के संयम और वृत्तियों के उन्नयन का।
(iv) बड़े-बड़े तपस्वियों की तपस्याएँ एक मेनका, एक उर्वशी की मुसकान पर स्खलित हो गईं। मानव के मन-मस्तिष्क में गेहूं की नहीं गुलाब की सत्ता स्थापित होनी चाहिए।

प्रश्न 4:
गेहूँ की दुनिया खत्म होने जा रही है – वह स्थूल दुनिया, जो आर्थिक और राजनीतिक रूप में हम सब पर छायी है!
जो आर्थिक रूप में रक्त पीती रही है; राजनीतिक रूप में रक्त की धारा बहाती रही है।
अब वह दुनिया आने वाली है जिसे हम गुलाब की दुनिया कहेंगे!
गुलाब की दुनिया-मानस का संसार – सांस्कृतिक जगत्।
अहा, कैसा वह शुभ दिन होगा जब हम स्थूल शारीरिक आवश्यकताओं की जंजीर तोड़कर सूक्ष्म मानस-जगत का नया लोक बसाएँगे!
(i) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) गेहूँ की दुनिया खत्म होने जा रही है? इसका क्या आशय है?
(iv) भौतिकता की दुनिया किस रूप में रक्त की धारा बहाती रही है?
(v) गेहूँ और गुलाब को किसका प्रतीक माना गया है।
उत्तर:
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – श्री रामवृक्ष बेनीपुरी जी को विश्वास है कि अब मानसिक सन्तुष्टि के युग का आगमन होने वाला है। यह ऐसा संसार होगा जिसमें मन को सन्तोष मिल सकेगा और मानव की संस्कृति विकसित हो सकेगी। लेखक अपनी प्रसन्नता को व्यक्त करते हुए लिखता है कि वह मंगलमय दिन कैसा होगा, जब हम बाह्य शारीरिक आवश्यकताओं के बन्धन से मुक्त हो सकेंगे। लेखक उस शुभ दिन की कल्पना करता है जब हम गुलाब की सांस्कृतिक धरती पर स्वच्छन्दता के साथ विचरण कर सकेंगे।
(iii) गेहूँ की दुनिया खत्म होने जा रही है इसका आशय है कि भौतिकता का युग अब समाप्त होने जा रहा
(iv) भौतिकता की दुनिया राजनीति के रूप में रक्त की धारा बहाती रही है।
(v) गेहूँ और गुलाब में गेहूँ को भौतिकता को और गुलाब को आध्यात्मिक मानसिकता का प्रतीक माना गया है।

We hope the UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi गद्य गरिमा Chapter 8 गेहूं बनाम-गुलाब (रामवृक्ष बेनीपुरी) help you.

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