UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi समास-प्रकरण
UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi समास-प्रकरण
समास-प्रकरण
नवीनतम् पाठ्यक्रम में अव्ययीभाव, कर्मधारय तथा बहुव्रीहि समास ही निर्धारित है। अत: विद्यार्थी इनको भली मत समझे तथा अभ्यास करे। इनके लिए कुल 2 अंक निर्धारित है। प्रश्न दो प्रकार से पूछे जा सकते हैं.1]दिये हर समस्त पदों का विग्रह और सम्बन्धित समास का नामा (2) किसी एक समास की परिभाषा उदाहरणसहित।
समास – जब दो या दो से अधिक पद मिलकर एक नया शब्द बनाते हैं और उनके बीच की विभक्ति अथवा संयोजक लुप्त हो जाते हैं, लेकिन पूर्ण अर्थ विदित होता है तो इस क्रिया को समास’ कहते हैं।
उदाहरण – जीवनस्य पर्यन्तम् (जीवन के अन्त तक)। यह एक वाक्य है। इसमें यदि समास होता है तो आजीवनम्’ एक नया शब्द बन जाता है।
विग्रह – समास का अर्थ बताने वाले वाक्य को ‘विग्रह’ कहते हैं।
समस्त पद – समास होने के पश्चात् जो एक पद बनता है, उसे समस्त पद’ कहते हैं। उपर्युक्त उदाहरण में ‘आजीवनम् समस्त पद है और जीवनस्य पर्यन्तम्’ इसका विग्रह।
विशेष – जिन पदों में समास होता है, उनमें पहले पद को ‘पूर्व पद’ तथा अगले पद को ‘उत्तर पद’ कहते हैं। ‘जीवनस्य पर्यन्तम्’ में ‘जीवनस्य’ पूर्व पद है तथा ‘पर्यन्तम्’ उत्तर पद।
सामान्यतया समास के छ: भेद होते हैं
- अव्ययीभाव,
- कर्मधारय,
- बहुव्रीहि,
- द्वन्द्व,
- द्विगु तथा
- तत्पुरुष।
(1) अव्ययीभाव समास
परिभाषा – जिस समास में पूर्व पद अव्यय हो और उसी के अर्थ की प्रधानता हो, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं।
विशेष – (1) अव्ययीभाव समास नित्य समास होता है। इस कारण इसका अपने पदों में विग्रह नहीं होता। विग्रह के रूप में केवल समस्त पद का अर्थ बताया जाता है।
(2) अव्ययीभाव समास करके बना हुआ पद भी अव्यय ही होता है तथा उसका रूप नपुंसकलिङ्ग एकवचन में बनता है।
(2) कर्मधारय समास
परिभाषा – यह तत्पुरुष समास का एक उपभेद है। इसका पूर्वपद विशेषण और उत्तरपद विशेष्य होता है। इसमें उत्तरपद के अर्थ की प्रधानता होती है तथा विग्रह करते समय विशेष्य के लिंग, विभक्ति और वचन के अनुसार पूर्वपद का निर्धारण होता है। यह समास पाँच रूपों
(क) विशेषण-विशेष्य कर्मधारय,
(ख) उपमान कर्मधारय,
(ग) रूपक कर्मधारय,
(घ) उभयपद विशेषण,
(ङ) कुत्सित और सुन्दर – में दृष्टिगत होता है;
उदाहरण
(3) बहुव्रीहि समास
परिभाषा – जब दोनों समस्त-पदों में से किसी भी पद के अर्थ की प्रधानता नहीं होती, वरन् ये किसी अन्य पद के विशेषण रूप में प्रयुक्त होते हैं और उसी पद के अर्थ की प्रधानता होती है, तब वहाँ बहुव्रीहि समास होता है। इसमें विग्रह करते समय यत्’ शब्द के रूपों (यस्य, येन, यस्मै आदि) को प्रयोग किया जाता है; जैसे
पीताम्बर, पीतम् अम्बरं यस्य सः (कृष्णः)। यहाँ पर ‘पीत’ और ‘अम्बर’ पदों की प्रधानता ने होकर ‘कृष्ण: पद की प्रधानता है और समस्त-पद ‘कृष्ण’ का विशेषण है।
पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ में आये कुछ समासों के हल
पाठ 3:
पाठ 4:
पाठ 6:
पाठ 8:
पाठ 9:
पाठ 10:
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