UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi नाटक Chapter 5 राजमुकुट

By | June 4, 2022

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi नाटक Chapter 5 राजमुकुट

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi नाटक Chapter 5 राजमुकुट (व्यथित हृदय)

प्रश्न 1:
श्री व्यथित हृदय द्वारा लिखित ‘राजमुकुट नाटक का सारांश अथवा कथा-सार संक्षेप में लिखिए।
या
‘राजमुकुट’ नाटक की कथावस्तु (कथानक) संक्षेप में लिखिए।
या
‘राजमुकुट’ नाटक के द्वितीय अंक का कथा-सार लिखिए।
या
‘राजमुकुट’ नाटक के तृतीय अंक का कथा-सार संक्षेप में लिखिए।
या
‘राजमुकुट नाटक के प्रथम अंक की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
या
‘राजमुकुट नाटक के किसी एक अंक की कथा संक्षेप में लिखिए।
या
‘राजमुकुट’ नाटक के अन्तिम (चतुर्थ) अंक की कथा संक्षिप्त रूप में लिखिए।
या
“राजमुकुट नाटक की कथा एवं अन्तर्कथाओं पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
या
‘राजमुकुट नाटक के आधार पर महाराणा प्रताप और अकबर की भेंट का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
‘राजमुकुट’ नाटक, नाटककार श्री व्यथित हृदय का एक ऐतिहासिक नाटक है। इस नाटक में * महाराणा प्रताप की वीरता, बलिदान और त्याग की कथा अंकित है। कथा का प्रारम्भ महाराणा प्रताप के राज्याभिषेक से तथा कथा का अन्त महाराणा प्रताप की मृत्यु पर होता है। महाराणा प्रताप इस नाटक के नायक हैं।
प्रथम अंक – प्रस्तुत नाटक के प्रथम अंक की कथा मेवाड़ के राणा जगमल के महल से आरम्भ होती है। राणा जगमल एक विलासी और क्रूर शासक है। वह अपनी मर्यादा का निर्वाह करना भूल गया था तथा सुरा-सुन्दरी में डूबा रहता था। ऐसे ही समय में राष्ट्रनायक कृष्णजी चन्दावत, राजसभा में पहुँचते हैं तथा राणा जगमल को उसके नीचे कर्मों के लिए भला-बुरा कहते हैं। वे जगमल से मेवाड़ का मुकुट’ उचित पात्र को सौंपने के लिए आग्रह करते हैं। जगमल उनकी बात स्वीकार कर लेते हैं तथा चन्दावत से योग्य उत्तराधिकारी चुनने के लिए कहते हैं। चन्दावत; राणा जगमल से राजमुकुट लेकर प्रताप के शीश पर रख देते हैं। प्रजा में खुशी की लहर दौड़ जाती है। प्रताप विदेशी शासक से लोहा लेने का प्रण करते हैं तथा देश की स्वतन्त्रता की रक्षा करने का संकल्प लेते हैं। यह संकल्प नाटक की कथा को आगे बढ़ाने में सहायक है।

द्वितीय अंक – प्रताप मेवाड़ के राजा बनते ही अपनी प्रजा के खोये हुए सम्मान की रक्षा करते हैं। वे प्रजा में वीरता का संचार करने के लिए अनेक आयोजन भी करते हैं। ऐसे ही एक आयोजन के अवसर पर जंगली सूअर के आखेट को लेकर प्रताप तथा उनके भाई शक्तिसिंह में विवाद हो जाता है। विवाद बढ़ जाने पर दोनों भाई शस्त्र निकालकर एक-दूसरे से भिड़ जाते हैं। भावी अनिष्ट की आशंका या राजकुल को संकट से बचाने के लिए राजपुरोहित अपनी कटार से अपना ही प्राणान्त कर लेते हैं। प्रताप शक्तिसिंह को देश से निर्वासित कर देते हैं। शक्तिसिंह अपने को अपमानित अनुभव करते हैं तथा अकबर के साथ मिल जाते हैं।

तृतीय अंक – मानसिंह राणा प्रताप से बहुत प्रभावित था। एक बार वह राणा प्रताप से मिलने आया। राणा उसे विधर्मी और पतित समझते थे; क्योंकि मानसिंह की बुआ मुगल सम्राट अकबर की विवाहिता पत्नी थीं। इसलिए राणा ने उससे स्वयं भेंट न करके उसके स्वागतार्थ अपने पुत्र अमरसिंह को नियुक्त किया। मानसिंह ने इसे अपना अपमान समझा और इस अपमान का बदला चुकाने की बात कहकर वहाँ से चला गया तथा दिल्ली के सम्राट अकबर से जा मिला। चतुर अकबर अवसर का लाभ उठाकर महाराणा प्रताप पर आक्रमण कर देता है। हल्दीघाटी के इतिहास-प्रसिद्ध युद्ध में महाराणा प्रताप को बचाने के लिए कृष्णजी चन्दावत, प्रताप के सिर से मुकुट उतारकर स्वयं पहन लेते हैं और युद्धभूमि में देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर देते हैं। प्रताप बच जाते हैं, परन्तु दो मुगल सैनिक प्रताप का पीछा करते हैं। ऐसे समय पर शक्तिसिंह का भ्रातृ-प्रेम जाग्रत होता है और वे पीछा करके दोनों मुगलों को मार देते हैं। शक्तिसिंह और प्रताप आपस में गले मिलते हैं। इसी समय राणा प्रताप का प्रिय घोड़ा चेतक अपने प्राण त्याग देता है।

चतुर्थ अंक – हल्दीघाटी का युद्ध समाप्त हो जाता है, परन्तु राणा हार नहीं मानते। अकबर प्रताप की देशभक्ति, त्याग और वीरता का लोहा मानते हैं तथा वे महाराणा प्रताप के प्रशंसक बन जाते हैं। एक दिन प्रताप के पास एक संन्यासी आती है। प्रताप संन्यासी का उचित सत्कार न कर पाने के कारण अत्यधिक व्यथित हैं। इसी समय राणा की पुत्री चम्पा घास की बनी रोटी लेकर आती है, जिसे एक वन-बिलाव छीनकर भाग जाता है। चम्पा गिर जाती है और पत्थर से टकराकर उसकी मृत्यु हो जाती है। कुछ समय पश्चात् अकबर संन्यासी वेश में वहाँ आता है और कहता है कि “आप उस अकबर से तो सन्धि कर सकते हैं जो भारतमाता को अपनी माँ समझता है, जो आपकी भाँति उसकी जय बोलता है।” इसी समय अकबर राणा को ‘भारतमाता का सपूत’ बताता है और प्रताप के दर्शन करके अपने को धन्य मानता है। संघर्षरत प्रताप रोगग्रस्त हो जाते हैं। वे शक्तिसिंह तथा अपने सभी साथियों से स्वतन्त्रता-प्राप्ति का वचन लेते हैं। भारतमाता की जय’ घोष के साथ ही महाराणां का देहान्त हो जाता है। ‘राजमुकुट’ की यह कथा भारत के स्वर्णिम इतिहास और एक रणबाँकुरे वीर की अमर कहानी है।

प्रश्न 2:
नाट्य-कला (नाट्य तत्त्वीं) की दृष्टि से ‘राजमुकुट’ नाटक की समीक्षा कीजिए।
या
कथोपकथन (संवाद-योजना) की दृष्टि से ‘राजमुकुट’ नाटक की समीक्षा कीजिए।
या
‘राजमुकुट’ नाटक की संवाद-कला पर प्रकाश डालिए। कथावस्तु की दृष्टि से ‘राजमुकुट नाटक की समीक्षा लिखिए।
या
‘राजमुकुट’ नाटक की भाषा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
या
भाषा-शैली की दृष्टि से ‘राजमुकुट’ नाटक की समीक्षा लिखिए।
या
‘राजमुकुट नाटक में देश-काल और वातावरण का सफल निर्वाह हुआ है।” इस कथन के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
या
‘राजमुकुट’ नाटक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
या
‘राजमुकुट’ नाटक के वातावरण एवं उद्देश्य पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
या
‘राजमुकुट नाटक की अभिनेयता पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
या
रंगमंच की दृष्टि से नाटक की आलोचना कीजिए।
या
‘राजमुकुट’ नाटक की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

‘राजमुकुट’ नाटक की समीक्षा

नाट्य-कला के विभिन्न तत्त्वों के आधार पर श्री व्यथित हृदय कृत ‘राजमुकुट’ नाटक की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

(1) कथानक – इस नाटक का कथानक महाराणा प्रताप के शौर्यपूर्ण जीवन से सम्बन्धित है। कथानक का प्रारम्भ महाराणा के राजमुकुट धारण करने से होता है। कथानक के विकास में शक्तिसिंह और राणा का विवाद, अकबर की सेना का प्रताप पर आक्रमण, हल्दीघाटी का युद्ध, प्रताप का वन-वन भटकना, उनकी मृत्यु आदि अनेक घटनाएँ सहायक हुई हैं। कथानक सुगठित, सशक्त, सुन्दर तथा क्रमबद्ध है। इस प्रकार कथानक की दृष्टि से ‘राजमुकुट एक सफल नाटक है।

(2) पात्र तथा चरित्र-चित्रण – नाटक की पात्र-योजना श्रेष्ठ है। नाटक के नायक प्रताप हैं। प्रताप के अतिरिक्त शक्तिसिंह, कृष्णजी चन्दावत, जगमल, मानसिंह, अकबर आदि अन्य प्रमुख पात्र हैं। नारी-पात्रों की भी सुन्दर योजना है। प्रजावती का बलिदान सुन्दर रूप में प्रस्तुत किया गया है। प्रमिला, गुणवती तथा चम्पा अन्य प्रमुख नारी-पात्र हैं। सभी पात्रों का चरित्रांकन श्रेष्ठ है तथा कहानी के विकास में सहायक है। पात्रों की मुख्य विशेषता उनका उदात्त चरित्र है।

(3) संवाद-योजना – नाटक के संवाद सुन्दर, सरल, संक्षिप्त, सरस तथा पात्रों के अनुकूल हैं। ये संवाद मनोभावों को प्रकट करने में भी सक्षम और प्रभावशाली हैं। संवादों में कहीं माधुर्य है तो कहीं ओज। उदाहरणार्थ–“मैं अकबर से सन्धि कर लें ?उस अकबर से सन्धि कर लें, जिसने भारतमाता को दासता की जंजीरों में जकड़ रखा है।” नाटक में स्वगत कथनों की भरमार होने से पाठकों में अरुचि पैदा होने की अधिक सम्भावना है। कहीं-कहीं रंगमंच पर प्रस्तुत घटनाओं को संवादों द्वारा पुनः व्यक्त करके समय का दुरुपयोग भी किया गया है।

(4) देश-काल एवं वातावरण – नाटक में अकबर के समय के वातावरण को चित्रित किया गया है। इस दृष्टि से नाटककार सफल हैं। ऐतिहासिक वातावरण सफलता के साथ प्रस्तुत किया गया है। युद्ध के दृश्य सजीव हैं। नाटक में तत्कालीन राजस्थान का परिवेश मुखरित हो उठा है।

(5) भाषा-शैली – इस नाटक की भाषा साहित्यिक खड़ी बोली है। संस्कृत के शब्दों का बाहुल्य है। माधुर्य के साथ ओज गुण की भी प्रधानता है। अलंकारों, मुहावरों तथा लोकोक्तियों का प्रयोग सुन्दर रूप में किया गया है। भाषा-शैली की दृष्टि से राजमुकुट एक सफल रचना है। उदाहरणार्थ-”वह देश में छाई हुई दासता की निशा पर सचमुच सूर्य बनकर हँसेगा, आलोक-पुंज बनकर ज्योतित होगा। उसका प्रताप अजेय है। उसका पौरुष गेय है।”

(6) उद्देश्य – नाटक की रचना में नाटककार का उद्देश्य देशप्रेम तथा स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए त्याग एवं बलिदान का सन्देश देना है। प्रताप अपनी मृत्यु के समय कहते हैं-”बन्धुओ ! वीरो ! प्रतिज्ञा करो, मुझे वचन दो कि तुम मेरे देश की ……….. अपने देश की स्वतन्त्रता के प्रहरी बनोगे।”

(7) अभिनेयता – अभिनेयता की दृष्टि से नाटक रंगमंच के अनुरूप प्रतीत नहीं होता। दृश्यों की संख्या बहुत अधिक है। युद्ध इत्यादि के दृश्यों का मंचन करना तथा हाथी-घोड़ों का मंच पर प्रस्तुतीकरण भी कठिन है। भाषा की दृष्टि से भी नाटक अभिनेयता की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। हाँ, पठनीयता की दृष्टि से ‘राजमुकुट एक सफल रचना है।

प्रश्न 3:
‘राजमुकुट’ नाटक के आधार पर महाराणा प्रताप का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘राजमुकुट’ के प्रमुख पात्र (नायक) का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘राजमुकुट’ नाटक के जिस पात्र ने आपको सर्वाधिक प्रभावित किया है, उसके व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
या
‘राजमुकुट’ नाटक के किसी एक पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘राजमुकुट’ नाटक के आधार पर प्रमुख पात्र के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:

महाराणा प्रताप का चरित्र-चित्रण

श्री व्यथित हृदय कृत ‘राजमुकुट’ नाटक के नायक महाराणा प्रताप हैं। नाटक में उनके चरित्र का मूल्यांकन . करने वाली; राज्याभिषेक से लेकर मृत्यु तक की घटनाएँ हैं। राणा प्रताप की चारित्रिक विशेषताओं को निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत प्रस्तुत किया जा सकता है

(1) आदर्श भारतीय नायक – भारतीय नाट्यशास्त्र में आदर्श नायक के जिन गुणों के विषय में बताया गया है, महाराणा प्रताप के चरित्र में वे सभी गुण विद्यमान हैं। उनका चरित्र ‘धीरोदात्त नायक’ का आदर्श चरित्र है। वे उच्च कुल में उत्पन्न हुए वीर, साहसी तथा संयमी व्यक्ति हैं।

(2) प्रजा की आशाओं के आधार – मेवाड़ की प्रजा महाराणा प्रताप को इस आशा के साथ मुकुट पहनाती है। कि वे उसकी तथा देश की रक्षा करेंगे। प्रजा की आशा के अनुरूप प्रताप उसके सच्चे हितैषी सिद्ध होते हैं। प्रजा प्रताप के मुकुट धारण करने से पूर्व ही यह आशा रखती है कि “वह देश में छायी हुई दासता की निशा पर सचमुच सूर्य बनकर हँसेगा; आलोक-पुंज बनकर ज्योतित होगा। उसका प्रताप अजेय है; उसका पौरुष गेय है। वह महीमाता का पुण्य है। भारतमाता की साधना का फल है; अमरफल है।”

(3) मातृभूमि के अनन्य भक्त – प्रताप मातृभूमि के अनन्य भक्त हैं। वे देश की दासता और प्रजा की दुर्दशा से व्यथित हैं-“सारा देश विदेशियों के अत्याचारों से विकम्पित हो चुका है। देश के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक असन्तोष राग अलाप रहा है। …………. चित्तौड़ का युद्ध भारत का युद्ध होगा।”

(4) दृढ़प्रतिज्ञ तथा कर्तव्यनिष्ठ – महाराणा दृढ़ निश्चयी तथा अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान् हैं। राजमुकुट धारण करने के अवसर पर प्रताप के शब्द हैं – “मेरा जयनाद ! मुझे महाराणा बनाकर मेरा जयनाद न बोलो साथियो! जय बोलो भारत की, मेवाड़ की। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि प्राणों में साँस रहते हुए प्रजा-प्रभु की दी हुई इस भेंट को मलिन न करूंगा। जब तक सारे भारत को दासता से मुक्त न कर लूंगा, सुख की नींद न सोऊँगा।”

(5) स्वतन्त्रता हेतु दृढ़ संकल्प – प्रताप जीवनपर्यन्त स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करते रहे। वे अकबर से हल्दीघाटी में युद्ध करते हैं। सब कुछ खोकर, भी वे अकबर के सामने झुकते नहीं। बच्चे भूखों मर जाते हैं, फिर भी यह लौह-पुरुष अडिग रहता है। मृत्यु के समय भी राणा को एक ही लगन है, एक ही इच्छा है, एक ही अभिलाषा है, वह है देश की स्वतन्त्रता-“बन्धुओ ! वीरो ! प्रतिज्ञा करो, मुझे वचन दो कि तुम मेरे देश की ……………….. अपने देश की स्वतन्त्रता के प्रहरी बनोगे।”

(6) निरभिमानी एवं सत्तालिप्सा से दूर – राणा देशभक्त हैं, स्वतन्त्रता के दीवाने हैं, परन्तु वे राजा बनना नहीं चाहते। राणा प्रताप महान् देशभक्त एवं मेवाड़ के महाराणा हैं, किन्तु उन्हें अभिमान बिल्कुल नहीं है। महान् होकर भी वे स्वयं को महान् नहीं समझते। वे कहते हैं—“मेवाड़ का राणा मैं ! नहीं, नहीं कृष्णजी ! आप भूल रहे हैं। मेवाड़ के महाराणा का पद महान् है, बहुत महान् है।”

(7) भारतीय संस्कृति, धर्म तथा मान-मर्यादा के रक्षक – महाराणा भारतीय संस्कृति के पोषक हैं। वे धर्म की रक्षा करना अपना प्राथमिक कर्तव्य समझते हैं। संन्यासी के रूप में अकबर जब उनके पास पहुँचता है तो वे उसका आदर करते हैं, परन्तु खाने के लिए कुछ भी दे पाने में असमर्थ होने के कारण उन्हें कष्ट होता है। वे कहते हैं-”आज कई दिनों से बच्चे घास की रोटियों पर निर्वाह कर रहे थे तो क्या संन्यासी अतिथि को घास की रोटिन खिलाऊँ।
धर्म के प्रति भी राणा के मन में निष्ठा है। पुरोहित का बलिदान देखकर राणा कहते हैं “देशभक्त पुरोहित तुम धन्य हो ! तुमने अपने अनुरूप ही अपना बलिदान दिया है। ज्ञान और चेतना से दूर हम अधम को तुमने प्रकाश दिखाया है …………..।”

(8) पराक्रमी योद्धा – राणा वीर हैं। हल्दीघाटी का ऐतिहासिक युद्ध उनके शौर्य का साक्षी है। प्रताप अपने सैनिकों से कहते हैं-“चलो युद्ध का राग गाते हुए हम सब हल्दीघाटी की युद्धभूमि में चलें और रक्तदान से चण्डी माता को प्रसन्न करके उनसे विजय का शुभ आशीर्वाद लें।”
इस प्रकार राणा का चरित्र अनेक अमूल्य गुणों की खान है। वे आदर्श देशभक्त हैं और त्यागी, साहसी, उदार, वीर, दृढ़निश्चयी तथा उदात्त पुरुष हैं। वे प्रजा को आत्मीय मित्र मानते हैं। मुगल सम्राट अकबर भी उनकी प्रशंसा करते हैं – “महाराणा प्रताप भारत के अनमोल रत्न हैं।”

प्रश्न 4:
‘राजमुकुट नाटक के आधार पर शक्तिसिंह का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘राजमुकुट के आधार पर शक्तिसिंह की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
या
‘राजमुकुट के आधार पर समीक्षा कीजिए कि “शक्तिसिंह देशभक्त और त्याग की प्रतिमा है। उसके पश्चात्ताप और त्याग ने उसके चरित्र को गरिमामय बना दिया है।”
उत्तर:

शक्तिसिंह का चरित्र-चित्रण

शक्तिसिंह; श्री व्यथित हृदय कृत ‘राजमुकुट’ नाटक के नायक मेवाड़ के महाराणा प्रताप का छोटा भाई है। महाराणा के इस सुयोग्य अनुज के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) परम देशभक्त – शक्तिसिंह देशप्रेम और त्याग की प्रतिमा है। उसके हृदय में अपने भाई के समान देश की दासता, जनता की व्यथा और शासन के अत्याचारों के विरुद्ध आक्रोश है। वह मेवाड़ के घर-घर में जीवन और जागृति का मन्त्र फेंकना चाहता है। वह अपने देश के मंगल के लिए सब-कुछ करने को तत्पर है – ”माता-मही! तू मेरी भुजाओं में शक्ति दे कि मैं जगमल के सिंहासन को उलट सकें।’ …………….मेवाड़ में सुख-शान्ति स्थापित कर सकें।”

(2) राज्य-वैभव के प्रति अनासक्त – शक्तिसिंह का चरित्र त्याग भाव से परिपूर्ण है। उसे राज्य-वैभव में कोई आसक्ति नहीं है। अहेरिया उत्सव पर वन-शूकर के वध पर महाराणा से तकरार हो जाने पर दोनों में तलवारें खिंच जाती हैं, जिसमें मध्यस्थता करते हुए पुरोहित की हत्या हो जाती है। इस अपराध में उसे राज्य से निर्वासित कर दिया जाता है, जिसे वह सहर्ष स्वीकार कर लेता है।

(3) निर्भीक एवं स्पष्ट वक्ता – शक्तिसिंह में निर्भीकता और स्पष्ट बात कहने का साहस द्रष्टव्य है। वह अकबर की सेना में सम्मिलित तो हो जाता है, किन्तु अकबर द्वारा मेवाड़ का सर्वनाश करने का संकल्प लेने पर वह उसकी सहायता करने को तैयार नहीं होता।

(4) भावुक और प्रकृति-प्रेमी – शक्तिसिंह युवक है। प्राकृतिक सौन्दर्य उसे भाव-विमुग्ध कर देता है। वह उपवन में बैठकर गीत गुनगुनाता है। चन्दावत के पूछने पर वह कहता है “वन मनुष्यों से कहीं अधिक अच्छे होते हैं।”

(5) भ्रातृ-प्रेमी – शक्तिसिंह के हृदय में अपने भाई महाराणा के प्रति अनन्य प्रेम है। राणा प्रताप और शक्तिसिंह का युद्धभूमि में आमना-सामना होता है। युद्ध में ही राणा के घोड़े चेतक की मृत्यु हो जाती है। राणा उसके शव के निकट चिन्तित भाव से बैठे हुए थे, तभी दो मुगल सैनिकों को महाराणा पर प्रहार करते हुए देखकर शक्तिसिंह एक ही वार में दोनों को मौत के घाट उतार देता है और महाराणा से क्षमा-याचना करता है-”वह आया है.मेवाड़ के महाराणा से क्षमा-याचना करने, उनकी स्नेहमयी गोद में बैठकर पश्चात्ताप करने और उनकी वीरता की पवित्र गंगा में अपने कलुषित-कल्मषों को धोने।”

(6) साम्प्रदायिक सद्भावना तथा राष्ट्रीय एकता का पोषक – शक्तिसिंह यह सोचता है कि अकबर और प्रताप मिलकर ऐसे भारत की रचना कर सकते हैं, जिसमें धर्म और सम्प्रदाय का वैमनस्य नहीं होगा। ऐसा भारत ही अखण्ड राष्ट्र हो सकता है। वह हिन्दू और मुस्लिम सम्प्रदायों को मिल-जुलकर रहने का सन्देश देता है-“तुम उन्हें विदेशी और विधर्मी समझ रहे हो, क्या वे फिर काबुल, कंधार और ईरान लौट जाएँगे ? …………. वे अब इसी देश में रहेंगे और उसी प्रकार उसी कण्ठ से भारतमाता की जय बोलेंगे।”

(7) अन्तर्द्वन्द्व से घिरा – शक्तिसिंह उज्ज्वल चरित्र का व्यक्ति है। वह प्रतिशोध की भावना और देशभक्ति के द्वन्द्व से घिर जाता है, किन्तु अन्त में देशभक्ति की भावना की विजय होती है। तब वह सोचता है-”प्रतिहिंसा की भावना से उत्तेजित होकर दानव बन जाना ठीक नहीं।” इन सहज दुर्बलताओं ने उसके चरित्र को यथार्थ । का स्पर्श देकर निखार दिया है।

प्रश्न 5:
‘राजमुकुट’ नाटक के आधार पर अकबर को चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:

अकबर का चरित्र-चित्रण

श्री व्यथित हृदय कृत ‘राजमुकुट’ नाटक में मुगल सम्राट अकबर एक प्रमुख पात्र है। वह महाराणा प्रताप का प्रतिद्वन्द्वी है। उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं

(1) व्यावहारिक और अवसरवादी व्यक्ति – अकबर व्यावहारिक और अवसरवादी व्यक्ति है। अपने इसी गुण के कारण वह शक्तिसिंह के हृदय में जगी प्रतिशोध की भावना को तीव्र कर देता है-”छलिया संसार को छल और प्रपंचों से परास्त करने का पाठ पढ़ो। ……….. संसार में भावुकता से काम नहीं चल सकता शक्ति !”

(2) महत्त्वाकांक्षी – सम्राट् अकबर बहुत महत्त्वाकांक्षी है। क्ह मन-ही-मन मेवाड़-विजय का संकल्प करता है-“मैं अपने जीवन के उस अभाव को पूरा काँगा, मेवाड़ के गौरवमय भाल को झुकाकर अपने साम्राज्य की प्रभुता बढ़ाऊँगा।”

(3) मानव-स्वभाव का पारखी – अकबर बहुत बुद्धिमान है। वह शक्तिसिंह, मानसिंह और राणा प्रताप के चरित्र का सही मूल्यांकन करता है – “एक प्रताप है, जो मातृभूमि के लिए प्राण हथेली पर लिये फिरता है। और एक तुम हो, जो मातृभूमि के सर्वनाश के लिए खाइयाँ खोदते फिरते हो।”

(4) सदगुणों का प्रशंसक – अकबर व्यक्ति के सद्गुणों की प्रशंसा करने से नहीं चूकता, चाहे वे सद्गुण उसके शत्रु में ही क्यों न हों। यह विशेषता उसे महानता प्रदान करती है। वह हृदय से राणा की वीरता और स्वाभिमान की प्रशंसा करता है- “……… धन्य है मेवाड़ ! और धन्य हैं मेवाड़ की गोद में पलने वाले महाराणा प्रताप ! प्रताप मनुष्य रूप में देवता हैं, मानवता की अखण्ड ज्योति हैं।”

(5) साम्प्रदायिक सदभावना का प्रतीक – अकबर हिन्दू-मुसलमानों को एकता के सूत्र में बाँधना चाहता है। उसके द्वारा स्थापित ‘दीन-ए-इलाही’ मत इसी साम्प्रदायिक सद्भावना का प्रतीक है। वह मानवीय गुणों का आदर करता है। वह महाराणा की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाते हुए कहता है—“हमारा और आपका मिलन ! यह दो व्यक्तियों का मिलन नहीं महाराणा ! दो धर्म-प्रवाहों का मिलन है, जिससे इस देश की संस्कृति सुदृढ़ तथा पुष्ट होगी।”

(6) कूटनीतिज्ञ – अकबर कुशल कूटनीतिज्ञ है। वह प्रत्येक निर्णय कूटनीति से लेता है। एक उदाहरण द्रष्टव्य है-”प्रताप का भाई शक्तिसिंह स्वयं जादू के जाल में फंसकर माया की तरंगों में डुबकियाँ लगा रहा है। उसी को मेवाड़ के विध्वंस का साधन बनाऊँगा।”

प्रश्न 6:
राजमुकुट’ नाटक के नारी-पात्रों पर विचार व्यक्त कीजिए।
या
‘राजमुकुट नाटक में देशप्रेम एवं त्याग की प्रतिमूर्ति प्रमिला पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
या
प्रमिला के माध्यम से मेवाड़ की नारी का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:

‘राजमुकुट’ के नारी-पात्र

श्री व्यथित हृदय कृत ‘राजमुकुट में नारी-पात्रों का समावेश नगण्य है। इसमें प्रमिला, प्रजावती, गुणवती और चम्पा प्रमुख नारी पात्र हैं।

प्रमिला नाटक की एक साधारण स्त्री-पात्र है। वह जगमल के चापलूस सरदार हाथीसिंह की पत्नी है। वह देशप्रेम और त्याग की प्रतिमूर्ति है। वह अपने पति को देश के कल्याण के लिए बलिदान हो जाने का सन्देश देती है। नाटक के तृतीय दृश्य में इसका राष्ट्रप्रेम अभिव्यक्त होता है। वह अपने पति से कहती है – “देश पर जब विपत्तियों के पहाड़ टूट पड़े हों, तब देश के नर-नारियों को अधिक परित्याग करना ही चाहिए। यदि देश का कल्याण करने में माँग का सिन्दूर मिट गया, तो चिन्ता की क्या बात।” जब उसका पति कहता है-”खाँडे का नाम सुनकर ही मेरे प्राणों में भूचाल आने लगता है”-तो प्रमिला उस पर व्यंग्य करती हुई कहती है तो लहँगा पहनकर हाथों में चूड़ियाँ डाल लो। घूघट निकालकर घर के कोने में जाकर बैठे रहो।”

प्रजावती निरपराध, पवित्र, जनहित में लगी रहने वाली, स्वाभिमानिनी, देशप्रेमी व प्रजावत्सल नारी है। नाटककार ‘ने उसे मंच पर उपस्थित नहीं किया है, वरन् अन्य पात्रों के माध्यम से ही उसके चरित्र की विशेषताओं को उजागर किया है। जगमल का एक सैनिक उसके चरित्र पर प्रकाश डालता हुआ कहता है-“वह विक्षिप्ता है महाराज! दिन भर झाड़ियों और कन्दराओं में छिपी रहती है। जब रात होती है तब बाहर निकलकर अपने जीवनगान से सम्पूर्ण उदयपुर को प्रतिध्वनित कर देती है। वह रात भर अपने गान को मेदिनी पर, पाषाणों पर, दीवारों पर लिखती फिरती है। उसका जीवन-गान उदयपुर में धर्म-गीत बन रहा है।” राणा जगमल अपने क्रूर चाटुकारों के कहने से उसका वध करवा देता है। प्रजावती के प्रति अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए प्रजा का नायक चन्दावत कहता है-”वह कृषकों और श्रमिकों के जीवन का प्रकाश थी; उनके प्राणों की आशा थी; उनकी धमनियों का रक्त थी।”
गुणवती मेवाड़ के राणा प्रताप की पत्नी हैं, जो उनके साथ वनवास के कष्टों को सहर्ष सहन करती हैं तथा अपने पति को हर संकट में साथ देती हैं।
चम्पा महाराणा की पुत्री है। वह नाटक के अन्त में मंच पर उपस्थित होती है। उसे अपने पिता के साथ वन में भटकते और कष्ट सहन करते हुए दिखाया गया है। इस प्रकार इस नाटक में नारी-पात्रों की भूमिका बहुत संक्षिप्त है, किन्तु भावनात्मक स्तर पर वे पाठकों को प्रभावित करने में सक्षम हैं।

प्रश्न 7:
मानसिंह का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
मानसिंह; श्री व्यथित हृदय कृत ‘राजमुकुट’ नाटक का एक प्रमुख पात्र तथा अकबर का सेनापति है। वह राणा प्रताप से बहुत प्रभावित था। एक बार वह राणा प्रताप से मिलने आया। राणा उसे विधर्मी और पतित समझते थे; क्योंकि मानसिंह की बुआ मुगल सम्राट् अकबर की विवाहिता पत्नी थी, जिसके परिणामस्वरूप राणा ने उससे स्वयं भेंट न करके उसके स्वागतार्थ अपने पुत्र अमरसिंह को नियुक्त किया। मानसिंह ने इसे अपना अपमान समझा और इस अपमान का बदला चुकाने की बात कहकर वहाँ से लौट गया। वह दिल्ली के सम्राट् अकबर से जाकर मिला और उसके निर्देश और अपने नेतृत्व में एक विशाल मुगल सेना लेकर हल्दीघाटी के मैदान में आ पहुँचा। मुगल और राजपूत दोनों सेनाओं के बीच घमासान युद्ध हुआ।
इस प्रकार मानसिंह एक असंयत मनोवृत्ति का व्यक्ति था, जिसमें सहनशीलता का अभाव था। उसने बदले की भावना से प्रेरित होकर, मुगल सम्राट अकबर की सहायता से राणा पर आक्रमण करके विधर्मी और विश्वासघाती होने को परिचय दिया।

प्रश्न 8:
“राष्ट्रनायक ‘चन्दावत’ राजमुकुट नाटक का एक प्रभावशाली चरित्र है।” इस कथन के आलोक में ‘चन्दावत’ का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
नाटककार श्री व्यथित हृदय ने अपने इस नाटक में ‘चन्दावत’ नामक पात्र का भी वर्णन किया है जो राष्ट्रनायक है और राष्ट्र के प्रति अपने उत्तरदायित्व को भलीभाँति निभाता है, उसकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) कर्तव्य के प्रति जागरूक – इस नाटक में चन्दावत को राष्ट्रनायक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। वह मर्यादाओं के पालन में विश्वास करने वाला व्यक्ति है। जब राणा जगमल अपने राज-कर्त्तव्य को भूलकर सुरासुन्दरी में डूब जाते हैं, तब इस कारण से राष्ट्रनायक चन्दावत बड़े दुःखी होते हैं। इसलिए वे जगमल को फटकार लगाते हैं और कहते हैं कि अब तुम राजमुकुट की मर्यादाओं का पालन करने में अक्षम हो गये हो; अतः राजमुकुट किसी उचित उत्तराधिकारी को सौंप दो।

(2) महान् त्यागी एवं बलिदानी – चन्दावत महात्यागी एवं बलिदानी व्यक्ति हैं। वे युद्ध के मैदान में देशभक्त राणा के प्राण बचाने के लिए उनको राजमुकुट स्वयं धारण कर लेते हैं और देश पर अपने प्राण बलिदान कर देते हैं।

(3) सच्चा देशभक्त – चन्दावत एक सच्चा देशभक्त है। देशभक्ति की भावना उसमें कूट-कूट कर भरी हुई है। वह देश के प्रति अपने कर्तव्य को भली प्रकार जानता है। युद्ध में राणा के प्राण बचाने के लिए उसका मुकुट स्वयं धारण करना देशभक्ति का एक अप्रतिम उदाहरण उसने प्रस्तुत किया है।

(4) दूरदर्शी – चन्दावत दूर की सोचने वाला व्यक्ति है। जब जगमल सुरासुन्दरी का दास होकर रह जाता है। तथा जनता उसका विरोध करती है, तो वह जगमल से उचित उत्तराधिकारी को राजमुकुट सौंपने को कह देते हैं। और स्वयं राणा को राजमुकुट पहनाते हैं जिससे जनता में खुशी की लहर दौड़ जाती है।
उपर्युक्त बिन्दुओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि चन्दावत एक त्यागी, बलिदानी, दूरदर्शी और एक सच्चा देशभक्त था।

प्रश्न 9:
‘राजमुकुट’ नाटक के शीर्षक का औचित्य (सार्थकता) बताइए।
उत्तर:

शीर्षक का औचित्य

नाटक्रकार श्री व्यथित हृदय ने अपने इस नाटक का नामकरण ‘राजमुकुट’ उचित ही किया है; क्योंकि सम्पूर्ण नाटक की कथा के मूल में राजमुकुट की मान-प्रतिष्ठा ही निहित है। नाटक का आरम्भ ही राजमुकुट की मर्यादाओं की प्रतिष्ठापना से होता है। राणा जगमल अपने राज-कर्त्तव्य को भूलकर सुरासुन्दरी में डूब गये हैं, जिससे राष्ट्र-नायक कृष्णजी चन्दावत बड़े व्यथित हैं। इसीलिए वे जगमल को फटकार लगाते हैं कि अब तुम राजमुकुट की मर्यादाओं का पालन करने में अक्षम हो गये हो; अतः किसी उचित उत्तराधिकारी को राजमुकुट सौंप दो। राजमुकुट के योग्य उत्तराधिकारी को ढूंढने का दायित्व चन्दावत पर ही आता है और वे राजमुकुट को महाराणा प्रताप के सिर पर रख देते हैं। राणा प्रताप देश की स्वतन्त्रता को राजमुकुट की मान-प्रतिष्ठा से जोड़ देते हैं और भरी सभा के सम्मुख स्वतन्त्रता-प्राप्ति का संकल्प लेते हैं। वे अपने इस संकल्प से मरते दम तक नहीं डिगते। आगे चलकर कृष्णजी चन्दावत देशभक्त राणा के प्राण बचाने के लिए, उनका राजमुकुट स्वयं धारण कर लेते हैं और देश के लिए मर-मिटते हैं।
इस प्रकार हम नाटक के शीर्षक राजमुकुट’ को कथानुसार एकदम सटीक और राष्ट्र-भावनाओं के अनुरूप पाते हैं।

प्रश्न 10:
” ‘राजमुकुट’ नाटक में इतिहास एवं कल्पना का उचित समावेश है।” स्पष्ट कीजिए।
या
” ‘राजमुकुट’ नाटक के कथानक का आधार विशुद्ध ऐतिहासिक है, किन्तु यत्र-तत्र’ काल्पनिक तत्त्वों का भी समावेश किया गया है।” इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
या
‘राजमुकुट की ऐतिहासिकता की समीक्षा कीजिए। या ऐतिहासिक दृष्टि से राजमुकुट’ नाटक का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:

‘राजमुकुट’ के कथानक की ऐतिहासिकता।

श्री व्यथित हृदय द्वारा रचित नाटक ‘राजमुकुट’ का कथानक विशुद्ध ऐतिहासिक है, किन्तु इसमें यत्र-तत्र काल्पनिक तत्त्वों का भी समावेश किया गया है। नाटक में काल्पनिक तत्त्वों का समावेश ऐतिहासिक तत्त्वों के आधार पर; आधुनिक समाज में व्याप्त समस्याओं का बोध कराने के लिए किया गया है। कथानक में देशप्रेम, राष्ट्रीय एकता, भावात्मक समन्वय तथा अन्तर्राष्ट्रीय चेतना जैसे मानवीय मूल्यों का सुन्दर समायोजन केरके नाटककार ने, नाटक के ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित होने के पश्चात् भी इसे प्रत्येक देश-काल के लिए : उपयोगी बना दिया है। कथानक में प्राचीन भारतीय मूल्यों एवं संस्कृति की श्रेष्ठता को भी प्रदर्शित किया गया है; अत: प्रस्तुत नाटक का कथानक विशुद्ध ऐतिहासिक होने पर भी उद्देश्यपरकता और सशक्तता की कसौटी पर खरा उतरता है।

प्रश्न 11:
‘राजमुकुट’ नाटक के मर्मस्पर्शी स्थलों पर प्रकाश डालिए।
या
“मानव-हित से ही देश-हित सम्भव है।” “राजमुकुट’ नाटक के आधार पर इस कथन का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
श्री व्यथित हृदय कृत ‘राजमुकुट’ नाटक यद्यपि वीर रस से परिपूर्ण नाट्यकृति है, तथापि इसमें मर्मस्पर्शी स्थलों का अभाव नहीं है। नाटक का तृतीय अंक इस दृष्टि से बड़ा ही महत्त्वपूर्ण है। कृष्णजी चन्दावत का राणा प्रताप को बचाने के लिए उनका मुकुट धारण करके आत्मबलिदान करना, राणा का पीछा करते मुगल सैनिकों पर भ्रातृ-प्रेम से व्याकुल होकर शक्तिसिंह का टूट पड़ना, राणा और शक्तिसिंह का आपसी वैमनस्य भूलकर एक-दूसरे के गले लगना तथा चेतक की मृत्यु इस नाटक के सर्वाधिक मर्मस्पर्शी स्थल हैं। इनके अतिरिक्त जंगल में भटकते राणा प्रताप का संन्यासी अतिथि को सत्कार न करने पर व्यथित होना, चम्पा का घास की रोटी लिये आना और वन-बिलाव को रोटी छीनकर भाग जाना, तत्पश्चात् पत्थर से टकराकर चम्पा की मृत्यु होना, रोगग्रस्त राणा प्रताप का शक्तिसिंह तथा अपने साथियों से स्वतन्त्रता-प्राप्ति का वचन लेना एवं राणा प्रताप का स्वर्ग सिधार जाना अन्य महत्त्वपूर्ण मर्मस्पर्शी स्थल हैं, जो कि पाठक और दर्शक के मन में करुणा के साथ-साथ वीर रस का संचार करके देशप्रेम की भावना जगाने में सक्षम हैं।

प्रश्न 12:
‘राजमुकुट’ नाटक के माध्यम से नाटककार क्या सन्देश देना चाहता है?
या
”राजमुकुट’ नाटक का उददेश्य स्पष्ट कीजिए।
या
राजमुकुट में निहित राष्ट्रीय भावना पर प्रकाश डालिए।
या
‘राजमुकुट’ में व्यक्त देशप्रेम और स्वाधीनता की भावना पर प्रकाश डालिए।
या
‘राजमुकुट’ नाटक देश-कल्याण की भावना को जगाने वाली रचना है।” स्पष्ट कीजिए।
या
‘राजमुकुट’ नाटक में अन्तर्निहित उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
या
‘राजमुकुट नाटक देश-प्रेम और त्याग की भावना का सन्देश देता है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
‘राजमुकुट’ नाटक में नाटककार श्री व्यथित हृदय का उद्देश्य निम्नलिखित सन्देश देना रहा है

(1) जनता की आवाज सर्वोपरि – इस नाटक के माध्यम से लेखक यह सन्देश देता है कि जनता के दमन और शोषण द्वारा कोई भी राजा अपनी प्रजा का प्रिय नहीं हो सकता। यदि वह ऐसा करता है तो एक समय ऐसा आएगा, जब क्रान्ति का बिगुल बज उठेगा। ‘राजमुकुट’ नाटक में चन्दावत एक ऐसा ही पात्र है, जो स्पष्ट कहता है कि “राजा प्रजा का केवल प्रतिनिधि मात्र होता है।” यही आज के भारत की स्वर है।

(2) साम्प्रदायिक सद्भाव – लेखक ने हिन्दू-मुस्लिम ऐक्य की भावना का आयोजन कर साम्प्रदायिकता पर कुठाराघात किया है। प्रताप और अकबर का मिलन; समन्वय की भावना को प्रदर्शित करता है।

(3) स्वाधीनता, देश-प्रेम और एकता का सन्देश – नाटक ‘राजमुकुट के द्वारा लेखक ने राष्ट्रीय एकता का सन्देश दिया है। प्रताप अन्तिम समय तक अपने राष्ट्र की एकता के लिए संघर्ष करते रहे। वे मरते समय भी अपने वीर साथियों को संघर्ष के लिए प्रोत्साहित करते हैं। नाटक में स्थान-स्थान पर प्रेरणादायक सन्देश हैं; यथा–“मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि ………… जब तक सारे भारत को दासता के बन्धनों से मुक्त न करा लूंगा, सुख की नींद नहीं सोऊँगा।”
लेखक की कामना है कि देश के नवयुवक स्वार्थ की संकुचित भावना से ऊपर उठे, राष्ट्रप्रेम की भावना से ओत-प्रोत हो जाएँ तथा अपनी मातृभूमि के लिए त्याग तथा बलिदान कर सकें। भारतीय संस्कृति की रक्षा, भावात्मक एकता और मानवीय गुणों की स्थापना की ओर भी लेखक ने विशेष ध्यान दिया है। प्रस्तुत नाटक के माध्यम से अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में नाटककार पूर्ण रूप से सफल रहा है।

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