UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 6 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi काव्यांजलि Chapter 6 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
कवि का साहित्यिक परिचय और कृतियाँ
प्रश्न 1.
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर प्रकाश डालिए।
या
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के जीवन-परिचय और साहित्यिक प्रदेय पर प्रकाश डालिए।
या
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का साहित्यिक परिचय लिखते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
जीवन-परिचय-भारतेन्दु हरिश्चन्द्र खड़ी बोली हिन्दी गद्य के जनक माने जाते हैं। इन्होंने हिन्दी गद्य साहित्य को नवचेतना और नयी दिशा प्रदान की। भारतेन्दु का जन्म काशी के एक सम्पन्न और प्रसिद्ध वैश्य परिवार में सन् 1850 ई० में हुआ था। इनके पिता गोपालचन्द्र, काशी के सुप्रसिद्ध सेठ थे जो ‘गिरिधरदास’ उपनाम से ब्रज भाषा में कविता किया करते थे। भारतेन्दु जी में काव्य-प्रतिभा बचपन से ही विद्यमान थी। इन्होंने पाँच वर्ष की आयु में निम्नलिखित दोहा रचकर अपने पिता को सुनाया और उनसे सुकवि होने का आशीर्वाद प्राप्त किया-
लै ब्योढ़ी ठाढ़े भये, श्री अनिरुद्ध सुजान।
बाणासुर की सैन को, हनन लगे भगवान् ॥
पाँच वर्ष की आयु में माता के वात्सल्य से तथा दस वर्ष की आयु में पिता के प्यार से वंचित होने टोले भारतेन्दु की आरम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। इन्होंने घर पर ही हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी तथा बँगला आदि भाषाओं का अध्ययन किया। 13 वर्ष की अल्पायु में मन्नो देवी नामक युवती के साथ इनका विवाह हो गया। भारतेन्दु जी यात्रा के बड़े शौकीन थे। इन्हें जब भी समय मिलता, ये यात्रा के लिए निकल जाते थे। ये बड़े उदार और दानी पुरुष थे। अपनी उदारता और दानशीलता के कारण इनकी आर्थिक दशा शोचनीय हो गयी और ये ऋणग्रस्त हो गये। परिणामस्वरूप श्रेष्ठि-परिवार में उत्पन्न हुआ यह महान् साहित्यकार ऋणग्रस्त होने के कारण, क्षयरोग से पीड़ित हो 35 वर्ष की अल्पायु में ही सन् 1885 ई० में दिवंगत हो गया।
साहित्यिक सेवाएँ-हिन्दी-साहित्य में भारतेन्दु का आविर्भाव एक ऐतिहासिक घटना है। उन्नीसवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध राजनीतिक और सामाजिक चेतनाओं के रूप में जागरण की अँगड़ाई लेने लगा था, यद्यपि मध्ययुगीन, नीति-मूल्यों और जीवन-मर्यादाओं के मोह से उसे अभी छुटकारा नहीं मिल पाया था। साहित्य के क्षेत्र में रीतिकाल की परम्परा का अनुकरण हो रहा था, किन्तु नवोत्थान की प्रेरणा से उसकी धमनियों में भी नवीन रक्त का संचार होने लगा था। इस संक्रान्ति-काल में भारतेन्दु का उदय हुआ। इनके साहित्य में जहाँ एक ओर हिन्दी के विगत युगों की अभिव्यक्ति संचित है, वहीं दूसरी ओर युग की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रबल स्पन्दन भी मिलता है। युग के नवोन्मेष में इन्होंने भारत की वीणा में नये स्वरों की प्रतिष्ठा की।
रचनाएँ-भारतेन्दु जी द्वारा रचित प्रमुख काव्य-कृतियों के नाम निम्नलिखित हैं-
‘प्रेम माधुरी’, ‘प्रेम तरंग”प्रेमाश्रु वर्णन’, ‘प्रेम सरोवर’, ‘प्रेम मालिका’, ‘प्रेम फुलवारी’, ‘प्रेम प्रलाप’ आदि भक्ति तथा दिव्य प्रेम पर आधारित रचनाएँ हैं। केवल प्रेम को ही लेकर इनकी रचनाओं के उपर्युक्त सात संग्रह प्रकाशित हुए, जिसमें विशुद्ध श्रृंगार-भावना की अभिव्यक्ति हुई है। अपने आराध्यदेव श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाओं को चिंत्रण इन्होंने प्रेमपूर्वक–‘देवी छद्मलीला’, ‘तन्मय लीला’, ‘कृष्ण-चरित’, ‘दान-लीला’ आदि रचनाओं में किया है। इनकी ‘भारत वीरत्व’, ‘विजय वल्लरी’, ‘विजयिनी’ एवं ‘विजय पताका’ नामक रचनाओं में देश-प्रेम की प्रवृत्तियाँ परिलक्षित होती हैं। ‘उर्दू का स्यापा’, ‘बन्दर सभा’, ‘नये जमाने की मुकरी’ आदि रचनाओं में इनकी हास्य-व्यंग्य प्रकृति के दर्शन होते हैं।
साहित्य में स्थान निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि भारतेन्दु सच्चे अर्थों में स्रष्टा थे। एक असाधारण प्रतिभासम्पन्न कलाकार की उनके पास सृजन-शक्ति थी। उनमें प्राचीन और नवीन का सामंजस्य मिलता है। वे हिन्दी के युगद्रष्टा और युगस्रष्टा तो थे ही, हिन्दी साहित्य संसार के युगपुरुष भी थे।
पद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न-दिए गए पद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए
प्रेम माधुरी
प्रश्न 1.
ब्यापक ब्रह्म सबै थल पूरन है हमहूँ पहिचानती हैं।
पै बिना नंदलाल बिहाल सदा ‘हरिचंद’ न ज्ञानहिं ठानती हैं ।।
तुम ऊधौ यहै कहियो उनसों हम और कछु नहिं जानती हैं।
पिय प्यारे तिहारे निहारे बिना अँखियाँ दुखियाँ नहिं मानती हैं ।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) गोपियाँ ब्रह्म के बारे में उद्धव से क्या कहती हैं?
(iv) ‘प्यारे तिहारे निहारे’ इन शब्दों में कौन-सा अलंकार है?
(v) गोपियाँ उद्धव से श्रीकृष्ण को क्या सन्देश देने को कहती हैं?
उत्तर
(i) यह पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित एवं भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित ‘प्रेम-माधुरी’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
पाठ का नाम- प्रेम-माधुरी।
लेखक का नाम-भारतेन्दु हरिश्चन्द्र।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-ब्रज-गोकुल की गोपियाँ श्रीकृष्ण के अलावा किसी अन्य की उपासना करना ही नहीं चाहतीं। उन्हें ज्ञान-मार्ग नहीं, अपितु प्रेम-मार्ग भाता है। इसलिए वे ज्ञानी उद्धव से स्पष्ट कह देती हैं कि तुम श्रीकृष्ण को हमारा यह सन्देश दे देना कि तुम्हारे दर्शन किये बिना हमारी आँखों को
सन्तोष होता ही नहीं है; अत: शीघ्र ही हमें दर्शन दो।।
(iii) गोपियाँ ब्रह्म के बारे में उद्धव से कहती हैं कि हे उद्धव’ हमें भी पता है कि ब्रह्म कण-कण में व्याप्त है।
(iv) “प्यारे तिहारे निहारे’ इन शब्दों में २’ अक्षर की पुनरावृत्ति होने के कारण अनुप्रास अलंकार है।
(v) गोपियाँ उद्धव से श्रीकृष्ण को यह सन्देश देना चाहती हैं कि तुम्हारे दर्शन किए बिना हमारी आँखों को सन्तोष होने वाला नहीं है, इसलिए अतिशीघ्र हमें दर्शन दो।
यमुना-छवि
प्रश्न-दिए गए पद्यशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
प्रश्न 1.
तरनि-तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये ।
झुके कुल सों जल परसन हित मनहुँ सुहाये ।।
किधौं मुकुर मैं लखत उझकि सब निज-निज सोभा ।
कै प्रनवत जल जानि परम पावन फल लोभा ।।
मनु आप वारन तीर कौ सिमिटि सबै छाये रहत ।।
कै हरि सेवा हित नै रहे निरखि नैन मन सुख लहत ।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) जलरूपी दर्पण में अपनी शोभा देखने के लिए उचक-उचककर कौन आगे झुक गए हैं?
(iv) कवि के अनुसार किन्हें देखकर नेत्रों को और मन को सुख प्राप्त होता है?
(v) उपर्युक्त पंक्तियाँ किन अलंकारों से सुशोभित हैं?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद भारतेन्दु जी द्वारा रचित और हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘यमुना-छवि’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
पाठ का नाम– यमुना-छवि।
लेखक का नाम--भारतेन्दु हरिश्चन्द्र।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-यमुना के किनारे तमाल के अनेक सुन्दर वृक्ष सुशोभित हैं। वे तट पर आगे को झुके हुए ऐसे लगते हैं, मानो यमुना के पवित्र जल का स्पर्श करना चाहते हों।
(iii) जलरूपी दर्पण में अपनी शोभा देखने के लिए तमाल के वृक्ष उचक-उचककर आगे झुक गए हैं।
(iv) तमाल के सुन्दर वृक्षों को यमुना-तट पर जले की ओर झुके देखकर नेत्रों और मन को सुख प्राप्त होता है।
(v) उपर्युक्त पंक्तियाँ अनुप्रास, सन्देह और उत्प्रेक्षा अलंकारों से सुशोभित हैं।
प्रश्न 2.
मनु जुग पच्छ प्रतच्छ होत मिटि जात जमुन जल ।
कै तारागने ठगन लुकत प्रगटत ससि अबिकल ॥
कै कालिन्दी नीर तरंग जितो उपजावत ।
तितनो ही धरि रूप मिलन हित तासों धावत ॥
कै बहुत रजत चकई चलत कै फुहार जल उच्छरत ।
कै निसिपति मल्ल अनेक बिधि उठि बैठत कसरत करत ।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) क्या देखकर प्रतीत होता है, मानों यमुना के जल में दोनों पक्ष (कृष्ण और शुक्ल) मिल गए हों? ।
(iv) कौन तरंगे उत्पन्न करता है?
(v) कौन उठ-बैठकर अनेक प्रकार की कसरतें करता हुआ दिखाई पइता है? ”
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद भारतेन्दु जी द्वारा रचित और हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘यमुना-छवि’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
पाठ का नाम– यमुना-छवि।
लेखक का नाम–भारतेन्दु हरिश्चन्द्र।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-यमुना के चंचल जल में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब कभी तो दिखाई देता है। और कभी नहीं। इससे ऐसा प्रतीत होता है, मानो यमुना के जल में दोनों पक्ष (कृष्ण और शुक्ल) मिल गये हैं; अर्थात् चन्द्रमा के छिप जाने पर लगता है कि कृष्ण पक्ष आ गया है और तुरन्त निकल आने पर लगता है कि कृष्ण पक्ष समाप्त हो गया और शुक्ल पक्ष आ गया है। फिर थोड़ी ही देर में वह भी समाप्त हो जाता है। जल के अन्दर चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब अनेक प्रकार से शोभित हो रहा है अथवा इस चन्द्रमा को देखकर ऐसा लगता है कि वह तारा-समूह को ठगने के लिए कभी छिप जाता है तो कभी प्रकट हो
जाता है।
(iii) चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब देखकर लगता है, मानो यमुना के जल में दोनों पक्ष (कृष्ण और शुक्ल) मिल गए हों।
(iv) यमुना का जल तैरंगे उत्पन्न करता है।
(v) चन्द्रमारूपी पहलवान उठ-बैठकरे अनेक प्रकार की कसरतें करता हुआ दिखाई पड़ता है।
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