UP Board Solutions for Class 11 Samanya Hindi अलंकार

By | June 5, 2022

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काव्य में स्थान—मनुष्य स्वभाव से ही सौन्दर्य-प्रेमी है। वह अपनी प्रत्येक वस्तु को सुन्दर और सुसज्जित देखना चाहता है। अपनी बात को भी वह इस प्रकार कहना चाहता है कि जिससे सुनने वाले पर स्थायी प्रभाव पड़े। वह अपने विचारों को इस रीति से व्यक्त करना चाहता है कि श्रोता चमत्कृत हो जाए। इसके साधन हैं उपर्युक्त दोनों अलंकार। शब्द और अर्थ द्वारा काव्य की शोभा-वृद्धि करने वाले इन अलंकारों का काव्य में वही स्थान है, जो मनुष्य (विशेष रूप से नारी) शरीर में आभूषणों का।

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( काव्यांजलि: आँसू)

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(iii) श्रुत्यनुप्रास–जहाँ कण्ठ, तालु आदि एक ही स्थान से उच्चरित वर्गों की आवृत्ति हो, वहाँ श्रुत्यनुप्रास होता है; जैसे—रामकृपा भव-निसा सिरानी जागे फिर न डसैहौं ।

( काव्यांजलि:विनयपत्रिका)

स्पष्टीकरण-इस पंक्ति में ‘स्’ और ‘न्’ जैसे दन्त्य वर्गों (अर्थात् जिह्वा द्वारा दन्तपंक्ति के स्पर्श से उच्चरित वर्गों) की आवृत्ति के कारण श्रुत्यनुप्रास है।

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(काव्यांजलिः छत्रसाल प्रशस्ति)

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उत्प्रेक्षा और रूपकं अलंकारं में अन्तर–जहाँ पर उपमेय (जिसके लिए उपमा दी जाती है) में उपमान (उपमेय की जिसके साथ तुलना की जाती है) की सम्भावना प्रकट की जाती है, वहाँ अप्रेक्षा अलंकार होता है; जैसे-‘मुख मानो चन्द्रमा है। जहाँ उपमेय और उपमान में ऐसा आरोप हो कि दोनों में किसी प्रकार का भेद ही न रह जाए, वहाँ रूपक अलंक्रार होता है; जैसे-‘मुख चन्द्रमा है।

4. भ्रान्तिमान

लक्षण (परिभाषा)-जहाँ समानता के कारण भ्रमवश उपमेय में उपमान का निश्चयात्मक ज्ञान हो, वहाँ भ्रान्तिमान अलंकार होता है; जैसे-रस्सी (उपमेय) को साँप (उपमान) समझ लेना।

कपि करि हृदय बिचार, दीन्हें मुद्रिका डारि तब।
जानि अशोक अँगार, सीय हरषि उठि कर गहेउ ॥

स्पष्टीकरण-यहाँ सीताजी श्रीराम की हीरकजटित अँगूठी को अशोक वृक्ष द्वारा प्रदत्त अंगारा समझकर उठा लेती हैं। अँगूठी (उपमेयं) में उन्हें अंगारे (उपमान) का निश्चयात्मक ज्ञान होने से यहाँ भ्रान्तिमान अलंकार है।

5. सन्देह

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार का नाम लिखिए
(क) मनो चली आँगन कठिन तातें राते पाय ।।
(ख) मकराकृति गोपाल के, सोहत कुंडल कान ।।
धरयो मनौ हिय धर समरु, इयौढ़ी लसत निसान ।।
(ग) तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये ।।
(घ) उदित उदयगिरि मंच पर, रघुवर बाल पतंग ।
(ङ) घनानंद प्यारे सुजान सुनौ, यहाँ एक से दूसरो आँक नहीं ।
तुम कौन र्धी पाटी पढ़े हौ कहौ, मन लेह पै देहु छटाँक नहीं ।।
(च) का पूँघट मुख मूंदहु अबला नारि ।।
चंद सरग पर सोहत यहि अनुहारि ||
(छ) पच्छी पर छीने ऐसे परे पर छीने वीर,
तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के ।।
(ज) अनियारे दीरघ दृगनि, किती न तरुनि समान ।
वह चितवनि औरै कछू, जिहिं बस होत सुजान ।।
(झ) चरण कमल बंद हरिराई ।
उत्तर
(क) उत्प्रेक्षा।
(ख) उत्प्रेक्षा।
(ग) अनुप्रास।
(घ) रूपक।
(ङ) श्लेष।
(च) रूपक।
(छ) यमक।
(ज) अनुप्रास।
(झ) रूपक।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
(क) उत्प्रेक्षा और उपमा अलंकार में मूलभूत अन्तर बताइए और उत्प्रेक्षा अलंकार का एक उदाहरण अपनी पाठ्य-पुस्तक से लिखिए।
(ख) श्लेष अलंकार का लक्षण लिखकर उदाहरण दीजिए।
(ग) सन्देह और भ्रान्तिमान अलंकारों में अन्तर स्पष्ट करते हुए उदाहरण दीजिए।
(घ) सन्देह और भ्रान्तिमान अलंकारों का अन्तर स्पष्ट कीजिए और दोनों में से किसी एक का उदाहरण लिखिए।
(ङ) उत्प्रेक्षा और रूपक अलंकार में मूलभूत अन्तर स्पष्ट कीजिए और अपनी पाठ्य-पुस्तक से उत्प्रेक्षा अलंकार का एक उदाहरण लिखिए।
(च) रूपक अलंकार के भेद लिखिए और किसी एक भेद का लक्षण और उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
(छ) सन्देह और भ्रान्तिमान में अन्तर बताइए। अपनी पाठ्य-पुस्तक से भ्रान्तिमान अलंकार का एक उदाहरण लिखिए।
(ज) ‘यमक’ अथवा ‘श्लेष अलंकार का लक्षण लिखिए और एक उदाहरण दीजिए।
(झ) “रूपक’ तथा ‘उपमा’ अलंकारों में मूलभूत अन्तर बताइए और दोनों में से किसी एक अलंकार का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
(ञ), ‘उपमा’ अथवा ‘उत्प्रेक्षा’ अलंकार का लक्षण लिखकर एक उदाहरण दीजिए।
(ट) अनुप्रास’ अथवा ‘उत्प्रेक्षा अलंकार का लक्षण लिखिए तथा उस अलंकार का एक उदाहरण दीजिए।
(ठ) ‘लेष’, ‘उपमा’ तथा ‘सन्देह अलंकारों में से किसी एक अलंकार की परिभाषा देते हुए उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
[संकेत इन सभी प्रश्नों के उत्तर के लिए इन अलंकारों से सम्बन्धित सामग्री का अध्ययन ‘अलंकार’ प्रकरण के अन्तर्गत प्रश्न 1 व 2 से करें। “पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ से उदाहरण’ शीर्षक के अन्तर्गत सभी अलंकारों (पाठ्यक्रम में निर्धारित) के उदाहरण दिये गये हैं।]

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