UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 5 Principles of Inheritance and Variation (वंशागति और विविधता के सिद्धान्त)
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 5 Principles of Inheritance and Variation (वंशागति और विविधता के सिद्धान्त)
अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
मेंडल द्वारा प्रयोगों के लिए मटर के पौधे को चुनने से क्या लाभ हुए?
उत्तर
मंडल द्वारा प्रयोगों के लिए मटर के पौधे को चुनने से निम्नलिखित लाभ हुए –
- यह एकवर्षीय पौधा है वे इसे आसानी से बगीचे में उगाया जा सकता था
- इसमें विभिन्न लक्षणों के वैकल्पिक रूप (alternate forms)देखने को मिले
- इसके स्व-परागित (self pollinated) होने के कारण कोई भी अवांछित जटिलता नहीं आ पायी
- नर व मादा एक ही पौधे में मिल गए
- यह पौधा आनुवंशिक रूप से शुद्ध था व पीढ़ी-दर-पीढ़ी इसके पौधे शुद्ध बने रहे
- इस पौधे की एक ही पीढ़ी में अनेक बीज उत्पन्न होते हैं अतः निष्कर्ष निकालने में आसानी रही।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित में विभेद कीजिए
(क) प्रभाविता और अप्रभाविता
(ख) समयुग्मजी और विषमयुग्मजी (2015)
(ग) एक संकर और द्विसंकर
उत्तर
(क) प्रभाविता और अप्रभाविता में अन्तर
(ख) समयुग्मजी और विषमयुग्मजी में अन्तर
(ग) एक संकर और द्विसंकर में अन्तर
प्रश्न 3.
कोई द्विगुणित जीन 6 स्थलों के लिए विषमयुग्मजी (heterozygous) है, कितने प्रकार के युग्मकों का उत्पादन सम्भव है?
उत्तर
जब कोई द्विगुणित जीन 6 स्थलों के लिए विषमयुग्मजी है अर्थात् किसी त्रिसंकर (tri-hybrid) में तुलनात्मक लक्षणों के तीन जोड़े जीन (कारक) होते हैं। प्रत्येक जोड़े लक्षण का विसंयोजन दूसरे जोड़े से स्वतन्त्र होता है तो द्विगुणित जीन 6 स्थलों के लिए विषमयुग्मजी होगा। जैसे लम्बे, पीले तथा गोल बीज वाले शुद्ध जनकों का संकरण, नाटे, हरे और झुरींदार बीज वाले पौधों से कराने पर F1 पीढ़ी में प्राप्त संकर लम्बे, गोल और पीले बीज वाले पौधों की विषमयुग्मजी जीन संरचना Tt Rr Yy होती है। इससे आठ प्रकार के युग्मक TRY, TRy, TrY, Try, tRY, tRy, trY, try बनते हैं। अर्थात् F1 पीढ़ी के सदस्यों के जीन युग्मक निर्माण के समय स्वतन्त्र होकर नए-नए संयोग बनाते हैं।
प्रश्न 4.
एक संकर क्रॉस का प्रयोग करते हुए, प्रभाविता नियम की व्याख्या कीजिए। (2017)
उत्तर
एक ही लक्षण के लिए विपर्यासी पौधे के मध्य संकरण एक संकर क्रॉस कहलाता है, जैसे मटर के लम्बे (T) व बौने (t) पौधे के मध्य कराया गया संकरण। F1 पीढ़ी में सभी पौधे लम्बे किन्तु विषमयुग्मजी (Tt) होते हैं। F1 पीढ़ी में लम्बेपन के लिए उत्तरदायी कारक T, बौनेपन के कारक है पर प्रभावी होता है। कारक अप्रभावी होता है अत: F1 पीढ़ी में उपस्थित होते हुए भी स्वयं को प्रकट नहीं कर पाता है। सभी F1 पौधे लम्बे होते हैं। अत: एक लक्षण को नियन्त्रित करने वाले कारक युग्म में जब एक कारक दूसरे कारक पर प्रभावी होता है, तो इसे प्रभाविता का नियम कहते हैं।
प्रश्न 5.
परीक्षार्थ संकरण की परिभाषा लिखिए व चित्र बनाइए।
उत्तर
F1 जीव तथा समयुग्मजी अप्रभावी (homozygous recessive) लक्षण वाले जीव के मध्य कराया गया संकरण, परीक्षार्थ संकरण (test cross) कहलाता है। इसे निम्नानुसार दर्शाया जा सकता है –
प्रश्न 6.
एक ही जीन स्थल वाले समयुग्मजी मादा और विषमयुग्मजी नर के संकरण से प्राप्त प्रथम संतति पीढ़ी के फीनोटाइप वितरण का पुनेट वर्ग बनाकर प्रदर्शन कीजिए।
उत्तर
गुणसूत्रों पर विभिन्न लक्षणों वाले जीन एक निश्चित स्थल (locus) पर स्थित होते हैं। एक ही जीन स्थल वाले समयुग्मजी मादा जैसे- शुद्ध नाटे पौधे और विषमयुग्मजी नर जैसे- संकर लम्बे पौधों के मध्य संकरण कराने पर प्राप्त प्रथम पुत्रीय संतति सदस्यों में 50% प्रभावी लक्षण वाले विषमयुग्मजी और 50% समयुग्मजी प्रभावी लक्षण वाले होते हैं; जैसे –
प्रश्न 7.
पीले बीज वाले लम्बे पौधे (YyTt) का संकरण हरे बीज वाले लम्बे (yyTt) पौधे से कराने पर निम्न में से किस प्रकार के फीनोटाइप संतति की आशा की जा सकती है?
- लम्बे हरे
- बौने हरे
उत्तर
- लम्बे हरे के फीनोटाइप संतति 6 हैं।
- बौने हरे के फीनोटाइप संतति 2 हैं।
प्रश्न 8.
दो विषमयुग्मजी जनकों का क्रॉस है और १ किया गया। मान लीजिए दो स्थल (loci) सहलग्न हैं तो द्विसंकर क्रॉस में F1 पीढ़ी के फीनोटाइप के लक्षणों का वितरण क्या होगा?
उत्तर
एक ही गुणसूत्र पर उपस्थित जीन्स के एकसाथ वंशागत होने को जीन सहलग्नता (gene linkage) या सहलग्न जीन (linked genes) कहते हैं। सहलग्न जीन्स द्वारा नियन्त्रित होने वाले लक्षणों को सहलग्न लक्षण (linked characters) कहते हैं। जीन सहलग्नता (gene linkage) के अध्ययन के लिए मॉर्गन ने ड्रोसोफिला (Drosophila) पर अनेक प्रयोग किए। ये मेण्डेल द्वारा किए गए द्विसंकर संकरण के समान थे। मॉर्गन ने पीले शरीर और श्वेत नेत्रों वाली मादा मक्खियों का संकरण भूरे शरीर और लाल नेत्रों वाली मक्खियों के साथ किया। इनसे प्राप्त प्रथम पुत्रीय संतति (F1 पीढ़ी) के सदस्यों में परस्पर क्रॉस कराने पर उन्होंने पाया कि ये दो जोड़ी जीन एक-दूसरे से स्वतन्त्र रूप से पृथक् नहीं हुए और F2पीढ़ी का अनुपात मेण्डेल के नियमानुसार प्राप्त अनुपात 9:3:3:1 से काफी भिन्न प्राप्त होता है (यह अनुपात दो जीन्स के स्वतन्त्र कार्य करने पर अपेक्षित था)। यह सहलग्नता के कारण होता है।
प्रश्न 9.
आनुवंशिकी में टी०एच० मॉर्गन के योगदान का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर
आनुवंशिकी में टी०एच० मॉर्गन के योगदान निम्नवत् हैं –
- मॉर्गन ने ड्रोसोफिला पर अपने प्रयोग द्वारा सिद्ध किया कि जीन, गुणसूत्र पर स्थित होते हैं।
- मॉर्गन ने क्रिस-क्रॉस वंशागति की खोज की।
- मॉर्गन व उनके साथियों ने गुणसूत्र पर स्थित जीन्स युग्मों के बीच पुनर्योजन की आवृत्ति को जीन्स के बीच की दूरी मानकर, आनुवंशिक मानचित्र की रचना की जो गुणसूत्रों पर जीन्स की स्थिति को दर्शाता है।
- मॉर्गन ने जीन्स के उत्परिवर्तन की खोज की।
- मॉर्गन ने विनिमय, सहलग्नता की खोज की।
- उन्होंने सहलग्नता के गुणसूत्रीय सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।
- मॉर्गन ने अजनकीय जीन संयोजनों को पुनर्योजन (recombination) का नाम दिया था।
प्रश्न 10.
वंशावली विश्लेषण क्या है? यह विश्लेषण किस प्रकार उपयोगी है?
उत्तर
वंशावली विश्लेषण
मानव एक सामाजिक प्राणी है। मानव पर भी आनुवंशिकी के नियम अन्य प्राणियों की भाँति लागू होते। हैं और इन्हीं के अनुसार आनुवंशिक लक्षण पीढ़ी-दर-पीढ़ी वंशागत होते हैं। प्राकृतिक तथ्यों को जानने के लिए वैज्ञानिकों को जीव-जन्तुओं पर अनेक प्रायोगिक परीक्षण करने पड़ते हैं। मानव पर प्रयोगशाला में ऐसे परीक्षण नहीं किए जा सकते। अतः मानव आनुवंशिकी के अधिकांश तथ्य जन समुदायों के अध्ययन एवं अन्य जीवों की आनुवंशिकी पर आधारित हैं। मानव के आनुवंशिक लक्षणों या विशेषकों का पता लगाने के लिए सर फ्रांसिस गैल्टन (Sir Francis Galton) ने दो विधियाँ बताईं –
- कुछ विशेष आनुवंशिक लक्षणों को प्रदर्शित करने वाले मानव कुटुम्बों की वंशावलियों (Pedigrees or Genealogies) का अध्ययन।
- यमजों (twins) के अध्ययन से आनुवंशिक एवं उपार्जित लक्षणों में भेद स्थापित करना।
हार्डी एवं वीनबर्ग (Hardy and Weinberg) ने पूरे-पूरे जन समुदायों में आनुवंशिक लक्षणों का निर्धारण करने की विधि का अध्ययन किया।
मानव आनुवंशिकी में वंशावली अध्ययन एक महत्त्वपूर्ण उपकरण होता है जिसका उपयोग विशेष लक्षण, असामान्यता (abnormality) या रोग का पता लगाने में किया जाता है। वंशावली विश्लेषण में प्रयुक्त कुछ महत्त्वपूर्ण मानक प्रतीकों (symbols) को अग्रांकित चित्र में दिखाया गया है –
प्रश्न 11.
मानव में लिंग निर्धारण कैसे होता है? (2010, 12, 13, 14, 15, 16, 17)
उत्तर
लैंगिक जनन करने वाले जीव दो प्रकार के होते हैं- द्विलिंगी या उभयलिंगी (bisexual or hermaphrodite) तथा एकलिंगी (unisexual)। एकलिंगी जीवों में नर तथा मादा जनन अंग (reproductive organs) अलग-अलग जन्तुओं में होते हैं। नर तथा मादा की शारीरिक संरचना में अन्तर भी होता है। इसे लिंग भेद (sexual dimorphism) कहते हैं।
एकलिंगी जीवों की लिंग भेद प्रक्रिया के सम्बन्ध में मैकक्लंग (Mc Clung, 1902) ने लिंग निर्धारण का गुणसूत्रवाद (chromosomal theory of sex determination) प्रतिपादित किया था। इसके अनुसार लिंग का निर्धारण गुणसूत्रों पर निर्भर करता है तथा इनकी वंशागति मेण्डेल के नियमों के अनुसार होती है।
लिंग निर्धारण का गुणसूत्र सिद्धान्त
इस सिद्धान्त के अनुसार, प्राणियों (मानव) में दो प्रकार के गुणसूत्र पाए जाते हैं –
(i) समजात गुणसूत्र (autosomes) तथा
(ii) लैंगिक गुणसूत्र या एलोसोम (sex chromosomes or allosomes)।
सभी जीवों में गुणसूत्रों की संख्या निश्चित होती है जिसे 2 x (द्विगुणित) से प्रदर्शित करते हैं। इनमें से दो गुणसूत्र लैंगिक गुणसूत्र (sex chromosome) होते हैं।
लैंगिक गुणसूत्र दो प्रकार के होते हैं- X तथा Y। स्त्रियों में दोनों लैंगिक गुणसूत्र (XX) समान होते हैं। तथा पुरुष में लिंग गुणसूत्र असमान (XY) होते हैं। युग्मक में केवल एक ही लैंगिक गुणसूत्र होता है। लैंगिक गुणसूत्रों की भिन्नता ही लिंग निर्धारित करती है। लैंगिक गुणसूत्रों के अनुसार लिंग निर्धारण निम्नलिखित प्रकार से होता है –
लिंग निर्धारण की XY विधि (The XY-method of sex determination) – इस विधि में स्त्री के दोनों लैंगिक गुणसूत्र XX होते हैं तथा पुरुष में एक लैंगिक गुणसूत्र X एवं दूसरा Y होता है। स्त्री में अण्डजनन द्वारा बने सभी अण्डाणुओं में दैहिक गुणसूत्रों का एक अगुणित सैट तथा एक x लैंगिक गुणसूत्र होता है (A + x)। इस प्रकार सभी अण्डाणु जीन संरचना (A + x) में समान होते हैं। अत: स्त्री को समयुग्मकी लिंग (homogametic sex) कहते हैं। इसके विपरीत पुरुष में शुक्राणुजनन से बने 50% शुक्राणुओं में दैहिक गुणसूत्रों का एक अगुणित सैट तथा X गुणसूत्र व कुछ शुक्राणुओं में दैहिक गुणसूत्रों का एक अगुणित सैट तथा Y गुणसूत्र (A + X or A+Y) होता है।
इस प्रकार दो प्रकार के शुक्राणुओं का निर्माण होता है। 50% शुक्राणु A + X तथा 50% शुक्राणु A +Y गुणसूत्रों वाले होते हैं। अतः पुरुष को विषमयुग्मकी लिंग (heterogametic sex) कहते हैं। निषेचन के समय यदि A + Y शुक्राणु का समेकन अण्डाणु के साथ होता है, तब नर सन्तान (पुत्र) उत्पन्न होती है। यदि अण्डाणु का समेकन A+ X शुक्राणु के साथ होता है, तब मादा सन्तान (पुत्री) उत्पन्न होती है। यह केवल संयोग है कि कौन-से शुक्राणु का समेकन अण्डाणु के साथ होता है। इसी के आधार पर सन्तान का लिंग निर्धारण होता है।
प्रश्न 12.
शिशु का रुधिर वर्ग O है। पिता का रुधिर वर्ग A और माता का B है। जनकों के जीनोटाइप मालूम कीजिए और अन्य संतति में प्रत्याशित जीनोटाइप की जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर
रुधिर वर्गों की वंशागति (Inheritance of Blood Groups) मेण्डेल के नियमों के अनुसार होती है। इसकी वंशागति दो या अधिक तुलनात्मक लक्षणों वाले जीन्स (genes) अर्थात् ऐलील्स (alleles) पर निर्भर करती है।
रुधिर वर्गों को स्थापित करने वाले प्रतिजन (antigens) की उपस्थिति या अनुपस्थिति तीन जीन्स के कारण होती है। प्रतिजन A के लिए जीन Ia, प्रतिजन ‘B’ के लिए जीन ।b तथा दोनों प्रतिजन के अभाव के लिए जीन I° उत्तरदायी होते हैं। एक मनुष्य में इनमें से कोई एक या दो प्रकार के जीन्स गुणसूत्र जोड़े पर एक निश्चित स्थल (loci) पर स्थित होते हैं। जीन Ia तथा Ib क्रमशः I° पर प्रभावी होते हैं, जबकि जीना Ia तथा Ib में प्रभाविता का अभाव होता है अर्थात् ये सहप्रभावी (codominant) होते हैं। विभिन्न रुधिर वर्ग के व्यक्तियों के रुधिर वर्ग की जीनी संरचना निम्नांकित तालिका के अनुसार हो। सकती है –
उदाहरण – A तथा B रुधिर वर्ग वाले माता-पिता की सम्भावित सन्तानों के रुधिर वर्गों का जीनोटाइप (genotype) निम्नानुसार होगा –
‘O’ रुधिर वर्ग वाले शिशु के माता-पिता का जीनोटाइप Ia Io तथा Ib Io है। ‘AB’ रुधिर वर्ग वाले का जीनोटाइप Ia Ib, A रुधिर वर्ग वाले का Ia Io ‘B’ रुधिर वर्ग वाले का Ib Io और ‘O’ रुधिर वर्ग वाले का जीनोटाइप I° I° होगा।
प्रश्न 13.
निम्नलिखित को उदाहरण सहित समझाइए
(अ) सह-प्रभाविता
(ब) अपूर्ण प्रभाविता। (2012, 16, 17)
उत्तर
(अ) सह-प्रभाविता – जब किसी कारक या जीन के युग्मविकल्पी में कोई भी कारक प्रभावी या अप्रभावी न होकर, मिश्रित रूप से प्रभाव डालते हैं, तो इसे सहप्रभाविता (co-dominance) कहते हैं। इसके फलस्वरूप F1 पीढ़ी दोनों जनकों की मध्यवर्ती होती है।
उदाहरण – मनुष्य में तीन प्रकार के रुधिर वर्ग होते हैं-A, B, 0, जिनका निर्धारण विभिन्न प्रकार की लाल रुधिराणु कोशिकाएँ करती हैं। इन रुधिर वर्गों का नियन्त्रण ‘I’ जीन करता है जिसके तीन युग्मविकल्पी होते हैं- IA व Ib साथ-साथ उपस्थित होने पर सहप्रभावी होते हैं व AB रुधिर वर्ग बनाते हैं।
(ब) अपूर्ण प्रभाविता – विपर्यासी लक्षणों के युग्म में, एक लक्षण दूसरे पर अपूर्ण रूप से प्रभावी होता है। यह घटना अपूर्ण प्रभाविता कहलाती है।
उदाहरण – मिराबिलिस जलापा या गुल गुलाबाँस के पौधे में लाल पुष्प व सफेद पुष्प युक्त पौधों के मध्य संकरण कराने पर, F1 पीढ़ी में सभी फूल लाल मा सफेद न होकर, गुलाबी रंग के होते हैं। F2 पीढ़ी में 1 लाल, 2 गुलाबी व 1 सफेद पुष्प (1 : 2 : 1) युक्त पौधे प्राप्त होते हैं।
प्रश्न 14.
बिन्दु उत्परिवर्तन क्या है? एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर
DNA के किसी एक क्षार युग्म (base pair) या न्यूक्लिओटाइड क्रम में होने वाला परिवर्तन, बिन्दु उत्परिवर्तन कहलाता है। उदाहरण – हँसियाकार कोशिका अरक्तता (sickle cell anaemia)।
प्रश्न 15.
वंशागति के क्रोमोसोमवाद को किसने प्रस्तावित किया?
उत्तर
सटन व बोवेरी (Sutton and Boveri) ने।
प्रश्न 16.
किन्हीं दो अलिंगसूत्री आनुवंशिक विकारों का उनके लक्षणों सहित उल्लेख कीजिए।
उत्तर
शरीर में होने वाली उपापचय क्रियाओं के प्रत्येक चरण पर एन्जाइम नियन्त्रण रखते हैं। पूर्ण प्रक्रिया में कहीं भी एक एन्जाइम के बदल जाने या एन्जाइम का निर्माण न होने की दशा में कोई-न-कोई व्यतिक्रम (disorder) उत्पन्न हो जाता है। बीडल तथा टॉटम (George Beadle and E. L. Tatum, 1941) के एक जीन एक एन्जाइम परिकल्पना’ (one gene one enzyme concept) के पश्चात् यह निश्चित हो गया कि अनेक रोग जीनी व्यतिक्रम (genetic disorder) के कारण होते हैं। मानव में होने वाले ऐसे कुछ रोग निम्नलिखित हैं –
1. दात्र कोशिका अरक्तता (Sickle cell anaemia) – यह मनुष्य में एक अप्रभावी जीन से होने वाला रोग है। जब अप्रभावी जीन समयुग्मकी (Hb Hb) अवस्था में होती है, तब सामान्य हीमोग्लोबिन के स्थान पर असामान्य हीमोग्लोबिन का निर्माण होने लगता है। अप्रभावी जीन के कारण हीमोग्लोबिन की बीटा शृंखला ( 3-chain) में छठे स्थान पर ग्लूटैमिक अम्ल (glutamic acid) का स्थान वैलीन (valine) ऐमीनो अम्ल ले लेता है।
असामान्य हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन का वहन नहीं कर सकता तथा लाल रुधिराणु हँसिए के आकार के (sickle shaped) हो जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों में घातक रक्ताल्पता (anaemia) हो जाती है। जिससे व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। विषमयुग्मकी व्यक्ति सामान्य होते हैं, किन्तु ऑक्सीजन का आंशिक दाब कम होने पर इनके लाल रुधिराणु हँसिए के आकार के हो जाते हैं। HbA जीन सामान्य हीमोग्लोबिन के लिए है तथा HbS जीन दात्र कोशिका हीमोग्लोबिन के लिए है।
2. फिनाइलकीटोन्यूरिया (Phenylketonuria) – यह रोग एक अप्रभावी जीन के कारण होता है। इस लक्षण का अध्ययन सर्वप्रथम सर आर्चीबाल्ड गैरड (Sir Archibald Gariod) ने किया था।
फिनाइलएलैनीन (phenylalanine) ऐमीनो अम्ल का उपयोग अनेक उपापचयी पथ (metabolic pathways) में होता है। प्रत्येक पथ में अनेक एन्जाइमें भाग लेते हैं। किसी भी एक एन्जाइम का निर्माण न होने से वह पथ पूर्ण नहीं हो पाता जिससे रोग उत्पन्न हो जाता है। एक अप्रभावी जीन के कारण फिनाइलएलैनीन से टायरोसीन (tyrosine) के निर्माण के लिए आवश्यक एन्जाइम का निर्माण नहीं हो पाता, इस कारण रुधिर में फिनाइलएलैनीन की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है तथा इसका स्रावण मूत्र में भी होने लगता है। इस अवस्था को फिनाइलकीटोन्यूरिया (phenylketonuria) या PKU कहते हैं। ऐसे बालकों में मस्तिष्क अल्पविकसित रह जाता है। I.Q. का स्तर सामान्यतः 20 से कम रहता है।
परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
‘आनुवंशिकी का जनक किसे कहा जाता है? (2015)
(क) ह्यूगो डी ब्रीज
(ख) कार्ल कोरेन्स
(ग) ग्रेगर जे० मेंडल
(घ) एरिक वॉन सरमेक
उत्तर
(ग) ग्रेगर जे० मेंडल
प्रश्न 2.
वंशागति (आनुवंशिक) इकाई है (2014, 15)
(क) गुणसूत्र
(ख) जीन प्रारूप
(ग) गॉल्जीकाय
(घ) जीन
उत्तर
(घ) जीन
प्रश्न 3.
मेंडल के एक गुण प्रसंकरण में कौन-सी पीढ़ी हमेशा विषमयुग्मजी होती है? (2016)
(क) प्रथम सन्तानीय पीढ़ी
(ख) द्वितीय सन्तानीय पीढ़ी
(ग) तृतीय सन्तानीय पीढ़ी
(घ) जनक पीढ़ी
उत्तर
(क) प्रथम सन्तानीय पीढ़ी
प्रश्न 4.
यदि एक विषमयुग्मजी लम्बे पौधे का एक समयुग्मजी बौने पौधे के साथ क्रॉस कराया जाये तो बौने पौधों का प्रतिशत होगा (2015)
(क) 50%
(ख) 25%
(ग) 75%
(घ) 100%
उत्तर
(क) 50%
प्रश्न 5.
गुलाबी फुल वाले गुलाबाँस में स्वनिषेचन से प्राप्त प्ररूपी अनुपात होगा- (2018)
(क) 1: 2:1
(ख) 3 : 1
(ग) 1: 1:1 : 1
(घ) 2:1
उत्तर
(क) 1 : 2 : 1
प्रश्न 6.
प्रथम सन्तानीय पीढ़ी की सन्तान का दोनों जनक में से किसी एक के साथ किया गया प्रसंकरण है (2017)
(क) जाँच प्रसंकरण (टेस्ट क्रॉस)
(ख) संकरे पूर्वज प्रसंकरण (बैक क्रॉस)
(ग) अन्योन्यता प्रसंकरण (रेसीप्रोकल क्रॉस)
(घ) एक गुण प्रसंकरण (मोनोहाइब्रिड क्रॉस)
उत्तर
(ख) संकर पूर्वज प्रसंकरण (बैक क्रॉस)
प्रश्न 7.
एण्टीबॉडीज हैं। (2014)
(क) लिपिड
(ख) खनिज
(ग) प्रोटीन्स
(घ) शर्करा
उत्तर
(ग) प्रोटीन्स
प्रश्न 8.
निम्न में से कौन-सा रक्त समूह सार्विक दाता कहलाता है? (2017)
(क) A
(ख) O
(ग) B
(घ) AB
उत्तर
(ख) O
प्रश्न 9.
रुधिर वर्ग ‘O’ वाली स्त्री ‘AB’ रुधिर वर्ग वाले पुरुष से शादी करती है। उनके पुत्र का रुधिर वर्ग कौन-सा हो सकता है? (2011, 16)
(क) A रुधिर वर्ग
(ख) ‘B’ रुधिर वर्ग
(ग) A या ‘B’ रुधिर वर्ग
(घ) AB’ रुधिर वर्ग
उत्तर
(ग) A या ‘B’ रुधिर वर्ग
प्रश्न 10.
रुधिर वर्ग ‘A’ वाले लड़के को निम्न में से किस रुधिर समूह का रक्त आधान किया जा सकता है? (2010)
(क) केवल ‘O’
(ख) केवल AB’
(ग) ‘A’ तथा ‘O’
(घ) ‘A’ तथा ‘B’
उत्तर
(ग) ‘A’ तथा ‘O’
प्रश्न 11.
सन्तान को पिता से कितने जीन्स प्राप्त होते हैं? (2017)
(क) 25%
(ख) 50%
(ग) 75%
(घ) 25% से 50%
उत्तर
(ख) 50%
प्रश्न 12.
‘मंगोली जड़ता’ किसके कारण होती है? (2014, 16)
(क) लिंग गुणसूत्रों की एकलसूत्रता
(ख) 21वीं जोड़ी के अलिंगसूत्रों की एकलसूत्रता
(ग) लिंग गुणसूत्रों की एकाधिसूत्रता
(घ) 21वीं जोड़ी के अलिंगसूत्रों की एकाधिसूत्रता
उत्तर
(घ) 21वीं जोड़ी के अलिंगसूत्रों की एकाधिसूत्रता
प्रश्न 13.
टरनर सिण्ड्रोम के लिए निम्नलिखित में से कौन सही है? (2016)
(क) AAXO
(ख) AAXYY
(ग) AAXXY
(घ) AAXXX
उत्तर
(क) AAXO
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
वंशागति या आनुवंशिकता तथा आनुवंशिकी में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2017)
उत्तर
आनुवंशिक लक्षणों के जनकों से सन्तति में पहुँचने को आनुवंशिकता कहते हैं। विज्ञान की वह शाखा जिसके अन्तर्गत आनुवंशिक लक्षणों एवं उनकी वंशागति का अध्ययन किया जाता है, आनुवंशिकी कहलाता है।
प्रश्न 2.
मेंडल ने अपने प्रयोग के लिए कितने लक्षणों का चुनाव किया? किन्हीं चार लक्षणों के नाम लिखिए।
(2015, 17)
उत्तर
मंडल ने अपने प्रयोग के लिए सात जोड़ी विपर्यासी लक्षणों का चुनाव किया। उदाहरणार्थ –
- पुष्पों का रंग-बैंगनी तथा सफेद
- बीज का रंग-हरा तथा पीला।
- पौधे की लम्बाई-लम्बा तथा बौना।
- बीज का आकार–गोल एवं झुर्रादार बीज।
प्रश्न 3.
संकर-पूर्वज संकरण (back cross) तथा परीक्षण संकरण (test cross) में अन्तर बताइए।
(2014, 15, 17, 18)
उत्तर
जब किसी संकर को किसी भी जनक से संकरण कराया जाता है तो इसे संकर-पूर्वज संकरण कहते हैं जबकि प्रथम पीढ़ी (F1) जीव एवं समयुग्मकी अप्रभावी लक्षण वाले जीव के मध्य कराये गये संकरण को परीक्षण संकरण कहते हैं।
प्रश्न 4.
सर्वग्राही तथा सर्वदायी रक्त समूह कौन हैं? इनके नाम लिखिए। (2014)
या
किस रुधिर वर्ग का मनुष्य सर्वग्राही होता है? (2010)
उत्तर
‘AB’ रक्त समूह का मनुष्य सर्वग्राही तथा ‘O’ रक्त समूह को मनुष्य सर्वदायी होता है।
प्रश्न 5.
रुधिर वर्ग ‘O’ वाला एक पुरुष रुधिर वर्ग ‘AB’ वाली एक स्त्री से शादी करता है। उनकी संतानों का रुधिर वर्ग क्या होगा? (2017)
उत्तर
यदि पुरुष व स्त्री के रुधिर वर्ग क्रमशः ‘O’ और ‘AB’ हैं तो इनकी संतानों में केवल A अथवा ‘B’ रुधिर वर्ग की सम्भावना होती है।
प्रश्न 6.
विभिन्नता से आप क्या समझते हैं? कोई दो प्रकार की विभिन्नताएँ बताइए। (2015, 18)
उत्तर
एक ही माता-पिता की विभिन्न संतानों में अंतर पाये जाते हैं। इस प्रकार जीवधारियों के बीच में पाये जाने वाले अंतरों को विभिन्नताएँ कहते हैं। विभिन्नता के दो मुख्य प्रकार निम्नवत् हैं –
- दैहिक विभिन्नताएँ
- जननिक विभिन्नताएँ
प्रश्न 7.
आनुवंशिक रोग क्या है? मनुष्य में इस रोग के दो उदाहरण लिखिए। (2015)
उत्तर
वे रोग जो किसी संतान को अपने माता-पिता से आनुवंशिक रूप से प्राप्त होते हैं, आनुवंशिक रोग कहलाते हैं। उदाहरणार्थ-वर्णान्धता तथा हीमोफीलिया।
प्रश्न 8.
लिंग सहलग्न लक्षण को परिभाषित कीजिए। मनुष्य में लिंग सहलग्न वंशागति के द्वारा उत्पन्न दो व्याधियों के नाम लिखिए। (2014,17)
उत्तर
प्राणियों में कुछ आनुवंशिक लक्षणों की वंशागति लिंग से सम्बन्धित होती है। इनका सम्बन्ध लिंग गुणसूत्रों से होने के कारण इन्हें लिंग सहलग्न लक्षण कहते हैं; जैसे-मनुष्य में वर्णान्धता, हीमोफीलिया आदि।
प्रश्न 9.
हीमोफीलिया को ब्लीडर रोग क्यों कहते हैं? (2017)
उत्तर
क्योंकि इस रोग में चोट लग जाने या कट जाने पर रक्त का थक्का नहीं बनता जिसके कारण रक्त लगातार बहता रहता है।
प्रश्न 10.
ओटोसोमल ट्राइसोमी के दो उदाहरण दीजिए तथा इनमें गुणसूत्रों की संख्या एवं अन्य अपसामान्यताएँ बताइए। (2009, 16)
या
मानव में गुणसूत्रीय व्यतिक्रम से उत्पन्न होने वाले दो रोगों के नाम तथा उनके गुणसूत्र विन्यास लिखिए। (2014)
उत्तर
- 21वें ओटोसोमल गुणसूत्र की ट्राइसोमी के कारण मंगोलिज्म या डाउन्स सिण्ड्रोम विकसित होता है। इनमें गुणसूत्रों की कुल संख्या 47 होती है।
- 18वें ओटोसोमल गुणसूत्र की ट्राइसोमी के कारण एडवर्ड्स सिण्ड्रोम विकसित होता है। इनमें गुणसूत्रों की कुल संख्या 47 होती है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्न में अन्तर बताइए –
(क) जीन प्रारूप एवं लक्षण प्रारूप (2015, 2017)
(ख) प्रभावी कारक एवं अप्रभावी कारक (2015, 17)
उत्तर
(क) जीन प्रारूप एवं लक्षण प्रारूप में अन्तर जीन प्रारूप
(ख) प्रभावी और अप्रभावी कारक में अन्तर
प्रश्न 2.
पक्षियों में लिंग निर्धारण किस प्रकार होता है? (2017)
उत्तर
पक्षियों में लिंग निर्धारण
ZW – ZZ गुणसूत्रों द्वारा लिंग निर्धारण (Sex Determination by ZW-ZZ Chromosomes) – यह क्रियाविधि कुछ कीटों (तितली और मॉथ) और कुछ कशेरुकियों (मछलियों, सरीसृपों व पक्षियों) में पायी जाती है। नर में दो समरूपी लिंग गुणसूत्र (hormomorphic sex chromosomes) होते हैं। जिन्हें ZZ से निरूपित किया जाता है। इनसे समयुग्मक (homogametes) उत्पन्न होते हैं। इसके विपरीत मादा में दो विषमरूपी लिंग गुणसूत्र (heteromorphic sex chromosomes) पाये जाते हैं। जिन्हें ZW से प्रदर्शित किया जाता है। इनसे विषमयुग्मक (heterogametes) उत्पन्न होते हैं। इसलिए मादा दो प्रकार के अण्डाणु उत्पन्न करती है जिनमें Z या W गुणसूत्र होते हैं। नर में शुक्राणु समान प्रकार के होते हैं।
अतः इन जीवों में लिंग निर्धारण मादा के W गुणसूत्र द्वारा होता है। जब नर का शुक्राणु मादा के z युग्मक से संलयन करता है तो ZZ युग्मनज बनता है जिससे नर संतति उत्पन्न होती है। यदि शुक्राणु मादा के w युग्मक से संलयन करता है तो ZW युग्मनज (zygote) बनता है जो मादा का विकास करता है। इस प्रकार की संतति में 1:1 अनुपात उत्पन्न होने की सम्भावना होती है।
प्रश्न 3.
कोई भी बच्चा वर्णान्ध नहीं पैदा हुआ जबकि उनके पिता वर्णान्ध थे। कारण सहित समझाइए। (2013)
उत्तर
जब एक वर्णान्ध पुरुष का विवाह एक सामान्य स्त्री से किया जाता है तो इन दोनों से उत्पन्न होने वाली सभी पुत्रियाँ वाहक होंगी इनमें वर्णान्धता के लक्षण प्रकट नहीं होते हैं जबकि सभी पुत्र सामान्य होंगे। इसे निम्नवत् प्रदर्शित किया जा सकता है –
प्रश्न 4.
हीमोफीलिया से ग्रसित एक पुरुष का विवाह एक सामान्य स्त्री से किया गया। उनकी संतानों में इस रोग की वंशागति को रेखाचित्र की सहायता से समझाइए। (2015)
उत्तर
यदि हीमोफीलिया से ग्रसित एक पुरुष किसी सामान्य स्त्री से विवाह करता है तो उनके सभी पुत्र सामान्य तथा सभी पुत्रियाँ रोग की वाहक होंगी।
Daughters = All carriers
Sons = All normal
प्रश्न 5.
क्लाइनेफेल्टर्स सिण्ड्रोम किसे कहते हैं? यह कैसे बनते हैं? ऐसे मनुष्यों जिनमें यह उपस्थित है, के लक्षण लिखिए। (2015, 17)
या
लिंग गुणसूत्रीय ट्राइसोमी पर टिप्पणी लिखिए। (2016)
उत्तर
क्लाइनेफेल्टर्स सिण्ड्रोम – यह सिण्ड्रोम लिंग गुणसूत्रों की ट्राइसोमी के कारण होता है। इनमें XXY लिंग गुणसूत्र होते हैं। अत: इनमें 47 (44 + XXY) गुणसूत्र होते हैं। इनमें पुरुष व स्त्रियों के लक्षणों का मिश्रण पाया जाता है। Y-गुणसूत्र की उपस्थिति के कारण इनका शरीर लम्बा व सामान्य पुरुषों जैसा होता है लेकिन अतिरिक्त x गुणसूत्र के कारण इनके वृषण तथा अन्य जननांग व जनन ग्रन्थियाँ अल्प-विकसित होती हैं। इसे हाइपोगोनेडिज्म (hypogonedism) कहते हैं। इनमें शुक्राणुओं का निर्माण नहीं होता अतः ये नर बंध्य (male sterile) होते हैं। स्त्रियों के समान इनके चेहरे और शरीर पर बाल कम होते हैं और स्त्रियों के समान स्तन भी विकसित हो जाते हैं। इसे गाइनोकोमेस्टिया (gynaecomastia) कहते हैं।
अमेरिकी वैज्ञानिक एच०एफ० क्लाइनेफेल्टर (H.E Klinefelter) ने सन् 1942 में इस प्रकार के असामान्य पुरुषों का वर्णन किया। लगभग 500 पुरुषों में से एक में क्लाइनेफेल्टर्स सिण्ड्रोम पाया जाता है।
ये असामान्य पुरुष असामान्य अण्डों (XX eggs) व सामान्य शुक्राणुओं (Y sperms) से या सामान्य अण्डों (X eggs) व असामान्य शुक्राणुओं (XY sperms) में निषेचन के फलस्वरूप बनते हैं। ये असामान्य अण्डे या शुक्राणु ४ गुणसूत्रों के अवियोजन (non-disjunction) से बनते हैं।
ऐसे क्लाइनेफेल्टर्स सिण्ड्रोम भी होते हैं जिनमें लिंग गुणसूत्रXYY या XXX या तीन से अधिक XXXY, XXXXY, XXXXXY होते हैं। XYY सिण्ड्रोम वाले पुरुष लम्बे, मूर्ख, कामुक और गुस्सैल एवं उग्र स्वभाव के अतिनर (supermales) होते हैं। इसके विपरीत XXX या XXXX वाली अतिमादाएँ (superfemale or metafemales) मूर्ख और बाँझ होती हैं। दो या दो से अधिक X-गुणसूत्र वाले सभी नर नपुंसक होते हैं।
प्रश्न 6.
डाउन सिण्ड्रोम किसे कहते हैं? इसके कारण एवं लक्षण बताइए। (2010)
या
‘मंगोलियन जड़ता क्या है? इसके दो प्रमुख लक्षण लिखिए। (2015)
या
डाउन्स सिण्ड्रोम के बारे में समझाइए। (2017)
उत्तर
डाउन सिण्ड्रोम
यह रोग गुणसूत्रों में संख्या की अनियमितता के कारण होने वाले परिवर्तनों से होता है। मनुष्य में कभी-कभी गुणसूत्रों (chromosomes) की संख्या 46 के स्थान पर 47 हो जाती है। यह अतिरिक्त गुणसूत्र 21वें समजात जोड़े में तीसरा बढ़ जाने के कारण होता है। इसे डाउन संलक्षण (Down’s syndrome) भी कहते हैं। यह अतिरिक्त गुणसूत्र बच्चे की बुद्धि के सामान्य विकास को रोक देता है। संख्या में अधिक गुणसूत्र का कारण प्रायः अण्ड कोशिका (egg cell) के निर्माण में होने वाली गड़बड़ी के कारण हो सकता है।
47 गुणसूत्रों वाली ऐसी सन्तान का मस्तिष्क अविकसित होता है; सिर गोल, होंठ नीचे की ओर को लटका रहता है, माथा अनावश्यक रूप से चौड़ा होता है; त्वचा खुरदरी होती है; आँखें तिरछी तथा पलकें वलित (folded) होती हैं और मुँह हर समय खुला रहता है। ये मन्द बुद्धि होते हैं। इनके जननांग तो सामान्य होते हैं किन्तु पुरुष नपुंसक होते हैं। इस आनुवंशिक रोग को मंगोलिक बेवकूफी या मंगोलियन जड़ता (Mangolian idiocy) भी कहते हैं।
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मेंडल के नियमों की व्याख्या कीजिए। (2013)
या
मेंडलवाद पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए। (2014)
या
मेंडल के द्विगुण संकरण प्रयोग का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए। (2013)
या
मेंडल के स्वतन्त्र अपव्यूहन के नियम को समझाइए। (2016, 17)
या
मेंडल का लक्षणों के पृथक्करण का नियम क्या है? इसे युग्मकों की शुद्धता का नियम क्यों कहते हैं?
(2010, 17)
या
मेंडल के पृथक्करण के नियम का उपयुक्त रेखाचित्रों की सहायता से वर्णन कीजिए। (2018)
उत्तर
मेंडल के वंशागति के नियम
मेंडल ने अपने एकसंकर संकरण (monohybrid cross) तथा द्विसंकर संकरण (dihybrid cross) के पश्चात् जो निष्कर्ष निकाले उन्हें मेंडल के आनुवंशिकता के नियम कहते हैं। इनका विस्तृत वर्णन निम्न प्रकार है –
1. प्रभाविता का नियम (Law of Dominance) – “जब एक जोड़ा विपर्यासी लक्षणों को धारण करने वाले दो शुद्ध जनकों में परस्पर संकरण कराया जाता है तो उनकी संतानों में विरोधी में से केवल एक प्रभावी लक्षण परिलक्षित होता है और दूसरा अप्रभावी लक्षण व्यक्त नहीं हो पाता।”
उदाहरण – मटर के पौधे में ऊँचाई के गुण के दो विपर्यासी लक्षण लम्बापन (tallness) और बौनापन (dwarfness) पर विचार किया जाये तो शुद्ध लम्बे पौधों में लम्बाई के समयुग्मजी कारकों का जोड़ा होगा। लम्बे पौधों का जीनोटाइप TT होगा। इसी प्रकार शुद्ध बौने पौधों का जीनोटाइप tt होगा। जब लम्बे (TT) और बौने (tt) पौधों के बीच संकरण कराया जायेगा तो F1 पीढ़ी के सभी पौधों में जीनोटाइप (Tt) होगा अर्थात् एक कारक लम्बाई का (T) और दूसरा बौनेपन का (t) होगा। चूंकि T और t में से T प्रभावी है; अत: F1 पीढ़ी के सभी पौधे लम्बे होंगे।
प्रभाविता के नियम के अनुसार निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं –
- लक्षणों का नियन्त्रण, नियन्त्रण इकाइयों द्वारा होता है जिन्हें कारक कहते हैं।
- कारक जोड़ों में पाये जाते हैं।
- असमान कारकों वाले जोड़े में एक सदस्य प्रभावी (dominant) होता है और दूसरा अप्रभावी (recessive) होता है।
2. कारकों के पृथक्करण या युग्मकों की शुद्धता का नियम (Law of Segregation or Law of Purity of Gametes) – लक्षण कारकों के प्रत्येक सजातीय जोड़े के दोनों कारक युग्मक बनाते समय पृथक् हो जाते हैं और इनमें से केवल एक सदस्य कारक ही किसी एक युग्मक में पहुँचता है।
जब परस्पर विरोधी शुद्ध आनुवंशिक लक्षणों वाले पौधों के बीच संकरण कराया जाता है, प्रथम पीढ़ी (F1) में केवल प्रभावी लक्षण ही प्रकट होते हैं परन्तु दूसरी पीढ़ी (F2) की संतानों में इन विपरीत लक्षणों का एक निश्चित अनुपात में पृथक्करण (segregation) हो जाता है। अतः इसे पृथक्करण का नियम (law of segregation) कहते हैं। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि प्रथम पीढ़ी में साथ-साथ रहने के बावजूद भी गुणों का आपस में मिश्रण नहीं होता। युग्मक-निर्माण के समय ये गुण पृथक् हो जाते हैं और युग्मकों की शुद्धता बनी रहती है। इसीलिए, इस नियम को युग्मकों की शुद्धता का नियम (law of purity of gametes) भी कहते हैं।
उदाहरण – जब मटर के एक पौधे का जिसमें लाल पुष्प (red flower) होते हैं, सफेद पुष्प (white flower) से संकरण कराया जाता है तो F1 पीढ़ी में केवल लाल पुष्प वाले पौधे उत्पन्न होते हैं। अब यदि F1 पीढ़ी के पौधों में स्व-परागण (self-pollination) कराया जाता है। तो F2 पीढ़ी के पौधे दोनों प्रकार (लाल व सफेद पुष्प वाले) के उत्पन्न होते हैं। लाल एवं सफेद पुष्प वाले पौधों के बीच 3:1 को अनुपात पाया जाता है। लाल पुष्प वाले पौधे संख्या में 1/3 शुद्ध (pure) और 2/3 अशुद्ध या संकर (hybrid) होते हैं। अगली तीसरी पीढ़ी F3 में इनमें से एक-तिहाई अर्थात् 1/3 में केवल लाल पुष्प बनते हैं, शेष दो-तिहाई अर्थात् 2/3 लाल पुष्पों से अगली पीढ़ी में पुन: लाल व सफेद पुष्प बनते हैं।
जब लाल पुष्प वाले शुद्ध पौधे जिसके कारक RR हैं, का परागण सफेद पुष्प वाले पौधे जिसके कारक rr हैं, से कराया जाता है तब इनके युग्मक (gametes) R तथा r आपस में संयोजन करके F1 पीढ़ी के सभी लाल पुष्पों का निर्माण करते हैं क्योंकि कारक R लाल रंग की। अभिव्यक्ति के लिए आवश्यक होता है। F1 पीढ़ी के सभी पौधों में R कारक उपस्थित होता है। और इसके प्रभावी होने के कारण कारक r अपनी अभिव्यक्ति प्रदर्शित नहीं कर पाता। अतः R प्रभावी तथा r अप्रभावी कारक है।
F1 पीढ़ी में प्राप्त चारों पौधे लाले पुष्प वाले होते हैं। जब F1 पीढ़ी के इन सभी पौधों में स्व-परागण कराया जाता है तो F2 पीढ़ी में रंग के अनुसार दो प्रकार के पौधे उत्पन्न होते हैं। अर्थात् लाल पुष्प वाले एवं सफेद पुष्प वाले पौधों के बीच क्रमशः 3 : 1 का अनुपात होता है। परन्तु कारक सिद्धांत के अनुसार दो पौधे शुद्ध (एक लाल पुष्प वाला तथा एक सफेद पुष्प वाला) जिसमें से एक में RR कारक तथा दूसरे में rr कारक होते हैं जो दोनों ही जनक लक्षणों के शुद्ध रूप होते हैं।
शेष दो पौधे मिश्रित लक्षण वाले अर्थात् Rr कारक वाले होते हैं। यद्यपि इसमें R के प्रभावी होने के कारण लक्षण प्रारूप (phenotype) लाल पुष्प वाले पौधे ही होते हैं। जब RR पौधे में स्व-परागण कराया जाता है तो अगली संतति में इससे लाल पुष्प वाले शुद्ध पौधे उत्पन्न होंगे। इसी प्रकार rr पौधे में स्व-परागण कराया जाए तो इसकी अगली पीढ़ी में सफेद पुष्प वाले शुद्ध पौधे प्राप्त होते हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर F2 पीढ़ी में 3 लाल पुष्प वाले तथा 1 सफेद पुष्प वाला पौधा उत्पन्न होता है। इन प्रयोगों में मेंडल ने पाया कि कारक प्रभावी (dominant) या अप्रभावी (recessive) होते हैं परन्तु यह परिवर्तित नहीं होते हैं लेकिन समय आने पर अप्रभावी कारक पृथक् होकर अपनी अभिव्यक्ति दर्शाते हैं।
मेंडल के उपरोक्त पृथक्करण नियम (segregation law) को पुन्नेट वर्ग या चैकर बोर्ड (Punne’s square or Checker board) द्वारा नीचे प्रदर्शित किया गया है –
पृथक्करण के नियम के आधार पर मंडल ने भविष्यवाणी की थी कि लाल पुष्प वाले पौधों में एक-तिहाई ऐसे होंगे जो F3 पीढ़ी में केवल लाल पुष्प वाली संतति उत्पन्न करेंगे तथा दो-तिहाई ऐसे होंगे जिनकी संतति मिश्रित होगी, जिसमें लाल एवं सफेद पुष्प वाले पौधे 3 : 1 के अनुपात में होंगे। वास्तविक प्रयोगों से प्राप्त आँकड़े “लक्षणों के पृथक्करण’ (segregation of characters) के सैद्धान्तिक आधार पर अनुमानित परिणामों के पूर्णतः अनुरूप हैं।
3. स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम (Law of Independent Assortment = Law of Free Recombination)-मेंडल ने अपने कुछ प्रयोगों में दो विपर्यासी लक्षणों को ध्यान में रखकर पर-परागण (cross pollination) अर्थात् संकरण कराया जिसे द्विगुण संकरण (dihybrid cross) कहते हैं। इस नियम के अनुसार जब दो जोड़ी विपर्यासी लक्षणों वाले पौधों के बीच संकरण कराया जाता है तो इन लक्षणों का पृथक्करण स्वतंत्र रूप से होता है अर्थात् एक लक्षण की वंशागति दूसरे को प्रभावित नहीं करती है।”
उदाहरण – मेंडल ने मटर के दो विपर्यासी लक्षण, बीजों के आकार तथा इनके रंग का चयन किया। मंडल ने अपने प्रयोग में गोल (round) तथा पीले (yellow) बीज वाले पौधों का संकरण (cross), झुर्रादार (wrinkled) तथा हरे (green) बीज वाले पौधों से कराया। पर-परागण द्वारा प्राप्त F1 पीढ़ी में उत्पन्न पौधों से प्राप्त सभी बीज गोल तथा पीले रंग के पाए गए क्योंकि गोल आकृति एवं पीला रंग, झुरींदार आकृति एवं हरे रंग पर प्रभावी थे। झुरींदार आकृति एवं हरा रंग अप्रभावी होने के कारण छिपे रहते हैं।
जब F1 पीढ़ी के पौधों में स्व-परागण (self-pollination) कराया जाता है तो F2 पीढ़ी में निम्न चार प्रकार के बीज उत्पन्न करने वाले पौधे बनते हैं –
- गोल तथा पीले (Round and yellow)
- झुरींदार तथा पीले (Wrinkled and yellow)
- गोल तथा हरे (Round and green)
- झुरींदार तथा हरे (Wrinkled and green)
जब जनक पीढ़ी में गोल व पीले (round and yellow) बीज वाले पौधों तथा झुरींदार व हरे (wrinkled and green) बीज वाले पौधों के बीच संकरण कराया जाता है तो जनक पीढ़ी के कारक RRYY गोल तथा पीले (round and yellow) के लिए तथा ryy झुरींदार तथा हरे (wrinkled and green) के लिए अपने युग्मक (gametes) Ry तथा ry बनाते हैं। ये युग्मक प्रथम पीढ़ी (F1) में सभी गोल तथा पीले बीज वाले पौधे उत्पन्न करते हैं क्योंकि इसमें RY कारक है जो गोल तथा पीले गुण के लिए प्रभावी (dominant) है।
F1 पीढ़ी के पौधों में स्व-परागण (self-pollination) कराने पर उससे चार प्रकार के बीज बनते हैं–हरे व झुरींदार, हरे व गोल, गोल व पीले तथा पीले व झुरींदार। इससे यह निष्कर्ष प्राप्त हुआ कि आनुवंशिक लक्षण स्वतंत्र होते हैं। चूंकि पीला रंग सदा गोल बीजों के साथ ही नहीं वरन् झुर्रादार बीजों के साथ भी आता है अथवा हरा रंग सदा झुरींदार बीजों के साथ ही नहीं वरन् गोल बीजों के साथ भी आता है।
F1 पीढ़ी के सभी पौधों में युग्मक बनने पर चार प्रकार के युग्मक क्रमशः RY, Ry, rY तथा ry बनते हैं। जब ये युग्मक दूसरे पौधों के इसी प्रकार के युग्मकों से मिलते हैं तो निम्न प्रकार के परिणाम प्राप्त होते हैं –
लक्षण प्रारूपी अनुपात (Phenotype Ratio)
- 9 पौधे गोल व पीले बीज वाले
- 3 पौधे गोल व हरे बीज वाले
- 3 पौधे झुर्रादार व पीले बीज वाले तथा
- 1 पौधा झुरींदार व हरे बीज वाला
उपरोक्त चारों प्रकार के पौधों के लक्षण प्रारूप को 9:3:3:1 के अनुपात द्वारा भी प्रदर्शित किया जा सकता है जबकि कारक (factor) के आधार पर जीनप्रारूपी अनुपात (genotypic ratio) निम्न प्रकार होता है –
1. गोल तथा पीले बीज वाले पौधे (Round and Yellow Seeded Plants) – जो संख्या में 9 होते हैं, केवल RY के प्रभावी (dominant) होने के आधार पर होते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं –
- 4 पौधे RY ry कारक वाले
- 2 पौधे RY Ry कारक वाले
- 2 पौधे RY rY कारक वाले
- 1 पौधा RY RY कारक वाला
इस प्रकार 9 पीले व गोल बीज वाले पौधे कारकों के आधार पर 2: 2:2: 2:1 का अनुपात रखते हैं।
2. पीले तथा झूदार बीज वाले पौधे (Yellow and Wrinkled Seeded Plants) – जो संख्या में 3 होते हैं, केवल rY के प्रभावी (dominant) होने के आधार पर होते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं –
- 2 पौधे ry rY कारक (factor) वाले
- 1 पौधा rY ry कारक वाला
इस प्रकार 3 झुरौंदार पीले बीजों वाले पौधे कारकों के आधार पर 2:1 का अनुपात रखते हैं।
3. गोल तथा हरे बीज वाले पौधे (Round and Green Seeded Plants) – Ry कारकों के प्रभावी (dominant) होने के आधार पर होते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं –
- 2 पौधे Ry ry कारक (factor) वाले
- 1 पौधा Ry Ry कारक वाला
इस प्रकार 3 गोल तथा हरे बीज वाले पौधे कारकों के आधार पर 2:1 का अनुपात रखते हैं।
4. झुर्सदार तथा हरे बीज वाला पौधा (Wrinkled and Green Seeded Plants) – केवल एक ही बनता है। इसमें ryry कारक होते हैं। यदि लक्षणों के दोनों युग्म एक-दूसरे से स्वतंत्र रहकर व्यवहार करें तो भी उनसे उपरोक्त परिणामों की अपेक्षा होगी। यदि अलग-अलग लक्षण 3:1 के अनुपात में विसंयोजित होते हैं तो प्रायिकता का सिद्धांत (theory of probability) लागू होगा। इस सिद्धांत के अनुसार दो या दो
से अधिक स्वतंत्र लक्षणों के एक साथ पाये जाने की सम्भावना उनके अलग-अलग पाये जाने की सम्भावनाओं का गुणनफल होगा। ऊपर वर्णित किये गये चारों संयोजनों (combinations) या लक्षण प्रारूपों (phenotype) के पाये जाने की सम्भावनाओं की गणना इस आधार पर की जा सकती हैं कि प्रत्येक लक्षण के लिए संतति का 3/4 भाग प्रभावी और 1/4 भाग अप्रभावी होता है।
प्रश्न 2.
गुणात्मक विकल्पी (बहु-विकल्पी) से आप क्या समझते हैं? मानव में रुधिर वर्गों के प्रकार एवं उनकी वंशागति का वर्णन कीजिए। (2015, 17)
या
एबीओ रुधिर वर्ग की विस्तृत विवेचना कीजिए तथा उनकी वंशागति समझाइए। (2017)
उत्तर
बहु-विकल्पी (गुणात्मक विकल्पी)
बहु-विकल्पी तीन, चार अथवा अधिक युग्मविकल्पियों का वह सेट (set) है जो सामान्य जीन में उत्परिवर्तन के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं और सजातीय गुणसूत्रों (homologous chromosomes) में उसी बिन्दु पथ (loci) पर स्थित रहते हैं। वास्तव में बहु-विकल्पी एक सामान्य जीन की विभिन्न अभिव्यक्तियों को प्रदर्शित करते हैं।
उदाहरण – मानव में रुधिर वर्ग (Blood Groups in Man)-मनुष्यों में रुधिर वर्गों की वंशागति बहु-विकल्पता का उदाहरण है। मनुष्य की आबादी में चार प्रकार के रुधिर वर्ग (blood group) A, B, AB तथा 0 पाए जाते हैं। इनकी खोज कार्ल लैण्डस्टीनर (Karl Landsteiner, 1902) ने की थी। रुधिर वर्गों का वर्गीकरण RBCs की कोशिका कला पर स्थित विशेष प्रोटीन पदार्थ या ग्लाइकोप्रोटीन (glycoproteins) पर निर्धारित होता है। इनको एन्टीजन अथवा एग्लूटीनोजन (Antigen or agglutinogens) कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-A तथा B.
- A रुधिर वर्ग वाले व्यक्तियों में होता है – प्रतिजन A (Antigen A)
- B रुधिर वर्ग वाले व्यक्तियों में होता है – प्रतिजन B (Antigen B)।
- AB रुधिर वर्ग वाले व्यक्तियों में होता है – प्रतिजन A तथा प्रतिजन B (Antigen A and Antigen B)।
- O रुधिर वर्ग वाले व्यक्तियों में कोई प्रतिजन (Antigen) नहीं होता है।
मनुष्यों के रुधिर प्लाज्मा में इन प्रतिजनों के प्रति विशिष्ट प्रोटीन्स पाए जाते हैं। इन्हें प्रतिरक्षी (antibodies) या एग्लूटीनिन्स (aglutinins) कहते हैं। ये भी दो प्रकार के होते हैं। इन्हें Anti-A या a तथा Anti-B या b द्वारा प्रदर्शित करते हैं।
- A रुधिर वर्ग वाले व्यक्तियों के प्लाज्मा में होती है-प्रतिरक्षी B या b
- B रुधिर वर्ग वाले व्यक्तियों के प्लाज्मा में होती है-प्रतिरक्षी A या a
- AB रुधिर वर्ग वाले व्यक्तियों के प्लाज्मा में कोई प्रतिरक्षी नहीं होता है।
- 0 रुधिर वर्ग वाले व्यक्तियों के प्लाज्मा में A तथा B दोनों प्रतिरक्षी होते हैं।
निम्नांकित तालिका में मनुष्य के विभिन्न रुधिर वर्गों तथा उनमें पाए जाने वाले प्रतिरक्षी और प्रतिजनों को प्रदर्शित किया गया है –
तालिका : रुधिर वर्ग तथा उसमें पाये जाने वाले प्रतिजन व प्रतिरक्षी
ABO रुधिर वर्गों की वंशागति (Inheritance of ABO Blood Groups) – बर्नस्टीन (Bernstein, 1924-1925) ने ABO रुधिर वर्गों की वंशागति का पता लगाया। इसके अनुसार –
- O रुधिर वर्ग वाले व्यक्तियों की जीनी संरचना – l°l°
- A रुधिर वर्ग वाले व्यक्तियों की जीनी संरचना – LA lo या LA LA
- B रुधिर वर्ग वाले व्यक्तियों की जीनी संरचना – LB lo या LB LB
- AB रुधिर वर्ग वाले व्यक्तियों की जीनी संरचना – LA LB
इसका अभिप्राय है कि ABO रुधिर वर्गों की वंशागति के लिए लोकस (locus) पर दो अन्य एलील A व B भी पाए जाते हैं। इनको बहु-विकल्पी एलील्स (multiple alleles) कहते हैं। इन्हें l°, LA तथा LB द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इनमें से एलील A तथा एलील B, l° के प्रति प्रभावी (dominant) हैं। किंतु LA और LB ऐलील सह-प्रभावी (co-dominant) हैं अर्थात् एक साथ होने पर दोनों ही स्वयं को अभिव्यक्त करते हैं।
- एलील A या LA की उपस्थिति में A प्रतिजन बनता है।
- एलील B या LB की उपस्थिति में B प्रतिजन बनता है।
- एलील A तथा एलील B (LA LB) की उपस्थिति में दोनों, प्रतिजन A तथा प्रतिजन B बनते हैं।
- केवल एलील l° की उपस्थिति या LA व LB की अनुपस्थिति में कोई प्रतिजन नहीं बनता है।
ABO रुधिर वर्गों की वंशागति का चित्रात्मक निरूपण निम्न प्रकार किया जा सकता है –
1. रुधिर वर्ग A के लिए समयुग्मजी पुरुष द्वारा 0 रुधिर वर्ग वाली स्त्री (अथवा इसके विपरीत) से विवाह करने पर इनकी संतानों में A रुधिर वर्ग होगा।
2. रुधिर वर्ग B के लिए समयुग्मजी पुरुष द्वारा 0 रुधिर वर्ग की स्त्री (या इसके विपरीत) से विवाह करने पर इनकी सभी संतानों में B रुधिर वर्ग होगा।
3. A रुधिर वर्ग के लिए समयुग्मजी पुरुष द्वारा B रुधिर वर्ग की समयुग्मजी स्त्री से विवाह करने पर संतानें AB रुधिर वर्ग वाली होंगी।
4. AB रुधिर वर्ग वाले पुरुष द्वारा AB रुधिर वर्ग वाली स्त्री से विवाह करने पर 25% संतानें A रुधिर वर्ग की, 50% AB रुधिर वर्ग की तथा 25% संतानें B रुधिर वर्ग की होंगी।
5. विषमयुग्मजी A तथा B रुधिर वर्ग वाले स्त्री-पुरुषों से उत्पन्न संतानों में चारों प्रकार की संतानें 1:1:1:1 के अनुपात में उत्पन्न होने की सम्भावना है।
6. अगर स्त्री व पुरुष के रुधिर वर्ग क्रमश: AB तथा ० हैं तो इनकी संतानों में केवल A अथवा B रुधिर वर्ग की सम्भावना होती है।
प्रश्न 3.
लिंग सहलग्न लक्षण से आप क्या समझते हैं? मनुष्य में किन्हीं दो लिंग सहलग्न लक्षणों की वंशागति का वर्णन रेखाचित्रों की सहायता से कीजिए। (2011, 12, 13, 14, 15, 18)
या
लिंग सहलग्न वंशागति क्या है ? मनुष्य में लिंग सहलग्न लक्षणों की वंशागति का रेखाचित्रों की सहायता से वर्णन कीजिए। (2010, 14, 17, 18)
या
मनुष्य में लिंग सहलग्न वंशागति का उदाहरण सहित विस्तृत वर्णन कीजिए। (2010)
या
लिंग सहलग्न लक्षणों पर टिप्पणी लिखिए। (2013, 16)
या
वर्णान्धता क्या है? मनुष्य में वर्णान्धता की वंशागति का संक्षिप्त विवरण दीजिए। (2015)
या
लिंग-सहलग्न लक्षण (विशेषक) किसे कहते हैं? लिंग प्रभावित और लिंग-सीमित लक्षणों में उदाहरणों सहित अन्तर बताइए। मनुष्य में किसी एक लिंग-सहलग्न लक्षण की वंशागति का वर्णन कीजिए। (2015)
उत्तर
लिंग सहलग्न लक्षण तथा इनकी वंशागति
प्राय: लिंग गुणसूत्रों पर लक्षणों के जो जीन्स होते हैं उनका सम्बन्ध लैंगिक गुणों (sexual characters) से होता है। ये जीन्स ही जन्तु में लैंगिक द्विरूपता (sexual dimorphism) के लिए जिम्मेदार (responsible) होते हैं, फिर भी जन्तुओं का यह गुण अत्यन्त जटिल तथा व्यापक होता है। और इसे निर्मित करने के लिए अनेक ऑटोसोमल जीन्स (autosomal genes) भी प्रभावी होते हैं। दूसरी ओर लिंग गुणसूत्रों पर कुछ जीन्स लैंगिक लक्षणों के अतिरिक्त अन्य लक्षणों वाले अर्थात् कायिक या दैहिक (somatic) लक्षणों वाले भी होते हैं। ये लिंग सहलग्न जीन्स (sex linked genes) कहलाते हैं, जो लिंग सहलग्न लक्षण (sex linked characters) उत्पन्न करते हैं। इनकी वंशागति लिंग सहलग्न वंशागति (sex linked inheritance) अथवा लिंग सहलग्नता (sex linkage) कहलाती है। मनुष्य में इस प्रकार के लगभग 120 लक्षणों की वंशागति पायी गयी है।
मनुष्य में लिंग निर्धारित करने वाले गुणसूत्र X तथा Y गुणसूत्र कहलाते हैं। यद्यपि इनकी संरचना में भिन्नता दिखायी देती है, फिर भी वर्तमान जानकारी के अनुसार इन गुणसूत्रों में कुछ भाग समजात (homologous) होता है जो अर्द्धसूत्री विभाजन के समय सूत्रयुग्मन (synapsis) करते हैं, अन्यथा शेष भाग असमजात (non-homologous) होता है। उपर्युक्त आधार पर लिंग सहलग्न लक्षण तीन प्रकार के हो सकते हैं –
1. X-सहलग्न लक्षण (X-Linked Characters) – x-गुणसूत्रों के असमजात खण्डों पर इनके लक्षणों के जीन्स स्थित होते हैं। Y-गुणसूत्र पर इनका युग्म विकल्पी (allele) नहीं होता है। वंशागति में ये लक्षण पुत्रों को केवल माता से तथा पुत्रियों को माता व पिता दोनों से प्राप्त हो। सकते हैं। इन्हें डाइण्डुिक (diandric) लिंग सहलग्न लक्षण कहा जाता है; जैसे—वर्णान्धता (colour blindness), रतौंधी (night blindness) तथा हीमोफीलिया (haemophilia)।
2. Y-सहलग्न लक्षण (Y-Linked Characters) – इसके जीन्स Y-गुणसूत्रों के असमजात खण्डों पर स्थित होते हैं। इस प्रकार सहयोगी X-गुणसूत्रों पर इनके एलील्स (alleles) नहीं पाये जाते; अतः प्रत्येक सन्तति में पिता से केवल पुत्रों तक ही जाते हैं। इन्हें होलेण्डुिक लिंग सहलग्न गुण (holandric sex linked characters) भी कहते हैं तथा इनकी वंशागति को होलैण्डूिक वंशागति (holandric inheritance) कहा जाता है। उदाहरणार्थ- कर्णपल्लवों की हाइपरट्राइकोसिस (hypertrichosis of ears)
3. XY-सहलग्न लक्षण (XY-Linked Characters) – इनके जीन्स एलील्स के रूप में X एवं Y गुणसूत्रों के समजात खण्डों पर स्थित होते हैं; अतः इनकी वंशागति पुत्रों एवं पुत्रियों में सामान्य ऑटोसोमल लक्षणों (autosomal characters) की भाँति होती है। इन्हें अपूर्ण लिंग सहलग्न लक्षण (incomplete sex linked characters) भी कहा जाता है।
लिंग-प्रभावित लक्षण
मानव के कुछ ऐसे लक्षण भी होते हैं जिनके जीन तो ऑटोसोम्स पर होते हैं, परन्तु विकास व्यक्ति के लिंग से प्रभावित होता है। दूसरे शब्दों में, पुरुष और स्त्री में जीनरूप (genotype) समान होते हुए भी दृश्यरूप (phenotype) भिन्न होता है।
मानवों में गंजापन (baldness) काफी होता है। यह विकिरण (radiation) तथा थाइरॉइड ग्रन्थि की अनियमितताओं के कारण भी हो सकता है और आनुवंशिक भी। आनुवंशिक गंजापन एक ऑटोसोमल ऐलीली जीन जोड़ी (B, b) पर निर्भर करता है। समयुग्मजी अर्थात् होमोजाइगस प्रबल जीनरूप (BB) हो तो गंजापन पुरुषों और स्त्रियों दोनों में विकसित होता है, लेकिन विषमयुग्मजी अर्थात् हिटरोजाइगस जीनरूप (Bb) होने पर यह स्त्रियों में नहीं केवल पुरुषों में विकसित होता है, क्योंकि इस जीनरूप में इसके विकास के लिए नर हॉर्मोन्स का होना आवश्यक होता है। समयुग्मजी अर्थात् होमोजाइगस सुप्त जीनरूप (bb) में गंजापन नहीं होता।
लिंग-सीमित लक्षण
ऐसे आनुवंशिक लक्षणों के जीन भी ऑटोसोम्स में होते हैं। इनकी वंशागति सामान्य मेंडेलियन पद्धति के अनुसार होती है, लेकिन इनका विकास पीढ़ी-दर-पीढ़ी केवल एक ही लिंग के सदस्यों में होता है। गाय, भैंस आदि में दुग्ध का स्रावण, भेड़ों की कुछ जातियों में केवल नर में सींगों का विकास, मानव में दाढ़ी-मूंछ आदि लक्षण ऐसे ही होते हैं।
प्रायः दो प्रकार के लिंग सहलग्न रोगों का अध्ययन भली-भाँति हुआ है तथा इनकी वंशागति इस प्रकार से होती है –
उदाहरण – (i) वर्णान्धता की वंशागति (Inheritance of Colour Blindness)-वर्णान्धता से पीड़ित व्यक्ति प्रायः लाल वे हरे रंग में अन्तर नहीं कर पाते; अत: इस रोग को लाल-हरा अन्धापन (red-green blindness) भी कहा जाता है। प्रोटॉन दोष अथवा डाल्टॉनिज्म (proton defect or daltonism) इस रोग के अन्य नाम हैं। इस रोग के कारण चित्रकार, पेण्टर, वाहन चालक आदि अत्यधिक कठिनाई का अनुभव करते हैं। इस रोग का जीन अप्रभावी (recessive) होता है तथा लिंग गुणसूत्रों में से X-गुणसूत्र पर स्थित होता है। Y-गुणसूत्र पर इसका एलील नहीं पाया जाता। एक वर्णान्ध पुरुष और एक सामान्य स्त्री की सभी सन्ताने सामान्य होती हैं, परन्तु पुत्रियों में एक X-गुणसूत्र पर पिता का वर्णान्धता का अप्रभावी जीन पहुँचता है;
अतः ये इस जीन के वाहक (carrier) का कार्य करती हैं। एक सामान्य पुरुष तथा एक वाहक स्त्री की सन्तानों में केवल लड़कों में वर्णान्धता विकसित होती है तथा एक x-गुणसूत्र पर वर्णान्धता का जीन होने पर भी लड़कियों में यह रोग नहीं होता, परन्तु ये वाहक का कार्य करती हैं। एक अन्य स्थिति में यदि एक वाहक स्त्री एक वर्णान्ध पुरुष के साथ सहवास करती है तो होने वाली सन्तानों में आधे पुत्र वर्णान्ध व आधे सामान्य होंगे तथा आधी पुत्रियाँ वर्णान्ध व आधी पुत्रियाँ वाहक होंगी। इस प्रकार निम्नांकित निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं –
- स्त्रियाँ तभी वर्णान्ध होती हैं, जबकि स्वर्णान्धता के जीन दोनों (XX) गुणसूत्रों पर स्थित होते हैं। क्योंकि वर्णान्धता का जीन अप्रभावी होता है और सामान्य स्थिति में X-गुणसूत्र पर इसका प्रभावी रोग को रोकने वाला जीन होता है।
- केवल एक ‘x’ गुणसूत्र पर वर्णान्धता का जीन स्थित होने पर स्त्री केवल वाहक का कार्य करती है।
- पुरुष में ‘x’ गुणसूत्र केवल एक ही होता है; अतः उस पर वर्णान्धता का जीन होने पर वह वर्णान्ध होता है।
- स्त्रियों में यह रोग लगभग 1-2% ही होता है।
उदाहरण – (ii) हीमोफीलिया की वंशागत (Inheritance of Haemophilia) – हीमोफीलिया (haemophilia) एक लिंग सहलग्न रोग है। इसके लक्षण ४ लिंग क्रोमोसोम में सहलग्न होते हैं और पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते रहते हैं। हीमोफीलिया रोग प्रायः पुरुषों में होता है परन्तु स्त्रियों द्वारा पुत्रों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी पहुँचाया जाता रहता है। इस रोग के रोगी को चोट लगने पर रुधिर का थक्का नहीं बनता, रुधिर निरन्तर बहता रहता है जिससे अधिक रुधिर बहने से रोगी की मृत्यु होने की सम्भावना रहती है।
हीमोफीलिया के जीन्स रखने वाली स्त्री या वाहक (carrier) जब एक सामान्य पुरुष (normal man) से विवाह करती है तो उनकी सन्तानों में पुत्रियाँ सामान्य अथवा हीमोफीलिया की वाहक होंगी। इनमें यह रोग स्पष्ट नहीं होता क्योंकि हीमोफीलिया के जीन्स अप्रभावी होते हैं, किन्तु पुत्र (सभी पुत्र नहीं) में हीमोफीलिया रोग के लक्षण हो सकते हैं। पुत्र वाहक नहीं हो सकते हैं।
दोनों जीन्स हीमोफीलिया के होने पर स्त्री प्रायः जीवित नहीं रह सकती फिर भी उससे सम्भावित सन्तानों में लड़के सभी हीमोफीलिक होंगे किन्तु सभी लड़कियाँ वाहक होती हैं।
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