UP Board Solutions for Class 12 Civics दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस)

By | May 29, 2022

UP Board Solutions for Class 12 Civics दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस)

UP Board Solutions for Class 12 Civics दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1.
दक्षेस (सार्क) की स्थापना और विधान पर प्रकाश डालिए। दक्षिण एशिया के देशों में आपसी सहयोग के प्रेरक तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
या
दक्षेस (सार्क) से आप क्या समझते हैं? इसकी आवश्यकता और उपयोगिता पर प्रकाश डालिए। [2007, 14]
या
सार्क से क्या अभिप्राय है ? इसके संगठन और उद्देश्य का उल्लेख कीजिए। [2007, 12]
या
दक्षेस (सार्क) से आप क्या समझते हैं? इसकी आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
या
दक्षेस से आप क्या समझते हैं? इसके महत्त्व की विवेचना कीजिए। [2012]
उत्तर :
सार्क (SAARC-South Asian Association for Regional Co-operation) विश्व का नवीनतम अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है। हिन्दी में यह ‘दक्षेस’ (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) कहलाता है। इस संगठन की स्थापना 8 दिसम्बर, 1985 को बाँग्लादेश की राजधानी ढाका में दो-दिवसीय अधिवेशन में हुई। यह दक्षिण एशिया के 8 देशों का एक क्षेत्रीय संगठन है। इस संगठन के देश भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, मालदीव और अफगानिस्तान हैं। सार्क ने इस क्षेत्र में आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास में तेजी लाने और अखण्डता का सम्मान करते हुए परस्पर सहयोग से सामूहिक आत्मनिर्भरता में वृद्धि करने का लक्ष्य निर्धारित किया।

सार्क के उद्देश्य – दक्षेस के चार्टर में 10 धाराएँ हैं। इसमें संघ के उद्देश्यों, सिद्धान्तों और संस्थाओं को परिभाषित किया गया है। अनुच्छेद के अनुसार दक्षेस के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  1. दक्षिण एशियाई क्षेत्र की जनता के कल्याण एवं उनके जीवन-स्तर में सुधार करना।
  2. क्षेत्र के आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक विकास में तेजी लाना और सभी व्यक्तियों को सम्मान के साथ जीने और अपनी पूर्ण निहित क्षमता को प्राप्त करने के अवसर देना।
  3. दक्षिण एशिया के देशों की सामूहिक आत्मनिर्भरता में वृद्धि करना।
  4. आपसी विश्वास व सूझ-बूझ द्वारा एक-दूसरे की समस्याओं का मूल्यांकन करना।
  5. आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में सक्रिय सहयोग एवं पारस्परिक सहायता में वृद्धि करना।
  6. दूसरे विकासशील देशों के साथ सहयोग को मजबूत करना।
  7. सामान्य हित के मामलों पर अन्तर्राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय संगठनों के साथ सहयोग करना।

प्रमुख सिद्धान्त – अनुच्छेद 2 के अनुसार दक्षेस के मुख्य सिद्धान्त निम्नलिखित हैं –

  1. संगठन के ढाँचे के अन्तर्गत सहयोग, प्रभुसत्तासम्पन्न समानता, क्षेत्रीय अखण्डता, राजनीतिक स्वतन्त्रता, दूसरे देशों के आन्तरिक मामले में हस्तक्षेप न करना तथा आपसी हित के सिद्धान्तों का आदर करना।
  2. यह सहयोग द्वि-पक्षीय या बहु-पक्षीय सहयोग की अन्य किसी स्थिति का स्थान नहीं लेगा।

सामान्य – प्रावधान – अनुच्छेद 10 में निम्नलिखित सामान्य प्रावधान रखे गये हैं –

  1. सभी स्तरों पर निर्णय सर्वसम्मति से लिए जाएँगे।
  2. द्वि-पक्षीय विवादास्पद मामलों को विचार-विमर्श से बाहर रखा जाएगा।

दक्षेस के चार्टर की भूमिका में संयुक्त राष्ट्र संघ तथा निर्गुट आन्दोलन में आस्था व्यक्त की गयी है।

संस्थाएँ – चार्टर के अनुसार दक्षेस की निम्नलिखित संस्थाओं की रचना की गयी है –

1. शिखर सम्मेलन – प्रतिवर्ष एक शिखर सम्मेलन का आयोजन होगा जिसमें सदस्य देशों के शासनाध्यक्ष भाग लेंगे। 1985 से 2013 ई० तक इस प्रकार के सत्रह शिखर सम्मेलन क्रमशः ढाका, बंगलुरु, काठमाण्डू, इस्लामाबाद, माले, कोलम्बो, नई दिल्ली, थिम्पू, अदू सिटी और माले में आयोजित हो चुके हैं।

2. मन्त्रिपरिषद – सदस्य देशों के विदेश मन्त्रियों की परिषद् को मन्त्रिपरिषद् कहा गया है। इस परिषद् की बैठक 6 महीने में एक बार होनी अनिवार्य है। इसका कार्य परिषद् के नये क्षेत्रों को निश्चित करना और सामान्य हित के अन्य विषयों पर निर्णय करना है।

3. स्थायी समिति – यह सदस्य देशों के विदेश सचिवों की समिति है। उसका कार्य सहयोग के विभिन्न कार्यक्रमों को मॉनीटर करना तथा उनमें समन्वय पैदा करना है।

4. सचिवालय – इसका मुख्यालय नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में है। इसके महासचिव की नियुक्ति मन्त्रिपरिषद् द्वारा दो वर्ष के लिए की जाती है और सदस्य देश बारी-बारी से इसे पद पर किसी व्यक्ति को मनोनीत करते हैं।

5. समितियाँ – उपर्युक्त संस्थाओं के अतिरिक्त कुछ कार्यकारी और तकनीकी समितियों की भी रचना की गयी है।

6. वित्तीय व्यवस्थाएँ – सचिवालय के व्ययों को पूरा करने के लिए सदस्य देशों से अंशदान का निर्धारण इस प्रकार किया गया है-भारत 32%, पाकिस्तान 25%, नेपाल 11%, बांग्लादेश 11%, श्रीलंका 11%, भूटान 5% और मालदीव 5%।

सार्क सम्मेलन

प्रथम सम्मेलन – सार्क का प्रथम सम्मेलन दिसम्बर, 1985 ई० में बांग्लादेश में हुआ। वहाँ के राष्ट्रपति अताउर रहमान खान को इस संगठन का अध्यक्ष चुना गया। इसमें दक्षिण एशियाई देशों के बीच सहयोग बढ़ाने पर बल दिया गया तथा इस समूचे क्षेत्र में शान्ति बनाये रखने में सहयोग देने के लिए प्रयास करने की इच्छा व्यक्त की गयी।

दूसरा सम्मेलन – सार्क का दूसरा सम्मेलन नवम्बर, 1986 ई० में भारत में हुआ। भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री राजीव गाँधी को इस संगठन का अध्यक्ष चुना गया। सदस्य देशों ने प्रौद्योगिकी, सांस्कृतिक और आर्थिक क्षेत्र में परस्पर सहयोग का दृढ़ संकल्प लिया।

तीसरा सम्मेलन – सार्क का तीसरा सम्मेलन नवम्बर, 1987 ई० में नेपाल में हुआ। नेपाल नरेश महाराजाधिराज मारिख मान सिंह श्रेष्ठ को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इस सम्मेलन में अनेक बातों पर बल दिया गया, जिनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं –

  1. विकासशील देशों का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार और आर्थिक व्यवस्था में समान सहयोग।
  2. विकासशील देशों द्वारा बहुपक्षीय व्यापार को उदार बनाना और संरक्षणवादी अवरोधों को कम करना।
  3. परमाणु अप्रसार सन्धि पर शीघ्र निश्चय।
  4. आतंकवाद को समाप्त करने के कार्य में पारस्परिक सहयोग।

चौथा सम्मेलन – सार्क का चौथा सम्मेलन दिसम्बर, 1988 ई० को पाकिस्तान में हुआ। पाक प्रधानमन्त्री श्रीमती बेनजीर भुट्टो को इसका अध्यक्ष चुना गया। इस सम्मेलन में सार्क नेताओं ने निम्नलिखित बातों पर बल दिया –

  1. क्षेत्र के लोगों के जीवन-स्तर में आमूल सुधार लाने के उद्देश्य से 1989 ई० को मादक पदार्थ निरोधक वर्ष के रूप में मनाने का निश्चय किया गया।
  2. राष्ट्रीय विकास योजनाओं में बाल-कल्याण योजनाओं को प्रमुखता देने सम्बन्धी संकल्प दोहराया गया।
  3. महाशक्तियों से नि:शस्त्रीकरण के प्रयास तेज करने तथा बचे धन से विकासशील देशों की सहायता करने की अपील की गयी।
  4. गुट-निरपेक्ष आन्दोलन को अधिक सुदृढ़ और प्रभावकारी बनाने के लिए इसके काम-काजे में सुधार की माँग की गयी।

पाँचवाँ सम्मेलन  सार्क का पाँचवाँ सम्मेलन 21-23 नवम्बर, 1990 को मालदीव की राजधानी माले में सम्पन्न हुआ। इसमें परस्पर सम्बन्धों को अधिक सुदृढ़ और मैत्रीपूर्ण बनाये जाने पर बल दिया गया।

छठा सम्मेलन – यह कोलम्बो में 21 दिसम्बर, 1991 को आयोजित हुआ। इस सम्मेलन में सर्वप्रमुख रूप से दो प्रस्ताव रखे गये। प्रथम, श्रीलंका के राष्ट्रपति प्रेमदास ने प्रस्ताव रखा कि दक्षिण एशिया को अपनी एक पहचान बनाकर अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर जाना चाहिए। द्वितीय, भारतीय

प्रधानमन्त्री ने सामूहिक आर्थिक सुरक्षा का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव में कहा गया कि विश्व अब राजनीतिक और सैनिक गठबन्धनों से ऊबकर आर्थिक सहयोग के नये-नये आयाम तलाश कर रहा है। अत: दक्षेस देशों को भी प्रकृति से प्राप्त संसाधनों का स्वाभाविक उपयोग करते हुए आपसी सहयोग के आधार पर आर्थिक और वाणिज्यिक विकास के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहिए।

सातवाँ सम्मेलन – यह सम्मेलन 10-11 अप्रैल, 1993 को ढाका में सम्पन्न हुआ। ‘दक्षिण एशिया वरीयता व्यापार समझौता’ इस सम्मेलन की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी, जिसके अनुसार सदस्य देशों को व्यापार में वरीयता दी जाएगी। सम्मेलन में सदस्य देशों के बीच व्यापार बाधाएँ दूर करने से सम्बन्धित ’63 सूत्री ढाका घोषणा-पत्र’ सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया। इस समझौते से दक्षिण एशिया में आर्थिक सहयोग के एक नवीन युग का सूत्रपात हुआ।

सात देशों के राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों ने दक्षेस देशों के बीच आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सहयोग को गतिशीलता प्रदान करने का संकल्प लिया गया।

आठवों सम्मेलन – यह सम्मेलन 2 मई से 4 मई, 1995 को भारत की राजधानी दिल्ली में सम्पन्न हुआ। इसके अध्यक्ष भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री पी० वी० नरसिम्हाराव थे। इस सम्मेलन में आतंकवाद का सम्मिलित रूप से सामना करने और गरीबी को पूर्णतः समाप्त करने का संकल्प लिया गया।

नवम शिखर सम्मेलन (माले, 12-14 मई, 1997) – सदस्य देशों के बीच आर्थिक सम्पर्क बढ़ाने और संगठन को अधिक असरदार बनाने के संकल्प के साथ दक्षेस का नवम् शिखर सम्मेलन प्रारम्भ हुआ। सर्वसम्मति से नव-निर्वाचित अध्यक्ष मालदीव के राष्ट्रपति मैमून अब्दुल गयूम ने सम्मेलन का उद्घाटन किया।

सम्मेलन के अन्त में जारी किये गये घोषणा-पत्र में क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग की दिशा में तीव्र गति से आगे बढ़ने, गरीबी उन्मूलन, बालिका कल्याण और पर्यावरण संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गयी। संगठन के सभी 7 सदस्य देशों ने क्षेत्रीय एकता, एकजुटता और समरसता के संकल्प के साथ तनाव और संघर्ष का मार्ग छोड़कर विश्व में दक्षेस की विशिष्ट पहचान बनाने के लिए सन् 2001 तक आपसी व्यापार को पूर्णतया मुक्त करने का निर्णय लिया गया। इसके साथ ही आतंकवाद व नशीली दवाओं की तस्करी की समाप्ति हेतु संगठित होने की बात कही गयी।

दसवाँ शिखर सम्मेलन (कोलम्बो, 29-31 जुलाई, 1998) – इस सम्मेलन में प्रमुख रूप से तीन बातों पर विचार हुआ। सदस्य देशों के बीच अधिकाधिक सहयोग, 2002 ई० तक सदस्य देशों के बीच स्वतन्त्र व्यापार व्यवस्था और आणविक नि:शस्त्रीकरण। सम्मेलन में दो प्रस्ताव पारित किये गये। पहले प्रस्ताव में विश्वव्यापी आणविक नि:शस्त्रीकरण की आवश्यकता पर बल दिया गया और दूसरे प्रस्ताव में विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों पर लगाये गये आर्थिक प्रतिबन्धों की आलोचना की गयी।

‘दक्षेस’ में भारत को महत्त्वपूर्ण स्थिति प्राप्त है। अपनी सुरक्षात्मक आवश्यकताओं के कारण भारत ने मई, 1998 में जो आणविक परीक्षण किये, पाकिस्तान के अतिरिक्त अन्य सभी दक्षेस देशों ने इन आणविक परीक्षणों का समर्थन किया।

ग्यारहवाँ शिखर सम्मेलन (काठमाण्डू, 4-6 जनवरी, 2002) – सात देशों के शासनाध्यक्षों का यह सम्मेलन मूलतः नवम्बर, 1999 ई० में प्रस्तावित था, किन्तु पाकिस्तान ने सेना द्वारा लोकतान्त्रिक सरकार का तख्ता पलट दिये जाने तथा उसके बाद भारत तथा पाकिस्तान के बीच तनाव की स्थिति बने रहने के कारण यह शिखर सम्मेलन टलता ही रहा। इस सम्मेलन का आयोजन अन्ततः ऐसे समय में हुआ, जब भारत और पाकिस्तान के आपसी सम्बन्धों में गम्भीर तनाव की स्थिति चरम अवस्था में थी।

सम्मेलन की समाप्ति पर जारी 11 पृष्ठों के 56 सूत्रीय ‘काठमाण्डू घोषणा-पत्र’ में सभी सात शासनाध्यक्षों ने आतंकवाद के खात्मे के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की। इस सम्बन्ध में संयुक्त राष्ट्र परिषद् द्वारा पारित प्रस्ताव संख्या 1373 (इसे 11 सितम्बर, 2001 की आतंकी घटना के परिप्रेक्ष्य में पारित किया गया था) के प्रति अपना पूर्ण समर्थन इन शासनाध्यक्षों ने व्यक्त किया। अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए संयुक्त राष्ट्र चार्टर एवं अन्य अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों व सन्धियों के अनुरूप विस्तृत कार्य योजना तैयार करने पर इसमें बल दिया गया।

भारतीय प्रधानमन्त्री ने दक्षेस आन्दोलन को गतिशील बनाने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि आर्थिक एजेण्डे को दक्षेस में सर्वोपरि समझा जाना चाहिए तथा क्षेत्र के देशों के बीच व्यापार संवर्द्धन के लिए प्रयत्न किये जाने चाहिए। इसके लिए ‘दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र का मसौदा 2002 ई० के अन्त तक तैयार करने के लिए कहा गया।

बारहवाँ शिखर सम्मेलन (इस्लामाबाद, 2-6 फरवरी, 2004) – इस्लामाबाद में सम्पन्न इस शिखर सम्मेलन में क्षेत्र के आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक विकास में तेजी लाने तथा सभी व्यक्तियों को सम्मान के साथ जीने और अपनी पूर्ण निहित क्षमता को प्राप्त करने के अवसर प्रदान करने सम्बन्धी मुद्दों पर चर्चा हुई।

तेरहवाँ शिखर सम्मेलन (ढाका 12-13 नवम्बर, 2005) – ढाका में सम्पन्न इस 13वें शिखर सम्मेलन में दक्षेस नेताओं ने सूचना व संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उपलब्ध अवसरों के दोहन के लिए सहयोग पर सहमति जतायी। इसके अतिरिक्त दक्षेस के देशों ने दोहरे करों की व्यवस्था को समाप्त करने, वीजा प्रावधानों को उदार बनाने और दक्षेस पंचाट के गठन के सम्बन्ध में तीन महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किये।।

इसी सम्मेलन में अफगानिस्तान को दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संघ का आठवाँ सदस्य बनाया गया।

चौदहवाँ शिखर सम्मेलन (नई दिल्ली 3-4 अप्रैल, 2007) – नई दिल्ली में सम्पन्न इस 14वें शिखर सम्मेलन में दक्षेस नेताओं ने वर्ष 2008 को अच्छे शासन (Good Governance) के वर्ष के रूप में मनाने का फैसला किया। सम्मेलन में स्वीकार किये गये 8 पृष्ठों के घोषणा-पत्र में गरीबी, आतंकवाद व संगठित अपराधों को क्षेत्रीय सुरक्षा और शान्ति के लिए खतरा मानते हुए संकल्प लिया गया है कि दक्षेस को घोषणा-पत्र के दौरे से निकालकर क्रियान्वयन के चरण में लाया जाएगा।

‘साप्टा’ पर सकारात्मक रुख अपनाते हुए इसके अमल पर घोषणा-पत्र में बल दिया गया है। वस्तुओं के आयात-निर्यात के साथ-साथ सेवाओं के व्यापार को भी इसमें शामिल किये जाने की आवश्यकता इसमें बतायी गयी है। आर्थिक मामलों एवं व्यापारिक क्षेत्र में और अधिक सहयोग के लिए रोडमैप तैयार कर उसे ‘कस्टम यूनियन’ और ‘साउथ एशियन इकोनॉमिक यूनियन’ तक चरणबद्ध ढंग से ले जाने की बात घोषणा-पत्र में स्वीकार की गई है।

पन्द्रहवाँ शिखर सम्मेलन (1-3 अगस्त, 2008) – दक्षेस का पन्द्रहवाँ शिखर सम्मेलन 1-3 अगस्त 2008 तक श्रीलंका की राजधानी कोलम्बो में हुआ। इसकी अध्यक्षता महिन्द्रा राजापक्षे ने की थीं। इस सम्मेलन में सार्क देशों के विकास तथा आतंकवाद के सुरक्षा के मामले में विचारविमर्श किया गया।

सोलहवाँ शिखर सम्मेलन (28-29 अगस्त, 2010) – दक्षेस का सोहलवाँ शिखर सम्मेलन 28-29 अप्रैल, 2010 को भूटान की राजधानी थिम्पू में हुआ था। इसकी अध्यक्षता जिगमे थिनले ने की थी। इस सम्मेलन में आपसी मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध व औद्योगिक विकास से सम्बन्धित मामलों पर विचार-विमर्श किया गया।

सत्रहवाँ शिखर सम्मेलन (10-11 नवम्बर, 2011) – दक्षेस का सत्रहवाँ शिखर सम्मेलन 10-11 नवम्बर, 2011 को मालदीव के अदू नामक शहर में आयोजित किया गया था। इसकी अध्यक्षता मोहम्मद वाहिद हसन मानिक ने की थी। इस सम्मेलन में कृषि, उद्योग आदि मामलों पर विचार-विमर्श किया गया।

18 वाँ शिखर सम्मेलन 2014 में नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में तथा 19वाँ शिखर सम्मेलन का आयोजन सितम्बर, 2016 में पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में किया जाना था, जो नहीं हुआ।

सार्क का महत्त्व – दक्षिण एशियाई क्षेत्र में इस संगठन का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रहा। इसे इस क्षेत्र के इतिहास में नयी सुबह की शुरुआत’ कहा जा सकता है। भूटान नरेश ने तो इसे सामूहिक बुद्धिमत्ता और राजनीतिक इच्छा-शक्ति का परिणाम बताया है, किन्तु व्यवहार में इस संगठन की सार्थकता कम होती जा रही है। सार्क ने पिछले दस वर्षों में एक ही ठोस काम किया है और वह है, खाद्य कोष बनाना। कृषि, शिक्षा, संस्कृति, पर्यावरण आदि 12 क्षेत्रों में सहयोग के लिए सार्क के देश (सिद्धान्ततः सहमत हैं। सार्क देशों में भारत प्रमुख और सर्वाधिक शक्तिशाली देश है, इसलिए कुछ सार्क देश) यह समझने लगे कि इस संगठन में भारत का प्रभुत्व छाया हुआ है। इस स्थिति में तो भारत ने यह स्पष्ट कर दिया था कि हम इस क्षेत्र में अपनी चौधराहट स्थापित करना नहीं चाहते। हमारा उद्देश्य तो मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना है। इसके बावजूद भारत के बांग्लादेश, नेपाल वे श्रीलंका के साथ सम्बन्धों में दरार आ गयी। पाकिस्तान तो भारत के विरुद्ध विष उगलने लगा है। इसके अतिरिक्त सदस्य देशों की शासन-प्रणालियों और नीतियों में भिन्नता तथा द्वि-पक्षीय व विवादास्पद मामलों की छाया ने भी इस संगठन को निर्बल बनाये रखा है। इन कारणों और परस्पर अविश्वास के आधार पर यह संगठन केवल सैद्धान्तिक ढाँचा मात्र रह गया है, उसका कोई व्यावहारिक महत्त्व बने रहना सम्भव नहीं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)

प्रश्न 1.
‘दक्षेस की सार्थकता पर टिप्पणी लिखिए। [2007]
उत्तर :
यद्यपि दक्षेस के गठन को दिसम्बर, 2013 ई० में 28 वर्ष पूर्ण हो जाएँगे, तथापि वर्तमान समय में 8 देशों का यह क्षेत्रीय संगठन अपनी ‘सार्थकता’ सिद्ध करने में प्रायः असफल ही रहा है। . दिसम्बर, 1985 ई० में गठित इस क्षेत्रीय संगठन के प्रत्येक वर्ष शिखर सम्मेलन तथा अन्य स्तर पर बैठकें तो प्रायः होती रही हैं, किन्तु उनकी कार्यवाहियाँ मात्र औपचारिकताएँ बनकर रह जाती हैं। यही एक प्रमुख कारण है कि आठवें दक्षेस शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में ही बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान तथा मालदीव के नेताओं ने अपनी-अपनी दुश्चिन्ताएँ व्यक्त करते हुए कहा कि दक्षेस इस लम्बी अवधि में भी यह कोई विशेष उन्नति नहीं कर पाया है और इसके लिए हमारे आपसी मतभेद ही जिम्मेदार रहे हैं।

दक्षेस के सदस्य देश इस वास्तविकता से भली प्रकार से परिचित हैं कि संगठन के दो बड़े सदस्य देश–भारत एवं पाकिस्तान में जो भारी मतभेद तथा वैमनस्यता है, वही सदस्य देशों की चिन्ता का मुख्य कारण है। इस सन्दर्भ में भारत की भूमिका को सार्क देश अच्छी तरह से जानते हैं, किन्तु वे मात्र संगठन की अखण्डता की सुरक्षार्थ पाकिस्तान के विरुद्ध खुलकर बोलना नहीं चाहते।

सदस्य देश इस कटु सत्य से भली प्रकार परिचित हैं कि पाकिस्तान के सर्वाधिक गहरे मतभेद भारत के साथ ही हैं और उसका सबसे बड़ा कारण ‘कश्मीर’ ही है। इस वास्तविकता को अप्रत्यक्षत: मालदीव के राष्ट्रपति मैमुन अब्दुल गयूम, भूटान नरेश जिग्मे सिंगे वांगचुक और बांग्लादेश की प्रधानमन्त्री बेगम खालिदा जिया ने भी अपने भाषणों में स्पष्ट किया था। इतना ही नहीं, बांग्लादेश की प्रधानमन्त्री बेगम खालिदा जिया ने श्रीलंका की राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंगा के सहयोग से न केवल दक्षेस की भूमिका में बल्कि ‘साप्टा’ के गठन में पाकिस्तानी अडूंगेबाजी को चुनौतीपूर्ण ढंग से नकारने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी और इससे दक्षेस तथा साप्टा’ की सार्थकता पर जो प्रश्न-चिह्न लगे हुए थे, वे सब स्वत: ही समाप्त हो गये।

प्रश्न 2.
दक्षिणी एशिया के देशों में आपसी सहयोग के मार्ग में जो कठिनाइयाँ हैं, उनका वर्णन कीजिए।
या
दक्षेस के मार्ग में आने वाली जटिलताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
आशावादी दृष्टिकोण के साथ-साथ दक्षेस के मार्ग में बहुत-सी ऐसी जटिलताएँ भी हैं जो इस संगठन के महत्त्व पर प्रश्न-चिह्न लगाती हैं, इन्हें अग्रलिखित बिन्दुओं द्वारा दर्शाया जा सकता है।

1. शासन-पद्धति तथा नीतियों में अन्तर – दक्षेस के सदस्य राष्ट्रों में से चार देश इस्लामिक, दो बौद्ध, एक हिन्दू तथा एक धर्मनिरपेक्ष है तथा इनकी शासन पद्धतियों तथा धार्मिक नीतियों में भिन्नता है और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर भी समस्त देशों के दृष्टिकोण भिन्न हैं। दूसरे, इन सम्पन्न सदस्य देशों में आपसी सामंजस्य का अभाव है।

2. पारस्परिक अविश्वास की भावना – दक्षेस के समस्त देश पारस्परिक अविश्वास की भावना से ग्रस्त हैं तथा अपनी समस्याओं के लिए वह निकटतम पड़ोसी देश को दोषी मानते हैं। श्रीलंका, तमिल समस्या को भारत की देन मानता है तो भारत, पंजाब तथा कश्मीर में। उपजे उग्रवाद को पाकिस्तान की देन कहता है।

3. विवादास्पद द्विपक्षीय मुद्दों की छाया – दक्षेस की स्थापना के समय द्विपक्षीय मुद्दों को विचार-विमर्श से बाहर रखा गया था, परन्तु वर्तमान में द्विपक्षीय मुद्दे ही दक्षेस की सार्थकता पर प्रश्न-चिह्न लगा रहे हैं। जब तक भारत और पाकिस्तान के द्विपक्षीय मुद्दों का समाधान नहीं होगा तब तक दक्षेस सदस्यों में सहयोग, सद्भावना और विश्वास का वातावरण नहीं पनप सकता।

4. सन्दिग्ध भारतीय सद्भावना – इसमें कोई सन्देह नहीं कि दक्षेस के सदस्य देशों; जैसे भारत, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान, मालदीव, भूटान तथा अफगानिस्तान में भारत की स्थिति सर्वोच्च है। भारत अन्य सदस्य देशों के साथ पूर्ण सद्भावना रखता है, लेकिन दक्षेस के सदस्य देश भारतीय सद्भावना के प्रति सन्देह प्रकट करते हैं। भारत ने सद्भावना के वशीभूत होकर ही श्रीलंका में 1987 ई० में शान्ति सेना भेजी थी तथा 1988 ई० में मालदीव सरकार के वैधानिक आग्रह पर सेना भेजनी पड़ी थी, लेकिन अमेरिका जैसे शक्ति सम्पन्न देश ने उन्हें ऐसा सोचने को विवश कर दिया कि भारत ‘क्षेत्रीय महाशक्ति’ बनकर उन पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है।

प्रश्न 3.
‘सार्क की स्थापना ने दक्षिण एशिया के राज्यों में पारस्परिक सहयोग के नये युग का सूत्रपात किया है।” स्पष्ट कीजिए।
या
दक्षिण एशिया के देशों में आपसी सहयोग के प्रेरक तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
दक्षिण एशिया के देशों के बीच कुछ ऐसे भौगोलिक, आर्थिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक तत्त्व हैं, जो इन्हें न केवल एक-दूसरे से जोड़ते हैं, वरन् इनमें सहयोग की भावना को भी प्रशस्त करते हैं। दक्षेस के देशों को जोड़ने वाली बातें निम्नलिखित हैं –

1. भौगोलिक तत्त्व दक्षेस के देश समान भूगोल से ऐसे जुड़े हुए हैं कि इनके लिए एक-दूसरे से कटकर रहना सम्भव नहीं है। हिमालये, हिमालय से निकलने वाली नदियाँ और हिन्द महासागर ऐसी ही साझा कड़ियाँ हैं।

2. आर्थिक तत्त्व दक्षिण एशिया स्वयं में एक विशाल मण्डी है और सम्भावना इस बात की है। कि परस्पर आर्थिक सहयोग से इस क्षेत्र के सभी देशों को बहुत अधिक लाभ होंगे। उदाहरण के लिए, यह क्षेत्र समय पाकर बांग्लादेश के जूट; श्रीलंका, मालदीव और भारत के नारियल; बांग्लादेश और भारत के चावल; पाकिस्तान और भारत के गेहूं; नेपाल, भूटान और भारत के फलों एवं सूखे मेवों, खनिजों एवं मसालों की विशाल मण्डी का रूप ले लेगा।

3. ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक तत्त्व दक्षेस के देश एक ही इतिहास और संस्कृति से जुड़े हुए हैं। इन देशों में कई सामान्य रीति-रिवाज भी हैं। उदाहरण के लिए, भारत के पड़ोसी देशों में जो भाषाएँ बोली जाती हैं उनकी जड़े भारत में हैं। हिन्दी, उर्दू, तमिल तथा बांग्ला ऐसी ही भाषाएँ हैं; हिन्दू, बौद्ध तथा इस्लाम इन देशों के साझा धर्म हैं।

4. अन्य तत्त्व ये मुख्यतया निम्न प्रकार हैं –

  1. दक्षेस ने अपने जीवन के अल्पकाल में ही सहयोग के अनेक क्षेत्रों की पहचान कर ली है। ये क्षेत्र हैं – विज्ञान, तकनीकी ज्ञान, दूर संचार, यातायात, कृषि, ग्रामीण विकास, वन विकास, मौसम विज्ञान और संस्कृति आदि। इससे आशा की जाती है कि संगठन व्यापार, उद्योग, वित्त, मुद्रा और ऊर्जा आदि क्षेत्रों में भी सहयोग का विकास कर लेगा।
  2. विविध केन्द्रों की स्थापना से, जैसा कि मौसम केन्द्र, कृषि केन्द्र आदि से सूचनाओं का आदान-प्रदान होगा जो सहयोग को बढ़ावा देगा।
  3. दक्षेस के सभी देश निर्गुट आन्दोलन के सदस्य हैं। ये सभी देश शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धान्त में विश्वास करते हैं। यह तत्त्व क्षेत्र में शान्ति भावना को सुदृढ़ कर सकता

उपर्युक्त तत्त्वों से स्पष्ट है कि सार्क की स्थापना ने दक्षिण एशिया के राज्यों में पारस्परिक सहयोग के नये युग का सूत्रपात किया है।

प्रश्न 4.
दक्षेस (सार्क) पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
दक्षेस (सार्क) को ‘दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (South Asian Association for Regional Cooperation) के नाम से सम्बोधित किया जाता है। सार्क का पहला सम्मेलन 7 व 8 दिसम्बर, 1985 ई० को ढाका में सात देशों के राष्ट्राध्यक्षों के सम्मिलित होने पर प्रारम्भ हुआ था। ये सात देश थे-भारत, पाकिस्तान, बंग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका और मालदीव। दक्षिण एशिया के सात देशों का एक साथ एकत्रित होना, क्षेत्रीय सहयोग का प्रथम अवसर था। दक्षेस की स्थापना के समय सातों देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने काफी सहयोग बढ़ाने तथा तनाव घटाने के सम्बन्ध में ओजस्वी भाषण दिए। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि सातों देशों के बीच सद्भावना तथा भ्रातृत्व भाव से एक नवीन अध्याय प्रारम्भ होगा। सबने यह इच्छा व्यक्त की कि सातों राष्ट्रों के अध्यक्षों का मिलन एक युगान्तकारी घटना है और यह नए युग का प्रारम्भ है। दक्षिण एशिया के संघ के राष्ट्रों में लगभग 140 करोड़ स्त्री-पुरुष निवास करते हैं। अत: यह विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या वाला क्षेत्र स्वीकार किया जाता है। इस क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों, मानव शक्ति, प्रतिभा, बुद्धिमत्ता, वीरता आदि की न्यूनता नहीं है, किन्तु निर्धनता, अशिक्षा, कुपोषण अदि की समस्याएँ हैं। भारत तो खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर है जबकि अन्य छह देशों को खाद्यान्न बाहर से मॅगाना पड़ता है।

दक्षेस या सार्क का विकास धीरे-धीरे हुआ है। दक्षिण एशियाई देशों का क्षेत्रीय संगठन बनाने का विचार बंगलादेश के पूर्व राष्ट्रपति जिया उर रहमान के मस्तिष्क में आया। उन्होंने 1977 से 1980 ई० की अवधि में भारत, पाकिस्तान, नेपाल तथा श्रीलंका की यात्रा की। उसके पश्चात् उन्होंने सार्क देशों के लिए घोषणा-पत्र (कार्य-योजना दस्तावेज) का निर्माण कराया। दक्षेस के विदेश सचिवों की एक बैठक अप्रैल 1981 ई० में बंगलादेश में हुई। सन् 1983 ई० में एक बैठक नई दिल्ली में हुई। तत्पश्चात् 1984 ई० में मालदीव और 1985 ई० में भूटान में बैठकें हुईं। इस प्रकार सार्क का संवैधानिक रूप तैयार किया गया। अब अफगानिस्तान के सदस्य बन जाने के पश्चात् सार्क देशों की संख्या 8 हो गई है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
दक्षेस (सार्क) के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
दक्षेस (सार्क) के उद्देश्य निम्नवत् हैं –

  1. दक्षिण एशियाई क्षेत्र की जनता के कल्याण एवं उसके जीवन-स्तर में सुधार करना।
  2. क्षेत्र के आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक विकास में तेजी लाना और सभी व्यक्तियों को सम्मान के साथ जीने और अपनी पूर्ण निहित क्षमता को प्राप्त करने के अवसर देना।
  3. दक्षिण एशिया के देशों की सामूहिक आत्म-निर्भरता में वृद्धि करना।
  4. आपसी विश्वास व सूझ-बूझ द्वारा एक-दूसरे की समस्याओं का मूल्यांकन करना।
  5. आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में सक्रिय सहयोग एवं पारस्परिक सहायता में वृद्धि करना।
  6. दूसरे विकासशील देशों के साथ सहयोग को मजबूत करना।
  7. सामान्य हित के मामलों पर अन्तर्राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय संगठनों के साथ सहयोग करना।

प्रश्न 2.
दक्षेस चार्टर एवं ढाका घोषणा-पत्र में वर्णित चार उद्देश्य बताइए।
उत्तर :
दक्षेस के चार्टर में 10 धाराएँ हैं जिनमें संघ के उद्देश्यों, सिद्धान्तों और संस्थाओं की परिभाषा की गयी है। अनुच्छेद 1 के अनुसार संगठन (दक्षेस) के प्रमुख चार उद्देश्य इस प्रकार है –

  1. दक्षिण एशिया की जनता के कल्याण को बढ़ावा देना तथा उनके जीवन-स्तर में सुधार करना।
  2. क्षेत्र में आर्थिक उपज, सामाजिक प्रगति और सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देना और प्रत्येक व्यक्ति को आदर, सम्मान के साथ जीवित रहने का अवसर प्रदान करना तथा उन्हें पूर्ण निहित शक्ति को प्राप्त करने का अवसर प्रदान करना।
  3. पारस्परिक विश्वास तथा समझदारी द्वारा एक-दूसरे की समस्याओं को समझना।
  4. दक्षिण एशियाई देशों के सामूहिक आत्म-विश्वास को बढ़ावा और बल देना।

प्रश्न 3.
हिमतक्षेस सम्मेलन (हिन्द महासागर तटीय क्षेत्र सहयोग सम्मेलन) 2002 ई० के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :
हिन्द महासागर तटवर्ती राष्ट्र क्षेत्रीय सहयोग संगठन (हिमतक्षेस) की दो दिनों तक चली बैठक 23 जनवरी, 2002 को मस्कट में सम्पन्न हुई। इस बैठक में भारत के इस सुझाव को मान लिया गया कि संगठन के एजेण्डे में विवादित राजनीतिक मुद्दे सम्मिलित नहीं होंगे। । सम्मेलन में भारत, ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया, इण्डोनेशिया, श्रीलंका, सिंगापुर, ओमान, यमन, तंजानिया, केन्या, मोजाम्बिक, मेडागास्कर, दक्षिण अफ्रीका और मॉरीशस तथा 5 नये सदस्य देशों में बांग्लादेश, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात, सेशेल्स व थाईलैण्ड ने भाग लिया। संघ के सदस्य देशों की संख्या 19 हो गयी है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
‘दक्षेस का पूरा नाम क्या है?
उत्तर :
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ।

प्रश्न 2.
‘दक्षेस के कौन-कौन से सदस्य देश हैं? [2007, 12]
उत्तर :
भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, मालदीव, भूटान, बांग्लादेश तथा अफगानिस्तान।

प्रश्न 3.
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (दक्षेस) का मुख्यालय किस नगर में है? [2008, 09]
उत्तर :
काठमाण्डू (नेपाल) में।

प्रश्न 4.
दक्षेस (सार्क) की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर :
7 दिसम्बर, 1985 को।

प्रश्न 5.
दक्षेस की स्थापना के मूल में किस राजनेता का नाम आता है?
उत्तर :
जिया उर रहमान (तत्कालीन राष्ट्रपति, बांग्लादेश)।

प्रश्न 6.
दक्षेस का चौदहवाँ शिखर सम्मेलन कहाँ आयोजित हुआ था?
उत्तर :
3 से 4 अप्रैल, 2007 को यह शिखर सम्मेलन नई दिल्ली में आयोजित हुआ था।

प्रश्न 7.
सार्क संगठन (दक्षेस) के किन्हीं चार सदस्य देशों के नाम लिखिए। [2010, 11, 13]
उत्तर :

  1. श्रीलंका
  2. भारत
  3. बांग्लादेश तथा
  4. नेपाल।

प्रश्न 8.
भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित दो पड़ोसी देशों के नाम लिखिए। [2016]
उत्तर :
भूटान तथा बांग्लादेश।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

1.
सार्क के सदस्य राष्ट्रों की कुल संख्या कितनी है ? [2013]
(क) 10
(ख) 8
(ग) 7
(घ) 12

2. साप्टा समझौता किन राष्ट्रों के संगठन के तत्त्वावधान में हुआ था ?
(क) राष्ट्रमण्डल
(ख) सार्क
(ग) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन
(घ) आसियान

3. निम्नलिखित में से सार्क (दक्षेस) का सदस्य कौन-सा है?
(क) चीन
(ख) तिब्बत
(ग) म्यांमार
(घ) भूटान

4. सार्क की स्थापना कब की गई [2015, 16]
(क) 1950
(ख) 1970
(ग) 1985
(घ) 1980

5. सार्क का मुख्यालय किस देश में [2008, 12]
(क) भारत
(ख) पाकिस्तान
(ग) नेपाल
(घ) बांग्लादेश

6. दक्षेस का मुख्यालय कहाँ है [2007]
(क) नई दिल्ली
(ख) ढाका
(ग) कोलम्बो
(घ) काठमाण्डू

7. निम्नलिखित में से कौन-सा देश दक्षेस का सदस्य देश नहीं है ?
(क) भारत
(ख) पाकिस्तान
(ग) नेपाल
(घ) अमेरिका

8. दक्षेस का छठा शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ था
(क) कोलम्बो में
(ख) ऑस्ट्रेलिया में
(ग) भारत में
(घ) इराक में

उत्तर :

  1. (ख) 8
  2. (ख) सार्क
  3. (घ) भूटान
  4. (ग) 1985
  5. (ग) नेपाल
  6. (घ) काठमाण्डू
  7. (घ) अमेरिका
  8. (क) कोलम्बो में।

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