UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 1 Principles of Origin of State (राज्य की उत्पत्ति के सिद्धान्त)

By | May 29, 2022

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 1 Principles of Origin of State (राज्य की उत्पत्ति के सिद्धान्त)

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 1 Principles of Origin of State (राज्य की उत्पत्ति के सिद्धान्त)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1.
राज्य की उत्पत्ति के सामाजिक समझौता सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
उत्तर
राज्य की उत्पत्ति का सामाजिक समझौता सिद्धान्त
राज्य की उत्पत्ति के सम्बन्ध में इस सिद्धान्त का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसे सामाजिक अनुबन्ध का सिद्धान्त’ भी कहते हैं। आधुनिक काल में इस सिद्धान्त के प्रणेता हॉब्स, लॉक एवं रूसो हैं। जिन्होंने इस सिद्धान्त के अन्तर्गत यह कल्पना की है कि मानव-समाज के विकास के इतिहास में एक ऐसी अवस्था थी जब राज्य नहीं थे, वरन् कुछ प्राकृतिक नियमों के अनुसार ही लोग अपना जीवन व्यतीत करते थे। इसलिए इस सिद्धान्त के प्रवर्तकों ने इस अवस्था को प्राकृतिक अवस्था’ का नाम दिया है।

हॉब्स के अनुसार, “प्राकृतिक अवस्था में लोग जंगली, असभ्य, झगड़ालू तथा स्वार्थी थे। इसलिए वे सभी आपस में हर समय झगड़ते रहते थे। इस कारण प्राकृतिक अवस्था असहनीय थी।”…..” इस काल में मानव-जीवन एकाकी, बर्बर, सम्पत्तिहीन, दु:खपूर्ण तथा अल्पकालिक था।” लॉक के अनुसार, “यह अवस्था असुविधाजनक थी।” रूसो के अनुसार, “प्रारम्भ में प्राकृतिक अवस्था आदर्श थी, परन्तु यह आदर्श अवस्था कुछ कारणों से दूषित हो गई। अतः यह अवस्था असहनीय हो गई। इस प्रकार, असहनीय अवस्था से छुटकारा पाने के लिए लोगों ने आपस में समझौता किया, जिसके फलस्वरूप राज्य का उदय हुआ। राज्य के निर्माण से प्राकृतिक नियमों के स्थान पर मानव-निर्मित कानून लागू हुए और प्राकृतिक अधिकारों के स्थान पर राज्य ने सबको समान नागरिक या राजनीतिक अधिकार प्रदान किए।

गैटिल के अनुसार, “राजभक्तों द्वारा प्रतिपादित दैवी सिद्धान्त के विरोध में 17वीं तथा 18वीं शताब्दी के क्रान्तिकारी विचारकों ने लोकप्रिय राजसत्ता, व्यक्तिगत स्वतन्त्रता एवं क्रान्ति के अधिकारों का प्रचार करने के लिए सामाजिक समझौते के सिद्धान्त की शरण ली।”

इस सिद्धान्त की इन तीन विद्वानों हॉब्स, लॉक और रूसो ने बड़ी विस्तृत एवं वैज्ञानिक व्याख्या की है, परन्तु अपने-अपने ढंग से। इसीलिए कहीं-कहीं तीनों में पर्याप्त मतभेद भी हैं। किन्तु तीनों ने निष्कर्ष एक ही निकाला है। तीनों का ही मत है कि प्राकृतिक अवस्था के कुछ दोषों तथा असुविधा के कारण ही राज्य का निर्माण हुआ। संक्षेप में कहा जा सकता है कि इस सिद्धान्त के अनुसार राज्य दैवी संस्था न होकर एक मानवीय संस्था है।

आलोचना- इस सिद्धान्त की अनेक विद्वानों ने कटु आलोचना की है। इस सिद्धान्त की आलोचना के निम्नलिखित आधार हैं।

  1. यह सिद्धान्त कल्पना पर आधारित है। इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता है।
  2. यह सिद्धान्त तर्कसंगत भी नहीं है। इस सिद्धान्त के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में लोग जंगली एवं असभ्य थे। परन्तु जंगली एवं असभ्य लोगों के मन में अचानक राज्य-निर्माण की बात कैसे आई और उन्होंने कैसे कानून और अधिकार आदि का निर्माण किया? इन परस्पर विरोधी प्रश्नों का समुचित उत्तर इस सिद्धान्त के प्रतिपादकों के द्वारा स्पष्ट नहीं किया जा सका है।
  3. कुछ विद्वानों ने इस सिद्धान्त को ‘भयानक’ कहकर कड़ी आलोचना की है। उनका मत है। कि यह सिद्धान्त लोगों को राज्य के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए प्रोत्साहित करता है। उनके मतानुसार यह सिद्धान्त न तो इतिहास से प्रमाणित किया जा सकता है और न उच्च राजनीतिक दर्शन के विषय में प्रकाश डालता है।
  4. राज्य एक कृत्रिम संस्था न होकर प्राकृतिक संस्था है और दीर्घकालीन विकास का परिणाम है।
  5. यह समझौता वर्तमान समय में मान्य नहीं है; क्योंकि कोई भी समझौता केवल उन्हीं लोगों पर लागू होता है जिनके मध्य वह किया जाता है।
  6. यह सिद्धान्त मानव-स्वभाव के सन्दर्भ में अशुद्ध दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।

महत्त्व- इस सिद्धान्त का महत्त्व निम्नलिखित दृष्टियों से है-

  1. यह सिद्धान्त व्यक्ति को विशेष महत्त्व देता है।
  2. यह सिद्धान्त निरंकुश एवं स्वेच्छाधारी शासन का विरोध करता है।
  3. इस सिद्धान्त ने लोकतन्त्र के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
  4. यह सिद्धान्त लोकतन्त्र और स्वतन्त्रता का पोषक है।

प्रश्न 2.
राज्य की उत्पत्ति के ऐतिहासिक अथवा विकासवादी सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर
राज्य की उत्पत्ति का ऐतिहासिक अथवा विकासवादी सिद्धान्त
राज्य की उत्पत्ति के सभी सिद्धान्तों में यह सिद्धान्त, राज्य की उत्पत्ति की वास्तविक तथा सही व्याख्या करता है। इस सिद्धान्त के प्रवर्तकों का मत है कि राज्य की उत्पत्ति किसी निश्चित समय में नहीं हुई, वरन् मानव-इतिहास के विकास के साथ-साथ इसका भी विकास होता गया और राज्य का वर्तमान रूप सामने आया। वास्तव में, इतिहास में इस बात का कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता है कि पहले समाज में राज्य नहीं था तथा बाद में मनुष्यों ने राज्य का निर्माण किया। जब मनुष्य आखेट अवस्था में था, उस समय भी वह समाज में ही रहता था, परन्तु वह समाज की अविकसित अवस्था थी। फिर मनुष्य चरागाह युग में आया और फिर कृषि युग में। तत्पश्चात् औद्योगिक युग की सभ्यता में मनुष्य ने प्रवेश किया। मनुष्य के विकास के साथ-साथ उसके समाज एवं राज्य का स्वरूप भी बदलता गया। अतः राज्य की उत्पत्ति के सम्बन्ध में यही सिद्धान्त अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है। लीकॉक के शब्दों में, “राज्य एक आविष्कार नहीं है, अपितु वह एक विकासपूर्ण वस्तु है। मनुष्य की विकासपूर्ण प्रवृत्ति के कारण ही राज्य की उत्पत्ति हुई।”

विकासवादी सिद्धान्त के प्रवर्तकों का मत है कि राज्य की उत्पत्ति धीरे-धीरे क्रमिक विकास के परिणामस्वरूप हुई है। प्रो० बर्गेस का भी मानना है, “राज्य अत्यन्त अपूर्ण प्रारम्भिक अवस्थाओं में से धीरे-धीरे कुछ उन्नत अवस्थाओं में होकर मानवता के पूर्ण सार्वभौमिक संगठन की दशा में मानव-समाज का क्रमिक विकास है। ऐसा ही विचार गार्नर ने व्यक्त किया है, “राज्य न तो ईश्वर की कृति है और न किस उच्चतर शक्ति का परिणाम, न किसी समझौते की सृष्टि है और न ही परिवार का विस्तार-मात्र, वरन् यह ऐतिहासिक विकास का परिणाम है।”
राज्य के क्रमिक विकास में जिन तत्त्वों ने योगदान दिया है, उनका वर्णन निम्नलिखित है-

1. रक्त-सम्बन्ध – राज्य के विकास में सहायक प्रथम तत्त्व रक्त-सम्बन्ध है। मनुष्य का प्रारम्भिक संगठन, परिवार, रक्त के सम्बन्ध के आधार पर ही बना। धीरे-धीरे बहुत-से परिवारों ने मिलकर कबीलों और कबीलों ने कालान्तर में राज्य का रूप धारण कर लिया। मैकाइवर के अनुसार, “रक्त-सम्बन्ध से समाज की स्थापना हुई और समाज से राज्य की।”

2. मनुष्य की स्वाभाविक सामाजिक प्रवृत्ति – मानव स्वभाव से एक सामाजिक और राजनीतिक प्राणी है और समूह में रहने की प्रवृत्ति ने ही राज्य को जन्म दिया है। जॉन मार्ने के अनुसार, “राज्य के विकास का वास्तविक आधार मनुष्य के जीवन में विद्यमान अन्तर्जात प्रवृत्ति रही है।”

3. धर्म – धर्म ने भी मानव-अस्तित्व के प्रारम्भिक काल में लोगों को सामाजिक व राजनीतिक एकता के सूत्र में बाँधने का कार्य किया। इस प्रकार राज्य के विकास में धर्म ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। गैरेट के अनुसार, “राजनीतिक विकास के प्रारम्भिक एवं बड़े कठिन काल में धर्म में बर्बरतापूर्ण अराजकता का दमन कर सका और मानव को आदर भाव तथा आज्ञापालन
की शिक्षा प्रदान कर सका तथा जंगलों की अराजकता को नष्ट कर सका।”

4. आर्थिक आवश्यकताएँ – राज्य की उत्पत्ति के विकास में मनुष्य की आर्थिक आवश्यकताओं ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। मनुष्य ने अपनी आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सम्पत्ति संग्रह करना प्रारम्भ कर दिया। सम्पत्ति के कारण ही संघर्ष हुए और इन संघर्षों को समाप्त करने के लिए कुछ नियमों का निर्माण किया गया। इन नियमों का पालन कराने के लिए यह एक सार्वभौमिक संस्था स्थापित हुई, जो राज्य कहलायी। मार्क्स के अनुसार, “राज्य आर्थिक परिस्थितियों की ही अभिव्यक्ति है।

5. राजनीतिक चेतना – राज्य के विकास में राजनीतिक चेतना का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है।
राजनीतिक चेतना से तात्पर्य यह है कि राज्य के लोगों में राजनीतिक संस्थाओं के माध्यम से किसी उद्देश्य की प्राप्ति की भावना होनी चाहिए। अत: राज्य की उत्पत्ति एक निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हुई। गिलक्राइस्ट के अनुसार, “राज्य के निर्माण के सभी तत्त्वों की तह में, जिनमें रक्त-सम्बन्ध तथा धर्म भी शामिल है, राजनीतिक चेतना सबसे प्रमुख तत्त्व है।”

6. शक्ति – शक्ति तथा युद्ध ने भी राज्य के विकास में योग दिया है। प्राचीन समय में शक्तिशाली लोगों ने दुर्बलों पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया और वे स्वयं शासक बन बैठे। अनेक कबीलों के शासकों ने सत्ता प्राप्त करके राज्य की स्थापना की। जैक्स के अनुसार, “जन समाज को राजनीतिक समाज में परिवर्तन शान्तिपूर्ण उपायों से नहीं वरन् युद्ध द्वारा हुआ।”

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)

प्रश्न 1.
राज्य की उत्पत्ति के दैवी सिद्धान्त की विवेचना संक्षेप में कीजिए।
उत्तर
राज्य की उत्पत्ति का दैवी सिद्धान्त
इस सिद्धान्त के अनुसार राज्य का निर्माण ईश्वर ने किया है। राजा ईश्वर का प्रतिनिधि होता है और उसी की इच्छानुसार शासन करता है। उसे समस्त शक्तियाँ तथा अधिकार ईश्वर से ही प्राप्त होते हैं। वह प्रजा के प्रति नहीं, बल्कि ईश्वर के प्रति भी उत्तरदायी होता है। राजा की आज्ञा का उल्लंघन ईश्वर की आज्ञा का उल्लंघन है।

प्राचीन काल में भारत, मिस्र, यूनान तथा चीन आदि देशों में इस सिद्धान्त की विशेष मान्यता थी और राजा को ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था। प्राचीन तथा मध्यकाल में राज्य पर धर्म का प्रभाव था। अतः धार्मिक दृष्टि से इस सिद्धान्त को मान्यता मिली। ईसाई धर्म के अनुसार, “राज्य की उत्पत्ति ईश्वर की इच्छा के अनुसार हुई है।’ यहूदियों के अनुसार, “ईश्वर ने स्वयं राज्य की स्थापना की है।” सेण्ट पॉल के शब्दों में, “राजा को ईश्वर ने बनाया है। अतः ईश्वर ने ही राज्य का निर्माण किया है।”

संक्षेप में इस सिद्धान्त के अनुसार राज्य ईश्वरीकृत है, धरती पर ईश्वर का अवतार है, राज्य के पास दैवीय अधिकार हैं, राजा की आज्ञा का पालन करना जनता को कर्तव्य है और उसकी आलोचना करना महापाप है। ऑक्सबर्ग के अनुसार इस सिद्धान्त का मुख्य आधार है–संसार में समस्त सत्ता, सरकार तथा व्यवस्था ईश्वर ने उत्पन्न की है और स्थापित भी की है।

प्रश्न 2.
राज्य की उत्पत्ति के मातृक तथा पैतृक सिद्धान्त का परीक्षण कीजिए।
उत्तर
राज्य की उत्पत्ति का मातृक तथा पैतृक सिद्धान्त
भूमि की उत्पत्ति के इन सिद्धान्तों के अनुसार राज्य परिवार का विकसित रूप है। इस सिद्धान्त के समर्थकों के अनुसार आदिकाल में परिवार पितृ-प्रधान नहीं, वरन् मातृ-प्रधान थे। इनके अनुसार वंशानुक्रम पुरुष के नाम से न चलकर स्त्री के नाम से चलता था। माता की मृत्यु के बाद सम्पत्ति भी उसकी सबसे बड़ी लड़की को ही मिलती थी। जे०जे० वेशोफैन के अनुसार, “प्रारम्भिक समाज में न केवल वंश परम्परा माता से होती थी और सम्पत्ति का अधिकार स्त्री को ही प्राप्त होता था, वरन् समाज की स्त्रियों की स्थिति भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण थी।” मातृक सिद्धान्त के अनुसार प्रारम्भिक समाज में कबीले गोत्र में, गोत्र परिवार में, परिवार व्यक्तियों में और व्यक्ति समाज में बँट गए जिससे राज्य की उत्पत्ति हुई।

पैतृक सिद्धान्त के प्रमुख व्याख्याकार सर हेनरीमैन हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार प्रारम्भ में मनुष्य परिवार में रहक़र जीवन व्यतीत करता था। परिवार के समस्त सदस्यों पर पिता का पूर्ण नियन्त्रण रहता था। इस प्रकार के परिवार पैतृक कहलाते थे। कालान्तर में ऐसे परिवार विकसित होकर गोत्र, कबीले और जन में परिवर्तित हो गए। कबीलों से मिलकर राज्य का निर्माण हुआ।

  1. इन सिद्धान्तों के पीछे ऐतिहासिक प्रमाणों का अभाव है।
  2. इन सिद्धान्तों में राज्य की उत्पत्ति की अपेक्षा परिवार की उत्पत्ति की व्याख्या की गई है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
क्या राज्य एक दीर्घ विकास का परिणाम है?
उत्तर
यह सही है कि राज्य एक दीर्घ विकास का परिणाम है। धीरे-धीरे उसका विकास हुआ है। अनेक तत्त्वों ने इसके विकास में सहयोग दिया है; जैसे–रक्त सम्बन्ध, धर्म, वर्ग-संघर्ष तथा युद्ध, राजनीतिक चेतना, आर्थिक आवश्यकताएँ आदि। मनुष्य का आदिम सामाजिक संगठन सरल ढंग का था। वातावरण के प्रभाव से बदली हुई परिस्थितियों के कारण वह जटिल हो गया। इसी से आगे चलकर राजनीतिक संगठन का उदय हुआ। इसी ने विकसित होकर आधुनिक राज्य का रूप धारण कर लिया।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
राज्य की उत्पत्ति के मुख्य सिद्धान्तों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. सामाजिक समझौता सिद्धान्त
  2. ऐतिहासिक तथा विकासवादी सिद्धान्त,
  3. दैवी सिद्धान्त तथा
  4. मातृ-सत्तात्मक तथा पितृसत्तात्मक सिद्धान्त।

प्रश्न 2.
समाज को सुचारु रूप से चलाने के लिए किसकी आवश्यकता होती है?
उत्तर
समाज को सुचारु रूप से चलाने के लिए कुछ नियमों की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 3.
राज्य की उत्पत्ति के दैवी सिद्धान्त के अनुसार राज्य का निर्माण किसने किया है?
उत्तर
राज्य की उत्पत्ति के दैवी सिद्धान्त के अनुसार राज्य का निर्माण ईश्वर ने किया है।

प्रश्न 4.
सामाजिक समझौते के सिद्धान्त का सार किन तीन तत्त्वों में निहित है?
उत्तर

  1. प्राकृतिक अवस्था,
  2. समझौता तथा
  3. नागरिकों का समाज।

प्रश्न 5.
राज्य के विकास के तीन तत्त्वों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. रक्त सम्बन्ध,
  2. धर्म तथा
  3. राजनीतिक चेतना।

प्रश्न 6.
‘सामाजिक समझौता (सोशल कॉण्ट्रेक्ट) नामक पुस्तक का लेखक कौन था? (2016)
उत्तर
रूसो।

प्रश्न 7.
प्लेटो के अनुसार एक आदर्श राज्य की जनसंख्या कितनी होनी चाहिए? (2016)
उत्तर
दस हजार (10000)।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

1. प्राकृतिक अवस्था में मानव-जीवन था
(क) एकाकी
(ग) सम्पत्तिहीन
(ख) बर्बर
(घ) ये सभी

2. राज्य की उत्पत्ति का सबसे मान्य सिद्धान्त कौन-सा है?
(क) विकासवादी सिद्धान्त
(ख) सामाजिक समझौता सिद्धान्त
(ग) मातृक तथा पैतृक सिद्धान्त
(घ) दैवी सिद्धान्त

3. किसके मतानुसार ईश्वर ने स्वयं राज्य की स्थापना की है?
(क) यहूदियों के
(ख) हिन्दुओं के
(ग) मुस्लिमों के
(घ) सिक्खों के

4. पैतृक सिद्धान्त के प्रमुख व्याख्याकार कौन हैं?
(क) जे० जे० वेशोफैन
(ख) सर हेनरीमैन
(ग) स्मिथ
(घ) रूसो

5. सामाजिक समझौता सिद्धान्त के प्रणेता हैं-
(क) हॉब्स
(ख) लॉक
(ग) रूसो
(घ) ये सभी

उत्तर-

1. (घ) ये सभी,
2. (क) विकासवादी सिद्धान्त,
3. (क) यहूदियों के,
4. (ख) सर हेनरीमैन,
5. (घ) ये सभी।

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