UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 12 Tribals in India: Problems and Solution (भारत में जनजातियाँ-समस्याएँ एवं समाधान)

By | May 29, 2022

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 12 Tribals in India: Problems and Solution (भारत में जनजातियाँ-समस्याएँ एवं समाधान)

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 12 Tribals in India: Problems and Solution (भारत में जनजातियाँ-समस्याएँ एवं समाधान)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1.
अनुसूचित जनजातियों से आप क्या समझते हैं? भारत की अनुसूचित जनजातियों की प्रमुख समस्याओं की विवेचना कीजिए। [2007, 12, 13, 14, 16]
या
भारत में जनजातियों की प्रमुख समस्याओं की विवेचना कीजिए। उनकी दशा में सुधार लाने के लिए दो उपाय लिखिए। [2014]
या
भारत में जनजातियों की प्रमुख समस्याओं की विवेचना कीजिए तथा उनके समाधान हेतु आवश्यक उपाय सुझाइए। [2014, 15]
उत्तर :
आदिवासी अथवा जनजाति का अर्थ
आदिवासी को जिन अन्य नामों से जाना जाता है, उनमें वन जाति, वनवासी पहाड़ी, आदिम जाति तथा अनुसूचित जनजाति प्रमुख हैं। अनुसूचित जनजातियों में केवल उन जनजातियों को सम्मिलित किया जाता है, जिनको संविधान की अनुसूची में सम्मिलित किया गया है। आदिवासी शब्द को मानवशास्त्र की भाषा में एक सामाजिक समूह के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो उसे अन्य जातियों से अलग करती है। इस समूह को एक विशिष्ट नाम होता है तथा इसमें रहने वाले आदिवासियों में सामान्य संस्कृति पायी जाती है। यह समूह एक पृथक् भौगोलिक क्षेत्र (सामान्यतः जंगलों, पहाड़ों या बीहड़ क्षेत्रों) में निवास करता है। प्रमुख विद्वानों ने इसे निम्नलिखित रूप में परिभाषित करने का प्रयास किया है

  1. गिलिन एवं गिलिन के अनुसार, “स्थानीय आदिवासियों के किसी भी ऐसे संग्रह को हम जनजाति कहते हैं, जो एक सामान्य क्षेत्र में निवास करता हो, एक सामान्य भाषा बोलता हो तथा सामान्य संस्कृति के अनुसार व्यवहार करता हो।”
  2. बो आस के अनुसार, “जनजाति से हमारा तात्पर्य आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर व्यक्तियों के ऐसे समूह से है, जो सामान्य भाषा बोलता हो तथा बाह्य आक्रमणों से अपनी रक्षा करने के लिए संगठित हो।’
  3. जैकब्स तथा स्टर्न के अनुसार, “एक ऐसा ग्रामीण समुदाय या ग्रामीण समुदायों का ऐसा समूह, जिसकी सामान्य भूमि हो, सामान्य संस्कृति हो, सामान्य भाषा हो और जिस समुदाय के व्यक्तियों का जीवन आर्थिक दृष्टि से एक-दूसरे के साथ ओत-प्रोत हो, जनजाति कहलाता है।”

जनजातियों अथवा आदिवासियों की प्रमुख समस्याएँ
अधिकांश जनजातियों की मूलभूत समस्याएँ अन्य पिछड़ी जातियों के समान ही हैं, परन्तु कुछ की अपनी विशिष्ट समस्याएँ भी हैं, क्योंकि अधिकांश जनजातियाँ सुदूर, ग्रामीण, दुर्गम पहाड़ी या जंगलों (वनों) में रहती हैं। अनुसूचित जनजातियों की समस्याएँ भी सामान्य जनजातियों से मिलतीजुलती हैं। वर्तमान समय में भी उन्हें यातायात, आधुनिक सुख-सुविधा, संचार, आर्थिक विकास, शिक्षा आदि अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। जनजातियों में पायी जाने वाली प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं –

(1) सामाजिक समस्याएँ
भारतीय जनजातीय समाज में निम्नलिखित समस्याएँ प्रमुख रूप से पायी जाती हैं –

  1. जनजातीय लोगों में मद्यपान का प्रचलन दीर्घकाल से विद्यमान है। अत: मद्यपान से न केवल उनमें स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं, वरन् आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण पारिवारिक कलह भी बढ़ गये हैं।
  2. सामाजिक संगठन की समरूपता, श्रम-विभाजन से समाप्त हो चुकी है, जिसके कारण जनजातियों का सामाजिक संगठन कमजोर हुआ है।
  3. जनजातियों में गोत्रीय विवादों जैसी जटिलता पायी जाती है।
  4. जनजातियों में बाल-विवाह पाये जाते हैं।
  5. जनजातियों में भौतिकवादी विश्व की चमक से वेश्यावृत्ति एवं विवाहेत्तर यौन सम्बन्ध की समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं।
  6. जनजातियों में पाये जाने वाले युवागृहों में शिथिलता आ गयी है और उनकी उपादेयता कम हो गयी है।
  7. वधू-मूल्य के कारण मौद्रिक अर्थव्यवस्था में बहुत अधिक वृद्धि हुई है, जिससे जनजातियों में विवाहों में धन का अत्यन्त महत्त्व हो गया है।

(2) आर्थिक समस्याएँ
वर्तमान समय में भूमि तथा वन कानून भारतीय जनजातियों के लिए बहुत कठोर है। उन्हें आजीविका के लिए वनों के प्रयोग की स्वतन्त्रता नहीं है। ठेकेदार, वन अधिकारी तथा साहूकार आदि इनका शोषण करते हैं। इस कारण जनजातियों की परम्परागत अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गयी है तथा आर्थिक रूप से ये बहुत पिछड़ गये हैं। अधिकांश आदिवासी आधुनिक समय में भी गरीबी की रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं। आदिवासी उपयोजना, बीस सूत्री कार्यक्रम, केन्द्रीय सहायता तथा विशेष योजनाओं के बावजूद भी आदिवासियों की आय में गिरावट आ रही है। गरीबी दूर करने की आई० आर० डी० पी० योजना में छोटे तथा सीमान्त आदिवासी किसानों को सरकार तराजू पकड़ा रही है। अशिक्षा तथा शहरी सभ्यता से दूर, जंगलों में निवास करने वाले आदिवासियों का आर्थिक शोषण कोई नयी बात नहीं है। वनों से प्राप्त नैसर्गिक सम्पदा के लिए व्यापारी, ठेकेदार तथा बिचौलियों द्वारा भारी शोषण किया जाता है। वनोत्पन्न पदार्थों; जैसे- चिरौंजी, घी, शहद तथा महँगी वस्तुओं; का उचित मूल्य आदिवासियों को नहीं मिल पाता।

(3) औद्योगीकरण के कारण उत्पन्न समस्याएँ
औद्योगीकरण के नाम पर जो ढाँचा खड़ा किया जा रहा है, उससे सम्पूर्ण देश में बेदखल लोगों की एक लम्बी माँग खड़ी हो गयी है। चाहे कोयले की खाने हों या पन-बिजली, बाँध या अन्य भारी कारखाने तथा उद्योग हों; कुल मिलाकर उनका लाभ कुछ वर्ग विशेष के लोगों को ही प्राप्त होता है। जिस गरीब आदिवासी की जमीन से कोयला निकाला जाता है तथा विकास के लिए जिस निर्माण की बुनियाद रखी जाती है, उसमें आदिवासियों की भूमिका केवल ढाँचे के निर्माण तक ही सीमित रहती है। उसके बाद वे सड़कों पर आ जाते हैं। आदिवासी परिवार की महिलाएँ नवनिर्मित तथा अन्य कॉलोनियों में नौकरानियों के रूप में अपने आपको प्रतिस्थापित करती हैं। औद्योगीकरण का अभिशाप इनके जीवन को बहुत दयनीय बनाता जा रहा है। औद्योगीकरण के कारण इन क्षेत्रों ‘ में अग्रलिखित समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं –

  1. जल प्रदूषण
  2. अनैतिक कार्यों में वृद्धि
  3. बेरोजगारी तथा गरीबी
  4. भारी संयन्त्र के आसपास के आदिवासियों के साथ सामाजिक तथा व्यावसायिक भेदभावपूर्ण व्यवहार
  5. आदिवासियों के जीवन में हस्तक्षेप
  6. भविष्य में पुन: बेदखली
  7. भूमि से वंचित होना
  8. शहरी अपराध; जैसे-डकैती, जुए की प्रवृत्ति में वृद्धि आदि।

(4) धार्मिक समस्याएँ
जनजातियों में धर्म, जादू-टोने आदि का विशेष महत्त्व है। प्रायः बीमार व्यक्ति का इलाज टोनेटोटके से किया जाता है। परन्तु बाह्य प्रभावों एवं सामाजिक संगठनों की सक्रियता के कारण अब जादू-टोने का महत्त्व कम हो गया है। आदिवासियों में धर्मान्तरण की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है। मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा आदि अनेक पूर्वोत्तर राज्यों की 70% आदिवासी जनसंख्या धर्मान्तरण करके ईसाई धर्म स्वीकार कर चुकी है। आदिवासियों के आर्थिक एवं सामाजिक विकास की भूमिका के सन्दर्भ में संसद को धर्मान्तर जैसे विषयों से जूझना पड़ता है।

(5) राजनीतिक समस्याएँ
आदिवासियों में राजनीतिक जागरूकता प्रायः शून्य के बराबर थी परन्तु स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् विभिन्न स्तरों पर आरक्षण, प्राथमिकता, प्रजातान्त्रिक अधिकारों के अन्तर्गत चुनने एवं चुने जाने के अधिकार मिलने से वे भी शासन के भागीदार बन गये हैं। परिणामस्वरूप वे अपनी सामाजिक व आर्थिक समस्याओं के प्रति जागरूक हो गये हैं। परन्तु इसके साथ ही अनेक जनजातियों में विद्रोह, संघर्ष एवं अलगाववादी विचारधारा का जन्म हुआ है। अनेक आदिवासी क्षेत्रों में आर्थिक, औद्योगिक तथा सामाजिक विकास के लिए अलग राज्यों की माँग होने लगी है। बिहार में नवनिर्मित झारखण्ड तथा मध्य प्रदेश में नवनिर्मित छत्तीसगढ़ राजनीतिक अलगाववादी प्रवृत्तियों के ही परिणाम कहे जा सकते हैं।

(6) अशिक्षा एवं निरक्षरता की समस्याएँ
जनजातियों की प्रमुख समस्याएँ अशिक्षा तथा निरक्षरता से सम्बन्धित हैं। इनमें निरक्षरता का प्रतिशत आज भी अन्य जातियों की तुलना में काफी अधिक है। अशिक्षा के कारण ही जनजातीय समाज अनेक कुरीतियों, अन्धविश्वासों एवं गलत परम्पराओं में फंसे हुए हैं। अशिक्षा के कारण ही आदिवासी लोग राष्ट्रीय धारा तथा वैज्ञानिक उन्नति से अलग पड़े हुए हैं।

(7) विस्थापन की समस्या
आदिवासी क्षेत्रों में भारी संयन्त्रों की स्थापना आदिवासियों के समक्ष विस्थापित होने की समस्या उत्पन्न कर देती है। उपलब्ध स्रोतों के अनुसार विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान भारत में 199 कल-कारखानों की स्थापना से 17 लाख ग्रामीण जनता को अपनी भूमि से विस्थापित होना पड़ा है, जिनमें आदिवासियों की जनसंख्या लगभग 8 लाख 10 हजार थी। अनुसूचित जनजाति आयोग, भारत सरकार की छठी रिपोर्ट में बताया गया है कि देश के विभिन्न राज्यों में स्थापित 17 परियोजनाओं के कारण 43,328 आदिवासी परिवार अपनी जमीन से बेदखल किये जा चुके हैं।

(8) हत्या एवं यौन शोषण की समस्याएँ
तेंदूपत्ता उद्योग के लिए ठेकेदार, बिचौलियों तथा दलालों द्वारा गरीब तथा असहाय युवतियों का यौन शोषण करने के मामले प्रकाश में आये हैं।

(9) आवागमन तथा संचार की समस्याएँ
अधिकांश जनजातियाँ दुर्गम भौगोलिक स्थानों में रहती हैं; अत: उनका सम्पर्क आधुनिक समाज से बहुत कम हो पाता है। आधुनिक संचार एवं यातायात के साधनों का विकास बहुत कम हुआ है। इस प्रकार की वातावरण न होने के कारण जनजातियाँ विकसित नहीं हो पाती हैं।

(10) स्वास्थ्य तथा जनसंख्या की समस्याएँ
अधिकांश जनजातियों को स्वास्थ्य-सेवाएँ उपलब्ध नहीं हैं, जब कि तराई, जंगलों आदि में अनेक प्रकार की बीमारियाँ पायी जाती हैं। सरकार ने कुछ प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र खोले भी हैं, परन्तु वहाँ पर्याप्त चिकित्सकीय सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। सफाई की कमी के कारण मलेरिया, पोलिये, चेचक, हैजा आदि बीमारियाँ बढ़ती रहती हैं। स्वास्थ्य की समुचित सुविधाएँ न होने से मृत्यु-दर बहुत अधिक है। इसके साथ ही कुछ जनजातियों; जैसे–भील, गोंड में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है और कोरवा एवं टोडा जनजातियों की जनसंख्या कम होती जा रही है।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि आदिवासी अनेक प्रकार की समस्याओं से ग्रसित हैं। स्वतन्त्रता- प्राप्ति के 70 वर्षों के पश्चात् भी इनकी समस्याओं का कोई ठोस हल नहीं निकाला जा सका है। वर्तमान समय में भी ये अनेक प्रकार के शोषण, अत्याचार तथा उत्पीड़न के शिकार हैं।

[नोट – सरकार द्वारा सुधार के लिए किये उपायों के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 2 का उत्तर देखें।

प्रश्न 2.
भारत में जनजातियाँ मुख्यतः किन भागों में पाई जाती हैं? इनकी समस्याओं के समाधान के लिए सरकार की ओर से क्या उपाय किए जा रहे हैं ? (2007)
उत्तर :
जनजातीय जनसंख्या निवास

आज जनजातियाँ भारत की समस्त जनसंख्या का लगभग 8 प्रतिशत हैं। भारतीय संविधान में 560 जनजातियों का उल्लेख है, जो विभिन्न राज्यों के ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में रहती हैं।

भारतीय संघ के कुछ राज्यों में जनजाति जनसंख्या अधिक है और कुछ राज्यों में कम। झारखण्ड और छत्तीसगढ़ में जनजातीय जनसंख्या सर्वाधिक है। इसके बाद ओडिशा, बिहार, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, पं० बंगाल, आन्ध्र प्रदेश तथा असम राज्य आते हैं। उत्तराखण्ड, केरल एवं तमिलनाडु में जनजाति जनसंख्या अपेक्षाकृत कम है।

प्रतिशत की दृष्टि से मणिपुर, मेघालय, नागालैण्डे, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम ऐसे राज्य हैं, जिनकी समस्त जनसंख्या में जनजाति जनसंख्या अनुपात 20 प्रतिशत से अधिक है।

सरकार की ओर से किए जा रहे उपाय

आन्ध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और राजस्थान के कुछ क्षेत्र अनुच्छेद 244 और संविधान की पाँचवीं अनुसूची के अन्तर्गत ‘अनुसूचित क्षेत्र (Scheduled Areas) घोषित किये गये हैं। इन राज्यों के राज्यपाल अनुसूचित क्षेत्रों की रिपोर्ट प्रतिवर्ष राष्ट्रपति को देते हैं। असम, मेघालय और मिजोरम का प्रशासन संविधान की छठी अनुसूची के उपबन्धों के आधार पर किया जाता है। इसे अनुसूची के अनुसार उन्हें स्वायत्तशासी’ (Autonomous) जिलों में बाँटा गया है। इस प्रकार के 8 जिले हैं-असम के उत्तरी कछार, पहाड़ी जिले तथा मिकिर पहाड़ी जिले, मेघालय के संयुक्त खासी जयन्तिया, जोवाई और गारो पहाड़ी जिले तथा मिजोरम के चकमा, लाखेर और पावी जिले। प्रत्येक स्वायत्तशासी जिले में एक जिला परिषद् होती है जिसमें अधिकतम 30 सदस्य होते हैं। इनमें चार मनोनीत हो सकते हैं और शेष का चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर किया जाता है। इस परिषद् को कुछ प्रशासनिक, विधायी और न्यायिक अधिकार प्रदान किये गये हैं।

जनजातियों के कल्याण हेतु दो राज्यों की स्थापना – वर्ष 2000 ई० में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार राज्यों का विभाजन कर क्रमश: छत्तीसगढ़, उत्तराखण्ड और झारखण्ड की स्थापना की गई है। इनमें से छत्तीसगढ़ और झारखण्ड राज्य की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य इन क्षेत्रों में रहने वाली जनजातियों का विकास ही रहा है।

पृथक जनजाति राष्ट्रीय आयोग की स्थापना – अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु 65वें संवैधानिक संशोधन (1990) के द्वारा अनुसूचित जाति एवं जनजाति राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की गयी थी, लेकिन कुछ ही वर्ष बाद यह अनुभव किया गया कि भौगोलिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से जनजातियाँ अनुसूचित जातियों से भिन्न हैं तथा उनकी समस्याएँ भी भिन्न हैं। अतः 85वें संवैधानिक संशोधन (2003) ई० के आधार पर वर्ष 1990 में स्थापित आयोग के स्थान पर पृथक् ‘जनजाति राष्ट्रीय आयोग’ स्थापित किया गया है। इस प्रकार के आयोग की स्थापना सही दिशा में एक कदम है।

प्रश्न 3.
सरकार द्वारा आदिवासियों की समस्याओं के समाधान के लिए उठाए गए कदमों की व्याख्या कीजिए। [2012, 16]
उत्तर :
आदिवासियों (अनुसूचित जनजातियों की समस्याओं का समाधान

आदिवासियों (अनुसूचित जनजातियों) की समस्याओं के समाधान हेतु सरकार ने अनेक कदम उठाए हैं। इन्हें संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ इनकी समस्याओं के समाधान हेतु निम्नलिखित उपाय भी किए गए हैं –

  1. लोकसभा तथा राज्य विधानमण्डलों में इनके लिए स्थानों के आरक्षण की व्यवस्था की गई है।
  2. शासकीय सेवाओं में आरक्षण की सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
  3. जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन हेतु कल्याण व सलाहकार अभिकरणों की स्थापना की गई है।
  4. संवैधानिक संरक्षणों के क्रियान्वयन की जाँच हेतु संसदीय समिति का गठन किया गया है।
  5. सभी राज्यों में कल्याण विभागों की स्थापना की गई है, जो कि जनजातीय कल्याण कार्यों की देख-रेख करते हैं।
  6. अनुसूचित जनजातियों के बीच कार्य कर रहे गैर-सरकारी स्वैच्छिक संगठनों को अनुदान प्रदान किया जाता है।
  7. अनुसूचित जनजातियों को शिक्षण व प्रशिक्षण हेतु विशेष सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं। सरकार ने शिक्षा का विकास करने के उद्देश्य से आदिवासियों को निःशुल्क शिक्षा, छात्रवृत्ति तथा छात्रावास की सुविधाएँ प्रदान की हैं।
  8. पंचवर्षीय योजनाओं में अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु विशेष प्रावधान किए गए हैं।
  9. कुछ राज्यों में भारतीय जनजातीय विपणन विकास संघ की स्थापना भी की गई है जिससे उनका आर्थिक शोषण कम किया जा सके।
  10. अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं और बच्चों के हित सुरक्षित करने के लिए। केन्द्रीय कल्याण राज्यमंत्री की अध्यक्षता में सलाहकार बोर्ड की स्थापना की गई है।
  11. संविधान की पाँचवीं अनुसूची में अनुसूचित क्षेत्र वाले तथा राष्ट्रपति के निर्देश पर अनुसूचित आदिम जातियों वाले राज्यों में आदिम जाति के लिए सलाहकार परिषदों की स्थापना की व्यवस्था है। आन्ध्र प्रदेश, ओडिशा, गुजरात, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र तथा राजस्थान में ऐसी परिषदों की स्थापना की जा चुकी है। ये परिषदें आदिवासियों के कल्याण सम्बन्धी विषयों पर राज्यपालों को परामर्श देती हैं।
  12. वन से प्राप्त उत्पादों के विपणन के सम्बन्ध में सहकारी समितियों की स्थापना की गई है। मध्य प्रदेश में नई तेंदू पत्ता नीति के चलते ठेकेदारों के आदमी आदिवासियों का शोषण नहीं कर पाएँगे क्योंकि तेंदू पत्ता एकत्र कराने का कार्य सहकारिता के अन्तर्गत आ गया है।
  13. राष्ट्रीय आदिवासी नीति 2006-21 जुलाई, 2006 को केन्द्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय आदिवासी नीति का मसौदा जारी किया गया जिसके अन्तर्गत आदिवासियों से सम्बन्धित 23 मुद्दे प्रमुख हैं-आदिवासियों की जमीन छीनने, उनके विस्थापन व पुनर्वास, शिक्षा, सफाई, राज्यों के पेशा कानून को केन्द्रीय कानून के समान बनाना, लैंगिक भेदभाव को दूर करना, उनकी संस्कृति की सुरक्षा करने आदि पर बल तथा जंगल की जमीन पर आदिवासियों के अधिकार को भी शामिल किया गया है।
  14. विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में आदिवासियों के विकास तथा कल्याण से सम्बन्धित अनेक कार्यक्रमों तथा योजनाओं को स्थान दिया गया है। आदिवासी उपयोजना कार्यक्रम का लक्ष्य है-गरीबी को दूर करना। बीस सूत्री कार्यक्रमों में सर्वोच्च स्थान ‘गरीबी के विरुद्ध संघर्ष को दिया गया था। छठी योजनाकाल में पूरे देश में 27,59,379 आदिवासियों को गरीबी की। रेखा से ऊपर उठाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।
  15. केन्द्र तथा राज्य सरकारों के द्वारा अनुसूचित जनजातियों के लिए बनाए गए संवैधानिक तथा कानूनी सुरक्षा उपायों को लागू किया जा रहा है तथा इसके प्रभावशाली क्रियान्वयन पर भी अधिक जोर दिया जा रहा है।
  16. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के क्रियान्वयन की दृष्टि से सरकार द्वारा समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम, ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम आदि को आदिवासी क्षेत्रों में लागू किया गया है।

आदिवासियों (अनुसूचित जनजातियों) की समस्याओं के उपर्युक्त उपाय कारगर सिद्ध हुए हैं, परन्तु इस दिशा में अभी बहुत कार्य किया जाना शेष है। इन्हें देश की मुख्य धारा में जोड़ने हेतु इनका सामाजिक-आर्थिक उत्थान किया जाना आवश्यक है। सरकार और जनसामान्य के मिश्रित प्रयासों से ही हमें आदिवासियों को उनकी समस्याओं से मुक्ति दिला सकते हैं और उनके अच्छे जीवनयापन के लिए पृष्ठभूमि तैयार कर सकते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द)

प्रश्न 1.
भारत में जनजातियों की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए। [2016]
या
अनुसूचित जनजातियों की विशेषताएँ लिखिए। [2010, 14]
या
भारत में निवास करने वाली जनजातियों के चार प्रमुख लक्षण बताइए। [2016]
उत्तर :
जनजाति के लक्षण (विशेषताएँ)
जनजाति के प्रमुख लक्षण (विशेषताएँ) इस प्रकार हैं

  1. सामान्य भू-भाग – एक जनजाति एक निश्चित भू-भाग में ही निवास करती है।
  2. विस्तृत आकार – एक जनजाति में कई परिवारों, वंश और गोत्र का संकलन होता है।
  3. एक नाम – प्रत्येक जनजाति का कोई नाम अवश्य होता है जिसके द्वारा वह पहचानी जाती है। मुंडा, कोल, भील, भोटिया, गारो, सन्थाल, मीणा, मुरिया, गोंड, खासी, कोरवा, बैगा, नागा और गरासिया लोहार; हमारे प्रदेश भारतीय संघ के विविध राज्यों के क्षेत्रों से जुड़ी कुछ प्रमुख जनजातियों के नाम हैं।
  4. सामान्य भाषा – एक जनजाति के लोग अपने विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए जनजाति की अपनी एक सामान्य भाषा का प्रयोग करते हैं। वर्तमान समय में बाहरी जगत् के साथ सम्पर्क के कारण कई जनजातियाँ द्वि-भाषी हो गयी हैं।
  5. अन्तर्विवाह – एक जनजाति के सदस्य अपनी ही जनजाति में विवाह करते हैं।
  6. सामान्य संस्कृति – एक जनजाति के सभी सदस्यों की एक सामान्य संस्कृति होती है, उनके रीति-रिवाजों, प्रथाओं, लोकाचारों, नियमों, कला, धर्म, जादू, संगीत, नृत्य, खान-पान, भाषा, रहन-सहन, विचारों, विश्वासों और मूल्यों आदि में समानता पायी जाती है। सामान्य संस्कृति या एकसमान संस्कृति जनजाति का सबसे प्रमुख लक्षण है।
  7. सामान्य निषेध – सामान्य संस्कृति से ही जुड़ी हुई बात यह है कि एक जनजाति खान-पान, विवाह, परिवार और व्यवसाय आदि से सम्बन्धित कुछ समान निषेधों का पालन करती है।
  8. सामाजिक संगठन – सामान्यत: प्रत्येक जनजाति का अपना एक निजी सामाजिक संगठन होता है। संगठन का प्रमुख अधिकांशतया एक वंशानुगत मुखिया होता है, कहीं-कहीं मुखिया की सहायता के लिए वयोवृद्ध लोगों की एक परिषद्’ भी होती है। यह संगठन परम्पराओं का पालन कराने, नियन्त्रण बनाये रखने और नियमों का उल्लंघन करने वालों को दण्डित करने का कार्य करता है। इस दृष्टि से कुछ अध्ययनकर्ता इसे राजनीतिक संगठन का नाम देते हैं।

प्रश्न 2.
भारत में अनुसूचित जनजातियों की चार समस्याओं का वर्णन कीजिए। [2011]
या
भारत में अनुसूचित जनजातियों की कोई दो समस्याएँ तथा उनके समाधान के निवारण हेतु सुझाव भी दीजिए। [2016]
या
अनुसूचित जातियों के आरक्षण के दो आधार बताइए। [2012]
या
भारत में आदिवासियों की दो मुख्य समस्याएँ लिखिए तथा उनके समाधान के उपाय भी बताइए। [2014]
उत्तर :
जनजातियों की दो प्रमुख समस्याएँ तथा सुझाव निम्नलिखित हैं –

1. आर्थिक शोषण – आधुनिक समय में जनजाति के लोगों को जमींदारों, व्यापारियों, साहूकारों, सरकारी कर्मचारियों के सम्पर्क में आना पड़ता है। वनों की कटाई की जा चुकी है। शहरीकरण ने इन पर सीधा प्रभाव डाला है। सभी लोग इनका आर्थिक शोषण करते रहे हैं। इनकी पैदावार को कम दामों में खरीदा जाता है। इन्हें मजदूरी भी सही प्राप्त नहीं हो पाती है। आर्थिक शोषण से बचाव के लिए कानूनों का सख्ती से पालन कराया जाना चाहिए तथा जनजातीय लोगों को न्यूनतम मजदूरी हर हालत में दिलाई जानी चाहिए। श्रम संघों का विकास अनिवार्य रूप से होना चाहिए।

2. शिक्षा की समस्या – अब भी जनजातीय लोगों में शिक्षा के प्रति कोई लगाव पैदा नहीं हो पाया है और उनके बच्चे शिक्षा की उपादेयता से पूर्णतः अनभिज्ञ हैं। शिक्षा उनके लिए बेमानी। हो जाती है। गरीबी के कारण वे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। अतः शिक्षा के प्रति जागरूक न होना उनकी अनेक समस्याओं का मूल कारण है। जनजातियों में शिक्षा के प्रसार के लिए सरकार को विभिन्न प्रकार की सरकारी सहायता की घोषणा करनी चाहिए। शिक्षा को उनकी सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से जोड़ना चाहिए तथा शिक्षा का स्वरूप ऐसा हो जो उनकी सांस्कृतिक धरोहर को बचा सके। जनजाति के लोगों को आर्थिक सहायता सभी स्तरों पर करके उनके जीवन के स्तर को सुधारने की आवश्यकता है। अनुसूचित जनजातियों (आदिवासियों) की दो अन्य समस्या निम्नवत् हैं

3. धार्मिक समस्या – जनजातियों में धर्म, जादू-टोने आदि का विशेष महत्त्व है। प्रायः बीमार व्यक्ति का इलाज टोने-टोटके से किया जाता है, परन्तु बाह्य प्रभावों एवं सामाजिक संगठनों की सक्रियता के कारण अब जादू-टोने का महत्त्व कम हो गया है। हालांकि, आदिवासियों में धर्मान्तरण की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है। देश के पूर्वोत्तर राज्यों मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा आदि में 70% अदिवासी जनसंख्या ईसाई धर्म अपना चुकी है।

4. आवागमन तथा संचार की समस्या  अधिकांश जनजातियों के दुर्गम भौगोलिक स्थानों में रहने के कारण उनका सम्पर्क आधुनिक समाज से बहुत कम हो जाता है। वहीं, ऐसे स्थानों पर आधुनिक संचार एवं यातायात के साधनों का विकास बहुत कम हो हुआ है।। अत: वातावरण न होने के कारण जनजातियाँ विकसित नहीं हो पाती हैं।

[नोट – समाधान के लिए लघु उत्तरीय प्रश्न (150 शब्द) संख्या 1 का उत्तर देखें।]

प्रश्न 3
अनुसूचित जनजातियों की समस्याओं के चार कारण बताइए।
उत्तर :
भारतीय जनजातियों में व्याप्त समस्याओं में से चार मूल कारण निम्नवत् हैं

1. निर्धनता, अज्ञानता तथा विकास से वंचित रहना – जनजातीय लोगों की निर्धनता और अज्ञानता के कारण समाज के सम्पन्न वर्ग, व्यापारी वर्ग, नौकरशाह और राजनीतिज्ञ उनका मनमाना शोषण करते हैं। भारत सरकार और राज्य सरकारों ने जनजातियों के विकास के लिए करोड़ों रुपये की धनराशि स्वीकृत की है, लेकिन इस धनराशि का उपयोग उनके विकास कार्यों के लिए नहीं किया जाता। अज्ञानता ने जनजातियों में विभिन्न अन्धविश्वासों को जन्म दिया तथा इसका लाभ उठाकर समाज के अन्य वर्गों ने उनका शोषण किया।

2. पृथक और दूर-दराज क्षेत्रों में निवास – भारत की लगभग सभी जनजातियाँ पहाड़ों, जंगलों और दूर-दराज क्षेत्रों में निवास करती हैं, जहाँ उनका अन्य लोगों से सम्पर्क नहीं हो पाता। पृथक् एवं दुर्गम निवास के कारण वे अधिकतर प्रकृति पर ही निर्भर करती हैं। साधनों के अभाव के कारण वे ज्ञान-विज्ञान और भौतिक विकास की दिशा में आगे नहीं बढ़ पाये।

3. स्थानान्तरित खेती और वन उपज के उपयोग और उपभोग पर रोक – ब्रिटिश शासन से पूर्व सभी जनजातियाँ राजनीतिक दृष्टि से स्वायत्त इकाइयाँ थीं। वे अपनी भूमि तथा जंगलों की स्वामी थीं। किन्तु अंग्रेजों ने सम्पूर्ण देश पर एकसमान राजनीतिक व्यवस्था लागू की, जिससे जनजातियों के अधिकार सीमित कर दिये गये तथा उनके द्वारा की जाने वाली स्थानान्तरित खेती एवं वन उपयोग और उपभोग पर रोक लगा दी गयी। स्वतन्त्रता-प्राप्ति और लोकतन्त्रीय व्यवस्था के बाद भी इस स्थिति में कोई परिवर्तन नजर नहीं आया। जनजातियाँ अपने आपको नयी व्यवस्था के अनुरूप ढालने में असफल रहीं।

4. ईसाई मिशनरियों द्वारा धर्म-परिवर्तन – ब्रिटिश शासन काल में ही ईसाई मिशनरियों ने आदिवासी क्षेत्रों में प्रवेश कर लिया था तथा उनकी निर्धनता एवं अज्ञानता का लाभ उठाते हुए कल्याण के नाम पर उनको ईसाई बनाना आरम्भ कर दिया। यह नया वर्ग अपने परम्परागत समाज से कट गया तथा इन दोनों के बीच टकराव की स्थिति जन्म लेने लगी। यह सांस्कृतिक विघटन की स्थिति थी।

प्रश्न 4.
जनजातियों की समस्याओं के समाधान हेतु किये गये संवैधानिक प्रावधानों का विवरण दीजिए।
उत्तर :
जनजातियों की समस्याओं के समाधान हेतु निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 335 के अनुसार, सार्वजनिक सेवाओं और सरकारी नौकरियों में देश की जनजातियों के लिए स्थान सुरक्षित रखने का आश्वासन दिया गया है। अनुच्छेद 325 में कहा गया है कि किसी को भी धर्म, प्रजाति, जाति एवं लिंग के आधार पर मताधिकार से वंचित नहीं किया जाएगा। आदिवासियों के जन-प्रतिनिधियों के लिए लोकसभा व राज्य विधानसभाओं में अनुच्छेद 330 व 332 के अनुसार स्थान सुरक्षित कर दिये गये हैं। इन आरक्षित स्थानों पर जनजातियों एवं अनुसूचित जातियों के अतिरिक्त अन्य कोई चुनाव नहीं लड़ सकता। अनुच्छेद 338 में राष्ट्रपति द्वारा इनके लिए विशेष अधिकारी की नियुक्ति की  व्यवस्था की गयी है। अनुच्छेद 342 व 344 में राज्यपालों को भारतीयों के सन्दर्भ में विशेष अधिकार प्रदान किये गये हैं। इसी प्रकार संविधान के अनुच्छेद 47 में राज्य का यह दायित्व माना गया है कि वह जनजातियों की शिक्षा की उन्नति और आर्थिक हितों की सुरक्षा की ओर विशेष ध्यान दे। इसी प्रकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164 में असम के अतिरिक्त ओडिशा, बिहार, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में जनजातियों के कल्याण हेतु पृथक् मन्त्रालय स्थापित करने का प्रावधान किया गया है। इसी तरह से अनुच्छेद 224 (2) के अन्तर्गत असम की जनजातियों के लिए जिला और प्रादेशिक परिषदें स्थापित करने का प्रावधान किया गया है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
भारत की अनुसूचित जनजातियों के उत्थान के लिए कोई चार सुझाव बताइए। [2015]
उत्तर :
अनुसूचित जनजातियों की समस्याओं के समाधान हेतु सरकार ने अनेक कदम उठाए हैं। इन्हें संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ इनकी समस्याओं के समाधान हेतु निम्नलिखित उपाय भी किए गए हैं।

  1. लोकसभा तथा राज्य विधानमण्डलों में इनके लिए स्थानों के आरक्षण की व्यवस्था की गई है।
  2. शासकीय सेवाओं में आरक्षण की सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
  3. जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन हेतु कल्याण व सलाहकार अभिकरणों की स्थापना की गई है।
  4. संवैधानिक संरक्षणों के क्रियान्वयन की जाँच हेतु संसदीय समिति का गठन किया गया है।

प्रश्न 2.
भारत की जनजातियों की चार प्रमुख समस्याओं का उल्लेख कीजिए। [2009, 12]
उत्तर :
भारत की जनजातियों की चार प्रमुख समस्याएँ हैं –

  1. विकास को लाभ जनजातियों तक न पहुँच पाना।
  2. ईसाई मिशनरियों द्वारा प्रलोभन देकर धर्मान्तरण कराना।
  3. प्रशासनिक व्यवस्था द्वारा दखलंदाजी।
  4. दूर-दराज और दुर्गम वे पहाड़ी क्षेत्रों में निवास का होना।

प्रश्न 3.
भारत की आदिवासी जातियों की किन्हीं दो आर्थिक समस्याओं का उल्लेख कीजिए। [2009]
उत्तर :
भारत की आदिवासियों जातियों की दो आर्थिक समस्याएँ निम्नलिखित हैं –

  1. बैंकों तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों से कर्ज का न मिल जाना।
  2. खेती की पैदावार तथा वनोत्पादों का इन जातियों को बाजार में सही मूल्य की प्राप्ति न हो पाना।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
जनजाति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर :
भारत के दुर्गम स्थानों व जंगलों में निवास करने वाले विभिन्न आदिवासी समूहों को ही जनजाति कहा जाता है।

प्रश्न 2.
जनजातियों के उत्थान के लिए प्रयास करने वाले तीन प्रमुख व्यक्तियों के नामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर

  1. महात्मा गाँधी
  2. ज्योतिबा फुले तथा
  3. ठक्कर बापा।

प्रश्न 3.
जनजाति के पाँच प्रमुख लक्षण (विशेषताएँ) क्या हैं? [2007, 10]
या
जनजातियों की कोई दो विशेषताएँ बताइए। [2014]
उत्तर :

  1. सामान्य भू-भाग
  2. विस्तृत आकार
  3. एक नाम
  4. सामान्य भाषा तथा
  5. सामान्य संस्कृति।

प्रश्न 4.
जनजातियों के हितार्थ कार्य करने वाली तीन प्रमुख संस्थाओं के नाम बताइए।
उत्तर :

  1. रामकृष्ण मिशन
  2. भारतीय आदिम संघ, नयी दिल्ली तथा
  3. आन्ध्र प्रदेश आदिम जाति सेवक संघ, हैदराबाद।

प्रश्न 5.
अनुसूचित जनजाति की किन्हीं दो समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :

  1. अशिक्षा तथा निरक्षरता की समस्या तथा
  2. आर्थिक विकास की समस्या।

प्रश्न 6.
भारत में कौन-से राज्य में सर्वाधिक आदिवासी पाये जाते हैं? या भारत के एक आदिवासी बहुल राज्य का नाम बताइए।
उत्तर :
छत्तीसगढ़ राज्य में सर्वाधिक आदिवासी पाये जाते हैं।

प्रश्न 7.
उत्तराखण्ड में पायी जाने वाली दो प्रमुख जनजातियों के नाम बताइए। [2007, 10, 12]
या
भारत की किसी एक जनजाति का नाम बताइए। [2007]
उत्तर :

  1. थारु तथा
  2. भोटिया।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
भील जनजाति प्रमुख रूप से कौन-से राज्य में पायी जाती है?
(क) राजस्थान में
(ख) मध्य प्रदेश में
(ग) बिहार में
(घ) असम में

प्रश्न 2.
आदिम जातियों के लिए सलाहकार परिषदों की स्थापना कौन करता है?
(क) राज्यपाल
(ख) राष्ट्रपति
(ग) प्रधानमन्त्री
(घ) मुख्यमन्त्री

प्रश्न 3.
अनुसूचित जनजातियों की समस्याओं का व्यापक अध्ययन किया है –
(क) अमर्त्यसेन ने।
(ख) मार्शल ने
(ग) एस० सी० दूबे ने।
(घ) प्रधानमन्त्री ने

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन-सी जाति अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में आती है? [2015]
(क) जाटव
(ख) मीणा
(ग) कुर्मी
(घ) डोम

प्रश्न 5.
भारत में निम्नलिखित में से किस राज्य में जनजातीय जनसंख्या का प्रतिशत सबसे अधिक [2016]
(क) उत्तर प्रदेश
(ख) केरल
(ग) मिजोरम
(घ) तमिलनाडु

उत्तर :

  1. (क) राजस्थान में
  2. (ख) राष्ट्रपति
  3. (ग) एस० सी० दूबे ने
  4. (ख) मीणा
  5. (ग) मिजोरम

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