UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 14 Executive of State: Governor and the Council of Ministers (राज्य की कार्यपालिका-राज्यपाल तथा मन्त्रिपरिषद्)
UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 14 Executive of State: Governor and the Council of Ministers (राज्य की कार्यपालिका-राज्यपाल तथा मन्त्रिपरिषद्)
विस्तृत उत्तीय प्रश्न (6 अंक)
प्रश्न 1.
राज्यपाल की शक्तियों की विवेचना कीजिए। [2016]
या
राज्यपाल की नियुक्ति कैसे होती है? उसके कार्यों तथा शक्तियों का वर्णन कीजिए। [2008, 09, 11, 12, 13]
या
भारत में राज्यपालों की शक्तियों एवं स्थिति का परीक्षण कीजिए। [2012, 13, 15]
या
“राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रधान है।” इस कथन का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। [2012]
या
भारत में राज्यैपाल की कार्यपालिका तथा विधायिनी शक्तियों का परीक्षण कीजिए। [2012]
उत्तर :
राज्यपाल – भारत में संघीय शासन-व्यवस्था अपनायी गयी है। इस हेतु संविधान द्वारा यह व्यवस्था की गयी है कि केन्द्र तथा इकाई राज्यों की पृथक्-पृथक् सरकारें होंगी। राज्य सरकारों का गठन बहुत कुछ संघ सरकार से मिलता-जुलता है। राज्य का संवैधानिक अध्यक्ष राज्यपाल होता है। के० एम० मुन्शी के अनुसार, “राज्यपाल संवैधानिक व्यवस्था का प्रहरी है। वह ऐसी कड़ी है, जो कि राज्य को संघ से जोड़कर भारत की संवैधानिक व्यवस्था को बनाये रखने में योग देता है।’ संविधान की धारा 154 में यह स्पष्ट रूप से उल्लिखित है कि राज्य की समस्त कार्यकारिणी शक्तियाँ उस राज्य के राज्यपाल में निहित होंगी, किन्तु इन शक्तियों का प्रयोग वह संविधान के अनुसार या तो स्वयं अथवा अपने अधीनस्थ पदाधिकारियों द्वारा करेगा। राज्यपाल की स्थिति बहुत कुछ ऐसी है जैसी कि केन्द्र में राष्ट्रपति की। संविधान के अनुच्छेद 153 से 160 तक राज्यपाल के सम्बन्ध में विस्तृत रूप से बताया गया है।
राज्यपाल की नियुक्ति – संविधान के अनुच्छेद 155 के अनुसार राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। राष्ट्रपति किसी भी योग्य व्यक्ति को, जो निर्धारित शर्ते पूरी करे, राज्यपाल के पद पर नियुक्त कर सकता है।
राज्यपाल की नियुक्ति के सम्बन्ध में कुछ प्रथाएँ विकसित हो गयी हैं। इनमें से मुख्य इस प्रकार हैं –
- राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री के परामर्श से ही राज्यपाल की नियुक्ति करता है।
- राज्यपाल जिस राज्य के लिए नियुक्त किया जाता है, साधारणतः वह उस राज्य का निवासी नहीं होता।
- राज्यपाल की नियुक्ति से पूर्व राष्ट्रपति उस राज्य के मुख्यमन्त्री से भी परामर्श लेता है।
राज्यपाल को निर्वाचन किये जाने की अपेक्षा उसकी राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति को ही अधिक उपयुक्त समझा गया, क्योंकि निर्वाचन की स्थिति में राज्य का ही नागरिक इस पद के लिए खड़ा हो सकता था जिससे वह राजनीतिक दलबन्दी में पड़ जाता। राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये जाने पर देश की एकता में दृढ़ता आ जाएगी, क्योंकि वह व्यक्ति किसी अन्य राज्य का निवासी होता है। अतः वह राज्य की दलबन्दी से दूर रहता है।
संविधान के अनुसार राज्यपाल के पद के लिए निम्नलिखित योग्यताएँ अनिवार्य हैं –
- वह भारत का नागरिक हो।
- वह 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
- वह संसद अथवा किसी राज्य के विधानमण्डल का सदस्य न हो। यदि ऐसा कोई व्यक्ति राज्यपाल नियुक्त हो जाता है तो पद-ग्रहण करने के पहले उसे संसद या विधानमण्डल, जिसका वह सदस्य है, की सदस्यता से त्याग-पत्र देना होगा।
- वह किसी भी सरकारी वैतनिक पद पर कार्य न कर रहा हो।
- वह किसी न्यायालय द्वारा दण्डित न किया गया हो।
कार्यकाल – संविधान के अनुच्छेद 156 (1) के अनुसार, ‘राष्ट्रपति के प्रसाद-पर्यन्त राज्यपाल पद धारण करेगा।” दूसरे शब्दों में, राज्यपाल उसी समय तक अपने पद पर बना रह सकता है, जब तक राष्ट्रपति का उसमें विश्वास है। साधारणत: राज्यपाल की नियुक्ति पाँच वर्ष के लिए होती है, किन्तु वह स्वेच्छा से त्याग-पत्र देकर अवधि से पहले भी अपना पद त्याग कर सकता है। उसे अवधि से पहले भी पदच्युत किया जा सकता है। उसे अवधि से पहले पदच्युत करने को अधिकार केवल राष्ट्रपति को है जिसके लिए संसद से कोई प्रस्ताव पारित कराने की आवश्यकता नहीं होती है। राज्यपाल को पदच्युत करने का अधिकार राज्य के विधानमण्डल को भी नहीं है।
शपथ – राज्यपाल पद ग्रहण करने से पहले राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष संविधान की रक्षा करने, राज्य के कार्यों का न्यायपूर्वक संचालन करने तथा जन-कल्याण के लिए प्रयत्नशील रहने की शपथ ग्रहण करता है।
वेतन, भत्ते आदि – राज्यपाल को ₹ 1,10,000 मासिक वेतन तथा अन्य भत्ते मिलते हैं। इसके अतिरिक्त रहने के लिए उसे राज्य की राजधानी में नि:शुल्क सरकारी भवन तथा अन्य सुविधाएँ दी जाती हैं। राज्यपाल के कार्यकाल में उसके वेतन या भत्तों आदि में किसी प्रकार की कमी नहीं की जा सकती। भत्तों की राशि विभिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न है।
राज्यपाल के अधिकार और कार्य
राज्यपाल राज्य की कार्यपालिका का प्रधान होता है। अतः अपने राज्य का उचित प्रकार से संचालन करने के लिए उसे अनेक अधिकार दिये गये हैं। राज्यपाल की राज्य में वही स्थिति होती है जो केन्द्र में राष्ट्रपति की है। उसकी शक्तियाँ भी लगभग वही हैं। श्री दुर्गादास बसु के शब्दों में, ‘राज्यपाल की शक्तियाँ राष्ट्रपति के समान हैं, सिर्फ कूटनीतिक, सैनिक तथा संकटकालीन अधिकारों को छोड़कर।” राज्यपाल को प्राप्त अधिकारों का वर्गीकरण संक्षेप में निम्नलिखित प्रकार से है –
(1) कार्यपालिका सम्बन्धी अधिकार
राज्यपाल को कार्यपालिका का प्रधान होने के कारण कार्यपालिका सम्बन्धी अनेक अधिकार दिये गये हैं, जो कि अग्रलिखित हैं –
(क) शासन संचालन सम्बन्धी अधिकार – राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होती है। राज्य का शासन भली प्रकार चलाने का उत्तरदायित्व उसी पर है। राज्य में कार्यपालिका सम्बन्धी सभी कार्य उसके नाम से होते हैं। वह शासन के कुशल संचालन के लिए। नियम बनाता है और मन्त्रियों में शासन सम्बन्धी कार्य का वितरण करता है। वह मुख्यमन्त्री से शासन सम्बन्धी किसी विषय पर सूचना प्राप्त कर सकता है।
(ख) विशेषाधिकार – राज्यपाल को कुछ ऐसे अधिकार प्रदान किये जाते हैं जिनको स्वेच्छाधिकार की संज्ञा दी जा सकती है। इनका प्रयोग राज्यपाल अपने विवेक से करता है। इनमें उसे मन्त्रिपरिषद् से परामर्श लेने की आवश्यकता नहीं होती। विद्वानों ने राज्यपाल के इस अधिकार की कटु आलोचना की है, क्योंकि यह लोकतान्त्रिक सिद्धान्तों के विरुद्ध है।
(ग) अधिकारियों की नियुक्ति – सैद्धान्तिक दृष्टि से कहा जाता है कि राज्यपाल मुख्यमन्त्री की नियुक्ति करता है तथा उसके परामर्श से अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है। इसके अतिरिक्त वह राज्य के लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों एवं राज्य के महाधिवक्ता की नियुक्ति करता है। साथ ही विधान-परिषद् के कुल संख्या के 1/6 सदस्यों को वह मनोनीत करती है।
(घ) आपातकालीन अधिकार – यदि राज्यपाल यह अनुभव करता है कि राज्य में संविधान के अनुसार शासन का संचालन असम्भव हो गया है तो वह राष्ट्रपति को इसकी सूचना देता है। उसकी सूचना के आधार पर राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 356 के अन्तर्गत राज्य में आपातकाल की घोषणा कर देता है तथा राष्ट्रपति के आदेशानुसार वह राज्य के शासन का समस्त कार्यभार अपने हाथ में ले लेता है।
(2) विधायिनी अधिकार
राज्यपाल राज्य के विधानमण्डल का आवश्यक अंग होता है, यद्यपि वह उसका सदस्य नहीं होता। उसकी विधायिनी शक्तियाँ निम्नलिखित हैं –
(क) कार्यवाही सम्बन्धी अधिकार – विधानमण्डल की कार्यवाही से सम्बन्धित अधिकार राज्यपाल को प्राप्त हैं। अपनी इच्छानुसार विधानमण्डल के दोनों सदनों का अधिवेशन बुलाने, विसर्जित करने तथा विधानसभा को अवधि से पहले भंग करने का अधिकार उसे प्राप्त है। राज्यपाल को यह सुनिश्चित करना पड़ता है कि किसी सदन के दो अधिवेशनों के बीच 6 माह से अधिक समय व्यतीत न हुआ हो। विधानमण्डल के किसी सदन में राज्यपाल अपना भाषण दे सकता है। प्रतिवर्ष विधानमण्डल का प्रथम अधिवेशन राज्यपाल के भाषण से ही प्रारम्भ होता है। वह किसी भी सदन में अपना लिखित सन्देश भेज सकता है। यदि वह चाहे तो दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन भी बुला सकता है।
(ख) विधेयकों की स्वीकृति – विधानमण्डल द्वारा पारित विधेयक राज्यपाल की स्वीकृति पाकर ही कानून का रूप धारण करते हैं। उसके इस अधिकार के निम्नलिखित दो भाग हैं –
- वित्त विधेयक-राज्य के वित्त विधेयकों को राज्यपाल न तो अस्वीकृत कर सकता है और न ही उन्हें पुनर्विचार के लिए विधानमण्डल के पास लौटा सकता है। इस सन्दर्भ में उसकी मात्र औपचारिक स्वीकृति ली जाती है।
- अन्य विधेयक-वित्त विधेयकों को छोड़कर शेष विधेयकों को राज्यपाल विधानमण्डल के पास पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है। राज्यपाल किसी भी विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेज सकता है। यदि राष्ट्रपति उसे विधेयक पर अपनी स्वीकृति दे देता है तो वह कानून बन जाएगा।
(ग) विधानमण्डल के कुछ सदस्यों की नियुक्ति – राज्यपाल राज्य विधान-परिषद् की कुल संख्या के 1/6 भाग सदस्यों को ऐसे लोगों में से मनोनीत करता है जिन्हें साहित्य, कला, विज्ञान, समाजसेवा तथा सहकारिता आन्दोलन के क्षेत्र में निपुणता प्राप्त हो। विधानसभा के लिए उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को एक सदस्य एंग्लो-इण्डियन समुदाय का मनोनीत करने का भी अधिकार है। विधानसभा के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष की खाली जगह पर नियुक्ति करने का अधिकार राज्यपाल को है।
(घ) अध्यादेश जारी करने का अधिकार – विशेष परिस्थितियों में राज्यपाल को अध्यादेश जारी करने का अधिकार है, लेकिन इस अधिकार का प्रयोग उसी समय किया जा सकता है जब विधानमण्डल का अधिवेशन न हो रहा हो। अध्यादेशों का प्रभाव विधानमण्डल के कानूनों के समान होता है। यह अधिवेशन विधानमण्डल की बैठक आरम्भ होने के 6 सप्ताह के बाद तक ही लागू रह सकता है, यदि 6 सप्ताह से पूर्व विधानमण्डल इस अध्यादेश को अस्वीकृत न कर दे।
(3) वित्त सम्बन्धी अधिकार
राज्यपाल को वित्त सम्बन्धी निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हैं –
(क) वार्षिक बजट – विधानमण्डलों में वार्षिक बजट पेश करवाने का अधिकार राज्यपाल को है। इसमें राज्य की आगामी वर्ष की आय एवं व्यय का विवरण रहता है। बजट राज्यपाल की ओर से वित्त मन्त्री द्वारा विधानसभा में प्रस्तुत किया जाता है।
(ख) वित्तीय विधेयक – वित्तीय विधेयक पर राज्यपाल की पूर्व स्वीकृति अनिवार्य है, अर्थात् बिना उसकी पूर्व स्वीकृति के विधानसभा में वित्तीय विधेयक प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।
(ग) अनुदान – किसी भी अनुदान की माँग राज्यपाल की स्वीकृति से की जा सकती है। राज्यपाल ही आय-व्यय से सम्बन्धित किसी प्रकार के सहायक अनुदान की माँग विधानसंभा के समक्ष उपस्थित करता है।
(4) न्याय सम्बन्धी अधिकार
(क) क्षमादान – राज्यपाल अपने राज्य के दण्ड प्राप्त किसी भी अपराधी को क्षमा कर सकता है, दण्ड को कम कर सकता है, अथवा कुछ समय के लिए उसे स्थगित कर सकता है, अथवा उसमें परिवर्तन कर सकता है, परन्तु उन्हीं अपराधियों के सम्बन्ध में वह ऐसा कर सकता है जिन्हें राज्य का कानून तोड़ने के लिए दण्ड मिला हो। मृत्यु-दण्ड को क्षमा करने का अधिकार राज्यपाल को नहीं है।
(ख) नियुक्ति – राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय राष्ट्रपति राज्यपाल से भी परामर्श लेता है।
(5) विविध शक्तियाँ
- वह राज्य लोक सेवा आयोग का वार्षिक प्रतिवेदन प्राप्त करता है।
- संकटकालीन स्थिति में वह राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है।
- वह महालेखा परीक्षक का प्रतिवेदन प्राप्त करता है।
- वह अपने राज्य के सभी विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति (Chancellor) होता है।
प्रश्न 2.
राज्यपाल की नियुक्ति कैसे होती है? किसी राज्य में राज्यपाल के पद का क्या महत्त्व है? क्या राज्यपाल किसी परिस्थिति में अपने विवेक के अनुसार कार्य कर सकता है? [2013, 15]
या
भारतीय संविधान के अन्तर्गत राज्यपाल की भूमिका का परीक्षण कीजिए। [2012]
या
प्रदेश के शासन में राज्यपाल का क्या महत्त्व है?
[संकेतः राज्यपाल की नियुक्ति के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 1 देखें।
उत्तर :
राज्यपाल की स्थिति एवं महत्त्व
राज्यपाल के अधिकारों की व्याख्या करने पर यह ज्ञात हो जाता है कि उसे संविधान द्वारा व्यापक अधिकार दिये गये हैं। एक प्रकार से उसे राज्य का राष्ट्रपति कहा जा सकता है। दुर्गादास बसु ने राज्यपाल की शक्तियाँ राष्ट्रपति के समान बतायीं, केवल कूटनीतिक, सैनिक तथा संकटकालीन शक्तियों को छोड़कर। राज्यपाल को अपने राज्य के शासन-तन्त्र को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए काफी विस्तृत अधिकार दिये गये हैं। जिन विषयों में वह अपने विवेक से काम लेता है उनमें वह मन्त्रिपरिषद् का परामर्श नहीं लेता है। इस प्रकार राज्यपाल को स्व-विवेक के आधार पर प्रयुक्त शक्तियाँ भी प्राप्त हैं। विधानसभा में किसी दल का स्पष्ट बहुमत न होने पर। तथा संविधान की विफलता की स्थिति में भी उसे स्वविवेकी अधिकार प्राप्त हैं; अतः इस स्थिति में वह अपनी वास्तविक शक्ति का उपयोग करता है। संकटकाल की स्थिति में वह केन्द्रीय सरकार के अभिकर्ता (Agent) के रूप में कार्य करता है। इस स्थिति में वह अपनी वास्तविक स्थिति का प्रयोग कर सकता है।
इस पर भी वह केवल वैधानिक अध्यक्ष ही होता है। वास्तविक कार्यपालिका शक्तियाँ तो राज्य मन्त्रिपरिषद् में निहित होती हैं। राज्यपाल बाध्य है कि वह मन्त्रिपरिषद् के परामर्श से ही कार्य करे। संविधान के अनुच्छेद 163 (1) के अनुसार जिन बातों में संविधान द्वारा या संविधान के अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने कार्यों को स्वविवेक से करे। उन बातों को छोड़कर राज्यपाल को अपने कार्यों का निर्वहन करने में सहायता और मन्त्रणा देने के लिए एक मन्त्रिपरिषद् होगी। संविधान राज्यपाल की स्वविवेकी शक्तियों का विशेष रूप से उल्लेख नहीं करता है। केरल, असम, अरुणाचल, मिजोरम, सिक्किम, मेघालय, त्रिपुरा और नागालैण्ड के राज्यपाल को ही इस प्रकार की कुछ स्वविवेकी शक्तियाँ प्राप्त हैं। अत: यह कहा जा सकता है कि साधारणतया राज्यपाल शासन का वैधानिक अध्यक्ष ही है और उसकी शक्तियाँ वास्तविक नहीं हैं। डॉ० एम० वी० पायली का कथन है कि “जब तक राज्यपाल मन्त्रिपरिषद् के परामर्श पर कार्य करता है और विधानमण्डल के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी मन्त्रिमण्डल को उसके शासनकार्य में सहायता तथा परामर्श देता है, तब तक राज्यपाल के लिए उनके परामर्श की अवहेलना करने की बहुत ही कम सम्भावना है।” महाराष्ट्र के भूतपूर्व राज्यपाल स्वर्गीय श्री प्रकाश ने कहा था कि “मुझे पूरा विश्वास है कि संवैधानिक राज्यपाल के अतिरिक्त मुझे कुछ नहीं करना होगा।’ इस प्रकार राज्यपाल का पद शक्ति व अधिकार का नहीं वरन् सम्मान व प्रतिष्ठा का है। राज्यपाल की वास्तविक स्थिति का वर्णन करते हुए डॉ० अम्बेडकर ने कहा था कि “राज्यपाल दल का प्रतिनिधि नहीं है, वरन् वह राज्य की सम्पूर्ण जनता का प्रतिनिधि है; अतः उसे सक्रिय राजनीति से पृथक् रहना चाहिए। वह एक निष्पक्ष निर्णायक की भाँति है। उसे देखते रहना चाहिए कि राजनीति का खेल नियमानुसार खेला जाए, उसे स्वयं एक खिलाड़ी नहीं बनना चाहिए।’
राज्य प्रशासन में राज्यपाल की स्थिति बहुत महत्त्वपूर्ण है। इस विषय में पं० जवाहरलाल नेहरू का यह कथन उपयुक्त जान पड़ता है, “भूतकाल में राज्यपालों का महत्त्व काफी अधिक था और आगे भी बना रहेगा। ये राज्य के विभिन्न हितों और दलों के विवादों को मध्यस्थ बनकर दूर करते हैं। वह मन्त्रियों को बहुमूल्य सुझाव दे सकता है। यदि राज्य के शासन द्वारा संविधान का उल्लंघन किया जाए तो राज्यपाल उसकी सूचना तुरन्त राष्ट्रपति को दे सकता है। राज्यपाल के पद का महत्त्व संवैधानिक भी है और परम्परागत भी। इस पद का महत्त्व राज्यपाल के व्यक्तित्व पर निर्भर करता है।”
प्रश्न 3.
राज्य मन्त्रिपरिषद् का गठन कैसे होता है? राज्यपाल और मन्त्रिपरिषद् के पारस्परिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए। [2012]
या
राज्य (उत्तर प्रदेश) के मन्त्रिपरिषद् और राज्यपाल के सम्बन्धों की विवेचना कीजिए। [2010]
या
राज्य मन्त्रिपरिषद् का गठन किस प्रकार होता है? उसकी शक्तियों और कार्यों का वर्णन कीजिए।
मन्त्रिपरिषद् के कार्य बताते हुए मन्त्रिपरिषद् और राज्यपाल का सम्बन्ध बताइए। राज्य में मन्त्रिपरिषद् की शक्तियों का वर्णन करते हुए राज्य सरकार में मुख्यमन्त्री की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
राज्य मन्त्रिपरिषद् का गठन
संविधान के अनुच्छेद 163 के अनुसार, “उन बातों को छोड़कर जिनमें राज्यपाल स्वविवेक से कार्य करता है, अन्य कार्यों के निर्वाह में उसे सहायता प्रदान करने के लिए एक मन्त्रिपरिषद् होगी, जिसका प्रधान मुख्यमन्त्री होगा। राज्यपाल को मन्त्रिपरिषद् द्वारा दिया गया परामर्श न्यायालय में वाद योग्य नहीं होगा।
1. मुख्यमन्त्री की नियुक्ति – राज्य के मन्त्रिपरिषद् के गठन के लिए सबसे पहले मुख्यमन्त्री की नियुक्ति की जाती है। मुख्यमन्त्री मन्त्रिपरिषद् का अध्यक्ष कहलाता है। सैद्धान्तिक दृष्टि से मुख्यमन्त्री की नियुक्ति राज्यपाल करता है, परन्तु व्यवहारतः वह विधानसभा में बहुमत दल के नेता को ही मुख्यमन्त्री के पद पर नियुक्त करता है। लेकिन विधानसभा के किसी एक राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने पर अथवा बहुमत प्राप्त दल या विभिन्न दलों के किसी संयुक्त मोर्चे का कोई निश्चित नेता न होने की स्थिति में राज्यपाल अपने विवेक से मुख्यमन्त्री की नियुक्ति कर सकता है।
2. मन्त्रियों का चयन तथा योग्यताएँ – राज्यपाल अन्य मन्त्रियों का चयन मुख्यमन्त्री के परामर्श से करता है। मन्त्रियों के चुनाव में अन्तिम मत मुख्यमन्त्री का ही रहता है। मन्त्री पद के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति विधानमण्डल के किसी सदन का सदस्य हो। यदि नियुक्ति के समय कोई मन्त्री सदन का सदस्य नहीं होता तो उसे 6 माह के अन्दर किसी सदन की सदस्यता प्राप्त करना अनिवार्य होगा।
3. मन्त्रियों की संख्या एवं कार्य-विभाजन – शासन ठीक प्रकार से चलाने के लिए मन्त्रियों में शासन के अनुसार विभिन्न विभागों को बाँट दिया जाता है। संविधान द्वारा मन्त्रियों की संख्या निश्चित नहीं की गयी है। मुख्यमन्त्री राज्य की आवश्यकता एवं कार्य को ध्यान में रखकर ही मन्त्रियों की संख्या निश्चित करता है। यही कारण है कि मन्त्रिमण्डल के मन्त्रियों की संख्या घटती-बढ़ती रहती है। मन्त्रियों की तीन श्रेणियाँ होती हैं –
- कैबिनेट स्तर के मन्त्री
- राज्यमन्त्री तथा
- उपमन्त्री।
कैबिनेट स्तर के प्रत्येक मन्त्री को शासन के एक या अधिक विभाग सौंप दिये जाते हैं। किसी-किसी राज्यमन्त्री को भी विभागाध्यक्ष बना दिया जाता है। उपमन्त्री सहायक के रूप में काम करते हैं। इनके अतिरिक्त संसदीय सचिव भी होते हैं। मन्त्रियों को विभागों का वितरण मुख्यमन्त्री करता है।
4. सामूहिक उत्तरदायित्व – केन्द्र की तरह राज्यों में भी संसदात्मक पद्धति को ही अपनाया गया है, फलतः राज्य मन्त्रिपरिषद् अपने कार्यों के लिए सामूहिक रूप से राज्य की विधानसभा के प्रति उत्तरदायी है। इसके अनुसार एक मन्त्री की नीति सम्पूर्ण मन्त्रिपरिषद् की नीति मानी जाती है। मन्त्रिपरिषद् एक इकाई के रूप में काम करती है। सामूहिक उत्तरदायित्व का यह अर्थ है कि मन्त्रिपरिषद् तभी तक अपने पद पर रह सकती है जब तक उसे विधानसभा का विश्वास प्राप्त रहता है।
5. कार्यकाल – मन्त्रियों का कार्यकाल निश्चित नहीं होता है। संविधान में कहा गया है कि मन्त्रि परिषद् उस समय तक अपने पद पर बनी रहेगी जब तक विधानसभा को उसमें विश्वास है। अत: मन्त्रिपरिषद् उस समय तक सत्ता में बनी रह सकती है जब तक उसे विधानसभा में बहुमत प्राप्त है। मन्त्रिपरिषद् किसी भी समय त्याग-पत्र देकर पद से हट सकती है। इसके अतिरिक्त यदि विधानसभा मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर दे तो उसे अपने पद से हटना पड़ेगा।
6. शपथग्रहण – पद ग्रहण करने से पहले राज्य मन्त्रिपरिषद् के मन्त्री राज्यपाल के समक्ष अपने पद के कर्तव्यपालन एवं मन्त्रिपरिषद् की नीतियों की गोपनीयता की शपथ लेते हैं। वे अपने कार्य एवं मन्त्रणाओं को गुप्त रखते हैं।
7. वेतन तथा भत्ते – मन्त्रियों के वेतन तथा भत्तों के सम्बन्ध में विभिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न स्थिति है। ये वेतन तथा भत्ते राज्य विधानमण्डल द्वारा निश्चित किये जाते हैं। इसके अतिरिक्त राज्य विधानमण्डल द्वारा निर्धारित अन्य सुविधाएँ भी मन्त्रियों को प्राप्त होती हैं।
मन्त्रिपरिषद् के कार्य और शक्तियाँ
राज्य के प्रशासन का संचालन राज्यपाल के नाम से मन्त्रिपरिषद् ही करती है। वास्तव में यह राज्यपाल के समस्त अधिकारों का प्रयोग करती है। मन्त्रिपरिषद् के निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण कार्य हैं
1. प्रशासन सम्बन्धी अधिकार – मन्त्रिपरिषद् के सदस्यों को शासन के विभिन्न विभाग सौंपे जाते हैं। उन विभागों का सामूहिक उत्तरदायित्व मन्त्रिपरिषद् का होता है। राज्य का सम्पूर्ण शासन मन्त्रियों द्वारा ही चलाया जाता है। अपने-अपने विभाग के दिन-प्रतिदिन के कार्यों का निरीक्षण करना भी मन्त्रियों का कार्य है। मन्त्रिपरिषद् विधानसभा के प्रति उत्तरदायी है। विधानमण्डल का कोई भी सदस्य किसी भी मन्त्री के विषय में प्रश्न पूछ सकता है।
2. वित्तीय कार्य – राज्य की वित्त नीति का निर्धारण राज्य की मन्त्रिपरिषद् करती है। करों की दर निश्चित करना, उन्हें वसूल करने का कार्य करना एवं सरकारी धन को खर्च करना इसी का काम है। यही राज्य की आर्थिक उन्नति की योजना बनाती है। राज्य सरकार का वार्षिक बजट तैयार करना तथा आय-व्यय की विभिन्न मदों को निश्चित करना मन्त्रि परिषद् का कार्य है।
3. जनता में राज्य सरकार की नीति का प्रचार – मन्त्रिपरिषद् के सदस्य जनता में घूमघूमकर राज्य सरकार की नीतियों का प्रचार करते हैं तथा नीतियों एवं योजनाओं के औचित्य का प्रतिपादन करते हैं।
4. नियुक्ति सम्बन्धी कार्य – राज्यपाल को जिन अधिकारियों की नियुक्ति करने का अधिकार है, वे नियुक्तियाँ मुख्य रूप से मन्त्रिपरिषद् ही करती है। इस प्रकार राज्य के महाधिवक्ता, लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य, जिला न्यायाधीश आदि की नियुक्ति राज्य की मन्त्रिपरिषद् ही करती है।
5. नीति-निर्धारण का कार्य – मन्त्रिपरिषद् नीति-निर्धारण का कार्य करती है। वह सरकार की नीति विधानमण्डल से स्वीकृत कराती है। प्रशासन सम्बन्धी सभी नीतियाँ, कार्यक्रम एवं राज्य के कल्याण की योजनाएँ यही बनाती है तथा उनको कार्यरूप में परिणत करती है।
6. कानून-निर्माण का कार्य – मन्त्रिपरिषद् राज्य के लिए कानून बनाने का कार्य करती है। विधेयकों के प्रारूप तैयार करना, उन्हें विधानमण्डल में प्रस्तुत करना, उनके समर्थन में तर्क करना, उन पर विरोधी दलों द्वारा की गयी आलोचनाओं का उत्तर देना तथा उसे विधानमण्डल द्वारा स्वीकृत कराना आदि कार्य मन्त्रिपरिषद् के हैं।
7. राज्यपाल को परामर्श देने सम्बन्धी कार्य – मन्त्रिपरिषद् आवश्यकता पड़ने पर प्रशासन के कार्यों में राज्यपाल को परामर्श देती है। यह परामर्श न्यायालय में वाद योग्य नहीं होता। वैसे साधारणत: राज्यपाल मन्त्रिपरिषद् के परामर्श के अनुसार ही कार्य करता है।
8. राज्यपाल को अपने निर्णयों की सूचना – मन्त्रिपरिषद् अपने द्वारा लिये गये समस्त निर्णयों से राज्यपाल को अवगत कराती रहती है। राज्यपाल के लिए यह सूचना शासनसंचालन में सहायक सिद्ध होती है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मन्त्रिपरिषद् ही राज्य की वास्तविक कार्यपालिका है। शासन सम्बन्धी सम्पूर्ण कार्यवाही इन्हीं मन्त्रियों के द्वारा सम्पन्न की जाती है। केवल विधानसभा ही इस परिषद् पर अपना अंकुश रख सकती है, परन्तु विधानसभा में मन्त्रिपरिषद् के दल का बहुमत रहता है, इसलिए राज्य की वास्तविक शक्ति इसी के हाथ में रहती है। यह एक ओर तो राज्यपाल के अधिकारों का प्रयोग करती है और दूसरी ओर विधानमण्डल के अधिकारों का। इस कारण राज्य शासन मन्त्रिपरिषद् की इच्छानुसार चलता है। अतः राज्य की प्रगति अथवा अवनति का पूरा उत्तरदायित्व मन्त्रिपरिषद् का ही है। एक स्वस्थ और योग्य मन्त्रिपरिषद् तो राज्य की काया ही पलट सकती है।
मन्त्रिपरिषद् और राज्यपाल का सम्बन्ध
राज्यपाल राज्य का वैधानिक प्रमुख है और मन्त्रिपरिषद् राज्य की वास्तविक प्रमुख। राज्य का प्रशासन तो राज्यपाल के नाम में किया जाता है, किन्तु अधिकतर विषयों पर वास्तविक निर्णय मन्त्रिपरिषद् ही लेती है। सामान्य स्थिति में राज्यपाल से मन्त्रियों के परामर्श के अनुसार कार्य करने की आशा की जाती है। यद्यपि राज्यपाल ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं होता फिर भी संसदात्मक व्यवस्था में उसे मन्त्रियों का परामर्श मानना होता है।
संविधान में यह उल्लेख है कि मन्त्रिपरिषद् राज्यपाल के प्रसाद-पर्यन्त बनी रहेगी। सैद्धान्तिक रूप में ऐसी शक्ति प्राप्त होने पर भी कोई राज्यपाल इस प्रकार का कार्य नहीं कर पाता।
राज्य के मुख्यमन्त्री का यह कर्तव्य माना गया है कि वहे राज्य प्रशासन से सम्बन्धित मन्त्रिपरिषद् के सभी निर्णयों और विचाराधीन विधेयक की सूचना राज्यपाल को दे। राज्यपाल उस विषय में अन्य आवश्यक जानकारी भी माँग सकता है। इन सूचनाओं के आधार पर राज्यपाल मन्त्रिपरिषद् को परामर्श, प्रोत्साहन और चेतावनी देने का कार्य कर सकता है। राज्य में संवैधानिक तन्त्र की विफलता के विषय में वह अपने विवेक से ही राष्ट्रपति को रिपोर्ट तैयार करके भेजता है तथा राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने पर वह केन्द्र सरकार के निर्देशों को ध्यान में रखते हुए राज्य के शासन को चलाता है।
[संकेत – राज्य में मुख्यमन्त्री की स्थिति हेतु विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 4 का अध्ययन करें।
प्रश्न 4.
मुख्यमन्त्री की नियुक्ति कैसे होती है? उसकी प्रमुख शक्तियों तथा कार्यों का वर्णन कीजिए। [2013, 14]
या
मुख्यमन्त्री के कार्य एवं शक्तियों का उल्लेख कीजिए। [2014]
या
राज्य के मुख्यमन्त्री की नियुक्ति कैसे होती है? राज्यपाल तथा मन्त्रि-परिषद से उसके क्या सम्बन्ध होते हैं?
या
मुख्यमन्त्री के अधिकारों और कार्यों की विवेचना कीजिए तथा उसके महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
या
मुख्यमन्त्री के महत्त्वपूर्ण कार्यों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए। [2010, 11]
या
मुख्यमन्त्री की स्थिति एवं शक्तियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। [2013, 16]
या
राज्य के प्रशासन में मुख्यमन्त्री की भूमिका का वर्णन कीजिए तथा राज्यपाल के साथ उसके सम्बन्धों की विवेचना कीजिए। [2009, 10]
उत्तर :
राज्य की मन्त्रिपरिषद् के प्रधान को मुख्यमन्त्री कहा जाता है। मुख्यमन्त्री राज्य की कार्यपालिका का वास्तविक प्रधान है। अत: राज्य के प्रशासनिक ढाँचे में उसे लगभग वही स्थिति प्राप्त है जो केन्द्र में प्रधानमन्त्री की है।
मुख्यमन्त्री की नियुक्ति – संविधान के अनुच्छेद 164 में केवल यह कहा गया है कि मुख्यमन्त्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा। व्यवहार के अन्तर्गत राज्यपाल के द्वारा विधानसभा के बहुमत दल के नेता को ही मुख्यमन्त्री पद पर नियुक्त किया जाता है। मुख्यमन्त्री की नियुक्ति के सम्बन्ध में राज्यपाल दो परिस्थितियों में अपने विवेक का प्रयोग कर सकता है। प्रथम, विधानसभा में किसी एक राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हो और एक से अधिक पक्ष मुख्यमन्त्री पद के लिए दावे कर रहे हों। द्वितीय, स्थिति उस समय हो सकती है जब कि विधानसभा के बहुमत दल की कोई सर्वमान्य नेता ने हो। 1966 ई० से लेकर 1970 ई० और उसके बाद 1977-2000 ई० के काल में भारतीय संघ के कुछ राज्यों में ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो चुकी हैं और भविष्य में भी ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। उत्तर प्रदेश में एक दशक में सम्पन्न विधानसभा चुनावों (1989, 1991, 1993 और 1996 ई० में सम्पन्न विधानसभा चुनाव) ने निरन्तर ऐसी ही स्थिति को जन्म दिया है।
मुख्यमन्त्री के अधिकार तथा कार्य
मुख्यमन्त्री राज्य की मन्त्रिपरिषद् का प्रधान होता है; अतः वह शासन के सभी विभागों की देखभाल निम्नलिखित अधिकार-क्षेत्र के अन्तर्गत करता है –
1. मन्त्रिपरिषद् का निर्याता – मुख्यमन्त्री अपनी मन्त्रिपरिषद् का स्वयं निर्माण करता है। इस सन्दर्भ में राज्यपाल भी स्वतन्त्र नहीं है। अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति मुख्यमन्त्री की इच्छा से ही होती है तथा मन्त्रिपरिषद् में मन्त्रियों की संख्या मुख्यमन्त्री ही निर्धारित करता है।
2. शासन का मुखिया – मुख्यमन्त्री को शासन का मुखिया कहना अतिशयोक्ति नहीं है। वह शासन के सभी विभागों की देखभाल करता है। किन्हीं विभागों में मतभेद हो जाने पर उनका समाधान भी करता है। शासन के सभी महत्त्वपूर्ण कार्य उसी की अध्यक्षता में होते हैं तथा सभी महत्त्वपूर्ण विषयों पर उसकी सहमति आवश्यक होती है। उसी के द्वारा सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धान्त को मूर्त रूप मिलती है।
3. मन्त्रियों में विभागों का वितरण – मन्त्रियों में विभागों का वितरण भी मुख्यमन्त्री ही करती है। वह ही यह निश्चित करता है कि शासन को कितने विभागों में बाँटा जाए और कौन-सा विभाग किस मन्त्री को दिया जाए।
4. कैबिनेट का अध्यक्ष – मुख्यमन्त्री अपनी कैबिनेट का अध्यक्ष होता है। वह कैबिनेट की। बैठकों में सभापति का आसन ग्रहण करता है। कैबिनेट की बैठकों में जो निर्णय लिये जाते हैं। उनमें मुख्यमन्त्री की व्यापक सहमति होती है। यदि कोई मन्त्री मुख्यमन्त्री से किसी नीति पर सहमत नहीं है तो उसे या तो अपने विचार बदलने पड़ते हैं या फिर मन्त्रिपरिषद् से त्याग-पत्र देना पड़ता है।
5. विधानसभा का नेता – मुख्यमन्त्री विधानसभा का नेता तथा शासन की नीति का प्रमुख वक्ता होता है। वही महत्त्वपूर्ण बहसों का सूत्रपात करता है तथा नीति सम्बन्धी घोषणा भी करता है। विधानसभा के विधायी कार्यक्रमों में उसकी निर्णायक भूमिका होती है।
6. नियुक्ति सम्बन्धी अधिकार – राज्यपाल को राज्य के अनेक उच्च अधिकारियों की नियुक्ति का अधिकार है, लेकिन उसके इस अधिकार का वास्तविक प्रयोग मुख्यमन्त्री ही करता है।
7. नीति निर्धारित करना – यद्यपि राज्य की नीति मन्त्रिपरिषद् निर्धारित करती है, किन्तु इसका रूप मुख्यमन्त्री की इच्छा पर निर्भर होता है। मन्त्रिपरिषद् की नीतियों पर मुख्यमन्त्री का स्पष्ट प्रभाव होता है।
8. विधानसभा को भंग करने की सहमति – मुख्यमन्त्री राज्यपाल को परामर्श देकर विधानसभा को उसकी अवधि से पहले ही भंग करा सकता है।
9. राज्यपाल एवं मन्त्रिपरिषद् के बीच की कड़ी – मुख्यमन्त्री राज्यपाल को प्रमुख परामर्शदाता होता है। वही मन्त्रिपरिषद् के निर्णयों की सूचना राज्यपाल को देता है। राज्यपाल अपनी बात मुख्यमन्त्री के माध्यम से ही अन्य मन्त्रियों तक पहुँचाता है एवं उसी के माध्यम से शासन सम्बन्धी जानकारी प्राप्त करता है।
10. कार्यपालिका का प्रधान – राज्यपाल कार्यपालिका का मात्र वैधानिक प्रधान होता है। कार्यपालिका की वास्तविक शक्ति मन्त्रिपरिषद् के हाथ में होती है। इसलिए कार्यपालिका का वास्तविक प्रधान मुख्यमन्त्री होता है।
राज्यपाल द्वारा विधानसभा में बहुमत प्राप्त राजनीतिक दल के नेता को मुख्यमन्त्री पद पर नियुक्त किया जाता है। चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने की स्थिति में राज्यपाल स्वविवेक से मुख्यमन्त्री की नियुक्ति करता है।
मुख्यमन्त्री का महत्त्व
मुख्यमन्त्री के महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर समझा जा सकता है –
1. सरकार का प्रधान प्रवक्ता – मुख्यमन्त्री राज्य सरकार का प्रधान प्रवक्ता होता है और राज्य सरकार की ओर से अधिकृत घोषणा मुख्यमन्त्री द्वारा ही की जाती है। यदि कभी किन्हीं दो मन्त्रियों के परस्पर विरोधी वक्तव्यों से भ्रम उत्पन्न हो जाए, तो इसे मुख्यमन्त्री के वक्तव्य से ही दूर किया जा सकता है।
2. राज्य में बहुमत दल का नेता – उपर्युक्त के अतिरिक्त मुख्यमन्त्री राज्य में बहुमत दल का नेता भी होता है। उसे दलीय ढाँचे पर नियन्त्रण प्राप्त होता है और यह स्थिति उसके प्रभाव तथा शक्ति में और अधिक वृद्धि कर देती है।
3. राज्य की समस्त शासन-व्यवस्था पर नियन्त्रण – मुख्यमन्त्री राज्य की शासन-व्यवस्था पर सर्वोच्च और अन्तिम नियन्त्रण रखता है। चाहे शान्ति और व्यवस्था का प्रश्न हो, कृषि, सिंचाई, स्वास्थ्य और शिक्षा के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण निर्णय लेना हो और चाहे कोई विकास सम्बन्धी प्रश्न हो, अन्तिम निर्णय मुख्यमन्त्री पर ही निर्भर करता है। मुख्यमन्त्री मन्त्रिपरिषद् के सदस्यों को उनके विभागों के सम्बन्ध में आदेश-निर्देश दे सकता है। मन्त्रिपरिषद् के सदस्य विभिन्न विभागों के प्रधान होते हैं किन्तु अन्तिम रूप में यदि किसी एक व्यक्ति को राज्य के प्रशासन की अच्छाई या बुराई के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है तो वह निश्चित रूप से मुख्यमन्त्री ही है।
मुख्यमन्त्री राज्य के शासन का प्रधान है किन्तु किसी भी रूप में उसे राज्य के शासन का तानाशाह नहीं कहा जा सकता है। वह राज्य का सर्वाधिक लोकप्रिय जननेता है।
मुख्यमन्त्री तथा राज्यपाल का सम्बन्ध
मुख्यमन्त्री की नियुक्ति राज्यपाल करता है। विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को राज्यपाल मुख्यमन्त्री नियुक्त करता है। मुख्यमन्त्री का राज्यपाल से गहरा सम्बन्ध है, राज्य के शासन में दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। मुख्यमन्त्री के कार्यों के विवरण से राज्य के प्रशासन में मुख्यमन्त्री की स्थिति स्पष्ट हो जाती है। मुख्यमन्त्री, राज्यपाल एवं मन्त्रिपरिषद् के बीच एक कड़ी का कार्य करता है। वह राज्यपाल को मन्त्रिपरिषद् के निर्णयों के सम्बन्ध में सूचना देता है। वास्तव में मन्त्रिपरिषद् का अध्यक्ष होने के नाते संविधान ने उसका यह कर्तव्य निश्चित किया है कि वह राज्यपाल को न केवल मन्त्रिपरिषद् के निर्णयों से सम्बद्ध सूचना ही दे, अपितु शासन और विधान सम्बन्धी सुझावों के सम्बन्ध में भी सूचित करे। उसे राज्यपाल के कहने पर किसी भी ऐसे मामले को, जिस पर मन्त्रिपरिषद् ने विचार न किया हो, मन्त्रिपरिषद् के समक्ष प्रस्तुत करना होता है। वस्तुत: मुख्यमन्त्री राज्य प्रशासन की धुरी तथा वास्तविक प्रधान होता है। राज्यपाल को जो शक्तियाँ प्राप्त हैं, वास्तविक रूप में उनका प्रयोग मुख्यमन्त्री ही करता है। शान्तिकाल में राज्यपाल मुख्यमन्त्री के परामर्श के अनुसार कार्य करता है, किन्तु संकटकाल में राज्यपाल के अधिकार वास्तविक हो जाते हैं। इस समय वह मन्त्रिमण्डल का परामर्श मानने के लिए बाध्य नहीं होता।
मूल्यांकन – राज्य शासन में मुख्यमन्त्री मन्त्रिपरिषद् को आदि तथा अन्त होता है। राज्य के सम्पूर्ण शासन का उत्तरदायित्व मुख्यमन्त्री पर रहता है। यही कारण है कि राज्य के शासन के लिए हम उसी की प्रशंसा या आलोचना करते हैं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि राज्य के शासन में मुख्यमन्त्री की प्रधान भूमिका होती है।
लघु उत्तीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)
प्रश्न 1.
राज्यपालों की नियुक्ति, स्थानान्तरण व हटाने का अधिकार किसको है? क्या एक ही व्यक्ति एक ही समय में एक से अधिक राज्यों का राज्यपाल रह सकता है? [2011]
उत्तर :
राज्यपालों की नियुक्ति, स्थानान्तरण वे हटाने का अधिकार राष्ट्रपति को प्राप्त है। हाँ, एक ही व्यक्ति एक ही समय में एक से अधिक राज्यों का राज्यपाल रह सकता है। राज्यपाल दूसरे राज्य का कार्यभार अतिरिक्त प्रभारी के रूप में सम्भालता है।
राज्यपाल की नियुक्ति
संविधान के प्रारूप (Draft) में राज्यपाल का जनता द्वारा निर्वाचित होने का प्रावधान था। इस प्रश्न पर संविधान सभा में बहुत वाद-विवाद हुआ और अन्त में यह निश्चय हुआ कि राज्यपाल राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किया जाएगा।
नियुक्ति हेतु योग्यताएँ
संविधान के अनुच्छेद 157 में राज्यपाल के पद के लिए निम्नलिखित योग्यताएँ निर्धारित की गई हैं –
- वह भारत का नागरिक हो।
- वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
- वह भारतीय संघ व उसके अन्तर्गत किसी राज्य के विधानमण्डल या सदन का सदस्य न हो। यदि वह नियुक्ति के समय किसी विधानमण्डल या सदन का सदस्य हो, तो उसके पद-ग्रहण करने की तिथि से यह स्थान रिक्त समझा जाएगा।
- राज्यपाल कोई अन्य लाभ का पद धारण नहीं करेगा।
कार्यकाल
संविधान के अनुच्छेद 156 में राज्यपाल की पदावधि का उपबन्ध दिया गया है। इस अनुच्छेद के अनुसार राज्यपाल का कार्यकाल राष्ट्रपति की इच्छापर्यन्त होता है। संविधान द्वारा राज्यपाल की नियुक्ति 5 वर्षों के लिए की जाती है और पुनर्नियुक्ति भी हो सकती है, किन्तु इसके पूर्व राज्यपाल स्वयं भी राष्ट्रपति को सम्बोधित कर अपना त्याग-पत्र दे सकता है। अपना कार्यकाल समाप्त होने पर भी वह तब तक अपने पद पर बना रहेगा, जब तक कि उसके उत्तराधिकारी की नियुक्ति नहीं हो जाती है। कभी-कभी राष्ट्रपति मन्त्रिपरिषद् की सलाह पर राज्यपाल को बर्खास्त भी कर सकता है।
[राज्यपाल की स्थिति – इसके लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 2 का उत्तर देखें।]
प्रश्न 2.
राज्यपाल की किन्हीं दो प्रकार की शक्तियों को बताइए। [2016]
उत्तर :
राज्यपाल की दो प्रकार की शक्तियाँ निम्नवत् हैं
1. कार्यकारिणी शक्तियाँ
राज्य की कार्यकारिणी शक्ति राज्यपाल में निहित होती है तथा उस शक्ति का प्रयोग राज्यपाल स्वयं या अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के माध्यम से करता है। ये शक्तियाँ उन विषयों तक सीमित हैं। जिनका उल्लेख राज्य सूची और समवर्ती सूची में किया गया है। संघ सूची के विषयों के सम्बन्ध में उसको कोई शक्ति प्राप्त नहीं है। राज्यपाल उसकी कार्यकारिणी शक्तियाँ निम्नलिखित हैं –
- राज्य सूची पर अधिकार
- कार्यपालिका का संचालन
- नियुक्तियाँ सम्बन्धी अधिकार
- मन्त्रियों के कार्यों का विभाजन
- राज्यपाल का स्वेच्छाधिकार
2. वित्तीय शक्तियाँ
राज्यपाल को वित्तीय वर्ष के आरम्भ में, राज्य की उस वर्ष की अनुमानित आय-व्यय का विवरण (बजट) विधानमण्डल के सम्मुख प्रस्तुत करने का अधिकार है। उसकी संस्तुति के बिना किसी अनुदान की माँग स्वीकृत नहीं की जा सकती है और न ही कोई धन विधेयक उसकी संस्तुति के बिना विधानसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है। किन्तु किसी कर के घटाने के लिए प्रावधान करने वाले किसी संशोधन को उसकी संस्तुति की आवश्यकता नहीं होती है। राज्य की आकस्मिक निधि (Contingency Fund) उसके अधीन होती है, जिसमें से वह आकस्मिक व्यय के लिए विधानमण्डल की अनुमति के पूर्व भी धन दे सकता है।
प्रश्न 3.
राज्यपाल के किन्हीं दो विधायी अधिकारों का उल्लेख कीजिए। [2016]
या
राज्यपाल के दो विधायी कार्यों का उल्लेख कीजिए। [2014]
उत्तर :
राज्यपाल के दो विधायी (कार्य) निम्नवत् हैं
1. धन विधेयकों से सम्बन्धित अधिकार – धन विधेयक केवल राज्यपाल की सिफारिश पर ही विधानसभा में प्रस्तुत किए जा सकते हैं। उस पर कोई भी संशोधन राज्यपाल की सिफारिश के बिना प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है। किन्तु राज्यपाल धन विधेयकों को पुनर्विचार के लिए वापस नहीं भेज सकता, बल्कि सामान्यतया वह उनको स्वीकृति दे देता है।
2. अध्यादेश जारी करने का अधिकार – यदि राज्य में विधानमण्डल का अधिवेशन नहीं चल रहा हो तो राज्यपाल आवश्यकता पड़ने पर उन सभी विषयों पर अध्यादेश जारी कर सकता है जिन पर राज्य के विधानमण्डल को कानून बनाने का अधिकार है। ऐसे किसी अध्यादेश का प्रभाव वही होगा जो राज्य के विधानमण्डल द्वारा बनाए हुए किसी कानून का होता है। किन्तु इस प्रकार के अध्यादेश को विधानमण्डल के सम्मुख रखना पड़ता है। और विधानमण्डल के अधिवेशन के आरम्भ होने की तिथि से 6 सप्ताह बाद तक ही यह लागू रह सकता है। इससे पूर्व भी विधानसभा यदि चाहे तो इसे रद्द कर सकती है। उन विषयों के बारे में जिनके सम्बन्ध में राष्ट्रपति की आज्ञा के बिना राज्य के विधानमण्डल में कोई विधेयक प्रस्तुत नहीं किया जा सकता, राज्यपाल राष्ट्रपति की अनुमति के बिना अध्यादेश जारी नहीं कर सकता है।
प्रश्न 4.
यदि विधानसभा में किसी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं है, तो सरकार की रचना में राज्यपाल किन-किन विकल्पों का प्रयोग कर सकता है? [2007]
उत्तर :
राज्यपाल का एक मुख्य कार्य मुख्यमन्त्री की नियुक्ति करना है। राज्य की विधानसभा में यदि किसी एक राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त है तथा बहुमत वाले राजनीतिक दल ने अपना नेता चुन लिया है, तो राज्यपाल के लिए यह अनिवार्य हो जाता है कि वह उसी नेता को मुख्यमन्त्री नियुक्त करे।
यदि राज्य की विधानसभा में किसी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं है, उस स्थिति में राज्यपाल स्वविवेक का प्रयोग करते हुए निम्नलिखित विकल्पों का प्रयोग कर सकता है
- स्पष्ट बहुमत प्राप्त न होने की स्थिति में मुख्यमन्त्री पद के लिए एक से अधिक दावेदार हों, तब मुख्यमन्त्री के चयन और मनोनयन में राज्यपाल पदधारी को अपने विवेक का प्रयोग करते हुए सामान्यतया सबसे बड़े दल के नेता को प्राथमिकता देनी चाहिए। नवनियुक्त मुख्यमन्त्री को शीघ्रातिशीघ्र विधानसभा का अधिवेशन बुलाकर अपने बहुमत को प्रमाणित करना होता है। बहुमत को सिद्ध करने के लिए सामान्यतया 3 दिन से अधिक का समय देना, उसे मोलभाव का अवसर देना है। ऐसी स्थिति राजनीतिक तनाव, विवाद तथा उत्पातों को जन्म देती है।
- यदि ऐसी स्थिति हो कि मुख्यमन्त्री पद का दावेदार अपना बहुमत सिद्ध करने में सफल न हो, तब राज्यपाल अनुच्छेद 356 के अन्तर्गत राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए अपनी आख्यो राष्ट्रपति को भेज सकता है।
प्रश्न 5.
राज्य प्रशासन में मुख्यमन्त्री का क्या स्थान है?
उत्तर :
राज्य प्रशासन में मुख्यमन्त्री का स्थान
स्वतन्त्र भारत की राजनीति में मुख्यमन्त्रियों की स्थिति परिवर्तनशीलता रही है। अनेक राज्यों के कुछ मुख्यमन्त्री तो बहुत प्रभावशाली और शक्तिशाली रहे हैं और उन्हें ‘किंग मेकर्स’ की संज्ञा दी गई है। कुछ मुख्यमन्त्री ऐसे भी हुए हैं, जिनका व्यक्तित्व तथा कार्यप्रणाली विवादास्पद रही है और उनके विरुद्ध जाँच आयोग भी बिठाए गए हैं। कुछ मुख्यमन्त्रियों ने अपने घटक दलों के बलबूते पर अपना पद कायम रखा है। कुछ मुख्यमन्त्रियों को केन्द्र सरकार का पिछलग्गू भी माना गया है। कुछ मुख्यमन्त्रियों की गणना कठपुतली मुख्यमन्त्री के रूप में की जाती है। सी०पी० भाम्भरी ने इन्हें ‘पोस्टमैन’ की संज्ञा दी है।
वास्तव में, सत्ता की राजनीति में मुख्यमन्त्री की स्थिति परिवर्तनशील होती है। साठ और सत्तर के दशक में मुख्यमन्त्री राज्य की शक्ति के स्तम्भ समझे जाते थे, किन्तु इसके बाद मुख्यमन्त्री पद की गरिमा निरन्तर घटती गई और आज मिली-जुली सरकारों के युग में तो मुख्यमन्त्री को स्वयं अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए दाँव-पेंच से काम लेना पड़ता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)
प्रश्न 1.
राज्यपाल की आपातकालीन शक्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
यदि राज्यपाल यह अनुभव करता है कि राज्य में संविधान के अनुसार शासन का संचालन असम्भव हो गया है तो वह राष्ट्रपति को इसकी सूचना देता है। उसकी सूचना के आधार पर राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 356 के अन्तर्गत राज्य में आपातकाल की घोषणा कर देता है। तथा राष्ट्रपति के आदेशानुसार वह राज्य के शासन का समस्त कार्य अपने हाथ में ले लेता है।
प्रश्न 2.
राज्यपाल की किन्हीं दो विवेकाधीन शक्तियों का वर्णन कीजिए। [2012, 13,14]
या
राज्यपाल अपनी विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग किन परिस्थितियों में कर सकता है? किन्हीं दो का उल्लेख कीजिए। [2009]
उत्तर :
कुछ कार्य ऐसे भी हैं जिन्हें राज्यपाल मन्त्रिपरिषद् से सलाह लेने के बाद भी अपने विवेक से करता है। इस प्रकार के कार्यों को किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है। राज्यपाल, क्रिस विषय पर अपने विवेक से कार्य करेगा, इसका निर्णय भी वह स्वयं ही करता है। राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजना, कुछ विधेयकों को राष्ट्रपति की अनुमति के लिए अपने पास रोक लेना आदि मामलों में राज्यपाल, मुख्यमन्त्री और मन्त्रिपरिषद् से सलाह नहीं लेता है।
प्रश्न 3.
राज्यों की मन्त्रिपरिषद का गठन कैसे होता है?
उत्तर :
राज्यपाल विधानसभा के बहुमत प्राप्त दल के नेता को मुख्यमन्त्री नियुक्त करता है। यदि किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होता है तो राज्यपाल स्वविवेक के आधार पर ऐसे व्यक्ति को मुख्यमन्त्री नियुक्त करता है जो बहुमत प्राप्त करने में सक्षम हो सके। तत्पश्चात् उसके परामर्श से वह मन्त्रिपरिषद् के अन्य मन्त्रियों की भी नियुक्ति करता है।
प्रश्न 4.
मुख्यमन्त्री की चार शक्तियाँ और कार्य बताइए। [2008, 11, 14, 16]
उत्तर :
मुख्यमन्त्री की चार शक्तियाँ और कार्य निम्नवत् हैं –
1. अपने मन्त्रिपरिषद् का गठन करना मुख्यमन्त्री का विशेषाधिकार है।
2. मुख्यमन्त्री शासन के क्षेत्र में राज्य का नेतृत्व करता है।
3. मुख्यमन्त्री अपने मन्त्रियों का कार्यविभाजन तथा विभागों का आवंटन करता है।
4. मुख्यमन्त्री राज्य में राज्यपाल तथा सरकार के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करता है तथा प्रशासनिक कार्यों की जानकारी राज्यपाल को औपचारिक रूप से देता है।
प्रश्न 5.
मुख्यमन्त्री अपने सहयोगियों के चयन में किन-किन बातों का ध्यान रखता है? [2012]
उत्तर :
मुख्यमन्त्री अपने सहयोगियों के चयन में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखता है.
- सहयोगी प्रभावशाली, अनुभवी एवं विश्वासपात्र व्यक्ति हो।
- सहयोगी में उच्च नेतृत्व क्षमता हो।
- उत्तम चरित्र एवं अपराधी न हो।
- प्रमुख क्षेत्रों एवं वर्गों का प्रतिनिधित्व करता हो।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)
प्रश्न 1.
राज्यपाल की नियुक्ति कौन करता है? [2008, 09, 10, 11, 13]
उत्तर :
राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है।
प्रश्न 2.
राज्यपाल की नियुक्ति कितने समय के लिए की जाती है?
उत्तर :
राज्यपाल की नियुक्ति 5 वर्ष के लिए की जाती है।
प्रश्न 3.
क्या राज्यपाल पर महाभियोग लगाया जा सकता है?
उत्तर :
नहीं, राष्ट्रपति जब चाहे राज्यपाल को पदच्युत कर सकता है।
प्रश्न 4.
किन्हीं दो महिला राज्यपालों के नाम लिखिए।
उत्तर :
- सरोजिनी नायडू तथा
- एम० फातिमा बीबी।
प्रश्न 5.
उत्तर प्रदेश की प्रथम महिला मुख्यमन्त्री कौन थीं? [2010, 11, 13, 15]
उत्तर :
उत्तर प्रदेश की प्रथम महिला मुख्यमन्त्री श्रीमती सुचेता कृपलानी थीं।
प्रश्न 6
राज्य मन्त्रिमण्डल की बैठकों की अध्यक्षता कौन करता है?
उत्तर :
राज्य मन्त्रिमण्डल की बैठकों की अध्यक्षता मुख्यमन्त्री करता है।
प्रश्न 7.
राज्य के मुख्यमन्त्री की नियुक्ति कौन करता है? [2014]
उत्तर :
राज्य के मुख्यमन्त्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है।
प्रश्न 8.
राज्य की मन्त्रिपरिषद् अपने कार्यों के लिए किसके प्रति उत्तरदायी होती है?
उत्तर :
राज्य की मन्त्रिपरिषद् विधानसभा के प्रति अपने कार्यों के लिए सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है।
प्रश्न 9.
उत्तर प्रदेश की मन्त्रिपरिषद् के दो कार्यों का उल्लेख कीजिए। [2014]
उत्तर :
- राज्य प्रशासन की नीति का निर्धारण और संचालन तथा
- राज्य में शान्ति व सुव्यवस्था की स्थापना।
प्रश्न 10.
उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमन्त्री का नाम बताइए। [2008, 12]
उत्तर :
स्वतन्त्र भारत में उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमन्त्री श्री गोविन्द वल्लभ पन्त थे।
प्रश्न 11.
किसी राज्यपाल का अकस्मात निधन हो जाने पर या त्याग-पत्र देने पर, नये राज्यपाल की नियुक्ति होने तक उसका कार्यभार कौन सँभालता है?
उतर :
उस राज्य का मुख्य न्यायाधीश।
प्रश्न 12.
राज्य के प्रमुख महाधिवक्ता का प्रमुख कार्य क्या है?
उत्तर :
वह राज्य का सर्वप्रथम विधि अधिकारी है तथा उसका प्रमुख कार्य राज्य को विधि सम्बन्धी ऐसे विषयों पर सलाह देना और विधिक स्वरूप के ऐसे अन्य कार्य करना है जो राज्यपाल उसे समय-समय पर निर्देशित करे।
प्रश्न 13.
राज्य का संवैधानिक प्रधान कौन होता है?
उत्तर :
राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रधान होता है।
प्रश्न 14.
उत्तर प्रदेश की प्रथम महिला राज्यपाल का नाम बताइए। [2012, 14, 16]
उत्तर :
श्रीमती सरोजिनी नायडू।।
प्रश्न 15.
राज्य के राज्यपाल की दो व्यवस्थापिका सम्बन्धी शक्तियाँ बताइए।
उत्तर :
- विधानमण्डल के दोनों सदनों को अधिवेशन बुलाने का अधिकार तथा
- विधानमण्डल द्वारा पारित विधेयक को स्वीकृति देने का अधिकार।
प्रश्न 16.
महिला मुख्यमन्त्रियों के नाम लिखिए। [2011]
उत्तर :
सुश्री जयललिता-तमिलनाडु; सुश्री मायावती, श्रीमती सुचेता कृपलानी-उत्तर प्रदेश।
प्रश्न 17.
उत्तर प्रदेश की प्रथम महिला मुख्यमन्त्री कौन थी? [2010, 11, 13, 15]
उत्तर :
श्रीमती सुचेता कृपलानी।
प्रश्न 18.
राज्यपाल को उसके पद से कौन हटा सकता है? [2007, 09, 11]
या
राज्यपाल को पदच्युत करने का अधिकार किसको है? [2014]
उत्तर :
राज्यपाल को उसके पद से राष्ट्रपति हटा सकता है।
प्रश्न 19.
राज्यों में महाधिवक्ता की नियुक्ति कौन करता है? [2007]
उत्तर :
राज्यपाल।
प्रश्न 20.
राज्य विधान परिषद् की बैठकों की अध्यक्षता कौन करता है? [2012]
उत्तर :
राज्यपाल।
प्रश्न 21.
राज्यपाल को वापस बुलाने का अधिकार किसे है? [2012]
उत्तर :
राष्ट्रपति को।
प्रश्न 22.
क्या कोई व्यक्ति एक ही समय में एक से अधिक राज्यों का राज्यपाल हो सकता है? [2012]
उत्तर :
हाँ।
प्रश्न 23.
राज्यपाल के पद पर नियुक्ति के लिए न्यूनतम आयु क्या है? [2013]
उत्तर :
वह 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
प्रश्न 24.
भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के अनुसार राज्यपाल विधानमण्डल के विश्रान्ति काल में अध्यादेश प्रख्याजित (जारी) कर सकता है? [2014]
उत्तर :
अनुच्छेद 213 के अनुसार।
प्रश्न 25.
भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में लिखा है कि “प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा? [2014, 16]
उत्तर :
अनुच्छेद 153 में।
प्रश्न 26.
उत्तर प्रदेश का मुख्यमन्त्री किस दल से सम्बद्ध है? [2015]
उत्तर :
भारतीय जनता पार्टी से।
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
राज्य का मुख्यमन्त्री किसके प्रति उत्तरदायी होता है? [2009]
(क) राज्यपाल के प्रति
(ख) विधानसभा के प्रति
(ग) प्रधानमन्त्री के प्रति
(घ) राज्यसभा के प्रति
प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से राज्यपाल कौन-सा कदम उठाएगा यदि मुख्यमन्त्री त्याग-पत्र दे देता है?
(क) विधानसभा अध्यक्ष को मुख्यमन्त्री पद के लिए आमन्त्रित करेगा
(ख) विधानमण्डल को नया नेता चुनने को कहेगा।
(ग) विधानसभा को भंग कर देगा और नये चुनाव करने का आदेश देगा
(घ) सत्ता पक्ष को नया नेता चुनने को कहेगा
प्रश्न 3.
क्या कोई व्यक्ति एक ही समय में अधिक राज्यों का राज्यपाल ले सकता है? [2007, 11, 13]
(क) नहीं।
(ख) हाँ
(ग) हाँ, पर अधिकतम छः महीने के लिए
(घ) हाँ, पर अधिकतम दो साल के लिए
प्रश्न 4.
विधानसभा का सत्र बुलाने का अधिकार किसे है?
(क) विधानसभा के अध्यक्ष को
(ख) मुख्यमन्त्री को
(ग) राज्यपाल को
(घ) विधानसभा के सचिव को
प्रश्न 5.
राज्यपाल को उसके पद से कौन हटा सकता है? [2009, 11]
(क) प्रधानमन्त्री
(ख) राष्ट्रपति
(ग) संसद
(घ) उच्च न्यायालय
प्रश्न 6.
राज्यपाल की नियुक्ति कौन करता है? [2008]
(क) राष्ट्रपति
(ख) राज्यपाल
(ग) मुख्यमन्त्री
(घ) प्रधानमन्त्री
प्रश्न 7.
राज्य की कार्यपालिका का संवैधानिक प्रमुख कौन होता है?
(क) राष्ट्रपति
(ख) राज्यपाल
(ग) मुख्यमन्त्री
(घ) प्रधानमन्त्री
प्रश्न 8.
राज्यपाल के पद पर नियुक्ति के लिए न्यूनतम आयु है [2013]
(क) 30 वर्ष
(ख) 35 वर्ष
(ग) 21 वर्ष
(घ) 25 वर्ष
प्रश्न 9.
संविधान के किस भाग में उल्लिखित है कि “राज्यपाल को सहायता व सलाह देने के लिए एक मन्त्रिपरिषद् होगी, जिसका प्रधान मुख्यमन्त्री होगा”? [2014]
(क) संविधान के भाग 4 में
(ख) संविधान के भाग 5 में
(ग) संविधान के भाग 6 में
(घ) संविधान के भाग 7 में
प्रश्न 10.
उत्तर प्रदेश की प्रथम महिला राज्यपाल कौन थीं?
(क) श्रीमती सुचेता कृपलानी
(ख) कु० मायावती
(ग) श्रीमती विजयलक्ष्मी पण्डित
(घ) श्रीमती सरोजिनी नायडू
प्रश्न 11.
निम्नलिखित में से कौन राज्य-मन्त्रिपरिषद् को अविश्वास प्रस्ताव द्वारा हटा सकता है?
(क) विधानपरिषद्
(ख) विधानसभा
(ग) संसद
(घ) विधानमण्डल
प्रश्न 12.
उत्तर प्रदेश की प्रथम महिला मुख्यमन्त्री कौन थीं? [2014, 15]
(क) श्रीमती सरोजिनी नायडू
(ख) सुश्री मायावती
(ग) श्रीमती सुचेता कृपलानी
(घ) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 13.
उत्तर प्रदेश के राज्यपाल हैं –
(क) श्री टी०वी० राजेश्वर
(ख) श्री विष्णुकान्त शास्त्री
(ग) श्री राम नाईक
(घ) श्री बी०एल० जोशी
प्रश्न 14.
राज्यपाल, निम्नलिखित विषयों में से किन विषयों पर राष्ट्रपति को सिफारिश कर सकता [2015]
(क) राज्य मन्त्रिपरिषद् की बर्खास्तगी।
(ख) उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाया जाना
(ग) राज्य विधानसभा का विघटन
(घ) राज्य के संवैधानिक मशीनरी के रूप में ठप होने की सूचना
प्रश्न 15.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री को हटाने की क्या प्रक्रिया है? [2016]
(क) राष्ट्रपति के आदेश द्वारा
(ख) राज्यपाल के निर्देश द्वारा
(ग) विधानसभा द्वारा अविश्वास प्रस्ताव
(घ) उच्च न्यायालय के निर्देश द्वारा
उत्तर :
- (ख) विधानसभा के प्रति
- (घ) सत्ता पक्ष को नया नेता चुनने को कहेगा
- (ख) हाँ
- (ग) राज्यपाल को
- (ख) राष्ट्रपति
- (क) राष्ट्रपति
- (ख) राज्यपाल
- (ख) 35 वर्ष
- (ग) संविधान के भाग 6 में
- (घ) श्रीमती सरोजिनी नायडू
- (ख) विधानसभा
- (ग) श्रीमती सुचेता कृपलानी
- (ग) श्री राम नाईक
- (घ) राज्य के संवैधानिक मशीनरी के रूप में ठप होने की सूचना
- (ग) विधानसभा द्वारा अविश्वास प्रस्ताव।