UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 6 Public Opinion (जनमत (लोकमत))
UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 6 Public Opinion (जनमत (लोकमत))
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)
प्रश्न 1.
लोकमत से आप क्या समझते हैं? लोकमत की अभिव्यक्ति के कौन-कौन से साधन हैं [2016]
या
जनमत-निर्माण के प्रमुख साधनों का वर्णन कीजिए। [2007, 14]
या
‘जनमत के निर्माण व प्रकट करने के साधन’ पर टिप्पणी लिखिए।
या
जनमत से आप क्या समझते हैं ? स्वस्थ जनमत-निर्माण के आवश्यक साधनों का वर्णन कीजिए। [2007, 09, 12, 13, 14]
या
जनमत के विभिन्न साधनों का उल्लेख कीजिए। [2011, 12, 13, 14]
उत्तर
जनमत (लोकमत) का अर्थ व परिभाषा
साधारण शब्दों में, लोकमत अथवा जनमत का अर्थ सार्वजनिक समस्याओं के सम्बन्ध में जनता के मत से है। आधुनिक प्रजातान्त्रिक युग में लोकमत का विशेष महत्त्व है। डॉ० आशीर्वादम् ने लोकमत के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि “जागरूक व सचेत लोकमत स्वस्थ प्रजातन्त्र की प्रथम आवश्यकता है।”
विभिन्न विद्वानों ने जनमत की परिभाषाएँ निम्नवत् दी हैं-
- लॉर्ड ब्राइस का मत है कि “सार्वजनिक हित से सम्बद्ध किसी समस्या पर जनता के सामूहिक विचारों को जनमत कहा जा सकता है।”
- डॉ० बेनी प्रसाद के शब्दों में, “केवल उसी राय को वास्तविक जनमत कहा जा सकता है जिसका उद्देश्य जनता का कल्याण हो। हम कह सकते हैं कि सार्वजनिक मामलों पर बहुसंख्यक का वह मत जिसे अल्पसंख्यक भी अपने हितों के विरुद्ध नहीं मानते, जनमत कहलाता है।
उपर्युक्त परिभाषाओं का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी विषय पर अधिकांश जनता के उस मत को लोकमत अथवा जनमत कहा जाता है जिसमें लोक-कल्याण की भावना निहित हो।
जनमत के निर्माण के साधन
जनमत के निर्माण और उसकी अभिव्यक्ति में अनेक साधन सहायक होते हैं। कुछ मुख्य साधन निम्नलिखित हैं-
- समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएँ – जनमत के निर्माण में सबसे प्रमुख एवं महत्त्वपूर्ण अंग प्रेस है। प्रेस के अन्तर्गत समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ तथा अन्य प्रकार का साहित्य आ जाता है। एक विचारक ने इनको आधुनिक सभ्यता का प्रकाश स्तम्भ और प्रजातन्त्र के धर्म-ग्रन्थ कहकर पुकारा है।
- सार्वजनिक भाषण – जनमत के निर्माण में सार्वजनिक मंचों पर नेताओं या व्यक्ति-विशेष द्वारा दिये जाने वाले भाषणों का विशेष महत्त्व होता है। इन भाषणों के द्वारा जनता को राजनीतिक शिक्षा प्राप्त होती है और वह सार्वजनिक समस्याओं के प्रति जागरूक बनती है।
- शिक्षण संस्थाएँ – स्कूल, कॉलेज व विश्वविद्यालय जैसी शिक्षण संस्थाएँ भी प्रबुद्ध जनमत के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं। शिक्षण संस्थाएँ विद्यार्थियों में नागरिक चेतना जाग्रत करती हैं और उनके चरित्र-निर्माण में सहायक होती हैं।
- राजनीतिक दल – राजनीतिक दल जनमत-निर्माण के सशक्त साधन माने जाते हैं। विभिन्न राजनीतिक दल अपने-अपने विचारों तथा कार्यक्रमों को जनता के सामने रखते हैं। इससे जनता को अपना मत बनाने में बड़ी सहायता प्राप्त होती है।
- रेडियो, सिनेमा व दूरदर्शन – प्रचार की दृष्टि से रेडियो तथा टेलीविजन प्रेस से भी सशक्त माध्यम हैं। किसी महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक घटना की जानकारी रेडियो तथा दूरदर्शन द्वारा करोड़ों लोगों तक पहुँच जाती है। इसके माध्यम से संसार के विभिन्न भागों के लोग एक ही समय में किसी लोकप्रिय नेता का भाषण अथवा किसी सार्वजनिक विषय पर वाद-विवाद सुन सकते हैं।
- निर्वाचन – जनमत के निर्माण में निर्वाचन का भी महत्त्व है। निर्वाचन के समय विभिन्न राजनीतिक दल अपने-अपने कार्यक्रमों एवं नीतियों के सम्बन्ध में जनता को जानकारी देकर जनमत को अपने पक्ष में करने का प्रयास करते हैं, किन्तु जनता उसी दल के प्रत्याशी को अपना मत देती है जिसके कार्यक्रमों और नीतियों को वह देश-हित में अच्छा समझती है।
- व्यवस्थापिका सभाएँ – व्यवस्थापिका सभाएँ भी जनमत के निर्माण में सहायक सिद्ध होती हैं। व्यवस्थापिका सभाओं में विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि जाते हैं। व्यवस्थापिका सभाओं में होने वाले वाद-विवाद से सम्पूर्ण जनता को देश की महत्त्वपूर्ण समस्याओं के सभी पक्षों का समुचित ज्ञान प्राप्त होता है, जिसके आधार पर उन्हें अपना मत निर्धारित करने में सहायता मिलती है।
- धार्मिक संस्थाएँ – लोकमत के निर्माण में धार्मिक संस्थाएँ भी अपना योगदान देती हैं। इसका प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति के चरित्र, विचारों और उसके कार्यों पर पड़ता है। हमारे देश में आर्य समाज, कैथोलिक चर्च, अकाली दल आदि अनेक संस्थाओं ने भी अपने प्रचार द्वारा लोकमत को प्रभावित किया है।
- साहित्य – साहित्य भी जनमत के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। साहित्य के अध्ययन से जनता के विचारों की संकीर्णता दूर होती है और स्वस्थ जनमत के निर्माण में सहायता मिलती है।
- अफवाहें – आधुनिक युग में अफवाहें भी जनमत–निर्माण में योगदान देती हैं। कभी-कभी सच्चाई का पता लगाने हेतु जान-बूझकर अफवाहें भी फैला दी जाती हैं। पत्रकार ऐसी अफवाहों को फीलर (Feeler) के नाम से पुकारते हैं। 1942 ई० में गाँधी जी को किसी अज्ञात स्थान पर नजरबन्द किया गया था। समाचार-पत्रों ने उनकी बीमारी, अनशन आदि अफवाहें छापना प्रारम्भ कर दिया, जिसका जनमत पर व्यापक प्रभाव पड़ा और बाद में सरकार को यह स्पष्ट करना पड़ा कि गाँधी जी कहाँ पर नजरबन्द हैं।
प्रश्न 2.
जनमत से आप क्या समझते हैं ? स्वस्थ जनमत के विकास के मार्ग की प्रमुख बाधाओं का वर्णन कीजिए। [2007, 09, 12]
या
जनमत से आप क्या समझते हैं ? स्वस्थ जनमत के निर्माण की आवश्यक दशाओं का वर्णन कीजिए। [2007, 09, 12]
या
लोकतन्त्र की सफलता की आवश्यक शर्ते क्या हैं? लोकतन्त्र के विरुद्ध बाधाओं को रेखांकित कीजिए। [2016]
या
स्वस्थ जनमत के निर्माण में कौन-सी बाधाएँ आती हैं ? लिखिए। [2012, 14]
उत्तर
(संकेत-जनमत से अभिप्राय के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 का उत्तर देखें।)
स्वस्थ जनमत-निर्माण की प्रमुख बाधाएँ।
(लोकतन्त्र के विरूद्ध बाधाएँ)
स्वस्थ जनमत के निर्माण में अनेक बाधाएँ आती हैं, जिनमें प्रमुख बाधाएँ इस प्रकार हैं-
1. निर्धनता और भीषण आर्थिक असमानताएँ – जब समाज के कुछ व्यक्ति बहुत अधिक निर्धन होते हैं, तो इनका सारा समय और शक्ति दैनिक जीवन की आवश्यकताओं के साधन जुटाने में ही चली जाती है और ये सार्वजनिक हित की बातों के सम्बन्ध में विचार नहीं कर पाते। इसी प्रकार जब समाज के अन्तर्गत भीषण आर्थिक असमानताएँ विद्यमान होती हैं, तो इन असमानताओं के परिणामस्वरूप वर्ग-विद्वेष और वर्ग-संघर्ष की भावना उत्पन्न हो जाती है। जब धनी और निर्धन वर्ग एक-दूसरे को अपना निश्चित शत्रु मान लेते हैं तो वे प्रत्येक बात के सम्बन्ध में सार्वजनिक हित की दृष्टि से नहीं, वरन् वर्गीय हित की दृष्टि से विचार करते हैं।
2. निरक्षरता और दूषित शिक्षा-प्रणाली – स्वस्थ लोकमत के निर्माण के लिए यह जरूरी है कि व्यक्ति समाचार-पत्र पढ़े, विभिन्न विषयों का ज्ञान प्राप्त करे और उनके द्वारा परस्पर विचारों का आदान-प्रदान किया जाए, लेकिन ये सभी कार्य पढ़े-लिखे व्यक्तियों द्वारा ही ठीक प्रकार से किये जा सकते हैं, इसलिए निरक्षरता लोकमत के निर्माण के मार्ग की एक बहुत बड़ी बाधा है। स्वस्थ लोकमत के निर्माण हेतु न केवल शिक्षित, वरन् ऐसे नागरिक होने चाहिए। जो स्वतन्त्र रूप से विचार कर सकें और जिनमें सामान्य सूझबूझ हो। इस दृष्टि से दूषित शिक्षा-प्रणाली भी लोकमत के मार्ग की उतनी ही बड़ी बाधा है जितनी कि निरक्षरता।
3. पक्षपातपूर्ण समाचार-पत्र – समाचार-पत्र स्वस्थ लोकमत के निर्माण का कार्य उसी समय कर सकते हैं, जब वे निष्पक्ष हों, लेकिन यदि समाचार-पत्रों पर सरकार को अधिकार हो अथवा वे किन्हीं धनी व्यक्तियों या राजनीतिक दलों के प्रभाव में हों, तो इन पक्षपातपूर्ण समाचार-पत्रों के द्वारा स्वस्थ लोकमत के निर्माण का कार्य ठीक प्रकार से नहीं किया जा सकता। पक्षपातपूर्ण समाचार-पत्र लोकमत को पूर्णतया विकृत कर देते हैं।
4. दोषपूर्ण राजनीतिक दल – यदि राजनीतिक दल आर्थिक और राजनीतिक कार्यक्रम पर आधारित हों, तो ये राजनीतिक दल लोकमत के निर्माण में बहुत अधिक सहायक सिद्ध होते हैं, लेकिन जब इन राजनीतिक दलों का निर्माण जाति और भाषा के प्रश्नों के आधार पर किया जाता है, तो इन दलों के द्वारा धर्म, जाति और भाषा पर आधारित विभिन्न वर्गों के बीच संघर्षों को जन्म देने का कार्य किया जाता है। ये दोषपूर्ण राजनीतिक दल लोकमत के मार्ग को पूर्णतया भ्रष्ट कर देते हैं।
5. सार्वजनिक जीवन के प्रति उदासीनता और राजनीतिक चेतना का अभाव – स्वस्थ लोकमत के निर्माण हेतु आवश्यक है कि जनता सार्वजनिक जीवन में रुचि ले और जनता द्वारा सार्वजनिक जीवन को अपने पारिवारिक जीवन के समान ही समझा जाए, लेकिन जब जनता सार्वजनिक जीवन में कोई रुचि नहीं लेती, कोऊ नृप होउ, हमें का हानि’ का दृष्टिकोण अपना लेती है और अपने अधिकार तथा कर्तव्यों को नहीं समझती, तो ऐसी स्थिति में स्वस्थ लोकमत के निर्माण की आशा नहीं की जा सकती है।
6. वर्गीयता तथा साम्प्रदायिकता – वर्गीयता, जातिवाद, साम्प्रदायिकता आदि भावनाएँ स्वार्थपरता, असहिष्णुता और संकुचित दृष्टिकोण को जन्म देती हैं, जिनसे स्वस्थ जनमत के निर्माण में बाधा पहुँचती है।
स्वस्थ जनमत के निर्माण की बाधाओं को दूर करने के उपाय
(लोकतन्त्र की सफलता की आवश्यक शर्ते)
स्वस्थ जनमत-निर्माण के लिए विशेष अवस्थाओं की आवश्यकता होती है। स्वस्थ जनमत के निर्माण में जो बाधाएँ आती हैं, उनको दूर करके सही अवस्थाओं को उत्पन्न किया जा सकता है। ऐसा करने के लिए निम्नलिखित अवस्थाएँ आवश्यक है-
- शिक्षित नागरिक – शुद्ध जनमत-निर्माण के लिए प्रत्येक नागरिक को शिक्षित होना आवश्यक है। शिक्षित नागरिक ही देश की समस्याओं को समझ सकता है। वह नेताओं के भड़कीले भाषणों को सुनकर अपने मत का निर्माण नहीं करता।
- निष्पक्ष प्रेस – शुद्ध जनमत-निर्माण के लिए निष्पक्ष प्रेस का होना भी आवश्यक है। प्रेस दलों और पूँजीपतियों से स्वतन्त्र होनी चाहिए, ताकि वह सच्चे समाचार दे सके। स्वस्थ जनमत-निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि प्रेस ईमानदार, निष्पक्ष और संकुचित साम्प्रदायिक भावनाओं से ऊपर हो।
- गरीबी का अन्त – स्वस्थ जनमत-निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि गरीबी का अन्त किया जाये, जनता को भरपेट भोजन मिले और मजदूरों का शोषण न हो तथा समाज में आर्थिक समानता हो।
- आदर्श शिक्षा-प्रणाली – देश की शिक्षा-प्रणाली आदर्श होनी चाहिए ताकि विद्यार्थियों को दृष्टिकोण व्यापक बन सके और वे धर्म, जाति और क्षेत्र से ऊपर उठकर देश के हित में सोच सकें तथा आदर्श नागरिक बन सके।
- राजनीतिक दल आर्थिक तथा राजनीतिक सिद्धान्तों पर आधारित – स्वस्थ जनमतनिर्माण में राजनीतिक दलों का विशेष हाथ होता है। राजनीतिक दल धर्म व जाति पर आधारित न होकर आर्थिक तथा राजनीतिक सिद्धान्तों पर आधारित होने चाहिए।
- भाषण तथा विचार व्यक्त करने की स्वतन्त्रता – शुद्ध जनमत-निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि नागरिकों को भाषण देने तथा अपने विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता हो। यदि भाषण देने की स्वतन्त्रता नहीं होगी तो साधारण नागरिक को विद्वानों और नेताओं के विचारों का ज्ञान न होगा, जिससे स्वस्थ जनमत का निर्माण नहीं हो सकेगा।
- नागरिकों का उच्च चरित्र – स्वस्थ जनमत-निर्माण के लिए नागरिकों का चरित्र ऊँचा होना चाहिए। नागरिकों में सामाजिक एकता की भावना होनी चाहिए और उन्हें प्रत्येक समस्या पर राष्ट्रीय हित से सोचना चाहिए। उच्च चरित्र का नागरिक अपना मत नहीं बेचता और न ही झूठी बातों का प्रचार करता है। वह उन्हीं बातों तथा सिद्धान्तों का साथ देता है, जिन्हें वह ठीक समझता है।
- अफवाह के लिए दण्ड की व्यवस्था – मिथ्या प्रचार और अफवाह फैलाने वाले तत्वों के लिए दण्ड की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। झूठी अफवाहों का तत्काल ही खण्डन किया जाना चाहिए।
- राष्ट्रीय आदर्शों की समरूपता – स्वस्थ जनमत के निर्माण के लिए एक अनिवार्य तत्त्व यह है कि राष्ट्र के राज्य सम्बन्धी आदर्शों में जनता के मध्य अत्यधिक मतभेद न हो। इसके साथ ही राष्ट्रीय तत्त्वों में विभिन्नता कम होनी चाहिए। जिस राष्ट्र में धर्म, भाषा, संस्कृति, प्राचीन इतिहास तथा राजनीतिक परम्पराओं के मध्य विभिन्नता होगी, वहाँ इन विषयों से सम्बद्ध सार्वजनिक नीतियों के सम्बन्ध में स्वस्थ जनमत के निर्माण में बाधा पहुँचती है।
- साम्प्रदायिकता और संकीर्णता का अभाव – जिस देश में लोग जात-पात, धर्म, नस्ल आदि संकीर्ण विचारों को महत्त्व देते हैं वहाँ स्वस्थ लोकमत का विकास नहीं हो सकता।
- न्यायप्रिय बहुमत व सहनशील अल्पमत – यदि बहुमत की प्रवृत्ति अपने आपको ध्यान में रखकर विचार करने की हो जाती है तो निश्चय ही अल्पमत उदासीन होकर असंवैधानिक मार्ग को अपना लेते हैं। स्वार्थी बहुमत व विद्रोही अल्पमत लोकमत के स्वरूप को भ्रष्ट कर देता है।
प्रश्न 3.
जनतन्त्र (लोकतन्त्र) के प्रहरी के रूप में जनमत का महत्त्व समझाइए। [2010, 11, 12, 15]
या
जनमत क्या है? भारतीय राजनीति में इसकी भूमिका का विवेचन कीजिए।
या
प्रजातन्त्रीय शासन व्यवस्था में जनमत के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए। [2010, 11, 12, 15]
या
जनमत से आप क्या समझते हैं? आधुनिक लोकतन्त्र में जनमत की भूमिका की विवेचना कीजिए। [2016]
(संकेत-जनमत से अभिप्राय के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 1 का उत्तर देखें।)
उत्तर
लोकतन्त्र में राज्य-प्रबन्ध सदा लोगों की इच्छानुसार चलता है। अत: प्रत्येक राजनीतिक दल और सत्तारूढ़ दल लोकमत को अपने पक्ष में करने का प्रयत्न करता है। जैसा कि ह्यूम ने कहा है, “सभी सरकारें चाहे वे कितनी भी बुरी क्यों न हों, अपनी सत्ता के लिए लोकमत पर निर्भर होती हैं।” लोकमत के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु को शासन का आधार बनाकर कभी कोई शासन नहीं कर सकता। जिस राजनीतिक दल की विचारधारा लोगों को अच्छी लगती है, लोग उसे शक्ति देते हैं।”
लोकमत या जनमत का महत्त्व : जनतन्त्र के प्रहरी के रूप में
1. लोकतन्त्रात्मक शासन-प्रणाली में सरकार का आधार जनमत होता है- सरकार जनता के प्रतिनिधियों के द्वारा बनायी जाती है। कोई भी सरकार जनमत के विरुद्ध नहीं जा सकती। सरकार सदैव जनमत को अपने पक्ष में बनाये रखने के लिए जनता में अपनी नीतियों का प्रसार करती रहती है। विपक्षी दल जनमत को अपने पक्ष में मोड़ने का सदैव प्रयत्न करते रहते हैं ताकि सत्तारूढ़ दल को हटाकर अपनी सरकार बना सकें। जो सरकार जनमत के विरोध में काम करती है वह शीघ्र ही हटा दी जाती है। यदि लोकतन्त्रीय सरकार लोकमत के विरुद्ध कानून पारित कर देती है तो उस कानून को सफलता प्राप्त नहीं होती है। यदि हम लोकमत को लोकतन्त्रात्मक सरकार की आत्मा कहें तो गलत न होगा।
2. जनमत सरकार का मार्गदर्शन करता है- जनमत लोकतन्त्रात्मक सरकार का आधार ही नहीं, बल्कि लोकतन्त्र सरकार का मार्गदर्शक भी है। डॉ० आशीर्वादम् के अनुसार, “जागरूक और सचेत जनमत स्वस्थ प्रजातन्त्र की प्रथम आवश्यकता है।” जनमत सरकार को रास्ता भी दिखाता है कि उसे क्या करना है और किस तरह करना है। सरकार कानूनों का निर्माण करते समय जनमत का ध्यान अवश्य रखती है। यदि सरकार को पता हो कि किसी कानून का जनमत विरोध करेगा तो सरकार कानून को वापस ले लेती है।
3. जनमत प्रतिनिधियों की निरंकुशता को नियन्त्रित करता है- लोकतन्त्र में जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनकर भेजती है और जनमत जिस दल के पक्ष में होगा उसी दल की सरकार बनती है। कोई भी प्रतिनिधि अथवा मन्त्री अपनी मनमानी नहीं कर सकता। उन्हें सदैव जनमत का डर रहता है। प्रतिनिधि को पता रहता है कि यदि जनमत उसके विरुद्ध हो गया तो वह चुनाव नहीं जीत सकेगा। इसीलिए प्रतिनिधि सदा जनमत के अनुसार कार्य करता है। इस प्रकार जनमत प्रतिनिधियों को तथा सरकार को मनमानी करने से रोकता है।
4. जनमत नागरिक अधिकारों की रक्षा करता है- लोकतन्त्रात्मक शासन-प्रणाली में नागरिकों को राजनीतिक एवं सामाजिक अधिकार प्राप्त होते हैं। इन अधिकारों की रक्षा जनमत के द्वारा की जाती है। जनमत सरकार को ऐसा कानून नहीं बनाने देता जिससे जनता के अधिकारों में हस्तक्षेप हो। जब सरकार कोई ऐसा कार्य करती है जिससे जनता की स्वतन्त्रता समाप्त हो तो लोकमत उस सरकार की कड़ी आलोचना करता है।
5. जनमत सरकार को शक्तिशाली एवं दृढ़ बनाता है- जनमत से सरकार को बल मिलता है और वह दृढ़ बन जाती है। जब सरकार को यह विश्वास हो कि जनमत उसके साथ है। तो वह दृढ़तापूर्वक कदम उठा सकती है और प्रगतिशीलता की ओर काम भी कर सकती है। जनमत तो सरकार का आधार होता है और वह शासक को शक्तिशाली बना देता है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि लोकतन्त्र शासन-प्रणाली में जनमत का विशेष महत्त्व है। सरकार का आधार जनमत ही होता है और जनमते ही सरकार को रास्ता दिखाता है। सरकार जनमत की अवहेलना नहीं कर सकती और यदि करती है तो उसे आने वाले चुनावों से हटा दिया जाता है। इसीलिए सभी विचारकों का लगभग यही मत है कि लोकतन्त्र के लिए एक सचेत जनमत पहली आवश्यकता है। गैटिल के शब्दों में, “लोकतन्त्रात्मक शासन की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि लोकमत कितना सबल है तथा सरकार के कार्यों और नीतियों को किस सीमा तक नियन्त्रित कर सकता है।”
लोकमत के निर्माण में राजनीतिक दलों का योगदान
जनमत के निर्माण में राजनीतिक दल बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका रखते हैं। फाइनर के अनुसार, दलों के अभाव में मतदाता या तो नपुंसक हो जायेंगे या विनाशकारी, जो ऐसी असम्भव नीतियों का पालन करेंगे जिससे राजनीतिज्ञ ध्वस्त हो जायेंगे।” जिस राजनीतिक दल के पक्ष में जनमत होता है वही दल शासन पर अपना नियन्त्रण स्थापित कर लेता है। इसीलिए प्रत्येक दल जनमत को अपने पक्ष में रखने का प्रयत्न करता है। जनमतं के निर्माण में राजनीतिक दल निम्नलिखित विधियों से अपना योगदान देते हैं-
1. देश की विभिन्न समस्याओं पर अपने विचार और कार्यक्रमों का प्रस्तुतीकरण – राजनीतिक दल लोगों के सामने देश की विभिन्न समस्याओं पर अपने विचार रखते हैं। और उन समस्याओं को हल करने के लिए अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार राजनीतिक दल जनता का ध्यान देश की महत्त्वपूर्ण समस्याओं की ओर आकर्षित करते हैं। राजनीतिक दल आकर्षक और रचनात्मक कार्यक्रम बनाकर जनमत को अपनी ओर करने का प्रयत्न करते हैं। राजनीतिक दल जनमत को एक विशेष ढाँचे में ढालने का प्रयास करते
2. सार्वजनिक सभाएँ – राजनीतिक दल जनमत को अपने पक्ष में करने के लिए सार्वजनिक सभाएँ करते हैं। सत्तारूढ़ दल अपनी नीतियों और किये गये कार्यों की प्रशंसा करता है। और विरोधी दल सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों की आलोचना करते हैं। राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा सार्वजनिक सभाओं में दिये गये भाषण समाचार-पत्रों में छपते हैं। इससे जनता को विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के विचारों को पढ़ने-सुनने का अवसर मिलता है। चुनाव के दिनों में विशेषकर राजनीतिक दल विशाल और छोटी-छोटी सार्वजनिक सभाएँ करते हैं, जिससे लोकमत प्रभावित होता है।
3. दल का साहित्य – राजनीतिक दल जनमत का निर्माण करने में केवल भाषणों तक ही सीमित नहीं रहते, बल्कि वे दल का साहित्य भी जनता में बाँटते हैं। इस साहित्य के द्वारा राजनीतिक दल अपने उद्देश्य, अपनी नीतियों और सिद्धान्तों का प्रचार करते हैं। बहुत-से राजनीतिक दल अपने समाचार-पत्र भी निकालते हैं। इन सभी साधनों द्वारा राजनीतिक दल अपने विचार जनता और सरकार तक पहुँचाते हैं और जनमत के निर्माण में सहायता करते
4. जनता को राजनीतिक शिक्षा – राजनीतिक दल जनता में राजनीतिक जागृति उत्पन्न करते हैं तथा जनता को राजनीतिक शिक्षा देते हैं। ये सरकार और जनमत के बीच की कड़ी का काम तथा जनता को राजनीतिक गतिविधियों से भी परिचित कराते हैं।
5. विधानमण्डल में बाद-विवाद – राजनीतिक दल व्यवस्थापिका में वाद-विवाद करते हुए अपने विचार प्रकट करते हैं। यही विचार रेडियो और समाचार-पत्रों द्वारा जनता तक पहुँचते हैं। इन विचारों का भी जनमत के निर्माण में काफी प्रभाव पड़ता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)
प्रश्न 1.
जनमत-निर्माण में सहायक चार साधनों का उल्लेख कीजिए। [2011, 12, 14]
या
स्वस्थ लोकमत के निर्माण में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (टी०वी० चैनल्स आदि) की भूमिका का परीक्षण कीजिए। [2010, 11, 12, 14]
उत्तर
जनमत-निर्माण में सहायक चार साधन निम्नवत् हैं-
1. शिक्षण संस्थाएँ – जनमत के निर्माण में शिक्षण संस्थाएँ महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती हैं। शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति लोकहित का महत्त्व समझ चुका होता है तथा स्वस्थ एवं प्रबुद्ध जनमत का निर्माण करने योग्य हो जाता है। शिक्षण संस्थाओं में अनेक प्रकार के समाचार-पत्र व पत्रिकाएँ आती हैं जिनको विद्यार्थी पढ़ते हैं तथा विभिन्न घटनाओं के सम्बन्ध में विचार विमर्श करते हैं एवं अनेक प्रकार की नवीन जानकारी प्राप्त करते हैं। शिक्षण संस्थाओं में प्रमुख राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं पर सेमिनार, सिम्पोजियम तथा वाद-विवाद प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाता है।
2. जनसंचार के साधन – रेडियो, सिनेमा और टी०वी० भी जनमत के निर्माण में पर्याप्त सहयोग देते हैं। रेडियो एवं टी०वी० पर समाचारों के प्रसारण के साथ-साथ देश के प्रमुख नेताओं के मत एवं भाषण प्रसारित किये जाते हैं। महत्त्वपूर्ण विषयों पर संगोष्ठियों, परिचर्चाओं आदि का प्रसारण भी प्रबुद्ध जनमत का निर्माण करता है। इस प्रकार साधारण जनता बड़ी सरलता से देश के बड़े नेताओं और विद्वानों के विचारों से अवगत करता है। इस प्रकार साधारण जनता बड़ी सरलता से देश के बड़े नेताओं और विद्वानों के विचारों से अवगत हो जाती है और अपना मत (जनमत) निर्धारित करने का प्रयास करती है।
3. समाचार-पत्र एवं पत्र-पत्रिकाएँ – समाचार-पत्र एवं पत्र-पत्रिकाएँ जनमत को प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण सहयोग देते हैं। इनमें देश-विदेश की नीतियों, घटनाओं, शासन व्यवस्थाओं का वर्णन होता है, जिन्हें पढ़कर जनता अपना मत निर्धारित करती है। इस प्रकार समाचारपत्र साधारण जनता के लिए प्रकाश-स्तम्भ का कार्य करते हैं। जैसा कि गैटिल ने लिखा है-“समाचार-पत्र अपने समाचारों और सम्पादकीय शीर्षकों के माध्यम से तथ्यों का उल्लेख करते हैं।” नेपोलियन ने भी कहा था-“एक लाख तलवारों की अपेक्षा मुझे तीन समाचार पत्रों से अधिक भय है।”
4. राजनीतिक साहित्य – जनमत निर्माण एवं उसको अभिव्यक्त करने की दृष्टि से राजनीतिक साहित्य भी एक अच्छा साधन है। अनेक राजनीतिक दल अपने मत, नीतियों तथा देश की. सामाजिक समस्याओं को व्यक्त करने हेतु राजनीतिक साहित्य का प्रकाशन करते हैं। ऐसे साहित्य में निर्वाचन से पहले प्रकाशित होने वाले घोषणा-पत्रों का विशेष महत्त्व होता है क्योंकि जनता उनके माध्यम से दलों की नीतियों एवं योजनाओं से परिचित होकर अपना मत तय करने में सफल होती है। यह मत अन्ततोगत्वा जनादेश या जनमत का निर्माण करता है।
प्रश्न 2.
जनमत के महत्त्व को लिखिए। [2010, 11, 12, 14]
या
आधुनिक जनतन्त्र में जनमत की भूमिका को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर
आधुनिक जनतन्त्र में जनमत की भूमिका
सामान्य रूप से सभी शासन व्यवस्थाओं में जनमत अथवा लोकमत की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, परन्तु प्रजातन्त्र अथवा जनतन्त्र में इसका विशेष महत्त्व होता है। प्रजातान्त्रिक शासन जनमत से ही अपनी शक्ति प्राप्त करता है तथा उसी पर आधारित होता है। इसीलिए जनमत को जनतन्त्र का आधार कहा जाता है। संगठित जनमत ही जनतन्त्र की सफलता तथा सार्थकता की आधारशिला हैं। जनतन्त्र में जनमत की भूमिका को निम्नलिखित आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है।
- शासन की निरंकुशता पर नियन्त्रण – जनतन्त्र में शासन की निरंकुशता पर जनमत के द्वारा नियन्त्रण रखने का कार्य किया जाता है। जनतन्त्र में सरकार को स्थायी बनाने के लिए जनमत के समर्थन तथा सहमति की आवश्यकता होती है। जनमत के बल पर ही सरकारें बनती तथा बिगड़ती हैं।
- सरकारी अधिकारियों पर नियन्त्रण – जनमत द्वारा सरकारी अधिकारियों की आलोचना से उन पर नियन्त्रण रखा जाता है।
- सरकार का पथ-प्रदर्शन – जनतन्त्र में जनमत सरकार का पथ-प्रदर्शन करता है। जनमत से सरकार को इस बात की जानकारी होती है कि जनता किस प्रकार की व्यवस्था चाहती है। तथा उसके हित में किस प्रकार के कानूनों का निर्माण किया जाए।
- सरकार का निर्माण और पतन – जनमत जनतन्त्र का आधार है। जनतन्त्र में सरकार को निर्माण और पतन जनमत पर ही निर्भर करता है। जनमत का सम्मान करने वाला दल सत्ता प्राप्त करता है तथा पुनः सत्ता प्राप्त करने का अवसर बनाए रखता है। जनमत की अवहेलना करने पर शासक दल का स्थान विरोधी दल ले लेता है। ई०बी० शुल्ज के शब्दों में, “जनमत एक प्रबल सामाजिक शक्ति है, जिसकी अवहेलना करने वाला राजनीतिक दल स्वयं अपने लिए संकट आमन्त्रित करता है।”
- जनता और सरकार में समन्वय – जनमत जनता और सरकार के विचारों में समन्वय स्थापित करने की एक कड़ी है।
- नागरिक अधिकारों का रक्षक – जनमत नागरिकों के अधिकारों और स्वतन्त्रता का भी रक्षक होता है। जागरूक और सचेत जनमत शासक वर्ग को जनता के विचारों से परिचित रखता है। इस प्रकार जनमत नागरिकों के अधिकारों और स्वतन्त्रता की रक्षा करता है। स्वतन्त्रता तथा अधिकारों की रक्षा के लिए जागरूक जनमत की आवश्यकता होती है।
- राजनीतिक जागरूकता उत्पन्न करना – जनमत नागरिकों में राजनीतिक जागरूकता उत्पन्न करता है। जनमत से प्रेरित राजनीतिक जागरूकता ही जनतन्त्र का वास्तविक आधार होती है। जनमत द्वारा ही जन-सहयोग प्राप्त किया जाता है।
- नैतिक तथा सामाजिक व्यवस्था की रक्षा – जनमत का सामाजिक क्षेत्र में भी अत्यधिक महत्त्व है। जनमत नैतिक तथा सामाजिक व्यवस्था की रक्षा करता है और नागरिकों का ध्यान महत्त्वपूर्ण सामाजिक प्रश्नों तथा समस्याओं की ओर आकृष्ट करता है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि जनतन्त्र में जनमत का बहुत अधिक महत्त्व है। गैटिल के अनुसार-“जनतान्त्रिक शासन की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि जनमत कितना सबल है। तथा सरकार के कार्यों तथा नीतियों को किस सीमा तक नियन्त्रित कर सकता है।” डॉ० आशीर्वादम् के अनुसार, “जागरूक और सचेत जनमत स्वस्थ जनतन्त्र की प्रथम आवश्यकता है। वास्तव में प्रबुद्ध जनमत लोकतन्त्र का पहरेदार है।
लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)
प्रश्न 1.
लोकमत की कोई दो विशेषताएँ लिखिए। [2012]
या
जनमत अथवा लोकमत की विशेषताएँ (लक्षण) बताइए।
उत्तर
जनमत अथवा लोकमत की परिभाषाएँ यद्यपि एक-दूसरे से भिन्न हैं फिर भी वे उसकी प्रमुख तीन विशेषताओं को स्पष्ट रूप से प्रकट करती हैं-
1. जनसाधारण का मत – जनमत के लिए यह आवश्यक है कि वह जनसाधारण का मत हो। किसी विशेष वर्ग अथवा व्यक्तियों का मत जनमत नहीं हो सकता। विलहेम बोयर ने ठीक ही कहा है कि, “जनमत किसी गुट विशेष का विचार एवं सिद्धान्त मात्र न होकर जनसाधारण की सामूहिक आस्था और विश्वास होता है।”
2. लोक-कल्याण की भावना से प्रेरित – जनमत की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और आवश्यक विशेषता लोक-कल्याण की भावना होती है। डॉ० बेनी प्रसाद ने कहा है कि “वही मत वास्तविक जनमत होता है जो जन-कल्याण की भावना से प्रेरित हो।” इसी बात को लॉवेल ने इन शब्दों में कहा है कि “जनमत के लिए केवल बहुमत ही पर्याप्त नहीं होता और न ही एक मत की आवश्यकता होती है। किसी भी मत को जनमत का रूप धारण करने के लिए ऐसा होना चाहिए जिसमें चाहे अल्पमत भागीदार न हो, परन्तु भय के कारण नहीं, वरन् दृढ़ विश्वास के कारण स्वीकार करता हो।’
3. विवेक पर आधारित स्थायी विचार – जनमत भावनाओं के अस्थिर आवेग या एक समयविशेष में प्रचलित विचार पर आधारित नहीं होता, अपितु उसका आधार जनता के विवेकपूर्ण और स्थायी विचार होते हैं। स्थायित्व जनमत को अनिवार्य लक्षण है।
प्रश्न 2.
लोकमत की विशेषताओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर
लोकमत अथवा जनमत की निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं-
- यह जनसाधारण के बहुसंख्यक भाग का मत होता है।
- यह विवेक पर आधारित मत होता है।
- यह लोक-कल्याण की भावना से प्रेरित होता है।
- यह सर्वथा निष्पक्ष होता है।
- यह नैतिकता और न्याय की भावना पर आधारित होता है।
- जनता की संगठित शक्ति का प्रतीक है।
प्रश्न 3.
समाचार-पत्रों को लोकतन्त्र का चतुर्थ स्तम्भ क्यों कहा गया है ?
उत्तर
समाचार-पत्र एवं प्रेस जनमत के निर्माण के महत्त्वपूर्ण साधन हैं। समाचार-पत्र देशविदेश की विविध घटनाओं, समस्याओं और विचारों को जन-साधारण तक पहुँचाने का कार्य करते हैं। समाचार-पत्र केवल सामयिक घटनाओं का विवरण ही नहीं देते, वरन् निकट भविष्य में होने वाले परिवर्तनों का आभास देकर जनता के विचारों को प्रभावित करते हैं। समाचार-पत्र जनता की भावनाओं को सरकार तक और सरकार के निर्णयों को जनता तक पहुँचाते हैं। इसी कारण समाचारपत्रों को ‘लोकतन्त्र का चतुर्थ स्तम्भ’ कहा गया है।
प्रश्न 4.
जनमत की अभिव्यक्ति के दो साधन बताइए। [2013]
उत्तर
जनमत की अभिव्यक्ति के दो साधनों का विवरण निम्नवत् है-
- निर्वाचन – निर्वाचन व्यक्तियों को जनमत अभिव्यक्त करने का सर्वोत्तम साधन उपलब्ध कराते हैं। निर्वाचन में मतदान के द्वारा अपने मत के माफिक उम्मीदवार को विजयी बनाकर, लोग अपने जनमत की अभिव्यक्ति करते हैं।
- समाचार-पत्र और पत्रिकाओं – में अपने विचारों की अभिव्यक्ति के द्वारा भी लोग अपना जनमत अभिव्यक्त करते हैं। देश के समक्ष उपस्थित समस्याओं और उनके समाधान के प्रति जनता अपना मत समाचार-पत्रों व पत्रिकाओं के माध्यम से प्रभावी ढंग से व्यक्त करती है।
प्रश्न 5.
सोशल मीडिया का जनमत निर्माण में क्या योगदान है? [2016]
उत्तर
स्पेशल मीडिया यानि इण्टरनेट, टेलीविजन, दूरसंचार की आधुनिक प्रणालियाँ और कम्प्यूटर-प्रणाली में जो विचार-विमर्श होता है, उससे भी जनमत के रुझान का पता लगाने में सहयोग मिलता है। रेडियो एवं टेलीविजन पर समाचारों के प्रसारण के साथ-साथ देश के प्रमुख नेताओं के मत एवं भाषण प्रसारित किए जाते हैं। महत्त्वपूर्ण विषयों पर संगोष्ठियों, परिचर्चाओं आदि का प्रसारण भी प्रबुद्ध जनमत का निर्माण करता है। इस प्रकार साधारण जनता बहुत सरलता से देश के बड़े नेताओं और विद्वानों के विचारों से अवगत हो जाती है और अपना मत (जनमत) निर्धारित करने का प्रयास करती है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)
प्रश्न 1.
लोकमत की एक परिभाषा लिखिए। उक्ट लॉर्ड ब्राइस के अनुसार, “सार्वजनिक हित से सम्बद्ध किसी समस्या पर जनता के सामूहिक विचारों को जनमत कहा जा सकता है।”
प्रश्न 2.
जनमत के कोई दो तत्त्व लिखिए।
उत्तर
- सार्वजनिक हित पर आधारित तथा
- व्यापक सहमति।
प्रश्न 3.
लोकतन्त्र में जनमत के कोई दो महत्त्व बताइए।
उत्तर
- जनमत शासन-प्रणाली का आधार होता है तथा
- जनमत सरकार की निरंकुशता को नियन्त्रित करता है।
प्रश्न 4.
जनमत-निर्माण के किन्हीं दो साधनों के नाम लिखिए। [2007, 10, 11, 13, 14, 16]
उत्तर
- राजनीतिक दल तथा
- समाचार-पत्र तथा पत्रिकाएँ।
प्रश्न 5.
स्वस्थ जनमत-निर्माण में किन्हीं दो बाधाओं का वर्णन कीजिए। [2011, 14, 15]
उत्तर
- निरक्षरता एवं अज्ञानता तथा
- निर्धनता।
प्रश्न 6.
स्वस्थ जनमत के निर्माण में निर्धनता किस प्रकार बाधक है?
उत्तर
निर्धन व्यक्ति अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति में ही लगा रहता है और उससे सार्वजनिक समस्याओं पर चिन्तन की आशा नहीं की जा सकती जिसके बिना जनमत का निर्माण नहीं किया जा सकता।
प्रश्न 7.
स्वस्थ जनमत (लोकमत) निर्माण की दो आवश्यक शर्ते बताइए। या स्वस्थ जनमत के विकास की कोई एक शर्त बताइए।
उत्तर
- जनमत का शिक्षित होना तथा
- प्रेस का निष्पक्ष होना।
बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)
1. लोकतन्त्र का चतुर्थ स्तम्भ है- [2015, 16]
(क) समाचार-पत्र
(ख) निष्पक्ष मतदान
(ग) शिक्षा
(घ) सुशिक्षित नागरिक
2. कौन-सा लोकमत का लक्षण नहीं है ?
(क) सार्वजनिक कल्याण की भावना
(ख) विवेक
(ग) अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा
(घ) जन-इच्छा
3. लोकमत का पर्याय क्या है?
(क) सामान्य चेतना
(ख) सामान्य इच्छा
(ग) सामान्य जागरूकता
(घ) सामान्य ज्ञान
4. लोकमत की अभिव्यक्ति केवल सम्भव है-
(क) लोकतन्त्र में
(ख) निरंकुशतन्त्र में
(ग) सर्वाधिकारवाद तन्त्र में
(घ) कुलीनतन्त्र में
5. निम्नलिखित में से स्वस्थ जनमत के निर्माण में कौन-सी बाधा नहीं है?
(क) भाषावाद
(ख) क्षेत्रवाद
(ग) सम्प्रदायवाद
(घ) राजनीतिक जागृति
6. किसके अनुसार ‘सतर्क एवं सुविज्ञ जनमत’ जनतन्त्र की प्रथम आवश्यकता है? [2007]
(क) ब्राइस
(ख) लॉवेल
(ग) डॉ० आशीर्वादम्।
(घ) विल्की
7. भारत में जनमत निर्माण के लिए निम्न में से कौन-सा कारक सूचना प्रदान करता है? [2013]
(क) छोटे समूहों में वार्तालाप
(ख) टी०वी०पर राष्ट्रव्यापी शैक्षिक कार्यक्रमों को देखना
(ग) विशेषज्ञों के भाषण
(घ) उपर्युक्त सभी
8. स्वस्थ जनमत के निर्माण की सबसे बड़ी बाधा है। [2016]
(क) राजनीतिक दल
(ख) पत्र-पत्रिकाएँ
(ग) निरक्षरता
(घ) राजनीतिक चेतना
उत्तर
- (क) समाचार-पत्र,
- (घ) जन-इच्छा,
- (ख) सामान्य इच्छा,
- (क) लोकतन्त्र में,
- (घ) राजनीतिक जागृति,
- (ग) डॉ० आशीर्वादम्,
- (घ) उपर्युक्त सभी,
- (ग) निरक्षरता