UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 15 Major Manufacturing Industries (प्रमुख विनिर्माणी उद्योग)

By | May 29, 2022

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 15 Major Manufacturing Industries (प्रमुख विनिर्माणी उद्योग)

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 15 Major Manufacturing Industries (प्रमुख विनिर्माणी उद्योग)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
विश्व के लौह-अयस्क उत्पादक क्षेत्रों का वितरण तथा उसके अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का वर्णन कीजिए। [2015]
या
लोहा तथा इस्पात उद्योग के स्थानीयकरण के प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए तथा विश्व में इस उद्योग के प्रमुख क्षेत्रों या केन्द्रों का उल्लेख कीजिए [2007, 11, 12, 16]
या
संयुक्त राज्य अमेरिका या जर्मनी के लोहा तथा इस्पात उद्योग का वर्णन कीजिए।
या
चीन के लोहा-इस्पात उद्योग का वर्णन कीजिए।
या
विश्व के किन्हीं दो देशों में लौह-अयस्क के वितरण एवं उत्पादन का वर्णन कीजिए। [2008]
या
लोहा एवं इस्पात उद्योग के स्थानीयकरण के कारकों की विवेचना कीजिए तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में इस उद्योग के प्रमुख केन्द्रों का वर्णन कीजिए। [2012, 16]
या
संयुक्त राज्य अमेरिका में लौह-इस्पात उद्योग के विकास के प्रमुख कारकों का विवेचन कीजिए तथा इस उद्योग के प्रमुख क्षेत्रों एवं केन्द्रों का वर्णन कीजिए। [2014]
या
विश्व में लौह-अयस्क का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए
(क) उत्पादक क्षेत्र
(ख) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार। [2014]
उत्तर

लोहा एवं इस्पात का महत्त्व Importance of Iron and Steel

वर्तमान में यान्त्रिक एवं औद्योगिक सभ्यता का आधार लोहा एवं इस्पात माना जाता है, क्योंकि अन्य उद्योगों के लिए लोहा-इस्पात कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। मानव-जाति की वर्तमान एवं भावी समृद्धि लोहे एवं इस्पात के उत्पादन पर निर्भर करती है। विश्व में जितनी भी धातुओं का उत्पादन किया जाता है, उसमें लगभग 90% भाग लोहे का ही होता है। वर्तमान अन्तरिक्ष युग में कुछ हल्की धातुओं (ऐलुमिनियम) का प्रयोग अधिक किया जाने लगा है, परन्तु लोहे की कठोरता, प्रबलता, स्थायित्व, लचीलेपन एवं सस्तेपन आदि गुणों के कारण अन्य धातुएँ इसका स्थान नहीं ले सकी हैं। इसके उपर्युक्त विशेष गुणों के कारण ही इसे विभिन्न रूपों में ढाला जा सकता है।

लोहा-इस्पात उद्योग की अवस्थिति के लिए उत्तरदायी कारक – लोहा-इस्पात उद्योग की स्थापना के लिए निम्नलिखित कारकों का योगदान सर्वोपरि रहती है –

  1. भूमि का विस्तृत क्षेत्र;
  2. कच्चे माल की उपलब्धि –
    1. स्वच्छ जल
    2. तप्त वायु
    3. कोक योग्य कोयला
    4. लौह-अयस्क
    5. चूना-पत्थर
    6. स्क्रैप एवं
    7. मिश्र धातुएँ;
  3. बाजार की सुविधा;
  4. परिवहन के विकसित साधन;
  5. पर्याप्त मात्रा में पूँजी की उपलब्धता;
  6. मानवीय श्रम की पर्याप्तता;
  7. सरकारी नीतियाँ एवं प्रोत्साहन;
  8. सस्ता और कुशल श्रम;
  9. पर्याप्त मशीनें तथा उपकरण;
  10. शक्ति के सुलभ साधन।

विश्व में लौह-इस्पात उद्योग का वितरण एवं उत्पादन
Distribution and Production of Iron-Steel in the World

विश्व के अग्रणी लोहा-इस्पात उत्पादक देश क्रमश: जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, रूस, दक्षिण कोरिया, ब्राजील, यूक्रेन, जर्मनी, भारत, इटली, कनाडा, ब्रिटेन, बेल्जियम तथा स्पेन हैं।

(अ) संयुक्त राज्य अमेरिका का लोहा-इस्पात उद्योग
Iron-Steel Industry of U.S.A.

विश्व के लौह-इस्पात उत्पादक देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका तीसरा स्थान रखता है। यहाँ लोहा-इस्पात उत्पादन के छः क्षेत्र मुख्य स्थान रखते हैं, जिनका विवरण निम्नलिखित है –

(1) पिट्सबर्ग-यंग्सटाउन क्षेत्र – इस प्रदेश में संयुक्त राज्य का लगभग एक-तिहाई इस्पात का उत्पादन किया जाता है। इसमें इस्पात उत्पादन के निम्नलिखित तीन उप-क्षेत्र हैं –

  1. पिट्सबर्ग क्षेत्र – यहाँ ओहियो, माननघेला एवं अलेघनी नदियों की घाटियों में इस्पात उद्योग के कारखाने स्थापित हुए हैं। इस्पात-निर्माण के सभी केन्द्र पिट्सबर्ग से 65 किमी के भीतर स्थित हैं।
  2. यंग्सटाउन क्षेत्र – यंग्सटाउन से 50 किमी की दूरी पर शेनांगो एवं माहोनिंग नदियों की घाटियों में इस्पात के कारखाने विकसित हुए हैं।
  3. जोन्सटाउन क्षेत्र – इस क्षेत्र का विस्तार कोनेमाघ नदी की घाटी में हुआ है। प्रमुख इस्पात केन्द्र पिट्सबर्ग, यंग्सटाउन, ह्वीलिंग, हंटिंगटन, पोसमाउथ, जोन्सटाउन आदि हैं।

(2) शिकागो – गैरी क्षेत्र – संयुक्त राज्य में इस क्षेत्र का लोहा-इस्पात उत्पादन में प्रथम स्थान है, जहाँ देश का 35% इस्पात निर्मित किया जाता है। इस क्षेत्र में लौह-अयस्क, कोयला स्थानीय, कुछ लौह-अयस्क झील परिवहन द्वारा आयात, मिशीगन राज्य से चूना-पत्थर, स्वच्छ जल की प्राप्ति, बाजार की समीपता आदि भौगोलिक सुविधाएँ प्राप्त हैं। प्रमुख इस्पात केन्द्र शिकागो, गैरी, इण्डियाना हार्वर, मिलवाकी एवं सेण्ट-लुईस हैं।

(3) झीलतटीय क्षेत्र – झीलों के तटीय भागों में सबसे बड़ी सुविधा लौह-अयस्क की प्राप्ति का होना है। इस क्षेत्र के इस्पात केन्द्र आयातित कोयले पर निर्भर करते हैं। प्रमुख इस्पात केन्द्रों में बफैलो, क्लीवलैण्ड, डेट्रायट, डुलूथ, ईरी, टोलेडो एवं लॉरेन आदि प्रमुख हैं। डेट्रायट संयुक्त राज्य के दो बड़े केन्द्रों में से एक है।

(4) मध्य अटलांटिक तटीय क्षेत्र – इस क्षेत्र का विस्तार न्यू इंग्लैण्ड राज्यों से वर्जीनिया राज्य तक विस्तृत है। बेथलेहम, स्पैरोजप्वाइण्ट, मोरिसविले मुकडेन, ईस्टर्न एवं फिलिप्सबर्ग प्रमुख इस्पात-निर्माण के केन्द्र हैं। इस क्षेत्र को सबसे बड़ी सुविधा विदेशों से लौह-अयस्क आयात करने की है, जो कनाडा, वेनेजुएला, ब्राजील, पीरू, चिली, अल्जीरिया एवं दक्षिणी-अफ्रीकी देशों से आयात किया जाता है। इस क्षेत्र में स्थित स्पैरोजप्वाइण्ट विश्व का सबसे बड़ा इस्पात-निर्माण केन्द्र है। तटीय स्थिति होने के कारण इस क्षेत्र के भावी विकास की अधिक सम्भावनाएँ हैं।

(5) दक्षिणी क्षेत्र – इस क्षेत्र में बर्मिंघम सबसे बड़ा एवं महत्त्वपूर्ण केन्द्र है। यहाँ पर कोयला, लौह-अयस्क एवं चूना-पत्थर स्थानीय रूप से उपलब्ध हैं। टेक्सास राज्य में हाउस्टन, फ्लोरेंस, शाण्यनुगा एवं डेंगरफील्ड अन्य मुख्य इस्पात केन्द्र हैं। इस क्षेत्र में कच्चे माल तथा स्थानीय बाजार की पर्याप्त सुविधाएँ हैं।

(6) पश्चिमी क्षेत्र – संयुक्त राज्य के पश्चिम में प्रशान्त तट के सहारे-सहारे इस्पात केन्द्र विकसित हुए हैं। इस क्षेत्र के प्रमुख केन्द्र प्यूबलो, डेनेवर, प्रोवो, जेनेवा, टेकोमा, सेनफ्रांसिस्को, लॉस-एंजिल्स एवं फोटाना हैं।

(ब) जापान का लोहा-इस्पात उद्योग
Iron-Steel Industry of Japan

विश्व के लोहा – इस्पात देशों में जापान की अब द्वितीय स्थान है, जिसने बिना लौह-अयस्क के अपने उत्पादन में वृद्धि कर ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस आदि देशों को भी पीछे छोड़ दिया है। जापान में लौह-अयस्क एवं कोयला, दोनों ही कच्चे पदार्थों की कमी आरम्भ से ही रही है; अत: शक्ति के लिए जल-विद्युत का उपयोग किया जाता है। यहाँ पर कोकिंग कोयला संयुक्त सज्य अमेरिका, कनाडा तथा ऑस्ट्रेलिया से आयात किया जाता है। लौह-अयस्क भारत, मलेशिया, फिलीपीन्स, वेनेजुएला, पीरू तथा ब्राजील से आयात की जाती है तथा स्क्रैप संयुक्त राज्य से मँगाई जाती है। कच्चे माल को आयात करने की सुविधा के कारण जापान में इस्पात केन्द्रों की स्थापना सागरतटीय क्षेत्रों में की गयी है। जापान के लोहा-इस्पात उद्योग में निम्नलिखित प्रदेश प्रमुख स्थान रखते हैं –

  1. मौजी प्रदेश – इस प्रदेश में जापान का तीन-चौथाई इस्पात का उत्पादन किया जाता है। आयातित कच्चे माल पर यहाँ इस्पात उद्योग का विकास किया गया है। उत्तरी क्यूशू में मौजी एक प्रमुख औद्योगिक प्रदेश है। यहाँ पर यावाता, तोबाता, मौजी, फुकुओका, कोकुरा, ओगुता, शिमोनोसेकी एवं नागासाकी प्रमुख इस्पात उत्पादक केन्द्र हैं।
  2. कैमेशी प्रदेश – होशू द्वीप के पूर्वी भाग में इस्पात प्रदेश की स्थाफ्ना हुई है। इस प्रदेश को कुछ लौह-अयस्क स्थानीय रूप से कुंजी एवं सेण्डाई की खानों से प्राप्त हो जाती है। आन्तरिक सागर के पूर्वी सिरे पर कोबे एवं ओसाका इस्पात केन्द्र स्थित हैं। होंशू द्वीप के पूर्वी भाग में टोकियो एवं याकोहामा महत्त्वपूर्ण इस्पात केन्द्र हैं। अन्य केन्द्रों में हिरोहिता, चिबा, अमागासाकी, सकाई, वाकायामा, कावासाकी एवं मित्सुके प्रमुख हैं।
  3. मुरारां प्रदेश – इस प्रदेश का विस्तार होकैडो द्वीप में है। यहाँ पर कुछ कच्चा माल स्थानीय रूप से उपलब्ध हो जाता है। कुछ लोहा स्थानीय रूप से मुरारां की खानों से तथा लौह-अयस्क इशीकारी की खानों से प्राप्त होती है। वैनिशी, सपारो, मुरारां एवं हैकोडेट प्रमुख इस्पात उत्पादक केन्द्र हैं।

जापान में क्यूशू द्वीप पर स्थित मौजी प्रदेश में देश का 75% इस्पात-निर्माण किया जाता है। इस्पात-निर्माण में वृद्धि के कारण यहाँ इन्जीनियरिंग, यन्त्र-निर्माण, जलपोत-निर्माण आदि उद्योगों को विकास हुआ है। इसी कारण जापान एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा औद्योगिक देश बन गया है।

(स) जर्मनी का लोहा-इस्पात उद्योग
Iron-Steel Industry of Germany

विश्व में जर्मनी का लोहा-इस्पात उत्पादन में छठा स्थान है। इस देश में लोहा-इस्पात उत्पादन के निम्नलिखित क्षेत्र प्रमुख स्थान रखते हैं –
(1) र प्रदेश – जर्मनी के लौह-इस्पात उद्योग का सबसे सघन संकेन्द्रण रूर क्षेत्र में हुआ है। रूर नदी-बेसिन के नाम पर इस प्रदेश का नामकरण हुआ है। यह नदी राइन नदी में आकर मिलती है। रूर क्षेत्र यूरोप महाद्वीप का सबसे बड़ा लौह-इस्पात उत्पादक क्षेत्र है। इसे निम्नलिखिते भौगोलिक सुविधाएँ प्राप्त हैं –

  • रूर बेसिन में सर्वोत्तम प्रकार के एन्थ्रासाइट एवं कोकिंग कोयले के भण्डार हैं। यहाँ एमेस्चेर घाटी में भी कोयला मिलता है।
  • लौह – अयस्क स्थानीय रूप से सीज घाटी, साल्जगिटर एवं दक्षिणी भाग में बवेरिया से प्राप्त हो जाती है। शेष अयस्क अन्य यूरोपीय देशों से आयात की जाती है। फ्रांस के लॉरेन प्रदेश, लक्जमबर्ग, स्वीडन,तथा स्पेन से उच्च-कोटि का कच्चा लोहा आयात किया जाता है।
  • चूना – पत्थर रूर की दक्षिणी पहाड़ियों से प्राप्त हो जाता है।
  • रूर, राईन, लिप्पे नदियाँ, एम्स-डोर्टमण्ड कैनाल एवं अन्य बहुत-सी नहरें इस क्षेत्र को स्वच्छ जल की आपूर्ति करती हैं। नदियाँ सस्ते जल-परिवहन की सुविधा भी प्रदान करती हैं।
  • जर्मनी में परिवहन साधनों-सड़कों एवं रेलमार्गों-का जाल-सा बिछा हुआ है। जल-यातायात की सुविधा इस क्षेत्र को आसानी से प्राप्त है।
  • इस प्रदेश में जलमार्गों द्वारा लौह-अयस्क कनाडा, वेनेजुएला, ब्राजील, पीरू, गिनी एवं सियरालियोन से भी आयात की जाती है।

जर्मनी को 90% इस्पात-उत्पादन रूर क्षेत्र से प्राप्त होता है। इस प्रदेश के प्रमुख केन्द्र ऐसेन, डार्टमण्ड, ओवर हॉसेन, डूसेलडर्फ, बोचम, ग्लेसेनकिरचेन, डुइसबर्ग आदि हैं।

(2) साइलेशिया प्रदेश – जर्मनी के पूर्व में इस क्षेत्र की स्थिति है। इस प्रदेश में कोयला पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। यहाँ लौह-अयस्क विदेशों से भी आयात किया जाता है। प्रमुख केन्द्रों में लिपजग, चिमनीज एवं ड्रेस्डन मुख्य हैं।

(3) दक्षिणी राइन प्रदेश – राइन प्रदेश में दोनों ही कच्चे माल-लौह-अयस्क एवं कोयला-विदेशों से आयात किये जाते हैं। यहाँ पर हल्के मशीनरी उपकरण एवं कृषि-यन्त्र बनाये जाते हैं। क्रेफील्ड, हनोवर, फ्रेंकफर्ट, ब्रीमेन, साल्जगिटर, स्टटगार्ट, शाफिन, लुडविग आदि महत्त्वपूर्ण इस्पात केन्द्र हैं।

(द) चीनं का लोहा-इस्पात उद्योग
Iron-Steel Industry of China

चीन में सन् 1949 में साम्यवादी सरकार की स्थापना के बाद से निर्माण उद्योगों के लिए विकास के पर्याप्त प्रयास किये गये हैं। पिछले 40 वर्षों से चीन ने इस्पात-निर्माण में तीव्र प्रगति की है। सन् 1953 में चीन का इस्पात उत्पादन बहुत कम था, परन्तु सन् 1980 तक यह ब्रिटेन एवं जर्मनी की समता करने लगा था। वर्तमान समय में चीन का विश्व इस्पात उत्पादन में प्रथम स्थान है। चीन में लौह-इस्पात उद्योग के लिए निम्नलिखित सुविधाएँ प्राप्त हैं –

  • यहाँ उच्च-कोटि को कोकिंग कोयला मिलता है, जिसके विशाल भण्डार मंचूरिया, शेन्सी, शांसी, होनान एवं शाण्टंग प्रायद्वीप में स्थापित हैं।
  • चीन में लौह-अयस्क के अधिकांश भण्डार मंचूरिया में मिलते हैं, परन्तु शांसी, शाटुंग एवं यांगटिसीक्यांग की निम्न घाटी में भी लौह-अयस्क मिलती है।
  • दक्षिणी चीन में लौह-मिश्र धातुएँ प्राप्त होती हैं।

चीन में इस्पात उत्पादन के निम्नलिखित क्षेत्र प्रमुख हैं –

  1. मंचूरिया क्षेत्र – चीन का यह प्रमुख उत्पादक क्षेत्र है, जहाँ देश का लगभग 40% इस्पात तैयार किया जाता है। प्रमुख केन्द्र आनशॉन, फुशुन, पेन्चिहू एवं मुकडेन हैं।
  2. यांगटिसीक्यांग घाटी क्षेत्र – इस क्षेत्र का विस्तार मध्य चीन में है। इस घाटी का प्रमुख इस्पात केन्द्र वुहान है। अन्य केन्द्रों में मानशॉन, हुआंगशिन, शंघाई, हैंकाऊ एवं तापेह प्रमुख हैं।
  3. उत्तरी क्षेत्र – इसे शांसी क्षेत्र के नाम से भी पुकारा जाता है। पाओटोव प्रमुख इस्पात उत्पादक केन्द्र है। यांगचुआन, टिएंटसिन, अनशॉन, बीजिंग, सिंहचिंगशॉन, ताइयुआन अन्य प्रमुख इस्पात केन्द्र हैं।
  4. अन्य छिटपुट केन्द्र – चीन में इस्पात उत्पादन के अन्य छिटपुट केन्द्र केण्टन, चुंगकिंग, शंघाई, पेनकी, चिचिआंग, सिंगटाओ, हुआंगसी, चिनलिंग, चेन एवं होपे हैं।

चीन में अधिकांश इस्पात केन्द्र कोयला क्षेत्रों में या उनके निकट स्थापित किये गये हैं। यहाँ का वार्षिक इस्पात उत्पादन 475 लाख मीटरी टन है।
विश्व के अन्य इस्पात उत्पादक देशों में स्वीडन, फ्रांस, इटली, भारत, नीदरलैण्ड, पोलैण्ड, कनाडा, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया आदि मुख्य हैं।

(य) ग्रेट ब्रिटेन का लोहा-इस्पात उद्योग
Iron-Steel Industry of U.K.

लोहा-इस्पात उद्योग का सूत्रपात सबसे पहले अट्ठारहर्वी शताब्दी में ग्रेट ब्रिटेन में ही हुआ था। अब लोहा-इस्पात उद्योग में ग्रेट ब्रिटेन का विश्व में तेरहवाँ स्थान हो गया है। इस देश में कोयला पर्याप्त मात्रा में निकाला जाता है, परन्तु लौह-अयस्क का अभाव है, जिसकी पूर्ति अल्जीरिया, स्पेन, स्वीडन एवं संयुक्त राज्य अमेरिका से आयात कर की जाती है। यहाँ लोहा-इस्पात उद्योग के केन्द्र तटीय भागों में स्थापित किये गये हैं, जहाँ कोयले की खाने समीप हैं तथा लौह-अयस्क आयात करने की सुविधा रहती है। यह देश विश्व का 3 प्रतिशत लोहा एवं इस्पात तैयार करता है। यहाँ लोह्म-इस्पात के प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं –

(1) दक्षिणी वेल्स प्रदेश – यह ब्रिटेन का सबसे बड़ा लोहा-इस्पात उत्पादक क्षेत्र है जहाँ देश का लगभग 25% इस्पात तैयार किया जाता है। यहाँ कोयला स्थानीय खानों से तथा लौह-अयस्क स्पेन व अल्जीरिया से आयात की जाती है। इस क्षेत्र में टिन-प्लेट, इस्पात की चादरें, रेल-इंजिन, पटरियाँ तथा जलयान बनाये जाते हैं। यहाँ के मुख्य लोहा-इस्पात केन्द्र टैलबोट, न्यूपोर्ट, वेल्स, स्वाँसी, कार्डिफ, बारो आदि हैं।

(2) उत्तर-पूर्वी तटीय प्रदेश – यह ग्रेट ब्रिटेन का दूसरा प्रमुख लोहा-इस्पात उत्पादक प्रदेश है। इस क्षेत्र को नार्थम्बरलैण्ड तथा डरहम क्षेत्रों से कोकिंग कोयला प्राप्त हो जाता है तथा स्थानीय क्लीवलैण्ड की खानों से लौह-अयस्क की प्राप्ति होती है। यहाँ लोहे के शहतीर, जलयान, गर्डर, पुल, पटरियाँ तथा छड़ें बनाई जाती हैं। इस प्रदेश के प्रधान केन्द्र न्यूकैसिल, सुन्दरलैण्ड, डार्लिंगटन, डरहम, हार्टलपुल, साउथशील्ड, स्टॉकटन तथा मिडिल्सबरो आदि हैं।

(3) दक्षिणी यार्कशायर प्रदेश – इस क्षेत्र का लोहा-इस्पात के उत्पादन में ग्रेट ब्रिटेन में तीसरा स्थान है। यहाँ स्थानीय रूप से लौह-अयस्क कुछ मात्रा में प्राप्त होती है, परन्तु यह पर्याप्त नहीं है; अतः इस प्रदेश को लौह-अयस्क स्वीडन से आयात करनी पड़ती है। यहाँ शक्ति हेतु लकड़ी का कोयला प्रयोग में लाया जाता है तथा तीव्र प्रवाह वाली नदियों से जलशक्ति भी प्राप्त की जाती है। यह प्रदेश विश्व भर में लोहा-इस्पात उद्योग के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ देश का लगभग 12% इस्पात तैयार किया जाता है। इसके प्रधान केन्द्र लीड्स, चैस्टरफील्ड, डॉनकास्टर, शैफील्ड, नाटिंघम तथा राथरडम आदि हैं।

(4) ब्लैक कण्ट्री प्रदेश – यह क्षेत्र स्टेफर्डशायर तथा उत्तरी वारविकशायर तक फैला हुआ है। यहाँ कच्चे माल की आपूर्ति स्थानीय है। इस प्रदेश में हल्की तथा मूल्यवान वस्तुएँ; जैसे—सुइयाँ, कीलें, जंजीरें, मशीनों के पुर्जे, सैन्य अस्त्र-शस्त्र, बन्दूकें, पिस्तौल आदि बनाई जाती हैं। इस क्षेत्र का प्रमुख केन्द्र बर्मिंघम है। अन्य केन्द्रों में डेडले, रेडिस, कवेण्ट्री आदि मुख्य हैं।

(5) उत्तर-पश्चिमी तटीय प्रदेश – यह क्षेत्र ग्रेट ब्रिटेन के उत्तर-पश्चिमी तट पर स्थित है। यहाँ लौह-अयस्क पर्याप्त मात्रा में निकाली जाती है। कोयले की आपूर्ति डरहम तथा यार्कशायर की खानों से मँगाकर की जाती है। इस क्षेत्र में रेल की पटरियाँ तथा जलयान बनाये जाते हैं। यहाँ के प्रमुख लोहा-इस्पात केन्द्र डाइडहैण्ड तथा बर्मिंघम हैं।

(6) स्कॉटलैण्ड मध्य घाटी प्रदेश (क्लाइड नदी की घाटी) – यह प्रदेश स्कॉटलैण्ड में क्लाइड नदी की घाटी में फैला हुआ है। लौह-अयस्क यहाँ पर्याप्त मात्रा में निकाली जाती है, जब कि कोयला लेनार्क क्षेत्र से मँगाया जाता है। यहाँ जलयान, गर्डर विशेष रूप से बनाये जाते हैं। इस क्षेत्र के प्रमुख केन्द्र ग्लासगो, हैमिल्टन, मदरसविले, कोटब्रिज, कैरेन, जोन्सटाउन आदि हैं।
ग्रेट ब्रिटेन से भारी मात्रा में लोहा-इस्पात एवं उससे निर्मित वस्तुओं का निर्यात किया जाता है। अत: इसकी गणना विश्व के प्रमुख लोहा-इस्पात निर्यातक देशों में की जाती है। परन्तु पिछले कुछ वर्षों से उत्पादन में उत्तरोत्तर कमी आने से अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी निर्यात मात्रा घटती जा रही है।

लौह-इस्पात का विश्व-व्यापार
World-Trade of Iron-Steel

इस्पात का अधिकांश व्यापार स्थानीय होता है। विश्व के सभी इस्पात उत्पादक देश इस्पात उत्पादन में वृद्धि हेतु प्रयासरत हैं। जापान तथा पश्चिमी यूरोपीय देशों से इस्पात निर्यात किया जाता है। प्रमुख आयातक एवं निर्यातक देश निम्नलिखित हैं –

  • इस्पात निर्यातक देश – रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम, चेक और स्लोवाकिया मुख्य हैं।
  • इस्पात आयातक देश – अधिकांश इस्पात आयातक देश विकासशील हैं, जिनमें दक्षिणी एशियाई, अफ्रीकी एवं लैटिन अमेरिकी देश हैं। भारत इस्पात का आयात रूस, जापान, जर्मनी एवं ब्रिटेन से करता है।

प्रश्न 2
विश्व में सूती वस्त्रोद्योग के स्थानीयकरण को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना सोदाहरण कीजिए। [2007]
या
सूती वस्त्रोद्योग के स्थानीयकरण को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना करते हुए जापान में इस उद्योग के प्रमुख केन्द्रों का वर्णन कीजिए। [2008, 13]
या
सूती वस्त्र उद्योग के लिए उपयुक्त स्थानीयकरण के भौगोलिक कारकों की समीक्षा करते हुए इस उद्योग का विश्व में वितरण समझाइए। [2009, 10]
या
जापान के सूती वस्त्र उद्योग का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए –
(क) उपर्युक्त भौगोलिक परिस्थितियाँ,
(ख) प्रमुख उत्पादन क्षेत्र। [2014]
या
ग्रेट ब्रिटेन में वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण के कारकों का उल्लेख कीजिए तथा इसके प्रमुख उत्पादन केन्द्रों का वर्णन कीजिए। [2013, 15]
या
सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीकरण के कारकों की विवेचना कीजिए एवं विश्व में इस उद्योग के प्रमुख केन्द्रों का उल्लेख कीजिए। [2013, 14]
या
संयुक्त राज्य अमेरिका में सूती वस्त्रोद्योग का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए –
(अ) स्थानीयकरण के कारक
(ब) उद्योग के प्रमुख क्षेत्र
(स) निर्माण।
उत्तर

सूती वस्त्र उद्योग Cotton Textile Industry

वस्त्र मानव की तीन प्राथमिक आवश्यकताओं में से एक है। वस्त्रों का उपयोग तन ढकने के लिए प्राचीन काल से होता आया है। यह तन ढकने की आवश्यकता से लेकर अब तन सजाने की वस्तु बन गया है। गर्म जलवायु के देशों में सूती वस्त्रों का प्रचलन सर्वाधिक है। वर्तमान समय में सूती वस्त्र निर्माण का कार्य एक सुविकसित उद्योग का रूप ग्रहण कर चुका है। सूती वस्त्रों का निर्माण हाथ व मशीनों दोनों से होता है। अब इस उद्योग में स्वचालित तथा सुधरी हुई मशीनों का उपयोग होने लगा है।

सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण को प्रभावित करने वाले कारक – सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण को निम्नलिखित कारकों ने प्रभावित किया है।

(1) जलवायु – सूती वस्त्र उद्योग उन्हीं देशों में स्थापित किया जाता है, जहाँ धागा बनाने के लिए नमें जलवायु मिलती है, क्योंकि शुष्क जलवायु में धागा बार-बार टूटता रहता है। अब तो कृत्रिम आर्द्रता उत्पन्न कर कहीं भी बाजार के निकट सूती कपड़े के कारखाने खोले जा सकते हैं।

(2) कच्चा माल – सूती कपड़ा बनाने के लिए कपास की आवश्यकता होती है। कपास को गाँठ में बाँधकर कम खर्चे और आसानी के साथ दूर क्षेत्रों को भेजा जा सकता है; अत: आज के सूती कपड़े बनाने वाले प्रमुख देश जापान, इंग्लैण्ड, जर्मनी इसके उदाहरण हैं।

(3) पर्याप्त मात्रा में मीठे जल की आवश्यकता – यह सूती कपड़े के लिए बहुत महत्त्व रखती है। सूत की धुलाई, रँगाई और अन्य कई प्रकार के कार्यों के लिए शुद्ध जल की आवश्यकता होती है। इसी कारण नदियों या झीलों के किनारे सूती व्यवसाय के केन्द्र स्थापित किये गये हैं। इंग्लैण्ड में ब्लैकबर्न, बर्नले, लीड्स और लिवरपूल तक नहर के किनारे-किनारे सूती कपड़े के कारखाने पाये जाते हैं। संयुक्त राज्य में भी न्यू-इंग्लैण्ड राज्य में नदियों के किनारे-किनारे सूती वस्त्र के अधिक कारखाने स्थापित किये गये हैं।

(4) श्रम – सूती वस्त्र उद्योग कुशल कारीगरों की उपलब्धता पर भी निर्भर करता है। लंकाशायरे और मैनचेस्टर में इस उद्योग के केन्द्रित होने का प्रधान कारण यही है कि वहाँ पहले ऊनी कपड़ा बनाने वाले कुशल कारीगर पाये जाते थे। इसी प्रकार जापान में भी सूती वस्त्र उद्योग को रेशमी कपड़ा बुनने वालों से काफी सहायता मिली है। भारत के मुम्बई और अहमदाबाद केन्द्रों में अधिकांश जुलाहों के कारण उद्योगों का विकास हुआ है।

(5) शक्ति के साधन – जहाँ पर्याप्त मात्रा में सस्ती एवं निरन्तर विद्युत शक्ति प्राप्त हो जाती है, वहीं इसका तेजी से विकास होता है। इटली, जापान, कोरिया व चीन में भी विद्युत ऊर्जा की निरन्तर
आपूर्ति एवं घरेलू व निर्यात हेतु माँग के अनुसार ही वस्त्र उद्योग का पूर्वी भाग में सबसे अधिक विकास होता रहा है।

(6) यातायात के साधन एवं बाजार – तैयार माल को खपत के केन्द्रों तक पहुँचाने के लिए सस्ते और उत्तमपरिवहन के साधनों की आवश्यकता पड़ती है। उपनिवेश काल में निर्मित वस्त्र ब्रिटेन से हजारों मील दूर अफ्रीका में भारत भेजे जाते थे। आज तो जिन देशों के पास अपना कच्चा माल एवं स्वयं को

बाजार है, वहीं यह उद्योग तेजी से विकसित होने लगा है; अत: बाजार की निकटता उद्योग के विकास का आधार बनता जा रहा है। अब भी विद्युत-प्राप्ति की अधिकांश देशों में राष्ट्रीय ग्रिड व्यवस्था होने एवं कारखानों का अपना आपातकालीन ताप-विद्युत सेट होने से बाजार की माँग का महत्त्व और भी बढ़ गया है।

विश्व में सूती वस्त्र उद्योग का वितरण
Distribution of Cotton Textile Industry in the World

सूती धागा उत्पादन की दृष्टि से विश्व के अग्रणी देश क्रमशः चीन (35%), संयुक्त राज्य अमेरिकी (13%), भारत (12%), पाकिस्तान (10%), तुर्की (3%), ब्राजील (3%), इटली (2%), दक्षिण कोरिया (1.5%) आदि हैं।
सूती वस्त्र के उत्पादन की दृष्टि से विश्व के अग्रणी देश क्रमश: चीन (48.6%), भारत (28.3%), संयुक्त राज्य अमेरिका (5.3%), इटली (2.1%), ब्राजील (1.9%), रूस (2.9%), जापान (0.9%), फ्रांस (1.5%), स्पेन (1.0%) आदि हैं।

(अ) संयुक्त राज्य अमेरिका का सूती वस्त्र उद्योग
Cotton Textile Industry of U.S.A.

मिलों द्वारा निर्मित सूती वस्त्रों के उत्पादन में संयुक्त राज्य अमेरिका का तीसरा तथा सूती धागा उत्पादन में दूसरा स्थान है। यहाँ सूत कातने एवं वस्त्र बुनने का व्यवसाय पूर्वी भागों में अप्लेशियन पर्वतीय क्षेत्र के पूर्वी राज्यों में होता है, जहाँ इस उद्योग के लिए सभी भौगोलिक सुविधाएँ प्राप्त हैं। सर्वप्रथम सूती वस्त्र उद्योग का विकास न्यू-इंग्लैण्ड राज्यों में हुआ था, परन्तु बाद में दक्षिणी राज्यों (अप्लेशियन पर्वतीय) में इसका सर्वाधिक विकास हुआ है। अतः उत्तरी-पूर्वी संयुक्त राज्य से इसके दक्षिणी-पूर्वी क्षेत्रों की ओर इस उद्योग का खिसकाव हुआ है।

संयुक्त राज्य अमेरिका में सूती वस्त्रोद्योग के स्थानीयकरण के कारक
Localisation Factors of Cotton Textile Industry in U.S.A.

संयुक्त राज्य अमेरिका में सूती वस्त्रोद्योग के स्थानीकरण के लिए निम्नलिखित भौगोलिक कारक उत्तरदायी रहे हैं-

  1. अनुकूलतम नम जलवायु।
  2. उत्तम कोटि की लम्बे और मुलायम रेशे की कपास की स्थानीय उपलब्धता।
  3. शक्ति के संसाधनों की प्रचुरता।
  4. सस्ते एवं कुशल श्रमिकों की उपलब्धता।
  5. स्वच्छ जल की आपूर्ति।
  6. सुगम एवं सस्ते परिवहन के साधन।
  7. भारी खपत एवं विदेशी माँग।
  8. पूँजी की सुलभता।
  9. सरकारी उदारीकरण की नीति।
  10. मशीनों एवं उपकरणों की सुलभता।
  11. तकनीकी एवं वैज्ञानिक विकास।
  12. गुणवत्ता में सतत सुधार।
  13. अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में अग्रणी।

उद्योग के प्रमुख क्षेत्र Main Areas of Industry

संयुक्त राज्य में वस्त्र उद्योग संयुक्त रूप से विकसित हुआ है, अर्थात् कताई, बुनाई एवं छपाई आदि कार्य एक साथ ही किये जाते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में सूती वस्त्र उत्पादन के निम्नलिखित क्षेत्र प्रमुख हैं –

(1) न्यू-इंग्लैण्ड क्षेत्र – न्यू-इंग्लैण्ड में सूती वस्त्र निर्माणक केन्द्र रोड्स द्वीप, कनेक्टीकट, मैसाचुसेट्स एवं हैम्पशायर में हैं। प्रथम सूती मिल की स्थापना सन् 1790 में रोड्स द्वीप के पॉर्टकट नामक स्थान पर की गयी थी। इसके बाद अन्य नगरों में सूती मिलें स्थापित की गयीं, जिनमें फाल-रिवर, न्यूब्रेडफोर्ड, लॉवेल, प्रॉविडेन्स, लारेंस एवं मानचेस्टर महत्त्वपूर्ण केन्द्र हैं। अन्य केन्द्रों में बोस्टन, वॉरसेस्टर, विवरले, पिचबर्ग, होलीओक, नार्थ-एडेम्स, बूनसॉ केट, ट्राउनटन आदि प्रमुख हैं।

न्यू-इंग्लैण्ड राज्यों की वस्त्र-निर्माण में सन् 1920 तक प्रधानता रही, परन्तु इसके बाद इन राज्यों का महत्त्व घटता गया, क्योंकि दक्षिणी राज्यों का उत्पादन बढ़ता गया तथा वर्तमान में यह क्षेत्र देश का केवल 20% ही सूती वस्त्रों का उत्पादन करता है। यह क्षेत्र महीन वस्त्रों के लिए विश्वप्रसिद्ध है।

(2) मध्य अटलाण्टिक क्षेत्र – पेसिलवानिया के पूर्वी भाग में न्यूयॉर्क, न्यूजर्सी, फिलाडेल्फिया, मेरीलैण्ड एवं वर्जीनिया राज्यों में इस क्षेत्र का विस्तार है। इस क्षेत्र को जलविद्युत शक्ति, बाजार, पर्याप्त श्रमिक, आर्द्र जलवायु, रेल यातायात, मशीनी उपकरणों की उपलब्धि आदि सुविधाएँ प्राप्त हैं। फिलाडेल्फिया इस क्षेत्र का सूती वस्त्र उद्योग का सबसे बड़ा केन्द्र है। विलमिंगटन, जर्मन-टाउन, जर्सी-सिटी, हैरिसबर्ग, पेटरसन, विल्कीज बारे, स्क्राटन, टेंटन एवं बाल्टीमोर अन्य प्रमुख केन्द्र हैं। इन केन्द्रों में रेडीमेड वस्त्र तैयार किये जाते हैं। रिचमण्ड, नॉरफोक, लिचबर्ग, रैले, ग्रीन्सबरो, डेनविले, चार्ल्सटन आदि वर्जीनिया राज्य के प्रमुख सूती वस्त्र उत्पादक केन्द्र हैं।

(3) दक्षिणी अप्लेशियन क्षेत्र – यह संयुक्त राज्य का सबसे बड़ा सूती वस्त्र उत्पादक प्रदेश है। उत्तरी एवं दक्षिणी केरोलिना, जॉर्जिया एवं टेनेसी आदि राज्य इसके अन्तर्गत सम्मिलित हैं। यहाँ सूती वस्त्र उद्योग का अधिक विकास सन् 1880 के बाद हुआ है।

इस प्रदेश में सूती वस्त्र की मिलें पर्वतीय प्रदेश में विस्तृत हैं। अधिकांश मिलों का संकेन्द्रण प्रपात- रेखा के सहारे-सहारे जलविद्युत उत्पादक केन्द्रों के निकट हुआ है। चारलोटे, कोलम्बिया, आगस्टा एवं एटलाण्टा प्रमुख वस्त्र उत्पादक केन्द्र हैं। ग्रीन्सबरो, स्पार्टनबर्ग, ग्रीनविले, मेकन, कोलम्बस, मोण्टगोमरी, नोक्सविले एवं चट्टानुगा अन्य प्रमुख वस्त्र उत्पादक केन्द्र हैं। संयुक्त राज्य के 90 से 95% तकुवे एवं 80% सूती वस्त्रों का निर्माण इन्हीं दक्षिणी राज्यों में किया जाता है।

निर्यात – ब्राजील संयुक्त राज्य अमेरिका में बने सूती वस्त्रों का सबसे बड़ा ग्राहक है। इसके अतिरिक्त मैक्सिको, ग्वाटेमाला, निकारागुआ, जमैका, हवाना, क्यूबा, वेनेजुएला, कोलम्बियां, इक्वेडोर, अर्जेण्टाइना, चिली, बोलिविया, यूरोप आदि देशों को भी सूती वस्त्रों का निर्यात किया जाता है।

(ब) जापान का सूती वस्त्र उद्योग
Cotton Textile Industry of Japan

सूती वस्त्र उत्पादन में जापान का स्थान विश्व में तो नगण्य है, परन्तु एशिया महाद्वीप में चीन, भारत एवं कोरिया के बाद चौथा स्थान है। जापान विदेशों से कपास का आयात कर, उसका वस्त्र तैयार कर अन्य देशों को निर्यात कर देता है।

जापान में सूती वस्त्रों की पहली मिल 1868 ई० में स्थापित की गयी थी। प्रथम विश्वयुद्ध तक इस उद्योग की प्रगति बहुत ही मन्द रही। परन्तु प्रथम युद्ध-काल में जापान के इस उद्योग ने तीव्र गति से उन्नति की तथा जापान में बने वस्त्र चीन, भारत एवं अफ्रीकी देशों में पहुँच गये थे। इस प्रकार प्रगति करते-करते 1933 ई० तक जापान विश्व का प्रथम सूती वस्त्र निर्यातक देश बन गया था, परन्तु द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान के वस्त्र उद्योग को भारी हानि उठानी पड़ी, क्योंकि इस महायुद्ध में जापान की लगभग 80% सूत कातने वाली मिलें परमाणु बम के प्रहार से नष्ट-भ्रष्ट हो गयी थी। सन् 1946 तक जापान के इस उद्योग की दशा बड़ी ही शोचनीय थी। जापान ने अपने इस उद्योग का पुनर्निर्माण किया तथा आठ वर्षों के अन्तराल में ही अपनी मिलों को आधुनिक मशीनों से सुसज्जित कर लिया था। इस प्रकार 1954 ई० में जापान पुनः विश्व का सबसे बड़ा सूती वस्त्र निर्यातक देश बन गया था तथा आज तक उस स्थिति को बनाये हुए है। वर्तमान समय में उसे अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में चीन, संयुक्त राज्य, ब्रिटेन एवं भारतीय वस्त्रों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है।

जापान के औद्योगिक विकास में वस्त्र-निर्माण उद्योग का स्थान सर्वोपरि है, क्योंकि इसके विकास द्वारा ही जापान अपने देश को पिछड़ी दशा से आधुनिकतम औद्योगिक एवं तकनीकी ज्ञान को चरमोत्कर्ष अवस्था तक पहुँचा सका है। वर्तमान समय में जापान अपने सूती वस्त्र उत्पादन का लगभग एक-तिहाई भाग विदेशों को निर्यात कर देता है।

जापान में सूती वस्त्र उद्योग के विकास के कारक
Developing Factors of Cotton Textile Industry in Japan

  1. बड़ी संख्या में सस्ते श्रमिकों की प्राप्ति-जिनमें स्त्रियाँ एवं बच्चे श्रमिकों की संख्या अधिक होती है। जापानी श्रमिक दो पारियों में काम करते हैं। जापान की अधिकांश जनसंख्या तटीय भागों में ही निवास करती है।
  2. कपास के रूप में कच्चा माल चीन, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, मिस्र, सूडान एवं मैक्सिको आदि देशों से आयात किया जाता है।
  3. जापान का अधिकांश धरातल ऊबड़-खाबड़ एवं पर्वतीय है, जिससे नदियाँ प्राकृतिक जल-प्रपातों का निर्माण करती हैं तथा बड़े पैमाने पर जल-विद्युत शक्ति का उत्पादन किया जाता है। सूती वस्त्र मिलों में जल-विद्युत शक्ति का ही उपयोग किया जाता है।
  4. तटीय भागों में प्राकृतिक पत्तनों का विकास जिससे कपास को आयात करने एवं तैयार वस्त्रों को विदेशों में निर्यात करने की सुविधा रहती है।
  5. जापान के वस्त्र उद्योग में देश में ही बनी आधुनिक मशीनें तथा प्रबन्ध में उच्च क्षमता रखी जाती है। मशीनों के घिसते ही तुरन्त नयी मशीनें बदल दी जाती हैं।
  6. यहाँ स्वचालित करघों का उपयोग किया जाता है तथा छोटे रेशे की कपास को कातने की उपयुक्त मशीनों का आविष्कार कर लिया गया है, जिससे उत्पादन प्रति श्रमिक पाँच गुना हो गया है।
  7. जापान की शीतोष्ण जलवायु आर्द्रता-प्रधान है, जिसमें निर्मित सूती धागा नहीं टूटता।
  8. सूती वस्त्र उद्योग का जापानी अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण स्थान होने के कारण इस उद्योग को सरकारी प्रोत्साहन मिलता है।
  9. वस्त्र उद्योग के लिए स्थानीय बाजार एवं निर्यात व्यापार के लिए अफ्रीकी एवं एशियाई देशों बल्कि यहाँ तक कि यूरोपीय, दक्षिणी अमेरिकी एवं ऑस्ट्रेलियाई देशों के बाजार उपलब्ध हैं।

जापान के प्रमुख सूती वस्त्र उत्पादक प्रदेश
Main Cotton Textile Producing States of Japan
जापान के प्रमुख वस्त्रोत्पादक प्रदेश निम्नलिखित हैं –

  1. किन्की प्रदेश – इस प्रदेश में सबसे अधिक सूती वस्त्रों का उत्पादन किया जाता है। यहाँ जापान का एक-तिहाई सूती वस्त्र तैयार किया जाता है। ओसाका एवं कोबे इस प्रदेश के प्रमुख केन्द्र हैं। ओसाका जापान का मानचेस्टर कहलाता है। अन्य केन्द्रों में किशीवादा प्रमुख है।
  2. क्वाण्टो प्रदेश – जापान में स्थित क्वाण्टो का मैदान प्रमुख सूती वस्त्र उत्पादक प्रदेश है। इस प्रदेश में टोकियो एवं याकोहामा महत्त्वपूर्ण सूती वस्त्र उत्पादक केन्द्र हैं।
  3. नगोया प्रदेश – इस प्रदेश में नगोया नगर के समीपवर्ती भागों में स्थित छोटे-छोटे नगरीय केन्द्रों में सूती वस्त्र की मिलें स्थापित की गयी हैं। मिनोओबारी की खाड़ी के तटीय भागों में भी सूती वस्त्र उत्पादक केन्द्र विकसित हुए हैं। अन्य प्रमुख केन्द्रों में योकोच्ची, हामामात्सू तथ तयोर्हशी आदि महत्त्वपूर्ण हैं।

इस प्रकार जापान ग्राहकों की रुचि का ख्याल कर उनकी माँग के अनुसार सस्ते कपड़े के उत्पादन का प्रयास करता है, जिससे उसे अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भारत, हांगकांग, चीन, ब्रिटेन, अमेरिका आदि देशों से प्रतिस्पर्धा लेने में सुगमता रह सके।

(स) रूस का सूती वस्त्र उद्योग
Cotton Textile Industry of Russia

मिलों द्वारा सूती वस्त्र उत्पादन में रूस का विश्व में चौथा स्थान है। यहाँ सूती वस्त्र उद्योग के लिए निम्नलिखित भौगोलिक सुविधाएँ उपलब्ध हैं –

  1. यहाँ कच्चा माल पर्याप्त मात्रा में कजाकिस्तान तथा जॉर्जिया से प्राप्त होता है, जो पूर्ववर्ती सोवियत संघ के राज्य थे।
  2. यहाँ पर कोयले की विशाल संचित मात्रा है। इसके साथ ही पर्याप्त जल-विद्युत शक्ति का भी, उत्पादन किया जाता है।
  3. रूस में काकेशिया, मध्य एशिया एवं यूरोपीय रूस में सघन जनसंख्या निवास करती है; अतः यहाँ बाजार की पर्याप्त सुविधा रहती है।
  4. सघन जनसंख्या के प्रदेशों से दक्ष एवं पर्याप्त संख्या में श्रमिक उपलब्ध हो जाते हैं।
  5. रूस में रेलमार्गों का पर्याप्त विकास किया गया है जिनमें ट्रांस-साइबेरियन रेलवे, ट्रांस- काकेशियन रेलवे, ट्रांस-कैस्पियन रेलवे, यूक्रेन-मास्को-लेनिनग्राद रेलवे, यूराल रेलवे एवं अन्य छोटेछोटे रेलमार्गों के विकसित हो जाने के फलस्वरूप कच्चे माल के क्षेत्रों, उत्पादन क्षेत्रों एवं बाजार क्षेत्रों के मध्य सम्बन्ध स्थापित हो गये हैं।
  6. सूती वस्त्र उद्योग के लिए मशीनों एवं उपकरणों का निर्माण मास्को-तुला एवं यूक्रेन आदि क्षेत्रों में किया जाता है।
  7. रूस में विज्ञान एवं तकनीकी की पर्याप्त प्रगति होने के कारण बहुत से केन्द्रों में नयी सूती मिलों की स्थापना की गयी है।

रूस में सूती वस्त्र उत्पादक क्षेत्र
Cotton Textile Producing Areas in Russia

  1. मास्को-इवानोवो प्रदेश – इस प्रदेश में सूती वस्त्र उद्योग का विकास 18वीं शताब्दी के अन्त में किया गया था। कपास ट्रांस-काकेशिया एवं मध्य एशिया से प्राप्त होती है। सोवियत क्रान्ति (1917) के बाद से यह प्रदेश कच्चे माल (कपास) के उत्पादन में पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर हो गया है। इवानोवो को रूस का मानचेस्टर कहा जाता है। इसके चारों ओर सूती वस्त्र उत्पादक मिलों के नगरीय केन्द्रों का एक घेरा-सा विकसित हो गया है। यारोस्लाव, कोस्त्रोमोव, किनेशमा, शुया, कैमरोव, ओरेखोवो-जुयेवो, मास्को, नोगिन्स्क, पॉवलोवस्की-पोसाद, येगोरयेवस्क, सेरपुखोवु, ग्लुखोवो प्रमुख सूती वस्त्र उत्पादक केन्द्र हैं।
  2. लेनिनग्राड प्रदेश – इस प्रदेश में लेनिनग्राड, नार्वा, तल्लिन तथा बाल्टिक राज्यों में रीगा एवं कौनास प्रमुख वस्त्र उत्पादक केन्द्र हैं।
  3. कालिनिन प्रदेश – मास्को के पश्चिम में इस प्रदेश में कालिनिन, विशनीय, वोलोस्चेक एवं यार्तसेवो प्रमुख सूती वस्त्र उत्पादक केन्द्र हैं।
  4. यूक्रेन प्रदेश – इस प्रदेश में सूत कातने एवं वस्त्र बुनने की मशीनों का निर्माण खेरसन में होता है। खारकोव एवं कीव प्रमुख वस्त्र उत्पादक केन्द्र हैं।
  5. वोल्गा बेसिन – वोल्गा नदी की घाटी में चेवोकसरी, कणीशिन एवं ताम्बोव प्रमुख सूती वस्त्रोत्पादक केन्द्र हैं।
  6. यूराल प्रदेश – यूराल प्रदेश के पूर्व में स्थित चिल्याबिन्स्क प्रमुख सूती वस्त्र उत्पादक केन्द्र
  7. ट्रांस-काकेशिया प्रदेश – गोर्की इस प्रदेश का सबसे बड़ा वस्त्रोत्पादक केन्द्र है। बाकू, किरिवबाद, कुताइसी, तिब्लिसी, लेनिनांकन प्रमुख सूती वस्त्र उत्पादक केन्द्र हैं।
  8. मध्य एशिया – यहाँ पर ताशकन्द, फरगना, बुखारा, लेनिनवाद, फुन्जे, अशखाबाद एवं दुशाम्बे प्रमुख सूती वस्त्र उत्पादक केन्द्र हैं।
  9. साइबेरिया – ओमस्क, नोवासिबिस्र्क, बरनोल, ब्रियस्क, कैमरोवकान्स्क, लेनिनस्ककुजनेत्स्क, अल्मा-अत्ता एवं कुस्तनाय प्रमुख सूती वस्त्र उत्पादक केन्द्र हैं।

रूस केवल अपनी वस्त्र आवश्यकताओं की ही पूर्ति करता है, परन्तु यदि उत्पादन में इसी गति से वृद्धि होती रही तो रूस भविष्य में विश्व का प्रमुख सूती वस्त्र निर्यातक देश बन जाएगा।

(द) ग्रेट ब्रिटेन का सूती वस्त्र उद्योग
Cotton Textile Industry of U.K.

ग्रेट ब्रिटेन में औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात सूती वस्त्र उद्योग से ही हुआ है। 19 वीं शताब्दी में इसने औद्योगिक क्षेत्र में विश्व का मार्गदर्शन किया, किन्तु आज ब्रिटेन की स्थिति पहले जैसी नहीं रह गयी है। सूती वस्त्र के निर्माण में एक समय यह शिखर पर था, परन्तु वर्तमान में यह देश विश्वका केवल 0.45% (27.5 करोड़ वर्ग मी) मिश्रित सूती वस्त्र तैयार करता है। इसे सूती वस्त्र उद्योग के क्षेत्र में सदैव संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान एवं भारत से प्रतिस्पर्धा लेनी पड़ती है। इस व्यवसाय ने यहाँ की जनसंख्या को आजीविका तथा देश को सुदृढ़ आर्थिक आधार प्रदान किया, इसलिए “सूती वस्त्र उद्योग को ग्रेट ब्रिटेन की रोटी” कहा जाता था।

ग्रेट ब्रिटेन में सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण के कारण – यह आश्चर्य की बात है कि ग्रेट ब्रिटेन में कपास पैदा नहीं होती है फिर भी यहाँ सूती वस्त्र उद्योग का पर्याप्त विकास हुआ है। ग्रेट ब्रिटेन में सूती वस्त्रोद्योग के स्थानीयकरण के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं –

  1. समुद्री आर्द्र जलवायु
  2. पर्याप्त कोयला
  3. नदियों में स्वच्छ जल
  4. कुशल श्रमिक
  5. मशीनों की उपलब्धता
  6. रासायनिक पदार्थ
  7. आयात-निर्यात के लिए पत्तनों का विकास
  8. विस्तृत बाजारों की उपलब्धता
  9. सस्ते जल यातायात की सुविधा तथा
  10. तत्कालीन समय में सर्वाधिक उन्नतिशील तकनीकी स्तर।

विश्व स्तर पर सूती वस्त्र उद्योग को आधुनिक मिल प्रणाली पर विकसित करने का श्रेय ब्रिटेन को ही है। सूती वस्त्र उद्योग का सबसे अधिक विकास लंकाशायर क्षेत्र में हुआ है। सूती वस्त्र उद्योग में मानचेस्टर यहाँ का विश्व-प्रसिद्ध सूती वस्त्र उत्पादक केन्द्र है।

यहाँ के मुख्य सूती वस्त्र उत्पादक क्षेत्र निम्नलिखित हैं –
(1) लंकाशायर क्षेत्र – लंकाशायर क्षेत्र ग्रेट ब्रिटेन की महत्त्वपूर्ण तथा सबसे बड़ा सूती वस्त्र उत्पादक क्षेत्र है। इस क्षेत्र में सूती वस्त्र उद्योग के लिए नम जलवायु, पर्याप्त कोयला, आयातित कपास, पर्याप्त शक्ति के साधन, नदियों का स्वच्छ जल, पर्याप्त नवीन मशीनें, लंकाशायर का पत्तन, समीप में चैशायर से रासायनिक पदार्थों की उपलब्धता, विस्तृत भूमि, कुशल एवं सस्ते श्रमिक तथा पर्याप्त विदेशी माँग जैसी भौगोलिक सुविधाएँ उपलब्ध हैं। मानचेस्टर इस क्षेत्र का विश्व-प्रसिद्ध सूती वस्त्र उत्पादक केन्द्र है। इस क्षेत्र के अन्य सूती वस्त्र बनाने वाले केन्द्र प्रेस्टन, कालने, मेकलेराफील्ड, एकरिंगटन, डार्विन, नेलसन, बोल्टन, रोशडेल, स्टॉकपोर्ट, ब्लेकबर्न, ओल्डहम, बर्नले, बरी, नाटिंघम तथा लीसेस्टर आदि हैं। यहाँ रँग्राई का कार्य बिंगान, विडनेस व सैण्ट-हैलेन्स में किया जाता है।

(2) ग्लासगो क्षेत्र – इस क्षेत्र में सूती वस्त्र उद्योग का विकास क्लाइड नदी की घाटी में विकसित हुआ है। यहाँ की नम समुद्री जलवायु, पर्याप्त शक्ति के साधन एवं सुलभ जल-यातायात ने इस उद्योग के विकास में विशेष योगदान दिया है। यहाँ सूत बनाने का कार्य बहुत बड़े पैमाने पर किया जाता है। इस क्षेत्र में सूती वस्त्र बनाने के प्रमुख केन्द्र ग्लासगो, ब्रेडफोर्ड तथा पैसले हैं। पैसले सूती धागा बनाने का भी प्रमुख केन्द्र है, जब कि ग्लासगो मलमल बनाने के लिए विश्व प्रसिद्ध है।

(3) भावी सम्भावनाएँ – प्रथम विश्व युद्ध के आरम्भ तक ब्रिटेन को संसार के सूती वस्त्र उत्पादक देशों में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था, परन्तु उसके बाद सूती वस्त्र के उत्पादन में जापान, रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, जर्मनी और फ्रांस इससे आगे बढ़ गये। भारत, जापान, चीन आदि देशों से कड़े मुकाबले के कारण अब ब्रिटेन का सूती वस्त्र उत्पादन बहुत घट गया है। इस उद्योग के पुनर्विकास की सम्भावनाएँ भी नहीं हैं, क्योंकि ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था अब व्यापारोन्मुख हो गयी है जिसमें वेस्त्र उद्योग जैसे उपभोक्ता उद्योग के लिए कोई स्थान नहीं है। वैसे भी भारत, चीन तथा जापान के सस्ते वस्त्रों के सामने ब्रिटिश उत्पादों का महत्त्व नहीं रह गया है।

प्रश्न 3
ग्रेट ब्रिटेन में ऊनी वस्त्रोद्योग के स्थानीयकरण के कारणों की समीक्षा कीजिए तथा इस.उद्योग के केन्द्रों का विवरण दीजिए।
उत्तर

ग्रेट ब्रिटेन का ऊनी वस्त्र उद्योग
Woollen Textile Industry of U.K.

ग्रेट ब्रिटेन:ऊनी वस्त्र उत्पादन में विश्व भर में प्रसिद्ध है। यहाँ के बने ऊनी वस्त्र विश्व के सभी देशों में पसन्द किये जाते हैं। ऊनी वस्त्रों के उत्पादन में ग्रेट ब्रिटेन का विश्व में तीसरा स्थान है। ब्रिटेन के औद्योगीकरण के साथ-साथ 17वीं शताब्दी के प्रारम्भ में इस उद्योग को भी श्रीगणेश हो गया था, परन्तु वास्तविक विकास द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद हुआ। यहाँ ऊनी वस्त्रं उद्योग घरेलू एवं कुटीर दोनों ही रूपों में किया जाता है। विश्व के अन्य देशों में ऊनी वस्त्रों का उत्पादन बढ़ जाने से इस उद्योग का ब्रिटेन में ह्रास हुआ है। ब्रिटेन में इस उद्योग को निम्नलिखित भौगोलिक सुविधाएँ प्राप्त हैं –

  1. कच्चा माल – ग्रेट ब्रिटेन में पिनाईन पर्वत के समीपवर्ती भागों में चरागाहों के विकास के कारण भेड़पालन व्यवसाय अधिक किया जाता है, जिनसे पर्याप्त ऊन प्राप्त हो जाती है। कुछ कच्चा माल ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड एवं अर्जेण्टाइना आदि देशों से भी आयात किया जाता है।
  2. समशीतोष्ण आर्द्र जलवायु – ब्रिटेन की जलवायु शीतल एवं आर्द्रता-प्रधान है। यह जलवायु इस उद्योग के लिए अधिक उपयुक्त है।
  3. कुशल श्रमिकों की प्राप्ति – ऊनी वस्त्र उद्योग ब्रिटेन का अति प्राचीन व्यवसाय है; अतः यहाँ कुशल एवं सस्ते श्रमिक पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हो जाते हैं। सूती वस्त्र उद्योग भी इस उद्योग को श्रम की पूर्ति कराने में सहायक है।
  4. शक्ति-संसाधनों की उपलब्धि – ब्रिटेन में इस उद्योग के लिए शक्ति संसाधनों में पर्याप्त जल-विद्युत शक्ति एवं कोयला उपलब्ध है। यार्कशायर क्षेत्र में पर्याप्त कोयला उपलब्ध हो जाता है, जहाँ ऊनी वस्त्र उद्योग के महत्त्वपूर्ण केन्द्र विकसित हुए हैं।
  5. स्वच्छ जल की आपूर्ति – ब्रिटेन में पिनाइन पर्वत-श्रेणी से प्रवाहित होने वाली नदियों काल्डेर, कोलने एवं आयर से चूनारहित स्वच्छ जल प्राप्त हो जाता है, जिससे ऊन धोने में सुविधा रहती है।
  6. मशीन एवं उपकरणों की सुविधा – ब्रिटेन में लोहा-इस्पात पूर्व से ही प्रगति के पथ पर अग्रसर है; अतः नवीन मशीनें एवं उपकरण सुविधा से उपलब्ध हो जाते हैं। लीड्स में इस उद्योग से सम्बन्धित मशीनों एवं उपकरणों का पर्याप्त मात्रा में उत्पादन किया जाता है।
  7. पर्याप्त पूँजी की सुलभता – ब्रिटेन के पूंजीपतियों ने ऊनी वस्त्र उद्योग की स्थापना में बहुत सहयोग दिया है, क्योंकि सूती वस्त्र उद्योग का उन्हें पर्याप्त अनुभव है। इसके अतिरिक्त सरकारी प्रोत्साहन भी महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।
  8. परिवहन के विकसित साधन – ब्रिटेन की द्वीपीय स्थिति होने के कारण तटीय भागों में प्राकृतिक पत्तनों का पर्याप्त विकास हुआ है, जिससे ऊनी वस्त्रों को निर्यात करने की जल-यातायात की पर्याप्त सुविधा रहती है। देश के भीतरी भागों में रेल एवं सड़क परिवहन का पर्याप्त विकास किया गया है।
  9. पर्याप्त विदेशी माँग – यूरोप महाद्वीप के शीत-प्रधान देशों में ग्रेट ब्रिटेन में निर्मित ऊनी वस्त्रों की क्र्याप्त माँग रहती है। निकटवर्ती भागों में खपत क्षेत्र स्थित होने के कारण ब्रिटेन का यह उद्योग अधिक विकसित हुआ है।

ग्रेट ब्रिटेन में ऊनी वस्त्र उद्योग के क्षेत्र (केन्द्र)
Woollen Textile Producing Areas in U.K.

ऊनी स्त्रों के उत्पादन की दृष्टि से ग्रेट ब्रिटेन का विश्व में तीसरा स्थान है। पिनाइन पर्वत श्रेणी के पूर्वी क्षेत्रों में नदियों की घाटियों में इस उद्योग का विकास अधिक हुआ है। यहाँ प्रतिवर्ष 200 लाख वर्ग मीटर ऊनी वस्त्रों का उत्पादन किया जाता है। निम्नलिखित क्षेत्र ऊनी वस्त्रों के उत्पादन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं –

(1) वेस्ट राइडिंग क्षेत्र – इस क्षेत्र में ग्रेट ब्रिटेन का तीन-चौथाई से भी अधिक ऊनी व्रस्त्रों का उत्पादन किया जाता है। यार्कशायर प्रदेश में इस उद्योग का विकास अधिक हुआ है। यहाँ कोलने एवं आयर नदियों की घाटियों में ऊनी वस्त्र उत्पादक केन्द्र विकसित हुए हैं। ब्रेडफोर्ड, हैलीफैक्स, बेकफील्ड, हङ्सफील्ड, ड्यूसबरी एवं बाटले प्रमुख ऊनी वस्त्र उत्पादक केन्द्र हैं।

(2) स्कॉटलैण्ड ट्वीड घाटी क्षेत्र – ग्रेट ब्रिटेन में यह दूसरा महत्त्वपूर्ण क्षेत्र स्कॉटलैण्ड में ट्वीड नदी की मध्य घाटी में विस्तृत है। यहाँ भेड़ अधिक पाली जाती हैं; अत: पर्याप्त कच्ची ऊन उपलब्ध हो जाती है। कोयला एवं स्वच्छ जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो जाता है। इस क्षेत्र में उत्तम किस्म का ट्वीड बनाया जाता है। वारविक, सेलकिर्क एवं गेलेशील्ड प्रमुख ऊनी वस्त्र उत्पादकः केन्द्र हैं।

(3) कॉट्सबोल्ड क्षेत्र – इंग्लैण्ड के दक्षिणी-पश्चिमी भाग में एवन नदी की घाटी में कॉट्सबोल्ड तीसरा महत्त्वपूर्ण ऊनी वस्त्र उत्पादक क्षेत्र है। यहाँ सर्ज एवं कॉट्सवूल का उत्तम कोटि का ऊनी कपड़ा तैयार किया जाता है। स्ट्राउड, ट्राउब्रिज, ब्रेडफोर्ड-ऑन-एवन एवं फ्रोम प्रमुख ऊनी वस्त्र उत्पादक केन्द्र हैं। स्ट्राउड सर्ज बनाने के लिए विश्वविख्यात केन्द्र है।

प्रश्न 4
कागज उद्योग के स्थानीयकरण एवं विकास के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए। इस उद्योग में प्रसिद्ध प्रमुख देशों के नाम बताइए। [2010]
या
कागज उद्योग का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए- [2008, 14]
(अ) स्थानीयकरण के कारण,
(ब) विश्व में इस उद्योग के प्रमुख देश।
या
कागज उद्योग के स्थानीयकरण के कारकों की विवेचना कीजिए तथा विश्व में इस उद्योग के प्रमुख केन्द्रों का वर्णन कीजिए। [2013]
या
टिप्पणी लिखिए-विश्व में कागज उद्योग। (2014, 16)
उत्तर
कागज उद्योग वन उत्पादों पर आधारित सबसे महत्त्वपूर्ण उद्योग है। यदि यह कहा जाए कि वर्तमान सभ्यता कागज की ही देन है तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी। आज विश्व के जिस देश में जितने अधिक कागज का उपभोग किया जाता है, वह उतना ही सभ्य एवं उन्नत कहलाता है।

कागज उद्योग के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाएँ
Necessary Geographical Conditions for Paper Industry

कागज उद्योग का स्थानीयकरण निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है –

  1. कच्चे माल की प्राप्ति – कागज उद्योग के लिए कच्चा माल लुग्दी है। कोमल लकड़ी के वन-क्षेत्रों में पर्याप्त लुग्दी उपलब्ध हो सकती है; अतः इन्हीं क्षेत्रों में कागज उद्योग स्थापित किया जा सकता है। वर्तमान समय में भी 80 से 85% कागज का निर्माण लकड़ी की लुग्दी से ही किया जाता है।
  2. कोमल लकड़ी के वनों का होना – कोमल लकड़ी से ही अच्छी लुग्दी प्राप्त हो सकती है। यही कारण है कि कागज उद्योग की स्थापना शीत एवं शीतोष्ण कटिबन्धीय वनों के समीपवर्ती क्षेत्रों में हुई है। स्पूस, हेमलॉक, फर एवं चीड़ की कोमल लकड़ी इसके लिए उपयुक्त रहती है।
  3. स्वच्छ जल की उपलब्धि – कागज उद्योग के लिए प्रचुर मात्रा में स्वच्छ जल आवश्यक होता है, जिससे लुग्दी एवं लकड़ी के रेशों को साफ किया जाता है।
  4. जल-विद्युत शक्ति का विकास – कागज उद्योग के लिए अधिक शक्ति की आवश्यकता पड़ती है; अतः नदी-घाटियों के समीपवर्ती भागों में इस उद्योग की स्थापना से सस्ती जल-शक्ति पर्थीप्त मात्रा में उपलब्ध हो जाती है।
  5. सहायक उद्योगों का विकास – इस उद्योग के लिए अनेक रासायनिक पदार्थ; जैसे-कास्टिक सोडा, सोडा ऐश, क्लोरीन, हड्डी का चूरा, चीनी-मिट्टी आदि की आवश्यकता पड़ती है। इसीलिए इन सहायक उद्योगों का विकास कागज उद्योग के समीपवर्ती भागों में ही किया जाना चाहिए, जिससे कागज की उत्पादन लागत सस्ती पड़ती है।
  6. कुशल श्रमिकों की उपलब्धि – कागज उद्योग के लिए पर्याप्त संख्या में कुशल श्रमिकों की सुविधा होनी चाहिए जो सघन जनसंख्या के क्षेत्रों में सुगमता से उपलब्ध हो सकते हैं।
  7. परिवहन के साधनों का विकास – कागज उद्योग के लिए आन्तरिक एवं बाह्य परिवहन के साधनों की आवश्यकता पड़ती है, जिससे माल को लाने एवं ले जाने में सुविधा रह सके।
  8. बाजार की सुविधा – कागज उद्योग के निकटवर्ती क्षेत्रों में सघन जनसंख्या का होना अति आवश्यक है, जिससे तैयार माल की खपत होती रहे। इसके साथ ही इसे विदेशों को निर्यात करने की भी पर्याप्त सुविधाएँ होनी चाहिए।

विश्व में कागज के प्रमुख उत्पादक देश
Main Paper Producing Countries in the World

विश्व में कागज का उत्पादन करने वाले देशों में कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, नार्वे, स्वीडन, फ्रांस, जर्मनी, रूस एवं जापान प्रमुख हैं, जिनका विवरण निम्नलिखित है –
(1) संयुक्त राज्य अमेरिका – संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व का 28.4% कागज का उत्पादन करता है तथा विश्व में प्रथम स्थान पर है। यहाँ 80% कागज रासायनिक लुग्दी से तैयार किया जाता है। इस लुग्दी से उत्तम किस्म का कागज बनाया जाता है। अधिकांश कांगज की मिलें न्यू इंग्लैण्ड, वाशिंगटन एवं ओरेगन राज्यों में स्थित हैं जहाँ कोमल लकड़ी के क्षेत्र विस्तृत हैं। न्यू इंग्लैण्ड राज्य में ही 47 कागज की मिलें हैं। संयुक्त राज्य के उत्तर-पूर्वी भाग में पर्याप्त जल-विद्युत का उत्पादन कर लिया जाता है। मेसाचुसेट्स, न्यूयॉर्क, विस्कांसिन, मिशीगन, ओहियो तथा पेंसिलवानिया कागज उत्पादन के अन्य। महत्त्वपूर्ण राज्य हैं।

(2) जापान – जापान विश्व का तीसरा बड़ा कागज उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का 9.8% कागज का उत्पादन होता है। जापान के होकेडो द्वीप में शंकुल वन पाये जाते हैं जहाँ सुगी, हिकोरी, फर, स्पूस आदि नुकीली पत्ती वाले वन प्रमुख हैं जिनसे लुग्दी तैयार की जाती है। होंशू द्वीप के भीतरी पहाड़ी भागों से भी लुग्दी बनाने के लिए कोमल लकड़ी मिल जाती है। टोकियो-याकोहामा औद्योगिक प्रदेश में शिजूओका एवं शिमिजू; क्यूशू द्वीप में टोकाई औद्योगिक क्षेत्र तथा पूर्वी क्षेत्र में सुरुगाबान क्षेत्र में कागज का उत्पादन सन् 1880 से किया जा रहा है।

(3) कनाडा – कनाडा विश्व का 6.5% कागज उत्पादन करके चौथे स्थान पर है। कनाडा में कोणधारी वृक्ष बहुतायत में मिलते हैं जिनसे कोमल लकड़ी की प्राप्ति होती है। इन वृक्षों से यान्त्रिक लुग्दी तैयार की जाती है। महान् झीलों का स्वच्छ जल इस उद्योग के लिए उपलब्ध है। इनसे प्रवाहित होने वाली नदियों पर बॉध बनाकर पर्याप्त जलविद्युत शक्ति का उत्पादन किया जाता है। ब्रिटिश कोलम्बिया, कनाडियन शील्ड एवं न्यूफाउण्डलैण्ड कागज उद्योग के महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, ब्रिटेन एवं पाकिस्तान यहाँ के कागज के प्रमुख ग्राहक हैं।

(4) ब्रिटेन – ब्रिटेन में कागज उद्योग के लिए नार्वे, स्वीडन, कनाडा एवं बाल्टिक सागरतटीय देशों से लुग्दी का आयात किया जाता है। इस देश को कागज उद्योग के लिए नदियों से स्वच्छ जल की पूर्ति, जल-विद्युत शक्ति, पश्चिमी यूरोपीय देशों के उपभोक्ता बाजार की निकटता तथा द्वीपीय स्थिति होने के कारण पत्तनों द्वारा लुग्दी आयात तथा तैयार माल के निर्यात जैसी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। कागज. उद्योग के केन्द्रों में केण्ट, रॉशडेल एवं हैम्पशायर प्रमुख हैं।

(5) यूरोपीय देश – यूरोप महाद्वीप में नार्वे, स्वीडन, फिनलैण्ड, ऑस्ट्रिया तथा जर्मनी में कागज का उत्पादन किया जाता है। अखबारी कागज का उत्पादन सबसे अधिक नार्वे में ओस्लो, फियॉर्ड एवं सक्रान्टन के तटीय भागों में किया जाता है। रूस के यूराल एवं साइबेरिया क्षेत्र कागज उद्योग के प्रमुख क्षेत्र हैं, क्योंकि यहाँ साइबेरिया के कोणधारी वन क्षेत्रों से लुग्दी के लिए कोमल लकड़ी उपलब्ध हो जाती है।

(6) भारत – भारत में बॉस, सवाई घास, रद्दी कागज, चिथड़े तथा चीड़ आदि वृक्षों से कागज बनाया जाता है। पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार, ओडिशा, कर्नाटक, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु एवं आन्ध्र प्रदेश प्रमुख कागज-उत्पादक राज्य हैं। यहाँ स्थानीय मॉग से बहुत कम उत्पादन होने के कारण विदेशों से कागज आयात करना पड़ता है। उच्चकोटि का कागज कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान एवं यूरोपीय देशों से आयात किया जाता है।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार-निर्यातक देश – कनाडा, नार्वे, स्वीडन, फिनलैण्ड, जर्मनी, जापान एवं संयुक्त राज्य अमेरिका।
आयातक देश – भारत, दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश, दक्षिणी अमेरिकी तथा दक्षिणी-पूर्वी यूरोपीय देश।

प्रश्न 5
चीनी उद्योग के स्थानीयकरण को प्रभावित करने वाले कारकों की विवेचना करते हुए इसके विश्व-वितरण (प्रमुख क्षेत्रों) का वर्णन कीजिए।
या
विश्व में चीनी उद्योग के स्थानीयकरण के लिए उपयुक्त भौगोलिक कारकों का सोदाहरण वर्णन कीजिए। (2007)
या
चीनी उद्योग के स्थानीयकरण के कारकों का विश्लेषण कीजिए। इसमें विश्व-वितरण एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का उल्लेख कीजिए। (2009, 10)
उत्तर
विश्व में चीनी मानव को शक्ति एवं ऊर्जा प्रदान करने वाला महत्त्वपूर्ण स्रोत है। वर्तमान समय में यह खाद्य-पदार्थों में आवश्यक हो गयी है। चीनी उद्योग उन्हीं देशों में पनप सका है जहाँ इसके लिए कच्चा माल–गन्ना अथवा चुकन्दर-पर्याप्त मात्रा में उगाया जाता है। उष्ण एवं उपोष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में चीनी गन्ने से प्राप्त की जाती है, जब कि शीतोष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में चुकन्दर से चीनी का निर्माण किया जाता है। यह उद्योग पूर्णत: कृषि उत्पादन पर निर्भर करता है।

चीनी उद्योग के स्थानीयकरण के कारण
Reasons for Localisation of Sugar Industry

चीनी उद्योग के स्थानीयकरण के लिए निम्नलिखित भौगोलिक दशाएँ आवश्यक होती हैं –

  1. कच्चे माल की उपलब्धि – चीनी उद्योग का विकास उन्हीं देशों में अधिक हुआ है जहाँ इसके लिए कच्चे माल के रूप में पर्याप्त गन्ना अथवा चुकन्दर का उत्पादन किया जाता है। भारत, क्यूबा, ब्राजील एवं फिलीपीन्स इसके प्रमुख उत्पादक देश हैं जो गन्ने से चीनी का उत्पादन करते हैं।
  2. सस्ते श्रमिकों की प्राप्ति – चीनी उद्योग के लिए पर्याप्त संख्या में सस्ते एवं कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है। अधिकांश गन्ना उत्पादक देशों में सघन जनसंख्या निवास करती है; अत: पर्याप्त एवं कुशल श्रमिक सुगमता से उपलब्ध हो जाते हैं।
  3. परिवहन के साधनों का विस्तार – इस उद्योग के लिए रेल परिवहन उपयुक्त एवं सस्ता पड़ता है। सड़क परिवहन भी आवश्यक है। इसी कारण गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में ही अधिकांश गन्ना-मिलें लगाई गयी हैं।
  4. शक्ति के संसाधन – चीनी उद्योग का विकास उन्हीं क्षेत्रों में होता है, जहाँ पर इस उद्योग के लिए पर्याप्त शक्ति के स्रोत (जैसे-कोयला, जल-विद्युत शक्ति, लकड़ी आदि) उपलब्ध होते हैं।
  5. बाजार की समीपता – जिन प्रदेशों में सघन जनसंख्या निवास करती है, वहीं इस उद्योग का विकास अधिक हुआ है। अन्य देशों की माँग भी इस उद्योग को प्रभावित करती है।
  6. सहायक उद्योगों का विकास – चीनी उद्योग के साथ-साथ सहायक उद्योग (जैसे- गत्ता, कृत्रिम रबड़, एल्कोहॉल, कागज आदि) का विकास किया जाना नितान्त आवश्यक है। इससे चीनी उद्योग के व्यर्थ पदार्थों का उपयोग इन उद्योगों में ही हो जाता है। इससे चीनी का उत्पादन व्यय भी कम हो जाता है।
  7. सरकारी प्रोत्साहन – इस उद्योग के लिए सरकारी प्रोत्साहन, संरक्षण, पर्याप्त पूँजी व्यवस्था, वित्तीय सहायता, निर्यात की सुविधाएँ भी मिलना अति आवश्यक हैं।
  8. मशीनों तथा उपकरणों की आवश्यकता – चीनी उद्योग के लिए पर्याप्त मात्रा में मशीनों तथा उपकरणों की आवश्यकता होती है। चीनी बनाने का कार्य भारी मशीनों द्वारा ही सम्पन्न किया जाता है। जिन देशों में मशीनें पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो जाती हैं, वहाँ चीनी उद्योग सुविधापूर्वक स्थापित हो। जाता है।
  9. पर्याप्त पूँजी – चीनी उद्योग स्थापित करने में पर्याप्त पूँजी की व्यवस्था करनी पड़ती है। पूँजी, पूँजीपतियों द्वारा लगाई जाती है अथवा वित्तीय संस्थानों द्वारा उपलब्ध कराई जाती है। जिन राष्ट्रों में पूँजी पर्याप्त मात्रा में सुलभ हो जाती है, वहाँ चीनी उद्योग का स्थानीयकरण हो जाता है।
  10. अन्य सुविधाएँ – रासायनिक पदार्थों की उपलब्धता, ईंधन, स्वच्छ जल, परिवहन तन्त्र की सुव्यवस्था आदि अन्य कारक भी चीनी उद्योग के स्थानीयकरण में पर्याप्त सहयोग प्रदान करते हैं।

विश्व में गन्ने की चीनी के उत्पादक देश
Countries Producing Sugar from Sugarcane in the World

विश्व में चीनी का उत्पादन व्यावसायिक दृष्टिकोण से गन्ने एवं चुकन्दर से किया जाता है। विगत वर्षों में चीनी के उत्पादन में तीव्र वृद्धि हुई है। विश्व में गन्ने द्वारा चीनी उत्पादन करने वाले देशों में ब्राजील, भारत, ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त राज्य अमेरिका, क्यूबा, थाईलैण्ड, मैक्सिको आदि प्रमुख हैं, जिनका विवरण निम्नलिखित है –
(1) ब्राजील – गन्ने द्वारा चीनी उत्पादन में ब्राजील का विश्व में प्रथम स्थान है, जहाँ विश्व का 24% गन्ना पैदा होता है। उत्तर-पूर्वी समुद्रतटीय प्रदेश एवं दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र चीनी के प्रमुख उत्पादक हैं। इस देश की जलवायु गन्ना-उत्पादन के लिए ही अनुकूल है। यहाँ विश्व की 15.2% चीनी का उत्पादन होता है।
(2) भारत – भारत का चीनी उत्पादन में विश्व में द्वितीय स्थान है। यहाँ पर गन्ने से गुड़ भी बड़ी मात्रा में बनाया जाता है। चीनी उत्पादक प्रमुख राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, ओडिशा, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक एवं तमिलनाडु हैं। भारत विश्व की लगभग 14% चीनी पैदा करता है।
(3) क्यूबा – चीनी के उत्पादन में क्यूबा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यहाँ विश्व का 6.8% से अधिक गन्ने का उत्पादन किया जाता है। गन्ने का उत्पादन बड़े-बड़े फार्मों पर यान्त्रिक ढंग से किया जाता है; अत: चीनी मिलें कृषि-फार्मों के समीप ही स्थापित की गयी हैं।
(4) अन्य उत्पादक देश – चीनी के अन्य उत्पादक देशों में ऑस्ट्रेलिया, मैक्सिको, चीन, पाकिस्तान, कोलम्बिया, फिलीपीन्स, दक्षिणी अफ्रीका, अर्जेण्टीना, थाईलैण्ड, हवाई द्वीप, पीरू, मॉरीशस, इण्डोनेशिया एवं वेनेजुएला प्रमुख हैं।

विश्व में चुकन्दर की चीनी के उत्पादक देश
Countries Producing Sugar from Sugarbeets in the World

विश्व में चीनी उत्पादन का दूसरा महत्त्वपूर्ण स्रोत चुकन्दर है। उन्नीसवीं शताब्दी में जब यूरोपीय देशों के सामने चीनी की समस्या आयी तो उन्हें चुकन्दर का आश्रय लेना पड़ा, क्योंकि इन देशों में गन्ना उत्पादन के लिए भौगोलिक दशाएँ अनुकूल नहीं थीं। विश्व में चीनी की कुल मात्रा के उत्पादन के दृष्टिकोण से चुकन्दर से निर्मित चीनी का स्थान लगभग आधा है। चुकन्दर की चीनी के उत्पादन में ‘निम्नलिखित देश प्रमुख स्थान रखते हैं –

  1. रूस – संयुक्त देशों का राष्ट्रकुल विश्व की सर्वाधिक चुकन्दर उत्पन्न करता है तथा यहाँ इससे विश्व की 30% चीनी उत्पन्न की जाती है। प्रमुख उत्पादक क्षेत्र यूक्रेन, पश्चिमी साइबेरिया, कजाकिस्तान खिरगीज एंवं ट्रांस काकेशिया हैं।
  2. संयुक्त राज्य अमेरिका – चुकन्दर से बनी चीनी उत्पादन में संयुक्त राज्य अमेरिका का विश्व में दूसरी स्थान है। यहाँ चुकन्दर एवं गन्ना दोनों ही उत्पन्न किये जाते हैं। इसके उपरान्त भी इसे विदेशों से चीनी आयात करनी पड़ती है। चुकन्दर की चीनी के उत्पादक क्षेत्रों में कोलोरेडो; पश्चिम में कन्सास से उत्तर में कनाडा की सीमा तक तथा पश्चिम में वाशिंगटन राज्य मुख्य हैं।
  3. चीन – चीन में चुकन्दर से चीनी के उत्पादक क्षेत्रों में शांसी-शेन्सी का मैदान, जेचवान बेसिन, ह्वांग्हो, यांगटिसीक्यांग एवं सीक्यांग नदियों के बेसिन प्रमुख हैं। चीन को चुकन्दर क़ी चीनी उत्पादन में तीसरा स्थान है।
  4. जर्मनी – चुकन्दर से निर्मित चीनी उत्पादन में जर्मनी का विश्व में चौथा स्थान है। प्रमुख रूप से इसका उत्पादन पश्चिमी जर्मनी में किया जाता है।
  5. अन्य उत्पादक देश – चुकन्दर निर्मित चीनी के अन्य उत्पादक देशों में फ्रांस, इटली. पोलैण्ड, स्पेन, नीदरलैण्डे, रोमानिया, यूगोस्लाविया, ग्रेट ब्रिटेन, हंगरी आदि हैं।

यूरोपीय देशों के अतिरिक्त अर्जेण्टाइना, तुर्की एवं जापान में भी चुकन्दर की चीनी का उत्पादन किया जाता है।

चीनी का विश्व व्यापार
World Trade of Sugar

गन्ने से निर्मित चीनी का विश्व व्यापार लगभग 300 लाख मी टन वार्षिक होता है। विश्व की कुल चीनी का 50% विकासशील देश, 30% विकसित देश तथा 20% भाग कम्युनिस्ट देश उत्पादन करते हैं, जब कि निर्यात मात्रा में 75% भाग विकासशील देशों द्वारा किया जाता है।
गन्ने की चीनी के निर्यातक देशों में ब्राजील, क्यूबा, भारत, फिलीपीन्स, हवाई द्वीप, प्यूर्टोरिको, ऑस्ट्रेलिया, ताईवाने, मॉरीशस एवं मैक्सिको हैं; जबकि आयातक देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, कनाडा, फ्रांस एवं स्विट्जरलैण्ड प्रमुख हैं। पाकिस्तान, मिस्र, ईरान आदि देश अपनी आवश्यकता के अनुसार चीनी का उत्पादन कर लेते हैं। इस प्रकार गन्ने से बनी चीनी का व्यापार चुकन्दर से बनी चीनी से अधिक होता है।

प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व चुकन्दर से निर्मित चीनी के निर्यातक देश जर्मनी, हंगरी एवं नीदरलैण्ड थे तथा आयातक देश ग्रेट ब्रिटेन था, परन्तु गन्ने की चीनी के विश्व व्यापार में आ जाने के कारण अब चुकन्दर की चीनी का व्यापार कम हो गया है, क्योंकि गन्ने की चीनी इससे सस्ती पड़ती है। वर्तमान समय में अधिकांश चुकन्दर की चीनी उत्पादक देश अपने उपभोग के लिए ही चीनी का उत्पादन करते हैं, परन्तु अधिकांश यूरोपीय देश एवं संयुक्त राज्य अमेरिका गन्ने द्वारा निर्मित चीनी का आयात करते हैं। चेक एवं स्लोवाकिया, हंगरी, पोलैण्ड एवं नीदरलैण्ड चुकन्दर से बनी चीनी का निर्यात करते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान एवं ब्रिटेन इसके प्रमुख आयातक देश हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
जापान में सूती वस्त्रोद्योग स्थानीयकरण के दो प्रमुख कारण बताइए। उत्तर जापान में सूती वस्त्रोद्योग स्थानीयकरण के दो प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –

  1. कच्चे माल की सुलभता – कपास के रूप में कच्चा माल चीन, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, मिस्र, सूडान, मैक्सिको आदि देशों से आसानी से प्राप्त हो जाता है।
  2. बड़ी संख्या में सस्ते श्रमिकों की प्राप्ति – इन उद्योगों में कार्य करने के लिए जापान में बड़ी संख्या में सस्ते श्रमिक, जिनमें स्त्रियों व बच्चों की संख्या अधिक रहती है, आसानी से मिल जाते हैं। जापानी श्रमिक दो पारियों में कार्य करते हैं।

प्रश्न 2
कनाडा में कागज उद्योग क्यों विकसित है?
उत्तर
कागज उद्योग की स्थापना के लिए कोमल लकड़ी के वनों का होना आवश्यक है जिनसे लुग्दी बनायी जाती है। इसके अतिरिक्त, स्वच्छ जल, जल-विद्युत शक्ति, रासायनिक पदार्थों की प्राप्ति, परिवहन के साधनों, कुशल श्रमिकों तथा बाजार का होना आवश्यक है। ये सभी आवश्यक भौगोलिक सुविधाएँ कनाडा में उपलब्ध हैं। कनाडा में कोणधारीवृक्ष बहुतायत में मिलते हैं। इनसे यान्त्रिक लुग्दी तैयार की जाती है। यहाँ महान् झीलों का स्वच्छ जल भी उपलब्ध है। नदियों पर बाँध बनाकंरपर्याप्त जल- विद्युत शक्ति भी उत्पन्न की जाती है। इसीलिए ब्रिटिश कोलम्बिया, कनाडियन शील्ड तथा न्यूफाउण्डलैण्ड में कागज उद्योग विकसित हो गया है। संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, ब्रिटेन तथा पाकिस्तान कागजं के प्रमुख ग्राहक हैं।

प्रश्न 3
संयुक्त राज्य अमेरिका के महान झील क्षेत्र के उद्योगों के विकास में उस क्षेत्र में प्राप्त खनिजों का योगदान समझाइए।
उत्तर
संयुक्त राज्य अमेरिका के महान झीलों के क्षेत्र में अनेक उद्योगों का विकास हुआ है जिससे यहाँ एक महान औद्योगिक क्षेत्र विकसित हो गया है। यहाँ अनेक खनिज आधारित उद्योग स्थापित हैं, जिनमें, लोहा-इस्पात उद्योग सबसे महत्त्वपूर्ण आधारभूत उद्योग है। इसी के आधार पर यहाँ भारी इन्जीनियरिंग उद्योग, मोटर उद्योग आदि भी विकसित हो गये हैं। इस औद्योगिक विकास की आधारशिला यहाँ प्राप्त होने वाली लौह धातु है, जो मेसाबी, वरमीलियन, कुयुना, गोजेबिक, मिनोमिनी, मारक्वेंट आदि लौह श्रेणियों के रूप में उपस्थित है। इसके अतिरिक्त निकट ही कोयला भी प्राप्त होता है। इन दो खनिजों के आधार पर ही झील क्षेत्र के औद्योगिक प्रदेश का विकास हुआ है।

प्रश्न 4
सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण के प्रमुख चार कारक बताइए।
उत्तर
सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण के प्रमुख चार कारक निम्नवत् हैं –

  1. कच्चे माल की सुलभता – सूती वस्त्र के लिए कंपास कच्चा माल है। यह एक हल्का पदार्थ है, जिसका परिवहन सरलता से सम्भव है।
  2. आर्द्र जलवायु – सूती धागा व कपड़ा बनाने के लिए आर्द्र समुद्री जलवायु उपयुक्त रहती है। शुष्क जैलवायु में धागा टूटता है।
  3. पर्याप्त जल की प्राप्ति – सूत की धुलाई, रँगाई, कपड़े की छपाई आदि में स्वच्छ जल की आवश्यकता होती है। प्रायः नदियों व झीलों के किनारे सूती वस्त्र उद्योग स्थापित होते हैं।
  4. शक्ति के साधन – कारखानों को चलाने के लिए कोयला अथवा. सस्ती जल-विद्युत आवश्यक है।

प्रश्न 5
संयुक्त राज्य अमेरिका में लौह-अयस्क उत्पादन के दो प्रमुख क्षेत्रों का वर्णन कीजिए। (2013)
उत्तर
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 के अन्तर्गत (अ) शीर्षक देखें।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
संयुक्त राज्य अमेरिका के किस क्षेत्र में सर्वाधिक लोहा-इस्पात तैयार किया जाता है?
उत्तर
संयुक्त राज्य अमेरिका के शिकागो-गैरी क्षेत्र में सर्वाधिक (देश का 35%) लोहा-इस्पात तैयार किया जाता है।

प्रश्न 2
जापान के किन क्षेत्रों में लोहा-इस्पात उद्योग विकसित है? [2010]
या
जापान के लोहा है। इस्पात उद्योग के दो केन्द्रों के नाम लिखिए। [2013]
उत्तर
जापान में तीन प्रमुः क्षेओं में लोहा-इस्पात उद्योग विकसित हैं-

  1. क्यूशू द्वीप पर मौजी क्षेत्र
  2. होंशू द्वीप के पूर्वी भाग में कैमेशी क्षेत्र तथा
  3. होकैडो द्वीप पर मुरारा क्षेत्र।

प्रश्न 3.
जर्मनी में लोहा-इस्पात उद्योग किस क्षेत्र में सर्वाधिक विकसित है?
उत्तर
जर्मनी में लोहा-इस्पात उद्योग ‘रूर बेसिन’ में सर्वाधिक विकसित है।

प्रश्न 4
चीन में लोहा-इस्पात उद्योग सर्वाधिक कहाँ विकसित है?
उत्तर
चीन में लोहा-इस्पात उद्योग मंचूरिया क्षेत्र में सर्वाधिक विकसित है।

प्रश्न 5
विश्व के चार अग्रणी लोहा-इस्पात उत्पादक देशों के नाम बताइए।
उत्तर

  1. जापान
  2. संयुक्त राज्य अमेरिका
  3. चीन तथा
  4. रूसा

प्रश्न 6
विश्व में सूती वस्त्र उद्योग के चार अग्रणी देशों का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर

  1. चीन
  2. भारत
  3. संयुक्त राज्य अमेरिकां तथा
  4. इटली।

प्रश्न 7
किस नगर को जापान का मानचेस्टर’ कहा जाता है?
उत्तर
ओसाका नगर को ‘जापान का मानचेस्टर’ कहा जाता है।

प्रश्न 8
ग्रेट ब्रिटेन का कौन-सा नगर सूती वस्त्र उद्योग के लिए विख्यात है?
उत्तर
ग्रेट ब्रिटेन में मानचेस्टर नगर सूती वस्त्र उद्योग के लिए विख्यात है।

प्रश्न 9
कागज के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के निर्यातक देशों के नाम बताइए।
उत्तर
कागज के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के निर्यातक देश हैं-

  • कनाडा
  • नार्वे
  • स्वीडन
  • फिनलैण्ड
  • जर्मनी
  • जापान एवं संयुक्त राज्य अमेरिका।

प्रश्न 10.
जापान सूती वस्त्र उद्योग के लिए कपास कहाँ से आयात करता है?
उत्तर
जापान सूती वस्त्र उद्योग के लिए कपास प्राय: अमेरिका, पाकिस्तान, चीन, पूर्वी अफ्रीका व भारत से आयात करता है।

प्रश्न 11
कृत्रिम रेशम कैसे तैयार की जाती है?
उत्तर
कृत्रिम रेशम अधिकतर स्पूस एवं पाइन लकड़ी से प्राप्त किये गये सेल्यूलोज लकड़ी की लुग्दी और कारखानों की बनी हुई रद्दी कपास से तैयार की जाती है।

प्रश्न 12
कागज का सर्वप्रथम आविष्कार कहाँ हुआ?
उत्तर कागज का सर्वप्रथम आविष्कार 105 ई० में चीन के साइलुन नामक शिल्पी ने फटे-पुराने चीथड़ों से किया।

प्रश्न 13
ऊनी वस्त्रोद्योग में अग्रणी उत्पादक देशों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
ऊनी वस्त्रोद्योग में चीन, इटली, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, जर्मनी, यूक्रेन आदि अग्रणी देश हैं।

प्रश्न 14
कागज उद्योग में महत्त्वपूर्ण देशों के नाम बताइए।
उत्तर
कागज उद्योग में संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, जापान, कनाडा, जर्मनी, फिनलैण्डे, स्वीडन, फ्रांस, इटली, ब्रिटेन तथा कोरिया महत्त्वपूर्ण देश हैं।

प्रश्न 15
चीनी उद्योग में उल्लेखनीय देशों के नाम बताइए।
उत्तर
चीनी उद्योग में ब्राजील, भारत, चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, थाईलैण्ड, मैक्सिको, फ्रांस, जर्मनी, क्यूबा, पाकिस्तान, तुर्की तथा दक्षिण अफ्रीका उल्लेखनीय देश हैं।

प्रश्न 16
जापान में लौह-इस्पात केन्द्रों की स्थापना सागरतटीय क्षेत्रों में क्यों की गयी है?
उत्तर
जापान को लगभग पूरा लौह-अयस्क आयात करना पड़ता है। कच्चे माल को आयात करने की सुविधा के कारण जापान में लौह-इस्पात केन्द्रों की स्थापना सागरतटीय क्षेत्रों में की गयी है।

प्रश्न 17
मंचूरिया क्षेत्र चीन में लौह-इस्पात का प्रमुख उत्पादक केन्द्र क्यों है?
उत्तर
मंचूरिया में उच्चकोटि के कोकिंग कोयले के विशाल भण्डार हैं तथा लौह-अयस्क के अधिकांश भण्डार भी यहीं हैं।

प्रश्न 18
सूती व्यवसाय के केन्द्र बहुधा नदियों और झीलों के किनारे ही क्यों स्थापित किये गये हैं?
उत्तर
सूत की धुलाई, रँगाई और अन्य कई प्रकार के कार्यों के लिए शुद्ध एवं मीठे जल की आवश्यकता पड़ती है। इसी कारण नदियों या झीलों के किनारे सूती व्यवसाय के केन्द्र स्थापित किये गये हैं।

प्रश्न 19
संयुक्त राज्य अमेरिका के किसी एक सूती वस्त्र उत्पादन क्षेत्र का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
न्यू इंग्लैण्ड क्षेत्र संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रमुख सूती वस्त्र उत्पादन क्षेत्र है। इस क्षेत्र में रोड्स द्वीप, कनेक्टीकट, मैसाचुसेट्स एवं हैम्पशायर केन्द्र हैं।

प्रश्न 20
नेपानगर का औद्योगिक महत्त्व बताइए। [2007]
उत्तर
नेपानगर कागज उद्योग के लिए विख्यात है।

प्रश्न 21
विश्व के लौह-अयस्क उत्पादन के दो क्षेत्रों के नाम लिखिए। [2011]
उत्तर

  1. रूर बेसिन तथा
  2. मंचूरिया।

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1
सूती वस्त्र उद्योग के लिए उपयोगी है –
(क) शुष्क जलवायु
(ख) नर्म जलवायु
(ग) (के) और (ख) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(ख) नम जलवायु।

प्रश्न 2
रेशम प्राप्त किया जाता है –
(क) पेड़ों से
(ख) फलों से
(ग) रेशम के कीड़ों से
(घ) इनमें से किसी से नहीं
उत्तर
(ग) रेशम के कीड़ों से।

प्रश्न 3
कागज-लुग्दी उत्पादन में प्रथम स्थान है –
(क) जापान का
(ख) नार्वे का
(ग) कनाडा का
(घ) फ्रांस का
उत्तर
(ग) कनाडा का।

प्रश्न 4
जापान का मानचेस्टर है –
(क) टोकियो
(ख) ओसाका
(ग) नागासाकी
(घ) हिरोशिमा
उत्तर
(ख) ओसाका।

प्रश्न 5
चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक देश है –
(क) भारत
(ख) क्यूबा
(ग) ब्राजील
(घ) संयुक्त राज्य अमेरिका
उत्तर
(ग) ब्राजील।

प्रश्न 6
जापान के सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा कारक महत्त्वपूर्ण नहीं है?
(क) अनुकूलं जलवायु
(ख) शक्ति संसाधन
(ग) कच्चे माल की उपलब्धता
(घ) उच्च प्रौद्योगिकी
उत्तर
(ग) कच्चे माल की उपलब्धता।

प्रश्न 7
जापान में लौह-इस्पात उद्योग के स्थानीयकरण के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा कारक महत्त्वपूर्ण नहीं है?
(क) पूर्वारम्भ
(ख) राजकीय प्रोत्साहन
(ग) स्थानीय खनिज सम्पदा
(घ) सामुद्रिक स्थिति
उत्तर
(ग) स्थानीय खनिज सम्पदाँ।

प्रश्न 8
संयुक्त राज्य अमेरिका के सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा कारक महत्त्वपूर्ण नहीं है?
(क) यू० एस० ए० की कमास मेखला
(ख) अफ्रीका से गुलामों की प्राप्ति
(ग) चीन की विशाल जनसंख्या
(घ) सस्ती जल-शक्ति की आपूर्ति
उत्तर
(क) यू० एस० ए० की कपास मेखला।

प्रश्न 9
निम्नलिखित में से कौन-सा नगर लौह तथा इस्पात उद्योग के लिए प्रसिद्ध है? [2007]
(क) राउरकेला
(ख) सूरत
(ग) कोलकाता,
(घ) अहमदाबाद
उत्तर
(क) राउरकेला।

प्रश्न 10
निम्नलिखित में से कौन-सा स्थान सूती वस्त्र उद्योग के लिए प्रसिद्ध है? [2008, 15]
(क) बीजिंग।
(ख) मानचेस्टर
(ग) पिट्सबर्ग
(घ) किम्बलें
उत्तर
(ख) मानचेस्टर

प्रश्न 11
नेपानगर प्रसिद्ध है – [2012]
(क) अखबारी कागज़ के लिए
(ख) देशज उद्योग के लिए
(ग) सीमेण्ट उद्योग के लिए
(घ) चीनी उद्योग के लिए
उत्तर
(क) अखबारी कागज के लिए।

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