UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 20 Population Structure and Urbanization (जनसंख्या की संरचना तथा नगरीकरण)

By | May 29, 2022

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 20 Population Structure and Urbanization (जनसंख्या की संरचना तथा नगरीकरण)

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 20 Population Structure and Urbanization (जनसंख्या की संरचना तथा नगरीकरण)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए –
(अ) पुरुष-महिला अनुपात अथवा लिंगानुपात, (ब) जनसंख्या की आयु-संरचना, (स) भारत में साक्षरता, (द) जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना, (य) ग्रामीण एवं नगरीय जनसंख्या।
या
भारत की जनगणना 2011 के अनुसार भारत का लिंगानुपात या लिंगानुपात से आप क्या समझते हैं? बताइए। [2016]
या
भारत में लिंगानुपात की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
या
लिंगानुपात से आप क्या समझते हैं? [2011, 12]
या
भारत में लिंगानुपात की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। [2009]
या
भारत की जनगणना, 2011 के अनुसार भारत का लिंगानुपात बताइए। [2016]
उत्तर

(अ) पुरुष-महिला अनुपात अथवा लिंगानुपात
Sex-Ratio

भारत में सन् 2011 ई० की जनगणना के अनुसार 62.37 करोड़ पुरुष (51.53%) तथा 58.65 करोड़ महिलाएँ (48.46%) हैं। इस प्रकार प्रति 1,000 पुरुषों के पीछे 940 महिलाएँ हैं। इस अनुपात के सम्बन्ध में एक विशेष बात यह है कि पिछले 100 वर्षों में स्त्रियों की संख्या पुरुषों की तुलना में निरन्तर कम होती गयी है। सन् 2001 में प्रति 1,000 पुरुषों के पीछे 933 महिलाएँ थीं।
भारत में लिंगानुपात Sex Ratio in India
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पुरुषों के अनुपात में महिलाओं की संख्या में कमी के निम्नलिखित तीन कारण हो सकते हैं –

  1. भारत में महिलाओं की अपेक्षा पुरुष-शिशुओं का जन्म अधिक होता है।
  2. भारत के अनेक प्रदेशों में महिला-शिशुओं की देखभाल कम होने अथवा प्रसूति अवस्था में मृत्यु-दर का अधिक होना है।
  3. भारत में बाल-विवाह प्रथा प्रचलित है और कम आयु में लड़कियों को सातृत्व का भार वहन न कर पाने के कारण बहुत-सी लड़कियों की प्रसूति काल में अकाल मृत्यु हो जाती है।

भारतीय ग्रामीण समाज में प्रसूतावस्था में महिलाओं की उचित देखभाल न हो पाने के कारण वे रोगग्रस्त हो जाती हैं जिससे महिलाओं की संख्या में कमी की प्रवृत्ति दृष्टिगोचर होती है। देश के उत्तरी क्षेत्रों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या कम है, परन्तु ज्यों-ज्यों दक्षिण की ओर बढ़ते जाते हैं, महिलाओं की संख्या में निरन्तर वृद्धि होती जाती है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार केरल राज्य में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या सबसे अधिक (1,084) है।

(ब) जनसंख्या की आयु-संरचना
Age Structure of Population

भारत में उच्च जन्म-दर ने आयु-संरचना को एक वृहत् आधार प्रदान किया है जो ऊपर की ओर छोटा होता जाता है। इसे जनांकिकी में युवा जनसंख्या कहा जाता है। प्रायः4 वर्ष की आयु तक शिशु,5 से 14 वर्ष तक की आयु वालों को किशोर-किशोरियाँ, 15 से 29 वर्ष की आयु वालों को नवयुवक-नवयुवतियाँ, 30 से 50 वर्ष तक की आयु वालों को अधेड़ तथा इससे अधिक आयु वालों को वयोवृद्ध माना जाता है। इस आधार पर देश की 44% जनसंख्या 56% जनसंख्या पर आश्रित है, जो अधिकांशत: 15 से 60 वर्ष की आयु-वर्ग के मध्य है। वास्तव में यही जनसंख्या कार्यशील कहलाती है।
आयु-संरचना Age Structure
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आयु – संरचना के सम्बन्ध में एक प्रमुख तथ्य यह है कि पिछले 40 वर्षों में जनसंख्या की प्रत्याशित आयु में निरन्तर वृद्धि हुई है। इसका मुख्य कारण असाध्य रोगों पर नियन्त्रण किया जाना है, जिससे बाल मृत्यु-दर एवं सामान्य मृत्यु-दर में कमी आयी है।

(स) भारत में साक्षरता
Literacy in India

साक्षर से तात्पर्य उस व्यक्ति से होता है जो किसी भाषा को सामान्य रूप से लिख-पढ़ सकता है। सन् 1901 की जनगणना के अनुसार भारत में केवल 5.35% व्यक्ति साक्षर थे। सन् 1951 तक यह प्रतिशत मन्द गति से बढ़ा। इस वर्ष यह प्रतिशत 18.33 हो गया था, जबकि इसके बाद इस प्रतिशत में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। सन् 1981 में यह प्रतिशत 43.57 हो गया जो सन् 1991 में बढ़कर 52.21% हो गया। सन् 2001 में साक्षरता 64.8% हो गयी। यद्यपि पिछले 80 वर्षों में महिला साक्षरता में पुरुष साक्षरता की अपेक्षा अधिक वृद्धि हुई है तो भी साक्षरता में पुरुषों की ही संख्या अधिक रही है। सन् 1901 में पुरुषों की साक्षरता 9.8% थी सन् 1991 में यह बढ़कर 64.13% हो गयी है। सन् 1901 में महिला साक्षरता 0.6% थी जो सन् 2001 में बढ़कर 54.16% हो गयी है। सन् 2011 में यह 74.04% हो गयी। यह प्रतिशत नगरों की अपेक्षा ग्रामों में काफी कम है। ग्रामीण जनसंख्या का 40% भाग तथा नगरीय जनसंख्या का 20% भाग आज भी अशिक्षित है।

राज्यों के अनुसार साक्षरता की दर सबसे अधिक केरल राज्य में है, जो सन् 2011 की जनगणना के अनुसार 93.91% थी, जबकि सबसे कम बिहार में 63.82% है। केरल राज्य ने पूर्ण साक्षरता का लक्ष्य प्राप्त कर लिया है। देश में साक्षरता के स्तर में वृद्धि करना अति आवश्यक है जिससे देशवासी विकास–योजनाओं को समझ सकें तथा देश के आर्थिक विकास में वृद्धि की जा सके।

(द) जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना
Occupational Structure of Population

व्यावसायिक संरचना के अनुसार भारत की लगभग 65% जनसंख्या कृषि कार्यों में लगी हुई है, जबकि उद्योग-धन्धों में केवल 12% जनसंख्या ही लगी है। देश में विभिन्न जनगणना वर्षों में कार्यशील जनसंख्या का प्रतिशत इस प्रकार रहा है-1911 में 48.2%, 1921 में 47.1%, 1931 में 46.6%, 1951 में 46%, 1961 में 45%, 1981 में 42% तथा 1991 में 37.3% तथा 2011 में 21.3%। इन आँकड़ों से ज्ञात होता है कि भारत की कुल जनसंख्या में कार्यशील जनसंख्या पर आश्रित जनसंख्या का भार बढ़ता जा रहा है। कार्यशील जनसंख्या का लमभग 65% भाग कृषि-कार्यों पर निर्भर करता है।

भारत में कृषि पर निर्भर रहने वाली जनसंख्या की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही है। सन् 2011 में कुल जनसंख्या का 65% भाग कृषि-कार्य पर निर्भर था। राष्ट्रीय आय में वृद्धि के लिए यह आवश्यक है कि कृषि पर जनसंख्या की निर्भरता कम की जाये तथा उसे अन्य कार्यों; जैसे-उद्योग-धन्धों, व्यापार, परिवहन, निर्माण आदि कार्यों की ओर उन्मुख किया जाये।

(य) ग्रामीण एवं नगरीय जनसंख्या
Rural and Urban Population

भारत वास्तविक रूप से ग्रामों का देश है। आज भी देश की जनसंख्या का एक बड़ा भाग ग्रामों में निवास करता है। सन् 1891 की जनगणना के अनुसार देश की जनसंख्या का केवल 9.5% भाग नगरों में निवास करता था तथा 90.5% जनसंख्या ग्रामों में निवास करती थी। सन् 1891 से लेकर सन् 1941 तक नगरीय जनसंख्या के अनुपात में बहुत ही मन्द गति से वृद्धि हुई तथा यह प्रतिशत 10 से 14 के मध्य ही रहा। सन् 1951 में नगरीय जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई तथा देश की 17.34% जनसंख्या नगरों में निवास करने लगी थी। इस वृद्धि का प्रमुख कारण देश के विभाजन के फलस्वरूप पाकिस्तान से आने वाले विस्थापितों एवं शरणार्थियों को नगरों में बस जाना था। सन् 1961 की जनगणना के अनुसार 82.1% जनसंख्या ग्रामों में रह रही थी। इस वर्ष 17.9% जनसंख्या नगरों में रहती थी।

सन् 1981 की जनगणना के अनुसार देश में लगभग 5.5 लाख ग्राम और 3,245 नगर थे। इस प्रकार इन ग्रामों में 76.27% तथा नगरों में 23.73% जनसंख्या निवास कर रही थी, जबकि सन् 1991 की जनगणना के अनुसार 74.28% जनसंख्या ग्रामों में तथा 25.72% जनसंख्या नगरों में निवास कर रही थी। सन् 2011 की जनगणना में देश में लगभग 6.41 लाख ग्राम व 7,936 नगर थे। सन् 2011 में नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत बढ़कर 31.16 तथा ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत घनत्व घटकर 68.84 रह गया है।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि भारत में कुल जनसंख्या में ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत धीरे-धीरे घटता जा रहा है तथा नगरों की संख्या तथा उनकी जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है।
प्रो० ब्लॉश के अनुसार, “भारत ग्रामीण अधिवास का उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करता है। भारत में ग्रामीण जीवन बड़ी विकसित अवस्था में है। ये ग्राम भारतीय संस्कृति का आधार-स्तम्भ रहे हैं। ग्रामीण जीवन संगठन पर आधारित होता है। प्राचीन काल में गाँव तो स्वावलम्बी ही होते थे जिनमें पारस्परिक सहयोग की भावना होती थी।

भारतीय ग्रामों का जन्म सहकारिता के आधार पर माना जाता है, परन्तु पिछले कुछ वर्षों से व्यक्तिवाद की भावना में वृद्धि, संयुक्त परिवार प्रथा का विघटन, आधुनिक एवं पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव, परिवहन साधनों का विकास, नगरों में उद्योग-धन्धों के विकसित हो जाने के कारण ग्रामीण जनसंख्या का नगरों की ओर प्रवास एवं ग्रामीण लघु-कुटीर उद्योग-धन्धों का विनाश आदि ऐसे आर्थिक एवं सामाजिक कारण रहे हैं जिनसे ग्रामों का प्राचीन वैभव नष्ट होता जा रहा है, जबकि आज भी देश की लगभग तीन-चौथाई जनसंख्या ग्रामों में ही निवास कर रही है। भारत धीरे-धीरे नगरीकरण की ओर अग्रसर होता जा रहा है।

प्रश्न 2
नगरीकरण क्या है? भारत से उदाहरण लेते हुए नगरीकरण और औद्योगीकरण के अन्तःसम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
या
नगरीकरण से क्या तात्पर्य है? [2006]
या
भारत में नगरीकरण की प्रवृत्ति एवं अर्थव्यवस्था पर उसके प्रभाव की विवेचना कीजिए। [2007]
या
भारत में नगरीकरण की विवेचना कीजिए। [2010]
या
नगरीकरण की परिभाषा दीजिए। [2012, 15]
उत्तर
नगरीकरण से आशय व्यक्तियों द्वारा नगरीय संस्कृति को स्वीकारना है। प्रत्येक देश में गाँवों से नगरों की ओर निरन्तर जनसंख्या का प्रवास होता रहता है। यह प्रवास सामान्यत: गाँवों से कस्बों, कस्बों से नगरों तथा नगरों से महानगरों की ओर होता रहता है। यह प्रक्रिया सतत् रूप से जारी है।

नगरीकरण की प्रक्रिया नगर से सम्बन्धित है। नगर सामाजिक विभिन्नताओं का वह समुदाय है। जहाँ द्वितीयक एवं तृतीयक समूहों और नियन्त्रणों, उद्योग और व्यापार, सघन जनसंख्या और वैयक्तिक सम्बन्धों की प्रधानता हो। नगरीकरण की प्रक्रिया द्वारा गाँव धीरे-धीरे नगर में परिवर्तित हो जाते हैं। इस प्रकार कृषि (प्राथमिक व्यवसाय) का उद्योग एवं व्यापार आदि में परिवर्तन नगरीकरण कहलाता है। श्री बर्गेल ग्रामों के नगरीय क्षेत्र में रूपान्तरित होने की प्रक्रिया को ही नगरीकरण कहते हैं।

इसी प्रकार किसी प्रदेश में उद्योग-धन्धों का विकास हो जाने के कारण जब ग्रामीण जनसंख्या रोजगार की खोज में ग्रामीण बस्तियों को छोड़कर नगरों की ओर प्रस्थान करने लगती है, तो नगरीय जनसंख्या में वृद्धि हो जाती है। इस रूप में, नगरीकरण का अर्थ ‘नगरों के विकास’ से लिया जाता है। यह एक ऐसी शाश्वत प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति गाँवों से नगरों में प्रस्थान कर निवास करने लगते हैं।

भारत की जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि होने के साथ-साथ नगरीकरण में भी भारी वृद्धि हुई है। सन् 1901 में कुल नगरीय जनसंख्या 2.57 करोड़ थी, जो सन् 2001 में बढ़ते-बढ़ते 28.53 करोड़ हो गयी है। इस प्रकार इन 100 वर्षों के दौरान नगरीय जनसंख्या दस गुनी से भी अधिक हो गयी है, परन्तु फिर भी नगरीय जनसंख्या का कुल जनसंख्या में अनुपात उतनी वृद्धि नहीं कर पाया है जितनी कि कुल जनसंख्या में वृद्धि हुई है। भारत में सन् 1901 में नगरों व कस्बों की संख्या 1,916 थी जो सन् 1991 में बढ़कर 3,768 हो गयी। इस अवधि में देश में 2.57 करोड़ नगरीय जनसंख्या बढ़कर 21.76 करोड़ पहुँच गयी। अतः स्पष्ट है कि जहाँ एक ओर नगरीय जनसंख्या में भारी वृद्धि हुई है, वहीं ग्रामीण जनसंख्या में भी भारी वृद्धि अंकित की गयी है। निम्नांकित तालिका भारत में नगरीकरण की दर को प्रकट करती है –

भारत में नगरीकरण
Urbanization in India
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उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट होता है कि सन् 1901 से लेकर सन् 1941 तक नगरीय जनसंख्या में वृद्धि की दर बहुत ही धीमी गति से हुई है, परन्तु सन् 1951 के जनगणना वर्ष में नगरीय जनसंख्या में तीव्र वृद्धि अंकित की गयी। कुल जनसंख्या में पिछले 40 वर्षों के दौरान भी इतनी नगरीय जनसंख्या में वृद्धि नहीं हो पायी थी जितनी कि सन् 1941 से 1951 के दशक में। इसका प्रमुख कारण यह था कि देश विभाजन के फलस्वरूप बहुत-सी विस्थापित एवं शरणार्थी जनसंख्या पाकिस्तान से आकर नगरों में बस गयी थी। इसके साथ ही 1921 के बाद से देश प्राकृतिक विपदाओं से सुरक्षित रहा, परन्तु फिर भी अन्य पश्चिमी देशों की अपेक्षा भारत में नगरीय जनसंख्या में कोई विशेष वृद्धि नहीं हो पायी।

स्वतन्त्रता-प्राप्ति के समय भारत में आर्थिक विकास, राजनीतिक अस्थिरता के कारण काफी मन्द रहा, जिस कारण नगरीय जनसंख्या वृद्धि पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। सन् 1961 के बाद से जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि अंकित की गयी है। सन् 1961 से 1981 के बीस वर्षों में नगरीय जनसंख्या वृद्धि पिछले साठ वर्षों से भी काफी अधिक रही है। वर्तमान समय में कुल जनसंख्या में नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत 25.75 हो गया है। नगरीय जनसंख्या में इस भारी वृद्धि से नगरों की संख्या एवं उनकी जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि अंकित की गयी है। सन् 2011 में देश में 7,936 नगर व 6.41 लाख गाँव थे।

नगरों की जनसंख्या में अतिशय वृद्धि के कारण
Causes of Excess Growth of Population in Cities

  1. देश में उद्योग-धन्धों एवं व्यापारिक कार्यों में वृद्धि,
  2. ग्रामीण जनसंख्या को भारी संख्या में नगरों की ओर स्थानान्तरण,
  3. अनेक ग्रामीण बस्तियों का नगरीय बस्तियों में परिवर्तित हो जाना,
  4. नवीन नगरों का विकसित होना तथा (5) वर्तमान नगरों को अपने क्षेत्रफल एवं जनसंख्या आकार में भारी वृद्धि करना।

भारत में नगरीकरण की विशेषताएँ
Characteristics of Urbanization in India

भारत में सन् 1941 से 1961 तक के 20 वर्षों में नगरीय जनसंख्या में सबसे अधिक वृद्धि हुई है। जो 49% अंकित की गयी है। यह वृद्धि-दर विश्व के अन्य विकसित देशों; जैसे जापान एवं संयुक्त राज्य अमेरिका से भी कहीं अधिक है। वास्तव में इस अतिशय वृद्धि का कारण देश का विभाजन था, जिस कारण लाखों विस्थापित परिवार पाकिस्तान से आकर देश के नगरों में बस गये थे। सन् 1951 से 1961 के दशक में देश में पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से औद्योगीकरण की आधारशिला रखी गयी, परन्तु नगरीय जनसंख्या की प्रतिशत वृद्धि बढ़ने के स्थान पर और भी घट गयी। नगरों में जन्म एवं मृत्यु-दर तथा ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों की ओर होने वाले स्थानान्तरण के सही आँकड़े उपलब्ध न होने से नगरीय जनसंख्या में वृद्धि के कारणों के विषय में निश्चित रूप से नहीं बताया जा सकता है, परन्तु फिर भी अनुमान लगाया गया है कि नगरीय जनसंख्या में वृद्धि की दर उतनी ही है जितनी सम्पूर्ण देश में जनसंख्या-वृद्धि की दर हैं। वर्तमान में जनसंख्या वृद्धि की दर 17.64% वार्षिक है।

ग्रामीण क्षेत्रों से जनसंख्या नगरों की ओर प्रवास करती रहती है, परन्तु यह जनसंख्या कितनी है, इस विषय में विद्वानों के विचार अलग-अलग हैं। ग्रामों से नगरों में आकर बसने वाली जनसंख्या 82 लाख से 1 करोड़ 2 लाख तक अनुमानित की गयी है। इस जनसंख्या में वे 20 लाख व्यक्ति सम्मिलित नहीं हैं जो सन् 1941-51 के दशक में देश-विभाजन के समय पाकिस्तान से आकर नगरों में बस गये थे।

नगरीकरण (Urbanization) – वर्तमान समय में विश्व में नगरीकरण एक महत्त्वपूर्ण घटना है। नगरों की संख्या तथा उनकी जनसंख्या में अपार वृद्धि वर्तमान युग का महत्त्वपूर्ण तथ्य है। ऐसा माना जाता है कि पृथ्वीतल पर नगरों का उद्भव सबसे पहले 5,000 से 6,000 वर्ष पूर्व हुआ था। अतः इन्हें नवीन घटना के रूप में नहीं लिया जा सकता है, परन्तु मानवीय इतिहास में नगरीकरण की प्रक्रिया बहुत ही मन्द रही हैं, परन्तु यहाँ पर प्रश्न उठता है कि यह नगरीकरण क्या है?

ट्विार्था ने बताया है कि, “कुल जनसंख्या में नगरीय स्थानों में रहने वाली जनसंख्या का अनुपात ही नगरीकरण का स्तर बताता है।”
प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता ग्रिफिथ टेलर का कहना है, “गाँवों से नगरों की जनसंख्या का स्थानान्तरण ही नगरीकरण कहलाता है।
यदि नगरों की जनसंख्या में वृद्धि ग्रामीण जनसंख्या में वृद्धि की ही भाँति होती है, तो ऐसी दशा में यह नहीं कहा जा सकता कि नगरीकरण में कोई वृद्धि हुई है। नगरीकरण का भौगोलिक उद्देश्य उस सामाजिक वर्ग से है जो प्रायः अकृषि कार्यों (उद्योग, व्यापार, परिवहन, संचार, निर्माण, सेवा आदि) में लगा होता है। नगरीकरण एवं औद्योगीकरण में गहन सम्बन्ध होता है।

नगरीकरण को अर्थव्यवस्था से सम्बन्ध
Relation of Urbanization with Economy

नगरीकरण का अर्थव्यवस्था से गहरा सम्बन्ध है, क्योंकि नगरीकरण द्वारा देश की अर्थव्यवस्था कृषि (प्राथमिक कार्यों) से उद्योगों, व्यापार, संचार आदि कार्यों (गौण या अप्राथमिक कार्य) की ओर प्रवृत्त होती है। इससे प्रति व्यक्ति आय एवं राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है। वास्तव में नगरीकरण में वृद्धि ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय केन्द्रों की ओर लोगों के पलायन के कारण हुई है। नगरीकरण का अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित रूपों में प्रभाव पड़ता है –

  1. भारत में औद्योगिक क्रान्ति का प्रभाव तीव्र गति से पड़ा है। इसके कारण भूमि की उत्पादकता में भारी वृद्धि हुई है, क्योंकि कृषि-कार्यों में नवीन वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग किया जाने लगा है। इससे खाद्यान्नों का उत्पादन अतिरिक्त मात्रा में होने लगी तथा देश की खाद्य समस्या के हल होने में काफी सहायता मिली है।
  2. कृषि-कार्यों के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता होती है तथा बहुत अधिक क्षेत्र कम लोगों को रहने के लिए प्रोत्साहित करता है। इसके विपरीत नगरीय कार्यों; जैसे-उद्योग-धन्धे, निर्माण कार्य, व्यापार, सेवा आदि के लिए कम स्थान की आवश्यकता होती है, अर्थात् ये कार्य एक ही स्थान पर एकत्रित होकर अधिक लोगों को आर्थिक आधार प्रदान करते हैं।
  3. उद्योग-धन्धों एवं सेवा कार्यों की अपेक्षा कृषि-उत्पादों को बाजार कम विस्तृत है जिससे इन नगरीय कार्यों ने बड़े क्षेत्रों तक अपना प्रभाव जमा लिया है जिससे अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ आधार मिला है।
  4. भूमि की उत्पादकता में जैसे-जैसे वृद्धि होती गयी, प्राथमिक वस्तुओं के उत्पादन के लिए मानव शक्ति की आवश्यकता भी कम होने लगी। इस अतिरिक्त मानवीय श्रम की खपत उद्योगों, व्यापार, परिवहन एवं संचार तथा सेवाओं आदि कार्यों में बढ़ गयी। इन कार्यों से मानव अधिक आर्थिक लाभ अर्जित करने लगा।

उपर्युक्त सभी तथ्यों ने मिलकर ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाली जनसंख्या को नगरों की ओर आकर्षित करने में सहायता की है। इस अतिरिक्त जनसंख्या को नगरों में आकर्षण मिलने के कारण उन्हें आर्थिक अवसर भी अच्छे मिलने लगे। इस प्रकार, भारत में नगरीकरण ऐसी प्रक्रिया है जिससे समाज की आय एवं राष्ट्रीय आय में वृद्धि हुई है तथा उनका जीवन-स्तर पहले की अपेक्षा उच्च हुआ है। अतः नगरीकरण देश के आर्थिक एवं सामाजिक कल्याण के लिए सार्थक सिद्ध हुआ है।

प्रश्न 3
भारत में नगरीकरण के कारणों एवं समस्याओं की विवेचना कीजिए।
या
भारत में नगरीकरण से उत्पन्न समस्याओं के समाधान हेतु कोई पाँच सुझाव दीजिए। [2016]
या
भारत में नगरीकरण के कारणों की विवेचना कीजिए। [2014]
उत्तर

भारत में नगरीकरण के कारण
Causes of Urbanization in India

भारत के नगरों के विकास के मुख्यतः अग्रलिखित कारण रहे हैं –

  1. रेलों के विकास के कारण व्यापार महत्त्वपूर्ण स्टेशनों के मार्गों द्वारा होने लगा।
  2. भयानक दुर्भिक्षों के कारण बड़े पैमाने पर किसान बेरोजगार हो गये। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार न मिल सकने के कारण जनसंख्या का रोजगार की तलाश में नगरों की ओर प्रवास होने लगा।
  3. भूमिहीन श्रम वर्ग के विकास के कारण ही नगरीकरण प्रोत्साहित हुआ। इस वर्ग के जिन लोगों को नगर क्षेत्रों में स्थायी रोजगार अथवा अपेक्षाकृत ऊँची मजदूरी मिल गयी, वे वहीं बस गये।
  4. नगरों के आकर्षण के कारण धनी जमींदारों के नगरों में बसने की प्रवृत्ति भी बढ़ी। नगरों में । कुछ ऐसे आकर्षण थे, जिनका गाँवों में अभाव था।
  5. नये उद्योगों की स्थापना अथवा पुराने उद्योगों के विस्तार के कारण श्रम-शक्ति नगरों में खपने लगी।

उपर्युक्त कारणों के विश्लेषण के पश्चात् प्रो० डी० आर० गाडगिल इस निष्कर्ष पर पहुँचे, ‘‘इने सब कारणों में उद्योगों का विकास अन्य सभी देशों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारण रहा है, किन्तु भारत में इसका प्रभाव निश्चय ही इतना सशक्त नहीं रहा। सच तो यह है कि भारत में बहुत कम ऐसे नगर हैं। जिनका उद्भव नये उद्योगों के कारण हुआ है।

भारत में औद्योगीकरण का निश्चित प्रभाव जनसंख्या को ग्रामीण क्षेत्रों से स्थानान्तरित करने की दृष्टि से प्रबल रूप से व्यक्त नहीं हुआ। इसका प्रमाण यह है कि भारत में कुल श्रमिकों की सामान्य वृद्धि के साथ कृषि और गैर-कृषि श्रमिकों दोनों की संख्या में एक साथ वृद्धि हुई है। औद्योगीकरण के प्रबल प्रभाव के फलस्वरूप कृषि-श्रमिकों का अनुपात गैर कृषि-श्रमिकों के अनुपात की तुलना में काफी कम हो जाना चाहिए था।

नगरीकरण से उत्पन्न समस्याएँ या प्रभाव या परिणाम
Problems or Effects or Results Produced by Urbanization

भारत में तेजी से बढ़ते हुए नगरीकरण से निम्नलिखित समस्याएँ उत्पन्न हो गयी हैं –
(1) अपर्याप्त आधारभूत ढाँचा और सेवाएँ – यद्यपि नगरीकरण की तीव्रता से विकास प्रकट होता है, परन्तु अति तीव्र नगरीकरण से नगरों में नगरीय सेवाओं और सुविधाओं की कमी हो जाती है। यह सर्वविदित तथ्य है कि मैट्रोपोलिटन नगरों की 30% से 40% तक जनसंख्या गन्दी बस्तियों में रहती है। ऐसी आवास-विहीन जनसंख्या भी बहुत अधिक है जिसका जीवन-स्तर बहुत निम्न होता है।

(2) परिवहन की असुविधा – नगरों में भीड़ बढ़ने से परिवहन की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं।

(3) अपराध बढ़ जाते हैं – आज नगरों में अपराधों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है, जो तेजी से बढ़ती हुई नगरीय जनसंख्या का परिणाम है।

(4) आवास की कमी – जितनी तेजी से नगरों की जनसंख्या बढ़ रही है उतनी तेजी से आवासों का निर्माण नहीं हो पाता; अत: आवासों की भारी कमी चल रही है।
(5) औद्योगीकरण – नगरों का विकास हो जाने के कारण औद्योगीकरण की प्रक्रिया बढ़ गयी है। प्राचीन युग के उद्योग-धन्धे समाप्त हो गये हैं। इन उद्योग-धन्धों के विकास के कारण भारत में सामाजिक संगठन में परिवर्तन हुए हैं। पूँजीपति एवं श्रमिक वर्ग के बीच संघर्ष बढ़ गये हैं। स्त्रियों में आत्मनिर्भरता बढ़ गयी है। व्यक्ति एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने लगे हैं। कारखानों की स्थापना, गन्दी बस्तियों की समस्याओं व हड़तालों आदि के कारण जीवन में अनिश्चितता आ गयी है।

(6) द्वितीयक समूहों की प्रधानता – नगरीकरण के कारण भारत में परिवार, पड़ोस आदि जैसे प्राथमिक समूह प्रभावहीन होते जा रहे हैं। वहाँ पर समितियों, संस्थाओं एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों के द्वारा ही सामाजिक सम्बन्धों की स्थापना होती है। इस प्रकार के सम्बन्धों में अवैयक्तिकता पायी जाती है।

(7) अवैयक्तिक सम्बन्धों की अधिकता – नगरीकरण के कारण नगरों में जनसंख्या में वृद्धि हो गयी है। जनसंख्या की इस वृद्धि के कारण लोगों में व्यक्तिगत सम्बन्धों की सम्भावना कम हो गयी,है। इसी आधार पर आर० एन० मोरिस ने लिखा है कि जैसे-जैसे नगर विस्तृत हो जाते हैं वैसे-वैसे इस बात की सम्भावना भी कम हो जाती है कि दो व्यक्ति एक-दूसरे को जानेंगे। नगरों में सामाजिक सम्पर्क अवैयक्तिक, क्षणिक, अनावश्यक तथा खण्डात्मक होता है।

(8) पारम्परिक सामाजिक मूल्यों की प्रभावहीनता – नगरीकरण के कारण व्यक्तिवादी विचारधारा का विकास हुआ है। इस विचारधारा के कारण प्राचीन सामाजिक मूल्यों का प्रभाव कम हो गया है। प्राचीन समय में बड़ों का आदर, तीर्थ स्थानों की पवित्रता, ब्राह्मण, गाय तथा गंगा के प्रति श्रद्धा और धार्मिक संस्थानों की मान्यता थी, परिवार की सामाजिक स्थिति का ध्यान रखा जाता था, किन्तु आज नगरों का विकास हो जाने से प्राचीन सामाजिक मूल्य प्रभावहीन हो गये हैं। उनका स्थान भौतिकवाद तथा व्यक्तिवाद ने ले लिया है।

(9) श्रम-विभाजन और विशेषीकरण – नगरीकरण एवं औद्योगीकरण के विकास के कारण आज विभिन्न देशों में कुशल कारीगरों का महत्त्व बढ़ गया है। कोई डॉक्टर है, कोई वकील है और कोई इन्जीनियर। डॉक्टरों, वकीलों तथा इन्जीनियरों के भी अपने विशिष्ट क्षेत्र हो गये हैं।

(10) अन्धविश्वासों की समाप्ति – अभी तक भारत में धार्मिक विश्वासों पर आँख मींचकर चलने की प्रथा थी, किन्तु आज विज्ञान ने दृष्टिकोण की संकीर्णता को व्यापक बना दिया है। अनेक आविष्कारों के कारण व्यक्ति को दृष्टिकोण तार्किक हो गया है।

(11) जातीय नियन्त्रण का अभाव – अभी तक भारतीय समाज में जाति-प्रथा के कारण बाल-विवाह, विधवा-विवाह निषेध, पर्दा-प्रथा, विवाह-संस्कार व स्त्रियों की निम्न दशा का प्रचलन था, किन्तु आज नगरीकरण के कारण शिक्षा का प्रसार हुआ है और भारत में विवाह सम्बन्धी अधिनियम को पारित करके विवाह सम्बन्धी मान्यता को बदल दिया गया है। आज विवाह की आयु निर्धारित कर दी गयी है, बाल-विवाह समाप्त हुए हैं, अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन मिला है, विधवा पुनर्विवाह आरम्भ हो गया है। जाति के सभी प्रतिमान बदल गये हैं, यातायात के साधनों का विकास हो जाने से जाति-पाँति के बन्धन टूट गये हैं।

नगरीकरण से उत्पन्न समस्याओं का समाधान
Solution of the Problems Produced by Urbanization

  1. आवासीय भूमि का विकास – नगरीकरण से जनसंख्या की वृद्धि होने से आवासीय भवनों की कमी हो जाती है। इसलिए नये आवासीय क्षेत्रों को विकसित करना चाहिए जिससे नगर के केन्द्रीय भाग में आवासों (मकानों) का जमघट न बढ़े। नयी आवासीय बस्तियों के विकास से नगर केन्द्रों पर जनसंख्या का भार घटता है। निवासियों को नियमित आवास भी प्राप्त होते हैं।
  2. सड़क परिवहन व्यवस्था में सुधार – नगरों की एक बड़ी समस्या सड़कों पर अतिक्रमण है। गैर-आवासीय या बाजार क्षेत्रों में यह समस्या विकट परिस्थितियाँ पैदा करती है। सड़कों पर चलती-फिरती दुकानों, ठेलों, वाहनों आदि का जमघट सड़कों को तंग बना देता है। इस समस्या के निवारण के लिए उपयुक्त उपाय अपनाने चाहिए। पार्किंग आदि की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए।
  3. पेयजल, जल-मल निकास-सफाई आदि की व्यवस्था – नगरों में पेयजल, बिजली, जल-मल निकास आदि की भारी समस्याएँ रहती हैं। इनके लिए उपयुक्त कदम उठाने चाहिए। नाली-नालों की सफाई, कूड़ा-करकट तथा मल निकास की उपयुक्त व्यवस्था आवश्यक है।
  4. मलिन बस्तियों की उचित व्यवस्था – निर्धन मजदूर, बेरोजगार, गाँवों से पलायन करने वाले लोग शहरों के महँगे मकान खरीदने या किराये पर लेने में असमर्थ होते हैं; अतः वे नगर के बाहर या सड़कों के किनारे झुग्गी-झोंपड़ी डालकर रहते हैं। ऐसी मलिन बस्तियों में बिजली, पानी, सड़कों, नालियों की कोई व्यवस्था नहीं होती। प्रायः यहाँ सामाजिक अपराध पनपते हैं। अत: इनका सुधार करना। आवश्यक है।
  5. आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई – नगरों में जनसंख्या बढ़ने पर दैनिक उपभोग की वस्तुओं; जैसे—दूध, अण्डे, सब्जी, फल आदि की कमी हो जाती है। अतः इनकी पर्याप्त उपलब्धता की व्यवस्था होनी चाहिए।
  6. प्रदूषण पर नियन्त्रण – नगरों में छोटे-बड़े अनेक उद्योग स्थापित हो जाते हैं जो पर्यावरण को दूषित करते हैं। अत: उद्योगों को नगर के बाहर विशिष्ट क्षेत्र में स्थानान्तरित करना चाहिए तथा कारखानों से होने वाले प्रदूषण पर भी नियन्त्रण करना चाहिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
भारत में कम साक्षरता के दो कारणों की विवेचना कीजिए। उत्तर भारत में कम साक्षरता के दो कारण निम्नलिखित हैं –
(1) जनसंख्या का निर्धन होना – देश की अधिकांश जनसंख्या निर्धनता और अभावों में जीवन बिताती रही है; फलतः उसके लिए अपने बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था करना एक कठिन कार्य रहा है। वहीं दूसरी ओर बच्चे के विद्यालय चले जाने से खेती या अन्य कार्य करने वाले एक श्रमिक की भी कमी हो जाती है। इसी कारण शिक्षा पर लोगों का ध्यान कम है।

(2) शिक्षा योजनाओं का असफल होना – भारत की अनेक शिक्षा योजनाएँ केवल इसलिए असफल हो जाती हैं कि जिनके लाभार्थ वे बनायी जाती हैं वे उनको समझ सकने की स्थिति में नहीं हैं। अथवा उन्हें इस बारे में कुछ भी नहीं समझाया जा सकता है।

प्रश्न 2
भारत में नगरीकरण से उत्पन्न किन्हीं चार समस्याओं की विवेचना कीजिए। [2007, 09, 14]
उत्तर
भारत में नगरीकरण से उत्पन्न चार समस्याएँ निम्नलिखित हैं –

  1. अवसंरचनात्मक सुविधाओं की कमी – बढ़ते हुए नगरीकरण से नगरों में मकानों तथा नगरीय सुविधाओं (परिवहन, जलापूर्ति, गन्दे जल, शौच, कूड़ा-करकट आदि का निस्तारण, विद्युत आपूर्ति आदि) की कमी हो जाती है। बड़े नगरों में मलिन बस्तियों की संख्या बहुत बढ़ जाती है।
  2. पर्यावरण प्रदूषण – नगरों में परिवहन के साधनों, उद्योगों आदि से पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है।
  3. पारम्परिक सामाजिक मूल्यों का हास – नगरीकरण के कारण व्यक्तिवादी दृष्टिकोण में वृद्धि होती है। इससे प्राचीन परम्परागत सामाजिक मूल्यों का ह्रास होता है। बड़ों के प्रति आदर, धर्म के प्रति श्रद्धा, तीर्थों की पवित्रता आदि मूल्य प्रभावहीन हो गये हैं। इनका स्थान भौतिकवाद तथा व्यक्तिवाद ने ले लिया है।
  4. सामाजिक अपराधों में वृद्धि – नगरों में आर्थिक विषमताएँ अधिक पायी जाती हैं। बेरोजगारी की भी भारी समस्या है। इस कारण लोगों में चोरी, डकैती, लूट-पाट आदि की प्रवृत्ति बढ़ी है। मलिन बस्तियाँ प्रायः ऐसे असामाजिक तत्वों के गढ़ होते हैं। ये सभी सामाजिक प्रदूषण के लिए उत्तरदायी हैं।

प्रश्न 3
भारत की भाषाई जनसंख्या पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
भारत में 845 भाषाएँ बोली जाती हैं। इनमें 720 भाषाएँ ऐसी हैं जो (प्रत्येक) एक लाख से भी कम व्यक्तियों द्वारा प्रयोग में लायी जाती हैं। देश में 63 अभारतीय भाषाओं का प्रयोग होता है। सामान्यत: भारत में 91% जनता संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 22 भाषाओं का प्रयोग करती है। 4% व्यक्ति आदिवासी भाषाओं तथा 5% व्यक्तियों द्वारा अन्य भाषाएँ प्रयोग की जाती हैं।

प्रश्न 4
भारत के प्रमुख भाषाई संगठनों के नाम बताइए।
उत्तर
भारत में भाषाओं के भौगोलिक वितरण के दृष्टिकोण से देश में 12 भाषाई संघटन या प्रदेश मुख्य है-
(1) कश्मीरी, (2) पंजाबी, (3) हिन्दी, (4) बंगला, (5) असमिया, (6) उड़िया, (7) गुजराती, (8) मराठी, (9) कन्नड़, (10) तेलुगू, (11) तमिल तथा (12) मलयालम।
इन सभी संगठनों में हिन्दी भाषाई प्रदेश सबसे अधिक विस्तृत हैं जिसमें हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखण्ड तथा छत्तीसगढ़ सम्मिलित हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
भारत में सन 2011 की जनगणना के अनुसार साक्षरता दर कितनी है? [2011]
उत्तर
74.04%.

प्रश्न 2
भारत में लिंगानुपात के घटने के कोई दो कारण बताइए। [2011]
उत्तर

  1. भारत के अनेक प्रदेशों में महिला-शिशुओं की देखभाल कम होने अथवा प्रसूति अवस्था में मृत्यु-दर का अधिक होना है।
  2. पुत्र-प्राप्ति की चाहत में भ्रूणहत्या।

प्रश्न 3
भारत में नगरीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति के दो प्रमुख कारणों को बताइए। [2008, 09, 11, 12]
या
भारत में ग्रामीण जनसंख्या के नगरों की ओर बढ़ते उत्प्रवास के किन्हीं दो कारणों का वर्णन कीजिए। [2011]
उत्तर

  1. गाँवों में कृषि से पर्याप्त रोजगार प्राप्त न होना।
  2. औद्योगीकरण के कारण नगरों में रोजगार के अधिक अवसर प्राप्त होना।

प्रश्न 4
भारत में नगरीय जनसंख्या की वृद्धि के दो कारण बताइए। [2008, 09, 11, 13, 16]
उत्तर
भारत में नगरीय जनसंख्या की वृद्धि के दो प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –

  1. ग्रामीण क्षेत्रों, रोजगार, सेवाओं एवं सुरक्षा आदि के कारण नगरीय क्षेत्रों में जनसंख्या का पलायन।
  2. नगरीय क्षेत्रों में रोजगार के कारण उत्पन्न श्रमिक जनसंख्या की माँग अधिक होने के कारण नगरों की ओर ग्रामीण क्षेत्रों की जनसंख्या के पलायन से नगरीय जनसंख्या में वृद्धि।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1
2011 की जनणना के अनुसार भारत में साक्षरता दर है –
(क) 74.04%
(ख) 70.85%
(ग) 75.85%
(घ) 80.0%
उत्तर
(क) 74.04%

प्रश्न 2
2011 की जनगणना के अनुसार महिला साक्षरता प्रतिशत है –
(क) 53.57
(ख) 41.82
(ग) 65.46
(घ) 59.70
उत्तर
(ग) 65.46

प्रश्न 3
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कितना लिंगानुपात है?
(क) 927
(ख) 931
(ग) 940
(घ) 935
उत्तर
(ग) 940

प्रश्न 4
भारत का न्यूनतम साक्षरता वाला राज्य है –
(क) झारखण्ड
(ख) छत्तीसगढ़
(ग) बिहार,
(घ) राजस्थान वर
उत्तर
(ग) बिहार

प्रश्न 5
भारत का सर्वाधिक घनत्व वाला राज्य है – [2007]
या
निम्नलिखित में से किस राज्य में 2011 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या का घनत्व सर्वाधिक है? [2014]
(क) तमिलनाडु
(ख) बिहार
(ग) उत्तर प्रदेश
(घ) महाराष्ट्र
उत्तर
(ख) बिहार

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