UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 23 Means of Transport (यातायात के साधने)
UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 23 Means of Transport (यातायात के साधने)
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
भारत में सड़क मार्गों के प्रकार तथा मुख्य सड़क मार्गों का वर्णन करते हुए पंचवर्षीय योजनाओं में इनके विकास पर प्रकाश डालिए।
या
टिप्पणी लिखिए-भारत में सड़क-यातायात। [2010]
या
भारत में सड़क परिवहन के विकास का विवरण दीजिए। [2011, 13]
उत्तर
भारत में सड़क परिवहन – आदिकाल से ही भारत के परिवहन पथों में सड़कों का सर्वाधिक महत्त्व है। भारतीय सड़कों का जाल विश्व का सबसे बड़ा सड़क जाल है। यात्री एवं सामान, दोनों दृष्टियों से सड़क यातायात का कुल यातायात में प्रतिशत बहुत तीव्रता से बढ़ा है। सड़कें राष्ट्रीय जीवन की धमनियाँ हैं। प्रमुख वस्तुओं को लाने-ले जाने, निर्यातक वस्तुओं को पत्तनों तक पहुँचाने, आयात की गयी वस्तुओं को देश के आन्तरिक भागों में भेजने आदि ऐसे कार्य हैं जो सड़क मार्गों द्वारा ही सम्भव हो पाये हैं। सड़क परिवहन के प्रमुख गुण उसकी लचक, सेवा का व्यापक क्षेत्र, माल की सुरक्षा, समय की बचत और बहुमुखी एवं सस्ती सेवा को होना है।
सड़कों के प्रकार
Types of Roads
भारत में 41 लाख किमी से अधिक लम्बे सड़कमार्ग हैं जो विश्व के विशालतम सड़क जालों में से एक है। इनमें निम्नलिखित प्रकार के सड़क मार्ग सम्मिलित हैं –
(1) राष्ट्रीय राजमार्ग (National Highways) – ये मार्ग आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। इन सड़कों द्वारा राज्य की राजधानियों, बड़े-बड़े औद्योगिक तथा व्यापारिक नगरों और पत्तनों को परस्पर मिला दिया गया है। सन् 1980 तक 4,269 किमी लम्बी सड़कें बनायी गयी थीं जो राष्ट्रीय राजमार्गों को परस्पर जोड़ती हैं। वर्ष 2001-2002 में इन मार्गों की लम्बाई 58,112 किमी हो गयी थी। देश को म्यांमार, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान और तिब्बत से भी ये सड़कें मिलाती हैं। इस प्रकार राष्ट्रीय राजमार्ग देश की कुल सड़कों का केवल 4% है। वर्ष 2011-12 के अनुसार इनकी कुल लम्बाई 70,934 किमी है तथा इन मार्गों पर देश का लगभग 40% सड़क परिवहन होता है। केन्द्र सरकार द्वारा 15 जून, 1989 ई० को राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण का गठन किया गया है।
(2) प्रान्तीय राजमार्ग (State Highways) – ये सड़कें राष्ट्रीय राजमार्गों अथवा निकटवर्ती राज्यों की सड़कों से जोड़ दी गयी हैं। इन सड़कों के निर्माण तथा उन्हें ठीक दशा में रख-रखाव का दायित्व राज्य सरकारों पर होता है। इनकी कुल लम्बाई 1,54,522 हजार किमी है।
(3) स्थानीय अथवा जिले की सड़कें (Local or District Roads) – ये सड़कें जिले के विभिन्न भागों को जोड़ती हैं। इनकी लम्बाई लगभग 4.68 लाख किमी है। इन सड़कों को राष्ट्रीय राजमार्गों, प्रान्तीय राजमार्गों तथा रेलमार्गों से भी जोड़ा गया है। इनके निर्माण एवं रख-रखाव का दायित्व जिला सार्वजनिक अथवा लोक निर्माण विभाग का होता है।
(4) गाँव की सड़कें (Village Roads) – विभिन्न ग्रामों को परस्पर मिलाने के साथ-साथ ये सड़कें अपने जिले तथा राजमार्गों से भी मिली हैं। ये ग्रामीण जीवन की गतिशीलता के लिए अति महत्त्वपूर्ण हैं। देश की लगभग 26.5 लाख किमी लम्बी ग्रामीण सड़कें हैं जो अधिकतर कच्ची हैं। इनका रख-रखाव एवं निर्माण जिला परिषदों एवं ग्राम पंचायतों द्वारा किया जाता है।
भारत के प्रमुख सड़क मार्ग
Major Road Routes of India
भारत के प्रमुख सड़क मार्ग निम्नलिखित हैं –
- ग्राण्ड ट्रंक रोड (Grand Trunk Highway) – भारत की यह सबसे प्रमुख एवं प्राचीन सड़क है, जो कोलकाता को अमृतसर से जोड़ती है। यह कोलकाता से आसनसोल, धनबाद, सासाराम, वाराणसी, इलाहाबाद, कानपुर, अलीगढ़, दिल्ली, करनाल, अम्बाला, लुधियाना, जालन्धर होती हुई अमृतसर तक चली गयी है। इसकी एक शाखा जालन्धर से श्रीनगर तक जाती है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पूर्व यह अमृतसर को पेशावर से जोड़ती थी।
- कोलकाता-चेन्नई राजमार्ग (Kolkata-Chennai Highway) – यह मार्ग कोलकाता से खड़गपुर, सम्बलपुर, विजयवाड़ा और गुण्टूर होते हुए चेन्नई तक गया है।
- मुम्बई-आगरा राजमार्ग (Mumbai-Agra Highway) – यह सड़क मार्ग मुम्बई से नासिक, धूलिया, इन्दौर और ग्वालियर होता हुआ आगरा तक जाता है।
- ग्रेट दक्कन रोड (Great Deccan Highway) – यह सड़क मार्ग मिर्जापुर से जबलपुर, नागपुर, हैदराबाद होते हुए बंगलुरु तक चला गया है। मिर्जापुर से एक छोटे सड़क मार्ग द्वारा इसे माधो सिंह के समीप ग्राण्ड ट्रंक रोड से मिला दिया गया है। इसे वाराणसी-कन्याकुमारी राजमार्ग भी कहते हैं।
- कोलकाता-मुम्बई राजमार्ग (Kolkata-Mumbai Highway) – यह राजमार्ग कोलकाता से खड़गपुर, सम्बलपुर, नागपुर, धूलिया, आमलनेर होते हुए मुम्बई-आगरा राजमार्ग से मिल जाता है।
- चेन्नई-मुम्बई राजमार्ग (Chennai-Mumbai Highway) – यह मार्ग मुम्बई से पूना, बेलगाम, बंगलुरु होते हुए चेन्नई तक गया है।
- पठानकोट-जम्मू राजमार्ग (Pathankot-Jammu Highway) – यह सड़क मार्ग पठानकोट से जम्मू तक जाता है। यहाँ से इसका सम्बन्ध श्रीनगर जाने वाली सड़क से है।
- गुवाहाटी-चेरापूँजी राजमार्ग (Guwahati-Cherrapunji Highway) – यह सड़क मार्ग गुवाहटी से शिलांग होते हुए चेरापूंजी तक गया है।
- दिल्ली-मुम्बई राजमार्ग (Delhi-Mumbai Highway) – यह मार्ग दिल्ली से जयपुर, अजमेर, उदयपुर, अहमदाबाद, सूरत होते हुए मुम्बई तक जाता है।
- लखनऊ-बरौनी राजमार्ग (Lucknow-Barauni Highway) – यह मार्ग लखनऊ से गोरखपुर, मुजफ्फरपुर होते हुए बरौनी तेक जाता है। इसकी एक शाखा मुजफ्फरपुर से नेपाल सीमा तक जाती है।
- दिल्ली-लखनऊ राजमार्ग (Delhi-Lucknow Highway) – यह मार्ग दिल्ली से गाजियाबाद, हापुड़, गढ़, गजरौला, मुरादाबाद, रामपुर, बरेली व हरदोई होते हुए लखनऊ तक गया है।
पंचवर्षीय योजनाओं में सड़क मार्गों का विकास
Development of Road Routes in Five Year Plans
पंचवर्षीय योजनाओं में सड़क मार्गों का विकास एवं उनके पुनर्निर्माण पर अधिक ध्यान दिया गया है। सन् 1991 में भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों की लम्बाई 34,058 किमी थी। कुल-सड़कों की लम्बाई में राष्ट्रीय सड़कें 2% हैं। इनके द्वारा देश का 35% से 40% तक सड़क परिवहन होता है। इस समय पक्की संडंकों की लम्बाई 262,700 किमी से बढ़कर 6,23,402 किमी तक पहुँच गयी है। इससे स्पष्ट होता है कि राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास को प्रमुखता दिया जाना अति आवश्यक हैं। इनके अतिरिक्त निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण सड़कों को भी प्राथमिकता देने का प्रावधान किया गया था –
- सामरिक महत्त्व की सड़कें,
- अन्तर्राज्यीय अथवा आर्थिक महत्त्व की सड़कें एवं
- सीमान्त क्षेत्रों में सड़क संचार की सुविधा।
देश में राज्यों की सडेकों के विकास के लिए न्यूनतम आवश्यकताकार्यक्रम स्वीकार किया गया है। जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क निर्माण का कार्यक्रम सम्मिलित है। इस परियोजना के अनुसार ऐसा ग्राम जिसकी जनसंख्या 1,500 या उससे अधिक है, राजमार्गों से जोड़े जाने का प्रावधान रखा गया है। देश के पिछड़े क्षेत्रों तथा पर्वतीय, जनजातीय, मरुस्थलीय एवं तटीय क्षेत्रों में, जहाँ बिखरी जनसंख्या निवास करती है, वहाँ एक समूह के रूप में सड़कों का विकास किया जाएगा। इस आधार पर 20,000 ग्रामों को जिला मुख्यालयों से मिलाने वाली सड़कों से जोड़ा जाएगा। इस विकास के लिए हैं 1164.90 करोड़ का प्रावधान रखा गया है।
नागपुर सड़क योजना (Nagpur Road Plan) – इस योजना के अन्तर्गत सन् 1943 में सड़कों के विकास की एक दीर्घकालीन योजना तैयार की गयी थी, जिसे ‘नागपुर सड़क योजना’ के नाम से पुकारा जाता है। आगामी 20 वर्षों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर कुछ लक्ष्य निर्धारित किये गये थे। संशोधित योजना के अनुसार 5.2 लाख किमी लम्बी सड़कें बनाने का निश्चय किया गया था।
बीस-वर्षीय सड़क विकास योजना (Twenty-Year Road Development Programme) – द्वितीय पंचवर्षीय योजना के अन्त में नागपुर सड़क योजना में निर्धारित लक्ष्यों की समीक्षा की गयी तथा पाया गया कि इन लक्ष्यों को प्राप्त करना कठिन होगा। अत: राज्य सरकारों की एक समिति ने सन् 1960 से एक 20 वर्षीय सड़क योजना निर्धारित की, जिसके अन्तर्गत राष्ट्रीय सड़कों में 132%, राज्य सड़कों में 100%, जनपद सड़कों में 80% एवं ग्राम सड़कों में 43% वृद्धि के लक्ष्य अपनाये गये। इस योजना में देश के चहुंमुखी विकास का ध्यान रखा गया है। इसमें दो प्राथमिकताएँ रखी गयी थी –
- सभी प्रमुख सड़कों पर जहाँ-जहाँ पुल छूटे हैं, इन्हें तैयार किया जाए तथा सड़कों को डामर से पक्का किया जाए।
- नगरों को निकटवर्ती ग्रामों से जोड़ने वाली सड़कों को न केवल चौड़ा बनाया जाए, बल्कि उन पर एक तरफा यातायात की सुविधा भी प्रदान की जाये।
सड़क विकास की इस दीर्घकालीन योजना के पूर्ण होने पर भारत के प्रति 100 वर्ग किमी क्षेत्रफल के पीछे 32 किमी लम्बी सड़क होगी। कोई भी केन्द्र समीपवर्ती राष्ट्रीय राजमार्ग से 60 से 96 किमी से अधिक दूरी पर नहीं होगा। इस योजना पर १ 5,200 करोड़ के व्यय का अनुमान किया गया था। इस योजना के कार्यान्वित हो जाने पर देश में 10,51,200 किमी लम्बी सड़कें हो जाएँगी, परन्तु इनका विकास हो जाने के उपरान्त भी जनसंख्या के अनुपात में सड़क परिवहन विकसित रूप में नहीं हो सकेगी।
प्रश्न 2
भारत की रेलों पर एक भौगोलिक निबन्ध लिखिए।
या
टिप्पणी लिखिए-भारत में रेल यातायात।
या
भारत में रेलमार्गों के विकास तथा महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
किसी देश के आर्थिक विकास में एक यातायात के साधनों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
कृषि एवं औद्योगिक उत्पादन तथा व्यापार आदि यातायात साधनों के विकास से प्रत्यक्ष रूप से सम्बद्ध होते हैं। वास्तव में यातायात के साधन स्वयं उत्पादन की एक प्रक्रिया है, क्योंकि इसके द्वारा देश भर के उपभोक्ताओं को वस्तुओं एवं सेवाओं को भेजने के लिए परिवहन साधनों एवं मार्गों की आवश्यकता पड़ती है। मानव एक स्थान से दूसरे स्थान तक आवागमन के लिए इन्हीं साधनों का उपयोग करता है। भारत में यातायात साधनों में सड़कों, रेलों, आन्तरिक जलमार्गों एवं वायुमार्गों का महत्त्व अत्यधिक है। संलग्न तालिका इनके सापेक्षिक महत्त्व को प्रकट करती है।
रेलमार्ग
Railways
देश के आन्तरिक परिवहन में रेलों का महत्त्व सर्वाधिक है। रेलों द्वारा प्रतिदिन बहुत-सा माल एवं यात्री ढोये जाते हैं। भारतीय रेलें (31 मार्च, 2013 ई० तक) 65,000 किमी की दूरी तय कर रही हैं। इस दृष्टिकोण से यह एशिया में प्रथम तथा विश्व में चौथे स्थान पर है। देश में रेलों द्वारा प्रतिदिन 14.5 लाख किमी दूरी तय की जाती है। रेलवे के पास 9,549 इंजन, 59,713 यात्री-डिब्बे, 4,827 अन्य सवारी के डिब्बे (कोच) तथा 2,39,281 माल डिब्बे (वैगन) है तथा 20,838 रेले हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के इस प्रतिष्ठान में र8,882.2 करोड़ की पूँजी लगी है। देश में 7,500 रेलवे स्टेशन हैं। वर्ष 2013 तक 23,541 किमी रेलमार्गों का विद्युतीकरण कर दिया गया है।
भारत में रेलमार्गों का विकास
Development of Railways in India
भारत में रेलमार्गों का विकास 19वीं शताब्दी से प्रारम्भ हुआ है। पहला रेलमार्ग सन् 1853 में ग्रेट इण्डियन पेनिनसुला था जो थाणे से मुम्बई के मध्य 34 किमी लम्बाई में बनाया गया। दूसरा रेलमार्ग 1854 में ही कोलकाता से पंडुवा के मध्य 63 किमी लम्बाई में बनाया गया। सन् 1950-51 में देश में रेलमार्गों की लम्बाई 59,315 किमी थी जो सन् 2002 में बढ़कर 82,354 किमी हो गयी थी। अब बढ़कर 1,15,000 किमी है। अब इनमें 56% बड़ी लाईन, 37% छोटी लाइन तथा 7% सँकरी लाइन हैं। बड़ी लाइन की चौड़ाई 1,676 मीटर, छोटी लाइन की चौड़ाई 1 मीटर तथा सँकरी लाइन की चौड़ाई 0.762 मीटर होती है। इनमें से सँकरी लाइन को समाप्त किये जाने के प्रयास किये जा रहे हैं।
भारतीय रेलों की प्रशासनिक व्यवस्था – भारतीय रेलों का संचालन केन्द्र सरकार के आधिपत्य में है। सन् 1949 तक भारतीय रेल व्यवस्था के अन्तर्गत 9 सरकारी और 28 देशी रियासतों की रेलवे प्रणालियाँ थीं जबकि वर्तमान में भारत में 17 रेल-क्षेत्र हैं। आर्थिक एवं प्रशासनिक दृष्टिकोण से इन छोटे-बड़े रेलमार्गों को सन् 1950 में 8 भागों में बाँटा गया। सन् 1966 में एक क्षेत्र और बढ़ा दिया गया। भारतीय रेलवे का 1,15,000 किमी का एक विस्तृत नेटवर्क है। वर्तमान समय में देश के रेलमार्गों को 17 भागों में बाँटकर संचालित किया जा रहा है, जिनमें प्रमुख का विवरण निम्नलिखित है –
(1) उत्तर रेलवे (Northern Railway) – उत्तर रेलवे देश का सबसे बड़ा एवं महत्त्वपूर्ण रेल क्षेत्र है। यह 10.977 किमी लम्बा है। इसका प्रधान कार्यालय नई दिल्ली में है। यह रेलमार्ग सघन बसे एवं उपजाऊ क्षेत्रों से निकलने के कारण इस पर यात्रियों की भीड़ सर्वाधिक रहती है। पश्चिम में राजस्थान से लेकर पूर्व में मुगलसराय तक तथा उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में तुगलकाबाद तक इस रेलमार्ग का विस्तर है। इस प्रकार यह रेलमार्ग जम्मू एवं कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश राज्यों के अधिकांश भागों पर विस्तृत है। दिल्ली, आगरा, कानपुर, मेरठ, अमृतसर, पठानकोट, बीकानेर, जोधपुर, रिवाड़ी, जालन्धर, जम्मू, अम्बाला, लुधियाना, शिमला, चण्डीगढ़, हरिद्वार, बरेली, इलाहाबाद, लखनऊ, वाराणसी आदि इसी रेलमार्ग के सहारे स्थित प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं।
(2) उत्तर-पूर्व रेलवे (North-East Railway) – यह एक मीटर गेज रेलमार्ग है, जिसकी लम्बाई 5,163 किमी है। इसका प्रधान कार्यालय गोरखपुर में है। यह रेलमार्ग हिमालय के पर्वतपदीय प्रदेश में स्थित नगरों को जोड़ने का कार्य करता है। गन्ना, चाय, जूट, तम्बाकू, चीनी, चमड़ा एवं चावल का व्यापार इसी रेलमार्ग द्वारा किया जाता है। गोरखपुर, बरेली, मथुरा, काठगोदाम, कासगंज, लखनऊ, गाजीपुर, कटिहार, सोनपुर, बरौनी आदि प्रमुख नगर इसी रेलमार्ग के सहारे स्थित प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं। इस रेलमार्ग द्वारा उत्तर प्रदेश से असोम राज्य तक की यात्रा की जा सकती है। यह सम्पूर्ण रेलमार्ग कानपुर, लखनऊ एवं वाराणसी में उत्तरी रेलमार्ग से मिल जाता है।
(3) पूर्वोत्तर सीमान्त रेलवे (North-East Frontier Railway) – यह उत्तरी-पूर्वी रेलमार्ग को ही पूर्वी भाग है जो सामरिक दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इसकी लम्बाई 3,763 किमी है। इसका प्रधान कार्यालय मालीगाँव (गुवाहाटी) में है। यह रेलमार्ग असोम एवं उसके पड़ोसी राज्य, पश्चिम बंगाल एवं बिहार राज्यों के कुछ भागों से होकर निकलता है। इसके द्वारा पेट्रोलियम, चाय, कोयला, लकड़ी, जूट, चावल आदि पदार्थ ढोये जाते हैं। यह मीटर गेज एवं नैरो गेज मिश्रित रेलमार्ग है। दार्जिलिंग, पूर्णिया, मनिहारी, जोरहाट, सिलचर, डिब्रूगढ़, गुवाहाटी आदि इस रेलमार्ग के सहारे स्थित प्रमुख नगर एवं रेलवे स्टेशन हैं।
(4) पूर्वी रेलवे (Eastern Railway) – यह रेलमार्ग मुगलसराय और हुगली के मध्य गंगा के निम्न मैदान में संचालित होता है। इसका प्रधान कार्यालय कोलकाता में है तथा इसकी लम्बाई 4,281 किमी है। यह रेलमार्ग पश्चिम में मुगलसराय से आरम्भ होकर पूर्व में बांग्लादेश की सीमा तक विस्तृत है। इस पर सबसे अधिक यात्री यात्रा करते हैं तथा सबसे अधिक माल ढोया जाता है। कोयला, लोहा, मैंगनीज, जूट, अभ्रक, सीमेण्ट, चावल, कागज, बॉक्साइट, सूती वस्त्र, रासायनिक उर्वरक आदि वस्तुओं का व्यापार इसी रेलमार्ग द्वारा किया जाता है। इस प्रदेश में कृषि एवं खनिज पदार्थों पर आधारित अनेक उद्योग-धन्धे विकसित हुए हैं।
(5) दक्षिण-पूर्वी रेलवे (South-Eastern Railway) – यह देश का तीसरा बड़ा रेलमार्ग है। इसका प्रधान कार्यालय कोलकाता में है। इस रेलमार्ग की लम्बाई 7,075 किमी है। यह पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार तथा मध्य प्रदेश राज्यों की सेवा करता है। इस रेलमार्ग द्वारा विशाखापट्टनम् तथा कोलकाता पत्तन जुड़े हैं। इस पर हीराकुड बहुउद्देशीय परियोजना, विशाखापट्टनम् में जलयान-निर्माण एवं तेल शोधनशाला तथा बर्नपुर, राउरकेला, आसनसोल, भिलाई और जमशेदपुर के इस्पात कारखाने स्थित हैं, क्योंकि इसके पृष्ठ प्रदेश में लौह-अयस्क, अभ्रक, कोयला, ताँबा, मैंगनीज, चूना, बॉक्साइट आदि खनिज पदार्थ पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं।
(6) पश्चिमी रेलवे (Western Railway) – यह देश का दूसरा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रेलमार्ग है। इसकी लम्बाई 10,293 किमी है। इसका प्रधान कार्यालय चर्चगेट (मुम्बई) में है। यह राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र एवं मध्य प्रदेश राज्यों से होकर गुजरता है। यहाँ बड़ी एवं मीटर गेज लाइन दोनों ही हैं। इस मार्ग के द्वारा कपास एवं सूती वस्त्र, खाद्यान्न, नमक, तिलहन, अभ्रक, खालें, ऊनी वस्त्र, ताँबा, पेट्रोलियम, सीमेण्ट, रासायनिक उर्वरक का व्यापार अधिक होता है। मुम्बई, अहमदाबाद, भड़ौंच, अजमेर, बड़ोदरा, आगरा, जयपुर, उदयपुर, रतलाम, फतेहपुर-सीकरी, उज्जैन आदि इसी रेलमार्ग के सहारे प्रमुख नगर एवं रेलवे स्टेशन विकसित हैं। द्वारका, सोमनाथ, अजमेर, नाथद्वारा, मथुरा, उज्जैन, ओंकारेश्वर आदि धार्मिक एवं पवित्र स्थान इसी रेलमार्ग के सहारे स्थित हैं जो तीर्थयात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
(7) मध्य रेलवे (Central Railway) – यह रेलमार्ग मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं आन्ध्र प्रदेश के पश्चिमी भाग तथा दक्षिणी उत्तर प्रदेश की सेवा करता है। इसकी लम्बाई 6,486 किमी है। इसका प्रधान कार्यालय विक्टोरिया टर्मिनस (मुम्बई) में है। केपास, मैंगनीज, ताँबा, लोहा, ऐलुमिनियम, सीमेण्ट, चूना-पत्थर, कोयला, सन्तरे, लकड़ी, पेट्रोल, रासायनिक उर्वरक इसी रेलमार्ग द्वारा ढोये जाते हैं। भुसावल, खण्डवा, इटारसी, भोपाल, झाँसी, ग्वालियर, आगरा, मथुरा, रायचूर, विजयवाड़ा, नागपुर, वर्धा, काजीपेट आदि इस रेलमार्ग के सहारे प्रमुख नगर एवं रेलवे स्टेशन विकसित हुए हैं।
(8) दक्षिणी रेलवे (Southern Railway) – इस रेलमार्ग में छोटी एवं बड़ी लाइन दोनों ही सम्मिलित हैं। इसका विस्तार केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक एवं दक्षिणी आन्ध्र प्रदेश राज्यों पर है। इस रेलमार्ग की लम्बाई 6,729 किमी है। इसका प्रधान कार्यालय चेन्नई में स्थित है। खाद्यान्न, कपास, नमक, तिलहन, चीनी, तम्बाकू, रबड़, गर्म मसाले, लकड़ी, खालें, चमड़ा, चाय, कहवा, मशीनें, ऐलुमिनियम, सीमेण्ट, सूती वस्त्र आदि इस मार्ग में ढोये जाने वाली प्रमुख वस्तुएँ हैं। इस रेलमार्ग के सहारे चेन्नई, कोयम्बटूर, मदुराई, कोचीन, बंगलुरू, त्रिवेन्द्रम, मंगलौर, रामेश्वरम् आदि महत्त्वपूर्ण नगर तथा रेलवे स्टेशन स्थित हैं।
भारतीय रेल-खण्ड
Railway Zones of India
अन्य भाग हैं – पूर्वी (मध्य (तटीय) रेलवे, उत्तर मध्य रेलवे, पूर्वी मध्य रेलवे, उत्तर-पश्चिम रेलवे, दक्षिण-पश्चिम रेलवे, पश्चिम मध्य रेलवे, दक्षिण-पूर्व-मध्य रेलवे हैं।
(9) दक्षिणी-मध्य रेलवे (South-Central Railway) – यह एक नवीन रेल क्षेत्र है। इसकी लम्बाई 7,138 किमी है तथा प्रधान कार्यालय सिकन्दराबाद में स्थित है। यह रेलमार्ग आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं गोआ राज्यों को मिलाता है। इस रेलमार्ग द्वारा पश्चिमी तट पर स्थित नगर, पूर्वी तट पर स्थित नगरों से जोड़े गये हैं। इस रेलमार्ग द्वारा तिलहन, चावल, तम्बाकू, कपास, चीनी, लौह-अयस्क, सूती वस्त्र आदि ढोये जाते हैं।
रेलों का महत्त्व
Importance of Trains
- रेल परिवहन लम्बी दूरी के लिए विशेषत: उपयुक्त है।
- रेलों द्वारा भारी माल का परिवहन सुगमता से होता है, जो सड़क परिवहन द्वारा सम्भव नहीं है।
- रेल परिवहन, सड़क परिवहन की अपेक्षा सस्ता होता है।
- सड़क परिवहन की अपेक्षा रेल परिवहन तथा यात्रा अधिक सुरक्षित है। रेल यात्रा में दुर्घटनाओं की सम्भावना कम रहती है।
- रेलों द्वारा देश के परस्पर दूरस्थ स्थान एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं, जिससे देश की एकता तथा अखण्डता सम्भव हो पाती है।
- देश के औद्योगीकरण में रेलों का बहुत महत्त्व है।
- पत्तनों के विकास एवं व्यापार में रेलों का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
- भारतीय रेल देश का सबसे बड़ा औद्योगिक प्रतिष्ठान है। इसमें भारी पूँजी लगी है तथा लाखों व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त होता है।
प्रश्न 3
भारतीय जल-यातायात पर प्रकाश डालिए। [2007]
उत्तर
जलमार्ग यातायात का सबसे पुराना, सुगम और सस्ता साधन है। लगभग 90% भारतीय विदेशी व्यापार जलमार्ग द्वारा किया जाता है। क्षेत्रीय विस्तार की दृष्टि से भारतीय जल-यातायात को दो भागों में विभाजित किया गया है – (1) आन्तरिक जलमार्ग तथा (2) समुद्री जलमार्ग।
(1) आन्तरिक जलमार्ग – भारत में नाव्य नदियों की लम्बाई केवल 5,200 किमी है, जिसमें 1,800 किमी जलमार्ग का वास्तविक रूप में उपयोग किया जाता है। प्रमुख जलमार्ग इस प्रकार हैं-गंगा, ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियाँ, गोदावरी, कृष्णा और इनकी सहायक नदियाँ, केरल की पश्चिमी तटीय नहरें तथा आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु में बकिंघम नहर, ओडिशा में मन्दाकिनी में डेल्टा नहरें तथा गोआ में जौरी नहर। इस समय देश में नाव्य नहरों की कुल लम्बाई 4,300 किमी है जिसमें केवल 485 किमी लम्बी नहरों में आसानी से स्टीमर चलाये जा सकते हैं।
(2) समुद्री परिवहन – समुद्री जलमार्ग की दृष्टि से भारत की भौगोलिक स्थिति पूरी तरह अनुकूल है। भारत की जहाजरानी का स्थान विश्व में 17वाँ तथा एशिया में दूसरा है। भारतीय जलयान विश्व के सभी समुद्री मार्गों पर चलते हैं। 31 मार्च, 2003 को देश में 616 जलयान थे, जिनकाG.R.T.61.7 लाख टन था। 31 मार्च, 2003 तक देश में लगभग 140 जहाजी कम्पनियाँ थीं जिनमें से दो सार्वजनिक क्षेत्र में हैं। भारतीय जहाजरानी निगम देश की सबसे महत्त्वपूर्ण जहाजी इकाई है। मुगल लाइन्स हज यात्रियों के यातायात के लिए है। निजी क्षेत्र में ग्रेट इस्टर्न शिपिंग कम्पनी, एस्सार शिपिंग क०, चौगुले स्टीम शिप लि०, वरुण शिपिंग क० आदि महत्त्वपूर्ण हैं।
भारत के समुद्री मार्ग निम्नलिखित हैं –
- स्वेज नहर मार्ग – इस मार्ग द्वारा भारतीय जलयान लाल सागर, स्वेज नहर तथा भूमध्ये सागर होते हुए यूरोपीय देशों को जाते हैं।
- उत्तमाशा अन्तरीप मार्ग – इस मार्ग द्वारा भारतीय जलयान दक्षिणी तथा पश्चिमी अफ्रीका और दक्षिणी अमेरिका को चले जाते हैं।
- सिंगापुर मार्ग-इस मार्ग द्वारा भारतीय जलयान सिंगापुर होते हुए दक्षिणी-पूर्वी एशिया के देशों को जाते हैं।
- ऑस्ट्रेलिया मार्ग – इस मार्ग द्वारा भारतीय जलयान ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड की ओर जाते है।
तटीय जहाजरानी – देश के ही विभिन्न पत्तनों के बीच समुद्रतटीय व्यापार पूर्णतः भारतीय जलयानों द्वारा किया जाता है। अप्रैल, 2002 ई० में 98 जहाजी कम्पनियाँ तटीय व्यापार में संलग्न थीं।
जल-यातायात का महत्त्व
Importance of Water Transport
- सस्ता साधन – समुद्री परिवहन प्रकृति-प्रदत्त सुलभ एवं सस्ता साधन है। इसके निर्माण और रख-रखाव पर कोई खर्च नहीं करना पड़ता है। इसलिए रेलों व सड़कों की अपेक्षा जलमार्ग सस्ती यातायात सेवा प्रदान करते हैं।
- कम पोषण व्यय – एक अनुमान के अनुसार गंगा नदी का पोषण व्ययेर 350 प्रति किमी आता है, जबकि रेलमार्ग का पोषण व्यय 12 हजार से 17 हजार प्रति किमी और सड़क का 8 हजार से9 हजार प्रति किमी आता है।
- अधिक वाहन क्षमता – जलयान का भार खींचने की क्षमता भी अधिक होती है, क्योंकि जल परिवहन का घर्षण बहुत कम होता है।
- कुछ क्षेत्रों के लिए एकमात्र साधन – बर्फीले स्थानों, पहाड़ी ढालों और सघन वनों में जलमार्ग ही यातायात का एकमात्र साधन होता है।
- नवीन देशों की खोज – कोलम्बस और वास्कोडिगामा जैसे नाविकों ने जलमार्ग से यात्रा करके ही नये देशों और द्वीपों का पता लगाया था।
- थोक ढुलाई के लिए उपयुक्त – थोक माल की ढुलाई के लिए जल-यातायात सर्वाधिक सस्ता, सुविधाजनक और उपयुक्त साधन सिद्ध होता है।
- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण – भारत के आयात-निर्यात व्यापार का लगभग 92% भाग जलमार्ग से होता है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से महत्त्व – राष्ट्रीय प्रतिरक्षा की दृष्टि से भी जलमार्गों का बहुत अधिक महत्त्व है, क्योंकि पुलों को नष्ट करके शत्रु रेलमार्ग और सड़क-मार्ग को तो सरलता से सेवा के अयोग्य बना सकता है, परन्तु जलमार्गों में नदी, नहर और समुद्र का ऐसा विध्वंस सम्भव नहीं होता।
जल-यातायात की कठिनाइयाँ
Difficulties of Water Transport
- जलमार्ग में स्थल मार्ग की अपेक्षा जोखिम का अंश अधिक रहता है।
- मोटर वाहनों अथवा रेलगाड़ी की अपेक्षा जल-वाहन की चाल बहुत धीमी होती है।
- नदियाँ बहुत टेढ़ी-मेढ़ी होती हैं। कुछ नदियाँ तो अपना मार्ग बदल देती हैं। इससे धन, समय और शक्ति का दुरुपयोग होता है।
- जलमार्ग की सेवा केवल तट तक सीमित होने के कारण स्थल मार्ग की तुलना में अपूर्ण होती है। अतः इसकी सेवाएँ एक सीमित क्षेत्र को ही प्राप्त हो सकती हैं।
- अधिकांश ठण्डे प्रदेशों में जलमार्ग बर्फ से ढके रहते हैं। वर्षाकाल में नदियों में प्राय: बाढ़े आ जाती हैं तथा ग्रीष्मकाल में अनेक नदियाँ सूख जाती हैं, फलतः जलमार्गों का प्रयोग कम होता है।
प्रश्न 4
भारत में वायु-परिवहन का वर्णन कीजिए तथा प्रमुख वायुमार्गों पर प्रकाश डालिए। टिप्पणी लिखिए-भारत में वायु-यातायात।
उत्तर
भारत में वायु-परिवहन (Air-Transport in India) – आधुनिक परिवहन साधनों में वायु-परिवहन सबसे तीव्रगामी साधन है। भारत में भौगोलिक दूरियों की अधिकता तथा दक्षिणी–पूर्वी एशिया में पूर्व एवं पश्चिम के मध्य इसकी स्थिति केन्द्रीय स्थान रखती है। दुर्गम क्षेत्रों; जैसे–पर्वत, सघन वन एवं मरुस्थलीय क्षेत्रों में रेल एवं सड़क मार्गों का विकास करना असम्भव लगता है, परन्तु वायु-परिवहन द्वारा इन क्षेत्रों को सरलता से जोड़ा जा सकता है।
वायु-परिवहन का विकास – भारत में पहली हवाई उड़ान सन् 1911 में प्रारम्भ हुई। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद देश में वायु-परिवहने का वास्तविक विकास हुआ। सन् 1929-30 में ब्रिटेन, फ्रांस और डच देशों ने भारत में वायु-परिवहन को विकसित करने में सहायता प्रदान की। सन् 1934 में इण्डियन नेशनल एयरवेज कम्पनी बनायी गयी जिसके विमान कराँची एवं लाहौर के मध्य उड़ान भरते थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सरकार ने इस परिवहन सेवा को अपने अधीन कर लिया था। स्वतन्त्रता-प्राप्ति से पूर्व देश में 11 वायु कम्पनियाँ तथा 61 हवाई अड्डे थे जिनमें से 4 हवाई अड्डे अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व रखते थे।
स्वतन्त्रता -प्राप्ति के बाद सरकार ने वायु-परिवहन के विकास हेतु एक समिति का गठन किया, जिसके सुझाव पर सन् 1953 में वायु-परिवहन का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया तथा सभी विमान कम्पनियों को निम्नलिखित दो निगमों में सम्मिलित कर दिया गया –
(i) इण्डियन (इण्डियन एयर लाइन्स) – इसका प्रमुख कार्य देश के भीतरी भागों में वायु सेवाओं का संचालन करना है। इसे पड़ोसी देशों से भी वायु सेवा सम्पर्क का दायित्व सौंपा गया है।
(ii) एयर इण्डिया इण्टरनेशनल – इस निगम को लम्बी दूरी के अन्तर्राष्ट्रीय मार्गों पर वायु सेवाओं के संचालन का दायित्व सौंपा गया है।
1972 में अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों के विकास के लिए भारत में अन्तर्राष्ट्रीय वायु अड्डा प्राधिकरण (International Airport Authority of India) की स्थापना की गयी थी। इस प्राधिकरण का प्रमुख कार्य चार अन्तर्राष्ट्रीय वायु अड्डों-मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता तथा दिल्ली–के विकास एवं व्यवस्था को सुचारु बनाये रखना है। इन वायु अड्डों के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय एवं घरेलू उड़ानों के 40% भाग का उत्तरदायित्व वहन किया जाता है।
वायु-परिवहन को संचालित करने वाले निगम
Controlling Agencies of Air Transport
वायु-परिवहन का संचालन अग्रलिखित दो निगमों द्वारा किया जाता है –
(1) इण्डियन एयरलाइन्स निगम (Indian Airlines Corporation) – यह निगम देश के आन्तरिक भागों तथा समीपवर्ती देशों-पाकिस्तान, म्यांमार, नेपाल, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव एवं श्रीलंका के साथ वायुमार्गों की व्यवस्था करता है। सन् 1979 में इस निगम द्वारा 54.1 लाख यात्रियों को ले जाया गया तथा इसकी कार्यक्षमता 40.68 करोड़ टन हो गयी। इसके बेड़े में 11 एयर बसें (एक पट्टे पर), 27 B-737(2 पट्टे पर), 7 HS-748, 5 फोकर फ्रेण्डशिप F-27 विमान हैं, जो देश के प्रमुख केन्द्रों को 31,782 किमी लम्बे मार्गों पर जोड़ते हैं।
इस निगम का प्रधान कार्यालय नई दिल्ली में है। मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता एवं नई दिल्ली से इसकी सेवाएँ संचालित होती हैं।
(2) एयर इण्डिया निगम (Air India Corporation) – यह निगम विदेशों के लिए वायुमार्गों की व्यवस्था करता है। यह लगभग 50 देशों के साथ भारत का सम्बन्ध स्थापित करता है जो 37,790 किमी लम्बे वायुमार्ग हैं। इस निगम के अधिकार में कुल 55 विमान हैं जिनमें 9 बोइंग 707 और 27 बोइंग 737 (जम्बो जेट) विमान, 11 एयर बसें, 7 HS-748, F-27 सम्मिलित हैं। एयर इण्डिया ने खाड़ी युद्ध (1991) के दौरान अपने उड्डयन इतिहास में 1,07,822 भारतीयों को कुवैत से सुरक्षित भारत पहुँचाकर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है।
हवाई केन्द्र/उड्डयन केन्द्र
Air Centres
भारत में हवाई परिवहन का संचालन उपर्युक्त दोनों निगमों द्वारा किया जाता है। भारतीय नागरिक उड्डयन विभाग के अन्तर्गत 90 वायु अड्डे हैं। भारत का अन्तर्राष्ट्रीय हवाई प्राधिकरण देश के चार बड़े अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों का प्रबन्ध करता है, जब कि राष्ट्रीय हवाई अड्डा प्राधिकरण 86 देशीय हवाई अड्डों और रक्षा हवाई अड्डों पर असैनिक उड़ान पट्टियों का प्रबन्ध करता है। सन् 1992 में तिरुवनन्तपुरम् से अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानें आरम्भ कर दी गयी हैं तथा यह अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का वायु पत्तन हो गया है। विमानों द्वारा उड़ान भरने अथवा उतरने की सुविधाओं को दृष्टिगत रखते हुए भारतीय वायु अड्डों को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है –
(1) अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे (International Airports) – भारत में अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व के पाँच अड्डे हैं—सहर (मुम्बई), दमदम (कोलकाता), मीनाम्बक्कम् (चेन्नई), इन्दिरा गांधी इण्टरनेशनल . (नई दिल्ली) तथा तिरुवनन्तपुरम् (केरल) को भी इसमें सम्मिलित कर लिया गया है।
(2) प्रधान हवाई अड्डे (Major Airports) – इसके अन्तर्गत 11 हवाई अड्डे हैं, जहाँ छोटे-बड़े वायुयान उतर-चढ़ सकते हैं। अगरतला, अहमदाबाद, बेगमपेट (हैदराबाद), सफदरजंग (दिल्ली), गुवाहाटी, चेन्नई, नागपुर, जयपुर, लखनऊ, पटना, वाराणसी एवं तिरुचिरापल्ली ऐसे ही हवाई अड्डे हैं।
(3) मध्यम श्रेणी के हवाई अड्डे (Intermediate Airports) – औरंगाबाद, बेहाना, बेलगाम, भावनगर, कुल्लू, भोपाल, भुवनेश्वर, भुज, जुहू (मुम्बई), कोयम्बटूर, गया, इन्दौर, जूनागढ़, खजुराहो, कोटा, कुम्भी ग्राम, मदुराई, मंगलौर, मोहनवाड़ी, मुजफ्फरपुर, नादिरगुल (हैदराबाद), उत्तरी लखीमपुर, पन्नागढ़, पन्तनगर, पोरबन्दर, पोर्ट ब्लेयर, रायपुर, राजकोट, राँची, तिरुपति, इम्फाल, उदयपुर, बड़ोदरा, विजयवाड़ा एवं विशाखापट्टनम् आदि वायु अड्डे इस प्रकार के हैं।
(4) लघु श्रेणी के हवाई अड्डे (Minor Airports) – इन हवाई अड्डों की संख्या 31 है। अकोला, बूलरघाट, बड़ापानी (असोम), बिलासपुर, चकुलिया (बिहार), कूचबिहार, कुडप्पा, दोनाकोण्डा, हसन, झाँसी, जबलपुर, कानपुर, खण्डवा, कोल्हापुर जोगबानी, ललितपुर, माल्दा, मैसूर, सतना, पालमपुर, राजमहेन्द्री, रामनाथपुरम्, सरसावा (सहारनपुर), शोलापुर, पन्ना, पासीघाट, रूपसी, वेलूर, वारंगल आदि स्थानों पर इस श्रेणी के वायु अड्डे स्थापित हैं।
(5) उड्यन क्लब एवं ग्लाइडिंग केन्द्र (Flying Clubs and Gliding Centres) – हमारे देश में 2.5% सहायता प्राप्त उड्डयन क्लब अर्थात् उड्डयन प्रशिक्षण केन्द्र हैं। इसके प्रमुख केन्द्र अमृतसर, वनस्थली, बंगलुरु, भुवनेश्वर, मुम्बई, कोलकाता, कोयम्बटूर, गुवाहाटी, हिसार, हैदराबाद, इन्दौर, जयपुर, जमशेदपुर, जालन्धर, करनाल, लखनऊ, लुधियाना, चेन्नई, नागपुर, नई दिल्ली, पटियाला, पटना, रायपुर, त्रिवेन्द्रम् एवं बड़ोदरा में स्थित हैं। पुणे में एक विभागीय ग्लाइडिंग केन्द्र है। इसके अतिरिक्त 14 सहायता प्राप्त ग्लाइडिंग क्लब हैं जो आगरा, अहमदाबाद, अमृतसर, देवलाली, हिसार, जयपुर, जालन्धर, कानपुर, लुधियाना, नई दिल्ली, पटियाला, पटना, पिलानी और रायपुर में स्थित हैं।
(6) वायुदूत – भारत में 105 स्थानों से वायुदूत सेवाएँ आरम्भ की गयी हैं। देश के उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र की वायु परिवहन माँग को पूरा करने के लिए जनवरी, 1981 से इस सेवा को आरम्भ किया गया है।
भारत के प्रमुख वायुमार्ग
Major Air Routes of India
भारत के वायुमार्गों को दो निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है –
(अ) अन्तर्देशीय वायुमार्ग (Internal Airways) – देश में वायु परिवहन का विकास बड़े-बड़े नगरों तक सीमित है। देश के अधिकांश पूर्वी एवं उत्तरी पर्वतीय राज्य में वायु सेवाओं का विस्तार बहुत ही कम है। देश के आन्तरिक वायुमार्ग निम्नलिखित हैं –
- दिल्ली-इलाहाबाद-वाराणसी-कोलकाता।
- दिल्ली-लखनऊ-पटना-कोलकाता।
- दिल्ली-चण्डीगढ़-जम्मू-श्रीनगर।
- दिल्ली -अमृतसर-जम्मू-श्रीनगर।
- दिल्ली-ग्वालियर-भोपाल-इन्दौर-मुम्बई।
- दिल्ली-जयपुर-उदयपुर-अहमदाबाद-मुम्बई।
- दिल्ली-काठमाण्डू-पटना-राँची-कोलकाता।
- मुम्बई-मंगलौर-चेन्नई।
- मुम्बई-बेलगाम।
- मुम्बई-दावोलिम (गोआ)।
- मुम्बई-मंगलौर।
- मुम्बई-पोरबन्दर।
- मुम्बई-भुज।
- मुम्बई-राजकोट।
- मुम्बई-हैदराबाद-विजयवाड़ा-विशाखापट्टनम्-कोलकाता।
- कोचीन-तिरुवनन्तपुरम्-मुम्बई।
- मुम्बई-नागपुर-कोलकाता।
- कोलकाता-पोर्टब्लेयर।
- कोलकाता-गुवाहाटी-तेजपुर-जोरहाट-लीलावाड़ी-मोहनवाड़ी।
- कोलकाता-अगरतला-खोवाई-कमालपुर-कैलाशहर।
- कोलकाता-अगरतला-गुवाहाटी।
- चेन्नई-हैदराबाद-दिल्ली।
- चेन्नई-बंगलुरु-कोयम्बटूर-कोचीन-तिरुवनन्तपुरम्।
(ब) अन्तर्राष्ट्रीय वायुमार्ग (International Airways) – एयर इण्डिया द्वारा भारत से विदेशों को विमान सेवाओं का संचालन किया जाता है। इस समय इस निगम द्वारा 44 देशों के साथ वायु-सेवा समझौते किये गये हैं। एयर इण्डिया के वायुयान निम्नलिखित वायुमार्गों पर संचालित होते हैं –
- मुम्बई-काहिरा-रोम-जेनेवा-पेरिस-लन्दन।
- दिल्ली-अमृतसर-काबुल-मॉस्को।
- कोलकाता-सिंगापुर-सिडनी-पर्थ।
- मुम्बई-काहिरा-रोम-डुसैलडर्फ-पेरिस-लन्दन-न्यूयॉर्क।
भारत से ब्रिटिश ओवरसीज कॉरपोरेशन, एयरसिलोन लि०, एयर फ्रांस KLM (रॉयल डच एयरलाइन्स), पान अमेरिकन वर्ल्ड एयरवेज, ट्रांसवर्ड एयरलाइन्स, क्वेटास एम्पायर एयरवेज, स्केण्डैनेवियन एयरवेज, मिडिल-ईस्ट एयरलाइन्स, ईस्ट अफ्रीकन . एयरवेज, एलीटैलिया, चेकोस्लोवाकिया एयरलाइन्स, जापान एयरलाइन्स के वायुयान विभिन्न वायु अड्डों से होकर गुजरते हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
यह एक महत्त्वपूर्ण सड़क विकास परियोजना है जिसमें मौजूदा दो लेन वाले राजमार्गों को चार लेनों, छः लेनों तक विस्तृत करना तथा लगभग 13,000 किमी की मौजूदा लेनों को मजबूत किया जाना सम्मिलित है। यह परियोजना विश्व में सबसे बड़ी एकल राजमार्ग परियोजनाओं में से एक है। इस परियोजना में 5,846 किमी का स्वर्ण चतुर्भुज (G.2.) जो दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता महानगरों को जोड़ता है तथा 7,300 किमी लम्बा उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम गलियारा शामिल है जो श्रीनगर से कन्याकुमारी तथा सिलचर से पोरबन्दर को जोड़ता है। इस परियोजना का कार्यान्वयन भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) द्वारा किया जा रहा है। इस परियोजना के प्रथम चरण में स्वर्ण चतुर्भुज जो दिसम्बर, 2000 ई० में शुरू हुआ था, 2004 ई० तक पूर्ण होने की आशा थी। इसके निर्माण के लिए विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक तथा जापान बैंक से ऋण प्राप्त किये गये हैं।
प्रश्न 2
भारत में मेट्रो रेल परिवहन प्रणाली के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर
भारत में मेट्रो रेल प्रणाली ( भूमिगत रेल सेवाएँ) अभी तक केवल कोलकाता में एसप्लेनेड से भवानीपुर तथा दमदम व बेलगछिया के मध्य विकसित है। दिल्ली में भी मेट्रो रेल प्रणाली केन्द्रीय सरकार तथा दिल्ली सरकार के संयुक्त उपक्रम में निर्माणाधीन हुई। परियोजना के प्रथम चरण में तीन मार्गों का समावेशन है जो 62.16 किमी लम्बा था। इस परियोजना से प्रतिदिन होने वाली यात्रियों की सवारी से सड़कों पर से दबाव घट गया है तथा सड़कों पर बसों की गति बढ़ गई है। प्रदूषण में भी भारी गिरावट आई है तथा दुर्घटनाएँ भी कम हुई हैं।
प्रश्न 3
भारत में रेल यातायात के विकास की समीक्षा कीजिए।
उत्तर
भारत में रेलों का विकास 19वीं शताब्दी से प्रारम्भ हुआ है। सन् 1853 में ग्रेट इण्डियन पेनिनसुला रेलमार्ग बोरीबन्दर (मुम्बई) से थाणे के बीच 34 किमी लम्बा पहला रेलमार्ग बनाया गया। दूसरा रेलमार्ग सन् 1854 में कोलकाता और पंडुआ के बीच 63 किमी लम्बा बनाया गया। सन् 1970 में देश में रेलमार्गों की लम्बाई 6,840 किमी थी। यह सन् 1980 में बढ़कर 13,680 किमी थी जो सन् 1990 में बढ़कर 39,843 किमी हो गयी। वर्ष 2000-2001 में यह लम्बाई 82,354 किमी हो गयी थी वर्तमान में यह बढ़कर 1,15,000 किमी हो गया है। वर्तमान में रेलमार्गों में से 56% बड़ी लाइन,37% छोटी लाइन तथा 7% सँकरी लाइन हैं।
आर्थिक एवं प्रशासनिक दृष्टिकोण से इन छोटे-बड़े रेलमार्गों को 1950 ई० में 8 भागों में बाँटा गया। 1966 ई० में एक क्षेत्र और बढ़ा दिया गया। 14,856 किमी मार्ग का विद्युतीकरण हो चुका है जो कुल रेलमार्गों की लम्बाई का 18.8% है। इन रेलमार्गों पर 11,900 रेलगाड़ियाँ 7500 स्टेशनों पर प्रतिदिन आती-जाती हैं। इन रेलगाड़ियों द्वारा प्रतिदिन 14.5 लाख किमी की दूरी तय की जाती है। यात्री-गाड़ियों की दृष्टि से प्रतिदिन लगभग 12,617 यात्री-गाड़ियाँ चलती हैं तथा 41,530 लाख यात्री लगभग 62,300 किमी से भी अधिक दूरी की यात्रा करते हैं। वर्तमान समय में देश के रेलमार्गों को 17 भागों में बाँटकर संचालित किया जा रहा है।
प्रश्न 4
भारत की अर्थव्यवस्था में रेल यातायात का महत्त्व बताइए।
उत्तर
- रेल परिवहन लम्बी दूरी के लिए विशेषत: उपयुक्त है।
- रेलों द्वारा भारी माल का परिवहन सुगमता से होता है, जो सड़क परिवहन द्वारा सम्भव नहीं है।
- रेल परिवहन, सड़क परिवहन की अपेक्षा सस्ता होता है।
- सड़क परिवहन की अपेक्षा रेल परिवहन तथा यात्रा अधिक सुरक्षित है। रेल यात्रा में दुर्घटनाओं की सम्भावना कम रहती है।
- रेलों द्वारा देश के परस्पर दूरस्थ स्थान एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं, जिससे देश की एकता तथा अखण्डता सम्भव हो पाती है।
- देश के औद्योगीकरण में रेलों का बहुत महत्त्व है।
- पत्तनों के विकास एवं व्यापार में रेलों का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
- भारतीय रेल देश का सबसे बड़ा औद्योगिक प्रतिष्ठान है। इसमें भारी पूँजी लगी है तथा लाखों व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त होता है।
प्रश्न 5
भारत में सड़क परिवहन के महत्त्व की विवेचना कीजिए। [2011, 16]
उत्तर
आदिकाल से ही भारत के परिवहन पथों में सड़कों का सर्वाधिक महत्त्व है। भारतीय सड़कों का जाले विश्व का सबसे बड़ा सड़क जाल है। यात्री एवं सामान, दोनों दृष्टियों से सड़क यातायात का कुल यातायात में प्रतिशत बहुत तीव्रता से बढ़ा है। सड़कें राष्ट्रीय जीवन की धमनियाँ हैं। प्रमुख वस्तुओं को लाने-ले जाने, निर्यातक वस्तुओं को पत्तनों तक पहुँचाने, आयात की गयी वस्तुओं को देश के आन्तरिक भागों में भेजने आदि ऐसे कार्य हैं जो सड़क मार्गों द्वारा ही सम्भव हो पाये हैं। सड़क परिवहन के प्रमुख गुण उसकी लचक, सेवा का व्यापक क्षेत्र, माल की सुरक्षा, समय की बचत और बहुमुखी एवं सस्ती सेवा का होना है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
भारत में यातायात के प्रमुख साधन बताइए।
उत्तर
भारत में यातायात के प्रमुख साधन निम्नलिखित हैं –
- सड़क यातायात
- रेल यातायात
- जल यातायात तथा
- वायु यातायात
प्रश्न 2
भारत में कुल कितने प्रकार के सड़क मार्ग पाये जाते हैं?
उत्तर
सन् 1943 की नागपुर सड़क योजना के अनुसार, भारतीय सड़कों का वर्गीकरण निम्नवत् है –
- राष्ट्रीय राजमार्ग
- प्रान्तीय राजमार्ग
- जिले की सड़कें तथा
- ग्रामीण सड़कें।
प्रश्न 3
अन्तर्राष्ट्रीय राजमार्ग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
जहाँ दो या दो से अधिक पड़ोसी देशों के राजमार्ग परस्पर एक-दूसरे की राजधानियों या नगरों को जोड़ते हैं, ऐसे राजमार्ग अन्तर्राष्ट्रीय राजमार्ग कहलाते हैं; जैसे-मुख्य मार्ग भारत को पाकिस्तान में लाहौर से तथा म्यांमार में मांडले से जोड़ता है।
प्रश्न 4
देश में जल यातायात कितने प्रकार का है?
उत्तर
देश में जल यातायात को दो भागों में बाँटा जा सकता है-
- आन्तरिक जल यातायात तथा
- सामुद्रिक जल यातायात।
प्रश्न 5
भारत में हवाई यातायात का राष्ट्रीयकरण कब हुआ?
उत्तर
भारत में हवाई यातायात का राष्ट्रीयकरण सन् 1953 में हुआ।
प्रश्न 6
भारत में अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व के हवाई अड्डों की कुल संख्या क्या है?
उत्तर
भारत में अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व के कुल 15 हवाई अड्डे हैं।
प्रश्न 7
भारत में निजी एयरलाइन्स की किन्हीं दो कम्पनियों के नाम लिखिए।
उत्तर
भारत में निजी एयरलाइन्स की दो कम्पनियाँ हैं-
- जेट एयर लाइन्स तथा
- किंग फिशर एयर लाइन्स।
प्रश्न 8
भारत में प्रथम रेलमार्ग कब बनाया गया?
उत्तर
भारत में प्रथम रेलमार्ग सन् 1853 में मुम्बई-थाणे के मध्य बनाया गया।
प्रश्न 9
राष्ट्रीय राजमार्गों की लम्बाई लगभग कितनी है?
उत्तर
52,000 किमी।
प्रश्न 10
राष्ट्रीय राजमार्गों को जोड़ने वाला मार्ग क्या कहलाता है?
उत्तर
राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना के अन्तर्गत देश के चार महानगरों (दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, मुम्बई) को जोड़ने वाला सड़क मार्ग ‘स्वर्ण चतुर्भुज’ कहलाता है, जो 5,846 किमी लम्बा है।
प्रश्न 11
भारत में इस समय कौन-सी पंचवर्षीय योजना चल रही है?
उत्तर
भारत में इस समय बारहवीं पंचवर्षीय योजना चल रही है। इसकी कार्य-अवधि2012-2017 है।
प्रश्न 12
भारत में आन्तरिक जल परिवहन के विकास में बाधक दो भौगोलिक कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
- वर्षाकाल में नदियाँ बाढ़ग्रस्त हो जाती हैं तथा शुष्क ऋतु में सूख जाती हैं।
- दक्षिण भारत की नदियाँ, विषम पठारी धरातल पर बहने के कारण प्रपाती हैं; अत: नौगम्य नहीं हैं।
प्रश्न 13
भारत में सड़क यातायात के दो महत्व बताइए।
उत्तर
- देश के दूरस्थ तथा दुर्गम क्षेत्र भी सड़कों द्वारा जुड़े हैं।
- सड़क परिवहन लघु दूरी के लिए शीघ्रतम तथा सस्ता साधन है।
प्रश्न 14
भारतीय अर्थव्यवस्था में वायु-यातायात के दो महत्त्व (लाभ) बताइए। [2016]
उत्तर
- भारतीय निर्यातकों की सहायता करने और उनके निर्यात को अधिक प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिए सरकार ने ‘ओपने स्काई पॉलिसी’ अर्थात् मुक्त आकाश नीति’ की घोषणा की है।
- वायु-यातायात पर्यटन को बढ़ावा देता है। पर्यटन रोजगार के अवसर पैदा करने तथा निर्धनता को दूर करने में सहायक सिद्ध हुआ है।
प्रश्न 15
पंजाब की प्रमुख यातायात नहर कौन-सी है?
उत्तर
पंजाब की प्रमुख यातायात नहर सरहिन्द नहर है, जिसमें हिमालय पर्वत की लकड़ियाँ बहाकर लायी जाती हैं।
प्रश्न 16
उत्तमाशा अन्तरीप भारत को किससे मिलाता है?
उत्तर
उत्तमाशा अन्तरीप भारत को दक्षिण अफ्रीका और पश्चिमी अफ्रीका से मिलाता है।
प्रश्न 17
सिंगापुर जलमार्ग भारत को किससे जोड़ता है?
उत्तर
सिंगापुर जलमार्ग भारत को चीन और जापान से जोड़ता है।
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1
आगरा-ग्वालियर-हैदराबाद-बंगलुरु से धनुषकोटि तक का मार्ग है –
(क) राष्ट्रीय राजमार्ग
(ख) अन्तर्राष्ट्रीय राजमार्ग
(ग) (क) और (ख) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(ख) अन्तर्राष्ट्रीय राजमार्ग।
प्रश्न 2
भारत के शिरोभाग को तल भाग से जोड़ने वाली भारतीय रेल है –
(क) नालाचल एक्सप्रेस
(ख) शताब्दी एक्सप्रेस
(ग) जम्मू तवी एक्सप्रेस
(घ) छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस
उत्तर
(ग) जम्मू-तवी एक्सप्रेस।
प्रश्न 3
अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व का दमदम हवाई अड्डा स्थित है –
(क) मुम्बई में
(ख) नई दिल्ली में
(ग) गुजरात में
(घ) कोलकाता में
उत्तर
(घ) कोलकाता में।
प्रश्न 4
निम्नलिखित में से कौन-सा जोड़ा सही नहीं है? (2009)
(क) मिजोरम – इटानगर
(ख) मणिपुर – इम्फाल
(ग) मेघालय – शिलांग
(घ) नागालैण्ड – कोहिमा
उत्तर
(क) मिजोरम – इटानगर।