UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 4 Population : Growth, Density, Distribution and Structure (जनसंख्या : वृद्धि, घनत्व, वितरण एवं संरचना)
UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 4 Population : Growth, Density, Distribution and Structure (जनसंख्या : वृद्धि, घनत्व, वितरण एवं संरचना)
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
संसार में जनसंख्या के घनत्व तथा वितरण को प्रभावित करने वाले भौगोलिक कारकों की विवेचना कीजिए। [2007, 08, 10, 14]
या
जनसंख्या के असमान वितरण के लिए उत्तरदायी भौगोलिक कारकों का वर्णन कीजिए। (2007)
विश्व में एशिया के असमान वितरण की व्याख्या कीजिए तथा ऐसे असमान वितरण के किन्हीं तीन कारणों का वर्णन कीजिए। [2016]
या
जनसंख्या-वृद्धि के लिए उत्तरदायी भौगोलिक कारकों का विश्लेषण कीजिए। [2012,16]
या
जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों की समीक्षा कीजिए। [2008, 14]
या
विश्व की जनसंख्या का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए –
(क) जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले भौगोलिक कारक
(ख) जनसंख्या का वितरण। [2013]
उत्तर
मानव- भूगोल के अध्ययन में मानवे का केन्द्रीय स्थान है, क्योकि मानव ही अपने प्राकृतिक और सांस्कृतिक पर्यावरण का उपभोग करता है, उनसे प्रभावित होता है और उनमें अपनी आवश्यकतानुसार परिवर्तन करता है। पृथ्वीतल पर सभी आर्थिक व्यवसाय मानव द्वारा सम्पन्न होते हैं। इसी कारण पृथ्वीतल पर जनसंख्या कितनी है, उसका वितरण किन प्रदेशों में अधिक या कम है, उसमें कितनी वृद्धि अथवा कमी हुई है, उसकी क्षमता कैसी है तथा उसकी समस्याएँ क्या हैं आदि सभी तथ्यों का अध्ययन करना बड़ा महत्त्वपूर्ण है।
जनसंख्या अध्ययन का मुख्य उद्देश्य पृथ्वीतल के विभिन्न प्रदेशों में जनसंख्या की स्थिति, वृद्धि अथवा कमी, उसकी भिन्नताएँ, घनत्व, आवास-प्रवास, शारीरिक शक्ति, आयु-वर्ग, पुरुष-महिला अनुपात तथा जनसंख्या के आर्थिक विकास की अवस्थाओं का पता लगाना होता है।
विश्व में जनसंख्या के वितरण में प्राचीन काल से अब तक बहुत-से परिवर्तन हुए हैं। पृथ्वी पर जनसंख्या के वितरण की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि भूतल पर मनुष्यों का निवास असमान है। केवल कुछ प्रदेश ऐसे हैं जहाँ मानव-निवास अति सघन है, जबकि बहुत-से भूभाग खाली पड़े हैं। विश्व की 50 प्रतिशत जनसंख्या; भू-स्थल के केवल 5 प्रतिशत भाग पर निवास करती है, जबकि 7 प्रतिशत क्षेत्रफल ऐसा है जहाँ केवल 5% जनसंख्या ही रहती है; अत: स्थल-खण्ड का कम बसा भाग बहुत बड़ा है। पश्चिमी गोलार्द्ध के स्थल भाग पर केवल एक-चौथाई जनसंख्या निवास करती है। इस वितरण पर प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक विषमताओं का भी प्रभाव पड़ता है।
जनसंख्या के घनत्व तथा वितरण को प्रभावित करने वाले कारक
Factors Affecting the Density and Distribution of Population
जनसंख्या का घनत्व – जनसंख्या के घनत्व का आशये किसी क्षेत्र में निवास करने वाली जनसंख्या की सघनता से है। जनसंख्या के घनत्व को प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर निवास करने वाले व्यक्तियों की संख्या के रूप में मापा जाता है। घनत्व ज्ञात करने के लिए किसी क्षेत्र की कुल जनसंख्या को उसके क्षेत्रफल से भाग दिया जाता है। घनत्व से जनसंख्या के किसी क्षेत्र में संकेन्द्रण की मात्रा का बोध होता है।
जनसंख्या के घनत्व तथा वितरण पर निम्नलिखित भौगोलिक एवं अन्य कारकों का प्रभाव पड़ता है –
1. स्थिति (Location) – किसी प्रदेश की स्थिति का प्रभाव उसके समीपवर्ती देशों, परिवहन, व्यापार तथा मानव इतिहास पर पड़ता है। उदाहरण के लिए, हिन्द महासागर में भारत की स्थिति केन्द्रीय होने के कारण मध्य-पूर्व के देशों तथा पूर्वी गोलार्द्ध के देशों के साथ समुद्री व्यापार की सुविधा रखने वाली है। विश्व की लगभग 75 प्रतिशत जनसंख्या तटीय भागों तथा उनकी सीमा-पेटियों में निवास करती है। भूमध्यसागरीय भागों में उसके चारों ओर प्राचीन काल से ही मानव-बस्तियों का विकास होता रही हैं। यहाँ मछलियों की प्राप्ति, सम-जलवायु, समतल मैदानी भूमि जिसमें कृषि, उद्योग, परिवहन एवं मानव-आवासों का तीव्र गति से विकास हुआ है। इसीलिए इन भागों में सघन जनसंख्या का संकेन्द्रण हुआ है।
2. जलवायु (Climate) – सभी कारकों में जलवायु महत्त्वपूर्ण साधन है, जो जनसंख्या को । किसी स्थान पर बसने के लिए प्रेरित करती है। विश्व के सबसे घने बसे भाग मानसूनी प्रदेश तथा सम-शीतोष्ण जलवायु के प्रदेश हैं। चीन, जापान, भारत, म्यांमार, वियतनाम, बांग्लादेश तथा पूर्वी-द्वीप समूह की जलवायु मानसूनी है, जबकि पश्चिमी यूरोप एवं संयुक्त राज्य की जलवायु सम-शीतोष्ण है; अतः इन देशों में सघन जनसंख्या का निवास हुआ है।
इसके विपरीत जिन प्रदेशों की जलवायु उष्ण एवं शुष्क है, वहाँ बहुत ही कम जनसंख्या निवास करती है। उदाहरण के लिए, सहारा, कालाहारी, अटाकामा, अरब, थार एवं ऑस्ट्रेलियाई मरुस्थलों में जनसंख्या का घनत्व एक व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। अति उष्ण एवं आर्दै प्रदेशों में भी जनसंख्या कम है; जैसे- अमेजन बेसिन के पर्वतीय एवं पठारी क्षेत्रों में।
मानव-आवास के लिए स्वस्थ अनुकूलतम जलवायु वह है जिसमें ग्रीष्म ऋतु का अधिकतम औसत तापमान 18°सेग्रे से कम तथा शीत ऋतु के सबसे ठण्डे महीने का तापमान 3° सेग्रे से कम न हो। सामान्यतया 4°-21° सेग्रे तापमान के प्रदेश जनसंख्या के आवास के लिए सर्वाधिक अनुकूल माने जाते हैं। वर्षा की मात्रा में वृद्धि के साथ-साथ जनसंख्या के घनत्व में भी वृद्धि होती जाती है तथा उसके घटने के साथ-साथ जनसंख्या घनत्व में कमी होती जाती है।
3. भू-रचना (Terrain) – भू-रचना का जनसंख्या से गहरा सम्बन्ध है। समतल मैदानी भागों में कृषि, सिंचाई, परिवहन, व्यापार आदि का विकास अधिक होता है; अतः मैदानी क्षेत्र सघन रूप से बस जाते हैं। पर्वतीय एवं पहाड़ी क्षेत्रों में कष्टदायकं एवं विषम भूमि की बनावट होने के कारण बहुत कम लोग निवास करना पसन्द करते हैं। भारत के असम राज्य में केवल 397 मानव प्रति वर्ग किमी निवास करते हैं, जबकि गंगा के डेल्टा में 800 से भी अधिक व्यक्ति प्रति वर्ग किमी निवास कर रहे हैं। विश्व में जनसंख्या के चार समूहों का संकेन्द्रण हुआ है-
- चीन एवं जापान,
- भारत एवं बांग्लादेश,
- यूरोपीय देश एवं
- पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका।
विश्व में उपजाऊ भूमि के कारण नदी-घाटियाँ भी सघन रूप से बसी हैं।
4. स्वच्छ जल की पूर्ति (Supply of Clean water) – जल मानव की मूल आवश्यकता है। जल की आवश्यकता मुख्यत: तीन प्रकार की है –
- घरेलू आवश्यकताओं के लिए जल की पूर्ति
- औद्योगिक कार्यों के लिए जल की पूर्ति एवं
- सिंचाई के लिए जल की पूर्ति।
अतः जिन प्रदेशों एवं क्षेत्रों में शुद्ध एवं स्वच्छ मीठे जल की पूर्ति की सुविधी होती है, वहाँ जनसंख्या भी अधिक निवास करने लगती है; जैसे-नदी-घाटियों एवं समुद्रतटीय क्षेत्रों में।
5. मिट्टियाँ (Soils) – जनसंख्या का मूल आधार भोजन है जिसके बिना वह जीवित नहीं रह सकती। शाकाहारी भोजन प्रत्यक्ष रूप से एवं मांसाहारी भोजन अप्रत्यक्ष रूप से मिट्टी में ही उत्पन्न होते हैं। जिन प्रदेशों की मिट्टियाँ उपजाऊ होती हैं, वहाँ सघन जनसंख्या निवास करती है। चीन, भारत एवं यूरोपीय देशों में नदियों की घाटियों में मिट्टी की अधिक उर्वरा शक्ति के कारण सघन जनसंख्या निवास कर रहा है।
6. खनिज पदार्थ (Minerals) – जिन प्रदेशों में खनिज पदार्थों का बाहुल्य होता है, वहाँ उद्योगों के विकसित होने की पर्याप्त सम्भावनाएँ रहती हैं। इस कारण ये क्षेत्र जनसंख्या को अपनी ओर आकर्षित करते हैं तथा विषम परिस्थितियों में भी इन प्रदेशों में सघन जनसंख्या का आवास रहता है। यूरोप महाद्वीप के सघन बसे प्रदेश कोयले एवं लोहे की खानों के समीप ही स्थित मिलते हैं। इसी प्रकार रूस के उन क्षेत्रों में जनसंख्या अधिक है, जहाँ खनिज भण्डार अधिक हैं।
7. शक्ति के संसाधन (Power Resources) – उद्योगों एवं परिवहन के साधनों के संचालन में कोयला, पेट्रोलियम, जल-विद्युत एवं प्राकृतिक गैस की आवश्यकता होती है तथा इनकी प्राप्ति वाले क्षेत्रों में जनसंख्या भी सघन रूप में निवास करने लगती है।
8. आर्थिक उन्नति की अवस्था (Stage of Economic Progress) – किसी प्रदेश की आर्थिक स्थिति में वृद्धि होने पर उसकी जनसंख्या-पोषण की क्षमता में भी वृद्धि हो जाती है; अत: इन प्रदेशों में जनसंख्या भी अधिक निवास करने लग जाती है। कृषि उत्पादन कम होने पर भी इन प्रदेशों में खाद्यान्न विदेशों से आयात कर लिये जाते हैं, क्योंकि आयात करने के लिए उनकी आर्थिक स्थिति अनुकूल होती है।
9. तकनीकी प्रगति का स्तर (Level of Technological Progress) – तकनीकी विकास के द्वारा नवीन यन्त्रों, उपकरणों एवं मशीनों के उत्पादन में वृद्धि होती है जिससे विभिन्न क्षेत्रों के उत्पादों में भी वृद्धि होती है एवं ऋतु तथा जलवायु की विषमताओं पर नियन्त्रण कर लिया जाता है। इन सुविधाओं के स्तर में वृद्धि से जनसंख्या में भी वृद्धि हो जाती है। यूरोप के औद्योगिक प्रदेशों में 700 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से भी अधिक जन-घनत्व इसी कारण मिलता है।
10. सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक (Social and Cultural Factors) – सामाजिक रीतिरिवाजों, धार्मिक विश्वासों एवं जीवन के प्रति दृष्टिकोण का प्रभाव जनसंख्या वितरण पर भी पड़ता है। जिस समाज में लोग भाग्यवादी होते हैं, उनमें परिवार-कल्याण कार्यक्रमों के प्रति विश्वास एवं रुचि न होने के कारण अधिक सन्तति से जनसंख्या में वृद्धि होती चली जाती है। उदाहरण के लिए, भारत में मुस्लिम लोगों का परिवार-कल्याण के प्रति धार्मिक विश्वास न होने के कारण उनकी जनसंख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही है।
11. राजनीतिक कारक (Political Factors) – राजनीतिक नियमों का प्रभाव भी जनसंख्या वितरण पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है। उदाहरणार्थ- ऑस्ट्रेलिया का क्षेत्रफल भारत की अपेक्षा लगभग तीन गुना अधिक है, जब कि ऑस्ट्रेलिया की जनसंख्या भारत की जनसंख्या का केवल 1/50 भाग ही है। इसका प्रमुख कारण ऑस्ट्रेलिया सरकार की श्वेत नीति (White Policy) है जो गोरी जातियों के अतिरिक्त दूसरी नस्ल के लोगों को ऑस्ट्रेलिया में बसने से रोकती है।
12. मनोवैज्ञानिक कारक (Psychological Factors) – किसी प्रदेश में मानव के कम या अधिक निवास के लिए उसकी छाँट दो सीमाओं के मध्य रहती है। एक ओर प्राकृतिक पर्यावरण द्वारा निश्चित की हुई सीमा तथा दूसरी ओर सरकारी नीति। इस प्रकार कुछ मानव थोड़े संसाधनों के क्षेत्र में बसे होते हैं तथा उनकी जीविकोपार्जन की विधि भी पिछड़ी हुई होती है। ऐसे उदाहरण पर्वतीय तथा वन-क्षेत्रों में अधिक मिलते हैं। विश्व के दक्षिणी महाद्वीपों में ऐसे क्षेत्र अधिक मिलते हैं।
13. पर्यावरण की वांछनीयता (Environmental Desirability) – मानवीय सभ्यता के विकास के साथ-सांथ परिवहन, संचार आदि साधनों में वृद्धि से विभिन्न प्रदेशों की वांछनीयता में भी परिवर्तन हो जाते हैं। जहाँ आर्थिक विकास की सम्भावनाएँ अत्यधिक दिखलाई पड़ती हैं, उन क्षेत्रों में मानव के बसने की इच्छा भी अधिक रहती है। उदाहरणार्थ-बिहार राज्य के उत्तरी भाग में कृषि द्वारा सघन जनसंख्या पोषण करने की क्षमता विद्यमान है और दक्षिण की ओर छोटा नागपुर पठारे में खनिज पदार्थों के कारण औद्योगिक विकास की भारी क्षमता है। अत: बिहार राज्य में इन सम्भावनाओं के कारण जनसंख्या भी सघन होती जा रही है। इसके विपरीत सम्भावनाओं की कमी के कारण हिमालय के तराई प्रदेश में जनसंख्या विरल है।
14. अन्तर्राष्ट्रीय पारस्परिक निर्भरता (International Interdependence) – वर्तमान समय में विशेषीकरण में वृद्धि के फलस्वरूप सभ्य राष्ट्र अपनी खाद्यान्न आवश्यकता के लिए एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं। उदाहरण के लिए, ब्रिटेन तथा जर्मनी के खाद्यान्न अधिकतर ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अर्जेण्टाइना आदि देशों से मशीनों के बदले आते हैं; अर्थात् एक देश दूसरे देश की उपज को आसानी से बदल सकता है। इससे विशेषीकरण में वृद्धि होती है तथा अधिक जनसंख्या का पोषण सम्भव हो सकता है। इसी प्रकार जापान ने भी सघन जनसंख्या के पोषण की क्षमता आसानी से प्राप्त कर ली है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार ने विभिन्न देशों की आर्थिक निर्भरता की अपेक्षा विशेषीकरण को प्रोत्साहन दिया है, परन्तु कभी-कभी राजनीतिक सम्बन्ध खराब होने से विभिन्न देशों में युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। अतः इसके लिए एक देश को दूसरे देश की विशेषताओं को उचित प्रकार से समझना चाहिए।
प्रश्न 2
एशिया में जनसंख्या के असमान वितरण हेतु भौगोलिक कारकों की विवेचना कीजिए। [2015]
या
एशिया में जनसंख्या के असमान वितरण के कारणों की विवेचना कीजिए। [2008, 10, 11, 16]
उत्तर
विश्व में जनसंख्या का वितरण समान नहीं है। सन् 1992 में विश्व की जनसंख्या 5.48 अरब थी जो 2013 ई० तक बढ़कर 7.125 अरब पहुँच गयी है। इस प्रकार विश्व जनसंख्या में 9.7 करोड़ मानव प्रतिवर्ष बढ़ जाते हैं। ऐसा अनुमान किया जाता है कि सन् 2050 तक विश्व की जनसंख्या 9.10 अरब हो जाएगी। यह जनसंख्या 135 करोड़ वर्ग किमी क्षेत्रफल पर निवास करती है। विश्व में जनसंख्या का सामान्य घनत्व 93 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। किन्तु कहीं-कहीं पर यह 3,000 से 4,000 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से भी अधिक पाया जाता है, जबकि कुछ प्रदेशों में 5 व्यक्तियों से भी कम है।
इस प्रकार दो-तिहाई जनसंख्या कुल क्षेत्रफल के सातवें भाग पर निवास करती है। इससे पता चलता है कि विश्व की जनसंख्या का वितरण बड़ा ही असमान है। यदि जनसंख्या-वितरण का अध्ययन करें तो पता चलता है। कि एशिया महाद्वीप में विश्व की सबसे अधिक अर्थात् 60.8% जनसंख्या निवास करती है। यूरोप, अफ्रीका, उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका महाद्वीपों में क्रमश: 12%, 13.9%, 7% तथा 5.8% जनसंख्या निवास करती है, जबकि ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप में बहुत ही कम अर्थात् केवल 0.7 प्रतिशत जनसंख्या ही निवास करती है। निम्नांकित तालिकी विश्व में जनसंख्या वितरण को प्रकट करती है-
यदि विश्व में जनसंख्या वृद्धि का अध्ययन किया जाये तो पता चलता है कि जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है। ऐसे क्षेत्र, जो पहले जनशून्य थे, अब मानव ने उन निर्जन क्षेत्रों में भी अपने बसाव प्रारम्भ कर दिये हैं। मानव ने अपने जीवन-निर्वाह के साधनों की खोज में अब पर्वतीय, पठारी, मरुस्थलीय एवं ध्रुवीय प्रदेशों की ओर प्रयास तेज कर दिये हैं। विश्व की अधिकांश जनसंख्या थोड़े-से क्षेत्रफल में ही निवास करती है; अर्थात् विश्व की दो-तिहाई जनसंख्या केवल तीन बड़े क्षेत्रों में केन्द्रित है –
- दक्षिणी-पूर्वी एशियाई मानसूनी देश
- पश्चिमी और मध्य यूरोपीय देश
- पूर्वी तथा मध्य
संयुक्त राज्य अमेरिका। विश्व का अधिकांश क्षेत्रफल कम जनसंख्या रखने वाला है। इन तथ्यों को जनसंख्या के महाद्वीपीय वितरण से समझा जा सकता है।
जनसंख्या का महाद्वीपीय वितरण
Continental Distribution of Population
एशियाई जनसमूह – एशिया महाद्वीप में विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या निवास करती है। विश्व के लगभग 60.8% अर्थात् लगभग 357 करोड़ लोग एशिया महाद्वीप में निवास करते हैं, परन्तु यहाँ पर जनसंख्या का वितरण बड़ा ही असमान है। चीन, जापान, कोरिया, फिलीपीन्स तथा वियतनाम देशों में कुल मिलाकर विश्व की लगभग 25% जनसंख्या निवास करती है। चीन की जनसंख्या 138.4 करोड़ (सन् 2016 में) हो गयी है। जापान में भी 12 करोड़ 81 लाख (लगभग) व्यक्ति निवास कर रहे हैं। दक्षिणी-पूर्वी एशिया में इस महाद्वीप की जनसंख्या को 75% भाग समुद्रतटीय क्षेत्रों तथा नदियों की घाटियों में निवास करता है।
भारतवर्ष में सन् 2011 की जनगणनानुसार 121.01 करोड़ व्यक्ति निवास कर रहे थे। इस प्रकार”एशिया महाद्वीप में बहुत थोड़े क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ घनी आबादी निवास करती है, जबकि अधिकांश क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ बहुत ही कम लोग निवास करते हैं।” एशिया महाद्वीप के कुछ क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व 550 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है, जबकि कुछ भागों में 1 से 25 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी ही है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में जनसंख्या का घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। मंगोलिया, सिक्यांग एवं तिब्बत का पठार तथा साइबेरिया के विस्तृत भाग और अरब का मरुस्थल विशेष रूप से कम जनसंख्या रखने वाले विस्तृत प्रदेश हैं।
एशिया महाद्वीप में जनसंख्या के सघन कुंज लगभग 10 से 40° उत्तरी अक्षांशों के मध्य पाये जाते हैं। यहाँ जनसंख्या का मुख्य आर्थिक आधार कृषि-कार्य हैं। मानसूनी जलवायु, सिंचाई की सुविधाएँ,
उपजाऊ कॉप मिट्टी के मैदान, परिश्रमी कृषक, सदावाहिनी नदियों से जल की उपलब्धि आदि के द्वारा वर्ष में 2 से 3 तक फसलों का उत्पादन किया जाता है। नदियों की घाटियाँ और डेल्टाई भागों में गेहूं एवं चावल उत्पादक क्षेत्र मानव समूहों से भरे पड़े हैं। इन देशों में 70% से 80% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है।
यूरोपीय जनसमूह – यूरोप महाद्वीप का जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में तृतीय स्थान है। यहाँ पर 727 करोड़ व्यक्ति निवास करते हैं। यहाँ जनसंख्या का घनत्व 101 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। विश्व की 12.8% जनसंख्या इस महाद्वीप में निवास करती है। जनसंख्या के समूह 40° उत्तरी अक्षांश से 60° उत्तरी अक्षांश के मध्य फैले हैं, किन्तु सबसे सघन बसाव 45° उत्तर से 55° उत्तरी अक्षांशों के बीच है जहाँ कोयला अधिक मात्रा में प्राप्त होता है। 50°उत्तरी अक्षांश के साथ जनसंख्या का जमाव पश्चिम में इंग्लिश चैनल से लेकर पूरब में यूक्रेन देश तक विस्तृत है।
इस क्षेत्र को ‘यूरोपीय जनसंख्या की धुरी’ कहा जाता है जो पश्चिम से पूरब की ओर सँकरी होती गयी है। वास्तव में यूरोप की जनसंख्या का आधार औद्योगिक-प्राविधिक विकास है। औद्योगिक विकास के साथ-साथ परिवहन के साधनों का विकास एवं विस्तार हुआ जिससे व्यापार को प्रश्रय मिला। यही कारण है कि यूरोप के जनसंख्या जमघट में नगरों का विशेष महत्त्व है, क्योंकि नगर ही सम्पर्क तथा आर्थिक कार्यों के केन्द्र बिन्दु हैं। इन देशों की 70%-85% जनसंख्या नगरीय केन्द्रों में निवास करती है।
उत्तरी अमेरिकी जनसमूह – एशिया एवं यूरोप महाद्वीप की अपेक्षा उत्तरी अमेरिका महाद्वीप में जनसंख्या कम है। यहाँ पर विश्व की लगभग 7% जनसंख्या निवास करती है तथा घनत्व 17 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। जनसंख्या का जमघट पूर्वी भाग में 100° पश्चिमी देशान्तर से पूर्व में 30° से 45° उत्तरी अक्षांशों के मध्य हुआ है। उत्तरी अमेरिका के पूर्वी भाग में यूरोपियन प्रवासी सबसे पहले आकर बसे थे, परन्तु अब पश्चिमी भागों में कैलीफोर्निया में भी जनसंख्या अधिक हो गयी है। यहाँ पर औद्योगिक विकास के साथ-साथ कृषि भी आधुनिक ढंग से की जाती है।
उत्तरी अमेरिका में नदियों के बेसिन तथा उपजाऊ मैदान सघन बसे हैं। महान् झीलों का समीपवर्ती क्षेत्र, पूर्वी तटीय भाग, मध्यवर्ती क्षेत्र तथा मिसीसिपी का मैदान तथा कनाडा में झीलों एवं सेण्ट लारेंस के निकटवर्ती क्षेत्र सर्वाधिक जनसंख्या रखने वाले हैं। यहाँ पर जन-घनत्व 200 से 300 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। पश्चिमी द्वीप समूह, मध्य एवं पूर्वी मैक्सिको तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्यवर्ती भागों में जनसंख्या का घनत्व 50 से 100 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। ग्रीनलैण्ड, अलास्का, न्यूफाउण्डलैण्ड, रॉकी पर्वत तथा मरुस्थलीय प्रदेश कम जनसंख्या रखने वाले हैं, जहाँ जनसंख्या का घनत्व केवल 10 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। इन प्रदेशों में विषम जलवायु तथा आर्थिक विषमताएँ मानव-बसाव में बाधक बनी हुई हैं।
दक्षिणी अमेरिकी जनसमूह – जनसंख्या के दृष्टिकोण से यह महाद्वीप अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं है। क्षेत्रफल की तुलना में जनसंख्या बहुत ही कम (विश्व की लगभग 5.8%) है। जनसंख्या का घनत्व भी केवल 16 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है।असमतल धरातल, विषम जलवायु, सघन वन, शुष्क मरुस्थल तथा अनुपजाऊ भूमि के कारण यहाँ जनसंख्या कम मिलती है। यहाँ पर कुछ जनसंख्या समूहों के रूप में भी बसी है। प्रमुख रूप से मध्यवर्ती पूर्वी भागों में जनसंख्या के जमघट विकसित हुए हैं। इन तटीय भागों में उपजाऊ भूमि के कारण मानव-आवास संघन हुए हैं तथा जनसंख्या का घनत्व भी 100 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से अधिक मिलता है। इस महाद्वीप की सघन जनसंख्या कृषि क्षेत्रों, तटीय भागों, विशाल नगरों तथा राजधानियों में निवास करती है। दक्षिणी-पूर्वी ब्राजील, लाप्लाटा बेसिन, मध्य चिली, कैरेबियन तट तथा ओरीनीको डेल्टा घने बसे हुए क्षेत्र हैं।
इस महाद्वीप के उत्तरी तथा उत्तरी-पश्चिमी तटीय भागों में मध्यम जनसंख्या निवास करती है। यहाँ पर जनसंख्या का घनत्व 10 से 30 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। कोलम्बिया के पूर्वी तट, वेनेजुएला का उत्तरी भाग, पीरू का उत्तरी-पश्चिमी तट, इक्वेडोर, बोलीविया का मध्य भाग, अर्जेण्टाइना का मध्य भाग तथा पैराग्वे का मध्य भाग मध्यम जनसंख्या के क्षेत्रों में सम्मिलित किये जा सकते हैं। दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप के पर्वतीय क्षेत्रों, मरुस्थलों, अविकसित क्षेत्रों तथा दलदली भागों में बहुत ही कम जनसंख्या निवास करती है। पैन्टागोनिया एवं अटाकामा के शुष्क मरुस्थल, एण्डीज तथा बोलीविया के उच्च शिखरों पर विरल जनसंख्या पायी जाती है। यहाँ पर 40% क्षेत्र में न्यून जनसंख्या निवास करती है। इस महाद्वीप की 65% से 70% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है।
अफ्रीकी जनसमूह – अफ्रीका महाद्वीप में क्षेत्रफल की अपेक्षा जनसंख्या बहुत ही कम है। जनसंख्या के दृष्टिकोण से विश्व में एशिया एवं यूरोप महाद्वीप के बाद अफ्रीका का स्थान आता है। यहाँ 81.8 करोड़ मानव निवास करते हैं जो विश्व की कुल जनसंख्या का 13.9% भाग है तथा जनसंख्या घनत्व 20 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। अफ्रीका महाद्वीप को अधिकांश क्षेत्रफल ऊबड़-खाबड़, असमतल, पठारी, मरुस्थलीय तथा विषम जलवायु एवं कठोर पर्यावरण वाला होने के कारण मानव-आवास के अयोग्य है।
अफ्रीका महाद्वीप के उत्तरी – पूर्वी भागों में सघन जनसंख्या निवास करती है। इन भागों में जनसंख्या का घनत्व 100 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। नील नदी के डेल्टाई भागों में 500 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से भी अधिक मानव निवास करते हैं। इसके अतिरिक्त दक्षिणी अफ्रीकी संघ, तटीय मैदानी भाग तथा उत्तरपश्चिमी भागों में भी जनसंख्या का घनत्व अधिक है। अल्जीरिया के उत्तरी भाग, घाना, नाइजीरिया तथा मेडागास्कर में मध्यम जनसंख्या निवास करती है, जहाँ जन-घनत्व 50 से 100 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। इस महाद्वीप का 50% क्षेत्र न्यून जनसंख्या रखने वाला है, जहाँ जनसंख्या का घनत्व केवल 2 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। इनमें सहारा का मरुस्थल, कालाहारी मरुस्थल तथा अबीसीनिया का पठार सम्मिलित हैं।
ऑस्ट्रेलियाई जनसमूह – ऑस्ट्रेलिया विश्व में सबसे कम जनसंख्या रखने वाला महाद्वीप है। यहाँ विश्व की केवल 0.7% जनसंख्या ही निवास करती है। जनसंख्या का घनत्व भी 2 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। यहाँ पर यूरोपियन श्वेत लोगों का आधिक्य है जो सोना एवं अन्य बहुमूल्य खनिजों की खोज में आये थे।
दक्षिण – पूर्वी तथा दक्षिण-पश्चिमी एवं समुद्रतटीय भागों में मरे-डार्लिंग एवं स्वॉन नदी का डेल्टा, मेलबोर्न तथा सिडनी के निकटवर्ती भागों में जनसंख्या का आधिक्य है। इन भागों में जनसंख्या का घनत्व 100 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। पूर्वी ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण-पूर्वी तट, पश्चिमी तथा दक्षिणी तट मध्यम जनसंख्या के क्षेत्र हैं। यहाँ औसत घनत्व 30 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी मिलता है। तस्मानिया द्वीप भी इसी श्रेणी में आता है। पर्वतीय, पठारी तथा मरुस्थलीय क्षेत्रों में विरल जनसंख्या है जहाँ जन-घनत्व केवल 1 से 2 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है।
प्रश्न 3
विश्व में मानव-निवास क्षेत्रों की व्याख्या कीजिए।
या
“विश्व के कुछ भाग घने बसे हैं और अधिकांश भाग जनशून्य हैं।” इस कथन की सत्यता की परख कीजिए।
उत्तर
विश्व में जनसंख्या-वितरण
Population Distribution in the World
विश्व-मानचित्र पर यदि हम जनसंख्या के वितरण पर दृष्टिपात करें तो जनसंख्या-वितरण की असमानता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। कुछ क्षेत्रों में जनसंख्या विस्फोट, तो कुछ क्षेत्र जनसंख्याविहीन दृष्टिगोचर होते हैं। विश्व की लगभग 60.8% जनसंख्या एशिया महाद्वीप में, 12% यूरोप महाद्वीप में, 7% उत्तरी अमेरिका महाद्वीप में, 13.9% अफ्रीका महाद्वीप में, 5.8% जनसंख्या दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप में तथा 0.7% ऑस्ट्रेलिया महाद्वीपों में निवास करती है। उपर्युक्त आँकड़ों में सबसे अधिक आकर्षित करने वाले इस तथ्य से पता चलता है कि विश्व की दो-तिहाई जनसंख्या इसके क्षेत्रफल के सातवें भाग पर ही केन्द्रित है। इससे हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि विश्व के कुछ भाग अत्यन्त घने बसे हुए हैं और अधिकांश भाग जनशून्य हैं अथवा बहुत ही कम जनसंख्या वाले हैं।
विश्व की अधिकांश जनसंख्या तीन बसे हुए क्षेत्रों में केन्द्रित है। जनसंख्या के इन जमघटों का समूह उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है। मानव-बसाव के आधार पर विश्व को इन क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
(क) सघन बसे हुए क्षेत्र Densed Region
विश्व के निम्नलिखित क्षेत्र जनसंख्या के घने बसे हुए क्षेत्रों के अन्तर्गत आते हैं –
1. पूर्वी एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया के मानव समूह – इस क्षेत्र में विश्व की 60% जनसंख्या निवास करती है। दक्षिण-पूर्वी एशिया के बसे हुए क्षेत्रों के अन्तर्गत भारत में गंगा की निम्न घाटी एवं डेल्टाई क्षेत्र, चीन में ह्वांग्हो, यांगटिसीक्यांग और जेचुआन बेसिन (रेड बेसिन), जापान में पूर्वी समुद्रतटीय मैदानी क्षेत्र, पाकिस्तान में सिंचित क्षेत्र, बांग्लादेश तथा इण्डोनेशिया सम्मिलित हैं। इस क्षेत्र में जनसंख्या का संकेन्द्रण पूर्णत: कृषि-कार्यों पर आधारित है। इस क्षेत्र की लगभग 70से भी अधिक जनसंख्या की आजीविका को साधन कृषि-कार्यों पर ही निर्भर करता है। एशिया के इस विशाल जन-समूह को ‘कृषि सभ्यता’ या ‘चावल सभ्यता’ के नाम से भी पुकारा जाता है, क्योंकि यहाँ का मुख्य धन्धा कृषि एवं प्रमुख फसल चावल है।
2. उत्तर-पश्चिमी यूरोप के मानव समूह – उत्तर-पश्चिमी यूरोपीय देश भी बहुत सघन बसे हुए हैं। इस क्षेत्र को यूरोप की जनसंख्या की धुरी की संज्ञा दी जाती है। इस क्षेत्र में ब्रिटेन से लेकर रूस के डोनेत्ज बेसिन तक जनसंख्या के सघन संकेन्द्रण पाये जाते हैं। इस क्षेत्र के अन्तर्गत विश्व की लगभग 20% जनसंख्या निकस करती है। इसमें रूस, ब्रिटेन, जर्मनी, हॉलैण्ड, बेल्जियम, फ्रांस, पोलैण्ड, इटली तथा स्पेन आदि देश सम्मिलित हैं। इस क्षेत्र के जनसमूह का मुख्य आधार उद्योग, वाणिज्य तथा व्यापार है।
3. उत्तरी अमेरिका के उत्तर-पूर्वी मानव समूह – उत्तरी अमेरिका को यह जनसमूह महान् झीलों के पूर्वी क्षेत्र में 30° उत्तरी अक्षांश से 45° उत्तरी अक्षांश तथा 100° पश्चिमी देशान्तर के पूर्व तक विस्तृत है। यहाँ इस महाद्वीप की लगभग 85% जनसंख्या निवास करती है। इस क्षेत्र में जनसंख्या का बसाव मिसीसीपी नदी के पूर्व में, ओहियो नदी के उत्तर में तथा सेण्ट लारेंस नदी की घाटी में केन्द्रित है। इस जनसमूह में विश्व की केवल 5% जनसंख्या पायी जाती है। इस क्षेत्र में संयुक्त राज्य की कृषि-पेटियाँ स्थित हैं। अधिकांश जनसंख्या विस्तृत एवं आधुनिक यन्त्रों से सुसज्जित कृषि-फार्मों तथा औद्योगिक केन्द्रों में बसी हुई है।
(ख) विरल बसे हुए क्षेत्र Rared Region
वास्तव में विश्व का 70% क्षेत्र अति विरल जनसंख्या वाला है जिसमें विश्व की केवल 5% जनसंख्या ही निवास करती है। इन क्षेत्रों की विषम तथा कठोर परिस्थितियाँ; जैसे- कठोर जलवायु, विषम धरातल, मरुस्थलीय क्षेत्रों का विस्तार, पर्वत तथा पठार आदि संरचना पायी जाती हैं। बिना बसे हुए क्षेत्रों के अन्तर्गत विश्व के निम्नलिखित क्षेत्र सम्मिलित हैं –
1. अत्यधिक ठण्डे क्षेत्र – इस क्षेत्र का विस्तार उत्तर में आर्कटिक महासागर तथा दक्षिण में अण्टार्कटिक महाद्वीप के समीपवर्ती क्षेत्रों में पाया जाता है। इसके अन्तर्गत ग्रीनलैण्ड, अण्टार्कटिका, उत्तरी साइबेरिया, उत्तरी कनाडा तथा अलास्का आदि देश सम्मिलित हैं। इन क्षेत्रों में कठोर शीत ऋतु, न्यूनतम तापमान, हिम एवं पाले की कठोरता के फलस्वरूप अत्यन्त अल्प जनसंख्या निवास करती है। टुण्ड्रा प्रदेश में 60° उत्तरी अक्षांश के उत्तर में जन-विन्यास केवल नाममात्र को ही पाया जाता है। आन्तरिक महाद्वीपीय भागों में बर्फ से ढकी पर्वत श्रेणियाँ भी जनसंख्यारहित क्षेत्र हैं।
2. मध्य अक्षांशीय उष्ण मरुस्थलीय क्षेत्र – इन क्षेत्रों में बालू की प्रधानता, शुष्क एवं उष्ण जलवायु, भीषण तापमान तथा प्राकृतिक संसाधनों का अभाव मानव-बसाव में बाधक हैं। इन क्षेत्रों में जल की कमी होने के कारण कृषि व्यवसाय तथा अन्य आर्थिक कार्य विकसित नहीं हो पाये हैं। अफ्रीका महाद्वीप में सहारा व कालाहारी के उष्ण मरुस्थल; एशिया महाद्वीप में गोबी, थार, अरब, तुर्किस्तान व मंगोलिया; ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप का मरुस्थल; उत्तरी अमेरिका महाद्वीप के संयुक्त राज्य अमेरिका में ग्रेट बेसिन व आन्तरिक पठार तथा दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप में पेंटागोनिया तथा अटाकामा के मरुस्थल इन क्षेत्रों के अन्तर्गत आते हैं। जल की कमी, शुष्कता तथा उष्णता के कारण ये क्षेत्र प्रायः मानव बसाव के योग्य नहीं हैं; अत: यहाँ पर बहुत-ही कम जनसंख्या निवास करती है।
3. विषुवतरेखीय उष्णार्द्र वन प्रदेश – ये क्षेत्र उच्च तापमान, अत्यधिक वर्षा, विषैली मक्खी एवं मच्छर तथा संक्रामक महामारियों जैसी विषम परिस्थितियों के कारण अल्प जनसंख्या रखने वाले हैं। इस क्षेत्र के अन्तर्गत दक्षिणी अमेरिका के अमेजन तथा अफ्रीका के कांगो-बेसिन के सघन वन क्षेत्र आते हैं। इन क्षेत्रों में भूमध्यरेखीय उष्ण एवं आर्द्र जलवायु के कारण सघन वनस्पति पायी जाती है। यह जलवायु मानव-बसाव के अनुकूल नहीं है; अतः यहाँ जनसंख्या का बसाव बहुत कम है।
4. ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी व पठारी क्षेत्र – उच्च पर्वत तथा पठारी क्षेत्र भी कम बसे हुए भागों के अन्तर्गत आते हैं। ये क्षेत्र ऊबड़-खाबड़ धरातल, कठोर एवं विषम जलवायु, कृषि-योग्य भूमि की कमी, यातायात के साधनों का अभाव, उद्योग-धन्धों की कमी आदि के कारण जन-शून्य हो गये हैं। विश्व में हिमालय, रॉकी, आल्प्स तथा एण्डीज पर्वतों के भू-भाग कम बसे हुए हैं। एशिया के मध्यवर्ती पर्वतीय तथा पठारी क्षेत्रों को इसी कारण ‘एशिया का मृत हृदय’ कहकर पुकारा जाता है।
प्रश्न 4
जनसंख्या की विभिन्न विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
जनसंख्या के भौगोलिक अध्ययन में निम्नलिखित तथ्य सम्मिलित किये जाते हैं –
- संख्या
- घनत्व एवं
- वृद्धि।
परन्तु केवल इन्हीं तथ्यों को ही जान लेना पर्याप्त नहीं है, वरन् यह जानना भी आवश्यक है कि किसी प्रदेश की जनसंख्या में मनुष्यों का
- स्वास्थ्य कैसा है?
- उनमें लिंग-अनुपात (स्त्री-पुरुष अनुपात) क्या है?
- उनकी आयु-संरचना अर्थात् जनसंख्या का आयु- संघटन क्या है?
- विभिन्न व्यवसायों का स्तर कैसा है?
- ग्रामीण एवं नगरीयं जनसंख्या को अनुपात क्या है? तथा
- शिक्षा, विज्ञान एवं तकनीकी प्रगति किस अवस्था तक हुई है?
उपर्युक्त सभी तथ्यों के सम्मिलित अध्ययन से किसी देश की जनसंख्या की वास्तविक शक्ति और उन्नति की क्षमता को ठीक-ठीक अनुमान लगाया जा सकता है।
उदाहरण के लिए, शीतोष्ण कटिबन्धीय प्रदेश के किसी देश में उद्योगों तथा वैज्ञानिक संस्थानों में काम करने वाले 1,000 मानव में तथा उष्ण कटिबन्धीय प्रदेश के किसी देश में निवास करने वाले 1,000 मानव में, दोनों की संख्या तो बराबर है, परन्तु उनकी उत्पादन क्षमता में बहुत भारी अन्तर हो सकता है। इसीलिए जनसंख्या की विभिन्न विशेषताओं को जान लेना अति आवश्यक है, जिनका विवरण निम्नलिखित है –
आयु-संरचना (Age-composition) – जनसंख्या की क्षमता और शक्ति के अध्ययन में सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता उसकी आयु-संरचना है। इसके अन्तर्गत यह अध्ययन किया जाता है कि किसी देश की जनसंख्या में विभिन्न आयु के व्यक्तियों की संख्या कितने प्रतिशत है; अर्थात् उसमें बच्चों, जवानों और बूढ़ों की संख्या कितनी है? इसके द्वारा अग्रलिखित तीन बातों का पता चलता है –
- किसी राष्ट्र की वास्तविक और भावी श्रम-शक्ति कितनी है?
- सैन्य महत्त्व की दृष्टि से सैनिक मानव-शक्ति कितनी है?
- भविष्य में कितने मानवों के लिए शिक्षा और सहायता की योजना बनाई जाए। सरकारी कार्यालयों, सुरक्षा मन्त्रालयों, योजना समितियों और रोजगार देने वालों को इस प्रकार की जानकारी आवश्यक होती है।
आयु-संरचना के विचार से जनसंख्या के निम्नलिखित चार बड़े वर्ग होते हैं –
- बाल्यावस्था-15 वर्ष से कम,
- किशोरावस्था-15 से 20 वर्ष तक,
- सामान्य श्रमिक अवस्था—20 से 65 वर्ष तक तथा
- उत्तरावस्था अथवा वृद्धावस्था-65 वर्ष से अधिक।
स्टाम्प ने मानव की आयु के केवल तीन खण्ड बताये हैं। उन्होंने बालक और किशोर दोनों अवस्थाओं को एक साथ मिलाकर 0 से 19 वर्ष तक पहला खण्ड,20 से 64 वर्ष तक दूसरा खण्ड और 65 वर्ष से ऊपर तीसरा खण्ड माना है। इस गणना के आधार पर स्टाम्प ने विश्व को आयु-संरचना के दृष्टिकोण से निम्नलिखित चार बड़े वर्गों में बाँटा है –
- प्रथम वर्ग में उत्तर-पश्चिमी यूरोपीय देश, ब्रिटेन, बेल्जियम, फ्रांस, डेनमार्क, नीदरलैण्ड आदि देश हैं जिनमें उत्तरावस्था और श्रमिक आयु के मनुष्यों की संख्या बहुत अधिक है तथा बच्चों की संख्या कम है। जापान भी इसी वर्ग में सम्मिलित है।
- द्वितीय वर्ग में एशियाई और अफ्रीकी देश आते हैं जिनमें उच्च जन्म-दर और निम्न प्रत्याशित आयु है, जिसके कारण जनसंख्या में बच्चों की संख्या अधिक है और वृद्धि कम।
- तीसरे वर्ग में दक्षिणी अमेरिकी देश सम्मिलित हैं जिनकी संख्या में बच्चे अधिक हैं।
- चौथे वर्ग में मध्य अक्षांशों में स्थित नये बसे हुए देश संयुक्त राज्य, ऑस्ट्रेलिया आदि हैं। जिनमें पश्चिमी यूरोप के सघन देशों की अपेक्षा छोटी उम्र के बच्चे अधिक हैं और वृद्धों की संख्या कुछ कम है।
जनसंख्या के आयु-संरचना की दृष्टि से पिछले 70 वर्षों में काफी परिवर्तन हुए हैं। अब से 100 वर्ष पूर्व ब्रिटेन में चिकित्सा विज्ञान की उतनी उन्नति नहीं हुई थी। उस समय ब्रिटेन में बच्चों की संख्या अधिक थी तथा वृद्धों की कम। द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् ब्रिटेन में प्रत्याशित आयु में वृद्धि हो गयी, तब 35 वर्ष से 40 वर्ष की आयु वाले स्त्री-पुरुषों की संख्या बढ़ गयी थी। सन् 1960 में ब्रिटेन में 20 वर्ष से 64 वर्ष की आयु के व्यक्तियों की संख्या लगभग 60% हो गयी थी। बेल्जियम में श्रमिक आयु के व्यक्ति 61% के लगभग हैं, जबकि भारत में यह जनसंख्या केवल 49% है।
संयुक्त राज्य अमेरिका में सन् 1850 में 15 वर्ष तक के बच्चों की संख्या 42% थी जो सन् 1950 में 27% रह गयी, परन्तु सन् 1950 के बाद से संयुक्त राज्य अमेरिका में जन्म-दर में कुछ वृद्धि हुई है, जिसके फलस्वरूप 1970 ई० में वहाँ बच्चों की संख्या लगभग 31% थी।
एशियाई देशों में जैसे भारत, चीन, जापान, श्रीलंका आदि; दक्षिणी अमेरिकी तथा अफ्रीकी देशों में कम आयु की जनसंख्या अधिक है। इनमें 35% से 40% जनसंख्या 15 वर्ष से कम आयु की है। इन देशों में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा क्षेत्रों में इतनी प्रगति नहीं हुई है जितनी पश्चिमी यूरोपीय देशों एवं संयुक्त राज्य में हुई है।
लिंगानुपात (Sex Ratio) – जनसंख्या में स्त्री-पुरुष अनुपात से जनसंख्या की शारीरिक शक्ति का अनुमान होता है। भारत में सन् 2011 की जनगणना के अनुसार प्रति 1,000 पुरुषों के पीछे 940 स्त्रियाँ हैं, जब कि 1981-1991 के दशक में यह संख्या 927 थी, परन्तु राज्यों में यह अन्तर अलग-अलग है। पंजाब में स्त्रियों की संख्या 893, पश्चिमी बंगाल में 947, उत्तर प्रदेश में 908, तमिलनाडु में 995 और केरल में 1,084 है। इस स्थिति की एक व्याख्या यह है कि अधिकांश व्यक्ति लड़का चाहते हैं और लड़की की मन से देखभाल करना पसन्द नहीं करते हैं।
ब्रिटेन में प्रति 1,000 पुरुषों के पीछे लगभग 1,090 स्त्रियाँ हैं। जिन देशों की जनसंख्या विदेशों को प्रवास कर गयी है; जैसे- इटली, नार्वे आदि, उन देशों में स्त्रियों की जनसंख्या अधिक है। इसके विपरीत जिन देशों में विदेशों से जनसंख्या को आवास हुआ है; जैसे-कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त राज्य अमेरिका आदि में, वहाँ पुरुषों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक है। इसका प्रमुख कारण यह है कि प्रवास करने वाली जनसंख्या में पुरुषों की संख्या अधिक होती है, जबकि स्त्रियाँ कम होती हैं।
साक्षरता (Literacy) – जनसंख्या में साक्षरता से व्यक्ति के मानसिक स्तर का अनुमान होता है। यूरोप में साक्षरता का प्रतिशत बहुत अधिक है, जबकि एशिया में यह अपेक्षाकृत काफी कम है। भारत में स्त्री और पुरुषों में साक्षरता के प्रतिशत में बहुत अन्तर है। पुरुषों में साक्षरता का स्तर 2011 ई० की जनगणना के आधार पर 82.14% है, जबकि स्त्रियों में यह 65.46% प्रतिशत है। केरल भारत का सबसे अधिक साक्षर प्रदेश है। यहाँ पर 93.91 प्रतिशत जनसंख्या साक्षर है। साक्षरता की सबसे कम दर बिहार में है, जहाँ केवल 63.82 प्रतिशत व्यक्ति ही साक्षर हैं।
सामाजिक एवं आर्थिक विशेषताएँ (Social and Economic Characteristics) – इस प्रकार की विशेषताओं के अन्तर्गत सामाजिक संगठन, शिक्षा का स्तर, व्यावसायिक स्थिति, धार्मिक विश्वास, ग्रामीण एवं नगरीय बस्तियाँ, आर्थिक उत्पादन आदि का विचार किया जाता है।
यूरोप, संयुक्त राज्य, रूस, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड एवं जापान में तकनीकी-वैज्ञानिक शिक्षा का स्तर बहुत ऊँचा है, जबकि एशियाई देशों में यह स्तर नीचा है तथा अफ्रीकी देशों में और भी अधिक कम है। जिन देशों में वैज्ञानिक प्रगति अधिक है उनमें यान्त्रिक कृषि, निर्माण उद्योग एवं व्यापार, परिवहन आदि कार्यों का विकास अधिक हुआ है।
ग्रामीण एवं नगरीय जनसंख्या के विचार से विश्व की 75% जनसंख्या ऐसे देशों में रहती है, जहाँ लोग कृषि कार्य करते हुए ग्रामों में निवास करते हैं। सबसे अधिक नगरीय बस्तियाँ इन चार प्रदेशों में विकसित हुई हैं-
- उत्तर-पश्चिमी यूरोप,
- संयुक्त राज्य अमेरिका एवं कनाडा,
- ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैण्ड तथा
- दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप का दक्षिणी भाग।
भारत में 26%, जापान में 60%, संयुक्त राज्य में 82% तथा ब्रिटेन में 92% व्यक्ति नगरीय बस्तियों में निवास करते हैं। वास्तव में नगरीकरण का प्रचार यूरोप की औद्योगिक क्रान्ति से आरम्भ हुआ है। यूरोपीय देशों से प्रवासी बहुत-से नये बसे हुए देशों को गये हैं और वहाँ यूरोपीय सभ्यता के प्रचार-प्रसार द्वारा नगरीय बस्तियों को विकसित किया है। जापान में औद्योगिक क्रान्ति के श्रीगणेश द्वारा नगरीय जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है। टोकियो विश्व का दूसरा सबसे बड़ा नगर है। इसके बाद साओपालो एवं न्यूयॉर्क नगरों का स्थान आता है। एशियाई एवं अफ्रीकी देशों में अधिकांश जनसंख्या ग्रामों में निवास करती है। भारतवर्ष में सन् 2011 की जनगणना के अनुसार 70% जनसंख्या ग्रामों में निबास कर रही थी।
प्रश्न 5
नगरीकरण क्या है? भारत में नगरीकरण की समस्याओं और उनके समाधान की विवेचना कीजिए। [2007,14,16]
या
नगरीकरण की प्रमुख समस्याओं का विवरण दीजिए तथा उनके समाधान हेतु उपायों को सुझाइए। [2012,13]
या
नगरीकरण क्या है? बढ़ते नगरीकरण के कारणों को बताइए। [2015]
उत्तर
नगरीकरण का अर्थ
नगरीकरण से आशय व्यक्तियों द्वारा नगरीय संस्कृति को स्वीकारना है। नगरीकरण की प्रक्रिया नगर से सम्बन्धित है। नगर सामाजिक विभिन्नताओं का वह समुदाय है जहाँ द्वितीयक एवं तृतीयक समूहों-उद्योग और व्यापार, सघन जनसंख्या और वैयक्तिक सम्बन्धों की प्रधानता हो। नगरीकरण की प्रक्रिया द्वारा गाँव धीरे-धीरे कस्बे, कस्बे से नगर में परिवर्तित हो जाते हैं। इस प्रक्रिया में ग्रामीण बस्ती का प्राथमिक भूमि उपयोग; द्वितीयक एवं तृतीयक कार्यों में परिवर्तित हो जाता है। श्री बर्गेल ग्रामों के नगरीय क्षेत्र में रूपान्तरित होने की प्रक्रिया को ही नगरीकरण कहते हैं।
विभिन्न विद्वानों ने नगरीकरण को निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया है –
- ग्रिफिथ टेलर ने ग्रामों से नगरों की ओर जनसंख्या की अभिमुखता” को नगरीकरण की संज्ञा दी है।
- जी०टी० ट्विार्थ के अनुसार, “कुल जनसंख्या में नगरीय स्थानों में रहने वाली जनसंख्या के अनुपात को नगरीकरण का स्तर कहा जाता है।”
नगरीकरण के कारण उत्पन्न समस्याएँ एवं उनका समाधान
- अपर्याप्त आधारभूत ढाँचा और सेवाएँ
- परिवहन की असुविधा
- अपराधों में वृद्धि
- आवास की कमी
- औद्योगीकरण
- द्वितीयक समूहों की प्रधानता
- वर्गीय व्यवस्था का उदय
- अनौपचारिक सामाजिक नियन्त्रण का अभाव
- अवैयक्तिक सम्बन्धों की अधिकता
- भौतिकवादी विचारधारा का विकास
- पारम्परिक सामाजिक मूल्यों की प्रभावहीनता
1. अपर्याप्त आधारभूत ढाँचा और सेवाएँ यद्यपि नगरीकरण की तीव्रता से विकास की गति प्रकट होती है, परन्तु अति तीव्र नगरीकरण से नगरों में नगरीय सेवाओं और सुविधाओं का अभाव हो जाता है। यह सर्वविदित तथ्य है कि दस-लक्षीय महानगरों की 30% से 40% तक जनसंख्या गन्दी बस्तियों (Slums) में निवास करती रही है। नगरों में ऐसी आवासविहीन जनसंख्या बहुत अधिक है जिसका जीवन-स्तर बहुत ही निम्न होता है।
एक अनुमान के अनुसार नगरीय केन्द्रों में केवल 35% घरों में विद्युत की सुविधा है, 33% घरों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध है और 68% घरों में शौच की सुविधा उपलब्ध है। अत: नगरीय जनसंख्या में वृद्धि के आधार पर नगरीय प्रशासन के आधारभूत ढाँचे और सेवाओं में विस्तार करना चाहिए। इसके लिए वित्तीय साधनों की पूर्ति नगरीय सेवाओं के बदले लगाए गए करों और केन्द्र सरकार द्वारा अनुदानों के द्वारा की जा सकती है।
2. परिवहन की असुविधा नगरों में जनसंख्या की भीड़ बढ़ने से परिवहन की समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं, परिवहन के साधन कम पड़ने लगे हैं तथा परिवहन मार्ग संकुचित हो गए हैं जिससे दुर्घटनाओं में वृद्धि हो रही है।
3. अपराधों में वृद्धि आज नगरों में अपराधों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। चोरी, डकैती, हत्या, जुआखोरी, शराबखोरी, बलात्कार, धोखाधड़ी आदि का कारण तेजी से बढ़ती हुई नगरीय जनसंख्या ही है।
4. आवास की कमी जितनी तेजी से नगरों की जनसंख्या बढ़ रही है, उतनी तेजी से आवासों का निर्माण नहीं हो पा रहा है; अतः नगरों में आवासों की भारी कमी हो गई है।
नगरों में बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण परिवहन एवं आवास की समस्याएँ जटिल रूप धारण करती जा रही हैं। इसी के कारण नगरों में अपराधों की संख्या में भी वृद्धि होती है। अतः नगरों में परिवहन एवं आवास समस्याओं को दूर करने के लिए नगर मास्टर प्लान बनाया जाना चाहिए, साथ ही भूमि उपयोग नियोजन और भूमि क्रय-विक्रय नीति बनाई जानी चाहिए। अपराधों को रोकने के लिए सुरक्षा और जनशिक्षा का प्रसार महत्त्वपूर्ण उपाय होगा।
5. औद्योगीकरण नमरों का विकास हो जाने के कारण औद्योगीकरण की प्रक्रिया में तीव्रती आई है। प्राचीन उद्योग-धन्धे समाप्त हो गए हैं। नवीन उद्योग-धन्धों के विकास के कारण भारत में सामाजिक संगठन में परिवर्तन हुए हैं। पूँजीपति एवं श्रमिक वर्ग के बीच संघर्ष बढ़ गए हैं। स्त्रियों की आत्मनिर्भरता में वृद्धि हुई है। व्यक्ति एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवास करने लगे हैं। कारखानों की स्थापना से गन्दी बस्तियों की समस्याओं एवं हड़तालों आदि के कारण जीवन में अनिश्चितता आ गई है।
6. द्वितीयक समूहों की प्रधानता नगरीकरण के कारण भारत में परिवार, पड़ोस आदि जैसे प्राथमिक समूह प्रभावहीन होते जा रहे हैं। वहाँ पर समितियों, संस्थाओं एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों के द्वारा
ही सामाजिक सम्बन्धों की स्थापना की जा सकती है। इस प्रकार के सम्बन्धों में अवैयक्तिकता की भावना पायी जाती है।
7. वर्गीय व्यवस्था का उदय नगरीकरण के प्रभाव से समाज में वर्गों का संगठन विभिन्न आधारों पर हो रहा है। एक वर्ग के व्यक्ति केवल अपने ही वर्ग के सदस्यों के साथ सम्बन्धों की स्थापना करते हैं। और उन्हीं का हित चाहते हैं। ये वर्ग प्रायः व्यवसायों के आधार पर बन गए हैं। इसीलिए आज अध्यापक वर्ग, श्रमिक वर्ग, लिपिक वर्ग, कर्मचारी वर्ग, अधिकारी वर्ग आदि के नाम सुने जाते हैं। इन वर्गों ने समाज को विभिन्न टुकड़ों में विभाजित कर दिया है।
वर्गीय व्यवस्था में परस्पर सामाजिक एकता की भावना के विकास हेतु सामूहिक प्रयास किए जाने चाहिए। गन्दी बस्तियों की समस्याओं हेतु नगरों से पर्याप्त दूरी पर निर्बल वर्गीय आवासों का प्रबन्धन सरकारी स्तर पर किया जाना उपयुक्त होगा। इससे वर्गीय असन्तोष एवं समस्याओं को दूर किया जा सकता है।
8. अनौपचारिक सामाजिक नियन्त्रण का अभाव नगरीकरण के कारण व्यक्तिवादी भावना का जन्म हुआ है। इस भावना के परिणामस्वरूप प्राचीन सामाजिक रीति-रिवाज प्रभावहीन हो गए हैं। प्राचीन समय में लोग समाज के नीति-रिवाज, पारिवारिक प्रथाओं तथा परम्पराओं के अनुसार काम करते थे, परन्तु नगरीकरण द्वारा उत्पन्न वैयक्तिक भावना के कारण सामाजिक नियन्त्रण के अनौपचारिक साधन (जैसे–परिवार, प्रथाएँ, परम्पराएँ, रूढ़ियाँ, धर्म इत्यादि) प्रभावहीन हो गए हैं; अतः इन साधनों को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए।
9. अवैयक्तिक सम्बन्धों की अधिकता नगरीकरण के कारण नगरों में जनसंख्या की तीव्र वृद्धि हुई है। जनसंख्या की इस वृद्धि के कारण लोगों में व्यक्तिगत सम्बन्धों में कमी आ गई है। इसी आधार पर आर० एन० मोरिस ने लिखा है-“जैसे-जैसे नगर विस्तृत होते जाते हैं, वैसे-वैसे इस बात की सम्भावना भी कम हो जाती है कि दो व्यक्ति एक-दूसरे को जानेंगे। नगरों में सामाजिक सम्पर्क अवैयक्तिक, क्षणिक, अनावश्यक तथा खण्डात्मक होता है। अत: नगरों में जनसंख्या वृद्धि को नियन्त्रित करने हेतु विकास पर पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए।
10. भौतिकवादी विचारधारा का विकास नगरीकरण का विकास नागरिकों के दृष्टिकोण में भारी परिवर्तन लाया है। अभी तक भारत में अध्यात्मवाद की भावना पर बल दिया जाता था, परन्तु नगरों का विकास हो जाने से लोगों में भौतिकवाद की भावना का जन्म हुआ है। इस भौतिकवाद के कारण व्यक्ति का दृष्टिकोण उपयोगितावादी बन गया है। वह प्रत्येक वस्तु अथवा विचारधारा को उसी समय ग्रहण करता है जबकि वह उसके लिए भौतिक दृष्टि से उपयोगी हो या उसकी आर्थिक स्थिति में वृद्धि करती हो। इस भौतिकवादी दृष्टिकोण के कारण भारत में वैयक्तिक सम्बन्धों का अभाव पाया जाता है।
11. पारम्परिक सामाजिक मूल्यों की प्रभावहीनता नगरीकरण के कारण व्यक्तिवादी विचारधारा का विकास हुआ है। इस विचारधारा के कारण प्राचीन सामाजिक मूल्यों का ह्रास होने लगा है। प्राचीन समय में बड़े-बुजुर्गों का आदर, तीर्थ-स्थानों की पवित्रता, धर्म के प्रति आस्था, ब्राह्मण, गाय व गंगा नदी के प्रति श्रद्धा की मान्यता थी, परिवार की सामाजिक स्थिति का ध्यान रखा जाता था। परन्तु नगरीकरण का विकास हो जाने से प्राचीन सामाजिक मूल्य प्रभावहीन हो गए हैं। उनका स्थान भौतिकवाद तथा व्यक्तिवाद ने ले लिया है। अत: लोगों में नैतिक शिक्षा और मूल्यों के विकास पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
नगरीकरण से उत्पन्न उपर्युक्त समस्याओं और उनके समाधान की विवेचना से स्पष्ट है कि जब तक नगर और ग्राम दोनों के विकास पर समान स्तर पर ध्यान नहीं दिया जाएगा तब तक इनमें उत्पन्न समस्याओं का समाधान कठिन है। वर्तमान समय में ग्रामों में विकास के प्रति उदासीनता के कारण ग्रामीण जनसंख्या नगरों की ओर पलायन कर रही है जिससे नगरों में जनसंख्या दबाव के कारण और ग्रामों से जनसंख्या प्रवास के कारण सामाजिक व आर्थिक अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। इसलिए नगरीय समस्याओं को रोकने के लिए ग्रामों का विकास सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण समाधान है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप में जनसंख्या के असमान वितरण के लिए उत्तरदायी दो कारकों की समीक्षा कीजिए।
उत्तर
ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप सबसे विरल आबाद महाद्वीप है, जहाँ जनसंख्या का औसत घनत्व 2 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से भी कम है। किन्तु इस महाद्वीप पर जनसंख्या का वितरण बहुत विषम है। दक्षिण-पूर्वी तथा दक्षिण-पूर्वी समुद्रतटीय भागों में जनसंख्या का घनत्व 100 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है, जब कि पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के मरुस्थलीय भागों में औसत जनघनत्व 1 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से भी कम है। इस विषम वितरण के अग्रलिखित कारण हैं –
- महाद्वीप के विशाल क्षेत्र पर मरुस्थल का विस्तार है, जहाँ कठोर जलवायु के कारण आबादी का घनत्व बहुत कम है।
- पूर्वी तथा दक्षिणी समुद्रतटीय भागों में पर्याप्त वर्षा, नदियों द्वारा जल की उपलब्धता, निचली पहाड़ियों के कारण मनोरम जलवायु, यातायात आदि सुविधाएँ प्राप्त होने के कारण घनी आबादी मिलती है।
प्रश्न 2
विश्व में अधिक जनसंख्या घनत्व वाले तीन क्षेत्रों का सकारण विवरण दीजिए। [2010]
उत्तर
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 3 के अन्तर्गत (क) सघन बसे हुए क्षेत्र शीर्षक देखें।
प्रश्न 3
नगरीकरण वृद्धि के दो प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए। (2008, 15)
उत्तर
नगरीकरण वृद्धि के दो प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।
- ग्रामीण जनसंख्या का प्रवास वर्तमान समय में ग्रामीण जनसंख्या नगरों की ओर तेजी से प्रवास कर रही है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन के लिए पर्याप्त आवश्यक सुविधाओं का अभाव है।
- असन्तुलित विकास ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक विकास के असन्तुलन के कारण ग्रामीण क्षेत्र के लोग जीवनयापन के लिए रोजगार और अन्य आधारभूत सेवाओं के लिए नगरों में चले जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के लिए उपलब्ध कृषि विकास पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है। कुटीर और लघु उद्योगों का भी ग्रामों में विकास नहीं किया गया है। इसलिए इस असन्तुलित
आर्थिक विकास के कारण नगरीकरण में वृद्धि होती रहती है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
जनसंख्या घनत्व से क्या तात्पर्य है? [2009, 10]
उत्तर
जनसंख्या के घनत्व का आशय किसी क्षेत्र में निवास करने वाली जनसंख्या की सघनता से है। जनसंख्या के घनत्व को प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर निवास करने वाले व्यक्तियों की संख्या के रूप में मापा जाता है।
प्रश्न 2
पृथ्वीतल पर सभी आर्थिक व्यवसाय किसके द्वारा सम्पन्न होते हैं?
उत्तर
पृथ्वीतल पर सभी आर्थिक व्यवसाय मानव द्वारा सम्पन्न होते हैं।
प्रश्न 3
भूमध्यसागरीय भागों में मानव-बस्तियों के विकास के क्या कारण हैं?
उत्तर
भूमध्यसागरीय भागों में उसके चारों ओर मानव-बस्तियों के विकास के कारण हैं- मछलियों की प्राप्ति, सम जलवायु, समतल मैदानी भूमि जिसमें कृषि, परिवहन एवं मानव के आवासों का तीव्र गति से विकास हुआ है।
प्रश्न 4
वर्ष 2011 के अनुसार पृथ्वीतल पर कितनी जनसंख्या है?
उत्तर
वर्ष 2011 के अनुसार पृथ्वीतल पर 6.90 अरब जनसंख्या है।
प्रश्न 5
पृथ्वी पर जनसंख्या वितरण की सबसे बड़ी विशेषता क्या है?
उत्तर
पृथ्वी पर जनसंख्या क्तिरण की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि भूतल पर मनुष्यों का निवास असमान है।
प्रश्न 6
लिंगानुपात से क्या तात्पर्य है? [2009, 12, 15]
या
लिंग-अनुपात की व्याख्या कीजिए। [2013, 14]
उत्तर
लिंगानुपात या स्त्री-पुरुष अनुपात से अभिप्राय प्रति हजार पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या से है।
प्रश्न 7
विश्व में जनसंख्या के किन चार समूहों का संकेन्द्रण हुआ है?
उत्तर
विश्व में जनसंख्या के जिनं चार समूहों का संकेन्द्रण हुआ है, वे हैं-
- चीन वं जापान
- भारत एवं बांग्लादेश
- यूरोपीय देश एवं
- पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका।
प्रश्न 8
भारत में 2011 ई० की जनगणना के आधार पर जनसंख्या घनत्व क्या था?
उत्तर
2011 ई० की जनगणना के आधार पर भारत में जनसंख्या का घनत्व 382 प्रति वर्ग किमी था।
प्रश्न 9
दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप में जनसंख्या का घनत्व क्यों कम है?
उत्तर
असमतल धरातल, विषम जलवायु, सघन वन, शुष्क मरुस्थल तथा अनुपजाऊ भूमि के कारण, दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप में जनसंख्या घनत्व कम (16 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी) है।
प्रश्न 10
अफ्रीका महाद्वीप के वे प्रमुख क्षेत्र बताइए जहाँ जनसंख्या का घनत्व मात्र 2 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है।
उत्तर
अफ्रीका महाद्वीप के वे क्षेत्र जहाँ जनसंख्या का घनत्व मात्र 2 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है, इस प्रकार हैं-सहारा का मरुस्थल, कालाहारी मरुस्थल तथा अबीसीनिया का पठार।
प्रश्न 11
किस जनसमूह को ‘कृषि सभ्यता या ‘चावल सभ्यता के नाम से पुकारा जाता है?
उत्तर
पूर्वी एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया के मानव समूह को ‘कृषि सभ्यता’ या ‘चावल सभ्यता’ के नाम से पुकारा जाता है, क्योंकि यहाँ का मुख्य धन्धा कृषि एवं प्रमुख फसल चावल है।
प्रश्न 12
विश्व के किस महाद्वीप में सबसे कम जनसंख्या निवास करती है?
उत्तर
ऑस्ट्रेलिया विश्व में सबसे कम जनसंख्या रखने वाला महाद्वीप है। यहाँ विश्व की केवल 0.7% जनसंख्या निवास करती है तथा यहाँ जनसंख्या का घनत्व भी 2 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है।
प्रश्न 13
उत्तर-पश्चिमी यूरोप को जनसंख्या की धुरी की संज्ञा क्यों दी जाती है?
उत्तर
यूरोप के उत्तर-पश्चिमी देश बहुत सघन बसे हुए हैं, इसी कारण इस क्षेत्र को जनसंख्या की धुरी की संज्ञा दी जाती है।
प्रश्न 14
एशिया का ‘मृत हृदय से क्या तात्पर्य है?
उत्तर
एशिया के मध्यवर्ती पर्वतीय तथा पठारी क्षेत्र लगभग जन-शून्य हैं। इन क्षेत्रों को एशिया का ‘मृत हृदय’ कहा जाता है।
प्रश्न 15
जनसंख्या के कृषि घनत्व से आप क्या समझते हैं? [2007, 12, 15]
उत्तर
कृषि के अन्तर्गत क्षेत्रफल एवं कृषक जनता के अनुपात को कृषि घनत्व कहते हैं।
प्रश्न 16
अंकगणितीय घनत्व से आप क्या समझते हैं? या जनसंख्या के गणितीय घनत्व की व्याख्या कीजिए। [2010]
उत्तर
किसी प्रदेश के क्षेत्रफल तथा वहाँ निवास करने वाली जनसंख्या का अनुपात गणितीय घनत्व कहलाता है। जनसंख्या में क्षेत्रफल से भाग देने पर प्रति वर्ग किलोमीटर घनत्व प्राप्त हो जाता है।
प्रश्न 17
विश्व के किन्हीं दो जन संकुल क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए। [2011]
उत्तर
- चीन व जापान तथा
- भारत एवं बांग्लादेश।
प्रश्न 18
जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना की विवेचना कीजिए। [2009]
उत्तर
कुल जनसंख्या में कार्यशील जनसंख्या जो विभिन्न प्रकार के व्यवसायों में संलग्न है; व्यावसायिक जनसंख्या की संरचना करती है। इस जनसंख्या को उच्च मानव संसाधन माना जाता है। देश के आर्थिक विकास एवं सामाजिक और परिवार के विकास में इसका महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1
विश्व के तटीय भागों तथा सीमा-पेटियों में निवास करने वाली जनसंख्या है –
(क) 28 प्रतिशत
(ख) 75 प्रतिशत
(ग) 57 प्रतिशत
(घ) 70 प्रतिशत
उत्तर
(ख) 75 प्रतिशत।
प्रश्न 2
निम्नलिखित में से कौन-सा देश निम्नजन्मदर एवं निम्न मृत्युदर से सम्बन्धित है?
(क) डेनमार्क
(ख) बेल्जियम
(ग) ब्रिटेन
(घ) इटली
उत्तर
(क) डेनमार्क।
प्रश्न 3
निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में जनसंख्या सर्वाधिक पाई जाती है?
(क) पूर्वी एशिया
(ख) दक्षिणी-पूर्वी एशिया
(ग) पश्चिमी यूरोप व उत्तरी पूर्वी
(घ) संयुक्त राज्य अमेरिका
उत्तर
(ख) दक्षिणी-पूर्वी एशिया।
प्रश्न 4.
वह महाद्वीप जिसका क्षेत्रफल विश्व का 16% है और जनसंख्या निवास केवल 8% है, वह है –
(क) एशिया महाद्वीप
(ख) अफ्रीका महाद्वीप
(ग) उत्तरी अमेरिका महाद्वीप
(घ) दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप
उत्तर
(ग) उत्तरी अमेरिका महाद्वीप।
प्रश्न 5
विकासशील देशों में जनाधिक्य होने का मुख्य कारण है –
(क) उच्च मृत्यु-दर
(ख) निम्न मृत्यु-दर
(ग) उच्च जन्म-दर
(घ) जन्म-दर की अपेक्षा कम मृत्यु-दर
उत्तर
(घ) जन्म-दर की अपेक्षा कम मृत्यु-दर।
प्रश्न 6
निम्नांकित में किसमें जनसंख्या का घनत्व सर्वाधिक पाया जाता है?
(क) भूमध्यरेखीय प्रदेश
(ख) उष्ण मानसूनी प्रदेश
(ग) चीन तुल्य प्रदेश
(घ) स्टेपी तुल्य प्रदेश
उत्तर
(ग) चीन तुल्य प्रदेश।
प्रश्न 7
निम्नांकित में किस राज्य में लिंग-अनुपात न्यूनतम है? [2007]
(क) छत्तीसगढ़
(ख) ओडिशा
(ग) हरियाणा
(घ) गुजरात
उत्तर
(ग) हरियाणा।
प्रश्न 8
निम्नलिखित देशों में से किस देश की जनसंख्या सर्वाधिक है ? [2010, 11, 12]
(क) भारत
(ख) चीन
(ग) रूस
(घ) संयुक्त राज्य अमेरिका
उत्तर
(ख) चीन।
प्रश्न 9
जैनसंख्यों के अधिक घनत्व के सम्बन्ध में निम्नलिखित में कौन सही है ? [2009]