UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 1 Map Projections (मानचित्र प्रक्षेप)

By | May 29, 2022

UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 1 Map Projections (मानचित्र प्रक्षेप)

UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 1 Map Projections (मानचित्र प्रक्षेप)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
प्रक्षेप से क्या अभिप्राय है? प्रक्षेप की विशेषताएँ बताइए तथा इनका वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर

मानचित्र प्रक्षेप का अर्थ एवं परिभाषा
Meaning and Definition of Map Projection

मानचित्रों के अध्ययन के बिना भौगोलिक ज्ञान अधूरा तथा अस्पष्ट रहता है। मानचित्रों की रचना समतले कागज पर की जाती है। प्रत्येक मानचित्र पृथ्वी के गोलाकार भाग अथवा उसके किसी अल्प भाग का प्रदर्शन करता है। अतः पृथ्वी के इसी गोलाकार भाग के प्रदर्शन के लिए प्रक्षेप की सहायता लेनी पड़ती है। प्रक्षेप की सहायता से ग्लोब के अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं के क्रम को एक समतल कागज पर भिन्न-भिन्न रूपों में परिवर्तित कर दिया जाता है तथा मानचित्र तैयार कर लिया जाता है। प्रक्षेप’ का शाब्दिक अर्थ है, प्रक्षेपित करना जो ग्लोब की आकृति को अक्षांश, देशान्तर जैसी काल्पनिक रेखाओं का जाल बनाकर तैयार किया जाता है। पृथ्वी की गोलाकार आकृति को समतल कागज पर विशेष विधियों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इस प्रकार ग्लोब को प्रक्षेपित करने की क्रिया प्रक्षेप कहलाती है। प्रक्षेप को निम्नवत् परिभाषित किया जा सकता है –

“प्रक्षेप ग्लोब की अक्षांश तथा देशान्तर रेखाओं को एक समतल पत्रक पर चित्रित करने का एक साधन मात्र है।”
“अक्षांश तथा देशान्तर रेखाओं के क्रमबद्ध जाल को प्रक्षेप कहते हैं।”
“ग्लोब की अक्षांश तथा देशान्तर रेखाओं के जाल पर प्रकाश डालकर प्राप्त की गयी छाया को प्रक्षेप कहते हैं।”
“पृथ्वी के पूर्ण या किसी भाग को अक्षांश तथा देशान्तर काल्पनिक रेखाओं की सहायता से प्रसारित प्रक्रिया को प्रक्षेप कहते हैं।”
उपर्युक्त परिभाषाओं के अध्ययन से प्रक्षेप की एक उचित एवं स्पष्ट परिभाषा निम्नवत् दी जा सकती है –
“सम्पूर्ण पृथ्वी अथवा उसके किसी भाग के नियमित रूप से किसी समतले कागज पर निश्चित मापक के अनुसार खींचे गये अक्षांशीय एवं देशान्तरीय रेखाजोल को, जिसमें स्थित प्रत्येक बिन्दु अथवा स्थान अपनी धरातलीय स्थिति के अनुरूप हो, ‘मानचित्र प्रक्षेप’ कहलाता है।”

प्रक्षेप को सर्वोत्तम उदाहरण सिनेमा में चलने वाली फिल्म का दिया जा सकता है। जिस प्रकार प्रोजेक्टर की सहायता से फिल्म की रील पर प्रकाश की किरणें डालने से उसके सामने परदे पर जो चित्र उभरता है, वह पिक्चर कहलाती है। ठीक इसी भाँति यदि किसी पारदर्शक गोले अथवा ग्लोब के भीतर एक प्रकाश का साधन रखें अथवा सामने से प्रकाश की किरणें इस ग्लोब से गुजारें तो गोले अथवा ग्लोब पर बने चिह्नों (अक्षांशों एवं देशान्तरों) के प्रतिबिम्ब कागज पर स्पष्ट दिखाई देते हैं। इस प्रक्षेपण को ही प्रक्षेप कहा जाता है।
इस प्रकार प्रक्षेपों का निर्माण प्रकाश की छाया तथा गणित, दोनों ही आधार पर किया जाता है। इसके साथ ही मानचित्रकार को अपने उद्देश्यानुसार उचित प्रक्षेप का चुनाव करना पड़ता है।

मानचित्र प्रक्षेप की प्रमुख विशेषताएँ
Characteristics of Map Projection

  1. मानचित्र प्रक्षेपों में अक्षांश रेखाएँ विषुवत् रेखा के समानान्तर, सम दूरी पर खींची गयी काल्पनिक सरल रेखाएँ होती हैं।
  2. मानचित्र प्रक्षेपों में देशान्तर रेखाएँ अर्द्धवृत्तीय, सम लम्बाई तथा समान अन्तर पर खींची गयी काल्पनिक अर्द्धवृत्तीय रेखाएँ होती हैं।
  3. प्रक्षेपों के निर्माण में अक्षांश एवं देशान्तर रेखाएँ एक-दूसरे को समकोण पर काटती हैं।

मानचित्र प्रक्षेप से सम्बन्धित कुछ अन्य आवश्यक बातें
Some Other Statements Related to Map Projection

(1) जाल (Graticule) – अक्षांश तथा देशान्तर रेखाओं के समूह को जाल कहते हैं।
(2) कटिबन्ध (Zone) – दो अक्षांश रेखाओं के मध्य के भाग या दूरी को कटिबन्ध या पेटी के नाम से पुकारते हैं।
(3) प्रक्षेप का मापक (Scale of Projection) – पृथ्वी का अर्द्धव्यास 3,960 मील अथवा 25,09,05,600 इंच है, परन्तु प्रक्षेप की गणना करने के लिए अधिक गणितीय क्रियाओं से बचने के लिए इसे पूर्णांक संख्या 25,00,00,000 इंच अथवा 62,00,000 सेमी मान लेते हैं। निम्नलिखित सूत्र की सहायता से पृथ्वी के घटे अथवा बढ़े हुए गोले का अर्द्धव्यास (त्रिज्या) निकाल लेते हैं –
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(4) प्रक्षेप का विस्तार – जब प्रक्षेप की रचना की जाती है तो उसका पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण विस्तार करना होता है। इसे अक्षांशों एवं देशान्तरों की सहायता से प्रकट किया जाता है।

उत्तम प्रक्षेप के लक्षण 

  1. प्रक्षेप की रचना सरल हो।
  2. प्रक्षेप की दिशा शुद्ध रहे।
  3. प्रक्षेप का मापक शुद्ध रहे।
  4. प्रक्षेप की आकृति शुद्ध हो, उसमें बिगाड़ न आये।
  5. प्रक्षेप में क्षेत्रफल की शुद्धता रहे।

प्रक्षेपों का वर्गीकरण
Classification of Projections

मानचित्रों के गहन अध्ययन से ज्ञात होता है कि सभी मानचित्रों में अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं का जाल (प्रक्षेप) एंक-समान नहीं है। इसका प्रमुख कारण मानचित्र का उद्देश्य, प्रदर्शित क्षेत्र का आधार तथा उसकी स्थिति से होता है। साधारणतया प्रक्षेपों के वर्गीकरण के निम्नलिखित आधार हैं –
(1) प्रकंशि की दृष्टि से प्रक्षेपों का वर्गीकरण – प्रकाश की दृष्टि से प्रक्षेपों के निम्नलिखित दो भेद किये जा सकते हैं

  1. सन्दर्श प्रक्षेप (Perspective Projection) – इन प्रक्षेपों का निर्माण शीशे के ग्लोब के भीतर प्रकाश की सहायता से विस्तारशील धरातल पर किया जाता है।
  2. असन्दर्श प्रक्षेप (Non-perspective Projection) – इन प्रक्षेपों की रचना शुद्ध गणितीय आधार पर की जाती है।

(2) रचना-विधि के आधार पर वर्गीकरण – रचना-विधि के अन्तर्गत प्रक्षेपों का दूसरा वर्गीकरण उस तल के आधार पर किया जा सकता है, जिस पर प्रक्षेप बनाना होता है। रचना-प्रक्रिया के अनुसार इन्हें निम्नलिखित भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है –

  1. शिरोबिन्दु प्रक्षेप (Zenithal Projection) – इने प्रक्षेपों में स्पर्श रेखा तल पर खींची जाती है।
  2. शंक्वाकार प्रक्षेप (Conical Projection)-इस प्रकार के प्रक्षेपों का निर्माण शंकु के धरातल पर खींची गयी स्पर्श रेखा द्वारा किया जाता है।
  3.  बेलनाकार प्रक्षेप (Cylindrical Projection) – इन प्रक्षेपों में स्पर्श रेखा बेलन के धरातल पर खींची जाती है।
  4. परम्परागत प्रक्षेप (Conventional Projection) – इन प्रक्षेपों की रचना गणितीय आधार पर की जाती है।

(3) उद्देश्य के आधार पर प्रक्षेपों का वर्गीकरण – उद्देश्य के आधार पर प्रक्षेपों को निम्नलिखित भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है
(i) शुद्ध क्षेत्रफल प्रक्षेप (Equal Area Projection) – इन प्रक्षेपों में क्षेत्रफल सदैव शुद्ध रहता है। क्षेत्रफल लम्बाई को चौड़ाई से गुणनफल कर प्राप्त किया जा सकता है। अत: अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं का जाल इस प्रकार बनाया जाता है कि मानचित्र पर बनाये गये भाग का क्षेत्रफल ग्लोब के अनुरूप रहता है। विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन तथा वितरण को दर्शाने के लिए शुद्ध क्षेत्रफल प्रक्षेप उपयुक्त रहते हैं।

(ii) शुद्ध-आकृति प्रक्षेप (True-Shape Projection) – वास्तव में कोई भी प्रक्षेप एक बड़े क्षेत्र में शुद्ध आकार वाला नहीं हो सकता। शुद्ध-आकृति प्रक्षेप केवल एक आदर्श संकल्पना मात्र है। इसका प्रमुख कारण यह है कि गोलाकार पृथ्वी को समतल कागज पर प्रदर्शित नहीं किया जा सकता है। इसी कारण शुद्ध-आकृति एक छोटे क्षेत्र के लिए ही सम्भव हो सकती है। शुद्ध-आकृति प्रक्षेप की रचना के लिए अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं की लम्बाई का अनुपात मानचित्र पर वही होना चाहिए जो कि ग्लोब में दिया गया है। जलधाराओं की प्रवाह दिशा, वायुमार्गों, जलमार्गों तथा पवन की प्रवाह दिशा दर्शाने के लिए शुद्ध आकृति प्रक्षेपों का प्रयोग किया जाता है।

(iii) शुद्ध दिशा प्रक्षेप (True Bearing Projection) – शुद्ध दिशा प्रक्षेप में दिशाओं का क्रम ग्लोब की भाँति होता है। मानचित्र में यह आवश्यक होना चाहिए कि मानचित्र के सभी बिन्दुओं पर दिशा का सामंजस्य हो, परन्तु सरल रेखाओं के माध्यम से सभी दिशाओं को शुद्ध प्रदर्शित करना असम्भव-सा है। शुद्ध दिशा प्रक्षेप से अभिप्राय यह है कि प्रक्षेप के केन्द्रबिन्दु से सभी दिशाएँ शुद्ध हों। ये प्रक्षेप नौका-चालन एवं जलयान-चालन के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं।

प्रश्न 2
एक प्रामाणिक (प्रधान) अक्षांश शंक्वाकार प्रक्षेप के लक्षण, गुण, दोष एवं उपयोगिता को सोदाहरण बताइए।
उत्तर
शंक्वाकार प्रक्षेप में यह कल्पना की जाती है कि शंकु (Cone) ग्लोब के ऊपर रख दिया गया है। शंकु को ग्लोब पर इस प्रकार रखा जाता है कि उसका शीर्ष ग्लोब की धुरी की सीध में हो। ऐसी दशा में शंकु ग्लोब को किसी एक अक्षांश रेखा पर स्पर्श करेगा। इस स्पर्श की गयी अक्षांश रेखा को प्रधान अक्षांश रेखा या मानक अक्षांश रेखा या प्रामाणिक अक्षांश रेखा (Standard Parallel) कहा जाता है। अन्य अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं को शंक्वाकार कागज के भीतरी तल पर प्रकाश की किरणों द्वारा स्थानान्तरित कर लिया जाता है तथा शंकु को फैलाकर शंक्वाकार प्रक्षेप प्राप्त कर लिया जाता है। शंक्वाकार प्रक्षेप में प्रामाणिक अक्षांश ही एक ऐसा आदर्श वृत्त है जो कि प्रक्षेप पर शुद्ध रूप से प्रकट किया जाता है। इस प्रकार यह प्रक्षेप एक प्रतिबिम्बित प्रक्षेप है।

एक प्रामाणिक अक्षांश शंक्वाकार प्रक्षेप के लक्षण एवं गुण -एक प्रामाणिक अक्षांश शंक्वाकार प्रक्षेप में निम्नलिखित लक्षण पाये जाते हैं-

  1. शंक्वाकार प्रक्षेप की रचना अत्यन्त सरल होती है।
  2. यह एक संशोधित अनुदृष्टि प्रक्षेप है।
  3. अक्षांश रेखाएँ एक केन्द्रीय वृत्तखण्ड होती हैं।
  4. अक्षांश रेखाओं के बीच की दूरी समान होती है।
  5. देशान्तर रेखाएँ सरल एवं सीधी रेखाएँ होती हैं जो ध्रुवों पर आपस में मिल जाती हैं।
  6. देशान्तर रेखाओं में विषुवत् रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर दूरी कम होती जाती है।
  7. देशान्तर रेखाओं के मध्य की पारस्परिक दूरी अक्षांश-विशेष पर बराबर होती है।
  8. प्रामाणिक अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं पर मापक शुद्ध होता है।
  9. प्रामाणिक अक्षांश एवं देशान्तर रेखाएँ एक-दूसरे को समकोण पर काटती हैं।
  10. प्रामाणिक अक्षांश एवं मध्यवर्ती देशान्तर पर ही सभी लक्षण शुद्ध रहते हैं। इनसे दूर जाने पर प्रदेश का विस्तार बढ़ने से उसमें दोष भी बढ़ते जाते हैं।
  11. ध्रुव अपनी वास्तविक स्थिति से उत्तर में दर्शाया जाता है।
  12. इस प्रक्षेप में कुछ सीमित क्षेत्र तक ही आकृति, दिशा एवं क्षेत्रफल तीनों ही शुद्ध रहते हैं; परन्तु दोष आने पर सीमित पैमाने पर वृद्धि होती है।
  13. इस प्रक्षेप की रचना टुकड़ों में बाँटकर भी की जा सकती है।
  14. मानचित्रावलियों एवं मानचित्रकारों के लिए यह प्रक्षेप अति उपयोगी होता है।
  15. इस प्रक्षेप द्वारा केवल एक ही गोलार्द्ध को प्रकट किया जा सकता है।

एक प्रामाणिक अक्षांश शंक्वाकार प्रक्षेप के दोष -एक प्रामाणिक अक्षांश शंक्वाकार प्रक्षेप में निम्नलिखित दोष भी पाये जाते हैं-

  1. यह प्रक्षेप न तो शुद्ध क्षेत्रफल है एवं न ही शुद्ध आकार।
  2. प्रामाणिक अक्षांश रेखा वाले भागों को छोड़कर आकृति शुद्ध नहीं रहती है।
  3. ध्रुव अपनी वास्तविक स्थिति से कुछ उत्तर अथवा दक्षिण की ओर दर्शाया जाता है।
  4. इस प्रक्षेप में केवल एक गोलार्द्ध को प्रकट किया जा सकता है, न कि सम्पूर्ण विश्व को।
  5. इस प्रक्षेप में क्षेत्रफल भी शुद्ध नहीं रहता है।

एक प्रामाणिक अक्षांश शंक्वाकार प्रक्षेप की उपयोगिता – यह प्रक्षेप ऐसे देशों के लिए अधिक उपयोगी है जो कि कम विस्तार रखते हैं अथवा प्रामाणिक अक्षांश के सहारे पूर्व-पश्चिम में अथवा मध्य देशान्तर के सहारे उत्तर-दक्षिण में अधिक विस्तार रखते हैं। उत्तर-दक्षिण में कम विस्तार वाले देशों; जैसे-डेनमार्क, पोलैण्ड तथा नीदरलैण्ड्स आदि देशों को प्रदर्शित करने के लिए यह प्रक्षेप उपयोगी है। यह प्रक्षेप जावा, क्यूबा जैसे छोटे द्वीपों तथा चिली जैसे देश के लिए भी उपयोगी है।

उदाहरण – एक प्रामाणिक अक्षांश साधारण शंक्वाकार प्रक्षेप की रचना कीजिए जिसकी प्र० भि० 1: 12,50,00,000 हो तथा प्रामाणिक अक्षांश 45° उत्तर, प्रक्षेपान्तर 15° तथा विस्तार 60° पूर्व से 60° पश्चिमी देशान्तर एवं 0° से 75° उत्तरी अक्षांश हो।
रचना-विधि-पृथ्वी के घटाये गये गोले का अर्द्धव्यास =
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कागज पर 5 सेमी की दूरी लेकर एक अ क ख अर्द्धवृत्त की रचना की। अ क लम्ब रेखा को ऊपर की ओर बढ़ाया। इस अर्द्धवृत्त पर 15° एवं 45° के कोण बनाकर 45° के कोण पर च छ स्पर्श रेखा खींची जो अ क रेखा को च बिन्दु पर काटती है। परकार में ख ग (15° कोण) के बराबर दूरी लेकर अ केन्द्र से एक चाप घुमाया। यह चाप अ छ रेखा को फ बिन्दु पर काटता है। अ ख के समानान्तर प फ रेखा खींची।
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अब कागज पर दूसरी ओर एक लम्बवत् सरल रेखा खींची। परकार में च छ के बराबर दूरी लेकर य केन्द्र से एक चाप घुमाया। यही प्रक्षेप की प्रामाणिक अक्षांश रेखा है। प्रामाणिक अक्षांश के दोनों ओर मध्य देशान्तर के सहारे ख ग की दूरी लेकर दोनों ओर चिह्न अंकित कर प्रत्येक बार य केन्द्र से चाप खींच दिये। ये सभी चाप अक्षांश रेखाओं को प्रकट करेंगे। देशान्तर रेखाओं की रचना करने के लिए प्रामाणिक अक्षांश पर अर्द्धवृत्त की प फ दूरी के बराबर दूरी लेकर उन्हें चिह्नित कर य केन्द्र की सहायता से एक केन्द्र से विकरित होने वाली रेखाएँ खींच दीं। तत्पश्चात् अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं को अंशांकित कर दिया।

प्रश्न 3
दो प्रामाणिक अक्षांश शंक्वाकार प्रक्षेप की विशेषताएँ एवं उपयोगिता बताते हुए निम्नलिखित विवरणों की सहायता से प्रक्षेप की रचना कीजिए –
(i) प्र० भि० 1; 12,50,00,000;
(ii) प्रामाणिक अक्षांश 30°एवं 60° उत्तरी अक्षांश;
(iii) प्रक्षेपान्तर 10°;
(iv) प्रक्षेप का विस्तार 0°से 80°उत्तरी अक्षांश तथा 70° पश्चिम
से 70° पूर्वी देशान्तर।
उत्तर

दो प्रामाणिक अक्षांश शंक्वाकार प्रक्षेप
Conical Projection with Two Standard Parallel

यह एक प्रामाणिक अक्षांश शंक्वाकार का संशोधित रूप है। इसमें शंकु को एक पारदर्शक ग्लोब के भीतर प्रवेश करता हुआ कल्पित किया जाता है। इस प्रक्षेप में कागज ग्लोब के दो स्थानों पर स्पर्श करता हुआ कल्पित किया गया है। यही दोनों स्थान प्रामाणिक अक्षांश माने जाते हैं। वास्तव में समतल कागज ग्लोब को एक ही स्थान पर स्पर्श करता है। दो स्थानों पर स्पर्श केवल एक कल्पनामात्र है।

साधारण शंक्वाकार प्रक्षेप में केवल एक प्रामाणिक अक्षांश होता है जिससे उत्तर-दक्षिण की दूरियाँ शुद्ध रूप में प्रदर्शित नहीं की जाती हैं। इस प्रक्षेप में प्रामाणिक अक्षांश एक के स्थान पर दो होती हैं। जिससे उत्तर-दक्षिण की दूरियाँ अधिक शुद्ध रूप में प्रदर्शित की जा सकती हैं। इन दोनों प्रामाणिक अक्षांशों के सहारे क्षेत्रफल शुद्ध रहता है। अतः इन प्रामाणिक अक्षांशों का चुनाव सावधानीपूर्वक करना चाहिए।

इस प्रक्षेप में एक के स्थान पर दो प्रामाणिक अक्षांशों के सहारे मापक शुद्ध रहता है। इसी कारण इनके मध्य में फैले मानचित्रों में अशुद्धता सीमित हो जाती है। यदि दोनों प्रामाणिक अक्षांश दूर हुए तो इनके मध्यवर्ती भाग विकृत हो जाएँगे। अत: स्टीयर्स के अनुसार यूरोप महाद्वीप का मानचित्र बनाते समय 35° एवं 70° अक्षांशों की अपेक्षा 40° एवं 60° अक्षांशों को प्रामाणिक अक्षांश मानना अधिक उपयुक्त रहेगा। इसी प्रकार पूर्व-पश्चिम दिशा में फैले मध्य अक्षांशीय देशों, प्रदेशों को उनके विस्तार के अनुसार उनके प्रामाणिक अक्षांश उन स्थानों के विस्तार के अनुसार निश्चित किये जा सकते हैं।

रचना-विधि-घटाये गये पृथ्वी के गोले का अर्द्धव्यास = \frac { 62,50,00,000 }{ 12,50,00,000 }  = 5 सेमी
सर्वप्रथम कागज के बायीं ओर 5 सेमी अर्द्धव्यास से वृत्त का एक-चौथाई भाग अ ब से बनाकर उसमें क्रमश: 10°, 30° एवं 60° के कोण खींचे। अब ब क की दूरी लेकर अ बिन्दु से एक चाप लगाया। इस चाप पर अ ब के समानान्तर च छ एवं र ठ रेखाएँ क्रमश: 30° एवं 60° के कोण पर खींची। अब एक लम्बवत् सरल रेखा खींचकर उस पर कोई बिन्दु क लेकर च छ के बराबर क क लम्ब डाला। क बिन्दु को 30°अक्षांश की स्थिति पर माना गया है। क से उत्तर की ओर 60° अक्षांश की स्थिति निश्चित करने के लिए वृत्त की ब क दूरी लेकर तीन चिह्न लेकर ख की स्थिति निश्चित कर दी। ख बिन्दु पर र ठ के बराबर ख ख’ लम्ब डाल दिया। अब क’ तथा ख’ बिन्दुओं को मिलाते हुए एक रेखा खींची जो क ख रेखा को उ बिन्दु पर काटती है। इस प्रकार समकोण त्रिभुज जैसी एक आकृति का निर्माण होता है।

अब प्रक्षेप के रेखाजोल का निर्माण करने के लिए कागज के दायीं ओर एक सरल रेखा खींची तथा ऊपरी भाग को उ बिन्दु मानकर समकोण त्रिभुज से उ क एवं उ ख की दूरी लेकर उ बिन्दु से चाप लगाये। ये दोनों चाप क्रमश: 30° एवं 60° प्रामाणिक अक्षांश को प्रकट करते हैं। अब 30° अक्षांश पर क या च छ तथा 60° अक्षांश पर र ठ या ख ख’ दूरी लेकर मध्यवर्ती रेखा के क ख बिन्दओं से दोनों ओर 7-7 चिह्न अंकित किये। दोनों अक्षांश रेखाओं पर अंकित बिन्दुओं को मिलाते हुए रेखाएँ खींची जो देशान्तर रेखाओं को प्रकट करेंगी। उसके बाद अब स वृत्त से ब क की दूरी लेकर किसी एक प्रामाणिक अक्षांश से 0° से 80° तक का अक्षांशीय विस्तार बनाने के लिए चिह्न लगाकर उ बिन्दु से चाप लगाये। रेखाजाल का निर्माण करने के लिए प्रक्षेप को विस्तार के अनुसार चित्र के अनुरूप अंशांकित कर दिया। इस प्रकार दो प्रामाणिक अक्षांश शंक्वाकार प्रक्षेप की रचना होगी।
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दो प्रामाणिक अक्षांश शंक्वाकार प्रक्षेप की विशेषताएँ
Characteristics of Conical Projection with Two Standard Parallel

  1. यह एक संशोधित सन्दर्श प्रक्षेप है। इस प्रक्षेप में शंकु को दो स्थानों पर स्पर्श करते हुए। कल्पित किया गया है जिससे कि एक स्थान पर दो प्रामाणिक अक्षांश बन सकें।
  2. सभी अक्षांश रेखाएँ चापाकार होती हैं तथा उनके बीच की दूरी समान होती हैं।
  3. देशान्तर रेखाओं में केन्द्रीय देशान्तर ही सीधी रेखा होती है; अत: केवल इसी देशान्तर को अक्षांश रेखाएँ समकोण पर काटती हैं। शेष सभी देशान्तर रेखाएँ चापाकार होने से अक्षांश वृत्तों को तिरछा काटती हैं। बाहरी भागों में तिरछापन बढ़ता जाता है।
  4. इस प्रक्षेप में किसी भी अक्षांश को स्पर्श रेखा मानकर प्रामाणिक अक्षांश माना जा सकता है।
  5. देशान्तर रेखाओं के वक्राकार होने का प्रमुख कारण यह है कि इस प्रक्षेप में प्रत्येक अक्षांश को समान महत्त्व दिया गया है। देशान्तरों के बीच की दूरी छोटे वृत्त पर लम्ब डालकर निश्चित की जाती है।
  6. इस प्रक्षेप में अक्षांश रेखाओं की लम्बाई ग्लोब की समानुपाती होती है। केन्द्रीय देशान्तर पर अक्षांशों के बीच का अन्तर भी शुद्ध रहता है। इसी कारण यह एक समक्षेत्रफल प्रक्षेप बन गया है।
  7. प्रामाणिक अक्षांशों के निकटवर्ती भागों का क्षेत्रफल एवं आकृति प्रायः शुद्ध रहती है। इसलिए इसे प्रक्षेप में मध्ये देशान्तर एवं प्रामाणिक अक्षांश निश्चित कर एक गोलार्द्ध के अधिकांश देशों को प्रदर्शित किया जा सकता है।
  8. इस प्रक्षेप पर आकृति एवं दिशा सभी स्थानों पर शुद्ध नहीं रहती है। केन्द्रीय भाग से दूर जाने पर विकृति में वृद्धि होती जाती है।
  9. बाह्य देशान्तरों पर मापनी में अशुद्धियाँ बढ़ती जाती हैं, जबकि सभी अक्षांशों पर मापक शुद्ध
    रहता है।

उपयोगिता – एक गोलार्द्ध के मानचित्र को प्रदर्शित करने के लिए यह एक उपयोगी प्रक्षेप है। यूरोप, उत्तरी अमेरिका तथा एशिया महाद्वीप के अधिकांश भागों को इस प्रक्षेप पर प्रकट किया जा सकती है। मानचित्रावलियों में भी विभिन्न देशों के मानचित्र इस प्रक्षेप पर बनाये जा सकते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप के मानचित्र के लिए यह एक बहुत-ही उपयोगी प्रक्षेप है। भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, सऊदी अरब, मिस्र आदि देशों के मानचित्र बनाने में इस प्रक्षेप का उपयोग अधिक किया जाता है। परन्तु रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका आदि देशों के लिए यह प्रक्षेप अधिक उपयोगी नहीं है। स्विट्जरलैण्ड, आयरलैण्ड, बेल्जियम, नीदरलैण्ड्स तथा स्वीडन आदि देशो में इस प्रक्षेप पर सर्वेक्षण मानचित्रों की रचना भी की गयी है।

प्रश्न 4
समक्षेत्रफल बेलनाकार प्रक्षेप की विशेषताएँ एवं उपयोगिता बताइए तथा निम्नलिखित विवरणों के आधार पर इसकी रचना-विधि समझाइए –
(i) प्र० भि० 1 : 37,50,00,000;
(ii) प्रक्षेपान्तर = 15°
उत्तर
समक्षेत्रफल बेलनाकार प्रक्षेप – जब कागज को ग्लोब की विषुवत रेखा पर स्पर्श कराते हुए लपेटा जाता है तो उससे बनने वाले बेलननुमा जाल को बेलनाकार प्रक्षेप अथवी आयताकार प्रक्षेप कहते हैं। इन प्रक्षेपों में विषुवत रेखा की लम्बाई शुद्ध रहती है। अन्य अक्षांशों की लम्बाई भी विषुवत् रेखा के बराबर कर दी जाती है। इसीलिए सभी बेलनाकार प्रक्षेपों में ध्रुव जो कि एक बिन्दुमात्र है, को भी विषुवत रेखा की लम्बाई के बराबर दर्शाया जाता है। इन प्रक्षेपों का मुख्य दोष यह है कि उच्च अक्षांशीय प्रदेशों के लिए इनका चुनाव अपवादस्वरूप ही होता है। इस प्रक्षेप में इन प्रदेशों को प्रदर्शित करने में विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।

बेलनाकार समक्षेत्रफल प्रक्षेप की रचना सर्वप्रथम 1772 ई० में लैम्बर्ट नामक मानचित्रकार ने की थी जिस कारण इसे लैम्बर्ट का समक्षेत्रफल बेलनाकार प्रक्षेप भी कहते हैं। इसमें देशान्तर रेखाएँ अन्य बेलनाकार प्रक्षेप की भाँति विषुवत् रेखा को समविभाजित कर खींची जाती हैं। समक्षेत्रफल बेलनाकार प्रक्षेप में जैसा कि उसके नाम से विदित होता है, इस प्रक्षेप पर क्षेत्रफल शुद्ध प्रदर्शित किया जाता है। यह प्रक्षेप ज्यामितीय दृष्टिकोण से सर्वश्रेष्ठ है। प्रक्षेप पर दो अक्षांश रेखाओं के मध्य का क्षेत्र ग्लोब की उन्हीं दो अक्षांश रेखाओं के क्षेत्रफल के बराबर होता है, क्योंकि पूरब-पश्चिम में जिस अनुपात में दूरी बढ़ायी जाती है, उत्तर-दक्षिण में उसी अनुपात में कम कर दी जाती है। अत: क्षेत्रफल शुद्ध रहता है, परन्तु ध्रुवों पर आकृति विकृत हो जाती है।

समक्षेत्रफल बेलनाकार प्रक्षेप की विशेषताएँ
Characteristics of Equal Area Cylindrical Projection

  1. यह एक सन्दर्श प्रक्षेप है। इसमें प्रकाश की स्थिति अनन्त पर मानी जाती है।
  2. इस प्रक्षेप में सभी अक्षांश रेखाओं की लम्बाई विषुवत् रेखा के बराबर होती है। अक्षांश रेखाएँ समानान्तर होती हैं तथा विषुवत् रेखा से उत्तर-दक्षिण की ओर जाने पर इसके बीच की दूरी कम होती है।
  3. सभी देशान्तर रेखाएँ विषुवत् रेखा से लम्बवत् खींची जाती हैं। इनकी पारस्परिक दूरी समान होती है।
  4. देशान्तर रेखाओं की लम्बाई घटाये गये गोले के ध्रुवीय व्यास के बराबर रखी जाती है। इन रेखाओं द्वारा सही उत्तर-दक्षिण दिशा प्रकट होती है।
  5. इस प्रक्षेप को इसकी विशेष आकृति के कारण पहचानना बहुत ही सरल है।
  6. ध्रुवों की ओर जाने पर होने वाले अक्षांशीय विस्तार को न्यूनतम करने के लिए उनके बीच की दूरी उसी अनुपात में घटा दी जाती है। इस प्रकार देशान्तर रेखाएँ अपनी वास्तविक लम्बाई से छोटी होती जाती हैं तथा प्रक्षेप मे समक्षेत्रफल का गुण आ जाता है।
  7. इस प्रक्षेप में ध्रुवों को, जो कि एक बिन्दुमात्र होते हैं, एक रेखा द्वारा प्रदर्शित किया जाता है; अत: इनके निकटवर्ती अक्षांश बहुत ही पास-पास आ जाते हैं।
  8. विषुवत रेखा से दूर जाने पर अशुद्धियाँ बढ़ने से आकृति अधिकाधिक बिगड़ती चली जाती है। आइसलैण्ड, नॉर्वे, अलास्का जैसे देश अपने आकार से कहीं अधिक लम्बे या चपटे दिखायी देते हैं।
  9. इस प्रक्षेप में विषवुत् रेखा को छोड़कर मापक कहीं भी शुद्ध नहीं रहता है।
  10. यह शुद्ध दिशा प्रक्षेप नहीं है। ध्रुवों की ओर जाने पर अशुद्धियाँ उत्तरोत्तर बढ़ती जाती हैं।

रचना-विधि-पृथ्वी के घटाये गये गोले का अर्द्धव्यास = \frac { 62,50,00,000 }{ 37,50,00,000 }  = \frac { 5 }{ 3 }  सेमी= 1.7 सेमी
विषुवत रेखा की लम्बाई = 2πr = \frac { 44 }{ 7 }  × \frac { 5 }{ 3 }  = 10.5 सेमी

एक ड्राइंगशीट लेकर उसके बायीं ओर 1.7 सेमी का अर्द्धव्यास लेकर ट केन्द्र से एक अर्द्धवृत्त क . ख ग की रचना की। इस अर्द्धवृत्त पर विषुवत्रेखीय एवं ध्रुवीय रेखाएँ खींची। अर्द्धवृत्त के केन्द्र ट से क ख ग के मध्य 15° के अन्तर से 12 कोणों की रचना की। ध्रुवीय व्यास के ख के समानान्तर ग को स्पर्श करते हुए च छ रेखा खींची। ट ग रेखा की सीध में ग बिन्दु से म बिन्दु तक एक 10.5 सेमी लम्बी रेखा खींची जो विषुवत् रेखा को प्रकट करेगी। अन्य अक्षांश रेखाओं की रचना के लिए विषुवत् रेखा के समानान्तर और बराबर रेखाएँ ट केन्द्र से खींचे गये कोणों से स्पर्श करती हुई खींची। अक्षांश रेखाओं के बीच की दूरी विषुवत् रेखा ग म से उत्तर-दक्षिण की ओर जाने पर घटती जाती है। देशान्तर रेखाओं की रचना के लिए विषुवत् रेखा ग म को 15° प्रक्षेपान्तर होने से 24 सम-भागों में विभाजित कर च छ के समानान्तर रेखाएँ खींची। चित्रानुसार प्रक्षेप के रेखाजाल को अंशांकित कर दिया। इस प्रकार च छ प फ के बीच का अंशांकित रेखाजाल ही बेलनाकार समक्षेत्रफल प्रक्षेप है।
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एक गोलार्द्ध को भी समक्षेत्रफल बेलनाकार प्रक्षेप द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है। उसकी रचना उपर्युक्तानुसार प्रदर्शित की जा सकती है।
उपयोगिता – समक्षेत्रफल बेलनाकार प्रक्षेप विश्व के वितरण मानचित्रों के लिए एक उपयोगी प्रक्षेप है। उष्ण एवं उपोष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों की उपजों को प्रदर्शित करने के लिए यह सर्वाधिक उपयोगी प्रक्षेप है। इस प्रक्षेप पर बने मानचित्रों में चाय, कहवा, कोको, गर्म-मसाले, केला, रबड़, ताड़, नारियल, चावल, मक्का आदि का वितरण तथा कभी-कभी खनिज तेल उत्पादन क्षेत्र भी प्रदर्शित किये। जा सकते हैं।

प्रश्न 5
त्रैज्य शिरोबिन्द ध्रुवीय प्रक्षेप की विशेषताएँ गुण, दोष एवं उपयोगिता बताइए तथा निम्नलिखित विवरण के आधार पर उत्तरी गोलार्द्ध के लिए एक उपयुक्त प्रक्षेप की रचना कीजिए –
(i) प्र० भि० 1: 20,00,00,000;
(ii) प्रक्षेपान्तर= 15°
उत्तर

त्रैज्य शिरोबिन्दु ध्रुवीय प्रक्षेप
Gnomonic Zenithal Projection Polar Case

यह एक सन्दर्श प्रक्षेप है जिसे केन्द्रीय शिरोबिन्दु प्रक्षेप भी कहा जाता है। इसमें प्रकाश पुंज की स्थिति ग्लोब के केन्द्र में मानी जाती है। कागज किसी एक ध्रुव को स्पर्श करता है। अतः ध्रुव को केन्द्र मानकर अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं की रचना की जाती है। अक्षांश रेखाएँ एक केन्द्र से प्रकाश की किरणों की स्थिति के अनुसार खींची जाने के कारण समकेन्द्रीय वृत्त होती हैं, जबकि देशान्तर रेखाएँ केन्द्र (ध्रुव) से बाहर की ओर विकिरत त्रिज्याकार सरल रेखाएँ होती हैं। इस प्रक्षेप में प्रकाश की किरणें ग्लोब पर समतल कागज को एक बिन्दु पर ही स्पर्श करती हैं। इसीलिए केन्द्र से बाहर की ओर जाने पर अक्षांशों के बीच का अन्तर तीव्रता से बढ़ने लगता है। इस प्रक्षेप पर विषुवत रेखा की स्थिति प्रदर्शित नहीं की जा सकती है, क्योंकि विषुवत्रेखीय प्रकाश रेखा की स्थिति ध्रुवीय प्रकाश रेखा से समकोण पर होती है।

रचना-विधि-घटाये गये ग्लोब का अर्द्धव्यास
\frac { 62,50,00,000 }{ 20,00,00,000 }  = \frac { 25 }{ 8 }  = 3.12 सेमी या 1.25 इंच

एक ड्राइंगशीट के बायीं ओर 3.12 सेमी या 1.25 इंच का अर्द्धव्यास लेकर वृत्त का एक-चौथाई भाग अ ब क की रचना की। इस पर क बिन्दु से अ ब के समानान्तर रेखा खींची। अ केन्द्र से 15° के अन्तराल पर 15 से 75° तक के कोण खींचकर उन्हें क च रेखा की ओर बढ़ा दिया। इस प्रक्रिया द्वारा ख ग घ एवं च बिन्दु प्राप्त होंगे।

अब ड्राइंगशीट के दायीं ओर एक-दूसरे को समकोण पर काटती हुई दो सरल रेखाएँ खींची जो कि ‘य बिन्दु पर मिलती हैं। अब वृत्त के बिन्दु क से सरल रेखा क ख, क ग, क घ एवं क च के बराबर दूरियों के अर्द्धव्यास लेकर य केन्द्र से चार वृत्तों की रचना की। ध्रुव की ओर से ये वृत्त क्रमश: 75, 60°, 45° एवं 30° उत्तरी अक्षांश रेखाएँ प्रकट करते हैं। य बिन्दु उत्तरी ध्रुव होगा। य बिन्दु से ही 15° के अन्तर पर चारों ओर सरल रेखाएँ खींच दीं। प्रश्नानुसार इस रेखाजाल को अंशांकित कर दिया। यह त्रैज्य शिरोबिन्दु ध्रुवीय प्रक्षेप की रचना होगी।
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त्रैज्य शिरोबिन्दु ध्रुवीय प्रक्षेप की विशेषताएँ
Characteristics of Gnomonic Polar Zenithal Projection

  1. यह एक सन्दर्श प्रक्षेप है जिसमें प्रकाश पुंज की स्थिति ग्लोब के मध्य में मानी गयी है।
  2. अक्षांश रेखाएँ समकेन्द्रीय वृत्त होती हैं।
  3. केन्द्र (ध्रुव) से दूर हटने पर अक्षांशों के मध्य की दूरी बढ़ती जाती है।
  4. देशान्तर रेखाएँ सरल रेखाओं द्वारा प्रदर्शित की जाती हैं। किरणे ध्रुव से बाहर की ओर विकिरित होती हैं।
  5. अक्षांश एवं देशान्तर रेखाएँ एक-दूसरे को समकोण पर काटती हैं।
  6. केन्द्र से सभी बिन्दुओं की दिशा शुद्ध रहती है।
  7. केन्द्र से दूर हटने पर अक्षांश एवं देशान्तर दोनों के सहारे मापंक में वृद्धि हो जाती है। अतः मापक के स्थान-स्थान पर परिवर्तन के कारण आकृति में विकृति आती जाती है।
  8. यह एक शुद्ध क्षेत्रफल प्रक्षेप नहीं है।
  9. ध्रुव एक बिन्दु द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

गुण

  • केन्द्र के सभी ओर दिशाएँ शुद्ध होती हैं।
  • केन्द्र अथवा ध्रुव पर मापक शुद्ध होता है।

अवगुण

  • इस प्रक्षेप पर प्रदर्शित क्षेत्रों की आकृति अशुद्ध होती है।
  • इस प्रक्षेप पर क्षेत्रफल अशुद्ध रहता है।
  • केन्द्र से बाहर की ओर मापक तेजी से बढ़ने लग जाता है।
  • इस प्रक्षेप पर विषुवत् रेखा को प्रदर्शित नहीं किया जा सकता।

उपयोगिता – यह प्रक्षेप केवल ध्रुवीय प्रदेशों के मानचित्रों के लिए अधिक उपयोगी है। इस पर अण्टार्कटिका महाद्वीप अथवा उत्तरी ध्रुवीय महासागर का मानचित्र बनाया जा सकता है। इसके बाहर की ओर जाने में इस प्रक्षेप में दोष बढ़ने लगते हैं।
इस प्रक्षेप पर बने मानचित्रों का उपयोग ध्रुवीय प्रदेशों के लिए होने लगा है। वृहत् वृत्त सरल रेखा प्रदर्शित हो जाने के कारण इस प्रक्षेप पर दो बिन्दुओं को जोड़ने वाली सरल रेखा पृथ्वी पर न्यूनतम दूरी वाली रेखा होगी।

प्रश्न 6
प्र० भि० 1: 20,00,00,000 पर उत्तरी गोलार्द्ध के लिए एक शिरोबिन्द गोलीय प्रक्षेप ध्रुवीय दशा की रचना कीजिए जिसमें प्रक्षेपान्तर 15° हो। इस प्रक्षेप की विशेषताएँ, गुण, अवगुण एवं उपयोगिता को भी बताइए।
उत्तर

शिरोबिन्दु गोलीय या समाकृति प्रक्षेप
Zenithal Stereographic Projection-Polar Case

यह भी एक सन्दर्श प्रक्षेप है। इस प्रक्षेप में प्रकाश की स्थिति ग्लोब के ध्रुव (केन्द्र) पर होती है। स्पर्श रेखा तल, विषुवत रेखा के किसी बिन्दु पर ग्लोब को छूती है। इस प्रक्षेप पर देशान्तर रेखाएँ सरल रेखाएँ होती हैं। अक्षेप में अक्षांशों के बीच की दूरी में केन्द्र (ध्रुव) से बाहर की ओर जाने पर केन्द्रीय प्रक्षेप से धीमी गति से बनती है। इसी कारण इस पर विषुवत् रेखा तथा सम्पूर्ण गोलार्द्ध का रेखा जाल बनाया जा सकता है। इस प्रक्षेपकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ध्रुवों के बाहर की ओर जाने पर किसी भी बिन्दु पर अक्षांश-देशान्तरों का आनुपातिक विस्तार समान रहने से यह एक सम-आकृति प्रक्षेप बन जाता है।

इस प्रकार पृथ्वी के ग्लोब पर खींचा गया वृत्त त्रिकोण या वर्ग इस प्रक्षेप की उसी आकृति द्वारा ही प्रदर्शित किया जाएगा। इस प्रक्षेप का यह गुण तीनों ही दशाओं (ध्रुवीय, विषुवत्खीय एवं तिर्यक) में बराबर बना रहता है। आवश्यकता के लिए प्रक्षेप से विपरीत ध्रुव को छोड़कर सम्पूर्ण ग्लोब का रेखा जाल बनाया जा सकता है। इन प्रक्षेपों में विषुवत रेखा के आगे के भाग में अक्षांशों के बीच के अन्तर में तेजी से वृद्धि होने लगती है जिससे उन प्रदेशों का आकार विकृत हो जाता है। इसी कारण ऐसे प्रदेशों का प्रदर्शन अनुपयोगी होता है।

रचना-विधि–पृथ्वी के घटाये गये गोले का अर्द्धव्यास
\frac { 62,50,00,000 }{ 20,50,00,000 }  = 3.12 सेमी = 1.25

एक ड्राइंगशीट पर घटाये गये ग्लोब का अर्द्धव्यास 3.12 सेमी या 1.25” लेकर बायीं ओर एक अर्द्धवृत्त की रचना की। इस अर्द्धवृत्त पर समकोण बनाती हुई एक रेखा अ से खींची। अ बिन्दु से उत्तरी भाग में 15° के अन्तर पर कोण खींचे तथा अ स के समानान्तर द बिन्दु से द च रेखा खींची। दे च रेखा ग्लोब पर समतल कागज के प्रक्षेपण तले की स्थिति प्रदर्शित करती है। प्रकाश की किरणों को ब पर स्थित मानकर उससे 15° के कोणों की ओर प्रकाश की किरणें वितरित की जो कोणों को स्पर्श करती हुई प्रक्षेपण तल पर द च रेखा पर क्रमशः क ख ग घ च बिन्दुओं पर स्थिर होंगी।
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अब ड्राईंगशीट के दायीं ओर एक-दूसरे को काटती हुई दो सरल रेखाएँ खींचीं जो य बिन्दु पर मिलती हैं। अर्द्धवृत्त के द बिन्दु से द क, द ख, द ग, द घ तथा द च के बराबर अर्द्धव्यास लेकर य बिन्दु से पाँच वृत्त बना दिये। य बिन्दु से ये वृत्त क्रमशः 75°,60°, 45°, 30° एवं 15° को प्रदर्शित करेंगे। य बिन्दु केन्द्र अर्थात् उत्तरी ध्रुव को प्रकट करेगा। य केन्द्र से ही 15° के कोणीय अन्तर पर चारों ओर सरल रेखाएँ खींच दीं जो देशान्तर रेखाओं को प्रकट करेंगी। पिछले पृष्ठ पर दिए गए चित्रानुसार इस रेखाजाल को अंशांकित कर दिया। यही शिरोबिन्दु गोलीय या समाकृति प्रक्षेप होगा।

शिरोबिन्दु गोलीय प्रक्षेप की विशेषताएँ
Characteristics of Zenithal Stereographic Projection

  1. यह एक सन्दर्श प्रक्षेप है। इसमें प्रकाश-किरणों की स्थिति विपरीत ध्रुव पर मानी जाती हैं।
  2. सभी अक्षांश रेखाएँ समकेन्द्रित वृत्त होती हैं।
  3. सभी देशान्तर रेखाएँ घटाये गये ग्लोब के अर्द्धव्यास हैं। किरणें ध्रुव से बाहर की ओर विकिरित होती हैं।
  4. अक्षांश एवं देशान्तर रेखाएँ परस्पर समकोण पर काटती हैं।
  5. प्रक्षेप पर ध्रुवीय प्रदेशों के मानचित्रों में पूर्ण शुद्धता रहती है।
  6. प्रक्षेप पर ध्रुर्व से दूर हटने पर अक्षांशों के बीच की दूरी धीमी गति से बढ़ने लगती है। अत: इस प्रक्षेप पर विषुवतीय प्रदेशों तक को प्रदर्शित किया जा सकता है।
  7. इस प्रक्षेप पर अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं के सहारे-सहारे किसी भी बिन्दु पर मापक में समान वृद्धि होती है। अत: यह एक सम आकृति प्रक्षेप है। यह गुण कुछ ही प्रदेशों तक सीमित रहता है, क्योंकि बाहर की ओर जाने पर मापक में वृद्धि होने से क्षेत्रफल में भी तीव्रता से वृद्धि होने लगती है।
  8. अन्य शिरोबिन्दु प्रक्षेपों की भाँति यह प्रक्षेप भी शुद्ध दिशा प्रक्षेप है। अतः सभी देशान्तर रेखाओं के सहारे-सहारे दिशा शुद्ध रहती है।
  9. प्रक्षेप पर ध्रुवों से 70° अक्षांशों के मध्य मापक एवं क्षेत्रफल में मन्द गति से वृद्धि होती है।
  10. यह समक्षेत्रफल या शुद्ध मापक प्रक्षेप नहीं है। ध्रुव अर्थात् केन्द्र से बाहर की ओर जाने में क्षेत्रफल एवं मापक में तेजी से वृद्धि होती जाती है। विषुवत रेखा के समीपवर्ती भागों में यह वृद्धि कई गुना हो जाती है। इस प्रकार विषुवत् रेखा के निकट स्थित देश-श्रीलंका, सेलेबीज, मलागैसी आदि अपने आकार से बहुत बड़े दिखलायी पड़ते हैं।

गुण

  • यह शुद्ध आकृति प्रक्षेप है अर्थात् इस पर आकृति समरूप रहती है।
  • यह शुद्ध दिशा प्रक्षेप है।
  • इस प्रक्षेप पर विषुवत् रेखा तक के क्षेत्रों को भली-भाँति दिखाया जा सकता है।

अवगुण

  • इस प्रक्षेप पर मापक गलत रहता है।
  • यह एक अशुद्ध क्षेत्रफल प्रक्षेप है।
  • विषुवत् रेखा के निकटवर्ती भागों में प्रदेशों का आकार बड़ा हो जाता है।

उपयोगिता

  • यह ध्रुवीय प्रदेशों में यातायात मार्ग प्रदर्शित करने के लिए एक उपयोगी प्रक्षेप है।
  • 70° से ध्रुवों तक के मध्य दैनिक मौसम मानचित्रों के प्रदर्शन के लिए उत्तम प्रक्षेप है।

प्रश्न 7
प्र० भि० 1 : 12,50,00,000 पर एक बोन प्रक्षेप का रेखाजाल तैयार कीजिए जिसमें प्रक्षेपान्तर 15°, देशान्तरीय विस्तार 60° पश्चिम से 60° पूरब एवं प्रामाणिक अक्षांश 45° उत्तर हो। इस प्रक्षेप की विशेषताएँ, गुण, दोषों एवं उपयोगिता पर भी प्रकाश डालिए।
उत्तर

बोन प्रक्षेप
Bonne’s Projection

यह एक परिष्कृत शंक्वाकार प्रक्षेप है। इस प्रक्षेप में अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं के मध्य की दूरी इस प्रकार निश्चित की जाती है कि यह एक समक्षेत्रफल प्रक्षेप बना रहे। इस प्रक्षेप की रचना फ्रांसीसी मानचित्रकार रिगोबर्ट बोन ने की थी जिनके नाम पर इसका नाम बोन प्रक्षेप पड़ा। इसे ‘बोन का समक्षेत्रफल प्रक्षेप’ भी कहते हैं। इस प्रक्षेप में अक्षांश रेखाएँ, एक प्रामाणिक अक्षांश वाले साधारण शंक्वाकार प्रक्षेप की भाँति एक केन्द्र से खींची गयी वृत्त के चाप की होती हैं, परन्तु इस प्रक्षेप में किसी विशिष्ट अक्षांश को ही प्रामाणिक अक्षांश नहीं माना जाता है, अपितु इसका चुनाव स्वेच्छा से कहीं भी किया जा सकता है। प्रत्येक अक्षांश पर देशान्तरों की दूरी इस प्रकार निश्चित की जाती है कि इसमें समक्षेत्रफलै’को गुण आ जाता है। किसी भी अक्षांश को प्रामाणिक अक्षांश मान लेने का सबसे बड़ा गुण यह है कि यह मध्य अक्षांशों के साथ-साथ निम्न अक्षांशों के लिए भी समान रूप से उपयोगी हो सकता है। इसमें देशान्तर रेखाएँ वक्र रेखाएँ होती हैं। इस पर क्षेत्रफल शुद्ध रहता है।

रचना-विधि – घटाये गये ग्लोब का अर्द्धव्यास
\frac { 62,50,00,000 }{ 12,50,00,000 }  = 5 सेमी या 2 इंच

एक ड्राइंगशीट के बायीं ओर 5 सेमी अर्द्धव्यास लेकर वृत्त का एक चौथाई भाग अ ब स बनाकर उस पर 15° के अन्तर पर कोण खींचे। अ स लम्ब को ऊपर की ओर बढ़ाया। प्रामाणिक अक्षांश 45° पर च छ स्पर्श रेखा खींची जो अ स लम्ब रेखा को छ बिन्दु पर काटती है। ब द की दूरी परकार में भरकर अ बिन्दु को केन्द्र मानकर वृत्त का एक चाप घुमाया तथा सभी कोणों को काटने वाले बिन्दुओं से अ ब के समानान्तर 5 रेखाएँ खींची।
UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 1 Map Projections 8
इस प्रक्रिया के पश्चात् ड्राइंगशीट के दायीं ओर एक सरल रेखा खींचकर उसके शीर्ष बिन्दु य से वृत्तांश की स्पर्श रेखा च छ के बराबर एक चाप खींचा। ब द की दूरी परकार में लेकर र बिन्दु से ऊपर दो। चिह्न तथा नीचे की ओर तीन चिह्न लगाये और य बिन्दु को ही केन्द्र मानकर इन पाँचों चिह्नों से चाप घुमाये। ये चाप क्रमशः 0° से 75° उत्तरी अक्षांशों को प्रकट करते हैं। प्रक्षेप की रचना में प्रत्येक अक्षांश पर भिन्न-भिन्न देशान्तरीय दूरी निश्चित करने के लिए प्रत्येक अक्षांश रेखा को प्रामाणिक अक्षांश मानकर दो प्रामाणिक अक्षांशों की भाँति वृत्तांश अ ब स के अन्दर अ ब के समानान्तर खींची गयी रेखाओं की सहायता से प्रत्येक अक्षांश की दूरी परकार में लेकर चार-चार चिह्न केन्द्रीय मध्याह्न रेखा के दोनों ओर अंकित किये तथा इन चिह्नों को मिलाते हुए वक्र रेखाएँ खींच दीं। इन वक्र रेखाओं को खींचने में फ्रेंच कर्व की सहायता ले लेनी चाहिए अथवा बाँस की सींक से भी यह कार्य किया जा सकता है। रेखाजाल को अंशांकित कर दिया। इस प्रकार बोन के समक्षेत्रफल शंक्वाकार प्रक्षेप की रचना पूर्ण हो जाती है।

बोन प्रक्षेप की विशेषताएँ
Characteristics of Bonne’s Projection

  1. यह एक संशोधित शंक्वाकार प्रक्षेप है जिसमें देशान्तरीय स्थिति भिन्न प्रकार से निश्चित की जाती है।
  2. सभी अक्षांश रेखाएँ समकेन्द्रीय वृत्त की चाप रेखाएँ होती हैं तथा इनके मध्य की दूरी समान होती है।
  3. देशान्तर रेखाओं में केन्द्रीय मध्याह्न रेखा ही सरल रेखा होती है; अत: इसे ही अक्षांश रेखाएँ समकोण पर काटती हैं। अन्य सभी देशान्तर रेखाएँ वक्राकार होने के कारण अक्षांशों को तिरछा काटती हैं। इसके बाह्य भागों में तिरछापन बढ़ता जाता है।
  4. प्रक्षेप का अर्द्धव्यास ज्ञात करने के लिए प्रामाणिक अक्षांश पर स्पर्श रेखा खींचनी पड़ती है। अत: किसी भी अक्षांश को प्रामाणिक अक्षांश माना जा सकता है।
  5. वक्राकार देशान्तर होने का महत्त्वपूर्ण कारण प्रत्येक अक्षांश को समान महत्त्व दिया जाना है। देशान्तरों के मध्य की दूरी लघु वृत्तांश पर लम्बे डालकर ज्ञात की जाती है।
  6. प्रक्षेप में अक्षांश रेखाओं की लम्बाई ग्लोब के समानुपाती रहती है। इसके अतिरिक्त केन्द्रीय देशान्तर पर अक्षांश के बीच का अन्तर भी शुद्ध रहता है। इसी कारण यह एक समक्षेत्रफल प्रक्षेप है।
  7. प्रामाणिक अक्षांश के समीप स्थित देशों का क्षेत्रफल शुद्ध रहने के साथ-साथ इसमें आकृति भी शुद्ध रहती है। इसी कारण इस प्रक्षेप पर मध्य देशान्तर एवं प्रामाणिक अक्षांश निश्चित कर एक गोलार्द्ध के अधिकांश देशों को प्रदर्शित किया जा सकता है।
  8. इस प्रक्षेप में सर्वत्र आकृति एवं दिशा शुद्ध नहीं रहती है। केन्द्रीय भाग से दूर जाने पर विकृति आती जाती है।
  9. मध्य देशान्तर पर मापक शुद्ध रहता है। बाहर की ओर अशुद्धि आ जाती है। प्रक्षेप में सभी अक्षांशों पर मापक शुद्ध रहता है।

गुण

  • केन्द्रीय देशान्तर पर मापक शुद्ध होता है।
  • प्रक्षेप में अक्षांश रेखाओं की लम्बाई ग्लोब के समानुपाती होती है। अत: यह एक शुद्ध क्षेत्रफल प्रक्षेप है।
  • प्रामाणिक अक्षांश रेखा पर आकृति शुद्ध रहती है।

अवगुण 

  • यह शुद्ध दिशा प्रक्षेप नहीं है।
  • केवल मध्य देशान्तर पर ही मापक शुद्ध रहता है। पूरब तथा पश्चिम की ओर जाने पर उसमें अशुद्धियाँ बढ़ती जाती हैं।
  • प्रामाणिक अक्षांश रेखा से दूर जाने पर आकृति बिगड़ती जाती है।

उपयोगिता – समक्षेत्रफल; प्रक्षेप होने तथा अधिकांश भागों में मापक शुद्ध रहने के कारण लघु मापक पर बनाये गये। इस प्रक्षेप पर देशों एवं महाद्वीपों के मानचित्र बराबर बनाये जा रहे हैं। युरोप, एशिया के अधिकांश भाग, उत्तरी अमेरिका एवं उसके देशों के लिए या एक गोलार्द्ध के मानचित्र के लिए यह एक उपयोगी प्रक्षेप है।

एटलस में भी इस प्रक्षेप को विभिन्न मानचित्रों के लिए आधार प्रक्षेप माना जाता है। ध्रुवीय प्रदेशों को इस पर प्रदर्शित नहीं किया जा सकता है।
भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, सऊदी अरब, मिस्र जैसे देशों के मानचित्रों के लिए यह बहुत ही उपयोगी प्रक्षेप है। परन्तु रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका आदि देशों के लिए यह उपयोगी प्रक्षेप नहीं है। मध्यम आकार के देशों के वितरण मानचित्रों के लिए यह बहुत ही उपयुक्त प्रक्षेप है।

मौखिक परिक्षा: सम्भावित प्रश्न

प्रश्न 1
प्रक्षेप से क्या अभिप्राय है?
उत्तर
ग्लोब की अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं को समतल कागज पर प्रदर्शित करने की विधि को प्रक्षेप कहते हैं।

प्रश्न 2
रेखाजाल किसे कहते हैं?
उत्तर
अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं के समतल कागज पर प्रक्षेपित करने से रेखाओं का जो जाल निर्मित होता है, रेखाजाल कहलाता है।

प्रश्न 3
प्रक्षेप का प्रयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर
प्रक्षेप का प्रयोग वृत्ताकार पृथ्वी (Spheroid earth) को समतल कागज पर प्रदर्शित करने। हेतु किया जाता है।

प्रश्न 4
प्रकाश की दृष्टि से प्रक्षेप कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर
प्रकाश की दृष्टि से प्रक्षेप निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं –

  1. सन्दर्श प्रक्षेप (Perspective Projection)।
  2. असन्दर्श प्रक्षेप (Non-perspective Projection)।

प्रश्न 5
उपयोग की दृष्टि से प्रक्षेप कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर
उपयोग की दृष्टि से प्रक्षेप निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं –

  1. शुद्ध क्षेत्रफल प्रक्षेप (Equal Area Projection)।
  2. शुद्ध आकृति प्रक्षेप (True Shape Projection)।
  3. शुद्ध दिशा प्रक्षेप (True Bearing Projection)।

प्रश्न 6
अक्षांश रेखाएँ किन्हें कहते हैं?
उत्तर
विषुवत रेखा से उत्तर तथा दक्षिण की ओर ध्रुवों तक मापी जाने वाली काल्पनिक कोणात्मक दूरियों को अक्षांश रेखाएँ कहते हैं।

प्रश्न 7
देशान्तर रेखाएँ किन्हें कहते हैं?
उत्तर
देशान्तर रेखाएँ वे काल्पनिक रेखाएँ होती हैं जो उत्तरी ध्रुव को दक्षिणी ध्रुव से मिलाती हैं।

प्रश्न 8
समक्षेत्रफल बेलनाकार प्रक्षेप का क्या उपयोग है?
उत्तर
इस प्रक्षेप का उपयोग विषुवतीय प्रदेशों तथा उनके समीपवर्ती भू-भागों के वितरण मानचित्रों के लिए किया जाता है। विश्व में गन्ना, चावल, चाय, रबड़, कहवा आदि का उत्पादन एवं वितरण इस प्रक्षेष पर प्रकट किया जाता है।

प्रश्न 9
प्रामाणिक अक्षांश रेखा किसे कहते हैं?
उत्तर
शंक्वाकार कागज ग्लोब को जिस अक्षांश पर स्पर्श करता है, उसे प्रामाणिक अक्षांश रेखा कहते हैं।

प्रश्न 10
बोन प्रक्षेप के आविष्कारक कौन थे?
उत्तर
बोन प्रक्षेप का आविष्कार फ्रांसीसी मानचित्रकार रिगोबर्ट बोन ने सन् 1772 ई० में किया था।

प्रश्न 11
ध्रुवीय शिरोबिन्दु प्रक्षेप को ध्रुवीय शिरोबिन्दु प्रक्षेप क्यों कहा जाता है?
उत्तर
समतल कागज का ग्लोब को ध्रुवों पर स्पर्श करने के कारण इसका नाम ध्रुवीय शिरोबिन्दु प्रक्षेप रखा गया है।

प्रश्न 12
शीतोष्ण कटिबन्धीय लघु आकार वाले देशों के मानचित्र किस प्रक्षेप पर बनाये जा सकते हैं?
उत्तर
दो प्रामाणिक अक्षांश शंक्वाकार प्रक्षेप तथा बोन प्रक्षेप पर शीतोष्ण कटिबन्धीय लघु आकार वाले देशों के मानचित्र बनाये जा सकते हैं।

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