UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Topographical Sheets (धरातलीय भू-पत्रक)
UP Board Solutions for Class 12 Geography Practical Work Chapter 3 Topographical Sheets (धरातलीय भू-पत्रक)
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
धरातलीय भू-पत्रक से क्या अभिप्राय है? भारतीय भू-पत्रकों में संख्यांकन किस प्रकार किया जाता है तथा इनमें कौन-कौन से विवरण दिये रहते हैं?
उत्तर
धरातलीय भू-पत्रक
Topographical Sheets
धरातलीय भू-पत्रक किसी क्षेत्र विशेष के धरातलीय स्वरूपों का विस्तृत रूप से प्रदर्शन करते हैं। इन्हें स्थलाकृतिक मानचित्र (Topographical maps) भी कहते हैं। टोपोग्राफी (Topography) ग्रीक भाषा का शब्द है जो टोपो (Topo) तथा ग्राफीन (Graphein) दो शब्दों के संयोग से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ किसी स्थान-विशेष का पूर्ण विवरण देना है। अतः धरातलीय पत्रक विस्तृत मापकों पर बनाये गये वे मानचित्र हैं जो कि विधिपूर्वक भू-मापन के पश्चात् बनाये जाते हैं तथा प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक भू-आकृतियों का विस्तृत प्रदर्शन करते हैं। इन मानचित्रों में विभिन्न विवरण परम्परागत अथवा रूढ़ चिह्नों (Conventional signs) की सहायता से प्रकट किये जाते हैं।
धरातलीय पत्रकों के अध्ययन से किसी भी क्षेत्र में मानवीय तथा प्राकृतिक पर्यावरण के सम्बन्धों का ज्ञान भली-भाँति हो जाता है। यदि भू-पत्रक में परिवहन मार्गों का जाल बिछा हुआ है, जनसंख्या के भी संकेन्द्रण हैं, पक्के आवासों की अधिकता है तथा विभिन्न उद्योगों के लक्षण भी स्पष्ट दिखलाई पड़ते हैं, तो इससे निष्कर्ष निकलता है कि वहाँ औद्योगिक अर्थव्यवस्था होगी। इसके विपरीत जिन भू–पत्रकों में पगडण्डियाँ, खेत, झोंपड़ियाँ, कच्ची मिट्टी से निर्मित आवास आदि का बाहुल्य होता है, तो वह ग्रामीण अर्थव्यवस्था अथवा कृषि अर्थव्यवस्था को प्रकट करते हैं। भू-पत्रकों के अध्ययन से मानव एवं पर्यावरण के सम्बन्ध स्पष्ट हो जाते हैं तथा उनका विश्लेषण करना भी सुगम हो जाता है।
भारतीय भू-पत्रकों में संख्यांकन
Numbering in Indian Topographical Maps
भारतीय भू-पत्रकों का प्रकाशन भारतीय सर्वेक्षण विभाग (सर्वे ऑफ इण्डिया) द्वारा किया जाता है। इस विभाग की स्थापना सन् 1767 में की गयी थी। इसके प्रथम डायरेक्टर जनरल मेजर जेम्स रैनेल थे। आजकल भारतीय सर्वेक्षण विभाग एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा सर्वेक्षण विभाग है। इसका प्रमुख कार्यालय हाथी बड़कला, देहरादून (उत्तराखण्ड) में स्थित है। इस विभाग के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय भू-पत्रक माला के अनुसार भारत एवं समीपवर्ती देशों के लिए कुल 136 भू-पत्रकों का प्रकाशन किया गया है। इन भू-पत्रकों का सूचकांक 1 से 136 तक किया गया है जो भारत तथा उसके समीपवर्ती देशों को घेरते हैं। म्यांमार देश को छोड़कर इन भू-पत्रकों की संख्या 92 रह जाती है। ये संख्याएँ पत्रकों की सूची संख्या (Index number) कहलाती हैं। प्रत्येक भू-पत्रक का मापक 1: 10,00,000 है। एक भू-पत्रक का विस्तार 4° अक्षांश तथा 4°देशान्तरों में है।
प्रत्येक भू-पत्रक को 16 वर्गों में विभाजित किया गया है जिन्हें अंग्रेजी भाषा के A से P अक्षरों तक प्रकट किया जाता है। प्रत्येक भाग 1° अक्षांश तथा 1° देशान्तर को प्रकट करता है। अतः इन्हें 1 अंश भू-पत्रक भी कहा जाता है। इनका मापक 1 इंच बरोबर 4 मील होता है। पुन: प्रत्येक अंश पत्रक को 16 उपविभागों में बाँटते हैं तथा प्रत्येक भाग का संख्यांकन 1 से 16 तक होता है। इस प्रकार प्रत्येक अंश चित्र 15 मिनट अक्षांश एवं 15 मिनट देशान्तर को प्रकट करता है। इनका मापक एक इंच बराबर एक मील होता है जिस कारण इन्हें एक इंच भू-पत्रक भी कहा जाता है। उदाहरण के लिए,63 (K/12) का अभिप्राय 63वाँ पत्रक है। फिर उसका K अंश लेते हैं तथा पुन: Kअंश का 12वाँ भाग लेते हैं। यही मिर्जापुर भू-पत्रक कहलाता है। इससे स्पष्ट होता है कि मिर्जापुर भू-पत्रक 63 (K/12) का निर्धारण किस प्रकार किया गया है। (चित्र संख्या 3.2 एवं 3.3)। इस प्रकार प्रत्येक भू-पत्रक को उसमें स्थित बड़े नगर से सम्बोधित किया जाता है।
भू-पत्रकों में प्रस्तुत किये जाने वाला विवरण
Representing of Description Topographical Sheets
भू-पत्रकों का अध्ययन करने से पूर्व निम्नलिखित बातें ध्यान में रखी जानी चाहिए –
- धरातलीय बनावट सम्बन्धी तत्त्वों का ज्ञान।
- सांस्कृतिक स्थलाकृतियों की स्थिति तथा उनका वितरण।
- भौतिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरण के तथ्यों का पारस्परिक सम्बन्ध।
अतः भू-पत्रक मानचित्रों में निम्नलिखित तथ्यों का विवरण अंकित रहता है –
(1) प्रारम्भिक सूचनाएँ एवं पत्रक का परिचय – भू-पत्रक का परिचय निम्नलिखित उपशीर्षकों के अन्तर्गत दिया जाता है –
- राज्य का नाम तथा पत्रक में प्रदर्शित किये गये क्षेत्र का विस्तार अर्थात् अक्षांशीय एवं देशान्तरीय विस्तार तथा जनपदों के नाम।
- सर्वेक्षण का वर्ष तथा प्रकाशन तिथि।
- पत्रक संख्या।
- उत्तर दिशा निर्धारण के लिए चुम्बकीय दिक्मान की भिन्नता।
- पत्रक का मापक।
- पत्रक का विस्तार एवं क्षेत्रफल।
(2) धरातल अथवा उच्चावच एवं जल-प्रवाह प्रणाली – इसके अन्तर्गत धरातल की विभिन्न विशेषताओं एवं उनके प्रकारों का अध्ययन किया जाता है। समोच्च रेखा अन्तराल, ढाल के प्रकार, विशिष्ट ऊँचाई के स्थान, जल-प्रवाह प्रणाली के प्रकार, नदियों के मार्ग तथा उनकी विशेषताएँ तथा अन्य जल-स्रोतों का अध्ययन सम्मिलित है।
(3) प्राकृतिक वनस्पति – भू-पत्रक में प्राकृतिक वनस्पति को हरे रंग से एवं सांस्कृतिक वनस्पति को पीले रंग से प्रदर्शित किया जाता है। प्राकृतिक वनस्पति में उसके प्रकार एवं क्षेत्र निर्धारित किये जाते हैं। कृषि के अन्तर्गत कृषि-योग्य भूमि, फसलों की विविधता का अध्ययन करते हैं। प्राकृतिक वनस्पति एवं जलवायु घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित होते हैं। अतः वनस्पति का अध्ययन करने से पूर्व जलवायु को भी भली-भाँति समझ लेना चाहिए।
(4) सिंचाई के साधन – विभिन्न जल-स्रोतों को भू-पत्रकों में परम्परागत चिह्नों की सहायता से प्रदर्शित किया जाता है। इनकी सहायता से सिंचाई साधनों का ज्ञान हो जाता है। यदि स्थान-विशेष पर जल-स्रोत उपलब्ध नहीं हैं तो पत्रक का अध्ययन कर ज्ञात कर लिया जाता है कि यहाँ पर्याप्त वर्षा होती है या सिंचाई साधनों का विस्तार नहीं किया जा सका है अथवा कृत्रिम साधनों से सिंचाई की जाती हैं।
(5) आवागमन के साधन – भू-पत्रकों द्वारा उस प्रदेश के आवागमन के साधनों के विषय में विस्तृत जानकारी उपलब्ध हो सकती है, क्योंकि इन्हें पत्रकों में परम्परागत चिह्नों द्वारा प्रकट किया जाता है। आवागमन के साधनों में सड़क, रेलमार्ग, पगडण्डियाँ, जलमार्ग आदि मुख्य हैं।
(6) प्रमुख उद्योग-धन्धे – यद्यपि भू-पत्रकों से उद्योग सम्बन्धी कोई प्रत्यक्ष जानकारी उपलब्ध नहीं होती है, परन्तु अन्य तथ्यों के अध्ययन से इनकी विस्तृत जानकारी उपलब्ध हो सकती है। यदि भू-पत्रक कृषि क्षेत्र को प्रकट करता है, तो वहाँ पर कृषि उपजों पर आधारित उद्योग-धन्धे विकसित मिलेंगे। इसी प्रकार पशुचारण, खनिज पदार्थ, वन्य उपजों आदि के अध्ययन से विभिन्न उद्योगों के विषय में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
(7) बसाव एवं जनसंख्या – बसाव एवं जनसंख्या का वर्णन बस्तियों के आकार, प्रकार, नगरों की स्थिति, जनसंख्या ग्रामीण है अथवा नगरीय, जनसंख्या की सघनता आदि का अध्ययन कर किया जा सकता है। ग्रामीण एवं नगरीय बस्तियों के वितरण द्वारा जनसंख्या की सघनता के विषय में अनुमान लगाया जा सकता है।
(8) सभ्यता एवं संस्कृति – भू-पत्रक मानचित्रों में परम्परागत चिह्नों द्वारा; जैसे–मन्दिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा, पैगोड़ा, अस्पताल, स्कूल, रेलवे स्टेशन, निरीक्षण भवन, धर्मशालाएँ आदि प्रकट की जाती हैं। इन चिह्नों का अध्ययन कर उस क्षेत्र-विशेष की सभ्यता एवं संस्कृति का सहज ही ज्ञान प्राप्त कर लिया जाता है। इन पत्रकों में कुछ ऐतिहासिक महत्त्व के चिह्न; जैसे—किला, युद्धस्थल, राजधानी आदि भी अंकित रहते हैं जिससे उस क्षेत्र की ऐतिहासिकता की जानकारी प्राप्त हो जाती है।
उपर्युक्त सभी तथ्यों के सामूहिक अध्ययन से उस क्षेत्र के आर्थिक विकास के विषय में जानकारी प्राप्त हो जाती है। इस प्रदेश के भावी आर्थिक विकास के लिए कुछ सुझाव भी दिये जा सकते हैं कि वहाँ किन तथ्यों में प्रगति की जाए तथा जिन साधनों की कमी है, उनमें वृद्धि की जाए। इस प्रकार भू-पत्रक मानचित्र किसी देश अथवा प्रदेश के अध्ययन के लिए अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
प्रश्न 2
परम्परागत या रूढ़ चिह्न किन्हें कहते हैं? भू-पत्रकों में किन-किन रंगों का प्रयोग किया जाता है? इन चिह्नों द्वारा कौन-कौन से विवरण प्रदर्शित किये जाते हैं?
उत्तर
परम्परागत या रूढ़ चिह
Conventional Signs
भू-पत्रकों में विभिन्न प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक लक्षणों को दर्शाने के लिए सांकेतिक अथवा परम्परागत या रूढ़ चिह्नों का प्रयोग किया जाता है। इन चिह्नों को प्रत्येक देश के सर्वेक्षण विभाग द्वारा निर्धारित एवं प्रमाणित किया जाता है। इन्हें Conventional Signs भी कहा जाता है। इन चिह्नों की सूची भू-पत्रक के नीचे सांकेतिक सन्दर्भ में दी होती है। अत: ऐसे चिह्न जिनका प्रयोग भू-पत्रकों में विभिन्न स्थलाकृतिक विवरण दिखलाने में किया जाता है, परम्परागत या रूढ़ चिह्न कहलाते हैं। इन चिह्नों के भू-पत्रकों में प्रयोग से उनका अध्ययन सरल तथा सुगम हो जाता है। इनके द्वारा मानचित्रों में अधिकाधिक विवरण प्रदर्शित किये जा सकते हैं। इन चिह्नों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है –
- भौतिक स्थलाकृतियों को प्रदर्शित करने वाले चिह्न तथा
- सांस्कृतिक स्थलाकृतियों को प्रदर्शित करने वाले चिह्न।
कुछ प्रमुख परम्परागत रूढ चिह्न
Some Famous Conventional Signs
भू-पत्रक मानचित्रों में परम्परागत अथवा रूढ़ चिह्नों का प्रदर्शन अग्रलिखित है –
(1) मन्दिर, (2) गिरजाघर (चर्च), (3) मस्जिद, (4) छतरी, (5) गुरुद्वारा, (6) ईदगाह, (7) पैगोडा, (8) सर्वेक्षित ग्राम, (9) किला, (10) सर्वेक्षित किला, (11) युद्धस्थल, (12) कब्रिस्तान, (13) तेल का कुआँ, (14) पक्का कुआँ, (15) निशानेबाजी का क्षेत्र, (16) हवाई अड्डा, (17) सर्वेक्षित हवाई पट्टी, (18) कच्चा कुआँ, (19) झरना, (20) पाइप लाइन, (21) पक्का तालाब, (22) अत्यधिक गहरा तालाब, (23) दलदल, (24) नदी का प्रवाह मार्ग, (25) सदावाहिनी नदी, (26) पक्का बाँध, (27) कच्चा बाँध, (28) बड़ी दोहरी रेलवे लाइन, (29) बड़ी इकहरी रेलवे लाइन, (30) छोटी दोहरी रेलवे लाइन, (31) छोटी इकहरी रेलवे लाइन, (32) पावर लाइन, (33) बैलगाड़ी को मार्ग, (34) पगडण्डी, (35) रज्जू मार्ग (रोप वे), (36) नदी के तल में सड़क, (37) नदी के ऊपर सड़क का पुल, (38) बाग, (39) घास, (40) खजूर के पेड़, (41) बाँस, (42) समोच्च रेखाएँ, (43) खण्ड रेखाएँ, (44) अनुमानित ऊँचाई
का त्रिकोणमिति स्टेशन, (45) ऊँचाई सहित बैंच मार्क, (46) सर्किट हाउस, (47) डाक बंगला, (48) रेस्ट हाउस, (49) पुलिस स्टेशन, (50) पोस्ट ऑफिस, (51) तारघर, (52) सुरक्षित वन, (53) निरीक्षण बँगला (नहर), (54) शासकीय बस्ती, (55) आदिवासी बस्ती, (56) कच्ची सड़क, (57) घण्टाघर, (58) रेलवे लाइन के ऊपर सड़क, (59) सड़क के ऊपर रेल पथ, (60) सड़क पर पुल, (61) प्रान्तीय सीमा रेखा, (62) अन्तर्राष्ट्रीय सीमा रेखा, (63) जनपद सीमा रेखा, (64) तहसील सीमा रेखा, (65) प्रकाश-गृह।
भू-पत्रकों में प्रयोग होने वाले रंग
Colours Used in Topographical Sheets
भारतीय सर्वेक्षण विभाग ने भू-पत्रकों में परम्परागत चिह्नों के साथ-साथ विभिन्न प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक लक्षणों के प्रदर्शन हेतु कुछ रंगों को निर्देशित किया है, जिनको प्रयोग निम्नलिखित है –
- नीला रंग-सागर, महासागर, नदी, तालाब, झील आदि भू-आकृतियों के प्रदर्शन के लिए।
- लाल रंग-सड़कों, पगडण्डियों, मकानों, इमारतों आदि के प्रदर्शन के लिए।
- पीला रंग-कृषि प्रदेशों के प्रदर्शन के लिए।
- काला रंग-रेलवे लाइन, सीमा एवं नामांकन के लिए।
- हरा रंग-पेड़-पौधों, वनस्पति, जंगल, बाग आदि के प्रदर्शन के लिए।
- कत्थई रंग–समोच्च रेखाओं के प्रदर्शन के लिए।
- भूरा रंग–पर्वतीय छायाकरण दिखाने के लिए।
प्रश्न 3
1″ = 1 मील पर बने किसी भू-पत्रक (Topo-sheet) का निम्नलिखित शीर्षकों में वर्णन कीजिए जिसका आपने अध्ययन किया हो –
(अ) उच्चावच
(ब) जल-प्रवाह प्रणाली
(स) मानव बस्तियाँ
(द) यातायात के साधन।
उत्तर
भू-पत्रक संख्या 53 अथवा देहरादून भू-पत्रक
53Topographical Sheet or Dehradun Topographical Sheet
सामान्य परिचय – भू – पत्रक संख्या 53 उत्तराखण्ड राज्य के जनपद देहरादून एवं टिहरी गढ़वाल को प्रदर्शित करता है। इस भू-पत्रक का मापक 1 इंच =1 मील अथवा इसकी प्रदर्शक भिन्न 1/63,360 है। इस भू-पत्रक का विस्तार 30° 15 उत्तरी अक्षांश से 30°30 उत्तरी अक्षांश तथा 78° पूर्वी देशान्तर से 78° 15 पूर्वी देशान्तर के मध्य है। यह भू-पत्रक सन् 1913-14 एवं पुनः 1937-38 में प्रकाशित किया गया है। इस भू-पत्रक का चुम्बकीय अन्तराल पूरब सन् 1938 है। इस भू-पत्रक के उत्तर में भू-पत्रक संख्या 53, दक्षिण में 53, पूर्व में 53 तथा पश्चिम में 53 है।
(अ) उच्चावच – इस भू-पत्रक का उत्तरी-पूर्वी भाग टिहरी गढ़वाल जिले में तथा शेष देहरादून जिले में सम्मिलित है। सम्पूर्ण भू-पत्रक एक पहाड़ी प्रदेश है। इस प्रदेश के उत्तर भाग में लघु या हिमाचल हिमालय श्रेणी उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व दिशा में विस्तृत है। इसके दक्षिण-पश्चिम में शिवालिके श्रेणियों का विस्तार है। इस प्रदेश में समोच्च रेखाएँ बड़ी विषम हैं जिनके अध्ययन से पता चलता है कि यह प्रदेश पर्वत-शिखरों से भरा पड़ा है। इन श्रेणियों की औसत ऊँचाई 2,250 मीटर है। लघु हिमालय श्रेणी में अनेक ऊँची चोटियाँ हैं जिनमें तोपटिब्बा सर्वोच्च पर्वत-शिखर है जिसकी ऊँचाई 2,613 मीटर है।
अन्य उच्च शिखरों में बेरॉसखण्ड-2,598 मीटर तथा उटियानों-2,519 मीटर ऊँची है। लघु हिमालय एवं शिवालिक श्रेणियों के मध्य दून घाटी विस्तृत है जो 35 किमी लम्बी तथा 25 किमी चौड़ी है। इस घाटी के सहारे शिवालिक श्रेणियों की तलहटी में देहरादून नगर स्थित है। इस देश में अनेक छोटी-बड़ी नदियों का जाल बिछा हुआ है। उत्तरी-पूर्वी भाग में टिहरी गढ़वाल जिले का क्षेत्र बड़ा ही दुर्गम है जिसमें अनेक ऊँची श्रेणियाँ तथा गहरी तंग घाटियाँ स्थित हैं। पत्रक के उत्तरी-पश्चिमी भाग में पर्वतों की रानी अर्थात् मसूरी नगर स्थित है।
(ब) जल-प्रवाह प्रणाली – इस भू-पत्रक के धरातल पर अनेक नदियों का जाल बिछा है। उत्तरी भाग़ की जल-प्रवाह प्रणाली बड़ी ही जटिल एवं विषम है। टिहरी गढ़वाल जिले की जल-प्रवाह प्रणाली और भी अधिक जटिल है। उच्च शिखरों के ढालों पर प्रवाहित होती हुई असंख्य छोटी-छोटी धाराएँ तीव्र अपवाह प्रणाली का निर्माण करती हैं। ये नदियाँ अपनी घाटियों का अपरदन कर उन्हें गहरी एवं तंग बनाकर बड़ी-बड़ी कन्दराओं का निर्माण करने में लगी हैं। जैसे ही इन नदियों का अपवाह मार्ग दून घाटी में पहुँचता है, इनकी घाटियाँ चौड़ी हो जाती हैं। यहाँ पर प्राकृतिक जलाशयों का अभाव पाया जाता है। देहरादून से 8-10 किमी की दूरी पर सहस्रधारा एक प्राकृतिक प्रपात है, जहाँ अनेक छोटी-बड़ी धाराएँ आकर मिलती हैं। इसके निकट ही गन्धक का जल-स्रोत है। इस पत्रक के सुदूर पश्चिम में मसूरी के निकट प्रसिद्ध कैम्पटी प्रपात स्थित है। इस प्रदेश में निम्नलिखित तीन नदियाँ महत्त्वपूर्ण हैं –
देहरादून पत्रक
(1) सोंग नदी – इस भू-पत्रक के उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र में टिहरी गढ़वाल तथा देहरादून जनपदों की सीमा के सहारे-सहारे सोंग नदी सबसे बड़ी तथा चौड़ी है। बादल इसकी प्रमुख सहायक नदी है। सोंग-बादल के मिलन स्थल से लगभग 1.5 किमी की दूरी पर इससे बल्दी नदी मिलती है। इसके बाद यह नदी दक्षिण की ओर अपने प्रवाह मार्ग का निर्माण करती है।
(2) टोंस नदी – यह नदी मसूरी के समीप से निकलकर दक्षिण की ओर देहरादून नगर के मध्य से प्रवाहित होती है। ब्राह्मी, नलौता, भीतरली एवं कुआरकुली इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। यहाँ से यह पश्चिम की ओर प्रवाहित हो जाती है।
(3) अगलर नदी – यह इस प्रदेश की तीसरी प्रमुख नदी है। इसका प्रवाह प्रदेश टिहरी गढ़वाल जंनपद में है। यह पूरब से पश्चिम की ओर प्रवाहित होती है। पश्चिम की ओर नून इसकी प्रमुख सहायक नदी है। यह क्लाउड एण्ड शिखर से निकलकर दक्षिण की ओर प्रवाहित होती हुई देहरादून के पश्चिम से। होकर आगे निकल जाती है।
(स) मानव बस्तियाँ – पत्रक का अधिकांश भाग पहाड़ी होने के कारण इसे एक पिछड़ा क्षेत्र कहा जा सकता है। उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में बहुत ही कम बस्तियाँ विकसित हुई हैं। केवल पहाड़ी ढलानों पर छोटे-छोटे गाँव देखे जा सकते हैं। इन क्षेत्रों में छोटे-छोटे सीढ़ीदार खेत बनाकर कृषि की जाती है। दून घाटी का आर्थिक विकास सबसे अधिक हुआ है। यहाँ पर बस्तियों एवं जनसंख्या के संकेन्द्रण। विकसित हुए हैं। देहरादून इस भू-पत्रक का सबसे बड़ा एवं महत्त्वपूर्ण नगर है। इस नगर में पक्के मकान, सड़कें तथा उद्योग-धन्धे विकसित हुए हैं। देहरादून नगर के समीपवर्ती भागों में अनेक कस्बे एवं केन्द्रीय ग्राम विकसित हैं जिनमें रामगढ़, राजपुर, शमशेरगढ़, कालागढ़ तथा भाजना प्रमुख हैं। मसूरी दूसरा बड़ा नगर है। टिहरी नगर का भी विकास किया जा रहा है।
(द) यातायात के साधन – दुर्गम पर्वतीय क्षेत्र, ढालू, घाटियाँ, असमतल एवं ऊबड़-खाबड़ धरातल होने के कारण इस भू-पत्रक के धरातल पर यातायात साधनों की कमी है तथा उनका विकास भी कम ही हो पाया है। भू-पत्रक के उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र में रेल तथा सड़क मार्ग, दोनों का ही अभाव है। इस क्षेत्र में पगडण्डियों के मार्ग अधिक विकसित हुए हैं जिनसे होकर दुर्गम एवं बीहड़ पहाड़ी क्षेत्रों को पार किया जाता है। भू-पत्रक के दक्षिणी-पश्चिमी भाग में सड़क तथा रेलमार्गों का विकास हुआ है। प्रमुख यातायात मार्गों का विवरण निम्नलिखित है –
(1) रेलमार्ग – यहाँ केवल एक रेलमार्ग है जो उत्तरी रेलवे द्वारा संचालित किया जाता है। यह रेलमार्ग देहरादून को ऋषिकेश, हरिद्वार, लक्सर, सहारनपुर होता हुआ दिल्ली से जोड़ता है। लक्सर जंक्शन की सहायता से देहरादून सीधे कोलकाता से जुड़ा हुआ है। देहरादून इस रेलमार्ग का अन्तिम स्टेशन है।
(2) सड़क मार्ग – देहरादून पक्की सड़कों द्वारा प्रदेश के अन्य नगरों से जुड़ा हुआ है। देहरादून को तथा सहारनपुर, चकरौता, विकास नगर, ऋषिकेश, मसूरी आदि नगरों को पक्की सड़कों द्वारा जोड़ा गया है। इस भू-पत्रक में तीन कच्ची सड़कें भी हैं, जो निम्नलिखित हैं–
- रायपुर से थानों हतनाल
- हर्रावाला से मियाँवाला
- अनारवाला से सतन गाँव।
मौखिक परिक्षा : सम्भावित प्रश्न
प्रश्न 1
धरातलीय भू-पत्रक से क्या अभिप्राय है?
उत्तर
ऐसे मानचित्र जिनमें प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक स्थलाकृतियों का चित्रण सांकेतिक चिह्नों की सहायता से दीर्घमापक पर किया जाता है, धरातलीय भू-पत्रक कहलाते हैं।
प्रश्न 2
धरातलीय भू-पत्रकों का प्रकाशन किस विभाग द्वारा किया जाता है?
उत्तर
धरातलीय भू-पत्रक मानचित्रों का प्रकाशन भारतीय सर्वेक्षण विभाग, देहरादून द्वारा किया जाता है।
प्रश्न 3
भारतीय सर्वेक्षण विभाग का प्रधान कार्यालय कहाँ पर स्थित है?
उत्तर
भारतीय सर्वेक्षण विभाग का मुख्यालय हाथी-बडकला, देहरादून, उत्तराखण्ड राज्य में स्थित है।
प्रश्न 4
भारतीय भू-पत्रक किस मापक पर बने हैं?
उत्तर
भारतीय भू-पत्रक 1 इंच = एक मील के मापक अर्थात् प्र० भि० 1/63, 360 पर निर्मित किये गये हैं।
प्रश्न 5
धरातलीय भू-पत्रकों का विस्तार बताइए।
उत्तर
प्रत्येक धरातलीय भू-पत्रक 4° अक्षांश तथा 4° देशान्तरों को प्रकट करता है।
प्रश्न 6
भारतीय भू-पत्रकों की संख्या कितनी है?
उत्तर
भारतीय भू-पत्रकों की संख्या 136 है। म्यांमार को छोड़कर 92 भू-पत्रक भारत के ऊपर से गुजरते हैं।
प्रश्न 7
इन भू-पत्रकों का मापक क्या है?
उत्तर
इन भू-पत्रकों का मापक 1 : 10,00,000 है।
प्रश्न 8
भारत एवं उसके समीपवर्ती देशों की श्रृंखला के मानचित्र किस मापक पर तैयार किये गये हैं।
उत्तर
इन मानचित्रों का प्रथम संस्करण 1 : 20 लाख मापक पर तथा द्वितीय संस्करण 1: 10 लाख मापक पर निर्मित किये गये हैं।
प्रश्न 9
भारत एवं उसके समीपवर्ती देशों की मानचित्र माला में कौन-कौन से देश सम्मिलित हैं।
उत्तर
इनमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान, भारत, बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, भूटान एवं श्रीलंका आदि देश सम्मिलित हैं।
प्रश्न 10
परम्परागत चिह्नों (Conventional Signs) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर
भू-पत्रक मानचित्रों में प्रदर्शित संकेत चिह्नों को परम्परागत चिह्न कहते हैं।
प्रश्न 11
भू-पत्रक मानचित्रों की क्या उपयोगिता है?
उत्तर
भू-पत्रक मानचित्रों की निम्नलिखित उपयोगिता है –
- सैनिक संचालन एवं युद्ध मोर्चे की तैयारी में ये भू-पत्रक उपयोगी होते हैं।
- किसी क्षेत्र-विशेष के प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक लक्षणों की सूक्ष्म जानकारी उपलब्ध होती है।
- क्षेत्र विशेष की भावी आर्थिक विकास योजनाओं को क्रियान्वित करने में सहायक होते हैं।
प्रश्न 12
भू-पत्रक मानचित्रों में लाल रंग का प्रयोग किसका प्रदर्शन करता है?
उत्तर
भू-पत्रक मानचित्रों में लाल रंग का प्रयोग सड़कों, पगडण्डियों तथा मानवीय बस्तियों के प्रदर्शन के लिए किया जाता है।
प्रश्न 13
भू-पत्रक मानचित्रों में काले रंग का क्या उपयोग है?
उत्तर
भू-पत्रक मानचित्रों में काला रंग रेलवे लाइन, सीमांकन तथा नामांकन के लिए प्रयुक्त किया जाता है।