UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 11 Environmental Pollution Problems and Remedies (पर्यावरण प्रदूषण-समस्याएँ एवं निदान)
UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 11 Environmental Pollution Problems and Remedies (पर्यावरण प्रदूषण-समस्याएँ एवं निदान)
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
पर्यावरण-प्रदूषण से क्या आशय है? पर्यावरण-प्रदूषण के मुख्य कारणों तथा नियन्त्रण के उपायों का उल्लेख कीजिए।
या
पर्यावरण प्रदूषण की क्या अवधारणा है? प्रदूषण को रोकने के लिए उपचारात्मक उपायों का वर्णन कीजिए। [2013]
या
प्रदूषण रोकने के विभिन्न उपायों की विवेचना कीजिए। [2016]
उत्तर
पर्यावरण-प्रदूषण का अर्थ
पर्यावरण प्रदूषण का सामान्य अर्थ है हमारे पर्यावरण का दूषित हो जाना। पर्यावरण का निर्माण प्रकृति ने किया है। प्रकृति-प्रदत्त पर्यावरण में जब किन्हीं तत्त्वों का अनुपात इस रूप में बदलने लगता है। जिसका सामान्य जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना होती है, तब कहा जाता है कि पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। उदाहरण के लिए-यदि पर्यावरण के मुख्य भाग वायु में ऑक्सीजन के स्थान पर किसी अन्य विषैली गैस या गैसों का अनुपात बढ़ जाए तो यह कहा जाएगा कि वायु-प्रदूषण हो गया है। पर्यावरण के किसी भी भाग के प्रदूषित हो जाने को पर्यावरण-प्रदूषण कहा जाता है। यह प्रदूषण जल-प्रदूषण, वायु-प्रदूषण, ध्वनि-प्रदूषण तथा मृदा-प्रदूषण के रूप में हो सकता है।
पर्यावरण-प्रदूषण के कारण
आधुनिक विश्व के सम्मुख पर्यावरण-प्रदूषण एक अत्यन्त गम्भीर समस्या है। वायु, जल और भूमि का प्रदूषण जिन कारणों से हुआ है उनका उल्लेख यहाँ संक्षेप में किया जा रहा है-
1. औद्योगीकरण
वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा के विकास एवं अनुसन्धानों के कारण पर्यावरण में प्रदूषण उत्पन्न हुआ है। औद्योगीकरण की प्रवृत्ति के फलस्वरूप जंगल काटे जा रहे हैं, पहाड़ों को समतल किया जा रहा है, नदियों के स्वाभाविक बहाव को मोड़ा जा रहा है, खनिज पदार्थों का अन्धाधुन्ध दोहन हो रहा है, इन सबके फलस्वरूप पर्यावरण प्रदूषित होता है। औद्योगिक चिमनियों में रात-दिन निकलने वाले धुएँ से वायु प्रदूषण हो रहा है, कल-कारखानों से निकलने वाला कचरा और गन्दा पानी नदियों के जल में मिल रहा है. जिसके फलस्वरूप नदियों का जल-प्रदषित होता जा रहा है। इस तरह औद्योगिक विकास से प्रदूषण निरन्तर बढ़ रहा है।
2. वाहित मल
शहरों के मकानों से निकलने वाला मलमूत्र सीवर पाइप के द्वारा नदी, तालाबों और झीलों में डाल दिया जाता है। जो उनके जल को प्रदूषित कर देता है।
3. घरेलू अपमार्जक
घरों, अस्पतालों आदि की सफाई में विभिन्न प्रकार के साबुन, विम, डिटरजेण्ट पाउडर आदि प्रयुक्त होते हैं जो नालियों के द्वारा नदियों, तालाबों और झीलों आदि में मिल जाते हैं। अपमार्जकों के फलस्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन अम्ल उत्पन्न होते हैं और जल को प्रदूषित करते हैं।
4. कूड़े-करकट और मृत जीवों का सड़ना
कूड़े-करकट के ढेर और मृत जीवों से जो दुर्गन्ध उठती है उससे वायु प्रदूषित हो जाती है। लाशों के सड़ने में अमोनिया गैस वायु और जल दोनों को ही प्रदूषित करती है।
5. प्रकृति का अनुचित शोषण
अपने भौतिक विकास हेतु मानव प्रकृति का बेदर्दी से शोषण कर रहा है। वह जंगलों को उजाड़ रहा है, पर्वतों को समतल बना रहा है और खनिज पदार्थों का निरन्तर दोहन कर रहा है, जिसके फलस्वरूप सूखा, बाढ़ और भू-स्खलन की समस्या उत्पन्न हुई है। वनों की अन्धाधुन्ध कटाई से वातावरण में कार्बन ड्राई-ऑक्साइड की सान्द्रता निरन्तर बढ़ रही है।
6. रासायनिक तत्त्वों का वायुमण्डल में मिश्रण
निरन्तर उत्पन्न होने वाले धुएँ से रासायनिक तत्त्व वायुमण्डल में मिल रहे हैं, कार्बन मोनो-ऑक्साइड निरन्तर मानव को सता रही है और इसके फलस्वरूप दम घुटने लगता है और उल्टी आने लगती है। सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन की वायुमण्डल में अधिक मात्रा होने पर फेफड़ों की बीमारियाँ और आँखों में जलन उत्पन्न होती है। वायुमण्डल में रासायनिक गैसों की अधिक मात्रा के कारण अम्लीय वर्षा का भय भी बना रहता है।
7. स्वतः चल-निर्वातक
जेट-विमान, ट्रेन, मोटर, ट्रैक्टर, टैम्पों आदि रात-दिन दौड़ते हैं। पेट्रोल, डीजल और मिट्टी के तेल के धुएँ से अनेक प्रकार की गैसें उत्पन्न होती हैं, जो वातावरण में फैलकर वायु को प्रदूषित करती हैं।
8. कीटनाशक पदार्थ
कीटनाशक पदार्थ चूहों, कीड़े-मकोड़ों और जीवाणुओं को मारने के लिए खेतों और उद्यानों के पौधों पर छिड़के जाते हैं। डी०डी०टी०, फिनॉयल, क्लोरीन, पोटैशियम परमैगनेट का प्रभाव हानिकारक होता है। इनके छिड़काव से मछलियाँ मर जाती हैं, भूमि की उर्वरा-शक्ति कम हो जाती है और सूक्ष्म जीव जो पर्यावरण को सन्तुलित रखते हैं, समाप्त हो जाते हैं।
9. रेडियोधर्मी पदार्थ
नाभिकीय अस्त्रों के विस्फोटों के फलस्वरूप जल, थल और वायु सभी में रेडियोधर्मी पदार्थ प्रवेश कर जाते हैं और पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि करते हैं।
पर्यावरण-प्रदूषण के नियन्त्रण के उपाय :
पर्यावरण प्रदूषण अपने आप में एक गम्भीर समस्या है तथा सम्पूर्ण मानव जगत के लिए चुनौती है। इस समस्या के समाधान के लिए मानव-मात्र चिन्तित है। विश्व के प्राय: सभी देशों में पर्यावरण प्रदूषण के नियन्त्रण के लिए अनेक उपाय किये जा रहे हैं। वास्तव में भौतिक प्रगति तथा पर्यावरण-प्रदूषणे दो सहगामी प्रक्रियाएँ हैं। इस स्थिति में यदि कहा जाए कि हम औद्योगिक तथा भौतिक क्षेत्र में अधिक-से-अधिक प्रगति भी करते रहें तथा साथ ही हमारा पर्यावरण भी प्रदूषित न हो, तो यह असम्भव है। हमें पर्यावरण प्रदूषण को समाप्त नहीं कर सकते, हद-से-हद पर्यावरण-प्रदूषण को नियन्त्रित कर सकते हैं अर्थात् सीमित कर सकते हैं। पर्यावरण-प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं-
1. औद्योगिक संस्थानों के लिए कठोर निर्देश जारी किये गये हैं कि वे पर्यावरण
प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए हर सम्भव उपाय करें। इसके लिए आवश्यक है कि पर्याप्त ऊँची चिमनियाँ लगाई जाएँ तथा उनमें, उच्च कोटि के छन्ने लगाए जाएँ। औद्योगिक संस्थानों से विसर्जित होने वाले जल को पूर्णरूप से उपचारित करके ही पर्यावरण में छोड़ा जाना चाहिए। यही नहीं ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए जहाँ-जहाँ सम्भव हो ध्वनि अवरोधक लगाये जाने चाहिए। औद्योगिक संस्थानों के आस-पास अधिक-से-अधिक पेड़ लगाये जाने चाहिए।
2. वाहन भी पर्यावरण
प्रदूषण के मुख्य कारण है। अतः वाहनों द्वारा होने वाले प्रदूषण को भी नियन्त्रित करना आवश्यक है। इसके लिए वाहनों के इंजन की समय-समय पर जाँच करवाई जानी चाहिए। ईंधन में होने वाली मिलावट को भी रोकना चाहिए। कुछ नगरों में CNG चालित वाहनों को इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे भी पर्यावरण-प्रदूषण को नियन्त्रित करने में योगदान मिलेगा।
3. जन
सामान्य को पर्यावरण के प्रदूषण के प्रति सचेत होना चाहिए तथा जीवन के हर क्षेत्र में प्रदूषण को रोकने के हर सम्भव उपाय किये जाने चाहिए। पर्यावरण-प्रदूषण वास्तव में प्रत्येक व्यक्ति की समस्या है। अत: इसे नियन्त्रित करने के लिए प्रत्येक व्यक्तिं को जागरूक होना चाहिए। पर्यावरण प्रदूषण के प्रत्येक कारण को जानने का प्रयास किया जाना चाहिए तथा उसके निवारण का उपाय किया जाना चाहिए।
प्रश्न 2
जल प्रदूषण से आप क्या समझते हैं ? इसके मुख्य कारणों, हानियों तथा नियन्त्रित करने के उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
जल प्रदूषण : पर्यावरण प्रदूषण का एक मुख्य रूप या प्रकार है-जल प्रदूषण। जल के मुख्य स्रोतों में दूषित एवं विषैले तत्त्वों का समावेश होना जल प्रदूषण कहलाती है। यह भी आज के युग की गम्भीर समस्या है। इसका अत्यधिक बुरा प्रभाव मानव-समाज, प्राणि-जगत तथा वनस्पति जगते पर पड़ता है। जल प्रदूषण के कारणों, हानियों तथा इसे नियन्त्रित करने के उपायों का विवरण निम्नवर्णित है।
जल प्रदूषण के कारण
जल प्रदूषण के निम्नलिखित कारण हैं:
- औद्योगीकरण जल प्रदूषण के लिए सर्वाधिक उत्तरदायी है। चमड़े के कारखाने, चीनी एवं ऐल्कोहॉल के कारखाने कागज की मिलें तथा अन्य अनेकानेक उद्योग नदियों के जल को प्रदूषित करते हैं।
- नगरीकरण भी जल प्रदूषण के लिए उत्तरदायी है। नगरों की गन्दगी, मल व औद्योगिक अवशिष्टों। के विषैले तत्त्व भी जल को प्रदूषित करते हैं।
- समद्रों में जहाजरानी एवं परमाणु अस्त्रों के परीक्षण से भी जल प्रदषित होता है।
- नदियों के प्रति भक्ति-भाव होते हुए भी तमाम गन्दगी; जैसे-अधजले शव और जानवरों के मृत शरीर तथा अस्थि विसर्जन आदि भी नदियों में ही किया जाता है, जो नदियों के जल प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है।
- जल में अनेक रोगों के हानिकारक कीटाणु मिल जाते हैं, जिससे प्रदूषण उत्पन्न हो जाता है।
- भू-क्षरण के कारण मिट्टी के साथ रासायनिक उर्वरक तथा कीटनाशक पदार्थों के नदियों में पहुँच जाने से नदियों का जल प्रदूषित हो जाता है।
- घरों से बहकर निकलने वाला फिनायल, साबुन, सर्फ एवं शैम्पू आदि से युक्त गन्दा पानी तथा शौचालय का दूषित मल नालियों में प्रवाहित होता हुआ नदियों और झीलों के जल में मिलकर उसे प्रदूषित कर देता है।
- नदियों और झीलों के जल में पशुओं को नहलाना, मनुष्यों द्वारा स्नान करना व साबुन आदि से गन्दे वस्त्र धोना भी जल प्रदूषण का मुख्य कारण है।
“जल प्रदूषण की हानियाँ
जल प्रदूषण की हानियों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है।
- प्रदूषित जल के सेवन से जीवों को अनेक प्रकार के खतरों का सामना करना पड़ता है।
- जल प्रदूषण से अनेक बीमारियाँ; जैसे-हैजा, पीलिया, पेट में कीड़े, यहाँ तक कि टायफाइड भी प्रदूषित जल के कारण ही होता है। राजस्थान के दक्षिणी भाग के आदिवासी गाँवों में गन्दे तालाबों का पानी पीने से “नारू’ नाम का भयंकर रोग होता है। इन गाँवों के 6 लाख 90 हजार लोगों में से 1 लाख 90 हजार लोगों को यह रोग है।
- प्रदूषित जल का प्रभाव जल में रहने वाले जन्तुओं और जलीय पौधों पर भी पड़ रहा है। जल प्रदूषण के कारण मछली और जलीय पौधों में 30 से 50 प्रतिशत तक की कमी हो गयी है। जो व्यक्ति खाद्य-पदार्थ के रूप में मछली आदि का उपयोग करते हैं, उनके स्वास्थ्य को भी हानि पहुँचती है।
- प्रदूषित जल का प्रभाव कृषि उपजों पर भी पड़ता है। कृषि से उत्पन्न खाद्य-पदार्थों को मानव व पशुओं द्वारा उपयोग में लाया जाता है, जिससे मानव व पशुओं के स्वास्थ्य को हानि होती है।
- जल, जन्तुओं के विनाश से पर्यावरण असन्तुलित होकर विभिन्न प्रकार के कुप्रभाव उत्पन्न करता
जल प्रदूषण को नियन्त्रित करने के उपाय
जल की शुद्धता और उपयोगिता बनाए रखने के लिए प्रदूषण को रोकना आवश्यक है। जल प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए निम्नलिखिते, उपाय प्रयोग में लाए जा सकते हैं
- नगरों के दूषित जल और मल को नदियों और झीलों के स्वच्छ जल में मिलने से रोका जाए।
- कल-कारखानों के दूषित और विषैले जल को नदियों और झीलों के जल में न गिरने दिया जाए।
- मल-मूत्र एवं गन्दगीयुक्त जल का उपयोग बायो-गैस बनाने या सिंचाई के लिए करके प्रदूषण को | रोका जा सकता है।
- सागरों के जल में आणविक परीक्षण न कराए जाएँ।
- नदियों के तटों पर शवों को ठीक से जलाया जाये तथा उनकी राख भूमि में दबा दी जाए।
- पशुओं के मृतक शरीर और मानव शवों को स्वच्छ जल में प्रवाहित न करने दिया जाए।
- जल प्रदूषण रोकने के लिए नियम बनाए जाएँ तथा उनका कठोरता से पालन किया जाए।
- नदियों, कुओं, तालाबों और झीलों के जल को शुद्ध बनाए रखने के लिए प्रभावी उपाय काम में लाए | जाएँ।
- जल प्रदूषण के कुप्रभाव तथा उनके रोकने के उपायों की जनसामान्य में प्रचार-प्रसार कराया जाए।
- जल उपयोग तथा जल संसाधन संरक्षण के लिए राष्ट्रीय नीति बनायी जाए।
प्रश्न 3
भारत में पर्यावरण-प्रदूषण का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए। पर्यावरण संरक्षण के सरकारी उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
भारत में पर्यावरण-प्रदूषण भारत में पर्यावरण-प्रदूषण की समस्या लगातार बढ़ रही है। सबसे प्रमुख समस्या जल-प्रदूषण की है। इसके बाद नगरीय क्षेत्रों में वायु और ध्वनि-प्रदूषण की समस्या है। लगभग सभी नदियाँ प्रदूषण की समस्या से ग्रस्त हैं और देश में उपलब्ध जल का लगभग 70 प्रतिशत भाग प्रदूषित है। लगभग सभी नदियों में कारखानों को गन्दा पानी छोड़ा जाता है साथ ही मल-मूत्र भी मिलता रहता है। दामोदर नदी में दुर्गापुर और आसनसोल में स्थित कारखानों से छोड़े जाने वाले अवशिष्टों और मल आदि के मिलने से फिनोल, सायनाइड, अमोनिया आदि विषैले तत्वों की मात्रा बढ़ गयी है। हुगली नदी का जल और अधिक प्रदूषित है। गंगा जल में स्वयं शुद्ध होते रहने की क्षमता है परन्तु इसका जल भी प्रदूषित हो गया है। कानपुर और वाराणसी में इसका जल बहुत अधिक प्रदूषित है। भारत में वायु-प्रदूषण भी निरन्तर बढ़ रहा है।
भारतीय वायुमण्डल में लगभग 40 लाख टन सल्फर एसिड, 70 लाख टन कार्बन-कण, 10 लाख टन कार्बन मोनो-ऑक्साइड, नाइट्रोजन-ऑक्साइड आदि गैसों का सम्मिश्रण है। बड़े नगरों; जैसे-कोलकाता, मुम्बई, चेन्नई, दिल्ली, कानपुर, अहमदाबाद आदि की वायु बहुत अधिक प्रदूषित है। कोलकाता सबसे अधिक प्रदूषित शहर है। यहाँ की वायु. में सल्फर डाइ-ऑक्साइड और धूल कणों की मात्रा सबसे अधिक है। कोलकाता शहर लगभग 1300 टन प्रदूषक तत्त्व वायुमण्डल में छोड़ता है। भारत में ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ रहा है। बढ़ती हुई जनसंख्या, नगरीकरण की प्रवृत्ति और स्वचालित वाहनों की बाढ़ से ध्वनि प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है। फलस्वरूप लोगों की श्रवण-क्षमता घटती जा रही है, नींद गायब हो रही है और स्नायुविक रोग बढ़ रहे हैं। भारत में मृदा-प्रदूषण, भू-प्रदूषण और भू-स्खलन आदि की समस्याएँ भी हैं। थार का रेगिस्तान देश के अन्दरुनी हिस्सों में बढ़ रहा है, हिमालय वीरान हो रहा है, भूमि की उर्वरा-शक्ति कम हो रही है, जलवायु बदल रही है और सूखा एवं बाढ़ का प्रकोप निरन्तर बढ़ रहा है।
पर्यावरण संरक्षण के सरकारी उपाय
सन् 1990 के बाद केन्द्र तथा राज्य सरकारों ने देश में पर्यावरण संरक्षण हेतु अनेक उपाय किये हैं, जिनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं
- केन्द्र सरकार ने विशेषज्ञों, विद्वानों तथा प्रशासनिक अधिकारियों के लिए पर्यावरण सम्बन्धी शिक्षण और प्रशिक्षण की समुचित व्यवस्था की है।
- पर्यावरण और वन मन्त्रालय ने पर्यावरण संरक्षण हेतु अनेक अनुसन्धान तथा विकास कार्यक्रम
चलाये हैं। मई, 2000 तक लगभग 108 परियोजनाओं पर कार्य हो चुका है। - केन्द्र सरकार ने देश के कुछ वनों को संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया है। इन संरक्षित क्षेत्रों में शिकार खेलना तथा वृक्षों को काटना दण्डनीय अपराध है। उत्तर प्रदेश में दुधवा का वन्य क्षेत्र इसका उदाहरण है।
- सरकार ने पर्वतीय क्षेत्रों में अनेक विकास कार्यक्रम आरम्भ किये हैं, जिनसे पर्यावरण संरक्षण
को अत्यधिक प्रोत्साहन मिल रहा है। - पर्यावरण निदेशालय ने ‘राष्ट्रीय पर्यावरण जागरूकता, अभियान आरम्भ किया है। इस अभियान में गैर-सरकारी संगठनों, शिक्षण संस्थाओं तथा सरकारी विभागों के प्रस्ताव भी आमन्त्रित किये
गये हैं। - अप्रैल 1995 से देश के चार महानगरों-कोलकाता, मुम्बई, चेन्नई और दिल्ली में हरित ईंधन योजना चलाई जा रही है। इसके अन्तर्गत वाहनों में सीसा रहित पेट्रोल का उपयोग अनिवार्य कर दिया गया है।
- गंगा नदी तथा अन्य जलाशयों को गन्दगी से मुक्त रखने के लिए सरकार के निर्देशन में देश भर में 270 योजनाएँ चल रही हैं।
- सरकार ने पर्यावरण संरक्षण कार्यक्रमों को प्रोत्साहन देने के लिए इन्दिरा गाँधी पर्यावरण पुरस्कार, राष्ट्रीय पर्यावरण फैलोशिप आदि पुरस्कार योजनाएँ लागू की हैं।
- सरकार ने केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड तथा राज्य प्रदूषण बोर्ड की स्थापना की है। इन संस्थाओं का प्रमुख कार्य प्रदूषण नियन्त्रण कानूनों को कठोरतापूर्वक लागू करना तथा पर्यावरण सम्बन्धी प्रयासों की समीक्षा करना है।
- सरकार ने वृक्षारोपण को प्रोत्साहन देने के लिए वर्ष 1997-98 से फ्लाई ऐश सुधार योजना लागू की है। इस योजना के अन्तर्गत रिक्त भूमि पर वृक्ष लगाये जाते हैं।
- स्वयं सेवी संस्थाएँ तथा राज्य सरकारें पर्यावरण संरक्षण के कार्य में महत्त्वपूर्ण योग दे रही हैं।
- वन संरक्षण, वृक्षारोपण, चिपको आन्दोलन, वन महोत्सव आदि कार्यक्रमों से भी पर्यावरण संरक्षण को विशेष प्रोत्साहन मिला है।
- उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 1997-98 में एक सचल पर्यावरणीय प्रयोगशाला स्थापित की है, जिसका कार्य घटनास्थल पर जाकर पर्यावरण विरोधी कार्यों की जाँच करना है।
- जन-जागरण कार्यक्रम के अन्तर्गत जनता को वायु, जल, ध्वनि, मृदा आदि प्रदूषणों से उत्पन्न खतरों से अवगत कराया जा रहा है और उन्हें पर्यावरण-शिक्षा ग्रहण करने की सुविधाएँ प्रदान की जा रही हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
पर्यावरण के वर्गीकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
अध्ययन की सुविधा तथा प्रभावों की भिन्नता को ध्यान में रखते हुए सम्पूर्ण पर्यावरण को निम्नलिखित वर्गों में वर्गीकृत किया गया है-
1. प्राकृतिक अथवा भौगोलिक पर्यावरण
पर्यावरण के इस वर्ग के अन्तर्गत हम उन समस्त प्राकृतिक शक्तियों एवं कारकों को सम्मिलित करते हैं जो मनुष्य को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। इस स्थिति में पृथ्वी, आकाशवायु, जल, वनस्पति तथा समस्त जीव-जन्तु प्राकृतिक पर्यावरण (Natural Environment) के ही घटक हैं। प्राकृतिक पर्यावरण ही पर्यावरण का मुख्यतम’ घटक है तथा पर्यावरण का यही घटक मानव-जीवन को सर्वाधिक प्रभावित करता है। वास्तव में प्राकृतिक पर्यावरण का निर्माण मनुष्य ने नहीं किया है तथा न ही मनुष्य प्राकृतिक पर्यावरण को पूरी तरह से नियन्त्रित कर पाया है। सामान्य रूप से, पर्यावरण के अन्तर्गत प्राकृतिक पर्यावरण के जनजीवन पर पड़ने वाले प्रभावों का ही विस्तृत अध्ययन किया जाता है।
2. सामाजिक पर्यावरण
पर्यावरण का द्वितीय घटक सामाजिक पर्यावरण (Social Environment) कहलाता है। सामाजिक पर्यावरण का निर्माण मनुष्य ने स्वयं किया है। पर्यावरण के इस बटक में सम्पूर्ण सामाजिक ढाँचे को सम्मिलित किया जाता है। इसलिए इसे सामाजिक सम्बन्धों का पर्यावरण भी कहा जाता है। इसके मुख्य अंग हैं–परिवार, आस-पड़ोस, रिश्ते-नाते, खेल के साथी, समूह एवं समुदाय तथा विद्यालय।।
3. सांस्कृतिक पर्यावरण
पर्यावरण का तीसरा मुख्य घटक है–सांस्कृतिक पर्यावरण (Cultural Environment)। सांस्कृतिक पर्यावरण में मनुष्य द्वारा निर्मित वस्तुओं एवं परिवेश को सम्मिलित किया जाता है। सांस्कृतिक पर्यावरण के दो पक्ष स्वीकार किए गए हैं, जिन्हें क्रमशः भौतिक सांस्कृतिक पर्यावरण तथा अभौतिक सांस्कृतिक पर्यावरण कहा जाता है। मनुष्य द्वारा विकसित किए गए समस्त भौतिक एवं यान्त्रिक साधन भौतिक सांस्कृतिक पर्यावरण में तथा इससे भिन्न धर्म, संस्कृति, भाषा, लिपि, रूढ़ियाँ, प्रथाएँ, विश्वास, कानून आदि अभौतिक सांस्कृतिक पर्यावरण में सम्मिलित माने । जाते हैं।
प्रश्न 2
जल-प्रदूषण का अर्थ एवं मुख्य स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
जल-प्रदूषण का अर्थ
वर्तमान युग में जल-प्रदूषण की समस्या अत्यन्त गम्भीर है और अनेक बीमारियों का कारण प्रदूषित जल’ ही है। जल में दो भाग ऑक्सीजन और एक भाग हाइड्रोजन होता है, इसके साथ उसमें अनेक खनिज तत्त्व, कार्बनिक-अकार्बनिक पदार्थ और गैसें घुल जाती हैं। यदि जल में घुले हुए पदार्थ आवश्यकता से अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाते हैं अथवा कुछ ऐसे पदार्थ मिल जाते हैं, जो साधारणतया जल में उपस्थित नहीं रहते तो जल प्रदूषित हो जाता है। प्रदूषित जल का उपयोग मानव, जीव-जन्तु, पेड़-पौधों और सभी वनस्पतियों के लिए हानिकारक होता है। जल-प्रदूषण के स्रोत–अनेक प्रकार के पदार्थ जल को प्रदूषित कर देते हैं। यहाँ जल को प्रदूषित करने वाले स्रोतों का उल्लेख संक्षेप में किया जा रहा है
- जल-प्रदूषण का प्रमुख स्रोत मल-मूत्र, औद्योगिक बहिस्राव, उर्वरक और कीटनाशक पदार्थ हैं। सीवर पाइप, घरेलू कूड़ा-करकट और कारखानों से निकले हुए अवशिष्टों का जल में विलय होने से जल प्रदूषित हो जाता है।
- तेल एवं तैलीय पदार्थ भी जल-प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। जलयानों के अवशिष्ट, तेल के विसर्जन, खनिज तेल के कुओं के रिसाव के फलस्वरूप जल-प्रदूषण में वृद्धि होती है।
- जल का तापीय प्रदूषण भी समस्या का एक स्रोत है। विभिन्न कारखानों के संयन्त्रों में प्रयुक्त | रिऐक्टरों के ताप को कम करने हेतु नदी अथवा झील के जल का प्रयोग किया जाता है और तत्पश्चात् जल पुनः नदी अथवा झीलों में छोड़ दिया जाता है। इस गर्म जल के फलस्वरूप तापीय प्रदूषण होता है।
- रेडियोधर्मी अवशिष्टों से भी जल-प्रदूषण होता है। नाभिकीय विस्फोटों के फलस्वरूप रेडियोधर्मी विशिष्ट जल और जलाशयों में मिल जाते हैं और ये अधिक नुकसान पहुँचाते हैं।
- मृत जीवों की लाशों को जलाशय में फेंकने के फलस्वरूप जल, दुर्गन्ध एवं प्रदूषणयुक्त हो जाता है।
- जल में विभिन्न रोगों के जीवाणुओं का समावेश हो जाने से भी जल प्रदूषित हो जाता है।
प्रश्न 3
जल-प्रदूषण का जनजीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? इसे रोकने के उपायों का भी उल्लेख कीजिए।
या
जल प्रदूषण की समस्या के निवारण हेतु अपनाए जाने वाले उपायों का वर्णन कीजिए। [2016]
उत्तर
जल-प्रदूषण का जनजीवन पर प्रभाव
जल-प्रदूषण का मानवे, जीव-जन्तुओं और वनस्पतियों पर अत्यधिक बुरा प्रभाव पड़ेता है। प्रदूषित जल मानव-स्वास्थ्य हेतु हानिकारक होता है। आंत्रशोध, पेचिस, पीलिया, हैजा, टाइफाइडऔर अपच आदि रोग दूषित जल के फलस्वरूप ही होते हैं। गन्दे जल से नहाने से विभिन्न प्रकार के चर्मरोग हो जाते हैं। दूषित जल का प्रभाव मानव के साथ ही जल-जीवों पर भी पड़ता है। मछलियों, कछुओं, जलीय पक्षियों और जलीय पादपों का जीवन खतरे में पड़ जाता है। यदि जल में ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है और सल्फेट, नाइट्रेट और क्लोराइड आदि की मात्रा बढ़ जाती है तो जलीय जन्तुओं और पादपों के जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।
जल-प्रदूषण रोकने के उपाय-जल में शुद्धता की प्रक्रिया प्रकृति ही करती रहती हैं परन्तु फिर भी जल-प्रदूषण को रोकने के उपाय किये जाने चाहिए। कारखानों से निकलने वाले जहरीले अवशिष्ट पदार्थों और गर्म जल को जलाशयों में नहीं फेंका जाना चाहिए। मल-मूत्र आदि को जलाशय में नहीं गिराया जाना चाहिए इन्हें बस्तियों से दूर गड़ों में गिराया जाना चाहिए। कूड़ा-करकट, मरे जानवर और लाश नदी, तालाब अथवा झील में न फेंककर उन्हें जला दिया जाना। चाहिए। पेयजल के स्रोतों को दीवार बनाकर बाह्य गन्दगी से दूर रखना चाहिए। जनसामान्य को । जल-प्रदूषण के कारणों, दुष्प्रभावों और इनके रोकथाम की जानकारी प्रदान की जानी चाहिए। समय-समय पर नदी, तालाब और कुओं के जल का परीक्षण किया जाना चाहिए।
प्रश्न 4
वायु-प्रदूषण का अर्थ एवं मुख्य स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
अर्थ: मानव और सभी जीवों के लिए स्वच्छ वायु आवश्यक है। वायुमण्डल में विभिन्न गैसें एक निश्चित मात्रा एवं अनुपात में होती हैं। जब किन्हीं कारणों से उनकी मात्रा और अनुपात में परिवर्तन हो जाता है तो वायु प्रदूषित हो जाती है। ‘विश्व-स्वास्थ्य संगठन ने वायु-प्रदूषण के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा-“वायु प्रदूषण उन परिस्थितियों तक सीमित रहता है जहाँ वायुमण्डल में दूषित पदार्थों की सान्द्रता मनुष्य और पर्यावरण को हानि पहुँचाने की सीमा तक बढ़ती है। वायु-प्रदूषण के स्रोत–वायु-प्रदूषण मुख्य रूप से मानव की गतिविधियों के फलस्वरूप होता है। औद्योगीकरण, नगरीकरण तथा ईंधन चालित वाहनों में होने वाली वृद्धि वायु-प्रदूषण के मुख्य कारण हैं।
वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसें कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो-ऑक्साइड, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, ओजोन आदि निश्चित मात्रा और अनुपात में हैं। रेलगाड़ी, मोटर, कार, टैक्ट्रर, टैम्पो, जेट विमान और पेट्रोल एवं डीजल से चलने वाली मशीनों और लकड़ी, कोयला, तेल आदि के जलने से निकलने वाले धुएँ से वायु प्रदूषण उत्पन्न होता है। कभी-कभी प्रकृति भी वायु-प्रदूषण का कारण बनती है। ज्वालामुखी विस्फोट, कोहरा, आँधी-तूफान आदि भी वायु प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। इसके अतिरिक्त वस्तुओं के सड़ने-गलने के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाली दुर्गन्ध से भी वायु-प्रदूषण में वृद्धि होती है। वनों अर्थात् पेड़ों की अन्धाधुन्ध कटाई के कारण भी वायु में गैसों का सन्तुलन बिगड़ रहा है तथा वायु प्रदूषित हो रही है।
प्रश्न 5
वायु-प्रदूषण का जनजीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? इसे रोकने के उपायों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर
वायु-प्रदूषण का जनजीवन पर प्रभाव
वायु प्रदूषण का प्रभाव मानव और अन्य जीवों तथा पेड़-पौधों सभी पर पड़ता है। वायु-प्रदूषण से मानव का स्वास्थ्य खराब हो जाता है। खाँसी, फेफड़ों का कैंसर, एक्जिमा आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं, रक्तचाप बढ़ जाता है, आँखों के रोग उत्पन्न हो जाते हैं, चर्मरोग और मुँहासे आदि उत्पन्न हो जाते हैं। वायु-प्रदूषण और रासायनिक गैसों से पेड़ों की पत्तियाँ और नसें सूख जाती हैं। भारत में कोयला खानों में मजदूरी करने वाले लोग फुफ्फुस रोग से ग्रस्त हो जाते हैं। मानव की भाँति ही अन्य जीवों का श्वासतन्त्र और केन्द्रीय-नाड़ी संस्थान वायु-प्रदूषण से प्रभावित होता है।
बादल, वर्षा और तापक्रम पर भी वायु-प्रदूषण का प्रभाव पड़ता है। वाय-प्रदषण रोकने के उपाय-वांय-प्रदषण को रोकने के लिए व्यापक पैमाने पर कार्य किया। जाना चाहिए। कारखानों को आबादी से दूर स्थापित किया जाना चाहिए, उनकी चिमनियों को ऊँचा रखा जानी चाहिए और उनमें विशेष फिल्टर लगाया जाना चाहिए। भोजन पकाने के लिए कोयला, लकड़ी का प्रयोग कम किया जाना चाहिए, धुआँरहित ईंधन का प्रयोग किया जाना चाहिए, स्वचालित वाहनों की धूम्रनलिका में छन्ना लगाना आवश्यक है। अधिक धुआँ देने वाले वाहनों को नष्ट कर दिया जाना चाहिए। गोबर, कूड़ा-करकट को आबादी से दूर किसी गड्ढे में डालकर मिट्टी से ढक दिया जाना चाहिए।
प्रश्न 6
ध्वनि-प्रदूषण का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।
या
ध्वनि प्रदूषण से आप क्या समझते हैं? [2013]
उतर
अर्थ: आधुनिक युग में ध्वनि प्रदूषण भी मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल रहा है। वातावरण में विभिन्न प्रकार के ध्वनि वाले ध्वनि-यन्त्रों से शोर बहुत अधिक बढ़ गया है और यह शोर का बढ़ना ही ध्वनि-प्रदूषण कहलाता है। ध्वनि की तीव्रता के मापन की इकाई डेसीबेल है। सामान्य रूप से 85 डेसीबेल से अधिक ध्वनि का पर्यावरण में व्याप्त होना ध्वनि-प्रदूषण माना जाता है। कारखानों की मशीनों से थोड़े-थोड़े अन्तराल पर बजने वाले सायरन, विमान, रेडियो, लाउडस्पीकर, टै फलस्वरूप जो शोर उत्पन्न होता है, वह ध्वनि-प्रदूषण है।
ध्वनि-प्रदूषण के स्रोत
ध्वनि-प्रदूषण के प्राकृतिक और भौतिक दो तरह के स्रोत हैं। प्राकृतिक स्रोतों के अन्तर्गत बादलों की गड़गड़ाहट, बिजली की कड़क, समुद्र की लहरें, ज्वालामुखी विस्फोट की आवाज और झरनों को पानी गिराना आदि आते हैं। भौतिक स्रोतों के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के सायरन, इंजनों, ट्रकों, मोटरों, वायुयानों, लाउडस्पीकरों और टेपरिकॉर्डर आदि की आवाज आदि आते हैं।
ध्वनि-प्रदूषण का जनजीवन पर प्रभाव
ध्वनि-प्रदूषण का मानव-जीवन और उसके स्वास्थ्य तथा कार्य-क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। विभिन्न परीक्षणों से यह ज्ञात हुआ है कि सामान्यत: शान्त कमरे में 50 डेसीबेल ध्वनि होती है। 100 डेसीबेल ध्वनि असुविधापूर्ण और 120 डेसीबेल से ऊपर कष्टदायक होती है। ध्वनि-प्रदूषण के फलस्वरूप श्रवण-शक्ति का ह्रास होता है, नींद में बाधा उत्पन्न होती है, नाड़ी सम्बन्धी रोग उत्पन्न होते हैं, मानव की कार्यक्षमता घटती है, जीव-जन्तुओं के हृदय, मस्तिष्क और यकृत को हानि पहुँचती है। ध्वनि-प्रदूषण से रक्त चाप भी बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त अत्यधिक शोर से व्यक्ति के स्वभाव तथा व्यवहार पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
ध्वनि-प्रदूषण को रोकने के उपाय
कोई जाग्रत समाज ही ध्वनि-प्रदूषण को रोक सकता है। इसके हेतु औद्योगिक प्रतिष्ठानों को आबादी से दूर रखा जाना चाहिए और औद्योगिक शोर को कम करने का प्रयास किया जाना चाहिए। मशीनों का सही रख-रखाव किया जाना चाहिए और अत्यधिक ध्वनि करने वाले कल-कारखानों में कार्य करने वाले श्रमिकों को कर्णबन्धनों को लगाना अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। लाउडस्पीकरों और ध्वनि विस्तारक बाजों का वाल्यूम कम रखा जाना चाहिए। मोटर, ट्रक, वाहनों में उच्च ध्वनि करने वाले हॉर्न नहीं लगाये जाने चाहिए। विमानों को उतारने और चढ़ाने में कम-से-कम शोर उत्पन्न किया जाना चाहिए और जेट विमानों के निर्गम पाइप ऊपर आकाश की ओर मोड़े जाने चाहिए।
प्रश्न 7
मृदा-प्रदूषण का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
अर्थ: मृदा अथवा मिट्टी में तरह-तरह के लवण, खनिज तत्त्व, कार्बनिक पदार्थ, गैसें और जल निश्चित मात्रा और अनुपात में होते हैं। यदि उनकी मात्रा और अनुपात में परिवर्तन हो जाता है तो उसे मृदा-प्रदूषण कहा जाता है।
मृदा-प्रदूषण के स्रोत
वायु तथा जल के प्रदूषण से मृदा-प्रदूषण होना नितान्त स्वाभाविक है। जब प्रदूषित जल भूमि पर फैलता है तथा प्रदूषित वायु का प्रवाह होता है तो मृदा-प्रदूषण स्वतः ही हो जाता है। इसके अतिरिक्त भी विभिन्न कारणों से मृदा-प्रदूषण में वृद्धि हो रही है। जनसंख्या वृद्धि के फलस्वरूप खाद्य पदार्थों की माँग प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और भूमि की उर्वरता को बढ़ाने के लिए मिट्टी में विभिन्न प्रकार के उर्वरक डाले जाते हैं। अनवरत रासायनिक खादों का प्रयोग मृदा-प्रदूषण की समस्या उत्पन्न कर देता है। इसी तरह फसलों को कीड़ों और र्जीवाणुओं आदि से बचाने के लिए डी०डी०टी०, गैमेक्सीन, एल्ड्रीन और कुछ अन्य कीटनाशकों का अत्यधिक छिड़काव मृदा-प्रदूषण उत्पन्न करता है। कल-कारखानों से निकले हुए विभिन्न प्रकार के रासायनिक तत्त्व भी मृदा-प्रदूषण करते हैं। साथ ही भूमि क्षरण भी मृदा प्रदूषण उत्पन्न करता है।
मृदा-प्रदूषण को जनजीवन पर प्रभाव
मृदा-प्रदूषण का जनजीवन पर अत्यधिक व्यापक प्रभाव पड़ता है। कीटनाशक और कवकनाशक विषैली दवाओं के छिड़काव से शनैः-शनैः भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है और कुछ समय बाद फसलों की वृद्धि रुक जाती है। मानव-मल का खुले भू-भाग पर निष्कासन और निक्षेपण होने से पर्यावरण दूषित हो जाता है। भूमि पर कूड़ा-करकट, सड़ी-गली वस्तुओं और मरे जानवर फेंक देने से मिट्टी दूषित हो जाती है और परिणामस्वरूप अनेक बीमारियाँ फैल जाती हैं। भू-क्षरण भी भू-प्रदूषण की स्थिति उत्पन्न करता है। भू-क्षरण के कारण मिट्टी की उपजाऊ परत जल और हवा आदि के द्वारा बह जाती है और बंजर भूमि शेष रह जाती है। फलस्वरूप खाद्यान्नों का उत्पादन कम होने लगता है।
मृदा-प्रदूषण को रोकने के उपाय
मृदा-प्रदूषण को रोकने के लिए फसलों पर छिड़काव करने वाली कीटनाशक दवाओं को सीमित प्रयोग करना चाहिए। रासायनिक खादों का प्रयोग सीमित मात्रा में ही किया जाना चाहिए। औद्योगिक कचरे और कूड़ा-करकट को आबादी से दूर ले जाकर जमीन के अन्दर । दबा देना चाहिए। कृषि फार्मों में चक्रानुसार विभिन्न फसलों की खेती की जानी चाहिए। भू-क्षरण और मृदा-अपरदन को रोकने के समुचित उपाय किए जाने चाहिए। भू-स्खलन से होने वाले मृदा-क्षरण को कम किया जाना चाहिए।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
‘पर्यावरण के अर्थ को स्पष्ट कीजिए। [2011]
या
पर्यावरण का व्युत्पत्ति अर्थ क्या है?
उत्तर
‘पर्यावरण की अवधारणा को स्पष्ट करने से पूर्व पर्यावरण’ के शाब्दिक अर्थ को स्पष्ट करना आवश्यक है। ‘पर्यावरण’ के व्युत्पत्ति अर्थ को स्पष्ट करते हुए हम कह सकते हैं कि ‘पर्यावरण शब्द दो शब्दों अर्थात ‘परि’ और ‘आवरण’ के संयोग या मेल से बना है। ‘परि’ का अर्थ है चारों ओर तथा आवरण का अर्थ है—‘घेरा’। इस प्रकार पर्यावरण का शाब्दिक अर्थ हुआ चारों ओर का घेरा। इस प्रकार व्यक्ति के सन्दर्भ में कहा जा सकता है कि व्यक्ति के चारों ओर जो प्राकृतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक शक्तियाँ और परिस्थितियाँ विद्यमान हैं, उनके प्रभावी रूप को ही पर्यावरण कहा जाता है।
प्रश्न 2
पर्यावरण-प्रदूषण के मुख्य प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
प्रकृति-प्रदत्त पर्यावरण में जब किन्हीं तत्त्वों का अनुपात इस रूप में बदलने लगता है। जिसका जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका होती है, तब कहा जाता है कि पर्यावरण-प्रदूषण हो रहा है। पर्यावरण के भिन्न-भिन्न भाग या पक्ष हैं। इस स्थिति में पर्यावरण के विभिन्न पक्षों के अनुसार ही पर्यावरण प्रदूषण के विभिन्न पक्ष निर्धारित किये गये हैं। इस प्रकार पर्यावरण प्रदूषण के मुख्य प्रकार हैं-
- वायु-प्रदूषण
- जल-प्रदूषण
- मृदा-प्रदूषण तथा
- ध्वनि-प्रदूषण।
प्रश्न 3
पर्यावरण-प्रदूषण को रोकने में ओजोन परत की भूमिका बताइए। [2008, 15]
उत्तर
हमारे वायुमण्डल में ओजोन की परत एक छतरी के रूप में विद्यमान है तथा हमारे वायुमण्डल के लिए एक सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करती है। यह ओजोन परत सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी पर सीधे आने से रोकती है। इसके साथ-ही-साथ ओजोन गैस अपनी विशिष्ट प्रकृति के कारण हमारे पर्यावरण के विभिन्न प्रदूषकों को नष्ट करने का कार्य भी करती है। अनेक घातक एवं हानिकारक जीवाणुओजोन के प्रभाव से नष्ट होते रहते हैं। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि पर्यावरण-प्रदूषण को रोकने में ओजोन परत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। **
प्रश्न 4
पर्यावरण-प्रदूषण का जन-स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर
पर्यावरण-प्रदूषण का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव जन-स्वास्थ्य पर पड़ता है। पर्यावरण के भिन्न-भिन्न पक्षों में होने वाले प्रदूषण से भिन्न-भिन्न प्रकार के रोग बढ़ते हैं। हम जानते हैं कि वायु प्रदूषण के परिणामस्वरूप श्वसन तन्त्र से सम्बन्धित रोग अधिक प्रबल होते हैं। जल-प्रदूषण के परिणामस्वरूप पाचन-तन्त्र से सम्बन्धित रोग अधिक फैलते हैं। ध्वनि प्रदूषण भी तन्त्रिका-तन्त्र, हृदय एवं रक्तचाप सम्बन्धी विकारों को जन्म देता है। पर्यावरण-प्रदूषण को व्यक्ति के स्वभाव एवं व्यवहार पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यही नहीं निरन्तर प्रदूषित पर्यावरण में रहने से व्यक्ति की औसत आयु घटती है तथा स्वास्थ्य का सामान्य स्तर भी निम्न ही रहता है।
प्रश्न 5
व्यक्ति की कार्यक्षमता पर पर्यावरण-प्रदूषण का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर
पर्यावरण-प्रदूषण का व्यक्ति की कार्यक्षमता पर अनिवार्य रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हम जानते हैं कि पर्यावरण-प्रदूषण के परिणामस्वरूप जन-स्वास्थ्य का स्तर निम्न होती है। निम्न स्वास्थ्य स्तर वाला व्यक्ति ने तो अपने कार्य को ही कुशलतापूर्वक कर सकता है और न ही उसकी उत्पादन-क्षमता ही सामान्य रह पाती है। ये दोनों ही स्थितियाँ व्यक्ति एवं समाज के लिए हानिकारक सिद्ध होती हैं। वास्तव में प्रदूषित वातावरण में भले ही व्यक्ति अस्वस्थ न भी हो, तो भी उसकी चुस्ती एवं स्फूर्ति तो घट ही जाती है। यही कारक व्यक्ति की कार्यक्षमता को घटाने के लिए पर्याप्त सिद्ध होता है।
प्रश्न 6
आर्थिक जीवन पर पर्यावरण-प्रदूषण का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर
व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र की आर्थिक स्थिति पर पर्यावरण-प्रदूषण का उल्लेखनीय प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वास्तव में यदि व्यक्ति का सामान्य स्वास्थ्य का स्तर निम्न हो तथा उसकी कार्यक्षमता भी कम हो तो वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समुचित धन कदापि अर्जित नहीं कर सकता। पर्यावरण प्रदूषण के कारण व्यक्ति अथवा उसके परिवार के सदस्य रोग ग्रस्त हो जाते हैं। इस स्थिति में रोग के उपचार के लिए भी पर्याप्त धन खर्च करना पड़ जाता है। इससे व्यक्ति एवं परिवार का आर्थिक बजट बिगड़ जाता है तथा व्यक्ति एवं परिवार की आर्थिक स्थिति निम्न हो जाती है।
प्रश्न 7
जल प्रदूषण के किन्हीं दो कारकों की व्याख्या कीजिए। [2016]
उत्तर
जल प्रदूषण के दो कारक निम्नलिखित हैं
1. घरों से बहकर निकलने वाला फिनायल, साबुन, सर्फ एवं शैम्पू आदि से युक्त गन्दा पानी तथा शौचालय का दूषित मल नालियों में प्रवाहित होता हुआ नदियों व झीलों के जल में मिलकर उसे दूषित कर देता है।
2. नदियों व झीलों के जल में पशुओं को नहलाना, मनुष्यों द्वारा स्नान करना व साबुन से गन्दे वस्त्र धोने से भी जल प्रदूषित होता है।
निश्चित उतरीय प्रश्न
प्रश्न 1
‘पर्यावरण की एक स्पष्ट परिभाषा लिखिए।
उत्तर
“पर्यावरण वह सब कुछ है जो किसी जीव अथवा वस्तु को चारों ओर से घेरे होता है और उसे प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।”
-जिसबर्ट
प्रश्न 2
पर्यावरण-प्रदूषण का अर्थ एक वाक्य में लिखिए।
उत्तर
पर्यावरण में किसी भी प्रकार की हानिकारक अशुद्धियों का समावेश होना ही पर्यावरण-प्रदूषण कहलाता है।
प्रश्न 3
पर्यावरण-प्रदूषण के चार मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
- औद्योगीकरण
- नगरीकरण
- ईंधन से चलने वाले वाहन तथा
- वृक्षों की अन्धाधुन्ध कटाई।
प्रश्न 4
पर्यावरण-प्रदूषण के मुख्य रूपों या प्रकारों का उल्लेख कीजिए- [2014]
उत्तर
पर्यावरण-प्रदूषण के मुख्य रूप या प्रकार हैं-
- वायु-प्रदूषण
- जल-प्रदूषण
- मृदा-प्रदूषण तथा
- ध्वनि-प्रदूषण।
प्रश्न 5
साँस की तकलीफ किस प्रकार के प्रदूषण से होती है? [2012, 16]
उत्तर
साँस की तकलीफ मुख्य रूप से वायु-प्रदूषण के कारण होती है।
प्रश्न 6
कारखानों की चिमनियों से धुआँ उगलने पर किस प्रकार का प्रदूषण होता है?
उत्तर
कारखानों की चिमनियों से धुआँ उगलने पर होने वाला प्रदूषण है- वायु-प्रदूषण।
प्रश्न 7
प्रदूषण की समस्या किस शिक्षा के माध्यम से दूर की जा सकती है ? [2014]
उत्तर
प्रदूषण की समस्या पर्यावरण शिक्षा के माध्यम से दूर की जा सकती है।
प्रश्न 8
आधुनिक वैज्ञानिक युग में विश्व की सबसे गम्भीर समस्या क्या है ? [2011]
उत्तर
आधुनिक वैज्ञानिक युग में विश्व की सबसे गम्भीर समस्या है पर्यावरण प्रदूषण की समस्या।
प्रश्न 9
ध्वनि मापन की इकाई क्या है ?
उत्तर
डेसिबल (db)।
प्रश्न 10
पर्यावरण के किस रूप का निर्माण मनुष्य ने नहीं किया ?
उत्तर
प्राकृतिक अथवा भौगोलिक पर्यावरण का निर्माण मनुष्य ने नहीं किया है।
प्रश्न 11
क्या वर्तमान औद्योगिक प्रगति के युग में पर्यावरण प्रदूषण को पूर्ण रूप से समाप्त करना सम्भव है?
उत्तर
वर्तमान औद्योगिक प्रगति के युग में पर्यावरण-प्रदूषण को केवल नियन्त्रित किया जा सकता है, पूर्ण रूप से समाप्त नहीं किया जा सकता।
प्रश्न 12
निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य-
- मनुष्य का अपने पर्यावरण से घनिष्ठ सम्बन्ध है।
- व्यक्ति के सामान्य जीवन पर पर्यावरण का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
- ईंधन से चलने वाले वाहन वायु प्रदूषण में वृद्धि करते हैं।
- ध्वनि-प्रदूषण से आशय है पर्यावरण में ध्वनि या शोर का बढ़ जाना।
उत्तर
- सत्य
- असत्य
- सत्य
- सत्य।
बहुविकल्पीय प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों में दिये गये विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए-
प्रश्न 1
पर्यावरण का जनजीवन से सम्बन्ध है [2016]
(क) औपचारिक
(ख) घनिष्ठ
(ग) अनावश्यक
(घ) कोई सम्बन्ध नहीं
उत्तर
(ख) घनिष्ठ
प्रश्न 2
विश्व पर्यावरण दिवस कब मनाया जाता है? [2012]
(क) 26 जनवरी को
(ख) 5 जून को
(ग) 4 जुलाई को
(घ) 11 जुलाई को
उत्तर
(ख) 5 जून को
प्रश्न 3
वर्तमान औद्योगिक एवं नगरीय क्षेत्रों की मुख्य समस्या है या आधुनिक वैज्ञानिक युग में विश्व की गम्भीर समस्या है [2008]
(क) निर्धनता की समस्या
(ख) बेरोजगारी की समस्या
(ग) भिक्षावृत्ति की समस्या
(घ) पर्यावरण प्रदूषण की समस्या
उत्तर
(घ) पर्यावरण प्रदूषण की समस्या
प्रश्न 4
पर्यावरण-प्रदूषण की दर में होने वाली वृद्धि के लिए जिम्मेदार है
(क) फैशन की होड़
(ख) औद्योगीकरण
(ग) संस्कृतिकरण
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
(ख) औद्योगीकरण
प्रश्न 5
पर्यावरण-प्रदूषण का प्रभाव पड़ता है
(क) जन-स्वास्थ्य पर।
(ख) व्यक्तिगत कार्यक्षमता पर
(ग) आर्थिक जीवन पर
(घ) इन सभी पर
उत्तर
(घ) इन सभी पर
प्रश्न 6
प्रदूषण की समस्या का मुकाबला करने के लिए जो सर्वाधिक उपयोगी सिद्ध हो सकती है, वह है [2007, 11]
या
प्रदूषण की समस्या दूर करने के लिए सबसे उपयोगी है। [2016]
(क) सामान्य शिक्षा
(ख) पर्यावरण-शिक्षा
(ग) तकनीकी शिक्षा.
(घ) स्वास्थ्य शिक्षा
उत्तर
(ख) पर्यावरण-शिक्षा
प्रश्न 7
हमारे देश में पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम कब पारित किया गया?
(क) 1966 में
(ख) 1976 में
(ग) 1986 में
(घ) 1996 में
उत्तर
(ग) 1986 में
प्रश्न 8
भारत में पर्यावरण विभाग की स्थापना कब की गई? [2008]
(क) 1 नवम्बर, 1980
(ख) 1 नवम्बर, 1880
(ग) 1 नवम्बर, 1990
(घ) 1 नवम्बर, 1986
उतर
(घ) 1 नवम्बर, 1986
प्रश्न 9
विश्व वन्य जीव कोष की स्थापना हुई [2009]
(क) 1962 ई० में
(ख) 1965 ई० में
(ग) 1972 ई० में
(घ) 1975 ई० में
उत्तर
(क) 1962 ई० में
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