UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 13 Problem of Expansion of Education (शिक्षा के प्रसार की समस्या)

By | June 1, 2022

UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 13 Problem of Expansion of Education (शिक्षा के प्रसार की समस्या)

UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 13 Problem of Expansion of Education (शिक्षा के प्रसार की समस्या)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
शिक्षा के प्रसार के एक महत्त्वपूर्ण उपाय के रूप में दूरगामी शिक्षा का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कीजिए। साथ ही दूरगामी शिक्षा-व्यवस्था के उद्देश्य व विशेषताओं का भी वर्णन कीजिए।
उत्तर :
दूरगामी शिक्षा-शिक्षा के प्रसार का एक उपाय
यह सत्य है कि गत कुछ दशाब्दियों से हमारे देश में शिक्षा के प्रसार की दर सराहनीय रही है, परन्तु आज भी देश की जनसंख्या का एक बड़ा भाग विभिन्न कारणों से शिक्षा प्राप्त करने से वंचित ही है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए शिक्षा के प्रसार के लिए विभिन्न प्रयास किये जा रहे हैं। इन प्रयासों में ही एक प्रभावकारी प्रयास है-दूरगामी शिक्षा (Distance Education) की व्यवस्था। दूरगामी शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य तथा महत्त्व आदि का सामान्य परिचय निम्नलिखित है।

दूरगामी शिक्षा का अर्थ
सामान्य शिक्षाप्रत्यक्ष-शिक्षा होती है, जिसके अन्तर्गत शिक्षक तथा शिक्षार्थी आमने-सामने बैठकर शिक्षा की प्रक्रिया को सम्पन्न करते हैं। दूरगामी शिक्षा आमने-सामने की प्रत्यक्ष शिक्षा नहीं है। दूरगामी शिक्षा वह शिक्षा है जिसके अन्तर्गत देश के किसी भी भाग में रहने वाले और किसी भी प्रकार की शिक्षा प्राप्त करने के इच्छुक शिक्षार्थियों को शिक्षा ग्रहण करने का उपयुक्त अवसर प्राप्त हो जाती है। इस शिक्षा-प्रक्रिया के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के सम्प्रेषण-साधनों का अधिक-से-अधिक प्रयोग किया जाता है तथा खुले अधिगम की परिस्थितियों के सृजन को प्राथमिकता दी जाती है।

दूरगामी शिक्षा के अर्थ एवं प्रक्रिया को प्रो० होमबर्ग ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है, “दूरगामी शिक्षा की प्रक्रिया में छात्रों की शिक्षण संस्थानों में जाकर शिक्षकों के सामने कक्ष में बैठकर व्याख्यान सुनने की आवश्यकता नहीं है और न ही शिक्षण संगठनों की शिक्षा-व्यवस्था के समान नियमित रूप से सम्मिलित होना पड़ता है अपितु दूरगामी शिक्षा में खुले अधिगम को सम्प्रेषण माध्यमों अथवा शिक्षा तकनीकी द्वारा सम्पादित किया जाता है।” शिक्षक का व्याख्यान छात्रों के घरों तक सम्प्रेषण माध्यमों द्वारा पहुँचाया जाता है।

दूरदर्शन की सहायता से शिक्षक ही छात्रों के पास पहुँचकर शिक्षण-प्रदान करता है। इसके अन्तर्गत शिक्षक-शिक्षार्थी के अन्त:क्रिया एकपक्षीय ही होती है। दूरगामी शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य खुले अधिगम के लिए परिस्थिति उत्पन्न करना है। इस कथन द्वारा स्पष्ट है कि दूरगामी शिक्षा-व्यवस्था, शिक्षा ग्रहण करने की एक सुविधाजनक व्यवस्था है तथा निश्चित रूप से शिक्षा के प्रसार में सहायक है। हमारे देश में शिक्षा के प्रसार की आवश्यकता को ध्यान में रखकर तथा दूरगामी शिक्षा-व्यवस्था को सफल बनाने के लिए सन् 1979 ई० में राष्ट्रीय ओपन स्कूल की स्थापना की गई थी। इससे शिक्षा के प्रसार में उल्लेखनीय योगदान प्राप्त हुआ है।

दूरगामी शिक्षा-व्यवस्था के उद्देश्य
विश्व के प्रायः सभी देशों में दूरगामी शिक्षा-व्यवस्था को लागू किया जा रहा है। दूरगामी शिक्षा-व्यवस्था को लागू करने के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  1. दूरगामी शिक्षा-व्यवस्था का एक प्रमुख उद्देश्य समाज के उन व्यक्तियों को शिक्षा ग्रहण करने के अवसर सुलभ करना है जो किन्हीं कारणों से पहले उपयुक्त शिक्षा प्राप्त न कर पाये हों।
  2. उच्च शिक्षा प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्तियों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के अवसर उपलब्ध कराना।
  3. किसी भी व्यवसाय में संलग्न व्यक्तियों को उनकी रुचि तथा आवश्यकता के अनुसार शिक्षा अर्जित करने का अवसर उपलब्ध कराना।
  4. सीखने तथा ज्ञान प्राप्ति के इच्छुक व्यक्तियों के ज्ञान में अधिक – से – अधिक विस्तार करना।
  5. किसी भी शिक्षार्थी को उसकी रुचि के अनुरूप नूतन ज्ञान उपलब्ध कराना।
  6. समाज के पिछड़े वर्ग के व्यक्तियों को समाज का उपयोगी एवं योग्य नागरिक बनने में सहायता प्रदान करना।
  7. दूरगामी शिक्षा-व्यवस्था का एक अन्य उद्देश्य शिक्षा प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्तियों को उन भाषाओं और विषयों में दक्षता प्राप्त करने का अवसर प्रदान करना है, जिनमें नियमित संस्थागत शिक्षा के अन्तर्गत उत्पन्न होने वाली समस्याओं के कारण दक्षता प्राप्त करने का अवसर प्राप्त न हो सकता हो।

दूरगामी शिक्षा की विशेषताएँ
दूरगामी शिक्षा – व्यवस्था के अर्थ एवं उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए इस शिक्षा-व्यवस्था की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया जा सकता है

  1. दूरगामी शिक्षा-व्यवस्था को व्यावहारिक रूप में लागू करने में दूरदर्शन, आकाशवाणी तथा अन्य जन-संचार माध्यमों को इस्तेमाल करने पर विशेष बल दिया जाता है।
  2. इस शिक्षा-व्यवस्था के अन्तर्गत सम्प्रेषण के माध्यमों तथा अधिगम की प्रक्रिया में आपसी समन्वय स्थापित करके विभिन्न शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है।
  3. इस शिक्षा-व्यवस्था के माध्यम से वांछित अधिगम स्वरूपों के लिए विभिन्न प्रकार की परिस्थितियाँ उत्पन्न की जाती हैं।
  4. इस शिक्षा-व्यवस्था में शैक्षिक नियोजन, मूल्यांकन तथा अधिगम सम्बन्धी परिस्थितियों की व्यवस्था प्रणाली उपागम के आधार पर की जाती है।
  5. इस शैक्षिक व्यवस्था के अन्तर्गत कुछ निर्धारित बहुमाध्यमों की सहायता से शिक्षक ही शिक्षार्थियों से सम्पर्क स्थापित करता है।
  6. इस शैक्षिक व्यवस्था के अन्र्तगत खुले अधिगम की परिस्थितियाँ विकसित की जाती हैं तथा शिक्षार्थियों को स्वतन्त्रतापूर्वक अध्ययन की सुविधा उपलब्ध करायी जाती है।
  7. इस शैक्षिक व्यवस्था के माध्यम से शिक्षक की भूमिका को अधिक प्रभावी बनाने का प्रयास किया जाता है।
  8. दूरगामी शिक्षा व्यवस्था के अन्तर्गत खुले विद्यालय, खुले विश्वविद्यालय तथा पत्राचार प्रणाली आदि को अपनाया जाता है तथा उन्हें अधिक उपयोगी बनाया जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1
दूरगामी शिक्षा के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
विभिन्न दृष्टिकोणों से दूरगामी शिक्षा को आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण माना जाता है। दूरगामी शिक्षा निम्नलिखित रूप से महत्त्वपूर्ण मानी जाती है।

  1. दूरगामी शिक्षा की समुचित व्यवस्था देश में शिक्षा के अधिक-से-अधिक प्रसार में सहायक सिद्ध हो रही है।
  2. शिक्षा के क्षेत्र में नवीन प्रवर्तनों को प्रयुक्त करने में भी दूरगामी शिक्षा सहायक सिद्ध होती है।
  3. देश की जनसंख्या की वृद्धि तथा शिक्षा के प्रति बढ़ते रुझान के परिणामस्वरूप देश में विद्यमान औपचारिक शिक्षण संस्थाओं ( विद्यालय तथा कॉलेज आदि ) के प्रवेश के इच्छुक छात्रों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में छात्रों के प्रवेश की गम्भीर समस्या का सामना करना पड़ रहा है। इस समस्या का मुकाबला करने में भी दूरगामी शिक्षा से विश्लेष सहायता प्राप्त हो रही है।
  4. छात्रों में विद्यमान वैयक्तिक भिन्नता से सम्बन्धित समस्याओं के समाधान में भी दूरगामी शिक्षा से विशेष सहायता मिलती है।
  5. दूरगामी शिक्षा का एक मुख्य महत्त्व एवं लाभ उन व्यक्तियों के लिए है जो किसी निजी कार्य या व्यवसाय में संलग्न हैं। दूरगामी शिक्षा की सुविधा उपलब्ध होने पर ऐसे व्यक्ति भी अपनी इच्छानुसार शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। इस व्यवस्था से शिक्षा के प्रसार में भी वृद्धि होती है।
  6. दूरगामी शिक्षा-व्यवस्था उने व्यक्तियों के लिए भी लाभदायक तथा महत्त्वपूर्ण है जो अपनी शैक्षिक योग्यता को बढ़ाने के इच्छुक होते हैं।
  7. दूरगामी शिक्षा-व्यवस्था के माध्यम से शिक्षा ग्रहण करना विशेष रूप से सरल तथा सुविधाजनक है क्योंकि इस व्यवस्था के अन्तर्गत शिक्षार्थी को उसके अपने स्थान पर ही शिक्षा प्राप्त करने के अवसर उपलब्ध होते हैं। शिक्षार्थी को आने-जाने तथा यातायात की असुविधाओं का सामना नहीं करना पड़ता।
  8. दूरगामी शिक्षा की सुचारु व्यवस्था से लोगों में विभिन्न प्रकार की व्यावसायिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक योग्यताओं, क्षमताओं तथा गुणों के विकास में विशेष सहायता प्राप्त होती है।
  9. दूरगामी शिक्षा की व्यवस्था सुलभ हो जाने से समाज के अनेक व्यक्तियों को आत्म-विकास के अवसर उपलब्ध हुए हैं।
  10. दूरगामी शिक्षा का एक उल्लेखनीय महत्त्व एवं लाभ यह है कि इस व्यवस्था ने शिक्षा के जनतन्त्रीकरण में विशेष योगदान दिया है अर्थात् इस शिक्षा ने सभी को शिक्षा प्राप्त करने के समान अवसर उपलब्ध कराने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।

प्रश्न 2
शिक्षा के प्रसार के लिए राज्य द्वारा क्या-क्या प्रयास किये जा रहे हैं?
उत्तर :
देश की बहुपक्षीय प्रगति के लिए शिक्षा का अधिक-से-अधिक प्रसार होना अति आवश्यक है। इस तथ्य को ध्यान में रख़ते हुए राज्य द्वारा अनेक प्रयास किये जा रहे हैं। सर्वप्रथम हम कह सकते हैं। कि राज्य द्वारा शिक्षा के महत्त्व एवं आवश्यकता से सम्बन्धित व्यापक प्रचार किया जा रहा है। जन-संचार के सभी माध्यमों द्वारा साक्षरता एवं शिक्षा के महत्त्व का व्यापक प्रचार किया जा रहा है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अलग से ‘राष्ट्रीय साक्षरता मिशन’ की स्थापना की गयी है। शिक्षा के व्यापक प्रसार के लिए भारतीय संविधान में 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए नि:शुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया गया।

शिक्षा के प्रसार के लिए राज्य द्वारा ग्रामीण एवं दूर-दराज के क्षेत्रों में शिक्षण-संस्थाएँ स्थापित की जा रही हैं। शिक्षा के प्रति बच्चों को आकृष्ट करने के लिए उन्हें विभिन्न प्रकार के प्रलोभन एवं सुविधाएँ भी प्रदान की जा रही हैं; जैसे कि दिन का भोजन देना, मुफ्त पुस्तकें एवं वर्दी देना तथा विभिन्न छात्रवृत्तियाँ प्रदान करना। राज्य द्वारा अनुसूचित एवं पिछ्ड़ी जातियों के बालक-बालिकाओं को शिक्षित करने के लिए अतिरिक्त प्रयास किये जा रहे हैं। तकनीकी शिक्षा के प्रसार के क्षेत्र में भी राज्य द्वारा अनेक प्रयास किये जा रहे हैं। समय – समय पर राज्य सरकारों एवं केन्द्र सरकार द्वारा शिक्षा के प्रसार के लिए व्यापक अभियान चलाये जा रहे है; जैसे कि ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड तथा ‘चलो स्कूल चलें’ आदि।

प्रश्न 3
शैक्षिक स्तर के उन्नयन व सुधार के लिए क्या उपाय किए जाने चाहिए? [2007, 08, 10, 11]
उत्तर :
शैक्षिक स्तर के उन्नयन व सुधार के उपाय
भारत में शिक्षा के स्तर; विशेष रूप से प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा के स्तर को ऊँचा उठाने व उसमें सुधार लाने के लिए अग्रलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं

  1. पूर्व-प्राथमिक व प्राथमिक कक्षाओं से ही शिक्षा के स्तर में सुधार के प्रयत्न किए जाएँ। अगर इस स्तर पर शिक्षार्थी अनुशासित हो जाए और शिक्षा के महत्व को समझ ले तो अगले स्तरों पर शिक्षा का स्तर अपने आप ही अच्छा हो जाएगा।
  2. शिक्षा की दिशा एवं व्यवस्था पहले से ही निश्चित की जाए।
  3. पाठ्यक्रम सुसंगठित एवं छात्र/छात्राओं के लिए उपयोगी हो।
  4. विद्यालयों में छात्रों की बढ़ती हुई संख्या पर नियन्त्रण रखा जाए तथा आवश्यकतानुसार नए विद्यालय खोले जाएँ।
  5. अध्यापकों को उचित वेतन तथा सुविधाएँ प्रदान की जाएँ। उनकी सभी उचित माँगों पर सहानुभूति से विचार किया जाना चाहिए।
  6. परीक्षा या मूल्यांकन प्रणाली में सुधार हो। प्रश्न-पत्रों में वस्तुनिष्ठ ढंग के प्रश्न सम्मिलित किए जाएँ, विद्यालय में ही परीक्षा ली जाए तथा शिक्षार्थियों के सामूहिक अभिलेख रखे जाएँ।
  7. पर्याप्त संख्या में निर्देशन एवं परामर्श केन्द्र खोले जाएँ, जहाँ छात्रों की योग्यता एवं अभिरुचि की जाँच हो और तदनुकूल उन्हें शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था की जाए।
  8. समाज के लोगों तथा छात्रों की धारणा शिक्षा के प्रति अच्छी हो।
  9. राज्य एवं समाज के द्वारा शिक्षा के अच्छे अवसर प्रदान किए जाएँ।
  10. समय-समय पर गोष्ठियों, सेमिनार आदि का आयोजन किया जाए।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1
शिक्षा के प्रसार से क्या आशय है?
उत्तर :
शिक्षा के प्रसार से आशय है :
देश के नागरिकों को शिक्षित होना। विकासशील देशों में शिक्षा के प्रसार की प्रक्रिया चल रही है, कहीं तेज तथा कहीं धीमी। केवल साक्षरता ही शिक्षा के प्रसार का मानदण्ड नहीं है। इससे भिन्न यदि हम कहें कि स्नातक स्तर की शिक्षा या इससे भी उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति को ही शिक्षित व्यक्ति माना जाये तो यह भी उचित नहीं है। वास्तव में शिक्षित होने का मानदण्ड सापेक्ष है।

इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि जो व्यक्ति अपनी दैनिक जीवन की सामान्य गतिविधियों, व्यावसायिक अपेक्षाओं तथा सम्बन्धित कार्यों को करने की समुचित योग्यता प्राप्त कर लेता है, उसे शिक्षित माना जा सकता है। निःसन्देह शिक्षित होने के लिए साक्षरता एक अनिवार्य शर्त है। हमारे देश में शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करना अभी शेष है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि शिक्षा के प्रसार की प्रक्रिया चल रही है तथा इसकी दर भी पूर्ण रूप से सन्तोषजनक नहीं है। शिक्षा के प्रसार की गति एवं दर में वृद्धि करना आवश्यक है।

प्रश्न 2
शिक्षा में अपव्यय से क्या आशय है?
उत्तर :
शिक्षा में अपव्यय शिक्षा में अपव्यय की समस्या को अर्थ यह है कि किसी भी स्तर की शिक्षा को पूर्ण करने से पूर्व ही उसे छोड़ देना। उदाहरण के लिए, प्राथमिक शिक्षा की निर्धारित अवधि 4-5 वर्ष होती है। यदि ऐसे में कोई छात्र कक्षा 2 तक ही शिक्षा ग्रहण करने पर विद्यालय छोड़ दे तो इसे शिक्षा में अपव्यय ही कहा जाएगा। इसी प्रकार स्नातक स्तर की शिक्षा के लिए, तीन वर्ष की अवधि निर्धारित है। यदि कोई छात्र/छात्रा केवल एक या दो वर्ष की शिक्षा ग्रहण करने के बाद कॉलेज को छोड़ दे तो यह भी शिक्षा में अपव्यय ही है।

अपव्यय का तात्पर्य उन छात्रों पर व्यय किए हुए समय, धन एवं शक्ति से है जो किसी स्तर की शिक्षा पूर्ण किए बगैर अपना अध्ययन समाप्त कर देते हैं। शिक्षा में अपव्यय की प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप शिक्षा के प्रसार की प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हमारे देश में शिक्षा के प्रायः सभी स्तरों पर अपव्यय की समस्या देखी जा सकती है। विभिन्न कारणों से अधूरी शिक्षा छोड़ देने की प्रवृत्ति लड़कों की तुलना में लड़कियों में अधिक पायी जाती है। यह प्रवृत्ति नगरीय क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक पायी जाती है।

प्रश्न 3
शिक्षा के अवरोधन के कारण बताइए।
उत्तर :
शिक्षा के अवरोधन के कारण निम्नलिखित हैं

  1. दोषपूर्ण शिक्षण विधि एवं परीक्षा प्रणाली का होना।
  2. विद्यालयों में छात्रों का नियमित उपस्थित न होना।
  3. कक्षा में संख्या से अधिक छात्रों का होना।
  4. रुचि के अनुरूप विषयों का न होना।
  5. अनुपयुक्त पाठ्यक्रम होना।
  6. विद्यालयी व्यवस्था का ठीक न होना।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1
हमारे देश में शिक्षा के प्रसार की दर किस काल में सर्वाधिक हुई है?
उत्तर :
हमारे देश में स्वतन्त्रता-प्राप्ति के उपरान्त के काल में शिक्षा के प्रसार की दर सर्वाधिक हुई

प्रश्न 2
वर्तमान भारत में शिक्षा-प्रसार का स्वरूप गुणात्मक/परिमाणात्मक है। [2015]
उत्तर :
वर्तमान भारत में शिक्षा-प्रसार का स्वरूप परिमाणात्मक है।

प्रश्न 3
शिक्षा के असन्तोषजनक प्रसार के लिए जिम्मेदार दो मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
शिक्षा के असन्तोषजनक प्रसार के लिए दो मुख्य कारण जिम्मेदार हैं

  1. शिक्षा में अपव्यय तथा
  2. शिक्षा में अवरोधन।

प्रश्न 4
शिक्षा में अपव्यय से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
शिक्षा में अपव्यय का तात्पर्य उन छात्रों पर व्यय किए हुए समय, धन एवं शक्ति से है जो किसी स्तर की शिक्षा पूर्ण किये बिना अपना अध्ययन समाप्त कर देते हैं?

प्रश्न 5
शिक्षा में अवरोधन से क्या आशय है?
उत्तर :
शिक्षा में अवरोधन का अर्थ है-छात्र को शिक्षा के क्षेत्र में नियमित रूप से प्रगति न करना अर्थात् निर्धारित अवधि में किसी कक्षा में परीक्षा पास करके अगली कक्षा में न पहुँच पाना।

प्रश्न 6
प्राथमिक शिक्षा के प्रसार में प्रमुख बाधा दोषपूर्ण शिक्षा प्रशासन/धन की प्रचुरता है। [2015]
उत्तर :
प्राथमिक शिक्षा के प्रसार में प्रमुख बाधा दोषपूर्ण शिक्षा-प्रशासन है।

प्रश्न 7
राष्ट्रीय ओपन स्कूल की स्थापना कब की गयी थी? [2009]
उत्तर :
राष्ट्रीय ओपन स्कूल की स्थापना सन् 1979 में की गयी थी।

प्रश्न 8
‘दूरगामी शिक्षा से क्या आशय है?
उत्तर :
दूरगामी शिक्षा वह शिक्षा है जिसके अन्तर्गत देश के किसी भी भाग में रहने वाले और किसी भी प्रकार की शिक्षा प्राप्त करने के इच्छुक शिक्षार्थियों को शिक्षा ग्रहण करने का उपयुक्त अवसर प्राप्त हो जाता है।

प्रश्न 9
शिक्षा के महत्त्व के व्यापक प्रचार के लिए सरकार द्वारा किये गये एक प्रयास का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
राष्ट्रीय साक्षरता मिशन’ की स्थापना।

प्रश्न 10
राष्ट्रीय शिक्षा दिवस कब मनाया जाता है? [2015, 16]
उत्तर :
भारत में राष्ट्रीय शिक्षा दिवस 11 नवम्बर को मनाया जाता है।

प्रश्न 11
राष्ट्रीय साक्षरता मिशन किस आयु-वर्ग के निरक्षरों के लिए चलाया गया? [2016]
उत्तर :
15 से 35 वर्ष के निरक्षरों के लिए।

प्रश्न 12
भारतीय संविधान में शिक्षा के प्रसार के लिए क्या मुख्य प्रावधान किया गया है?
या
भारतीय संविधान की धारा – 45 में शिक्षा सम्बन्धी किस तथ्य का उल्लेख है? [2012, 14]
उत्तर :
भारतीय संविधान में शिक्षा के प्रसार के लिए 6 से 14 वर्ष के बालकों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा का प्रावधान किया गया है।

प्रश्न 13
निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य

  1. हमारे देश में निरन्तर शिक्षा का प्रसार हो रहा है।
  2. राज्य सरकार द्वारा बालिका शिक्षा को अधिक प्रोत्साहन दिया जा रहा है।

उत्तर :

  1. सत्य
  2. सत्य

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में दिये गये विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए

प्रश्न 1
शिक्षा के प्रसार को विशेष महत्त्व दिया गया है-
(क) मध्य काल में
(ख) ब्रिटिश शासनकाल में
(ग) स्वतन्त्रता-प्राप्ति के उपरान्त काल में
(घ) प्रत्येक काल में
उत्तर :
(ग) स्वतन्त्रता-प्राप्ति के उपरान्त काल में

प्रश्न 2
शिक्षा के क्षेत्र में अपव्यय की समस्या का कारण है
(क) सामान्य निर्धनता
(ख) शीघ्र जीविकोपार्जन की आवश्यकता
(ग) शिक्षा के पाठ्यक्रम का उपयुक्त न होना
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर :
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 3
शिक्षा के प्रसार के लिए ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड आरम्भ हुआ था
(क) सन् 1987-88 में
(ख) सन् 1988-89 में
(ग) सन् 1990-91 में
(घ) सन् 1991-92 में
उत्तर :
(ग) सन् 1990-91 में

प्रश्न 4
भारत में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की स्थापना हुई (2014)
(क) सन् 1948 में
(ख) सन् 1953 में
(ग) सन् 1966 में
(घ) सन् 1986-88 में
उत्तर :
(घ) सन् 1986-88 में

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 13 Problem of Expansion of Education (शिक्षा के प्रसार की समस्या) help you.

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