UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 16 Problem of Social (Adult) Education (सामाजिक (प्रौढ़) शिक्षा की समस्या)
UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 16 Problem of Social (Adult) Education (सामाजिक (प्रौढ़) शिक्षा की समस्या)
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
सामाजिक शिक्षा (प्रौढ शिक्षा) से आप क्या समझते हैं? सामाजिक शिक्षा के मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
या
सामाजिक शिक्षा का प्रमुख कार्यक्रम क्या है? [2013]
उत्तर :
समाज या प्रौढ़ शिक्षा का अर्थ
प्रौढ़ शिक्षा या सामाजिक शिक्षा यथार्थ में वह अंशकालिक शिक्षा है, जिसे व्यक्ति अपना काम करते समय प्राप्त करता है। संकुचित अर्थ में सामाजिक शिक्षा का आशय निरक्षर को साक्षर बनाना है। जिन वयस्कों की आयु 18 वर्ष से अधिक है और उन्होंने किसी कारण से प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त नहीं की है, उन्हें साक्षर बनाना ही प्रौढ़ शिक्षा है।
परन्तु अब प्रौढ़ शिक्षा की अवधारणा को व्यापक रूप दे दिया गया है तथा वह साक्षरता प्रदान करने तक सीमित नहीं रह गयी है। अब प्रौढ़ शिक्षा को ‘सामाजिक शिक्षा’ के रूप में जाना जाता है तथा इस शिक्षा के अन्तर्गत प्रौढ़ व्यक्तियों को सम्पूर्ण जीवन को उन्नत बनाने के लिए आवश्यक ज्ञान प्रदान किया जाता है। प्रौढ़ शिक्षा या सामाजिक शिक्षा का वास्तविक अर्थ स्पष्ट करते हुए मौलाना आजाद ने लिखा है “सामाजिक शिक्षा से हमारा तात्पर्य सम्पूर्ण मनुष्य की शिक्षा से हैं। वह उसे साक्षरता प्रदान करेगी, जिससे उसे संसार का ज्ञान प्राप्त हो सके।
वह उसे यह बताएगी कि किस प्रकार वह अपने को वातावरण से सन्तुलित कर सके और प्राकृतिक परिस्थितियों का, जिनमें वह रहती है, उपयोग कर सके। इसके द्वारा। उसको कुशलताओं तथा उत्पादन-विधियों का समुचित ज्ञान देना है, जिनसे वह आर्थिक उन्नति कर सके। इसके द्वारा उसे स्वास्थ्य के प्रारम्भिक विषयों का ज्ञान व्यक्तिगत एवं सामाजिक दृष्टिकोण से देना है, जिससे उसका पारिवारिक जीवन स्वस्थ और उन्नतिशील बने। अन्त में वह उसे नागरिकता की शिक्षा दे, जिससे शान्ति और समृद्धि हो।”
हुमायूँ कबीर ने लिखा है
“समाज शिक्षा को अध्ययन के एक प्रकार के पाठ्यक्रम के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसका उद्देश्य लोगों में नागरिकता की चेतना उत्पन्न करना है और उनमें सामाजिक सुसंगठन की भावना की वृद्धि की जाती है। समाज शिक्षी बड़ी आयु के लोगों को केवल अक्षर ज्ञान कराकर ही सन्तुष्ट नहीं हो जाती, बल्कि इसका लक्ष्य सामान्य जनता में एक सुनिश्चित समाज का निर्माण करना रहता है।
इसके स्वाभाविक परिणाम के रूप में समाज शिक्षा का लक्ष्य यह रहता है कि लोगों में व्यक्तिगत रूप से और समाज के सदस्य होने के नाते अपने अधिकारों और कर्तव्यों की सचेष्ट भावना उत्पन्न की जाए।” इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रौढ़ शिक्षा का अर्थ देश के प्रौढ़ नागरिकों को ऐसी शिक्षा देना है जिससे उन्हें प्रगतिवादी समाज में भली प्रकार समायोजन स्थापित करने में सुविधा हो और वे राष्ट्र की उन्नति में योगदान दे सकें। सामाजिक या प्रौढ़ शिक्षा के उद्देश्य सामाजिक या प्रौढ़ शिक्षा देश के उत्थान और प्रगति के लिए अत्यन्त उपयोगी है। इसके प्रमुख उद्देश्य अग्रलिखित हैं
1. मानसिक एवं बौद्धिक विकास :
राष्ट्र की प्रगति के लिए यह आवश्यक है कि उसके नागरिकों का मानसिक एवं बौद्धिक स्तर उच्च हो। इसी कारण प्रौढ़ शिक्षा में मानसिक एवं बौद्धिक विकास पर विशेष बल दिया गया है।
2. व्यावसायिक शिक्षा और आर्थिक समृद्धि :
प्रौढ़ शिक्षा का उद्देश्य नागरिकों को व्यावसायिक शिक्षा देकर उन्हें जीविकोपार्जन के योग्य बनाना तथा आर्थिक दृष्टि से समृद्ध बनाना है।
3. सामाजिक भावना का विकास :
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। बिना समाज के मनुष्य का अस्तित्व सम्भव नहीं है। इसलिए उद्देश्य समाज शिक्षा द्वारा प्रौढ़ों में सामूहिक रूप से कार्य करने की भावना उत्पन्न की जाती है। उनमें एक-दूसरे के प्रति प्रेम, सहानुभूति, दया, आदर के भाव उत्पन्न करना तथा सहयोग से रहना और कार्य करना एवं प्रशिक्षण देना सामाजिक शिक्षा का एक आवश्यक अंग है।
4. नागरिकता की शिक्षा :
सामाजिक शिक्षा का उद्देश्य नागरिकों को उनके अधिकारों एवं कर्तव्यों का ज्ञान कराना है, जिससे वे अपने देश में लोकतन्त्र को सुदृढ़ और स्थायी बना सकें।
5. आध्यात्मिक विकास :
देश के नागरिकों में सत्य, अहिंसा, प्रेम, सदाचार आदि की भावनाओं को जाग्रत करके उन्हें सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम् की अनुभूति करने में सहायता करना भी सामाजिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है।
6. स्वास्थ्य सम्बन्धी बातों का ज्ञान :
सामाजिक शिक्षा का उद्देश्य प्रौढ़ नागरिकों को स्वास्थ्य सम्बन्धी उपयोगी नियमों का ज्ञान देना है, जिससे कि वे पूर्ण स्वस्थ होकर अपने-अपने कर्तव्यों का पालन कर सकें।
7. राष्ट्रीय साधनों की सुरक्षा :
प्रत्येक व्यक्ति अपने राष्ट्र की एक महत्त्वपूर्ण इकाई होता है। इसलिए व्यक्तियों की प्रौढ़ शिक्षा के द्वारा इस योग्य बनाया जाता है कि वे राष्ट्रीय साधनों का दुरुपयोग न करके उनकी सुरक्षा करें।
8. सांस्कृतिक ज्ञान :
प्रौढ़ शिक्षा का एक उद्देश्य नागरिकों को उनकी प्राचीन संस्कृति से परिचित कराना तथा सांस्कृतिको गौरव के प्रति उनके हृदय में प्रेम और आदर के भाव उत्पन्न करना है।
9. मनोरंजन के अवसर प्रदान करना :
सामूहिक गीत, नृत्य, कविता, कहानी, नाटक आदि के द्वारा नागरिकों को सुन्दर तरीके से मनोरंजन करने के योग्य बनाना भी प्रौढ़ शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि प्रौढ़ शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य का सर्वांगीण विकास करके उसे आदर्श एवं सफल नागरिक बनने में सहायता प्रदान करना है।
प्रश्न 2
सामाजिक शिक्षा के मुख्य साधनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
सामाजिक शिक्षा के मुख्य साधन
प्रौढ़ या समाज शिक्षा के प्रमुख साधन निम्नलिखित हैं।
1. प्रौढ कक्षाएँ :
प्रौढ़ों को ज्ञान प्रदान करने के लिए प्रौढ़ कक्षाएँ खोली जाती हैं। उन्हें अक्षर ज्ञान के अतिरिक्त विभिन्न उपयोगी विषयों की शिक्षा भी दी जाती है।
2. सामुदायिक केन्द्र :
ग्रामों में सामुदायिक केन्द्रों की स्थापना की जाती है। इनमें सांस्कृतिक और मनोरंजनात्मक कार्य सम्पन्न होते हैं, हस्तकला की शिक्षा दी जाती है तथा पुस्तकालयों व वाचनालयों की व्यवस्था रहती है। इसके साथ-ही-साथ ग्रामवासियों के लिए भाषण व विचार-विमर्श की व्यवस्था भी की जाती है।
3. पुस्तकालय और वाचनालय :
प्रौढ़ शिक्षा में पुस्तकालयों और वाचनालयों का महत्त्व सर्वविदित है। इनके द्वारा प्रौढ़ों को विभिन्न प्रकार के कार्य करने के तरीके ज्ञात होते हैं। इससे प्रौढ़ों को ज्ञान विस्तृत होता है। पुस्तकालयों में प्रौढ़ों को कृषि, कुटीर उद्योग, मनोरंजन, सरल साहित्य व नागरिकता सम्बन्धी पुस्तकें उपलब्ध होती हैं।
4. संग्रहालय :
भारत सरकार ने देश में स्वास्थ्य संग्रहालयों, शिक्षा संग्रहालयों एवं व्यावसायिक संग्रहालयों की व्यवस्था की है, जिससे मनुष्य प्राचीन वस्तुओं को देखकर प्राचीन विचारों से परिचित हो सके।
5. मेला एवं प्रदर्शनी :
ग्रामों में विभिन्न प्रकार की प्रदर्शनियों का आयोजन करके विश्व में होने वाली प्रेगति और उन्नति का ज्ञान ग्रामवासियों को कराया जाता है; जैसे-कृषि प्रदर्शनी, शिक्षा प्रदर्शनी, स्वास्थ्य प्रदर्शनी आदि का आयोजन समय-समय पर ग्रामों में किया जाता है। इन मेलों एवं प्रदर्शनियों का उद्देश्य प्रौढ़ों में सामाजिकता की भावना का विकास करना है।
6. रात्रि पाठशालाएँ :
प्रौढ़ व्यक्तियों के लिए रात्रि पाठशालाएँ खोली जानी चाहिए, जहाँ अपना काम समाप्त करने के बाद व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करने के लिए पहुँच जाए।
7. समाचार-पत्र :
समाचार-पत्रों के द्वारा भी प्रौढ़ों का ज्ञान विस्तृत किया जाता है। इसके द्वारा वे देश-विदेश के समाचारों से अवगत होते हैं।
8. भ्रमण :
प्रौढ़ों को भ्रमण और निरीक्षण के द्वारा भी शिक्षा दी जा सकती है। व्यक्ति तीर्थ यात्रा करके देश के विभिन्न स्थान देखकर बहुत-सी बातों का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करते हैं।
9. श्रमदान एवं समाज-सेवा :
प्रौढ़ शिक्षा में श्रमदान एवं समाज-सेवा को बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। ग्रामों में सफाई, बाँध बनाना, कुएँ तथा तालाब बनाना आदि कार्य सामूहिक श्रम द्वारा बिना धन के ही सम्पन्न हो जाते हैं। इन कार्यों के द्वारा नागरिकों में सामाजिकता की भावना का विकास होता है।
10. राष्ट्रीय पर्व :
हमारे देश में राष्ट्रीय दिवस, सफाई सप्ताह, शिक्षा सप्ताह एवं अस्पृश्यता निवारण सप्ताह आदि प्रमुख राष्ट्रीय पर्व मनाये जाते हैं। इनके द्वारा भी प्रौढ़ व्यक्तियों को शिक्षा मिलती है।।
11. शिक्षक और विद्यार्थियों का योगदान :
विश्वविद्यालय के शिक्षक एवं विद्यार्थियों को अवकाश के समय अपने निवास स्थान के निकट ग्रामों में जाकर प्रौढ़ व्यक्तियों को शिक्षा देनी चाहिए तथा प्रभावशाली भाषण देने चाहिए, जिससे ग्रामवासी अपने कर्तव्यों से परिचित हो जाएँ।
12. युवक गोष्ठी :
युवकों द्वारा समाज के रूढ़िवादी विचारों में परिवर्तन लाया जा सकता है। इसलिए युवक गोष्ठी का स्थान प्रौढ़ शिक्षा के अन्तर्गत बहुत महत्त्वपूर्ण है। सरकार ने भी इन गोष्ठियों को महत्त्व दिया है और युवक कृषक गोष्ठी, ग्राम रक्षा दल, पंचायत व सभा आदि की स्थापना की है।
13. रेडियो, चलचित्र व टेलीविजन :
रेडियो, चलचित्र और टेलीविजन प्रौढ़ शिक्षा के प्रसार के महत्त्वपूर्ण साधन हैं। इन साधनों द्वारा ग्रामवासियों को अन्धविश्वासों के दुष्परिणाम, बीमारी फैलने के कारण, विदेशों की खबरें आदि बातों का ज्ञान कराया जाता है।
प्रश्न 3
सामाजिक (प्रौढ) शिक्षा की समस्याएँ क्या हैं? इन समस्याओं के समाधान के उपाय बताइए। [2012]
या
भारतवर्ष में प्रौदों के लिए शिक्षा-प्रसार में क्या-क्या बाधाएँ हैं? [2011]
या
प्रौढ शिक्षा के प्रसार की बाधाओं को दूर करने के लिए सुझाव दीजिए। [2011]
उत्तर :
सामाजिक शिक्षा (प्रौढ़ शिक्षा) की मुख्य समस्याएँ
सामाजिक शिक्षा या प्रौढ़ शिक्षा के प्रचार के लिए यद्यपि व्यापक प्रयास किये जा रहे हैं, इस पर भी इसके प्रसार में अनेक बाधाएँ हैं। सामाजिक शिक्षा के प्रसार एवं सफलता के मार्ग में उत्पन्न होने वाली मुख्य समस्याओं का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है
1. व्यापक निरक्षरता :
भारत में व्यापक निरक्षरता फैली हुई है। नगरों की अपेक्षा गाँवों में निरक्षरता का अधिक बोलबाला है। जब तक निरक्षरता की समस्या बनी रहेगी, तब तक देश की आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक प्रगति नहीं हो सकती और न ही प्रौढ़ों में नवचेतना उत्पन्न की जा सकती है।
2. आर्थिक समस्या :
भारत में सामाजिक शिक्षा के प्रसार के लिए एक लम्बी धनराशि की आवश्यकता है। भारत की वर्तमान जनसंख्या 121 करोड़ से भी अधिक्र है। इतनी विशाल ज़नसंख्या में प्रौढ़ों को साक्षर बनने के लिए इतने अधिक धन की आवश्यकता है, जिसे जुटाना सरकार के बस की बात नहीं है। इसके साथ ही प्रौढ़ों को साक्षर बनाने के लिए पर्याप्त अध्यापकों तथा समाज शिक्षा केन्द्रों की व्यवस्था करना भी एक कठिन कार्य है।
3. पाठ्यक्रम की समस्या :
सामाजिक शिक्षा की तीसरी समस्या पाठ्यक्रम का निर्धारण करने की है। सामाजिक शिक्षा के पाठ्यक्रम के विषय में विद्वानों में परस्पर मतभेद हैं। प्रौढ़ों की रुचियाँ तथा आवश्यकताएँ बालकों की रुचियों तथा आवश्यकताओं से भिन्न होती हैं। ऐसी दशा में बालकों का पाठ्यक्रम प्रौढ़ों के लिए निर्धारित नहीं किया जा सकता।
कुछ प्रौढ़ लोग पूर्णतया निरक्षर होते हैं, कुछ अर्द्ध-शिक्षित तथा कुछ नव साक्षर इन सभी के लिए पृथक्-पृथक् पाठ्यक्रम की व्यवस्था करना एक कठिन कार्य है। इस प्रकार प्रौढ़ों की रुचियों के अनुकूल साहित्य का हमारे देश में पूर्णतया अभाव है और विभिन्न आयु के प्रौढ़ों के लिए पाठ्यक्रम का निर्धारण करना एक जटिल समस्या है।
4. योग्य अध्यापकों की कमी :
सामाजिक शिक्षा को । कार्यक्रम तभी सफल हो सकता है, जब कि वह प्रौढ़ मनोविज्ञान (Adult Psychology) के ज्ञाता अध्यापकों द्वारा संचालित हो, परन्तु हमारे देश में सामाजिक शिक्षा के क्षेत्र में अधिकतर प्राथमिक, माध्यमिक या अप्रशिक्षित अध्यापक ही कार्य कर रहे हैं। ये लोग सामाजिक शिक्षा की समस्याओं, उद्देश्यों तथा प्रौढ़ मनोविज्ञान से पूर्णतया अपरिचित होते हैं। ऐसी दशा में इनसे सफलतापूर्वक कार्य करने की आशा करना व्यर्थ है। सामाजिक शिक्षा को सफल बनाने के लिए लाखों प्रौढ़ मनोविज्ञान के ज्ञाता अध्यापकों की आवश्यकता होगी जिनकी पूर्ति करना एक कठिन कार्य है।
5, शिक्षा के साधनों की कमी :
सामाजिक शिक्षा के साधनों से तात्पर्य–वे समूह अथवा संस्थाएँ हैं, जो समाज शिक्षा प्राप्त करने वाले व्यक्तियों से सम्पर्क रखती हैं, उन्हें ज्ञान प्रदान करती हैं तथा उनकी आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करती हैं। इस दृष्टि से उत्तम फिल्मों, चार्ट व चित्र तथा अन्य दृश्य सामग्री की परम आवश्यकता है, परन्तु इन साधनों को जुटाना कोई सरल कार्य नहीं है।
6. उपयुक्त साहित्य की कमी :
सामाजिक शिक्षा का उद्देश्य प्रौढ़ों को केवल साक्षर बनाना ही नहीं है, वरन् समाज को एक जागरूक तथा उत्तरदायित्वपूर्ण सदस्य बनाना है, परन्तु ऐसा करने के लिए उनके अनुकूल साहित्य की आवश्यकता नवचेतना भरने तथा उनके दृष्टिकोण को आलोचनात्मक बनाने के लिए एक श्रेष्ठ एवं प्रभावशाली साहित्य के सृजन की है, लेकिन साहित्य का निर्माण करने और उसके प्रकाशन की व्यवस्था करना भी एक जटिल समस्या है।
7. शिक्षण पद्धति की समस्या :
प्रौढ़ों की बुद्धि परिपक्व होती है और इस कारण उन्हें बालकों के समान नहीं पढ़ाया जा सकता। इसके अतिरिक्त जीवन तथा समाज के प्रति प्रौढ़ों का दृष्टिकोण समान नहीं होता है। प्रौढ़ समाज के पूर्वाग्रहों से ग्रसित होते हैं और उनके विरुद्ध कुछ सुनना नहीं चाहते हैं। ऐसी स्थिति में प्रौढ़ों के लिए किसी उपयोगी शिक्षण-पद्धति का निर्माण करना एक कठिन कार्य है।
8. समाज शिक्षा केन्द्रों पर उपस्थिति की समस्या :
सामाजिक शिक्षा केन्द्रों पर प्रौढ़ प्रायः अनुपस्थित रहते हैं। इसका मूल कारण आलस्य एवं उदासीनता है। दूसरे प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों का वातावरण नीरस होता है। प्रौढ़ों की अनुपस्थिति में सामाजिक शिक्षा केन्द्रों पर आयोजित किये गये कार्यक्रमों का उद्देश्य ही व्यर्थ हो जाता है।
9. सामाजिक शिक्षा के प्रति उत्तरदायित्व की समस्या :
सामाजिक शिक्षा की एक अन्य समस्या यह है कि सामाजिक शिक्षा के प्रसार का उत्तरदायित्व किसका है? केन्द्र सरकार ने इस उत्तरदायित्व का भार राज्य सरकारों पर डाल रखा है, लेकिन शिक्षा परिषद् और शिक्षा विभाग इसके प्रति पूर्ण उदासीन हैं। ऐसी दशा में सामाजिक उपेक्षा के प्रसार की अपेक्षा करना व्यर्थ है।
10. प्रौढों के निराशावादी तथा रूढिवादी दृष्टिकोण की समस्या :
भारतीय प्रौढ़ निराशावादिता, रूढ़िवादिता तथा सन्देहों से ग्रस्त होता है। प्रायः प्रौढ़ सोचते हैं कि इतनी आयु बीत चुकी है, अब पढ़-लिखकर क्या होगा? यदि उनसे सामाजिक शिक्षा केन्द्र पर जाने का आग्रह किया जाता है तो वे कह देते हैं कि “बाबू जी बूढ़े तोते को पढ़ाकर क्या करोगे?” इसके अतिरिक्त वे शिक्षा को केवल जीविका का साधन मानते हैं।
अतः जब वे पढ़े-लिखे नौजवानों को बेरोजगार देखते हैं, तो वे शिक्षा के प्रति उदासीन हो जाते हैं। वास्तव में प्रौढ़ों का यह निराशावादी दृष्टिकोण सामाजिक शिक्षा के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बनकर आता है।
(संकेत : सामाजिक शिक्षा की समस्याओं के निवारण के उपायों का विवरण लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 3 के अन्तर्गत देखें।)
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
‘प्रौढ़ शिक्षा’ को ‘सामाजिक शिक्षा’ का रूप क्यों दिया गया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
स्वतन्त्रता प्राप्ति से पहले भारत में प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों को साक्षरता प्रदान करने के लिए एक शिक्षा योजना को लागू किया गया था तथा उस योजना को प्रौढ़ शिक्षा कहा जाता था। स्वतन्त्रता प्राप्ति के देश के जनीतिक एवं सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह महसूस किया गया कि प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों को शिक्षित बनाने के लिए उन्हें साक्षरता प्रदान करना ही पर्याप्त नहीं बल्कि उन्हें जीवनोपयोगी सम्पूर्ण ज्ञान प्रदान करना आवश्यक है।
इस दृष्टिकोण को स्वीकार करते हुए प्रौढ़ शिक्षा हो । उत, तथा बहुपक्षीय रूप प्रदान करना अनिवार्य माना गया। इस प्रकार से विस्तृत एवं बहुपक्षीय प्रौढ़ शिक्षा को “सामाजिक शिक्षा का नाम दिया गया। स्पष्ट है” कि साक्षरता प्रदान करने के साथ-ही-साथ जीवन के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित विस्तृत जानकारी प्रदान करने वाली शिक्षा व्यवस्था को सामाजिक शिक्षा का नाम दिया गया।
प्रश्न 2
भारत में सामाजिक शिक्षा के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
भारत में सामाजिक शिक्षा अत्यधिक आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। सर्वप्रथम भारत में आज भी निरक्षरता की दर ऊँची है। इस स्थिति में निरक्षर प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों को साक्षर बनाने के लिए सामाजिक शिक्षा अत्यधिक आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त जन-स्वास्थ्य से सम्बन्धित आवश्यक जानकारी प्रदान करने के लिए भी सामाजिक शिक्षा महत्त्वपूर्ण है।
प्रौढ़ व्यक्तियों को दैनिक जीवन के लिए आवश्यक ज्ञान एवं जानकारी प्रदान करने के दृष्टिकोण से भी सामाजिक शिक्षा महत्त्वपूर्ण है। वर्तमान वैज्ञानिक एवं तकनीकी युग में प्रौढ़ व्यक्तियों को व्यावसायिक, औद्योगिक एवं कृषि के क्षेत्र में होने वाले नित नवीन आविष्कारों की जानकारी प्रदान करने के लिए भी सामाजिक शिक्षा आवश्यक है। वास्तव में शिक्षित माता-पिता ही अपने बच्चों को शिक्षित बनाने में अधिक रुचि लेते हैं। तथा आवश्यक प्रयास भी करते हैं। इस दृष्टिकोण से भी भारत में सामाजिक शिक्षा आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण है।
प्रश्न 3
सामाजिक शिक्षा की समस्याओं के निराकरण के उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
सामाजिक शिक्षा की विभिन्न समस्याओं के निराकरण के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं।
- केन्द्र व राज्य सरकारों को देश से निरक्षरता को मिटाने के लिए जनता के सहयोग से एक व्यापक अभियान चलाना चाहिए।
- समाज शिक्षा का मुख्य उद्देश्य साक्षरता की वृद्धि के साथ ही प्रौढ़ों का सर्वांगीण विकास करना भी है। अत: निरक्षर, अर्द्ध-शिक्षित तथा नव-साक्षर प्रौढ़ों और विभिन्न आयु के वयस्कों की आवश्यकताओं तथा अभिरुचियों को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त पाठ्यक्रम निर्धारित किया जाना चाहिए जो वयस्कों का राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास करने में सुमर्थ हो सके।
- प्रौढ़ शिक्षा के अन्तर्गत सबसे पहले प्रौढ़ों को पढ़ना और लिखना सिखाया जाए औंर जब उन्हें इनका पर्याप्त ज्ञान हो जाए तब मातृकला, इतिहास, भूगोल, नागरिकशास्त्र, अर्थशास्त्र, गणित, सामान्य विज्ञान, स्वास्थ्य विज्ञान, साहित्य, कृषि, पशुपालन आदि विषयों की शिक्षा दी जाए।
- देश के अधिकांश ग्रामों में प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों की स्थापना की जाए।
- प्रौढ़ शिक्षा के लिए अध्यापकों को प्रशिक्षित करने के लिए काफी संख्या में प्रशिक्षण विद्यालयों . की स्थापना की जाए।
- यदि शिक्षण संस्थाओं के अध्यापक, विद्यार्थी, कार्यालयों के कर्मचारी और अन्य नि:स्वार्थी समाज सेवी ‘प्रत्येक पढ़ाये एक को’ (Each one, Teach one) का सिद्धान्त ग्रहण कर लें तो प्रौढ़ शिक्षा के लिए अध्यापकों की समस्या को स्वतः ही समाधान हो जाएगा।
- प्रौढ़ों के लिए ऐसी रुचिपूर्ण और ज्ञानवर्द्धक शिक्षण-विधि अपनायी जाए, जो उन्हें शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रेरित कर सके।
- प्रौढ़ शिक्षा साहित्य के निर्माण के लिए साहित्यकार और सरकार संयुक्त रूप से सहयोग करें ताकि उपयुक्त साहित्य का निर्माण विपुल मात्रा में तैयार हो सके।
- समाज शिक्षा के प्रचार और प्रसार का उत्तरदायित्व किसी उपयुक्त संस्था को सौंपा जाना चाहिए, जो स्वतन्त्र रूप से समाज शिक्षा का विधिवत् संचालन कर सके।
- भारतीय प्रौढ़ों के निराशावादी और रूढ़िवादी दृष्टिकोण में परिवर्तन लाने के लिए चलचित्रों व प्रदर्शनियों को प्रबन्ध किया जाए।
उपर्युक्त उपायों को अपनाकर भारत में समाज शिक्षा का प्रसार व्यापक रूप में किया जा सकता है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
भारत सरकार के अनुसार सामाजिक शिक्षा के पंचमुखी कार्यक्रम क्या हैं?
उत्तर :
प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों को शिक्षित करने के लिए जिस योजना को लागू किया गया है, उसे ‘सामाजिक शिक्षा का नाम दिया गया है। इस योजना का उद्देश्य प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों को बहुपक्षीय जीवनोपयोगी ज्ञान प्रदान करना है। इस विस्तृत उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भारत सरकार ने एक कार्यक्रम लागू किया है जिसे सामाजिक शिक्षा के पंचमुखी कार्यक्रम के रूप में जाना जाता है। इस कार्यक्रम के पाँचों सूत्रों का सामान्य परिचय निम्नलिखित है
- समस्त निरक्षर प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों को साक्षर बनाना।
- प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों को व्यक्तिगत स्वास्थ्य एवं जन-स्वास्थ्य की आवश्यक एवं उपयोगी जानकारी । प्रदान करना।
- प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों को उद्योग-धन्धों एवं व्यवसायों की आवश्यक जानकारी प्रदान करना ताकि वे आर्थिकउन्नति कर सकें।
- प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों को स्वस्थ मनोरंजन के साधनों की जानकारी प्रदान करना।
- प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों में जिम्मेदार नागरिकता की भावना को विकसित करने के लिए उन्हें उनके अधिकारों एवं कर्तव्यों की जानकारी प्रदान करना।
प्रश्न 2
सामाजिक शिक्षा से आप क्या समझते हैं। इसके संसाधनों का वर्णन कीजिए। [2013]
उत्तर :
प्रौढ़ स्त्री-पुरुष को साक्षरता तथा जीवन-उपयोगी ज्ञान प्रदान करने की व्यवस्था को सामाजिक शिक्षा कहा जाता है। वास्तव में सामाजिक शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा का ही अधिक विकसित तथा विस्तृत रूप है। सामाजिक शिक्षा में जीवन के सामाजिक पक्ष को समुचित महत्त्व दिया जाता है।
सामाजिक शिक्षा के माध्यम से व्यक्तियों में नागरिकता की चेतना का निर्माण तथा सामाजिक सुदृढ़ता का विकास किया जाता है। सामाजिक शिक्षा के प्रमुख संसाधन हैं। सामाजिक शिक्षा या प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र, रात्रि पाठशालाएँ, व्याख्यान, समाचार-पत्र, आकाशवाणी, दूरदर्शन, चलचित्र तथा प्रदर्शनियाँ।
प्रश्न 3
सामाजिक शिक्षा के क्षे उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए। [2007]
उत्तर :
1. मानसिक एवं बौद्धिक विकास :
राष्ट्र की प्रगति के लिए यह आवश्यक है कि उसके नागरिकों का मानसिक एवं बौद्धिक विकास हो। इसीलिए प्रौढ़ शिक्षा में मानसिक एवं बौद्धिक विकास पर बल दिया गया है।
2. व्यावसायिक शिक्षा और आर्थिक समृद्धि :
प्रौढ़ शिक्षा का उद्देश्य नागरिकों को व्यावसायिक शिक्षा देकर उन्हें जीविकोपार्जन के योग्य बनाना तथा आर्थिक समृद्धि के योग्य बनाना है।
प्रश्न 4
राष्ट्रीय प्रौढ़ शिक्षा संस्थान के मुख्य लक्ष्य क्या हैं ? [2009, 11, 15]
उत्तर :
भारत में सन् 1991 में स्थापित ‘राष्ट्रीय प्रौढ़ शिक्षा संस्थान का मुख्य लक्ष्य समस्त प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों को साक्षर बनाना तथा पर्याप्त जीवनोपयोगी ज्ञान प्रदान करना तथा जीवन के प्रति जागरूक बनाना है।
प्रश्न 5
‘सामाजिक शिक्षा’ की एक स्पष्ट परिभाषा लिखिए। या प्रौढ शिक्षा (सामाजिक शिक्षा) से आप क्या समझते हैं? [2015]
उत्तर :
“सामाजिक शिक्षा को अध्ययन के एक प्रकार के पाठ्यक्रम के रूप में परिभाषित किया जो सकता है, जिसका उद्देश्य लोगों में नागरिकता की चेतना उत्पन्न करना है और उनमें सामाजिक सुसंगठन की भावना की वृद्धि की जाती है।”
निश्चित उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
वर्तमान सामाजिक शिक्षा को स्वतन्त्रतापूर्व काल में किस नाम से जाना जाता था?
उत्तर :
वर्तमान सामाजिक शिक्षा को स्वतन्त्रतापूर्व काल में प्रौढ़ शिक्षा के नाम से जाना जाता था।
प्रश्न 2
कोई ऐसा कथन लिखिए जो प्रौढ़ शिक्षा तथा सामाजिक शिक्षा के अन्तर को स्पष्ट करता हो?
उत्तर :
“प्रौढ़ शिक्षा की संकल्पना में आज बहुत बड़ा परिवर्तन हो गया है। वह साक्षरता के अपने छोटे से दायरे से निकलकर सामाजिक शिक्षा का व्यापक रूप ग्रहण कर चुकी है।” बंसीधर श्रीवास्तव
प्रश्न 3
भारत में किस क्षेत्र (ग्रामीण अथवा नगरीय) के प्रौढ स्त्री-पुरुषों को सामाजिक शिक्षा की अधिक आवश्यकता है?
उत्तर :
भारत में ग्रामीण क्षेत्र के प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों को सामाजिक शिक्षा की अधिक आवश्यकता है।
प्रश्न 4
वर्तमान सामाजिक शिक्षा की सफलता के मार्ग में मुख्य बाधक कारक क्या है?
उत्तर :
वर्तमान सामाजिक शिक्षा की सफलता के मार्ग में मुख्य बाधक कारक है-प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों का निरक्षर होना।
प्रश्न 5
‘राष्ट्रीय प्रौढ़ शिक्षा परिषद् की स्थापना कब हुई? [2007, 09]
उत्तर :
राष्ट्रीय प्रौढ़ शिक्षा परिषद् की स्थापना 5 सितम्बर, 1969 को हुई थी।
प्रश्न 6
सामाजिक शिक्षा का प्रमुख कार्यक्रम क्या है? [2013]
उत्तर :
सामाजिक शिक्षा का प्रमुख कार्यक्रम समस्त प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों को आधुनिक जीवनोपयोगी ज्ञान प्रदान करना है।
प्रश्न 7
निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य
- प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों को शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था को सामाजिक शिक्षा कहते हैं।
- केवल साक्षरता प्रदान करने से सामाजिक शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता।
- सामाजिक शिक्षा के अन्तर्गत केवल व्यावसायिक शिक्षा ही प्रदान की जाती है।
- नगरीय क्षेत्रों में सामाजिक शिक्षा पूर्णरूप से अनावश्यक है।
- सामाजिक शिक्षा के अन्तर्गत हर प्रकार का जीवनोपयोगी ज्ञान प्रदान किया जाता है।
उत्तर :
- सत्य
- सत्य
- असत्य
- असत्य
- सत्य
बहुविकल्पीय प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों में दिये गये विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए।
प्रश्न 1
भारत में प्रौढ शिक्षा का आरम्भ कब हुआ?
(क) 1908 ई० में
(ख) 1910 ई० में
(ग) 1921 ई० में
(घ) 1922 ई० में
उत्तर :
(ख) 1910 ई० में
प्रश्न 2
अखिल भारतीय प्रौढ शिक्षा परिषद्’ की स्थापना कब हुई? [2010]
(क) 1937 ई० में
(ख) 1938 ई० में
(ग) 1939 ई० में
(घ) 1940 ई० में
उत्तर :
(ग) 1939 ई० में।
प्रश्न 3
देश में राष्ट्रीय प्रौढ शिक्षा कार्यक्रम कब लागू किया गया?
(क) 2 अक्टूबर, 1978 में
(ख) 26 जनवरी, 1980 में
(ग) 15 अगस्त, 1985 में
(घ) 1 जुलाई, 1990 में
उत्तर :
(क) 2 अक्टूबर, 1978 में
प्रश्न 4
प्रौढ़ शिक्षा को सामाजिक शिक्षा किस वर्ष से कहा जाने लगा है?
(क) 1947 ई० से
(ख) 1949 ई० से
(ग) 1952 ई० से
(घ) 1956 ई० से
उत्तर :
(ख) 1949 ई० से
प्रश्न 5
समाज के प्रौढ स्त्री-पुरुषों को साक्षर बनाने तथा जीवनोपयोगी ज्ञान प्रदान करने के लिए चलाई जाने वाली शैक्षिक योजना को कहते हैं
(क) रात्रि पाठशाला योजना
(ख) प्रौढ़ शिक्षा योजना
(ग) सामाजिक शिक्षा योजना
(घ) महत्त्वपूर्ण शिक्षा योजना
उत्तर :
(ग) सामाजिक शिक्षा योजना
प्रश्न 6
सामाजिक शिक्षा के पक्ष माने गये हैं
(क) प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों को साक्षर बनाना
(ख) प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों में शिक्षित मस्तिष्क का विकास करना
(ग) प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों में नागरिकता की भावना का विकास करना
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर :
(घ) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 7
सामाजिक शिक्षा का उद्देश्य है [2008, 09, 14]
(क) शिक्षा प्रमाण-पत्र देना
(ख) साक्षरता प्रदान करना
(ग) जीवनोपयोगी ज्ञान देना
(घ) मनोरंजन देना
उत्तर :
(ग) जीवनोपयोगी ज्ञान देना
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