UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 2 Indian Education in Buddhist Period (बौद्ध-काल में भारतीय शिक्षा)
UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 2 Indian Education in Buddhist Period (बौद्ध-काल में भारतीय शिक्षा)
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
बौद्धकालीन शिक्षा के उद्देश्यों एवं आदर्शों का उल्लेख कीजिए।
बौद्ध शिक्षा-प्रणाली के क्या उद्देश्य थे? वर्तमान में उनकी प्रासंगिकता की विवेचना कीजिए।
उत्तर
बौद्धकालीन शिक्षा के उद्देश्य
बौद्धकालीन शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे-
1. सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास-बौद्धकालीन शिक्षा का बदकालीन शिक्षा के उद्देश्य उद्देश्य व्यक्तित्व के ज्ञानात्मक, भावात्मक एवं क्रियात्मक तीनों पक्षों सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास का विकास करना था।
बौद्ध धर्म का प्रचार
2. बौद्ध धर्मक़ा प्रचार–बौद्धकालीन शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य चरित्र-निर्माण बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार एवं ग्रहण करना था, जिससे कि लोगों में निर्वाण की मात धर्म के प्रति श्रद्धा, विश्वास एवं आस्था बढ़े।
सामाजिक योग्यता और कुशलता
3. चरित्र-निर्माण सादगीपूर्ण और पवित्र जीवन, ब्रह्मचर्य, का विकास संयम तथा सदाचार द्वारा विद्यार्थियों के चरित्र का निर्माण करना। राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय भावना
4. निर्वाण की प्राप्ति-बौद्धकालीन शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य का विकास जीवन के दुःख, कष्ट, रोग वं मृत्यु से मनुष्य को निर्वाण प्राप्त कराना था।
5. सामाजिक योग्यता और कुशलता का विकास–शिक्षा के क्षेत्र में ज्ञान और कौशल का समन्वय इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किया गया था। इस काल में धर्म का अर्थ आध्यात्मिक एवं सामाजिक कर्तव्यों का पालन करने से लिया जाता था और व्यक्ति की शिक्षा उसे यह क्षमता प्रदान करती थी कि वह अपने आपको समाज का एक योग्य सदस्य बनाए।
6. राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय भावना का विकास–बौद्धकालीन शिक्षा का एक उद्देश्य राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय भावना का विकास भी था। इसके लिए बौद्ध भिक्षु अपने देश और विदेश में भ्रमण करते थे और वे अपनी ही वेशभूषा, भाषा व आचार-विचार का प्रयोग करते थे। । उल्लेखनीय है कि बौद्ध शिक्षा प्रणाली के उपर्युक्त वर्णित उद्देश्य वर्तमान में भी अपनी प्रासंगिकता को बनाए हुए हैं। वर्तमान में शिक्षा को जीवन के मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया गया है, क्योंकि इसी से व्यक्ति का कल्याण सम्भव है।
चरित्र-निर्माण की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए नैतिक शिक्षा को प्राथमिकता दी जा रही है। भारत जैसे सीमित संसाधन एवं जनसंख्या आधिक्य वाले विकासशील देश में, समाज एवं राष्ट्र की उन्नति हेतु मानव संसाधन विकास में शिक्षा की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इसी प्रकार समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, . गरीबी, वर्ग-भेद आदि समस्याओं हेतु शिक्षा का प्रचार अपरिहार्य आवश्यकता है।
बौद्धकालीन शिक्षा के आदर्श
बौद्धकालीन शिक्षा के प्रमुख आदर्श निम्नलिखित थे-
- जीवन और शिक्षा में घनिष्ठ सम्बन्ध था तथा जीवन के आदर्श शिक्षा में भी अपनाए गए थे। इसलिए विद्यार्थियों को सरल, शुद्ध, पवित्र व सात्विक जीवन व्यतीत करना पड़ता था।
- समाज सेवा बौद्ध शिक्षा का दूसँग आदर्श था। उपसम्पदा संस्कार सम्पन्न होने पर विद्यार्थी भिक्षु बन जाता था और वह बौद्ध धर्म एवं मठ की सेवा करता था। भिक्षु का कार्य समाज में भ्रमण करना और धर्म के सिद्धान्तों से जन-साधारण को शिक्षित-दीक्षित करना था।
- विश्व कल्याण बौद्ध शिक्षा का तीसरा आदर्श था। धर्म का प्रचार करने वाले भारत से बाहर भी गए और सम्पूर्ण जीवन वे मनुष्यों को जीवन के सत्यों का ज्ञान देते रहे, जिससे सम्पूर्ण विश्व के लोगों का कल्याण हो सके। बौद्ध धर्म में विश्व कल्याण की भावना होने के कारण ही उसका व्यापक प्रचार हुआ।
- बौद्धकालीन शिक्षा जनतान्त्रिक आदर्शों पर आधारित थी। इसमें समानता, स्वतन्त्रता और सामाजिक हित की भावना निहित थी। सभी लोग बिना किसी भेदभाव के समान रूप से शिक्षा ग्रहण करने और निर्वाण प्राप्त करने के अधिकारी थे।
प्रश्न 2
बौद्धकालीन शिक्षा की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
बौद्धकालीन शिक्षा की विशेषताएँ
भारतीय शिक्षा के इतिहास में ईसा से पूर्व छठी शताब्दी में शिक्षा के क्षेत्र में कुछ परिवर्तन हुए। इस काल, जिसे बौद्धकाल कहा जाता है, की शिक्षा को बौद्धकालीन शिक्षा कहा जाता है। वैदिक धर्म एवं ब्राह्मण-उपनिषद् धर्म के पालन करने वालों में बहुत-से अवगुण, अन्धविश्वास, आडम्बर तथा जातीय । भेदभाव आदि आ गए थे। इस कारण यह आवश्यक था कि समाज के सदस्यों को धर्म के मूल सिद्धान्तों के प्रति प्रबुद्ध किया जाए इसलिए देश में एक नए सम्प्रदाय का उदय हुआ, जिसे महात्मा बुद्ध के अनुयायियों ने, उनके नाम से, जन्म दिया था। यह बौद्ध धर्म के नाम से प्रचलित हुआ। इस धर्म के अभ्युदय, विकास एवं प्रसार के कारण भारतीय शिक्षा का भी विकास हुआ और इसे बौद्धकालीन शिक्षा प्रणाली का नाम दिया गया। बौद्धकालीन शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं|
1. समन्वित शिक्षा-धार्मिक परिवर्तन के कारण बौद्धकालीन शिक्षा की विशेषताएँ बौद्धकालीन शिक्षा-प्रणाली में आरम्भ में केवल बौद्ध धर्म की शिक्षा दी जाती थी, बाद में सभी धर्मों के मानने वाले शिक्षा लेने लगे,
समन्वित शिक्षा इसलिए बौद्ध और अबौद्ध सभी विषयों की शिक्षा दी गई। केवल चाण्डाल, गम्भीर रोगों से ग्रस्त रोगियों तथा अपराधी व्यक्तियों को शिक्षा लेने का अधिकार नहीं था।
2. धार्मिक संस्कार–बौद्धकालीन शिक्षा का आरम्भ विकास ‘पवज्जा’ या ‘प्रव्रज्या संस्कार से होता था। यह संस्कार 8 वर्ष की जनतान्त्रिक भावना व्यापक शिक्षा, आयु में होता था। इसमें बालक-बालिका अपने माता-पिता के घर राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय को छोड़कर व पीले वस्त्र पहनकर गुरु के सामने नतमस्तक होता दृष्टिकोण का विकास था, प्रार्थना करता था और गुरु उसे स्वीकार करता था।
सामान्य शिक्षा, तकनीकी शिक्षा दूसरे संस्कार विद्यार्थी द्वारा तीन प्रण’ करना था, वह ‘समनेर’ और धार्मिक शिक्षा या ‘श्रमण’ कहलाता था। तीन प्रण ये थे—
- बुद्धम् शरणम् जनसाधारण की भाषा शिक्षा को गच्छामि।
- धम्मं शरणम् गच्छामि।
- सधं शरणम् गच्छामि। इसके माध्यम संस्कार के समय विद्यार्थी को निम्नांकित नियमों का पालन करने की शिक्षा का व्यवस्थीकरण प्रतिज्ञा लेनी पड़ती थी
- किसी जीव की हिंसा मत करो।
- अशुद्ध आचरण से दूर रहो।
- असत्य भाषण मत करो।
- कुसमय भोजन न करो।
- मादक वस्तुओं का प्रयोग न करो।
- नृत्य और तमाशों से दूर रहो।
- बिना दिए हुए किसी की वस्तु को ग्रहणून करो।
- बहुमूल्य पदार्थ दान में न लो।
- किसी की निन्दा मत करो।
- श्रृंगार की वस्तुओं का उपभोग न करो।
तीसरा संस्कार ‘उपसम्पदा’ का था, यह 20 वर्ष की आयु में सम्पन्न होता था। इस संस्कार के बाद शिष्य भिक्षु और शिष्या भिक्षुणी हो जाते थे। इसे संस्कार के होने से शिष्य आजीवन धर्म के लिए कार्य करता था। मठ और विहार के साथ संलग्न शिक्षालयों में ये शिक्षा देते थे।
3. धार्मिक भावना का विकास–बौद्धकालीन शिक्षा का आधार बौद्ध धर्म था। बुद्ध और उनके धर्म तथा संघ की शरण में रहना तथा बौद्ध धर्म के इस नियमों का पालन करना ही शिक्षा था।
4. वैयक्तिक और सामाजिक विकास-बौद्धकालीन शिक्षा आरम्भ में वैयक्तिक रूप से व्यक्ति को धर्म का ज्ञान कराती थी। बाद में उसका लक्ष्य ऐसे व्यक्तित्व एवं चरित्र का विकास करना हो गया जो समाज को आगे ले जा सके।
5. जनतान्त्रिक भावना–शिक्षा के माध्यम से समाज के सभी लोगों में समानता और स्वतन्त्रता की श्रेष्ठ भावना लाने का प्रयत्न किया जाता था ताकि चारों वर्गों के लोग परस्पर मिल-जुलकर जीवन व्यतीत करें।
6. व्यापक शिक्षा–बौद्ध काल में भारतीय संस्कृति का भौतिक पक्ष काफी समृद्ध हो चुका था और इस काल में शिक्षा लौकिक एवं धार्मिक दोनों प्रकार की थी। बालक और बालिका, ज्ञानी और व्यवसायी दोनों शिक्षा प्राप्त करते थे। शासन और जनसाधारणेदोनों के लिए शिक्षा की उत्तम व्यवस्था थी। इस प्रकारे बौद्ध काल में शिक्षा का क्षेत्र व्यापक था।
7. राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण का विकास–बौद्ध धर्म में शिक्षा लेकर लोग विदेशों में जाते थे और विदेशों से आए लोगों का स्वागत करते थे। बौद्ध विद्वान् एवं भिक्षु इसे अपना कर्तव्य मानते थे कि वे राष्ट्रीय धर्म, ज्ञान, बुद्धि, सभ्यता आदि को अपने देश में तथा दूसरे देशों में फैलाएँ। इस प्रकार शिक्षा द्वारा लोगों में राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण का विकास किया जाता था।
8. सामान्य शिक्षा, तकनीकी शिक्षा और धार्मिक शिक्षा–बौद्धकालीन शिक्षा की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह थी कि इस काल में लोग शिल्प कौशल या तकनीकी शिक्षा को उतना ही उपयोगी और आवश्यक समझते थे, जितनी दर्शन, धर्म, भाषा आदि की शिक्षा को।
9. जनसाधारण की भाषा शिक्षा का माध्यम-वैदिक शिक्षा के अन्तर्गत शिक्षा का माध्यम संस्कृत भाषा थी। इससे केवल उच्च वर्ग के लोग ही शिक्षा प्राप्त कर सकते थे और इससे जनसाधारण में शिक्षा का प्रचार नहीं होता था। अत: बौद्ध काल में शिक्षा का विकास जनसाधारण की भाषा पालि में किया गया।
10. शिक्षा का व्यवस्थीकरण–बौद्धकालीन शिक्षा व्यवस्थित थी। प्राथमिक शिक्षा पाठशालाओं में और उच्च शिक्षा विश्वविद्यालयों में दी जाती थी। इसके साथ ही माध्यमिक विद्यालयों और तकनीकी शिक्षा संस्थाओं की व्यवस्था भी अवश्य ही रही होगी।
प्रश्न 3
वैदिक और बौद्ध शिक्षा-प्रणालियों की समानताओं और असमानताओं की विवेचना कीजिए।
या वैदिककाल तथा बौद्ध-शिक्षा की समानताओं तथा असमानताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर
प्राचीनकाल में भारत में विकसित होने वाली दो मुख्य शिक्षा प्रणालियों को क्रमशः वैदिक शिक्षा या हिन्दू-ब्राह्मणीय शिक्षा तथा बौद्धकालीन शिक्षा के रूप में जाना जाता है। बौद्धकालीन शिक्षा बौद्ध धर्म एवं दर्शन की सैद्धान्तिक मान्यताओं पर आधारित थी, परन्तु यह भी सत्य है कि बौद्ध धर्म भी एक भारतीय धर्म था तथा बौद्धकालीन शिक्षा भारतीय सामाजिक परिस्थितियों में ही विकसित हुई थी।
इस स्थिति में वैदिक शिक्षा तथा बौद्धकालीन शिक्षा में कुछ समानताएँ होना नितान्त स्वाभाविक ही था, परन्तु वैदिक-धर्म तथा बौद्ध धर्म में कुछ मौलिक तथा सैद्धान्तिक अन्तर भी है। दोनों धर्मों का सामाजिक व्यवस्था स्तरीकरण तथा जीवन के उद्देश्यों आदि के प्रति दृष्टिकोण भिन्न है। इस स्थिति में दोनों धर्मों द्वारा विकसित की गयी शिक्षा-प्रणालियों में कुछ स्पष्ट अन्तर पाया जाता है। इस स्थिति में वैदिक-शिक्षा तथा बौद्धकालीन शिक्षा के तुलनात्मक विवरण को प्रस्तुत करने के लिए इन शिक्षा-प्रणालियों में पायी जाने वाली समानताएँ तथा असमानताएँ अग्रलिखित हैं–
वैदिक तथा बौद्ध शिक्षा की समानताएँ
डॉ० अल्तेकर के अनुसार, “जहाँ तक सामान्य शैक्षिक सिद्धान्त या प्रयोग की बात है, हिन्दुओं और बौद्ध में कोई विशेष अन्तर नहीं था। दोनों प्रणालियों के समान आदर्श थे और दोनों समान विधियों का अनुसरण करती थी। इस स्थिति में इन दोनों शिक्षा-प्रणालियों में विद्यमान समानताओं का विवरण निम्नवर्णित है
- दोनों शिक्षा प्रणालियाँ हर प्रकार के बाहरी नियन्त्रण से मुक्त थी अर्थात् वे अपने आप में स्कतन्त्र थी। दोनों शिक्षा व्यवस्थाओं में राज्य अथवा किसी अन्य सत्ता का कोई हस्तक्षेप नहीं था।
- दोनों ही शिक्षा-प्रणालियों में शिक्षण की मौखिक विधि को अपनाया गया था।
- वैदिक तथा बौद्ध शिक्षा-प्रणालियों में समान रूप में छात्रों को दिनचर्या तथा सामान्य जीवन के | नियमों का पालन करना पड़ता था।
- दोनों ही शिक्षा प्रणालियों में अनुशासन की गम्भीर समस्या नहीं थी तथा अनुशासन बनाये रखने | के लिए कठोर या शारीरिक दण्ड का प्रावधान नहीं था।
- दोनों शिक्षा-प्रणालियाँ धर्म-प्रधान थीं अर्थात् शिक्षा के क्षेत्र में धार्मिक एवं नैतिक मूल्यों को समुचित महत्त्व दिया गया था।
- दोनों ही शिक्षा-प्रणालियों में शैक्षिक-प्रक्रिया में कुछ संस्कारों को विशेष महत्त्व दिया गया था।
- दोनों ही शैक्षिक व्यवस्थाओं में शिक्षा पूर्ण रूप से निःशुल्क थी अर्थात् शिक्षा ग्रहण करने के लिए किसी प्रकार का शुल्क देने का प्रावधान नहीं था।
- किसी भी शिक्षा-प्रणाली का मूल्यांकन करते समय गुरु-शिष्य सम्बन्धों को अवश्य ध्यान में रखा जाता है। वैदिक शिक्षा तथा बौद्ध-शिक्षा के सन्दर्भ में कहा जा सकता है कि इन दोनों शिक्षा प्रणालियों में गुरु-शिष्य सम्बन्ध बहुत ही मधुर, स्नेहपूर्ण, पवित्र तथा पारस्परिक व कर्तव्यों पर आधारित थे। यह समानता विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण मानी जाती है।
- ये दोनों ही शिक्षा-प्रणालियाँ विभिन्न निर्धारित नियमों द्वारा परिचालित होती थीं। शिक्षा प्रारम्भ | करने की आयु शिक्षा की अवधि आदि पूर्ण रूप से नियमित तथा निश्चित थी।
- वैदिक शिक्षा तथा बौद्ध शिक्षा-व्यवस्था के अन्तर्गत शैक्षिक वातावरण सम्बन्धी समानता थी। गुरुकुल तथा बौद्ध मठ सामान्य रूप से गाँव या नगर से कुछ दूर प्राकृतिक रमणीक वातावरण में ही स्थापित किये जाते थे।
- वैदिक शिक्षा तथा बौद्ध-शिक्षा में समान रूप से छात्रों द्वारा सादा तथा सरल जीवन व्यतीत किया जाता था तथा सदाचार को विशेष महत्त्व दिया जाता था। व्यवहार में सादा जीवन उच्च-विचार के आदर्श को अपनाया जाता था।
वैदिक तथा बौद्ध शिक्षा की असमानताएँ
वैदिक तथा बौद्ध शिक्षा प्रणालियों में विद्यमान असमानताओं का सामान्य विवरण निम्नवर्णित है|
- वैदिक काल में शिक्षा की व्यवस्था मुख्य रूप से गुरुकुलों में होती थी, जबकि बौद्धकाल में यह
व्यवस्था बौद्ध-मठों एवं विहारों में होती थी। वैदिक काल में सामान्य विद्यालय नहीं थे, परन्तु | बौद्धकाल में इस प्रकार के विद्यालय स्थापित हो गये थे। - “वैदिक काल में शिक्षा का माध्यम संस्कृत भाषा थी, जबकि बौद्धकाल में शिक्षा का माध्यम पालि | भाषा तथा कुछ क्षेत्रीय भाषाएँ थीं।।
- वैदिक काल में शिक्षा प्रदान करने का कार्य ब्राह्मण करते थे, जबकि बौद्धकाल में ऐसा बन्धन नहीं था। किसी भी जाति का योग्य व्यक्ति शिक्षा प्रदान कर सकता था।
- वैदिक काल में शिक्षा का स्वरूप व्यक्तिगत एवं पारिवारिक था, जबकि बौद्धकाल में यह स्वरूप । सामूहिक एवं संस्थागत था।
- वैदिक काल में केवल सवर्णो को शिक्षा प्रदान की जाती थी, जबकि बौद्धकाल में किसी प्रकार का जातिगत भेदभाव नहीं था।
- वैदिक काल में छात्रों का जीवन अधिक कठोर एवं तपोमय था, जबकि बौद्धकाल में यह कठोरता घट गयी।
- वैदिक काल में शिक्षा अनिवार्य रूप से शिक्षके-केन्द्रित थी, जबकि बौद्धकाल में छात्रों को भी कुछ स्वतन्त्रता एवं अधिकार प्राप्त थे।
- वैदिक काल में वैदिक धर्म, दर्शन एवं साहित्य की शिक्षा दी जाती थी परन्तु बौद्ध-शिक्षा के अन्तर्गत बौद्ध धर्म एवं दर्शन को शिक्षा के पाठ्यक्रम में अधिक महत्त्व दिया जाता था।
- वैदिककालीन प्रायः सभी शिक्षण-संस्थाओं में एकतन्त्रवादी सत्ता-व्यवस्था का बोलबाला था, परन्तु बौद्धकाल में प्राय: सभी शिक्षण संस्थाओं में जनतान्त्रिक सत्ता-व्यवस्था को प्राथमिकता दी जाती थी।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
बौद्धकालीन शिक्षा में गुरु-शिष्य सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
डॉ० ए०एस० अल्तेकर ने लिखा है, “गुरु-शिष्य के बीच पिता-पुत्र का सम्बन्ध होता था। वे परस्पर श्रद्धा, विश्वास और स्नेह से बंधे रहते थे।”
गुरु के प्रति, भक्ति और प्रेम व्यापक एवं सर्वमान्य था। गुरु भी शिष्यों को सही मार्ग पर ले जाता था।
1. गुरु का कर्तव्य-गुरु का लक्ष्य हर छात्र को धर्म, नैतिकता, आध्यात्मिकता एवं बौद्धिकता प्रदान करना होता था। इस उत्तरदायित्व को वह भली प्रकार से वहन करता था। गुरु छात्र की सभी आवश्यकताओं को पूरी करता था। शिष्यों को आगे बढ़ाना, उनकी शंकाओं को दूर करना, उनकी रुचि के अनुकूल विषयों का ज्ञान देना, उन्हें जाग्रत एवं जिज्ञासु करना, संघ के जीवन के लिए तैयार करना, नियम न मानने के कारण दण्ड देना, सुधास्ना तथा पुनः सही मार्ग पर छात्रों को लाना गुरु का ही काम था।
गुरु छोटी-छोटी कक्षाओं में शिष्यों को बाँटकर शिक्षा देता था और व्यक्तिगत रूप से उन पर ध्यान रखता था। पढ़ाए गए पाठ की रोज जाँच करता था। पुराने पाठ के याद कर लेने के बाद ही नए पाठ का ज्ञान दिया जाता था। छात्र को उसकी शक्ति एवं क्षमता के अनुरूप शिक्षा दी जाती थी। वार्षिक परीक्षा नहीं होती थी। सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने पर शिक्षा पूरी समझी जाती थी। शिक्षा देने का पूरा भारे गुरु लेता था। गुरु शिष्यों का बौद्धिक, शारीरिक एवं धार्मिक विकास करता था।
2.शिष्य का कर्तव्य-प्रत्येक विद्यार्थी का कर्तव्य था नैतिक एवं ब्रह्मचर्यपूर्ण जीवन बिताना, संघ के नियमों एवं गुरु के आदेशों का पालन करना, गुरु की सेवा में लगे रहना, भोजन एवं आचरण की दृष्टि से शुद्ध-सरल जीवन जीना, स्वाध्याय में लगे रहना, मानवीय गुणों का विकास करना, सत्य का पालन, हिंसा न करना, आमोद-प्रमोद व मनोरंजन से दूर रहना, गुरु के साथ शास्त्रार्थ करना, ज्ञान की खोज में भ्रमण करना, समाज को दीक्षित करने के लिए प्रयत्न करना, समाज सेवा आदि। इस प्रकार, गुरु के आदर्शों, आदेशों और आचरण का अनुसरण करके शिष्य भी सिद्ध हो जाता था और उसे सिद्धि बिहारक’ की उपाधि मिलती थी।
इस काल में गुरु-शिष्य का सम्बन्ध आदर्शमय, त्यागमय एवं कर्त्तव्यमय होता था, परन्तु यह सम्बन्ध शिक्षा काल तक ही सीमित रहता था। निर्धन छात्र गुरु की विशिष्ट सेवा करता था। वह गुरु के दैनिक कार्यों में सुहयोग देता था। बौद्धग्रन्थ महावग्गा में गुरु-शिष्य के सम्बन्ध में विशद् वर्णन दिया गया है।
प्रश्न 2
बौद्धकालीन शिक्षा के पाठ्यक्रम का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
बौद्धकालीन शिक्षा का पाठ्यक्रम प्रारम्भिक, उच्च, औद्योगिक और व्यावसायिक वर्गों में बँटा हुआ था
- प्रारम्भिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में साधारण लिखना-पढ़ना, गणित, पंच विद्या (शब्द विद्या, शिल्प विद्या, चिकित्सा विद्या, हेतु विद्या व अध्यात्म विद्या) सम्मिलित थे।
- उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम में सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक रूप से प्रायः सभी विषय पढ़ाए जाते थे; यथा–धर्म, भाषा, इतिहास, भूगोल, ज्योतिष, राजनीति, न्याय, शिल्प, कला प्रशासन आदि।
- औद्योगिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में केवल कला-कौशल और व्यावसायिक शिक्षा में केवल व्यवसाय उद्योग विषय रखे गए थे। इस प्रकार बौद्धकालीन शिक्षा के पाठ्यक्रम में चार बातें प्रमुख थीं
- धार्मिक शिक्षा–बौद्ध धर्म के ग्रन्थ-त्रिपिटक-सुत्त पिटक, विनय पिटक व अभिधम्म पिटक का अध्यय
- हिन्दू दर्शन–वेद, पुराण, व्याकरण, ज्योतिष, छन्द, सांख्य, योग, न्याय वैशेषिक आदि का अध्ययन।
- भाषाएँ–पालि, संस्कृत, तिब्बती, चीनी आदि भाषाओं का अध्ययन।
- विज्ञान व कला-विज्ञान, चिकित्सा, शिल्प, तर्कशास्त्र, विधिशास्त्र तथा कला के विषयों का अध्ययन।
मिलिन्दपन्हो और अन्य बौद्ध ग्रन्थों में आखेट विद्या, धनुर्विद्या, जादू, सैन्य विज्ञान, प्रकृति अध्ययन, लेखा विज्ञान, मुद्रा विज्ञान, शल्यशास्त्र, अस्त्र विज्ञान आदि विषयों का भी उल्लेख मिलता है।
प्रश्न 3
बौद्धकालीन शिक्षा के प्रबन्ध का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
बौद्धकालीन शिक्षा के कई स्तर थे-
- प्रारम्भिक शिक्षा,
- उच्च शिक्षा,
- व्यावसायिक शिक्षा,
- ललित कलाओं की शिक्षा। स्त्री-शिक्षा की भी समुचित व्यवस्था थी। विद्यालय, विश्वविद्यालय तथा शिक्षा केन्द्रों की भी व्यवस्था की गई थी। इसी प्रकार सभी वर्गों तथा जातियों के लिए जनसाधारण शिक्षा का भी प्रबन्ध था।
शिक्षा के लिए आर्थिक व्यवस्था समाज के द्वारा की जाती थी। शासन, नगर श्रेष्ठ (सेठ) व अन्य धनी लोग धन तथा सम्पत्ति देकर शिक्षा की व्यवस्था करते थे, परन्तु शैक्षिक प्रबन्ध में इन्हें कोई अधिकार प्राप्त नहीं था। अधिकांश विद्यार्थी नि:शुल्क शिक्षा प्राप्त करते थे। कुछ शिक्षा केन्द्रों में शिक्षा शुल्क भी देना पड़ता था। भोजन और ओवास व्यवस्था छात्रावासों में होती थी।
इस काल में शैक्षिक व्यवस्था मठाधीश या विहार के प्रधान के हाथ में थी। उसी के अधीन सभी भिक्षु. होते थे, जो धार्मिक और लौकिक शिक्षा के लिए उत्तरदायी होते थे। विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में प्रवेश देने का, शिक्षा की अघधि, शिक्षा के सत्र, अध्ययन का समय, अवकाश आदि का पूरा अधिकार मठाधीश को होता था।
प्रशासन की व्यवस्था संघ संचालक द्वारा होती थी। उसके सहयोगी अन्य अध्यापक एवं विद्यार्थी भी होते थे। प्रशासन के संचालन में सहायता देने के लिए अनेक समितियाँ भी होती थीं।। शैक्षणिक समिति के कार्य थे—छात्रों का प्रवेश लेना, तत्सम्बन्धी नियम बनाना, पाठ्यक्रम तैयार करना, अध्यापन के लिए अध्यापक नियुक्त करना, परीक्षा लेना, प्रमाण-पत्र देना, पुस्तकालय का संचालन करना, पुस्तकें लिखवाना तथा उन्हें सुरक्षित रखना आदि।
प्रबन्ध समिति का कार्य था–अर्थ भार लेना, विद्यालय भवन बनवाना, विद्यालय की सामग्री की देखभाल करना, छात्रावास का प्रबन्ध करना; भोजन आदि की व्यवस्था करना, नौकरों की नियुक्ति करना, चिकित्सा का प्रबन्ध करना आदि प्रबन्ध समिति के कार्य थे।
प्रश्न 4
बौद्धकालीन शिक्षा में अपनाई जाने वाली मुख्य शिक्षा-विधियों का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर
बौद्ध काल में शिक्षण की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित थीं-
- शिक्षक द्वारा शिक्षण विधि-प्रतिदिन शिक्षक द्वारा प्रातः 7 बजे से 11 बजे तक और फिर 2 बजे से सायं 5 या 6 बजे तक शिक्षा दी जाती थी। पहले पुराने पाठ का स्मरण कराया जाता था, तत्पश्चात् नया पाठ पढ़ाया जाता था।
- प्रवचन या व्याख्यान विधि-शिक्षक अपनी इच्छानुसार विषय के ऊपर प्रवचन या व्याख्यान देता था। शिक्षक शुद्ध उच्चारण और कण्ठस्थलीकरण पर विशेष बल देता था।
- वाद-विवाद विधि-शिक्षक सत्यों को प्रमाणित करने के लिए वाद-विवाद और शास्त्रार्थ विधि का प्रयोग करते थे। इस विधि में सिद्धान्त, हेतु, उदाहरण, साम्य, विरोध, प्रत्यक्ष, अनुमान तथा निष्कर्ष या आगम प्रमाणों का प्रयोग किया जाता था।
- प्रश्नोत्तर विधि-शिक्षक छात्रों की शंकाओं का समाधान विषयों के स्पष्टीकरण और छात्रों में जिज्ञासा उत्पन्न करने के लिए प्रश्नोत्तर विधि का प्रयोग करते थे।
- मॉनीटोरियल विधि-कक्षा के कुशाग्र बुद्धि छात्र द्वारा या उच्च कक्षा के छात्रों द्वारा निम्न कक्षा के छात्रों को पढ़ाने का प्रबन्ध किय्य जाता था।
- पुस्तक अध्ययन विधि-सम्यक् ज्ञान पुस्तक में रहता था, अतएव पुस्तक अध्ययन की विधि अपनाई गई थी।
- सम्मेलन विधि-पूर्णिमा और प्रतिपदा के दिन संघ के सभी छात्र एवं अध्यापक एक साथ मिलते थे और वहीं ज्ञान-धर्म की चर्चा होती थी।
- निदिध्यासन विधि-धर्म एवं अध्यात्म के विषय के लिए यह विधि अपनाई जाती थी। इससे अन्तर्ज्ञान प्राप्त किया जाता था।
- देशाटन, भ्रमण और निरीक्षण विधि—छात्र विभिन्न स्थानों में भ्रमण व देशाटन करके ज्ञान प्राप्त करते थे और प्रकृति की विभिन्न वस्तुओं का निरीक्षण करते थे।
- व्यावसायिक व प्रयोगात्मक विधि-व्यावसायिक एवं औद्योगिक विषयों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए छात्र कुशल कारीगरों की देख-रेख में रहता था और दक्षता तथा प्रवीणता का अर्जन करता था। वह स्वयं काम करता था और अन्य लोगों के काम करने के तरीके का अवलोकन भी करता था।
प्रश्न 5
आधुनिक भारतीय शिक्षा के लिए बौद्ध-शिक्षा की देन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
आधुनिक भारतीय शिक्षा के लिए बौद्ध-शिक्षा की देन बौद्धकालीन भारतीय शिक्षा की कुछ मौलिक विशेषताएँ थीं, जिनके कारण इस शिक्षा-प्रणाली ने सम्पूर्ण भारतीय शिक्षा-व्यवस्था पर विशेष प्रभाव डाला। बौद्धकालीन शिक्षा प्रणाली एवं व्यवस्था के कुछ तत्त्व ऐसे थे जिनका अनुकरण आगामी भारतीय शिक्षा-व्यवस्था में भी किया जाता रहा तथा आज भी हमारी शिक्षा में उन्हें किसी-न-किसी रूप में देखा जा सकता है। इन तत्त्वों को बौद्धकालीन शिक्षा की आधुनिक भारतीय शिक्षा की देन माना जा सकता है। इन तत्त्वों या कारकों का सामान्य परिचय निम्नवर्णित है-
- आधुनिक युर्ग में सब कहीं पाये जाने वाले सामान्य विद्यालय मूल रूप से बौद्धकालीन शिक्षा-प्रणाली की ही देन है, क्योंकि सर्वप्रथम बौद्धकाल में ही सामान्य विद्यालय स्थापित हुए थे।
- वर्तमान समय में सार्वजनिक प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था है, इसे प्रारम्भ करने का श्रेय भी बौद्धकालीन शिक्षा-प्रणाली को ही था।
- आधुनिक युग में स्त्री-शिक्षा को विशेष आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। इस अवधारणा को भी सर्वप्रथम बौद्धकालीन शिक्षा-प्रणाली में ही प्रस्तुत किया गया था; अतः इसे भी बौद्ध-शिक्षा की ही देन माना जाता है।
- आधुनिक युग में छात्रों के सुचारु शारीरिक विकास के लिए विद्यालयों में खेल-कूद तथा शारीरिक व्यायाम की विशेष व्यवस्था की जाती है। इस व्यवस्था को भी सर्वप्रथम बौद्धकालीन शिक्षा-व्यवस्था में ही लागू किया गया था; अत: इसे उसी की देन माना जाता है।
- वर्तमान समय में प्राविधिक तथा विज्ञान सम्बन्धी शिक्षा को विशेष महत्त्व दिया जाता है। इस प्रकार की शिक्षा का प्रचलन भी सर्वप्रथम बौद्धकाल में ही हुआ था; अतः वर्तमान शिक्षा के लिए यह बौद्धकालीन शिक्षा की ही देन माना जा सकता है।
- बौद्धकालीन शिक्षा की एक अन्य सराहनीय देन है–शिक्षा के क्षेत्र में व्यावसायिक शिक्षा तथा लाभप्रद विषयों को सम्मिलित करना। आज भी इस वर्ग की शिक्षा को अति आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
- आधुनिक युग में शिक्षा के क्षेत्र में लौकिक तथा सामान्य विषयों के समावेश को विशेष प्राथमिकता दी जाती है। इस प्रचलन को भी बौद्धकाल में ही प्रारम्भ किया गया था।
- बौद्धकालीन शिक्षा की एक देन शिक्षा के क्षेत्र में सामूहिक प्रणाली को अपनाना, शिक्षण के लिए। बहु-शिक्षक व्यवस्था को लागू करना भी है। आज भी इन व्यबस्थाओं को अपनाया जा रहा है।
- बौद्धकालीन शिक्षा की एक देन शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न स्तरों की शिक्षा की अवधि को निर्धारित करना भी रही है।
- आज प्रत्येक शिक्षण संस्था के सँभी नियम पूर्व-निर्धारित तथा निश्चित होते हैं। शिक्षण संस्थाओं में इस व्यवस्था को प्रारम्भ करने का श्रेय बौद्धकालीन शिक्षा को ही है; अत: इसे भी उसकी देन माना जा सकता है।
- आज शिक्षा के क्षेत्र में अवसरों की समानता की अवधारणा को आवश्यक माना जा रहा है। मौलिक रूप से यह अवधारणा बौद्ध शिक्षा की ही देन है।
- आज अधिकांश विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करने वाले बालक अपने घरों में अपने परिवार के साथ
ही रहते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में इस व्यवस्था को प्रारम्भ करने का श्रेय बौद्ध शिक्षा-प्रणाली को ही | है, अत: इस व्यवस्था को भी बौद्ध शिक्षा की देन ही स्वीकार किया जाता है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
बुद्ध के समय में पबज्जा (प्रव्रज्या) संस्कार कैसे मनाया जाता था?
उत्तर
प्रव्रज्या संस्कार’ बौद्ध शिक्षा प्रणाली की प्रमुख विशेषता थी। यह संस्कार बालक की शिक्षा प्रारम्भ करने के अवसर पर आयोजित किया जाता था। ‘पबज्जा’ का शाब्दिक अर्थ है-‘बाहर जाना। अत: यह संस्कार,बालक द्वारा अपना घर छोड़कर शिक्षा ग्रहण के लिए किसी बौद्ध मठ के लिए गमन करने का द्योतक है। | पबज्जा संस्कार का विवरण ‘विनयपिटक’ में दिया गया है। इसके अनुसार, इस अवसर पर बालक सिर के बाल मुंडवाकर एवं पीले वस्त्र धारण कर मठ के भिक्षुओं के सम्मुख एक श्लोक का तीन बार पाठ करता था। यह श्लोकोथा “बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि, संघं शरणं गच्छामि” इस प्रकार विधिवत् शपथ ग्रहण करने के उपरान्त बालक को प्रधान भिक्षु द्वारा सामान्य उपदेश दिया जाता था, जिसमें उसे मुख्य रूप से दस आदेश दिए जाते थे। उदाहरणत: चोरी न करना, जीवहत्या न करना, असत्य न बोलना अशुद्ध आचरण नहीं करना आदि।
वस्तुतः ये आदेश विद्यार्थियों के लिए आचार-संहिता के समान थे। इस उपदेश के उपरान्त बालक को मठ की सदस्यता प्राप्त हो जाती थी तथा उसे नव-शिष्य, श्रमण या सामनेर कहा जाता था।
प्रश्न 2
बौद्धकालीन शिक्षा में अनुशासन की क्या व्यवस्था थी ?
उत्तर
बौद्धकालीन शिक्षा में छात्रों के लिए अनुशासित रहना अति आवश्यक था। प्रत्येक छात्र को विद्यालय के नियमों तथा रहन-सहन एवं खान-पान के नियमों का पालन करना पड़ता था। नियम और अनुशासन भंग तथा दुराचरण पर गुरु विद्यार्थी को दण्ड देता था, विद्यालय से निकाल देता था तथा विद्याध्ययन से कुछ समय के लिए वंचित कर देता था। छात्रों के प्रत्येक अपराध की सूचना गुरु द्वारा संघ को दी जाती थी और संघ की ‘प्रतिभारत’ सभा द्वारा दण्ड दिया जाता था। इसमें विद्यार्थी अपना अपराध सभी के सामने स्वीकार करता था। अनुशासनहीनता बढ़ने पर सभी छात्र दण्ड पाते थे।
प्रश्न 3
बौद्धकाल में स्त्री-शिक्षा की क्या व्यवस्था थी ?
उत्तर
बौद्धकाल में स्त्रियों अर्थात् बालिकाओं को शिक्षा दिए जाने की सुचारु व्यवस्था थी। इसका प्रमाण है कि इस काल में अनेक विदुषी स्त्रियों का उल्लेख हुआ है; जैसे–अनुपमा, सुमेधा, विजयंका तथा शुभा। बौद्धकाल में अनेक स्त्रियों ने बौद्ध-धर्म के प्रचार एवं प्रसार में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। परन्तु यह भी सत्य है कि बौद्धकाल में केवल उच्च वर्ग के परिवारों की स्त्रियाँ ही उत्तम शिक्षा प्राप्त कर पाती थीं। वास्तव में बौद्ध मठों में प्रारम्भ में स्त्रियों का प्रवेश निषिद्ध था। अत: बालिकाओं की शिक्षा की कोई सार्वजनिक व्यवस्था नहीं थी।
प्रश्न 4
बौद्धकालीन शिक्षा-व्यवस्था में समाज के किन वर्गों के व्यक्तियों को शिक्षा प्राप्त करने, का अधिकार प्राप्त नहीं था ?
उत्तर
बौद्ध मान्यताओं के अनुसार वर्ण या जातिगत भेदभाव की कोई महत्त्व नहीं था; अतः इस आधार पर समाज के किसी वर्ग को शिक्षा के अधिकार से वंचित नहीं किया गया था। सभी वर्गों एवं जातियों के बालक मठों में एक-साथ शिक्षा प्राप्त केरते थे। परन्तु बौद्धकालीन शैक्षिक नियमों के अनुसार चाण्डालों को शिक्षा प्राप्त करने के अधिकार से वंचित स्ख़ा गया था। चाण्डालों के अतिरिक्त अन्य दस आधारों पर भी किसी व्यक्ति को शिक्षा प्राप्ति के अधिकार से वंचित किया जा सकता था। ये आधार थे-
- नपुंसक व्यक्ति,
- दास अथवा ऋणग्रस्त व्यक्ति,
- राजा की नौकरी में संलग्न व्यक्ति,
- डाकू व्यक्ति,
- कारावास से भागा हुआ व्यक्ति,
- अंग-भंग व्यक्ति,
- विकृत शरीर वाला व्यक्ति,
- राज्य द्वारा दण्डित व्यक्ति,
- जिस व्यक्ति को माता-पिता ने शिक्षा प्राप्त करने की आज्ञा न दी हो,
- क्षय, कोढ़ तथा खुजली आदि संक्रामक रोगों से पीड़ित व्यक्ति।
प्रश्न 5
बौद्धकालीन शिक्षा के मुख्य गुणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
बौद्धकालीन शिक्षा के निम्नलिखित मुख्य गुणों का उल्लेख किया जा सकता है
- प्राथमिक एवं उच्च स्तर पर सभी प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था होना।
- जाति-पाँति के भेदभाव को दूर कर धनी व निर्धन, पुरुष व स्त्री सभी लोगों के लिए शिक्षा का प्रबन्ध होना।
- विभिन्न प्रकार के विद्यालयों, विश्वविद्यालयों तथा शिक्षा केन्द्रों की स्थापना होना।
- जीवनोपयोगी, ज्ञानात्मक एवं कौशलात्मक विषयों को संगठित करना।
- संयम, नियम-पालन, अनुशासन व आदर्शों पर ध्यान देना।
- पाठ्य-पुस्तके,रचना, सुरक्षा तथा पुस्तकालयों का विकास करना।
- स्त्री शिक्षा, व्यवसायिक, शिल्प एवं ललित कलाओं की शिक्षा का विकास करना।
- प्राचीन आधार पर होते हुए भी नवीन शिक्षा की ओर उन्मुख होना।
- सामाजिक एवं सामुदायिक जीवन की प्रगति पर बल देना।
- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय भावना से छात्रों का नैतिक, धार्मिक, ज्ञानात्मक, आर्थिक एवं राजनीतिक विकास करना।
प्रश्न 6
बौद्धकालीन शिक्षा के मुख्य दोषों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
बौद्धकालीन शिक्षा में निम्नलिखित दोष थे
- धार्मिक ज्ञान पर विशेष बल देना।
- तकनीकी कौशल के विषयों की शिक्षा का अभाव होना।
- सैनिक तथा शारीरिक शिक्षा का अभाव होना।
- समाज की ओर ध्यान होते हुए भी निवृत्ति मार्ग का अनुसरण करना।
- शिक्षा में शारीरिक श्रम के महत्त्व की उपेक्षा होना।
- शिक्षकों तथा छात्रों में अनुशासन-संयम के नियमों में शिथिलता होना।
- अनाचार फैलने से स्त्री शिक्षा का विकास अवरुद्ध होना।
- लोकतन्त्र के नाम पर स्वेच्छाचारिता का प्रवेश और विकास होना।
- जनसाधारणका दृष्टिकोण संकुचित और दूषित हो जाना।
- शिक्षा और जीवन दोनों की प्रगति रुक-सी गई।
प्रश्न 7
‘शरणत्रयी’ से आप क्या समझते हैं ?
उतर
बौद्धकालीन शिक्षा की मान्यताओं के अनुसार जब बालक की शिक्षा प्रारम्भ की जाती थी तब बालक बौद्ध मठ की शरण में जाता था। इस अवसर पर बालक को एक श्लोक का उच्चारण करना पड़ता था—“बुद्ध शरणं गच्छामि। धम्मं शरणं गच्छामि। संघं शरणं गच्छामि।” इस प्रचलन या परम्परा को ही ‘शरणत्रयी’ के रूप में जाना जाता था।
निश्चित उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1
बौद्धकालीन शिक्षा प्रणाली के नियमानुसार बालक की शिक्षा आरम्भं करते समय किस संस्कार को आयोजित किया जाता था ?
उत्तर
बालक की शिक्षा को एम्भ करते समय प्रव्रज्या संस्कार आयोजित किया जाता था।
प्रश्न 2
बौद्धकालीन शिक्षा में प्राथमिक शिक्षा का माध्यम कौन-सी भाषा थी ?
उत्तर
बौद्धकालीन शिक्षा में पालि भाषा के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा प्रदान की जाती थी।
प्रश्न 3
बौद्धकाल में मुख्य रूप से शिक्षण की किस प्रणाली को अपनाया जाता था ?
उत्तर
बौद्धकाल में मुख्य रूप से शिक्षण की मौखिक प्रणाली को अपनाया जाता था।
प्रश्न 4
बौद्धकालीन शिक्षा के दो मुख्य स्तर कौन-कौन-से थे ?
उत्तर
बौद्धकालीन शिक्षा के दो मुख्य स्तर थे—प्राथमिक शिक्षा तथा उच्च शिक्षा।
प्रश्न 5
बौद्धकालीन सामान्य शिक्षण संस्थानों को किस नाम से जाना जाता था?
उत्तर
बौद्धकालीन सामान्य शिक्षण संस्थाओं को बौद्ध मठ के नाम से जाना जाता था।
प्रश्न 6
बौद्धकालीन शिक्षा का परम उद्देश्य क्या स्वीकार किया गया था ?
उत्तर
बौद्धकालीन शिक्षा को परम उद्देश्य निर्वाण की प्राप्ति माना गया था।
प्रश्न 7
आलोचकों के अनुसार बौद्धकालीन शिक्षा में जीवन के किस पक्ष को समुचित महत्त्व प्रदान नहीं किया गया था ?
उत्तर
आलोचकों के अनुसार बौद्धकालीन शिक्षा में जीवन के लौकिक पक्ष को समुचित महत्त्व प्रदान नहीं किया गया था।
प्रश्न 8
बौद्धकाल में बालक की शिक्षा के पूर्ण होने के अवसर पर किस संस्कार को सम्पन्न किया जाता था ?
उत्तर
बौद्धकाल में बालक की शिक्षा के पूर्ण होने के अवसर पर उपसम्पदा संस्कार सम्पन्न किया जाता था।
प्रश्न 9
बौद्धकालीन शिक्षा-प्रणाली में किस वर्ग के व्यक्तियों को शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा गया था ?
उत्तर
बौद्धकालीन शिक्षा-प्रणाली में चाण्डाल वर्ग के व्यक्तियों को शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा गया था।
प्रश्न 10
बौद्ध काल में स्थापित किन्हीं दो प्रमुख विश्वविद्यालयों के नाम लिखिए।
उत्तर
1. नालन्दा विश्वविद्यालय तथा
2. विक्रमशिला विश्वविद्यालय।
प्रश्न 11
निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य
- बौद्धकालीन शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थी को आत्मनिर्भर तथा स्वावलम्बी बनाना था।
- बौद्ध काल में शिक्षा का माध्यम जनसाधारण की भाषा संस्कृत थी।
- बौद्ध काल में शिक्षा के क्षेत्र में शारीरिक विकास तथा सैन्य प्रशिक्षण को विशेष महत्त्व दिया जाता था।
- बौद्ध काल में प्राथमिक शिक्षा के मुख्य केन्द्र बौद्ध मठ थे।
- बौद्ध काल में शिक्षा का मुख्य स्वरूप लिखित ही था।
उत्तर
- असत्य,
- असत्य,
- असत्य,
- सत्य,
- असत्य
बहुविकल्पीय प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों में दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए
प्रश्न 1
बौद्ध धर्म के प्रवर्तक कौम थे ?
(क) महावीर स्वामी
(ख) गौतम बुद्ध
(ग) शंकराचार्य
(घ) अश्वघोष
उत्तर
(ख) गौतम बुद्ध
प्रश्न 2
“बौद्ध शिक्षा प्राचीन हिन्दू या ब्राह्मण शिक्षा-प्रणाली का केवल एक रूप थी।” यह कथन किसका है ?
(क) ए०एस० अल्तेकर
(ख) आर०के० मुकर्जी
(ग) डी०पी० मुकर्जी
(घ) कीथ
उत्तर
(ख)आर०के० मुकर्जी
प्रश्न 3
बौद्ध शिक्षा का अन्तिम लक्ष्य था
(क) चरित्र-निर्माण
(ख) व्यक्तित्व का विकास
(ग) जीविकोपार्जन
(घ) निर्वाण-प्राप्ति
उत्तर
(घ) निर्वाण-प्राप्ति
प्रश्न 4
बौद्ध शिक्षा का ज्ञान किस लेखक के यात्रा-विवरण से होता है?
(क) सुंमाचीन
(ख) फाह्याने
(ग) ह्वेनसाँग
(घ) इत्सिग
उत्तर
(ग) ह्वेनसाँग
प्रश्न 5
बौद्ध काल में प्राथमिक शिक्षा के प्रमुख केन्द्र थे
(क) देव मन्दिर
(ख) बौद्ध मठ
(ग) बौद्ध विहार
(घ) बौद्ध संघाराम
उत्तर
(ख)बौद्ध मठ
प्रश्न 6
बौद्ध काल में शिक्षा आरम्भ होने की आयु थी
(क) 5 वर्ष
(ख) 7 वर्ष
(ग) 8 वर्ष
(घ) 12 वर्ष
उत्तर
(ग) 8 वर्ष
प्रश्न 7
बौद्ध काल में शिक्षा प्रारम्भ का संस्कार था
(क) उपनयन
(ख) उपसम्पदा
(ग) पबज्जा
(घ) समावर्तन
उत्तर
(ग) पबज्जा
प्रश्न 8
बौद्ध काल में शिक्षा का माध्यम कौन-सी भाषा थी? बौद्ध मठों एवं विहारों में शिक्षा का माध्यम कौन-सी भाषा थी?
(क) पालि
(ख) प्राकृत
(ग) संस्कृत
(घ) मगधी
उत्तर
(क) पालि
प्रश्न 9
बौद्ध काल में शिक्षा का विश्वप्रसिद्ध केन्द्र था
(क) जौनपुर
(ख) उज्जैन
(ग) नालन्दा
(घ) अमरावती
उत्तर
(ग) नालन्दा
प्रश्न 10
बौद्ध काल के किस ग्रन्थ में उस समय प्रचलित व्यावसायिक शिक्षा के 19 विषयों का उल्लेख मिलता है
(क) बौद्धचरित
(ख) विनयपिटक
(ग) ललितविस्तर
(घ) मिलिन्दपन्हो
उत्तर
(घ) मिलिन्दन्हो
प्रश्न 11
विक्रमशिला विश्वविद्यालेस की स्थापना हुई थी
(क) बौद्ध काल में
(ख) वैदिक काल में
(ग) मुस्लिम काल में
(घ) ब्रिटिश काल में
उत्तर
(क) बौद्ध काल में
प्रश्न 12
नालन्दा विश्वविद्यालय वर्तमान समय में किस नगर के निकट स्थित है?
(क) पटना
(ख) राँची
(ग) आगरा
(घ) कोलकाता
उत्तर
(क) पटना
प्रश्न 13
प्रव्रज्या संस्कार का सम्बन्ध है
(क) वैदिक शिक्षा से
(ख) बौद्ध शिक्षा से.
(ग) मुस्लिम शिक्षा से
(घ) ब्रिटिश शिक्षा से
उत्तर
(ख) बौद्ध शिक्षा से
प्रश्न 14
बौद्रकालीन शिक्षा में किस संस्कार के पश्चात् बालक को ‘श्रमण’ कहा जाता था?
(क) पबज्जा
(ख) उपसम्पदा
(ग) उपनयन
(घ) समावर्तन
उत्तर
(ख) उपसम्पदा
प्रश्न 15
बौद्ध कौल में छात्रों को किस संस्कार के बाद मठों में शिक्षा ग्रहण करने हेतु प्रवेश
दिया जाता था ?
(क) उपनयन
(ख) प्रव्रज्या
(ग) शरणत्रयी
(घ) बिस्मिल्लाह
उत्तर
(ख) प्रव्रज्या
प्रश्न 16
भारत का सर्वप्रथम विश्वविद्यालय कौन-सा था ?
(क) तक्षशिला
(ख) नालन्दा
(ग) वल्लभी –
(घ) विक्रमशिला
उत्तर
(ख) नालन्दा
प्रश्न 17
बौद्ध काल में ‘महोपाध्याय किसे पढाते थे?
(क) सामनेर
(ख) गृहस्थ
(ग) शिक्षक
(घ) धम्म
उत्तर
(घ) धम्म
प्रश्न 18
मठ व्यवस्था महत्त्वपूर्ण तत्त्व था
(क) वैदिक शिक्षा का
(ख) इस्लाम शिक्षा को
(ग) जैन शिक्षा का
(घ) बौद्ध शिक्षा का
उत्तर
(घ) बौद्ध शिक्षा का
We hope the UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 2 Indian Education in Buddhist Period (बौद्ध-काल में भारतीय शिक्षा) help you.